राधा का राज compleet

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राधा का राज compleet

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raj sharma stories

राधा का राज --1

मेरा नाम राधा है. मैं 30 साल की खूबसूरत महिला हूँ. 38 साइज़ की बड़ी - बड़ी चुचियाँ और पतली कमर किसी को भी पागल कर देने के लिए काफ़ी हैं. देखने मे बला की हूबसूरत हूँ. इसलिए हमेशा ही भंवरे आस पास मंधराते रहते थे. लेकिन मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी.

सुरू से ही मुझपे मरने वालों की कोई कमी नहीं रही थी. कॉलेज के दिनो मे भी मेरे पीछे काफ़ी लड़के पड़े रहते थे. मैं उन परिंदो पर अपना रस न्योछावर करने मे विस्वास नहीं करती जिनका काम ही फूलों का रस पी कर उड़ जाना होता है..

मैंन ने एम बी बी एस किया है. मेरी पोस्टिंग असम के एक छोटे से कस्बे के सरकारी. हॉस्पिटल मे हुई है. मैं पिछले साल बाहर से यहाँ के ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे काम कर रही हूँ.

यहाँ हॉस्पिटल के कई डॉक्टर भी मुझपे मरते हैं. मगर मेरी चाय्स कुछ अलग किस्म की है. मैं मर्दों से दूरी बना कर रखती हूँ इसलिए कुछ लोग मुझे घमंडी और नकचाढ़ि कहते हैं लेकिन मैने कभी उनकी बातों का बुरा नही माना. सच बात तो ये है कि मैं एक बहुत ही शर्मीली लड़की हूँ और मेरी पसंद का आजतक कोई भी लड़का नहीं मिला. पाता नहीं क्यों मुझे कोई भी पसंद ही नहीं आता. मेरे घर वाले भी मुझसे परेशान थे. कई लड़को की तस्वीरें भी भेज चुके थे. मगर मैने ना कर दिया था.

उम्र हो चुकी थी इसलिए माता पिता की चिंता स्वाभाविक थी. मैने उन्हे कह दिया कि मेरी चिंता छोड़ दें और मुझसे छोटी वाली का ख़याल रखें. जिस दिन मुझे कोई लड़का पसंद आ जाएगा मैं उसको उनसे मिलवा दूँगी.

यहाँ हॉस्पिटल मे एक डॉक्टर है डॉक्टर. श्यामल थापा. बहुत दिलफेंक. उसका हॉस्पिटल की कई नर्स और लेडी डॉक्टर्स के साथ चक्कर चलता रहता है. वो काफ़ी दिनो से हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ है. लेकिन मैने उसे कभी घास नही डाला. एक बार उस ने अंधेरी जगह पर मुझे पकड़ कर ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. वो मेरी चुचियों को कस कर मसल्ने लगा. मैने अपने घुटने से उसकी टाँगों के जोड़ पर ऐसा वार किया कि वो दर्द से बिलबिला उठा. मैं उसकी गिरफ़्त से निकल गयी. उसके बाद तो उसकी वो ठुकाई की की बेचारे ने मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया. जब भी मुझ से क्रॉस करता चेहरा झुका कर ही

गुज़रता था.

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. इतनी मगरूर, इतनी शर्मीली, इतनी कोल्ड लड़की आख़िर किसी के प्रेम मे पड़ ही गयी. वो भी इस तरह की उसने उस पर अपना सब कुछ न्योचछवर कर दिया. वो आदमी ना तो डॉक्टर की तरह खूबसूरत था ना डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के पहलवानो सी बॉडी थी उसकी और ना ही कोई अमीर ज़्यादा था. बस एक मामूली सा मुझसे बहुत ही बिलो स्टेटस का आदमी था. जिससे मिलने के बाद कुछ दिनो तक मैने अपने पेरेंट्स के माथे पर शिकन देखी थी. मगर जब मैने उन्हे मनाया तो वो मेरी खुशी को ही सबसे ज़्यादा महत्व देकर हम दोनो की शादी करवा दी. अब मैं आपको हम दोनो के बीच किस तरह प्रेम का पौधा उगा उसकी कहानी सुनाती हूँ.

