ट्यूशन का मजा compleet

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Re: ट्यूशन का मजा

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दूसरे दिन जब हम पहुंचे तो कल की ही तरह पहले मैडम ने हमें पढ़ाया. फ़िर सर ने. सर का लेसन खतम होने पर मैं उठ कर जाने लगा तो सर बोले "कहां जा रहा है तू अनिल?"

मैं सकुचा कर बोला "सर ... कल जैसे मैडम के पास ...."

"अरे आज तेरी बारी है मुझसे लेसन लेने की. आज लीना जायेगी मैडम के पास. तू जा लीना, मैडम राह देख रही होंगी" और सर ने मुझे हाथ पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया. लीना दीदी जाते जाते मेरी ओर मुस्करा कर देख रही थी कि अब समझे बच्चू?

मेरा दिल धड़कने लगा. सर मेरे साथ क्या करेंगे? पर लंड भी खड़ा होने लगा. परसों सर के साथ क्या मजा आया था उनका लंड चूस कर, यह याद आ रहा था. फ़िर दीदी ने जो गांड मारने की बात की थी वो सोच कर दिल में डर सा भी लगने लगा.

चौधरी सर कपड़े उतारने लगे. मैं अभी भी सकुचाता हुआ वैसे ही खड़ा था. सर बोले "चल नंगा हो जा फटाफट. अब हम ये लेसन आराम से सलीके से करते हैं ये तूने देखा ना कल?"

"हां सर" मैं धीरे से बोला.

"फ़िर निकाल कपड़े जल्दी. कल कैसे मस्ती में मैडम दे लेसन ले रहा था! आज और मजा आयेगा. मैं मदद करूं नंगा होने में?"

"नहीं सर ..." कहकर मैंने भी सब कपड़े उतार दिये.

चौधरी सर का लंड मस्त खड़ा था. लंड पकड़कर सहलाते हुए वे सोफ़े में बैठे और मुझे हाथ से पकड़कर खींचा और गोद में बिठा लिया. मुझे कस के चूमा और बोले. "पहले खूब चुम्मे दे अनिल. परसों तेरे चुम्मे बड़े मीठे थे पर जल्दी जल्दी में मजा नहीं आया. आज प्यार से अपने सर को चुम्मे दे, तुझे अच्छे लगते हैं ना? मैडम को तो कल खूब चूम रहा था"

मैंने शरमाते हुए मुंडी हिलाई और सिर सर की ओर घुमाकर सर के होंठ चूमने लगा. सर का लंड मेरी पीठ पर धक्के मार रहा था. सर ने मेरे लंड को मुठ्ठी में लिया और मस्त करने लगे. उनकी जीभ मेरे मुंह में घुस गयी थी. मैं उसे चूसने लगा और कमर उचकाकर लंड उनकी मुठ्ठी में अंदर बाहर करने लगा. सर की जीभ मेरे गले में घुस गयी. मुझे थोड़ी खांसी आयी पर सर ने मेरा मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया था, इसलिये उनके मुंह में ही दब के रह गयी. सर अब मेरी आंखों में झांक रहे थे.

मैं अब भी झेंप रहा था इसलिये आंखें हटाकर तिरछी नजर से मैंने दूसरे कमरे में देखा. दीदी और मैडम नंगे एक दूसरे से चिपटकर चूमा चाटी कर रहे थे. मैडम दीदी की बुर सहला रही थीं और दीदी उनकी चूंची पर मुंह मार रही थी. लीना दीदी जरा भी नहीं शरमा रही थी, बल्कि मैदम से ऐसे चिपकी थी कि जैसे प्रेमिका प्रेमी से चिपकती है. थोड़ी देर बार मैडम ने दीदी को नीचे लिटाया और उसकी टांगों के बीच सिर घुसा दिया.

सर ने खूब देर सता सता कर मेरा मुंह चूसा और अपना चुसवाया. पांच दस मिनिट में मेरी सारी झेंप खतम हो गयी थी. लंड सन सन कर रहा था और सर का हाथ उसपर अपना जादू चला रहा था. मुझे अब सर पर इतना लाड़ आ रहा था कि मैं जब भी मौका मिलता प्यार से उनके गाल, आंखें और कान चूमने लगता. कभी गले पे मुंह जमा देता पर सर फ़िर से मेरे होंठ अपने होंठों में लेकर दबा लेते और चूसने लगते.

