दो भाई दो बहन compleet

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rajsharma
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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

रोमा सिसक पड़ी और उसके हाथ खूदबा खुद जीत के सिर के पीछे और

उसने उसके सिर को अपनी चूत पर दबा दिया... और अपनी कमर हिला

चूत को और उसके मुँह मे देने लगी.. जीत पूरी वेग से उसकी चूत

को चाटने लगा....फिर उसने अपनी दो उंगलिया उसकी चूत के अंदर डाल

दी.. रोमा का बदन ज़ोर से फड़फदा कर कांप गया.

"ऑश हाआँ और ज़ोर से श ज़ोर से.." वो चिल्ला पड़ी.

जीत और ज़ोर से उसकी चूत को अपनी जीब से और उंगलियों से चोदने

लगा... वो अपनी जीब को कभी अंदर गोल गोल घूमता तो कभी उपर

से नीचे तक चाटता... रोमा तो जैसे पागल हो गयी थी.. वो अपनी

कमर हिला उसके मुँह पर धक्के मारने लगी...

रोमा की चूत जैसे जैसे झड़ने के करीब हो रही थी. वैसे वैसे

उसकी कमर की हरकत तेज हो रही थी......अचानक उसका बदन जोरों

से आकड़ा और उसकी कमर थोड़ी उपर को उठ गयी.. उसकी चूत जीत के

मुँह पर दब सी गयी..... जीत समझ गया कि वो झड़ने वाली है.

"ऑश हां और और ज़ोर से ओ हां खा जाओ ऑश और ज़ोर से

चूसूओ." रोमा ने सिसकते हुए उसके सिर को और दबा दिया.... उसकी

चूत ने पानी छोड़ा और जीत चाटता गया... उसकी चूत पानी छोड़ती

गयी.. छोड़ती गयी और वो चाट्ता रहा.

रोमा पीछे को लुढ़क गहरी गहरी साँसे लेने लगी... जीत ने अपना

चेहरा उठाया और उसके पसीने से भरे सुंदर मुखड़े को देखने

लगा.... खुशी और उत्तेजना मे उसका चेहरा चमक रहा था... जीत

ने उसे गोद मे उठाया और अपने बेबरूम मे ले आया.

रोमा अपने बाकी कपड़े खोलने लगी और जीत भी कपड़े उतारने लगा.

पलंग पर लेटे वो जीत को कपड़े उतारते देखती रही.... वो उसके

बदन के हर हिस्से को बड़ी गौर से देख रही थी...जब उसने पॅंट

उतारी तो वो उसके खड़े लंड को देखने लगी...उसकी फूली हुई चूत

हरकत करने लगी.

"कैसे चाहोगी?" उसने पूछा..

रोमा को आसन की नही पड़ी थी... "कैसे भी चलेगा.. बस अंदर तक

घुसा कर ज़ोर ज़ोर से चोदो." रोमा ने जवाब दिया.

जीत ने रोमा को घुटनो के बल घोड़ी बना दिया.. और खुद उसके पीछे

आ गया... रोमा ने अपनी टाँगे फैला दी...जीत ने अपने लंड को उसकी

चूत पर रख अंदर घुसाने लगा... रोमा को लगा कि उसकी चूत और

फैल रही है.. एक हल्की सिरहन सी दौड़ गयी गयी उसके बदन मे ...

"श हाआँ... हां.. मुझे तुम्हारे लंड की कितनी ज़रूरत है..."

रोमा सिसक पड़ी.

जीत अपने लंड को अंदर बाहर कर उसे चोदने लगा... वो अपने लंड को

बाहर खींचता और पूरा अंदर तक घूसा देता... वो उसके कुल्हों को

पकड़ धक्के मारने लगा....

रोमा को मज़ा आ रहा था.. अंदर बाहर होता जीत का लंड उसे अछा

लग रहा था... वो भी अपनी कमर हिला उसका साथ दे रही थी.. उसका

बदन पर पसीने की बूंदे चमकने लगी..

"ऑश हाआँ ऑश" उसके हर धक्के पर वो सिसक पड़ती.

रोमा ने अपना पसीने से भीगा चेहरा नीचे झुका चादर मे छुपा

लिया.. उसके कूल्हे और हवा मे उठ गये.. उसने दोनो हाथो से चदडार

को पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से जीत के धक्कों पर कराह उसका साथ

देने लगी. उसका पूरा बदन अकड़ने लगा.... और उसकी चूत झड़ने

लगी..

