Hindi stori--मौसी का गुलाम compleet

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rajsharma
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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

इस दोहरी मार के आगे मेरा शरीर धीरे धीरे नीचे दबाता गया और इंच इंच करके वह मूसल भाले की तरह मेरी आँतों को चौड़ा करता हुआ मेरे चुतडो के बीच धँसने लगा अचानक मेरी गान्ड के मांसपेशियाँ जवाब दे गयीं और ढीली पड गयीं मैं धम्म से मौसाजी की गोद में बैठ गया जड तक उनका लंड मेरे चुतडो में था और उनकी झांतें मेरी गुदा को गुदगुदा रही थीं

मेरे आँसू निकल आए थे और मैं दर्द से बिलखता हुआ दबी आवाज़ में मौसी के मुँह में सिसक रहा था पर एक अभूतपूर्व सुख मेरे लंड को झनझना रहा था बीच बीच में मैं सिर घुमा कर बाजू के बड़े आईने में अपनी गान्ड में घुसते उस भाले को देखा रहा था और वह द्ऱुश्य बहुत ही मादक था

मौसाजी मुझे सूली पर चढाकर अब बिलकुल शांत हो गये और मुझे बहुत प्यार से बाहों में भींच कर चूमते हुए मेरी सांत्वना करने लगे पति पत्नी की जोड़ी अब मुझपर प्यार से भरे चुंबानों की बरसात करते हुए मुझे चुप कराने में लग गयी जब मेरा रोना बंद हो गया तो मौसी मेरे सामने ज़मीन पर बैठ कर मेरा शिश्न चूसने लगी और मौसाजी ने मेरे सिर को अपने हाथों में पकड कर अपनी ओर घुमाया और मेरे मुँह को चूमते हुए मेरे होंठ और जीभ चूसने लगे

सफल सूली अभियान के बाद अंकल गर्व से मुस्कराए और मौसी को वही वीडीओ लगाकर साथ बैठ कर मज़ा लेने को कहा आपस में एक दूसरे को चूमते हुए हम सब वही ब्लू फिल्म देखने लगे फिल्म बिलकुल हमारी रति जैसी ही थी, फरक इतना था कि एक लडके के बजाय एक कमसिन किशोरी अपने डैडी की सूली चढ रही थी वह एक परिवार प्यार या इन्सेस्ट की कथा थी और उसमें मियाँ बीवी मिलकर अपनी ही जवान किशोर बेटी को भोग रहे थे

जब फिल्म के आख़िर में मेरी ही तरह उस रोती चिल्लाती हुई किशोरी को अपने बाप की गोद में बैठकर लंड गान्ड के अंदर लेते हुए दिखाया गया तो मैं वासना से तडप उठा मेरे गुदा में ठुन्स कर भरा हुआ लंड अब मुझे बहुत आनंद दे रहा था अंकल भी धीरे धीरे लंड मुठिया रहे थे जिससे वह गान्ड के अंदर उपर नीचे होकर मुझे और मीठा तडपा रहा था

मुझे उन्होंने मेरे मचलते शिश्न को छूने भी नहीं दिया जिससे अपनी वासना शांत करने का मेरे पास और कोई चारा नहीं था इसके सिवाय कि बार बार मौसाजी और मौसी के मुँह और जीभ को बेतहाशा चूसू मेरे इन चुंबानों का उन्होंने खूब आनंद उठाया "अब समझ में आया बेटे, इसे मीठी सूली क्यों कहते हैं?" मौसी ने पूछा

उसकी चुनमूनियाँ अब ऐसे पसीज रही थी कि पानी बाहर बहने लगा था फिल्म का सूली का सीन खतम होने पर वह हमारे सामने खडी हो गयी और मेरा सिर खींच कर अपनी झांतों में मेरा मुँह दबा दिया मुझे उसने आदेश दिया कि उसकी चुनमूनियाँ चूसू और वह बड़ी खुशी से मैंने किया मेरे मुँह को वह चोदने लगी और मौसाजी उसके मम्मे दबाने लगे
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

उधर पिक्चर में उस किशोरी की अम्मा आखरी सीन में अपनी बेटी से चुनमूनियाँ चुसवा रही थी और उसके डैडी कुतिया स्टाइल मे उसकी गान्ड मार रहे थे पिक्चर खतम होने तक मौसाजी ने धीरज रखा फिर खिसका कर मुझे लिए वे फर्श पर आ गये जहाँ पहले ही शन्नो मौसी ने इस काम के लिए एक गद्दी बिछा रखी थी मुझे गद्दी पर लिटाकर वे मुझपर चढ गये और बेतहाशा मेरी गान्ड चोदने लगे

उनका लौडा अब बड़ी आसानी से मेरी मख्खन से चिकनी और फुकला हुई गान्ड में अंदर बाहर हो रहा था उस मोटे लंड और सूजे सुपाडे के घर्षण से मुझे असहनीय सुख मिल रहा था मेरे ख्याल से यही क्षण था जब मैं पूरा गान्डू बन गया इसके बाद मुझे कभी किसीसे गान्ड मराने में बहुत ज़्यादा दर्द नहीं हुआ

मौसी हमारे सामने लेट गई और अपने पति के सिर को अपनी जांघों में लेकर उनसे चुनमूनियाँ चुसवाने लगी पर उसे भी चुदवाने का मन हो रहा था इसलिए मौसाजी ने मेरी गान्ड मारना थोड़ी देर के लिए रोका और अपना लंड वैसे ही मेरी गान्ड में रहने देकर मुझे उठा लिया मौसी हमारे नीचे लेट गई और उन्होंने मुझे मौसी के उपर लिटा दिया मैंने अपना लंड मौसी की चुनमूनियाँ में घुसेडा और मौसी ने मुझे बाँहों मे भर लिया मौसाजी अब मेरे उपर लेट गये और फिर मेरी गान्ड मारने लगे

मेरा अब मस्त सैम्डविच बना गया था मियाँ बीवी के बीच दबा हुआ मैं मौसी को चोद रहा था और मौसाजी मुझे चोद रहे थे उनके धक्के इतने जबरदस्त थे कि मुझे धक्के देने की ज़रूरत ही नहीं थी जैसे उनका लंड मेरे चुतडो को फैलाता हुआ अंदर बाहर होता, अपने आप मेरी शिश्न मौसी की चुनमूनियाँ में अंदर बाहर चलता हम दोनों ने मौसी की एक एक चूची मुँह में ले ली और चूसते हुए चोदते रहे हमारा जो सामूहिक स्खलन हुआ उसे सिवाय स्वर्गिक आनंद के और कोई उपाधि नहीं दी जा सकती

कुछ समय बाद मेरे गुदा में से अपना झडा लंड खींच कर अंकल उठ बैठे मौसी के रस और मेरे वीर्य से लिपटे मेरे शिश्न को उन्होंने चूस डाला फिर झुक कर मौसी की चुनमूनियाँ के रस पर ताव मारने लगे उन्हें असल में उसमें से रसते वीर्य और चुनमूनियाँ रस का पान करना था जो उन्होंने मन भर कर किया अपना लंड उन्होंने मुझसे चुसवाकर सॉफ करवाया अपनी ही गान्ड में से निकला वह लंड चूसने में पहले मुझे कुछ अटपटा लगा पर फिर उस सौंधे स्वाद ने मेरी सब झिझक मिटा दी

कुछ देर बाद सुस्ता कर हम फिर शुरू हो गये दिन भर मेरी चुदाई चलती रही मेरी गान्ड से मौसाजी का मन ही नहीं भर रहा था

क्रमशः……………………
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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

मौसी का गुलाम---15

गतान्क से आगे………………………….

शाम को हम खाना खाने बाहर गये लौटकर आए और फिर एक दूसरे पर टूट पड़े मौसाजी ने अब एक नया आसन आजमाया

मुझे पलंग पर सीधा लिटा दिया गया मेरे तन्नाए किशोर लंड को प्यार करके और ज़ोर से खड़ा किया गया और मौसाजी मेरे उपर चढ कर अपनी गान्ड फैला कर उसपर बैठ गये अपने गुदा में मेरा पूरा लंड अंदर लेकर वे मेरे पेट पर बैठ गये और उपर नीचे होकर खुद ही अपनी गान्ड मुझसे मरवाने लगे मौसी मेरे मुँह पर अपनी चुनमूनियाँ देकर बैठ गयी मुझसे उसने जीभ अंदर घुसेडने को कहा और फिर उसे चोदते हुए वह मुझे अपनी चुनमूनियाँ का रस पिलाने लगी

उधर अंकल ने मेरे लंड को अपनी गुदा की शक्तिशाली पेशियों से जकड़ा और उसे दुहते हुए उपर नीचे होकर मस्त गान्ड मरवाने लगे साथ ही वी पीछे से मौसीक़ी गर्दन को चूमते हुए अपनी पत्नी के मम्मों को ज़ोर ज़ोर से हार्न जैसे दबाने लगे

जब मैं झड गया तो वे फिर मुझे ओँधा पटककर मेरे उपर चढ गये और मेरी गान्ड मारने लगे

अगले दो तीन दिन हमारी रति ऐसे ही चलती रही अंकल मेरी चिकनी गान्ड के इतने दीवाने थे कि शायद ही ऐसा कोई घंटा बीता हो जब मेरी गान्ड में उनका लंड ना गढ़ा हो

मुझसे अपनी गान्ड चुदवाना भी अंकल को बहुत पसंद था मेरा लंड इतना बड़ा नहीं था कि उनकी मांसल पुष्ट गान्ड को पूरी तरह से तृप्त करा सके पर छोटे होने की कमी मेरा किशोर लंड अपनी कडाई और घंटों खड़ा रहने के गुण से पूरी कर देता था मरवा मरवा कर मैं इतना आदी हो गया कि लगता था कि बस अब जिंदगी भर इसी तरह जानदार कसे जवानों से मरवाता रहूं और उनकी मारता रहूं

एक बार जब मौसाजी बहुत प्यार के मूड में थे, उन्होंने दोपहर भर मुझसे मरवाई मुझे सोफे मे बिठा कर मेरी गोद में बैठकर उन्होंने अपनी गान्ड में मेरा लंड ले लिया और फिर तीन चार घंटे मुझसे मरवाते हुए एक साथ दो तीन ब्लू फिल्में देख डालीं मौसी को उन्होंने अपने आगे बिठा लिया और उससे लंड चुसवाया मौसी को भी मज़ा आया क्योंकि कई दिनों बाद उसे अपने पति का लंड ठीक से चखने मिला

मेरी गोद में बैठकर मुझे उन्होंने अपने निपलो को दबाने और खींचने को कहा और नीचे से ही उछल उछल कर मुझे अपनी गान्ड मारने को कहा उनके वजन के कारण यह कठिन था पर जितना हो सकता था मैंने उनकी गान्ड मारी
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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

इस आसन में मेरा चेहरा उनकी चिकनी मांसल पीठ पर दबा हुआ था और मौके का फ़ायदा उठा कर मैंने उनकी उस मस्त पीठ को खूब चुम्मा और चाटा उधर मौसी ने भी मन भर कर उनका लंड चूसा आख़िर जब सब पिक्चर खतम हो गये तो मौसाजी उठाकर एक दीवाल से सट कर खड़े हो गये और खड़े खड़े ही मुझसे उनकी गान्ड मारने को कहा इस आसान में ऐसा मज़ा आया कि कह नहीं सकता मैंने उन्हें दीवाल से सटाकर घचा घच चोद डाला

इसके बाद मेरी गान्ड मारने का कार्यक्रम फिर शुरू हो गया उस रात तो मानों वे पागल हो गये थे मौसी तो थक कर कुछ देर बाद सो गयी थी पर मौसाजी पर तो नशा सा सवार था बड़ी बेरहमी से रात भर उन्होंने मेरी गान्ड मारी मुझे काफ़ी दर्द भी हो रहा था पर उसकी परवाह ना करके वे रात भर मुझपर सांड़ जैसे चढे रहे और चोदते रहे

इस तरह मरवा मरवा कर मेरी गान्ड नरम होकर काफ़ी खुल गयी आईने में जब अंकल ने मुझे मेरी गान्ड दिखाई तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यहा वही गुदा है सकरे भूरे छेद के बजाय अब एक गुलाबी बड़ा छेद दिखता था और उसके थोड़े पपोटे से निकल कर लटक आए थे, बिलकुल जैसे गान्ड ना हो, चुदी हुई चुनमूनियाँ हो { दोस्तो एक बार फिर याद दिलवा दूं कि यहाँ मैं चूत को चुनमूनियाँ कह रहा हूँ आपका दोस्त राज शर्मा } अब मुझे ज़रा भी दर्द नहीं होता था और मैं ऐसे मरवाता था जैसे औरतें आसानी से चुदवाती हैं मेरा आनंद इससे बढ़ गया पर अंकल थोड़े उदास हो गये थे उन्हें मेरी टाइट किशोर गान्ड मारना बहुत अच्छा लगता था

ख़ास कर जब मुझे थोड़ा दर्द होता था तब उन्हें बहुत मज़ा आता था उनके अनुसार पुरुष पुरुष संभोग में गुदा में थोड़ा दर्द हो तो सोने में सुहागा हो जाता है दौरे पर जाते समय वे एक महँगी क्रीम ले आए और बोले कि मैं वह अपनी गुदा मे लगा लूँ उससे मेरा गुदा फिर टाइट हो जाएगा और वापस आकर फिर मेरा कौमार्य भंग करने में उन्हें बड़ा आनंद आएगा

अंकल के दौरे पर जाने के बाद मौसी ने मुझे दो दिन पूरा आराम करने को कहा खुद भी उसने आराम किया और सिवाय कुछ चुंबनो के, हमने दो दिन कामकर्म को पूरी छुट्टी दे दी दो दिन बाद जब हमने पूरी वासना से फिर रति शुरू की तो पहला काम मैंने यह किया कि मौसी के पीछे पड गया कि वह अंकल जैसे ही मुझे भी मूत पिलाए

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Re: मौसी का गुलाम

Post by rajsharma »

पहले तो वह मान नहीं रही थी और नखरा कर रही थी कि ऐसा गंदा काम मुझ जैसे छोटे बच्चे के साथ वह कैसे कर सकती है पर मैंने भी इतनी ज़िद की और बिलकुल बाल हठ पर उतर आया कि आख़िर उसे मानना पड़ा मैं जानता था कि मन ही मन वह भी इस काम को करने के लिए उत्तेजित थी अपनी सग़ी बड़ी बहन के बेटे के मुँह में मूतने की कल्पना उसे बहुत मादक लगी होगी

आख़िर वह मान गयी और हम बाथरूम में गये मैं ज़मीन पर मुँह खोल कर लेट गया मौसी उकड़ूम होकर मेरे मुँह पर बैठ गई उसकी चुनमूनियाँ बस दो इंच उपर मेरे मुँह पर थी और उसका ज़रा सा लाल मूत्रछिद्र मुझे सॉफ दिख रहा था जब वह मूती तो उस खुले छिद्र में से निकलती रुपहली धार मुझे ऐसी लगी कि जैसे अमृत की धार हो

मेरे मुँह में वह खारा गरमा गरम शरबत गया और मैं मस्त हो गया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी प्यारी मौसी, मेरी माँ की सग़ी छोटी बहन मेरे मुँह में मूत रही है मैंने प्यासे की तरह उस अमृत का पान किया और एक बूँद भी छलकने नहीं दी उसके मूत्र के प्रति मेरी यह आस्था देखकर उसे भी बड़ा अच्छा लगा

उसके बाद तो मुझे मौसी का मूत पीने की आदत लग गयी अब मुझे समझ में आने लगा था कि क्यों मौसाजी उसके पीछे दीवाने थे मैंने पानी पीना करीब करीब बंद ही कर दिया जब प्यास लगती, ज़िद करके मौसी को खींच कर बाथरूम ले जाता और वह मेरे मुँह में मूत देती मौसी को भी इसमें बड़ा मज़ा आता था पर बार बार बाथरूम जाने में उसे बड़ी कोफ़्त होती थी इसलिए उसने मुझे बाथरूम ना जाकर कहीं भी उसका मूत पी सकूँ ऐसी ट्रेनिंग देना शुरू कर दी

उसने मुझे मुँह खोल कर उसे अपनी चुनमूनियाँ पर सटाकर अपनी पूरी चुनमूनियाँ मुँह में लेना सिखा दिया इससे जब वह मूतती थी तो सारा मूत सीधा मेरे गले में उतरता सिवाय उसके मूतने से उठती खल खल की आवाज़ के, बाहर से पता भी नहीं चलता कि वह मूत रही है एक बूँद भी नहीं छलकती थी कोई देखता तो समझता कि लडका चुनमूनियाँ चूस रहा है

यह सीखने के बाद हमारा काम आसान हो गया कभी भी कहीं भी मौसी मेरे मुँह में मूत सकती थी किचन में चुनमूनियाँ चुसवाते समय, ब्लू फिल्म देखते हुए या पलंग पर रति करते हुए रात को भी मौसी को इससे बड़ा आराम हो गया क्योंकि चुदवा चुदवा कर अक्सर उसे बहुत बार पिशाब लगती थी पर अब बिस्तर से उठ कर नहीं जाना पड़ता था वहीं बिस्तर में वह मेरे मुँह में मूत लेती थी

रात को भी मैं उसकी जांघों पर सिर रखकर सोता था इसलिए नींद में भी जब मौसी को पिशाब लगती, वह मुझे हिला कर जगाती, मेरा मुँह अपनी चुनमूनियाँ पर सटाती और मूत देती फिर आराम से सो जाती कई बार इस कार्य से वह इतना उत्तेजित होती कि आधी नींद में ही मुझसे चुनमूनियाँ चुसवा लेती या फिर चुदवा लेती

एक दो बार वह खेल खेल में गिलास में मूत कर मुझे पीने दे देती और उसे पीता देखकर अपनी चुनमूनियाँ में उंगली करती हुई मज़ा लेती पर उसकी चुनमूनियाँ पर मुँह लगाकर पीने में हम दोनों को ज़्यादा मज़ा आता था, मुझे भी और उसे भी

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