बाली उमर का चस्का compleet

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rajsharma
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बाली उमर का चस्का compleet

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बाली उमर का चस्का

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक और नई कहाई लेकर हाजिर हूँ आशा करता हूँ आपको ये कहानी बहुत पसंद आएगी दोस्तो ये कहानी एक कश्मीरी लड़की अनु की कहानी है अब आप ये कहानी अनु की ज़ुबानी ही सुने तो ठीक रहेगा . मैं श्रीनगर कश्मीर से अनु कौर अपने तजुर्बे आप लोगों से शेयर करना चाहती हूँ। कश्मीर को धरती पे स्वर्ग कहा जाता है । यहाँ कुदरती खूबसूरती की भरमार है और यह बात यहाँ की लडकियों मैं भी है। कश्मीरी लडकियों की खूबसूरती के चर्चे बहुत दूर तक हैं और वोही चर्चे मेरे भी हैं। मैं कॉलेज ख़तम कर चुकी हूँ और नोकरी करती हूँ। सेक्स की आदत छोटी उम्र से लग गयी और उसका कारण था यहाँ के मर्दों की भूख। एक लड़का चंदन कुमार हमारे पड़ोस मैं रहता था और जब भी मैं बाकी बच्चो के साथ खेल रही होती तो वो मुझे साइड पे बुला के मेरे जिस्म पे हाथ फेरा करता और मेरे होंठों को चूसा करता। 10 मिनट ऐसा करने के बाद वह मुझे टॉफी दे देता और बोलता किसी को नसुनाना वरना टॉफी नही मिलेगी। ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा और फिर एक दिन वो मुझे अपने घर ले गया। वहां सोफ़ा पे लिटा के उसने पहले 5 मिनट मुझे चूम चूम के बेहाल कर दिया। फिर अपनी पेंट उतार के मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया। मैं हैरान थी क्युकी पहली बार खड़ा लिंग देख रही थी। उसने मुझे पुछा की टॉफी पसंद है या चोकलेट तो मेने कहा चाकलेट। उसने मुझसे कहा की अगर चाकलेट चाहिए तो उसका लिंग मसलना पड़ेगा।
मैं भोली भाली थी। मुझे क्या पता यह सब क्या होता हे। मैं उसका लिंग मसलने लगी और वोह भी मेरे जिस्म पे हाथ फेरने लगा। फिर उसने मुझे चुम्बन दे के लिटाया और मेरी पेंटी उतार दी और मेरी जान्घों के बीच अपना लिंग फंसा के आगे पीछे झटके देने लगा। साथ ही वोह हमारे मोहल्ले की सबसे सेक्सी सरदारनी जिसका नाम रोमा कौर था और जो मेरी दूर की बेहेन थी उसका नाम ले रहा था। मैं हैरान परेशान सी सोफा पे लेटी हुई यह झेलती रही। फिर उसने मुझे उलटी लिटा दिया पेट के बल और पीछे से मेरी टांगो में लिंग सटा के धक्कम पेल करने लगा। 5 मिनट बाद उसने मुझे सीधी करके मेरे पेट और जाँघो पे सफ़ेद गाढ़ा पानी निकाल दिया। मैं हैरान हो गयी क्युकी पहली बार यह देखा था। मेने पुछा यह दही कहाँ से आया तो वोह हस के बोला हाँ यह दही है स्वाद ले के देख मेने ऊँगली से उठा केजीब पे रखा तो अजीव सा नमकीन स्वाद आया। फिर उसने अपनी ऊँगली पे लगा के सारा मुझे पिला दिया। उसके बाद चंदन ने मुझे चोकलेट दी और बोल किसी से ना कहना। मुझे चोकलेट पसंद थी और फिर यह सिलसिला चल पड़ा।
वह तक़रीबन हर दुसरे या तीसरे दिन मेरा ऐसा करता और बदले में चोकलेट या चिप्स दे देता। पर एक बात थी उसने कभी भी मेरे सुराख़ में लिंग डालने की कोशिश नही की। यह था मेरा पहले योंन सम्बन्ध जो 6 महीने चला। फिर चंदन के पापा का तबादला किसी और शेहर हो गया। चंदन के चले जाने के बाद अगले कई साल मेरी जिंदगी में कोई नया लड़का नही आया। मैं अब बड़ी हो रही थी और मेरे अंदर नई नई उमंगें जवान होने लगी थी। टीवी पे फिल्मो में दिखने वाले सीन्स मुझे मस्त कर देते। रोमांटिक सीन्स देख देख के मैं भी अपने हीरो की राह देखने लगी थी। कोई भी लड़का मुझे देखता तो मैं अंदर ही अंदर उम्मीद लगा बैठती की क्या येही हे मेरा राजकुमार। फिर वोह पल आ ही गया जब मेरा राजकुमार मेरे सपनो को पूरा करने चला आया। हमने अपना घर बदल लिया था और नये मोहल्ले में एक किराये के सेट में रहने चले आये थे। यह पुराने मोहल्ले से बड़ा और ज्यादा पोश एरिया था।
