उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )
तभी विशाल ने फ़ौरन अपनी वही उंगली मेरी गान्ड से बाहर निकली और इस बार अपनी दो उंगली एक साथ मेरी गान्ड में धीरे धीरे पुश करने लगा......एक बार फिर से दर्द की तेज़ लहर मेरे जिस्म में दौड़ गयी........उधेर विशाल अपने हाथों से बार बार मेरी निपल्स को भी मसल रहा था.......और इधेर दोनो उंगलियों को तेज़ी से मेरी गान्ड के अंदर पेलते जा रहा था........
कुछ दर्द के बाद उसकी अब दोनो उंगलियाँ मेरी गान्ड की गहराई में पूरी उतर चुकी थी........मुझे मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था.......मगर दिल में बार बार यही डर लग रहा था कि जब विशाल का लंड मेरे उस छोटे से छेद में जाएगा तो मेरा क्या हाल होगा......मगर अब मुझे विशाल का लंड अपनी गान्ड में लेना था तो बस लेना था........चाहे जो हो.......
कुछ देर बाद विशाल मुझसे दूर हुआ और सामने रखी एक तेल की शीशी अपने हाथ में लेकर मेरे सामने आकर बैठ गया........अब तक विशाल का लंड फिर से पूरे उफान पर था.........वो शीशी में रखी तेल धीरे धीरे अपने लंड पर गिराने लगा और कुछ ही पलों में उसका लंड तेल से पूरी तरह भीग गया......फिर उसने मुझे घोड़ी पोज़िशन में आने को कहा........
मैं जैसे ही उस पोज़िशन में आई मेरे गान्ड की सोराख विशाल के सामने पूरा खुल गया.......गुलाबी छेद और उपर से विशाल के थूक के पानी से मेरी गान्ड चमक रही थी.......विशाल फिर कुछ तेल अपने हाथों में लेकर मेरी गान्ड के छेद पर उसे अच्छे से गिराने लगा.....कभी कभी तो वो अपनी एक उंगली पूरी तेल में डाल कर मेरी गान्ड के छेद के अंदर डाल देता जिसे में ज़ोरों से उछल पड़ती........
करीब 10 मिनट तक मेरी गान्ड से खेलने के बाद विशाल मेरे उपर आया.......अब मेरी गान्ड काफ़ी लूज हो गयी थी.......और साथ में काफ़ी चिकनी भी........जैसे ही उसने अपना लंड मेरे उस छोटे से सूराख पर रखा मेरी तो मानो डर से हालत खराब होने लगी........उस वक़्त मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था.....मैं उस होने वेल दर्द का सामना करने को अब तैयार थी........
विशाल फिर अपने लंड पर धीरे धीरे दबाव डालने लगा......इस वक़्त उसके दोनो हाथ मेरी चुचियो पर थे........वो मेरी निपल्स को हौले हौले मसल रहा था वही दूसरी तरफ अपना लंड मेरी गान्ड के अंदर उतारता जा रहा था......जैसे ही उसका लंड का सुपाडा मेरी गान्ड के अंदर गया मेरी तो चीख निकल पड़ी........
अदिति-आआआआआआआ.................हह...........ईईईईईईईईईईईईईई............म्म्म्म.मम.उूुुुुउउ..एम्म्म..नमम्ममम.....यययययययययययी
विशाल बाहर निकालो इसे मैं मर जाऊंगी......मुझे बर्दास्त नही हो रहा प्लीज़.......मेरी पूरी तरह फुर्र जाएगी.......प्प....ल्ल्ल्ल......ईयीई....एयेए...सस्स...ए.ए.ए.ए.....
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )
विशाल मेरी तरफ ध्यान ना देते हुए कुछ देर तक वो उसी पोज़ीशन में मेरी गान्ड में अपना लंड पेले रहा.......फिर उसने एक झटके में अपना लंड बाहर निकाल लिया........एक पल तो मुझे ऐसा लगा कि मुझे काफ़ी राहत महसूस हुई मगर अगले ही पल मैं फिर से ज़ोरों से चिल्ला पड़ी.......मेरी आँखों से आँसू बाहर फुट पड़े.......
