उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे... compleet

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jay
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उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे... compleet

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उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे...

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ. दोस्तो अभी गयी मकर संक्रांति पर जो हुआ उस पर मुझे आज भी विश्वास नही हो पा रहा है. जॅयैपर में मकर संक्रांति हर वर्ष 14 जन्वरी को मनाई जाती है और इस दिन को पतंगो का त्योहार कहते है. हज़ारो पतंगे उड़ाई जाती है. लोग टेरेस पर चढ़ कर ग्रूप बनाकर दिन भर पतंगे उड़ाते रहते है. मैं भी और मेरी बिल्डिंग वाले भी पतंगे उड़ाने के बड़े शौकीन है. हम लोग सुबह से ही टेरेस पर चढ़ जाते है और शाम ढले ही वापस नीचे आते है. हमारी बिल्डिंग की टेरेस बहुत बड़ी है इसलिए दूसरी जगह के लोग भी हमारी बिल्डिंग में पतंगे उड़ाने आते है. हम लोग अपने फ्रेंड्स को बुलाते है हमारे साथ एंजाय करने के लिए. इस बड़ी टेरेस के साथ एक पानी की टंकी के लिए एक छ्होटी टेरेस भी बनी हुई है जो टेरेस के दूसरे हिस्से में है. पतंगे उड़ाने के लिए सब लोग बड़ी टेरेस ही यूज़ करते है. छ्होटी टेरेस मैं टेरेस से एक मंज़िल उपर भी है और स्टेरकेस के दूसरी तरफ भी है. उस तरफ दूसरी बिल्डिंग्स दूर होने के कारण पतंगे भी कम उड़ती है.

मैं मिड्ल क्लास फॅमिली से हूँ और अपने परिवार के साथ भाड़े के घर में रहता हूँ. हमारी बिल्डिंग में सब लोग भाड़े से ही रहते है. मकान मालिक दूसरी जगह रहता है. बिल्डिंग में कई कमरे खाली भी है. केयी तीन-चार सालों से खाली पड़े है. मेरा घर तीन रूम का है. आगे कोने में एक रूम काफ़ी दिनो से खाली पड़ा है तो मैने उसकी खिड़की, जोकि बॅक साइड के बॅराम्डा में खुलती है, के स्क्रू निकाल दिए. जिसे मैं उसको निकाल कर दिन में काफ़ी बार उस रूम को काम में लेता था. किसी को मालूम भी नही पड़ता था. मकान मालिक ने उसकी एलेक्ट्रिसिटी चालू रख छ्चोड़ी थी इसलिए फॅन और लाइट की कोई प्राब्लम नही होती थी. हम फ्रेंड्स लोग उसमे बैठकर राज शर्मा की कामुक कहानिया या मस्ती-ब्लास्ट ब्लॉग पर देशी वीडियो या विदेशी वीडियो देखते थे. मतलब यह हमारी अयाशी का अड्डा था. अंदर एक मेज और दो-तीन कुर्सिया पड़ी हुई थी.

मैं बी.कॉम के फाइनल एअर में हूँ. ऊम्र 19 यियर्ज़ और कद 5'9" और कसरती बदन. रंग गोरा और चेहरे से खूबसूरत. कॉलेज में मेरी काफ़ी लड़कियों से दोस्ती है जोकि मेरे रंग रूप पर फिदा है. मैं भी इनके साथ काफ़ी खेला खाया हुआ हूँ और हमारे शारीरिक संभंध भी बने हुए है. मुझे नयी-नयी अटॅक्टिव लड़कियों से दोस्ती करने में मज़ा आता है और इसमे मैं काफ़ी सक्सेस्फुल भी रहा हूँ. मेरे 8" के लंबे समान की केयी लड़किया दीवानी है.