मेरी हालत खराब हो गयी. इतना मजा आ रहा था कि सहा नहीं जा रहा था. सोच रहा था कि सर फ़िर से परसों जैसा चूस लें तो क्या लुत्फ़ आयेगा. या अपना मस्त लौड़ा मुझे चुसवा दें. जो भी हो, कुछ तो करम करें मेरे ऊपर. आखिर मैं बोल पड़ा "सर .... सर .... प्लीज़ ... सर"

"क्या हुआ अनिल? बोलो बेटे, मजा नहीं आ रहा है?" सर ने शैतानी से पूछा. "शरमाओ नहीं, अब घबराओ भी मत, अपने मन की बात कह दो. मैं भी आज तुझसे अपने मन जैसा करने वाला हूं"

"बहुत मजा आ रहा है सर ... रहा नहीं जाता ... प्लीज़ सर ..." मैंने अपना हाथ अपनी पीठ के पीछे करके सर के मूसल को पकड़कर कहा "सर... अब चुसवाइये ना प्लीज़"

"अरे वाह, आखिर तूने अपने मन की कह ही दी. अरे ऐसे ही खुल कर बोला कर, सेक्स में शरमारे नहीं. तुझे स्वाद पसंद आया उस दिन लगता है. उसे दिन मजा आया था?"

"हां सर, बहुत जायकेदार था"

"चलो, अभी चुसवाता हूं. पर पूरा लेकर चूसना पड़ेगा. कल तेरी दीदी ने लिया था ना? आज तू भी ले"

"हां सर .... सर केला ले आऊं?" मैंने उत्साह से पूछा. कल सर ने कैसे दीदी को केला निगलने की ट्रेनिंग दी थी और फ़िर लंड मुंह में दिया था, यह मुझे याद आ रहा था.

"अरे नहीं, वो तो नाजुक सी बच्ची है इसलिये केले से चालू किया. तू तो बहादुर बच्चा है, वैसे ही ले लेगा. चल आ जा, आराम से लेट कर चुसवाता हूं" कहकर सर बिस्तर पर लेट गये और मुझे अपने सामने लिटा कर लंड मेरे चेहरे पर रगड़ने लगे. लंड मस्त खड़ा था, गुलाबी लाल सुपाड़ा तो क्या रसीला था. उसमें सर के मद की धीमी धीमी खुशबू आ रही थी. मैंने मुंह बाया और सुपाड़ा मुंह में लेकर चूसने लगा. परसों जैसे मैंने सर का लंड पकड़ा और आगे पीछे करने लगा.

"ऐसे तो तू फ़ेल हो जायेगा. ये क्या नर्सरी के बच्चे जैसा लेसन ले रहा है. अब आगे का लेसन है, प्राइमरी का. पूरा मुंह में ले, चल फ़टाफ़ट. आज सिर्फ़ लड्डू खाकर नहीं छुटकारा होगा तेरा, पूरी डिश खाना पड़ेगी" सर ने मेरे बालों में उंगलियां चलाते हुए कहा.

मैंने उत्साह से मुंह खोला और निगलने लगा. चार पांच इंच निगला और फ़िर सुपाड़ा गले में फ़ंस गया. सर ने मेरा सिर पकड़कर अपने पेट पर दबाया. मेरा दम घुटने लगा और मुझे खांसी आ गयी. सर ने एक दो बार और दबाया, फ़िर छोड़ दिया. "अरे अनिल बेटे, आज तू फ़ेल हो जायेगा पक्का. चल फ़िर से कोशिश कर"
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मैंने तीन चार बार कोशिश की पर सर का मतवाला लौड़ा हलक से नीचे नहीं उतरता था, फ़ंस जाता था. मैंने आंखें उठा कर सर की ओर देखा कि सर, अब क्या करूं? मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी कि मैं वो काम नहीं कर पा रहा था जो दीदी ने कर लिया था.

सर ने मेरे मुंह से लंड निकाला. मेरे कान पकड़कर बोले "क्यों रे नालायक? इतना भी नहीं कर सकता? और डींग मार रहा था कि सर आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. उधर लीना देख कितनी सेवा कर रही है अपनी मैडम की!"

मैंने देखा तो मैडम ने अपनी टांगों के बीच दीदी का सिर दबा लिया था और दीदी के मूंह पर बैठ कर ऊपर नीचे हो रही थीं. दीदी ने मैडम के चूतड़ हाथों में पकड़ रखे थे और मन लगाकर मैडम की बुर चूस रही थी.

मैं परेशान होकर बोला "सॉरी सर, माफ़ कर दीजिये, बहुत बड़ा है. एक बार और करने दीजिये प्लीज़, अब जरूर ले लूंगा सर"

"नहीं तुझे नहीं जमेगा. शायद तुझे मेरे लेसन अच्छे लहीं लगते. तू जा अपनी मैडम के पास. मैं तेरी दीदी को ही लेसन दूंगा आगे से" सर कड़ाई से बोले.