मैंने ध्यान दिया की दोलड़के आते जाते मुझे घूर के आपस में बातें करते हैं। वह दोनों क्लास मेट थे और मेरे स्कूल के सीनियर्स भी। मैं भी उनसे बात करना चाहती थी पर उनकी और से पहेल का इंतजार कर रही थी। कुछ दिन बीत गये और मेरी उस मोहल्ले में नई सहेलियां बन गयी। उनमे से डॉली दीदी मेरी बेस्ट फ्रंड थी। वोह एकदम खुल्ले ख्यालों वाली पंजाबी कुड़ी थी। मोहल्ले के लडको से उसकी खूब पटती थी। एक शाम को हम पार्क में खेल रहे थे की तभी डॉली दीदी कहीं गायब हो गयी। उनको ढूँढने के लिए मैं पार्क के पिछले कोने में गयी तो वहां झाड़ियों से मुझे डॉली दीदी के हस्सने की आवाज़ आई। मैं चोकन्नी हो गयी और बड़े ध्यान से करीब गयी। वहां जो हो रहा था उस से मेरे होश उड़ गये। डॉली दीदी को दो लडको ने अपने बीच दबोच रखा था और उनकी स्कर्ट उठी हुई थी कमर तक। मेरे दिमाग में चंदन के साथ बिताये पल याद आने लगे और मेरा जिस्म मस्ती के सैलाब में बहने लगा।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: बाली उमर का चस्का

Post by rajsharma »

मैं डॉली दीदी की हरकतों को देख के हैरान भी थी और उनकी हिम्मत की दाद भी दे रही थी। तभी वह दोनों लडको पे मेरी नजर पड़ी तो देखा की यह वही दोनों हैं जो मुझे घूरते थे। मैने ध्यान से उनकी बातों को सुना तो पता चला की वह मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे। डॉली दीदी ने उनको मेरा नाम बताया और कहा की वह दोनों सबर रखें तो मेरी उनसे दोस्ती करवा देंगी। यह बात सुन के मेरा दिल मस्ती से कूदने लगा और मैं वहां से चली आई। 15 मिनट बाद वह तीनो भी आ गये और डॉली दीदी ने मुझे बुला के अपने दोनों दोस्तों से परिचय करवाया। उनके नाम राज और जय था।
राज ऊँचा लम्बा हट्टा कट्टा लड़का था। रंग सांवला और चेहरे पे शेव बनाई हुई थी जिस से अंदाजा हो गया की वह व्यस्क हो चूका था। मोहल्ले के सभी लड़ों पे उसका दबदबा था क्युकी वह बॉडी बिल्डिंग करता था जिम में और अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। उसके पापा पंजाबी ब्राह्मण और माँ कश्मीरी पंडित थी। जय कश्मीरी पंडित लड़का था। एकदम गोरा चिट्टा और चिकना पर बातों का उतना ही तेज़ और चिकनी चुपड़ी बातें करने वाला। राज ने दोस्ती का हाथ मेरी और बढाया और मैंने भी बिना देरी के अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। जय भी मेरे पास आया और हाथ आगे बढाया पर राज मेरा हाथ छोड़ने को तयार ही नही था। डॉली दीदी हँसते हुए बोली अनु कौर राज का हाथ छोड़ेगी या बेचारा जय खड़ा रहे। मैं शर्म से लाल हो गयी पर राज ने बेशर्मो की तरह मेरा हाथ पकडे रखा। मुझे मजबूरी में अपने बायें हाथ से जय का हाथ थामना पड़ा। यह देख के डॉली दीदी बोली की तुम दोनों नई सरदारनी के चक्कर में पुरानी को भूल तो नही जाओगे। इस्पे राज ने हस के कहा की चिकनी सिखनियो का साथ नसीब वालों को मिलता है। इस बात पे हम सब खूब खिलखिला के हस दिए और हमारी दोस्ती का सफ़र शुरू हो गयानये माहोल में आ के एज नये खुल्लेपन का एहसास होने लगा था।
