Bhoot bangla-भूत बंगला

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rajsharma
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

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मैने फ्रिड्ज का दरवाज़ा खोला और अंदर लगे उस हुक को देखा जो बाहर से लॉक में चाबी घुमाने पर अंदर अटक जाता था. वो हुक फ्री था और आसानी से मेरे हाथ से ही घूम गया.

"कुच्छ ठंडा पीना है क्या आपको?" श्यामला मुझे इतने गौर से फ्रिड्ज की तरफ देखते हुए पुच्छ बेती
ठंडा तो मुझे उस वक़्त पीना था पर उस वक़्त मेरे दिमाग़ में वो आखरी बात थी.

"ये पाकड़ो" मैने एक एक करके फ्रिड्ज के अंदर रखी ट्रेस निकालनी शुरू कर दी.
"क्या कर रहे हैं?" उसने फ़ौरन पुचछा पर जब मैने अपने पर्स से 100 के 2 नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाए तो वो चुप हो गयी.

जब फ्रिड्ज की सारी ट्रेस निकल गयी तो मैने खड़ा होकर एक बार उसकी तरफ देखा. वो फ्रिड्ज तकरीबन मेरे ही जितना लंबा था और काफ़ी चौड़ा भी था. मैने अपना सर थोड़ा नीचे झुकाया और फ्रिड्ज के अंदर घुस गया. अंदर घुसकर मैं सिकुड़कर नीचे को बैठ गया.

"क्या कर रहे हैं आप?" श्यामला बाई ने लगभज् चिल्लाते हुए मुझसे पुचछा. मैने उसके सवाल पर कोई ध्यान नही दिया और फ्रिड्ज का दरवाज़ा बंद करके हुक अंदर की तरफ से घुमाया. हुक अपनी जगह पर जाके अटक गया. मतलब बाहर खड़े किसी भी आदमी के लिए वो फ्रिड्ज लॉक्ड था.

मैं जब बंगलो से निकला तो एक बहुत बड़े सवाल का जवाब मुझे मिल चुका था. जिस किसी ने भी सोनी को मारा था वो वहीं घर में ही था. वो उसको मारकर कहीं गया नही बल्कि वहीं घर में ही रहा और जब अगले दिन मौका पाकर उस वक़्त भाग निकला जब घर का दरवाज़ा खोला गया था. और वो लोग जिन्हें मैने घर में उस रात देखा था पर जब मैं और सोनी घर में गये तो नही थे वो भी शायद यहीं च्छूपे हुए थे क्यूंकी हमने पूरा घर छ्चान मारा था और वो कहीं और मौजूद नही थे. फ्रिड्ज इतना बड़ा था के 2 लोग उसमें आसानी से सिकुड़कर घुस सकते थे.

"साहब" मैं जा ही रहा था के पिछे से श्यामला बाई की आवाज़ आई. मैने पलटकर उसकी तरफ देखा.
"आप बोले थे ना के मैं कुकछ अगर घर में मिला तो आपको लाकर दूँ. पैसे देंगे आप" वो बोली
"हां याद है" मैने कहा
"ये मिला मेरे को" उसने एक कपड़े का टुकड़ा मेरी तरफ बढ़ाया.

वो एक सफेद रंग का स्कार्फ या रुमाल था. देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के लड़के का था या लड़की का. एक पल के लिए तो मुझे लगा के श्यामला बाई शायद ऐसे ही कोई रुमाल मुझे थमाके पैसे निकालने के चक्कर में है पर वो रुमाल देखने से ही काफ़ी महेंगा सा लग रहा था. दोनो तरफ हाथ से की गयी गोलडेन कलर की कढ़ाई थी और कपड़े भी काफ़ी महेंगा मालूम पड़ता था. ऐसा रुमाल श्यामला बाई के पास नही हो सकता, ये सोचकर मैं उसे पैसे देने चाह ही रहा था के उस रुमाल पर मुझे कुच्छ ऐसा नज़र आया के मेरा उसको रख लेने का इरादा पक्का हो गया.
रुमाल के एक कोने पर गोलडेन कलर के धागे से 2 लेटर्स कढ़ाई करके लिखे गये थे.

एच.आर.

मेरे दिमाग़ में फ़ौरन एक ही नाम आया.
हैदर रहमान.

पहले तो मैने सोचा के पोलीस स्टेशन जाकर मिश्रा से बात करूँ पर जब मैने उसको फोन किया तो वो पोलीस स्टेशन में नही था. मैने उसको अपने ऑफीस आकर मुझसे मिलने को कहा और ऑफीस पहुँचा.

"फाइनली" प्रिया मुझे देखकर बोली "सरकार की तशरीफ़ आ ही गयी. सारी दिन अकेली बोर हो गयी मैं. खाना भी ठंडा हो गया है"
"अब तो भूख ही ख़तम हो गयी यार" मैने कहा और अपनी डेस्क पर बैठ गया.
"क्यूँ कहीं से ख़ाके आ रहे हो क्या?" वो उठकर मेरे करीब आई.

मैं कुर्सी पर सीधा होकर लेट सा गया और आँखें बंद करके इनकार में सर हिलाया.
"तो भूख क्यूँ नही है? तबीयत ठीक है?" कहते हुए वो घूमकर डेस्क के मेरी तरफ आई और मेरे माथे पर हाथ लगाके देखा.
"बुखार तो नही है" वो बोली

"नही तबीयत तो ठीक है. बस ऐसे ही भूख ख़तम हो गयी" कहते हुए मैने आँखें खोली तो फिर वही नज़र सामने था जहाँ अक्सर मेरी नज़र अटक जाती थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचिया जो उसके पिंक टॉप के उपेर ऐसे उठी हुई थी जैसे 2 माउंट एवरेस्ट. मेरी नज़र एक पल के लिए फिर वहीं अटक गयी और खुद प्रिया को भी अंदाज़ा हो गया के मैं कहाँ देख रहा हूँ.

"ओह प्लीज़ सर......." वो बोली
"क्या?" मैने मुस्कुराते हुए उसकी नज़र से नज़र मिलाई.
"मुझे लगा था के अब आप ऐसे नही घुरोगे" वो हस्ती हुई बोली और टेबल के दूसरी तरफ जा बैठी.
"वो क्यूँ?" मैने पुचछा
"अरे अब देख तो लिया आपने. आँखों से भी देख लिया और अपने हाथों से भी देख लिया" वो हल्के से शरमाते हुए बोली.

"अरे तो एक बार देख लिया तो इसका मतलब ये थोड़े ही है के इंटेरेस्ट ख़तम हो गया" मैने उसे छेड़ते हुए कहा.
"तो अब क्या डेली सुबह शाम एक एक बार दिखाया करूँ?" वो आँखें फेलाति हुई बोली.
"सच?" मैं एकदम खुश होता हुआ बोला "क्या ऐसा कर सकती है तू?"
"बिल्कुल नही" वो थोड़ा ज़ोर से बोली और हस्ने लगी "वो आपका बिर्थडे गिफ्ट था जो आपको कल मिल गया."

"याअर ये तो ग़लत बात है" मैने कहा
"क्या ग़लत है?" वो बोली
"ये तो शेर के मुँह खून लगाने वाली बात हो गयी. एक बार ज़रा थोड़ी देर के लिए दिखा कर तो जैसे और देखने की ख्वाहिश बढ़ा दी तूने"
"थोड़ी देर के लिए? और बस देखा आपने" वो इस बात की तरफ इशारा करते हुए बोली के मैने काफ़ी देर तक देखे थे और देखने के साथ दबाए और चूसे भी थे.

मैं जवाब में हस पड़ा.
"वैसे ये सब मज़ाक ही है ना?" उसने पुचछा
"शायद और शायद नही" मैने गोल मोल सा जवाब दिया
"इस बात का क्या मतलब हुआ?"

