दिल पर जोर नहीं compleet

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jay
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Re: दिल पर जोर नहीं

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मैंने चाय की एक चुस्‍की लेते ही उनकी तारीफ की तो अरूण बोले, “तब तो मेरा उपहार पक्‍का ना?”
मैंने कहा, “क्‍या चाहिए आपको?”
“अपनी मर्जी से जो दे दो।” अरूण ने कहा।
“नहीं, तय यह हुआ था कि आपकी मर्जी का गिफ्ट मिलेगा, तो आप ही बताइये आपको क्‍या चाहिए?” मैंने दृढ़ता से कहा।
अरूण बोले, “देख लो, कहीं मैं कुछ उल्‍टा सीधा ना मांग लूं, फिर तुम फंस जाओगी।”
“कोई बात नहीं, मुझे आप पर पूरा विश्‍वास है, आप मांगो।” मैंने फिर से जवाब दिया।
“तब ठीक है, मुझे तुम्‍हारे गुलाबी होठों की… एक चुम्‍मी चाहिए।” अरूण ने बेबाक कहा।
मैंने बिना कोई जवाब दिये, नजरें नीचे कर ली। अरूण ने उसको मेरी मंजूरी समझा और मेरे नजदीक आने लगे। मेरी जुबान जो अभी तक कैंची की तरह चल रही थी… अब खामोश हो गई। मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी।
अरूण मेरे बिल्‍कुल नजदीक आ गये। मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अरूण ने चेहरा ऊपर करके अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिया। आहहहह… कितना मीठा अहसास था। उम्‍म्‍म्‍म्‍म… बहुत मजा आ रहा था। मेरी आँखें खुद-ब-खुद बन्‍द हो गई।
संजय के बाद वो पहले व्‍यक्ति थे जिन्‍होंने मेरे होठों को चूमा था… उनका अहसास संजय से बिल्‍कुल अलग था। अरूण बहुत देर तक मेरे होठों को लालीपॉप की तरह चूसते रहे। वो कभी मेरे ऊपरी होंठ को चूसते तो कभी नीचे वाले। उन्‍होंने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था।
अचानक उन्‍होंने अपनी जीभ मेरे होठों के बीच से मेरे मुँह में सरका दी। उनकी जीभ मेरी जीभ से जो ठकराई तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी जन्‍नत में आ गई हूँ। उनकी जीभ मेरी जीभ से मुँह के अन्‍दर ही अठखेलियाँ करने लगी। अब मैं मदहोश हो रही थी। मैं भी उनका साथ देने लगी। उनका यह एक चुम्‍बन ही 10 मिनट से ज्‍यादा लम्‍बा चला।


जब उन्‍होंने मेरे होठों को छोड़ा तो भी मीठा मीठा रस मेरे होठों को चुम्‍बन का अहसास दिला रहा था। मेरी आँखें अभी भी बन्‍द ही थी। अरूण बोले, “आँखें खोलो कुसुम मुझे जाना है।”
यह बोलकर वो चाय पीने लगे। मैं उस इंसान को नहीं समझ पा रही थी। क्‍या अरूण सच में इतना शरीफ थे। परन्‍तु उनके एक चुम्‍बन के अहसास ने मुझे नारी के अन्‍दर की वासना का अहसास दिला दिया था, मैं तुरन्‍त बोली, “यह तो आपका चुम्‍बन था, अब मेरा भी तो देकर जाओ।”
वो चाय खत्‍म करके मेरे पास आये और बोले, “ले लो, मैंने कब बना किया पर मेरे पास अब ज्‍यादा समय नहीं है।”
मैं भी समय नहीं गंवाना चाहती थी, मैंने उनकी गर्दन में बांहें डालकर उनको थोड़ा सा नीचे किया… और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये… अब तो मैं भी चुम्‍बन करना सीख ही गई थी, मैंने उनके होठों की उसी प्रकार चूसना शुरू कर दिया जैसे कुछ पल पहले वो मेरे होठों को चूस रहे थे।
उम्‍म्‍म… ! क्‍या स्‍वाद था उनके होठों का !
चाय पीने के बाद तो उनके होंठ और भी मीठे लग रहे थे। मैंने भी उनकी नकल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में ठेल दी। वो तो बहुत ही अनुभवी थे, उन्‍होंने अपनी जीभ को मुँह के अन्‍दर मेरी जीभ में लपेटना शुरू कर दिया। मैं इस चुम्‍बन में बहुत लम्‍बा समय लेना चाहती थी। इस बात का मैं ध्‍यान रख रही थी… और चुम्‍बन बहुत ही धीरे धीरे परन्‍तु लगातार कर रही थी। बीच बीच में सांस भी ले रही थी, मैं उनके होठों का पूरा स्‍वाद ले रही थी।
इस बार शायद मैं जीत गई। कुछ देर बाद ही उन्‍होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी बाहों का घेरा मेरी पीठ के चारों ओर बन चुका था, वो अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाने लगे… हम्‍म्‍म… अब तो अरूण के होंठ मुझे और भी स्‍वादिष्‍ट लगने लगे थे।
आह…यह क्‍या…? अरूण ने मेरे दोनों नितम्‍बों को पकड़कर… सीईईईईई… अपनी ओर खींच लिया। इस प्रगाढ़ चुम्‍बन की वजह से मेरी सांस रुकने लगी थी, मुझे अपने होंठ उनके होंठों से अलग करने पड़े।
जैसे ही हमारे होंठ अलग हुए… अरूण ने अपने तपते हुए होंठ मेरे कन्‍ध्‍ो पर रख दिए।
उईई ईईईई… माँऽऽऽऽऽऽऽ… मैं सीत्‍कार उठी।
वो लगातार मेरे बांयें कन्‍धे को चूम रहे थे। उनके गर्म होंठों का अहसास मेरे पूरे बदन में होने लगा। मेरे बांयें कन्‍धे को कई बार
चूमने के बाद… उन्‍होंने अचानक… मुझे पीछे की तरफ घुमा दिया… अब मेरी पीठ उनकी छाती से चिपकी हुई थी… अरूण मेरे बिल्‍कुल पीछे आ गये… और अपने गरम होंठ मेरे दायें कन्‍धे पर रख दिये… अपने दोनों हाथों से अरूण ने मेरे दोनों स्‍तनों को प्‍यार से सहलाना शुरू कर दिया…
मुझे तो जैसे नशा सा छाने लगा था… मैं खुद ही पीछे होकर अरूण से चिपक गई। वो दोनों हाथों से लगातार मेरे स्‍तनों को सहला रहे थे… आहहहहहह… मेरे तो चुचुक भी कड़े हो गये थे… शायद…अरूण… को… भी… इसका… अहसास… हो… गया… था…!
