दो भाई दो बहन compleet

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rajsharma
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दो भाई दो बहन compleet

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दो भाई दो बहन

लेखक राज अग्रवाल

हिन्दी फ़ॉन्ट बाइ मी


राज अपने घर से कुछ दूरी पर बने तालाब के किनारे एक पेड़ की छाया

मे बैठा था. राज एक 21 वर्ष का गथीला नौजवान था. सिर पर

काले घूघराले बाल, चौड़ी बलिश्त छाती और मजबूत बाहें.

ये उसकी पसंदीदा जगह थी. उसे जब भी समय मिलता वो यहीं आकर

बैठता था. यहाँ का शांत वातावरण और एकांत उसे अछा लगता था.

राज ने आगे बढ़कर एक पत्थर को उठा लिया और हवा मे उछालने लगा

जैसे की उसका वजन नाप रहा हो. फिर उसकी निगाह आपने सामने रखे

कुछ पन्नो पर पड़ी, जिनपर सुंदर अक्षरों मे कुछ लिखा हुआ था.

काग़ज़ के पन्ने हवा मे फड़ फाडा रहे थे.

पत्थर के वजन से सन्तूस्त हो उसने वो पन्ने अपनी गोद मे रख लिए

और पत्थर को ठीक उनके बीचों बीच रख कर पन्नो को उस पत्थर से

लपेट दिया. फिर अपनी जेब से एक पतली सी रस्सी निकाल उसने उन पन्नो

को बाँध दिया.

वो अपनी जगह से उठा और तालाब के किनारे पर आकर उस पत्थर को

पानी के बीचों बीच फैंक दिया. पत्थर के फैंकते ही पानी जोरों से

चारों तरफ उछला और वो पत्थर तालाब की गहराइयों मे समाता चला

गया.

राज चुपचाप सोच रहा था कि ना जाने कितने ही ऐसे पन्ने इस तालाब

की गहराईओं मे दफ़न पड़े है. वैसे तो पानी का एक कतरा उन पर

लीखी लकीरो को मिटाने के लिए काफ़ी है पर अगर शब्द सिर्फ़

धुंधले पड़ गये तो वो पढ़ने के लिए काफ़ी होंगे. क्या उसे इन पन्नो

को जला देना चाहिए था जिसपर उसने अपनी कल्पना को एक कहानी की

शक्ल मे अंजाम दिया था.

तभी उसे तालाब के दूसरी तरफ़ से कुछ आवाज़ सुनाई दी. उसने अपनी

बेहन की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. वो तुरत उस पेड़ के पीछे

छिप गया जिससे आनेवाले की नज़र उस पर ना पड़ सके. जैसे ही उसने

अपनी बेहन को देखा जिसने एक सफेद रंग की शॉर्ट्स के उपर एक लाल

रंग का टॉप पहन रखा था उसकी आँखें बंद हो गयी. उसने पेड़ का

सहारा ले लिया और अपने ख़यालों मे खोया अपनी बेहन रोमा की प्यारी

हँसी सुनने लगा.

थोड़ी ही देर मे उसका लंड उसकी शॉर्ट मे तन कर खड़ा हो गया. दिल

मे ज़ज्बात का एक मीठा मीठा दर्द उमड़ने लगा. वो जानता था कि उसे

एक दिन अपनी बेहन को पाना है. रोमा रोज़ अपनी सहेलियों को घर लाकर

उसे चिढ़ाती थी. उसे उसकी इस हरकत पर प्यार आता था पर वो अपनी

बेहन से इससे कहीं ज़्यादा प्यार करता था. वो जानता था कि रोमा की

सब सहेलियाँ उसे लाइन मारती है पर उसकी सब सुंदर सहेलियाँ भी

उसे अपनी बेहन से अलग नही कर सकती थी.

राज का दायां हाथ उसके खड़े लंड पर आ गया. शॉर्ट्स के उपर से ही

वो अपने लंड के सूपदे को मसल्ने लगा. उसके मुँह से एक मादक कराह

निकली तो पेड़ पर बैठे कुछ पंछी उसकी बेहन की दिशा मे उड़ गये.

उसे तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ. उसने अपने आप को और पेड़ के

पीछे इस कदर छुपा लिया कि किसी की भी नज़र उस पर ना पड़ सके.

अपने एकांत से संतुष्ट हो उसने अपनी शॉर्ट्स की ज़िप खोली और अपने

खड़े लंड को खुली हवा मे आज़ाद कर दिया. अब वो अपनी आँखे बंद

अपने लंड को मसल्ने लगता है. खुली आँखों की जगह वो बंद

आखों से अपनी बेहन को और ज़्यादा अच्छे रूप मे देख रहा था.

उसने देखा कि उसकी बेहन नंगे पावं घास पर दौड़ रही है. राज अपनी

18 वर्षीया बेहन के पीछे दौड़ रहा है उसे पकड़ने के लिए और

आख़िर मे वो उसे पकड़ ही लेता है. दोनो घास पर गिर जाते है और

रोमा हंस पड़ती है.

थोड़ी देर बाद वो उसके मुलायम पंजो को मसल्ने लगता है. वो खुले

आसमान के नीचे घास पर लेटे उसकी उंगलियों को महसूस कर रही थी.

वो अपनी जादुई उंगलियों से उसकी पैरों की मालिश करने लगा तो वो

सिसक पड़ी और उसकी छोटे छोटे मम्मे टॉप के अंदर उछलने लगे.

उसने उसकी दाँयी टांग को उठा कर अपनी गोद मे रख लिया. इससे उसकी

जंघे थोड़ी फैल गयी और उसकी नज़र ठीक उसकी जांघों के बीच मे

पड़ी. पैर थोड़ा सा उठा हुआ होने की वजह से शॉर्ट्स के अंदर से सब

दीख रहा था. उसने देखा कि उसने काले रंग की पॅंटी पहन रखी

है और उसकी चूत की बारीक़ियाँ पॅंटी के बगल से दिख रही है.

राज अपनी कल्पना को किसी फिल्म की तरह अपने ख़यालों मे देख रहा

था, और उसका हाथ पूरी रफ़्तार से खुद के लंड पर चल रहा था.

अपनी कल्पना मे राज अपने हाथ उसके नाज़ुक पंजो को मसल्ते मसल्ते

उसके घूटनो तक ले आया और वहाँ की मालिश करने लगा. कितनी

सुंदर मुलायम त्वचा थी. घूटनो की मालिश करते करते भी उसकी

निगाह शॉर्ट्स मे दीखती काली पॅंटी पर टिकी हुई थी. घुटनो से आगे

बढ़ कर उसके हाथ अब जाँघो के अन्द्रुनि हिस्सों पर पहुँचे.

जैसे ही उसका हाथ जांघों से थोड़ा उपर पहुँचा उसका शरीर कांप

उठा. एक शांत रज़ामंदी पा उसके हाथ शॉर्ट्स के अंदर उसकी पॅंटी के

किनारे तक पहुँचे तो उसे लगा जैसे कि कोई गरम भाप पॅंटी के

अंदर से उठ रही है.

