उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet

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rajaarkey
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उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet

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चेतावनी ...........दोस्तो ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है

उस प्यार की तलाश में


दोस्तो कहते है ना कि अगर प्यार का रंग जो एक बार किसी पर चढ़ गया तो फिर वो कभी उतारे नहीं उतरता....उस प्यार के रंग के सामने सारे रंग बिल्कुल फीके पड़ जाते है.....और इस प्यार में अगर हवस भी शामिल हो जाए तो फिर.......तब वो प्यार कुछ और ही रूप ले लेता है......फिर सारे रिश्ते नाते, मान मर्यादा ,मान सम्मान, सब कुछ एक पल में मिटाता चला जाता है......तो आइए चलते है उस प्यार की तलाश में जो रिश्तो के बीच शुरू हुआ और ख़तम वहाँ ......जहाँ पर इसकी सारी सीमाए ख़तम हो जाती है......तो आइए मेरे साथ साथ चलिए इस सुनहरे सफ़र पर......उस प्यार की तलाश में .........

.........................................................................

मैं अदिति एक बेहद खूबसूरत लड़की, रंग बिल्कुल दूध की तरफ गोरा और सॉफ.......चिकना बदन........उमर लगभग 20 साल......अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......कौन होगा मेरे सपनों का राजकुमार......कैसा दिखता होगा......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे.......मैं उसे इस भीड़ में कैसे पहचानूँगी........कुछ तो ख़ास होगा उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........क्या मैं उसे खुस रख पाउन्गि........आज भी ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान करते है.......मगर इस दिल में कहीं ना कहीं एक मीठी सी चुभन हमेशा से इस नन्हे से दिल को उस घड़ी के आने का इंतेज़ार करती रहती है.......कब मिलेगा मेरे इन सारे सवालों के जवाब......कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........

मैं अपने बिस्तेर पर लेटी हुई अपने हाथ में एक डायरी लेकर इस मीठे से एहसास को उस काग़ज़ के पन्नो पर उतार रही थी.....दिल में हज़ारों सपने लिए और मन में रंगीन ख्वाब लेकर मैं उस आने वाले हसीन पल को शब्दों का रूप दे रही थी......ये एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया सा था......अभी तक मेरी ज़िंदगी में किसी लड़के की एंट्री नहीं हुई थी......दोस्ती के ऑफर तो मुझे बहुत आए मगर मैं आज भी उस प्यार को तलाश रही थी जो कभी मैं बचपन से लेकर अब तक अपने सपनों में देखती आ रही थी.....मुझे यकीन था कि मेरे सपनों का राजकुमार मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......

तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी.......मगर कॉलेज भी तो जाना था मुझे.......इस लिए मैं इसी ज़्यादा और कुछ नहीं सोची और फटाफट अपनी डायरी छुपाकर अपने ड्रॉयर में रख दिया और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम में चल पड़ी......उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना रामायण मुझे सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी मुझ पर चिल्लाति मुझे उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........

जैसे ही मैं अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास पहुँची सामने से मुझे विशाल आता हुआ नज़र आया......वो मुझसे एक साल छोटा था.....उससे मेरी कभी नहीं बनती थी......वो हमेशा मुझसे लड़ा करता था.....मैं भी कहाँ उससे पीछे रहती.......वो शेर तो मैं सवा शेर.......मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......विशाल का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उसके चेहरे को देखकर उसपर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी......विशाल वही अपने सिर के बाल खीचते हुए मेरी मम्मी से मेरी शिकायत कर रहा था....मुझे उसकी बातें सॉफ सुनाई दे रही थी......अंदर ही अंदर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और मेरी हँसी नहीं रुक रही थी.......मुझे विशाल को चिडाने में बड़ा मज़ा आता था.....वो मेरा कुछ बिगाड़ तो नहीं सकता था मगर मुझसे गुस्सा बहुत होता था......और वैसे भी वो मुझसे गुस्सा होकर करता भी क्या.....

खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उसकी देखने लायक थी.......उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी था......मैं उसे चिड़ाते हुए बाहर आई और अपने कमरे में चल पड़ी..


थोड़ी देर बाद मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था.......वैसे मुझे जीन्स पहनना थोड़ा ऑड लगता था......ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी.......मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं अपने कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे ड्रॉयिंग रूम में डाइनिंग चेर पर बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......

