धोबन और उसका बेटा

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jay
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Re: धोबन और उसका बेटा

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शाम होते होते तक हम अपने घर पहुच चुके थे. कपरो के गथर को इस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद हुँने हाथ मुँह धोया और फिर मा ने कहा की बेटा चल कुच्छ खा पी ले. भूख तो वैसे मुझे खुच खास लगी ऩही थी (दिमाग़ में जब सेक्स का भूत सॉवॅर हो तो भूख तो वैसे भी मार जाती हाई) पर फिर भी मैने अपना सिर सहमति में हिला दिया. मा ने अब तक अपने कपरो को बदल लिया था, मैने भी अपने पाजामा को खोल कर उसकी जगह पर लूँगी पहन ली क्यों की गर्मी के दीनो में लूँगी ज़यादा आराम दायक होती हाई. मा रसोई घर में चली गई और मैं क्योले की अंगीठी को जलाने के लिए इस्त्री करने वाले कमरे में चला गया ताकि इस्त्री का काम भी कर साकु. अंगीठी जला कर मैं रसोई में घुसा तो देखा मा वही एक मोढ़े पर बैठ कर ताजी रोटिया सेक रही थी. मुझे देखते ही बोली "जल्दी से आ दो रोटी खा ले फिर रात का खाना भी बना दूँगी". मैं जल्दी से वही मोढ़े (वुडन प्लांक) पर बैठ गया सामने मा ने थोरी सी सब्जी और दो रोटिया दे दी. मैं चुप चाप खाने लगा. मा ने भी अपने लिए थोरी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी. रसोई घर में गर्मी काफ़ी थी इस कारण उसके माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहने लगी. मैं भी पसीने से नहा गया था. मा ने मेरे चेहरे की र देखते हुए कहा "बहुत गर्मी हाई" मैने कहा "हा" और अपने पैरो को उठा के अपने लूँगी को उठा के पूरा जाँघो के बीच में कर लिया. मा मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुच्छ ऩही, वो चुकी घुटने मोर कर बैठी थी इसलिए उसने पेटिकोट को उठा कर घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी. उसके गोरे पिंदलियो और घुटनो का नज़ारा करते हुए मैं भी खाना खाने लगा. लंड की तो ये हालत थी अभी की मा को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी, यहा मा मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोरा उपर तक सारी उठा कर दिखा रही थी. मैने मा से कहा "एक रोटी और दे"
"ऩही अब और ऩही, फिर रात में भी खाना तो खाना हाई, आक्ची सब्ज़ी बना देती हू, अभी हल्का खा ले"


" क्या, मा तुम तो पूरा खाने भी ऩही देती, अभी खा लूँगा तो क्या तो हो जाएगा"


"जब जिस चीज़ का टाइम हो तभी वो करना चाहिए, अभी तो हल्का फूलका खा लो, रात में पूरा खाना"


मैं इस पर बुदबुदाते हुए बोला " सुबह से तो खाली हल्का फूलका ही खाए जा रहा हू, पूरा खाना तो पाता ऩही कब खाने को मिलेगा" ये