मेरा दिल बैठ गया. वैसे मैडम के साथ जाने को मैं कभी भी तैयार था, पर ऐसे नहीं, सर नाराज हो जायें तो फ़िर आगे की मस्ती में ब्रेक लगना लाजमी था. और सरके लंड का अब तक मैं आशिक हो चुका था. सर ने देखा तो मुझे भींच कर चूम लिया. मुस्कराते हुए बोले "अरे मैं तो मजाक कर रहा था. सच में सर अच्छे लगते हैं? कसम से?"

मैं कसम खा कर बोला, उनके पैर भी पकड़ लिये. "हां सर, मैं आप को छोड़ कर नहीं जाना चाहता, जो भी लेसन आप सिखायेंगे, मैं सीखूंगा"

"तो आज मैं तुझे दो लेसन दूंगा. दो तीन घंटे लग जायेंगे. बाद में मुकरेगा तो नहीं? पीछे तो नहीं हटेगा? सोच ले" उनके हाथ अब प्यार से मेरे चूतड़ों को सहला रहे थे.

मैंने फ़िर से उनके पैर छू कर कसम खाई "नहीं सर, आप जो कहेंगे वो करूंगा सर. मुझे अपना लंड चूसने दीजिये सर एक बार फ़िर से" सर के पैर भी बड़े गोरे गोरे थे, वे रबड़ की नीली स्लीपर पहने थे, उन्हें छू कर अजीब सी गुदगुदी होती थी मन में. मेरे ध्यान में आया कि मैडम क गोरे नाजुक पैरों से कोई कम नहीं थे सर के पैर.

"ठीक है, वैसे तेरे बस का भी नहीं है मेरा ये मूसल ऐसे ही लेना. लीना की बात और है, वो लड़की है, लड़कियां जनम से इस बात के लिये तैयार होती हैं. ऐसा करते हैं कि अपने इस मूसल को मैं बिठाता हूं. देख, तैयार रह, बस मिनिट भर को बैठेगा ये, तू फ़टाक से ले लेना मुंह में, ठीक है ना?"

मैंने मुंडी हिलाई, फ़िर बोला "पर सर ... बिना झड़े ये कैसे बैठेगा?"

सर ने अपने तन कर खड़े लंड की जड में एक नस को चुटकी में पकड़ा और दबाया. उनका लंड बैठने लगा "दर्द होता है थोड़ा ऐसे करने में इसलिये मैं कभी नहीं करता, बस तेरे लिये कर रहा हूं. देखा तुझपर कितने मेहरबान हैं तेरे सर?"

सर का लंड एक मिनिट में सिकुड़ कर छोटे इलायची केले जैसे हो गया. "इसे क्या कहते हैं जब ये सिकुड़ा होता है?" सर ने पूछा.

"नुन्नी सर"

"नालायक, नुन्नी कहते हैं बच्चों के बैठे लंड को. बड़ों के बैठे लंड को लुल्ली कहते हैं. अब जल्दी दे मेरी लुल्ली मुंह में ले. इसे तो ले लेगा ना या ये भी तेरे बस की बात नहीं है?" सर ने ताना दिया.

मैंने लपककर उनकी लुल्ली मुंह में पूरी भर ली. उनकी बैठी लुल्ली भी करीब करीब मेरे खड़े लंड जितनी थी. मुंह में बड़ी अच्छी लग रही थी, नरम नरम लंबे रसगुल्ले जैसी.

क्रमशः। ...........................
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Re: ट्यूशन का मजा

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ट्यूशन का मजा-11

गतांक से आगे.............................
सर ने कहा "शाबास, बस पड़ा रह. तेरा काम हो गया. अब अपने आप सीख जायेगा पूरा लंड लेना" और मेरे सिर को अपने पेट से सटा कर बिस्तर पर लेट गये और मेरे बदन को अपनी मजबूत टांगों के बीच दबा लिया.

