हिन्दी में मस्त कहानियाँ

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jay
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कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से

भाग ५. चार फौजी और चूत का मैदान

लेखिका : कोमलप्रीत कौर

भाग-४ (बीच रात की बात) से आगे....

सर्दियों के दिन थे, मैं अपने मायके ग‌ई हु‌ई थी, मेरे भैया भाभी के साथ ससुराल गये थे और घर में मैं, मम्मी और पापा ही थे। उस दिन ठण्ड बहुत थी, मेरा दिल कर रहा था कि आज को‌ई मेरी गरमागरम चुदा‌ई कर दे। कईं बार चूत में केला और बीयर की बोतल डाल कर मुठ मार चुकी थी लेकिन चूत में चैन नहीं पड़ रहा था। मैं दिल ही दिल में सोच रही थी कि को‌ई आये और मेरी चुदा‌ई करे.. कि अचानक दरवाजे की घण्टी बजी।

मैंने दरवाजा खोला तो सामने चार आदमी खड़े थे। एकदम तंदरुस्त और चौड़ी छातियाँ!

फिर पीछे से पापा की आवाज आ‌ई- “ओये मेरे जिगरी यारो, आज कैसे रास्ता भूल गये?”

वो भी हंसते हु‌ए अन्दर आ गये और पापा को मिलने लगे...

पापा ने बताया कि “हम सब आर्मी में इकट्ठे ही थे.. एक राठौड़ अंकल, दूसरे शर्मा अंकल, तीसरे सिंह अंकल और चौथे राणा अंकल ! सभी एक्स आर्मी मैन हैं।”

वो सभी मुझे मिले और सभी ने मुझे गले से लगाया। गले से क्या लगाया, सबने अपनी छाती से मेरे चूचों को दबाया।

मैं समझ ग‌ई कि ये सभी ठरकी हैं। अगर किसी को भी ला‌इन दूँगी तो झट से मुझे चोद देगा। मैं खुश हो ग‌ई कि कहाँ एक लौड़ा मांग रही थी और कहाँ चार-चार लौड़े आ गये। पापा उनके साथ अन्दर बैठे थे और मैं चाय लेकर ग‌ई। जैसे ही मैं चाय रखने के लि‌ए झुकी तो साथ ही बैठे राठौड़ अंकल ने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हु‌ए कहा- “कोमल बेटी.. तुम बता‌ओ क्या करती हो...?”

मैं चाय रख कर राठौड़ अंकल के पास ही सोफे के हत्थे पर बैठ ग‌ई और अपने बारे में बताने लगी। साथ ही राठौड़ अंकल मेरी पीठ पर हाथ चलाते रहे और फिर बातों-बातों में उनका हाथ मेरी कमर से होता हु‌आ मेरे कूल्हों तक पहुँच गया।

यह बात बाकी फौजियों ने भी नोट कर ली सिवा‌ए मेरे पापा के। फिर मम्मी की आवाज आ‌ई तो मैं बाहर चली ग‌ई और फिर कुछ खाने के लि‌ए लेकर आ ग‌ई। जब मैं झुक कर नाश्ता परोस रही थी तो उन चारों का ध्यान मेरे मम्मों की तरफ ही था और मैं भी उनकी पैंट में हलचल होती देख रही थी।

अब फिर मैं राठौड़ अंकल के पास ही बैठ ग‌ई ताकि वो भी मेरे दिल की बात समझ सकें। मगर वो ही क्या उनके सारे दोस्त मेरे दिल की बात समझ गये। वो सारे मेरे गहरे गले में से दिख रहे मेरे कबूतर, मेरी गाण्ड और मेरी मदमस्त जवानी को बेचैन निगाहों से देख रहे थे और राठौड़ अंकल तो मेरी पीठ से हाथ ही नहीं हटा रहे थे।

फिर मैं रसो‌ई में उनके लि‌ए खाना बनाने में मम्मी की मदद करने लगी। बीच में ही मम्मी ने मुझे कहा- “पुत्तर! घर में महमान आये हैं... तू भी खाने के पहले मुँह हाथ धो कर कुछ अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जा।”

मम्मी ना भी कहती तो मै तो उन चारों को लट्टू करने के लिये तैयार होने ही वाली थि। मैंने चुन कर झीनी सी सबसे गहरे गले वाली कमीज़ और कसी हुई चुड़ीदार सलवार पहन ली। अपने मम्मों को मैंने चुन्नी से ढक लिया जिससे मम्मी को शक ना हो।

हमने उनके पीने का इंतजाम ऊपर के कमरे में कर दिया। शराब के एक दौर के बाद सबने खाना खा लिया।

फिर मैंने और मम्मी ने भी खाना खाया और फिर मम्मी तो जाकर लेट ग‌ई। मम्मी ने तो नींद की गोली खा‌ई और सो ग‌ई पर मुझे कहाँ नींद आने वाली थी... घर में चार लौड़े हों और मैं बिना चुदे सो जा‌ऊँ! ऐसा कैसे हो सकता है....?

मैं ऊपर के कमरे में चली ग‌ई, वहाँ पर फ़िर शराब का दौर चल रहा था। मुझे देख कर पापा ने तो मुझे जा कर सो जाने के लि‌ए बोला, मगर सिंह अंकल ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने साथ सटा कर बिठा लिया और बोले- “अरे यार, बच्ची को हमारे पास बैठने दे, हम इसके अंकल ही तो हैं!” तो पापा मान गये और फिर सिंह अंकल मुझे बोले – “आओ हमारे साथ भी एक पैग लगाओ!” मैंने मुस्कुरा कर हामी भरी तो उन्होंने खुद शराब का एक बड़ा पैग बना कर मुझे पकड़ा दिया और उसके बद सारे अंकल मुझे फ़ौज की बातें सुनाने लगे।

फिर हम सभी शराब पीते रहे। मैं तो पहला ही पैग बहुत धीरे-धीरे पी रही थी, मगर वो सभी पापा को बड़े-बड़े पैग दे रहे थे और खुद छोटे-छोटे पैग ले रहे थे। मैं समझ ग‌ई कि वो चारों पापा को जल्दी लुढ़काने के चक्कर में हैं।

फिर सिंह अंकल ने भी अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया। वो मेरी पीठ पर बिखरे मेरे बालों में हाथ घुमाने लगे। जब मेरी तरफ से को‌ई विरोध नहीं देखा तो वो मेरी गाण्ड पर भी हाथ घुमाने लगे। पापा का चेहरा हमारी तरफ सीधा नहीं था मगर फिर भी अंकल सावधानी से अपना काम कर रहे थे।

फिर वो मेरी बगल में से हाथ घुसा कर मेरी चूची को टटोलने लगे मगर अपना हाथ मेरी चूची पर नहीं ला सकते थे क्योंकि पापा देख लेते तो सारा काम बिगड़ सकता था। उधर मेरा भी बुरा हाल हो रहा था। मेरा भी मन कर रहा था कि अंकल मेरे चूचों को कस कर दबा दें। फिर मैंने अपनी पीठ पर बिखड़े बाल कंधे के ऊपर से आगे को लटका दि‌ए जिससे मेरा एक मम्मा मेरे बालों से ढक गया।

सिंह अंकल तो मेरे इस कारनामे से खुश हो गये। उन्होंने अपना हाथ मेरी बगल में से आगे निकाला और बालों के नीचे से मेरी चूची को मसल दिया। मेरी आह निकल ग‌ई... मगर मेरे होंठों में ही दब ग‌ई।

मैं भी टाँग पर टाँग रख कर बैठी थी और बीच-बीच में सिंह अंकल की टाँग पर घुटने के नीचे प्यार से अपने सैंडल से सहला रही थी। हमारी हरकतें पापा के दूसरे दोस्त भी देख रहे थे मगर उनको पता था कि आज रात उनका नंबर भी आ‌एगा। अब मेरा मन दोनों मम्मे एक साथ मसलवाने का कर रहा था। मैं बेचैन हो रही थी मगर पापा तो इतनी शराब पी कर भी नहीं लुढ़क रहे थे। मेरा भी दूसरा पैग चल रहा था और नशा छाने लगा था।

मैं दूसरा पैग खतम करके उठी और बाहर आ ग‌ई और साथ ही सिंह अंकल को बाहर आने का इशारा कर दिया और पापा को बोल दिया- “मैं सोने जा रही हूँ।”

मैं बाहर आ‌ई और अँधेरे की तरफ खड़ी हो ग‌ई। थोड़ी देर में ही सिंह अंकल भी फ़ोन पर बात करने के बहाने बाहर आ गये। मैंने उनको धीमी सी आवाज दी। वो मेरी तरफ आ गये और आते ही मुझको अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे होंठ अपने मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगे। फिर मेरे बड़े-बड़े चूचे अपने हाथों में लेकर मसल कर रख दि‌ए। मैं भी उनका लौड़ा अपनी चूत से टकराता हु‌आ महसूस कर रही थी और फिर मैंने भी उनका लौड़ा पैंट के ऊपर से हाथ में पकड़ लिया।

अभी पांच मिनट ही हु‌ए थे कि पापा बाहर आ गये और सिंह अंकल को आवाज दी- “ओये सिंह! यार कहाँ बात कर रहा है इतनी लम्बी.. जल्दी अन्दर आ....!”

तो सिंह अंकल जल्दी से पापा की ओर चले गये। अँधेरा होने की वजह से पापा मुझे नहीं देख सके। मैं वहीं खड़ी रही कि शायद अंकल फिर आयेंगे मगर थोड़ी देर में ही राणा अंकल बाहर आ गये और सीधे अँधेरे की तरफ आ गये जैसे उनको पता हो कि मैं कहाँ खड़ी हूँ। शायद सिंह अंकल ने उनको बता दिया होगा।

आते ही वो भी मुझ पर टूट पड़े और मेरी गाण्ड, चूचियाँ, जांघों को जोर-जोर से मसलने लगे और मेरे होंठों का रसपान करने लगे। वो मेरी कमीज़ को ऊपर उठा कर मेरे दोनों निप्पल को मुँह में डाल कर चूसने लगे। मैं भी उनके सर के बालों को सहलाने लगी।

तभी शर्मा अंकल की आवाज आ‌ई- “अरे राणा तू चल अब अन्दर, मेरी बारी आ ग‌ई!” अचानक आ‌ई आवाज से हम लोग डर गये। हमें पता ही नहीं चला था कि को‌ई आ रहा है।

फिर राणा अंकल चले गये और शर्मा अंकल मेरे होंठ चूसने लगे। मेरे मम्मे, गाण्ड, चूत और मेरे सारे बदन को मसलते हु‌ए वो भी मुझे पूरा मजा देने लगे। शर्मा अंकल ने पजामा पहना था। मैंने पजामे में हाथ डाल कर उनके लण्ड को पकड़ लिया। खूब कड़क और लम्बा लण्ड हाथ में आते ही मैंने उसको बाहर निकाल लिया और नीचे बैठ कर मुँह में ले लिया।

शर्मा अंकल भी मेरे बालों को पकड़ कर मेरा सर अपने लण्ड पर दबाने लगे। मैं उनका लण्ड अपने होंठों और जीभ से खूब चूस रही थी। वो भी मेरे मुँह में अपने लण्ड के धक्के लगा रहे थे। फिर अंकल ने अपना पूरा लावा मेरे मुँह में छोड़ दिया और मेरा सर कस के अपने लण्ड पर दबा दिया। मैंने भी उनका सारा माल पी लिया। उनका लण्ड ढीला हो गया तो उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया और फिर मेरे होंठों को चूसने लगे और फिर बोले- “मैं राठौड़ को भेजता हूँ...!” और अन्दर चले गये।

फिर राठौड़ अंकल आ गये। वो भी आते ही मुझे बेतहाशा चूमने लगे। मगर मैंने कहा- “अंकल ऐसा कब तक करोगे?”

वो रुक गये और बोले- “क्या मतलब?”

मैंने कहा- “अंकल, मैं सारी रात यहाँ पर खड़ी रहूँगी क्या? इससे अच्छा है कि मैं चूत में केला डाल कर सो जाती हूँ।”

तो वो बोले- “अरे क्या करें, तेरा बाप लुढ़क ही नहीं रहा! हम तो कब से तेरी चूत में लौड़ा घुसाने के लि‌ए हाथ में पकड़ कर बैठे हैं!”

मैंने कहा – “तो को‌ई बात नहीं... मैं जाकर सोती हूँ! केले से ही काम चला लुँगी!” मैंने आगे बढ़ते हु‌ए कहा। मैं हल्के नशे में थी और चूत की बेचैनी अब सहन नहीं हो रही थी।

अंकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले- “बस तू पांच मिनट रुक... मैं देखता हूँ वो कैसे नहीं लुढ़कता!” और अन्दर चले गये।

फिर पांच मिनट में ही राणा और राठौड़ अंकल बाहर आये और बोले- “चल छमक-छल्लो! तुझे उठा कर अन्दर लेकर जा‌एँ जा खुद चलेगी?”

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि पापा इतनी जल्दी लुढ़क गये। फिर राणा अंकल ने मुझे गोद में उठा लिया और मुझे अन्दर ले गये। पापा सच में कुर्सी पर ही लुढ़के पड़े थे।

मैंने कहा- “पहले पापा को दूसरे कमरे में छोड़ कर आ‌ओ।”

तो राणा और राठौड़ अंकल ने पापा को पकड़ा और दूसरे कमरे में ले गये। फिर शर्मा और सिंह अंकल ने मुझे आगे पीछे से अपनी बाँहों में ले लिया और मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। शर्मा अंकल मेरे होंठों को चूसने लगे और सिंह अंकल मेरे ऊपर बैठ गये। तभी राणा और राठौड़ अंकल अन्दर आये और बोले- “अरे सालो, रुक जा‌ओ, सारी रात पड़ी है! इतने बेसबरे क्यों होते हो, पहले थोड़ा मज़ा तो कर लें!”

वो मेरे ऊपर से उठ गये और मैं भी बिस्तर पर बैठ ग‌ई। मैंने कहा- “थैंक्स अंकल, आपने मुझे बचा लिया, नहीं तो ये मुझे को‌ई मजा नहीं लेने देते...!”

फिर राणा अंकल ने पांच पैग बनाये और सब को उठाने के लि‌ए कहा। मैं पहले ही दो बड़े पैग पी चुकी थी और ठीक-ठाक नशे में थी इसलिये मैंने नहीं उठाया तो अंकल बोले- “अरे अब नखरे छोड़ो और पैग उठा लो। चार चार फौजी तुमको चोदेंगे। नहीं तो झेल नहीं पा‌ओगी....!”

नशे में अगर कोई ज्यादा पीने के लिये ज़ोर दे तो काबू नहीं रहता। मैंने भी पैग उठा लिया और पूरा पी लिया। राणा अंकल ने फिर से मुझे पैग बनाने को कहा तो मैंने सिर्फ चार ही पैग बना‌ए। राणा अंकल बोले- “बस एक ही पैग लेना था?”

तो मैंने कहा- “नहीं!... अभी तो चार पैग और लुँगी!”