अरूण ने ऊपर से मेरे दोनों चुचूकों को पकड़ लिया… सीईईईई ईई… कितनी बेदर्दी से वो मेरे चुचूक मसल रहे थे… पर मुझे बहुत अच्‍छा लग रहा था। धीरे धीरे उनका सिर्फ दाहिना हाथ ही मेरे स्‍तनों पर रह गया… बांया हाथ तो सरक कर नीचे मेरे पेट पर… हम्म्‍म्‍म… नहीं… नाभि पर आ गया था… मुझे मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी… मुझे तो पता ही नहीं लगा कब मेरी नाभि से खेलते खेलते उन्‍होंने मेरी साड़ी पेटीकोट में से खोलकर… नीचे गिरा दी… मैं तो मूरत बनी अरूण की हर क्रिया का आनन्‍द ले रही थी। मुझे तो होश ही तब आया जब अरूण के हाथ मेरे पेटीकोट के नाड़े को खींचने लगे।
मैंने झट से अरूण का हाथ पकड़ लिया। अरूण ने मौन रहकर ही बिना कुछ बोले फिर से नाड़े को खीचने का प्रयास किया। इस बार मैंने फिर से बल्कि ज्‍यादा मजबूती से उनका हाथ रोक लिया।
बिना कुछ बोले उन्‍होंने वहाँ से हाथ हटा लिया… और फिर से मुझे पकड़कर गुड़िया की तरह घुमाया… मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया… अब उनकी जुबान मेरे चेहरे पर घूमने लगी वो मेरे चेहरे को चाटने लगे… छी: … शायद इस बारे में कभी कोई बात भी करता तो मुझे बहुत घिनौना लगता… पर… पता नहीं क्‍यों… अरूण की यह हरकत मेरे लिये बहुत कामुक हो गई… उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर सरकने लगे… अब तो मैंने भी अपनी दोनों बाहें उनकी कमर में डाल कर उनको जकड़ लिया…
अरूण शायद इसी पल का… इन्‍तजार कर रहे थे… उन्‍होंने झट से अपने एक हाथ से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया… एक ही झटके में मेरा वो आवरण नीचे गिर गया… मुझे तो उसका अहसास भी तब हुआ जब वो मेरे पैरों पर गिरा… पर… मैं उस समय इतनी कामुक अवस्‍था में आ चुकी थी… कि दोबारा पेटीकोट की तरफ ध्‍यान भी नहीं दिया।
अब मैं नीचे से सिर्फ पैंटी में थी, अरूण लगातार मेरे चेहरे, गर्दन एवं कन्‍धों पर चुम्‍बन कर रहे थे। सीईईईई… आहहह हह… हम्‍म्‍म्‍म्‍म… मैं लगातार कराह सी रही थी… अरूण की उंगलियों मेरे नितम्‍बों पर गुदगुदी कर रही थी मुझे ऐसा आनन्‍द तो जीवन में कभी मिला ही नहीं था। मेरे नितम्‍ब तो अरूण की उंगलियों की ताल पर खुद ही थिरकने लगे थे… कभी कभी अरूण मेरी पैंटी में उंगली डालकर मेरे नितम्‍बों की बीच की दरार कुरेद सी देते… तो मैं सिर से पैर तक हिल जाती… पर मन कहता कि वो ऐसा ही करते रहें… पता नहीं अरूण ने कब अपने हाथ मेरे नितम्‍बों से हटा कर ऊपर मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिये।
अचानक मुझे अपना ब्‍लाउज कुछ ढीला महसूस होने लगा, मेरा ध्‍यान उधर गया तो पता चला कि अब तक अरूण मेरे ब्‍लाउज के हुक भी खोल चुके थे… हाय… रेएए… ये इन्‍होंने क्‍या कर दिया… अब तो मुझे लज्‍जा महसूस होने लगी… इतनी रोशनी में नंगी होना… वो भी पर-पुरूष के सामने…??
इतनी रोशनी में तो मैं कभी संजय के सामने भी नंगी नहीं हुई… और उन्‍होंने कोशिश भी नहीं की… मैंने झट से अपनी बाहों से अरूण की पीठ को अच्‍छी तरह जकड़ लिया।
वो मुझे आगे करके मेरा ब्‍लाउज उतारना चाहते थे… बार बार कोशिश कर रहे थे पर मैंने उनको इतनी जोर से पकड़ रखा था कि कई कोशिश के बाद भी वो मुझे खुद से अलग नहीं कर पाये। आखिर में उन्‍होंने हथियार डाल दिये और फिर से मेरी पीठ पर गुदगुदी करने लगे… मैं बहुत खुश थी एक तो ब्‍लाउज उतारने से बच गई… दूसरे उनकी गुदगुदी मेरे अन्‍दर बहुत ही मस्‍ती पैदा कर रही थी… मैंने समझा कि अब तो ये मेरा ब्‍लाउज उतार ही नहीं पायेंगे… हायय… पर ये अरूण तो बहुत ही बदमाश निकले… सीईईईई… मैं कहाँ फंस गई आज… इन्‍होंने तो मेरी पीठ पर गुदगुदी करते करते मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया… कितने आराम और मनोभाव से वो मेरा एक एक वस्‍त्र खोल रहे थे… मुझे तो अन्‍दाजा भी तब लगता था जब वो वस्‍त्र खुल जाता था…
मैंने उनको जकड़ का पकड़ा था… वो… मुझे… खुद से अलग करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि मेरा ब्‍लाउज और ब्रा निकाल सकें… मैं शर्म से दोहरी सी हुई जा रही थी… मेरी टांगें थर-थर कांप रही थी…
अब जाकर कहीं उनके मुँह से कोई आवाज निकली… वो बोले, “जानेमन, मैं तुम्‍हारी पूरी खूबसूरती अपनी नजरों में कैद करना चाहता हूँ। सिर्फ एक सैकेन्‍ड के लिये मुझे छोड़ दो, फिर मैं खुद ही तुमको पकड़ लूँगा।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
उन्‍होंने अपने हाथ से मेरी ठोड़ी को पकड़ कर ऊपर किया और मेरी आँखों में झांकते हुए विनती सी करने लगे जैसे कह रहे हों, “प्‍लीज, मुझे अपनी प्राकृतिक अवस्‍था का दर्शन कराओ।”
उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्‍लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्‍जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्‍होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…



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Re: दिल पर जोर नहीं

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उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्‍लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्‍जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्‍होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…
मैंने लेटते ही अपने स्‍तनों की अपनी दोनों बाजुओं से ढक लिया। उन्‍होंने आराम से अपनी पैंट और शर्ट उतारी तो अरूण मेरे सामने बनियान और अन्‍डरवीयर में थे… उनके अन्‍डरवीयर को देखकर ही उसके अन्‍दर जागृत हो चुका नाग बार-बार अपना फन उठाने की कोशिश कर रहा था।
मेरी निगाह वहीं रूक गई।
अरूण आकर मेरे बराबर में फर्श पर बैठ गई और मेरा हाथ बड़े ही प्‍यार से एक स्‍तन से हटाकर उस स्‍तन को अपने… हाय रे… रसीले… होठों के हवाले कर दिया।
मेरे चुचूक इतने कड़े और मोटे लग रहे थे कि मुझे खुद ही उनमें हल्‍का हल्‍का दर्द महसूस होने लगा था पर वो दर्द इतना मीठा था कि दिल कर रहा था ये दर्द लगातार होता रहे…
उफ़्फ़… अब पता नहीं मुझे क्‍या होने लगा था? शरीर के अन्‍दर अजीब अजीब तरंगें पैदा हो रही थी। अरूण मेरे दोनों स्‍तनों से मस्‍ती से स्‍तनपान का आनन्‍द ले रहे थे अब तो उनके हाथ भी मेरे पेट और टांगों पर चलने लगे थे।
आहह… उफ़्फ़फ… की ही हल्‍की सी आवाज मेरे कण्‍ठ से उत्‍पन्‍न हो रही थी। अरूण मेरे कान में हल्‍के से बोले, “कैसा लग रहा है…?” मैं तो कुछ जवाब देने की स्थिति में ही नहीं थी। अरूण की उंगलियाँ मेरी नाभि के आसपास घूम रही थी। मैं उस समय खुद को जन्‍नत में महसूस कर रही थी।
अरूण ने धीरे से अपना हाथ नाभि से नीचे सरकाया… हाय्य… ये तो… इन्‍होंने अपना हाथ… मेरी पैंटी… के अन्‍दर घुसा दिया… मेरी पैंटी तो पूरी तरह से मेरे प्रेम रस से भीग चुकी थी… उनका हाथ भी गीला हो गया… अरूण अपनी एक उंगली कभी मेरे योनि द्वार पर और कभी मदनमणि पर फिराने लगे…
आहहह… मेरे मुँह से निकली… मेरा… सारा बदन कांप रहा था… मैं खुद ही अपनी टांगें सोफे पर पटक रही थी… अरूण ने मेरे कान में कहा, “पूरी गीली हो गई हो नीचे से !”