तभी मुझे विशाल बाथरूम से बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया......अब भी उसका चेहरा गुस्से से लाल था.....वैसे वो मुझे गुस्से में ज़्यादा क्यूट लगता था......थोड़ी देर बाद वो भी वही डाइनिंग टेबल पर आया और मेरे सामने वाले चेर पर आकर बैठ गया......तभी कमरे में मम्मी आई उनकी हाथों में नाश्ते का ट्रे था.......मम्मी की उमर करीब 46 साल.......दिखने में काफ़ी हेल्ती और मोटी थी.........रंग उनका भी गोरा था मेरी तरह......वो भी जवानी के दिनों में बहुत खूबसूरत रही होंगी मगर अब पहले जैसे खूबसूरती उनके चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी.......कुछ घर की ज़िम्मेदारी की वजह से और कुछ हमारी परवरिश के चलते उन्होने कभी अपने उपर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.....मेरी मम्मी का नाम स्वेता था......

स्वेता- क्यों शहज़ादी .......अब तो तुम इतनी बड़ी हो गयी हो........कभी तुम्हारे अंदर ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज़ आएगी भी या नहीं........या सारी उमर ऐसे ही गुज़ारने का इरादा है.....अरे कुछ दिनों में तेरी शादी हो जाएगी क्या तू अपने ससुराल में भी ऐसे ही रहेगी.......तुझे ज़रा भी होश नहीं रहता कि घर पर काम भी होता है.......मैं अकेले थक जाती हूँ......तुझे मेरा हाथ बटाना चाहिए तो तू सुबेह तक सोती रहती है.........आख़िर ऐसा कब तक चलेगा........

अदिति- क्या मोम......आपका ये प्रवचन सुन सुन कर मैं तो तंग आ गयी हूँ.......जब देखो तब मेरी शादी के चक्कर में पड़ी रहती हो....अरे अच्छा ख़ासा आज़ाद हूँ और आप मुझसे मेरी आज़ादी छीनने पर तुली हुई हो.........और आपको क्या लगता है कि मैं अभी से घर की ज़िम्मेदारी अकेले निभा पाउन्गि........देखो मुझे अभी तो मेरी उमर कहाँ हुई है इन सब चीज़ों के लिए......

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Re: उस प्यार की तलाश में

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स्वेता अदिति के कान जाकर पकड़ लेती है- कुछ तो शरम कर.......तेरी जैसी लड़कियाँ आज घर का पूरा काम अकेले करती है........थोड़ा उन सब से भी सीख लेती तो तेरे साथ साथ कुछ मेरा भी भला हो जाता.......वही मेरे सामने विशाल मुझे देखकर मज़े ले रहा था......जब भी मुझे डाँट पड़ती वो बहुत खुस होता.......तभी पापा कमरे में आते है......उनकी उमर लगभग 50 साल के आस पास.......आँखों पर चश्मा चढ़ाए हुए और हाथों में अख़बार लिए वो अपने चेर पर आकर बैठ जाते है.....उनका नाम मोहनलाल था.....

मोहन- अरे क्या हो रहा है ये सुबेह सुबेह.......क्या करती हो स्वेता तुम....बेचारी इतनी अच्छी तो मेरी लाडली बेटी है और तुम इससे ऐसे पेश आती हो........

स्वेता- हां और चढ़ाओ इसे अपने सिर पर......पहले ही क्या कम लाड प्यार दिया है इसे आपने.......घर का काम करने के बजाए सुबेह तक ये सोती रहती है.....शाम को पढ़ने का बहाना बनाती है........आख़िर कब तक चलेगा ये सब.....अभी से ये घर का काम नहीं सीखेगी तो आगे इसका क्या होगा.......

मोहन- सीख जाएगी.......अभी तो इसकी उमर कहाँ हुई है.......अदिति अपने पापा की बातों को सुनकर मुस्कुरा देती है......

स्वेता- आपने तो और इसे सिर पर चढ़ा रखा है.......आप तो ऐसे बोल रहें है जैसे ये कोई दूध पीती बच्ची है......और स्वेता फिर किचेन में चली जाती है......उधेर विशाल के चेहरे पर हँसी थी......मगर मैं भला उसे कैसे खुश होता हुआ देख सकती थी......उसका और मेरा तो 36 का आकड़ा था.....