विशाल ने इस बार अपना लंड जितना तेज़ी से बाहर निकाला था उतनी ही तेज़ी से मेरी गान्ड में पूरा उतारता चला गया.......अब तक उसका लंड मेरी गान्ड में 4 इंच तक समा चुका था........मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने मेरी गान्ड में छुरा डाल दिया हो.......इतना दर्द हो रहा था मुझे उस वक़्त कि मुझ पर चुदाई का नशा पूरा तरह से उतर चुका था.....मैं वही बिस्तेर पर पड़ी सिसक रही थी और विशाल मेरे चुचियों को लगातार मसले जा रहा था.......
कुछ देर तक विशाल ऐसे ही रुका रहा फिर थोड़े देर बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और इस बार उतनी ही तेज़ी से अपना पूरा लंड मेरी गान्ड की गहराई में उतारता चला गया.......मैं इस बार फिर से ज़ोरों से चीख पड़ी......मगर मैं चीखती इसी पहले विशाल अपने होंठ मेरे होंटो पर रख चुका था........मैं अपने नखुनो से लगतार बिस्तेर को मसल रही थी......और अपने दोनो हाथों को भी बिस्तेर पर पटक रही थी.......मेरी बेचैनी मेरी हर्कतो से सॉफ ज़ाहिर हो रही थी.......मैं विशाल को अपने उपर से हटाने की नाकाम कोशिश कर रही थी........उस वक़्त मुझे दर्द के सिवा और कुछ एहसास नहीं हो रहा था.........
विशाल ने इस बार कोई हरकत नहीं की और उसी पोज़िशन में मेरे उपर कुछ देर तक लेटा रहा......
अदिति- आआआआ...........हह........मम्मी......बाहर निकालो ना विशाल इसे.......मैं मर जाऊंगी.......क्या तुम आज मेरी जान लोगे........ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने छुरा डाल दिया हो मेरे अंदर......प्लीज़ बाहर निकालो ना विशाल........
विशाल- बस कुछ देर और अदिति......फिर तुम्हारी ये तकलीफ़ दूर हो जाएगी........करीब 5 मिनट बाद विशाल उसी पोज़ीशन में मेरे उपर लेटा रहा.....अब तक मेरी गान्ड पूरी तरह से खुल चुकी थी......अभी भी हल्का हल्का मीठा सा दर्द हो रहा था........विशाल फिर इस बार नहीं रुका और अपना लंड पूरा बाहर निकालकर तेज़ी से मेरी गान्ड की चुदाई करने लगा.......मेरे मूह से चीखें फिर से तेज़ हो चुकी थी मगर अब मैं विशाल का विरोध नहीं कर रही थी.......कमरे में फंच फंच की आवाज़ें लगातार गूँज रही थी........
अब मेरे मूह से चीखें निकलने के बजाए अब सिसकारी निकल रही थी.....पहली दफ़ा मैं अपनी गान्ड मरवा रही थी......मेरे लिए ये एहसास बिल्कुल नया था.......मेरी चूत लगातार अब पानी छोड़ रही थी.........करीब 10 मिनट तक विशाल मेरी गान्ड में ऐसे ही लंड पेलता रहा और आख़िरकार वो भी अपने चरम पर पहुँच गया.
उस वक़्त विशाल ने मुझे इतने कसकर जकड़ा हुआ था की मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी हड्डियाँ टूट जाएगी........जब तक उसका सारा कम मेरी गान्ड के अंदर नहीं निकल गया उसने मुझपर ऐसे ही दबाव बनाए रखा......मेरी भी चूत अब जवाब दे चुकी थी और मैं भी वही हान्फते हुए बिस्तेर पर किसी लाश की तरह बिल्कुल ठंडी पड़ गयी........उधेर विशाल का कम मेरी गान्ड से धीरे धीरे बाहर की ओर बह रहा था वही मेरी चूत से बहता पानी अब बिस्तेर को धीरे धीरे भिगो रहा था.......
