उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet

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Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )

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मैं बहुत मुश्किल से अपने आप को संभाल पा रही थी......कहना तो बहुत कुछ चाहती थी मगर मेरी ज़ुबान मेरा साथ नहीं दे रही थी........

अदिति- वो पापा......मम्मी जो कह रही है वो सच है........आइ आम प्रेगञेन्ट.......मैं अपने बात पूरे कह पति तभी पापा का एक करारा थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ा.....मुझे एक पल तो ऐसा लगा जैसे मैं वही चाकर खाकर गिर पड़ूँगी........जैसे तैसे मैने अपने आप को संभाला........

मोहन- कौन है वो हरामी........मुझे उसका नाम बता..........पापा के अंदर का गुस्से अब पूरी तरह से फुट पड़ा था.......

अदिति- नहीं पापा.......चाहे तो मेरी जान ले लो मगर मैं उसका नाम नहीं बता सकती.........

तभी पापा का एक और करारा थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ता है.......थप्पड़ इतना तेज़ था कि मेरे होंठ फट गये थे और मेरे मूह से खून धीरे धीरे बाहर की ओर बहने लगा था........मेरे गाल पर पापा के पाँचों उंगलियाँ छप से गये थे..............

मोहन- तू इतना नीचे गिर जाएगी ये मैने कभी नहीं सोचा था........तुमने एक पल के लिए ये भी नहीं सोचा कि ये सब सुनकर हमारे दिल पर क्या गुज़ेरेगी.....अगर बगल के लोग हमारे बारे में कैसी कैसी बातें करेंगे.......हमारी इज़्ज़त का क्या होगा........क्यों किया तुमने ऐसा अदिति.

तभी विशाल वही सामने आ जाता है और पापा के सामने आकर खड़ा हो जाता है........शायद उसे मेरा मार खाना नहीं देखा जा रहा था- पापा मैं बताता हूँ आपको कि वो कौन है.......पापा मम्मी सवाल भरी नज़रो से विशाल के चेहरे की ओर एक टक देखने लगे......वही मैं अपनी गर्देन ना में हिलाकर विशाल को बताने से मना किया......क्यों कि मैं अच्छे से जानती थी कि अगर मैं बाय्फ्रेंड के साथ ये सब की होती तो पापा मम्मी अपनी इज़्ज़त के खातिर उस लड़के से मेरी शादी करवा सकते थे........

मगर जब उन्हें ये पता चलेगा कि मेरा विशाल से नाजायज़ संबंध है तो पता नहीं उनके दिल पर क्या बीतेगी........वो इस कड़वे सच को सुनकर पता नहीं हमारा क्या हाल करेंगे......

अदिति- तुम्हें मेरी कसम विशाल........पापा मम्मी को कुछ मत बताना.........

विशाल- नहीं अदिति.......अब और नहीं......अब जब सब कुछ पता चल ही गया है तो अब इनसे क्या छुपाना........मैं बताता हूँ पापा कि वो शख्श कौन है और अदिति का किसके साथ संबंध है.........

मोहन- ओह......तो तू भी जानता है सब कुछ........मुझे हैरानी हो रही है कि अदिति ने तुझे ये सब कुछ बताया और तू फिर भी चुप है.........कैसा भाई है तू......
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विशाल- पापा ये सच है कि मैं अदिति की हर बात जानता हूँ......और ये सब जानते हुए भी मैं अब तक चुप था........सच तो ये है कि अदिति का कोई बाय्फ्रेंड नहीं है.........और आपको जिसकी तलाश है वो आपके सामने खड़ा है.....अदिति के पेट में पल रहा बच्चा मेरा है.........मैने अदिति के साथ सेक्स संबंध बनाया था........विशाल की ये बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी पापा का एक करारा थप्पड़ उसके गालों पर पड़ता है और उसके गालों पर पापा के पाँचों उंगलियाँ छप जाती है...........

मम्मी तो ये सब सुनकर वही सामने फर्श पर धम्म से बैठ गयी.......शायद उन्हें बहुत बड़ा सदमा लगा था.....पापा के भी होश उड़ गये थे.........उनका गुस्सा अब अपने चरम पर था..........वो फ़ौरन तेज़ी से दूसरे कमरे में गये और कुछ देर बाद जब वो लौटे तो उनके हाथ में एक गन थी........मेरा तो डर से जिस्म तर तर काँप रहा था.......वही मम्मी बेसूध रोए जा रही थी.........