अदिति- पापा पता है कल विशाल कॉलेज बंक मार कर अपने दोस्तों के साथ मूवी गया था........वो तो मेरी सहेली है उसने इसको जाते हुए देखा और सुना......आज कल इसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता है.....दिन भर ये अपने दोस्तों के साथ इधेर उधेर घूमता रहता है......

मोहन गुस्से से एक बार विशाल की ओर देखता है विशाल के चहेरी पर हँसी गायब थी अब उसके चहेरी पर परेशानी और डर झलक रहा था......वो खा जाने वाली नज़रो से अदिति को घूर रहा था.......

मोहन- दिस ईज़ नोट फेर विशाल......कह देता हूँ अगर इस साल तुम्हारा रिज़ल्ट खराब आया तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा.......बी कॉन्सेंटेर्ट इन युवर स्टडीस......दिस ईज़ माइ लास्ट वॉर्निंग......नेक्स्ट टाइम नो एक्सक्यूसस......अंडरस्टॅंड!!!!

विशाल बेचारा क्या करता वो चुप चाप अपना सिर नीचे झुका लेता है और अपने पापा की डाँट सुनता रहता है......ये रोज़ का काम था अदिति अक्सर विशाल की ऐसी ही टाँगें खीचा करती थी......और विशाल चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था......करीब 1/2 घंटे बाद दोनो तैयार होकर बस स्टॉप पर जाते है और बस के आने का इंतेज़ार करते है.....

विशाल और अदिति दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे......जहाँ अदिति बी.कॉम कर रही थी वही विशाल बी.एससी कर रहा था........दोनो एक ही बस से कॉलेज जाते थे.......आज एक तरफ अदिति खड़ी थी वही दूसरे कोने पर विशाल चुप चाप अपना सिर नीचे झुकाए खड़ा था.......वो अब अदिति से बहुत नाराज़ था........होता भी क्यों ना......उसने जान बूझ कर विशाल को डाँट सुनवाया था.....

अदिति- आइ अम सॉरी विशाल.......अब तो तू मुस्कुरा दे........

विशाल एक नज़र अदिति के तरफ देखता है फिर वो अपना मूह दूसरी तरफ फेर लेता है- मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी.....

अदिति तुरंत अपने बॅग से एक कॅड्बेरी निकाल कर उसके हाथों में दे देती है- मैने जो किया तेरे भले के लिए किया......चल अब पहले की तरह मुस्कुरा दे......वैसे एक बात बोलूं तू गुस्से में और भी ज़्यादा अच्छा लगता है......अब ऐसे क्या देख रहा है चुप चाप टॉफी खा ले नहीं तो वो भी मैं तुझसे छीन लूँगी.......

विशाल चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाता और अगले ही पल उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर जाती है......अदिति रोज़ इस तरह से विशाल को पहले डाँट सुनवाती फिर बाद में मनाती......मगर विशाल भी अदिति से बहुत प्यार करता था....उसे भी अदिति के ये सब नखरें पसंद थे.......भले ही वो उसपर गुस्सा क्यों ना होता हो मगर उसका गुस्सा अदिति पल भर में गायब कर देती थी........तभी थोड़ी देर बाद बस आ जाती है.....

रोज़ की तरह आज भी बस भीड़ से पूरी खचाखच भरी थी.......विशाल तो जैसे तैसे उस बस में चढ़ जाता है मगर अदिति जैसे ही अपना एक पाँव बस में रखती है तभी बस चल पड़ती है.......बस के अचानक चलने से अदिति का हाथ फिसल जाता है और वो तुरंत पीछे की ओर गिरने लगती है तभी एक मज़बूत हाथ उसकी बाहें थाम लेता है.......वो मज़बूत बाहें और किसी की नहीं बल्कि विशाल की थी......वो अदिति को अंदर की तरफ खीचता है और अगले ही पल अदिति बस के अंदर होती है......इस वक़्त दोनो के चेहरों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी.......तभी विशाल आगे बढ़कर आगे की तरफ चला जाता है अपने दोस्तों के पास.....और अदिति वही खड़ी रहती है तभी उसके कंधे पर किसी का हाथ उसे महसूस होता है.......वो हाथ उसकी बेस्ट फ्रेंड पूजा का था......वो भी उसकी क्लास मेट थी........