राज और जय से दोस्ती कर के नई उमंगे परवान चड़ने लगी थी। डॉली दीदी भी खूब बढ़ावा देती थी मुझे। एक दिन शाम को हम सारे छुप्पा छुपी खेल रहे थे। मैं राज के साथ एक दीवार के पीछे छुप गये। जय डॉली दीदी के साथ उनके घर के टॉयलेट में छुप गये जो बाहर बना हुआ था लॉन में। राज ने मुझे अपने सामने कर लिया और चुप रहने को कहा। तभी राजू जो हम सबको ढूंड रहा था वहां आया पर हम राज ने मोका देखते मेरा हाथ पकड़ा और जय के टॉयलेट की और दौड़ पड़ा। मैं भी राज का साथ देती हुई वहां पोहंच गयी। राज ने जय से दरवाजा खोलने को कहा और फिर हम दोनों भी अंदर घुस गये। अब जो हुआ उसके लिए मैं बिलकुल तयार नही थी।राज मेरे पीछे खड़ा हो गया और जय डॉली दीदी के। फिर जय ने अपने कूल्हे को डॉली के नितम्बों पे रगड़ना शुरू कर दिया। मैं आंखें खोल के डॉली को देख रही थी पर उसने मुझसे कहा ऐसा करने में बहुत मज्जा आता हे। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले राज ने अपने कूल्हे को मेरे नितंबो से लगा दिया। मेरी सिस्कारियां निकल गयी पर डॉली ने मेरा हाथ थाम के मुझे चुप रहने का इशारा किया।
बाहिर राजू हमें ढूंड रहाथा और अंदर हम रासलीला कर रहे थे। राज ने अपना मोटा लम्बा लिंग मेरे नितंबो के बिच की दरार में फस्सा दिया था और अब हलके हलके धक्के दे के वोह मुझे चंदन की याद दिला रहा था। मेने घुटनों जितनी फ्रॉक पहनी थी और वोह भी अब राज ने हाथ से उठानी शुरू कर दी। मेरी गरम सांसें तेज़ी से चलने लगी और राज भी अब अपनी साँसों को मेरी गर्दन गले और पीठ पे छोड़ने लगा जिस से मेरी मस्ती दोगुनी होती गयी। सामने जय ने डॉली की स्कर्ट कमर तक उठा ली हुई थी और अपने कूल्हों को बड़ी तेज़ी से उसके नितंबो पे रगड़ रहा था। हम चारों की तेज़ सांसें उस छोटी सी जगह पे कोहराम मचा रही थी।
जय ने डॉली की पेंटी घुटनों तक खिसका दी थी। डॉली की हालत बदहवासी से भरी हुई थी और वह जय को उकसा रही थी । इधर राज बड़े ध्यान से मेरी हालत पतली करने मैं लगा हुआ था। मेरी फ्रॉक अब कमर तक उठ चुकी थी। मेरी पेंटी भी घुटनों तक खिस्सक गयी हुई थी और राज का लिंग भी बाहिर आ गया था। मेने अपने नग्न नितम्बों पर उसका गरम नंगा लिंग महसूस किया और बिजली के झटके से महसूस करते हुए राज के अगले कदम का इंतजार करने लगी। राज ने भी देर नहीं की और सीधे अपने लिंग को मेरी जाँघो के बीच फस्सा दिया। मेरी उमंगें तरोताजा हो गयी और मैं हवस के खेल का खुल के मज्जा लेने लगी।
अब मेरी नज़र डॉली पेपड़ी जो की घोड़ी की तरह झुकी हुई थी और तक़रीबन नंगी हो चुकी थी पूरी तरह। जय ने अपने लिंग पे थूक लगा के डॉली के नितंबो के बीच गान्ड द्वार पर रख के तेज़ धक्का मारा । डॉली की हलकी चीख निकली और फिर उसने अपने होंठो को दांतों तल्ले दबा दिया। उफ्फ्फ क्या नज़ारा था .... जय का लिंग डॉली के अंदर बाहर हो रहा था और डॉली झुक्की हुई मज्जे ले ले के मरवा रही थी। मेरा मन किया की काश डॉली की जगह मैं होती। तभी राज ने अपने लिंग पे थूक लगा दी और फिर मुझे झुकने को कहा। मैं भी बिना सोचे समझे झुक गयी और आने वाले तूफ़ान की तयारी करने लगी। फिर राज ने भी मेरी गान्ड पर थूक लगा के ऊँगली अन्दर घुसा दी। मेरी सांस उपर की उपर और नीचे की निचे रुक गयी। पर कुछ ही पलों बाद सब सामान्य हो गया और अब राज की ऊँगली पूरी तेज़ी से मेरी गांड में अंदर बाहिर होने लगी। इसके बाद राज ने मेरी गांड में और थूक लगा के अपने लंड को लगा दिया। फिर मेरी पतली कमर को थाम के एक करारा शॉट मारा। मेरी जोर से चीख निकल गयी और मैंने राज को धक्केल के पीछे हटा दिया। राज ने मुझसे पुछा क्या हुआ तो मैं बोली की बहुत दर्द हुआ। इस्पे राज ने डॉली की और इशारा करके कहा की यह भी तो पूरा लंड ले रही हे।