पापा फ़ौरन अपनी गन विशाल के सीने की तरफ तान दिए और धीरे धीरे उनकी एक उंगली ट्रिग्गर के तरफ बढ़ने लगी..........आज ऐसे हालत बन गये थे कि एक बाप अपने बेटे के सीने पर बंदूक ताने खड़ा था.......शायद आज पापा का गुस्सा इस कदर फुट पड़ा था कि आज उनके सामने रिश्तों की कोई अहमियत नहीं थी.........जिन हाथों से उन्होने हम दोनो को पाला पोशा था आज वही हाथ हमारे खून के प्यासे हो गये थे.........

मुझसे अब नहीं देखा गया और मैं फ़ौरन विशाल के सामने जाकर खड़ी हो गयी.....पापा के हाथ अब तक ट्रिग्गर पर थे मेरे सामने आते ही वो अपनी उंगली ट्रिग्गर से तुरंत हटा दिए........

मोहन- मैं कहता हूँ अदिति हट जा सामने से........मैं भूल चुका हूँ कि सामने खड़ा शख्स अब मेरा कोई लगता है.........कहीं ऐसा ना हो कि ये गोली तेरा सीना चीरते हुए पार हो जाए......हट जा मेरे सामने से.........

अदिति- पापा मैं मानती हूँ कि जो गुनाह हम से हुआ है वो माफी के काबिल नहीं है.....मगर इसमें विशाल का कोई दोष नहीं.......इन सब की ज़िम्मेदार मैं हूँ.......मैं ही विशाल के पीछे गयी थी.......अगर मारना ही है तो मेरी जान ले लो मगर विशाल को कुछ मत करो...........मैं विशाल की ज़िंदगी की आपसे भीख माँगी हूँ......

मोहन- तब तो मुझे तुम दोनो को मारने में बिल्कुल अफ़सोस नहीं होगा.........और मोहन फिर से ट्रिग्गर की तरफ अपनी उंगली धीरे से बढ़ाता है......मैं नहीं जानती थी कि उस वक़्त क्या सही है और क्या ग़लत है मगर सच तो ये था कि मुझे उस वक़्त अपनी मौत से भी डर नहीं लग रहा था.....चन्द फासलों की देरी थी कि उस घर में दो लाशे बिछ जानी थी.....एक मेरी और दूसरी विशाल की.......मगर ऐन मौके पर मम्मी ने आकर पापा का हाथ थाम लिया........

स्वेता- रुक जाइए.......क्यों आप अपने हाथ इनके खून से गंदे कर रहें है ......अगर इसने किसी और के साथ अपना मूह काला करवाया होता तो बात समझ में आती....मगर इसने तो रिश्तों की गरिमा ही गिरा दी.......अपनी भाई के साथ इसने वो सब किया......छी........शरम आती है मुझे तुम जैसे औलादों पर....काश इससे अच्छा होता कि तुम दोनो पैदा होने से पहले मर गये होते........कम से कम आज ये दिन तो नहीं देखना पड़ता.........

अब मुझे समझ में आया कि उस दिन तू विशाल के साथ कहाँ गयी थी......क्यों तू इसके इतने करीब रहती........क्यों अब तुम दोनो के बीच झगड़ा नहीं होता था.......
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जा अदिति जिस तरह से तुमने हमारा दिल को दुखाया है उसी तरह तू भी कभी खुस नहीं रहेगी........तेरी ज़िंदगी मौत से बदतर बन जाएगी......यू समझ लेना कि आज के बाद तेरे मा बाप हमेशा के लिए मर चुके है........अब तेरा आज के बाद हम से कोई रिस्ता नहीं.........अब तुम दोनो अपनी ये मनहूस शकल कभी आज के बाद हमे मत दिखना.......चले जाओ हमारी नज़रो से दूर..........मर चुके हो तुम दोनो हमारे लिए......