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Re: उस प्यार की तलाश में

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पूजा दिखने में गोरी और सुंदर थी मगर अदिति के सामने वो बिल्कुल फीकी दिखती थी.......हाइट में पूजा थोड़ी उँची थी अदिति से और उसका जिस्म भी भरा था......वो भी दिखने में काफ़ी अट्रॅक्टिव थी......

पूजा- क्यों बस में सही से चढ़ नहीं पाती क्या.....आज तेरे भाई ने अगर सही समय पर तेरा हाथ नहीं पकड़ा होता तो तू तो गयी थी आज उपर.....काश मैं तेरी जगह होती तो मैं विशाल के सीने से लग जाती और उससे वही लिपट जाती........ये सब मेरे साथ क्यों नहीं होता यार.....

अदिति- प्लीज़ स्टॉप इट पूजा....तुझे बक बक के सिवा और कुछ नहीं सूझता क्या......जब देखो तब तू हमेशा लड़कों के बारे में मुझसे बातें किया करती है..........

पूजा- लड़कों के बारे में तुझसे बात ना करूँ तो क्या अपने बारे में बात करूँ........बात तो तू ऐसे कर रही है जैसे तुझे लड़कों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है........

अदिति- मैं तेरी तरह फालतू नहीं हूँ....जब देखो तब इन्ही सब में लगी रहती है

मैं पूजा की बातों को सुनकर कुछ पल तक यू ही खामोश रही......मैं अच्छे से जानती थी कि मैं बहस में उससे कभी जीत नहीं सकती.....मगर आज पहली बार मैं अपने भाई के लिए सोचने पर मज़बूर हो गयी थी......बार बार मेरे जेहन में बस विशाल का हाथ पकड़ना मुझे याद आ रहा था.......इससे पहले भी वो मेरे हाथ ना जाने कितनी बार पकड़ चुका था मगर मैने इस बारे में कभी ज़्यादा गौर नहीं किया था......मगर आज ऐसा क्या हुआ था मुझे जो ये सब मैं सोच रही थी......शायद ये पूजा की बातों का मुझपर असर था........

आज मुझे भी ऐसा लग रहा था कि विशाल अब पूरा जवान हो चुका है......उसका जिस्म भी अब पत्थर की तरह मज़बूत और ठोस बन चुका है.......यही तो हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसे कोई मर्द अपनी मज़बूत बाहों में जकड़े और उसके बदन की कोमलता को अपने मज़बूत हाथों में पल पल महसूस करता रहें......शायद आज मेरे अंदर भी ऐसा ही कुछ तूफान अब धीरे धीरे जनम ले रहा था.......मैं भी अब किसी मर्द की बाहों में अपने आप को महसूस करना चाहती थी.....अपना ये जवान जिस्म किसी को सौपना चाहती थी......टूटना चाहती थी किसी की बाहों में.........

ये सब सोचकर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी जो पूजा की नज़रो से ना बच सकी......वो मेरे चहेरी को बड़े गौर से देख रही थी जैसे वो मुझसे इस मुस्कुराहट की वजह पूछ रही हो........ये सब सोचकर मेरा चेहरा अब शरम से लाल पड़ चुका था.......

पूजा- क्या बात है जान तेरे चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट क्यों????? क्या मैं इस मुस्कुराहट की वजह जान सकती हूँ.....

अदिति- कुछ नहीं पूजा.......बस यू ही.......

पूजा मेरे चेहरे पर अपने दोनो हाथ रख देती है और मुझे अपनी तरफ देखने का इशारा करती है.......मेरा चेहरा शरम से और भी लाल पड़ चुका था.....एक नज़र मैने उसकी आँखों में देखा फिर मेरी नज़रें खुद ब खुद नीचे झुक गयी........वो भी बस मुझसे कुछ और ना पूछ सकी और मेरे चेहरे को ऐसे ही देखती रही.....शायद वो मेरे चहेरी से मेरे दिल का हाल जानने की कोशिश कर रही हो.......

तभी मेरे पीछे खड़ा एक लड़का बार बार मुझे धक्के दे रहा था......वो इस वक़्त मेरे ठीक पीछे खड़ा था......शकल से वो काला सा था और काफ़ी मोटा भी.......वो बार बार अपना पेंट अड्जस्ट कर रहा था......इस वक़्त उसका लंड मेरी गान्ड से पूरी तरह चिपका हुआ था......भीड़ इतनी ज़्यादा थी बस में कि आगे जाना भी मुमकिन ना था......वो इसी बात का फ़ायदा उठा रहा था.......मेरे साथ अक्सर ये सब होता आया था मैं जानती थी कि ऐसे सिचुयेशन में मुझे क्या करना है......