और अपनी हाथ मेरी पैंटी ने निकाल कर मेरे प्रेमरस से भीगी अपनी उंगली को धीरे-धीरे चाटने लगे।
“छी…” मेरे मुँह से निकला।
“बहुत टेस्‍टी है तुम्‍हारा रस तो, तुम चाट कर देखो।” बोलते बोलते अरूण ने अपनी उंगलियाँ मेरे मुँह में घुसा दी।
थोड़ा कसैला… पर… स्‍वाद बुरा नहीं था मेरे प्रेमरस का। अरूण पूरी तरह मेरे बदन पर अपना अधिकार कर चुके थे। वो खड़े हुए और अपना बनियान और अंडरवियर भी निकाल दिया। इतनी रोशनी में पहली बार मैं किसी पुरूष को अपने सामने नंगा देख रही थी। संजय ने जब भी मेरे साथ सैक्‍स किया था वो खुद ही बिजली बुझा देते थे। मुझे यह बहुत अजीब लगा और मैंने अपनी आँखें शर्म के बंद कर ली। अरूण की सबसे अच्‍छी खूबी यह थी कि वो मेरी किसी भी हरकत का बुरा नहीं मानते… और जवाब में ऐसी हरकत करते कि मैं खुद ही उनके सामने झुक जाती। यहाँ भी अरूण ने यही किया… मेरे आँखें बन्‍द करते ही वो सोफे पर मेरे बराबर में बैठ गये अपने
हाथ से मेरा हाथ पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया…
आहहह… कितना… गर्म लग रहा था… ऐसा लगा जैसे मेरे हाथ में लोहे की कोई गरम छड़ दे दी हो।
मैंने एक बार हाथ हटाने की कोशिश की… पर अरूण ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने लिंग पर रखकर हौले-हौले आगे पीछे करने लगे। मुझे यह अच्‍छा लगा तो मैं भी अरूण का साथ देने लगी। अब अरूण ने मेरा हाथ छोड़ दिया। वो मेरी दोनों पहाड़ियों से खेल रहे थे और मैं उनके उन्‍नत लिंग से। कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा। अन्‍दर ही अन्‍दर मुझे यह सबअच्‍छा लग रहा था पर मेरी योनि के अन्‍दर इतनी खुजली हो रही थी जो मैं बर्दाश्‍त भी नहीं कर पा रही थी। मेरी योनि में अन्‍दर ही अन्‍दर कुछ चल रहा था, मेरे हाथ अरूण के लिंग पर तेजी से चलने लगे। उतनी ही तेजी से मेरी योनि के अन्‍दर भी हलचल होने लगी।
अरूण थे कि मेरे चेहरे होंठ और स्‍तनों पर ही लगे हुए थे… नीचे कितनी आग लगी है इसका तो उन्‍हें अनुमान ही नहीं था।
पर.. मैं… बहुत… ही… बेचैन… होने… लगी… थी, मैं तो टांगें भी पटकने लगी थी अरूण ने मेरे हाथों से अपना लिंग छुड़ाया… थोड़ा सा पीछे की ओर घूमकर अपनी हाथ मेरी योनि पर रखकर सहलाने लगे। वो शायद मेरी आग को समझ गये थे और उसको बुझाने का प्रयास कर रहे थे।
पर उनका हाथ वहाँ लगते ही तो मेरी आग और तेजी से भड़कने लगी… “आहहह… हाय राम… उईईई… हाय रेरेरेरे… मैं तो आज मर ही जाऊँगी… हाय… कुछ करो नाऽऽऽऽऽ… ” अनायास ही मेरे मुँह से निकला।
अरूण ने मुझे सोफे से गोदी में उठाया और मेरे बैडरूम में ले गये। बैड पर मुझे सीधा लिटाकर वो मेरे ऊपर उल्‍टी अवस्‍था में आ गये… उन्‍होंने अपनी दोनों टांगों को मेरे चेहरे के इर्द-गिर्द रखकर अपना चेहरा मेरी योनि के ऊपर सैट किया और हाय… ये क्‍या किया…? अपनी जीभ मेरी योनि के दोनों गुलाब पंखों के बीच में घुसा दी। ऊफ़्फ़फफ… मैं क्‍या करूँ…?
मेरे अन्‍दर की कामाग्नि ने मेरी शर्म को तो शून्‍य कर दिया। इस समय दिल ये था कि अरूण पूरे के पूरे मेरी योनि के अन्‍दर घुस जायें… पर वो तो मेरी योनि को ऐसे चाट रहे थे जैसे कोई गर्म आईसक्रीम मिल गई हो…
मेरा सारा बदन पसीने पसीने हो गया… उनका लिंग मेरे बार-बार मेरे होठों को छू रहा था पर वो थे कि बस योनि चाटने में ही व्‍यस्‍त थे… पता नहीं कब और कैसे मेरा मुँह अपने आप ही खुल गया… होंठ लिंग को पकड़ने का प्रयास करने लगे। पर वो तो मेरे साथ अठखेलियाँ कर रहा था कभी इधर-‍िहल जाता कभी उधर… मैं तो खुद पूरी तरह उनके कब्‍जे में थी। मैंने अपने हाथ से अरूण के लिंग को पकड़ा और अपने होठों के बीच सैट किया… अब मैं भी उनका लिंग आइसक्रीम की तरह चूसने लगी…
कुछ ही देर में मेरा बदन अकड़ने लगा। मेरे अन्‍दर का लावा छलक गया मैं स्‍खलित हो गई… और शान्‍त भी अरूण का लिंग भी मेरे मुँह से निकल गया।
मैं तो जैसे कुछ पल के लिये चेतना विहीन हो गई। कुछ सैकेन्‍ड बाद तेरी चेतना जैसे लौटने लगी तो अरूण ने घूमकर मुझसे पूछा, “कैसा लग रहा है?”