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Re: बाली उमर का चस्का

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मैं घबरा गयी थी और गांड मरवाने का शोक मेरे दिमाग से उतर चुका था। राज ने भी मोके की नजाकत को समझते हुए मुझे छोड़ दिया। मैं उस टॉयलेट से बाहर निकली और अपने घर चली गयी। पर सारी रात राज की अशलील हरकतें बार बार याद आती रही और डॉली के कारनामे भी नींद उड़ाते रहे उस रात मुझे नींद नही आई। सारी रात करवट बदल बदल कर निकली। सुबह हुई तो मैं स्कूल को तयार हो के चल दी। दोपहर लंच ब्रेक में राज मेरे पास आया और हँसते हुए पुछा कल दर्द हुआ था क्या। मेने सर हिला के इशारे से हाँ कहा। वोह बोला शुरू में दर्द होता हे फिर बाद में मज्जा आयेगा जेसे ललिता लेती हे। मैंने सर हिल के हाँ कहा और फिर पुछा कि डॉली दीदी को भी पहली बार दर्द हुआ था। इस्पे राज हस के बोला की ललिता की जिसने फर्स्ट टाइम ली होगी उसको पता होगा हम तो उसके शिष्य हैं और उस्सी ने हमें यह सब सिखाया। मैं इस बात पे हस दी और राज भी मेरे साथ खूब हँसा।
फिर राज मुझे स्कूल कैन्टीन ले गया और चिप्स पेप्सी वगेरा मंगवा दी। तभी वहां जय और डॉली भी आ गये। राज ने उठ के पहले जय फिर डॉली को हग किया ओर हम चारो बेठ गये। राज बोला चलो आज बंक मार के फिल्म देखने चलते हैं। मैंने मना किया तो राज ने कहा ललिता और जय तुम दोनों चलोगे क्या। वह तयार हो गये। फिर तीनो स्कूल के पिछले गेट पे गये और राज ने वहां खड़े दरबान को 50 रूपए दिए तो उसने गेट खोल दिया। तभी डॉली ने मुझे आने का इशारा किया। मेरी कुछ समज में आये उससे पहले राज मेरे पास आया और हाथ पकड़ के साथ चल पड़ा। मैं कोई विरोध नहीं कर पाई और हम चारो स्कूल से बाहर आ गये।
हम सब सिनेमा पोहंच गये और राज ने 4 टिकेट खरीदे। हम अंदर पोहंचे तो फिल्म स्टार्ट हो गयी थी। इमरान हाश्मी और उदिता गोस्वामी की अक्सर में खूब गरमा गरम सीन थे और जब तक हम सीट पे बेठें तब तक इमरान ने उदिता को चूमना चाटना शुरू कर दिया था। मैं और डॉली बीच में बेठे और जय राज हमारे साइड पे। राज मेरी और था इसलिए मैं उसकी शरारतों के लिए मन ही मन तैयार थी।
और उसने भी समय बर्बाद नही किया। सीधे अपने हाथ को मेरी जाँघ पे रख के हलके हलके मसलने दबाने लगा। मैं उस समय उतेजना से भर गयी और अपने सर को उसके कंधे पे टिक्का के उसको ग्रीन सिग्नल देदी। वोह बायें हाथ से जाँघो को मसलने में लगा था और दायें हाथ को मेरे कंधो से होते हुए मेरे उरोजों को मसलने लगा। पहली बार मुझे अपने मम्मों पे किसी मर्द के स्पर्श का असर महसूस होने लगा । इतना मज़्ज़ा आता होगा मम्मे दबवाने में तो कब की शुरू हो गयी होती।
उधर जय ने ललिता की स्कर्ट के अंदर हाथ दाल के उसकी हालत खराब कर दी थी। साथ ही वोह उसके मम्मों को बारी बारी से निचोड़ रहा था। मैं उसकी हरकतों को देख रही थी की तभी जय ने मेरी और देख के गन्दा इशारा किया। मैं नाक मरोड़ के उसके इशारे को अनदेखा कर दिया। तभी उसने ललिता की शर्ट के उपर वाले 2 बटन खोल के उसमे अपना हाथ घुसा दिया। मेरी तो आंखें फटी की फटीरह गयी पर ललिता उसका पूरा साथ देती हुई मुस्कुराती हुई मम्मे दबवाती रही। यहाँ राज ने भी अपनी हरकत तेज़ करते हुए मेरी शर्ट के 2 बटन खोल दिए और हाथ अंदर दाल दिया। मेरी चीख निकल गयी पर उसनेदुसरे हाथ से मेरा मुह दबा दिया। जय डॉली और राज तीनो मुझे घूर के देखने लग्गे। मैं भी शर्मिंदा महसूस करती हुई सोरी सोरी कहने लगी। ललिता ने मुझे डांट लगाते हुए कहा की अब मैं बच्ची नही रह गयी हूँ। मैं भी शर्म से लाल हो गयी थी और उसको भरोसा देते हुए बोली की आगे से ऐसा नही होगा।