रोमा झाड़ गयी तो जीत थोड़ी देर के लिए अपनी साँसे संभालने के

लिए रुक गया... उसका लंड अभी भी उसकी चूत मे घुसा हुआ था.

"तुम किसी भी लड़के को थका सकती हो?" उसने मज़ाक मे कहा.

"अगर अपने से आधी उम्र की लड़की को चोदेगा तो यही होगा... " रोमा

ने भी मज़ाक मे जवाब दिया.

"क्यों ना थोड़ी देर के लिए रुक जाएँ." जीत अपना लंड बाहर निकाल

उसके बगल मे लेट गया.

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

जीत रोमा की गुलाबी चूत को देखने लगा... उसमे से रस की बूंदे

टपक रही थी... वो उसके खूबसूरत बदन को निहारने लगा... फिर

उठकर वापस उसके पीछे हुआ और अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा

दिया..

"तुम्हारी चूत कितनी प्यारी और मुलायम है रोमा." जीत ने उसकी

तारीफ करते हुए कहा.

जीत रोमा के साथ हर पल का पूरा आनंद और मज़ा लेना चाहता था..

वो एक यथार्थ वादी इंसान था.. उसे नही पता था कि रोमा के साथ

रिश्ता कितने दिनो तक निभेगा... उसे इस बात का अंदाज़ा था कि रोमा

अपनी जिंदगी मे कहीं किसी से भाग रही थी... वो तो सिर्फ़ वकति तौर

पर उसकी जिंदगी मे आ गया था.....

जीत बड़े प्यार से और धीमे धीमे धक्के मार उसे चोदने लगा...

उसे लगा कि रोमा को शायद इस तरह के प्यार की ज़रूरत है.. और

वो उसे हर खुशी देना चाहता था जो वो चाहती थी...जब भी उसके

धक्को से रोमा का बदन कांप उठता तो उसे उसे अच्छा लगता.

क्रमशः..................

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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

27

गतान्क से आगे.......

जीत से भी अब रुका नही जा रहा था.... उसने उसके कुल्हों को जोरों

से पकड़ा और एक ज़ोर का धक्का मार अपने लंड को अंदर तक घुसा कर

अपना पानी छोड़ दिया... थोड़ी देर बाद उसने अपने लंड को बाहर

खींचा और उसके बगल मे लेट गया.

दोनो एक दूसरे को बड़ी गहरी नज़रों से देख रहे थे.. तभी उसे

अहसास हुआ कि रोमा की आँखे कुछ कह रही है.. ना जाने उसे ऐसा

क्यों लगने लगा कि शायद आज का मिलन उनकी रिश्ते की आखरी रात

है.. दोनो की आँखे एक दूसरे से बिना कुछ कहे भी बहोत कुछ कह

रही थी...

* * * * * * * * * *

जीत ने रोमा को उसके घर के बाहर छोड़ा और और आखरी बार उसने

उसके होठों को चूम लिया.. रोमा ने अपना कीताबों वाला बॅग उठाया

और गाड़ी से उतर गयी.. थोड़ी देर बाद वो अपने फ्लॅट मे दाखिल हो

रही थी कि उसने देखा क़ि राज और रिया दोनो हॉल मे ही सोफे पर चुदाई

मे लगे हुए थे.... रिया ने अपनी टाँगे फैला रखी और राज उछल

उछल कर उसे चोद रहा था.. उसके चोदने का ढंग ऐसा था जैसे कि

वो अपने दिल का गुस्सा रिया की चूत पर निकाल रहा हो...

रिया की नज़रें रोमा पर पड़ी तो उसने कहा, "रोमा मेने राज को आज

से पहले कभी इतने जोरों से चोदते नही देखा.. सही मे मज़ा आ

जाएगा.. क्या तुम साथ देना पसंद करोगी?"

आँखों मे आते आँसुओं को बड़ी मुश्किल से रोमा ने रोका और अपनी

गर्दन हिला उसे ना मे जवाब दिया... रोमा को महसूस हुआ कि राज जान

बुझ कर ऐसा कर रहा है..उन्हे पता था कि दोनो किए बीच जिस्मानी

रिश्ता है लेकिन क्या इस तरह खुले आम करना जायज़ था.. के

बेडरूम का दरवाज़ा बंद कर नही कर सकते थे..... गुस्से मे वो अपने

कमरे मे आई और ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया.. और अंदर से लॉक

भी कर दिया... दोनो रिया के बेडरूम मे साथ साथ सो सकते थे.

