Hindi stori--मौसी का गुलाम compleet

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rajsharma
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Re: मौसी का गुलाम

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मौसी का गुलाम---5

गतान्क से आगे………………………….

मौसी का स्खलन होने के बाद जब वह शांत हुई तो वायदे के अनुसार पट होकर पलंग पर लेट गई अपने मोटे नितंब हिला हिला कर उसने मुझे दावत दी "ले राज, जो करना है वह कर मेरे चूतडो के साथ यह अब तेरे हैं बेटे"

मैं कुछ देर तक तो उन तरबूजों जैसे विशाल गोरे चिकने नितंबों को देखता रहा, फिर मैं उनपर टूट पड़ा मन भर के मैंने उन्हें दबाया, मसला, चूमा, चाटा और आख़िर में मौसी के गुदा द्वार पर मुँह लगाकर उस कोमल छेद को चूसने लगा, यहाँ तक कि मैंने उसमें अपनी जीभ भी डाल दी गान्ड का स्वाद और गंध इतनी मादक थी कि मैं और काबू ना कर पाया और मौसी पर चढ बैठा

अपने लंड के सुपाडे को मैंने उस छेद पर रखा और ज़ोर से पेला मुझे लगा कि गान्ड के छेद में लंड जाने में कुछ कठिनाई होगी पर मेरा लंड बड़े प्यार से मौसी की गान्ड में समा गया अंदर से मौसी की गान्ड इतनी मुलायम और चिकनी थी और इतनी तपी हुई थी कि जब तक मैं ठीक से मौसी के शरीर पर लेट कर उसकी गान्ड मारने की तैयारी करता, मैं करीब करीब झडने को आ गया बस तीन चार धक्के ही लगा पाया और स्खलित हो गया इतना सुखद अनुभव था कि मैं मौसी की पीठ पर पड़ा पड़ा सिसकने लगा, कुछ सुख से और कुछ इस निराशा से कि इतनी मेहनत के बाद जब गान्ड मारने का मौका मिला तो उस का पूरा मज़ा नहीं ले पाया

शन्नो मौसी मेरी परेशानी समझ गई और बड़े प्यार से उसने मुझे सांत्वना दी अपने गुदा की पेशियों से मेरा झडा लंड कस कर पकड़ लिया और बोली "बेटे, रो मत, मैं तुझे उतरने को थोड़े कहा रही हूँ! अभी फिर से खड़ा हो जाएगा तेरा लंड, आख़िर इतना जवान लडका है, तब जी भर कर गान्ड मार लेना"

मेरा कुछ ढाढस बाँधा क्योंकि मैं डर रहा था कि मौसी अब फिर रात तक गान्ड नहीं मारने देगी और फिर से मुझसे चुनमूनियाँ चुसवाने में लग जाएगी मैंने प्यार से मौसी की पीठ चूमी और पड़ा पड़ा अपना लंड मुठिया कर फिर खड़ा करने की कोशिश करने लगा मौसी ने प्यार से मुझे उलाहना दिया "लेटे लेटे मौसी के मम्मे तो दबा सकता है ना मेरा प्यारा भांजा? बड़ी गुदगुदी हो रही है छातियों में, ज़रा मसल दे बेटे"

शर्मा कर मैंने अपने हाथ मौसी के शरीर के इर्द गिर्द लपेटे और उसके मोटे मोटे स्तन हथेलियों में ले लिए उन्हें दबाता हुआ मैं धीरे धीरे मौसी की गान्ड में लंड उचकाने लगा मौसी के निपल धीरे धीरे कठोर होकर खड़े हो गये और मौसी भी मस्ती से चहकने लगी मेरा लंड अब तेज़ी से खड़ा हो रहा था और अपने आप मौसी के गुदा की गहराई में घुस रहा था

शन्नो मौसी ने भी अपनी गान्ड के छल्ले से उसे कस के पकड़ा और गाय के थन जैसा दुहने लगी पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्योंकि इस बार मैं खूब देर तक उसकी गान्ड मारना चाहता था अब मौसी ही इतनी गरम हो गई की मुझे डाँट कर बोली "राज, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गान्ड चोद डाल उसे"

मौसी की आज मन कर मैंने उसकी गान्ड मारना शुरू कर दी धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढाता गया और जल्दी ही उचक उचक कर पूरे ज़ोर से उसके चुतडो में अपना लंड पेलने लगा मौसी भी अपनी उत्तेजना में चिल्ला चिल्ला कर मुझे बढ़ावा देने लगी "मार जोरसे मौसी की गान्ड, राज बेटे, हचक हचक के मार मेरे मम्मे कुचल डाल, उन्हें दबा दबा कर पिलपिला कर दे मेरे बच्चे फाड़ दे मेरे चुतडो का छेद, खोल दे उसे पूरा"