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )
विशाल फ़ौरन उठकर बाथरूम में चला गया और जैसे ही मैं अपना हाथ अपनी गान्ड के छेद पर ले गयी मेरे होश मानो उड़ गये थे......मेरी हाथों में कुछ खून लग गया था और कुछ विशाल का कम भी......जो अब धीरे धीरे मेरी गान्ड से बाहर की ओर बह रहा था.....अब मेरी गान्ड के छेद बहुत हद तक खुल गयी थी.......विशाल जब मेरे पास आया तो मैं बाथरूम गयी......मुझे बिल्कुल चला नहीं जा रहा था......विशाल मेरी उस हालत को देखकर मुझे सहारा देते हुए बाथरूम तक ले गया और उसने मेरी गान्ड और चूत अच्छे से सॉफ की........
जैसे तैसे मैं बिस्तेर पर आई तो उसने एक पेन किल्लर मुझे दे दी.....
विशाल- इसे खा लो अदिति......इसे खाने से तुम्हें आराम मिल जाएगा.......
अदिति- ये क्या विशाल....पहले दर्द भी तुम ही देते हो और अब दवा भी तुम ही कर रहें हो............मेरी बातों को सुनकर विशाल मेरे होंटो को बड़े प्यार से चूसने लगा मैं भी कुछ ना बोल सकी और उसके आगोश में ऐसे ही समाई रही.......रात से सुबेह हुई .......उस रात विशाल ने एक बार फिर से मेरी गान्ड मारी.....इस बार मुझे बहुत मज़ा आया........जो भी था ये हमारी सुहाग रात मेरे लिए एक यादगार बन चुकी थी.......
दुनिया में कोई ऐसा इंसान नहीं होगा जो अपनी बेहन के साथ सुहागरात मनाया होगा मगर एक हम थे जो पहले भाई बेहन थे मगर अब पति पत्नी......कितना अजीब लगता है ये सब सुनने में.......
सुबेह मैं आज फिर से उन बीती यादों को अपनी डायरी में लिखती चली गयी....जो मेरे साथ अब तक हुआ था......डायरी ख़तम कर मैं विशाल के लिए चाइ बनाने लगी......एक बार फिर से मेरी आँखें नम हो गयी थी मम्मी पापा को याद करके........
विशाल ने उठकर मुझे अपने सीने से लगा लिया और कुछ काम की तलाश में वो घर से बाहर निकल गया......आख़िर जीने के लिए कुछ काम भी तो ज़रूरी था.......इस लिए मैने उसके लिए कुछ नाश्ता वगेरह बनाया और विशाल को बाहर तक छोड़ आई......विशाल के जाने के बाद मैं अपने काम में व्यस्त हो गयी......
करीब एक घंटे बाद मेरे घर की डोर बेल बजी.......मैं फ़ौरन जाकर दरवाज़ा खोला तो मेरे सामने जो सख्स थी उसे देखकर मुझे एक बहुत ज़ोरों का झटका लगा.......मेरे सामने पूजा खड़ी थी और वो मुझे खा जाने वाली नज़रो से देख रही थी......
अदिति- पूजा....तुम......यहाँ पर.......कैसे........किसने बताया तुम्हें यहाँ का पता......
पूजा आगे कुछ ना कह सकी और मेरे पैरों में तुरंत गिर पड़ी.........मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या गया है....क्यों वो मुझसे ऐसे बिहेव कर रही है........जब मैने पूजा को उठाया तो उसकी आँखों में आँसू थे.......मैं उससे कुछ ना पूछ सकी और उसे अंदर आने को कहा........
पूजा फिर मेरे पीछे पीछे मेरे कमरे के अंदर आई और मेरे उस किराए के मकान को बड़े गौर से देखने लगी.......वो भी यही सोच रही होगी कि कहाँ मैं इतने बड़े घर की रहने वाली और अब इस छोटे से घर में अपनी ज़िंदगी गुज़र बसर कर रही हूँ.........
पूजा- ये सब क्या है अदिति........मैने तेरा कॉलेज में कितना वेट किया मगर तेरा कुछ पता भी नहीं चला.....तेरा फोन भी ट्राइ किया तो स्विच ऑफ बता रहा था......घर पर गयी तो तेरे बारे में जब जाना तो मेरे होश उड़ गये....आंटी ने तो सॉफ कह दिया कि मैं किसी अदिति और विशाल को नहीं जानती......मेरे बहुत पूछने पर उन्होने ये बात मुझसे कही और मुझसे वादा किया कि ये बात कभी किसी को ना बताए........