मैने फिर जवाब नही दिया

"एक बात बताइए सर" उसने पुचछा "लड़को को इनमें क्या अच्छा लगता है?"
"ऑपोसिट अट्रॅक्ट्स यार" मैने कहा "लड़को को ऑफ कोर्स लड़की के जिस्म की तरफ अट्रॅक्षन होती है तो ऑफ कोर्स लड़की के ब्रेस्ट्स की तरफ भी अट्रॅक्षन होती है. और जैसी तेरी हैं, ऐसे तो हर बंदा चाहता है के उसकी गर्ल फ्रेंड या बीवी की हों"

"जैसी मेरी हैं मतलब?" उसने अपनी चूचियो की तरफ देखते हुए कहा
"मतलब के तेरी बड़ी हैं काफ़ी और ज़्यादातर लड़को को बड़ी छातिया अच्छी लगती हैं" मैने कहा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी.

"याद है आपको मैं एक शादी में गयी थी और मैने एक कज़िन के बारे में बताया था जिसके साथ मेरी एक लड़के को पटाने की शर्त लगी थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिलाया
"हाँ याद है"

"सर मेरी उस कज़िन के पास लड़कियों जैसा कुच्छ नही है. बस शकल से लड़की है वो. सीने पर ज़रा भी उभार नही है और फिर वो लड़का उससे जाकर फस गया. मुझे तो उसने घास भी नही डाली" वो बोली तो मैं हस पड़ा
"अरे और भी कई बातें होती हैं जो लड़को को पसंद होती हैं. सिर्फ़ ब्रेस्ट्स नही" मैने कहा

"और क्या?" वो ऐसे बोली जैसे मैं उसकी टूवुशन क्लास ले रहा था.
मैं कुच्छ कह ही रहा था के मेरे ऑफीस के दरवाज़े पर नॉक हुआ और मिश्रा अंदर आया.

क्रमशः.............................
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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भूत बंगला पार्ट-17

गतान्क से आगे..................

मैने मिश्रा को वो सारी बात बता दी जो मुझे बंगलो और सोनी मर्डर केस के बारे में पता चली थी. जो एक बात मैं उससे भी च्छूपा गया वो थी हैदर रहमान का रुमाल वहाँ मिलने की बात. मैं अब तक हैदर रहमान से मिला नही था और उसके बारे में कोई भी बात करने से पहले ज़रूरी था के मैं पहले खुद ये डिसाइड करूँ के क्या वो ऐसा कर सकता है या नही. और उसके लिए फिलहाल अभी और इन्फर्मेशन हासिल करना ज़रूरी था.

"फ्रिड्ज?" मिश्रा हैरत से बोला "उस फ्रिड्ज में जगह है इतनी?"
"मेरी हाइट 6 फुट से ज़्यादा है और मैं पूरा आ गया उसके अंदर. उसके बाद भी इतनी जगह थी के तू भी अंदर घुस सकता था. वो फ्रिड्ज बहुत बड़ा है यार" मैने कहा

"और ये ख्याल आया कैसे तुझे?" उसने पुचछा
एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में आया के मैं उसको रश्मि और मेरे बंगलो में जाने के बारे में बता दूँ पर उसका नतीजा ये होता के वो मुझसे और ज़्यादा सवाल पुचहता और फिलहाल मेरे पास उसको बताने के लिए और ज़्यादा कुच्छ ख़ास था नही.

"मुझे याद था के मैने एक बहुत बड़ा फ्रिड्ज देखा था जब तू और मैं तलाशी लेने गये थे. अपने घर में फ्रिड्ज से कुच्छ निकल रहा था तब मुझे ख्याल आया के फ्रिड्ज के अंदर भी तो कोई हो सकता है क्यूंकी उसकी ट्रेस मैने बाहर रखी हुई देखी थी" मैने कहानी बनाते हुए कहा
"ह्म" मिश्रा बोला "और निकला कब होगा वो?"

"कभी भी निकल सकता है यार. अंदर बैठा रहा होगा काफ़ी देर तक और जब मौका मिला तो निकल भागा. घर की इतनी सारी खिड़कियाँ है वो कहीं से भी निकल सकता था" मैने कहा पर मिश्रा मेरे जवाब से सॅटिस्फाइड नही था.

"तू एक बहुत बड़ा पॉइंट मिस कर रहा है मेरे भाई" वो बोला "अगर उस बंदे ने खून किया था तो उसको क्या दरकार थी वहीं घर में ही बैठे रहने की और वो भी फ्रिड्ज में घुसके. उसने खून किया था यार वो सॉफ बचके निकल सकता था वहाँ से. वहीं घर में बैठे रहने की क्या ज़रूरत थी उसको?"

मिश्रा जो कह रहा था वो बिल्कुल सही था. इस बारे में मैने बिल्कुल नही सोचा था. अगर कोई किसी की जान ले सबसे पहली रिक्षन वहाँ से निकल भागना होता है. अगर उसको घर से कुच्छ लेना ही था तो पूरी रात थी उसके पास. वो आराम से घर की तलाशी लेकर वहाँ से निकल सकता था. बंगलो 13 के नाम से तो वैसे भी लोग डरते थे और उसके आस पास भी नही जाते थे तो इस बार का तो कोई डर ही नही था के कोई देख सकता था. तो फिर वो आदमी खून करने के बाद भला वहाँ क्यूँ रहेगा?

"कह तो तू सही रहा है" मैने कहा "पर जो भी वजह थी, इतना तो हम जानते हैं के सोनी का खूनी उसकी जान लेके के बाद घर से निकला नही. अट लीस्ट दरवाज़े से तो नही. और अनलेस आंड अंटिल उसके पास कोई मॅजिकल पवर्स थी, मैं पूरे दावे के साथ कहता हूँ के वो वहीं फ्रिड्ज के अंदर च्छूपा बैठा था जब उस नौकरानी ने आकर घर का दरवाज़ा खोला और जहाँ तक मेरा ख्याल है, जब वो पोलीस को बुलाने बंगलो के सामने वाली चौकी की तरफ गयी, तभी वो वहाँ से निकल भागा"

"पक्के तौर पर तो मैं खुद उस फ्रिड्ज को देखने के बाद ही कुच्छ कह सकता हूँ. कल लगाऊँगा उधर का चक्कर. वैसे अब मेरा कोई फयडा तो है नही इसमें क्यूंकी केस सी.बी.आइ के पास है पर अगर मैने कुच्छ कमाल कर दिखाया तो मेरी वाह वाह हो जाएगी" वो मुस्कुराता हुआ बोला

हम थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे और फिर वो उठकर मेरे ऑफीस से जाने लगा. जाते जाते वो पलटा.

"अरे इशान तू वो अदिति के बारे में कोई बुक लिख रहा था ना"
"अदिति नही बंगलो के बारे में" मैने कहा
"हाँ वही" वो बोला "एक बात पता चली है मुझे. सोचा तेरे फ़ायडे की हो सकती है. उस अदिति का हज़्बेंड अभी भी ज़िंदा है. जैल में उमेर क़ैद की सज़ा काट रहा है. तू चाहे तो मिल सकता है उससे. शायद उससे कुच्छ इन्फर्मेशन मिल सके तुझे"

मैं, रुक्मणी और देवयानी डिन्नर टेबल पर साथ बैठे थे. वो दोनो बिल्कुल नॉर्मल थी पर मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था. जबसे उन दोनो को बिस्तर पर एक साथ देखा था, ना जाने क्यूँ उन दोनो के सामने मैं बड़ा अनकंफर्टबल फील करता था. दोनो साथ हों तब भी और अगर रुक्मणी अकेली हो तब भी मुझे उससे बात करते हुए बार बार वही सीन याद आता था. वो दोनो अपनी मर्ज़ी की भी मलिक थी और इस घर की भी और मैं तो यहाँ फ्री में रह रहा था तो हिसाब से मुझे उन दोनो के कुच्छ भी करने पर कोई ऐतराज़ नही होना चाहिए थे. ऐसा तो कुच्छ भी नही था के उन दोनो में से कोई एक मेरी प्रेमिका या बीवी थी जिसकी वजह से मुझे उनकी इस हरकत पर ऐतराज़ हो रहा था पर फिर भी ना जाने क्यूँ, घर के अंदर आते ही मुझे ऐसा लगने लगता था के उन दोनो के सामने से हट जाऊं.

सबसे ज़्यादा परेशान मुझे ये बात करती थी के देवयानी जानती थी के मैने उन दोनो को देखा है इसलिए मैं कोशिश यही करता था के उसके सामने ना आऊँ और अगर आ भी जाऊं तो उससे नज़र ना मिलाउ.