मैं राणा अंकल के सामने जाकर नीचे बैठ ग‌ई। अंकल की पैंट खोल कर और उतार दी। वो सभी मेरी ओर देख रहे थे। फिर मैंने अंकल का कच्छा नीचे किया और उनका सात-आठ इंच का लौड़ा मेरे सामने तन गया।

फिर मैंने अंकल के हाथ से पैग लिया और उनके लण्ड को पैग में डुबो दिया और फिर लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मैं बार-बार ऐसा कर रही थी। राणा अंकल तो मेरी इस हरकत से बुरी तरह आहें भर रहे थे। मैं जब भी उनका लण्ड मुँह में लेती तो वो अपने चूतड़ उठा कर अपना लण्ड मेरे मुँह में धकेलने की कोशिश करते।

मैंने जोर-जोर से उनके लण्ड को हाथों और होठों से सहलाना जारी रखा और फिर उनके लण्ड से वीर्य निकल कर मेरे मुँह पर आ गिरा। मैंने अपने हाथ से सारा माल इक्कठा किया और पैग में डाल दिया और उनका पूरा जाम खुद ही पी लिया। अब मैं काफी उत्तेजना और नशे में थी। इस हालत में अब शराब पीने पर मेरा कोई बस नहीं था।

फिर मैं राठौड़ अंकल के सामने चली ग‌ई। वो लुंगी पहन कर बैठे थे। मैंने उनकी लुंगी खींच कर उतार दी और फिर उनका लण्ड भी शराब में डाल-डाल कर चूसने लगी। उनका वीर्य भी मैंने मुँह में ही निगल लिया और उनका पैग भी।

फिर सिंह अंकल, जो कब से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, उनका लण्ड भी मैंने अपने हाथों में ले लिया और उन्होंने मेरी कमीज को उतार दिया। अब मैं सलवार और ब्रा में थी.. फिर उन्होंने मेरी ब्रा को भी खोल दिया और मेरे दोनों मम्मे आजाद हो गये। उन्होंने अपना लण्ड दोनों मम्मों के बीच में नीचे से घुसा दिया। उनका लण्ड शायद सबसे लम्बा लग रहा था मुझे। उनका लण्ड मेरे मम्मों के बीचों-बीच ऊपर मेरे मुँह के सामने निकल आया था।

मैंने फिर से अपना मुँह खोला और उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया। वो अपने लण्ड और मेरे मम्मों के ऊपर शराब गिरा रहे थे जिसको मैं साथ-साथ ही चाटे जा रही थी। मैं अपने दोनों मम्मों को साथ में जोड़ कर उनके सामने बैठी थी और वो अपनी गाण्ड को ऊपर नीचे करके मेरे मम्मों को ऐसे चोद रहे थे जैसे चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करते हों।... और जब उनका लण्ड ऊपर निकल आता तो वो मेरे गुलाब जैसे लाल होंठों घुस जाता और उसके साथ लगी हु‌ई शराब भी मैं चख लेती।

आखिर वो भी जोर-जोर से धक्के मारने लगे। मैं समझ ग‌ई कि वो भी झड़ने वाले हैं। मैंने उनके लण्ड को हाथों में लेकर सीधा मुँह में डाल लिया। अब उनका लण्ड मेरे गले तक पहुँच रहा था और फिर उनका भी लावा मेरे मुँह में फ़ूट गया। वीर्य गले में से सीधा नीचे उतर गया।

अब शर्मा अंकल ने मुझे उठा लिया और मुझे बैड पर बिठा कर मेरी सलवार उतार दी। वो मेरी जांघों को मसलने लगे। फिर राठौड़ अंकल ने मेरी पैंटी उतार दी। अब मैं मादरजात नंगी थी... बस पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। सिंह अंकल भी मेरे सर की तरफ बैठ गये और मेरे मुँह में शराब डाल कर पिलाने लगे।

मैंने सभी के लण्ड देखे… सारे तने हु‌ए थे।

शर्मा अंकल का नंबर पहला था। मैं उठी और शर्मा अंकल को नीचे लिटा कर उनके लण्ड पर अपनी चूत टिका दी और धीरे-धीरे उस पर बैठने लगी। शर्मा अंकल का पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस गया। मैं उनके लण्ड को अपनी चूत में चारों ओर घुमाने लगी। फिर मैं ऊपर नीचे होकर शर्मा अंकल को चोदने लगी। शर्मा अंकल भी मेरी गाण्ड को पकड़ कर मुझे ऊपर नीचे कर रहे थे और अपनी गाण्ड भी नीचे से उछाल-उछाल कर मुझे चोद रहे थे। मेरे उछलने से मेरे चूचे भी उछल रहे थे जो राणा अंकल ने पकड़ लि‌ए और उनके साथ खेलने लगे।

फिर राणा अंकल ने मुझे आगे की तरफ झुका दिया और खुद मेरे पीछे आ गये जिससे मेरी गाण्ड उनके सामने आ ग‌ई और वो अपना लण्ड मेरी गाण्ड में घुसाने लगे। मगर उनका लौड़ा मेरी कसी सूखी गाण्ड में आसानी से नहीं घुसने वाला था। फिर उन्होंने और जोर से धक्का मारा तो मुझे बहुत दर्द हु‌आ जैसे मेरी गाण्ड फट ग‌ई हो। मैं उनका लण्ड बाहर निकालना चाहती थी मगर उन्होंने नहीं निकालने दिया और फिर मुझे भी पता था कि दर्द तो कुछ देर का ही है।

वैसा ही हु‌आ, थोड़ी देर में ही उनका पूरा लण्ड मेरी सूखी गाण्ड में था। दोनों तरफ से लग रहे धक्कों से मेरे मुँह से “आह आह” की आवाजें निकल रही थी। फिर राठौड़ अंकल ने मेरे सामने आकर अपना तना हु‌आ लण्ड मेरे मुँह के सामने कर दिया। मैंने उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।

जब राणा अंकल मेरी गाण्ड में अपना लण्ड पेलने के लि‌ए धक्का मारते तो सामने खड़े राठौड़ अंकल का लण्ड मेरे मुँह के अन्दर तक घुस जाता। मेरी “आह आह” की आवाजें कमरे में गूंजने लगी। मेरा बुरा हाल हो रहा था। उनका लण्ड मेरी गाण्ड में और भी अन्दर तक चोट कर रहा था। फिर उनका आखरी धक्का तो मेरे होश उड़ा गया। उनका लण्ड मेरी गाण्ड के सबसे अन्दर तक पहुँच गया था। मुझ में और घोड़ी बने रहने की ताकत नहीं बची थी। मैं नीचे गिर गयी मगर राणा अंकल ने मेरी गाण्ड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक उनके वीर्य का एक-एक कतरा मेरी गाण्ड में ना उतर गया।

मैं बहुत थक ग‌ई थी। हम सभी ने एक-एक पैग और लगाया। मेरी गाण्ड अभी भी दर्द कर रही थी मगर मैं इतने सारे पैग ले चुकी थी और नशे में इतनी धुत्त थी कि सब कुछ अच्छा-अच्छा ही लग रहा था।

मैं अंकल राठौड़ के आगे उनकी जांघों पर सर रख के लेट ग‌ई और उनके लण्ड से खेलने लगी। सिंह अंकल मेरी टांगो की तरफ आकर बैठ गये। मैंने अपनी टांगे सिंह अंकल के आगे खोल दी और अपना सर राठौड़ अंकल के आगे रख दिया।

सिंह अंकल मेरे ऊपर आ गये और अपना लण्ड मेरी चूत के ऊपर रख कर धीरे-धीरे से अन्दर डाल दिया और फिर अन्दर बाहर करने लगे और झड़ ग‌ए।

फ़िर राठौड़ अंकल ने मुझे अपने नीचे लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरी चूत चोदने लगे। मेरी टांगों को उठा कर उन्होंने ने भी मुझे पूरे जोर से चोदा। फिर उन्होंने ने मेरी गाण्ड को भी चोदा और मेरी गाण्ड में ही झड़ गये। मैं कितनी बार झड़ चुकी थी, मुझे याद भी नहीं था।

मेरा इतना बुरा हाल था कि अब मुझसे खड़ा होना भी मुशकिल लग रहा था। मैं वहीं पर लेट ग‌ई। हम सभी नंगे ही एक ही बिस्तर में सो गये। फिर अचानक मेरी आँख खुली और मैंने समय देखा तो सुबह के तीन बजे थे।

मैंने अपने कपड़े उठाये और बिल्कुल नंगी ही नीचे आने लगी। मगर सीढ़ियाँ उतरते वक्त मेरी टांगें नशे में बुरी कांप रही थी और चूत और गाण्ड में भी दर्द हो रहा था। नशे में बिल्कुल चूर थी और ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में नंगी ही लड़खड़ती हुई कमरे तक आयी। रास्ते में तीन-चार बार लुढ़की भी।

सुबह मैं काफी देर से उठी और मुझ से चला भी नहीं जा रहा था। इसलि‌ए मैं बुखार का बहाना करके बिस्तर पर ही लेटी रही। जब अंकल जाने लगे तो वो मुझसे मिलने आये। पापा और मम्मी भी साथ थे, इसलि‌ए उन्होंने मेरे सर को चूमा और फिर जल्दी आने को बोल कर चले गये।

मगर मैं पूरा दिन और पूरी रात बिस्तर पर ही अपनी चूत और गाण्ड को पलोसती रही।

!!! क्रमशः !!!
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कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से

भाग ६. कॉलेज़ के गबरू

लेखिका : कोमलप्रीत कौर

भाग-५ (चार फौजी और चूत का मैदान) से आगे....

यह बात तब की है जब मेरी सासु जी जालंधर के एक अस्पताल में दाखिल थी और मेरे ससुर जी भी रात को उनके पास ही रहते थे। मैं सुबह घर से खाना वगैरह लेकर बस में जाती थी। वैसे तो मैं ड्राइविंग जानती थी लेकिन अस्पताल में और उसके आसपास पार्किंग की बहुत ही दिक्कत थी। एक दिन मैं सुबह जब बस में चढ़ी तो बस में बहुत भीड़ थी, जिनमें ज्यादा स्कूल और कॉलेज के लड़के थे।

उस दिन मैंने गहरे गले वाला सफ़ेद और गुलाबी रंग का पटियाला सलवार कमीज़ पहन रखा था और हमेशा की तरह पैरों में सफ़ेद रंग के ही काफी ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। जहाँ पर मैं खड़ी थी वहां पर मेरे आगे एक बूढ़ी औरत और मेरे पीछे एक लड़का था। कुछ देर बाद उस लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाँड से लगा लिया। बस में इतनी भीड़ थी कि ऐसा होना आम था और किसी को पता भी नहीं चल सकता था। यह तो मुझे और उस लड़के को ही पता था।

मेरी तरफ से को‌ई विरोध ना देख कर लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे बदन में एक करंट सा दौड़ गया। मुझे लण्ड के स्पर्श से बहुत मजा आया! और आता भी क्यों ना? लण्ड होता ही मजे के लि‌ए है.. खासकर मेरे लि‌ए...। लड़के का लण्ड सख्त हो चुका था और बेकाबू भी होता जा रहा था क्योंकि अब उसकी छलांगे मेरी गाण्ड महसूस कर रही थी। उस दिन मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी और कॉटन की पटियाला सलवार के नीछे मेरी गाँड बिल्कुल नंगी थी। इसके अलावा ऊँची ऐड़ी के सैंडल की वजह से मेरी बड़ी गाँड और भी ज्यादा पीछे की ओर उभरी हुई थी। जब भी बस में कहीं धक्का लगता तो मैं भी उसके लण्ड पर दबाव डाल देती। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

हम दोनों लण्ड और गाण्ड की रगड़ा‌ई के मजे ले रहे थे। अब बस जालंधर पहुँच चुकी थी और सब बस से उतर रहे थे, मुझे भी उतरना था और उस लड़के को भी। बस से उतरते ही लड़का पता नहीं कहाँ चला गया। मेरी चूत मेरा चुदने का मन कर रहा था, मगर वो लड़का तो अब कॉलेज चला गया होगा, यह सोच कर मैं उदास हो ग‌ई।

अब मुझे अस्पताल जाना था। मैं बस स्टैंड से बाहर आ ग‌ई और ऑटो में बैठने ही वाली थी कि वही लड़का बा‌ईक लेकर मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैं उसे देख कर हैरान हो गयी। वो बोला- “भाभी जी आ‌ओ, मैं आपको छोड़ देता हूँ।”

पहले तो मैंने मना कर दिया, मगर फिर उसने कहा- “आप जहाँ कहोगी मैं वहीं छोड़ दूँगा!”

वैसे भी लड़का इतना सैक्सी था कि उसको मना करना मुश्किल था। तो मैं उसकी बा‌ईक की सीट पर उसके पीछे बैठ ग‌ई। उसकी बा‌ईक में पैर रखने के लिये सिर्फ एक छोटा सा खूँटा था तो मैंने उस खूँटे पर अपना एक सैंडल टिका लिया और उस टाँग पर अपनी दूसरी टाँग चढ़ा कर बैठी थी और सहारे के लिये मैंने उसके कंधे पर हाथ रख लिया। सीट की ढलान की वजह से मैं उससे सटी हुई थी और जब उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी तो मुझे सहरे के लिये उसकी कमर में अपनी दोनों बाँहें डालने पड़ीं। बीच-बीच में मैं उसकी टाँगों के बीच में भी हाथ फिरा कर उसके सख्त लण्ड का जायज़ा ले लेती थी।

रास्ते में उसने अपना नाम अनिल बताया। मैंने भी अपने बारे में बताया। थोड़ी आगे जाकर उसने कहा- “भाभी अगर आप गुस्सा ना करो तो यहीं पास में से मैंने अपने दोस्त से कुछ किताबें लेनी थी...!”

मैंने कहा- “को‌ई बात नहीं, ले लो...” लेखिका : कोमलप्रीत कौर

फिर आगे जाकर उसने एक बड़े से शानदार घर के आगे बा‌ईक रोकी। गेट खुला था तो वो बा‌ईक और मुझे भी अंदर ले गया। उसका दोस्त सामने ही खड़ा था। वो दोनों मुझसे थोड़ी दूर खड़े होकर कुछ बातें करने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चोदने की बातें कर रहे हों। काश यह दोनों लड़के आज मेरी चुदा‌ई कर दें! बस में और फिर बा‌ईक पर अनिल को खुल्ले‌आम सिगनल तो मैंने दे ही दिया था।

फिर अनिल ने अपने दोस्त से मिलवाया। उसका नाम सुनील था। सुनील ने मुझे अंदर आने को कहा मगर मैंने सोचा कि सुनील के घर वाले क्या सोचेंगे। इसलि‌ए मैंने कहा- “नहीं मैं ठीक हूँ!” और फिर अनिल को भी जल्दी चलने को कहा।

तो अनिल मुझसे बोला – “भाभी जी, दो मिनट बैठते हैं, सुनील घर में अकेला ही है।”

यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो ग‌ई कि यहाँ पर तो बड़े आराम से चुदा‌ई करवा‌ई जा सकती है। मैं उनके साथ अंदर चली ग‌ई और सोफे पर बैठ ग‌ई। सुनील कोल्ड ड्रिंक लेकर आया और हम कोल्ड ड्रिंक पीते हु‌ए आपस में बातें करने लगे।

अनिल मेरे साथ बैठा था और सुनील मेरे सामने। वो दोनों घुमा फिरा कर बात मेरी सुन्दरता की करते। अनिल ने कहा- “भाभी, आप बहुत सुन्दर हो, जब आप बस में आ‌ई थी तो मैं आपको देखता ही रह गया था!”