फिर मैं तेरी और विशाल की तस्वीर दिखाते हुए बस स्टेशन तक गयी.......वहाँ पर दो तीन दुकान वाले थे जिसने तुझे बस में बैठे देखा था.....सो मैं उस बस में बैठकर यहाँ आ गयी......ये मेरी किस्मेत थी कि तेरे घर के सामने एक सख्स है उसने मुझे तेरे बारे में बताया कि एक नयी फॅमिली आई है यहाँ रहने को ......फिर मैं सीधा यहाँ पहुँच गयी तेरे पास.........
अदिति- तू बैठ मैं तेरे लिए कुछ नाश्ता लाती हूँ.....मैं फिर उठकर जैसे ही जाने लगी पूजा ने मेरे हाथ फ़ौरन थाम लिए.......
पूजा- नहीं उसकी कोई ज़रूरत नहीं....तू बैठ मेरे पास.....तुझसे एक ज़रूरी बात कहनी थी......
मैं पूजा के चेहरे के तरफ सवाल भरी नज़रो से देखने लगी- बात क्या है पूजा......
पूजा- मुझे नहीं पता था कि मेरे इस मज़ाक को तू सच मान लेगी और अपने ही भाई के साथ ये सब.......मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था कि तू विशाल को अब चाहने लगी है........ये सब मेरी वजह से हुआ है......ना ही मैं तेरे साथ ऐसा मज़ाक करती और ना तुझे ऐसा दिन आज देखना पड़ता.......इन सब की कुसूर वार मैं हूँ अदिति......मुझे माफ़ कर दे....और पूजा फिर से मेरे सामने सिसक पड़ी.
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )
अदिति- अब रोना बंद कर पूजा........जो हुआ मुझे उसका कोई पछतावा नहीं है........हां मगर इससे मेरे मम्मी पापा का दिल ज़रूर टूट गया........मैं अच्छे से जानती थी कि जब उन्हें ये बात पता चलेगी तो तूफान तो उठेगा ही.....खैर तू ऐसा क्यों सोचती है........इसमें तेरी कोई खता नहीं.......
पूजा- अगर तू कहे तो मैं अंकल और आंटी से इस बारे में.......
अदिति- नहीं पूजा.......अब बहुत देर हो चुकी है.......अब मुझमें ज़रा भी हिम्मत नहीं बची है कि मैं उनका सामना कर सकूँ.......तू बैठ मैं तुझे कुछ देना चाहती हूँ.....फिर मैं बेडरूम में गयी और अपनी पर्सनल डायरी लेकर मैं पूजा के पास आई और उसे उसके हाथों में थमा दिया......पूजा मेरे चेहरे के तरफ बड़े गौर से देखने लगी......
पूजा- ये क्या है अदिति......और ये डायरी किसकी है.....
अदिति- मेरी........इसमें मैने अपना बिताया हुआ अब तक का वो हसीन लम्हा लिखा है जो मैने इन तीन महीने में विशाल के संग गुज़ारे थे.......मैं इन तीन महीनों में अपनी पूरी ज़िंदगी जी चुकी हूँ......इस डायरी में मैने वो सब कुछ लिखा है......बस तुझसे एक रिक्वेस्ट है पूजा कि तू इस डायरी को पढ़कर इसे जला देना......मैं नहीं चाहती कि इसे तेरे सिवा कोई और पड़े.........
पूजा कुछ देर तक यू ही मेरे तरफ खामोशी से देखती रही - सच में अदिति ये प्यार बहुत अजीब चीज़ है......किसी से भी ये कुछ भी करवा सकता है......खैर मैं अब चलती हूँ......फिर कभी आऊँगी तुझसे मिलने.......और हां अपना ख्याल रखना.....फिर पूजा मेरा मोबाइल नंबर ले ली और फिर अपने घर की ओर चल पड़ी.......