“बहुत अच्‍छा ! ऐसे जीवन में पहले कभी नहीं लगा।” मैंने बिना किसी संकोच के कहा, “पर आपका तो नहीं हुआ ना।” मैंने कहा।
“अब हो जायेगा।” बोलकर अरूण मेरे पूरे बदन पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगे मेरी जांघों पर हल्‍की हल्‍की मालिश करते और नाभि को चूमते मैं कुछ ही पलों में पुन: गर्म होने लगी।
इस बार मैंने खुद ही अरूण का लिंग अपने हाथों में ले लिया। लिंग का अग्रभाग बाहर की ओर निकलकर मुझे झांक रहा था बिल्‍कुल लाल हो चुका पूरी हेकड़ी से खड़ा था मेरे सामने।
अरूण ने मेरे हाथ से अपना लिंग छुड़ाने का प्रयास किया। पर अब मैं उसको छोड़ने को तैयार नहीं थी… मेरे लिये अरूण का लिंग एक लिंग ही नहीं बल्कि उन लाखों भारतीय नारियों की इच्‍छा पूर्ति का यन्‍त्र बन गया जो अपनी कामेच्‍छाओं को पतिव्रत में दफन करके कामसती हो जाती हैं। अरूण का वो प्रेमदण्‍ड (लिंग) मुझे अपना गुलाम बना चुका था।
अब अरूण ने अपना प्रेमदण्‍ड मेरे हाथ से छुड़ाया और मेरी टांगों को फैलाकर उनके बीच में आ गये। उन्‍होंने फिर से मेरे कामद्वार का अपने होठों से रसपान करना शुरू कर दिया।
अब तो यह मुझसे बर्दाश्‍त नहीं हो रहा था। मजबूर होकर मुझे अपनी 32 साल की शर्म ताक पर रखनी पड़ी। मैंने ही अरूण को कहा, “अन्‍दर डाल दो प्‍लीज… नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”
पर शायद अरूण मजा लेने के मूड़ में थे, मुझसे बोले- क्‍या डाल दूँ?
अब मैं क्‍या बोलती… पर जब जान पर बन आती है तो इंसान किसी भी हद तक गुजर जाता है, यह मैंने उस रात महसूस किया जब अरूण ज्‍यादा ही मजा लेने लगे और मुझमें बर्दाश्‍त करने की हिम्‍मत नहीं रही तो मैंने खुद ही अरूण को धक्‍का दिया और बिस्‍तर पर लिटा दिया। एक झटके में मैं अरूण के ऊपर आ गई और उनका मूसल जैसा प्रेमदण्‍ड पकड़कर अपने प्रेमद्वार पर लगाया, मैं उस पर बैठ गई।
आहहह… एक ही झटके में पूरा अन्‍दर… हम्मम… क्‍या आनन्‍द था…!
काश संजय ने कभी मुझे ऐसे तरसाया होता… तो मैं ये सुख कब का भोग चुकी होती… अब तो अरूण मेरे नीचे थे, मैं उनके प्रेमदण्‍ड पर सवारी कर रही थी… वाह… क्‍या आनन्‍द…! क्‍या अनुभव…! क्‍या उत्‍साह…! ऐसा लग रहा था जैसे मुझे यह आनन्‍द देने स्‍वयं कामदेव धरती पर आ गये हों।
अरूण का श्‍याम वर्ण प्रेमदण्‍ड… हायय… मुझे स्‍वर्ग की सैर करा रहा था… मैं जोर जोर से कूद कूद कर धक्‍के मार रही थी। अरूण ने मेरे दोनों मम्‍मों को हाथ में पकड़ कर हार्न की तरह दबाना शुरू कर दिया। आनन्‍द मिश्रित दर्द की अनुभूति होने लगी पर आनन्‍द इतना अधिक था कि दर्द का अहसास हो ही नहीं रहा था। अरूण बार बार मेरे उरोजों को दबाते… मेरे स्‍तनाग्रों को मसलते… मेरे बदन पर हाथ फिराते… ऐसा लग रहा था जैसे अरूण इस खेल के पक्‍के खिलाड़ी थे… उनकी उंगलियों ने मेरे खून में इतना उबाल पैदा कर दिया कि मैं खुद को सातवें आसमान पर थी।
तभी अचानक मुझे अपने अन्‍दर झरना सा चलता महसूस हुआ। अरूण का प्रेम दण्‍ड मेरे अन्‍दर प्रेमवर्षा करने लगा। अरूण के हाथ खुद ही ढीले हो गये… और उसी पल… आह… उईईईई… मांऽऽऽऽऽ… मैं भी गई… हम दोनों का स्‍खलन एक साथ हुआ… मैं अब धीरे धीरे उस स्‍वर्ग से बाहर निकलने लगी। मैं अरूण के ऊपर ही निढाल गिर पड़ी। अरूण मेरे बालों में अपनी उंगलियाँ चलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी पीठ सहलाने लगे।
मेरे लिये तो यह भी एकदम नया था क्‍योंकि संजय तो हर बार काम करके अलग होकर सोने चले जाते। मुझे समझ में आने लगा कि अरूण में क्‍या खास है? कुछ देर उनके ऊपर ऐसे ही पड़ रहने के बाद मैं हल्‍की सी ऊपर हुई तो अरूण ने मेरे माथे पर एक मीठा प्‍यार भरा चुम्‍बन दिया, पूछने लगे, “अब मैं जाऊँ, इजाजत है क्‍या?”


मैंने दीवार घड़ी की तरफ देखा और हंसने लगी, “हा… हा… हा… हा…”
“हंस क्‍यों रही हो?” अरूण ने पूछा।
“जनाब एक बजकर बीस मिनट हो चुके हैं और आपकी गाड़ी तो पक्‍का चली गई होगी।”
अरूण ने तुरन्‍त दीवार घड़ी की तरफ देखा, फिर मेरी तरफ देखकर मुस्‍कुराने लगे बोले, “आखिर तुमने मुझ पर अपना जादू चला ही दिया।”
“किसने किस पर जादू चलाया ये तो भगवान ही जानता है।” मैंने हंस कर कहा।
अरूण फिर से मेरे स्‍तनों से खेलने लगे।
“आह… बहुत दर्द है।” अचानक मेरे मुँह से निकला।
अरूण मेरी तरफ देखकर पूछने लगे, “तुम्‍हारी शादी को 12 साल होने वाले हैं और तुम दोनों रोज सैक्‍स भी करते हो तब भी आज तुम्‍हारे स्‍तनों में दर्द क्‍यों होने लगा?”
“वो कभी भी इनसे इतनी बेदर्दी से नहीं खेलते।” बोलते हुए मैं उनके ऊपर से उठ गई।
“ओह…” अरूण के मुँह से निकला। शायद उनको अपनी गलती का अहसास होने लगा।
मैंने पास ही पड़े छोटे तौलिये से अपनी रिसती हुई योनि और अरूण के बेचारे निरीह से दिख रहे लिंग को साफ किया और बाथरूम में धोने चली गई। अरूण भी मेरे पीछे पीछे बाथरूम में आये और पानी से ‘सबकुछ’ अच्‍छी तरह धोकर वापस बिस्‍तर पर जाकर लेट गये।
बाथरूम से वापस आकर मैंने अपना गाउन उठाया और पहनने लगी तो अरूण ने मुझे अपनी ओर खींच लिया।
‘हाययययय…’ एक झटके से मैं अरूण के पास बिस्‍तर पर जा गिरी, अरूण बोले, “थोड़ी देर गाउन मत पहनो प्‍लीज, मेरे पास ऐसे ही लेट जाओ। ऐसे ही बातें करेंगे।”
पर अब मुझ पर से सैक्‍स का नशा उतर चुका था, ऐसे तो मैं कभी संजय के सामने भी नहीं रही थी, और अरूण तो परपुरूष थे, मुझे शर्म आ रही थी। मैं अरूण की बाहों में कसमसाने लगी, “प्‍लीज, मुझे शर्म आ रही है। मैं गाउन पहन कर आपके पास बैठती हूँ ना…” मैंने कहा।
अरूण हंसते हुए बोले, “अब भी शर्म बाकी है क्‍या हम दोनों में।”
पर मैं थी कि शर्म से गड़ी जा रही थी… और अरूण थे कि मानने को तैयार नहीं थे। काफी देर तक बहस करने के बाद हम दोनों में सहमति हो गयी अरूण बत्ती बन्द करने को राजी हो गये और मैं लाइट ऑफ करने के बाद उनके साथ बिना गाउन के लेटने को।
हम दोनों ऐसे ही अपनी परिवार की और न जाने क्‍या क्‍या बातें करने लगे। बातें करते करते मुझे तो पता ही नहीं चला कि अरूण को कब नींद आ गई। मैंने घड़ी देखी रात के 2 बज चुके थे पर नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी।
अचानक अरूण ने मेरी ओर करवट ली और बोले, “पानी दोगी क्‍या, प्‍यास लगी है !”
