चुदासी चौकडी compleet

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rajsharma
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चुदासी चौकडी compleet

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चुदासी चौकडी

मैं जगताप ..लोग मुझे जग्गू बोलते हैं भाई ..जग्गू भाई ..मेरी उम्र अभी तो सिर्फ़ 22 साल की है ... मेरे लफ़्ज़ों से आप जान गये होंगे ..मैं ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं ...ग़रीबी में पैदा हुआ..ग़रीबी में पला बढ़ा पर अब ग़रीबी से पीछा छुड़ाने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ ..

आप तो जानते ही हो ग़रीब लोग कैसे अपना मन बहलाते हैं ..बस देसी दारू गले के नीचे उतारते , अपनी बीबी की टाँगें खोलते , उसकी सुखी चूत में लंड डाले और बस मन बहलाना शुरू ....साला मेरा बाप भी खूब मन बहलाता था ..शराब के नशे में ..और फकाफ़क चोद्ता था मेरी माँ की टाइट चूत और फिर हम तीनों भाई बहेन बारी बारी से उसकी शादी के 9 -9 महीने के बाद ही माँ की चूत से निकले ..इस साली दुनिया में आ गये ...आप समझ सकते हो मेरी और मेरी बहनो की उम्र में कोई खास फरक नहीं .....और मेरी माँ भी हम से सिर्फ़ 15 साल ही बड़ी है ....

माँ कसम यारो..मेरी माँ अभी भी क्या लगती है ...बोले तो एक दम झक्कास.. लंबा कद ..उभरा हुआ सीना ..भारी भारी गांद ...चर्बी का नामो निशान नहीं ... अरे चर्बी कहाँ से चढ़ेगी भाई....बेचारी दिन भर तो काम मे लगी रहती है ..घर घर झाड़ू पोंच्छा करती है , बर्तन और कपड़े धोती है ..इसी वजेह बॉडी एक दम फिट और मस्त है ..... क्या टाइट चुचियाँ हैं ....मैं तो बस मरता हूँ यारो.. अपनी माँ पर.... जान छिडकता हूँ उस पर ...ग़लत नहीं समझना भाई लोग... सारी दुनियाँ में सब से खूबसूरत लगती है ..माँ कसम बहुत हसीन .... प्यार व्यार क्या होता है मैं क्या जानू ..ये तो बड़े लोगो के लफडे हैं..मैं इतना जानता हूँ के मेरा बस चले तो अपनी माँ को फूलों की सेज़ पे बिठा दूं ...और बस आराम की जिंदगी दूं उसे.. कभी काम ना करे ..किसी की चार बातें ना सुन नी पड़े उसे..बेचारी हम भाई बहनो के लिए कितना मर मर के ख़त ती है....

मेरी बहेनें भी वोई करती हैं अब जो मेरी माँ करती है ..घर घर में काम ..दोनो अपनी माँ पर ही गयीं हैं..बस वैसी ही हसीन और मस्त ...मुझ से छोटी का नाम बिंदिया पर उसे हम बिंदु बोलते हैं और सब से छोटी सिंधु .....और माँ को क्या नाम दूं ...माँ तो माँ ही होती है ना ..

साला मेरा बाप उसे शराब के नशे में कुछ भी बोलता था ..रंडी ..मादरचोद , भोंसड़ी वाली पर उसका असली नाम जब होश में आता तभी बोलता ..जो शायद ही कभी होता ...और ऐसे समय उसे शांति बुलाता था ....

माँ बाप भी कैसे कैसे नाम रखते हैं अपने बच्चों के .मेरी .माँ का नाम शांति ..पर बेचारी की जिंदगी में कोई शांति नहीं ....

पहले दिन भर दूसरे के घरों में काम करती और रात भर अपने घर अपने शराबी मर्द (पति) का काम ....उसकी गालियाँ खाती..अपनी चूत में उसके लंड की मार झेलती .... फिर बेचारी पस्त हो कर थोड़ी देर सो जाती ....और दूसरे दिन सुबेह से फिर वोई सिलसिला ..

और मेरा बाप इसी तरह शराब पीते पीते अपने पेट की अंतड़िया जला जला कर साला दो साल पहले .. मर गया

मुझे समझ नहीं आया मैं रो-ऊँ या खुशियाँ मनाउ..???

मेरी माँ उस दिन बिल्कुल चुप थी ...किसी से कोई बात नहीं ..आँखों में कोई आँसू नहीं ..ऐसा लगा जैसे उस ने अपने मरद की जिंदगी में ही उसके लिए अपने आँसू बहा लिए थे...उसकी मौत के बाद माँ की आँखों में कुछ भी नहीं बचा था ....

उस रोज दिन भर तो माँ चुप थी....मानो कुछ हुआ नहीं ...अपने मरद की मौत पे सारी औरतें कितना रोती हैं ..तडपति हैं ..पर मेरी माँ बिल्कुल शांत थी...

पर उस रात को जब मैने उसका हाल देखा ....मैं सन्न रह गया......

उस रात मैं भी घर काफ़ी देर से आया था..घर क्या भाई लोगो...एक झोंपड़ी , इसी में हमारा सब कुछ ..बेडरूम बोलो ..ड्रॉयिंग रूम बोलो यह किचन बोलो..ऑल इन वन ....

तो घर में आते ही देखा बिंदु और सिंधु दोनो माँ के अगल बगल बैठी उस से चिपकी उसे सहला रही थी ..पूचकार रहे थे ....उसे ढाढ़स बँधा रहे थे..और माँ थी कि हिचकियाँ ले ले के रोए जा रही थी .... बस रोए ही जा रही थी ....आँसू उसकी बड़ी बड़ी आँखों से टपके जा रहे थे...

मैं भी पास आ कर बैठ गया और इशारे से दोनो बहनो से पूछा "क्या हुआ..? "

बिंदु बोली.." भाई..क्या पता ..सारा दिन तो चुप थी ..अभी हम खाना खाए..और जब आई ( माँ) लेती ..थोड़ी देर बाद अचानक उठ गयी और तब से रो रही है ... "

सिंधु ने भी उसकी हां में हां मिलाई "हां भाई ..देखो ना बस रोए ही जाती है...."

मैं माँ के सामने बैठ गया ....उसके चेहरे को अपनी हथेली में किया और पूछा..