मैं मन लगाकर सर का लंड चूसने लगा. उनका लंड अब फ़टाफ़ट खड़ा होने लगा. आधा खड़ा लंड मुंह में भर कर मुझे बहुत मजा आ रहा था. पर एक ही मिनिट में सर का सुपाड़ा मेरे गले तक पहुंच गया और फ़िर मेरे गले को चौड़ा करके हलक के नीचे उतरने लगा. मुझे थोड़े घबराहट हुई, जब मैंने लंड मुंह से निकालना चाहा तो सर ने मेरे चेहरे को कस के अपने पेट पर दबा लिया "घबरा मत बेटे, ऐसे ही तो जायेगा अंदर, गले को ढीला कर, फ़िर तकलीफ़ नहीं होगी"

मेरा दम सा घुटने लगा. मैंने कसमसा कर सिर अलग करने की कोशिश की तो सर मुझे नीचे पटककर मेरे ऊपर चढ़ गये और मेरे सिर को कस के अपने नीचे दबा कर मेरे ऊपर ओंधे सो गये. उनकी झांटों में मेरा चहरा पूरा दब गया. "मैंने कहा ना घबरा मत. वैसे भी मैं तुझे छोड़ने वाला नहीं हूं. ये लेसन अब तुझे मैं पास करवा कर रहूंगा"

सर का लंड अब पूरा तन कर मेरे गले के नीचे उतर गया था. सांस लेने में भी तकलीफ़ हो रही थी. सर ने अपने तलवों और चप्पल के बीच मेरे लंड को पकड़ा और रगड़ने लगे. दम घुटने के बावजूद सर का लंड मुंह में बहुत मस्त लग रहा था. सर की झांटों में से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी.

अचानक अपने आप मेरा गला ढीला पड गया और सर का बाकी लंड अपने आप मेरे हलक के नीचे उतर गया. मैं चटखारे ले लेकर लंड चूसने लगा.

"हां ... ऽ ऐसे ही मेरे बच्चे ... हां .... अब आया तू रास्ते पर, बस ऐसा ही चूस. अब ये लेसन आ रहा है तेरी समझ में ... बहुत अच्छे मेरे बेटे ... बस ऐसे ही चूस .... अब घबराना मत, मैं तेरे गले को धीरे धीरे चोदूंगा. ठीक है ना?"

मैं बोल तो नहीं सकता था पर मुंडी हिलाई. सर ने मेरे हाथ पकड़कर अपने चूतड़ों के इर्द गिर्द कर दिये "मुझे पकड़ ना प्यार से अनिल. मेरे चूतड़ दबा. शरमा मत. अपने सर के चूतड भी देख, लंड का मजा तो ले ही रहा है, इसके साथ साथ अपने सर का पिछवाड़ा भी देख. मजा आया ना? ये हुई ना बात, हां ऐसे ही अनिल ... और दबा जोर से"

मैं सर के चूतड़ों को बांहों में भरके उनको दबा रहा था. सर के चूतड़ अच्छे बड़े बड़े थे. सर अब हल्के हल्के मेरे मुंह को चोद रहे थे. मेरे गले में उनका लंड अंदर बाहर होता था तो अजीब सा लगता था, खांसी आती थी. मेरे मुंह में अब लार भर गयी थी इसलिये लंड आराम से मेरे गले में फ़िसल रहा था.

कुछ देर चोदने के बाद सर अपने बगल पर लेट गये और मेरा सिर छोड़कर बोले "अब तू खुद अपने मुंह से मेरे लंड को चोद, अंदर बाहर कर. ये होता है असली चूसना. बहुत अच्छा कर रहा है तू अनिल ... ऐसे ही कर .. आह .... ओह ... अनिल बेटे .... तू तो लगता है अव्वल मार्क लेगा इस लेसन में ... कहां मुझे लगा था कि तू फ़ेल न हो जाये और यहां ऽ ... ओह ... ओह ... तू एकदम एक्सपर्ट जैसा कर रहा है .... एकदम किसी रंडी जैसा .... हां ऐसे ही मेरे राजा ... पूरा निकाल और अंदर ले ... बार बार ... ऐसे ही ...."

सर मस्ती से भाव विभोर होकर मुझे शाबासी दे रहे थे और मेरे बालों में प्यार से उंगलियां चला रहे थे. सर का लंड नाग जैसा फ़ुफ़कार रहा था. मुझे न जाने क्या हुआ कि मैंने अचानक उसे पूरा मुंह से निकाला और ऊपर करके उसका निचला हिसा जीभ रगड़ रगड़ कर चाटने लगा. सर मस्ती से झूम उठे " आह ... हां ... हां मेरी जान ... मेरे बच्चे ... ऐसे ही कर .... ओह ... ओह "एक मिनिट वे मुझसे ऐसे ही लंड चटवाते रहे और फ़िर बाल पकड़कर लंड को फ़िर से मेरे मुंह में घुसाने की कोशिश करने लगे.

