उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet

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Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )

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मेरा जिस्म डर से थर थर काँप रहा था....मम्मी को इतने गुस्से में मैने इसी पहले कभी नहीं देखा था.......मेरी तो मानो बोलती ही बंद हो चुकी थी........

अदिति- वो मा.....मैं.....

स्वेता- चुप क्यों है....मुझे तेरा जवाब चाहिए.......बता कहाँ गयी थी तू....ऐसा कौन सा काम था जो आज अपने घर हो रही कथा से ज़रूरी था.......

अदिति- मा.......ये सच है कि मैं पूजा के घर नहीं गयी थी........मेरी एक सहेली है वंदना उसका घर यहाँ से दूर है......उसका आज बर्तडे था तो उसने मुझे इन्वाइट किया था.......मैं उसके घर चली गयी थी.......

स्वेता- मगर बर्तडे तो शाम को मनाया जाता है......और ये तेरी नयी सहेली कौन है....इसके बारे में तुमने मुझे कभी कुछ नहीं बताया........

मोहन- छोड़ो ना स्वेता.......तुम भी बेकार की बातें लेकर बैठ गयी........होगी उसकी सहेली.......होगा उसको कोई पर्सनल काम......

स्वेता- ठीक है मैं ही ग़लत हूँ.......तुम तो हर वक़्त इसकी तरफ़दारी करते रहते हो........देख रही हूँ तुम्हारी इस लाडली को कुछ दिनों से मैं......ये अब पहले जैसी नहीं है......इसे अब झूट बोलना भी शुरू कर दिया है........अगर कल को कोई उन्च नीच हो गयी तो मुझे दोष मत देना.......

मैं कुछ ना कह सकी और फ़ौरन अपने रूम में आकर वही अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी ...........मेरे दिल में इस वक़्त बेचैनी बहुत हो रही थी........पता नहीं क्यों मुझे बार बार ऐसा लग रहा था कि जैसे मम्मी को मुझपर शक़ हो गया हो.........

कुछ देर बाद मम्मी मेरे रूम में आई........उसके हाथों में दूध का ग्लास था.......मेरी नज़र जब मम्मी पर पड़ी तो एक बार फिर से मेरा कलेजा ज़ोरों से धड़कने लगा........मम्मी मेरे करीब आकर बैठ गयी और मेरे सिर पर बड़े प्यार से अपना हाथ फेरने लगी.......

स्वेता- बेटी.......मेरी बातों का बुरा मत मानना.......मगर मैं कुछ दिन से तुझे देख रही हूँ कि तू अब पहले से बहुत बदल गयी है.........मैं तुझसे अब दुबारा ये सवाल नहीं पूछूंगी कि तू आज कहाँ गयी थी.......मगर ना जाने क्यों मेरा दिल तेरे बारे में सोचकर कुछ घबरा रहा है......ऐसा मुझे लग रहा है कि तू मुझसे कुछ छुपा रही है.........

अदिति- मा.......ऐसी बात नहीं है......आप मुझे ग़लत समझ रही हो..........

स्वेता- ठीक है मैं ही ग़लत हूँ.......मगर क्या ये सच नहीं है कि तू कुछ दिनों से विशाल से और भी करीब रहने लगी है........पहले तो उससे तेरी नहीं बनती थी फिर अब ऐसा उसने तुझपर क्या जादू कर दिया है जो तू अब उससे एक पल भी दूर नहीं रहती.........मैं भी जानती हूँ कि विशाल तेरा भाई है वो तेरे साथ कभी बुरा नहीं सोचेगा.....मगर ये तू क्यों भूल रही है कि तू अब एक औरत है और विशाल एक मर्द.........और जब इंसान के अंदर हवस जनम ले लेता है तो सारे रिश्ते पल भर में बिखरते चले जाते है........जानती हूँ कि तुझे मेरी बातें बुरी लगेगी मगर मेरी बातों पर ज़रा गौर करना.......ये एक कड़वा सच है......