" माँ क्या हुआ ...???बताओ ना..? "

माँ मुझे देखते ही मेरे सीने से चिपक गयीं और रोते रोते कहा

" अरे बेटा होगा क्या ..? जिसे जाना था वो तो गया ..पर इतने दिन साथ था ना...कुछ अच्छा नहीं लगता रे... आख़िर था तो मेरा आदमी .... "

मैने भी उसे अपने चौड़े सीने से लगा लिया .....( यहाँ मैं बता दूं कि मैं भी अपनी माँ पर ही गया हूँ खास कर दिखने में , लंबाई 5'11'' , चौड़ा सीना ...और बिल्कुल मजबूत और मस्क्युलर बाहें ..जिम का कमाल नहीं भाइयो..मेहनत का कमाल ...मैं भी अब कुछ कमा लेता हूँ..एक पास की बिल्डिंग में कार धुलाई करता हूँ...)

जैसे ही मेरी माँ मेरे सीने से चिपकी....मुझे बहुत सुकून मिला ..जैसे मुझे कोई ख़ज़ाना मिल गया हो....अभी तक सिर्फ़ सोचता ही था के कैसा लेगेगा अगर मैं उसे अपने सीने से लगाऊं ..आज सच में वो मेरे सीने पर थी...

उसकी बड़ी बड़ी मांसल और टाइट चुचियाँ मेरे सीने से ऐसे दबी थीं जैसे कोई गुब्बारा दबा हो ...मेरी तो सांस उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गई ....

वो अब भी सिसक रही थी ... और उसकी छाती मेरी छाती से उपर नीचे हो रही थी ... बड़ा मज़ा आ रहा था ...

बाप के मरने का ये एक बड़ा फ़ायदा हुआ......

मैने उसके घने बालों को सहलाते हुए कहा

" क्यों रोती है मान ..तेरे मर्द ने तुझे क्या सुख दिया आज तक..जो तू ऐसे रो रही है..?? "

" तू अभी नहीं समझेगा जग्गू .... आख़िर तो वो मेरा आदमी था ना .. मेरे सर पर उसका हाथ तो था ना ..."

" अरे कैसा हाथ माँ ....जिस ने तेरे को सिर्फ़ मारा ही तो है..कभी प्यार तो नही दिया ना..." मैने ऐसा कहते हुए अपने हाथ उसकी पीठ से लगता हुआ अपने से और चिपका लिया ...

जाने माँ को क्या लगा ..उस ने भी अपने हाथ मेरी पीठ से लगाया , मुझे और भी करीब खिच लिया और रोना बंद हो गया ..पर अभी भी सिसकना चालू था ...हर सिसकी पर उसकी चुचियाँ मेरे सीने से उठती और दब्ति जाती ...

मेरा बुरा हाल हो रहा था.....मेरा लंड नीचे (8"लंबा 3"मोटा)... अकड़ता जा रहा था ..

थोड़ी देर बाद सिसकते सिसकते माँ मेरे सीने से लगे लगे ही सो गयी..जैसे माँ अपने बच्चे के गोद में ....

शायद उसकी जिंदगी में पहल्ली बार किसी मर्द के हाथों ने इतने प्यार से उसे सहलाया था ...
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: चुदासी चौकडी

Post by rajsharma »

मैने भी किसी औरत को अपनी जिंदगी में पहली बार इस तरह से इतने करीब से और प्यार से छुआ था

शायद दोनो को पहली बार एक दूसरे का छूना इतना अच्छा लगा था

मुझे ऐसा लगा मैं उसे अपनी बाहों में ऐसे ही जकड़े रहूं जिंदगी भर ....

उफ्फ कितना सुकून था..कितना मज़ा था ....

" भाई ....आई सो गयी है ..लिटा देते हैं ना ..?" बिंदु की धीमी सी आवाज़ से मैं अपने ख़यालों से बाहर आया ...

" हां .... " मैने चौंकते हुए कहा " हां बिंदु तू इसे लिटा दे ....

फिर दोनो बहनें माँ को थामते हुए नीचे फर्श पर लगे बिस्तर पे लिटा दिया ...माँ अब गहरी नींद में थी.

मैं बैठा था ..पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था....अचानक सिंधु की नज़र वहाँ पड़ी ...देखते ही चौंक गयी ..मैने उसकी नज़रों का पीछा किया ..नीचे देखा ....उफफफफफ्फ़ ये क्या हुआ मुझे ....मैं सकपकाता हुआ उठा और बाहर निकल गया ....

बाहर निकलते हुए मुझे बिंदु और सिंधु के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कुराहट दिखी ....

बाहर निकल कर मैं थोड़ी दूर एक गुट्टर के किनारे जा कर मूतने लगा .....अया आज पहली बार मूतने में इतना अच्छा लगा..जैसे अंदर से कुछ भारी भारी सी रुकावट एक बार ही खाली हो गयी हो ..मैने काफ़ी हल्का महसूस किया ..लंड अब सिकुड गया था ....

मैं अंदर झोपड़ी में घुसा ....और अपने बिस्तर ..जो माँ और बहनो के बिस्तर से लगा हुआ था ..लेट गया ...

बिंदु मेरी दाई ओर थी ...उसके बगल में माँ सो रही थी और माँ के बगल में सिंधु ..

"भाई ...." बिंदु ने मुझ से कहा

" क्या है बिंदु ..? "

" खाना नहीं खाओगे ..? "

" रहने दे रे ...आज तो माँ की आँसुओं से ही मेरा पेट भर गया ..खाने का मन नहीं ..ऐसे भी आज बाहर ही खा लिया था ...." मैने जवाब दिया ..

" भाई तुम कितने अच्छे हो ....माँ को तुम ने कितने अच्छे से संभाल लिया .."

" बापू तो नहीं हैं अब ..और कौन संभालेगा .." मैने जवाब दिया

शायद मुसीबत और दुख में लोग एक दूसरे के और करीब आ जाते हैं ...बिंदु के साथ भी येई हुआ ..ववो मुझ से लिपट गयी और सिसकने लगी ..फिर कहा

" भाई तुम ऐसे ही हमेशा रहोगे ना ...."

उसकी आवाज़ सुन सिंधु भी मेरे पास आ कर लेट गयी और लिपट गयी

" हां भाई ..तुम हमेशा ऐसे ही रहना .." उस ने भी रोते हुए कहा ..