मैंने अपना पूरा ज़ोर लगाया और इस बुरी तरह से उसकी गान्ड मारी कि मौसी का पूरा शरीर मेरे धक्कों से हिलने लगा पलंग भी चरमराने लगा आख़िर मैं एक चीख के साथ झडा और लस्त होकर मौसी की पीठ पर ही ढेर हो गया

मौसी अभी भी पूरी गरम थी वह गान्ड उचकाती हुई मेरे झडे लंड से भी मराने की कोशिश करती रही जब उसने देखा कि मैं शांत हो गया हूँ और लंड ज़रा सा हो गया है तो उसने तपाक से मेरा लंड खींच कर अपनी गुदा से निकाला और उठ बैठी मुझे पलंग पर पटक कर उसने मेरे सिर के नीचे एक तकिया रखा और फिर मेरे चेहरे पर बैठ गई अपनी चुनमूनियाँ उसने मेरे मुँह पर जमा दी और फिर उछल उछल कर मेरे होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

सारे दिन हम इसी तरह से काम क्रीडा करते रहे मेरा इनाम देने के बाद मौसी ने उसे मुझसे पूरा वसूला और दिन भर अपनी चुनमूनियाँ चुसवाई कभी खड़े होकर, कभी लेट कर कभी पीछे से कुतिया जैसी पोज़ीशन में रात को आख़िर उसने मुझे फिर से एक बार चोदने दिया और फिर हम थक कर सो गए

अगले कुछ दिन तो मेरे लिए स्वर्ग से थे मौसी ने पहले तो मुझे दिन दिन भर बिना झडे लंड खड़ा रखना सिखाया इसके बाद वह मुझसे खूब सेवा करवाती जब वह खाना बनाती तो मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसके मम्मे दबाता कभी कभी मैं पीछे बैठकर उसकी साड़ी उठाकर उसकी गान्ड चूसा करता था मूड हो तो मौसी मुझे अपने आगे बिठा कर साड़ी उठाकर मेरे सिर पर डाल देती और फिर मुझसे चुनमूनियाँ चुसवाते हुए आराम से चपातियाँ बनाती

मौसी अब अक्सर मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे उपर चढ कर मुझे चोदती मेरे पेट पर बैठे बैठे वह उछल उछल कर मुझे चोदती और मैं उसकी चुचियाँ दबाता उछलते उछलते मौसी का मंगलसूत्र उसके स्तनों के साथ डोलाता तो मुझे बहुत अच्छा लगता इस आसन में मैं उसके पैर चूमने का अपना शौक भी पूरा करने लगा मुझे चोदते चोदते मौसी अपने पैर उठाकर मेरे चेहरे पर रख देती और मैं उसके तलवे, आइडियाँ और उंगलियाँ चाटा और चूसा करता

और दिन में कम से कम एक बार वह मुझे गान्ड मारने देती अगर मैं उसकी ठीक से सेवा करता इस एक इनाम के लिए ही मैं मानों उसका गुलाम हो गया था

मौसी का पसीना भी मुझे बहुत मादक लगता था यह ऐसे शुरू हुआ कि एक दिन बिजली नहीं थी और मैं मौसी को चोद रहा था मौसी को बड़ा पसीना आ रहा था और उसे चूमते समय मैं बार बार उसके गालों और माथे को चाट लेता था अचानक मुझे उसकी कांखो का ख्याल आया और मैं बोला "मौसी, अपनी बाँहें सिर के उपर कर लो ना" उसने गान्ड उछालते उछालते पूछा "क्यों बेटे?"

मैं बोला "आप की कांख के बालों को चूमने का मन कर रहा है पसीने से भीगे होंगे" मौसी को मेरी इस हरामीपन की बात पर मज़ा आ गया और उसने तुरंत बाँहें उपर कर लीं उन घने काले बालों को देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया और उनमें मुँह डाल कर मैं उन्हें चाटने और फिर मुँह मे बाल ले कर चूसने लगा खारा खारा पसीना मुझे इतना भाया कि मेरा लंड तन्नाकार और खड़ा हो गया मेरे चोदने की गति भी बढ़ गई और मैंने उसे इतनी ज़ोर से चोदा की जैसे शायद मौसाजी भी नहीं चोदते होंगे

