मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

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Re: मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

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मुम्बई के सफ़र की यादगार रात-5

लेखक : सन्दीप शर्मा

उस वक्त वो क्या गजब की लग रही थी ! मैं शब्दों में नहीं बता सकता पर उस वक्त मैंने उसे कुछ लाइनें कही थी जो आज भी जहन वैसी ही ताजा हैं:

कुदरत का कमाल है, या जन्नत की हूर है तू,

चमकते हीरों के बीच, में जैसे कोहेनूर है तू !

दीवाना हो रहा हूँ, तेरे हुस्न में खोकर मैं,

इतनी पास होके भी क्यों मुझसे दूर है तू !

मेरा शेर सुन कर वो बड़े प्यार से मेरे पास चली आई और मुझे होंठों पर चूम लिया और बोली- झूठी तारीफ मत करो !

मैंने कहा- मैं झूठ नहीं बोलता, जो सच है तो सच है।

मेरी बात सुन कर वो शरमा गई और बोली- मुझे भी लेटना है, कहाँ लेटूँ?

मैंने आँखों से मेरे दायें कंधे की तरफ इशारा करते हुए कहा- यहाँ पर !

तो वो बिस्तर पर मेरे दाईं तरफ आई और मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई। मैंने कुछ कहने की कोशिश की तो उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रख दी और...

और बोली- चुप रहो, थोड़ी देर आराम करने दो, तुम टीवी देखो और मुझे सोने दो।

उसकी बात सुनकर मैंने उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा और उसके बाल सहलाते हुए फिल्म देखने लगा। फिल्म खत्म होने में आधा घंटा बाकी था और खाने के लिए भी होटल वालो ने 40-45 मिनट का वक्त बताया था तो मैं शांति से साक्षी को कंधे पर सुला कर फिल्म देखने लगा। मैं जब फिल्म देख रहा था तो उसके बीच में ही साक्षी को नींद आ गई थी और जब फिल्म खत्म होने को आई तो उसी वक्त खाना भी आ गया।

मैंने धीरे से साक्षी को मेरे कंधे से नीचे उतारा उसे चादर औढ़ा कर दरवाजा खोल कर खाना लिया और उसे 20 का नोट देकर बाहर से ही चलता कर दिया।

दरवाजे पर "डू नॉट डिस्टर्ब " का तमगा लगाया और अंदर आ गया।

मैं अंदर आया तो मैंने देखा कि साक्षी जाग गई थी और नींद में बड़ी प्यारी लग रही थी। उसने बाहें फैला कर मुझे गले लगाने के लिए बुलाया।

मैं उसके पास गया, उसको बाँहों में भर कर उसके सर को चूमा और बोला- चलो खाना खा लो।

वो लेटी रही और मैं खाना निकालने लगा तो वो बोली- संदीप, मुझे कुछ बात करनी है।

मैंने बिना उसकी तरफ देखे कहा- शोना, रात भर तुम मेरे साथ हो, फिर क्यों चिंता कर रही हो ! पहले कुछ खा लो फिर बात कर लेना।

वो फिर कुछ बोलने ही वाली थी कि मैंने पास जाकर उसके होंठों को चूम लिया और उसकी आवाज वहीं रुक गई।

मैंने कहा- पहले खाना उसके बाद दूसरी बात !

वो बेचारी हार कर खाना खाने के लिए उठी और फिर हम दोनों ने साथ में खाना खाया, साक्षी ने खाना खाते हुए मुझे अपने हाथ से भी खाना खिलाया और मैंने उसे !

फिर हम दोनों ने गुलाबजामुन खाए, मुझे साक्षी ने बाद में बताया कि उसे भी गुलाबजामुन बहुत पसंद हैं।

जब हम खा चुके तो मैं वापस लेट गया और साक्षी को भी मैंने साथ लेटा लिया।

मेरे कंधे पर सर रखने के बाद साक्षी बोली- संदीप, मुझे तुम से कुछ कहना है।

मैंने कहा- रहने दो, ऐसे ही लेटो, अच्छा लग रहा है।

मेरी बात सुन कर उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे, वो बोली- प्लीज सुन लो..

मैं उठ कर बैठ गया, मैंने कहा- ठीक है कहो क्या कहना है?

वो बोली- नहीं, तुम लेट जाओ, फिर तुम्हारे कंधे पर सर रख कर ही बताऊँगी।

मैंने कहा- ठीक है बाबा जैसा तुम कहो !

और मैं लेट गया, उसने मेरे कंधे पर सर रखा मुझे पकड़ लिया और बोली- संदीप, मैं कॉल गर्ल हूँ !