मेरी नजर दूसरे कमरे में गयी तो मैडम मुझे बड़े लाड़ से देख रही थीं. दीदी आंखें फाड़ कर मेरे कारनामे देख रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं भी इस तरह से सर का पूरा मूसल मुंह में ले सकता हूं. मैडम ने दीदी को जबरदस्ती अपने सामने बिठा लिया और उसके सिर को अपनी जांघों में जकड़कर अपनी बुर चुसवाने लगीं. मुझे देखकर उन्होंने इशारा किया कि बहुत अच्छे, लगे रहो.


मुझे बड़ा फ़क्र हुआ कि सर को मैं इतना सुख दे रहा हूं. मैंने फ़िर से उनका लंड मुंह में ले लिया और आराम से निगल लिया. अब लंड निगलने में मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हो रही थी, ऐसा लगता था कि ये काम मैं सालों से कर रहा हूं. सर ने घुटने मोड़े तो मेरा हाथ उनके पैर में लगा. मैं अपना हाथ उनके पैरों के तलवे और चप्पल पर फ़िराने लगा. सर की चप्पल बड़ी मुलायम थी, उसे छूने में मजा आ रहा था.

अब मैं सर की मलाई के लिये भूखा था. लगता था कि चबा चबा कर उनका लंड खा जाऊं. मेरे हाथ उनके मजबूत मोटे चूतड़ों पर घूम रहे थे. मेरी उंगली उनकी गांड के बीच की लकीर पर गयी और बिना सोचे मैंने अपनी उंगली उनके छेद से भिड़ा दी. सर ऐसे बिचके जैसे बिच्छू काट खाया हो. अपने चूतड़ हिला हिला कर वे मेरे मुंह में लंड पेलने लगे. "अनिल, उंगली अंदर डाल दे, ये अगले लेसन में मैं करवाने वाला था पर तू ... इतना मस्त सीख रहा है .... चल उंगली कर अंदर"

मैंने सर की गांड में उंगली डाली और चूतड़ पकड़कर सिर आगे पीछे करके अपने मुंह से लंड बार बार अंदर बाहर करते हुए चूसने लगा. बीच में सुपाड़े को जीभ और तालू के बीच लेकर दबा देता. मेरी उंगली उककी गांड बराबर खोद रही थी. सर ऐसे बिचके कि मेरा सिर पकड़ा और उसे ऐसे चोदने लगे जैसे किसी फ़ूटबाल को चोद रहे हों. उनका लंड उछला और मेरे मुंह में वीर्य उगलने लगा. एक दो पिचकारियां सीधे मेरे गले में उतर गयीं.

फ़िर सर ने ही अपना लंड बाहर खींचा और मेरी जीभ पर सुपाड़ा रखकर उसे प्यार से झड़ाने लगे. उनकी सांस तेज चल रही थी "बहुत अच्छे अनिल .... क्या बात है .... अरे तू छुपा रुस्तम निकला बेटे .... तेरी मैडम भी इतना अच्छा नहीं करती .... लगता है तुझे ये कला जनम से आती है .... ले बेटे .... मजे कर .... ले मेरी मलाई खा ...ऐश कर ... गाढ़ी है ना? .... जैसी तुझे अच्छी लगती है?"

मैं चटखारे ले लेकर सर का वीर्य पीता रहा. एकदम चिपचिपा लेई जैसा था पर स्वाद लाजवाब था. मैंने अब भी सर के चूतड़ पकड़ रखे थे और मेरी उंगली उनकी गांड में थी. मेरा ध्यान पीछे के आइने पर गया उसमें सर का पिछवाड़ा दिख रहा था. क्या चूतड थे सर के, पहली बार मैं ठीक से देख रहा था. गोरे गोरे और गठे हुए.
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Re: ट्यूशन का मजा

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मुझे पूरा वीर्य पिलाकर सर ने मुझे आलिंगन में लिया और मेरे निपल मसलते हुए बोले "भई मान गये आज अनिल, चेला गुरू से आगे निकल गया, तुझमें तो कला है कला लंड चूसने की. अपने सर का प्रसाद अच्छा लगा?"

"हां सर, बहुत मस्त है, इतना सुंदर लंड है सर आपका, दीदी भी कल गुन गा रही थी ...... और स्वाद भी उतना ही अच्छा है सर सर ..... आपकी ....मेरा मतलब है कि आप के .... याने" और सकुचा कर चुप हो गया.

"बोलो बेटे ... मेरे क्या" सर ने मुझे पुचकारा.

"सर आपके चूतड़ भी कितने अच्छे हैं" मैं बोला.

"ऐसी बात है? अरे तो शरमाते क्यों हो? ये तो मेरे लिये बड़े हौसले की बात है कि तेरे जैसे चिकने लड़के को मेरे चूतड़ .... या मेरी गांड कहो ... ठीक है ना? .... गांड अच्छी लगी. ठीक से देखना चाहोगे?"