मैने अपनी नज़रें उसकी तरफ की तो वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था......जैसे मुझसे पूछ रहा हो कि क्या तुम्हें भी मज़ा आ रहा है......मैने उससे कुछ कहा तो नहीं बस एक नज़र उसे घूर कर देखती रही फिर अपने एक हाथ मैं अपने बालों पर ले गयी और वहाँ मैने अपना हेरपिन धीरे से निकाला और फिर अपने हाथ को धीरे धीरे सरकाते हुए नीचे की ओर ले जाने लगी.....अगली बार जब फिर बस अगले स्टॉप पर रुकी तो एक बार फिर से उसने मुझे ज़ोर का धक्का दिया ......मैं तो उस भीड़ में पिस रही थी और वो शख्स इस भीड़ का पूरा पूरा फ़ायदा उठा रहा था.......मैने भी सही मौके का इंतेज़ार किया और जैसे ही बस चली वो जान बूझकर फिर से मुझे धक्के देने के लिए जैसे ही उसने अपनी कमर आगे की तरफ पुश की मैने अपने हाथ में रखा हेरपिन उसके हथियार पर दे मारा.....

मैं फिर तुरंत पलट कर उसके चहेरी की तरफ देखने लगी......उसके चेहरे पर अभी भी मुस्कान थी मगर उस मुस्कुराहट के पीछे अब उसके चेहरे पर दर्द की एक लकीर सॉफ झलक रही थी......भले ही उसने अपने मूह से कोई आवाज़ ना निकाली हो मगर उसकी आँखें उस दर्द को सॉफ बयान कर रही थी.......इसका असर भी मुझे देखने को तुरंत मिला.......वो वहाँ से सरकते हुए आगे की ओर बढ़ गया.......उसके इस हरकत पर अब मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी........तभी थोड़े देर में कॉलेज आ गया और एक एक कर सारे स्टूडेंट्स बाहर आते गये.......पूजा ने भी सब देख लिया था वो मुझे देखकर बस मुस्कुरा रही थी......जवाब में मैं भी उसे देखकर मुस्कुरा पड़ी......

पूजा- क्या बात है अदिति आज तेरे चेहरे पर मुस्कान हट नहीं रही......कोई मिल गया क्या तुझे.......कहीं तेरे सपनों का राजकुमार तो नहीं मिल गया.....

अदिति- अपनी बक बक बंद कर......कभी तो कोई और बात किया कर मुझसे........और जब मेरे सपनों का राजकुमार मुझे मिलेगा तो तुझे सबसे पहली खबर करूँगी.......जवाब में पूजा मुझे देखकर मुस्कुराती रही.......

थोड़ी देर बाद लेक्चर शुरू हो गया और उधेर विशाल अपने क्लास की ओर चल पड़ा......सुबेह तो पढ़ाई में थोड़ी इंटरेस्ट जागती थी मगर जैसे जैसे वक़्त गुज़रता था टाइम तो ऐसा लगता था मानो थम सा गया हो........दोपहर में लंच के दौरान हम सब वही गार्डेन में जाकर बैठते और इधेर उधेर की बातें किया करते.......आज मेरी कई सारी फ्रेंड्स नहीं आई थी जिससे मुझे और भी बोरियत सी महसूस हो रही थी......मगर पूजा थी ना मुझे पकाने के लिए.......

पूजा- तूने मुझे बताया नहीं अदिति कि तू अपने भाई से कब मुझे मिलवा रही है........कसम से जान क्या आइटम लगता है तेरा भाई......हाई मैं मर जावां.......जैसे तू एक पीस है वैसे ही तेरा भाई......अगर मैं तेरी जगह पर होती तो मैं तो अपने भाई से कब का चुद चुकी होती....चाहे जमाना मुझे कुछ भी कहता.....और सबसे अच्छी बात तो घर की बात घर में रह जाती.......इसमें बदनामी का भी ख़तरा कम रहता.....मगर अफ़सोस कि मेरा कोई भाई नहीं है........और एक तू है घर में इतना मस्त माल है और तू बेकार में अपने सपनो के राजकुमार के बारे में सोची फिरती है........ये तो वही बात हुई कि हिरण (डियर) को कस्तूरी की तलाश रहती है और उसे खुद नहीं मालूम कि जिसकी उसे तलाश है वो तो उसके पास ही है.....