मैं शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। राज का हाथ मेरी शर्ट के अंदर था और मेरे नग्न उरोजों के साथ जी भर के खेल रहा था। मैं अपनी कक्षा की उन गिनी चुनी लड़कियों में से थी जो ब्रा पेहेन के आती थी। ललिता मुझसे 2 कक्षा आगे थी परन्तु मेरे उरोज उसके उरोजो को अभी से टक्कर देरहे थे।
राज ने मेरी ब्रा में हाथ डाला हुआ था और मेरे चिकने मम्मे कस कस से निचोड़ने में लगा हुआ था। मेरी हालत खराब होती जा रही थी। चुनमूनियाँ से रस बह बह केपेंटी को गीली कर चूका था। सांसें उखाड़ने लगी थी हवस के सैलाब में। उधर मेरी दाएँ ओर बेठी ललिता की हालत मुझसे भी खराब थी। जय कभी डॉली के होंठ चूसता तो कभी अपना मूंह उसके मम्मों पे रख देता जिन्हें वोह ब्रा से बाहर निकाल चूका था। ललिता के निप्पल मूंह में लेके वोह चूसे जा रहा था और ललिता के चेहरे पे हवस के रंग साफ़ झलक रहे थे।
हमारे आस पास भी येही सब चल रहा था। जवान जोड़े अपनी रंग रलियों में बेखबर योंन सुख का आनंद ले रहे थे। अब जय ने अपनी अगली चाल चलते हुए ज़िप खोल के अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। ललिता ने भी झट से उसके चार इंची लिंग को थाम के मसलना शुरू कर दिया। उनको देख राज केसे पीछे रहता। उसने भी ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। उफ्फ्फ में उसका लंड देखते ही परेशान हो गई क्युकी वह जय के लिंग से दो इंच लम्बा ओर दो गुना मोटा था। उसका लंड अभी से कॉलेज के लडको के साइज़ का हो गया था। मैंने अपने कांपते हुए हाथ उसके लंड पे रख के महसूस किया की उसके लंड में आग जेसी गर्मी और दिल जेसी धड़कन थी। मेरे हाथ का स्पर्श पाते ही राज का लंड उछल उछल के हिलने लगा।
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Re: बाली उमर का चस्का

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राज अपने हाथो से मेरे जिस्म को गरमा रहा था और मैं भी जोश में आ के तेजी से उसके लिंग पे अपने हाथ फिसला फिसला के योंन सुख ले रही थी। उधर डॉली के हाथ तेजी से जय का हस्त मैथुन कर रहे थे कि तभी जय के लिंग से सफ़ेद गाढ़ा माल पिचकारी मारता हुआ छूट गया और ललिता के हाथों को भर गया। इधर मैं जोश से भर गयी और तेजी से राज के लंड की सेवा करने लगी। कुछ पलों में राज ने भी अपनी पिचकारी छोड़ दी पर उसने मेरे सर को थाम के अपने लंड पे झुका लिया जिस कारण उसका माल मेरे हाथों से साथ साथ ठोड़ी और होंठो पे भी गिरा। पूरानी यादें ताज़ा हो गयी जब मेने अपने होंठो पे जीभ फेरी। वोही नमकीन सा स्वाद और चिपचिपा एहसास।
हमने अपने आप को संभाला और साफ़ सफाई करके बैठ गये। फिल्म ख़त्म हुई और हम सब बाहिर आ गये। मैं शर्म से सर झुका के चल रही थी पर डॉली के चेहरे पे कोई शर्म नही थी। वह उन दोनों लड़कों से हस हस के बातें करती चलती रही। तभी राज ने मेरा हाथ थाम लिया और पुछा क्या बात है चुप क्यूँ हो। इसपे मेने राज की आँखों में आंखें ड़ाल के कहा कि यह सब ठीक नही जो हम कर रहे हैं। राज मुस्कुराया और बोला तुम मेरी गर्ल फ्रेंड बनोगी। मैं ख़ुशी से फूले नही समा रही थी और मेने झट से सर हिला के हामी भर दी। शायद मुझे विकी से प्यार हो गया था