मैने रिश्तो की गर्मियो को टूटते हुए देखा है......जानती हूँ कि तू ऐसा कुछ नहीं करेगी खैर मैं चलती हूँ......फिर मम्मी अपने कमरे में चली जाती है....जाते वक़्त भी मम्मी मुझे बड़े गौर से देख रही थी......उनकी नज़र मेरे जिस्म पर थी....शायद मेरे जिस्म में भी तेज़ी से परिवर्तन हो रहे थे.......पहले मेरे सीने का साइज़ 32 था मगर अब उसका साइज़ 36 हो चुका था.......और मेरा बदन भी भरा भरा सा लग रहा था......दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मैं एक पूरी औरत लग रही थी ......लग क्या रही थी मैं तो अब औरत बन चुकी थी........
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कहते है ना कि अगर कहीं आग लगती है तो धुँआ भी ज़रूर उठता है.......इतने दिनों से विशाल और मेरे बीच नज़ायज़ संबंध चल रहें थे.........मम्मी को मुझपर शक़ हो गया था मगर वो मुझसे इस बारे में कभी कुछ नहीं कहती थी........वक़्त गुज़रता गया और मैं हर दो दिन के अंतराल में विशाल के साथ होटेल जाने लगी........अब मेरा पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था.......हर वक़्त मुझे चुदाई का नशा रहता था.........

उधेर पूजा भी मुझसे अक्सर पूछा करती थी कि तू कॉलेज आज कल क्यों नहीं आती है......मैं उसे हमेशा कोई ना कोई बहाना बना दिया करती थी........अब तक जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था मैने सारी बातें अपनी डायरी में लिख दी थी......अब मेरे राज़ उस डायरी में थे जो मैं सबसे छुपाकर रखती थी........वक़्त तेज़ी से बीत रहा था और हमारी अयाशी पूरे उफान पर थी.......अब तो उस होटेल का मॅनेजर से भी मेरी अच्छी जान पहचान हो चुकी थी.........मैने उसकी आँखों में भी भूख देखी थी.........

एक बार तो दिल में आया कि मैं उसे भी ट्राइ करूँ मगर मुझमें बिल्कुल हिम्मत नहीं हुई.....और मैं विशाल की नज़रो में गिरना नहीं चाहती थी इस लिए मैने ये बात यहीं पर ख़तम कर दी........

अब विशाल से चुदाई करते मुझे . दो महीना हो गये थे........अब मैं पूरी तरह खुल कर विशाल का साथ देती.......मेरे अंदर की झिझक पूरी तरह से ख़तम हो चुकी थी........ऐसे ही एक रोज़ मैं अपने घर पर थी.......वो दिन सनडे था......आज घर में सभी लोग मौजूद थे.........मैं अपनी डायरी लिख रही थी......जब मैने अपनी डायरी ख़तम की तो मैने हमेशा की तरह उसे अपने लॉकर में रख दिया........

फिर मैं जैसे ही अपने बिस्तेर से उठी मुझे अचानक से ओमिटिंग आनी शुरू हो गयी.........मैं अपने मूह पर हाथ रखते हुए फ़ौरन बाथरूम में गयी और वही ओमिटिंग करने लगी.......कुछ देर बाद मुझे काफ़ी हल्का सा महसूस होने लगा......मेरे पीरियड्स भी नहीं आ रहे थे कुछ दिनों से ......इस ओमिटिंग ने ये बात सॉफ कर दी थी कि मैं अब प्रेगञेन्ट हो चुकी हूँ.......ये सोचकर मैं अंदर ही अंदर हिल सी गयी थी.......

मैं फिर बाथरूम से बाहर आई और वही सामने की वॉश बेसिन में आकर अपना मूह हाथ धोने लगी........तभी किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और अगले ही पल मेरे पाँव तले ज़मीन खिसक गयी.......मेरे जिस्म के रोयें डर से पूरी तरह खड़े हो चुके थे.......जब मैने अपनी गर्देन पीछे की ओर घुमाई तो मेरे पीछे मम्मी खड़ी थी........