अदिति- ओह गॉड!!!! इट्स टू मच पूजा.......पता नहीं तू कब सुधेरेगी.........जब देखो तब ये सब बातें......अगर तुझे विशाल इतना ही पसंद है तो क्यों नहीं जाकर उससे बोल देती......वैसे मेरा भाई बहुत शरीफ इंसान है.......वो तेरे जैसी लड़की के चक्कर में कभी नहीं आएगा......और तू ये बेफ़िजूल की बातें हमेशा मुझसे करती रहती है.....भला कौन भाई अपनी बेहन पर ऐसी नज़र डालेगा......ये सब किताबी बातें है.......तू हमेशा ऐसी उल्टी सीधी कहानियाँ पढ़ती है इस लिए तेरे दिमाग़ में ये सारी बातें आती रहती है......मुझे देख ले क्या मैने कभी अपने भाई के बारे में ये सब सोचा......

पूजा- लगता है कि तुझे मुझसे जलन हो रही है......कहीं तुझे डर है कि मैं तेरे भाई को तुझसे चुरा ना लूँ......अगर यही बात है तो फिर मैं तेरे रास्ते से हट जाती हूँ......सहेली हूँ मैं तेरी तेरे खातिर इतना तो कर ही सकती हूँ....और क्या मैं तुझे फालतू लगती हूँ.....यही कहना चाहती है ना तू.......ठीक है तो आज से तेरी मेरी दोस्ती ख़तम.......

अदिति- ओह गॉड!!!! हमेशा उल्टी सीधी बातें किया करती है......मैं अब तुझे कभी इस बारे में कुछ नहीं कहूँगी......अब तो चुप हो जा मेरी माँ......आइ अम सॉरी जो मुझसे ग़लती हो गयी.....कान पकड़ती हूँ मैं......अब तो चुप हो जा......जवाब में पूजा अदिति को देख कर धीरे से मुस्कुरा देती है......ऐसे ही समय गुज़रता जाता है और पूजा रोज़ नये नये किस्से अदिति को सुनाती थी ख़ास कर इन्सेस्ट रिलेशन्स के बारे में.......पहले तो अदिति ये सब सुनना भी पसंद नहीं करती थी मगर बाद में उसने ये सोचा कि सुनने में क्या बुराई है.......ये सोचकर वो पूजा से रोज़ नये नये किस्से सुना करती थी......इस दौरान वो कई बार बहुत गरम भी हो जाती थी जिसके वजह से उसे घर जाकर सबसे पहले अपने आप को ठंडा करना पड़ता था.......
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वक़्त बदल रहा था.......मगर अदिति ने कभी अपने भाई को उस नज़र से देखा भी नहीं.......कई बार उसके दिमाग़ में ये सारे ख्याल आते तो वो फ़ौरन अपना माइंड दूसरी तरफ डाइवर्ट कर देती...... समय के साथ साथ अब अदिति धीरे धीरे सेक्स के तरफ झुक रही थी........वजह ये थी कि उसकी अधिकांश सहेलियाँ यही टॉपिक के बारे में उससे बात किया करती थी.......कहीं ना कहीं अब अदिति के मन में भी सेक्स की इच्छा अब धीरे धीरे जनम ले रही थी.......देखा ये था कि आने वाले समय में अदिति इस तपिश को अपने अंदर संभाल पाती है या फिर वो भी इस सेक्स की आँधी में अपने आप को बहा ले जाती है.

मैं अपने कमरे में अपने बिस्तेर पर लेटी हुई आज भी अपनी डायरी में वो बीते हसीन लम्हें लिख रही थी......हालाँकि ऐसा मेरा साथ अभी तक कुछ हुआ नहीं था फिर भी दिल में एक मीठी सी चुभन हमेशा रहती थी........कल ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए है और अब मैं राहत सी महसूस कर रही थी........मगर आज मेरे पास लिखने को ज़्यादा कुछ नहीं था इस लिए मैने अपनी डायरी बंद कर दी और अपने सपनों का राजकुमार के बारे में सोचने लगी........मगर मम्मी थी ना मेरी सपनों की दुश्मन.......उनके रहते तो मेरे सपनों का राजकुमार मेरे घर के चौखट पर भी अपने कदम नहीं रख सकता था तो भला वो मेरे सपनों में क्या खाक आता.......