मौसी को उस दिन जो कामसुख मिला उसके कारण वह हमेशा मुझसे कांखें चटवाने की ताक में रहने लगी"राज राजा, मेरे प्यारे मुन्ना, कितनी ज़ोर से चोदा मुझे आज तूने, बिलकुल तेरे मौसाजी की तरह मेरी कमर लचका कर रख दी अब तुझसे ज़ोर ज़ोर से चुदवाना या गान्ड मराना हो तो पहले अपनी कांख का पसीना चटवाऊम्गी तुझे"

मौसी के यहाँ मैं दो महने रहा और बहुत कुकर्म किए कुछ दिन बाद की बात है मौसाजी अभी वापस नहीं आए थे और मैं मौसी के साथ अकेला ही रह रहा था हमारी चुदाई दिन रात जोरों से चल रही थी

एक दिन जब हम खाना खा रहे थे तो फ़ोन की घंटी बजी फ़ोन उठाते ही मौसी के चेहरे पर एक आनंद की लहर दौड गई उसने फ़ोन पर ही चुम्मे की आवाज़ की और बड़े प्यार से पूछा "उम्म्म, डॉली डार्लिंग, तू कहाँ थी? एक हफ्ते के लिए गयी थी और आज एक महना हो गया!"

कुछ देर डॉली की बात सुनने के बाद वह गुस्से से बोली "क्या? तू कल फिर जा रही है? फिर मुझसे, अपनी प्यारी दीदी से नहीं मिलेगी क्या?" डॉली की सफाई कुछ देर सुनने के बाद बीच में ही बात काट कर वह और गरम होकर चिल्लाई "आज दोपहर भर मेरे साथ नहीं रही तो तेरी मेरी दोस्ती खतम बात भी मत करना फिर मुझसे"

मौसी ने गुस्से से फ़ोन पटक दिया कुछ देर बाद शांत होकर वह मुस्कराने लगी मैंने पूछा तो बोली "मेरी गर्ल फ्रेन्ड डॉली का फ़ोन था कहती है बहुत बीज़ी है और कल फिर यू एस जा रही है बिना मिले ही भागने वाली थी पर मैंने धमकाया तो कैसे भी करके आज दोपहर आएगी ज़रूर"

मेरे आग्रह पर मौसी ने पूरी कहानी सुनाई औरतों के आपस के कामसंबंध के बारे में यह बड़ा रसीला उदाहरण था डॉली एक साफ्टवेअर इंजीनियर थी मौसी से उसकी मुलाकात एक पार्टी में हुई थी तब मौसी घर में अकेली ही थी क्योंकि मौसाजी दौरे पर गये थे मौसी और डॉली के बीच पहली मुलाकात में ही एक घनी दोस्ती हो गयी मौसी ने यह भी भाँप लिया कि डॉली बार बार उसे ऐसे देख रही थे जैसे उसपर मर मिटी हो उसकी आँखों मे झलकती वासना भी मौसी ने पहचान ली थी

मौसी ने डॉली को दूसरे दिन रात के डिनर पर बुला लिया और डॉली ने यह निमम्त्रण बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया डिनर खतम होते होते दोनों एक दूसरे से ऐसी बंधीं क़ि सीधा बेडरूम में चली गईं रात भर डॉली वहाँ रही और उस रात उनमें जो कामक्रीडा शुरू हुई, आज तक उसका क्रम टूटा नहीं था

मौसी को पता चला कि डॉली एक लेस्बियन थी पुरुषों से उसे नफ़रत थी और इसीलिए छब्बीस साल की होने के बावजूद उसने शादी नहीं की थी और ना करने का इरादा था उसे दूसरी औरतें बहुत आकर्षित करती थीं, ख़ास कर उम्र में बड़ी, भरे पूरे बदन की अम्मा या आँटी टाइप की औरतें चालीस साल होने को आई हुई मौसी और उसका मांसल शरीर तो मानों उसे ऐसे लगे कि भगवान ने उसकी इच्छा सुन ली हो उनका कामसंबंध पिछले साल से जो शुरू हुआ वह आज तक कायम था और बढ़ता ही जा रहा था डॉली मौसी को कभी दीदी कहती तो कभी मामी, ख़ास कर संभोग के समय

मौसी ने हँसते हुए यह भी बताया कि काफ़ी बार मौसी की बाँहों में डॉली यह कल्पना करती कि वह अपनी माँ के आगोश में है और उससे कामक्रीडा कर रही है डॉली को अक्सर बाहर जाना पड़ता पर जब भी वह शहर में होती और मौसाजी दौरे पर होते, तब वह मौसी के यहाँ रहने को चली आती और दोनों एक दूसरे के शरीर का भरपूर आनंद उठाते आज डॉली आने वाली नहीं थी पर मौसी के धमकाने से घबराकर आने का वायदा ज़रूर निभाएगी ऐसा मौसी का विश्वास था

क्रमशः……………………
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Re: मौसी का गुलाम

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मौसी का गुलाम---6

गतान्क से आगे………………………….