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: धोबन और उसका बेटा

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बात बोलते हुए मेरी नज़रे उसके दोनो जाँघो के बीच में गड़ी हुई थी.
हम दोनो मा बेटे को शायद द्वियार्थी बातो को करने में महारत हासिल
हो गई थी. हर बात में दो दो अर्थ निकल आते थे. मा भी इसको
आक्ची तरह से समझती थी इसलिए मुस्कुराते हुए बोली " एक बार पूरा
पेट भर के खा लेगा तो फिर चला भी ना जाएगा, आराम से धीरे धीरे
खा" . मैं इस पर गहरी सांस लेते हुए बोला " हा अब तो इसी आशा में
रात का इंतेज़ार करूँगा की शायद तब पेट भर खाने को मिल जाए" मा
मेरी तरप का मज़ा लेते हुए बोली " उम्मीद पर तो दुनिया कायम है जब
इतनी देर तक इंतेज़ार किया तो थोरा और कर ले आराम से खाना, अपने
बाप की तरह जल्दी क्यों करता है," मैं ने तब तक खाना ख़तम कर
लिया था और उठ कर लूँगी में हाथ पोच्च कर रसोई से बाहर निकाल
गया. मा ने भी खाना ख़तम कर लिया था. मैं इस्त्री वाले कमरे आ
गया और देखा की अंगीठी पूरी लाल हो चुकी है. मैं इस्त्री गरम
करने को डाल दी और अपने लूँगी को मोर कर घुटनो के उपर तक कर
लिया. बनियान भी मैने उतार दी और इस्त्री करने के काम में लग गया.
हालाँकि मेरा मन अभी भी रसोई घर में ही अटका परा था और जी कर
रहा था मैं मा के आस पास ही मंडराता राहु मगर, क्या कर सकता
था काम तो करना ही था. थोरी देर तक रसोई घर में खत-पट की
आवाज़े आती रही. मेरा ध्यान अभी भी रसोई घर की तरफ ही था. पूरे
वातावरण में ऐसा लगता था की एक अज़ीब सी खुश्बू समाई हुई है.
आँखो के आगे बार बार वही मा की चुचियों को मसलने वाला दृश्या
तैर रहा था. हाथो में अभी भी उसका अहसास बाकी था. हाथ तो मेरा
कपरो को इस्त्री कर रहे थे परंतु दिमाग़ में दिन भर की घटनाए
घूम रही थी.


मेरा मन तो काम करने में ऩही लग रहा था पर क्या करता. तभी मा
के कदमो की आहत सुनाई दी. मैने मूर कर देखा तो पाया की मा मेरे
पास ही आ रही थी. उसके हाथ में हसिया(सब्जी काटने के लिए गाओं
में इस्तेमाल होने वाली च्छेज़) और सब्जी का टोकरा था. मैने मा की ओर
देखा, वो मेरे ओर देख के मुस्कुराते हुए वही पर बैठ गई. फिर उसने
पुचछा "कौन सी सब्जी खाएगा". मैने कहा "जो सब्जी तुम बना दोगि
वही खा लूँगा". इस पर मा ने फिर ज़ोर दे के पुचछा "अर्रे बता तो, आज
सारी च्चेज़े तेरी पसंद की बनाती हू, तेरा बापू तो आज है ऩही, तेरी
ही पसंद का तो ख्याल रखना है". तब मैने कहा "जब बापू ऩही है
तो फिर आज केले या बैगान की सब्जी बना ले, हम दोनो वही खा लेंगे,
तुझे भी तो पसंद है इसकी सब्जी". मा ने मुस्कुराते हुए कहा "चल
ठीक है वही बना देती हू". और वही बैठ के सब्जिया काटने लगी.
सब्जी काटने के लिए जब वो बैठी थी तब उसने अपना एक पैर मोर कर
ज़मीन पर रख दिया था और दूसरा पैर मोर कर अपनी छाति से टिका
रखा था, और गर्दन झुकाए सब्जिया काट रही थी. उसके इस तरह से
बैठने के कारण उसकी एक चुचि जो की उसके एक घुटने से दब रही थी
ब्लाउस के बाहर निकलने लगी और उपर से झाकने लगी. गोरी-गोरी चुचि
और उस पर की नीली नीली रेखाए सब नुमाया हो रही थी . मेरी नज़र
तो वही पर जा के ठहर गई थी. मा ने मुझे देखा, हम दोनो की
नज़रे आपस में मिली, और मैने झेप कर अपनी नज़र नीचे कर ली और
इस्त्री करने लगा. इस पर मा ने हसते हुए कहा "चोरी चोरी देखने की
आदत गई ऩही, दिन में इतना सब कुछ हो गया अब भी...........".
मैने कुच्छ ऩही कहा और अपने काम में लगा रहा. तभी मा ने सब्जी
काटना बंद कर दिया और उठ कर खरी हो गई और बोली, "खाना बना
देती हू, तू तब तक छत पर बिच्छवान लगा दे बरी गर्मी है आज तो,
इस्त्री छ्होर कल सुबह उठ के कर लेना". मैने ने कहा "बस थोरा सा
और कर दू फिर बाकी तो कल ही करूँगा". मैं इस्त्री करने में लग गया
और, रसोई घर से फिर खाट पट की आवाज़े आने लगी यानी की मा ने
खाना बनाना शुरू कर दिया था. मैने जल्दी से कुछ कपरो को इस्त्री
की, फिर अंगीठी बुझाई और अपने तौलिए से पसीना पोचहता हुआ बाहर
निकाल आया. हॅंडपंप के ठंडे पानी से अपना मुँह हाथो को धोने के
बाद, मैने बिचवान लिया और छत पर चला गया . और दिन तो तीन
लोगो का बिच्छवान लगता था पर आज तो दो का ही लगाना था. मैने वही
ज़मीन पर पहले चटाई बिच्चाई और फिर दो लोगो के लिए बिच्छवान लगा
कर नीचे आ गया. मा अभी भी रसोई में ही थी. मैं भी रसोई घर
में घुस गया.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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jay
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Re: धोबन और उसका बेटा