स्वेता- एरी वो शहज़ादी......अब तो उठ जा......आज तुझे कॉलेज नहीं जाना क्या........ये लड़की का कुछ नहीं हो सकता......पता नहीं इसका आगे क्या होगा.....

अदिति- क्या माँ हमेशा एक ही बात........मैं ये सब सुनकर पक गयी हूँ......

स्वेता- अगर तुझे मेरी बात इतनी ही बुरी लगती है तो फिर अपनी ये आदत क्यों नहीं बदल देती.....नहीं तो फिर सुनती रह बेशरमों की तरह......मुझे मम्मी की बातों पर हँसी आ गयी और मैं मम्मी के पास आई और उनके गले में अपनी बाहें डाल दी........मम्मी मेरी इस अदा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी......

अदिति- आख़िर मैने ऐसा कौन सा काम कर दिया जो मैं आपकी नज़र में बेशरम बन गयी हूँ.......अभी तो आपने मेरी शराफ़त देखी है......जिस दिन मैं बेशरामी पर उतर आऊँगी उस दिन आपको भी मुझसे शरम आ जाएगी......

स्वेता फिर से अदिति का कान पकड़ लेती है- ओये चुप कर......देख रही हूँ आज कल तू बहुत बढ़ चढ़ कर बातें कर रही है.......लगता है अब तेरे हाथ जल्दी से पीले करने पड़ेंगे........तेरी ये बेशर्मी की लगाम अब तेरे होने वाले पति के हाथों में जल्दी से थमानी पड़ेगी.......

मैं मम्मी को एक नज़र घूर कर देखी फिर मैं बिना कुछ कहे अपने बाथरूम में घुस गयी......आज मैं मम्मी से इस बारे में कोई बहस नहीं करना चाहती थी........थोड़ी देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकली तो हमेशा की तरह विशाल बाहर मेरे आने का इंतेज़ार कर रहा था.......आज भी उसके चेहरे पर गुस्सा था......और गुस्सा होता भी क्यों ना....मेरी वजह से उस बेचारे को घंटों इंतेज़ार करना पड़ता था.......

फिर हम रोज़ की तरह कॉलेज निकल गये.......फिर से वही बोरियत वाली लेक्चर्स......जैसे तैसे वक़्त गुज़ारा और दोपहर हुई........मैं आज भी पार्क में बैठी हुई थी और पूजा रोज़ की तरह मुझे आज भी पका रही थी.......


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पूजा अपने बॅग से कुछ निकाल कर मुझे थमा दी.....उसके हाथ में एक बड़ा सा पॅकेट था.......और उसके उपर एक ब्लॅक कलर की प्लास्टिक कवर चढ़ा हुआ था........मुझे तो कुछ ज़्यादा समझ में नहीं आया मगर उसके ज़्यादा ज़ोर देने पर मैं वो पॅकेट चुप चाप अपने बॅग में रख ली......

पूजा- जानती है अदिति ये जो मैने तुझे अभी अभी दिया है ये मैं तेरे लिए ही ख़ास तौर पर लाई हूँ.......आज घर पर जाना और आराम से इस पॅकेट को रात में खोलना........ये तेरे लिए बहुत ख़ास है.......मैं पूजा को सवाल भरी नज़रो से देखती रही मगर मेरे लाख पूछने पर भी उसने मुझे कुछ नहीं बताया......आख़िर ऐसी क्या ख़ास चीज़ थी उस पॅकेट में.......मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.......पता नहीं ऐसा कौन सा ख़ास चीज़ है जो पूजा मेरे लिए ही लाई है.........

थोड़ी देर बाद फिर से लेक्चर्स शुरू हो गये......मेरा पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था.......बार बार मेरा ध्यान उस पॅकेट पर जा रहा था......दिल में बार बार यही इच्छा हो रही थी कि मैं अभी उस पॅकेट को खोल लूँ और तसल्ली से देखूं मगर पूरे क्लास में ये मुमकिन नहीं था.....और अगर किसी की नज़र मुझपर चली गयी तो ख्वमोखवाह बात बिगड़ जाती.......जैसे तैसे वक़्त गुज़र रहा था......उस वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था मानो वक़्त रुक सा गया हो.........