"हां सर" मैं धीरे से बोला.

"लो बेटे, कर लो मुराद पूरी. वैसे ये तेरा आज का दूसरा लेसन है. बड़ी जल्दी जल्दी लेसन ले रहा है आज तू अनिल, आज ही पढ़ाई खतम करनी है क्या?" कहते हुए सर ओंधे लेट गये. उनके चूतड़ दिख रहे थे. मैं उनके पास बैठा और उनको हाथ से सहलाने लगा. फ़िर एक उंगली सर की गांड में डालने की कोशिश करने लगा, कनखियों से देखा कि बुरा तो नहीं मान गये पर सर तो आंखें बंद करके मजा ले रहे थे. उंगली ठीक से गयी नहीं, सर ने छल्ला सिकोड़ कर छेद काफ़ी टाइट कर लिया था.

"गीली कर ले अनिल मुंह में ले के, फ़िर डाल" सर आंखें बंद किये ही बोले. मैंने अपनी उंगली मुंह में ले के चूसी और फ़िर सर की गांड में डाल दी. आराम से चली गयी. "अंदर बाहर कर अनिल. ऐसे ही ... हां ... अब इधर उधर घुमा.... जैसे टटोल रहा हो... हां ऐसे ही ... बहुत अच्छे बेटे ... कैसा लग रहा है अनिल .... मेरी गांड अंदर से कैसी है .... मैडम की चूत जैसी है?..."

मैंने कहा "बहुत मुलायम है सर ... एकदम मखमली .....मैडम की चूत से ज्यादा टाइट भी है"

"तूने कभी खुद की गांड में उंगली नहीं की?" चौधरी सर ने पूछा.

"सर .... एक बार की थी पर दर्द होता है"

"मूरख.... सूखी की होगी .... वैसे तेरी तो मैडम या लीना की चूत से ज्यादा मुलायम होगी. ये लेसन समझ ले ... गांड भी चूत जैसी ही कोमल होती है और उससे भी चूत जैसा ही .... चूत से ज्यादा आनंद लिया जा सकता है ... ये मैं तुझे अगले लेसन में और बताऊंगा."

फ़िर वे उठ कर बैठ गये. उनका लंड आधा खड़ा हो गया था. "अब आ मेरे पास, तुझे जरा मजा दूं अलग किस्म का. देख तेरा कैसा खड़ा है मस्त"

मुझे गोद में लेकर सर बैठ गये और मेरे लंड को तरह तरह से रगड़ने लगे. कभी हथेलियों में लेकर बेलन सा रगड़ते, कभी एक हाथ से ऊपर से नीचे तक सहलाते तो कभी उसे मुठ्ठी में भरके दूसरे हाथ की हथेली मेरे सुपाड़े पर रगड़ते. मैं परेशान होकर मचलने लगा. बहुत मजा आ रहा था, रहा नहीं जा रहा था "सर ... प्लीज़ ... प्लीज़ सर .... रहा नहीं जाता सर"

चौधरी सर मेरा कान प्यार से पकड़कर बोले "ये मैं क्या सिखा रहा हूं मालूम है?"

"नहीं सर"

"मुठ्ठ मारने की याने हस्तमैथुन की अलग अलग तरह की तरकीब सिखा रहा हूं. समझा? और भी बहुत सी हैं, धीरे धीरे सब सिखा दूंगा. और एक बात .... ये सीख ले कि ऐसे मचलना नहीं चाहिये .... असली आनंद लेना हो तो खुद पर कंट्रोल रखकर मजा लेना चाहिये ... जैसे मैंने तुझसे आधे घंटे तक लंड चुसवाया, झड़ने के लिये दो मिनिट में काम तमाम नहीं किया .... समझा ना"

"हां सर ... सॉरी सर अब नहीं मचलूंगा." कहकर मैं चुपचाप बैठ गया और मजा लेने लगा. बस कभी कभी अत्याधिक आनंद से मेरी हिचकी निकल जाती. सामने देखा तो अब मैडम दीदी की टांगों में मुंह डाले बैठी थीं. दीदी उनके सिर को पकड़कर आगे पीछे हो रही थी और मेरी ओर पथरायी आंखों से देख रही थी. बहुत मस्ती में थी.

सर ने दस मिनिट और हर तरह से मेरी मुठ्ठ मारी. फ़िर पूछा "सबसे अच्छा क्या लगा बता ... कौनसा तरीका पसंद आया?"