ये उसकी कल्पना थी. आखरी क्षण मे जब उसके लंड मे उबाल आने

लगा तो उसने यहाँ तक सोच डाला कि वो उसके पैरों के बीच बैठा

अपने लंड को उस छोटे से छेद मे घुसा रहा हो. उसका लंड उस छोटे

छेद की दीवारों को चीरता हुआ अंदर तक घुस रहा है.

तभी उसके लंड ने उबाल खाया और विर्य की एक लंबी पिचकारी सामने

के पत्रों पर गिरने लगी. वो जोरों से अपने लंड को मसल्ते हुए लंड

से आखरी बूँद तक पत्थरो पर फैंकने लगा. उसने अपनी आँखे

खोली और सामने गिरे वीर्य को देखने लगा.

************

"कहाँ है वो?" रोमा ने अपने आप से पूछा. वो और उसकी सहेली गीता

एक दूसरे का हाथ पकड़े तालाब के किनारे तक आ गये थे. उसने अभी

थोड़ी देर पहले उसे तालाब के किनारे बैठे एक पत्थर को तालाब मे

फैंकते देखा था, अब कहाँ चला गया.

"यार मे तो थक गयी हूँ" गीता ने शिकायत की. उसे पता था कि

उसकी कोई अदा कोई तरीका राज को अपनी तरफ आकर्षित करने मे कामयाब

नही हो पाएगी, "मेरी तो समझ मे नही आ रहा कि में क्या करूँ."

"आओ यहाँ तालाब के किनारे बैठते है." रोमा ने कहा.

तालाब के किनारे बैठते ही उसका ध्यान अपने 21 वर्षीया भाई राज पर

आ टिका. कितना अकेला अकेला रहता है वो. वो हमेशा अपनी सहेलियों

को घर लेकर आती जिससे उसका दिल बहल जाए. पर वो है कि अलग

अलग ही रहना पसंद करता है.

रोमा को पता था कि उसका भाई एक प्यारा और जज्बाती इंसान है. वो

अपने कॉलेज की आखरी साल मे थी और राज ग्रॅजुयेशन कर चुका था.

ग्रॅजुयेशन करने के बाद भी उसने अभी तक कोई गर्ल फ़्रेंड नही

बनाई थी. वो इसी उम्मीद से अपनी सहेलियों को घर लाती कि शायद

इनमे से कोई उसके भाई को भा जाए. पर ऐसा ना होने पर अब उसकी

सहेलियों ने भी आना छोड़ दिया था. गीता भी यही शिकायत कर

रही थी. रोमा को सब समझ मे आ रहा था और उसे अपने भाई पर

झुंझलाहट भी हो रही थी और उसकी इस अदा पर प्यार भी आता था.

"सिर्फ़ अपनी स्टुपिड किताब मे कुछ लिखता रहता है." रोमा ने शिकायत

करते हुए कहा.

"राज...और लिखता रहता है?" गीता ने आश्‍चर्या से पूछा.

"हाँ और क्या." रोमा ने कहा, "यही काम है जो वो दिन भर करता

रहता है. ग्रॅजुयेशन के बाद कितना बदल गया है वो. ऐसा लगता

है कि उसकी जिंदगी किसी जगह आकर ठहर गयी है. वो मुझे भी

हर समय नज़र अंदाज़ करता रहता है. समझ मे नही आता की उसे

परेशानी क्या है. "

"क्या लिखता रहता है वो अपनी किताब मे?" गीता ने पूछा.

रोमा ने अपने कंधे उचकते. हुए कहा, "मुझे पता नही. मेने कई

बार जानने की कोशिश कि लेकिन वो अपनी कीताब इस कदर छुपा कर

रखता है कि कुछ पता नही. जब वो लिखना ख़तम कर लेता है तो

उन पन्नो को किताब मे से फाड़ देता है. हज़ारों कहानियाँ लिखी होगी

उसने."

"हो सकता हो कि वो कहानियाँ ना हो, सिर्फ़ डायरी मेनटेन करता हो"

गीता ने कहा.

"हां हो सकता है," रोमा ने इतना कहा ही था कि उसने राज को पेड़ के

पीछे से बाहर आते देखा. पहली बार उसे एहसास हुआ कि वो पेड़ के

पीछे था, पर वो कर क्या रहा था? उसने सोचा.

"शैतान का नाम लो और शैतान हाज़िर है." गीता ने हंसते हुए

कहा, "तुम्हे पता है रोमा अगर ये तेरा भाई अगर मुझे रत्ती भर

भी लिफ्ट देता तो में पहले ही दिन उसे सेंचुरी बनाने का मौका दे

देती."

"चल छीनाल कहीं की." रोमा ने कहा, "अछा एक बात तो बता .

अब तक कितने बॅट्स्मन को बॅटिंग करने का मौका दिया है?"

"वैसे अभी तक तो छीनाल बनी नही हूँ." गीता ने कहा, "पर हां

तेरे भाई के लिए छीनाल बनने को भी तय्यार हूँ, मैं तो बस इतना

कहती हूँ कि मैं अपनी जान देती हूँ इसपर."

"हां ये तो है." रोमा ने अपने भाई की ओर देखते हुए कहा जो तालाब

के राउंड लगाते हुए उनकी तरफ ही आ रहा था.

क्रमशः.............
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

1

Raj apne ghar se kuch doori par bane talab ke kinare ek ped ki chaya

me baitha tha. Raj ek 21 varsh ka gatheela naujawan tha. Sir par

kaale ghooghralu baal, chaudi balisht chaati aur majboot bahen.

Ye uski pasindada jagah thi. Use jab bhi samay milta wo yahin aakar

baithta tha. Yahan ka shant vatavaran aur ekant use acha lagta tha.

Raj ne aage badhkar ek pathar ko utha liya aur hawa me uchalne laga

jaise ki uska wajan naap raha ho. Phir uski nigah aapne saamne rakhe

kuch panno par padi, jinpar sundar aksharon me kuch likha hua tha.

Kagaz ke panne hawa me phad phada rahe the.

Pathar ke wajan se santoosht ho usne wo panne apni god me rakh liye

aur pathar ko thik unke beechon beech rakh kar panno ko us pather se

lapet diya. Phir apni jeb se ek patli si rassi nikal usne un panno

ko bandh diya.

Wo apni jagah se utha aur talab ke kinare par aakar us pathar ko

pani ke beechon beech faink diya. Pathar ke fainkte hi pani joron se

charon taraf uchala aur wo pathar talab ki gehraiyon me samata chala

gaya.

Raj chupchap soch raha tha ki naa jane kitne hi aise panne is talab

ki gehraion me dafan pade hai. Waise to pani ka ek katra un par

leekhi lakeereon ko mitane ke liye kafi hai par agar shabd sirf

dhoondle pad gaye to wo padhne ke liye kafi honge. Kya use in panno

ko jala dena chahiye tha jispar usne apni kalpaana ko ek kahani ki

shakl me anjaam diya tha.

Tabhi use talab ke doosri tarf se kuch awaaz sunai dee. Usne apni

behan ki awaaz ko turant pehchan liya. Wo turat us ped ke peeche

chip gaya jisse aanewale ki nazar us par na pad sake. Jaise hi usne

apni behan ko dekha jisne ek safed rang ki shorts ke upar ek laal

rang ka top pehan rakha tha uski aankhen band ho gayi. Usne ped ka

sahara le liya aur apne khayalon me khoya apni behan Roma ki pyaari

hansi sunne laga.

Thodi he der me uska lund uski short me tan kar khada ho gaya. Dil

me jajbat ka ek meetha meetha dard umadne laga. Wo janta tha ki use

ek din apni behan ko pana hai. Roma roz apni saheliyon ko ghar lakar

use chidhati thi. Use uski is harkat par pyaar aata tha par wo apni

behan se isse kahin jyada pyaar karta tha. Wo janta tha ki Roma ki

sab saheliyan use line marti hai par uski sab sunder saheliyan bhi

use apni behan se alag nahi kar sakti thi.

Raj ka dayan hath uske khade lund par aa gaya. Shorts ke upar se hi

wo apne lund ke supade ko masalne laga. Uske munh se ek madak karah

nikali to ped par baithe kuch panchi uski behan ki disha me ud gaye.

Use turant apni galti ka ehsas hua. Usne apne aap ko aur ped ke

peeche is kadar chupa liya ki kisi ki bhi nazar us par na pad sake.

Apne ekant se santoosht ho usne apni shorts ki zip kholi aur apne

khade lund ko khuli hawa me azaad kar diya. Ab wo apni aankhe band

apne lund ko masalne lagta hai. Khuli aankhon ke jagah wo band

aakhon se apni behan ko aur jyada acche roop me dekh raha tha.

Usne dekha ki uski behan nange paon ghas par daud rahi hai. Raj apni

18 varshiya behan ke peeche daud raha hai use pakadne ke liye aur

aakhir me wo use pakad hi leta hai. Dono ghas par gir jaate hai aur

Roma hans padti hai.

Thodi der bad wo uske mulayam panjo ko masalne lagta hai. Wo khule

aasman ke neeche ghas par lete uski ungliyon ko mehsus kar rahi thi.

Wo apni jaadui ungliyon se uski pairon ki maalish karne laga to wo

sisak padi aur uski chote chote mame top ke andar uchalne lage.

Usne uski daanyi tang ko utha kar apni god me rakh liya. Isse uski

janghe thodi fail gayi aur uski nazar thik uski janghon ke beech me

padi. Pair thoda sa utha hua hone ki wajah se shorts ke andar se sab

deekh raha tha. Usne dekha ki usne kale rang ki panty pehan rakhi

hai aur uski choot ki baarikiyan panty ke bagal se dikh rahi hai.

Raj apni kalpana ko kisi film ki tarah apne khayalon me dekh raha

tha, aur uska hath puri raftar se khud ke lund par chal raha tha.

Apni kalpana me Raj apne hath uske naajuk panjo ko masalte masalte

uske ghootno tak le aya aur wahan ki maalish karne laga. Kitni

sunder mulayam twacha thi. Ghootno ki maalish karte karte bhi uski

nigah shorts me deekhti kali panty par tiki hui thi. Ghutno se aage

badh kar uske hath ab jangho ke andruni hisson par pahunche.

Jaise hi uska hath janghon se thoda upar pahuncha uska sharir kanp

utha. Ek shant razamandi paa uske hath shorts ke andar uski panty ke

kinare tak pahunche to use laga jaise ki koi garam bhap panty ke

andar se uth rahi hai.

Ye uski kalapana thi. Aakhri chano me jab uske lund me ubaal aane

laga to usne yaahn tak soch dala ki wo uske pairon ke beech baitha

apne lund ko us chote se ched me ghusa raha ho. Uska lund us chote

ched ki deewaron ko chirta hua andar tak ghus raha hai.

Tabhi uske lund ne ubal khaya aur virya ki ek lambi pichkari samne

ke pathron par girne lagi. Wo joron se apne lund ko masalte hue lund

se aakhri boond tak pathoron par fainkne laga. Usne apni aankhe

kholi aur samne gire virya ko dekhne laga.

************

"Kahan hai wo?" Roma ne apne aap se pucha. Wo aur suki saheli Geeta

ek doosre ka hath pakde talab ke kinare tak aa gaye the. Usne abhi

thodi der pehle use talab ke kinare baithe ek pathar ko talab me

fainkte dekha tha, ab kahan chala gaya.

"Yaar me to thak gayi hun" Geeta ne shikayat ki. Use pata tha ki

uski koi ada koi tareeka Raj ko apni taraf aakarshit karne me kamyab

nahi ho paigi, "Meri to samajh me nahi aa raha ki mein kya karun."

"Aao yahan talab ke kinare baithte hai." Roma ne kaha.

Talab ke kinare baithte hi uska dhyaan apne 21 varshiya bhai Raj par

aa tika. Kitna akela akela rehta hai wo. Wo hamesha apni saheliyon

ko ghar lekar aati jisse uska dil behal jaye. Par wo hai ki alag

alag hi rehna pasand karta hai.

Roma ko pata tha ki uska bhai ek pyaara aur jajbati insaan hai. Wo

apne college ki aakhri saal me thi aur Raj graduation kar chuka tha.

Graduation karne ke baad bhi usne abhi tak koi girl freind nahi

banayi thi. Wo isi umeed se apni saheliyon ko ghar laati ki shayad

inme se koi uske bhai ko bha jaye. Par aisa na hone par ab uski

saheliyon ne bhi aana chod diya tha. Geeta bhi yahi shikayat kar

rahi thi. Roma ko sab samajh me aaa raha tha aur use apne bhai par

jh*****at bhi ho rahi thi aur uski is ada par pyaar bhi aata tha.

"Sirf apni stupid kitab me kuch likhta rahta hai." Roma ne shikayat

karte hue kaha.

"Raj...aur likhta rehta hai?" Geeta ne ashcarya se pucha.

"Haan aur kya." Roma ne kaha, "yahi kaam hai jo wo din bhar karta

rehta hai. Graduation ke baad kitna badal gaya hai wo. Aisa lagata

hai ki uski jindagi kisi jagah aakar thehar gayi hai. Wo mujhe bhi

har samay nazar andaz karta rehta hai. Samajh me nahi aata ki use

pareshani kya hai. "

"Kya likhta rehta hai wo apni kitaab me?" Geeta ne pucha.

Roma ne apne kandhe uchkate hue kaha, "mujhe pata nahi. Meine kai

bar janne ki koshish ki lekin wo pani keetab is kadar chupa kar

rakhta hai ki kuch pata nahi. Jab wo likhna khatam kar leta hai to

un panno ko kitaab me se phad deta hai. Hazaron kahaniyan likhi hogi

usne."

"Ho sakta ho ki wo kahaniyan na ho, sirf dairy maintain karta ho"

Geeta ne kaha.

"Haan ho sakta hai," Roma ne itna kaha hi tha ki usne Raj ko ped ke

peeche se bahar aate dekha. Pehli baar use ehsas hua ki wo ped ke

peeche tha, par wo kar kya raha tha? usne socha.

"Shaitan ka naam lo aur shaitan hazir hai." Geeta ne hanste hue

kaha, "tumhe pata hai Roma agar ye tera bhai agar mujhe rati bhar

bhi lift deta to mein pehel hi din use century banane ka mauka de

deti."

"Chal chinal kahin ki." Roma ne kaha, "achaa ek baat to bata wiase

ab tak kitne batsman ko batting karne ka mauka diya hai?"

"Waise abhi tak to chinal bani nahi hun." Geeta ne kaha, "par haan

tere bhai ke liye chinal banne ko bhi tayyar hun, mein to bas itna

kehti hun ki mein apni jaan deti hun ispar."

"Haan ye to hai." Roma ne apne bhai ki aur dekhte hue kaha jo talab

ke round lagate hue unki taraf hi aa raha tha.

kramashah.............

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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2

गतान्क से आगे.............

रोमा के मन मे जलन सी जाग गयी ये सोच कर कि कितनी लड़कियाँ उसके

भाई पर जान छिड़कती है. उसकी आँखों मे हल्की सी नमी सी आ गयी.

दिल मे एक अजीब सा दर्द सा उठने लगा जो हमेशा किसी वक्त उसके

प्यार से भरा रहता था. अब वो उसपर ध्यान ही नही देता था.

रोमा ने देखा कि राज उनकी तरफ ही बढ़ रहा है. जलन के मारे उसने

गीता को देखा जो घास पर लेटी थी और अपने उठे हुए मम्मे दीखाने

की कोशिश कर रही थी. उसकी चुचियाँ किसी मधुमक्खी के छ्त्ते

की तरह उठी हुई थी जैसे की मक्खियो को न्योता दे रही हो. उसकी

समझ मे नही आ रहा था कि अगर राज ने उसकी तरफ ध्यान दिया और

कुछ कहा तो वो क्या करेगी.

किंतु राज ने ऐसा कुछ नही किया और उसकी बगल से गुज़ारते हुए उसके

सिर को ठप थपाते हुए सिर्फ़ इतना कहा, "अपनी जिंदगी को जीना

सीखो और मेरी जिंदगी मे दखल देना बंद करो."

राज की बात उसके दिल को चुब सी गयी किंतु दिल मे एक अजीब सी खुशी

भी जाग उठी. आज कितने महीनो बाद उसके भाई ने उससे बात की थी.

खुशी की एक हल्की लकीर उसके होठों पर आ गयी.

"में तो अपनी जिंदगी जी रही हूं लेकिन एक तुम हो जो अपनी जिंदगी

से भाग रहे हो..." रोमा ने अपनी खुशी को छुपाते हुए कहा.

राज ने एक राहत की सांस ली. वो हमेशा से डरता था कि अगर वो रोमा

के ज़्यादा करीब रहेगा तो एक दिन उसकी बेहन उसके मन की भावनाओ को

पहचान लेगी. जबसे उसकी कल्पनाओ मे वो आने लगी थी उसने उसके करीब

रहना छोड़ दिया था. एक यही तरीका था उसके पास से अपने ज़ज्बात और

अपनी भावनाओ को छिपाने का. वो अपनी बेहन को बहोत प्यार करता था

और उससे दूर रह कर ही वो एक बड़े भाई का फ़र्ज़ निभा सकता था.

"तुम सच कहती हो रोमा, वो अपनी जिंदगी से भाग ही रहा है." राज

के व्यवहार को देख गीता को एक बार फिर दुख पहुँचा था. उसने

कितना प्रयत्न किया था कि वो राज को आकर्षित कर सके किंतु वो

सफल नही हो पा रही थी.

"रोमा में अब चलती हू सोमवार को सुबह कॉलेज मे मिलेंगे." गीता

इतना कहकर वहाँ से चली गयी.

रोमा ने पलट कर अपने भाई की ओर देखा. राज उसकी नज़रों से ओझल

हो चुका था लेकिन वो अब भी उसके ख़यालों मे बसा हुआ था. उसे लगा

कि वो घूम कर उसके पास आ गया है और उसकी बगल मे घास पर

बैठ गया हो. वो उससे उसके दोस्त, उसकी कॉलेज लाइफ के बारे मे पूछ

रहा है.

उसकी कल्पना मे आया कि अचानक उसका बाँया हाथ उसके दाएँ हाथ से

टकरा गया और उसके बदन मे जैसे बिजली का करेंट दौड़ गया हो.

उसके मन मे आया कि वो उसे सब कुछ बता दे कि किस तरह उसकी कमी

उसके जीवन को खोखला कर रही है, उसे अपना वही पुराना भाई

चाहिए जो पहले था.

* * * * * * * * *

"रोमा ज़रा ये कचरा तो बाहर फैंक देना." उसकी मम्मी ने कहा.

"पर मम्मी ये तो राज का काम है ना." रोमा ने कहा.

"राज घर पर नही है, और तुम घर पर हो इसलिए मुझसे ज़्यादा

बहस मत करो और जाकर कचरा फैंक कर आओ." उसकी मम्मी ने थोड़ा

गुस्सा दिखाते हुए कहा.

बेमन से रोमा ने कचरे की थैली बस्टबिन से बाहर निकाली और बगल

मे रख दी. फिर एक फ्रेश नई थैली डस्ट बिन मे लगा दी तभी उसका

ध्यान कचरे की थैली से बाहर झाँकती एक कीताब पर पड़ी.

उत्स्सूकता वश उसने वो कीताब उठा ली और बगल की अलमारी मे छिपा

दी.

रोमा कचरे की थैली घर से बाहर फैंक कर वापस आई और वो

कीताब अलमारी से निकाल अपने कमरे मे आ गयी. कमरे का दरवाज़ा अंदर

से बंद कर वो कीताब खोल देखने लगी. उसने देखा कि कीताब के

पन्ने कोरे थे और उनपर कुछ भी नही लिखा था.

उसका दिल मायूशी मे डूब गया. उसे लगा था कि वो राज की कहानी का

राज आज जान जाएगी तभी उसने देखा कि पन्नो पर लिखाई के कुछ

अक्षर दिख रहे है.

वो दौड़ कर अपने कॉलेज बॅग से पेन्सिल निकाल कर ले आई और उन

पन्नो पर घिसने लगी. थोड़ी ही देर मे लीखाई के अक्षर उभर कर

सॉफ हो गये.

कीताब पर लीखे शब्दों को पढ़ वो चौंक गयी. क्या राज यही सब

अपनी कहानी मे लीखता रहता है.

...."मेने उससे कह दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ. वो मुस्कुरा

कर मेरी तरफ देखती है. मैं हल्के से उसकी चुचि को छूता हूँ

और वो सिसक पड़ती है. में और ज़ोर से दबाता हूँ. उसे आछा

लगता है.

......अब में उसकी दोनो चुचियों को दबाता हूँ. अब वो गरमाने

लगती है. में जानता हूँ वो मुझे पाना चाहती है........"

"कौन है ये लड़की...?" रोमा मन ही मन बदबूदा उठती है. कोई

कल्पनायक लड़की है या हक़ीकत मे कोई है...."

रोमा कीताब को अपनी छाती से लगाए पलंग पर लेट जाती है. वो

सोचने लगती है कि वो लड़की कौन हो सकती है. अचानक उसे लगता

है कि वो लड़की खुद ही है. अपनी ही कल्पना मे खोए वो अपने अक्स

को उन कोरे पन्नो मे ढूँदने की कोशिश करती है.

"ओह्ह्ह्ह राज में तुमसे कितना प्यार करती हूँ." वो कह उठती है, उसे

लगता है कि राज उसकी बगल मे ही लेटा हुआ है.

अपना प्यार खुद पर जाहिर कर उसे लगा कि उसके दिल से बोझ उत्तर

गया. जिन भावनाओ को वो छुपाते आई थी आज वो रंग दीखाने लगी

थी. उसके हाथ खुद बा खुद उसकी चुचियों पर जा पहुँचे और

वो उन्हे मसल्ने लगती है. उत्तेजना और प्यार की मादकता मे उसके

निपल तन कर खड़े जो जाते है. कामुकता की आग मे उसका बदन

ऐंठने लगता है.

दरवाज़े पर थपथपाहट सुन उसका ध्यान भंग होता है. फिर जैसे

वो दरवाज़े को खुलता देखती है झट से अपना हाथ अपनी चुचियों से

खींच लेती है.

राज ने अर्ध खुले दरवाज़े से अंदर झाँका. उसने देखा कि रोमा का लाल

रंग का टॉप थोड़ा उपर को खिसका हुआ था और उसकी चुचियों की

गोलियाँ साफ दिखाई दे रही थी साथ ही उसके खड़े निपल भी उसकी

नज़र से बच नही सके. इस नज़ारे को देख उसका लंड उसकी शॉर्ट मे

फिर एक बार तन कर खड़ा हो गया.

रोमा ने उसकी नज़रों का पीछा किया तो उसने देखा कि राज उसकी

चुचियों को ही घूर रहा था. उसने झट से अपने टॉप को नीचे किया

पर ऐसा करने से उसके निपल और तने हुए देखाई देने लगे. शर्म

और हया के मारे उसका चेहरा लाल हो गया.

"तुम मेरी जगह पर कचरा फैंक कर आई उसके लिए तुम्हे थॅंक्स

कहने आया था." राज ने कहा.

"कोई बात नही." वो चाहती थी कि राज जल्दी से जल्दी यहाँ से चला

जाए.

राज कुछ और कहना चाहता था लेकिन जब उसने देखा कि रोमा शर्मा

रही है तो उसके मन को पढ़ते हुए वो चुपचाप वहाँ से चला गया.

रोमा अपने चेहरे को अपने हाथों से धक अपने आपको कोसने

लगी, "बेवकूफ़ लड़की आज कितने महीनो बाद उसने तुमसे इस तरह

प्यार से बात की और तुम हो कि उसे भगा दिया. तुम्हे बिस्तर पर उठ

कर बैठ जाना था और उसे कमरे मे आने के लिए कहती. बेवकूफ़

बेवकूफ़."

जैसे ही वो बिस्तर पर से उठने लगी उसकी नज़र राज की किताब और

पेन्सिल पर पड़ी, "हे भागन काश उसने ये सब ना देखा हो."

रोमा सोच मे पड़ गयी कि हे भगवान उसने ये क्या किया. अगर राज ने

वो कीताब देख ली होगी तो एक बार फिर उसने राज को खो दिया है. वो

अपनी रुलाई को रोक ना पाई, उसकी आँखों से तार तार आँसू बहने लगे.

* * * * *

राज का ध्यान अपनी बेहन पर से हटाए नही हट रहा था. जब वो

बाहर से आया तो मम्मी ने उससे कहा था कि वो जाकर रोमा का

धन्यवाद करे क्यों कि उसका काम रोमा ने किया था.

मम्मी की अग्या मान वो उसके कमरे मे गया था और उसने उसे थॅंक्स

कहा था. जब उसने रोमा को बिस्तर पर लेटे देखा तो उसे वो किसी

अप्सरा से कम नही लगी थी. जिस तरह से वो लेटी थी और उसके टॉप मे

उपर को उठी हुई उसकी चुचियाँ और उसके खड़े निपल दीख रहे

थे वो ठीक किसी काम देवी की तरह लग रही थी.

उसके दिल मे तो आया कि उन कुछ लम्हो मे वो अपने दिल की बात रोमा को

बता दे लेकिन दिल की बात ज़ुबान तक आ नही पाई. उसकी समझ मे

नही आया कि वो अपने ज़ज्बात किस तरह अपनी सग़ी बेहन को बताए. वो

अपनी बातों को शब्दों मे ढाल नही पाया. उसे पता था कि थोड़े

दिनो मे रोमा कॉलेज चली जाएग्गी और शायद उसे फिर मौका ना मिले

उसे बताने का.

राज अपने कमरे मे आ गया, वो चाहता तो सीधे रोमा के कमरे मे

जाता और उसे सब कुछ बता देता पर उसमे शायद इतनी हिम्मत नही

थी कि वो उसे बता पाए.

उसे उमीद थी कि रात के खाने पर रोमा से उसकी मुलाकात होगी. पर

रोमा थी कि उसका कहीं पता नही था. राज ने खाना ख़त्म ही किया

था कि उसका सबसे प्यारा दोस्त जय अपनी बेहन रिया के साथ आ

पहुँचा. रिया बगल के सहर के कॉलेज मे पढ़ती थी. जय राज की

ही उमर का था और दोनो ने ग्रॅडुटाशॉन साथ साथ पूरा किया था.

क्रमशः.............

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: दो भाई दो बहन

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2

gataank se aage.............

Roma ke man me jalan si jag gayi ye soch kar ki kitni ladkiyan uske

bhai par jan chidakti hai. Uski aankhon me halki si nami si aa gayi.

Dil me ek ajeeb sa dard sa uthne laga jo hamesha kisi wakt uske

pyaar se bhara rehta tha. Ab wo uspar dhyaan hi nahi deta tha.

Roma ne dekha ki Raj unki taraf hi badh raha hai. Jalan ke mare usne

Geeta ko dekha jo ghas par leti thi aur ape uthe hue mame deekhane

ki koshish kar rahi thi. Uski chuchiyan kisi madhumakkhi ke chaate

ki tarah uthi hui thi jaise ki makhiyon ko nyota de rahi ho. Uski

samajh me nahi aa raha tha ki agar Raj ne suki taraf dhyan diya aur

kuch kaha to wo kya karegi.

Kintu Raj ne aisa kuch nahi kiya aur uski bagal se guzarte hue uske

sir ko thap thapate hue sirf itna kaha, "Apni jindagi ko jeena

seekho aur meri jindagi me dakhal dena band karo."

Raj ki baat uske dil ko chub si gayi kintu dil me ek ajeeb si khushi

bhi jaag uthi. Aaj kitne mahino baad uske bhai ne usse baat ki thi.

Khushi ki ek halki lakeer uske hothon par aa gayi.

"Mein to apni jindagi jee rahi hoon lekin ek tum ho jo apni jindagi

se bhaag rahe ho..." Roma ne apni khushi ko chupate hue kaha.

Raj en ek rahat ki sans lee. Wo hamesha se darta tha ki agar wo Roma

ke jyada kareeb rahega to ek din uski behan uske man ki bhavnao ko

pehchan legi. Jabse uski kalpanao wo aane lagi thi usne uske kareeb

rehna chod diya tha. Ek yahi tareeka tha uske paas apne jajbat aur

apni bahvanaon ko chipane ka. Wo apni behan ko bahot pyaar karta tha

aur usse door reh kar hi wo ek bade bhai ka farz nibha sakta tha.

"Tum sach kehti ho Roma, wo apni jindagi se bhaag hi raha hai." Raj

ke vyavhar ko dekh Geeta ko ek bar phir dukh pahuncha tha. Usne

kitna prayatna kiya tha ki wo Raj ko aakarshit kar sake kintu wo

safal nahi ho paa rahi thi.

"Roma mein ab chalti hon somvar ko subah college me milenge." Geeta

itna kehkar wahan se chali gayi.

Roma ne palat kar apne bhai ki aur dekha. Raj uski nazron se ojhal

ho chuka tha lekin wo ab bhi uske khayalon me basa hua tha. Use laga

ki wo ghoom kar uske paas aa gaya hai aur uski bagal me ghas par

baith gaya hao. Wo usse uske dost, uski college life ke bare me puch

raha hai.

Uski kalpana me aya ki achanak uska bayan hath use daayen hath se

takra gaya aur uske badan me jaise bijlee ka current daud gaya ho.

Uske man me aaya ki wo use sab kuch bata de ki kis tarah uski kami

uske jeevan ko khokhla kar rahi hai, use apna wahi purana bhai

chaihiye jo pehle tha.

* * * * * * * * *

"Roma jara ye kachra to bahar faink dena." uski mummy ne kaha.

"Par mummy ye to Raj ka kaam hai na." Roma ne kaha.

"Raj ghar par nahi hai, aur tum ghar par ho isliye mujhse jyada

behas mat karo aur jakar kachra faink kar aao." uski mummy ne thoda

gussa deekhate hue kaha.

Beman se Roma ne kachre ki thaili bustbin se bahar nikali aur bagal

me rakh di. Phir ek fresh nai thaili dust bin me laga di tabhi uska

dhayan kachre ki thaili se bahar jhankti ek keetab par padi.

Utssukta wash usne wo keetab utha lee aur bagal ki almari me cheepa

di.

Roma kachre ki thaili ghar se bahar faink kar wapas aayi aur wo

keetab almari se nikal apne kamre me aa gayi. Kamre ka darwaza andar

se band kar wo keetab khol dekhne lagi. Usne dekha ki keetab ke

paane kore the aur unpar kuch bhi nahi likha tha.

Uska dil maausi me doob gaya. Use laga tha ki wo Raj ki kahani ka

raj aaj jaan jayegi tabhi usne dekha ki panno par leekhai ke kuch

aksh deekh rahe hai.

Wo daud kar apne college bag se pencil nikal kar le aayi aur un

panno par ghasne lagi. Thodi hi der me leekhai ke aksh ubhar kar

saaf ho gaye.

Keetab par leekhe shabdon ko padh wo chaunk gayi. Kya Raj yahi sab

apni kahani me leekhata rehta hai.

...."meine usse keh diya ki mien usse pyaar karta hun. Wo muskura

kar meri taraf dekhti hai. Mien halke se uski chuchi ko chuta hun

aur wo sisak padti hai. Mein aur jor se dabata hoon. Usse aacha

lagta hai.

......Ab mein uski dono chuchiyon ko dabaata hoon. Ab wo garmane

lagti hai. Mein janta hoon wo mujhe pana chahti hai........"

"Kaun hai ye ladki...?" Roma man hi man badbuda uthti hai. Koi

kalpanaik ladki hai ya hakikat me koi hai...."

Roma keetab ko apni chati se lagaye palang par let jaati hai. Wo

sochne lagti hai ki wo ladki kaun ho sakti hai. Achanak use lagata

hai ki wo ladki khud hi hai. Apni hi kalpana me khoye wo apne aksh

ko un kore panno me dhoondne ki koshish karti hai.

"Ohhhh Raj mein tumse kitna pyar karti hoon." Wo keh uthti hai, use

lagta hai ki Raj uske bagal me hi leta hua hai.

Apna pyaar khud par jahir kar use laga ki uske dil se bojh uttar

gaya. Jin bhavnao ko wo chupate aayi thi aaj wo rang deekhane lagi

thi. Uske hath khud ba khud uski chuchiyon par jaa pahunche aur

wo unhe masalne lagti hai. Uttejna aur pyaar ki madakta me uske

nipple tan kar khade jo jate hai. Kaamukta ki aag me uska badan

ainthne lagta hai.

Darwaze par thapthapahat sun uska dhyaan bhang hota hai. Phir jaise

wo darwaze ko khulta dekhti hai jhat se apna hath apni chuchiyon se

kheench leti hai.

Raj ne ardh khule darwaze se andar jhanka. Usne dekha ki Roma ka lal

rang ka top thoda upar ko khiska hua tha aur uski chuchiyon ki

goliyan saaf deekh de rahi thi sath hi uske khade nipple bhi uski

nazar se bach nahi sake. Is nazare ko dekh uska lund uski short me

phir ek bar tan kar khada ho gaya.

Roma ne uski nazron ka peecha kiya to usne dekha ki Raj uski

chuchiyon ko hi ghoor raha tha. Usne jhat se apne top ko niche kiya

par aisa karne se uske nipple aur tane hue dekhai dene lagi. Sharm

aur haya ke mare uska chehra laal ho gaya.

"Tum meri jagah par kachra faink kar aayi uske liye tumhe thanks

kehne aaya tha." Raj ne kaha.

"Koi baat nahi." wo chahti thi ki Raj jaldi se jaldi yahan se chala

jaye.

Raj kuch aur kehna chahta tha lekin jab usne dekha ki Roma sharma

rahi hai to uski man ko padhte hue wo chupchap wahan se chala gaya.

Roma apne chehre ke apne hathon se dhak apne aapko kosne

lagi, "bewkoof ladki aaj kitne mahino baad usne tumnse is tarah

pyaar se baat ki aur tum ho ki use bhaga diya. Tumhe bistar par uth

kar bith jana tha aur use kamre me aane ke liye kehti. Bewkoof

bewkoof."