"इतने खामोश क्यूँ हो इशान?" देवयानी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "कोई बात परेशान कर रही है क्या?"

मैने इनकार में गर्दन हिलाई पर जानता था के उसने जान भूझकर ये बात छेड़ी है. अब उसने कह दिया है तो रुक्मणी भी मुझसे ज़रूर वही सवाल करेगी क्यूंकी उसको भी मेरा बर्ताव बदला हुआ लग रहा था. सवालों से बचने का मुझे एक ही तरीका दिखाई दे रहा था और वो ये था के मैं बात को बदल दूँ.

जो एक बात मेरे दिमाग़ में चल रही थी और जिसके बारे में मैं रुक्मणी से पुच्छना भी चाहता था वो ये थी के बंगलो 13 के साइड वाले घरों में कौन रहता है. अगर उस रात कोई बंगलो में कोई आया गया था जब सोनी का खून हुआ था तो बहुत मुमकिन के उन घरों के लोगों में से किसी ने देखा हो. बंगलो 13 के आस पास बना हुआ लॉन और गार्डेन काफ़ी बड़ा था और घर के चारों तरफ एक ऊँची दीवार थी जिस वजह से दोनो तरफ के घर असल बंगलो से थोड़ी दूर पर थे पर ऐसा हो सकता था के शायद उन घर के लोगों में से किसी ने कुच्छ देखा हो. मिश्रा ने मुझे बताया था के वो ऑलरेडी पुच्छ चुका है और कुच्छ हासिल नही हुआ पर फिर भी मैने खुद पता लगाना ठीक समझा. मुसीबत ये थी के मैं रुक्मणी के साथ भी बड़ा अनकंफर्टबल फील कर रहा था इसलिए उससे बात कर नही पाया. पर इस वक़्त जबकि मैं खुद ही बात बदलना चाहता था तो इस वक़्त मैं वो बात उठा सकता था. वैसे भी दोनो बहनो को गॉसिप करने में बड़ा मज़ा आता था तो इस बहाने टॉपिक ऑफ डिस्कशन मेरे खामोश रहने से हटकर बंगलो 13 बन सकता था.

"आपको पता है के बंगलो 13 के आस पास के घरों में कौन रहता है?" मैने सवाल किया तो दोनो बहनो ने पहले तो मुझे हैरत से पुचछा फिर थोड़ी देर बाद रुक्मणी बोली.

"उस लेन में ज़्यादा लोग नही रहते. कुल मिलके 15 घर हैं. बंगलो 7 तक के घरों में तो फॅमिलीस रहती हैं पर फिर 8,9.10,11 खाली पड़े हैं. फिर 12 ऑक्युपाइड है और 14,15 खाली हैं. उस मनहूस बंगलो के आस पास कोई रहना नही चाहता इसलिए लोग घर छ्चोड़ छ्चोड़के चले गये"

भले ही वो लेन खाली पड़ी हो पर मेरे मतलब की बात मैं सुन चुका था. बंगलो 12 में कोई रहता है.

"12 में कौन रहता है?" मैने पुचछा
"वो घर कम होटेल ज़्यादा है. बना भी इस तरीके से हुआ है के उसको होटेल के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सके" रुक्मणी बोली
"मैं समझा नही" मैने कहा

"वो जिस औरत का है वो इस दुनिया में अकेली है. कोई नही है उसके आगे पिछे. उस घर में अकेली रहती है इसलिए उसने किरायेदार रखने शुरू कर दिए. घर को 1 रूम और 2 रूम सेट्स में बाँट रखा है जिन में वो किरायेदार रखती है. इस इलाक़े के सबसे बड़ी औरत है वो" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए कहा.

"बड़ी?" मैने फिर सवाल किया
"मोटी है बहुत. हाढ़ से ज़्यादा. इतना वज़न होगा उस औरत में के अगर किसी वज़न नापने वाली मशीन पर कदम रख दे तो मशीन ही टूट जाए" कहकर दोनो बहें ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.

"वैसे नेचर की काफ़ी अच्छी है वो" हसी रोकते हुए रुक्मणी बोली "वैसे लोग कहते हैं के किराया काफ़ी ज़्यादा लेती है"

"फिलहाल कोई किरायेदार रह रहा है वहाँ?" मैने पुचछा
"पता नही पर मैने सुना था के वो सोनी के मर्डर के बाद उस बेचारी को भी काफ़ी नुकसान हुआ है. जो एक किरायेदार था वो खून होने के 2 दिन बाद ही घर छ्चोड़के भाग गया था और अब कोई वहाँ रहने की हिम्मत नही करता. क्यूँ तुम शिफ्ट होने की सोच रहे हो क्या?" इस बात पर वो दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.

"नही मेरा ऐसा की नेक इरादा नही है" मैने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा "वैसे आप गयी हैं कभी बंगलो 12 में?"
"हाँ मेरा तो पूरा घर देखा हुआ है" रुक्मणी बोली "कभी कभी चली जाती हूँ ऐसे ही बात करने"

"उस घर से बंगलो 13 नज़र आता है?" मैने बात जारी रखते हुए कहा.
"नही वैसे तो नही दिखाई देता क्यूँ दोनो घरों के बीच एक ऊँची दीवार है और तुमने तो देखा ही है के बंगलो 13 का कॉंपाउंड कितना बड़ा है. घर का कॉंपाउंड कम रेस कोर्स ज़्यादा लगता है. पर हां अगर बंगलो 12 की छत पर जाओ तो वहाँ से बंगलो 13 दिखाई देता है. पर तुम ये सब क्यूँ पुच्छ रहे हो" रुक्मणी ने पुचछा

उसके इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैं चुप ही रहा पर थोड़ी देर बाद जवाब देवयानी ने दिया.

"इशान अगर तुम ये जानने की कोशिश कर रहे हो के खून की रात बंगलो 12 से किसी ने कुच्छ देखा था तो तुम्हें झांवी से बात करनी चाहिए"
मुझे उसकी अकल्मंदी पर हैरत हुई. वो फ़ौरन समझ गयी थी के मैं क्या कोशिश कर रहा हू.

"ये झांवी कौन है?" मैने पुचछा
"नौकरानी है" देवयानी सीधा मेरी नज़र से नज़र मिलाते हुए बोली "बंगलो 12 में मैं भी गयी हूँ इशान. उस घर की मालकिन मिसेज़ पराशर इतनी मोटी हैं के अपनी कुर्सी से उठ तक नही पाती तो इस बात का सवाल ही नही के उन्होने कुच्छ देखा हो. हां पर वो नौकरानी झांवी एक पक्की छिनाल है. अगर उसने बंगलो 13 में कुच्छ नही देखा तो समझ जाओ के किसी ने नही देखा"

मैं देवयानी की बात सुनकर मुस्कुरा उठा.

"कहते हैं के कोई बंजारन है वो" रुक्मणी ने डाइनिंग टेबल से उठते हुए कहा.

अगले दिन की सुबह मेरे लिए एक प्यार भरी सुबह थी क्यूंकी मेरी आँख रश्मि की आवाज़ सुनकर खुली.

"हां रश्मि जी" मैं फ़ौरन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गया "कहिए"
"फर्स्ट यू गॉटा स्टॉप कॉलिंग मे रश्मि जी. आंड सेकंड्ली मैं सोच रही थी के आप मिलने आ सकते हैं क्या?" दूसरी तरफ से रश्मि की आवाज़ आई जिसने सुनकर मेरे दिल की धड़कन कई गुना बढ़ गयी. वही सुरीली मधुर आवाज़.

"हाँ बिल्कुल" कहते हुए मैने घड़ी की तरफ नज़र डाली. सुबह के 7 बज रहे थे. 11 बजे मेरी कोर्ट में रेप केस को लेकर हियरिंग थी. 4 घंटे का वक़्त अभी और था मेरे पास.
"मैं अभी एक घंटे में आपके पास पहुँचता हूँ" मैने बिस्तर से उठकर खड़े होते हुए कहा
"ठीक है" रश्मि बोली "कुच्छ खाकर मत आईएगा. ब्रेकफास्ट साथ में करेंगे"
"डील" कहते हुए मैने फोन डिसकनेक्ट किया.