मम्मी मेरे चेहरे को बड़े गौर से देखने लगी........मैने फ़ौरन अपना चेहरा शरम से नीचे झुका लिया........अब मैं अच्छे से जान चुकी थी कि मम्मी अब सब कुछ जान चुकी है.......पता नहीं आने वाला वक़्त कौन सा तूफान लेकर हमारी ज़िंदगी में आने वाला था.......पर इतना तो ज़रूर तय था कि अब जो कुछ होगा ये ना ही मेरे लिए अच्छा होगा और ना ही ................विशाल के लिए.

मम्मी अपनी आँखें फाडे अभी भी मेरी तरफ देख रही थी.....वही मैं शरम से अपनी नज़रें उनसे नहीं मिला पा रही थी......इस वक़्त डर से मेरे हाथ पाँव बिल्कुल ठंडे पड़ चुके थे.........

स्वेता- अदिति........क्या जो मैं समझ रही हूँ कहीं वही बात तो नहीं है ना....क्या तू.......
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मैं मम्मी के सवालों का कोई जवाब ना दे सकी और उसी तरह अपनी गर्देन उनके सामने नीचे झुकाए रही........अब मम्मी के आवाज़ में गुस्सा सॉफ जाहिर हो रहा था......

स्वेता- तू चुप क्यों है अदिति.......मैं जो तुझसे पूछ रही हूँ तू उसका जवाब क्यों नहीं देती.........क्या तू प्रेगञेन्ट है.......

अदिति- मम्मी......वो.....बात.....

मैं इसी पहले आगे अपनी बात कुछ कह पाती तभी मम्मी का एक ज़ोरदार थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ता है और मेरी आँखों से आँसू छलक पड़ते है.....थप्पड़ की गूँज इतनी तेज़ थी की उसकी आवाज़ दूसरे कमरों में भी आसानी से सुनाई ज़रूर दी होगी.........

स्वेता- तू इतना नीचे गिर जाएगी ये मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.......कौन है वो.......और कब से तेरा उसके साथ संबंध है.......

अदिति- मम्मी....प्लीज़ धीरे बोलिए.......अगर पापा को ये बात पापा लग गयी तो......

तभी मम्मी का एक और करारा थप्पड़ मेरे दूसरे गाल पर पड़ता है- ज़रा उन्हें भी तो पता चले कि उनकी लाडली उनके पीठ पीछे क्या गुल खिला रही है.........मैं पूछती हूँ कौन है वो.........इस बार मम्मी की आवाज़ पहले से ज़्यादा तेज़ थी.........मेरी नज़रें बार बार सामने के दरवाज़े के तरफ जा रही थी......मैं . से बार बार यही दुवा कर रही थी कि पापा को इस बारे में कुछ पता ना चले......मगर ऐसा भला कैसे हो सकता था.......पापा थोड़ी देर बाद अंदर आते हुए मुझे दिखे और इधेर एक बार फिर से डर से मेरा जिस्म थर थर काँपने लगा..........

पापा जब अंदर आए तो वो आकर मेरे सामने खड़े हो गये.....वही थोड़े दूर पर विशाल भी आकर खड़ा हो गया....उसकी भी पूरी तरह से फट गयी थी.......

मोहन- क्या बात है स्वेता......सब ठीक तो है ना.......ऐसा क्या किया है अदिति ने जो तुम इसपर अपना हाथ उठा रही हो..........

स्वेता- खुद ही पूछ लीजिए अपने इस लाडली से..............इसने हमारे खानदान की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी है.........ना जाने किससे अपना मूह काला करवाई है ये........ये अब प्रेगञेन्ट हो गयी है पता नहीं किसका पाप इसके पेट में पल रहा है.........पापा तो जैसे मम्मी की बातों को सुनकर शॉक हो गये थे........उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले......मगर मैने उनके चेहरे पर गुस्सा सॉफ देख लिया था......अब जो होना था वो किसी तूफान से कम नहीं था........