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मा ने सारी उतार दिया था और अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में ही
खाना बना रही थी. उसने अपने कंधे पर एक छ्होटा सा तौलिया राक
लिया था और उसी से अपने माथे का पसीना पोच्च रही थी. मैं जब वाहा
पहुचा तो मा सब्जी को काल्च्चि से चला रही थी और दूसरी तरफ
रोटिया भी सेक रही थी. मैने कहा "कौन सी सब्जी बना रही हो केले
या बैगान की" मा ने कहा "खुद ही देख ले कौन

सी है".


"खुसभू तो बरी आक्ची आ रही है, ओह लगता है दो दो सब्जी बनी है"


"खा के बताना कैसी बनी है"


"ठीक है मा, बेटा और कुच्छ तो ऩही करना" कहते कहते मैं एक दम
मा के पास आ के बैठ गया था. मा मोढ़े पर अपने पैरो को मोर के
और अपने पेटिकोट को जाँघो के बीच समेत कर बैठी थी. उसके बदन
से पसीने की अज़ीब सी खुसबु आ रही थी. मेरा पूरा ध्यान उसके जाँघो
पर ही चला गया था. मा ने मेरी र देखते हुए कहा "ज़रा खीरा
काट के सलाद भी बना ले".


"वा मा, आज तो लगता है तू सारी ठंडी चीज़े ही खाएगी"


"हा, आज सारी गर्मी उतार दूँगी मैं"


"ठीक है मा, जल्दी से खाना खा के छत पर चलते है, बरी आक्ची
हवा चल रही है"
"ठीक है मा, जल्दी से खाना खा के छत पर चलते है, बरी आक्ची
हवा चल रही है"