मुझे अपने उपेर हैरत थी के सिर्फ़ एक उसकी आवाज़ सुनकर ही मैं किसी बच्चे की तरह खुश हो रहा था. सुबह जैसे एक अलग ही रोशनी फेला रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैने अभी अभी पूरी दुनिया पर जीत हासिल की हो. जाने क्या था उसकी आवाज़ में पर मेरा दिल जैसे मेरे अपने ही बस में नही था. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैं जल्दी जल्दी उससे मिलने के लिए तैय्यार हो रहा था. आजकल तो जैसे मेरी ज़िंदगी ही बस 2 आवाज़ों में खोकर रह गयी थी. एक वो गाने की आवाज़ जो मैं सुनता था और दूसरी रश्मि की. फरक सिर्फ़ इतना था के गाने की आवाज़ सुनकर मेरी रूह को सुकून मिलता था पर रश्मि की आवाज़ मेरी दिल को बेचैन भी करती थी और सुकून भी देती थी और वो भी एक साथ, एक ही वक़्त पे.

जब उसने अपने होटेल कर दरवाज़ा मेरे लिए मुस्कुराते हुए खोला तो मुझे लगा के मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. उसका वो मुझे देखकर मुस्कुराना और फिर नज़र झुखा लेना मुझे ख़तम कर देने के लिए काफ़ी था. वो मुझे देखकर खुश भी हो रही थी और साथ ही शायद शर्मा भी रही थी और मेरे ख्याल से शरम की वजह मेरी और उसकी आखरी मुलाक़ात थी जब मैने जाने क्यूँ कह दिया था के उसका मुझपर पूरा हक है. जो भी था, बस उस वक़्त तो मैं उसको ऐसे देख रहा था जैसे कोई पतंगा रोशनी को देखता है.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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अगर देखा जाए तो ये एक बहुत ही अजीब बात है. मर्द दुनिया की ज़्यादातर औरतों को हवस की नज़र से देखता है और यही सोचता है के ये नंगी कैसी लगती होगी. उसके लिए एक औरत का जिस्म किसी अम्यूज़्मेंट पार्क से ज़्यादा नही होता. पर वो औरत जिसको वो चाहता है, जिसको वो अपना दिल देता है, उस औरत का जिस्म उसके लिए एक मंदिर बन जाता है. उस औरत की खुशी में उसकी खुद की खुशी हो जाती है और जब वो रोटी है तो साथ साथ मर्द की आँखों से भी आँसू निकल पड़ते हैं. फिर चाहे वो बाहर खुद कितनी भी लड़कियों को देखकर सीटी मारे पर अगर उस लड़की को जिससे वो प्यार करता है कोई और छेड़ दे तो सर पर खून सवार हो जाता है.

"वेल" वो मेरे लिए एक कप में चाय डालते हुए अपने वही ऑस्ट्रेलियन आक्सेंट में बोली "हॅव यू बिन एबल तो फाइंड आउट एनितिंग?"
"ए ग्रेट डील लाइक्ली टू बी ऑफ सर्विस टू उस. आंड यू?" मैने जवाब दिया.

"आइ" उसने सॅटिस्फाइड टोन में जवाब दिया " आइ हॅव डिसकवर्ड दट दा डॅगर विथ दा रिब्बन ईज़ गॉन फ्रॉम दा लाइब्ररी ऑफ माइ हाउस इन मुंबई"
"अन्य आइडिया हू टुक इट अवे?" मैने पुचछा

"ये तो मैं नही जानती" उसने सीरीयस होते हुए कहा "कोशिश की थी मैने पता करने की बट आइ कॉयुल्ड्न्ट फाइंड आउट, ऑल्दो आइ आस्क्ड ऑल दा सर्वेंट्स; पर वो खंजर तो कई महीनो से गायब था"
"आपको लगता है के भूमिका ने लिया होगा?" मैने पुचछा

"कह नही सकती" रश्मि ने कहा "पर एक बात पता चली है मुझे. खून की रात भूमिका घर में तो क्या, मुंबई में ही नही थी"
"अच्छा?" मैने चौंकते हुए कहा "पर इनस्पेक्टर मिश्रा से तो उसने कहा था के जिस रोज़ खून हुआ, उस दिन वो मुंबई में थी"

"सही कहा था उसने" रश्मि ने कहा "उस दिन वो मुंबई में थी पर उस रात नही. मुंबई से रात 8 बजे की फ्लाइट से वो यहाँ आई थी और अगले दिन सुबह ही वापिस मुंबई चली गयी थी"

ये एक बहुत सीरीयस बात थी जो सीधा भूमिका सोनी की खिलाफ जाती थी. वो खून की रात इसी शहेर में थी और मुझे पक्का यकीन था के उसने ये बात मिश्रा को नही बताई थी. सबसे ज़्यादा जो बात उसको शक के घेरे में डालती थी वो ये थी के वो सिर्फ़ एक रात के लिए इस शहेर में आई थी और अगले दिन सुबह ही वापिस चली गयी थी. जितना वक़्त वो यहाँ रही थी, उसी बीच में उसके पति का खून हुआ था.

खून की रात मैं भी बंगलो 13 में गया था और मैने एक औरत और आदमी की परच्छाई को घर में देखा था. ये बात साबित हो चुकी थी के भूमिका उस रात शहेर में ही थी और जो रुमाल मुझे मिला था वो हैदर रहमान की तरफ इशारा करता था. मैने जेब से रुमाल निकालकर रश्मि को दिखाया.

"ये तो उस हैदर का है" बिना रुमाल पर इनिशियल्स एच.आर. देखे वो फ़ौरन बोल पड़ी "वो एकदम इस तरह के रुमाल ही रखता है"
"ये मुझे बंगलो 13 में पड़ा मिला था" मैने कहा.

"तो साबित हो गया फिर. मेरे घर से खंजर गायब है जिसका रिब्बन हमें बंगलो में मिला. भूमिका उस रात शहेर में थी और हैदर का रुमाल भी हमें बंगलो से मिला जो इस बात को साबित करता है के वो घर में गया था जबकि मेरे डॅड से उसका मिलना जुलना बिल्कुल नही था. वो नफ़रत करते थे उससे तो हैदर वहाँ क्या करने गया था? और सबसे ज़रूरी बात ये है इशान के उस रात तुमने 2 लोगों को बंगलो में देखा था. हैदर और भूमिका को" वो एक साँस में बोली.

हमारे पास जो भी था वो सर्कम्स्टॅन्षियल एविडेन्स थी जिसकी बिना पर अदालत में कुच्छ भी साबित कर पाना मुश्किल होता. रश्मि को शायद दिल में ये यकीन हो चुका था के हेडर और भूमिका ने ही उसकी बाप को मारा था और उसके पास जो वजह थी वो काफ़ी मज़बूत भी थी.

पहली तो ये के उसके पिता का खून एक खंजर से हुआ था और उसके अपने घर से एक खंजर गायब था. वही खंजर जिसपर बँधा हुआ रिब्बन हमें बंगलो 13 में पड़ा मिला था.

दूसरा ये के भूमिका खून की रात इसी शहेर में थी जबकि उसने किसी से इस बात का ज़िक्र नही किया था.

और तीसरी और सबसे मज़बूत वजह जो रश्मि मान रही थी वो ये थी के मैने उस रात घर में एक औरत की परच्छाई देखी थी. उसको शायद ये यकीन था के क्यूंकी मैने खुद ही परच्छाई देखी थी तो मैं बड़ी आसानी से अदालत में इस बात को साबित कर दूँगा. पर किसी और को यकीन दिलाने से पहले मुझे खुद को इस बात का यकीन दिलाना था के वो परच्छाई आख़िर थी तो किसकी थी.

अगर मैं ये मान लूँ के वो परच्छाई भूमिका का ही थी तो फिर सवाल ये बनता है के मैने उस रात बंगलो के गेट पर जो लड़की देखी थी वो कौन थी. वो मेरा भ्रम नही हो सकती क्यूंकी उसने मुझसे बात की थी, मुझे बर्तडे विश किया था.