खैर बात मकर सकरांति वाले किस्से की. उस दिन हम लोग सब टेरेस पेर सुबह 9 बजे से ही टेरेस से पतंगे उड़ाने में लगे हुए थे. मैं और मेरी बहन रश्मि टेरेस पर दूसरे लोगो के साथ पतंगे उड़ाने में लगे हुए थे. दोपहर में खाना खाने के बाद हम लोग वापस उपेर टेरेस पर आ गये. तभी मैने देखा कि एक लड़की जोकि टाइट टी-शर्ट और टाइट जीन्स पहने हुए वहाँ खड़ी पतंगे उड़ने का मज़ा ले रही थी. खुद तो नही उड़ा रही थी लेकिन चरखी पकड़े हुए एंजाय कर रही थी. मालूम करने पर मालूम हुआ कि हमारे किसी पड़ोसी की दूर की रिश्तेदार है और यही पास में कही रहती है. नाम उसका नताशा है.

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे...

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नताशा की उम्र मुझे 18 वर्ष से ज़्यादा की नही लग रही थी. हाइट करीबन 5'4" रंग मीडियम लेकिन बॉडी बोले तो एकदम झक्कास!! उफ्फ! टाइट टी-शर्ट में च्छूपे हुए मीडियम से बड़े उसके अनार, पतली कमर और टाइट जीन्स से ढके हुई उसकी मांसल जांघे और राउंड शेप के चूतड़. हॅयियी. एस, मेरा मन उसको देख कर तड़फ़ उठा. वाकई में मेरा दिल बल्ले-बल्ले करने लगा. उसकी टी-शर्ट के टाइट होने की वजह से उसके बूब्स की नुकीली नोक मेरे कलेजे को चीरती जा रही थी. मेरे लंड में रह-रह कर तनाव पैदा हो रहा था. मन कर रहा था कि माँझा और पतंगे को छ्चोड़कर उसके मम्मो को हथेली में लेकर मसल दूं. उफ़फ्फ़! क्या कातिल जवानी थी उसकी. वो भी इतनी देर में तीन-चार बार नज़रें घुमा कर मुझे उपर से नीचे तक देख रही थी. उसकी नज़रें रह-रह कर मुझ पर टिक जाती. मेरी नज़रें तो काइट पर कम उसके उपेर ज़्यादा थी.

मेरी बहन जोकि मेरी चरखी पकड़े हुए थी अचानक बोली, "भैया, मुझे ज़रा नीचे जाना है, तुम ज़रा चरखी पकड़ लो ना."

मेरी काइट उस समय काफ़ी उपेर थी इसलिए मैने कहा, "ज़रा 10-15 मिनिट रूको, रश्मि. अभी चरखी कौन पकड़ेगा?"

लेकिन रश्मि बोली, "अर्जेंट काम है भैया. लो मैं किसी दूसरे को पकड़ाती हूँ."

सयोंग से उस समय नताशा के हाथ में कोई चरखी नही थी. मेरी बहन उसको जानती भी थी. उसने नताशा को बुलाया और कहा, "प्लीज़ यह चरखी थोड़ी देर के लिए पकड़ लो. मुझे अर्जेंट काम से नीचे जाना है."

नताशा ने मेरी चरखी रश्मि के हाथ से ले ली. अब मेरी उस समय की चाहत के हाथ में मेरी डोर हो गयी.

मैने उसे हाई हेलो किया, "हाई. आइ'म राज शर्मा."

नताशा ने जवाब दिया, "हाई. आइ'म नताशा."

फिर मैं काइट उड़ाने में लग गया. बीच-बीच में उसको देखने के बहाने सिर पीछे कर उसे कुच्छ-ना-कुच्छ बात कर लेता. इससे मुझे मालूम हुआ कि वो चार साल पहले ही अपने गाओं से मुंबई में आई है और सेकेंड एअर Bआ में है. उसके बोलने के अंदाज़ से लग गया कि वो मुंबई में काफ़ी एंजाय कर रही है. उसकी गाओं वाली शरम हैया ख़तम हो चुकी है. वहाँ उसे पतंगे कभी उड़ाने कोनही मिली थी. लेकिन उसे काइट उड़ते हुए देखना खूब पसंद है.