Jaise hi wo bistar par se uthne lagi uski nazar Raj ki kitab aur

pencil par padi, "Hey bhagan kaash usne ye sab na dekha ho."

Roma soch me pad gayi ki hey bhagwan usne ye kya kiya. Agar Raj ne

wo keetab dekh li hogi to ek bar phir usne Raj ko kho diya hai. Wo

apni rulai ko rok na payi, uski aankhon se tar tar aansu behne lage.

* * * * *

Raj ka dhyan apni behan par se hataye nahi hat raha tha. Jab wo

bahar se aaya to mummy ne usse kaha tha ki wo jakar Roma ka

dhanyawad kare kyon ki uska kaam Roma ne kiya tha.

Mummy ki agya maan wo uske kamre me gaya tha aur usne use thanks

kaha tha. Jab usne Roma ko bistar par lete dekha to use wo kisi

apsara se kam nahi lagi thi. Jis tarah se wo leti thi aur uske top

upar ko uthe hue uski chuchiyan ko aur uske khade nipple deekh rahe

the wo thik kisi kaam devi ki tarah lag rahi thi.

Uske dil me to aaya ki un kuch lamho me wo apne dil ki baat Roma ko

bata de lekin dil ki baat juban tak aa nahi payi. Uski samajh me

nahi aaya ki wo apne jajbat kis tarah apni sagi behan ko bataye. Wo

apni baaton ko shabdon me dhaal nahi paya. Use pata tha ki thode

dino me Roma college chali jayeggi aur shayad use phir mauka na mile

use batane ka.

Raj apne kamre me aa gaya, wo chahta to seedhe Roma ke kamre me

jaata aur use sab kuch bata deta par usme shayad itni himmat nahi

thi ki wo use bata paye.

Use umeed thi ki raat ke khane par Roma se uski mulakat hogi. Par

Roma thi ki uska kahin pata nahi tha. Raj ne khana khatma hi kiya

tha ki uska sabse pyara dost Jay apni behan Riya ke sath aa

pahuncha. Riya bagal ke sehar ke college me padhti thi. Jay Raj ki

hi umar ka tha aur dono ne gradutaion sath sath pura kiya tha.

kramashah.............

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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

3

गतान्क से आगे.............

रिया जय से दो साल बड़ी थी. बचपन के दोस्त होने की वजह से दोनो

का एक दूसरे का घर आना जाना था. जबसे रिया जवान हुई थी राज के

मन मे उसके लिए कुछ था पर रिया था कि उसे अपनी उमर से बड़े

लड़कों से ही फ़ुर्सत नही थी. पर आज वो कुछ अलग ही लग रही थी.

उसने एक चंचल मुस्कान से राज से हाथ मिलाया और उसके गालों पर एक

चुम्मा दे दिया जैसे की बरसों के पुराने दोस्त हो.

रिया आज बहोत ही सेक्सी लग रही थी. उसने एक काले रंग की टाइट

जीन्स पहन रखी थी और साथ ही एक गुलाबी रंग का स्लीव्ले टॉप.

जीन्स इतनी टाइट थी कि उसके चूतड़ की गलाईयों दीख रही थी और

टॉप के उपर से उसकी नुकीली चुचियों बाहर को उछल रही थी.

राज जय और रिया के साथ तालाब के किनारे चल पड़ा. बरसों से वहाँ

एक अलाव बनाया गया था जहाँ रात को लोग उसमे लकड़ियाँ जला पार्टी

मनाते थे. आज की रात भी कुछ ऐसा ही प्रोग्राम था तीनो का.

रोमा को घर के पीछे कुछ आवाज़े सुनाई दी. सूरज डूब चुका था

और अंधेरा होने लगा था. उसने कमरे की लाइट जलाई और खिड़की पर

लगे पर्दों को हटाकर बाहर देखा. जब उसकी आँखे अंधेरे मे

देखने को अभ्यस्त हो गयी तो उसे अपने भाई राज के साथ जय और एक

लड़की को तालाब की ओर जाते देखा. उसके दिल मे फिर से जलन जाग

उठी. मन तो किया कि दौड़ कर उनके साथ शामिल हो जाए. पहले तो

मा मना कर दिया करती थी पर अब वो 18 की हो चुकी थी पर अपनी

शरम की वजह से वो ऐसा ना कर सकी.

रोमा ने खिड़की को थोड़ा खोल दिया जिससे वो उनपर नज़र रख सके .

उसने देखा कि जब राज ने उस अलाव मे जो लकड़ियाँ पड़ी हुई थी उन्हे

जला दिया और फिर कुछ लकड़ियाँ ढूँदने को जाने लगा तो उस लड़की

ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ चल पड़ी. जिस तरह से उस लड़की ने

राज का हाथ पकड़ा था उसे देख रोमा को फिर जलन होने लगी.

राज ने जब अपने हाथों मे रिया के हाथ को महसूस किया तो वो चौंक

पड़ा. दोनो हाथ मे हाथ डाले इस तरह चल रहे थे जैसे की दो

प्रेमी चाँदनी रात मे सैर को निकले हो. रिया के बदले हुए व्यवहार

से राज को आश्चर्या हो रहा था.

"कितनी सुन्दर जगह है." रिया ने रुकते हुए सामने दिखाई देती

पहाड़ियों पर नज़र डालते हुए कहा. "कितनी शांति और एकांत है

यहाँ पर है...ना."

जब रिया ने अपना सिर उसके कंधे पर रखा तो उसके बदन से उठती

महक ने राज के लंड मे फिर सरसरी भर दी.

"पीछले कई सालों से तुम मुझे नज़र अंदाज़ कर रही हो, और आज

अचानक ऐसे बिहेव कर रही हो जैसे कि मेरी प्रेमिका हो?" राज ने

पूछा.

"यही तो हम लड़कियों की ख़ासियत है, जिसे हम पसंद करते है उसे

नज़र अंदाज़ करते हैं," रिया ने जवाब दिया, "और सब लड़के हमे

परेशान करते है चिढ़ाते है कभी हमारे बाल खींच कर या

फिर दूसरे तरीके से, जो तुम कभी नही करते थे. यही वजह है

कि में तुम्हे हमेशा से पसंद करती आई हूँ."

रिया की बात सुनकर राज सोच मे पड़ गया. वो भी तो रोमा को नज़र

अंदाज़ करता है और रोमा भी उससे दूर दूर रहती है, तो क्या रिया

के अनुसार हम दोनो एक दूसरे को पसंद करते है.

"किस सोच मे खो गये राज?" रिया उसके सिर को ठप थपाते हुए

बोली. "अगर तुम्हे नही दीखाई दे रहा है तो में साफ शब्दों मे

कह रही हूँ कि आज की रात में अपने आपको तुम्हारे हवाले कर रही

हूँ, आया समझ मे बुद्धू."