मा ने जल्दी से थाली निकाली सब्जी वाले चूल्‍हे को बंद कर दिया, अब
बस एक या दो रोटिया ही बची थी, उसने जल्दी जल्दी हाथ चलना शुरू
कर दिया. मैने भी खीरा और टमाटर काट के सलाद बना लिया. मा ने
रोटी बनाना ख़तम कर के कहा "चल खाना निकाल देती हू बाहर आँगन
में मोढ़े पर बैठ के खाएँगे". मैने दोनो परोसी हुई तालिया उठाई
और आँगन में आ गया . मा वही आँगन में एक कोने पर अपना हाथ
मुँह धोने लगी. फिर अपने छ्होटे तौलिए से पोचहते हुए मेरे सामने
रखे मोढ़े पर आ के बैठ गई. हम दोनो ने खाना सुरू कर दिया. मेरी
नज़रे मा को उपर से नीचे तक घूर रही थी. मा ने फिर से अपने
पेटिकोट को अपने घुटनो के बीच में समेत लिया था और इस बार
शायद पेटिकोट कुछ ज़यादा ही उपर उठा दिया था. चुचिया एक दम
मेरे सामने तन के खरी खरी दिख रही थी. बिना ब्रा के भी मा की
चुचिया ऐसी तनी रहती थी जैसे की दोनो तरफ दो नारियल लगा दिए
गये हो. इतना उमर बीत जाने के बाद भी थोरा सा भी ढलकाव ऩही
था. जंघे बिना किसी रोए के, एक दम चिकनी और गोरी और मांसल थी.
पेट पर उमर के साथ थोरा सा मोटापा आ गया था जिसके कारण पेट में
एक दो फोल्ड परने लगे थे, जो देकने में और ज़यादा सुंदर लगते थे.
आज पेटिकोट भी नाभि के नीचे बँधा गया था इस कारण से उसकी
गहरी गोल नाभि भी नज़र आ रही थी. थोरी देर बैठने के बाद ही
मा को पसीना आने लगा और उसके गर्दन से पसीना लुढ़क कर उसके
ब्लाउस के बीच वाली घाटी में उतरता जा रहा था, वाहा से वो पसीना
लुढ़क कर उसके पेट पर भी एक लकीर बना रहा था और धीरे धीरे
उसकी गहरी नाभि में जमा हो रहा था मैं इन सब चीज़ो को बरे गौर
से देख रहा था. मा ने जब मुझे ऐसे घूरते हुए देखा तो हसते हुए
बोली "चुप चाप ध्यान लगा के खाना खा समझा" और फिर अपने छ्होटे
वाले तौलिए से अपना पसीना पोच्छने लगी. मैं खाना खाने लगा और
बोला "मा सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी है". मा ने कहा "चल तुझे
पसंद आई यही बहुत बरी बात है मेरे लिए, ऩही तो आज कल के
लार्को को घर का कुच्छ भी पसंद ही ऩही आता". मैने कहा "ऩही मा
ऐसी बात ऩही है, मुझे तो घर का माल ही पसंद है," ये माल साबद
मैने बरे धीमे स्वर में कहा था, की कही मा ना सुन ले. मा को
लगा की शायद मैने बोला है घर की दाल इसलिए वो बोली "मैं जानती
हू मेरा बेटा बहुत समझदार है और वो घर के दाल चावल से काम
चला सकता है उसको बाहर के मालपुए (एक प्रकार की खाने वाली चीज़,
जो की मैदे और चीनी की सहायता से बनाई जाती है और फूली हू पॅव की
तरह से दिखती है) से कोई मतलब ऩही है". मा ने मालपुआ साबद पर
सहायद ज़यादा ही ज़ोर दिया था और मैने इस शब्द को पकर लिया. मैने
कहा "पर मा तुझे मालपुआ बनाए काफ़ी दिन हो गये, कल मालपुआ बना
ना" मा ने कहा "मालपुआ तुझे बहुत अक्चा लगता है मुझे पाता है
मगर इधर इतना टाइम कहा मिलता था जो मालपुआ बना साकु, पर अब
मुझे लगता है तुझे मालपुआ खिलाना ही परेगा". मैने ने कहा "जल्दी
खिलाना मा", और हाथ धोने के लिए उठ गया मा भी हाथ धोने के
लिए उठ गई. हाथ मुँह धोने के बाद मा फिर रसोई में चली गई और
बिखरे परे सामानो को सम्भलने लगी मैने कहा "छ्होरो ना मा, चलो
सोने जल्दी से, यहा बहुत गर्मी लग रही है" मा ने कहा "तू जा ना
मैं अभी आती, रसोई गंदा छ्होरना अच्छी बात ऩही है". मुझे तो
जल्दी से मा के साथ सोने की हारबारी थी की कैसे मा से चिपक के
उसके मांसल बदन का रस ले साकु पर मा रसोई साफ करने में जुटी
हुई थी. मैने भी रसोई का समान संभालने में उसकी मदद करनी
शुरू कर दी. कुच्छ ही देर में सारा समान जब ठीक तक हो गया तो
हम दोनो रसोई से बाहर आ गये. मा ने कहा "जा दरवाजा बंद कर दे".
मैं दौर कर गया और दरवाजा बंद कर आया अभी ज़यादा देर तो ऩही
हुआ था रात के 9:30 ही बजे थे. पर गाँव में तो ऐसे भी लोग जल्दी
ही सो जया करते है. हम दोनो मा बेटे छत पर आके बिच्छवान पर
लेट गये.
बिच्छवान पर मेरे पास ही मा भी आके लेट गई थी. मा के इतने पास
लेटने भर से मेरे सरीर में एक गुदगुदी सी दौर गई. उसके बदन से
उठने वाली खुसबु मेरी सांसो में भरने लगी और मैं बेकाबू होने
लगा था. मेरा लंड धीरे धीरे अपना सिर उठाने लगा था. तभी मा
मेरी ओररे करवट कर के घूमी और पुचछा "बहुत तक गये हो ना"
"हा, मा "

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Re: धोबन और उसका बेटा

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जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज़यादा हो ही जाती है"

"हा, बरी थकावट लग रही है, जैसे पूरा बदन टूट रहा हो"

"मैं दबा दू, थोरी थकान दूर हो जाएगी"