स्त्री - स्त्री संभोग की यह कहानी सुनते सुनते मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया मौसी ने देखा तो हँसने लगी बोली "बेटे, आज तेरी नहीं चलेगी, डॉली तो बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि कोई पुरुष हमारे बीच में आए, भले ही वह तेरे जैसा प्यारा कमसिन किशोर ही क्यों ना हो अगर उसे पता चला की तू यहाँ है तो वह शायद रुकने को भी तैयार नहीं होगी"

मुझे बड़ा बुरा लगा एक तो उस सुंदर युवती के साथ संभोग का मेरा सपना टूट गया, दूसरे यह कि मेरे कारण मौसी की अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ चुदाई भी खट्टे में ना पड जाए

मौसी ने मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो मुझे ढाढस बँधाती हुई बोली "तू फिकर मत कर बेटे, तू दूसरे कमरे में रहना दोनों कमरों के बीच एक आईना है मेरे कमरे में से वह आईना लगता है पर दूसरे कमरे में से उसमें से सब सॉफ दिखता है तू आराम से मज़ा लेना हाँ, एक बात यह कि तेरे हाथ-पैर और मुँह मैं बाँध दूँगी अगर अनजाने में कोई आवाज़ की तो सब खटाई में पड जाएगा और दूसरे यह कि उस मस्त छोकरी के रूप को देखने के बाद तू ज़रूर मुठ्ठ मारेगा और यह मैं नहीं होने दूँगी, तेरा लंड मैं अपने लिए बचा कर रखूँगी"

शन्नो मौसी ने फटाफट टेबल और किचन सॉफ किया और मुझे दूसरे कमरे में ले गई यहाँ उसने मुझे उस एक तरफे आईने के सामने (वॅन-वे-मिरर) एक कुर्सी में बिठाया और फिर मेरे हाथ पैर कस के कुर्सी से बाँध दिए फिर धोने के कपड़ों में से अपनी एक मैली ब्रेसियर और पैंटी उठा लाई और मुझसे मुँह खोलने को कहा मुँह में वह ब्रा और चड्डी ठूँसने के बाद उसने एक और ब्रेसियर से मेरे मुँह पर पट्टी बाँध दी

यह करते हुए मेरे थरथराते लंड को देखकर वह दुष्टा हँस रही थी क्योंकि उसे मालूम था कि उसके शरीर की सुगंध और पसीने से सराबोर उन पहने हुए अंतर्वस्त्रों का मुझ पर क्या असर होगा जानबूझकर मुझे उत्तेजित करने और मेरा लंड तन्नाने के लिए उसने ऐसा किया था पूरी तरह मेरी मुश्कें बाँधने के बाद मौसी ने मुझे प्यार से चूमा और दरवाजा लगाती हुई अपने कमरे में तैयार होने को चली गई उसका सजना संवरना मुझे साफ साफ काँच में से दिख रहा था

मौसी ने अपनी डॉली रानी के लिए बड़े मन से तैयारी की नंगी होकर पहले एक कसी हुई काली ब्रेसियार और पैंटी पहनी जो उसके गोरे गदराए बदन पर गजब ढा रही थी, फिर एक साड़ी सफेद साड़ी और लंबे बाहों का अम्मा स्टाइल का ब्लओज़ पहना मेकअप बिल्कुल नहीं किया पर माथे पर एक बड़ी बिंदी लगाई अपने घने बाल जूडे में बाँधे और उसमें गजरा पहना आख़िर में अपनी कलाई में बहुत सी चूड़ियाँ पहन लीं; अब वह एक आकर्षक मध्यम आयु की असली भारतीया नारी लग रही थी मैं समझ गया कि ऐसा उसने डॉली की माँ की चाहत को पूरा करने के लिए किया है

तभी डोरबेल बजी ओर मेरी ओर देख कर मुस्करा कर मौसी ने मुझे आँख मारी कि तैयार रह तमाशा देखने के लिए और कमरे के बाहर चली गई, दरवाजा खोलने के लिए