हुआ यूँ की एक दिन मैं राउंड पर निकली थी. शाम के 6 बज रहे थे मेरे साथ एक नर्स भी थी. एक-एक पेशेंट के पास जा कर हम चेक उप कर रहे थे. पहले हम कॅबिन्स मे रह रहे मरीजों का चेक अप करके जनरल वॉर्ड की तरफ बढ़े. मैं एक एक करके सबका केस हिस्टरी देखती हुई उनकी कंडीशन नोट करती जा रही थी.

जनरल वॉर्ड एक बड़ा हाल था जिसमे बीस बेड्स थे. कोने की तरफ हल्का अंधेरा था चेक करते करते मैं जब कोने की तरफ बढ़ी तो अचानक किसी काम से नर्स वापस लौट गई. मैं अकेली ही थी आखरी पेशेंट था इसलिए मैने भी कोई ज़्यादा तवज्जो नही दी. और ये तो डेली का रुटीन था इसलिए ऐसे हालत की तो मैं आदि हो चुकी थी.

कोने के बेड पर एक 30 – 32 साल का हृष्ट पुष्ट आदमी लेटा हुआ था. उसके पैर मे डिसलोकेशन था. मैं उसके पास पहुँच कर मुआयना करने लगी. चार्ट देखते हुए मैने उसकी तरफ देखा. वो 30-32 साल का तंदुरुस्त नौजवान था. उसके चेहरे मे एक जबरदस्त आकर्षण सा था. मेरी आँखें कुछ पलों के लिए उसकी आँखों से चिपक कर रह गयी. ऐसा लगा मानो मैं उसकी आँखों के सम्मोहन मे बँध गयी हूँ.

वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था. एक पतली चादर को सीने तक ओढ़ रखा था. उसकी रिपोर्ट देखते देखते मेरी नज़र उसके कमर पर पड़ी. उसकी कमर के पास चादर टेंट की तरह उठा हुआ था जिससे सॉफ दिख रहा था कि उसका लंड उत्तेजित अवस्था मे है. उसके हाथों

की धीमी हरकत बता रही थी कि उसके हाथ अपने लंड पर चल रहे हैं. मैं कुछ पल तक एक तक उसके लंड के आकार को देखती रही. टेंट के सबसे उपर वाला हिस्सा जहाँ उसके लंड का टोपा टिका हुआ था उस जगह पर एक गीला धब्बा उसके लंड से निकले प्रेकुं को दिखा रहा था. वो एक तक मेरी ओर देखता हुआ अपने लंड पर ज़ोर ज़ोर से हाथ चलाने लगा. मैं एक दम घबरा गई मेरा गला सूखने लगा मैं जाने को मूडी तो उसने धीरे से कहा,

"डॉक्टर मेरे दाएँ पैर को थोड़ा घुमा दें जिससे मैं एक ओर करवट ले सकूँ."

मैने उसके टाँगों की तरफ देखा. उसके चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नही जुटा पायी. ऐसा लग रहा था मानो उसने मुझे चोरी करते हुए पकड़ लिया हो. मैने चारों ओर देखा लेकिन किसी को कोई खबर नही थी. आधे से ज़्यादा तो उंघ रहे थे और कुछ अपने रिश्ते दारों से मद्धिम आवाज़ मे बातें कर रहे थे. कोई नर्स या किसी तरह का हेल्प करने वाला नही दिखने पर मैने उसकी टाँगों को चादर के उपर से पकड़ना चाहा लेकिन ट्रॅक्षन लगा होने के कारण पकड़ सही नही बैठ पा रही थी.