"ऩही रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा"

"ऩही मा उतना तो ऩही थका की तेरी सेवा ना कर सकु"

मा के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हस्ते हुए बोली....."दिन में इतना कुच्छ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी"

"ही, दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुच्छ ऩही हुआ था". इस पर मा थोरा सा और मेरे पास सरक कर आई, मा के सरकने पर मैं भी थोरा सा उसकी र सरका हम दोनो की साँसे अब आपस में टकराने लगी थी. मा ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जाँघो को सहलाने लगी. मा की इस हरकत पर मेरे दिल की धरकन बढ़ गई और लंड अब फुफ्करने लगा था. मा ने हल्के से मेरी जाँघो को दबाया. मैने हिम्मत कर के हल्के से अपने कपते हुए हाथो को बढ़ा के मा की कमर पर रख दिया. मा कुछ ऩही बोली बस हल्का सा मुस्कुरा भर दी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथो से मा के नंगे कमर को सहलाने लगा. मा ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था. उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे. इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नज़र आ रही थी और मन कर रहा था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकर लू. पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था. मा ने जब मुझे चुचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "क्या इरादा है तेरा, शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जाएगा क्या"

"ही, मा तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहा घूर रहा था"

"चल झूते, मुझे क्या पाता ऩही चलता, रात में भी वही करेगा क्या"

"क्या मा"

"वही जब मैं सो जौंगी तो अपना भी मसलेगा और मेरी च्चातियों को भी दबाएगा"

"ही, मा"

"तुझे देख के तो यही लग रहा है की तू फिर से वही हरकत करने वाला है"

"ऩही, मा" मेरे हाथ अब मा की जाँघो को सहला रहे थे.

"वैसे दिन में मज़ा आया था" पुच्छ कर मा ने हल्के से अपने हाथो को मेरे लूँगी के उपर लंड पर रख दिया. मैने कहा "ही मा, बहुत अच्छा लगा था"

"फिर करने का मन कर रहा है क्या"

"है, मा"

इस पर मा ने अपने हाथो का दवाब ज़रा सा मेरे लंड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी. मा के हाथो का स्पर्श पा के मेरी तो हालत खराब होने लगी थी. ऐसा लग रहा था की अभी के अभी पानी निकल जाएगा. तभी मा बोली, "जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है वो काम अभी कर ले, चोरी चोरी करने से तो अच्छा है की तू मेरे सामने ही कर ले" मैं कुच्छ ऩही बोला और अपने काँपते हाथो को हल्के से मा की चुचियों पर रख दिया. मा ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकर कर अपनी च्चातियों पर कस के दबाया और मेरी लूँगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकर लिया. मैने भी अपने हाथो का दवाब उसकी चुचियों पर बढ़ा दिया. मेरे अंदर की आग एकद्ूम भारक उठी थी और अब तो ऐसा लग रहा था की जैसे इन चुचियों को मुँह में ले कर चूस लू. मैने हल्के से अपने गर्दन को और आगे की र बढ़ाया और अपने होतो को ठीक चुचियों के पास ले गया. मा सयद मेरे इरादे को समझ गई थी. उसने मेरे सिर के पिच्चे हाथ डाला और अपने चुचियों को मेरे चेहरे से सता दिया. हम दोनो अब एक दूसरे की तेज़ चलती हुई सांसो को महसूस कर रहे थे. मैने अपने होतो से ब्लाउस के उपर से ही मा की चुचियों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रहा था कभी उसके मोटे मोटे ****अरो को. मा ने भी अपना हाथ तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया था और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठिया रही थी. मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. तभी मैने सोचा ऐसे करते करते तो मा फिर मेरा निकल देगी और सयद फिर कुच्छ देखने भी ऩही दे जबकि मैं आज तो मा को पूरा नंगा करके जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था. इसलिए मैने मा के हाथो को पकर लिया और कहा "ही मा रूको"
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"क्यों मज़ा ऩही आ रहा है क्या, जो रोक रहा है"

"ही मा, मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर"

"फिर क्या हुआ,"

"फिर मा, मैं कुच्छ और करना चाहता हू, ये तो दिन के जैसे ही हो जाएगा"

इस पर मा मुस्कुराते हुए पुछि " तो तू और क्या करना चाहता है, तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना और कैसे निकलेगा"

"ही ऩही मा, पानी ऩही निकलना मुझे"

"तो फिर क्या करना है"

"ही मा, देखना है"

"ही, क्या देखना है रे"

"ही मा, ये देखना है" कह कर मैने एक हाथ सीधा मा के बुर पर रख दिया.