जैसे ही क्लास ओवर हुई मैं फ़ौरन अपने घर के लिए निकल पड़ी.......मुझे जल्दी में जाता हुआ देखकर पूजा मुस्कुराए बिना ना रह सकी......मैने भी उसकी ज़्यादा परवाह नहीं की और पूरे रास्ते भर मेरे दिल और दिमाग़ में सवालों का ये सिलसिला चलता रहा.....मैं जब घर पहुँची तो मैं फ्रेश हुई और जाकर अपने कपड़े चेंज किए......मैं उस पॅकेट को अपने बॅग से निकाल कर अपनी अलमारी में सेफ रख दिया......

जैसे तैसे शाम हुई और फिर रात......आज वक़्त पता नहीं क्यों कुछ थम सा गया था.......मैं जल्दी से खाना खाकर अपने रूम में आ गयी........डॅड ने मेरे पिछले बर्तडे पर मुझे प्रेज़ेंट के रूप में एक लॅपटॉप गिफ्ट किया था......और मेरे भाई का भी एक कंप्यूटर था वो उसके कमरे में था......उसके पास डेस्कटॉप था........मैने अपना रूम झट से अंदर से लॉक किया और मैं बहुत बेचैनी से अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और अपनी अलमारी से वो पॅकेट बाहर निकाला.......उस वक़्त मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था........पता नहीं पूजा ने मुझे ऐसी क्या चीज़ दी थी इस सवाल का जवाब पाने के लिए मैं बहुत बेचैन थी........ये जानना मेरे लिए अब और भी अहम हो गया था.........

मैने फ़ौरन वो पॅकेट निकाला और जब मेरी निगाह अंदर रखे उस चीज़ पर पड़ी तो मेरा गला घबराहट से सूखने लगा......उस पॅकेट में दो तीन बुक्स थी......उन बुक्स के पोस्टर्स पर नंगी लड़कियों की तस्वीरें थी जिसे देखकर मेरे होश उड़ गये थे......ऐसा पहली बार था जब मैं ऐसी चीज़ देख रही थी........अंदर दो डीवीडी भी मुझे दिखाई दी.......वो दोनो डीवीडी बाहर से पूरी ब्लॅंक दिख रही थी.......मुझे इस बात का अंदाज़ा तो हो गया था कि वो ज़रूर ब्लू फिल्म की डीवीडी होगी........मेरे चेहरे पर इस वक़्त पसीने की बूँदें सॉफ झलक रही थी........मैं अपनी सांसो को अपने वश में करने की पूरी कोशिश कर रही थी पर पता नहीं क्यों ना ही मेरी साँसें मेरे बस में हो रही थी और ना ही मेरे दिल की धड़कनें कम हो रहा थी.....

मैं फिर उन किताबों को एक एक कर देखने लगी......वो सेक्स की किताबें थी.....और जगह जगह उसमे कुछ नंगी लड़कियों की तस्वीरें भी थी.......जैसे जैसे मैं उसके पान्ने पलट रही थी मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन तस्वीरों में नँगता बढ़ती जा रही है.......पहले उन तस्वीरों में लड़कियाँ बिन ब्रा की खड़ी थी......फिर बाद में उन लड़कियों के जिस्म पर कपड़े का एक रेशा भी ना था.......कुछ पन्ने पलटने के बाद जब मेरी नज़र एक मर्द के तस्वीर पर पड़ी तो मुझे एक पल तो ऐसा लगा मानो मेरा कलेजा बाहर को आ गया......मैने पहले तो अपनी आँखें तुरंत बंद कर ली........

शरम से मेरा चेहरा पूरा लाल पड़ चुका था........मेरी साँसें मेरे बस में नहीं थी......कुछ देर तक मैं अपनी आँखें बंद कर ऐसे ही खामोश बैठी रही.....फिर थोड़ी हिम्मत जुटाकर अगले ही पल मैने धीरे धीरे अपनी आँखे खोली और उन तस्वीर की तरफ एक टक देखने लगी.......उस तस्वीर में एक मर्द पूरी नंगी हालत में खड़ा था......ऐसा पहली बार था जब मैं किसी मर्द को इस हाल में देख रही थी.....मेरी नज़र बार बार उसके मर्दाने जिस्म को घूर रही थी........कुछ सोचकर एक बार फिर से मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ चुका था.
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