पापा मेरे करीब आए और आकर मीरे पास खड़े हो गये.....वही मेरा डर और भी बढ़ चुका था- जो मैं सुन रहा हूँ क्या वो सच है अदिति......मैं बस तेरे मूह से सच सुनना चाहता हूँ........मुझे जवाब चाहिए अभी.......
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मैं बहुत मुश्किल से अपने आप को संभाल पा रही थी......कहना तो बहुत कुछ चाहती थी मगर मेरी ज़ुबान मेरा साथ नहीं दे रही थी........

अदिति- वो पापा......मम्मी जो कह रही है वो सच है........आइ आम प्रेगञेन्ट.......मैं अपने बात पूरे कह पति तभी पापा का एक करारा थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ा.....मुझे एक पल तो ऐसा लगा जैसे मैं वही चाकर खाकर गिर पड़ूँगी........जैसे तैसे मैने अपने आप को संभाला........

मोहन- कौन है वो हरामी........मुझे उसका नाम बता..........पापा के अंदर का गुस्से अब पूरी तरह से फुट पड़ा था.......

अदिति- नहीं पापा.......चाहे तो मेरी जान ले लो मगर मैं उसका नाम नहीं बता सकती.........

तभी पापा का एक और करारा थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ता है.......थप्पड़ इतना तेज़ था कि मेरे होंठ फट गये थे और मेरे मूह से खून धीरे धीरे बाहर की ओर बहने लगा था........मेरे गाल पर पापा के पाँचों उंगलियाँ छप से गये थे..............

मोहन- तू इतना नीचे गिर जाएगी ये मैने कभी नहीं सोचा था........तुमने एक पल के लिए ये भी नहीं सोचा कि ये सब सुनकर हमारे दिल पर क्या गुज़ेरेगी.....अगर बगल के लोग हमारे बारे में कैसी कैसी बातें करेंगे.......हमारी इज़्ज़त का क्या होगा........क्यों किया तुमने ऐसा अदिति.

तभी विशाल वही सामने आ जाता है और पापा के सामने आकर खड़ा हो जाता है........शायद उसे मेरा मार खाना नहीं देखा जा रहा था- पापा मैं बताता हूँ आपको कि वो कौन है.......पापा मम्मी सवाल भरी नज़रो से विशाल के चेहरे की ओर एक टक देखने लगे......वही मैं अपनी गर्देन ना में हिलाकर विशाल को बताने से मना किया......क्यों कि मैं अच्छे से जानती थी कि अगर मैं बाय्फ्रेंड के साथ ये सब की होती तो पापा मम्मी अपनी इज़्ज़त के खातिर उस लड़के से मेरी शादी करवा सकते थे........

मगर जब उन्हें ये पता चलेगा कि मेरा विशाल से नाजायज़ संबंध है तो पता नहीं उनके दिल पर क्या बीतेगी........वो इस कड़वे सच को सुनकर पता नहीं हमारा क्या हाल करेंगे......

अदिति- तुम्हें मेरी कसम विशाल........पापा मम्मी को कुछ मत बताना.........

विशाल- नहीं अदिति.......अब और नहीं......अब जब सब कुछ पता चल ही गया है तो अब इनसे क्या छुपाना........मैं बताता हूँ पापा कि वो शख्श कौन है और अदिति का किसके साथ संबंध है.........

मोहन- ओह......तो तू भी जानता है सब कुछ........मुझे हैरानी हो रही है कि अदिति ने तुझे ये सब कुछ बताया और तू फिर भी चुप है.........कैसा भाई है तू......
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विशाल- पापा ये सच है कि मैं अदिति की हर बात जानता हूँ......और ये सब जानते हुए भी मैं अब तक चुप था........सच तो ये है कि अदिति का कोई बाय्फ्रेंड नहीं है.........और आपको जिसकी तलाश है वो आपके सामने खड़ा है.....अदिति के पेट में पल रहा बच्चा मेरा है.........मैने अदिति के साथ सेक्स संबंध बनाया था........विशाल की ये बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी पापा का एक करारा थप्पड़ उसके गालों पर पड़ता है और उसके गालों पर पापा के पाँचों उंगलियाँ छप जाती है...........