यह मेरे लिए एक और झटका था क्योंकि इसके पहले मेरे हिसाब से कॉलगर्ल के मायने सिर्फ पैसे की भूखी लड़कियाँ होती थी और यहाँ तो यह मुझ पर ही खर्च किए जा रही थी और मुझसे मिलने की इसे कोई उम्मीद भी नहीं थी।

मैंने कहा- साक्षी, मजाक करो, लेकिन ऐसे मजाक नहीं जो हद से बाहर हो।

तो वो बोली- मेरे आँसू तुम्हें मजाक लग रहे हैं?

मैंने कहा- सॉरी शोना, पर मुझे यकीन नहीं हो पा रहा है कि कोई कॉल गर्ल इस तरह से प्यार कर सकती है।

वो बोली- संदीप, कॉल गर्ल्स भी प्यार की भूखी होती है जो उन्हें पैसे के बदले कभी नहीं मिल पाता।

उसका जवाब तो ठीक था पर संतोषजनक नहीं, मैंने कहा- आय एम् सॉरी ! पर मुझ में तुमने ऐसा क्या देख लिया कि मुझसे प्यार करो? और मैं बहुत अच्छा भी नहीं दिखता।

वो बोली- प्यार करने के लिए अच्छा दिखना जरूरी नहीं होता, अच्छा इंसान होना जरूरी होता है।

मैंने कहा- पर मैंने तो ऐसा कुछ अच्छा भी नहीं किया?

वो बोली- वो तो मैंने देखा है कि क्या किया और क्या नहीं !

मैंने पूछा- मैंने क्या किया?

तो बोली- मैंने देखा था मुझे खाने के लिए तुमने प्यार से मनाया, मेरे झड़ जाने पर बस में कोई जबरदस्ती नहीं की, तुमने इस बात का बस में पूरा ध्यान रखा कि मेरे बारे में कोई गलत न सोचे और रात में खुद का कम्बल मुझे दे दिया ताकि मुझे ठण्ड न लगे।

मैंने कहा- कोई भी होता तो यही करता।

वो बोली- नहीं संदीप, कोई ऐसा नहीं करता, मैं जानती हूँ मर्दों के लिए औरत सिर्फ एक सामान होती है जिसे इस्तेमाल किया और फैंक दिया।

यह बोल कर वो रोने लगी और मैंने उसे पलट कर अपनी बाँहों में भर लिया और उसके बाद उसके आंसुओं को होंठों से पीने लगा और उसे गले लगा लिया।

उसने भी मुझे जोर से गले लगा लिया, कुछ मिनट तक हमें ऐसे ही रहे फिर उसने मेरे होंठों पर चूमना शुरू किया और मैंने भी उसके चुम्बनों का जवाब देना शुरू कर दिया।

इस बीच कब मेरा लोअर और अंडरवियर उतरा, पता ही नहीं चला, इसी बीच साक्षी ने भी पैंटी उतार दी थी और हम दोनों की बीच में सिर्फ एक ओवरकोट ही था जो खुला हुआ ही था।

मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की तो साक्षी बोली- कंडोम तो लगा लो?

मैंने कहा- मैं नहीं चाहता, मुझे तुम पर भरोसा है। और मैं बाहर निकाल लूँगा।

तो वो बोली- मुझे चाहिए, मुझे खुद पर भरोसा नहीं है।

उसने इतनी प्यार से यह बात कही थी, मैं उसकी बात टाल नहीं सका, मैंने लैपटॉप बैग में से मूड्स सुप्रीम का पैकेट निकला तो उसे मेरे हाथ से पैकेट ले लिया, उसमें से एक कंडोम निकाला और अपने नर्म हाथों से मेरे तने हुए लण्ड पर पूरा कंडोम चढ़ा दिया।

उसके बाद मुझे अपने इशारे से वो नीचे की तरफ ले गई और मेरे लण्ड को अपने हाथ से रास्ता बताते हुए अपनी चिकनी चूत में डलवा लिया।

लंड को डलवाने के बाद उसने अपनी दोनों टाँगें मेरी पीठ पर लपेट ली और मुझे होठो पर चूमने लगी।

अब मैं ऊपर से उसे चोद रहा था और वो नीचे से धक्के मार मार कर चुदवा रही थी, साथ ही मेरे होंठ भी चूसते जा रही थी।

इस बार हम दोनों ही एक दूसरे के होंठों को मानो रगड़ रहे थे और इसमें हम दोनों के चेहरे की स्थिति भी बदल रही थी, कभी इस तरफ से तो कभी उस तरफ से दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे और इस चूमने मे हम दोनों की नाक एक दूसरे की नाक से रगड़ खा रही थी जो मुझे अपने तौर पर बहुत अच्छी लग रही थी।

अभी भी मैंने मेरी टीशर्ट पहनी हुई थी और साक्षी ने भी उसके ऊपर के कपड़े पहने हुए ही थे जिन्हें निकालना भी उतना ही जरूरी लग रहा था जितना नीचे वाले।

तो साक्षी ने मेरी टीशर्ट निकाल दी और मैंने साक्षी को थोड़ा सा ऊपर उठा कर उसके कपड़े भी पूरी तरह से निकाल दिये। अब उसके बदन पर सिर्फ उसकी गुलाबी ब्रा थी जो मैंने जानबूझ कर नहीं उतारी और मैंने उसे चोदना शुरू कर दिया। मैं ऊपर से धक्के लगा रहा था वो नीचे से धक्के लगा रही थी।

इसी बीच में कभी कभी मैं उसकी चूत को रगड़ रगड़ कर भी चोद रहा था जो उसे बहुत अच्छा लग रहा था। साथ ही हम दोनों का होंठों से होंठों को टकराना और नाक से नाक का रगड़ना तो जारी ही था।

और मैं एक हाथ से उसकी चूची को भी दबाते जा रहा था। हम दोनों एक दूसरे को इसी तरह से काफी देर तक चोदते रहे पर हम दोनों ने ही अपनी जगह बदलने की इच्छा नहीं की।

बीच बीच में मैं एक दो मिनट के लिए रुक कर उसके सीने पर आराम भी कर लेता था और फिर से उसे चूमते हुए धक्के लगाना शुरू कर देता था। और वो मेरे हर धक्के का जवाब धक्के से ही देती थी।

हम दोनों एक दूसरे के साथ इसी तरह काफी देर तक प्यार की कुश्ती लड़ते रहे और फिर मैं झड़ने की कगार पर आया तो मैंने तेज धक्के लगाने शुरू कर दिए, उसकी गर्दन में खुद को छुपा लिया और उसकी गर्दन और कंधों पर चूमने लगा।

साक्षी ने भी मेरा पूरा साथ दिया और कुछ धक्के मार कर पूरी तरह से झड़ गया।

मैं दो बार तो पहले ही झड़ चुका था तो इस बार मैं पूरी तरह से थक चुका था और झड़ने के बाद मैं साक्षी के ऊपर ही थक कर लेट गया। मुझे कब नींद आ गई, पता भी नहीं चला।

और मुझे यह तब पता चला कि मैं सो गया था जब साक्षी ने मेरे लण्ड को चूस चूस कर मुझे जगाया।

मैंने उससे पूछा- मैं कितनी देर तक सोता रहा?

तो वो बोली- करीब एक घण्टा !

मैं कुछ कहता, उससे पहले ही उसने इशारे से मुझे चुप करा दिया और...

बाद की कहानी अगली कड़ी में !

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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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मुम्बई के सफ़र की यादगार रात-6

लेखक : सन्दीप शर्मा

मैंने उससे पूछा- मैं कितनी देर तक सोता रहा? तो वो बोली करीब एक घण्टा !

मैं कुछ कहता उसके पहले ही उसने इशारे से मुझे चुप करा दिया, उसने मुझे पानी दिया और मेरे सामने घुटने के बल बैठ कर मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। जब मेरा लण्ड भी पूरी तरह से जाग गया और मैं भी, तो उसने एक कंडोम मेरे लण्ड पर लगाया, फिर आकर चूत को मेरे लण्ड पर टिकाकर एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उसने अपनी चूत में घुसा लिया, मेरे लण्ड पर बैठ कर झूमने लगी और अपनी चूत के अंदर-बाहर करने लगी।

वो खुद ही ब्रा भी उतार चुकी थी तो उसके बड़े बड़े स्तन हिल रहे थे जिन्हें पकड़ कर एक स्तन को मैंने मुँह में भर लिया और चूसने लगा तथा दूसरे स्तन को दबाने लगा। जब एक स्तन चूस कर मन भर जाता तो दूसरे स्तन को चूसना शुरू कर देता।

उस वक्त वो आह जानू ! बहुत अच्छा लगा जानू ! जैसे शब्द बार बार कह रही थी।

वो काफी देर तक इसी तरह से मेरे ऊपर आकर खुद को चुदवाती रही और मैं नीचे से उसके दूध पीता रहा। अचानक उसने अपनी गति तेज कर दी तो मुझे लगा कि अब यह झड़ने वाली है और उसने मेरा मुँह उसके स्तनों से अलग हटा कर उसके होंठों से लगा लिया और मुझे जोर जोर से चूमने लगी। मैं भी उसके चुम्बनों का जवाब दे रहा था और उसके धक्कों में उसका साथ दे रहा था कि अचानक वो पूरी तेजी से झड़ गई।

झड़ने के बाद वो थक कर मेरे ऊपर लेट गई और मैं उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। उसने कुछ मिनटों में ही मुझे फिर से चूमना शुरू कर दिया, जिसका मतलब था कि वो फिर से तैयार है।

मैं तो एक नींद ले ही चुका था तो मेरी ताकत तो वापस आ ही गई थी पूरी तरह से, पर इस बार मेरा मन उसकी गाण्ड मारने का था तो मैंने उसे कहा- साक्षी, अब आगे वाली रानी की तो काफी सेवा कर चुका, थोड़ी पीछे की महरानी की भी सेवा करने का मन है।

तो वो बिना कुछ बोले पलट कर घोड़ी बन गई और मैं उसके पीछे आ गया। पीछे आने के बाद मैंने उसकी गाण्ड को हाथों से थोड़ा सा खोला और कंडोम समेत पूरा लण्ड धीरे धीरे उसकी गाण्ड में डाल दिया।

पूरे लण्ड के अंदर जाने के बाद भी उसके मुँह से सिर्फ एक हल्की सी आह ही निकली, वो बोली- सॉरी जानू, यह भी काफ़ी खुल चुकी है...

मैंने कहा- कोई बात नहीं जान ! मुझे ऐसी ही चाहिए जिससे पूरा मजा मिल सके और तुम्हें भी तकलीफ ना हो।

उसकी गाण्ड में लण्ड डाल कर मैंने साक्षी की गाण्ड मारना शुरू कर दिया, मैं उसे धक्के मार रहा था और वो भी मेरे हर धक्के का जवाब धक्के से ही दे रही थी, साथ ही उसने अपनी गाण्ड को भी सिकोड़ लिया था जिससे मुझे और मजा आ रहा था।

गाण्ड मारते हुए मैंने एक हाथ से उसकी चूत को दबा रखा था एक हाथ से उसके स्तन को मसल रहा था और उसके मुँह से सिर्फ आह आह जैसे शब्द निकल रहे थे।

मैं इसी तरह से कुछ मिनट तक उसकी गाण्ड मारता रहा और वो झड़ने की कगार पर आ गई, वो बोली- संदीप, मेरा होने वाला है।

मैं बोला- हो जाने दो जानू !

और उसको और जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए मैंने।

मैंने 10-12 धक्के और मारे होंगे कि वो झड़ गई और इस बार उसकी चूत से एक पिचकारी सी छूट गई जो बिस्तर को गीला कर गई।

मेरा भी बस होने ही वाला था तो मैंने उसकी गाण्ड को दोनों हाथों से पकड़ा और जोर जोर से धक्के मारना शुरू कर दिया और मैंने भी कुछ धक्के मारे होंगे कि मैं भी उसकी गाण्ड में ही जोर से चीखता हुआ झड़ गया।

मेरे झड़ने के बाद वो भी लेट गई और मैं उसके ऊपर ही लेट गया, एक दो मिनट के बाद जब मैं थोड़ा सा ठीक हुआ तो मैंने उसकी गाण्ड में से लण्ड निकाला, कंडोम निकाल कर पलंग के नीचे फैंका पास में पड़ी हुई तौलिया उठा कर लण्ड पौंछा और साक्षी को पास में खींच कर अपने से चिपका कर लेट गया।

साक्षी ने भी मुझे कस कर बाँहों में भर लिया।

हम दोनों को नींद कब आई पता ही नहीं चला। सुबह साढ़े छः पर मेरे मोबाइल के अलार्म से नींद खुली।

जागने के बाद भी हम दोनों ने ही न उठने की कोई कोशिश की और ना ही एक दूसरे से अलग होने की। हम दोनों एक दूसरे और चिपक गये और तब तक चिपके रहे जब तक मेरे मोबाइल ने दस मिनट बाद का दूसरा अलार्म नहीं बजा दिया।

अलार्म बंद करने के बाद मैंने मोबाइल बगल में रखा, कंडोम का पैकेट उठाया और साक्षी की तरफ देखते हुए इशारों में उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर सर हिला कर हाँ में जवाब दिया।

बस इस जवाब की देर थी कि मैंने कंडोम चढ़ाया और साक्षी को नीचे लिटाया, मैं उसके ऊपर चढ़ गया।

सुबह की खुमारी थी, हम दोनों ही एक दूसरे के साथ के मजे ले रहे थे, मैंने उसके होंठ चूमने की कोशिश की तो वो बोली- ब्रश नहीं किया है, बदबू आएगी।

मैंने बिना कुछ कहे उसके गालों को चूसना शुरू कर दिया और उसने भी पलट कर मेरे गालों को चूसना शुरू कर दिया। उसने मेरी कमर को अपनी टांगों में लपेट लिया और मैंने भी तेज तेज धक्के मारने शुरू कर दिये, जब मैं उसे चोद रहा था तो वो मेरी पीठ पर बड़े प्यार से हाथ चला रही थी और मेरे गालों और कंधों को चूस रही थी, हल्के-हल्के काट रही थी जिससे मेरा जोश और बढ़ रहा था और मुझे और ज्यादा मजा आ रहा था।

मैंने थोड़ी देर धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने की कगार पर आ गया और मैंने रफ़्तार बढ़ा दी और कुछ धक्को के बाद मैं झड़ गया। मेरे झड़ने पर उसने मुझे अपने सीने पर सुला लिया और बड़े प्यार से मेरी पीठ सहलाने लगी।

मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके होंठों को चूमने लगा और उससे प्यार भरी बातें करने लगा।

फिर मैंने फोन उठा कर चाय ब्रेड जैम और उपमा का ऑर्डर दिया और फ़िर साक्षी से बातें करने लगा, बातों बातों में उसने विस्तार में बताया कि वो कैसे कॉल गर्ल बनी और उसकी मजबूरियाँ क्या थी।

यह कहानी शायद कभी नहीं लिखूँगा तो कृपया कोई उम्मीद ना करें।

तब तक नाश्ता आ गया हम दोनों ने नाश्ता किया, मुझे नाश्ता भी साक्षी ने अपने हाथों से ही कराया। उसके बाद हम दोनों साथ में ही चिपककर नहाए। नहाते हुए साक्षी ने मुझे भी प्यार से नहलाया, मेरा लण्ड फिर खड़ा हो गया था तो साक्षी ने मेरे खड़े लण्ड को चूस चूस के फिर से मुझे शांत किया।

तैयार होते होते हमें नौ बज चुके थे, मुझे दफ्तर जाना था तो हम लोग साढ़े नौ बजे बाहर निकलने लगे, मैंने उससे कहा- मुझे अपना फोन नंबर दे दो।

तो वो बोली- प्लीज संदीप, मुझ से तुम नम्बर मत मांगो, शाम को तुम्हें मैं जरूर मिलूँगी।

मैंने उसकी बात मान ली और मैं दफ्तर आ गया। मैं तब इतना खुश था कि मैंने दो दिन का काम एक ही दिन में पूरा कर लिया।

मैंने सोचा कि अब तो कल दफ्तर भी नहीं आना है तो मजे ही मजे !

शाम को मैं सवा पाँच दफ्तर से निकला और सीधे होटल आया तो रिशेप्सन पर मेरे लिए एक गिफ्ट पैक रखा हुआ था।

मैं जानता था कि इसे साक्षी ने ही भेजा होगा, मैंने कमरे में जाकर उस गिफ्टपैक को खोल कर देखा तो उसमें पीटर इंगलैंड की दो शर्ट, एक टाइटन की घड़ी, एक लिफाफा और एक चिट्ठी रखी हुई थी।

चिट्ठी में सिर्फ इतना ही लिखा था- संदीप, तुमने मुझे बहुत प्यार दिया पर मुझे माफ कर देना मैं तुमसे अब कभी नहीं मिल पाऊँगी।

मैंने लिफाफा खोला तो उसमें 8500 रूपये रखे हुए थे। मेरी मानसिक स्थिति मैं शब्दों में तो नहीं बता सकता लेकिन फिर मेरा मन मुंबई में रुकने का नहीं हुआ, मैंने अपना बैग पैक किया, इंदौर के लिए एक टैक्सी बुक की और उसी रात आठ बजे इंदौर के लिए निकल आया।

उसके बाद से कई सालों तक मैं साक्षी के फोन का इन्तजार करता रहा पर उसका फोन मुझे नहीं आया।

इन्तजार आज भी है... साक्षी अगर तुम यह कहानी पढ़ती हो तो प्लीज एक बार मुझसे बात कर लो।

आपको हम दोनों की छोटी सी प्रेम कहानी कैसी लगी, बताइयेगा जरूर !

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