मैं उठी और अरूण के लिये पानी लेने चली गई। वापस आई तो अरूण जग चुके थे और मेरे हाथ से पानी लेकर पीने के बाद मुझे खींचकर फिर से अपने पास बैठा लिया और अपना सिर मेरी गोदी में रखकर लेट गये। मैं उनके बालों को सहलाने लगी, मैंने देखा उनका लिंग मूर्छा से बाहर आने लगा था उसमें हल्‍की हल्‍की हरकत होने लगी थी। अरूण ने शायद मेरी निगाह को पकड़ लिया। थोड़ा सा घूम कर वो मेरे बराबर में आये और खुद ही मेरा हाथ पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया।
अपने एक हाथ से अरुण मेरे होठों को सहलाना शुरू किया और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को, और फिर अचानक ही अपना दूसरा हाथ हटा लिया।
मैंने पूछा, “क्‍या हुआ?”
उन्‍होंने कहा, “मैं भूल गया था तुमको दर्द है ना !”
पर तब तक तो मेरा दर्द काफूर हो चुका था। मैंने खुद ही उनका हाथ पकड़ का अपने कुचों पर रख दिया और वो फिर से मेरे उभारों से खेलने लगे पर इस बार वो बहुत ही हल्‍के और मुलायम तरीके से मेरे निप्‍पल को सहला रहे थे, शायद वो कोशिश कर रहे थे कि मुझे फिर से दर्द ना हो उनको क्‍या पता कि मैं तो उस दर्द को पाने के लिये ही तड़प रही थी।
उनके लिंग पर मेरे हाथों की मालिश का असर दिखाई देने लगा। वो पुन: कामयुद्ध के लिये तैयार था। मैं भी अब खुलकर खेलना चाहती थी। मैं खुद ही घूम कर अरूण के ऊपर आ गई और उनके होठों को अपने होठों में दबा लिया। हम दोनों अपनी दूसरी पारी खेलने के लिये तैयार थे। अरूण मेरे नितम्‍बों को बड़े प्‍यार से सहलाने लगे, मैं उनके होठों को फिर ठोड़ी को, गर्दन को, उनकी चौड़ी छाती को चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगी।



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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: दिल पर जोर नहीं

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मैं उनकी नाभि में अपनी जीभ घुसाकर चाटने लगी, उनका लिंग मेरी ठोड़ी से टकराने लगा। मैंने खुद को थोड़ा सा और नीचे सरकाकर
अरूण के लिंग को अपनी दोनों होठों के बीच में दबोच लिया। अब मैं खुल कर मुख मैथुन करने लगी।
अरूण को भी बहुत मजा आ रहा था, ये उनके मुँह ने निकलने वाली सिसकारियाँ बयान कर रही थी। परन्‍तु मेरी योनि में तो फिर से खुजली होने लगी। मजबूर होकर मुझे फिर से अरूण के ऊपर 69 की अवस्‍था में आना पड़ा। ताकि वो मेरी योनि को कुछ आराम दे सकें।
वो तो थे भी अपने खेल में माहिर। उन्‍होंने तुरन्‍त अपनी जीभ से मेरी मदनमणि को सहलाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे मेरी योनि के अन्‍दर जीभ ठेल दी और अन्‍दर तक योनि की सफाई का प्रयास करने लगे।
आह… हम दोनों तो पुन: आनन्‍दविभोर थे।
अरूण रति क्रिया में मंझे हुए खिलाड़ी थे। जिसका परिचय वो पहली पारी में ही दे चुके थे। इस बार तो मुझे खुद को सिद्ध करना था। मैं बहुत ही मजे लेकर अरूण के कामदण्‍ड को चूस रही थी और उनकी दोनों गोलियों के साथ खेल भी रही थी। अरूण मेरी योनि में अपनी जीभ से कुरेदते हुए अपने दोनों हाथों को मेरे नितम्‍बों की दरार पर फिरा रहे थे। मुझे उनका यह करना बहुत ही अच्‍छा लग रहा था। “आह…” तभी मैं दर्द से कराह उठी।
उन्‍होंने अपनी तर्जनी उंगली मेरी गुदा में जो धकेल दी थी। मैं कूदकर बिस्‍तर से नीचे आ गई।
अरूण ने पूछा, “क्‍या हुआ?”
मैंने कहा, “आपने पीछे उंगली क्‍यों डाली? पता है कितना दर्द हुआ?”
अरूण बोले, “इसका मतलब पीछे से बिल्‍कुल कोरी हो क्‍या?”
मैंने अन्‍जान बनते हुए कहा, “छी:… पीछे भी कोई करता है भला?”
अरूण बोले, “क्‍या यार? लगता है तुम्‍हारे लिये सैक्‍स का मतलब बस आगे डालना… और बस पानी निकालना ही है…?”
“मतलब?” मैंने पूछा।
अरूण बोले, “यार, कैसी बातें करती हो तुम? सैक्‍स सिर्फ पानी निकाल को सो जाने का नाम नहीं है। यह तो एक कला है, पूरा विज्ञान है इसमें, इसमें मानसिक और शारीरिक कसरत भी है और पूर्ण सन्‍तुष्टि भी, काम को पूर्ण आनन्‍द के साथ ग्रहण करोगी तभी सन्‍तुष्टि मिलेगी।”
मैं तो उनका कामज्ञान सुनकर दंग थी। अभी तो उनका कामपुराण और भी चलता अगर मैं नीचे फर्श पर बैठकर उनका कामदण्‍ड अपने होठों से ना लगाती तो। अब तो उनका कामदण्‍ड भी अपना पूर्णाकार ले चुका था।
तभी अरूण बिस्‍तर से खड़े हो गये और मुझे भी फर्श से खड़ा कर लिया। मुझको गले से लगाया और खींचते हुए ड्रेसिंग टेबल के पास ले गये। कमरे में लाइट जल रही थी हम दोनों आदमजात नंगे ड्रेसिंग के सामने खड़े थे। अरूण मुझे और खुद को इस अवस्‍था में शीशे में देखने लगे।
मेरी निगाह भी शीशे की तरफ गई, इस तरह बिल्‍कुल नंगे इतनी रोशनी में मैंने खुद को कभी संजय के साथ भी नहीं देखा था। मैं तो शर्म से पानी पानी होने लगी। मैंने जल्‍दी से वहाँ से हटने की कोशिश की। पर अरूण को शायद मेरा वहाँ खड़ा होना अच्‍छा लग रहा था। वो तो जबरदस्‍ती मुझे वहीं पकड़कर चूमने चाटने लगे।
मैं उनकी पकड़ ढीली करने की कोशिश करती पर वो मजबूती से पकड़कर मेरे स्‍तनों को वहीं आदमकद शीशे के सामने चूसने लगे। मैं शीशे में अपने भूरे रंग के कड़े हो चुके कुचाग्र पर बार बार उनकी जीभ की रगड़ लगते हुए देख रही थी, यह मेरे लिये बहुत ही रोमांचकारी था।
मेरी शर्म धीरे धीरे खत्‍म होने लगी। अब मैं भी वहीं अरूण का साथ देने लगी तो उनको सीने से लगाकर अपने एक हाथ से उनका कामदण्‍ड सहलाने लगी। शीशे में खुद को ये सब करते देखकर एक अलग ही रोमांच उत्‍पन्‍न होने लगा। शर्म तो अब मुझसे कोसों दूर चली गई।
अरूण ने भी मुझे ढीला छोड़ दिया। वो नीचे फर्श पर पालथी मारकर मेरी दोनों टांगों को खोलकर उनके बीच में बैठ गये। नीचे से अरूण ने मेरी यो‍नि को चाटना शुरू कर दिया। एक उंगली से अरूण मेरे भंगाकुर को सहेज रहे थे।
“उईईईईईई…” मेरे मुँह से निकला, मैं तो जैसे निढाल सी होने वाली थी, इतना रोमांच जीवन में पहली बार महसूस कर रही थी।
मैंने नीचे देखा अरूण पालथी मार कर बैठे थे, उनका कामदण्‍ड तो जैसे ऊपर की ओर मुझे ही घूर रहा था। मैं भी अपने घुटने मोड़ कर वहीं शीशे के सामने अरूण की तरफ मुँह करके उनकी गोदी में जा बैठी।
और “आहहहहहह..” उनका कामदण्‍ड पूरा का पूरा एक ही झटके में मेरे कामद्वार में प्रवेश कर गया।
मैं असीम सुख महसूस कर रही थी। मैंने अपनी टांगों से अरूण की पीठ को जकड़ लिया। अरूण ने फिर से अपने मुँह में मेरे चुचूक को भर लिया। मेरे नितम्‍ब खुद-ब-खुद ही ऐसे ऊपर नीचे होने लगे जैसे किसी संगीत की ताल पर नृत्‍य कर रहे हों।
अरूण भी मेरे चुचूक चूसते चूसते नीचे से मेरा साथ देने लगे। बिना किसी ध्‍वनि के ही पूरा संगीतमय वातावरण बन गया, कामसंगीत का… ! हम दोनों का पुन: एकाकार हो चुका था।
मुझे लगा कि इस बार मैं पहले शहीद हो गई हूँ। अरूण का दण्‍ड नीचे से लगातार मेरी बच्‍चेदानी तक चोट कर रहा था। तभी मुझे नीचे से अरूण का फव्‍वारा फूटता हुआ महसूस हुआ। अरूण ने अचानक मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और मेरी योनि में अपना काम प्रसाद अर्पण कर दिया।
मैं लगातार शीशे की तरफ ही देख रही थी। अब मुझे यह देखना बहुत सुखदायी लग रहा था पर शरीर में जान नहीं थी, मैं वहीं फर्श पर लेट गई परन्‍तु अरूण इस बार उठकर बाथरूम गये, खुले दरवाजे से मुझे दिख रहा था कि उन्होंने एक मग में पानी भरकर अपने लिंग को अच्‍छे से धोया, तौलिये से पौंछा और बाहर आ गये।
उनके चेहरे पर जरा सी भी थकान महसूस नहीं हो रही थी, उनको देखकर मुझे भी कुछ फूर्ति आई। मैं भी बाथरूम में जाकर अच्‍छी तरह धो पौंछ कर बाहर आई। घड़ी में देखा 3.15 बजे थे मैंने अरूण को आराम करने को कहा।


वो मेरी तरफ देखकर हंसते हुए बोले, “जब जा रहा था तो जाने नहीं दिया। अब आराम करने को बोल रही हो अभी तो कम से कम 2 राउण्ड और लगाने हैं, आज की रात जब तुम्‍हारे साथ रूक ही गया हूँ तो इस रात का पूरा फायदा उठाना है।”
अरूण की इस बात ने मेरे अन्‍दर भी शक्ति संचार किया, मेरी थकान भी मिटने लगी। मैंने फ्रिज में से एक सेब निकाला, चाकू लेकर उनके पास ही बैठकर काटने लगी।
वो बोले, “मुझे ये सब नहीं खाना है।”
मैंने कहा, “आपने बहुत मेहनत की है अभी और भी करने का मूड़ है तो कुछ खा लोगे तो आपके लिये अच्‍छा है।”
अरूण बोले, “आज तो तुमको ही खाऊँगा बस।”
सेब और चाकू को अलग रखकर मैं वापस आकर अरूण के पास बैठ गई। मेरे बैठते ही उन्‍होंने अपना सिर मेरी जांघों पर रखा और लेट गये। मैं प्‍यार से उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी। पर वो तो बहुत ही बदमाश थे उन्‍होंने मुँह को थोड़ा सा ऊपर करके मेरे बांये स्‍तन को फिर से अपने मुँह में भर लिया। मैंने हंसते हुए छोटे से हो चुके उनके लिंग को हाथ में पकड़ कर मरोड़ते हुए पूछा, “यह थकता नहीं क्‍या?”
अरूण बोले- थकता तो है पर अभी तो बहुत जान है अभी तो लगातार कम से कम 4-5 राउण्ड और खेल सकता है तुम्‍हारे साथ।
“पर मैंने तो कभी भी एक रात में एक से ज्‍यादा बार नहीं किया इसीलिये मुझे आदत नहीं है।” मैंने बताया।
अरूण ने तुरन्‍त ही अपने मिलनसार व्‍यवहार का परिचय देते हुए कहा, “तब तो तुम थक गई होंगी तुम लेट जाओ, मैं तुम्‍हारी मालिश कर देता हूँ ताकि तुम्‍हारी थकान मिट जाये और अब आगे कुछ नहीं करेंगे।”
मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माने खुद उठकर बैठ गये और मुझे बिस्‍तर पर लिटा दिया। ड्रेसिंग टेबल से तेल लाकर मेरी मालिश करने लगे। इससे पहले मेरी मालिश कभी बचपन में मेरी माँ ने ही की होगी। मेरी याद में तो पहली बार कोई मेरी मालिश कर रहा था, वो भी इतने प्‍यार से !
मैं तो भावविभोर हो गई, मेरी आँखें नम होने लगी, गला रूंधने लगा।
अरूण ने पूछा, “क्‍या हुआ?”