कमरे में चारों तरफ खामोशी छाई रही......उधेर मम्मी बेसूध रोए जा रही थी तो इधेर मेरे आँखों से भी आँसू नहीं रुक रहे थे........आख़िर कार विशाल ने आगे बढ़कर मेरा हाथ थाम लिया और मुझे चलने को कहा........मेरे पास अब कोई लबज़ नहीं थे कि मैं मम्मी पापा से कुछ कह सकूँ......मैने फ़ौरन अपना कुछ समान रखा और साथ में वो डायरी भी रख ली.......कुछ देर बाद हम दोनो एक बॅग लेकर उस घर की चौखट हमेशा हमेशा लाघ कर उससे दूर निकल गये.........

हमारे बाहर आते ही पापा ने फ़ौरन मेन दरवाज़ा बंद कर दिया........मैं जानती थी कि जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ.......उस वक़्त मेरे दिल पर क्या बीत रही थी उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी......बस दिल कर रहा था कि जी भर कर आज रोऊँ.......मगर इसका ऐसा ही कुछ अंजाम तो होना ही था......थोड़ी देर बाद हम एक बस में बैठ कर दूसरे अंजान राहों पर हमेशा हमेशा के लिए निकल पड़े......हम दोनो ये भी नहीं जानते थे कि हमारी मंज़िल कहाँ है और हमें जाना कहाँ है.......मेरे आँखों से आँसू अभी भी नहीं थम रहे थे........

हम फिर दूसरे सहर में गये और एक किराए का मकान ले लिया....वहाँ हमने मकान मलिक को ये बताया कि हम पति पत्नी है...........सहर में आसानी से रूम मिल जाता है कपल को........एक छोटा सा कमरा था और उससे अटेच एक किचन था.........आज हमारी इस तपिश ने हमे कौन से मोड़ पर लाकर खड़ा किया था........विशाल अब तक खामोश था......मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था.......मगर जीना तो पड़ता है चाहे जो हो .........

वक़्त गुज़रता गया और विशाल मेरे बारे में सोच सोच कर परेशान हो जाता..........मेरे अंदर भी परिवर्तन आ चुका था......उस दिन के बाद से मैं हँसना लगभग भूल चुकी थी......विशाल ने फिर मेरे सामने एक प्रपोज़ल रखा जिससे में कुछ बोल ना सकी.......

विशाल- अदिति.....कब तक यू ही खामोश रहोगी......हम दोनो जानते है कि हम भाई बेहन है.....मगर इस दुनिया वालों को नहीं पता की हमारा रिस्ता क्या है........मैं अब इस रिश्ते को नया नाम देना चाहता हूँ......मैं तुम्हें अपनी बीवी बनाना चाहता हूँ..........मैं तुम्हारे साथ शादी करना चाहता हूँ...........शादी करोगी अदिति क्या तुम मुझसे.......

मैं विशाल के चेहरे को बड़े गौर से देखने लगी......अजीब तो मुझे भी लग रहा था मगर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं विशाल की बातों का क्या जवाब दूं......शायद विशाल ने मेरी इस खामोशी को हां समझ लिया था और उसने फिर वही पास के मंदिर में एक पुजारी से कहकर हमारी शादी के कुछ ज़रूरी समान इंतेज़ाम करवाने लगा..........मैं अंदर ही अंदर पूरी तरह से टूट चुकी थी.......और मैं नहीं चाहती थी कि अब विशाल को मुझसे किसी बात की तकलीफ़ हो.......

कुछ देर बाद मैं एक शादी की लाल जोड़ा पहन कर मंदिर में गयी और वहाँ हम ने शादी कर ली........मेरे दिल में उस वक़्त कैसी फीलिंग हो रही थी ये मैं ही जानती थी.......कहाँ हम भाई बेहन और अब पति पत्नी......मुझे तो एक पल ऐसा लगा कि कहीं जाकर मैं डूब मरूं.......मगर इन हालातों में मैं विशाल का दामन नहीं छोड़ना चाहती थी...........
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शाम हुई और शाम से रात हुई......विशाल ने हमारी सुहाग रात की पूरी तैयारी कर रखी थी.......मैं बस उसकी खुशी के लिए चुप चाप उसका साथ दे रही थी.......रात के करीब 8 बजे विशाल मेरे कमरे में आया.....पूरा कमरा फूलों से सज़ा हुआ था.......मेरा दिल फिर से ज़ोरों से धड़क रहा था.....विशाल मेरे करीब आया तो उसके हाथ में खाना था.....