मैने उससे अपने मम्मी पापा का ख्याल रखने को कहा तो जवाब में वो मुझे देखकर मुस्कुरा पड़ी.......मैं बहुत देर तक उसे ऐसे जाता हुआ देखती रही.......शायद अब ये मेरी उससे आखरी मुलाकात थी......इसके बाद मैं उससे कभी नहीं मिली और उसने मेरी डायरी का क्या किया ये भी मुझे नहीं पता......पर यकीन था कि वो उसे पढ़कर ज़रूर जला देगी.......
कितना फ़र्क था कल और आज में.....वक़्त ऐसे दिन भी दिखता है ......आज मैं मज़बूर थी और आज हमारी दोस्ती में काफ़ी फ़र्क भी आ गया था......जहाँ पूजा मुझसे काफ़ी मज़ाक किया करती थी वही आज पहली बार मैं उसे इतना सीरीयस देखा था.......
शाम को विशाल जब घर आया तो उसके हाथ में छाले पड़ गये थे......वैसे तो वो पड़ा लिखा था मगर इतनी जल्दी नौकरी कहाँ मिलती है.....मैने जब उसके हाथ देखे तो एक बार फिर से मेरे आँखों में आँसू छलक पड़े......विशाल बड़े प्यार से मेरे गालों पर अपने हाथ फेरता रहा.....फिर मैने उसके हाथों पर दवाई लगाए........आज इस प्यार ने हूमें कौन से मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था......
कुछ देर बाद मैने पूजा वाली बात उसे बता दी........मैं तो ये समझी थी की विशाल ये सब सुनकर बहुत खुस होगा मगर वो अब और परेशान हो उठा था.......
अदिति- क्या हुआ विशाल........तुम इतने परेशान क्यों हो......बात क्या है....
विशाल- ये ठीक नहीं हुआ अदिति ......आज पूजा हुमारे घर तक आ गयी.....कल को तुम्हारी कोई और सहेली घर पर आ जाएगी......फिर मेरे दोस्त भी यहाँ आ सकते है......धीरे धीरे ये बात सबको पता चल जाएगी......फिर तुम अच्छे से जानती हो की हमारा इस समझ में रहना कितना मुश्किल हो जाएगा......कोई हमे रहने को घर नहीं देगा और लोग हमारे बारे में तरह तरह की बातें करेंगे........मैं नहीं चाहता कि कोई तुमपर उंगली भी उठाए......
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: उस प्यार की तलाश में ( incest )
अदिति- बात तो तुम्हारी सही है विशाल.....तो तुम क्या कहना चाहते हो.......तुम मुझे जहाँ ले चलोगे , जिस हाल में रखोगे मैं रह लूँगी विशाल.......मगर अब जुदाई मुझसे बर्दास्त नहीं होगी.....
विशाल- हमे इसी वक़्त कहीं दूसरे सहर जाना होगा.......यहाँ से बहुत दूर......इतनी दूर की कहीं कोई हमारे बारे में नहीं जानता हो.......दूर दूर तक जिसका हमसे कोई रिश्ता नाता ना हो......हमे कोई पहचानने वाला ना हो.......
अदिति- ऐसा कौन सी जगह है विशाल........तुम मुझे जहाँ ले चलोगे मैं तुम्हारे संग चलूंगी.......
विशाल- शिमला......तुम्हारे सपनों का सहर......वहाँ हमे कोई नहीं जानता...हम उसी सहर में अपना छोटा सा आशियाना बनाएँगे.........वहाँ बस हम और तुम....और हम दोनो के सिवा और कोई तीसरा नहीं होगा.......
अदिति- ठीक है विशाल.......जैसा तुम कहो......फिर मैं अपना समान पॅक करने लगी और अपने मकान मालिक का किराया पूरा चुकाकर हम दोनो दूसरे सहर की तरफ हमेशा हमेशा के लिए उस अंजान रास्ते पर निकल पड़े.........
वहाँ से शिमला की दूरी लगभग 2000 किमी के आस पास थी......हमे वहाँ पहुँचने के लिए दो दिन का वक़्त लगने वाला था.......हम ट्रेन में जाकर बैठ गये और ट्रेन उस सहर को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए अपने मंज़िल की तरफ निकल पड़ी.....एक बार फिर से मेरी आँखों में आँसू आ गये थे......