“कुछ नहीं।” मैंने खुद को सम्‍भालते हुए कहा और अरूण के साथ मालिश का मज़ा करने लगी, मेरी बाजू पर, स्‍तनों पर, पेट पर, पीठ पर, नितम्‍बों पर, जांघों पर, टांगों पर और फिर पैरों पर भी अरूण तन्‍मयता से मालिश करने लगे।
वास्‍तव में मेरी थकान मिट गर्इ अब तो मैं खुद ही अरूण के साथ और खेलने के मूड़ में आ गई। आज मैं अरूण के साथ दो बार एकाकार हुई और दोनों बार ही अलग अलग अवस्‍था में। मेरे लिये दोनों ही अवस्‍था नई थी, अब कुछ नया करना चाहती थी पर अरूण को कैसे कहूँ समझ नहीं आ रहा था। पर मैं अरूण के अहसानों का बदला चुकाने के मूड में थी, मैं तेजी से दिमाग दौड़ा रही थी कि ऐसा क्‍या करूँ जो अरूण को बिल्‍कुल नया लगे और पूर्ण सन्‍तुष्टि भी दे।
सही सोचकर मैंने अरूण के पूरे बदन को चाटना शुरू कर दिया। अरूण को मेरी यह हरकत अच्‍छी लगी शायद, ऐसा मुझे लगा। वो भी अपने शरीर का हर अंग मेरी जीभ के सामने लाने का प्रयास करने लगे। धीरे धीरे मैं उनके होंठों को चूसने लगी पर मैं तो इस खेल में अभी बच्‍ची थी और अरूण पूरे खिलाड़ी। उन्‍होंने मेरे होठों को खोलकर अपनी जीभ मेरी जीभ से भिड़ा दी। ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों की जीभें ही आपस में एकाकार कर रही हैं।
मैं अरूण के बदन से चिपकती जा रही थी बार-बार। मेरा पूरा बदन तेल से चिकना था अरूण के हाथ भी तेल से सने हुए थे। अरूण ने अपनी एक उंगली से मेरी योनि के अन्‍दर की मालिश भी शुरू कर दी। मेरी योनि तो पहले ही से गीली महसूस हो रही थी, उनकी चिकनी उंगली योनि में पूरा मजा दे रही थी, उनकी उंगली भी मेरे योनिरस से सन गई।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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उन्‍होंने अचानक उंगली बाहर निकाली और मेरे नितम्‍बों के बीच में सहलाना शुरू कर दिया।
चिकनी और गीली उंगली से इस प्रकार सहलाना मुझे बहुत अच्‍छा लग रहा था। अचानक “हाययय… मांऽऽऽऽऽ… ऽऽऽऽ…” फिर से वो ही हरकत !
उन्‍होंने फिर से अपनी उंगली मेरी गुदा में घुसाने का प्रयास किया, मैं कूद कर दूर हट गई।
मैंने कहा, “आप अपनी शरारत से बाज नहीं आओगे ना…?”
अरूण बोले, “मैं तो तुमको नया मजा देना चाहता हूँ। तुम साथ ही नहीं दे रही हो।”
मैंने कहा, “साथ क्‍या दूँ? पता है एकदम कितना दर्द होता है !”
“तुम साथ देने की कोशिश करो। थोड़ा दर्द तो होगा, पर मैं वादा करता हूँ जहाँ भी तुमको लगेगा कि इस बार दर्द बर्दाश्‍त नहीं हो रहा बोल देना मैं रूक जाऊँगा।” अरूण ने मुझे सांत्‍वना देते हुए कहा।
मैं गुदा मैथुन को अपने कम्‍प्‍यूटर पर कई बार देख चुकी थी। मेरे अन्‍दर भी नया रोमांच भरने लगा पर दर्द के डर से मैं हामी नहीं भर रही थी। हां, कुछ नया करने की चाहत जरूर थी मेरे अन्‍दर, यही सोचकर मैंने अरूण का साथ देने की ठान ली।
अरूण ने मुझे बिस्‍तर पर आगे की ओर इस तरह झुकाकर बैठा दिया कि मेरी गुदा का मुँह सीधे उनके मुँह के सामने खुल गया। अब अरूण मेरे पीछे आ गये, उन्‍होंने ड्रेसिंग से बोरोप्‍लस की टयूब उठाई और मेरी गुदा पर लगा कर दबाने लगी। टयूब से क्रीम निकलकर मेरी गुदा में जाने लगी।अरूण बोले, “जैसे लैट्रीन करते समय गुदा खोलने का प्रयास करती हो ऐसे ही अभी भी गुदा को बार बार खोलने बन्‍द करने का प्रयास करो ताकि क्रीम खुद ही थोड़ी अन्‍दर तक चली जाये।” क्रीम गुदा में लगने से मुझे हल्‍की हल्‍की गुदगुदी होने लगी। मैं गुदा को बार-बार संकुचित करती और फिर खोलती, अरूण गुदाद्वार पर अपनी उंगली फिरा रहे थे जिससे गुदगुदी बढ़ने लगी, कुछ क्रीम भी अन्‍दर तक चली गई।
इस बार जैसे ही मैंने गुदा को खोला, अरूण ने अपनी उंगली क्रीम के साथ मेरी गुदा में सरका दी। जैसे ही मैं गुदा संकुचित करने लगी मुझे उंगली का अन्दर तक अहसास हुआ पर तब तक उनकी उंगली इतनी चिकनी हो गई थी कि गुदा में हल्‍के हल्‍के सरकने लगी। दर्द तो हो रहा था पर चिकनाहट का भी कुछ कुछ असर था मजा आने लगा था।
मैं भी तो कुछ नया करने के मूड में थी। अरूण ने एक उंगली मेरी गुदा में और दूसरी मेरी योनि में अन्‍दर बाहर सरकानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे मैं तो आनन्‍द के सागर में हिचकौले खाने लगी।
कुछ सैकेण्‍ड बाद ही अरूण बोले, “अब तो कोई परेशानी नहीं है ना?”
मैंने सिर हिलाकर सिर्फ ‘ना’ में जवाब दिया। बाकि जवाब तो अरूण को मेरी सिसकारियों से मिल ही गया होगा। उन्‍होंने फिर से क्रीम मेरी गुदा में लगाना शुरू किया। मैं खुद ही बिना कहे एक गुलाम की तरह उनकी हर बात समझने लगी थी। मैंने भी अपनी गुदा को फिर से संकुचित करके खोलना शुरू कर दिया। इस बार अचानक मुझे गुदा में कुछ जाने का अहसास हुआ मैंने ध्‍यान दिया तो पाया कि अरूण की दो उंगलियाँ मेरी गुदा में जा चुकी थी। फिर से वही दर्द का अहसास तो होने लगा। पर आनन्‍द की मात्रा दर्द से ज्‍यादा थी। तो मैंने दर्द सहने का निर्णय किया।
उनकी उंगलियाँ मेरी गुदा में अब तेजी से चलने लगी थी।
ये क्‍या..? मैं तो खुद ही नितम्‍ब हिला हिला कर गुदा मैथुन में उनका साथ देने लगी।
वो समझ गये कि अब मुझे मजा आने लगा। उन्‍होंने अपना लिंग मेरी तरफ करके कहा कि अपने हाथ से इस पर क्रीम लगा दो। मैंने आज्ञाकारी दासी की तरह उनकी आज्ञा का पालन किया।
लिंग को चिकना करने के बाद वो फिर से मेरे पीछे आ गये, मुझसे बोले, “अब मैं तुम्‍हारे अन्‍दर लिंग डालने की कोशिश करता हूँ। जब तक बर्दाश्‍त कर सको ठीक, जब लगे कि बर्दाश्‍त नहीं हो रहा है बोल देना।”मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
अरूण मेरे पीछे आये और अपना कामदण्‍ड मेरी गुदा पर रखकर अन्‍दर सरकाने का प्रयास करने लगे। मैंने भी साथ देते हुए गुदा को खोलने का प्रयास किया। लिंग का अगला सिरा यानि सुपारा धीरे धीरे अन्‍दर जाने लगा। कुछ टाइट जरूर था पर मुझे कोई भी परेशानी नहीं हो रही थी।
एक इंच से भी कुछ ज्‍यादा ही शायद मेरी गुदा में चला गया था। मुझे कुछ दर्द का अहसास हुआ, “आहहह…” मेरे मुँह से निकली ही थी… कि अरूण रूक गये, पूछने लगे, “ठीक हो ना?”