और अगर मैं ये बात मान लूं के खून से पहले जो परच्छाई मैने देखी थी वो उस लड़की की थी जिसे मैने गेट पर देखा था तो दूसरा सवाल ये था के उसके साथ खड़ा वो आदमी कौन था जो उसके साथ लड़ रहा था. अगर हिसाब से देखा जाए तो उस लड़की को एक भूत होना चाहिए जो कि सब कहते हैं और उससे पहले भी लोगों ने घर में सिर्फ़ एक औरत की परच्छाई को देखने का दावा किया है, किसी आदमी को कभी किसी ने नही देखा.

फिलहाल तो मैं खुद ही बुरी तरह से कन्फ्यूज़्ड था, किसी और को क्या समझाता.
"मुझे हमेशा से यकीन था के भूमिका ने ही मेरे पिता को मारा है" मुझे ख्यालों में खोया हुआ देखकर रश्मि ने कहा "पर हैरत मुझे इस बात की है के उसने ये काम खुद किया"

"क्या सच में ऐसा किया उसने?" मैने रश्मि की बात पर सवाल उठाते हुए कहा.
"मुझे समझ नही आता के आपको और क्या सबूत चाहिए" रश्मि ने थोड़ा चिदते हुए कहा "वो खून की रात यहाँ थी, उसने मुंबई वाले घर से वो खंजर उठाया और ........."

"आप इस बात को साबित नही कर सकती" मैने उसकी बात बीच में काट दी. ऐसा करते हुए जाने कैसे मेरी आवाज़ थोड़ी ऊँची हो गयी जो शायद रश्मि को पसंद नही आया. उसके चेहरे पर एक पल के लिए गुस्से का एक एक्सप्रेशन आया और चला गया पर मैने उस बात को नोटीस कर लिया.

"देखो रश्मि" मैने धीरे से उसको समझाते हुए कहा "आइ आम नोट दा लेस युवर फ्रेंड बिकॉज़ आइ कॉंबॅट युवर अगरुएमेंट्स. बट इस वक़्त हमें कहानी का हर पहलू देखना पड़ेगा. क्या हम सच में ये साबित कर सकते हैं के खंजर भूमिका ने ही लिया था?"

"नोबडी आक्च्युयली सॉ इट इन हर पोज़ेशन" वो मेरी बात को समझते हुए बोली "पर मुझे इस बात को पूरा यकीन है के वो खंजर मेरे डॅड के घर छ्चोड़कर चले जाने के बाद भी वहीं लाइब्ररी में था. उसके बाद अगर भूमिका ने वो खंजर नही लिया तो किसने लिया?"

"लेट उस से हैदर रहमान खुद ही वो खंजर ले गया?" मैने कहा
"पर आपने खुद कहा के उस रात घर में आपने 2 लोगों की परच्छाई देखी थी" वो फिर बच्ची की तरह ज़िद करते हुए बोली.

एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ख्याल आया के उसको बता दूँ के मैने उसके बाद एक लड़की को भी बंगलो में देखा था पर फिर मुझे उसको सारी बात बतानी पड़ती. अपने गाना सुनने की आवाज़ से लेकर अदिति की कहानी सब. इसलिए मैने अपना इरादा बदल दिया.

"राशि मैने वहाँ 2 लोगों की परच्छाई देखी थी. एक आदमी और एक औरत" मैने कहा.
"इन प्लैइन इंग्लीश, इशान, दोज़ ऑफ हैदर आंड भूमिका"
"हम इस बात को दावे के साथ नही कह सकते"
"बट सर्कम्स्टॅन्षियल एविडेन्स..............."
"क्या तुम सच में ये चाहती हो के हम सर्कम्स्टॅन्षियल एविडेन्स लेकर कोर्ट जाएँ और हारने का रिस्क लें?" मैने कहा.
"तुम उस भूमिका को इतना बचाने पर क्यूँ आमादा हो?" वो फिर हल्के से गुस्से से बोली.

ये बात मेरे लिए ख़तरनाक थी. अगर उसको ऐसा लगने लगा के मैं भूमिका के चक्कर में हूँ तो मेरे प्यार की नैय्या वहीं डूब जाएगी.


"रश्मि" मैने मुस्कुराते हुए उसको समझाया "इफ़ वी डोंट गिवर हर दा बेनेफिट ऑफ एवेरी डाउट दा कोर्ट विल, शुड शी बी ट्राइड ऑन दिस चार्ज. एक वकील होने के नाते मैं ये मानता हूँ के इस औरत के खिलाफ हमारे पास काफ़ी ठोस सबूत हैं पर तुम्हारा दोस्त होने के नाते मैं कहता हूँ के हम इनकी बिना पर कोर्ट में मर्डर चार्ज साबित नही कर पाएँगे. मैं दोनो व्यूस से इस केस को देख रहा हूँ. हमारे व्यू से भी और भूमिका के वकील के व्यू से भी अगर हमने उसपर केस किया तो. अगर उसने अपने पति को मारा है तो उसके पास कोई वजह होनी चाहिए"

"उसको इतना पैसा मिला तो है....." वो किसी छ्होटे बच्चे के तरह इस अंदाज़ में बोली के मेरा दिल किया के मैं उसका माथा चूम लूँ.

"अगर हम ध्यान से देखनें तो ये बात उसके खिलाफ नही उसके फेवर में जाती है. तुम कई साल से ऑस्ट्रेलिया में थी और तुम्हारे डॅडी घर छ्चोड़ चुके थे. किसी को नही पता था के वो कहाँ है. इस हालत में उनकी बीवी होने के नाते उनका जो कुच्छ भी था वो भूमिका का था. वो ऑलरेडी एक आलीशान घर में रह रही थी और तुम्हारे डॅड के बेशुमार पैसे पर उसको कंप्लीट आक्सेस थी. अगर देखा जाए तो उसको तो आक्च्युयली मिस्टर सोनी की मौत से नुकसान हुआ है. पहले जहाँ इतना सारा पैसा था, अब वहाँ सिर्फ़ इन्षुरेन्स क्लेम का पैसा है उसके पास. मैं मानता हूँ के इन्षुरेन्स क्लेम का पैसा भी बहुत ज़्यादा है पर पहले जितना था उससे कयि गुना कम है. तुम्हें लगता है के जो बेशुमार दौलत उसके पास ऑलरेडी थी, उस सबको वो सिर्फ़ इन्षुरेन्स क्लेम का पैसा हासिल करने के लिए रिस्क करेगी?"

"वो हैदर रहमान से शादी करना चाहती थी" रश्मि अब भी अपनी बात साबित करने में लगी हुई थी. एक पल को मुझे लगा के मैं अपना सर पीट लूँ. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोर्ट में खड़ा बहस कर रहा हूँ.

"देखो इशान" वो मुझे फिर समझते हुए बोली " शी वाज़ ऑलमोस्ट एंगेज्ड टू हैदर बिफोर शी मॅरीड माइ फूलिश फादर. और फिर उसने हैदर को हमारे मुंबई वाले घर में बुलाना भी शुरू कर दिया. अब जबकि वो शादी शुदा नही है और उसके पास इन्षुरेन्स कंपनी से मिली एक बहुत मोटी रकम है, वो आसानी से उस कश्मीरी से शादी कर सकती है"
"क्या हम ये साबित कर सकते हैं के वो सच में इतनी लापरवाह थी?

"हाँ कर सकते हैं" रश्मि फ़ौरन बोली "जिसने मुझे ये बताया के खून की रात भूमिका यहाँ इस शहेर में आई थी वही इंसान ये भी बता सकती है के कैसे भूमिका और हैदर मेरे डॅड के रहते उन्ही के घर में लवबर्ड्स बने हुए थे"
"और कौन है ये बताने वाली?" मैने पुचछा.

"मेरी दोस्त है एक, तहज़ीब" रश्मि ने कहा "तुम चाहो तो मैं तुम्हारी बात करा सकती हूँ उससे"
"एक मिनट" मैने फ़ौरन कहा "तुमने उसको बता तो नही दिया के यू आर ट्राइयिंग टू फाइंड हू किल्ड युवर फादर?"
"आइ हॅव नोट टोल्ड हर डाइरेक्ट्ली" रश्मि ने कहा " बट आस शी ईज़ नो फूल, आइ फॅन्सी शी सस्पेक्ट्स."