"ही, बदमाश, ये कैसी तमन्ना पल ली तूने"

"ही, मा बस एक बार दिखा दो ना"

"ऩही, ऐसा ऩही करते मैने तुम्हे थोरी च्छुत क्या दे दी तुम तो उसका फयडा उठाने लगे"

"ही, मा ऐसे क्यों कर रही हो तुम, दिन में तो कितना अcचे से बाते कर रही थी"

"ऩही, मैं तेरी मा हू, बेटा"

"ही, मा दिन में तो तुमने कितना अक्चा दिखाया भी था, थोरा बहुत"

"मैने कब दिखाया?, झूट क्यों बोल रहा है"

"ही, मा तुम जब पेशाब करने गई थी तब तो दिखा ही था"

"है, राम कितना बदमाश है रे तू, मुझे पाता भी ऩही लगा और तू देख रहा था, ही दैया आज कल के लौंदो का सच में कोई भरोसा ऩही, कब अपनी मा पर बुरी नज़र रखने लगे पाता ही ऩही चलता"

"ही मा ऐसा क्यों कह रही हो, मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मुझे दिखा रही हो इसलिए मैने देखा"

"चल हट मैं क्यों दिखौँगी, कोई मा ऐसा करती है क्या"

"ही, मैने तो सोचा था की रात में पूरा देखूँगा"

"ऐसी उल्टी सीधी बाते मत सोचा कर, दिमाग़ खराब हो जाएगा"

"ही मा, ओह मा दिखा दो ना, बस एक बार, खाली देख कर सो जौंगा" पर मा ने मेरे हाथो को झटक दिया और उठकर खरी हो गई. अपने ब्लाउस को ठीक करने के बाद छत के कोने की तरफ चल दी. च्चत का वो कोना घर के पिच्छवारे की तरफ परता था और वाहा पर एक नाली (मोरी) जैसा बना हुआ था जिस से पानी बह कर सीधे नीचे बहने नाली में जा गिरता था. मा उसी नली पर जा के बैठ गई अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी. मेरी नज़रे तो मा का पिच्छा कर ही रही थी. ये नज़ारा देख के तो मेरा मन और बहक गया. दिल में आ रहा था की जल्दी से जाके मा के पास बैठ के आगे झनाक लू और उसके पेशाब करते हुए चूत को कम से कम देख भर लू. पर ऐसा ना हो सका. मा ने पेशाब कर लिया फिर वो वैसे ही पेतकोट को जाँघो तक एक हाथ से उठाए हुए मेरी तरफ घूम गई और अपने बुर पर हाथ चलाने लगी जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और फिर मेरे पास आके बैठ गई. मैने मा के बैठने पर उसका हाथ पकर लिया और पायर से सहलाते हुए बोला "ही मा बस एक बार दिखा दो ना फिर कभी ऩही बोलूँगा दिखाने के लिए"

"एक बार ना कह दिया तो तेरे को समझ में ऩही आता है क्या"

"आता तो है मगर बस एक बार में क्या हो जाएगा"

"देख दिन में जो हो गया सो हो गया, मैने दिन में तेरा लंड भी मुठिया दिया था, कोई मा ऐसा ऩही करती, बस इससे आगे ऩही बढ़ने दूँगी"

मा ने पहली बार गंदे साबद का उपयोग किया था, उसके मुँह से लंड सुन के ऐसा लगा जैसे अभी झार के गिर जाएगा. मैने फिर धीरे से हिम्मत कर के कहा "ही मा क्या हो जाएगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो, तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना" "तेरा देखा है इसका क्या मतलब है, तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हू, और रही बात चुचि दिखाने और पकरने की वो तो मैने तुझे करने ही दिया है ना क्यों की बचपन में तो तू इसे पाकर्ता चूस्ता ही था, पर चूत की बात और है, वो तो तूने होश में कभी ऩही देखा ना, फिर उसको क्यों दिखौ". मा अब खुलाम कुल्ला गंदे सबदो का उपयोग कर रही थी.

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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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