मुझे बार बार मम्मी पापा की याद सता रही थी.........बार बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कुछ हमेशा के लिए यहाँ छोड़ कर जा रही हूँ......यादें थी मेरे पास जो अब तक जीने के लिए काफ़ी थी.......विशाल मेरी आँखों से आँसू पोछने लगा और कुछ देर बाद मैं उस गम को भूल कर आने वाले उस हसीन पल को याद करने लगी.......
दूसरे दिन हम अब शिमला से 50 किमी की दूरी पर थे.....वहाँ से बस से ही जाया जा सकता था.......पूरा रास्ता पहाड़ों और जंगलो से घिरा हुआ था......विशाल ने शिमला जाने वाली बस का टिकेट लिया और हम दोनो जाकर उसमे बैठ गये.......बस लगभग पूरी भरी पड़ी थी.......
विशाल ने अपने जेब से एक लॉकेट निकाला और उसे मेरे गले में मुझे पहना दिया.......वो लॉकेट बीच से खुलता था......जब मैने उसे खोला तो उसमे एक तरफ मेरी तस्वीर थी तो दूसरी तरफ विशाल की तस्वीर थी......मैं उस लॉकेट को चूम कर उसे अपने गले में पहनकर उसे अपने सीने में कहीं छुपा लिया........
थोड़ी देर बाद बस चल दी.........पहाड़ों और जंगलो से बस गुज़रती हुई धीरे धीरे अपनी मंज़िल के तरफ बढ़ रही थी........मुझे तो ऐसा लगा जैसे हम किसी स्वर्ग से गुज़र रहें है........इस वक़्त मेरा एक हाथ विशाल के हाथों में था.........कुछ दूर जाने पर मेरे साथ वो हादसा हुआ जो मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था........थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी जिससे रोड पूरी तरह से स्लिपी हो गयी थी.........जिससे बस भी अनबॅलेन्स हो गयी और तेज़ी से स्लिप करते हुए साइड की रलिंग को तोड़ते हुए नीचे 1000 फीट गहरी खाई की ओर तेज़ी से नीचे गिरने लगी.........उसमे जितने सवार थे शायद अब उनकी ज़िंदगी के दिन पूरे हो चुके थे......
मुझे उस वक़्त कोई होश नहीं था......ना ही मुझे कुछ पता चला कि अचानक हमारे साथ क्या हुआ था........मगर जब होश आया तो मैं उस वक़्त एक हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी की चाँद साँसें गिन रही थी.........विशाल का कहीं कुछ पता नहीं था......वहाँ कमरे में कई सारे डॉक्टर और कम्पाउन्डर इधेर उधेर घूम रहें थे.......साथ में कुछ पोलीस वाले भी थे..........मेरे साथ तीन चार और मरीज़ भी थे शायद वो भी अपनी ज़िंदगी के आखरी पल की साँसें ले रहें थे.....
मेरे सिर पर गहरी चोट आई थी......मेरी कमर और पैर काफ़ी ज़ख़्मी थे........मेरे पेट में भी चोट आई थी............तभी एक पोलीस वाला मेरे करीब आया......उसके हाथ में एक फाइल थी और साथ में एक लॉकेट भी था......जब मेरी नज़र उस लॉकेट पर पड़ी तो मुझे वो पल याद आ गया जब विशाल ने खुद अपने हाथों से उस लॉकेट को मुझे पहनाया था.........मेरी आँखों से आँसू लगातार बह रहें थे......
विशाल- हमे इसी वक़्त कहीं दूसरे सहर जाना होगा.......यहाँ से बहुत दूर......इतनी दूर की कहीं कोई हमारे बारे में नहीं जानता हो.......दूर दूर तक जिसका हमसे कोई रिश्ता नाता ना हो......हमे कोई पहचानने वाला ना हो.......
अदिति- ऐसा कौन सी जगह है विशाल........तुम मुझे जहाँ ले चलोगे मैं तुम्हारे संग चलूंगी.......
विशाल- शिमला......तुम्हारे सपनों का सहर......वहाँ हमे कोई नहीं जानता...हम उसी सहर में अपना छोटा सा आशियाना बनाएँगे.........वहाँ बस हम और तुम....और हम दोनो के सिवा और कोई तीसरा नहीं होगा.......