मम्मी तो ये सब सुनकर वही सामने फर्श पर धम्म से बैठ गयी.......शायद उन्हें बहुत बड़ा सदमा लगा था.....पापा के भी होश उड़ गये थे.........उनका गुस्सा अब अपने चरम पर था..........वो फ़ौरन तेज़ी से दूसरे कमरे में गये और कुछ देर बाद जब वो लौटे तो उनके हाथ में एक गन थी........मेरा तो डर से जिस्म तर तर काँप रहा था.......वही मम्मी बेसूध रोए जा रही थी.........

पापा फ़ौरन अपनी गन विशाल के सीने की तरफ तान दिए और धीरे धीरे उनकी एक उंगली ट्रिग्गर के तरफ बढ़ने लगी..........आज ऐसे हालत बन गये थे कि एक बाप अपने बेटे के सीने पर बंदूक ताने खड़ा था.......शायद आज पापा का गुस्सा इस कदर फुट पड़ा था कि आज उनके सामने रिश्तों की कोई अहमियत नहीं थी.........जिन हाथों से उन्होने हम दोनो को पाला पोशा था आज वही हाथ हमारे खून के प्यासे हो गये थे.........

मुझसे अब नहीं देखा गया और मैं फ़ौरन विशाल के सामने जाकर खड़ी हो गयी.....पापा के हाथ अब तक ट्रिग्गर पर थे मेरे सामने आते ही वो अपनी उंगली ट्रिग्गर से तुरंत हटा दिए........

मोहन- मैं कहता हूँ अदिति हट जा सामने से........मैं भूल चुका हूँ कि सामने खड़ा शख्स अब मेरा कोई लगता है.........कहीं ऐसा ना हो कि ये गोली तेरा सीना चीरते हुए पार हो जाए......हट जा मेरे सामने से.........

अदिति- पापा मैं मानती हूँ कि जो गुनाह हम से हुआ है वो माफी के काबिल नहीं है.....मगर इसमें विशाल का कोई दोष नहीं.......इन सब की ज़िम्मेदार मैं हूँ.......मैं ही विशाल के पीछे गयी थी.......अगर मारना ही है तो मेरी जान ले लो मगर विशाल को कुछ मत करो...........मैं विशाल की ज़िंदगी की आपसे भीख माँगी हूँ......

मोहन- तब तो मुझे तुम दोनो को मारने में बिल्कुल अफ़सोस नहीं होगा.........और मोहन फिर से ट्रिग्गर की तरफ अपनी उंगली धीरे से बढ़ाता है......मैं नहीं जानती थी कि उस वक़्त क्या सही है और क्या ग़लत है मगर सच तो ये था कि मुझे उस वक़्त अपनी मौत से भी डर नहीं लग रहा था.....चन्द फासलों की देरी थी कि उस घर में दो लाशे बिछ जानी थी.....एक मेरी और दूसरी विशाल की.......मगर ऐन मौके पर मम्मी ने आकर पापा का हाथ थाम लिया........

स्वेता- रुक जाइए.......क्यों आप अपने हाथ इनके खून से गंदे कर रहें है ......अगर इसने किसी और के साथ अपना मूह काला करवाया होता तो बात समझ में आती....मगर इसने तो रिश्तों की गरिमा ही गिरा दी.......अपनी भाई के साथ इसने वो सब किया......छी........शरम आती है मुझे तुम जैसे औलादों पर....काश इससे अच्छा होता कि तुम दोनो पैदा होने से पहले मर गये होते........कम से कम आज ये दिन तो नहीं देखना पड़ता.........

अब मुझे समझ में आया कि उस दिन तू विशाल के साथ कहाँ गयी थी......क्यों तू इसके इतने करीब रहती........क्यों अब तुम दोनो के बीच झगड़ा नहीं होता था.......
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