"सर सब अच्छे हैं सर ... पर जब आप मुठ्ठी में लेकर अंगूठे को सुपाड़े के नीचे से दबाते हैं तो ... हां सर ... ओह ... ओह .. ऐसे ही .... तो झड़ने को आ जाता हूं सर ... हां... ओह ... ओह" मैं सिसक उठा.

सर ने मेरी उंगली मूंह में ली और चूसी. फ़िर बोले "अब तू ये अपनी गांड में कर. अच्छा ठहर, पहले जरा ..."उन्होंने वहां पड़ी नारियल की तेल की शीशी में से तेल मेरी उंगली पर लगाया और बोले "इसे धीरे धीरे अपने छेद पर लगा और उंगली डाल अंदर" शीशी के पास एक छोटी कुप्पी भी रखी थी. मुझे समझ में नहीं आया कि ये कुप्पी यहां क्यों है.

मैंने अपने गुदा में उंगली डाली. शुरू में जरा सा दर्द हुआ पर फ़िर मजा आ गया. क्या मखमली थी मेरी गांड अंदर से. मेरा लंड और तन्ना गया. सर मुसकराये "मजा आया ना? अब उंगली करता रह, मैं तुझे झड़ाता हूं, बहुत देर हो गयी है. यह सच है कि कंट्रोल करना चाहिये पर लंड को बहुत ज्यादा भी तड़पाना नहीं चाहिये" और मेरी मुठ्ठ मारने लगे. मैंने अपनी गांड में जोर से उंगली की और एक मिनिट में तड़प के झड़ गया "ओह ... ओह ... हाय सर ... मर गया सर ... उई मां ऽ "

सर ने मेरे उछलते सुपाड़े के सामने अपनी हथेली रखी और मेरा सारा वीर्य उसमें इकठ्ठा कर लिया. लंड शांत होने पर मुझे हथेली दिखाई. मेरे सफ़ेद गाढ़े वीर्य से वो भर गयी थी.

"ये देख अनिल ... ये प्रसाद है काम देव का ... खास कर तेरे जैसे सुंदर नौजवान का वीर्य याने तो ये मेवा है मेवा. समझा ना? जो ये मेवा खायेगा वो बड़ा भाग्यशाली होगा. अब मैं ही इसे पा लेता हूं, आखिर मेरी मेहनत है ... ठीक है ना... वो देख तेरी मैडम इधर आ रही है"

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Re: ट्यूशन का मजा

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ट्यूशन का मजा-12

गतांक से आगे..............................

सर जीभ से मेरा वीर्य चाट चाट कर खाने लगे. मैडम दीदी को लेकर हमारे कमरे में आयीं और बोलीं "क्यों सर, क्या चल रहा है? अकेले अकेले ही? हमें भी चखाइये. और आज कितना चलेगा आप का यह लेसन? साथ में लेसन नहीं देना है क्या" मैडम थीं तो पूरी नंगी पर अपनी रबर की चप्पलें पहने थीं.

"नहीं मैडम, आज नहीं, आज तो बस मैं अनिल को ही लेसन दूंगा. ये देखिये इसका प्रसाद, आप भी पाइये थोड़ा सा बचा है" मैडम ने बाकी बचा वीर्य सर की हथेली से चाट लिया. बोलीं "मजे हैं आपके सर, तो आज पूरा लेसन आप ही देंगे" उन्होंने कनखियों से सर की ओर देखा. सर ने आंखों आंखों में कुछ कहा और बोले "हां मैडम, आज ये एकदम फ़ास्ट सीख रहा है. एक दो बड़े इम्पॉर्टेंट लेसन बचे हैं, वे भी दे दूं आज ही. आप का लेसन कैसे चल रहा है? लीना तो बड़ी खुश लग रही है, देखिये आप से अलग भी नहीं रह पा रही है"

लीना दीदी मैडम से चिपट कर खड़ी थी और उनके मम्मे दबा रही थी. उसका एक हाथ अपनी बुर में चल रहा था. मुझे देखकर दीदी मुस्करायी. मैडम उसकी कमर में हाथ डालकर बोलीं "चल लीना, हम चलके अपने लेसन पूरे करते हैं, तेरे ये सर आज मूड में हैं, अनिल को पूरा सिखा कर ही मानेंगे"

"ऐसा कीजिये मैडम, आ ही गयी हैं तो हम दोनों को अपना प्रसाद चखाती जाइये, बड़ी मतवाली महक आ रही है" चौधरी सर बोले.