मैंने कहा- “अच्छा तो इसी लि‌ए मेरे पास आकर खड़े हो गये थे?”

अनिल बोला- “नहीं भाभी, वो तो बस में काफी भीड़ थी, इस लि‌ए...”

फिर मुझे वही पल याद आ गये जो बस में गुजरे थे इसलि‌ए मैं शरमाते हु‌ए चुप रही। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

फिर अनिल बोला- “भाभी वैसे बस में काफी मजा था... मेरा मतलब इतनी भीड़ थी कि सर्दी का पता ही नहीं चल रहा था!”

मैंने शरमाते हु‌ए कहा- “हाँ...! वो... वो... तो है...” मैं समझ ग‌ई थी कि वो क्या कहना चाहता है।

उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे हाथ पर रख दिया और बोला- “भाभी अब काफी सर्दी लग रही है, अब क्या करूँ?”

उसका हाथ पड़ते ही मैं शरमा ग‌ई और बोली- “क क.. क्या... क्या.. कर.... करना.. है... गर्मी चाहि‌ए तो पैग-शैग लगाओ....”

अनिल- “भाभी, मगर मुझे तो वो ही गर्मी चाहि‌ए जो बस में थी...”

मैं शरमाते हु‌ए अपने बाल ठीक करने लगी। मेरा शरमाना उनको सब कुछ करने की इजाजत दे रहा था। अनिल ने मौके को समझा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दि‌ए।

मैंने आँखे बंद कर ली और सोफे पर ही लेट ग‌ई। अनिल भी मेरे ऊपर ही लेट गया! अब सारी शर्म-हया ख़त्म हो चुकी थी…

अनिल ने मेरे होंठ अपने मुँह में और मेरे चूचे अपने हाथों में पकड़ लि‌ए थे। मेरी आँखें बंद थी। इस वक्त सुनील पता नहीं क्या कर रहा था मगर उसने अभी तक मुझे नहीं छु‌आ था। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

अनिल मेरे होंठों को जोर जोर से चूस रहा था, मैंने हाथ उसकी कमर पर ढीले से छोड़ रखे थे…

फिर सुनील मेरी सर की तरफ आ गया और मेरे गोरे-गोरे गालों और मेरे बालों में हाथ घुमाने लगा। मेरी आँखें अब भी बंद थीं।

वो दोनों मुझसे प्यार का भरपूर का मजा ले रहे थे... कभी अनिल मेरे होंठ चूसता तो कभी सुनील।

अनिल ने मेरी पजामी और कमीज उतार दी। फिर सुनील ने ब्रा भी उतार दी... पैंटी तो पहनी ही नहीं हुई थी।

मैं बिलकुल नंगी हो चुकी थी। बस गले में सफ़ेद मोतियों की माला, कलाइयों में चूड़ियाँ और पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल। दोनों मुँह खोले मेरी साफ-सुथरी और शेव की हुई चिकनी चूत ताकने लगे। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

वासना में मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं और आगे बढ़ने से पहले मैंने उनसे कहा – “क्यों ना शराब एक-एक पैग लगा लें! फिर और भी मज़ा आयेगा!” तो दोनों लड़के हैरान हो गये। अनिल बोला- “भाभी आप को शराब पीनी है?” मैंने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर हामी भरी तो सुनील बोला – “शराब! भाभी… वो भी इतनी सुबह?”

मैं भी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली – “क्यों! अगर इतनी सुबह मेरे साथ ये सब मज़े कर सकते हो तो शराब में क्या बुरायी है... शराब से मज़ा दुगना हो जायेगा।”

अनिल परेशान होते हुए बोला- “भाभी हमने तो पहले कभी पी नहीं है...”

“पीते नहीं पर पिला तो सकते हो!” मैंने थोड़ा ज़ोर दिया तो अनिल ने कहा – “पर इतनी सुबह शराब कहाँ मिलेगी?”

सुनील बोला – “मिल जायेगी! मेरे चाचा जी के कमरे में मिलेगी... मैं ले कर आता हूँ!” फिर वो भगता हूआ अंदर गया और बैगपाइपर व्हिस्की की आधी भरी बोतल ले आया और एक काँच का ग्लास आधा भर कर मुझे पकड़ा दिया। मेरी हँसी छूट गयी- “ये तो पूरा पटियाला पैग ही बना दिया तुमने...!”

सुनील झेंपते हुए बोला- “सॉरी भाभी! मैंने कहाँ कभी पैग बनाया है पहले... लाइये मैं कम कर देता हूँ!”

“रहने दे... अब तूने पटियाला पैग बना ही दिया तो अब पी लुँगी... चीयर्स!” – मैं मुस्कुराते हुए पैग पीने लगी। “किसी को चोदा तो है ना पहले कि वो भी मुझे ही सिखाना पड़ेगा?” मैंने पैग पीते हुए बीच में हंसते हुए पूछा!

तो अनिल बोला- “क.. क.. की तो नहीं है पर हमें सब पता है!”

“हाँ भाभी... हमने ब्लू-फिल्मों में सब देखा है और फिर आप भी तो गाइड करेंगी!” सुनील भी बोला।

मैं तो बस मज़ाक कर रही थी मगर मन ही मन में खुश हो रही थी कि मुझे दो कुँवारे लण्ड चोदने क मिल रहे थे। पैग खत्म करके मैंने ग्लास एक तरफ रख कर फिर मैं सोफे पर घुटनों के बल बैठ ग‌ई और सुनील की पैंट उतार दी.. उसका लौड़ा उसके कच्छे में फ़ूला हु‌आ था। मैंने झट से उसका लौड़ा निकाला और अपने हाथों में ले लिया और फिर मुँह में डाल कर जोर-जोर से चूसने लगी। मैं सोफे पर ही घोड़ी बन कर उसका लौड़ा चूस रही थी और अनिल मेरे पीछे आकर मेरी चूत चाटने लगा। अनिल जब भी अपनी जीभ मेरी चूत में घुसाता तो मैं मचल उठती और आगे होने से सुनील का लौड़ा मेरे गले तक उतर जाता।

सुनील भी मेरे बालों को पकड़ कर अपना लौड़ा मेरे मुंह में ठूंस रहा था। फिर सुनील का वीर्य निकल गया और मैंने सारा वीर्य चाट लिया। उधर अनिल के चाटने से मैं भी झड़ चुकी थी। इतनी देर में मुझ पर शराब का मस्ती भरा हल्का नशा चढ़ चुका था।

अब अनिल का लौड़ा मुझे शांत करना था। अनिल सोफे पर बैठ गया और मैं अनिल के आगे उसी की तरफ मुंह करके उसके लौड़े पर अपनी चूत टिका कर बैठ ग‌ई। उसका लोहे जैसा लौड़ा मेरी चूत में घुस गया। “आहहह!” मुझे दर्द हु‌आ मगर मैंने फिर भी उसका पूरा लौड़ा अपनी चूत में घुसा लिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

मैं ऊपर-नीचे होकर उसके लौड़े से चुदा‌ई करवा रही थी और सुनील मेरे मम्मों को अपने हाथों से मसल रहा था।

अनिल भी नीचे से जोर-जोर से मेरी चूत में अपना लौड़ा घुसेड़ रहा था। इसी दौरान मैं फ़िर झड़ ग‌ई और अनिल के ऊपर से उठ ग‌ई मगर अनिल अभी नहीं झड़ा था तो उसने मुझे घोड़ी बना लिया और अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में ठूंस दिया।

उफ़! यह बहुत मजेदार चुदा‌ई थी!

अनिल ने मेरी गाण्ड में छः-सात ज़ोरदार धक्के लगाये तो मेरी इच्छा दोहरी चुदाई का मज़ा लेने की हुई। इसलिये मैंने अनिल को लिटाया और मैं उसके लौड़े पर बैठ गयी। अब अनिल मेरे नीचे था और मैं अनिल का लौड़ा अपनी गाण्ड में लि‌ए उसके पैरों की ओर मुंह कर के बैठी थी। मैंने इशारा किया तो सुनील मेरे सामने आ कर बैठ गया और अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसाने लगा। मैं अनिल पर उलटी लेट ग‌ई और सुनील ने मेरे ऊपर आकर अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर

उफ़! अब तो मुझे बहुत दर्द हो रहा था और मेरा दिल चिल्लाने को कर रहा था मगर थोड़ी ही देर में चुदा‌ई फिर शुरू हो ग‌ई। मैं दोनों के बीच चूत और गाण्ड की प्यास एक साथ बुझा रही थी और वो दोनों जोर-जोर से मेरी चुदा‌ई कर रहे थे।

मैं दो बार झड़ चुकी थी… फिर अनिल भी झड़ गया और उसके बाद सुनील भी झड़ गया। हम तीनों थक हार कर लेट गये। फिर मैंने अपने कपड़े पहने। हल्का सा नशा अभी भी था मगर मैंने पानी पिया और हस्पताल चली ग‌ई।

हस्पताल से निकलने के बाद शाम को और पूरी रात को मैं अकेली ही होती थी इस लि‌ए वो अनिल और सुनील दोनों शाम को मुझे हस्पताल से सुनील के घर ले जाते। सुनील के घर वाले दिल्ली गये हुए थे इसलिये कोई पूरी आज़ादी थी। मेरे साथ वो भी शराब पीने लगे। हम तीनों मिलकर ब्लू-फिल्म देखते, शराब पीते और फिर वो दोनों मिलकर सारी रात मेरी चुदा‌ई करते। सुबह मैं तैयार होकर हस्पताल आ जाती और वो दोनों कॉलेज इसी तरह पाँच दिन चुदा‌ई चलती रही और फिर सासु ठीक होकर घर आ ग‌ई तो उन दोनों लड़कों के साथ चुदा‌ई भी बंद हो ग‌ई।

!!! क्रमशः !!!
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Re: हिन्दी में मस्त कहानियाँ

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कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से

भाग ७. जब कुत्ते ने मुझे चोदा

लेखिका : कोमलप्रीत कौर

भाग-६ (कॉलेज़ के गबरू) से आगे....

जैसे कि अपनी पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ कि मेरा नाम कोमल प्रीत कौर है और मेरे पति आर्मी में मेजर है। उनकी पोस्टिंग दूर-दराज़ के सीमावर्ती इलाकों पर होती तहती है और इसलिये मैं अपनी सास और ससुर के साथ जालंधर के पास एक गाँव में रहती हूँ जहाँ हमारी पुश्तैनी कोठी और काफी ज़मीन-जायदाद है। मैं बहुत ही चुदक्कड़ किस्म की औरत हूँ। मेरी चुदाई की प्यास इतनी ज्यादा है कि दिन में कम से कम आठ-दस बार तो मुठ मार कर झड़ती ही हूँ।

मेरी उम्र तीस की है। मैं स्लिम और सैक्सी बदन की मालकिन हूँ। मेरी लम्बाई वास्तव में हालांकि पाँच फुट तीन इंच है पर दिखने मैं पाँच फुट सात इंच के करीब लगती हूँ क्योंकि मुझे हर वक्त ऊँची ऐड़ी की चप्पल सैंडल पहनने का शौक है। मेरा गोरा बदन, बड़े-बड़े गोल मटोल चूतड़ (३६) और उसके ऊपर पतली सी कमर (२८) और फ़िर गठीले तने हुए गोल गोल मम्मे (३४) और मेरी कमर के ऊपर लहराते मेरे चूतड़ों तक लंबे काले घने बाल किसी का भी लंड खड़ा करने के लिये काफी हैं। मगर फ़िर भी जब मैं अपने हुस्न के नखरे और अपनी कातिलाना अदायें बिखेरती हूँ तो बुढ्ढों के भी लंड खड़े होते मैंने देखे हैं। मैंने कईयों से चुदाई भी करवाई है जिसमें से कुछ किस्से पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ।

जैसे कि आपको पता है कि रात को बेडरूम में शराब की चुस्कियाँ लेते हुए मुझे कंप्यूटर पर वयस्क वेबसाइटों पर नंगी ब्लू-फिल्में देखते हुए मुठ मारने की आदत है। ऐसे ही एक दिन मैं जब इंटरनेट पर ब्लू-फिल्में देखने के लिये सर्च कर रही थी तो एक वेबसाइट पर कुत्ते के साथ चुदाई की क्लिप मिली जिसमें दो औरतें कुत्ते के लण्ड से चुदवा रही थीं। इसे देख कर मैं बहुत उत्तेजित हो गयी और सोडे की बोतल चूत में घुसेड़ कर खुब मुठ मारी। फिर मेरा भी दिल करने लगा कि मैं भी हमारे कुत्ते रॉकी से चुदाई करवा के देखूँ। मगर घर में सास और ससुर के होते ये होना मुश्किल था।

रॉकी ज्यादातर मेरे ससुर जी के साथ ही रहता था। रात को भी उनके कमरे में ही सोता था। वैसे भी कुत्ते से चुदाई का कोई तजुर्बा तो था नहीं इसलिए रॉकी से जल्दबाज़ी में तो चुदाई हो नहीं सकती थी। रॉकी को किसी तरह फुसला कर अपनी इस कामुक इच्छा को अंजाम देने के लिये मुझे पूरी प्राइवसी की जरूरत थी। अपनी वासना में बहक कर फिर भी मैं मौका देख कर कभी-कभी रॉकी को प्यार से पुचकारती और उसके लंड वाली जगह पर हाथ लगा देती तो रॉकी भी एक बार चिहुंक उठता। मैं तो कुत्ते के लंड कि इतनी प्यासी थी कि मेरा मन हर वक्त रॉकी के लंड वाली जगह पर ही टिका रहता। हर रोज़ रात को इंटरनेट पर कुत्तों से औरतों की चुदाई की फिल्में देख कर मुठ मारने लगी और दिन में कईं बार बाथरूम में या बेडरूम में जा कर रॉकी के बारे में सोचते हुए मुठ मारती।

फिर एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। मेरे सास और ससुर को कुछ दिनों के लिये कहीं रिश्तेदारों में जाना था। वो दोपहर घर से करीब तीन बजे निकले और फ़िर मैंने भी जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाया। रॉकी उस दिन सुबह से हमारे खेत पर था। मैंने खेतों की देखभाल करने वाले नौकर को फोन करके रॉकी को घर वापस लाने के लिये कह दिया। वो बोला कि कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद करीब दो घंटे में रॉकी को घर छोड़ जायेगा। मुझे बहुत गुस्सा आया और एक बार तो मन किया कि खुद ही कार ले कर वहाँ जाऊँ और रॉकी को ले आऊँ। मगर फिर मैंने सोचा कि क्यों ना रॉकी को आकर्षित करने के लिये इतनी देर मैं थोड़ा सज-संवर कर तैयार हो लूँ। हालाँकि कुत्ते के लिये सजने संवरने का ख्याल बेकार का था लेकिन फिर भी मैंने नहा-धो कर अच्छा सा सलवार-कमीज़ और हाई हील के सैंडल पहने और मेक-अप भी किया।