सिनेमा के अंदर हुए अनुभव ने मुझे बोल्ड बना दिया था और अब मैं काफी खुल गयी थी। स्कूल और घर दोनों जगह राज मेरे साथ मस्ती करने का कोई मोका नही छोड़ता। राज के लिंग का हस्त-मैथुन करते करते और उस से निकले वीर्य का स्वाद लेते लेते दो हफ्ते हो गये थे। फिर एक दिन शनिवार कोहाफ-डे स्कूल छुट्टी के बाद राज मुझे अपने घर ले गया।
वहां उसने मुझे अपना आलिशान दो मंजिला बंगला दिखाया । उस समय वहां उसके नोकर के सिवा कोई ओर नही था। फिर अंत मैं जब पूरा बंगला अन्दर बाहर से देख लिया तो वह मुझे अपने मम्मी-पापा के बेडरूम ले गया। वहां उसने एक अलमारी खोली और किताबों के निचे से एक मैगज़ीन निकाली। मैं तब तक बिस्तर पे बेठ चुकी थी। राज ने वो रंगीन मैगज़ीन मेरे सामने रख के कहा यह ब्लू-मैगज़ीन हे।
मेने पहले कभी ब्लू-मैगज़ीन नही देखी थी पर देखने की इच्छा जरुर थी। मेने पहला पन्ना खोला तो दंग रह गयी। उसपे ढेर सारी तसवीरें थी जिन में अंग्रेज युगल सम्भोग की अलग अलग क्रिया में दिख रहे थे। मेने राज की और देखा और मुस्कुराते हुए पुछा कि ये गन्दी मैगज़ीन कहा से लायी तो उसने बिलकुल बेबाकी से कह दिया की मम्मी पापा की हे। मैं हैरान हो गयी और दो पल के लिए यह सोचने लगीकहीं मेरे मम्मी पापा भी तो ऐसी गन्दी मैगज़ीन नही देखते। खैर मैं वापिस मैगज़ीन में खो गयी और पन्ने पलटा पलटा के सेक्स को नये तरीके से जानने लगी।
उसमे हस्त-मैथुन तो था ही पर पहली बार गान्ड-मैथुन, मुख-मैथुन और चुनमूनियाँ-मैथुन के नज़ारे देखने को मिल रगे थे। ओर साथ ही साथ एक मर्द-दो लडकियां या एक लड़की-दो मर्द एकसाथ सेक्स करते देखने को मिले। यह सब देख देख के मेरी हालत का अंदाज़ा आप सब लगा ही सकते हो, एक तो कच्ची उम्र उपर से बॉय-फ्रेंड का साथ। मेरी चुनमूनियाँ गीली होचुकी थी और जिस्म हवस की गर्मी से लाल हो गया था। राज भी शायद इसी मकसद से मुझे अपने घर लाया था और अब मेरी हालत से उसको मेरे किले में अपना झंडा गाड़ के जीत का जशन मानाने का आसान मोका दिख रहा था मैगज़ीन देखते देखते मेरा मन बोहत विचिलित हो चूका था। मेरे हाथ पैर थरथरा रहे थे ओर सर भारी हो गया था। जेसे जेसे पन्ने पलट रही थी वेसे वेसे हवस की दासी बनती जा रही थी । अब राज ने अपनी चाल चली और मुझे पकड़ के पेट के बल लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ़ गया । मैं कुछ कहती उस से पहले मैगज़ीन मेरे सामने रख दी और बोला ऐसे देख। उसका 6 इंची लंड मेरे पिछवाड़े की दरार में सटा हुआ महसूस हो रहा था।
अब राज मैगज़ीन के पेजपलटा रहा था और मुझे समझा भी रहा था की यह पोज केसे लेते हैं। पर मेरा ध्यान अब उसके लिंग पे था जो मेरे पिछवाड़े को निहाल कर रहा था। मेने स्कूल ड्रेस पहनी हुई थी, स्कर्ट और शर्ट। राज ने अब मुझसे कहा की वो मुझे मैगज़ीन वाला मज्जा देना चाहता हे। मेने भी व्याकुल मन सेहामी भर दी ओर उसको ग्रीन सिग्नल दिया। राज ने मेरी स्कर्ट उठाना शुरू किया। मेरी चिकनी जवानी नंगी होती जा रही थी। स्कर्ट कमर तक उठा देने के बाद राज ने मेरी पेंटी झटके से निचे खींच दी और पेरों से बाहर करके मुझे कमर के निचे पूरी नंगी करके मेरे चिकने शरीर पे अपनी हाथ फेरने लगा। अब मैं बिलकुल से हवस की गिरिफ्त में थी ओर राज की अगली चालका इंतजार करने लगी। तभी राज ने मैगज़ीन को वोह पन्ना खोला जिस पे गान्ड-मैथुन की तस्वीर थी । मैं राज का इशारा समज गयी और मन ही मन से खुद को तयार करने लगी । राज ने अब मेरे चिकने मांसल और गान्डज चुतड की दो फांको को अपने दो हाथो से चीर के अलग किया और फिर पुछा की थूक लगाऊं या तेल? मेने कोई जवाब नही दिया तो उसने थूक लगा के मेरी गांड को चिकनी करना शुरू कर दिया। अच्छी तरह से थूक लगाने के बाद उसने ऊँगली मेरी गांड में घुसा दी। मेरी हलकी सी चीख निकली पर ऊँगली अंदर घुस चुकी थी और अब राज उसको अंदर बाहर करने लगा।
