गाँव का राजा

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Re: गाँव का राजा

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गाँव का राजा पार्ट -7 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आठ बजने पर बिस्तर छोड़ा और भाग कर बाथरूम में गई कमोड पर जब बैठी और चूत से पेशाब की धारा निकलने लगी तो रात की बात फिर से याद आ गई और चेहरा शर्म और मज़े की लाली से भर गया. अपनी चुदी चूत को देखते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई कि कैसे रात में राजू के मुँह पर उन्होने अपनी चूत को रगड़ा था और कैसे लौडे को तडपा तडपा कर अपनी चूत की चटनी चटाई थी. नहा धो कर फ्रेश हो कर निकलते निकलते 9 बज गये, जल्दी से राजू को उठाने उसके कमरे में गई तो देखा लौंडा बेसूध होकर सो रहा है. थोड़ा सा पानी उसके चेहरे पर डाल दिया. राजू एक दम से हर्बाड़ा उठ ता हुआ बोला "पेस्सशाब….मत…..". आँखे खोली तो सामने मामी खड़ी थी. वो समझ गई कि राजू शायद रात की बातो को सपने में देख रहा था और पानी गिरने पर उसे लगा शायद मामी ने उसके मुँह मैं पिशाबफिर से कर दिया. राजू आँखे फाडे उर्मिला देवी को देख रहा था.


"अब उठ भी जाओ ….9 बज गये अभी रात के ख्वाबो में डूबे हो के"…..फिर उसके शॉर्ट्स के उपर से लंड पर एक थपकी मारती हुई बोली "चल जल्दी से फ्रेश हो जा"

उर्मिला देवी किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी. बाथरूम से राजू अभी भी नही निकला था.


"आरे जल्दी कर…..नाश्ता तैय्यार है…….इतनी देर क्यों लगा रहा है बेटा…"

ये मामी भी अजीब है. अभी बेटा और रात में क्या मस्त छिनाल बनी हुई थी. पर जो भी हो बड़ा मज़ा आया था. नाश्ते के बाद एक बार चुदाई करूँगा तब कही जाउन्गा. ऐसा सोच कर राजू बाथरूम से बाहर आया तो देखा मामी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थी. राजू भी जल्दी से बैठ गया नाश्ता करने लगा. कुच्छ देर बाद उसे लगा जैसे उसके शॉर्ट्स पर ठीक लंड के उपर कुच्छ हरकत हुई. उसने मामी की ओर देखा, उर्मिला देवी हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी. नीचे देखा तो मामी अपने पैरो के तलवे से उसके लंड को छेड रही थी. राजू भी हँस पड़ा और उसने मामी के कोमल पैर अपने हाथो से पकड़ कर उनके तलवे ठीक अपने लंड के उपर रख दोनो जाँघो के बीच जाकड लिया. दोनो मामी भानजे हँस पड़े. राजू ने जल्दी जल्दी ब्रेड के टुकड़ो को मुँह में ठुसा और हाथो से मामी के तलवे को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को घुटनो तक उपर कर दिया. राजू का लंड फनफना गया था. उर्मिला देवी लंड को तलवे से हल्के हल्के दबा रही. राजू ने अपने आप को कुर्सी पर अड्जस्ट कर अपने हाथो को लंबा कर साड़ी के अंदर और आगे की तरफ घुसा कर जाँघो को छुते हुए सहलाने की कोशिश की. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "उईइ क्या कर रहा….कहा हाथ ले जा रहा है……"


"कोशिश कर रहा हू कम से कम उसको छु लू जिसको कल रात आपने बहुत तडपाया था छुने के लिए…."

"अच्छा बहुत बोल रहा है…..रात में तो मामी..मामी कर रहा था"

" कल रात में तो आप एकदम अलग तरह से बिहेव कर रही थी"

"शैतान तेरे कहने का क्या मतलब कल रात तेरी मामी नही थी तब"

"नही मामी तो आप मेरी सदा रहोगी तब भी अब भी मगर…."

"तो रात वाली मामी अच्छी थी या अभी वाली मामी…"

"मुझे तो दोनो अच्छी लगती है…पर अभी ज़रा रात वाली मामी की याद आ रही है" कहते हुए राजू कुर्सी सेनीचे खिसक गया और जब तक उर्मिला देवी "रुक क्या कर रहा है" कहते हुए रोक पाती वो डिनाइनिंग टेबल के नीचे घुस चुका था और उर्मिला देवी के तलवो और पिंदलियो कोचाटने लगा था. उर्मिला देवी के मुँह सिसकारी निकल गई वो भी सुबह से गरम हो चुकी थी.

"ओये……क्या कर रहा है….नाश्ता तो कर लेने दे….."

"पुच्च पुच्च….ओह तुम नाश्ता करो मामी……मुझे अपना नाश्ता कर लेने दो"

"उफ़फ्फ़……मुझे बाज़ार जाना है अभीईइ छोड़ दे…..बाद मीएइन्न……." उर्मिला देवी की आवाज़ उनके गले में ही रह गई. राजू अब तक साड़ी को जाँघो से उपर तक उठा कर उनके बीच घुस चुक्का था. मामी ने आज लाल रंग की पॅंटी पहन रखी थी. नहाने कारण उक्नकि स्किन चमकीली और मक्खन के जैसी गोरी लग रही थी और भीनी भीनी सुगंध आ रही थी. राजू गदराई गोरी जाँघो पर पप्पी लेता हुआ आगे बढ़ा और पॅंटी उपर एक जोरदार चुम्मि ली. उर्मिला देवी ने मुँह से "आउच….इसस्स क्या कर रहा है" निकला.


"ममीईइ…मुझे भी टुशण जाना है……पर अभी तो तुम्हारा फ्रूट जूस पी कर हीईइ…." कहते हुए राजू ने पूरी चूत को पॅंटी के उपर से अपने मुँह भर कर ज़ोर से चूसा.


"इसस्सस्स…….एक ही दिन में ही उस्ताद…बन गया हॅयियी….चूत का पानी फ्रूट जूस लगता हाईईईईईईईई……..उफफफ्फ़ पॅंटी मत उतर्ररर……" मगर राजू कहा मान ने वाला था. उसके दिल का डर तो कल रात में ही भाग गया था. जब वो उर्मिला देवी के बैठे रहने के कारण पॅंटी उतारने में असफल रहा तो उसने दोनो जाँघो को फैला कर चूत को ढकने वाली पट्टी के किनारे को पकड़ कर खींचा और चूत नंगी कर उस पर अपना मुँह लगा दिया.
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Re: गाँव का राजा

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झांतो से आती भीनी-भीनी खुसबु को अपनी सांसोमैं भरता हुआ जीभ निकाल चूत के भग्नासे को भूखे भेड़िए की तरह काटने लगा. फिर तो उर्मिला देवी ने भी हथियार डाल दिए और सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में चूत चुसाइ का मज़ा लेने लगी. उनके मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. कब उन्होने कुर्सी पर से अपनी गांद उठाई, कब पॅंटी निकाली और कब उनकी जंघे फैल गई इसका उन्हे पता भी ना चला. उन्हे तो बस इतना पता था उनकी फैली हुई चूत के मोटे मोटे होंठो के बीच राजू की जीभ घुस कर उनके चूत की चुदाई कर रही थी और उनके दूनो हाथ उसके सिर के बालो में घूम रहे थे और उसके सिर को जितना हो सके अपनी चूत पर दबा रहे थे. थोरी देर की चुसाइ चटाई में ही उर्मिला देवी पस्त होकर झार गई और आँख मुन्दे वही कुर्सी पर बैठी रही. राजू भी चूत के पानी को पी अपने होंठो पर जीभ फेरता जब डाइनिंग टेबल के नीचे से बाहर निकला तब उर्मिला देवी उसको देख मुस्कुरा दी और खुद ही अपना हाथ बढ़ा उसके शॉर्ट्स को सरका कर घुटनो तक कर दिया.

"सुबह सुबह तूने….ये क्या कर दिया …" कहते हुए उसके लंड पर मूठ लगाने लगी.

"ओह मामी मूठ मत लगाओ ना….चलो बेडरूम में डालूँगा."

"नही कपड़े खराब हो जाएँगे…चूस कर निकाल….." और गप से लंड के सुपरे को अपने गुलाबी होंठो के बीच दबोच लिया. होंठो को आगे पिछे करते हुए लंड को चूसने लगी. राजू मामी के सिर को अपने हाथो से पकड़ हल्के हल्के कमर को आगे पिछे करने लगा. तभी उसके दिमाग़ में आया की क्यों ना पिछे से लंड डाला जाए कपड़े भी खराब नही होंगे.

"मामी पिछे से डालु….कपड़े खराब नही होंगे.."

लंड पर से अपने होंठो को हटा उसके लंड को मुठियाते हुए बोली "नही बहुत टाइम लग जाएगा…रात में पिछे से डालना" राजू ने उर्मिला देवी के कंधो को पकड़ कर उठाते हुए कहा "प्लीज़ मामी……उठो ना चलो उठो….."

"अर्रे नही बाबा…….मुझे मार्केट भी जाना है…..ऐसे ही देर हो गई है…."

"ज़यादा देर नही लगेगी बस दो मिनिट…."

"अर्रे नही तू छोड़ दे मेरा काम तो वैसे भी हो….."

"क्या मामी……..थोड़ा तो रहम करो…..हर समय क्यों तड़पाती हो…"

"तू मानेगा नही….."

"ना, बस दो मिनिट दे दो……."

"ठीक है दो मिनिट में नही निकला तो खुद अपने हाथ से करना…..मैं ना रुकने वाली"

उर्मिला देवी उठ कर डाइनिंग टेबल के सहारे अपने चूतरो को उभार कर घोड़ी बन गई. राजू पिछे आया और जल्दी से उसने मामी की सारी को उठा कर कमर पर कर दिया. पॅंटी तो पहले ही खुल चुकी थी. उर्मिला देवी की मक्खन मलाई सी चमचमाती गोरी गांद राजू की आँखो के सामने आ गई. उसके होश फाख्ता हो गये. ऐसे खूबसूरत चूतर तो सायद उन अँग्रेजानो की भी नही थे जिनको उसने अँग्रेज़ी फ़िल्मो में देखा था. उर्मिला देवी अपने चूतरो को हिलाते हुए बोली "क्या कर रहा है जल्दी कर देर हो रही है….". चूतर हिलने पर थल थाला गये. एक दम गुदाज और मांसल चूतर और उनके बीच खाई. राजू का लंड फुफ्कार उठा.

"मामी…..आपने रात में अपना ये तो दिखाया ही नही……अफ कितना सुंदर है मामी….

"जो भी देखना है रात में देखना पहली रात में क्या तुझ से गांद भी………तुझे जो करना है जल्दी कार्ररर……


ओह सीईई मामी मैं हमेशा सोचता था आप का पिच्छवाड़ा कैसा होगा. जब आप चलती थी और आपके दोनो चूतर जब हिलते थे तो दिल करता था कि उनमे अपने मुँह को घुसा कर रगड़ दू……..उफफफफ्फ़"

"ओह हूऊऊऊ……..जल्दी कर ना"….कह कर चूतरो को फिर से हिलाया.

"चूतर पर एक चुम्मा ले लू….."


"ओह हो एक दम कमीना है तू…….जो भी करना है जल्दी कर नही तो मैं जा रही हू…"

राजू तेज़ी के साथ नीचे झुका और पुच पुच करते हुए चूतरो को चूमने लगा. दोनो मांसल चूतरो को अपनी मुट्ठी में ले कर मसल्ते हुए चूमते हुए चाटने लगा. उर्मिला देवी का बदन भी सिहर उठा. बिना कुच्छ बोले उन्होने अपनी टाँगे और फैला दी. राजू ने दोनो चूतरो को फैला दिया और उसके बीच की खाई में भूरे रंग की मामी की गोल सिकुड़ी हुई गांद का छेद नज़र आ गया. दोनो चूतरो के बीच की खाई में जैसे ही राजू ने हल्के से अपनी जीभ चलाई. उर्मिला देवी के पैर कांप उठे. उसने कभी सोचा भी नही था की उसका ये भांजा इतनी जल्दी तरक्की करेगा. राजू ने देखा की चूतरो के बीच जीभ फ़िराने से गांद का छेद अपने आप हल्के हल्के फैलने और सिकुड़ने लगा और मामी के पैर हल्के-हल्के थर-थारा रहे थे.

"ओह मामी आपकी गांद कितनी…….उफफफफफफ्फ़ कैसी खुसबु है…प्यूच"
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Re: गाँव का राजा

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इस बार उसने जीभ को पूरी खाई में उपर से नीचे तक चलाया और गांद के सिकुदे हुए छेद के पास ला कर जीभ को रोक दिया और कुरेदने लगा. उर्मिला देवी के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की घर में बैठे बिठाए उसकी गांद चाटने वाला मिल जाएगा. मारे उत्तेजना के उसके मुँह से आवाज़ नही निकल रही थी. गु गु की आवाज़ करते हुए अपने एक हाथ को पिछे ले जा कर अपना चूतरो को खींच कर फैलाया. राजू समझ गया था कि मामी को मज़ा आ रहा है और अब समय की कोई चिंता नही. उसने गांद के छेद के ठीक पास में दोनो तरफ अपने दोनो अंगूठे लगाए और छेद को चौड़ा कर जीभ नुकीली कर पेल दी. गांद की छेद में जीभ चलाते हुए चूतरो पर हल्के हल्के दाँत भी गढ़ा देता था. गांद की गुदगुदी ने मामी को एकद्ूम बेहाल कर दिया था. उनके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी "ओह राजू क्या कर रहा है…..बेटा…..उफफफफफफफ्फ़……मुझे तो लगता था तुझे कुच्छ भी नही…..पगले सस्स्स्स्सीईए उफफफफफफ्फ़ गान्ड चाटता रह हाईईईईईईई…….मेरी तो समझ में नहियीईई………". समझ में तो राजू की भी कुच्छ नही आ रहा था मगर गांद पर चुम्मिया काट ते हुए बोला

"पुच्च पुच्च…मामी सीईए….मेरा दिल तो आपके हर अंग को चूमने और चाटने को करता है…..आप इतनी खूबसूरत हो…मुझे नही पता गांद चाटी जाती है या नहीइ…हो सकता है नही चाती जाती होगी मगर…..मैं नही रुक सकता…..मैं तो इसको चुमूंगा और चाट कर खा जाउन्गा जैसे आपकी चूत….."

"सीईई…..एक दिन में ही तू कहा से कहा पहुच गया…..उफफफ्फ़ तुझे अपनी मामी की गांद इतनी पसंद है तो चाट….चूम……उफफफफफ्फ़ सीईई राजू बेटा……बात मत कर…मैं सब समझती हू…….तू जो भी करना चाहता है करता रह…..कुत्तीई…गांद में ऐसे ही जीभ पेल कर चातत्तटटटटटतत्त."

राजू समझ गया कि रात वाली छिनाल मामी फिर से वापस आ गई है. वो एक पल को रुक गया अपनी जीभ को आराम देने के लिए मगर उर्मिला देवी को देरी बर्दाश्त नही हुई. पीछे पलट कर राजू के सिर को दबाती हुई बोली "अफ रुक मत…….जल्दी जल्दी चाट.." मगर राजू भी उसको तड़पाना चाहता था. उर्मिला देवी पिछे घूमी और राजू को उसके टी-शर्ट के कॉलर से पकड़ कर खींचती हुई डाइनिंग टेबल पर पटक दिया. उसके नथुने फूल रहे थे, चेहरा लाल हो गया था. राजू को गर्दन के पास से पकड़ उसके होंठो को अपने होंठो से सटा खूब ज़ोर से चुम्मा लिया. इतनी ज़ोर से जैसे उसके होंठो को काट खाना चाहती हो और फिर उसकी गाल पर दाँत गढ़ा कर काट लिया. राजू ने भी मामी के गालो को अपने दांतो से काट लिया. "अफ कामीने निशान पर जाएगा…..रुकता क्यों है….जल्दी कर नही तो बहुत गाली सुनेगा….और रात के जैसा चोद दूँगी" राजू उठ कर बैठता हुआ बोला "जितनी गालियाँ देनी है दे दो…." और चूतर पर कस कर दाँत गढ़ा कर काट लिया.


"उफफफफ्फ़….हरामी गाली सुन ने में मज़ा आता है तुझे…….."

राजू कुच्छ नही बोला, गांद की चुम्मियाँ लेता रहा "…आ ह पुछ पुच्छ." उर्मिला देवी समझ गई की इस कम उमर में ही छोकरा रसिया बन गया है.

चूत के भज्नाशे को अपनी उंगली रगड़ कर दो उंगलियों को कच से चूत में पेल दिया चूत एक दम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. चूत के पानी को उंगलियों में ले कर पिछे मुड़ कर राजू के मुँह के पास ले गई जो की गांद चाटने में मसगूल था और अपनी गांद और उसके मुँह के बीच उंगली घुसा कर पानी को रगड़ दिया. कुच्छ पानी गांद पर लगा कुच्छ राजू के मुँह पर.

"देख कितना पानी छ्चोड़ रही है चूत अब जल्दी कार्रर्र्र्ररर …."

पानी छोड़ती चूत का इलाज़ राजू ने अपना मुँह चूत पर लगा कर किया. चूत में जीभ पेल कर चारो तरफ घूमाते हुए चाटने लगा.

"ये क्या कर रहा है सुअर्रर…….खाली चाट ता ही रहेगा क्या… मदर्चोद.उफ़फ्फ़ चाट गांद चूत सब चाट लीईए……..भोसड़ी के……..लंड तो तेरा सुख गया है नाआअ…..हरामी….गांद खा के पेट भर और चूत का पानी पीईए ……..ऐसे ही फिर से झार गई तो हाथ में लंड ले के घुम्नाआ……"

अब राजू से भी नही रहा जा रहा था जल्दी से उठ कर लंड को चूत के पनियाए छेद पर लगा ढ़ाचक से घुसेड दिया. उर्मिला देवी का बॅलेन्स बिगड़ गया और टेबल पर ही गिर पड़ी, चिल्लाते हुए बोली "हराम्जादे बोल नही सकता था क्या……..तेरी मा की चूत में घोड़े का लंड……गांदमरे…..आराम सीईई"

पर राजू ने संभालने का मौका नही दिया. ढ़ाचा ढ़च लंड पेलता रहा. पानी से सारॉबार चूत ने कोई रुकावट नही पैदा की. दोनो चूतरो के मोटे मोटे माँस को पकड़े हुए गाप-गप लंड डाल कर उर्मिला देवी को अपने धक्को की रफ़्तार से पूरा हिला दिया था उसने. उर्मिला देवी मज़े से सिसकारिया लेते हुए चूत में गांद उचका उचका कर लंड लील रही थी. फ़च फच की आवाज़ एक बार फिर गूँज उठी थी. जाँघ से जाँघ और चूतर टकराने से पटक-पटक की आवाज़ भी निकल रही. दोनो के पैर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे.

"पेलता रह….और ज़ोर से माआआअरर…बेटा मार…..फाड़ दे चूत….मामी को बहुत मज़ा दे रहा हाईईईई……..ओह चोद……देख री मेरी ननद तूने कैसा लाल पैदा किया है……तेरे भाई का काम कर रहा है…आईईईईईईईई..फ़ाआआआद दियाआआआअ सल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीई ने"

"ओह मामी आअज्जजज्ज आपकी चूत….सीईईईईईईईई…मन कर रहा इसी में लंड डाले….ओह…..सीईईई मेरे मामा की लुगाई…….सीईइ बस ऐसे ही हमेशा मेरा लंड लेती….."

"हाई चोद…..बहुत मज़ा……सेईईईईईई गांड्चतु….. तू ने तो मेरी जवानी पर जादू कर दिया..."

"हाई मामी ऐसे ही गांद हिला-हिला के लॉडा लो……..सीईईईईई, जादू तो तुमने किया हाईईईई....अहसान किया है…..इतनी हसीन चूत मेरे लंड के हवाले करके…..पक पाक….लो मामी…ऐसे ही गांद नचा-नचा के मेरा लंड अपनी चूत में दबोचो…….सीईईईईईई"

"....रंडी की औलाद ....अपनी मा को चोद रहा है कि मामी को....ज़ोर लगा के चोद ना भोसड़ी के……..देख..देख तेरा लंड गया तेरी मा की चूत में... डाल साला…पेल साले ....पेल अपनी मा की चूत में.....रंडी बना दे मुझे....चोद अपनी मामी की चूत....रंडी की औलाद..... साला .....मादर्चोद".... .फ़च.... फ़च....फ़च... और एक झटके के साथ उर्मिला देवी का बदन अकड़ गया.."ओह ओह सीईए गई मैं गई करती हुई डाइनिंग टेबल पर सिर रख दिया.

झरती हुई चूत ने जैसे ही राजू के लंड को दबोचा उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ दी फॅक फॅक करता हुआ लंड का पानी चूत के पसीने से मिल गया. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. राजू उर्मिला देवी की पीठ पर निढाल हो कर पड़ गया था. दोनो गहरी गहरी साँसे ले रहे थे. जबरदस्त चुदाई के कारण दोनो के पैर काप रहे थे. एक दूसरे का भार संभालने में असमर्थ. धीरे से राजू मामी की पीठ पर से उतर गया और उर्मिला देवी ने अपनी साड़ी नीचे की और साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई सीधी खड़ी हो गई. वो अभी भी हाँफ रही थी. राजू पास में परे टवल से लंड पोछ रहा था. राजू के गालो को चुटकी में भर मसलते हुए बोली


"कामीने…..अब संतुष्टि मिल गई…..पूरा टाइम खराब कर दिया और कपड़े भी…"

"पर मामी मज़ा भी तो आया…सुबह सुबह कभी मामा के साथ ऐसे मज़ा लिया…" मामी को बाँहो में भर लिपट ते हुए राजू बोला. उर्मिला देवी ने उसको परे धकेला "चल हट ज़यादा लाड़ मत दिखा तेरे मामा अच्छे आदमी है. मैं पहले आराम करूँगी फिर मार्केट जाउन्गी और खबरदार जो मेरे कमरे में आया तो, तुझे टुशण जाना होगा तो चले जाना.."


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Re: गाँव का राजा

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गाँव का राजा पार्ट -8 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

"ओके मामी…..पहले थोडा आराम करूँगा ज़रा" बोलता हुआ राजू अपने कमरे में और उर्मिला देवी बाथरूम में घुस गई. थोडी देर खाट पाट की आवाज़ आने के बाद फिर शांति छा गई.राजू यू ही बेड पर पड़ा सोचता रहा कि सच में मामी कितनी मस्त औरत है और कितनी मस्ती से मज़ा देती है. उनको जैसे सब कुच्छ पता है कि किस बात से मज़ा आएगा और कैसे आएगा. रात में कितना गंदा बोल रही थी….मुँह में मूत दूँगी….ये सोच कर ही लंड खड़ा हो जाता है मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे……शायद ये सब मेरे और अपने मज़े को बढ़ाने के लिए किया होगा. सोचते सोचते थोड़ी देर में राजू को झपकी आ गई. एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैय्यार हो कर टुशन पढ़ने चला गया. दिन इसी तरह गुजर गया. शाम में घर आने पर दोनो एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दीनो बाद मिले हो. फिर तो खाना पीना हुआ और उस दिन रात में दो बार ऐसी भयंकर चुदाई हुई कि दोनो के कस बल ढीले पद गये. दोनो जब भी झरने को होते चुदाई बंद कर देते. रुक जाते और फिर दुबारा दुगुने जोश से जुट जाते. राजू भी खुल गया. खूब गंदी गंदी बाते की. मामी को रंडी…..चूत्मरनि…….बेहन की लॉडी कहता और वो खूब खुस हो कर उसे गांडमरा…हरामी…….रंडी की औलाद कहती. उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता और चूतरों चुचियों और जाँघो पर तो राजू ने दाँत के निशान पड़ जाते. उसी तरह से राजू के कमसिन गाल, पीठ और छाती पर भी उर्मिला देवी के दांतो और नाख़ून का निशान बनते थे.

घर में तो कोई था नही खुल्लम खुल्ला जहा मर्ज़ी वही चुदाई शुरू कर देते थे दोनो. मामी को गोद में बैठा कर टीवी देखता था. किचन में उर्मिला देवी बिना शलवार के केवल लंबा वाला समीज़ पहन कर खाना बनाती और राजू से समीज़ उठा कर दोनो जाँघो के बीच बैठा चूत चत्वाती. चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती. अपनी बेटी की फ्रॉक पहन कर डाइनिंग टेबल के उपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और राजू को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते. राजू कभी उंगली तो कभी चम्मच घुसा देता मगर उनको तो इस सब में मज़ा आता था. राजू का लंड खड़ा कर उस पर अपना दुपट्टा कस कर बाँध देती थी. उसको लगता जैसे लंड फट जाएगा मगर गांद चटवाती रहती थी और चोदने नही देती. दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग धड़ंग सो जाते.

शायद चौथे दिन सुबह के समय राजू अभी उठा नही था. तभी उसे मामी की आवाज़ सुनाई दी "राजू बेटा…..राजू…".

राजू उठा देखा तो आवाज़ बाथरूम से आ रही थी. बाथरूम का दरवाजा खुला था, अंदर घुस गया. देखा मामी कमोड पर बैठी हुई थी. उस समय उर्मिला देवी ने मॅक्सी जैसा गाउन डाल रख था. मॅक्सी को कमर से उपर उठा कर कमोड पर बैठी हुई थी. सामने चूत की झांते और जंघे दिख रही थी. राजू मामी को ऐसे देख कर मुस्कुरा दिया और हस्ते हुए बोला "क्या मामी क्यों बुलाया"

"इधर तो आ पास में….." उर्मिला देवी ने इशारे से बुलाया.

"क्या काम है……..पॉटी करते हुए" राजू कमोड के पास गया और फ्लश चला कर झुक कर खड़ा हो गया. उसका लंड इतने में खड़ा हो चुका था.

उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए अपने निचले होंठो को दांतो से दबाया और बोली "एक काम करेगा".

"हा बोलो क्या करना है……"

"ज़रा मेरी गांद धो दे ना…." कह कर उर्मिला देवी मुस्कुराने लगी. खुद उसका चेहरा इस समय शर्म से लाल हो चुका था मगर इतना मज़ा आ रहा था कि चूत के होंठ फड़कने लगे थे.

राजू का लंड इतना सुनते ही लहरा गया. उसने तो सोचा भी नही था की मामी ऐसा करने को बोल सकती है. कुच्छ पल तो यू ही खड़ा फिर धीरे से हस्ते हुए बोला "क्या मामी कैईसीई बाते कर रही हो". इस पर उर्मिला देवी तमक कर बोली "तुझे कोई प्राब्लम है क्या..?"

"नही, पर आपके हाथ में कोई प्राब्लम है क्या…?"

"ना, मेरे हाथ को कुच्छ नही हुआ बस अपनी गांद नही धोना चाहती…?. राजू समझ गया कि मामी का ये नया नाटक है सुबह सुबह चुदना चाहती होगी. यही बाथरूम में साली को पटक कर गांद मारूँगा सारा गांद धुल्वाना भूल जाएगी. उर्मिला देवी अभी भी कमोड पर बैठी हुई थी. अपना हाथ टाय्लेट पेपर की तरफ बढ़ाती हुई बोली "ठीक है रहने दे…

…गांद चाटेगा मगर धोएगा नही……आना अब छुना भी नही………"

"अर्रे मामी रूको…मैं सोच रहा था सुबह सुबह……लाओ मैं धो देता हू" और टाय्लेट पेपर लेकर नीचे झुक कर चूतर को अपने हाथो से पकड़ थोड़ा सा फैलाया जब गांद का छेद ठीक से दिख गया तो उसको पोछ कर अच्छी तरह से सॉफ किया फिर पानी लेकर गांद धोने लगा (इंडियन्स को अभी भी टाय्लेट पेपर से पूरी संतुष्टि नही मिलती). गांद के सिकुदे हुए छेद को खूब मज़े लेकर बीच वाली अंगुली से रगर-रगर कर धोते हुए बोला "मामी ऐसे गांद धुल्वा कर लंड खड़ा करोगी तो……". उर्मिला देवी कमोड पर से हस्ते हुए उठते हुए बोली "तो क्या……मज़ा नही आया….". बेसिन पर अपने हाथ धोता हुआ राजू बोला "मज़ा तो अब आएगाआ…". और मामी को कमर से पकड़ कर मुँह की तरफ से दीवार से सटा एक झटके से उसकी मॅक्सी उपर कर दी और अपनी शॉर्ट नीचे सरका फनफनता हुआ लंड निकाल कर गीली गांद पर लगा एक झटका मारा. उर्मिला देवी "आ उईईई क्या कर रहा है कंजरे…..छोड़" बोलती रही मगर राजू ने बेरहमी से तीन चार धक्को में पूरा लंड पेल दिया और हाथ आगे ले जा कर चूत के भग्नाशे को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए कचा कच धक्के लगाना शुरू कर दिया. पूरा बाथरूम मस्ती भरे सिसकारियों में डूब गया दोनो थोड़ी देर में ही झार गये. जब गांद से लंड निकल गया तो उर्मिला देवी ने पलट कर राजू को बाहों में भर लिया.
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: गाँव का राजा

Post by 007 »

कुच्छ दीनो में राजू एक्सपर्ट चोदु बन गया था. जब मामा और ममेरी बहन घर आ गये तो दोनो दिन में मौका खोज लेते और छुट्टी वाले दिन कार लेकर सहर से थोरी दूरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते. जब भी जाते काजल को भी बोलते चलो मगर वो तो सहर की पार्केटी लड़की थी मना कर देती. फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते. इसी तरह से राजू के दिन सुख से कट ते गये. और भी बहुत सारी घटनाए हुई बीच में मगर उन सबको बाद में बताउन्गा. तो ये थी मुन्ना बाबू के ट्रैनिंग की कहानी. मुन्ना को उसकी मामी ने पूरा बिगाड़ दिया.

खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती

अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.

मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी थी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.

"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."

"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"

"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."

"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."

"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"

मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."

"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"

"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.

"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".

"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.

"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"

"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"

"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.

"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"

लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"

"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"

"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"

"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."

"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.

"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"

मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."

"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."

"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."

"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"

इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".

"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.

"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"

"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"

मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.

"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.

लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"

"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.

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