" अरे हां बाबा हां ...मैं हमेशा तुम सब के लिए ऐसे ही रहूँगा .बस अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो ...." मैने कहा

दोनो बहनें मुझसे दोनो तरफ से चिपक गयीं , मेरे गाल चूमने लगीं , मेरे सीने पर अपने हाथ फेरने लगीं और अपना प्यार जताती रहीं ..

" तुम बहुत अच्छे हो भाई ..ऐसे ही रहना "

और हम तीनों कब सो गये एक दूसरे की बाहों में कुछ पता ही नहीं चला ...

बाप की मौत ने बहनो को अपने भाई और माँ को अपने बेटे के काफ़ी करीब ला दिया था ...

सुबेह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी. आँख खुली तो देखा मा नहीं थी ...पर दोनो बहेनें अभी भी मेरे सीने पे हाथ रखे सो रही थी...बाहर अभी भी अंधेरा ही था ... बिंदु और सिंधु मेरे सीने से लगी कितनी मासूम लग रही थी .... दोनो ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिए थे ...उनके सीने का उभार उनकी साँसों के साथ , उनके दिल की धड़कनों के साथ उपर नीचे हो रहे थे .... और दुपट्टा के बिना उनका सीना बिल्कुल सॉफ नज़र आ रहा था ... कितनी हसीन तीन मेरी दोनो बहेनें ...

आज तक मैने कभी भी किसी ग़लत नज़र से उन्हें नहीं देखा था ..पर आज ना जाने क्या हो गया था मुझे ... आज मेरे सामने वो मेरी बहेनें नहीं बल्कि दो खूबसूरत जवान लड़कियाँ नज़र आ रही थीं ..जवानी के तॉहफ़ों , उभारों और रस से भरपूर.....जिन्हें कोई भी मर्द चूसे और चखे बिना रह नहीं सके ...

एक बार तो मन में आया उन्हें जाकड़ लूँ , सीने से लगा लूँ और चूस लूँ उन्हें ...मेरा लंड भी वैसे ही सुबेह सुबेह तन्नाया रहता था..आज तो तन्नाया था और हिल रहा था ...

तभी माँ हाथ में खाली मग लिए अंदर आई...मैं समझ गया वो फारिग होने अपने झोपडे से थोड़ी दूर नाले के किनारे की तरफ गयी थी ...

मैं हड़बड़ाते हुए अपने हाथ से लंड दबाता हुआ उठा ...मा ने शायद ताड़ लिया था ..उसके होंठों पर मुस्कान से ज़ाहिर था ...

उसने अनदेखा करते हुए कहा

" देख तो कैसे बिंदु और सिंधु अपने भाई से लग कर सो रही हैं ..." उनके इस बात से मेरी परेशानी और शर्म मिट गयी .

मैं अभी भी पूरा नहीं उठा था ..बिस्तर पर बैठा था ...बिंदु और सिंधु अब तक जाग गयी थीं.

" अरे बिंदु..सिंधु अब उठ भी जाओ ..देखो अभी भी अंधेरा है ..जाओ नाले के किनारे हो आओ ..थोड़ी देर में उजाला हो जाएगा फिर कैसे जाओगी ...चलो उठो जल्दी करो..." मा ने दोनो को प्यार से झिड़की लगाते हुए कहा और फिर मेरी ओर देखते हुए कहा " तेरा क्या है..तू तो मर्द है कभी भी जा सकता है ... " और फिर हँसने लगी ....

मैं मा के आज के रवैय्ये से फिर सोच में पड़ गया ..कल रात कितनी दुखी थी अपने मर्द की मौत से , पर आज उसके चेहरे पर उस गम का नामो-निशान नहीं ...वाह रे औरत ..क्या कमाल की है तू भी ..

अब तक दोनो बहनें बाहर जा चुकी थीं ..और मा बिस्तर पर मेरे बगल बैठ गयी .

मैने उसकी तरफ देखा ..उसके चेहरे पर सही में कल के हादसे का कोई नामोनिशान नही था ..बिल्कुल तरो ताज़ा था ....

मैने कहा " मा एक बात पूछूँ ..? "

" हां ..हां पूछ ना बेटा ..क्या बात है..?"

"मा कल रात तुम कितना रोई ..कितनी दुखी थी ..पर आज इतनी खुश दिख रही हो ...कितना अच्छा लग रहा है ..कल हम सब कितने परेशान थे तुम्हारी परेशानी से.."

" हां जग्गू ..कल मैं परेशान थी ..आख़िर तुम्हारा बाप था ..मेरा आदमी था ....इतने दिनों का साथ था ...उसने जो किया भगवान इंसाफ़ करेगा ...पर हमे तो जिंदा रहना है ना ...उसके जाने के गम में हम तो मर नहीं सकते ..क्यूँ है ना ..? "

मैने उसे गले लगा लिया और कहा ..." कितनी बड़ी बात कह दी मा ... तुम ना होतीं तो हम क्या करते ..?"

" और येई बात तो मैं तुम से कहती हूँ..अगर तुम ना होते कल तो मैं क्या करती ..? तुम ने एक मर्द के माफिक मुझे हिम्मत दिया ...तू सही का मर्द है रे ...तेरा बाप तो साला नमार्द था .... "

और उस ने मुझे अपने से चिपका लिया ..मुझे अपनी छाती से लगा लिया ...

हम दोनो एक दूसरे से लिपटे थे ....

क्रमशः…………………………………………..
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: चुदासी चौकडी

Post by rajsharma »

Main Jagtap ..log mujhe Jaggu bollte hain bhai ..Jaggu Bhai ..meri umra abhi to sirf 22 saal ki hai ... mere lafzon se ap jan gaye honge ..main jyada padha likha nahin ...gareebi mein paida hua..gareebi mein pala badha par ab gareebi se peecha chudaane ki bahut koshish kar raha hoon ..