विशाल- खाना खा लो अदिति.......तुम्हें भूक लगी होगी.........

मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े ग्वार से देखने लगी......मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि मैं विशाल से कैसे बर्ताव करूँ........

मैं चुप चाप खामोश रही तो विशाल ने अपनी बात आगे कही- मैं जानता हूँ अदिति की तुम मम्मी पापा की बातों को लेकर दुखी हो.......हां ग़लती हम से हुई है और्र मुझ पूरा यकीन है कि देर सबेर उनका गुस्सा हमारे प्रति कम हो जाएगा......सब ठीक हो जाएगा एक दिन अदिति.......

अदिति- कुछ ठीक नहीं होगा विशाल.......इस वक़्त मुझे तुम्हारे प्यार की ज़रूरत है...मुझे तुम्हारे सहारे की ज़रूरत है......मैं फिर विशाल के सीने से लिपटती चली गयी......आज भी मेरी आँखों में आँसू आ गये थे.......

विशाल- मैं तुम्हें वो प्यार दूँगा अदिति.....इतना प्यार कि आज के बाद तुम सब कुछ बीती बातों को भूल जाओगी........

मैं फिर इतने दिनों बाद आज पहली बार मुस्कुराइ थी.....मैं फिर विशाल से दूर हुई तो मुझे सवाल भरी नज़रो से देखने लगा.......

विशाल- अब कहाँ जा रही हो अदिति......

अदिति- आज हमारी सुहाग रात है ना विशाल......कुछ तैयारी करनी है मुझे.........और आज मैं तुम्हें कुछ नायाब तोहफा देना चाहती हूँ.......विशाल मेरे चेहरे को बड़े गौर से देखने लगा......उसे मेरी बातें ज़्यादा समझ में नहीं आई थी.......फिर मैं फ़ौरन बाथरूम में चली गयी.........मैं अच्छे से जानती थी कि आज मुझे विशाल को क्या देना है........अब तक विशाल मेरे जिस्म को कितने बार भोग चुका था मगर आज मैं उसे वो सुख देना चाहती थी जिसको मैं ख़ास तौर पर उसके लिए अब तक बचा कर रखी थी........वो तोहफा उसे जल्द पता चलने वाला था........

अब वो समय आ चुका था देखना ये था कि आने वाले वक़्त में ज़िंदगी हमे कौन से मोड़ पर ले जाती है.

मैं बाथरूम में गयी और जाकर नहाने लगी........मैने अपनी चूत के बाल अच्छे से सॉफ किए.......फिर मैं शादी का वही लाल जोड़ा पहन कर बाहर आई.......अभी भी मेरे जिस्म से सोप और शॅमपू की भीनी भीनी खुसबू आ रही थी.......मैं फिर जाकर अपने कमरे में विशाल के लिए सजने सँवरने लगी........माथे पर उसकी रंग की मॅचिंग बिंदिया और जो कुछ था मेरे पास ज्वेल्लेरी वो सब मैने अपने जिस्म पर लगा लिए.........

करीब एक घंटे बाद मैं पूरी तैयार होकर बाहर आई और चुप चाप सुहाग सेज पर जाकर बैठ गयी और विशाल के आने का इंतेज़ार करने लगी........पता नही क्यों आज मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था.......आज मेरी खुबुसरती में और भी इज़ाफ़ा हो गया था.......वजह थी मेरी माँग में विशाल के नाम का सिंदूर था........

थोड़े देर बाद विशाल घर आया .......उसके हाथ में कुछ खाने पीने का समान था.......उसके चेहरे पर खुशी सॉफ झलक रही थी जो मेरे दिल को पल पल सुकून पहुँचा रही थी.....विशाल मेरे करीब आकर मेरे बाजू में आकर बैठ गया......इस वक़्त मैं घूँघट में थी........उसने मेरा घूँघट धीरे से हटाया और मेरे चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगा.......उसकी नज़रें एक पल के लिए भी मेरे चेहरे से नहीं हट रही थी.........