राज को विश्वास नही हो रहा था कि बरसों से जिसके पीछे वो पड़ा

था आज खुद वो अपने आपको उसे सोन्प रही थी ये उस्केलिये किसी

तोहफे से कम नही था.

"हां में समझ रहा हूँ." राज हंसते हुए कहा.

रिया राज के साथ चिपक कर खड़ी हो गयी, "ये अलाव की आग बुझने

मे कितना वक़्त लगेगा?"

"ज़्यादा से ज़्यादा 15-20 मिनिट." राज ने जवाब दिया.

"तो फिर एक काम करते हैं, हम पकड़ा पकड़ी खेलते है, अगर आग

बुझने से पहले तुमने मुझे पकड़ लिया तो में तुम्हारी.' रिया ने

चंचल मुस्कान के साथ कहा.

उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या खेल उसके साथ खेलना

चाहती है. रिया जैसे ही पहाड़ो की तरफ भागी राज भी उसके पीछे

भागा. किंतु थोड़ी ही देर मे उसने उसे पकड़ लिया.

जैसे ही उसने उसे पकड़ना चाहा वो लड़खड़ा कर नीचे गिर

पड़ी, "पागल हो गये हो क्या."

"में तुम्हारे बाल खींचना चाहता था जैसे तुमने कहा कि मेने

पहले कभी नही खींचे." राज ने हंसते हुए कहा.

"हां... लेकिन इसका ये मतलब नही कि हर लड़की को ये हरकत पसंद

आती है." रिया ने कहा.

रिया ने उसके पॅंट के बकल को पकड़ा और उसे अपने उपर खींच लिया.

राज को रिया किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी. रिया को वो बचपन

से जानता था और वो उसे हमेशा से अछी लगती आई थी आज वही जज़्बा

फिर उसके दिल मे उमड़ आया. वो गहरी नज़रों से रिया को देख रहा

था.

"राज..... मुझे प्यार करो ना....." रिया ने अपना चेहरा उसकी चौड़ी

छाती मे छुपाते हुए कहा.

राज ने अपनी नज़रें उसकी नज़रों से मिलाई उसने देखा कि उसकी आँखों

मे मादकता छाई हुई थी. उसने उसके स्लीवलेशस ब्लाउस के उपर से उसकी

चुचियों को पकड़ा जिन्हे वो बरसों से महसूस करना चाहता था. उसके

लंड मे लहू की धारा तेज हो गयी. वो धीरे धीरे उसकी मुलायम

लेकिन कठोर चुचियों को दबाने लगा.

उन्माद की मस्ती मे रिया ने अपनी आँखे बंद कर ली. उसके हाथ राज की

पीठ पर जाकड़ गये. राज उसके निपल को अपनी उंगलियों से भींच

रहा था. उत्तेजना के मारे उसका लंड पॅंट के बाहर आने को फाड़ फाडा

रहा था. राज ने उसके टॉप को नीचे से पकड़ा और उसके सिर के उपर

कर उतार दिया.

रिया ने अपना हाथ राज के जाँघो के बीच रखा और पॅंट के उपर से

उसके लंड को सहलाने लगी. उसके लंड को मसल मसल वो उसे चिढ़ाने

लगी. फिर उसने उसकी पॅंट के बकल को खोला और बटन खोल उसकी

पॅंट को ढीला कर दिया. फिर उसने उसकी अंडरवेर की एलास्टिक मे अपनी

उंगली फसा उसे थोड़ा नीचे कर दिया. राज का लंड उछल को बाहर आ

गया.

उसके खड़े लंड को देख रिया की आँखो मे चमक सी आ गयी, "काश

तुमने मेरे बाल बहोत साल पहले खींचे होते." वो उसके लंड की

चमड़ी को उपर नीचे करने लगी. "अगर तुमने ऐसा पहले किया होता

तो पता नही में कितनी बार इस प्यारे लंड का स्वाद चख चुकी होती."

"हां मुझे भी ऐसा ही लग रहा है." कहकर राज उसकी चुचियों को

मसल्ने लगा.

रिया ने राज को खिसका कर अपने बगल मे लिटा दिया और फिर उसके

उप्पर झुक कर उसके लंड को अपनी मुट्ही मे ले मसल्ने लगी. फिर

उसने झुक कर उसके सूपदे को अपने मुँह मे ले लिया. पहले तो वो अपनी

जीब से सूपदे को चाट्ती रही फिर अपने मुँह को पूरा खोल लंड को

अंदर लेने लगी. लंड उसके गले तक आ गया था.

रिया को पता था कि समय कम है इसलिए वो जोरों से उसके लंड को

चूसने लगी. उसे लगा कि राज का लंड उसके मुँह मे और बड़ा होता जा

रहा है. वो अपनी ज़ुबान उसके लंड पर फिराते जोरों से चूसने लगी.

फिर उसने अपना मुँह हटाया और घास पर पीठ के बल लेट गयी.

रिया का मुँह लंड पर हटते देख राज उसकी पॅंट के बटन को खोलने

लगा. उसकी जींस को उसने नीचे खिसका उत्तर दिया. फिर उसने उसकी

पॅंटी को भी उतार दिया. रिया ने अपनी जाँघो को थोड़ा फैला दिया.

"मुझे विश्वास नही हो रहा कि हम सही मे ये सब कर रहे है."

राज ने थोड़ी अस्चर्य भरी आवाज़ मे कहा.

"काश हमने पहले ये सब किया होता." रिया ने उसकी नज़रों से नज़रों

मिलाते हुए कहा, "मुझे चोदोगे ना अपने इस प्यारे लंड से......."

राज उसकी जाँघो के बीच आ गया और अपने लंड को उसकी चूत पर

घिसने लगा. जैसे ही लंड ने चूत को छुआ वो सिसक पड़ी और आहें

भरने लगी.

राज ने उसकी चूत की पंखुरियों को थोड़ा फैलाया और अपने लंड को

धीरे से उसकी चूत के अंदर घुसा दिया.

"ऑश राज कितन आछा लग रहा है तुम्हारा लंड मुझे अपनी चूत मे

ओह......."

राज ने अपना सूपड़ा ही उसकी चूत मे घुसाया था, वो सूपदे को

इधर उधर घूमा रहा था.

"रुक्क्क क्यों गये राज्ज्ज..... डालो ना पूरा लंड मेरी चूत मे......

मुझे पूरा लंड चाहिए अपनी चूत. मे डालो ना राज मत तड़पाव

मुझे.....प्लीज़......" रिया सिसक पड़ी.

राज ने उसके कंधे पकड़े और एक ज़ोर का धक्का मार अपने लंड को उसकी

चूत मे पेल दिया. रिया ने भी अपनी टाँगे उसकी कमर से जाकड़ ली और

नीचे से चूतड़ उठा उसके लंड को अपनी चूत के अंदर ले लिया.

थोड़ी ही देर मे उनकी कमर लय मे हिल रही थी. राज उसे चोद रहा

था.

क्रमशः.............

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