"हां हां क्यों नहीं, आओ अनिल, तुम मेरे पास आओ" कहकर मैडम पैर फ़ैलाकर खड़ी हो गयीं. मैं समझ गया और तुरंत उनके सामने बैठ कर उनकी बुर से मुंह लगा दिया. सर ने लीना को बिस्तर पर रखा और उसकी बुर चाटने लगे. "सर .... सर ... आप का ... याने चुसवाइये ना प्लीज़" लीना दीदी ने फ़रमाइश की.

"क्यों नहीं लीना, ले चूस" कहकर सर ने लीना दीदी का बदन घुमाया और अपना लंड उसके मुंह में देकर दीदी की बुर चूसने लगे. दीदी ने एक बार में गप्प से उनका लंड पूरा मुंह में ले लिया. मैडम हंस कर बोलीं "देखा मेरी स्टूडेंट को, कितनी होशियार है, आपने बस एक बार सिखाया है और देखिये, कैसी अव्वल आने लगी है इस काम में" मेरे मुंह पर वे अपनी बुर के पपोटे घिस रही थीं.

"मेरा ये स्टूडेंट भी कुछ कम नहीं है, देखा आपने कि इसे तो केले से भी नहीं सिखाना पड़ा. अब आप ही देखियेगा कि अगला लेसन ये कितनी सफ़ाई से सीखता है" कहते हुए सर लीना का मुंह चोदने लगे.

पांच मिनिट बाद लीना दीदी ने अपना पानी सर के मुंह में छोड़ा और मैडम ने मुझे अपनी बुर का अमरित पिलाया. सर ने अपना लंड लीना के मुंह से निकाला तो वह बोली "सर ... वो मलाई तो चखाई ही नहीं आपने?"

सर हंसे और बोले "आज नहीं, असल में ये मस्त खड़ा है, अगले लेसन में मुझे ये ऐसा ही चाहिये."

मैडम बोलीं. "चल लीना, सर को तेरे भाई को लेसन देने दे, अभी काफ़ी देर लगेगी उसमें" फ़िर वे उठ कर लीना के साथ अपने कमरे में चली गयीं. जाते जाते मैडम मुड़ कर बोलीं "अगले लेसन में मेरी हेल्प लगे तो बुलाइयेगा सर, जरा कठिन है"

"हां हां मैडम, पर मेरा विश्वास है कि यह होशियार बच्चा खुद ही सीख लेगा बिना मेरे जबरदस्ती किये" सर बोले. उनका लंड फ़िर से कस कर खड़ा हो गया था.

"क्रीम की शीशी भिजवाऊं या ये तेल से ही काम चला लेंगे?" मैडम ने पूछा.

"तेल अच्छा है मैडम, ढेर सारा अंदर उड़ेल दूंगा पहले. एक चीज और लगेगी आवाज बंद करने को, आप समझ रही हैं ना?" सर मैडम को आंख मार कर बोले. मैडम ने मुस्कराकर मेरी और सर की ओर देखा और अपनी चप्पलें वहीं सर की चप्पल के पास उतार दीं. "ये ठीक रहेंगीं?"

"बिलकुल मैडम. ये तो आपने ऐसा किया कि मन की मुराद ही दे दी अपने शिष्य को"

"हां मैंने भी गौर किया है, बहुत शौकीन लगता है इनका, चल लीना" लीना को पकड़कर खींचती हुई मैडम उसे अपने कमरे में ले गयीं.

मुझे बिस्तर पर सुला कर मेरा झड़ा लंड सर ने प्यार से मुंह में लिया और चूसने लगे. एक हाथ बढ़ाकर उन्होंने थोड़ा नारियल तेल अपनी उंगली पर लिया और मेरे गुदा पर चुपड़ा. फ़िर मेरा लंड चूसते हुए धीरे से अपनी उंगली मेरी गांड में आधी डाल दी.

"ओह ... ओह .." मेरे मुंह से निकला.

"क्या हुआ, दुखता है?" चौधरी सर ने पूछा.

"हां सर ... कैसा तो भी होता है"

"इसका मतलब है कि दुखने के साथ मजा भी आता है, है ना? यही तो मैं सिखाना चाहता हूं अब तुझे. गांड का मजा लेना हो तो थोड़ा दर्द भी सहना सीख ले" कहकर सर ने पूरी उंगली मेरी गांड में उतार दी और हौले हौले घुमाने लगे. पहले दर्द हुआ पर फ़िर मजा आने लगा. लंड को भी अजीब सा जोश आ गया और वो खड़ा हो गया. सर उसे फ़िर से बड़े प्यार से चूमने और चूसने लगे "देखा? तू कुछ भी कहे या नखरे करे, तेरे लंड ने तो कह दिया कि उसे क्या लुत्फ़ आ रहा है"
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