और ऐसा होता भी क्यों ना......मैं आज पूरी क़यामत लग रही थी.......विशाल के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी........उसने मेरे होंटो पर अपने होंठ रख दिए.......मैने भी एक पल के देर किए बिना उसके होंटो को धीरे धीरे अपने मूह में लेकर चूसने लगी......मैं अब बहुत गरम हो चुकी थी.......मेरी चूत से पानी लगातार बहता जा रहा था........

विशाल- क्या बात है अदिति.......इससे पहले मैने तुम्हारा ये रूप कभी नहीं देखा.......सच कहूँ तो तुम आज बिल्कुल परी सी लग रही हो.........तुम बहुत खूबसूरत हो अदिति.......काश तुम मेरी बेहन ना होती तो मुझे इस बात का कभी पछतावा नहीं होता.......
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मैने फ़ौरन विशाल के लबों पर अपने हाथ रख दिए- जो बीत गया उसे भूल जाओ विशाल......अब बातें भी करोगे या कुछ आगे भी करोगे........

विशाल- क्या करूँ अदिति.......तुम ही बताओ मुझे.......

अदिति- सब जानते हो फिर भी अंजान बने रहते हो.......वही जो मेरी इतने दिनों से अब तक करते आए हो.......मेरी चुदाई......विशाल आज मुझे इतना रगडो की मेरे अंदर कि ये तपीश हमेशा हमेशा के लिए शांत हो जाए........मुझे प्यार करो विशाल.......इतना कहकर मैं विशाल के सीने से लग गयी.......फिर विशाल मेरी साड़ी को धीरे धीरे उतारने लगा.........

विशाल- वैसे अदिति एक बात पूच्छू.......आज हमारी सुहागरात है तो तुम मुझे ऐसा कौन सा तोहफा देना चाहती हो.......

मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी.......मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं विशाल से ये बात कैसे कहूँ......फिर मैने विशाल का एक हाथ धीरे से पकड़ा और उसे सरकाते हुए अपनी साड़ी के अंदर ले गयी......मेरी चूत की तरफ .......और फिर कुछ देर बाद जब मैं विशाल के हाथ को अपनी गान्ड के छेद पर रखा तब वो मुझे सवाल भरी नज़रो से देखने लगा........

अदिति- यहाँ ........मैं तुम्हें आज इसका सुख देना चाहती हूँ.......

विशाल जब मेरा इशारा समझ गया तो उसका चेहरे खुशी से खिल उठा.......

विसल- तुम नहीं जानती अदिति कि ये अरमान ना जाने कब से मेरे दिल में था कि मैं अपना लंड तुम्हारी गान्ड में डालूं.......मगर डरता था कि तुम कहीं नाराज़ हो जाओगी......या तुम्हें बुरा लगेगा........मगर मैं आज बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुस हूँ.....देखो मेरा लंड ये सोचकर अभी से खड़ा हो गया.......

बस थोड़ी तकलीफ़ होगी तुम्हें........मेरे लिए तुम इतना बर्दास्त कर लेना......फिर वहाँ भी ऐसे ही तुम्हें मज़ा मिलेगा जैसे चूत में मिलता है........

मैं विशाल के लबों को धीरे से चूम ली- तुम्हारे खातिर मुझे सब मंज़ूर है विशाल.......मैं तुम्हारी हूँ तुम्हारा जैसा जी में आए वैसा करो......मैं उफ्फ तक नहीं करूँगी.......

विशाल फिर अपने दोनो हाथों से मेरे सीने पर ले गया और फिर से मेरी दोनो निपल्स को अपनी उंगलिओ के बीच फँसाकर उन्हें ज़ोरों से मसल्ने लगा.......आज वो बहुत ज़्यादा बेचैन दिखाई दे रहा था.........उसने फ़ौरन मेरी साड़ी अलग की और अब मैं पेटिकोट और ब्लाउस में उसके सामने थी.........धीरे धीरे उसने मेरी ब्लाउस भी उतार दी और और पेटिकोट भी........एक बार फिर से मैं ब्रा और पैंटी में विशाल के सामने थी........

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