मैने महशूष किया कि नताशा का चरखी पकड़ना पर्फेक्ट्ली नही आता है. मैने उसे बताया की काइट उड़ाने वाले के हाथ के इशारे को समझ कर कैसे चरखी पकड़ी जाती है. कैसे उड़ाने वाले के पीछे खड़ा हुआ जाता है. इतना सब बताने से उसने चरखी पकड़ने का अंदाज़ बदला और मुझे भी काइट उड़ाने में आसानी होने लगी. मैं बार-बार पीछे देखकर उसके मम्मो का आँखों से रसवादन कर लेता था. उसका चेहरे की सुंदरता को पी लेता था. वो भी मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझे ताक्ति रहती. जिसे मेरा उत्साह बढ़ रहा था. मेरे कॉलेज का एक्सपीरियेन्स मेरे काम आ रहा था. तभी मुझे एक आइडिया सूझा

मैं अब अपनी उड़ती हुई पतंग को एक साइड में ले गया और पीछे की तरफ होने लगा जिससे नताशा भी मेरे साथ पीछे होने लगी. मेरे अनएक्सपेक्टेड पीछे होने से मेरा बदन उसके जिस्म से रगड़ खा जाता. इसे मेरे बदन में चिंगारियाँ पैदा होने लगी. मैं अपनी काइट को नीचे उतारने के बहाने अपनी कोहनी से उसके मम्मो को टच करने लगा. फिर वापस से ढील दे कर काइट को और आयेज बढ़ा देता. ऐसा आधे घंटे में मैने ना जाने कितनी बार किया होगा. उसके मम्मे से मेरी कोहनी के हल्के टच से मेरे जिस्म में अंगारे भर रहे थे. उसकी तरफ से कोई नाराज़गी ना देखकर मुझे लगा मज़ा तो उसे भी आ रहा है. मैं अपनी इस कोहनी की हरकत का बड़े ही अंदाज़ से लुत्फ़ उठा रहा था. इस बीच मेरी केयी पतंगे कट गयी. तुरंत ही दूसरी नयी काइट उड़ा देता. और इस लुत्फ़ का मज़ा उठाता रहा.

तभी मेरी बहन रश्मि वापस आ गयी. उसके साथ मेरी फॅमिली के दूसरे मेंबर्ज़ भी आ गये. रश्मि ने आते ही कहा, "नताशा, ला अब चरखी मुझे...."

मज़ा खराब होते हुए देख मैने तुरंत ही बीच में बोल दिया, "रश्मि, जा. तू पापा की चरखी पकड़ ले. नताशा अभी मेरी चरखी पकड़ी हुई है."

नताशा ने मोहक अंदाज़ से मुस्कराते हुए कहा, "रश्मि, मैं ठीक हूँ यहाँ. तू अपने पापा की चरखी ले ले."

अब मुझे यकीन हो गया कि मेरा तीर निशाने पर लगा हुआ है. आटा कूदी फसली. मच्चली जाल में आ रही है. मैं अपने नये शिकार को पा कर बड़ा खुश हो रहा था. उसके बड़े और नुकीले मम्मो को अब मसल्ने का उपाय खोजने लगा. तभी मेरी यह इच्च्छा पूरी होने आ गयी.

नताशा ने कहा, "राज , मुझे भी काइट उड़ाने दो ना."

मैने पूछा, "तुम्हे आता है काइट उड़ाना."

नताशा ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, "नही. मैने कभी भी काइट नही उड़ाई है."
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Re: उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे...

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तब मैने मौके को ताड़ते हुए कहा, "रूको अभी. यहाँ तो तुम्हारे हाथ में आते ही कोई ना कोई तुम्हारी काइट काट देगा." फिर मैने दूसरी छ्होटी टेरेस के बारे में बताया, जोकि वहाँ से दिखाई तो नही पड़ रही थी, कहा, "वहाँ से उड़ाते है. वहाँ पतंगे बहुत कम है और तुम्हारी काइट को कोई जल्दी से काटेगा नही और तुम्हे भी उड़ाने में मज़ा आएगा."

मैने जल्दिबाज़ी में अपनी काइट के माँझे को बीच से ही तोड़ दिया. कौन उतारने का झंझट करे. मुझसे ज़्यादा जल्दी इस वक़्त और किसे होगी, फ्रेंड्स?

मैने 10-12 पतंगे साथ में ली और स्टेरकेस के दूसरी तरफ चल पड़ा. मेरे पीछे-पीछे नताशा हाथ में चरखी पकड़े हुए चल पड़ी. किसी ने हमे नही पूछा की कहाँ जा रहे हो. सब अपनी पतंगे उड़ाने में मशगूल थे. हम दोनो उस छ्होटी टेरेस पर चढ़ गये. वहाँ से बड़ी टेरेस वाले नही दिखाई दे रहे थे और उन लोगो को हम नही दिखाई दे रहे थे. अगाल बगल में बिल्डिंग्स नीचे थी जिसे हमे कोई तकलीफ़ नही थी. मैने वाहा पहुँचते ही काइट को उड़ाया और चरखी खुद पकड़ कर काइट उसके हाथ में दे दी. पहली बार उड़ाने के कारण उसे काइट संभालने में काफ़ी दिक्कत हो रही थी इसलिए काइट को मैने वापस अपने हाथ में ले ली.

अब मैने वही पुरानी टॅक्टिक्स अपनाई. इस बार जगह छ्होटी होने से मैं बार-बार और जल्दी-जल्दी अपनी कोहनी से उसके मम्मो पर रगड़ देने लगा. बस इतना ध्यान रखा कि कोई ज़ोर से ना मार दूँ. मैने महशूष किया की नताशा के मम्मे मुझे इस बार ज़्यादा कड़क लगे. इस पर गौर करते हुए पीछे मूड कर देखा तो मेरा मुँह आश्चर्या से खुला रह गया. नताशा अपना सीना थोडा आगे की और कर के आँखे बंद किए हुए खड़ी है. यानी खुद मेरी कोहनी की रगड़ खाने के लिए उतावली हो रखी है. मैने झूमते हुए काइट को उड़ाते हुए कोहनी से थोड़े ज़्यादा दबाते हुए उसके दोनो मम्मो पर बारी बारी रगड़ मारी. वॉववव! उसके मुँह से सिसकारी निकल रही थी. उफ़फ्फ़! यह सुनकर मेरा लंड तो दंडनाता हुआ खड़ा हो गया. मेरा जोश बढ़ गया. अब मुझे एक कदम और आगे बढ़ाना था. फिर एक आइडिया दीमाग में आया. आरे वह मेरे शैतान दीमाग!!!

मैने नताशा के हाथ में फिर से काइट थमा दी. उसे उड़ाने में दिक्कत होने पर मैने उसका हाथ थाम कर उसे उड़ाने के बारे में सिखाने लगा. सिखाना तो बहाना था. मैं तो अपनी जाँघो से उसके गोल-गोल चूतड़ को रगड़ रहा था. मेरा लंड मेरी जीन्स के अंदर कहीं च्छूपा हुआ था लेकिन था बड़ा अलर्ट. उसके चूतड़ का अहसास पाते ही फुंफ-कारने लगा. उसके हाथो को काइट उड़ाने के बहाने अपने हाथों से पकड़ रखा था. उसकी कोमल स्किन की छुहन मेरे जिस्म में बिजली पैदा कर रही थी. काइट को संभालने के कारण हम दोनो के हाथ एक साथ आगे पीछे हो रहे थे. जिसे मेरे हाथ उसके मम्मो को टच कर रहे थे. मैं अब उसके मम्मो के एकदम नज़दीक पहुँच चुका था. वो भी मज़े लेती हुई अपने हाथो को थोड़े ज़ोर से आगे पीच्चे कर रही थी जिसे उसके मम्मो पेर हाथो की टक्कर भी ज़ोर से होने लगी. इसके साथ ही उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी. उसकी आँखे बंद होने लगी.

मैने इसका फयडा उठाते हुए अपनी झंघों का ज़ोर उसके चूतड़ पर बढ़ा दिया. मेरा लंड शायद उसकी चूतड़ के क्रॅक्स के बीच लगा हुआ था. शायद इसलिए की दोनो की मोटी जीन्स पहने होने के कारण मालूम नही पड़ रहा था. फिर भी मैं कोशिश में लगा हुआ था. अब मेरे हाथ बार-बार उसके उन्नत और बड़े मम्मो के पास ही रह रहे थे. मैं अपने गालों को उसके गालों से टच करने की कोशिश करने लगा. हमारा ध्यान अब काइट उड़ाने पर नही बल्कि एक दूसरे में खो जाने में हो रहा था. काइट तो हमारी कोई पेच लगा कर काट चुका था लेकिन हम दोनो इस नये पेच लड़ाने में लगे हुए थे. अब मेरे हाथ सीधे उसके मम्मो को थाम चुके थे. उफफफफ्फ़! उसके मांसल और कड़क मम्मे मेरी हथेलियों के बीच में थे. मैं उनको सहला रहा था. वो आँखें बंद किए हुए सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ का ज़ोर मेरे लंड की तरफ बढ़ा रही थी.

इसी बीच मैने अपने घुटने से उसके घुटनो को मोड़ा और हम दोनो टेरेस के फर्श पर जा बैठे. अब उसका मुँह मेरी तरफ. उसका कोमल चेहरा, बंद आँखें, भारी साँसें और रूस से भरे तपते होंठ मुझे चूमने का इन्विटेशन देते हुए मेरी ओर बढ़े. मैं झट से अपने दोनो हथेलियों से उसको थाम लिया और अपने होंठो को उसके रसीले होंठो पर रख दिया. अफ... मादक रसीले होंठ... नरम और गरम... तपते हुए उसके होंठ... संतरे की फांको के जैसे मीठे होंठ...
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Re: उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे...

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नताशा भी अपनी आँखें बंद किए हुए मेरे तपते होंठो का जूस अपने नीचले होंठ से पी रही थी. मेरे दोनो हाथ अब उसके कोमल गालों को छ्छू रहे थे. उसकी रेशमी जुल्फें हमारे दोनो के चेहरे पर बिखरी हुई थी. उन्न रेशमी ज़ुल्फो के नीचे हम दोनो एक ज़ोर दार चुंबन लेने में लगे हुए थे. मैं उसके गालों को, कान को और उसकी बंद आँखों को अपनी हथेली से सहला रहा था. दोनो दीन-दुनिया से बेख़बर एक दूसरे के आगोश में खोए चुंबन पर चुंबन ले रहे थे. मैं अब अपने हाथों को नीचे लाते हुए उसकी टाइट टी-शर्ट में छिपे हुए उसके 2-2 गथीले और उभरे हुए उसके मम्मो को सहलाने लगा. सहलाते ही नताशा के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. सिसकारी के साथ ही उसके मुँह से थूक बाहर निकलने लगा. मैने झट से उसके दोनो मम्मो को थोड़ा ज़ोर से दबा दिया

"हाई दायया... थोड़ा धीरे..." बस इतना ही निकला उसके मुँह से.

मैने फिर से अपनी जीभ उसके मुँह में थेल्ते हुए उसके उसकी नरम जीभ का स्वाद लेने लगा और उसके मम्मो को सहलाते रहा. अब वो बेसब्री हो उठी. उसके हाथ मेरे सीने से फिसलते हुए मेरी जीन्स की चैन के पास आ गिरे. मैने थोडा बैठते हुए उसे अपनी बाहों में जाकड़ लिया. मैं उसके मम्मो को अब टी-शर्ट के अंदर से बाहर निकालने की कोशिश करने लगा. वो मेरी जीन्स की चैन को खोलने की कोशिश कर रही थी. तभी नीचे टेरेस एक-साथ ज़ोर दार आवाज़ गूँज उठी. शायद किसी की काइट किसी ने काटी थी. हम दोनो एक दूसरे की आँखों में देखा. एक दूसरे को छ्चोड़ने का सवाल नही था लेकिन यहाँ कपड़े उतारना भी ख़तरे से खाली नही था.

तभी मैने कहा, "नताशा, चलो नीचे चलते हैं."

वो बोली, "कहाँ? अब रहा नही जा रहा है राज शर्मा."

"नीचे एक रूम है. मैं पहले नीचे उतरता हूँ. पीछे पीछे तुम भी एक-दो मिनिट बाद नीचे आ जाना," मैने उसे कहा.