मुझे हँसने और खिलखिलाने की आवाज़ें आईं और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिए जाने के स्वर भी सुनाई दिए कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई वह युवती इतने ज़ोर ज़ोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखडा जाती थी "अरे बस बस, कितना चूमेगी, ज़रा साँस तो लेने दे" मौसी ने भी डॉली को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाए बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही

शन्नो मौसी ने किसी तरह से दरवाजा लगाया और फिर तो डॉली मौसी पर किसी वासना की प्यासी औरत जैसी झपट पडी और मौसी के कपड़े नोचने लगी डॉली को मैंने अब मन भर कर देखा वह एक लंबी छरहरे बदन की गोरी सुंदर लड़की थी और जीन और एक टीशर्ट पहने हुए थी अपने रेशमी बॉबी कट बाल उसने कंधे पर खुले छोड़ रखे थे टाइट टीशर्ट में से उसके कसे जवान उरोजो का उभार सॉफ दिख रहा था उसने मौसी की एक ना सुनी और उसकी साड़ी और ब्लओज़ उतारने में लग गयी शन्नो मौसी ने खिलखिलाते हुए कहा "अरे ज़रा ठीक से कपड़े तो उतारने दे बेटी और तू भी उतार ले"

डॉली को बिलकुल धीर नहीं था "मामी, पहले अपनी चूत चुसाओ, फिर बाकी बातें होंगी" ऐसा कहते हुए उसने मौसी को पलंग पर धकेला और फिर मौसी की साड़ी उपर करके खींच कर उसकी चड्डी उतार दी "क्या दीदी, पैंटी क्यों पहनी, मेरा एक मिनट और गया" कहकर उसने मौसी की टाँगों के बीच अपना सिर घुसेड दिया जल्दी ही चूसने और चाटने की आवाज़ें आने लगीं मौसी सिसकारी भरते हुए बोली "अरी पगली, मेरी प्यारी बेटी, तेरी मनपसंद काली ब्रा और पैंटी पहनी है, सोचा था कि धीरे धीरे कपड़े उतारकर तुझे मस्त करूँगी पर तू तो लगता है कब की भूखी है"

डॉली का सिर अब मौसी की मोटी मोटी गोरी जांघों के बीच जल्दी जल्दी उपर नीचे हो रहा और मौसी उसे हाथों में पकड़ कर डॉली के रेशमी बाल सहलाती हुई अपनी टाँगें फटकार रही थी दस मिनट यह कार्यक्रम चला और फिर मौसी तडप कर झड गई डॉली ने अपना मुँह जमा कर चुनमूनियाँ चूसना शुरू कर दिया और पाँच मिनट बाद तृप्त होकर अपने होंठ पोंछते हुए उठ बैठी वह अब किसी बिल्ली की तरह मुस्करा रही थी जिसे की मनपसंद चीज़ खाने को मिल गई हो
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Re: मौसी का गुलाम

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वह वासना की मारी युवती अब उठ कर अपने कपड़े उतारने लगी उसने जब जींस और टीशर्ट उतार फेका तो मेरा लंड मस्ती से उछल पड़ा डॉली ने एक गुलाबी रंग की लेस वाली बड़ी प्यारी ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो उसके गोरे चिकने बदन पर खूब खिल रही थी डॉली ने अब मौसी की साड़ी और ब्लओज़ निकाले और फिर ब्रा के हुक खोल कर खींच कर वह काली ब्रा भी अलग कर दी तब तक मौसी ने भी डॉली की ब्रेसियर और पैंटी उतार दी थी

दोनों औरतें अब एकदम नग्न थीं मौसी के मस्त मांसल बदन के जवाब में डॉली का छरहरा यौवन था मौसी की घनी काली झांतें थीं और उसके ठीक विपरीत डॉली की चिकनी चुनमूनियाँ पर एक भी बाल नहीं था पूरी शेव की हुई चुनमूनियाँ थी पहले तो खिलखिलाते हुए वे एक दूसरे से लिपट गईं और चूमा चाटी करने लगीं फिर पलंग पर चढ कर उन्होंने आगे की कामक्रीडा शुरू की

डॉली ने मौसी को पलंग पर लिटाया और खुद उसकी छाती के दोनों ओर घुटने टेक कर झुक कर तैयार हुई फिर सीधा अपनी चुनमूनियाँ को मौसी के मुँह पर जमा कर वह बैठ गई और उछल उछल कर मौसी का मुँह चोदते हुए अपनी चुनमूनियाँ चुसवाने लगी "माँ, मेरी मामी, अपनी बेटी की चुनमूनियाँ चूस लो, दिन भर से चू रही है हाय माँ हाय दीदी जीभ घुसेडो ना जैसे हमेशा करती हो" कहते हुए डॉली मदहोश होकर मौसी के सिर को अपनी मजबूत जांघों में जकडकर उसके होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी मौसी ने भी शायद उसे बड़ी खूबी से चूसा होगा क्योंकि पाँच ही मिनट में डॉली एक हल्की चीख के साथ स्खलित हो गई और लस्त होकर मौसी के शरीर पर ही पीछे लुढक गई

पर मौसी ने उसे नहीं छोड़ा और उसकी टाँगें पकडकर डॉली की चुनमूनियाँ चाटती रही झडी हुई डॉली को यह सहना नहीं हुआ और वह सिसक सिसक कर पैर फटकारती हुई छूटने की कोशिश करने लगी पर मेरी कामुक अनुभवी मौसी के सामने उसकी क्या चलती आख़िर जब वह दूसरी बार झडी और हाथ पैर पटकने लगी तब मौसी ने उसे छोड़ा डॉली पडी पडी हाँफती रही और शन्नो मौसी ने बड़े प्यार से उसकी जांघें और चुनमूनियाँ पर बह आए रस को चाट कर उन्हें बिलकुल सॉफ कर दिया फिर डॉली को बाँहों में भर कर प्यार करते हुए आराम से वह बिस्तर पर लेट गई

"लगता है, बहुत दिन से भूखी थी मेरी लाडली बेटी, तभी तो ऐसे मचल रही थी, और रस भी कितना निकला तेरी चुनमूनियाँ से !" मौसी ने लाड से कहा "हाँ दीदी, एक महना हो गया तुम से मिले उसके बाद सिर्फ़ रोज हस्तमैथुन से संतोष कर रही हूँ तुम्हारी चुनमूनियाँ का रस पीने के लिए मरी जा रही थी कब से"

मौसी ने हँसकर बड़े दुलार से डॉली को चुम्मा लिया और डॉली ने भी बड़े प्यार से मौसी का चुम्मा लौटाया मौसी पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गई और डॉली को गोद में लेकर प्यार करने लगी बिलकुल ऐसा नज़ारा था जैसे हमेशा माँ बेटी के बीच दिखता है, फ़र्क यही था कि यहाँ बेटी छोटी बच्ची ना होकर एक युवती थी और माँ बेटी दोनों नंगी और उत्तेजित थीं मौसी ने बड़े प्यार से हौले हौले डॉली के गाल, नाक, आँखें और होंठ चूमे और उससे पूछा "डॉली बेटी, अपनी माँ को अपना मीठा प्यारा मुँह चूमने नहीं देगी? ठीक से, पूरे रस के साथ?"

डॉली ने सिसककर अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने रसीले गुलाबी होंठ खोल कर अपनी लाल लाल लोलीपोप जैसी जीभ बाहर निकाल दी शन्नो मौसी के होंठ खुले और उसकी जीभ निकालकर डॉली की जीभ से अठखेलियाँ करने लगी आख़िर मौसी ने अपनी जीभ से धकेलकर डॉली की जीभ वापस उसके मुँह में डाल दी और फिर अपनी जीभ भी उस युवती के मुँह में घुसेड दी डॉली ने अपने होंठ बंद कारा के मौसी की जीभ अपने मुँह में पकड़ ली और चॉकलेट जैसे चूसने लगी यह चुंबन तो ऐसा था जैसे वे एक दूसरे को खाने की कोशिश कर रही हों पूरे दस मिनट बिना मुँह हटाए वे एक दूसरे के मुखरस का पान करती रहीं मैंने ऐसा चुंबन कभी नहीं देखा था और मेरा लंड ऐसा तन्नाया कि लगता था वासना से फट जाएगा

मौसी का हाथ सरककर धीरे धीरे डॉली की जांघों के बीच पहुँच गया अपनी दो उंगलियाँ मौसी ने डॉली की चुनमूनियाँ में डाल दीं और अंदर बाहर करने लगी दूसरे हाथ से वह डॉली की ठोस कड़ी चूची दबाने लगी डॉली ने भी ऐसा ही किया और मौसी की चुनमूनियाँ को अपनी उंगलियों से चोदने लगी अगले बीस पच्चीस मिनट चुपचाप उन दोनों सुंदर मादक औरतों का यह प्रणय चलता रहा

आख़िर तृप्त होकर दोनों शिथिल पड गईं और अलग होकर सुस्ताने लगीं मौसी ने अपनी उंगलियाँ चाटी और प्यार से डॉली को कहा "तेरा स्वाद तो दिन-बा-दिन मस्त होता जा रहा है मेरी जान, चल मुझे ठीक से तेरी चुनमूनियाँ चूसने दे" अपनी टाँगें खोल कर मौसी एक करवट पर लेट गई और डॉली ने उलटी तरफ से उसकी जांघों में सिर छुपा लिया दोनों का मनपसंद सिक्सटी-नाइन आसन शुरू हो गया

मौसी ने अपने हाथों में डॉली के गोल चिकने नितंब पकड़े और उसकी चुनमूनियाँ को अपने मुँह पर सटाकर चूसने लगी डॉली के काले बाल मौसी की गोरी जांघों पर फैले हुए थे उधर मौसी ने डॉली का सिर अपनी गुदाज जांघों में जकड रखा था और उसे अपनी चुनमूनियाँ चुसवाते हुए उसके लाल होंठों पर मुठ्ठ मार रही थी एक दूसरे के गुप्तांगों के रस का पान करते हुए वे अपनी साथिन के चुतड भी मसल और दबा रही थीं लगता है कि यहा दोनों का प्रिय आसन था क्योंकि बिना रुके घंटे भर यह चुनमूनियाँ चूसने की कामक्रीडा चलती रही

जब दोनों आख़िर तृप्त होकर उठीं तो शाम होने को थी डॉली के जाने का समय हो गया था कुछ देर वह शन्नो मौसी से लिपट कर उसकी मोटी मोटी लटकती छातियों में मुँह छुपाकर उनसे बच्चे जैसी खेलती हुई बैठी रही मौसी ने भी प्यार से अपना एक निपल उसके मुँह में दे दिया डॉली छोटी बच्ची जैसे आँखें बंद करके मौसी की चूची चूस रही थी और मौसी प्यार से बार बार उसकी आँखों की पलकों को चूम रही थी बड़ा ही मादक और भावनात्मक दृश्य था क्योंकि यह सॉफ था कि एक दूसरे के शरीर को वासना से भोगने के साथ साथ दोनों औरतें सच में एक दूसरे को बहुत प्यार करती थीं

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Re: मौसी का गुलाम

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मौसी का गुलाम---7

गतान्क से आगे………………………….

आख़िर मन मार कर डॉली उठी और कपड़े पहनने लगी बाल सँवार कर और जींस तथा टीशर्ट ठीकठाक कर जब वह निकलने लगी तो मौसी ने उसका चुम्मा लेते हुए पूछा"अब कब आएगी डॉली बेटी? फिर इतनी देर तो नहीं करेगी मेरी रानी?" डॉली ने मौसी से वायदा किया "नहीं मम्मी, बस अगले महने से मैं यहीं वापस आ रही हूँ, फिर एक महने की छुट्टियाँ ले लूँगी जब तेरे पति यहाँ नहीं होंगे फिर बोलो तो तेरे पास आकर ही रहूंगी"

मौसी ने मज़ाक में पूछा "क्यों रानी, कहो तो अपनी नौकरानी ललिता बाई को भी बुला लूँ रहने को?" और फिर हँसने लगी डॉली ने कानों को हाथ लगाते हुए कहा "माफ़ करो दीदी, तुम्हारी नौकरानी तुम्हे ही मुबारक, दुक्के पर तिक्का मत करो, मुझे तो बस तुम्हारी छातियों और जांघों में जगह दे दो, मुझे और कोई नहीं चाहिए" मुझे ललिता बाई का जोक कुछ समझ में नहीं आया पर बाद में सब पता चल गया यह भी बड़ी मीठी कहानी है, फिर कभी बताऊन्गा

डॉली चली गई और मौसी दरवाजा बंद कर के आ गई वह अभी भी पूरी नंगी थी मैं अब तक वासना से ऐसे तडप रहा था जैसे बिन पानी मछली मुँह से गोंगिया रहा था कहने की कोशिश कर रहा था कि मौसी अब दया कर मौसी ने जब मेरा हाल देखा तो बिना कुछ और कहे मेरे बंधन खोल दिए और मुँह खोल कर अपनी ब्रा और पैंटी निकाल ली उसे मैंने चूस चूस कर ऐसा सॉफ कर दिया था कि धुली सी लग रही थी