"और तुम्हें लगता है के हम उसकी बात कर यकीन कर सकते हैं?" मैने पुचछा "आइ मीन डू योउ कन्सिडर हर एविडेन्स रिलाइयबल?"

रश्मि ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद मैं रश्मि को अपने बंगलो में जाने और फ्रिड्ज में किसी के छुप जाने वाली बात बताने लगा.

" फ्रिड्ज में? वाउ" रश्मि हैरत से बोली "नो वंडर के परच्छाई देखने के बाद जब तुम और डॅड घर के अंदर गये तो वहाँ तुम्हें कोई मिला नही."
"आक्च्युयली रश्मि" मैने कहा "मुझे लगता है के तुम्हारे डॅड जानते थे के घर के अंदर कोई है. अगर घर के अंदर भूमिका और हैदर थे तो मुझे लगता है के तुम्हारे डॅड को इस बात का पता था"

ये रश्मि के लिए एक बिल्कुल नयी बात थी. वो हैरत से मेरी और देखने लगी. ज़ुबान से उसँके कुच्छ नही कहा पर उसकी आँखों में मैने सवाल पढ़ लिया.

"जिस तरह से तुम्हारे डॅड मुझे घर के अंदर ले गये थे उससे लगता था के वो ये बात साबित करने पर तुले हुए थे के घर में कोई नही है. अगर मैं चलने से इनकार कर देता तो शायद वो मुझे घसीट कर अंदर ले जाते क्यूंकी वो बहुत शिद्दत से ये चाहते थे के मैं अंदर आकर अपनी तसल्ली कर लूं के घर में कोई नही है. मैं उस वक़्त उनके लिए एक अजनबी था पर फिर भी वो मुझसे बार बार कहकर घर के अंदर ले गये और फिर ज़बरदस्ती पूरा घर भी दिखाया. जिस तरह से उन्होने मुझे इस बात का यकीन दिलाया के घर में कोई नही है, उससे मुझे लगता है के वो जानते थे के घर में कोई है" मैने अपनी बात ख़तम की.

उसके बात कमरे में खामोशी च्छा गयी. मुझे समझ नही आ रहा था के उस वक़्त रश्मि के दिमाग़ में क्या चल रहा था पर वो खामोश बैठी थी. पता नही उसको मेरी बात से ऐतराज़ था या वो खुद भी मेरी बात से सहमत थी.

"तो अब क्या करना है?" थोड़ी देर बाद वो बोली
"पता नही रश्मि" मैने कहा "पर इस वक़्त मैं खुद भी इतना कन्फ्यूज़्ड हूँ के मेरे ख्याल से हमें हर बात की तफ़तीश करके पहले अपनी तसल्ली कर लेनी चाहिए इससे पहले के हम किसी पर मर्डर का इल्ज़ाम लगाएँ"

उसने सहमति में सर हिलाया.

क्रमशः........................
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Post by rajsharma »

भूत बंगला पार्ट-18

गतान्क से आगे.................

दा गर्ल


"तुम अब मुझसे मिलने क्यूँ नही आते?" वो उस लड़के से कह रही थी.

रात के अंधेरे में वो खामोशी से फोन पर बात कर रही थी. वो जहाँ रहती थी वहाँ उसने किसी को अपनी गुज़री ज़िंदगी के बारे में नही बताया था. उस लड़के के कहने पर उसने सब को यही कहा था के वो गाओं से अकेली ही भागकर आई थी क्यूंकी उसके रिश्तेदार उसको बहुत परेशान करते थे. वो अक्सर रात को उस लड़के के फोन का इंतेज़ार करती थी और जब वो फोन पर उससे बात करती, वो लम्हे उसकी ज़िंदगी के सबसे ख़ुशगवार लम्हे होते थे.

"आजकल काम बहुत ज़्यादा हो गया है. वक़्त ही नही निकल पाता" दूसरी तरफ से उस लड़के की फोन पर आवाज़ आई.

"तुमने तो कहा था के हम साथ रहेंगे और अब यहाँ अकेले अकेले रहना पड़ रहा है. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा" उसने शिकायत करने वाले अंदाज़ में कहा.

"ठीक तो मुझे भी नही लग रहा" लड़के ने कहा "बस कुच्छ और दिनो की परेशानी है उसके बाद सब ठीक हो जाएगा"

उन दोनो को शहेर आए काफ़ी वक़्त हो चुका था. यहाँ आने के बाद से ही वो दोनो अलग अलग रह रहे थे और उनके मिलने का सिलसिला भी काफ़ी कम होता जा रहा था. उसकी अपनी तबीयत भी काफ़ी खराब रहने लगी थी. आधे से ज़्यादा वक़्त तो उसको याद ही नही होता था के वो कहाँ होती है. उसको अंदर से लगने लगा था के उसके अंदर कुच्छ सही नही है क्यूंकी उसको गुस्सा बहुत ज़्यादा आने लगा था.

"कब मिलोगे?" उसने उम्मीद भरी आवाज़ में लड़के से पुचछा.
"कल शाम को मिलते हैं. उसी पार्क में" लड़के ने कहा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट फेलति चली गयी.

फोन चुप चाप नीचे रखकर वो दबे हुए कदमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.

अगले दिन बताए हुए वक़्त पर वो सज धज कर उस लड़के से मिलने पहुँची. वो आज काफ़ी दिन बाद उससे मिलने आई थी इसलिए आने से पहले 10 बार उसने अपने आपको शीशे में देखा था और जब उसको यकीन हो गया के वो अच्छी लग रही है, तब कहीं जाकर उसने घर से बाहर कदम निकाला.

पार्क के एक कोने में वो बैठी रो रही थी. लड़के ने शाम को मिलने का वादा किया था और उस वक़्त रात के 9 बज चुके थे पर वो नही आया था. उसको गुस्सा भी आ रहा था और रोना भी. वो कितनी उम्मीद के साथ इतना सज संवर कर उससे मिलने आई थी. वो चाहती थी के इतने दिन बाद जब वो उससे मिले तो दोनो बैठकर घंटो तक बातें करते रहें, जैसे कि वो अक्सर तब करते थे जब गाओं में मिलते थे. पर जबसे वो शहेर आए थे तब से वो बदल गया था. कभी कभी रात को फोन करता था और आज पता नही कितने दिन बाद उसने मिलने का वादा किया था जो निभाया नही.

रात के 10 बजे जब उसको यकीन हो गया के वो नही आएगा तो उसने वापिस घर जाने का फ़ैसला किया. तभी एक तरफ हलचल से नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक आदमी खड़ा था. एक पल के लिए तो वो खुश हो गयी के शायद देर से ही सही पर वो उससे मिलने आ गया पर जब वो आदमी अंधेरे से निकलकर थोड़ी रोशनी में आया तो उसने देखा के वो कोई और था.

"चलती है क्या?" उस आदमी ने पुचछा
उसने जवाब नही दिया और उठकर पार्क के गेट की तरफ चल पड़ी. उसको जाता देखकर वो आदमी उसके पिछे पिछे आया.

"आए बोल ना. कितना लेगी?"
उस आदमी ने कहा तो भी उसके कोई जवाब नही दिया और खामोशी से कदम बढ़ती रही पर वो आदमी भी काफ़ी ढीठ था. पीछे पीछे आता रहा.
"अरे बता ना साली. नखरा क्या करती है. कहीं चलने का नही है तो यहीं पार्क में काम निपटा लेते हैं"

उसका दिमाग़ गुस्से में भन्ना रहा था. एक तो वो पहले से ही भड़की हुई थी के 5 घंटे इंतेज़ार करने के बाद भी वो लड़का उससे मिलने नही आया था और अब ये आदमी परेशान कर रहा था. उसका दिल तो कर रहा था के घूमकर उस आदमी का सर फोड़ दे पर बोली कुच्छ नही. बस गेट की तरफ कदम बढ़ाती रही.

"अरे रुक ना" कहते हुए उस आदमी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया.
और जैसे ठीक उसी पल क़यामत आ गयी. उसका दिमाग़ गुस्से के मारे फॅट पड़ा और उसने घूमकर उस आदमी की तरफ देखा. दोनो की नज़रें मिली तो उस आदमी की आँखे हैरत से खुल गयी.