रोमा बिस्तर पर पेट के बल गिर कर रोने लगी.. जिंदगी क्यों इतनी

कंजरफ और पीड़ा दायक है.

दरवाज़े पर होती आवाज़ से उसकी नींद खुली तो उसने महसूस किया कि वो

कपड़े पहेन ही सो गयी थी और कमरे की लाइट भी अभी तक जल रही

थी.

"रोमा मुझे अंदर आने दो."

"तुम रिया के साथ सो जाओ," उसने ज़ोर से गुस्से मे चिल्ला कर

कहा, "वैसे भी तुम दोनो के बीच कोई परदा नही है."

"तुम कहना क्या चाहती हो?"

"अब इतने भी भोले मत बनो.. में कोई बेवकूफ़ नही हूँ सब

समझती हूँ... तुम्हे पता है कि में क्या कहना चाहती हूँ."

राज ने ज़ोर से दरवाज़ा खटकाया.. "हाँ.. लेकिन बेवकूफ़ में भी

नही हूँ."

"तुम्हारा कहने का मतलब क्या है?"

"दरवाज़ा खोलो फिर में तुम्हे बताता हूँ." राज ने जवाब दिया.

पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई.. फिर उठा कर उसने दरवाज़ा खोल दिया

और वापस पलंग पर आ कर किनारे पर बैठ गयी... राज ने दरवाज़े

को धकेला और अंदर आकर उसके बगल मे बैठ गया.

रोमा की आँखों मे फिर आँसू आ गये.. "में अब और सहन नही कर

सकती.. एक तो कॉलेज की परेशानी और तुम्हारा हर वक्त रिया के साथ

रहना में सहन नही कर सकती... आज हमारा जैसे तय हुआ था घर

पर साथ साथ समय बिताना था.. लेकिन हुआ क्या मुझे अकेले खाना

खाना पड़ा.. तुम्हारा कही पता ही नही था.. "
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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

"में काम कर रहा था.." राज ने अपनी सफाई मे कहा, "में ज़्यादा से

ज़्यादा पैसा कमाना चाहता हूँ जिससे हमे कोई परेशानी ना हो..

लेकिन जब में यहाँ पहुँचा तो तुम कहीं जा रही थी... वो इंसान

कौन था जिससे तुम बड़े प्यार से मिल रही थी..? क्या तुम्हारा उसके

साथ कोई रिश्ता है?"

रोमा को सब समझ मे आ गया.. वो पत्तों की चरमराहट.. राज उसका

पीछा कर रहा था... रोमा को आत्म गिलानी होने लगी... "में इस

विषय पर कोई बात नही करना चाहती."

"लेकिन में बात करना चाहता हूँ," राज ने ज़ोर से कहा...लेकिन रोमा

थी कि कुछ सुनने को तैयार ही नही थी.... उसने लाइट बंद कर दी

और बिस्तर पर लेट गयी.

आख़िर राज ने भी हार मान ली.. "ठीक है आज से में रिया के साथ

सोना शुरू कर देता हूँ."

"हां तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा." रोमा ने जवाब दिया.

कमरे की दीवार के उस ओर रिया दोनो को झगड़ते सुनती रही.. उसे

समझ मे नही आ रहा था कि दोनो के झगड़े पर वो खुश होवे या

फिर अपना दुख प्रगट करे.... लेकिन कितने समय से वो इसी दिन का

इंतेज़ार तो कर रही थी.... लेकिन वो खुश थी कि आख़िर राज हमेशा

के लिए उसके कमरे मे शिफ्ट हो रहा था.. वो बिस्तर मे चादर ओढ़

कर लेट गयी..

"मुझे दुख है राज.. तुम दोनो को इस तरह नही झगड़ना चाहिए

था.." रिया ने धीरे से झूठ कहा.

"मेरी समझ मे नही आ रहा है कि उसे हो क्या गया है.." राज ने

झल्लते हुए कहा.. "में पैसा कमाने के लिए इतनी मेहनत कर रहा

हूँ.. और वो है की ये बात समझने को ही तैयार नही है... उसे

ऐसा लगता है कि पैसे जैसे झाड़ पर उगते हों."

राज उसके बगल मे चादर ओढ़ लेट गया.. धीरे उसके हाथ रिया की

चुचियों को सहलाने लगे... उसने धीरे से उसकी गर्दन को चूम

लिया... रिया के निप्ले तन गये.. राज ने उसके निपल को उंगली और

अंगूठे मे दबा भींच लिया.

रिया थोड़ा सा नीचे की ओर खिसकी और उसके अर्ध खड़े लंड को अपने

मुँह ले चूसने लगी... लंड मे जान आने लगी..और वो खड़ा होने

लगा. ... सही मे रिया राज को ये साबित करना चाहती थी कि राज ने

यहाँ आकर अछा ही किया था... उससे ज़्यादा कौन उसे खुश कर सकता

था..... किसी मर्द को खुश करने के लिए इससे बड़ी क्या चीज़ थी..

वो सेक्स का हर खेल उसके साथ खेल कर उसे खुश कर देना चाहती

थी.

जय ने राज को कुछ पार्ट टाइम काम दिया जिसे उसने हंसते हंसते

स्वीकार कर लिया... राज और रोमा ने उस रात के झगड़े के बाद एक

दूसरे से बात नही की थी... दोनो अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक्त घर के

बाहर रहकर बीताते थे... जिससे की एक दूसरे का सामना ना करना

पड़े. राज के समझ मे नही आ रहा था की वो इस झगड़े को कैसे

ख़तम करे... वो रिया को भी तो दुखी नही कर सकता था... लेकिन

उसे हर रात रिया के सोना अच्छा नही लग रहा था जब कि उसकी प्यारी

बेहन बगल के ही कमरे मे अकेली सो रही हो..

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Re: दो भाई दो बहन

Post by rajsharma »

जहाँ तक चुदाई की बात है तो राज और रिया के बीच बहोत ही अछी

चल रही थी.. तकरीबन हर रात रिया उस पर छा जाती... पर राज

का दिल मे दर्द भर उठा था.. जो सपने उसने रोमा के साथ यहाँ आने

से पहले देखे थे.. वो सब उसे चूर चूर होते दिखाई पड़ रहे

थे.. आख़िर ये सब ऐसे कितने दिन चलेगा.. एक दिन तो आख़िर किसी

ना किसी को पहल कर बात करनी ही पड़ेगी.. अगर आगे का जीवन

गुज़ारना है तो फ़ैसला तो करना ही पड़ेगा... आख़िर उसने फ़ैसला किया

कि वो रोमा से बड़ा है.. तो एक बड़ा भाई होने के नाते वो सब कुछ

भूल रोमा से बात करेगा.

* * * * *

आज राज काम पर से जल्दी छुट्टी ले वो घर की ओर चला पड़ा.. वो

रोमा से पहले घर पहुँच जाना चाहता था.. रिया का कहीं नामो

निशान नही था ये उसके लिए अछी बात थी... वो अकेले मे अपनी बेहन

से बात करना चाहता था... रिया के सामने शायद वो दोनो आपस मे

इतना खुल कर बात ना कर पाते... क्यों कि जो कुछ भी हुआ उसका रिया

भी एक हिस्सा थी.

घर आकर जैसे ही वो सोफे पर बैठा तो उसकी नज़र साइड टेबल पर

पड़ी तस्वीर पर पड़ी.. वो रोमा की स्कूल की ग्रॅजुयेशन की तस्वीर

थी... कितनी सुंदर लग रही थी वो... उसका चेहरा खुशी से खिला

हुआ था.. उसकी आँखों मे चमक थी..होठों पर मुस्कान थी.. और

आज भी वो वैसे ही मुस्कुराती रहती है.. लेकिन वो जानता था कि इस

मुस्कुराहट के पीछे कितनी पीड़ा कितनी मेहनत छुपी हुई थी..

बचपन से ही रोमा ने अपने भविश्य को लेकर कुछ सपने देखे थे

और वो आज भी उन सपनो को पूरा करना चाहती थी.. चाहे किसी भी

कीमत पर.

थोड़ी देर बाद कंधे पर अपना कीताबों वाला बॅग लटकाए रोमा अपने

मकान पर आई... उसने छोटी डेनिम वाली स्कर्ट और शर्ट पहन रखी

थी... फ्लॅट का दरवाज़ा खुला देख वो चौंक पड़ी... राज को सोफे पर

बैठा देख वो हैरत मे थी.. वो इतनी जल्दी कभी भी घर नही

आता था.. उसने अपनी बॅग वहीं टेबल के पास ज़मीन पर रख दी और

उसे देखने लगी.

राज ने महसूस किया कि रोमा उसका कुछ कहना का इंतेज़ार कर रही

है.. तो उसने कहा, "हमे बात करनी चाहिए रोमा."

रोमा उसकी बात सुनकर बेचैन हो गयी उसकी दिल की धड़कन बढ़

गयी.. ये आज राज को क्या हो गया है.. क्या वो रिया को और ज़्यादा

चाहने लग गया है और यहाँ से जाना चाहता है... बेचैनी मे वो

अपने नीचले होठों को दाँतों से चबाने लगी... उसकी आँखों मे फिर

आँसू आ गये.

"क्या तुम मुझसे रिया के बारे मे बात करना चाहते हो? रोमा ने अपने

दिल के जज्बातों को दबाते हुए कहा, उसे लग रहा था कि आज उसकी

जिंदगी बिखर रही है.. "मुझे नही पता राज में ऐसा कर पाउन्गि

की नही.. कुछ समझ मे नही आ रहा."

रोमा रोए जा रही थी और उसका पूरा बदन कांप रहा था.. राज सोफे

पर से उठा और उसने उसे कस कर अपनी बाहों मे पकड़ लिया.

"में तुमसे रिया के बारे मे नही हम दोनो के बारे मे बात करना

चाहता हूँ, में तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि में तुम्हे बता नही

सकता... हां कुछ देर के लिए में भटक जाता हूँ.. लेकिन ये सही

है कि में तुमसे बहोत प्यार करता हूँ."

"में जानती हूँ और समझती हूँ... मुझे माफ़ करना लेकिन में क्या

करूँ में भी तुम्हे बहोत प्यार करती हूँ... लेकिन जब भी तुम्हे

रिया के साथ देखती हूँ तो मुझसे रहा नही जाता... लगता है कि

में कुछ कर बैठू."

"और जब तुम उस टूटर के साथ..." राज ने कहा.. "खैर छोड़ो जो हो

गया सो हो गया.. मुझे खुशी है की तुम कॉलेज मे इतना अछा कर

रही हो.. रोमा हमे अपना वो समय वापस लाना होगा जो हमारे बीच

था... वो ही प्यार वो ही रिश्ता.. समझ रही हो ना में क्या कह

रहा हूँ."

"हां राज हां... में भी यही चाहती हूँ." रोमा ने एक राहत की

सांस लेते हुए कहा, "में तुमसे ये बात कहने से डर रही थी...

मुझे लगने लगा था कि अब हमारे बीच वो सब लौट के नही आ सकता

है.. तुम और रिया इतने करीब होते जा रहे थे कि....."

"में समझ सकता हूँ.. लेकिन पीछले दिनो तुम भी तो घर से बाहर

रहती थी.. "राज ने कहा, "क्या तुम हमारे बीच की इस दूरी को

मिटाने मे मेरा साथ दोगि?'

"हां दूँगी.. तुम जो कहोगे में करूँगी." रोमा ने जवाब दिया.

दोनो के खुले मुँह एक दूसरे को चूमने लगे.. जीब आपस मे मिल

खिलवाड़ करने लगी... रोमा का बदन मे खुशी की लहर जाग उठी

थी... उसकी चुचियों कठोर हो गयी थी और चूत मे हलचल मचने

लगी थी.

"श राज आज जितनी मिठास तुम्हारे होंठो मे पहले कभी नही थी.."

रोमा ने उसके कान मे फुसफुसाते हुए कहा.

"हां मेने कीताबों मे पढ़ा है कि दूरी प्यार बढ़ाती है...

शायद उसी वजह से हो." राज ने उसके होठों को चूसते हुए कहा.

"तो फिर तुम तैयार हो ना.. अपने वादे से मुकर तो नही जाओगे?' रोमा

ने पूछा.

"हां.. में जानता हूँ क़ि ये बात सुनकर रिया पर क्या गुज़रेगी..

लेकिन उससे कहना तो पड़ेगा ही ना." राज ने जवाद दिया.

"तुम्हे पता है कि पीछले कुछ हफ्ते मेने कैसे गुज़ारे हैं?" रोमा

ने अपने गालों पर से आँसुओं को पौन्छ्ते हुए कहा.

"में जानता हूँ रोमा प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो."

"एक वक्त के लिए तो में तुमसे नफ़रत करने लगी थी."
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