तैयार होने में करीब एक घंटा ही निकला और रॉकी के आने में अभी भी करीब एक और घंटा बाकी था। मुझसे तो उत्तेजना और बेचैनी में इंतज़ार ही नहीं हो रहा था। कुछ और सूझा नहीं तो व्हिस्की का पैग पीते हुए मैं लैपटॉप पर कुत्ते से चुदाई की फिल्म देखने लगी। तीन औरतें दो कुत्तों के साथ चुदाई का मज़ा ले रही थीं। उनमें एक रॉकी कि तरह ही भूरा ऐल्सेशन कुत्ता था और दूसरा बड़ा सफेद कुत्ता शायद लैब्राडोर था। वो तीनों औरतें उनके लंड चूस रही थीं और अपनी चूत भी चटवा रही थीं। फिर उनमें से एक औरत अपनी चूत में कुत्ते का लंड लेकर चुदवाने लगी और एक औरत दूसरे कुत्ते से गाँड मरवाने लगी। मैंने अपनी पजामी में हाथ डाल कर चूत सहलाना शुरू कर दिया। करीब आधे घंटे बाद वो फिल्म खत्म हुई। इस दौरान मेरी चूत तीन बार झड़ी। अब तक मैंने व्हिस्की के दो पैग पी लिये थे और मुझ पे शराब की सुहानी सी खुमारी छा गयी थी। अपनी पिछली कहानियों में मैं ज़िक्र कर चुकी हूँ कि मुझे चुदाई से पहले शराब पीना अच्छा लगता है मगर शराब मैं इतनी ही पीती हूँ कि मुझे इतना ज्यादा नशा ना चढ़े कि मैं खुद को संभाल ना सकूँ। वैसे कईं बार ज्यादा भी हो जाती है।

अगले आधे घंटे में मैंने शराब का एक छोटा पैग और पिया। फिर खेत पे काम करने वाले नौकर ने घंटी बजायी तो रॉकी को अंदर लेकर मैंने दरवाजे को लॉक किया और रॉकी को पुचकारती हुई अपने बेडरूम में ले गयी और उसका भी दरवाजा बंद कर दिया। पहले तो मैंने उसके साथ बहुत प्यार किया और कपड़े उतारे बगैर ही उसे अपने बदन से चिपकती रही। रॉकी भी अपनी जुबान निकाल कर मुझे इधर उधर चाटने लगा। उसकी खुरदरी जुबान जब मेरी गर्दन के ऊपर चलती तो बहुत मज़ा आता। मैं नीचे ही टाँगें फैला कर उसके सामने बैठ गयी और फ़िर अपनी कमीज़ को उतार दिया। मेरे बूब्स मेरी ब्रा में से बाहर आने को थे।

मैंने रॉकी का मुँह पकड़ कर अपने मम्मों की तरफ़ किया तो वो सूँघ कर धीरे-धीरे से अपनी जुबान मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से पर रगड़ने लगा। ‘आअहहह’ क्या एहसास था उसकी खुरदरी जुबान का। वो ब्रा के बीच भी अपना मुँह डालने की कोशिश करता मगर ब्रा टाईट होने के कारण उसका मुँह अंदर नहीं जा पाता था। मगर उसकी जुबान थोड़ी सी निप्पल को छू जाती तो मेरे तन बदन में और भी बिजली दौड़ जाती।

अब मैंने अपनी ब्रा के हुक पीछे सो खोल दिये और फ़िर ब्रा को भी उतार दिया। रॉकी अब इन खुले कबूतरों को देख कर और भी तेजी से निप्पल पर अपनी जुबान चलाने लगा। वो अपनी पूँछ को बड़े अंदाज़ से हिला रहा था। मैं उसकी पीठ पर हाथ घुमाने लगी और फ़िर अपना हाथ उसके लंड कि तरफ़ ले गयी। जब मैंने रॉकी का लंड हाथ में पकड़ा तो शायद वो परेशान हो गया और जल्दी से मुढ़ कर मेरे हाथ की तरफ़ लपका। मैंने उसका लंड छोड़ दिया मगर मुझे उसके लंड की जगह वाला हिस्सा काफी सख्त लगा। रॉकी फ़िर से मेरे निप्पल को चाटने लगा। अब मैंने अपनी पजामी (सलवार) जो मेरी टाँगों से चिपकी हुई थी, उसका नाड़ा खोलना शुरू किया तो रॉकी पहले से ही मेरी पजामी को सूँघने लगा।

मैंने अपने चूतड़ उठा कर अपनी पजामी को नीचे किया और फ़िर अपने सैंडल पहने पैरों से निकाल कर अलग कर दिया। मेरी पैंटी पर चूत वाली जगह पर मेरी चूत का रस लगा हुआ था। रॉकी इसे तेजी से सूँघने लगा और फ़िर मैं खड़ी हो गयी और मैंने अपनी पैंटी भी उतार फेंकी। अब मैं बिल्कुल नंगी थी और बस पैरों में काले रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने हुए थे। मेरी चिकनी चूत को देख कर रॉकी मेरी टाँगों में मुँह घुसाने लगा और मेरी जाँघों पर अपनी जुबान से चाटने लगा।

एक तो पहले से ही शराब का नशा था और रॉकी की हरकतों से तो मैं और ज्यादा मदहोश हुई जा रही थी। मैं बेड के किनारे पर बैठ गयी और अपनी टाँगें फैला दी। रॉकी के सामने मेरी चूत के होंठ खुल गये जिसमें रॉकी ने जल्दी से अपनी जुबान का एक तगड़ा वार किया और मैं सर से पाँव तक उछल पड़ी। मुझे इतना मज़ा तो किसी मर्द से चूत चटवा कर भी नहीं आया था जितना मज़ा रॉकी मेरी चूत चाट कर दे रहा था। जब रॉकी अपनी जुबान को मेरी चूत पर ऊपर नीचे करता और उसकी जुबान मेरी चूत के दाने से टकराती जिसके कारण मैं भी अपनी चूत को मसलने लगी और मेरी चूत में से मेरे चूत-रस की एक तेज धार निकल कर रॉकी की जुबान पर गिरी। रॉकी को तो जैसे मलाई मिल गयी हो। वो और भी तेजी से चूत को चाटने लगा और अपनी जुबान को चूत के अंदर तक घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। मैंने देखा रॉकी का लंड भी थोड़ा सा बाहर दिखायी दे रहा था और मुझसे भी अब और सब्र नहीं हो रहा था।

मैं ज़मीन पर ही कुत्तिया की तरह घुटनों के और अपने हाथों के बल बैठ गयी ताकि रॉकी मुझे कुत्तिया समझ कर मेरे पीछे से मेरे ऊपर चढ़ जाये। मगर वो तो मेरी साइड में से होकर मेरी चूत को ही चाटने की कोशिश कर रहा था। मैं कुत्तिया की तरह चल कर घूम गयी और अपनी चूत पीछे से उसके सामने कर दी। वो फ़िर से मेरी चूत को चाटने लगा। रॉकी पालतू कुत्ता था और उसने पहले कभी किसी कुत्तिया को नहीं चोदा था और चुदाई का उसे कोई तजुर्बा नहीं था। काफी देर के बाद भी जब वो मेरे ऊपर नहीं चढ़ा तो मैं अपने पैरों पर गाँड के बल बैठ गयी और मैंने उसके दोनों अगले पाँव पकड़े और उनको अपनी कमर के साथ लपेट लिया और फ़िर से आगे की ओर झुक गयी। इससे वो मेरी कमर पर आ गया, मगर उसका लंड अभी मेरी चूत तो क्या टाँगों से भी नहीं छू रहा था। मैं आगे से और नीचे झुक गयी और ज़मीन पर अपना सर लगा कर रॉकी के दोनों पाँव आगे को खींच लिये, जिससे अब रॉकी का लंड मेरी चूत के साथ टकरा गया। रॉकी को भी ये अच्छा लगा और वो भी अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लंड मेरी चूत के इधर-उधर ठोकने लगा और अपने अगले पैरों से मेरी कमर को कस के पकड़ लिया। मगर उसका लंड अभी मेरी चूत में नहीं घुसा था।

मैं अपना एक हाथ पीछे लायी और रॉकी का लंड अपनी उंगलियों में हल्का सा पकड़ लिया। उसके लंड का अगला हिस्सा बहुत पतला महसूस हो रहा था। मेरी उंगलियों के स्पर्श से रॉकी को शायद ऐसा लगा कि उसका लंड मेरी चूत में घुस गया है तो वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा और अपने अगले पाँव से मुझे अपनी ओर खींचने लगा। इतने तेज झटकों से मेरे हाथ से भी लंड इधर उधर हो रहा था और चूत में नहीं जा रहा था। मगर फ़िर अचानक रॉकी का लंड सही ठिकाने पर टकराया और तेजी से मेरी चूत में करीब दो इंच तक घुस गया। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों से ऐसे टकराया जैसे कोई तेज धार वाला चाकू मेरी चूत में घुस गया हो। इस वार ने मेरा तो बैलेंस ही बिगाड़ कर रख दिया। मैंने जल्दी से लंड को छोड़ा और अपना हाथ आगे ज़मीन पर लगा कर गिरते-गिरते बची। उधर रॉकी भी मुझे अपनी ओर खींच रहा था तो उसका भी सहारा मिल गया। मगर इतनी देर में रॉकी का एक और धक्का लगा और उसका लंड दोबारा मेरी चूत की दीवारों से रगड़ता हुआ पहले से भी ज्यादा अंदर घुस गया। मेरे मुँह से फ़िर ‘आह’ की आवाज़ निकल गयी।

मैं समझ गयी कि कुत्ता तो मुझे कुत्ते की तरह ही चोदेगा। इसलिये मैं झट से संभल गयी और अगले वार के लिये तैयार भी हो गयी। रॉकी ने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाल के फ़िर से लंड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैंने भी अपनी चूत को हिला कर लंड के धक्के सहने के लिये अड्जस्ट कर लिया। रॉकी के हर वार से मुझे मीठा-मीठा एहसास होने लगा था। रॉकी की ज़ुबान बाहर थी और वो मेरे कंधे के ऊपर से अपना मुँह आगे को निकाले हुए था और अपने अगले दोनों पैरों से मेरी कमर को इस तरह से पकड़े हुए था कि मेरी कमर उसके धक्के से आगे ना जा सके। अब ज़रा भी दर्द बाकी नहीं रहा था, बस मज़ा ही मज़ा था। रॉकी के लंड का आगे वाला पतला नोकीला हिस्सा जब मेरी चूत के अंदर तक जाता तो एक अजीब सा नशा मेरी चूत में घुल जाता था।

मगर अब फ़िर एक दर्दनाक हमला होने वाला था। रॉकी का लंड फूल कर अब मुझे कुछ ज्यादा ही मोटा महसूस होने लगा। मैंने इंटरनेट पे कुत्ते से चुदाई वाली फिल्मों में देखा तो था कि कुत्ते का लंड पीछे से एक गेंद कि तरह फूल जाता है और जो चूत में घुस जाता है। मगर इस हिस्से को चूत में लेने से अब मैं घबरा रही थी। मैंने पीछे हाथ लगा कर देखा तो सच में रॉकी का लंड एक गेंद के जैसे गोल फूला हुआ था और मोटा भी काफी था। रॉकी तो लगातार अपने धक्के तेज कर रहा था, ताकि उसका वो मोटा हिस्सा भी मेरी चूत में घुस जाये। मगर मैं जानबूझ कर उसका झटका लगते ही अपने आप को आगे ढकेल देती ताकि उसका वो मोट हिस्सा मेरी चूत में ना जाये।

पर रॉकी को ये सब मंज़ूर नहीं था। वो अपना काम अधूरा नहीं छोड़ने वाला था। उसने मुझे अपने अगले पैरों से कस के जकड़ लिया और अपने पीछे वाले पैर भी और आगे कर लिये। अब उसकी टाँगें मेरी जाँघों के साथ चिपकी हुई थीं। मुझे एहसास हो गया था कि अब रॉकी मेरे बलात्कार पर उतर आया है। रॉकी फ़िर से अपने मोटे लंड का प्रहार मेरी चूत पर करने लगा था और हर एक धक्के से मुझे एहसास होता कि उसका मोटा गेंद वाला हिस्सा मेरी चूत में घुस रहा है।

मैंने एक बार कोशिश भी कि के रॉकी के आगे वाले पैरों से छूट जाऊँ, मगर उसने मुझे इतनी मजबूती से जकड़ रखा था कि मैं डर गयी कि उसके नाखून मेरे बदन में न लग जायें। अब मैंने मोटे गेंद जैसे हिस्से को चूत में घुसवा लेना ही ठीक समझा। मेरी चूत मुझे फैलती हुई महसूस होने लगी और इससे दर्द भी होने लगा था। मेरे मुँह से ‘आह-आह’ की आवाजें निकलने लगी थी। मगर रॉकी को तो मज़ा आ रहा था। वो हर धक्के के साथ मुझे अपनी ओर खींच लेता और पीछे से जोरदार झटका लगा देता।

फिर एक और झटका लगा और उसका गेंद वाला हिस्सा भी पुरा मेरी चूत में घुस गया। मेरे मुँह से चींख निकल गयी। मेरी चूत का मुँह जो बुरी तरह फैल कर फट रहा था अब फिर से नॉर्मल हो गया जिससे मुझे कुछ राहत मिली। मगर मुझे अपनी चूत में वो गेंद जैसा हिस्सा ठूँसा हुआ थोड़ा अजीब भी लग रहा था और मज़ा भी आ रहा था। अब रॉकी थोड़ी देर के लिये रुका और फ़िर से झटके लगाने लगा।

मैं भी उसके साथ अपनी कमर हिलाने लगी। मगर अब उसका लंड चूत में फंस चुका था। वो बाहर नहीं आ रहा था और अंदर ही अपना कमाल दिखा रहा था। इतनी देर में रॉकी ने तेज-तेज कमर हिलायी और फ़िर अपनी कमर को ऊपर उठा कर मुझे जोरदार धक्का लगाते हुए कस के जकड़ लिया। मुझे भी अपनी चूत में उसके लंड का तेज झटका लगा, जो अब तक के झटकों से सब से आगे तक पहुँचा था और फ़िर रॉकी के लंड का गरम-गरम पानी मैंने अपनी चूत में महसूस किया। रॉकी के तेज झटकों की वजह से मैंने भी एक बार फ़िर से अपना पानी छोड़ दिया। उधर रॉकी ने मेरी चूत में जितनी भी पिचकारियाँ छोड़ी मुझे सब का बारी-बारी एहसास हुआ। मैं बेहद मज़े और मस्ती में थी और थोड़ी देर ऐसे ही लंड को चूत में रखना चाहती थी। मगर रॉकी जो बुरी तरह से हाँफ रहा था, उसने मेरी कमर को छोड़ दिया और एक साइड को उतरने लगा।