"आबे तेरी मा की" कहते हुए उसने उसका फ़ौरन हाथ छ्चोड़ दिया और पिछे को हो गया.

पर तब तक उसका गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच चुका था. वो किसी घायल शेरनी की तरफ उसकी तरफ लपकी. इस अचानक हुए हमले से वो आदमी लड़खदाया और नीचे ज़मीन पर गिरते चला गया. उसके गिरते ही वो उसके सीने पर चढ़ बैठी. पास ही पड़ा एक पथर अपने हाथ में उठाया और वार सीधा उस आदमी के सर पर किया. पहला वार होने के बाद उसका हाथ रुका नही और एक के बाद एक वार करती वो पथर से उस आदमी का सर फोड़ती चली गयी.
कोई एक घंटे बाद जब वो अपने घर के करीब पहुँची तो उसकी हालत खराब थी. बाल बिखरे हुए थे और हाथो में उस आदमी का खून सूख चुका था.

"ये क्या हाल बना रखा है तूने? और ये क्या कपड़े पहेन रखे हैं?" गेट के पास उसे अपनी पहचान का एक लड़का दिखाई दिया जिसने उसको हैरत से देखते हुए सवाल किया.

उसने लड़के के सवाल का कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.

इशान की कहानी................................


मैं और मिश्रा मेरे ऑफीस में बैठे लंच कर रहे थे.
"तेरे बताने के बाद मैं बंगलो 13 गया था आंड आइ थिंक यू आर राइट" मिश्रा ने कहा
"तूने फ्रिड्ज देखा?" मैने पुचछा
"हां देखा और मुझे लगता है के तेरा अंदाज़ा सही है. अगर ट्रेस निकाल दी जाएँ तो उसमें एक क्या 2 आदमी समा सकते हैं" मिश्रा बोला
"और कुछ पता चला?" मैने पुचछा
"नही यार" मिश्रा ने कहा "और सच बोलूं तो अब मैं कोई ख़ास कोशिश कर भी नही रहा. अफीशियली तो ये केस मेरे हाथ से जा चुका है"
उसके बाद हम दोनो खामोशी से खाना खाते रहे. प्रिया अपनी टेबल पर बैठी डिन्नर कर रही थी. तभी मुझे रश्मि के साथ हुई अपनी मीटिंग का ध्यान आया और मुझे लगा के मुझे इस बारे में मिश्रा को बता देना चाहिए.
"मैं रश्मि से मिला था" मैने मिश्रा से कहा
"वो यहीं है अभी?" वो हैरत से बोला
"हां यहीं है और कुच्छ बताया उसने मुझे जो मुझे लगा के तुझको पता होना चाहिए" कहते हुए मैने उसको भूमिका के खून की रात यहीं इसी शहेर में होने की बात बताई.
"पर मुझे तो उसने कहा था के वो उस दिन मुंबई में थी" मिश्रा बोला
"एग्ज़ॅक्ट्ली" मैने कहा "दिन में वो वहीं थी पर रात में यहाँ थी और अगले दिन फिर वहीं थी"
थोड़ी देर तक मिश्रा खामोश रहा.
"वैसे एक बात सच कहीं यार तो मुझे नही लगता के उसने अपने पति को मारा है" थोड़ी देर बाद वो बोला
"लगता तो मुझे भी नही मेरे भाई पर फिर भी तुझे बताना ज़रूरी समझा" मैने कहा
"और अदिति के बारे में कुच्छ पता चला तुझे अपनी किताब के लिए?" मिश्रा ने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही. उसके बारे में हर कोई प्रेटी मच उतना ही जनता है जितना पोलीस फाइल्स में लिखा है. मैं तो सोच रहा था के ये आइडिया ड्रॉप ही कर दूँ" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"अगर तू चाहे तो मैं उसके पति के साथ तेरी मीटिंग फिक्स करा सकता हूँ. शायद वहाँ से कुच्छ इन्फ़ॉर्मेशन हासिल हो सके" मिश्रा ने कहा
"वो ज़्यादा से ज़्यादा क्या कहेगा? आइ आम श्योर के वो उसकी बुराई ही करेगा. बताएगा के क्यूँ उसने अपनी बीवी का खून कर दिया और कैसे वो कितनी बुरी थी"
"फिर भी एक बार कोशिश करके देख ले" मिश्रा ने कहा "कुच्छ भी ना पता हो इससे बेटर तो ये है के कुच्छ तो पता हो"
"बात तो सही है. मीटिंग कब अरेंज करा सकता है?" मैने पुचछा
"जल्दी ही करने की कोशिश करूँगा. वैसे ये रश्मि का क्या चक्कर है?"
"कोई चक्कर नही है" मैने कहा
"तू कुच्छ ज़्यादा ही नही मिल रहा उससे आजकल?"
"मुश्किल से 2-3 बार मिला हूँ यार" मैने कहा पर मैं जानता था के मेरे चहेरे को पढ़कर मिश्रा समझ जाएगा के माजरा क्या है और उसने एग्ज़ॅक्ट्ली वही किया.
"माजरा कुच्छ और ही है मेरे भाई" उसने कहा "बस ज़रा संभलकर रहना"

"ये रश्मि कौन है?" मिश्रा के जाने के बाद प्रिया ने मुझसे पुचछा
"वो एक मर्डर हुआ था ना मेरी कॉलोनी में, सोनी मर्डर केस, जो मरा था उसकी बेटी है" मैने कहा

"आपको कैसे जानती है?" उसने पुचछा
"उसके बाप के खून के बाद ही मिली थी. चाहती है के मैं उसके बाप के खूनी को ढूँढने में उसकी मदद करूँ" मैने जवाब दिया
"और आप ऐसा कर रहे हो?"

"शायद" मैने टालने वाले अंदाज़ में जवाब दिया
"आप वकील से जासूस कब बन गये"
"जासूस नही बना वकील ही हूँ इसलिए तो देख रहा हूँ के मेरे लिए शायद एक नया क्लाइंट बन जाए" मैने हॅस्कर कहा.

"नया क्लाइंट या नयी क्लाइंट?" वो भी वैसे ही हस्ते हुए बोली
"एक ही बात है यार. क्लाइंट तो है" मैने कहा
"दिखने में कैसी है?" उसने पुचा
"क्या मतलब?"
"मतलब के अच्छी दिखती है या बुरी दिखती है, लड़को को जो पसंद है वो उसमें है के नही"

जाने क्यूँ पर प्रिया का रश्मि के बारे में यूँ बात करना मुझे पसंद सा नही आया.

"तू इतना क्यूँ पुच्छ रही है?" मैने कहा
"ऐसे ही. जस्ट क्यूरियस के वो क्या है जो लड़के को पागल कर देती है किसी लड़की के लिए" उसने कहा "क्यूंकी मेरे लिए तो आज तक कोई पागल नही हुआ"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा.

"देख लड़के सबसे पहले तो सुंदरता के चक्कर में ही पड़ते हैं. खूबसूरत चेहरा देखते ही लट्तू हो जाते हैं पर बाद में लड़की का नेचर है जिससे वो आक्चुयल में प्यार करते हैं" मैने कहा.

"सर अगर ऐसी बात है ना तो वो शादी में वो लड़का मेरे पिछे आता पर वो मेरी उस कज़िन के पिछे गया जो मेरे सामने कुच्छ नही थी" वो थोड़ा गुस्से में बोली.
"हां तेरी वो बात अधूरी रह गयी थी" मुझे याद आया "अब बता के हुआ क्या था?"