मैंने पुन: ‘हाँ’ में सिर हिला दिया और दर्द बर्दाश्‍त करने का प्रयास करने लगी। मैंने पुन: गुदा को खोलने का प्रयास किया क्‍योंकि संकुचन के समय तो लिंग अन्‍दर जाना सम्‍भव नहीं हो पा रहा था बस एक सैकेण्‍ड के लिये जब गुदा को खोला तभी कुछ अन्‍दर जा सकता था। जैसे ही अरूण को मेरी गुदा कुछ ढीली महसूस हुई उन्‍होंने अचानक एक धक्‍का मारा। मेरा सिर सीधा बिस्‍तर से टकराया, मुँह से ‘आहहहहह…’ निकली। तब तक अरूण अपने दोनों हाथों से मेरे स्‍तनों को थाम चुके थे। मुझे बहुत दर्द होने लगा था।
अरूण मेरे चुचूक बहुत ही प्‍यार से सहलाने लगे और बोले, “जानेमन, बस और कष्‍ट नहीं दूँगा।”
मुझे उनका इस प्रकार चुचूक सहलाना बहुत ही आराम दे रहा था, गुदा में कोई हलचल नहीं हो रहा थी, दर्द का अहसास कम होने लगा। मुझे कुछ आश्‍वस्‍त देखकर अरूण बोले, “देखो, तुमने तो पूरा अन्‍दर ले लिया।”
मैंने आश्‍चर्य से पीछे देखा… अरूण मेरी ओर देखकर मुस्‍कुरा रहे थे। पर लगातार मेरे वक्ष-उभारों से खेल रहे थे। अब तो मुझे भी गुदा में कुछ खुजली महसूस होने लगी। मैंने खुद ही नितम्‍बों को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। क्रीम का असर इतना था कि मेरे हिलते ही लिंग खुद ही सरकने लगा। अरूण भी मेरा साथ देने लगे। मैं इस नये सुख से भी सराबोर होने लगी।
दो चार धक्‍के हल्‍के लगाने के बाद अरूण अपने अन्‍दाज में जबरदस्‍त शॉट लगाने लगे। मुझे उनके हर धक्‍के में टीस महसूस होती परन्‍तु आनन्‍द की मात्रा हर बार दर्द से ज्‍यादा होती। इसीलिये मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही थी। अरूण ने मेरे वक्ष से अपना एक हाथ हटाकर मेरी योनि में उंगली सरका दी। अब तो मुझे और भी ज्‍यादा मजा आने लगा। उनका एक हाथ मेरे चूचे पर, दूसरा योनि में और लिंग मेरी गुदा में।मैं तो सातवें आसमान में उड़ने लगी। तभी मुझे गुदा में बौछार होने का अहसास हुआ। अरूण के मुँह से डकार जैसी आवाज निकली। मेरी तो हंसी छूट गई, “हा… हा… हा… हा… हा… हा…”
मुझे हंसता देखकर अपना लिंग मेरी गुदा से बाहर निकालते हुए अरूण ने पूछा, “बहुत मजा आया क्‍या?”
ने हंसते हुए कहा,”मजा तो आपके साथ हर बार ही आया पर मैं तो ये सोचकर हंसी कि आपका शेर फिर से चूहा बन गया।”
मेरी बात पर हंसते हुए अरूण वहाँ से उठे और फिर से बाथरूम में जाकर अपना लिंग धोने लगे। मैं भी उनके पीछे-पीछे ही बाथरूम में गई और शावर चला कर पूरा ही नहाने लगी…
अरूण से साबुन मल-मल कर मुझे अच्‍छी तरह न‍हलाना शुरू कर दिया… और मैंने अरूण को…
मैं इस रात को कभी भी नहीं भूलना चाहती थी। अरूण ने बाहर झांककर घड़ी को देखा तो तुरन्‍त बाहर आये। 4.50 हो चुके थे।
अरूण ने बाहर आकर अपना बदन पौंछा और तेजी से कपड़े पहनने लगे।
मैंने पूछा, “क्‍या हुआ?”
अरूण बोले, “दिन निकलने का समय हो गया है। कुछ ही देर में रोशनी हो जायेगी मैं उससे पहले ही चले जाना चाहता हूँ। ताकि मुझे यहाँ आते-जाते कोई देख ना पाये।”
मैंने बोला, “पर आप थक गये होंगे ना, कुछ देर आराम कर लो।” पर अरूण ने मेरी एक नहीं सुनी और जाने की जिद करने लगे। मुझे उनका इस तरह जाना बिल्‍कुल भी अच्‍छा नहीं लग रहा था। पर उनकी बातों में मेरे लिये चिन्‍ता थी। वो मेरा ख्‍याल रखकर ही से सब बोल रहे थे। उनको मेरी कितनी चिन्‍ता थी वो उसकी बातों से स्‍पष्‍ट था।
वो बोले, “मैं नहीं चाहता कि मुझे यहाँ से निकलते हुए कोई देखे और तुमसे कोई सवाल जवाब करे, प्‍लीज मुझे जाने दो।”
मेरी आँखों से आँसू टपकने लगे, मुझे तो अभी तक कपड़े पहनने का भी होश नहीं था, अरूण ने ही कहा- गाऊन पहन लो, मुझे बाहर निकाल कर दरवाजा बन्‍द कर लो।
मुझे होश आया मैंने देखा… मैं तो अभी तक नंगी खड़ी थी। मैंने झट से गाऊन पहना और अरूण को गले से लगा लिया, मैंने पूछा, “कब अगली बार कब मिलोगे?”
अरूण ने कहा, “पता नहीं, हाँ मिलूँगा जरूर !” इतना बोलकर अरूण खुद हर दरवाजा खोलकर बाहर निकल गये।
मैं तो उनको जाते ही देखती रही। उन्‍होंने बाहर निकलकर एक बार चारों तरफ देखा, फिर पीछे मुड़कर मेरी तरफ देखा और हाथ से बॉय का इशारा किया बस वो निकल गये… मैं देखती रही… अरूण चले गये।
मैं सोचने लगी। सैक्‍स एक ऐसा विषय है जिसमें दुनिया के शायद 99.99 प्रतिशत लोगों की रूचि है। फर्क सिर्फ इतना है कि पुरूष तो कहीं और कैसे भी अपनी भड़ास निकाल लेता है। पर महिलाओं को समाज में अपनी स्थिति और सम्‍मान की खातिर अपनी इस इच्‍छा को मारना पड़ता है परन्‍तु जब कभी कोई ऐसा साथी मिल जाता है जहाँ सम्‍मान भी सुरक्षित हो और प्रेम और आनन्‍द भी भरपूर मिले तो महिला भी खुलकर इस खेल को खुल कर खेल कर आनन्द प्राप्त करना चाहती है।
वैसे भी दुनिया में सबकी इच्‍छा, ‘जिसके पास जितना है उससे ज्‍यादा पाने की है’ यह बात सब पर समान रूप से लागू होती है। अगर सही मौका और समाज में सम्‍मान खोने का डर ना हो तो शायद हर इंसान अपनी इच्‍छा को बिना दबाये पूरी कर सकता है। अरूण के बाद मेरी बहुत से लोगों से चैट हुई पर अरूण जैसा तो कोई मिला ही नहीं इसीलिये शायद 2-4 बार चैट करके मैंने खुद ही उसको ब्‍लॉक कर दिया।
मेरे लिये वो रात एक सपना बन गई। ऐसा सपना जिसके दोबारा सच होने का इंतजार मैं उस दिन से कर रही हूँ। मेरी अब भी अरूण से हमेशा चैट होती है, दो-चार दिन में फोन पर भी बात होती है पर दिल की तसल्‍ली नहीं होती। भला कोई बताये इसीलिए तो कहते हैं दिल पर जोर नहीं…


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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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