उसको छोड़ते हुए मैने फिर से उसके मदमुस्त होंठो का एक चुंबन ले लिया और नीचे टेरेस पेर उतर कर सीधा 2न्ड फ्लोर के खाली रूम, जोकि मेरा और मेरे फ्रेंड्स का ऐषगाह था, की तरफ निकल पड़ा. 3 मिनिट बाद नताशा भी वहाँ पर आ गयी. मैने रूम के पीछे वाली खिड़की को खोला और यहाँ-वहाँ देखने के बाद नताशा को रूम के अंदर खिड़की से जाने को कहा. नताशा के घुसने के बाद मैं भी अंदर घुस गया. अब रूम में हम दो ही थे. दो जिस्म दो जान जोकि एक जान होने वाले थे. मैने नाइट बल्ब जला दिया और नताशा को अपनी बाहों में भर लिया.
क्रमशः................
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Re: उड़ी रे....मेरी पतंग उड़ी रे...

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Udi Re....Meri Patang Udi Re...

Hello dosto Main yaani aapka dost Raj sharma aapke kiye ek our nai kahaani lekar haajir hun. dosto Abhi gayi Makar Sankranti per jo hua us per mujhe aaj bhi vishwas nahi ho paa raha hai. Mumbai mein Makar Sankranti her varsh 14 January ko manayi jaati hai aur is din ko Patang ka tyohaar kahte hai. Hajaaro Patange udaayi jaati hai. Log terrace per chadh kar group banakar din bhar Patange udaate rahte hai. Main bhi aur meri building wale bhi patange udaane ke bade shaukin hai. Hum log subah se hi terrace per chadh jaate hai aur shaam dhale hi wapas neeche aate hai. Hamaari building ki terrace bahut badi hai isliye dusri jagah ke log bhi hamari building mein patange udaane aate hai. Hum log apne freinds ko bulate hai hamare saath enjoy karne ke liye. Is badi terrace ke saath ek paani ki tanki ke liye ek chhoti terrace bhi bani huyi hai jo terrace ke dusre hisse mein hai. Patange udaane ke liye sub log badi terrace hi use karte hai. Chhoti terrace main terrace se ek manzil upar bhi hai aur staircase ke dusri taraf bhi hai. Us taraf dusri buildings dur hone ke karan patange bhi kam udati hai.

Main middle class family se hoon aur apne pariwaar ke saath bhaade ke ghar mein rahta hoon. Hammari building mein sub log bhaade se hi rahte hai. Makaan malik dusri jagah rahta hai. Building mein kai kamre khaali bhi hai. Kayi teen-chaar saalon se khaali pade hai. Mera ghar teen room ka hai. Aage kone mein ek room kaafi dino se khaali pada hai to maine uski khidki, joki back side ke barramda mein khulti hai, ke skrew nikaal diye. Jise main usko nikaal ker din mein kaafi baar us room ko kaam mein leta tha. Kisi ko maloom bhi nahi padta tha. Makaan Malik ne uski electricity chaalu rakh chodi thi isliye fan aur light ki koi problem nahi hoti thi. Hum freinds log usme baithkar Raj sharma ki kaamuk kahaniya ya Masti-blast jaisi deshi video ya videshi video dekhte the. Matlab yeh hamaari aiyaashi ka adda tha. Andar ek mej aur do-teen kursiya padi huyi thi.

Main B.Com ke final year mein hoon. Umra 19 years aur kad 5'9" aur kasrati badan. Rang gora aur chehre se khoobsurat. College mein meri kaafi ladkiyon se dosti hai joki mere rang roop per fida hai. Main bhi inke saath kaafi khela khaya hua hoon aur hamare sharirik sambhandh bhi bane huye hai. Mujhe nayi-nayi attactive ladkiyon se dosti karne mein maza aata hai aur isme main kaafi successful bhi raha hoon. Mere 8" ke lambe samaan ki kayi ladkiya deewani hai.

Khair baat Makar Sakranti wale kise ki. Us din hum log sub terrace per subah 9 baje se hi terrace se patange udaane mein lage huye the. Main aur meri bahan Rashmi terrace per dusre logo ke saath patange udaane mein lage huye the. Dopahar mein khaana khaane ke baad hum log wapas uper terrace per aa gaye. Tabhi maine dekha ki ek ladki joki tight T-shirt aur tight jeans pahne huye wahan khadi Patange udne ka maza le rahi thi. Khud to nahi udaa rahi thi lekin charkhi pakde huye enjoy kar rahi thi. Maloomaat karne per maloom hua ki hamaare kisi padosi ki dur ki rishtedaar hai aur yahi paas mein kahi rahti hai. Naam uska Natasha hai.

Natasha ki umra mujhe 18 varsh se jyada ki nahi lag rahi thi. Height kareeban 5'4" rang medium lekin body bole to ekdum jhakas!! Uff! Tight T-shirt mein chhupe huye medium se bade uske anaar, patli kamar aur tight jeans se dhake huyi uski mansal jhanghein aur round shape ke chutad. Haiii. Yess, mera man usko dekh kar tadaf utha. Wakai mein mera dil balle-balle karne laga. Uski t-shirt ke tight hone ki wajah se uske boobs ki nukili nok mere kaleje ko chirti jaa rahi thi. Mere lund mein reh-reh kar tanav paida ho raha tha. Man kar raha tha ki manjha aur patang ko chodkar uske mammo ko hatheli mein lekar masal doon. Ufff! Kya kaatil jawaani thi uski. Wo bhi itni der mein teen-chaar baar nazrein ghuma kar mujhe upar se neeche tak dekh rahi thi. Uski nazrein reh-reh kar mujh per tik jaati. Meri nazrein to patang per kam uske uper jyaada thi.

Meri bahan joki meri charkhi pakde huye thi ki achanak boli, "Bhaiya, mujhe jara neeche jaana hai, tum jara charkhi pakad lo naa."

Meri patang us samay kaafi uper thi isliye maine kaha, "Jara 10-15 minat ruko, Rashmi. Abhi charkhi kaun pakdega?"

Lekin Rashmi boli, "Urgent kaam hai bhaiya. Lo main kisi dusre ko pakdaati hoon."

Sayong se us samay Natasha ke haath mein koi charkhi nahi thi. Meri bahan usko jaanti bhi thi. Usne Natasha ko bulaya aur kaha, "Please yeh charkhi thodi der ke liye pakad lo. Mujhe urgent kaam se neeche jaana hai."

Natasha ne meri charkhi Rashmi ke hath se le li. Ab meri us samay ki chahat ke hath mein meri dor ho gayi.

Maine use hai hello kiya, "Hi. I'm Raj sharma."

Natasha ne jawab diya, "Hi. I'm Natasha."

Phir main patang udaane mein lag gaya. Beech-beech mein usko dekhne ke bahaane sir peeche ker use kuchh-na-kuchh baat kar leta. Ise mujhe maloom hua ki wo chaar saal pahle hi apne gaon se Mumbai mein aayi hai aur Second Year BA mein hai. Uske bolne ke andaaz se lag gaya ki wo Mumbai mein kaafi enjoy kar rahi hai. Uski gaon waali sharam haiya khatam ho chuki hai. Wahan use patange kabhi udaane nahi mili thi. Lekin use patang udte huye dekhna khoob pasand hai.

Maine mehshoosh kiya ki Natasha ka charkhi pakadna perfectly nahi aata hai. Maine use bataya ki patang udaane waale ke haath ke ishare ko samajh kar kaise charkhi pakdi jaati hai. Kaise udaane waale ke peechhe khada hua jaata hai. Itna sab bataane se usne charkhi pakadne ka andaaz badla aur mujhe bhi patang udaane mein aashani hone lagi. Main baar-baar peechhe dekhkar uske mammo ka ankhon se raswadan kar leta tha. Uska chehre ki sunderta ko pi leta tha. Wo bhi meri ankhon mein ankhein daal kar mujhe taakti rahti. Jise mera utsah badh raha tha. Mere college ka experience mere kaam aa raha tha. Tabhi mujhe ek idea sujha

Main ab apni udati huyi patang ko ek side mein le gaya aur peechhe ki taraf hone laga jise Natasha bhi mere saath peechhe hone lagi. Mere unexpected peechhe hone se mera badan uske jism se ragad khaa jaata. Ise mere badan mein chingariyaan paida hone lagi. Main apni patang ko neeche utaarne ke bahane apni kohni se uske mammo ko touch karne laga. Phir wapas se dheel de kar patang ko aur aage badha deta. Aisa aadhe ghante mein maine naa jaane kitni baar kiya hoga. Uske mamme se meri kohni ke halke touch se mere jism mein angaare bhar rahe the. Uski taraf se koyi naraazgi naa dekhkar mujhe laga maza to use bhi aa raha hai. Main apni is kohni ki harkat ka bade hi andaaz se lutf utha raha tha. Is beech meri kayi patange cut gayi. Turant hi dusri nayi patang udaa deta. Aur is lutf ka maza uthata raha.