Ap to jante hi ho gareeb log kaise apna man behlaate hain ..bas desi daaroo gale ke neeche utarte , apni bibi ki tangein kholte , uski sukhi choot mein lund dale aur bas man behlana shuru ....saalaa mera bap bhi khoob man behlata thaa ..sharab ke nashe mein ..aur phakaaphak chodta thaa meri maan ki tight choot aur phir hum teenon bhai behen baari baari se uski shaadi ke 9 -9 mahine ke baad hi maan ki choot se nikale ..is saali duniyaa mein aa gaye ...ap samajh sakte ho meri aur meri bahano ki umra mein koi khas farak naheen .....aaur meri maan bhi hum se sirf 15 saal hi badi hai ....

Maan Kasam yaaro..meri maan abhi bhi kya lagti hai ...bole to ek dum jhakkas.. lamba kad ..ubhra hua seena ..bhari bhari gaand ...charbi ka namo nishaan nahin ... are charbi kahan se chadhegi bhai....bechaari din bhar to kaam me lagee rehti hai ..ghar ghar jhaadoo poncha karti hai , bartan aur kapde dhoti hai ..isi wajeh body ek dum fit aur mast hai ..... kya tight chuchiyaan hain ....main to bas martaa hoon yaaro.. apni maan par.... jaan chiDakataa hoon us par ...galat naheen samajhna bhai log... saari duniyaan mein sab se khubsoorat lagati hai ..maan kasam bahut haseen .... pyaar wyaar kya hota hai main kya janoo ..ye to bade logo ke laphaDe hain..main itna janta hoon ke mera bas chale to apni maan ko phoolon ki sez pe bitha doon ...aur bas aaraam ki jindagi doon use.. kabhi kaam na kare ..kisi ki chaar batein na sun ni pade use..bechaari hum bhai bahano ke liye kitna mar mar ke khat ti hai....

Meri behenein bhi woi karti hain ab jo meri maan karti hai ..ghar ghar mein kaam ..dono apni maan par hi gayeen hain..bas waisi hi haseen aur mast ...mujh se choti ka naam Bindiya par use hum Bindu bolte hain aur sab se choti Sindhu .....aur maan ko kya naam doon ...maan to maan hi hoti hai na ..

Sala mera bap use sharab ke nashe mein kuch bhi bolta thaa ..randi ..maadarachod , bhonsdi waali par uska asli naam jab hosh mein aata tabhi bolta ..jo shayad hi kabhi hota ...aur aise samay use Shanti bulata thaa ....

Maan Bap bhi kaise kaise naam rakhte hain apne bachhon ke .meri .maan ka naam Shanti ..par bechari ki jindagi mein koi shanti nahin ....

Pehle din bhar doosre ke gharon mein kaam karti aur raat bhar apne ghar apne sharabi mard (pati) ka kaam ....uski galiyaan khaati..apni choot mein uske lund ki maar jhelti .... phir bechaari past ho kar thodi der so jati ....aur doosre din subeh se phir woi silsila ..

Aur mera bap isi tarah sharab peete peete apne pet ki antadiyan jalaa jalaa kar saalaa do saal pehle .. mar gaya

Mujhe samajh nahin aaya main ro-oon yah khushiyan manaoon..???

Meri maan us din bilkul chup thee ...kisi se koi baat nahin ..ankhon mein koi aansoo nahin ..aisa laga jaise us ne apne marad ki jindagi mein hi uske liye apne ansoo bahaa liye the...uski maut ke baad maan ki aankhon mein kuch bhi nahin bachaa thaa ....

Us roj din bhar to maan chup thee....mano kuch hua nahin ...apne marad ki maut pe saari auratein kitna roti hain ..taDapati hain ..par meri maan bilkul shaant thee...

Par us raat ko jab maine uska haal dekha ....main sann reh gayaa......

Us raat main bhi ghar kaphi der se aaya thaa..ghar kya bhai logo...ek jhonpdi , isi mein hamaraa sab kuch ..bedroom bolo ..drawing room bolo yah kitchen bolo..all in one ....

To ghar mein aate hi dekha Bindu aur Sindhu dono maan ke agal bagal baithe us se chipaki use sehla rahe the ..puchkar rahe the ....use dhadhas bandha rahe the..aur maan thee ki hichkiyan le le ke roye ja rahee thee .... bas roye hi ja rahee thee ....aansoo uski badi badi ankhon se tapke ja rahe the...

Main bhi pas aa kar baith gaya aur ishaare se dono bahano se pucha "Kya hua..? "

Bindu boli.." Bhai..kya pata ..sara din to chup thee ..abhi hum khana khaye..aur jab Aai ( Maan) leti ..thodi der baad achaanak uth gayee aur tab se ro rahee hai ... "

Sindhu ne bhi uski haan mein haan milaayi "Haan Bhai ..dekho na bas roye hi jati hai...."

Main Maan ke samne baith gaya ....uske chehre ko apni hatheli mein kiya aur pucha..

" Maan kya hua ...???bataao na..? "

Maan mujhe dekhte hi mere seene se chipak gayeen aur rote rote kaha

" Are beta hoga kya ..? Jise jana thaa wo to gayaa ..par itne din saath thaa na...kuch achha nahin lagta re... aakhir tha to mera aadmi .... "

Maine bhi use apne chaude seene se laga liya .....( yahan main bata doon ki main bhi apni maan par hi gayaa hoon khas kar dikhane mein , lambai 5'11'' , chauda seena ...aur bilkul majboot aur muscular baahen ..gym ka kamaal nahin bhaaiyo..mehnat ka kamaal ...main bhi ab kuch kamaa leta hoon..ek paas ki building mein car dhulaai karta hoon...)

Jaise hi meri maan mere seene se chipaki....mujhe bahut sukoon mila ..jaise mujhe koi khazana mil gaya ho....abhi tak sirf sochta hi thaa ke kaisa legega agar main use apne seene se lagaoon ..aaj sach mein wo mere seene par thee...

Uski badi badi mansal aur tight chuchiyaan mere seene se aise dabeen theen jaise koi gubbaraa daba ho ...meri to sans upar ki upar aur neeche ki neeche reh gai ....

Wo ab bhi sisak rahee thee ... aur uski chaatee meri chaatee se upar neeche ho rahee thee ... bada maza aa raha thaa ...

Bap ke marne ka ye ek badaa phayada hua......

Maine uske ghane balon ko sehlaate hue kaha

" Kyon roti hai maan ..tere mard ne tujhe kya sukh diya aaj tak..jo too aise ro rahee hai..?? "

" Tu abhi nahin samjhega Jaggu .... aakhir to wo mera aadmi thaa na .. mere sar par uska haath to thaa na ..."