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Re: बाली उमर का चस्का

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मेरे अंदर हवस का तूफ़ान तेज होता जा रहा था। राज ने अब ऊँगली निकाल ली और फिर से थूक लगा के गांड को चिकनाई से भरने लगा। फिर उसने अपनी पेंट उतार दी। अपने लिंग पे थूक लगा कर मेरे गान्ड-द्वार पे थूका और उसपे लिंग टिका के बोला – सरदारनी, तयार हो जा। थोडा दर्द होगा पहले फिर मज़ा ही मज़ा। मेने लम्बी सांस ली और शरीर ढीला छोड़ दिया । राज ने मेरे चुतड खोल के लंड को एक झटका देते हुए मेरी गांड में घुसेड़ना चाहा पर सुराख तंग होने के कारण लंड फिसल गया। राज ने मुझे अपने दोनों हाथ पीछे लाने को कहा और बोला कि में अपने चुतड हाथो से फैला लू । मेने वेसा ही किया ओर अब राज को आराम से लंड अंदर डालने का अवसर मिल गया । अगले ही पल राज के लिंग-मुंड ने मेरी गांड के तंग सुराख को चीरते हुए जगह बना के अंदर प्रवेश पा लिया।
मेरी तेज़ चीख निकली पर राज ने मेरा मूंह बंद कर दिया और अब तेज़ी से धक्के मार मार के अपने लंड को मेरी तंग गांड में घुसाता गया। मैं पीड़ा से कराह रही थी पर राज ने मेरा मूंह बंद कर रखा था। ८-१० धक्कों के बाद वोह रुक गया और मेरे मूंह से हाथ हटा के मेरे ऊपर लेट गया। मैंने राज से रोते हुए कहा कि मुझे छोड़ दे यह सब मुझसे नही होगा। उसपे राज ने कहा की अब रोती क्यों हे लंड पूरा अंदर हे। मुझे यह जान के थोड़ी राहत मिली की लंड पूरा अंदर था। अब मेने अपने शरीर को ढीला कर दिया जो कि अब तक अकड़ा हुआ था दर्द से। राज ने भी धीरज रखा ओर कुछ देर में ही मेरा दर्द काफी कम हो चूका था।
राज ने लंड पूरा बाह रखिंच के फिर से मेरी गांड और अपने लंड पे थूक लगा के फिर से पोजीशन बनाई ओर अब की बार आराम से लंड अंदर घुसाने लगा। इस बार दर्द कम हुआ ओर मज़ा ज्यादा आया। मेने भी शरीर ढीला छोड़ दिया ओर राज को आराम से मारने को कहा।
राज अब स्पीड बढ़ा के तेज़ी से मेरी ले रहा था। साथ ही बोल रहा था की ललिता से ज्यादा मज़ा तेरे साथ आ रहा हे। तुम सरदारनी कुडियां मस्त होती हो ओर मज्जे से गांड मरवाती हो। मैं यह जान के खुश हुई की ललिता से ज्यादा मज़ा मुझ में था और अब में भी गांड उठा उठा के लंड लेने लगी। यह देख के राज का जोश दोगुना हो गया ओर उसने मेरी कमर थाम के मेरी गांड में ताबड़तोड़ धक्के मारना शुरू कर दिया। मैं भी जोर जोर से सिस्कारियां मारती हुई गांड मरवा रही थी कि तभी राज मेरे उपर निढाल सा गिर गया ओर उसके लंड से वीर्य की धार मेरे अंदर बहने लगी। 2 मिनट वेसे ही मेरे उपरपढ़ा रहने के बाद वोह उठा ओर तोलिये से अपना लंड साफ़ करके मेरी गांड पे रख दिया। में सीधी हुई ओर अपनी गांड को तोलिये से साफ़ करके पेंटी पहन ली।