Tabhi meri bahan Rashmi wapas aa gayi. Uske saath meri family ke dusre members bhi aa gaye. Rashmi ne aate hi kaha, "Natasha, laa ab charkhi mujhe...."

Maza kharab hote huye dekh maine turant hi beech mein bol diya, "Rashmi, jaa. Tu Papa ki charkhi pakad le. Natasha abhi meri charkhi pakadi huyi hai."

Natasha ne mohak andaaz se muskrate huye kaha, "Rashmi, main theek hoon yahan. Tu apne papa ki charkhi le le."

Ab mujhe yakeen ho gaya ki mera teer nishane per laga hua hai. Aata Kudi Fasli. Machhli jaal mein aa rahi hai. Main apne naye shikaar ko paa kar bada kush ho raha tha. Uske bade aur nukile mammo ko ab masalne ka upaay khojne laga. Tabhi meri yeh ichchha puri hone aa gayi.

Natasha ne kaha, "Raj sharma, mujhe bhi patang udaane do na."

Maine poochha, "Tumhe aata hai patang udaana."

Natasha ne inkaar mein sir hilate huye kaha, "Nahi. Maine kabhi bhi patang nayi udaayi hai."

Tab maine mauke ko tadte huye kaha, "Ruko abhi. Yahan to tumhare hath mein aate hi koyi na koyi tumhaari patang kaat dega." Phir maine dusri chhoti terrace ke baare mein bataya, joki wahan se dikhai to nahi pad rahi thi, kaha, "Wahan se udaate hai. Wahan patange bahut kam hai aur tumhari patang ko koyi jaldi se katega nahi aur tumhe bhi udaane mein maza aayega."

Maine jaldibazi mein apni patang ke manjhe ko beech se hi tod diya. Kaun utaarne ka jhanjhat kare. Mujhse jyada jaldi is waqt aur kise hogi, freinds?

Maine 10-12 patange saath mein li aur staircase ke dusri taraf chal pada. Mere peechhe-peechhe Natasha hath mein charkhi pakde huye chal padi. Kisi ne hame nahi poochha ki kahan jaa rahe ho. Sab apni patange udaane mein mashgul the. Hum dono us chhoti terrace per chadh gaye. Wahan se badi terrace waale nahi dikhai de rahe the aur unn logo ko hum nahi dikhai de rahe the. Agal bagal mein buildings neeche thi jise hame koi takleef nahi thi. Maine waha pahunchte hi patang ko udaaya aur charkhi khud pakad kar patang uske hath mein de di. Pahli baar udaane ke kaaran use patang sambhalne mein kaafi dikkat ho rahi thi isliye patang ko maine wapas apne haath mein le li.

Ab maine wahi purani tactics apnaayi. Is baar jagah chhoti hone se main baar-baar aur jaldi-jaldi apni kohni se uske mammo per ragad dene laga. Bus itna dhyaan rakha ki koyi jor se naa maar doon. Miane mehshoosh kiya ki Natasha ke mamme mujhe is baar jyaada kadak lage. Is per gaur karte huye peechhe mud kar dekha to mera munh ashcharya se khula rah gaya. Natasha apna seena thoda aage ki aur kar ke aankhe band kiye huye khadi hai. Yaani khud meri kohni ki ragad khaane ke liye utaawali ho rakhi hai. Maine jhoomte huye patang ko udaate huye kohni se thode jyaada dabate huye uske dono mammo per baari baari ragad maari. Wowww! Uske munh se siskaari nikal rahi thi. Ufff! Yeh sunkar mera lund to dandanaata hua khada ho gaya. Mera josh badh gaya. Ab mujhe ek kadam aur aage badhana tha. Phir ek idea deemag mein aayi. Aarey wah mere shaitaan deemag!!!
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