" Are kaisa haath maan ....jis ne tere ko sirf maaraa hi to hai..kabhi pyaar to nahi diya na..." Maine aisa kehte hue apne haath uski peeth se lagata hua apne se aur chipaka liya ...

Jane Maan ko kya laga ..us ne bhi apne haath meri peeth se lagaya , mujhe aur bhee kareeb khichaa liya aur rona band ho gaya ..par abhi bhi sisakna chaaloo thaa ...har siski par uski chuchiyaan mere seene se uthti aur dabti jaati ...

mera bura haal ho raha thaa.....mera lund neeche (8"lamba 3"mota)... akadta ja rahaa thaa ..

Thodi der baad sisakte sisakte maan mere seene se lage lage hi so gayee..jaise maan apne bachche ke god mein ....

Shayad uski jindagi mein pehlli bar kisi mard ke hathon ne itne pyaar se use sehlaya thaa ...

Maine bhi kisi aurat ko apni jindagi mein pehli baar is tarah se itne kareeb se aur pyaar se chua thaa

Shayad dono ko pehli baar ek doosre ka choona itna achhaa laga thaa

Mujhe aisa laga main use apni bahon mein aise hi jakde rahoon jindagi bhar ....

Uff kitna sukoon thaa..kitna mazaa thaa ....

" Bhai ....Aai so gayee hai ..lita dete hain na ..?" Bindu ki dheemi si awaaz se main apne khayalon se bahar aaya ...

" Haan .... " Maine chaunkte hue kaha " Haan Bindu too ise lita de ....

Phir dono behnein maan ko thaamate hue neeche farsh par lage bistar pe lita diya ...Maan ab gehri neend mein thee.

Main baithaa thaa ..par mera lund abhi bhi khadaa thaa....achanak Sindhu ki nazar wahan padee ...dekhte hi chaunk gayee ..maine uski nazaron ka peecha kiya ..neeche dekha ....uffffff ye kya hua mujhe ....main sakpakaataa hua utha aur bahar nikal gaya ....

Bahar nikalte hue mujhe Bindu aur Sindhu ke honthon par ek ajeeb si muskurahat dikhi ....

Bahar nikal kar main thodi door ek guttar ke kinare ja kar mootne laga .....aaah aaj pehli baar mootne mein itna achha laga..jaise andar se kuch bhaari bhaari si rukawat ek baar hi khaali ho gayee ho ..maine kaphi halka mehsoos kiya ..lund ab sikud gaya thaa ....

Main andar jhopdi mein ghusa ....aur apne bistar ..jo maan aur bahano ke bistar se laga hua tha ..let gaya ...

Bindu meri dayee or thee ...uske bagal mein maan so rahee thee aur maan ke bagal mein Sindhu ..

"Bhai ...." Bindu ne mujh se kaha

" Kya hai Bindu ..? "

" Khana nahin khaoge ..? "

" Rehne de re ...aaj to maan ki aansuon se hi mera pet bhar gaya ..khane ka man nahin ..aise bhi aaj bahar hi khaa liya thaa ...." Maine jawab diya ..

" Bhai tum kitne achhe ho ....maan ko tum ne kitne achhe se sambhal liya .."

" Bapu to nahin hain ab ..aur kaun sambhalega .." Maine jawaab diya

Shayad musibat aur dukh mein log ek doosre ke aur kareeb aa jate hain ...Bindu ke saath bhi yei hua ..wwo mujh se lipat gayee aur sisakne lagi ..phir kaha

" Bhai tum aise hi hamesha rahoge na ...."

Uski awaaz sun Sindhu bhi mere pas aa kar let gayee aur lipat gayee

" Haan Bhai ..tum hamesha aise hi rehna .." Us ne bhi rote hue kaha ..

" Are haan baba haan ...main hamesha tum sab ke liye aise hi rahaungaa .bas ab so jao aur mujhe bhi sone do ...." Maine kaha

Dono behnein mujhse dono taraf se chipak gayeen , mere gal choomne lageen , mere seene par apne haath pherne lageen aur apna pyaar jatatee raheen ..

" Tum bahut achhe ho bhai ..aise hi rehna "

Aur hum teenon kab so gaye ek doosre ki bahon mein kuch pata hi nahin chala ...

Bap ki maut ne bahano ko apne bhai aur maan ko apne bete ke kaphi kareeb la diya thaa ...

Subeh jaldi hi meri neend khul gayee. Ankh khuli to dekha Maa nahin thee ...par dono behenein abhi bhi mere seene pe haath rakhe so rahee thee...bahar abhi bhi andhera hi thaa ... Bindu aur Sindhu mere seene se lagee kitne maasoom lag rahee thee .... dono ne jawani ki dehliz par kadam rakh diye the ...unke seene ka ubhar unki sanson ke saath , unke dil ki dhadkanon ke saath upar neeche ho rahe the .... aur dupatta ke bina unka seena bilkul saaf nazar aa rahaa thaa ... kitni haseen theen meri dono behenein ...

Aaj tak maine kabhi bhi kisi galat nazar se unhein nahin dekha tha ..par aaj na jane kya ho gaya thaa mujhe ... aaj mere samne wo meri behenein nahin balki do khubsoorat jawan ladkiyan nazar aa rahee theen ..jawani ke tohfon , ubharon aur ras se bharpoor.....jinhein koi bhi mard choose aur chakhe bina reh nahin sake ...

Ek baar to man mein aaya unhein jakad loon , seene se laga loon aur choos loon unhein ...mera lund bhi waise hi subeh subeh tannaaya rehta thaa..aaj to tannaaya thaa aur hil raha thaa ...

Tabhi Maan haath mein khali mug liye andar aayee...main samajh gaya wo farig hone apne jhopde se thodi door naale ke kinare ki taraf gayee thee ...

Main hadbadaate hue apne haath se lund dabata hua utha ...Maa ne shayad taad liya thaa ..uske honthon par muskan se zahir thaa ...

Usne andekha karte hue kaha

" Dekh to kaise Bindu aur Sindhu apne bhai se lag kar so rahee hain ..." Unke is baat se meri pareshani aur sharm mit gayee .

Main abhi bhi poora nahin uthaa thaa ..bistar par baitha tha ...Bindu aur Sindhu ab tak jag gayee theen.

" Are Bindu..Sindhu ab uth bhi jaao ..dekho abhi bhi andhera hai ..jaao naale ke kinare ho aao ..thodi der mein ujala ho jayega phir kaise jaaogi ...chalo utho jaldi karo..." Maa ne dono ko pyaar se jhidki lagate hue kaha aur phir meri or dekhte hue kaha " Tera kya hai..tu to mard hai kabhi bhi ja sakta hai ... " Aur phir hansne lagee ....

Main Maa ke aaj ke rawaiyye se phir soch mein pad gaya ..kal raat kitni dukhi thee apne mard ki maut se , par aaj uske chehre par us gam ka namo-nishaan nahin ...wah re aurat ..kya kamaal ki hai tu bhi ..

Ab tak dono behnein bahar jaa chuki theen ..aur Maa bistar par mere bagal baith gayee .

Maine uski taraf dekha ..uske chehre par sahi mein kal ke haadse ka koi namonishan nahinn thaa ..bilkul taro taza thaa ....

Maine kaha " Maa ek baat poochoon ..? "

" Haan ..haan pooch na beta ..kya baat hai..?"

"Maa kal raat tum kitna royeen ..kitni dukhee thee ..par aaj itani khush dikh rahee ho ...kitna achhaa lag raha hai ..kal hum sab kitne pareshan the tumhari pareshani se.."

" Haan Jaggu ..kal main pareshan thee ..aakhir tumhara bap thaa ..mera aadmi thaa ....itne dinon ka saath thaa ...usne jo kiya bhagwan insaaf karega ...par humein to jinda rehna hai na ...uske jane ke gum mein hum to mar nahin sakte ..kyoon hai na ..? "

Maine use gale laga liya aur kaha ..." Kitni badi baat keh di Maa ... tum na hoteen to hum kya karte ..?"

" Aur yei baat to main tum se kahti hoon..agar tum na hote kal to main kya karti ..? Tum ne ek mard ke maafik mujhe himmat diya ...tu sahi ka mard hai re ...tera bap to saala namard thaa .... "

Aur us ne mujhe apne se chipaka liya ..mujhe apni chaatee se laga liya ...

Hum dono ek dusare se lipte the ....
kramashah…………………………………………..

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: चुदासी चौकडी

Post by rajsharma »

2

गतान्क से आगे…………………………………….

उसका सीना धौंकनी के तरह मेरे सीने से लगा उपर नीचे हो रहा था ....मैं बिल्कुल बेख़बर सा खोया था अपनी मा की बाहों में ... वो मुझे चूम रही थी ..गालों पर .. माथे पर .. बालों पर हाथ फिरा रही थी ..मैं उसके प्यार में सराबोर था , डूबा था .... उसका असर नीचे हुआ ..मेरी जांघों के बीच ...फिर से अकड़ गया मेरा लंड ..माँ के पेट से टकरा रहा था ...मा को मेरी हालत समझ में आ गयी ..वो फ़ौरन अलग हो गयी..उसकी सांस ज़ोर ज़ोर से चल रही थी ..मैं भी हाँफ रहा था ... मेरी आँखों में मा के लिए तड़प , भूख और एक अजीब सा नशा था ..

मा की आँखों में भी वोई सब था ..पर साथ में थोड़ी शर्म और झिझक भी थी ...

शायद उसकी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द ने उसे इतना प्यार और सहारा देते हुए अपनी बाहों में लिया था ... पर बेचारी खुल कर उसे अपना नहीं सकती थी ...उसकी खोती किस्मत वो मर्द उसका बेटा था ...

पर उसे ये नहीं मालूम था के उसका बेटा असल मर्द था और वो एक असल औरत ....और उसके बेटे ने मन बना लिया था उसे अपनी औरत बनाने का ..हां अपनी पूरी की पूरी औरत ..

उस समय मेरी आँखों में वो हवस , नशा और तड़प गायब थी ..और उसकी जगह प्यार , वादा और मर मिटने की ख्वाहिश की झलक थी ...

मा ने मेरी तरफ देखा ..मेरी आँखों में उसे वो सब कुछ दिखा .... उसने सर झुका लिया ...मानो उसने अपनी मंज़ूरी दे दी .....

मैं खुशी से झूम उठा ...मैं आगे बढ़ा ..मा वही खड़ी थी ....सर झुकाए ...

तब तक बिंदु और सिंधु नाले से आ गयी ...

मा ने उन्हें देखते ही झट अपना चेहरा ठीक किया , और उनकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा

" बिंदु ...देख बेटा ..मैं तो जा रही हूँ काम पर ... तुम दोनो चाइ पी लेना जग्गू को भी चाइ पिला देना और काम पर जाना ...ठीक है ना..??"

और झोपड़ी के कोने में बने चूल्‍हे की ओर चल पड़ी चाइ बनाने .

" हां आई ..तू फिकर मत कर ..सब हो जाएगा ..तू जा ... "

थोड़ी ही देर बाद मा ने चाइ बना ली और अपनी सारी ठीक करती हुई जल्दी जल्दी चाइ पी और बाहर निकल गयी ...

मैने मग उठाया ... दोनो बहनो की ओर देखा ... उनके होंठों पर फिर से बड़ी शरारती मुस्कान थी ..शायद उन्होने मा की झुकी झुकी आँखें और शर्म से भरे चेहरे को ताड़ लिया था ...

ग़रीबी इंसान को काफ़ी समझदार बना देती है....

और मैं भी मुस्कुराता हुआ नाले की तरफ निकल गया ....

कुछ देर बाद जब मैं वापस आया .. दोनो बहेनें उस झोपड़ी की एक ही टूटी फूटी खाट पर , जिस पे कि मेरा बाप सोता था ..बैठी थीं ..कुछ खुसुर पुसर बातें कर रही थी और मेरी तरफ देख मुस्कुराए जा रही थी ...और अपनी टाँगें खाट से लटकाए हिलाए जा रही थी ...

मैं उनके पैरों के बीच फर्श पर ही बैठ गया ... और अपना एक हाथ बिंदु के घुटने पर रखा और दूसरा सिंधु के घुटने पर .हल्के से दबाया ..उनका पैरों का हिलना बंद हो गया ..पर हँसी और भी बढ़ गयी ..खास कर सिंधु का ..जो शायद घर में सब से छोटी होने के चलते सब से चुलबुली थी ..

" ह्म्‍म्म्म..क्या बात है ...इतनी हँसी ..?? मैं क्या कोई जोकर हूँ..इतना हँसे जा रही है मेरे को देख के..?"

और फिर और जोरों से अपने हाथ उनके घुटनों पर दबाए ...

जवाब सिंधु ने ही दिया " लो अब हँसी पर भी कोई रोक है भाई..? ऊऊउउ भाई अपना हाथ तो हटाओ ना गुदगुदी होती है .." और फिर उनकी हँसी ने और ज़ोर पकड़ लीआ ...

अब मैने अपना हाथ घुटने से उपर ले जाते हुए उनकी जाँघ पर रखा और फिर दबाया ...उफ़फ्फ़ क्या महसूस था..जैसे किसी पाव भाजी वाला पॉ(ब्रेड) मेरी मुट्ठी में हो ..

" तू बता पहले क्या बात है .फिर हाथ हटाउंगा .." मैने कहा

इस बात पर दोनो की हँसी तो रुकी ..पर दोनो एक दूसरे को देख मंद मंद मुस्कुरा रही थी अभी भी

पर मेरा हाथ अभी भी वहीं के वहीं था ...

" चल जल्दी बोल ..वरना मेरा हाथ अभी और भी आगे और उपर जाएगा ...." मैने सीरीयस होते हुए कहा

बिंदु ने मौके की नज़ाकत समझते हुए कहा .." अछा बाबा बताती हूँ ..पर तू हाथ हटा ना भाई ...ऐसे भी कोई भाई अपनी बहनो को दबाता है क्क्या..??"

बिंदु की इस बात पर मैं थोड़ा झेंप गया ....

" अछा ले हटा दिया अब बोल.."

"अरे बाबा चाइ पीनी है के नहीं ..पहले चाइ तो पी लो भाई, फिर बातें करेंगे ...मैं चाइ लाती हूँ ..." और सिंधु बोलते हुए उठी और चाइ लाने झोपड़ी के कोने की ओर चल दी .

मैं उठा और सिंधु के जगह बिंदु से सॅट कर बैठ गया ... और बिंदु के चेहरे को अपनी ओर खिचा और पूछा " बोल ना रे ..क्या बात है...?"

" अरे कुछ नहीं भाई ... कल से जाने क्यूँ तुम हमें बहुत अच्छे लग रहे हो...रात को तू ने आई को कितने अच्छे से संभाला और हम दोनो को भी कितने प्यार से सुलाया ..हम दोनो येई सब बातें कर रहे थे ..... "

तब तक सिंधु भी आ गयी थाली पर तीन ग्लास चाइ लिए ..

" हां भाई दीदी ठीक ही तो बोल रही है ...पहले तुम कितने चुप रहते थे ..."

मैने चाइ का ग्लास लिया , एक घूँट लिया और कहा

" हां रे ...बात तो सही है...लगता है बापू के जाने से घर का माहौल काफ़ी खुला खुला हो गया है ...पहले साला कितना टेन्षन रहता था ...जब देखो गाली गलौज़ और लड़ाई झगड़ा ... "
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Re: चुदासी चौकडी

Post by rajsharma »

सिंधु मेरे बगल बैठ गयी ..मैं दोनो के बीच था ..

" पर तुम दोनो को हँसी क्यूँ आई मुझे देख..ये तो बता ..??" मैने फिर से पूछा ..

बिंदु थोड़ा शर्मा गयी ..उसके गाल लाल हो गये ..उस ने सिंधु को देखा

" अरे तू ही बता दे ना रे सिंधु ..लगता है भाई आज मानेगा नहीं ..."

सिंधु ने भी चाइ की एक घूँट अंदर ली . मुझे बड़ी शरारती आँखों से देखा और कहा

" भाई ...आज सुबेह सुबेह तुम्हारे को क्या हुआ था ...??"

" क्या हुआ था...? कुछ भी तो नहीं ..." मैने बौखलाते हुए कहा

" पर तेरे टाँगों के बीच कुछ लंबा सा उभरा उभरा क्या था ...?"

" ह्म्‍म्म्मम..तो ये बात है ....अरे बाबा जब तुम दोनो की तरह प्यारी और खूबसूरत लड़कियाँ मेरे दोनो ओर लेटी हों ....तो अगर मेरी टाँगों के बीच हरकत ना हो..ये तो तुम दोनो के लिए डूब मरने वाली बात हुई ना .." ऐसा बोलते हुए मैने सिंधु को उसे कंधे से जकड़ते हुए अपने पास खिच लिया ..

मेरा जवाब सुन कर बिंदु के गाल तो लाल हो गये ..पर सिंधु पर फिर से हँसी का दौर चढ़ बैठा ...

मैं समझ गया दोनो बहेनें क्या चाहती थीं ...ग़रीबी के कुछ फ़ायदे भी होते हैं ...

इतने दिनों से हम सब एक ही कमरे में सोते हैं...मेरा बाप मेरी मा की चुदाई भी किसी कोने में वहीं करता था ...बिंदु और सिंधु इन सब बातों को देखते ..परखते ही जवान हो गयी थीं ...उनमें भी उबाल आना शुरू हो गया था ...और अब ये उबाल बाहर आने की कोशिश में था ...

मैं भी आख़िर गबरू जवान था ...तीन तीन हसीन औरतों के बीच ...मेरी भी जवानी फॅट पड़ने की कगार पर पहून्च चूकी थी ...और आज सुबेह मा के साथ वाली बात ने आग में घी का काम कर दिया था और अब बिंदु और सिंधु की बातों से आग से लपट निकल्ने शुरू हो गये थे ..

मैने सिंधु और बिंदु दोनो को अपने सीने से लगा लिया ...उनके माथे और गालों को चूमता हुआ कहा

" वो तुम दोनो के लिए मेरे प्यार का इज़हार था मेरी बहनों ....." मैने भर्राये गले से कहा .

अब सिंधु भी सीरीयस हो गयी थी और अपना चेहरा मेरे सीने से लगाए चुप चाप बैठी थी .

दोनो बहने मेरे से लगे चुपचाप अपने भाई के चौड़े सीने में अपने आप को बहुत महफूज़ समझ रही थी ...बहुत सुकून था उनके चेहरे पर ..आज तक उन्हें अपने बाप से ऐसा प्यार और सुकून नहीं मिला ..मर्द का साया और मर्दानगी उनसे अब तक दूर थी ...वो सब उन्हें मुझ से मिल रहा था ...

हम तीनों चुप थे और एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे का साथ और प्यार में खोए ..

बिंदु ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा ..

" हां भाई हम समझते हैं ....तुम बहुत प्यार करते हो हम तीनों से ..है ना..??" बिंदु ने कहा ...

मैने बिंदु को अपने और करीब खिच लिया उसे अपनी छाती से लगाया ..सिंधु भी और चिपक गयी ..." हां मेरी बहनो..मेरे लिए तुम दोनो बहेनें और मेरी मा के सिवा और कोई नहीं ..तुम सब मेरी जान हो ..मेरी जान .... मैं तुम सब के लिए अपनी जान दे सकता हूँ ..."

सिंधु ने झट अपने हाथ मेरे मुँह पर रखा और कहा

" भाई ..जान देनेवाली बात फिर मत करना ..." और अब तक मेरी टाँगों के बीच फिर से कड़क उभार आ गयी थी ...सिंधु ने उसे अपने हाथों से जाकड़ लिया " अगर देना है तो हमें तुम्हारा ये लंबा हथियार दे दो और हमारी जान ले लो ... हैं ना दीदी ...देखो ना कैसा हिल रहा है हमारे प्यार में .."

उस ने मेरे लंड को थामते हुए बिंदु को दिखाया ..

बिंदु ने भी उसे थाम लिया पर थोड़ा हिचकिचाते हुए ..थोड़ा शरमाते हुए ...सिंधु की पकड़ में सख्ती थी और बिंदु की पकड़ में थोड़ी हिचकिचाहट और नर्मी ...

और मैं आँखें बंद किए अपनी दोनो बहनो के अनोखे अंदाज़ के मज़े में खोया था ..कांप रहा था..

तभी बिंदु ने एक झटके में अपना हाथ हटा लिया ..और पीछे हट गयी ....जैसे किसी गहरी नींद से अचानक जाग गयी हो..

" अरे बेशरम सिंधु..कुछ तो शरम कर ..ये तेरा अपना भाई है ..रे ..सगा भाई .."

" हां ..हां अभी तक तो तू भी मज़े से थामी थी ..क्यूँ..? मज़ा नहीं आया..और अब भाई की दुहाई दे रही है..चल नाटक बंद कर ..मैं जानती हूँ तेरे को....तू मुझ से भी ज़्यादा चाहती है ....पर बोलती नहीं ...मैं जानती हूँ...." और उस ने मेरे लंड को उपर नीचे करना शुरू कर दिया और कहती भी जाती " अरे ऐसा भाई और ऐसा हथियार किस्मत वालों को ही नसीब होता है .... देख ना रे बिंदु कितना फुंफ़कार रहा है ...चल आ जा ...आज काम की छूट्टी करते हैं ...."

बिंदु ने बड़े प्यार से एक चपत लगाई सिंधु के गाल पर " साली बड़ी बड़ी बातें करती है ..कहाँ से सीखी रे.....जा तू भी क्या नाम लेगी ....तू मज़े ले मैं जाती हूँ काम पर ....पर कल की बारी मेरी रहेगी ...और हां भाई ....ज़रा संभाल के हम दोनो अभी भी बिल्कुल अछूते हैं ..तुम्हारे लिए ही संभाल के रखा है हम दोनो ने जाने कब से.."

और बिंदु ने मुझे भी एक चूम्मी दी मेरे गाल पर ..अपने कपड़े ठीक किए और बाहर निकल गयी .

मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन एक बार तो भौंचक्का रह गया ..इन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं थी ..बस आपस में ही बकर बकर बातें किए किए सब कुछ फ़ैसला कर लिया.... जवानी भी क्या चीज़ है भाइयो...और उस से भी बड़ी जवानी की भूख ... इस भूख की आग में सब कुछ जल कर खाक हो जाता है..रिश्तों के बंधन तार तार हो जाते हैं ...बस सिर्फ़ एक ही रिश्ता रह जाता है ..लंड और चूत का....और जब उसमें प्यार के भी रंग आ जाए तो मज़ा और भी बढ़ जाता है..फिर ये सिर्फ़ लंड और चूत नहीं बल्कि दो आत्माओं का मिलन हो जाता है.....लंड और चूत अपने अपने रास्ते दोनो के दिलो-दीमाग तक पहून्च जाते हैं ....

कुछ ऐसा ही हुआ था हम सब के साथ..इतने दिनों हम प्यार , रिश्ता और आपसी लगाव से दूर बहुत ही दूर थे..पर इन दो तीन दिनों में अपने बेरहम बाप और एक औरत के जालिम मर्द की मौत ने हम सब को एक दूसरे के बहुत करीब ला दिया था....प्यार और साथ का बाँध , जो इतने दिनों तक रुका था ..अब ऐसा फूटा के रुकने का कोई नाम ही नहीं था ....और हम एक दूसरे से सब कुछ हासिल करने को जी जान से मचाल उठे थे ...तड़प रहे थे हम सब ....

इसी तड़प में सिंधु और बिंदु ने हमें भी शामिल कर लिया था ....अपना सब कुछ लूटाने को तैय्यार ...अपने भाई पर अपना प्यार और जवानी लूटने को मचल उठी थी दोनो ...

सिंधु खाट से उठी और फ़ौरन दरवाज़ा बंद कर दिया ..मैं अभी भी खाट पर बैठा था ..अपने टाँगें खाट से नीचे लटकाए ....सिंधु मेरे टाँगों को अपनी दोनो टाँगों के बीच करते हुए खड़ी हो गयी ...और सीधा मेरी आँखों में देखती रही ....चुप चाप....चेहरे पे कोई भाव नहीं ..एक दम सीरीयस ...जैसे उस ने अपने मन में कुछ सोच लिया हो और अब उसे पूरा करना ही है ..चाहे कुछ भी हो....

" ऐसे क्या देख रही है सिंधु ...? " मैने बात शुरू की..
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