मेरी चूत में उसके लंड का गेंद वाला हिस्सा फंसा हुआ था और रॉकी के नीचे उतरने से मेरी चूत पर बहुत प्रेशर पड़ा और दर्द का एहसास होने लगा। इसलिये मैंने झट से उसकी दोनों टाँगें पकड़ी और उसको उतरने से रोक लिया। मगर रॉकी अब रुकने वाला नहीं था, वो बेतहाशा हाँफ रहा था। रॉकी अपने अगले पाँव मेरे ऊपर से हटा कर नीचे उतर गया और घूम कर खड़ा हो गया लेकिन उसका लंड मेरी चूत में वैसे ही फंसा रहा। मुझे एहसास हुआ कि उसके लंड से मेरी चूत में अब भी काफी रस बह रहा था। मैं ऐसे ही पंद्रह-बिस मिनट तक कुत्तिया की तरह रॉकी से जुड़ी रही जैसे कि अक्सर कुत्ते-कुत्तिया आपस में चिपके दिखायी देते हैं। फिर मुझे अपनी चूत में रॉकी के लंड का गेंद वाला हिस्सा थोड़ा ढीला होता महसूस हुआ तो मैंने एक हाथ से उसके लंड को पकड़ा और पीछे कि तरफ़ खींचा तो उसका मोटा हिस्सा बाहर आने लगा। जैसे ही उसका गेंद जैसा मोटा लंड मेरी चूत में से बाहर आया तो मेरी चूत में से ‘फ़च’ की आवाज आयी जैसे की शैम्पेन की बोतल खोली हो। रॉकी भी शायद इसी के इंतज़ार में था। लंड बाहर निकलते ही वो एक कोने में जाकर बैठ गया।

अब मैंने उसका पूरा लंड लटका हुआ देखा। करीब सात-आठ इंच का होगा और आखिर में वो मोटा गेंद वाला हिस्सा अभी भी काफी फूला हुआ था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी मोटी गेंद मेरी चूत में घुसी थी। मैं उसके लंड की तरफ़ देखती रही और खुद भी सीधी होकर बैठ गयी। मेरी चूत में से मेरा और रॉकी का मिला जुला माल बहने लगा। मैं नीचे ही फ़र्श पर बैठी थी और नीचे ही मेरी चूत में से निकल रहा पानी फ़ैल रहा था। मैं भी निढाल होकर बैठ गयी और रॉकी की तरफ़ देखती रही। रॉकी अपने लंड को चाट रहा था और थोड़ी देर में ही वो अपने पैर पे पैर रख कर सो गया और धीरे धीरे उसका लंड भी छोटा होकर खोल में समा गया।

जब मैं उठ कर खड़ी हुई तो मेरी चूत में से निकलता मेरा और रॉकी का मिला-जुला माल मेरी टाँगों से होता हुआ मेरे पैरों और सैंडलों के बीच में बहने लगा। मैंने बाथरूम में जाकर पेशाब किया। मेरी चूत टाँगें और सैंडलों में मेरे पैर चिपचिपा रहे थे और बेडरूम के फर्श पर भी काफी रस फैला हुआ था मगर उस वक्त मैंने कुछ साफ नहीं किया। बस बेडरूम में आकर धम्म से बेड पर लुढ़क गयी और सो गयी।

!!! समाप्त !!!
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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फलवाले से चुदाई

लेखिका: सानिया रहमान



मेरा नाम सानिया रहमान है। मैं अपने शौहर के साथ चंडीगढ़ में रहती हूँ लेकिन हम दोनों ही लखनऊ के रहने वाले हैं। मैं दिखने में बेहद खूबसूरत और सैक्सी हूँ। मेरा रंग गोरा, बाल एक दम काले घने लंबे और आँखें भुरी हैं। मैं अपने रंग-रूप का बेहद ख्याल रखती हूँ और हमेशा सज-संवर कर टिपटॉप रहना पसंद है मुझे। मैंने होम-सायंस में एम-ए किया है। शौहर से मेरी शादी कुछ साल पहले ही हुई है। शौहर एक बड़ी कंपनी में मार्कटिंग मैनेजर हैं। वो सुबह जल्दी चले जाते हैं और फिर रात के आठ-नौ बजे तक वापस आते हैं। महीने में करीब दस से बारह दिन तो उन्हें चंडीगढ़ से बाहर भी जाना पड़ता है। मैं बेहद सैक्सी हूँ लेकिन शौहर छः-सात दिनों में महज़ एक ही दफा मेरी चुदाई करते हैं। मेरी चुदाई की भूख नहीं मिट पाती और मैं खूब चुदवाना चाहती हूँ।



घर में तमाम दिन अकेली रहती हूँ। घर की साफ-सफाई के लिये सुबह एक कामवाली आती है इसलिये मुझे दिन भर ज्यादा कुछ काम भी नहीं होता। वैसे टीवी से काफी वक्त बीत जाता है क्योंकि मैं केबल पर सीरियल और रियल्टी शो वगैरह देखने की शौकीन हूँ। हफ्ते में तीन-चार दिन तो अकेले ही दोपहर में मार्केट या मॉल में खरीददरी और विन्डो शॉपिंग या फिर थियेटर में फिल्म देखने निकल जाती हूँ। इसके अलावा इंटरनेट सर्फिंग भी करती हूँ और अक्सर पोर्न वेबसाइटों पर गंदी फिल्में और कहानियाँ पढ़ कर मज़ा लेती हूँ। हकीकत में सिर्फ मेरे शौहर ने ही मुझे चोदा था लेकिन तसव्वुर में तो मैं हज़ारों मर्दों से चुद चुकी थी जिनमें फिल्मी हीरो और दूसरे सलेब्रिटी से लेकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मिलने वाले हर तबके के गैर-मर्द शामिल थे। अक्सर मैं किसी पड़ोसी या किसी दुकानदार, माली, पोस्ट-मैन, फल-सब्ज़ी वाले का तसव्वुर करते हुए केले से चोद कर अपनी चूत की आग बुझाती थी। शौहर की सर्द-महरी की वजह से वक्त के साथ-साथ मेरी तिशनगी इस कदर बढ़ गयी कि मैं किसी गैर मर्द के लंड से हकीकत में चुदवाने का सोचने लगी।



हमारे मुहल्ले में घूम-घूम कर सब्ज़ी और फल बेचने वाले आते रहते हैं। उनमें से एक फल बेचने वाले का नाम मोहन था। वो मुझसे बहुत ही मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बात करता था और कभी-कभी मज़ाक भी कर लेता था। क्योंकि मैं हमेशा अच्छे कपड़े और सैंडल पहन कर सज-संवर के रहती हूँ इसलिये वो कईं बार मेरी तारीफ भी कर देता और कहता कि “आपको तो फिल्मों में काम करना चाहिये!” दिखने में वो भी ठीक-ठाक था। उसकी उम्र बीस-इक्कीस साल से ज्यादा नहीं थी लेकिन उसका जिस्म एक दम गठीला था। मैं अक्सर उसका तसव्वुर करते हुए अपनी चूत को केले से चोद कर मज़ा लेती थी। मैंने सोचा कि मैं मोहन को थोड़ा सा और ज्यादा लिफ्ट दे दूँ तो शायद बात बन जाये और मुझे उससे चुदवाने का मौका मिल जाये। क्योंकि मुहल्ले के लोग शौहर को अच्छी तरह से जानते पहचानते थे, मुझे डर था कि अगर मैंने मुहल्ले में किसी के साथ चुदवाया तो शौहर को पता चल जायेगा। मुहल्ले में ज्यादातर सर्विस करने वाले ही रहते थे और नौ-दस बजे के बाद मुहल्ले में सन्नाटा हो जाता था। लेखिका: सानिया रहमान



करीब एक हफ्ता लगा मुझे हिम्मत जुटाने में और सही मौका मिलने में। इस दौरान मैंने एहतियात के तौर पे बर्थ-कंट्रोल पिल्स भी लेनी शुरू कर दी। फिर एक दिन मेरे शौहर दो-तीन दिन के लिये बाहर गये हुए थे और मैं पक्के इरादे से मोहन का इंतज़र करने लगी। उस दिन मैंने तैयार होने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। गुलाबी रंग के डिज़ायनर सलवार कमीज़ के साथ काले रंग के ऊँची ऐड़ी के सेन्डल पहने और मैचिंग लिपस्टिक, ऑय-शेडो, फाऊँडेशन वगैरह से पूरा मेक-अप किया था। करीब ग्यारह बजे मोहन की आवाज़ सुनायी पड़ी, “केले ले लो केले!” वो जब मेरे घर के सामने आया तो बोला, “मेम साब! केले चाहिये? बहुत ही लंबे और मोटे केले हैं!” मैंने कहा, “पहले अपने केले दिखा तो सही!” वो गेट खोलकर बरामदे में मेरे पास आया और अपने सिर से फल की टोकरी उतार कर ज़मीन पर रख दी। फिर वो खुद भी नीचे बैठ गया और उसने मुझे एक बहुत बड़ा केला दिखाते हुए कहा, “मेम साब! आप ये केला देखो! बहुत ही अच्छा है आपको मज़ा आ जायेगा!” मैंने मुस्कुराते हुए सैक्सी अंदाज़ में कहा, “ये केला तो मुलायम सा है मुझे एक दम टाइट और बड़ा केला चाहिये!” उसने मुझे दूसरा केला दिखाते हुए कहा, “तो ये वाला देखो!” मैंने कहा, “मुझे कोई खास केला दिखा!” उसने दूसरा केला निकाला और मुझे दिखाते हुए बोला, “फिर ये वाला देखो... आपको ज़रूर पसंद आयेगा! लंबा-मोटा है और टाइट भी है और बहुत पका भी नहीं है!”



मोहन ने निक्कर और बनियान पहनी हुई थी। उसके निक्कर के ऊपर से ही उसका लंड महसूस हो रहा था। ऊपर से उभार देखने में ही मैंने अंदाज़ा लगाया कि उसका लंड आठ-नौ इंच से कम लंबा नहीं होगा। मैंने बिल्कुल बेहया होकर अपना पैर उठा कर सैंडल से उसके लंड की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “तूने जो वहाँ पर एक स्पेशल केला छुपा कर रखा है वो नहीं दिखायेगा? वो क्या किसी और के लिये छुपा रखा है!” वो बोला, “आप मज़ाक कर रही हैं!” मैंने अपने होंठ दाँतों में दबाते हुए कहा, “मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ!” वो शरमाते हुए बोला, “मैं ये केला यहाँ पर कैसे दिखा सकता हूँ?” मैंने इधर उधर देखा तो आसपास कोई नहीं था। मैंने मोहन से कहा, “तू अंदर आ जा और फिर मुझे अपना केला दिखा!” वो अंदर आ गया तो मैंने दरवाज़ा बंद कर लिया।लेखिका: सानिया रहमान



मैंने उससे कहा, “अब तू अपना वो खास केला मुझे दिखा!” वो बोला, “मेम साब ये केला आपके लायक नहीं है... ये बहुत ही बड़ा है!” मैंने कहा, “ये तो और अच्छी बात है! मुझे बड़ा केला ही चाहिये!” उसने शरमाते हुए अपना लंड निक्कर से बाहर निकाला और बोला, “लो देख लो!” उसका लंबा और मोटा लण्ड देखकर मेरी धड़कनें तेज़ हो गयीं और चूत में खलबली सी मच गयी। मैंने कहा, “बेहद शानदार केला है ये तो! मुझे तेरा केला पसंद है... मुझे यही केला चाहिये!” वो बोला, “मेम साब बहुत दर्द होगा!” मैंने कहा, “बाद में मज़ा भी तो आयेगा!” वो बोला, “वो तो मुझे पता नहीं मेम साब! लेकिन ये केला खाने से आपकी फट सकती है! अब तक मेरी भाभी और आपकी तरह ही एक मेम साब के कहने पर उन्हें अपना ये केला खिला चुका हूँ और दोनों ही बर्दाश्त नहीं कर सकीं! दोनों की कईं जगह से कट फट गयी थी और दोनों ने ही फिर कभी इसे खाने की हिम्मत नहीं की!” मैंने कहा, “मैं तो कईं दिनों से ऐसा ही केला ढूँढ रही थी!” वो बोला, “आप सोच लो मेम साब! मैं तो जैसा आप कहेंगी वैसा करने के लिये तैयार हूँ… आगे आपकी मर्ज़ी! कुछ हो गया तो मुझ पर इल्ज़ाम मत लगाना!”



मैं मोहन के करीब गयी तो उसके जिस्म से पसीने की बास आ रही थी। मैंने कहा, “तेरे जिस्म से तो बास आ रही है… पहले तू नहा ले उसके बाद मैं तेरे इस केले का स्वाद चखुँगी!” मैंने उसे बाथरूम में लेजाकर एक अच्छी सी महक वाला साबुन दे दिया। उसने अपनी बनियान और निक्कर उतार दी और नहाने लगा। मैं वहीं खड़ी उसे निहारती रही। उसने जब अपने लंड पर साबुन लगा कर उसे खूब रगड़ा तो उसका लंड एक दम टाइट हो गया। मैं उसके नौ इंच लंबे और बहुत ही मोटे लंड को देखती ही रह गयी। लंड लम्बा तो था ही लेकिन उससे ज्यादा खास बात थी उसकी गैर-मामुली मोटाई। “सुभान अल्लाह!” मेरे मुँह से निकला और मेरे जिस्म में उसके लंड को देखकर आग सी लगने लगी। मैंने कहा, “ला मैं तेरे इस केले पर साबून लगा देती हूँ।” मैंने उसके हाथ से साबुन लेकर उसके लंड पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में ही उसके लंड का जूस निकल कर मेरे सैंडलों पर गिरने लगा। मैंने खिझते हुए थोड़ा गुस्से से कहा, “ये क्या? तेरे लंड का जूस तो इतनी जल्दी निकल गया?” वो बोला, “मेम साब क्या करूँ ज़िंदगी में तीसरी बार किसी औरत ने मेरे लंड पर अपना हाथ लगाया है वो भी एक साल बाद इसलिये मैं जोश में आ गया लेकिन अब इसका जूस जल्दी नहीं निकलेगा!” मैंने कहा, “अब तो तेरे लण्ड को खड़े होने में थोड़ा वक्त लगेगा अब तू जल्दी से नहा कर बाहर आ जा ताकि मैं तेरे केले का स्वाद चख सकूँ!” वो बोला, “बस मैं अभी आता हूँ मेम साब!”लेखिका: सानिया रहमान



मैं बाहर बेडरूम में आ गयी। पहले तो मैंने अपनी उंगलियों से अपने पैरों और सैंडलों से उसके वीर्य को पोंछा और फिर अपना हाथ नाक के पास ले जाकर सूँघा। फिर ज़ुबान बाहर निकाल कर मैं अपनी उंगलियों से मोहन का वीर्य चाटने लगी। मेरी चूत की हालत खराब थी और खूब भीग गयी थी। मुझ से रहा नहीं गया और मैंने फटाफट सलवार कमीज़ उतार दी और पैंटी चूत पर से एक तरफ खिसका कर सहलाने लगी। इतने में ही वो भी नहा कर मेरे बेडरूम में नंगा ही आ गया। वो आँखें फाड़े मुझे निहारता रह गया क्योंकि मैं सिर्फ ब्रा-पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने उसके सामने मौजूद थी और अपनी चूत सहला रही थी। मैं अपनी चूत सहलाना छोड़ कर उसके करीब आ गयी। अब उसका जिस्म खुशबू से महक रहा था। मैंने उसका ढीला लंड अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया और फिर थोड़ी देर बाद नीचे बैठते हुए मैंने उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। उसके लण्ड मेरे मुँह में अकड़ने लगा तो मैंने उससे कहा, “तू भी मेरी चूत को अपनी ज़ुबान से चाट!” फिर मैंने खुद ही अपनी ब्रा और पैंटी उतार दी और सैंडलों के अलावा बिल्कुल नंगी हो गयी। मैंने कहा, “मैं लेट जाती हूँ और तू मेरे ऊपर आ जा ताकि मैं भी तेरा केला खा सकूँ!” मैं लेट गयी और वो मेरे ऊपर 69 की पोज़िशन में हो गया। मैंने उसका लंड मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया और वो मेरी चूत को चाटने लगा। जैसे ही उसने अपनी ज़ुबान मेरी चूत पर लगायी तो मेरे जिस्म में सुरसुरी सी होने लगी और मैं सिसकरियाँ भरते हुए उसके लंड को तेजी के साथ चूसने लगी।