अब तो सिलसिला चल पड़ा था मेरा और राज का। जब भी मोका मिलता राज मुझे घर पे या स्कूल में दबोच के मेरी ले लेता। पर धीरे धीरे मुझे एहसास होने लगा था कि इस सब में प्यार तो हे ही नही। राज कभी भी मुझे किस नही करता और न ही प्यार भरी रोमानी बातें करता। वह बस मोका मिलते ही मुझे झुका के स्कर्ट उठाता, पेंटी उतारता और थूक लगा के मेरी गांड मार लेता। एक दिन मेने डॉली दीदी से इस बारे में बात की। उसने मुझे यकीन दिलाया कि राज बोहत अछा लड़का हे ओर मुझे उस जेसा बॉय-फ्रेंड नही मिलेगा। तभी राज और जय वहां आ गये। डॉली ने राज को झिडकी लगा के मेरा ख्याल रखने को कहा। जय को मोका मिला और उसने राज को मेरा ख्याल रखने की सलाह देते हुए यह कह दिया कि अगर वोह ख्याल नही रखेगा तो में रखूगा। जय की आँखों में अजीब सी चमक थी, ओर मुझे पहली बार जय में एक अछा इन्सान नजर आया। वेसे देखने में ओर बोल-चाल में जय राज से कई कदम आगे था ओर मेने पहली बार ध्यान दिया की जय राज से कितना गोरा चिकना ओर स्मार्ट था।
स्कूल ख़त्म होने के बाद हम चारो बाहर निकले ओर राज के कहने पे पास के रेस्टोरेंट की ओर चल दिए। राज मेरी दायें ओर था पर उसका ध्यान मुझसे ज्यादा ललिता में था। जय मेरी बाएँ तरफ था ओर बार बार मेरी आँखों में आंखें डाल के कुछ कहने का यतन कर रहा था। तभी चलते चलते उसने अपना हाथ मेरे नितम्ब पे चिपका दिया। मेरी सिसकारी निकल गयी पर उसने जल्दी हाथ हटा लिया। मेने उसकी ओर देखा तो वोह मुस्कुरा दिया। मैं भी उसकी बेशर्मी से भरी मुस्कान पे लुट सी गयी ओर मुस्कुरा दी।
हम सब अंदर बैठे बातें कर रहे थे। जय मेरे सामने और राज ललिता के सामने था। तभी मुझे किसी के पेर अपनी टांग से छुते हुए महसूस हुए। मुझे लगा राज ही होगा इसलिए विरोध नही किया और बेठी रही। आहिस्ते से वो पेर मेरी दोनों टांगो के बिच से घुटनों तक आ गये। पर राज तो ऐसी हरकतें करता ही नही था। वह तो बस मेरे गदराए चुनमूनियाँडों का दीवाना था। खैर, थोड़ी देर बाद हम वहां से चल पड़े।
मेरा ध्यान जय की पेंट की ओर गया तो समझ गयी की मुझे पेर से कोन छेड़ रहा था। जय की पेंट में टेंट बना हुआ था । मैं मुस्कुरा गयी। शर्म के मारे चेहरा लाल हो गया। जय ने भी मेरी नजर पकड ली थी जब में उसके लिंग को घूर रही थी। वह भी मुझे देख मुस्कुराया ओर एक फ्लाइंग किस चोरी से मेरी ओर भेज दी। मेने भी आंख के इशारे से उसे जता दिया कि मेने उसकी फ्लाइंग किस कबूल कर ली।
धीरे धीरे जय मेरे करीब ओर राज मुझसे दूर होते जा रहे थे। एक दिन हम चारो राज के घर शनिवार के दिन हाफ-डे छुट्टी के बाद गये। वहां हम विकी के मम्मी पापा वाले बेडरूम में बैठे थे जहाँ विकी ने कोई बीस बार मेरी गांड ली होगी। बातों बातों में ही ब्लू-फिल्मो पे आ गये तो पता चला की ललिता को ऐसी फिल्म्स देखते हुए दो साल हो चुके थे ओर यह बात भी पता चली की विकी ने ललिता को भी इस कमरे में बुला के फिल्मे देखी हैं।
धीरे धीरे माहोल गरम हो गया। ललिता ने बताया की जब पहले पहले विकी उसकी लेता था तो दर्द कितना हुआ करता था। इस बात पे मैंने भी अपने दर्द भरे एहसास को बता दिया। फिर बात जय ओर विकी के लिंग के साइज़ की हुई तो दोनों ने अपने कपडे उतार के तन्ने हुए लंड सामने करते हुए बोला बताओ कोन किसका पसंद करती हे। डॉलील ने झट से विकी का ६ इंची मोटा लंड पकड़ लिया। मेरी नज़रें जय के पांच इंची गोरे चिकने लंड पे टिक्की हुई थी। पर शर्म के मारे मेने कोई हरकत नही की ओर चुप चाप बेठी रही। तभी जय ललिता की ओर बढ़ा और उसके होंठों को अपने मूंह में भर के रसपान करने लगा। ललिता को उन दोनों के साथ खुल के अय्याशी करते देख मुझे विकी की दिखाई हुई ब्लू-मैगज़ीन याद आई जिस में एक लड़की 2 या 3 मर्दों के साथ लगी होती थी। तभी राज ने पुछा किसे किसे ब्लू-फिल्म देखनी हे। हम सब ने एक स्वर में हामी भर दी।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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