"शादी थी. एक लड़का दिखा. देखने में अच्छा था. उससे पहले मैं और मेरी कज़िन इस बारे में ही बात कर रहे थे के हमें भी कोई लड़का ढूँढके शादी कर लेनी चाहिए. उस लड़के को देखकर मेरी कज़िन ने मुझसे कहा के देख मैं तुझे दिखाती हूँ के लड़के को कैसे फसाते हैं. फिर ना जाने क्या सोचकर मैने कह दिया के चल दोनो शर्त लगते हैं के कौन फसा पाती है और वो मान गयी. मुझे क्या पता था के मेरा तो नंबर ही नही आएगा. ट्राइ तक करने का चान्स नही मिला मुझे"

"क्यूँ ऐसा क्या हुआ?" मैने पुचछा.
"उसने जाकर उस लड़के से बात की और उसके बाद तो वो लड़का ऐसे खुश हो गया जैसे उसको भगवान के दर्शन हो गये हों. मैने जाकर बात करने की कोशिश की तो मुझे तो उसने देखा तक नही, बस मेरी कज़िन के पिछे पिछे था"

"ऐसा क्या कह दिया उसको तेरी कज़िन ने?" मैने पुचछा
"आइ थिंक उसने क्या कहा डोएसन्थ मॅटर. उसने जो किया उसकी वजह से वो लड़का उसके आगे पिछे था" वो बोली.

"और क्या किया उसने?" मैने पुचछा तो वो शर्मा गयी.
"कैसे बताऊं. छ्चोड़िए जाने दीजिए. बस कुच्छ किया था उसने" प्रिया बात टालते हुए बोली.

"अरे बता ना" मैने ज़ोर डाला तो वो फिर शर्मा गयी.
"अरे मुझसे क्या शर्मा रही है. चल बता" मैने फिर ज़ोर डाला.

"सर वो उसको बात करने के बहाने एक तरफ ले गयी. मैं भी पिछे पिछे चल दी. उसको पता नही था के मैं देख रही हूँ. वो उस लड़के को छत पर ले गयी और एक कोने में खड़ी होकर बात करने लगी. जाने क्या बात कर रहे थे पर उसकी बात सुनकर वो लड़का काफ़ी खुश तो लग रहा था. मैं च्छुपकर खड़ी हुई दोनो को देख रही थी और उसके बाद तो मेरी कज़िन ने जो हरकत की, वो देखकर तो मेरी आँखें खुली ही रह गयी"

"अच्छा?" मैने पुचछा "ऐसा क्या किया उसने?"

"सर बात करते करते वो अचानक उस लड़के के करीब गयी और उसने अपना हाथ उस लड़के के सीधा वहाँ पर रख दिया" प्रिया अपनी आवाज़ नीची करके ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.

"कहाँ रख दिया?" मैने भी उसी अंदाज़ में पुचछा.
"वहाँ पे सिर" उसने मेरी पेंट की तरफ आँख से इशारा करते हुए कहा.
"कहाँ?" मैने उसको च्छेदते हुए कहा.
"वहाँ पे सर. वो लड़को वाली जगह पे" उसने फिर दोबारा मेरी पेंट की तरफ इशारा किया.
"यहाँ पे?" मैने अपने लंड पर हाथ रखा.

"हां" वो जल्दी से बोली "और बस. वो लड़का तो जैसे उसका भक्त हो गया. और एक घंटे बाद तो मुझे दोनो दिखाई ही नही दिए कहीं. उसके बाद 2 दिन तक सर वो लड़का बस मेरी कज़िन के आगे पिछे ही घूमता रहा"

"वो इसलिए पगली क्यूंकी तेरी कज़िन उस लड़के को सीधा फाइनल स्टेज पर ले आई" मैने कहा.
"फाइनल स्टेज?" वो बोली
"हां मतलब लड़के लड़की के बीच में एंड में जो होता है. जब उस लड़के ने देखा के तेरी कज़िन सीधा मतलब की बात कर रही है तो वो उसके पिछे पिछे हो लिया" मैने कहा तो वो गहरी सोच में पड़ गयी.
"क्या सोच रही है?" मैने पुचछा.
"मुझे तो ये सब कुच्छ भी नही पता सर" वो बोली के तभी मेरा फोन बजने लगा.

फोन रश्मि का था. वो शाम को मिलना चाहती थी. मैने हाँ कहके फोन रख दिया. तब तक प्रिया वापिस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ चुकी थी. फोन रखके मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराया.

"ऐसे क्या देख रहे हैं?" उसने पुचछा
"सोच रहा के मेरे अगले बर्तडे तक एक साल कैसे कटेगा?" मैने हस्ते हुए कहा.
"मतलब?"
"मतलब ये के इस बर्तडे पेर गिफ्ट में जो चीज़ दिखाई दी है, अगले बर्तडे पर भी वही देखने की तमन्ना है"

मैने कहा तो वो शरम से लाल हो गयी.

"आहमेद साहब" उस शाम जब मैं घर जा रहा था तो मेरा फोन बजा. आवाज़ अंजान थी.

"जी हां बोल रहा हूँ. आप?" मैने पुचछा.
"हमारा नाम वीरेंदर ठकराल है" उस आदमी ने अपना नाम बताया तो मैं फ़ौरन उसको पहचान गया. वो उस लड़के का बाप था जिसपर रेप केस का इल्ज़ाम था.

"कहिए ठकराल साहब" मैने पुचछा.
"कहने का काम तो आपका है वकील साहब. कहते तो आप हैं अदालत में. हम तो बस सुनने वालो में से हैं" दूसरी तरफ से आवाज़ आई.

उसकी इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था. मैं जानता था के वो मुझ पर ताना मार रहा है पर मैं जवाब में क्या कहूँ ये मुझे समझ नही आया.

"जी मैं समझा नही" मैं इतना ही कह पाया.

"तो कोई बात नही हम समझा देते हैं. आपको ये केस हारना है वाकई साहब" मुझे उस आदमी की साफ बात सुनकर हैरानी हुई. उसका कोई किराए का गुंडा ये कहता तो कोई बात नही थी पर उसने खुद मुझे ये बात कही, इसको कोर्ट में मैं उसके अगेन्स्ट उसे कर सकता था और ये शायद वो खुद भी जानता था, पर फिर भी कह रहा था.

"देखिए......." मैने कहना शुरू ही किया था के उसने मेरी बात काट दी.
"फोन पर तो कुच्छ भी नही दिखता आहमेद जी" उसने कहा "आप एक काम कीजिए हमारे घर आ जाइए, फिर कुच्छ आप दिखाना और कुच्छ हम भी दिखा देंगे"

मैं जानता था के वो मुझे घर बुलाके मुझसे क्या बात करेगा इसलिए मैने इनकार करना ही बेहतर समझा.
"मुझे नही लगता के ये ठीक रहेगा" मैने कहा.

"तो कोई बात नही. हम आपके घर आ जाते हैं. हम जानते हैं के आप कहाँ रहते हैं. वो क्या है के हम ये केस जल्दी से जल्दी निपटना चाहते हैं क्यूंकी लड़के को पढ़ने के लिए अमेरिका भेजना है और इस केस के चलते हम ऐसा कर नही पा रहे"

उसकी बात सुनकर मैं फिर हैरत में पड़ गया. आख़िर क्या चाहता है? मुझसे यूँ खुले आम मिलना कोर्ट में बिल्कुल उसके अगेन्स्ट जाता है और फिर भी मुझसे मिलने की ये कोशिश? और जिस अंदाज़ में वो कह रहा था, मैं जानता था के वो सच में मुझसे मिलने आ भी जाएगा.

"नही आपको आने की ज़रूरत नही" मैने कहा "मैं आ जाऊँगा. आप टाइम बता दीजिए"
उसने मुझे अगले दिन का टाइम देकर फोन रख दिया.

वीरेंदर ठकराल शहेर का बहुत बड़ा आदमी था. एक बहुत ही अमीर बिज़्नेस मॅन. पॉलिटिक्स में इन्वॉल्व्ड था. जब मैने ये रेप केस लिया था तो हर किसी ने मुझे कहा था के ठकराल के साथ पंगा लेने का नतीजा ये होगा के मेरी भी लाश कहीं पड़ी मिलेगी जो के अब तक हुआ नही था. केस लेने के बाद मुझे ये अड्वाइस दी गयी थी के मैं केस हारकर ठकराल के साथ हाथ मिला लूँ क्यूंकी वो मेरे काफ़ी काम आ सकता है. ये बात खुद भी मेरे दिमाग़ में कई बार आई थी और अब भी मेरे दिमाग़ में कहीं ऐसा करने की ख्वाहिश थी.

क्रमशः................................
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

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