" चादर के अंदर से पाकड़ो." वो इस तरह से मुझे सलाह दे रहा था मानो डॉक्टर मैं नही वो हो. मैने काँपते हाथों से उसके चादर को एक तरफ से थोडा उठाया और दूसरे हाथ को अंदर डाल दिया. चादर के भीतर वो नग्न था. मैने उसकी कमर को एक हाथ से थामने की कोशिश की मगर सफल नही हो सकी. फिर मैने अपने दोनो हाथों से उसके दाई

टांग को जोड़ों से पकड़ा. इस कॉसिश मे दो बार उसकी टाँगों के बीच मौजूद लंड के नीचे लटकते दोनो गेंदों को च्छू लिया था. मेरे पूरा बदन पसीने से भीग चुका था. मैने उसकी टाँगों को उसकी सहूलियत के हिसाब से थोड़ा घुमाया तो उसने हल्की से एक ओर करवट ली. इस बीच एक बार उसकी कमर के उपर से चादर खिसक गयी और उसका तना हुआ लंड मेरे सामने आ गया. मैने देखा एक दम काला लंड था वो. इतना मोटा और लंबा की मेरे बदन मे एक झूर झूरी सी दौड़ गयी.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: राधा का राज

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"थॅंक यू डॉक्टर" उसने मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मुस्कुरा कर कहा. मैं तो झट वहाँ से घूम कर लगभग भागती हुई कमरे से निकल गयी.

मेरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. मैं हॉस्पिटल के कॉंपाउंड मे ही बने क्वॉर्टर्स मे रहती थी. मैने नर्स से तबीयत खदाब होने का बहाना किया और सीधी घर जाकर ठंडे पानी से नहाई. मेरा दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि उसकी आवाज़ कानो तक गूँज रही थी. मैने फ्रिड्ज से एक चिल्ड पानी की बॉटल निकाल कर एक घूँट मे सारा खाली कर दिया. ठंडा पानी धीरे धीरे मेरे बदन को ठंडा करने लगा. कुछ देर बाद जब मैं कुछ नॉर्मल हुई तो वापस अपनी ड्यूटी पर लौट गयी. लेकिन वापस उस कमरे मे ना जाना परे इसका पूरा ख़याल रखा.

ड्यूटी ऑफ होने के बाद उस दिन जब मैं बिस्तर पर लेटी तो उस घटना के बारे मे सोचने लगी. पूरी घटना किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगी. पता नही क्यों मान मे एक गुदगुदी सी होने लगी थी. बार बार मन वही पर खींच कर ले जाता.

किसी तरह मैने अपने जज्बातों पर अंकुश लगाया. लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गयी मेरा अपने उपर से कंट्रोल हटता गया. आख़िर मैं तड़प कर वापस हॉस्पिटल की ओर बढ़ चली. उस समय रात के 12.30 हो रहे थे चहल पहल काफ़ी कम हो गया था मैं स्टाफ की नज़रों से बचती हुई ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे घुसी. अपने आप को लगभग छिपाते हुए मैं जनरल वॉर्ड मे पहुँची. ज़्यादातर पेशेंट सो गये थे. चारों ओर शांति छा रही थी. कभी कभी किसी के कराहने की आवाज़ ही सिर्फ़ महॉल को बदल दे रही थी. मैं वहाँ किसलिए आए? क्या करना चाहती थी कुछ नही पता था. कोई अगर मुझसे वहाँ की मौजूदगी के बारे मे पूछ बैठता तो जवाब देना मुश्किल हो जाता.

मैं इधर उधर देखती हुई आखरी बेड पर पहुँची. मैने उसकी तरफ देखा वो जगा हुआ था. अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए मैने बिस्तर के साइड मे रखा हिस्टरी कार्ड देखने लगी. नाम लिखा था राज शर्मा.

मैने घबराते हुए उसकी तरफ देखा. वो अभी भी उसी कंडीशन मे था. यानी की उसका लंड खड़ा था और वो उस पर अपना हाथ चला रहा था. लकिन उसकी चादर पर एक सूखा हुआ धब्बा बता रहा था की एक बार उसका स्खलन हो चुका था. मैं धीरे धीरे सरक्ति हुई उसके पास पहुँची और उसके बदन का टेंपरेचर देखने के बहाने उसके माथे पर अपना हाथ रखा. कुछ देर तक यूँ ही हाथ को रखे रहने के बाद मैं धीरे धीरे अपने नाज़ुक हाथों से उसके चेहरे को सहलाने लगी.

अचानक चादर के नीचे से उसका एक हाथ निकला और मेरी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया. मैने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर उसका हाथ तो लोहे की तरह मेरी कलाई को जकड़ा हुआ था. हम दोनो के मुँह से एक शब्द भी नही निकल रहा था. इस बात का ख़याल दोनो ही रख रहे थे कि हमारी हरकतों का पता बगल वाले बेड पर सो रहे आदमी को भी नही पता चले. किसी को भी खबर नहीं थी कि कमरे के एक कोने मे क्या ज़ोर मशक्कत हो रही थी.

उसने मेरे हाथ को चादर के भीतर खींच लिया. मेरे हाथ को सख्ती से थामे हुए अपने टाँगों के जोड़ तक ले गया. मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया. पूरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उसने ज़बरदस्ती मेरे हाथ को अपने लंड पर रख दिया. मैने अपना हाथ बाहर खींचने की पूरी कोशिश की लेकिन उसकी ताक़त के आगे मेरे बदन का पूरा ज़ोर भी कुछ नही कर पाया. मेरा हाथ सुन्न होने लगा. वो मेरे हाथ को छोड़ने के मूड मे नही था. आख़िर मैने हिचकते हुए उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. अब वो मेरे हाथ को उसी तरह पकड़े हुए अपने लंड पर उपर नीचे चलाने लगा. मुझे लग रहा था

मानो मैने अपनी मुट्ठी मे कोई गरम लोहा पकड़ रखा हो. उसका लंड काफ़ी मोटा था. लंबाई मे कम से कम 10" होगा. मैं उसके लंड पर हाथ चलाने लगी. कुछ देर बाद उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली पड़ने लगी. जब उसने देखा की मैं खुद अब उसके लंड को मुट्ठी मे भर कर उसे सहला रही हूँ तो उसने धीरे धीरे मेरे हाथ को छोड़ दिया. मैं उसी तरह उसके लंड को मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ कर उपर नीचे हाथ चला रही थी. कुछ देर बाद उसका शरीर तन गया और मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उधेल दिया. मैने झटके से उसका लंड छोड़ दिया. मैने चादर से अपना हाथ बाहर निकाला. पूरा हाथ गाढ़े सफेद रंग के वीर्य से सना हुआ था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चादर से पोंच्छ दिया. मैं हाथ छुड़ा कर वहाँ से वापस भाग आई. मैं दौड़ते हुए अपने घर पहुँच कर ही सांस ली. मेरे जांघों के बीच पॅंटी गीली हो चुकी थी.

जब वापस कुछ नॉर्मल हुई तो मैने अपने हाथ को नाक के पास ले जा कर सूँघा. उसके वीर्य की सुगंध अभी तक हाथों मे बसी हुई थी. मैने मुँह खोल कर एक उंगली अपनी जीभ से छुआया. उसके वीर्य का टेस्ट अच्छा लगा. मैने पहली बार किसी मर्द के वीर्य का टेस्ट पाया था. एक अजीब सा टेस्ट था. जो मुझे भा गया. फिर तो सारी उंगलियाँ ही चाट गयी. चाटते हुए सोच रही थी कि कितना अच्छा होता अगर उसने मेरी उंगलियाँ अपनी चादर से नही पोंच्छा होता. मैने अपने हाथ को अपने होंठों पर रख कर हॉस्पिटल की ओर एक फ्लाइयिंग किस उछाल दिया.

रात भर मैं करवटें बदलती रही. जब भी झपकी आई उसका चेहरा सामने आ जाता था. सपनो मे वो मेरे बदन को मसलता रहा. रात भर बिना कुछ किए ही मैं कई बार गीली होगयि. पता नहीं उसमे ऐसा क्या था जो मेरा मन बेकाबू हो गया. जिसे जीतने के लिए अच्छे अच्छे लोग अपना सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थे वो खुद आज पागल हुई जा रही थी.

जैसे तैसे सुबह हुई. मेरी आँखें नींद से भारी हो रही थी. पूरा बदन टूट रहा था. ऐसा लग रहा था मानो पिच्छली रात मेरी सुहागरात रही हो. मैं तैयार हो कर हॉस्पिटल गयी. राउंड पर निकली तो मैं राज शर्मा के बेड तक नहीं जा पाई. मैने स्टाफ को बुला कर उसके बारे मे पूछा तो पता लगा कि वो ग़रीब इंसान है. शायद उसके घर मे कोई नहीं है क्यों की उससे मिलने कभी कोई नहीं आता. किसी आक्सिडेंट मे उसकी टाँगों के जोड़ पर चोट आई थी. वो अभी ट्रॅक्षन पर था और बिस्तर से उठ भी नही सकता था.

मैं चुपचाप उठी और काउंटर पर पहुँच कर उसके लिए डेलूक्ष वॉर्ड बुक किया. वॉर्ड का खर्चा अपनी जेब से भर दिया था. वापस आकर मैने नर्स को स्लिप देते हुए राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया. नर्स तो एक बार चकित सी मुझको देखती रही. मैने काम मे व्यस्त ता दिखा कर उसकी नज़रों से अपने को बचाया.

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Re: राधा का राज

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सब के सामने उसके पास जाने मे मुझे हिचक हो रही थी. मैं आज तबीयत खराब होने का बहाना कर के घर चली गयी. शाम को हॉस्पिटल जा कर पता लगा कि राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट कर दिया गया है. मैं लोगों की नज़र बचा कर शाम आठ बजे के आस पास उसके वॉर्ड मे पहुँची. वहाँ मौजूद नर्स को मैने बाहर भेज दिया.

" तुम खाना खा कर आओ तब तक मैं यहीं हूँ."

वो खुशी खुशी चली गयी. मुझे देख कर राज शर्मा मुस्कुरा दिया. मैं भी मुस्कुराते हुए उसके पास पहुँची.

"कैसे हो" मैने पूछा.

"तुम्हें देख लिया बस तबीयत अच्छी हो गयी." राज शर्मा मुस्कुरा रहा था. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. दो बार के मिलन के बाद अब मैं भी उससे थोड़ा अभ्यस्त हो गयी थी. मैं उसका टेंपरेचर देखने के बहाने से उसके बालों मे अपनी उंगलियाँ फिराने लगी.

"मुझ पर इतना खर्चा क्यों किया डॉक्टर.." राज शर्मा ने पूछा.

" राधा. राधा नाम है मेरा. मुझे ये नाम अच्छा लगता है. तुम कम से कम मुझे इसी नाम से पुकरोगे." मैं उसके बिस्तर पर उसके पास बैठ गयी.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा मैं जान बूझ कर उसके सीने से लग गयी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुलिया.

"धन्यवाद र….राधा" उसने धीरे से कहा.

मेरा पूरा बदन थर थारा रहा था. मैने भी अपने होंठ उसके होंठ से सटा दिए और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगी.

तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. मजबूरन मुझे उससे अलग होना पड़ा. मैने जल्दी जल्दी अपने कपड़े ठीक किए.

"मैं कल आऔन्गि" मैने उसके कानो मे धीरे से कहा और दरवाजा खोल दिया. एक नर्स खाना लेकर आई थी.

मजबूरन मुझे वहाँ से जाना पड़ा. लेकिन जाने से पहले मैने उससे कह दिया कि कल से शाम को मैं उसके लिए घर से खाना लेकर आया करूँगी.

अगले दिन शाम को बड़े जतन से मैने हम दोनो का खाना तैयार किया और शाम को उसके उसके कॅबिन मे पहुँची. नर्स मुझे देख कर मुस्कुरा दी. शायद उसे भी दाल मे कुछ क़ाला नज़र आने लगा था. वो हम दोनो को अकेला छोड़ कर वहाँ से चली गयी. मैं उसके बेड पर आ कर बैठी और टिफिन खोल कर हम दोनो का एक ही थाली मे खाना लगाया. वो मुझे अपनी बाहों मे भर कर चूमना चाहता था लेकिन मैने उसके इरादों को सफल नही होने दिया.

क्रमशः........................
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Re: राधा का राज

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राधा का राज --2

गातांक से आगे....................

"अभी कुछ नही. पहले खाना खा लो. तुम्हे लगी हो ना हो मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लग रही है." वो मेरी बातें सुन कर हंस दिया. मैने उसके बदन को सहारा देकर सिरहाने पर कुछ उठाया. इस कोशिश मे मैं उसके बदन से लिपट गयी. उसके बदन की खुश्बू मेरे दिल तक उतर गयी थी. मैं एक कौर उसको खिलाती तो दूसरा कौर खुद खाती.

खाना ख़तम करके मैने अपने हाथ धोए और फिर राज शर्मा का मुँह पोंच्छ कर उसको पानी पिलाने लगी. राज शर्मा पानी पीकर मेरे हाथ से ग्लास लेकर साइड के टेबल पर रख दिया. और मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया. मैं भी तो इसी छन का इंतेज़ार कर रही थी. मैं भी उसके बदन से किसी लता की तरह लिपट गयी.

मेरे होंठों को चूमते हुए उसके हाथ मेरी चुचियों पर आगए. ऐसा लगा जैसे इन्हीं हाथों के चुअन के लिए मैं आज तक तड़प रही थी. मैने उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर अपनी चुचियों को हल्के से दबा कर उसे अपनी सहमति जताई. वो मेरी चुचियों को दबाने लगा. मेरे हाथ चादर के अंदर घुस कर उसके सीने को सहलाने लगे. मैं उसकी बलिष्ठ छाती पर अपने हाथ फिरा रही थी. मैने अपना हाथ नीचे लाकर कुछ च्छुआ तो चौंक उठी. आज वो पयज़ामा पहन रखा था. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी.

"ये इसलिए कि तुम्हारे अलावा किसी और की पहुँच मेरे बदन तक ना हो."

मेरे हाथ उसके पयज़ामे के नाडे से उलझे हुए थे. मैने नडा खोल कर हाथ को अंदर डाल दिया. उसका लंड मेरे हाथ की चुअन से फुंफ़कार उठा. मैं उसे बाहर निकाल कर सहलाने लगी. मैं अपने हाथों से उसके लंड को सहलाने लगी बीच बीच मे उसके नीचे की दोनो गेंदों को भी सहला देती. वो काफ़ी उत्तेजित था कुछ ही देर मे उसका बदन एंथने लगा और उसने मेरे हाथों को अपने वीर्य से भर दिया. मेरे हाथ फिर उसके वीर्य से सन गये. वो मेरी चुचियों से खेल रहा था. मैं हाथ बाहर निकाल कर उसके सामने ही अपनी जीभ से उसके वीर्य को चाटने लगी. हाथ मे लगे उसके सारे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया.

"कैसा लगा?" राज शर्मा ने पूचछा.

"टेस्टी है. बहुत अच्छा लगा. अब तुम सो जाओ. नर्स के लौटने का समय हो गया है. मैं चलती हूँ." मैने जल्दी से अपने कपड़े सही किए. आधा घंटा हो चुका था. नर्स किसी भी वक़्त लौट सकती थी. मैं जाने को मूडी तो उसने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे रोका.

"नही राज शर्मा मुझे जाना ही पड़ेगा. नही तो पूरे हॉस्पिटल मे सब मुझ पर हँसने लगेंगे" मैने उसकी पकड़ से अपनी बाँह छुड़ानी चाही.

"ठीक है लेकिन जाने से पहले एक ….." कह कर उसने अपने होंठ उपर की ओर कर दिए. मैने उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसे एक गहरा चुंबन दिया और उस कमरे से निकल गयी.

अगले दिन नर्स को खाने पर भेज कर मैने कुण्डी बंद कर ली. जैसे ही मैं राज शर्मा के पास आई उसने मेरे चेहरे को चूम चूम कर लाल कर दिया. मैं खाने का टिफिन एक ओर रख कर उसके सीने से लग गयी. उसके बदन से चादर को पूरी तरह हटा दिया और उसके पयज़ामे को खोल कर उसका लंड निकाल लिया. उसका लंड एक दम तना हुआ था. मैने झट से उसके लंड के टिप पर अपने होंठों से एक चुंबन जड़ दिया.

इस बार उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुका दिया. मैं ने शरारत से होंठ भींच लिए. वो लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा. होंठ उसके वीर्य से गीले होगये. कुछ देर बाद मैने अपने होंठ खोल कर उसका लंड अपने मुँह मे ले लिया. पहले धीरे धीरे और बाद मे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर भींचने लगा. काफ़ी देर तक मुख मैंतुन करने के वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर सख्ती से दबा दिया. उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ मेरे गले के अंदर प्रवेश कर गया. उसका लंड फूलने लगा था. मैं साँस लेने के लिए च्चटपटा रही थी. तभी ऐसा लगा जैसे उसके लंड से गरम गरम लावा निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे प्रवेश कर रहा है. मैने सिर को थोडा बाहर की ओर खींचा. पूरा मुह्न उसके वीर्य से भर गया था. होंठों के कोनो से वीर्य बाहर चू रहा था. पूरा वीर्य निकल जाने के बाद ही उसने मेरे सिर को छोड़ा. मैने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य अंदर गटक लिया. उसने मेरे होंठों के कोरों से टपकते वीर्य को अपनी चादर से पोंच्छ दिया.

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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: राधा का राज

Post by jay »

अचानक मेरी नज़र अपने रिस्ट . पर पड़ी. काफ़ी टाइम हो चुका था. मैने दौड़ कर बाथरूम मे जाकर अपना मुँह धोया. वहीं पर आईने के सामने अपने बाल & और कपड़े सही कर के लौटी.

" ऐसा लगता है तुम किसी दिन मुझे मार ही दोगे." कहकर मैं उस से लिपट कर उसके होंठों को चूम ली.

"बहुत दर्द कर रहा है गले मे. तुम कितने गंदे हो. इस तरह कभी मुँह मे डालते हैं?" मैं उसके सीने से सटी हुई बोली. वो हंसता हुआ मेरे गले को और गालो को सहलाने लगा. इतना सुकून मुझे आज तक कभी नही आया था.

फिर हम दोनो एक दूसरे को खाना खिलाए. थोड़ी देर मे नर्स आ गई थी. उसके दरवाजे को खटखटाते ही मैं कमरे से बाहर निकल गयी.

इसी तरह रोज जब भी मौका मिलता मैं लोगों की नज़रों से बचा कर अपने महबूब से मिलती रही. हम एक दूसरे को चूमते, सहलाते और प्यार करते थे. वो मेरे बूब्स को खूब मसलता था, मेरी निपल्स को खींचता और मसलता था. मैं रोज मुख मैंतुन से उसका निकाल देती थी. उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था. वो मुझे खींच कर अपने उपर लिटा लेता और मेरे पेटिकोट के अंदर हाथ डालकर मेरी पॅंटी को खिसका कर मेरी योनि को सहलाने लगता. बीच बीच मे मेरी योनि मे भी उंगली डाल कर उस से ज़्यादा हम वहाँ कुछ कर भी नहीं पाते थे. पकड़े जाने और बदनामी का डर जो था.

धीरे उसकी टाँग ठीक हो गयी. उसे मैं अपने कंधे का सहारा देकर कमरे मे ही चलाती. वो किसी नर्स की मदद लेने से मना कर देता था. तभी अचानक मेरी तबीयत एकदम से खराब हो गयी. विराल फीवर हुआ था. काफ़ी तेज बुखार चढ़ता था. दो तीन दिन तो मैं बिस्तर से ही नही हिल पाई थी. जब कुछ ठीक हुई तो मैं हल्के बुखार मे भी हॉस्पिटल पहुँची.

मैं सीधे राज शर्मा के कॅबिन मे पहुँचा. मुझे पता था कि वो मुझ पर नाराज़ होने वाला है. इतने दिनो से मिल जो नही पाई थी उससे. किसी के हाथ खबर भी नही भिजवा पाई क्योंकि इसके लिए उसे सब कुछ बताना पड़ता जो कि मैं नही चाहती थी.

लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची तो कमरा खाली पाया. पूच्छने पर पता लगा कि उसको डिसचार्ज कर दिया गया है. मैने कमरे मे उसके हिस्टरी शीट मे सब जगह उसका पता जानने की कॉसिश की मगर कुछ पता नहीं लगा. मेरी हालत पागलो जैसी हो गयी थी जिससे मन लगाया वोई मेरी बेवकूफी के कारण मुझसे दूर हो गया था. मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था की इतने दिनो साथ रहे मगर कभी उसका पता नही पूछा. मैने उसे हर जगह ढूँढा. मगर वो तो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह की रोशनी मे ढूँढ गायब हो जाती है.

मैं जिंदगी मे पहली बार किसी पराए लड़के से बिच्छुड़ने पर रोई थी. मेरी सहेली रचना जो मेरे साथ क्वॉर्टर शेर करती थी, उसने भी काफ़ी खोदने की कोशिश की मगर मैने किसी को भी कुछ नहीं बताया. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी से प्यार किया था. वो जैसा भी था मुझे अच्छा लगता था.

वो ग़रीब था लेकिन उसमे कुछ बात थी जो उसे सबसे अलग करती थी. कुछ हो ना हो मैं तो उस से प्यार करने लगी थी. किसी ने सच ही कहा है दिल किसी रूल को नही मानता. उसके अपने अलग ही उसूल होते हैं. घरवाले परेशान कर रहे थे शादी के लिए. मेरे पेरेंट्स आज़ाद ख़यालों के थे इसलिए उन्हों ने कह दिया था कि मैं जिसे चाहे पसंद करके शादी कर लूँ. कभी कभी मैं सोचती कि क्या वो भी मुझे चाहता होगा? या मैं ही उससे एक तरफ़ा प्यार करने लगी थी. शायद उसे तो मेरे बदन से खेलने मे अच्छा लगता था इसलिए उसने मुझे उसे किया. नही तो इतने दिनो मे एक बार तो कभी भूल से ही सही अपने प्यार का इज़हार करता. मैं तो उसके मुँह से प्यार के बोल सुनने को तरसती थी.

अगर वो मुझे पसंद करता था तो फिर वो कभी दोबारा मुझसे मिला क्यों नहीं. धीरे धीरे सिक्स मंत्स गुजर गये उस मुलाकात को. मैने अपने दिल को मना लिया था. मैं मानने लगी थी कि शायद मेरी किस्मेत मे कोई है ही नही. मैने घर वालों को भी सॉफ सॉफ कह दिया था कि मुझे बार बार परेशान नही करे. मुझे किसी से शादी नही करना है. वापस वही हॉस्पिटल और वो कमरा बस इसी मे बँध गयी थी. हां जब कभी मैं उस कॅबिन के सामने से गुजरती तो लोगों की नज़रों से बच कर एक बार अंदर ज़रूर झाँक लेती. क्यों?....नही मालूम. शायद दिल को अभी भी आशा थी कि राज शर्मा फिर मुझे उस कॅबिन मे मिल जाएगा.

फिर अचानक ही वो मिला. मैं तो उम्मीद हार् चुकी थी. लेकिन वो मिला…..वो जब मिला तो मुझे दिए तले अंधेरा वाली बात याद आई. एक दिन मैं हॉस्पिटल के लिए निकली तो अचानक मुझे एक जाना –पहचाना चेहरा हॉस्पिटल के सामने के बगीचे मे काम करता हुआ नज़र आया. मेरे सामने उसकी पीठ थी. वो पोधो पर झुका हुआ उनकी कटिंग कर रहा था. पीछे से वो मुझे काफ़ी जाना पहचाना लग रहा था.
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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