दो मिनट बाद ही मेरी चूत से रस निकलने लगा। मैं बड़े प्यार से मोहन का लंड चूस रही थी। मेरी चूत का रस चाटने के बाद वो रुक गया। मैंने पूछा, “क्या हुआ… तू रुक क्यों गया?” तो वो बोला, “मेमसाब आपकी चूत ने तो रस छोड़ दिया...!” मैंने कहा, “तो क्या हुआ… थोड़ी देर और मेरी चूत को चाट फिर उसके बाद मेरी चुदाई करना!” वो फिर से मेरी चूत को चाटने लगा। उसका लण्ड भी अब फिर से कड़क हो गया था और मोटाई की वजह से मेरे मुँह में बेहद मुश्किल से समा रहा था। मुझे अपना मुँह इस कदर फैला कर खोलना पड़ रहा था की मुझे लग रहा था कि मेरा जबड़ा ही ना टूट जाये।



करीब पाँच मिनट बाद मैं फिर झड़ गयी। फिर मैंने कहा, “अब तू मेरी चुदाई कर अपने इस मोटे लण्ड से!” मैंने अपने चूतड़ के नीचे दो तकिये रख लिये। इससे मेरी चूत एक दम ऊपर उठ गयी। उसके बाद मैंने उसे एक पका हुआ केला लाने को कहा। वो बाहर कमरे में जाकर अपनी टोकरी में से एक केला ले आया। मैंने वो केला लकर छीला और उसे अपनी मुठ्ठी में मसल डाला और केले का थोड़ा सा गूदा अपनी चूत पर लगाने लगी। वो बोला, “मेमसाब ये आप क्या कर रही हो?” मैंने मुस्कुराते हुए शोख अदा से कहा, “बस तू देखता जा!” फिर मैंने थोड़ा सा केले का गूदा उसके पूरे लंड पर भी लगा दिया! उसके बाद मैंने उससे कहा, “अब चोद अपने लण्ड से मेरी चूत को… अब केले के गूदे की वजह से तेरा ये लंबा और मोटा लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में आसानी से घुस जायेगा!” लेखिका: सानिया रहमान



वो मेरी टाँगों के बीच में आ गया और उसने अपने लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के लबों को फैला कर बीच में रख दिया और मेरी चूत के अंदर दबाना शुरू कर दिया। उसका लंड फिसलते हुए मेरी चूत में घुसने लगा। मुझे हल्का-हल्का दर्द होने लगा। जैसे ही उसका लंड मेरी चूत में करीब पाँच इंच तक घुसा तो मुझे बहुत ज्यादा दर्द महसूस होने लगा और मेरे मुँह से चींखें निकलने लगी। वो बोला, “मेमसाब आप कहें तो मैं बाहर निकाल लूँ!” मैंने कहा, “तू परवाह ना कर और धीरे-धीरे पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसाना ज़ारी रख… मैं कितनी भी चिल्लाऊँ पर तेरा तमाम लण्ड अंदर घुस जाने से पहले तू रुकना मत!” उसने अपना लंड दबाना ज़ारी रखा। दर्द के मारे मेरा बुरा हाल था। लग रहा था कि जैसे कोई गरम लोहे का रॉड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर घुसता जा रहा हो। मेरा सारा जिस्म थरथर काँपने लगा और मेरी टाँगें जवाब देने लगी। जब उसका पूरा का पूरा लंड मेरी चूत के अंदर घुस गया तो मैंने मोहन से रुक जाने को कहा तो वो रुक गया। वो मेरे मम्मों को मसलते हुए मुझे चूमने लगा। थोड़ी देर बाद जब मेरा दर्द कुछ कम हो गया तो मैंने कहा, “अब तू बहुत ही धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर कर!” वो अपना लंड मेरी चूत में धीरे-धीरे अंदर बाहर करने लग। मुझे फिर से दर्द होने लगा और मैं दर्द के मारे चींखने लगी। मेरा सारा जिस्म पसीने से नहा गया था।



पाँच मिनट तक वो बहुत ही धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर करता रहा। अब मेरा दर्द कुछ कम हो चुका था और मुझे मज़ा आने लगा था। दो मिनट बाद ही मैं झड़ गयी तो मैंने मोहन से कहा, “अब तू जिस तरह से चाहे मेरी चुदाई कर!” उसने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और जोर-जोर के धक्के लगाने लगा। अब मुझे और ज्यादा मज़ा आने लगा। मैं भी अपने चूतड़ उठा-उठा कर मोहन का साथ देने लगी। मुझे एक दम ज़न्नत का मज़ा मिल रहा था जो कि मुझे आज तक कभी नहीं मिला था। वो मेरे मम्मों को मसलते हुए मेरी चुदाई कर रहा था।लेखिका: सानिया रहमान



दस मिनट इस तरह चुदवाने के बाद जब मैं फिर से झड़ गयी तो मैंने उसे लंड मेरी चूत के बाहर निकालने को कहा। वो बोला, “क्या हुआ मेमसाब!” मैंने कहा, “अब तू अपना लंड और मेरी चूत को साफ़ कर दे और फिर मेरी चुदाई कर… अब केले के गूदे का कोई काम नहीं है! वो तो मैंने तेरा ये लंबा और मोटा लंड आसानी से अपनी चूत में लेने के इरादे लगाया था!”



उसने बेड की चादर से मेरी चूत को साफ़ कर दिया और फिर अपने लंड को साफ़ करने लगा। उसके बाद उसने अपना लंड फिर से मेरी चूत में धीरे-धीरे घुसाना शुरू कर दिया। मुझे फिर से दर्द होने लगा लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। धीरे-धीरे उसने अपना पूरा का पूरा लंड फिर से मेरी चूत में घुसा दिया और मुझे धीरे-धीरे चोदने लगा।



दस-पंद्रह मिनट चुदवाने के बाद मैं फिर से झड़ गयी। मोहन के लण्ड से चुदने में मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि क्या बताऊँ। मन कर रहा था कि इसी तरह चुदवाती रहूँ। मैं पलट कर डॉगी स्टाइल में हो गयी और उसे फिर से चोदने को कहा। उसके बाद उसने अपना पूरा का पूरा लंड एक झटके में पीछे से मेरी चूत में डाल दिया। मेरे मुँह से जोर की चींख निकली लेकिन वो रुका नहीं। वो मुझे एक दम आँधी की तरह से चोदने लगा। तमाम बेड जोर-जोर से हिलने लगा। कमरे में ‘चप-चप’ और ‘धप-धप’ की आवाज़ गूँज रही थी। मैं जोश में पागल सी हुई जा रही थी और मैंने “और तेज चोद.. और तेज चोद मुझे!” कहना शुरू कर दिया था। मोहन ने भी मेरी आवाज़ सुन कर और भी जोरदार धक्के लगाते हुए मेरी चुदाई करनी शुरू कर दी। अब उसके हर धक्के से मेरा पूरा का पूरा जिस्म हिल रहा था। वो बहुत ही बुरी तरह से मेरी चुदाई कर रहा था और मैं भी पूरे जोश के साथ मोहन से चुदवा रही थी।लेखिका: सानिया रहमान



थोड़ी देर की चुदाई के बाद मैं फिर से झड़ गयी तो उसने अपना लंड मेरी चूत के बाहर निकाल लिया और मुझे बेड के किनारे पर लिटा दिया। उसके बाद वो मेरी टाँगों के बीच में आ कर ज़मीन पर खड़ा हो गया और मेरी चूत में लंड घुसेड़ कर चुदाई करने लगा। अब वो मेरे दोनों मम्मों को मसलते हुए मुझे बहुत ही ज़ोरों चोद रहा था। मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था और मेरे मुँह से “ऊऊहहह. आआहहह.. और. तेज. और.. जोर से.. फाड़ दे मेरी चूत…” को जैसी आवाज़ें निकलने लगी। वो भी पूरे दमखम के साथ मेरी चुदाई कर रहा था।



इसी तरह से उसने मुझे काफी देर तक चोदा और फिर आखिर में मेरी चूत में ही झड़ गया। उसके साथ ही साथ मैं भी फिर से झड़ गयी। वो मेरे ऊपर लेट गया और मुझे चूमने लगा। हम दोनों की साँसें बहुत तेज चल रही थी। उससे चुदाई के दौरान मैं पाँच बार झड़ चुकी थी। आज मुझे चुदवाने का वो मज़ा मिला जिसका मैं बरसों से इंतज़ार कर रही थी। थोड़ी देर बाद जब उसका लंड मेरी चूत में बिल्कुल ढीला पड़ गया तो उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया और मेरे ऊपर से हट गया।



उसने अपने कपड़े पहन लिये और जाने लगा तो मैंने उससे कहा, “अब तू रोज आ कर मेरी चुदाई ज़रूर करना!” वो बोला, “मेम साब! मुझे भी आज आपकी चुदाई करने में वो मज़ा आया है कि मैं बता नहीं सकता... कमाल की औरत हो आप… मैं रोज ही आपकी चुदाई करुँगा!” उसके बाद वो चला गया। करीब एक महीने तक मैं उससे रोज-रोज चुदवाती रही और खूब मज़ा लेती रही। उसके बाद एक दिन मैंने मोहन से कहा, “आज मैं तुझसे गाँड मरवाना चाहती हूँ!” वो बहुत ही खुश हो गया। मोहन से पहली-पहली बार गाँड मरवाने के बाद मैं तीन-चार दिनों तक ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। उसके बाद मैं मोहन से आराम से गाँड भी मरवाने लगी। मुझे उससे गाँड मरवाने में भी बहुत मज़ा आता था। वो रोज ही मेरे पास आता और तरह-तरह के स्टाइल में मेरी बहुत ही बुरी तरह से चुदाई करता था। उसे झड़ने में भी बहुत वक्त लगता था और वो मेरी गाँड भी बहुत ही बुरी तरह से मारता था।



करीब छः-सात महिनों तक मैं मोहन से चूत और गाँड दोनों ही मरवाती रही। उसके बाद वो अपने गाँव वापस चला गया। उसके जाने के बाद मैंने कईं गैर-मर्दों के साथ चुदवाया लेकिन मुझे मोहन के लंड से चुदवाने में जो मज़ा आया था वो मज़ा मुझे अब तक नहीं मिला और ना ही मोहन के जैसा लंबा और मोटा लंड ही कभी मिला।

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मेरी ज़िंदगी का राज़

शाज़िया मिर्ज़ा



बहुत ही हिम्मत करके इस कहानी के ज़रिये मैं अपनी ज़िंदगी की एक ऐसी हक़ीकत बयान कर रही हूँ जिसका रुसवाई के डर से मैं किसी से भी रुबरू हो कर ज़िक्र नहीं कर सकती। दर‍असल मैं पिछले करीब आठ सालों से बाकयदा अपने पालतू कुत्ते से चुदवाती आ रही हूँ। मुझे पूरा एहसास है कि मेरी हरकतें इस दुनिया की नज़रों में बेहद नाजायज़ और बदकार हैं लेकिन मैं अपने कुत्ते से चुदवाये बगैर नहीं रह सकती। मैं उससे बेहद मोहब्बत करती हूँ और उससे चुदवाने की निहायत आदी हो चुकी हूँ। अपनी दास्तान तफसील से बयान करने से पहले मैं अपने बारे में बता दूँ। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



मेरा नाम शाज़िया मिर्ज़ा है और मैं सैंतीस साल की मॉडर्न ख्यालों वाली तालीम-याफता तलाकशुदा औरत हूँ। मैंने बंगलौर के नामी-गिरामी कॉलेज से एम-बी-ए किया हुआ है। वैसे तो मैं नासिक की रहने वाली हूँ लेकिन तलाक के बाद पिछले ग्यारह साल से मैं मुम्बई में अकेली रहती हूँ और एक प्राइवेट बैंक में जनरल मैनेजर हूँ। अच्छी-खासी तनख्वाह है जिसकी वजह से मेरा लाइफ-स्टाइल भी काफी हाई-क्लास है।



वैसे तो मैं पिछले आठ साल से अपने एलसेशन कुत्ते, ‘जैकी’ से चुदवा रही हूँ लेकिन कुत्तों से चुदाई से मेरा तार्रुफ बा‍ईस साल की उम्र में ही हो गया था। तब मैं नासिक में ही एम-कॉम कर रही थी और फाइनल ईयर शुरू होने के पहले दो महीने ट्रेनिंग के लिये मुम्बई आयी थी। मेरे अब्बू के किसी दोस्त की एक दूर की रिश्तेदार तब मुम्बई में जुहू इलाके में अकेली रहती थीं और मैं उन ही के साथ उनके शानदार फ्लैट में पेईंग-गेस्ट बन कर रहने लगी। उनका नाम सईदा था और वो करीब चालीस साल की बहुत ही खूबसूरत और खुशदिल औरत थीं। उनके शौहर किसी दूसरे मुल्क में नौकरी करते थे। शायद दुबई या कुवैत में पर मुझे ठीक से याद नहीं। मैं उन्हें ‘सईदा आँटी’ कह कर बुलाती थी। उनके पास एक बड़ा सा काले रंग का डोबरमैन कुत्ता भी था जिसे वो ‘जानू’ कह कर बुलाती थीं।



ट्रेनिंग के लिये मुझे नारीमन पॉइन्ट के करीब जाना पड़ता था इसलिये मैं सुबह ही निकल जाती थी और शाम को लौटती थी। शाम को मैं खाना बनाने में सईदा आँटी की मदद करती और उनके कुत्ते जानू के साथ खेलती और टीवी देखती थी। उनके शानदार फ्लैट में तीन बेडरूम थे इसलिये मैं और सईदा आँटी अलग-अलग कमरे में सोती थीं। एक-दो हफ्तों में मैं सईदा आँटी से काफी वाकिफ हो गयी। सईदा आँटी काफी खुले और आज़ाद ख्यालों वाली थीं। हर रोज़ रात को खाने से पहले टीवी देखते हुए शराब के एक-दो पैग पीती थीं। मुझसे भी बॉय-फ्रेंड्स वगैरह के बारे में पूछती और अपने कॉलेज के दिनों में इश्कबाज़ी के किस्से और शादी से पहले गैर-मर्दों से अपनी चुदाई के किस्से भी मुझे सुनाती। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



एक दिन शाम को मैं घर आयी तो सईदा आँटी ने मुझे बताया कि उन्हें एक पार्टी में जाना है और उन्हें लौटने में रात को काफी देर हो जायेगी। उन्होंने मुझे हिदायत दी कि मैं दरवाजा ठीक से अंदर से लॉक कर लूँ और खाना खा कर सो जाऊँ और उनके लौटने का इंतज़ार ना करूँ। उनके पास बाहर से दरवाजा खोलने के लिये दूसरी चाबी थी। मैं खाना खा कर टीवी देखने लगी और टीवी देखते-देखते वहीं सोफे पर ही सो गयी।



करीब आधी रात के वक्त सईदा आँटी वापस लौटीं तो मेरी नींद खुली। मैंने देखा कि सईदा आँटी काफी नशे में थीं। इससे पहले मैंने उन्हें कभी इतने नशे में नहीं देखा था। उन्होंने ऊँची हील के सैन्डल पहने हुए थे और नशे में उनके कदम ज़रा से लड़खड़ा भी रहे थे। “काफी मज़ा आया पार्टी में... आज थोड़ी ज्यादा ही पी ली”, सईदा आँटी मुस्कुराते हुए बोलीं। “तू फिक्र ना कर और अंदर जा कर सो जा.... सुबह जाना भी है तुझे.... मैं थोड़ी देर टीवी देखुँगी... मेरी सहेली ने एक इंगलिश मूवी की कैसेट दी है!” (उस ज़माने में सी-डी या डी-वी-डी प्लेयर नहीं थे) लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



उन्हें ड्राइंग रूम में छोड़ कर मैं अपने बेडरूम में जा कर सो गयी। सोते हुए मुझे करीब एक घंटा हुआ होगा जब सिसकरियों की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी। हालाँकि मुझे चुदाई का कोई तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं बा‍ईस साल की थी और सैक्सी किताबों और ब्लू-फिल्मों की बदौलत उन सिसकरियों का मतलब बखूबी समझती थी। लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात का था कि सईदा आँटी के साथ आखिर था कौन। मैं बिस्तर से उठी और दरवाजे के पास जाकर बिना आवाज़ किये धीरे से थोड़ा दरवाजा खोला। जब मैंने ड्राइंग रूम में झाँक कर देखा तो मुझे अपनी नज़रों पर यकीन नहीं हुआ।



सईदा आँटी ने जो सलवार-कमीज़ पहले पहन रखी थी वो अब सोफे पर एक तरफ पड़ी थी और उनके जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और उनके पैरों में वही ऊँची पेंसिल हील वाले सैन्डल मौजूद थे। सबसे हैरत की बात ये थी कि सईदा आँटी फर्श पर अपने हाथ और घुटनों के बल झुकी हुई थीं और उनका कुत्ता जानू पीछे से उनकी कमर के दोनों तरफ अपनी अगली टाँगें जकड़े हुए उनके चूतड़ों पर चढ़ा हुआ था और आहिस्ता-आहिस्ता झटके मार रहा था। सईदा आँटी की पीठ पर पुरी तरह से झुका हुआ वो कुत्ता सामने देख रहा था और उसके कुल्हे एक लय में सईदा आँटी के चूतड़ों पर आगे-पीछे ठुमक रहे थे। सईदा आँटी अपनी आँखें मूंदे सिसक रही थीं। करीब दो मिनट तक मैं हैरत-अंगेज़ आँखें फाड़े देखती रही और उसके बाद मेरे होशो हवास बहाल हुए। साफ ज़ाहिर था कि उस डोबरमैन कुत्ते के लन्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए सईदा आँटी दुनिया जहान से बिल्कुल बेखबर थीं।



फिर अचानक जानू ज़ोर से झटका मारते हुए सईदा आँटी की कमर पर और आगे झुक गया और उसके कुल्हे हैरत-अंगेज़ रफ्तार से आगे-पीछे चोदने लगे। जानू के पिछले पैर ज़मीन पर फिसलने लगे थे लेकिन उसने चोदने की रफ्तार ज़रा भी कम नहीं की। “आऊ...! आआऊ...! ऊऊऊहहह...! ऊँआआऊ!” सईदा आँटी ज़ोर से कराहने लगीं और अपना एक हाथ नीचे से अपनी टाँगों के करीब ले गयीं। “ओहह नहींऽऽ! आआऊऊऽऽऽ! ऊँऽऽ...! मर गयीऽऽऽ!”



कुत्ता जो भी कर रहा था उसकी हरकत से सईदा आँटी को तकलीफ हो रही थी। उनकी मुठ्ठियाँ फर्श के मुकाबिल जकड़ कर बंद और खुल रही थीं। उनका खुला हुआ मुँह दर्द से बिगड़ा हुआ था। “ऊँहहऽऽ आआईईऽऽऽ! मादरचोद.... जानू! आज फिर तूने अपनी ज़ालिम गाँठ अंदर ठूँस दी!” कराहते हुए सईदा आँटी फर्श पर ज़रा सा आगे की ओर खिसकीं तो कुत्ता भी उनके साथ चिपका हुआ खिंच गया लेकिन उनसे अलग नहीं हुआ। कुत्ते ने उसी तेज़ रफ्तार से चोदना ज़ारी रखा। मुझे साफ ज़ाहिर था कि सईदा आँटी तकलीफ में थीं। उनके खिसकने से अब वो दोनों साइड से मेरी नज़रों के सामने थे और मैं उनकी तकलीफदेह हालत साफ-साफ देख पा रही थी। कुत्ते के लन्ड की जड़ में गेंड जैसी फूली हुई गाँठ सईदा आँटी की चूत में पैंठ कर फंस गयी थी और दोनों एक दूसरे से वैसे ही जुड़ गये थे जैसे कुत्ता और कुत्तिया अक्सर आपस में चिपक कर जुड़ जाते हैं।



“ऊँऊँऽऽ जानू...!” सईदा आँटी कराही पर फिर उन्होंने जूझना बंद कर दिया और अपनी गाँड हवा में कुत्ते के मुकाबिल और ऊपर ठेल कर अपना सिर फर्श पर टिका दिया। जानू अभी भी ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे चोदना ज़ारी रखे हुए था। सईदा आँटी अब पुर-सकून हो गयी थीं तो कुत्ता बहुत तेज़ रफ्तार से छोटे-छोटे झटके मार कर चोद रहा था। जानू के कुल्हे लरजते और काँपते नामुदार हो रहे थे। मुझे फिर से सईदा आँटी की सिसकियाँ और कराहें सुनाई दीं लेकिन अब ऐसा लग रहा था कि एक बार फिर हालात उनके काबू में थे और अब उन्हें मज़ा आ रहा था। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



मुझे भी एहसास नहीं हुआ कि मैंने कब अपनी नाइटी उठा कर पैंटी में हाथ डाल कर अपनी चूत सहलाना शुरू कर दिया था। मैंने देखा कि सईदा आँटी के ऊपर झुके हुए जानू ने अचानक अपने कुल्हे चलाना बंद कर दिये और उसी तरह बे-हरकत खड़ा हो गया। सईदा आँटी से कस कर चिपका हुआ कुत्ता ऐंठ कर काँप रहा था। उसकी आँखें भी शीशे की तरह जम गयी थीं। फिर उसने आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चला कर चोदना शुरू किया लेकिन एक-दो मिनट में ही फिर से बिल्कुल रुक गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि जानू ने सईदा आँटी की चूत में अपना रस छोड़ दिया है।



जानू तो निबट गया था लेकिन जब उसने सईदा आँटी से अलग होने की कोशिश की तो ज़ाहिर हो गया कि वो और सईदा आँटी अभी भी एक दूसरे से चिपक कर जुड़े हुए थे। “नहीं... जानू...! प्लीज़! रुक! जानु रुक!” सईदा आँटी ने उसे हुक्म दिया। जानू भी फरमाबरदार था और सईदा आँटी की कमर से उतरने की और कोशिश नहीं की और मुँह खोलकर अपनी जीभ बाहर निकाले हाँफता हुआ उनकी कमर पर चढ़ा रहा। सईदा आँटी भी हाँफ रही थीं और गहरी साँसें ले रही थीं। “मेरा अच्छा बच्चा जानू!” वो प्यार से बोलीं, “नाइस बॉय! बस ऐसे ही रुके रहो!” जानू सईदा आँटी की पीठ पर निढाल सा हो गया और उनकी गर्दन और बालों को चाटने लगा। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



सईदा आँटी बहुत ही एहतियात से आहिस्ता से खिसकीं ताकि उनकी चूत में फंसी कुत्ते के लन्ड की गाँठ पर खिचाव ना पड़े। ऐसे ही कुलबुलाते हुए सईदा आँटी थोड़ा और इधर उधर खिसकीं और अपना दाहिना हाथ अपनी टाँगों के बीच में ले जा कर अपनी चूत और कुत्ते के लन्ड को टटोला। फिर सईदा आँटी अपनी चूत सहलाने लगीं। बहुत ही चोदू नज़ारा था। दो-तीन मिनट में ही सईदा आँटी पूरे जोश में अपनी चूत अपने हाथ और उंगलियों से ज़ोर-ज़ोर से सहला रही थीं जबकि उनका आशिक-कुत्ता जानू उनकी कमर पर सवार था और उसका लन्ड उनकी चूत में फंसा हुआ था। इधर मैं भी अपनी चूत ज़ोर-ज़ोर से रगड़ रही थी।



मुझे ये देख कर हैरत हुई कि कुत्ते ने फिर आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चलाने शुरू कर दिये। सईदा आँटी के हिलने डुलने और लन्ड से भरी चूत सहलाने से शायद जानू का लन्ड फिर से उकसा गया था। “नहीं जानू! फिर से नहीं! रुक..!” सईदा आँटी कराहते हुए चींखी लेकिन वो खुद उस वक्त बहुत मस्ती में थीं और झड़ने के करीब थीं। जानू अब ज़ोर-ज़ोर से अपने कुल्हे आगे-पीछे चलाने लगा था और सईदा आँटी भी अपने चूतड़ हिलाती हुई पूरे जोश में अपनी चूत रगड़ने लगीं। “आआआईईईऽऽ! आआऽऽऽ ऊँआआआईईईऽऽऽ!” सईदा आँटी की चूत में झड़ने की आगाज़ी लहरें फूटने लगीं तो वो मस्ती में कराहने लगीं। कुत्ते का लन्ड उनकी चूत में वैसे ही कायम था और दोनों ने अपनी-अपनी मस्ती में डूबे हुए अपनी अलग-अलग ताल पकड़ ली।



“ऊँहह आँहह ऊँऽऽ आँईईऽऽ!” सईदा आँटी ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थीं। उनका चमकीला जिस्म ऐंठ गया था। एक हाथ अपनी चूत सहलाने में मसरूफ होने की वजह से वो एक ही हाथ के सहारे झुकी हुई थीं और उनके तने हुए मसल लरज़ते हुए अलग ही नज़र आ रहे थे। वो रुक-रुक कर लंबी साँसें लेती तो फुफकारने जैसी आवाज़ निकलती। जानू बेहद जोश में सईदा आँटी की चूत में लन्ड पेल रहा था और सईदा आँटी भी वैसे ही डटी रही। सईदा आँटी की चूत में झड़ने की आखिरी लहरें दौड़ने लगीं तो उनकी ताल अहिस्ता हो गयी और उन्होंने अपना हाथ चूत से हटा लिया। एक बार फिर अपने दोनों हाथों और घुटनों के सहारे झुकी हुई स‍इदा आँटी अपनी कमर पर कुत्ते को सम्भालने लगीं।



कुत्ता भी वैसे ही झड़ने लगा जैसे कि पिछली बार झड़ा था। बस इतना फर्क था कि इस बार झड़ते हुए वो दो -तीन बार रिरियाया। “ओहह जानू! आँहह जानू!” स‍इदा आँटी सिसकीं, “ऊँह! आँह! उँहह.. ऊँह!” सईदा आँटी की सिसकियों और कुत्ते की रिरियाहट से साफ ज़ाहिर था कि कुत्ते के लन्ड से गरम शीरा सईदा आँटी की चूत में बह रहा था। सईदा आँटी उस वक्त जानू की कुत्तिया बनी हुई थी। कईं सारे हल्के-हल्के झटके मारते हुए जानू का झड़ना बंद हुआ और फिर से वो सईदा आँटी की कमर पर निढाल सा हो गया।



“मादरचोद जानू! तूने फिर से चोद दिया! मेरी चूत दर्द कर रही है!” सईदा आँटी सिसकते हुए बोली, “बस अब ऐसे ही रुके रहो!” जानू को तो जैसे पहले से ही स‍इदा आँटी के इस हुक्म की उम्मीद थी। वो पहले से ही बिना हिले-डुले उनकी पीठ पर झुका हुआ था। दोनों थके हुए और ज़ाहिरन मुतमाइन थे। स‍इदा आँटी ने अपना सिर फर्श पर टिका दिया लेकिन अपनी गाँड कुत्ते के मुकाबिल उठी रहने दी जिसका लन्ड इस वक्त अपनी कुत्तिया की चूत में कस कर बंधा हुआ था।



मैं खुद तीन-चार बार झड़ चुकी थी और अपनी चूत रगड़ते हुए एक बार फिर झड़ने के बहुत करीब थी। तभी जानू ने मेरी तरफ देखा और उसके कान खड़े हो गये। “या अल्लाह!” मैं मन ही मन में बोली। खुशकिस्मती से सईदा आँटी थोड़ा कसमसायीं और कुत्ते का ध्यान पल भर के लिये उनकी तरफ फ़िर गया। मैंने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और पलट कर बिस्तर में घुस गयी। मेरा दिमाग घूम रहा था और हज़ारों ख्याल उमड़ रहे थे। साफ ज़ाहिर था कि अपने कुत्ते से स‍इदा आँटी की ये चुदाई पहली दफा नहीं थी बल्कि वो अक्सर उससे चुदवाती थीं।



हालाँकि मुझे चुदाई का तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं चुदाई से मुत्तलिक सब जानती थी। सत्रह-अठारह साल की उम्र से ही मैं भी हम-उम्र लड़कियों की तरह सैक्स में दिल्चस्पी लेने लगी थी। स्कूल के दिनों में ‘मिल्स एंड बून’ की रोमाँटिक किताबें बहुत मज़े लेकर पढ़ती थी और फिर बी-कॉम के दिनों से धीरे-धीरे गंदी सैक्सी किताबें पढ़ने का शौक लग गया था। दिन में कईं बार अपनी उंगलियाँ या केले, मोमबत्ती और वैसी कोई भी चीज़ अपनी चूत में घुसेड़-घुसेड कर चोदते हुए मज़े लेती थी। बी-कॉम के फाइनल इयर में ही थी जब मैंने पहली बार कुछ सहेलियों की सोहबत में ब्लू-फिल्म देखी थी और अब तक पाँच छः दफा ब्लू-फिल्में देख चुकी थी। लेकिन आज तो मैंने चुदाई का एक ऐसा हैरत‍अंगेज़ और चुदास नज़ारा अपनी आँखों से देखा था जो मैंने पहले कभी किसी ब्लू-फिल्म या सैक्सी किताब में भी नहीं पढ़ा था और ना ही ऐसा कभी तसव्वुर किया था।



फिर एक हफ्ते बाद मैं नासिक वापस आ गयी और धीरे-धीरे वक्त गुज़र गया। एम-कॉम पूरा करने के बाद मुझे एम-बी-ए करने के लिये बैंगलौर के बहुत ही जाने-माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। बैंगलौर में हॉस्टल में रहती थी और इस दौरान मैंने कभी-कभार शराब पीना भी शुरू कर दिया। मैं बेहद खूबसूरत और हसीन थी और स्कूल के ज़माने से ही कितने ही लड़के मुझे लाइन मारते थे लेकिन मैं कभी भी किसी के इश्क़ में नहीं पड़ी ना ही शादी से पहले कभी किसी से चुदवाया।



एम-बी-ए पूरा होते ही मेरा निकाह हो गया। मेरे शौहर भी काफी तालीम-याफता थे और उनकी बेहद अच्छी नौकरी थी। शादी के बाद शुरू-शुरू में उनके साथ बेहद खुश थी पर धीरे-धीरे मुझे पता चला कि मेरे शौहर को सट्टे-बाजी का शौक था। अक्सर क्रिकेट मैचों के वक्त बड़ी-बड़ी शर्तें लगाते थे। मैंने कईं दफा उन्हें समझाने रोकने की कोशीश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिर में एक दिन बहुत बड़ी शर्त हार कर दिवालिया भी हो गये तो मुझे दहेज के लिये परेशान करने लगे। आखिर में तंग आ कर शादी के दो साल बाद ही मैंने तलाक ले लिया और मुम्बई में एक बड़े प्राइवेट बैंक में नौकरी कर ली।



मुम्बई में मैं अकेली किराये के फ्लैट में रहने लगी। इसलिये हिफाज़त और अकेलापन दूर करने के लिये एक एलसेशन कुत्ता ले लिया। आहिस्ता-आहिस्ता ज़िंदगी बाकायदा चलने लगी। ज्यादा वक्त तो मैं काम में ही मसरूफ रहती और अक्सर मुझे दूसरे शहरों और कभी-कभार गैर-मुल्कों जैसे अमेरिका, यूरोप भी दौरों पर जाना पड़ता। ज़िंदगी वैसे तो पुरसुकून थी लेकिन तन्हाई की वजह से मैं कुछ ज्यादा ही चुदासी रहने लगी थी। हालाँकि ऐसे हज़ारों मौके आये कि जब अगर मैं चाहती तो गैर-मर्दों से चुदवा सकती थी लेकिन मैं कभी हिम्मत नहीं जुटा पायी। पाँच-छः साल पहले स‍इदा आँटी के किस्से के बावजूद अपने कुत्ते जैकी से चुदवाने का ख्याल भी कभी मेरे ज़हन में नहीं आया। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



अपनी चुदासी चूत की भड़कती प्यास बुझाने के लिये मैं हर रोज़ मैस्टरबेशन का सहारा लेती। कॉलेज के ज़माने की तरह ही फिर से गंदी सैक्सी किताबों और ब्लू-फिल्मों का चस्का लग गया। इसके अलावा मैंने अक्सर शराब पीना भी शुरू कर दिया। जब भी काम के सिलसिले में यूरोप जाती तो डिल्डो और ब्लू-फिल्में ज़रूर खरीद कर लाती। इस तरह मैंने तरह-तरह के छोटे-बड़े कईं डिल्डो जमा कर लिये और रात-रात भर मैं इन डिल्डो से अपनी चूत की आग बुझा कर मज़ा लेती।



ऐसे ही करीब दो साल बीत गये। एक दिन की शाम को मैं बैंक से घर लौटी तो मैं बेहद चुदासी महसूस कर रही थी। लौटते हुए रास्ते में मैं चर्च-गेट स्टेशन के नज़दीक सड़क किनारे पटरी पर बिकने वाली हिंदी की दो-तीन गंदी सैक्सी कहानियों की किताबें ले कर आयी थी। अगले दिन इतवार था इसलिये शराब की चुस्कियों के साथ चुदासी कहानियों का मज़ा लेने का प्रोग्राम था। दरसल अंग्रेज़ी की सैक्सी कहानियों के मुकाबले मुझे हिंदी और उर्दू के गंदे अश्लील अल्फाज़ों वाली चुदासी कहानियाँ पढ़ने में ज्यादा मज़ा आता है।



घर पहुँचते ही कपड़े बदले बगैर ही मैं ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर वोडका की चुस्कियाँ लेते हुए वो रंगीन चुदासी किताबें पढ़ने में मसरूफ हो गयी। कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते जल्दी ही मेरी चूत मचमचाने लगी और शराब का भी थोड़ा नशा होने लगा। मैंने अभी भी काले रंग का फॉर्मल पेन्सिल स्कर्ट और सफेद टॉप पहना हुआ था। इस दौरान शराब और किताब का मज़ा लेते हुए मैं अपनी स्कर्ट का हुक और ज़िप खोल चुकी थी और पैंटी के अंदर हाथ डाल कर चूत सहला रही थी।



ऐसे ही कुछ देर में नशा इस कदर परवान चढ़ गया कि मैं झूमने लगी। किताब में छपे हर्फ भी साफ नहीं पढ़ पा रही थी तो आखिरकार किताब एक तरफ उछाल कर फेंकते हुए मैं खड़ी हुई और सैंडलों में लड़खड़ा कर चलती हुई और रास्ते में अपनी स्कर्ट और बाकी कपड़े उतारती हुई मैं बेडरूम की तरफ बढ़ी। जब मैं बेडरूम में पहुँची तो पैरों में ऊँची पेन्सिल हील के काले सैंडलों के अलावा मैं मादरजात नंगी थी। बेडरूम में आदमकद आइने के सामने खड़े हो कर मैंने अपना जिस्म निहारा और खुद को आइने में देखते-देखते बेड तक पीछे हटते हुए बिस्तर पर बैठ गयी। अभी भी अपने सामने आइने में देखते हुए मैंने अपनी टाँगें फैलायी और अपनी चूत के ऊपरी लबों पर उंगली फिराते हुए खुद को देखा।



फिर आहिस्ता से अपनी दो उंगलियाँ अंदर घुसेड़ दीं। चूत की मचमचाहट और झड़ने की तमन्ना मुझ पर हावी हो गयी और मैं अपनी चूत में दो उंगलियाँ अंदर बाहर करती हुई पीछे बिस्तर पर कमर के बल लेट गयी। मेरे चूतड़ बिस्तर के किनारे पर थे और पैर ज़मीन पर। मेरी चूत बेहद भीगी हुई थी और मैंने तीसरी उंगली भी अंदर घुसेड़ दी और आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगी। दूसरे हाथ से अपने निप्पल उमेठते हुए मैं सिसक रही थी। फिर अपनी भीगी उंगलीयाँ बाहर निकाल कर मैंने आहिस्ते से उन्हें फिसलाते हुए अपने तंग छेद की तरफ खिसका दिया जो मुझे दिवाना कर देता है। अपनी बीच वाली भीगी हुई चिकनी उंगली मैंने अपनी गाँड के छेद पर फिरायी और फिर आहिस्ता से अंदर घुसेड़ दी। उसी लम्हे मुझे वो महसूस हुआ! यही वो लम्हा था जब मेरी ज़िंदगी में एक नये हसीन दौर का आगाज़ हुआ लेकिन दुनिया की नज़रों में ये मेरी बदकार और बदचलन ज़िंदगी का आगाज़ था! लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



मुझे अपनी गाँड के छेद और उसके अंदर घुसी हुई उंगली के आसपास गरम और मुलायम भीगा सा एहसास हुआ। मैं चौंक कर घबराते हुए हड़बड़ा कर बैठी तो देखा कि जैकी मेरी उंगली चाट रहा था। उसने मेरी तरफ देखा लेकिन उसने चाटना बंद नहीं किया। मेरे अंदर कतरा-कतरा चींख उठा कि उसे रोक दूँ! उसे परे ढकेल दूँ! लेकिन फिर अचानक कईं साल पहले सईदा आँटी और उनके कुत्ते की चुदाई का नज़ारा मेरे ज़हन में उभर आया और फिर शराब के नशे और अपनी उंगली और गाँड के छेद पर जैकी की ज़ुबान के एहसास ने मुझे कमज़ोर बना दिया। मैं अपनी उंगली अंदर-बाहर करती हुई जैकी को अपनी वो उंगली और गाँड ज़ुबान से चाटते हुए देखने लगी।



मैंने नज़रें उठा कर सामने आइने में खुद को जैकी की ज़ुबान से मज़े लेते हुए देखा। ज़लालत का एहसास होने की बजाय ये नज़ारा देख कर मेरी चाहत और ज़्यादा बढ़ गयी। मैंने उसे परे ढकेल सकती थी.... चिल्ला कर डाँटते हुए उसे रोक सकती थी... ! लेकिन उसे रोकने की बजाय मैंने उसकी ये हरकत ज़ारी रहने दी। मुझे जैकी की ज़ुबान अपनी चूत के ऊपर क्लिट की तरफ चाटती महसूस हुई। एक बार फिर उसने ऐसे ही किया लेकिन इस बार उसकी ज़ुबान का दबाव ज्यादा था जिससे कि उसकी ज़ुबान मेरी चूत के अंदर घुस कर चाटते हुए मेरी क्लिट तक ऊपर गयी। चाटते हुए उसकी ज़ुबान मेरी चूत के अंदर बाहर फिसलने लगी। बहुत ही मुख्तलिफ़ एहसास था। मुझे उसकी ज़रूरत थी...उसकी आरज़ू थी। काँपते हाथों से मैंने अपनी चूत फैला दी इस उम्मीद के साथ कि वो मेरी तड़पती चूत को अपनी खुरदुरी ज़ुबान से चाटना ज़ारी रखेगा। जैकी ने ऐसा ही किया... अपनी लालची ज़ुबान से मेरी चूत चाटते हुए रस पीने लगा। बे-इंतेहा हवस और वहशियाना जुनून सा मुझ पर छा गया था।



फिर मैं बिस्तर के बीच में अपने हाथों और घुटनों के बल झुककर कुत्तिया की तरह हो गयी और जैकी को भी बिस्तर पर आने को कहा। वो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गया और पीछे से मेरी चूत चाटने लगा। मैंने देखा कि उसका लाल-लाल चमकता हुआ लौड़ा कड़क हो कर बाहर निकला हुआ था। उसके लौड़े का नाप देख कर बेखुदी-सी की हालत में मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसका अज़ीम लौड़ा अपनी मुठ्ठी में ले लिया। मेरी इस हरकत से जैकी झटके मारते हुए मेरी मुठ्ठी में अपना लौड़ा चोदने लगा। लेकिन साथ ही उसने मेरी चूत चाटना बंद कर दिया जो मैं नहीं चाहती थी। उसे मसरूर करना उस वक्त मेरी नियत नहीं थी। मैंने उसका लौड़ा सहलाना बंद कर दिया तो वो फिर से मेरी चूत अपनी ज़ुबान से चाटने लगा। मैं मस्त होकर ज़ोर-ज़ोर से सिसकने लगी और कुछ ही देर में चींखते हुए झड़ गयी। जैकी ने फिर भी मेरी चूत चाटना बंद नहीं किया और इसी तरह मेरी चूत ने दो बार और पानी छोड़ा। मुझे ज़बरदस्ती जैकी का सिर अपनी चूत से दूर हटाना पड़ा क्योंकि लगातार चाटने से मेरी क्लिट बहुत ही नाज़ुक सी हो गयी थी और दुखने लगी थी। जैकी के चाटने की मिलीजुली दर्द और मस्ती अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रही थी। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



तीन बार झड़ने के बाद भी मेरी हवस कम नहीं हुई थी। बल्कि अब तो मैं उसका लंड अपनी चूत में लेने के लिये बेताब हो रही थी। प्यास की वजह से मेरा गला सूख रहा था तो पानी पीने पहले मैं नशे में लड़खड़ाती हुई किचन में गयी। जैकी भी मेरे पीछे-पीछे आ गया। मैं तो नंगी ही थी और जैकी बीच-बीच में मेरी टाँगों के बीच में अपना सिर घुसेड़ने की कोशिश कर रहा था। मैं उसकी ये कोशिश कामयाब नहीं होने दे रही थी तो वो मेरे टाँगें या फिर मेरे पैर और सैंडल चाटने लगता।



पानी पी कर मैं पेंसिल हील के सैंडलों में झूमती हुई ड्राइंग रूम में आ गयी और धड़ाम से गिरते हुए सोफे पर बैठ गयी। फिर अपनी टाँगें फैला कर मैंने जैकी के आगे वाले पंजे अपने हाथों में लेकर उसे अपने नज़दीक खींचते हुए अपने कंधों पर रख दिये। उसका लौड़ा अब बिल्कुल मेरी बेताब चूत के सामने था। अपना एक हाथ नीचे ले जा कर मैंने उसका लौड़ा अपनी मुठ्ठी में लिया और उसे अपनी चूत में हांक दिया। जैकी जोर-जोर से धक्के मारने लगा। मैं भी सोफे से अपनी गाँड ऊपर उठा कर उसके धक्कों का जवाब देने लगी। लेकिन मैं ज्यादा देर तक इस तरह उसका साथ नहीं दे सकी और वापस सोफे पर अपनी गाँड टिका कर बैठ गयी और आगे की चुदाई उस पर ही छोड़ दी। मैंने महसूस किया कि इस पूरी चुदाई के दौरान उसके लौड़े से पतला सा चिपचिपा रस लगातार मेरी चूत में बह रहा था।



मैं दो दफा चींखें मारते हुए इस कदर झड़ी कि मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। फिर थोड़ी देर बाद इसी तरह ज़ोर-ज़ोर से चोदते हुए अचानक जैकी ने एक ज़ोर से धक्का मारते हुए अपने लौड़े के आखिर की गाँठ मेरी चूत में ठूँस दी। मेरी तो दर्द के मारे साँस ही गले में अटक गयी। दर्द इस कदर था कि मैं छटपटा उठी। मुझे अपने शौहर के साथ पहली चुदाई याद आ गयी। थोड़ी सी देर में मेरा दर्द थम गया और मुझे एहसास हुआ कि जैकी झड़ने के बहुत करीब था। उसने चोदना ज़ारी रखा और मैं प्यार से उसके कान सहलाने लगी। फिर अचानक मुझे गरम और बहुत ही गाढ़ा चिपचिपा रस अपनी चूत में छूटता हुआ महसूस हुआ। लेखिका: शाज़िया मिर्ज़ा



बाद में मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों आपस में वैसे ही चिपक गये थे जैसे मैंने सईदा आँटी और उनके कुत्ते को आपस में जुड़ते हुए देखा था। मैं जैकी को खुद से अलग नहीं कर सकती थी इसलिये मैंने उसे उसी हाल में रहने दिया और मैं उसे पुचकारते हुए उसका जिस्म अपने हाथों से सहलाने लगी। जैकी से इस तरह जुड़ कर चिपके हुए मुझे अजीब सा मज़ा और सुकून महसूस हो रहा था। करीब बीस मिनट बाद उसके लंड की गाँठ सिकुड़ी और हम अलग हुए।



उस एक नशीली शाम के बाद सब कुछ बदल गया और मेरी ज़िंदगी में फिर से बहारें आ गयी... ज़िंदगी का खालीपन दूर हो गया। मैं तो जैकी की इस कदर दीवानी हूँ कि उससे बकायदा हर रोज़ ही तरह-तरह से चुदवाती हूँ... उसका लंड चुसती हूँ और अक्सर गाँड भी मरवा लेती हूँ। जैकी भी बहुत शौक से मेरी चूत चाटने और चोदने के लिये मुश्ताक रहता है। इसके अलावा जज़बाती तौर पे भी हमारे दरमियान बेपनाह मोहब्बत है। हमारा रिश्ता बिल्कुल मियाँ-बीवी जैसा ही है। काश की ये ज़लिम दुनिया हमारे रिश्ते को समझ पाती।



!!!! समाप्त !!!!
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