मौसी ने अब मेरे उपर एक और बड़ी दया की चुपचाप जाकर ओन्धे मुँह पलंग पर पट लेट गई और आँखें बंद कर लीं वह काफ़ी थकी हुई थी और उसकी चुनमूनियाँ भी चूस चूस कर बिलकुल ठम्डी हो गई थी इसलिए आँखें बंद किए किए ही मौसी बोली "राज बेटे, तू ने बड़ी देर राह देखी है, आ, मेरी गान्ड मार ले मन भर के जो चाहे कर ले मेरे चुतडो से, बस मेरी चुनमूनियाँ को छोड़ दे, मैं सोती हूँ, पर तू मन भर के मेरे शरीर को भोग ले"

यह तो मानों मेरे लिए वरदान जैसा था और मैंने उसका पूरा फ़ायदा उठाया मौसी पर चढ कर उसकी गान्ड मारने लगा पहली बार तो मैं पाँच मिनट में ही झड गया पर फिर भी मौसी पर चढा रहा दूसरी बार मज़े ले लेकर आधा घंटे तक उसकी गान्ड मारी और तब झडा

झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्ऱाटे ले रही थी पर मैंने और मज़ा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गान्ड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई गान्ड मारते हुए मैंने मौसी की चुचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली मौसी सोती ही रही आख़िर आधीरात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फिर ही सोया

मौसी के साथ गर्मी की छुट्टियो में मैंने अकेले में मस्त चुदाई शुरू कर दी थी मौसाजी तब दौरे पर थे मैंने मौसी से पूछा कि उसके और डॉली के बारे में क्या मौसाजी को मालूम है?

उसने हाँ कहा और पूरी बात बता दी "अरे तेरे मौसाजी भी कम नहीं हैं दूसरे शहर में उनके भी एक दो यार हैं जिनके साथ वे खूब मज़ा करते हैं हाँ सब पुरुष हैं किसी और औरत के साथ उनका संबंध नहीं है इसी तरह तेरे अलावा मैंने किसी और पुरुष से नहीं चुदवाया हाँ डॉली जैसी गर्ल फ्रेन्ड ज़रूर बना ली असल में हम दोनों बाई-सेक्सुअल हैं इसीलिए हमने शादी की और एक दूसरे पर कोई बंधन नहीं रखा है वैसे उन्हें यह भी मालूम है कि मैं तेरे साथ क्या कर रही हूँ मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था वे भी बोले की हाँ घर का ही प्यारा लडका है, मैं जो चाहे कर लूँ"

सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आया पर जब मौसाजी वापस आए तो मैं ज़रा उदास हो गया मुझे लगा कि अब मौसी के गदराए शरीर का भोग करना मेरे नसीब में नहीं है पर हुआ बिल्कुल उल्टा तीन शरीरों की जुगलबंदी शुरू हो गई

हुआ यह कि जब मौसाजी वापस आए तो उन्होंने ज़रा भी जाहिर नहीं किया कि उन्हें मेरे और मौसी के संबंध के बारे में मालूम है मैं भी चुप रहा उस रात मैं एक दूसरे कमरे में सोया बड़ी रात तक सोने की कोशिश कर रहा था रात को मौसी से संभोग की आदत हो जाने से मुझे अकेले नींद नहीं आ रही थी और इसलिए एक चुदाई की किताब पढ़ रहा था मौसाजी और मौसी अपने कमरे में थे वहाँ से हँसने खेलने की आवाज़ें आ रही थीं

अंत में लंड बुरी की तरह खड़ा हो गया मैं बस बत्ती बुझा कर मुठ्ठ मार कर सोने ही वाला था कि मौसी ने मुझे आवाज़ दी "राज, अकेला क्या कर रहा है बेटा? यहाँ आ जा"

मुझे समझ में नहीं आया कि आज की रात तो मौसी अपने पति की बाँहों मैं है तो मुझे क्यों कबाब में हड्डी बनाने को बुला रही है मैंने दरवाजा खटखटाया मौसी चिल्लाई "आ जा बेटे, दरवाजा खुला है"

मैं अंदर आया तो देखता ही रह गया आँखें फटी रहा गयीं और लंड और खड़ा हो गया रवि अंकल आराम कुर्सी में बैठे थे और मौसी उनकी गोद में बैठी थी दोनों मादरजात नंगे थे मौसी की टाँगें पसरी हुई थीं और मौसाजी का मोटा लंड मौसी की गुदा में जड तक धँसा हुआ था मौसाजी का एक हाथ अपनी पत्नी की चुनमूनियाँ में दो उंगलियाँ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से वे मौसी के मम्मे दबा रहे थे आपस में चूमा चाटी भी चल रही थी
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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