अदिति- ठीक है विशाल.......जैसा तुम कहो......फिर मैं अपना समान पॅक करने लगी और अपने मकान मालिक का किराया पूरा चुकाकर हम दोनो दूसरे सहर की तरफ हमेशा हमेशा के लिए उस अंजान रास्ते पर निकल पड़े.........
वहाँ से शिमला की दूरी लगभग 2000 किमी के आस पास थी......हमे वहाँ पहुँचने के लिए दो दिन का वक़्त लगने वाला था.......हम ट्रेन में जाकर बैठ गये और ट्रेन उस सहर को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए अपने मंज़िल की तरफ निकल पड़ी.....एक बार फिर से मेरी आँखों में आँसू आ गये थे......
मुझे बार बार मम्मी पापा की याद सता रही थी.........बार बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कुछ हमेशा के लिए यहाँ छोड़ कर जा रही हूँ......यादें थी मेरे पास जो अब तक जीने के लिए काफ़ी थी.......विशाल मेरी आँखों से आँसू पोछने लगा और कुछ देर बाद मैं उस गम को भूल कर आने वाले उस हसीन पल को याद करने लगी.......
दूसरे दिन हम अब शिमला से 50 किमी की दूरी पर थे.....वहाँ से बस से ही जाया जा सकता था.......पूरा रास्ता पहाड़ों और जंगलो से घिरा हुआ था......विशाल ने शिमला जाने वाली बस का टिकेट लिया और हम दोनो जाकर उसमे बैठ गये.......बस लगभग पूरी भरी पड़ी थी.......
विशाल ने अपने जेब से एक लॉकेट निकाला और उसे मेरे गले में मुझे पहना दिया.......वो लॉकेट बीच से खुलता था......जब मैने उसे खोला तो उसमे एक तरफ मेरी तस्वीर थी तो दूसरी तरफ विशाल की तस्वीर थी......मैं उस लॉकेट को चूम कर उसे अपने गले में पहनकर उसे अपने सीने में कहीं छुपा लिया........
थोड़ी देर बाद बस चल दी.........पहाड़ों और जंगलो से बस गुज़रती हुई धीरे धीरे अपनी मंज़िल के तरफ बढ़ रही थी........मुझे तो ऐसा लगा जैसे हम किसी स्वर्ग से गुज़र रहें है........इस वक़्त मेरा एक हाथ विशाल के हाथों में था.........कुछ दूर जाने पर मेरे साथ वो हादसा हुआ जो मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था........थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी जिससे रोड पूरी तरह से स्लिपी हो गयी थी.........जिससे बस भी अनबॅलेन्स हो गयी और तेज़ी से स्लिप करते हुए साइड की रलिंग को तोड़ते हुए नीचे 1000 फीट गहरी खाई की ओर तेज़ी से नीचे गिरने लगी.........उसमे जितने सवार थे शायद अब उनकी ज़िंदगी के दिन पूरे हो चुके थे......
मुझे उस वक़्त कोई होश नहीं था......ना ही मुझे कुछ पता चला कि अचानक हमारे साथ क्या हुआ था........मगर जब होश आया तो मैं उस वक़्त एक हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी की चाँद साँसें गिन रही थी.........विशाल का कहीं कुछ पता नहीं था......वहाँ कमरे में कई सारे डॉक्टर और कम्पाउन्डर इधेर उधेर घूम रहें थे.......साथ में कुछ पोलीस वाले भी थे..........मेरे साथ तीन चार और मरीज़ भी थे शायद वो भी अपनी ज़िंदगी के आखरी पल की साँसें ले रहें थे.....
मेरे सिर पर गहरी चोट आई थी......मेरी कमर और पैर काफ़ी ज़ख़्मी थे........मेरे पेट में भी चोट आई थी............तभी एक पोलीस वाला मेरे करीब आया......उसके हाथ में एक फाइल थी और साथ में एक लॉकेट भी था......जब मेरी नज़र उस लॉकेट पर पड़ी तो मुझे वो पल याद आ गया जब विशाल ने खुद अपने हाथों से उस लॉकेट को मुझे पहनाया था.........मेरी आँखों से आँसू लगातार बह रहें थे......
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma