सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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मैं तो अभी भी उसी अवस्था में थी.. मेरी एक टांग उनके कंधे पर और उनका मुँह मेरी चूत पर।
मैं ‘न.. न..’ करती रही.. फिर बोली- जल्दी करो..
वो भी मान गए.. पर इससे पहले कि वो खड़े होते.. मेरा फ़ोन फिर बजना शुरू हो गया.. इस बार तारा थी। मैंने तुरंत फ़ोन उठा लिया।
उधर से आवाज आई- हो गया या और समय लगेगा?
मैंने कहा- बस थोड़ी देर और..
उसने पूछा- अभी तक किया नहीं क्या कुछ भी?
मैंने जवाब दिया- बस थोड़ी देर और..
उसने कहा- ठीक है.. मजे ले लो.. मैं और इंतज़ार कर लूँगी।
और फ़ोन काट दिया।
मेरे फ़ोन रखते ही वो खड़े हो गए और मेरी एक टांग उठा कर कुर्सी पर रखते हुए बोले- तारा थी क्या?
मैंने कहा- हाँ।
उन्होंने कहा- उसे शक तो नहीं हुआ होगा?
मैंने कहा- शायद हो सकता है, अब जल्दी करो या मुझे जाने दो।
इतना कहते ही मुस्कुराते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और लंड को हाथ से पकड़ हिलाते हुए मेरी चूत के छेद के पास ले आये।
मैंने भी अपनी कमर आगे कर दी और टाँगें फैला दी, फिर उन्होंने हाथ पे थूक लिया और सुपाड़े के ऊपर मल दिया और मेरी चूत की छेद पर टिका के दबा दिया।
मेरी चूत की छेद तो पहले से खुली थी और गीली भी थी, हल्के से दबाव से ही लंड मेरी चूत में सरकता हुआ घुस गया, मुझे अजीब सी गुदगुदाहट के साथ एक सुख की अनुभूति हुई और मैंने अपनी आँखें बंद कर उन्हें कस के पकड़ते हुए चूत को उनके लंड पे दबाने लगी।
मैं पूरे जोश में आ गई थी और अपनी कमर किसी मस्ताई हुई हथिनी के समान हिलाने लगी।
ये देख उन्होंने धक्के देने शुरू कर दिए, उन्हें भी शायद समझ आ गया था मेरी इस तरह की हरकत और मेरी गीली चूत में छप छप आवाज से कि मैं बहुत गर्म हो चुकी हूँ।
उन्होंने धक्के लगाते हुए मुझसे पूछा- मजा आ रहा है?
मैं भी तो मस्ती में थी, कमर उचकाते हुए बोल पड़ी- ‘बस कुछ मत बोलिए, बहुत मजा आ रहा है धक्के लगाते रहिये।
मेरी बात सुनने की देरी थी, उन्होंने एक हाथ मेरी चूतड़ों पर रखा और पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और दूसरा हाथ मेरी पीठ पर रख मुझे कस लिया।
मैंने भी उनको कस के पकड़ लिया और उनके होठों पर होंठ रख चूमने और चूसने लगी। उनके धक्के जोर पकड़ने लगे और जिस तरह से उन्होंने मुझे पकड़ सहारा दिया था, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं खड़ी नहीं बल्कि लेटी हुई हूँ।
वो मुझे लगातार 10-15 धक्के मारते तेज़ी से, फिर 2-3 धक्के पूरी ताकत से मारते और लंड पूरा मेरी चूत में दबा देते जड़ तक और कुछ पल अपनी कमर गोल गोल घुमा कर अपने लंड के सुपाड़े को मेरी बच्चेदानी के ऊपर रगड़ते।
सच में इस तरह से मुझे बहुत मजा आ रहा था, भले ही उनके जोरदार झटकों से कभी कभी लगता कि मेरी चूत फट जायेगी पर जब वो सुपाड़े को रगड़ते तो जी करता कि जोर जोर से फिर झटके मारे।
मेरी हालत अब और बुरी होने लगी थी, मैं वासना के सागर में गोते लगाने लगी थी, मेरा मन पल दर पल बदल रहा था।
कभी उनके झटके मेरी चीख निकाल देते और सोचने लगती ‘भगवान् ये जल्दी से झड़ जाएँ’ तो कभी उनके सुपाड़े का स्पर्श इतना सुहाना लगता कि मन में आता कि भगवान बस ऐसे ही करते रहें।

जैसे जैसे हमारे सम्भोग की समय बढ़ता जा रहा था, वैसे वैसे ही मेरे जोश और बदन में बदलाव आ रहा था, मैं पल पल और भी व्याकुल सी हो रही थी और मेरी चूत से पानी जैसा चिपचिपा रस रिस रहा था जो अब तो मेरी जांघों से होता हुआ नीचे बहने लगा था।
उधर वो भी पागलों की तरह धक्के मार रहे थे मुझे और मेरी चूत का अपने लंड से जोरदार मंथन करते हुए पसीने से लथपथ होते जा रहे थे।
वो मुझे चूमते, काटते, मेरे चूचुकों को चूसते हुए हांफते रहे पर उनका धक्का लगाना कम नहीं हुआ, कभी रुक रुक कर तो कभी लगातार वो मुझे भी अपने साथ पागल किये जा रहे थे।
मैं भी उनके साथ साथ अपनी कमर हिलाने डुलाने लगी उनके धक्कों से ताल मिला कर!
हमे सम्भोग करते हुए करीब 20 मिनट हो चुके थे और मेरी एक जांघ में दर्द सा होने लगा था पर मैं पूरे जोश में थी, खुद ही दूसरी टांग उठाने लगी।
यह देख वो मेरी दोंनों जांघों को दबोच मुझे उठाने का प्रयास करने लगे।
मैं इतनी मोटी और भारी… भले कैसे उठा पाते वो… पर पीछे दीवार का सहारा थे तो मुझे उठा लिया और धक्के देते रहे।
मैंने भी उनके गोद में आते ही अपनी दोनों टाँगें उनकी कमर पर लपेट दी… हवस के नशे में कहाँ होश था कि वो मुझे उठाने लायक हैं या नहीं।
मैं उनके गले में हाथ डाल झूलते हुए लंड को चूत में दबाती रही वो भी मुझे ऐसे ही मेरे चूतड़ों को पकड़ मुझे अपनी गोद में झुलाते, धक्के देते रहे।
करीब 3-4 मिनट के बाद उनकी ताकत कम सी होने लगी और उन्होंने मुझे वैसे ही अपनी गोद में उठाये अपने लंड को मेरी चूत में घुसाए हुए मुझे जमीं पर लिटा दिया।
वो मेरे ऊपर झुकाते हुए अपने दांतों को पीसते हुए मेरे स्तनों को काटने और चूसने लगे और जैसे खीज में हो बड़बड़ाने लगे- ‘आज जी भर चोदूँगा तुम्हें, चोद चोद के तुम्हारी बूर का पानी सुखा दूंगा।
मैं उनके काटने और चूसने से सिसकारियाँ लेने लगी और कराहने भी लगी पर मेरे मुख से भी वासना भरी पुकार निकलने लगी- ऊईई… ईईइ.. सीईई आह्ह छोड़ो न, मैं झड़ने वाली हूँ, झाड़ दो मुझे।
और बस इतना कहना था कि उनके धक्के किसी राकेट की तरह तेज़ी से पड़ने लगे और मैं ओह माँ ओह माँ करने लगी।
मैंने दोनों टाँगें उनके सीने तक उठा दी और जोर से पकड़ लिया उनको।
5 मिनट ही हुए होंगे, उनके इस तरह के तेज़ धक्कों की ओर मैं अपनी चूत सिकोड़ते हुए झड़ गई। मैं उनको कस के पकड़ते हुए अपनी कमर उठाने लगी और उनका लंड पूरा पूरा मेरी बच्चेदानी में लगता रहा जब तक कि मेरी चूत से पानी झड़ना खत्म न हुआ।
मैं अभी भी चित लेटी उनके धक्के सह रही थी क्योंकि जानती थी वो अभी झड़े नहीं बल्कि और समय लगेगा क्योंकि दोबारा मर्द जल्दी झड़ते नहीं।
मेरी पकड़ अब ढीली पड़ने लगी थी, मेरी टाँगें खुद उनके ऊपर से हट कर जमीं पर आ गई थी, मैं उन्हें हल्की ताकत से बाहों से पकड़ी सिसकती और कराहती धक्के खा रही थी।
वो मुझे अपने दांतों को भींचते हुए मुझे देख धक्के लगाते ही जा रहे थे और मैं उन्हें देख रही थी कि उनके सर से पसीना टपक रहा था और नीचे चूत और लंड की आसपास तो झाग के बुलबुले बन गए थे।
करीब 7-8 मिनट यूँ ही मुझे धक्के मारने के बाद उन्होंने मुझे उठाया और अपनी टाँगें आगे की तरफ फैला मुझे गोद में बिठा लिया।
मैं समझ गई कि अब धक्के लगाने की बारी मेरी आ गई।
पर मेरी हिम्मत अब जवाब देने लगी थी।
मैं भी आधे मन से उनके लंड के ऊपर बैठने उठने लगी जिससे लंड चूत में अन्दर बाहर होने लगा।
पर यह क्या… मेरी पकड़ कुछ पलों के धक्कों में फिर से मजबूत हो गई और मेरी चूत भी कसने लगी। मैं फिर से गर्म हो गई और जोरों से धक्के लगाने लगी।
मुझे ऐसा लगने लगा कि अब तो मैं फिर झड़ जाऊँगी और पता नहीं क्यों मेरा मन फिर से पानी छोड़ने को होने लगा। मैं तेज़ी से धक्के लगाने लगी तो वो भी मेरी हरकतें देख नीचे से जोर जोर झटके देने लगे।
हम दोनों हांफ रहे थे और एक दूसरे को देखते हुए बराबर धक्के लगाने लगे। इतने में मेरा फिर से फ़ोन बजने लगा मैं उसकी आवाज दरकिनार करते हुए पूरे जोश से लंड को चूत में घुसाने लगी तेज़ी से।

मैं अपनी कमर इतना उठा देती कि लंड का सुपारा ही बस अन्दर रहता और जोर से फिर धकेलती कि लंड पूरा चूत में मेरी बच्चेदानी तक जाता।
मैं ये सब तेज़ी से करने लगी और फिर एक पल ऐसा आया जिसका मुझे इंतज़ार था, जिसके लिए मैं इतनी मेहनत कर रही थी।
फिर से मेरी पूरा बदन अकड़ने लगा, चूत सिकुड़ने लगी।
मैंने एक झटके के साथ उनके होठों से अपने होंठ भिड़ा दिए और जुबान को चूसने लगी, गले में हाथ कस दिए और लंड जबकि पूरा मेरी बच्चेदानी तक था, फिर भी मेरी कमर हिल हिल कर धक्के देते हुए मैं झड़ने लगी, मैंने चिपचिपा पानी सा रस छोड़ दिया उनके लंड के ऊपर से जो उनके अण्डकोषों और जांघों को भीगा रहा था।
धीरे धीरे मेरे धक्के कमजोर पड़ते गए और मैं तब रुकी जब मैं पूरी तरह चरम सुख तक पहुँच गई।
मैं उनकी गोद में ही थी और उनका लंड मेरी चूत के भीतर ही था, मैंने कहा- अब बस करें… बार बार फ़ोन बज रहा है, घर जाना है।
उन्होंने मुझसे कहा- बस थोड़ी देर और… अभी तो मजा आना शुरू हुआ है।
हम बातें करते हुए कुछ पल ऐसे ही हल्के धक्के लगाते रहे, फिर मैंने फ़ोन सामने से उठा कर देखा तो तारा का मिस कॉल था।
मैंने उनसे कहा- अब या तो जाने दो या जल्दी करो, तारा परेशान हो रही होगी।
इतना कहना था कि तारा का फ़ोन फिर से आ गया।
मैं तो जानती थी कि तारा को सब मालूम है, मैंने फ़ोन उठा लिया फ़ोन उठाते ही आवाज आई- और कितना टाइम लगेगा?
मैंने जवाब दिया- बस निकलने की तयारी कर रही हूँ।
वो भी समझ गई, उसने फ़ोन रख दिया।
उन्होंने मुझे उठने का इशारा किया और मैं बिस्तर पर जाकर लेट गई, वो भी उठ कर आये और मेरी टांगों के सामने घुटनों के बल खड़े हो गए।
मैंने स्वयं ही अपनी टाँगें फैला दी उनके लिए पर उन्होंने मेरी टाँगें उठा कर अपने कंधो पर रखी और लंड को हाथ से हिलाते हुए मेरी चूत की छेद पे टिका कर घुसाने लगे।
लंड मेरी चूत में घुसते ही वो मेरे ऊपर पूरी तरह लेट गए और अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ पकड़ कर मेरे होठों को चूसते हुए धक्के लगाते हुए सम्भोग करने लगे।
मैंने अपनी टाँगें उठा कर उनकी जांघों पर रख दी और उनका मुँह अपने होठों से अलग करते हुए बोली- अब जल्दी जल्दी करो… देर हो रही है।
तब उन्होंने भी तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए और मैंने भी जल्दी खत्म हो… सोच कर अपनी कमर उनके हर धक्के पर उठाने लगी।
दो मिनट के धक्कों में मैं फिर से गर्म होने लगी और फिर क्या था, उनके जोश और मेरे जोश से धक्कों की रफ़्तार और ताकत इतनी हो गई कि बिस्तर भी हिलने लगा।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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मैं कराहते और सिसकते हुए पूरी मस्ती में उनके लंड से अपनी चूत को रगड़ते हुए धक्के लगाने लगी।
वो मेरे चूतड़ों को पूरी ताकत से दबाते हुए खींचते और जोर जोर से धक्के देते तो कभी मेरे स्तनों को बेरहमी से काटे और चूसते।
इधर मैं भी कभी उनके सर के बालों को जोर जोर से खींचती तो कभी अपनी टांगों से उनको पूरी ताकत लगा दबोचने की कोशिश करते
हुए अपनी कमर उठा देती जिससे लंड मेरी चूत की पूरी गहराई तक जाता।
पूरा कमरा हम दोनों के हांफ़ने और सिसकारने से गूंजने लगा था।
करीब 10 मिनट के जोरदार धक्कों के बाद वो पल भी आ गया जिसके लिए हम दोनों इस तरह मेहनत कर रहे थे।
मैं उनके सुपारे की गर्मी को अपनी बच्चेदानी में महसूस करने लगी और समझ गई कि अब वो झड़ने को हैं और इधर मेरी जांघों और चूत में भी अकड़न होने लगी।
मेरी साँसें लम्बी होने लगी, उधर उनके भी धक्के तेज़ी से मुझे लगने लगे, मैं कराहते हुए उह्हह्म्म आह्ह्ह्ह करते हुए पानी छोड़ने लगी और उनको पूरी ताकत से पकड़ अपनी कमर बार बार उठा कर नीचे से धक्के देने लगी।
वो भी अपनी पूरी ताकत के 15 20 धक्के लगाते हुए मुझसे चिपक गए और अपना रस मेरी चूत की गहराई में छोड़ कर शांत हो गए।
मैं भी उनके शांत होते ही 2-4 झटके देती हुई उनको पूरी ताकत से पकड़ शांत हो गई।
मैं धीरे धीरे अपनी पकड़ ढीली करने लगी। कुछ देर क बाद और भीतर से थकी और संतुष्ट सी लगने लगी।
उनका भी शरीर अब ढीला पड़ने लगा और उनका लंड मेरी चूत के भीतर सिकुड़ने लगा।
कुछ देर के बाद हम दोनों उठे और बाथरूम जाकर खुद को साफ किया, फिर अपने अपने कपड़े पहन कर तैयार होकर तारा को फ़ोन किया।
तारा के आते ही हमने चाय मंगवाई और बातें करने लगे।
शाम के करीब 4 बज गए थे, मुझे घर भी जाना था तो मैं जल्दी निकलने के चक्कर में थी पर तारा और उनकी बातें बढ़ती ही जा रही थी।
मैंने जल्दी जल्दी निकलने को बोला उन्हें और फिर हम अपने अपने घर चले आये।
रात को सोते समय जब मैं कपड़े बदल रही थी गौर किया कि मेरी पैन्टी में दाग सा है जो सूख कर कड़ा हो गया है।
मुझे फिर याद आया कि उनका वीर्य मेरी चूत के भीतर से बह कर मेरी पैन्टी गीली कर गया था, इसी वजह से रास्ते भर मुझे मेरी पैन्टी गीली गीली सी लग रही थी।
शायद जल्दबाजी में मैंने अपनी चूत ठीक से साफ़ नहीं की थी।
मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए एक संतुष्टि की सांस लेते हुए लेट गई और न जाने कब मेरी आँख लग गई।
हमारे मिलन को एक हफ़्ता गुजर चुका था.. और तारा भी वापस चली गई थी।
हम दोनों यूँ ही चैटिंग के जरिए अपने मन की मंशा शब्दों के जरिए एक-दूसरे को बताते रहे।
करीब दो महीने बीतने के बाद उन्होंने फिर से मिलने की जिद शुरू कर दी.. पर मेरे लिए ये मुमकिन नहीं था। फिलहाल तारा जा चुकी थी और मैं कोई बहाना नहीं बना सकती थी.. क्योंकि मुझे किसी और पर भरोसा नहीं था।
वो रोज मुझसे मिलने की बात करते.. पर मैं हमेशा बस कुछ बहाना बना कर टाल देती या उनको दिलासा देती ‘मौका निकाल कर मिलूंगी।’
फिर एक दिन उन्होंने मुझे एक उपाय बताया। शुरू में तो मुझे बड़ा अटपटा सा लगा.. फिर सोचा कि चलो इसी बहाने कुछ नया अनुभव होगा।
उनके कुछ दोस्त एक व्यस्क दोस्तों को खोजने की साईट पर थे.. पहले तो उन्होंने मुझे एक दम्पति से वहाँ मिलवाया। फिर एक लड़की जो जबलपुर की थी उससे मिलवाया।
मैं उनसे बातें करने लगी और कुछ ही दिनों में दोस्ती भी हो गई पर अब भी मुझे भरोसा नहीं हो रहा था.. क्योंकि मैंने किसी को देखा नहीं था।
फिर एक दिन मेरे फ़ोन पर एक सन्देश आया कि अगर मैं मिलना चाहती हूँ तो वो लोग हजारीबाग आ जाएंगे।
मैंने सन्देश से पूछा- कौन?
तो जवाब आया- मेरा नाम शालू है, मैं आपसे मिलने के लिए आपको घर से ले सकती हूँ।
शालू और वे दम्पति एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
मैं पहले तो सकपका गई कि ये क्या हो रहा है.. क्योंकि मैं किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।
मैं रात का इंतज़ार करने लगी ताकि मैं उस दोस्त से बात करके सब सच जान सकूँ।
रात के करीब 12 बजे हमारी बात शुरू हुई। मैंने सबसे पहले वही पूछा.. तब उन्होंने बताया- आपका नंबर शालू को मैंने ही दिया था।
मैं थोड़ा विचलित हो गई।
उन्होंने कहा- अगर आपकी राजी हों.. तो हम लोग आपसे आपके घर पर शालू को आपकी सहेली बना कर भेज सकते हैं, वो आपको बाहर ले जा सकती है।
मुझे पहले तो अटपटा सा लगा.. मैंने इंकार कर दिया.. क्योंकि इसमें बहुत खतरा था। वो मेरे बारे में आखिर जानती क्या थी.. जो मुझे यहाँ से निकाल कर ले जाती.. मेरे पति को क्या जवाब देती अगर वे कोई सवाल करते तो?
मैंने साफ़ मना कर दिया.. पर वे लोग मुझे रोज जोर देने लगे। कभी कभी उनकी मादक इच्छाओं को देख मेरा भी मन होने लगता.. पर मुझे बहुत डर लगता।
कुछ दिनों के बाद उस लड़की शालू का फिर से सन्देश आया और वो मुझे याहू पर बात समझाने लगी.. अपनी तरकीब बताने लगी।
फिर उस दम्पति ने भी मुझे अपनी बातों में उलझाने का प्रयास शुरू कर दिया, वो लोग मुझे रोज कहने लगे कि मैं बस अपनी मर्ज़ी ‘हाँ’ बता दूँ.. बाकी वो लोग तरकीब निकाल लेंगे।
तभी मेरी जेठानी के पिता के मरने की खबर आई और वो लोग सपरिवार चले गए। अब घर में बस मैं.. मेरे बच्चे और देवर थे।
मुझे लगा कि ये सही मौका है मेरे लिए और मैंने ‘हाँ’ कह दिया।
उन्होंने अपनी सारी तरकीब मुझे बता दी और मैंने भी अपनी सारी बातें बता दीं ताकि कोई सवाल करे.. तो वो लोग सही जवाब दे सकें।
उन्होंने दो दिन के बाद मुझे सन्देश भेजा कि वो लोग हजारीबाग में हैं और अगले दिन मेरे घर मुझे लेने वो दो औरतें आएँगी।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा कि भगवान जाने क्या होगा।
मैंने वासना की आग में भूल कर ये क्या कर दिया। कहीं किसी को शक हुआ तो क्या होगा।
कहीं मेरी चोरी पकड़ी तो नहीं जाएगी.. बस यही सभी बातें सोचती हुई.. मैं रात भर सोई नहीं।
सुबह करीब 4 बजे मेरी आँख लगी और रोज की आदत होने के वजह से 6 बजे उठ गई। मेरे दिमाग में बस उनकी ही बातें थीं।
मैंने अब सोच लिया कि मैं उन्हें मना कर दूँगी।
करीब 9 बजे उनका फ़ोन आया.. तब मैंने पहली बार उस जबलपुर वाली लड़की से बात की।
उसने मुझसे कहा- मैं और एक और औरत तुम्हें लेने आ रही हैं.. तुम तैयार रहना।
मैंने तुरंत जवाब दिया- मत आओ मुझे डर लग रहा है.. कहीं मेरी चोरी पकड़ी न जाए।
पर उन्होंने मुझे बहुत भरोसा दिया कि कुछ नहीं होगा.. वो सब कुछ संभाल लेंगी।
मैंने उनको बहुत समझाया.. पर वो नहीं मानी। तब मैंने तुरंत जा कर अपनी देवरानी को बताया- मुझसे मिलने मेरी दो सहेलियां आ रही हैं। हो सकता है कि मैं उनके साथ थोड़ा घूमने और बाज़ार करने शहर जाऊं.. क्या तुम चलोगी मेरे साथ?
मैं जानती थी कि बच्चों की वजह से वो बाहर नहीं जा सकती और घर पर वो अकेली भी है.. पर उसे शक न हो इसलिए मैंने उससे जानबूझ कर साथ चलने के लिए कहा था।
उसने कहा- दीदी अगर मैं भी चली जाउंगी.. तो घर पर कौन रहेगा और बच्चों को अकेला कौन देखेगा और आपके देवर भी काम पर चले जायेंगे।
ये कह कर उसने मुझसे कहा- आप अकेली चली जाओ।
मैंने कहा- जरूरी नहीं कि मैं जाऊं ही.. मैंने इसलिए कहा कि हो सकता है वो मुझे साथ चलने के लिए कहें।
इतना कह कर मैं अपने देवर के पास गई और सारी बातें बता दीं।
देवर ने कहा- भाभी घर पर बड़े भैया और भाभी नहीं हैं.. सो मैं कुछ नहीं कह सकता.. पर अगर जाओ तो शाम तक लौट आना।
मैंने भी ज्यादा जोखिम न उठाते हुए तुरंत जेठानी को फ़ोन कर सारी बातें बता दीं.. तो उन्होंने शायद अपने घर की हालत देखते हुए ज्यादा बात नहीं की और इजाजत दे दी।
ये सारी बातें मेरे लिए कुछ राहत भरी थीं.. और अब मैं बस उनका इंतज़ार करने लगी।
करीब 20 मिनट के बाद मेरा फ़ोन बजा.. तो देखा कि शालू का फ़ोन था।
मैंने फ़ोन उठाया तो उसने कहा- मैं आपके घर के पास ही हूँ.. मुझे अपने घर का रास्ता बताओ।
मैंने उससे पूछा- फ़िलहाल कहाँ हो?
मेरी मंशा थी कि मैं खुद जाकर उससे पहले बाहर मिल लूँ।
मैं उसके बताई हुई जगह पर जाने के लिए निकली और मैंने देवर से कहा- मेरी सहेलियाँ बाहर खड़ी हैं.. मैं उन्हें लेकर आती हूँ।
मैं उनके बताई जगह पर गई तो देखा एक कार खड़ी थी और कार से बाहर एक लड़की सलवार सूट में खड़ी थी.. शायद मुझे ढूँढ रही थी।
उसने मुझे देखते ही मेरा नाम लेकर मुझे पुकारा.. तो मैंने भी उसका नाम लिया।
फिर हम एक-दूसरे को पहचान गए।
मैं उनकी कार के पास गई तो अन्दर से एक और औरत जो बिल्कुल मेरी ही उम्र की थी.. बाहर आई और मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा- बहुत सुना तुम्हारे बारे में।
मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था.. फिर भी अपने दिल की धड़कनों को काबू में करती हुई मैंने उन्हें घर आने को कहा।
रास्ते में वो मुझे कहती आईं कि मैं बिल्कुल न डरूं.. बाकी वो लोग सब संभाल लेंगे।
उन्होंने मुझे अपना परिचय दे दिया। एक शालू थी.. जो करीब 32 साल की थी.. पर शादीशुदा नहीं थी। दूसरी बबीता थी.. जिसके 2 बच्चे हैं और वो दिल्ली में रहती है।
वो लोग यहाँ अपनी एक रिश्तेदार की शादी में आई हुई थीं। उन्होंने पूरी कहानी गढ़ दी थी.. बस मुझे उस पर थोड़ा एक्टिंग करना था।
कार के ड्राईवर को वहीं गाड़ी में रहने दिया और मैं उन्हें लेकर घर आ गई। बच्चे तो अब तक स्कूल चले गए थे और देवर बस निकलने ही वाले थे।
देवर के जाते-जाते मैंने उन्हें मिलवा दिया और कहा- ये लोग मुझे साथ शहर चलने को कह रही हैं।
मेरे कहने के साथ ही वो दोनों मेरे देवर से विनती करने लगीं कि मुझे जाने दें.. शाम होने से पहले मुझे वापस छोड़ देंगे।
इस पर देवर ने ‘हाँ’ कह दिया और चले गए।
मैंने उन्हें बिठाया.. चाय नाश्ता दिया। फिर मैंने देवरानी को उनके सामने बातचीत करने को बिठा दिया और मैं अपने कमरे में तैयार होने चली गई।
मैं करीब 20 मिनट के बाद बाहर आई तो देखा कि वो लोग मेरी देवरानी से काफी घुल-मिल गई हैं.. मुझे और भी डर लगने लगा कि कहीं उन्होंने मेरा राज़ तो नहीं खोल दिया।
मैं उनसे बोली- चलें?
तो उन्होंने तुरंत उठ कर चलने की तैयारी कर ली।
मेरी देवरानी से विदाई लेकर वो लोग मुझे अपने साथ ले कर कार में बैठ गए।
मैं जितना डर रही थी उतनी ही आसानी से सब कुछ हो गया। रास्ते में मुझे बबीता ने बताया कि वो अपने पति के साथ आई हुई है।
हम यूँ ही बस एक-दूसरे से जान-पहचान करते हुए शहर पहुँच गए और ड्राईवर ने एक बड़े से होटल के सामने कार खड़ी कर दी।
हम कार से निकले और ड्राईवर कार लेकर वहाँ से चला गया।
हम होटल में गए और लिफ्ट से पांचवें माले पर गए, फिर हम तीनों वहाँ से एक कमरे की ओर बढ़े।
तब मैंने पूछा- मेरे वो दोस्त और बबीता का पति कहाँ है?
इस पर शालू और बबीता हँसते हुए बोलीं- कमरे में चलो.. सब देख लेना खुद से।
शालू ने अपने बैग से कमरे की चाभी निकाली और दरवाजा खोला। उन्होंने अन्दर जाते हुए मुझे भी अन्दर आने को कहा और फिर दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया।
कमरा क्या शानदार था.. चारों तरफ परदे और साज-सजावट थी.. जैसे कि किसी फिल्म में होता है। सामने सोफा और टेबल था और शायद बेडरूम अन्दर था।
मैं सोफे की तरफ बढ़ी.. पर वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था। थोड़ा और आ गए गई.. तो हल्की आवाज मेरे कानों में पड़ी.. जैसे कोई औरत कराह रही हो।
मुझे एक पल के लिए तो ऐसा लगा कि शायद मेरे कान बज रहे हैं क्योंकि वासना का ही तो खेल खेलने मैं इनके साथ आई थी।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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तभी एक लड़की के चिल्लाने की तेज़ आवाज आकर शांत हो गई। मैं सपाक से उनकी तरफ देखते हुए पूछने लगी- यहाँ और कौन है?
वो दोनों मुस्कुराते हुए मुझे अन्दर चलने को बोलीं और कहा- खुद देख लो।
अन्दर जाते ही जो नज़ारा मैंने देखा उसे देख कर तो मेरे जैसे होश ही उड़ गए।
उम्म्ह… अहह… हय… याह…
मैं दरवाजे के सामने ही खड़ी थी और वो नजारा मुझे सुधबुध खोने पर विवश कर रहा था।
अन्दर मैंने देखा के बिस्तर पर दो मर्द हैं.. जिसमें से एक पीठ के बल लेटा हुआ नज़ारा देख रहा था और दूसरा भी नंगा लेटा हुआ अपने लंड को हाथ से सहला रहा था।
उनके पास में एक बहुत गोरी औरत थी, जिसके भरे-भरे स्तन और उठे हुए चूतड़ थे वो भी एकदम नंगी.. टांगें फैला कर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसके ऊपर एक 50-55 साल का आदमी उसकी टांगों को पकड़े हुए हवा में झुलाते हुए अपने लंड को उसकी चूत में तेज़ी से धकेलता हुआ अन्दर-बाहर कर रहा था।
इतना देख कर अभी मैं हैरान ही थी कि शालू ने मेरा हाथ पकड़ अन्दर खींचा। मैंने दो कदम आगे बढ़ाए ही थे कि मेरी बाईं ओर मैंने देखा कि एक औरत चेयर पर आगे की तरफ नंगी हो कर झुकी हुई है और पीछे वो मेरा दोस्त उसके स्तनों को दबोचे हुए उसके चूत में लंड घुसा कर धक्के दे रहा था।
मैं जब बाहर से अन्दर आ रही थी तो कराहने, सिसकने और हाँफने की आवाज उम्म्ह… अहह… हय… याह… बढ़ती जा रही थीं और जब अन्दर आई तो ऐसा माहौल था कि पूरा कमरा उन दोनों औरतों की कराहों से गूंज रहा था।
मुझे देखते ही मेरे उस पुराने मित्र ने धक्के लगाने छोड़ दिए और वो मेरी तरफ आ गए। तभी वहाँ बिस्तर पर लेटा हुआ आदमी खड़ा होकर उस औरत के पास चला गया। लेकिन उस औरत ने उसे मना किया और कहा- पहले इन सबसे मिल तो लेने दो।
मुझे आई देख कर वे लोग भी.. जो बिस्तर पर सम्भोग कर रहे थे.. वो भी अलग हो गए और सब लोग बैठ कर मेरी ओर देखने लगे।
मैं तो शर्म से पानी-पानी हुई जा रही थी साथ ही ये नज़ारे देख कर घबराने के साथ-साथ कुछ दंग भी थी। मेरे सामने 4 नंगे मर्द और दो नंगी औरतें थीं। हम तीनों बबिता शालू और मैं ही बस कपड़ों में थे।
तब मेरे उस मित्र ने कहा- शालू और बबिता से तो आप मिल ही चुकी हो। इन से मिलो.. ये रामावतार जी हैं, बबिता के पति।
रामावतार वो थे.. जो नंगी औरत के साथ बिस्तर पर सम्भोग कर रहे थे। वो जो लेटा हुआ था और बिस्तर पर जो औरत संभोग कर रही थी.. उनके बारे में बताया गया।
‘ये विनोद और अमृता हैं.. पति-पत्नी हैं।’
फिर वो जो मेरे मित्र के हटने के बाद उठ कर खड़े हुए थे.. वो कांतिलाल जी थे और जिसके साथ मेरा मित्र खुद सम्भोग कर रहा था.. वो रमाबेन जी थीं.. मतलब कांतिलाल की पत्नी थीं।
रामावतार और बबिता कानपुर से आए थे। कांतिलाल और रमा जी गुजरात से.. और विनोद और अमृता कनाडा में रहते थे। वे कनाडा से छुट्टियों में यहाँ आए थे।
ये सब व्यस्क दोस्तों को खोजने की साईट से ही मिले थे।
अब इन सभी से मुझे भी मिलवा दिया गया था। सबसे जान पहचान होने के बाद मैंने थोड़ी राहत की सांस ली.. क्योंकि उनकी सोच बड़े खुले विचारों की थी। उनकी सोच जानकर ऐसा लगा.. जैसे ये भारतीय नहीं बल्कि कोई विदेशी लोग हों।
विनोद और अमृता तो खैर हिंदी कम अंग्रजी ज्यादा ही बोलते थे। सबके अपने-अपने परिवार और बच्चे थे.. सिवाए शालू के.. क्योंकि वो शादीशुदा नहीं थी।
शालू ही अकेली हम में सबसे कम उम्र की थी.. बाकी हम सब 45 के ऊपर ही थे। बबिता 40 की थी, रामजी 43, अमृता 46 की, शालू 32 की और मैं 47 की, विनोद 50, रामावतार जी 48, कांतिलाल भी 50 के थे।
मैंने ऐसा पहली बार नजारा देखा कि नंगे होकर कुछ लोग मुझे अपना परिचय दे रहे हैं। मेरा ध्यान तो बस इस पर था कि अब आगे क्या होगा। उनकी बातों से तो ऐसा लग रहा था जैसे उनके लिए ये सब आम बात थी.. पर मेरे लिए ये सब नया था।
इन सबसे मुझे तारा की उन सारी बातों पर यकीन हो चला था जिसमें उसने अलग-अलग लोगों के साथ सामूहिक सम्भोग की बात कही थी।
मैं ये सब सोच ही रही थी कि तभी मेरे पीछे से कांतिलाल जी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरा पल्लू नीचे गिरा दिया, मैं तुरंत पीछे घूमी तो वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे।
मैंने पलट कर अपना पल्लू वापस उठाने का प्रयास किया तो मेरे पुराने वाले मित्र ने मेरा हाथ पकड़ कहा- इन खूबसूरत स्तनों को क्यों छुपा रही हो?
मेरे ब्लाउज से मेरे अधनंगे स्तन दिख रहे थे और सबकी निगाहें मेरे स्तनों पर थीं।
तभी अमृता और रमा जी मेरे सामने खड़े हो गए और मेरे स्तनों की बराबरी अपने से करने लगीं। अमृता बिलकुल किसी गोरी अंग्रेज की तरह ही गोरी, लम्बी और सुन्दर थी। उसके स्तन करीब 36 इंच के एकदम सुडौल थे। उसके कूल्हे भी उठे हुए थे.. चूत के बाल साफ़ किए हुए थे जिस वजह से उसकी चूत फूली हुई और एकदम चमकती हुई दिख रही थी।
उसकी चूत के द्वार पर सम्भोग की वजह से पानी सा लगा था.. जिससे ये अंदाज़ा हो रहा था कि उसकी चूत अभी भी गीली थी।
यही हाल रमा जी का भी था, उनकी चूत पर भी पानी सा था और उनकी चूत की दोनों पंखुड़िया बाहर की ओर लटकी सी थीं। उनकी चूत पर हल्के काले बाल थे.. जो कि छंटाई किए हुए थे। उनके स्तन अमृता से बड़े और गेहुंए रंग के थे और उन पर बड़े-बड़े चूचुक थे।
तभी बातें करते हुए रमा जी मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगी। उन्होंने एक-एक करके मेरे ब्लाउज और ब्रा खोल कर अलग कर दिया।
इसके बाद क्या था.. कांतिलाल जी ने मेरे स्तनों को पीछे से दबाते हुए मुझे बिस्तर पर खींच लिया और मुझे अपने ऊपर पीठ के बल लिटा कर मेरे गर्दन और गालों का चुब्बन शुरू कर दिया। पता नहीं मुझे अजीब सा लग रहा था फिर भी मैं विरोध नहीं कर रही थी।
कांतिलाल जब मेरे स्तनों को दबाते हुए मुझे चूम रहे थे.. तब अमृता ने मेरी साड़ी खींच कर खोल दी थी और पेटीकोट का नाड़ा भी खोल कर उसे खींचते हुए निकाल कर दूर फेंक दिया था।
अचानक मैंने देखा के मेरी बाईं ओर विनोद आ गिरा और उसके ऊपर शालू चढ़ गई। शालू जोरों से होंठों को होंठों से लगाकर चूमने लगी।
विनोद तो पहले से नंगा था सो विनोद धीरे-धीरे शालू को चूमते हुए उसके कपड़े उतारने लगा और कुछ ही पलों में शालू भी नंगी हो गई। इधर कांतिलाल जी के हाथों की पकड़ और भी मजबूत सा लगने लगी थी।
मुझे और मेरे कूल्हों के बीच उनका तना हुआ लंड मुझे चुभता सा महसूस हो रहा था। तभी मेरी जांघों पर किसी के गरम हाथों का स्पर्श हुआ मैंने अपना सर थोड़ा ऊपर करके देखा तो मेरा वो पुराना दोस्त मेरी ओर मुस्कुराता हुआ मेरी चूत को पैन्टी के ऊपर से चूमने लगा। उसकी नज़रें मेरी ओर थीं और होंठ मेरी चूत के ऊपर थे। अचानक उन्होंने मेरी पैन्टी को पकड़ एक झटके में खींच का निकाल दिया और मुझे पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया।
इसके तुरंत बाद ही उन्होंने मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। इधर कांतिलाल जी मुझे जोरों से पकड़े हुए अपने ऊपर लिटाए थे और मेरे स्तनों को बेरहमी से मसलते हुए मेरी गर्दन.. कंधों पर चुम्बनों की बरसात किए जा रहे थे।
मेरे पुराने मित्र की मेरी चूत में घूमती हुई जुबान मुझे बैचैन सी करने लगी। मेरे बदन में गर्मी सी आने लगी और चूत गीली ही होती चली जा रही थी।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी इंसान पर किसी बुरी आत्मा का साया हावी होता चला जाता है.. वैसे ही मेरे बदन पर वासना का साया हावी होता जा रहा हो।
अब तो मुझे यूँ लगने लगा कि मैं अब वासना के अधीन होती जा रही हूँ।
मेरी बैचैन इतनी बढ़ गई कि मैं पूरी ताकत लगा कर कांतिलाल जी की बांहों से आजाद हो उठ बैठी।
वो लोग एकाएक मुझे देखने लगे.. शायद उन्हें लगा होगा कि मुझे ये पसंद नहीं आया।
मैंने कुछ पलों के लिए सांस ली.. तो सामने देखा रामावतार जी कुर्सी पर बैठे हुए थे और उनका लंड रमा जी पकड़े हुए थीं। उनके बगल में बबिता जी भी खड़ी थीं।
वो लोग सभी मुझे आश्चर्य से देख रही थीं.. तभी मैंने अपने उस दोस्त को पकड़ा और होंठों से होंठ लगा उन्हें चूमने लगी। ये देख सभी को थोड़ी राहत सी मिली और फिर से सब अपने-अपने कामों में लग गए।
मेरे चूमने की स्थिति देखते ही कांतिलाल जी उठ कर फिर से मेरे पीछे से मेरे स्तनों से खेलने और मुझे चूमने लगे।
मैंने चोर नजरों से कमरे का नजारा देखने की सोची.. फिर हल्के से आँखों को खोल कर देखा तो हमारे ठीक सामने रामावतार जी वैसे ही कुर्सी पर बैठे थे और रमा जी उनका लंड चूसने के साथ सहला भी रही थी, वो जमीन पर घुटनों के बल खड़ी हुई थीं।
बबिता रामावतार जी के होंठों से होंठों को लगा चुम्बन कर रही थीं।
इस वासना के खुले खेल को देख कर मेरी कामोत्तेजना और बढ़ गई थी।
चुम्बन के दौरान रामावतार जी के दोनों हाथ बबिता के साड़ी के अन्दर थे और वो उनके चूतड़ों को दबा और सहला रहे थे। कुछ पलों के चुम्बन और चूसने की क्रिया के बाद बबिता अलग हुई और अपनी साड़ी उठा कर उसने अपनी पैन्टी उतार दी।
बबिता ने अपनी साड़ी को कमर तक उठाया और अपनी एक टांग को कुर्सी के ऊपर रख कर अपनी चूत खोल दी। बस फिर क्या था.. रामावतार जी ने दोनों हाथों से बबिता की जांघों को पकड़ा और उसकी चूत को चाटने लगे।
इधर जब मैंने नजर घुमाई तो देखा कि शालू विनोद के लंड के ऊपर उछल रही थी और विनोद उसके स्तनों को दबाते हुए खुद भी अपनी कमर उठा कर शालू के धक्कों का जवाब दे रहा था।
विनोद और शालू को देख कर मेरा तो अब ध्यान बंट सा गया था। मेरा शरीर एक तरफ तो पूरी तरह कामोत्तेजित था.. पर मन उत्तेजना के साथ उत्सुक भी था क्योंकि जो अब तक सिर्फ तारा से सुना था और व्यस्क फिल्मों में देखा था, वो सब कुछ मेरी आँखों के सामने था।
अब तक सामूहिक सम्भोग बस जान-पहचान में सुना था.. पर यहाँ तो मेरे लिए एक को छोड़ सभी अजनबी थे। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं था कि किसी अजनबी से मैंने पहली बार सम्भोग किया हो या समूह में पहली बार सम्भोग किया हो.. पर अभी मैं ऐसे माहौल में थी.. जहाँ बस लोग इसलिए मिले थे कि एक-दूसरे के बदन का स्वाद ले सकें। शायद मुझे भी लगने लगा था कि जैसे हर खाने का स्वाद अलग होता है.. वैसे ही अलग-अलग जिस्मों का स्वाद भी अलग होता है।
मैं एक तरफ तो सम्भोग का आनन्द लेना चाह रही थी.. वहीं मेरे मन और मस्तिष्क में दूसरों को सम्भोग रत देखने की भी लालसा भी थी। इधर जो मेरे तन-बदन में खलबली मची थी.. उसके लिए भी मैं बेचैन हुई जा रही थी। मेरे जिस्म के साथ ये पहली बार था कि दो मर्द एक साथ खेल रहे थे।
ये मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा रही थी। पता नहीं मेरे दिमाग में क्या आया.. जैसे कोई बिजली की रफ़्तार से उपाय सा आया और मैं अपने दोस्त को धक्का दे अलग होकर कांतिलाल की तरफ पलट गई और उन पर टूट सी पड़ी।
मैंने उनको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और उनके ऊपर चढ़ बैठी। मैं उनके ऊपर झुक कर उनके होंठों से होंठों को लगा कर चूसने लगी और फिर क्या था वे भी मेरे मांसल चूतड़ों मसलते हुए मेरा साथ होंठों से देने लगे।
मुझे उनका तना हुआ लंड मेरी चूत के इर्द-गिर्द चुभता सा महसूस हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे वो मुझे छूते हुए कर अपने अन्दर घुसने के रास्ते की तलाश कर रहा हो।
मेरे दिमाग में तो अब दोहरी नीति शुरू हो गई थी, मैं अब सबको देखना चाहती थी, मैंने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। मैं यह बात तो समझ रही थी कि सभी लोग यहाँ जिस्मों का मजा लेने आए थे.. पर उनके दिमाग में मेरी छवि कुछ और थी.. और मैं वो छवि बरकरार रखना चाहती थी।
बस ये सारी बातें सोचते हुए मैंने अपने बाएँ हाथ से कांतिलाल जी के लंड को पकड़ा और अपनी कमर ऊपर उठा कर लंड को अपनी चूत की छेद पर थोड़ा रगड़ दिया।
बस फिर क्या था.. उनका सुपाड़ा तो पहले से लपलपा रहा था। इधर मेरी चूत बुरी तरह गीली होने के कारण सुपारा चिकनाई से और भी गीला हो गया।
मैंने लंड को थोड़ा सीधा पकड़ते हुए चूत की छेद के तरफ दिशा दी और अपनी कमर को धीरे-धीरे दबाने लगी।
अगले ही पल उनका सुपारा पूरी तरह मेरी चूत के भीतर समा चुका था।
उनका लंड पूरी तरह सख्त था.. सो मैंने अपना हाथ हटा उनको दोनों हाथों से जकड़ लिया और अपनी कमर लंड पर दबाती चली गई। कांतिलाल जी का लंड अब तक आधा घुसा था.. उन्होंने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पूरी ताकत से पकड़ा और नीचे से अपनी कमर जोर से उचका दिया।
उनका कड़क लंड सटाक से मेरी चूत में घुसता हुआ सीधा मेरे बच्चेदानी में लगा। अगले ही पल मेरे मुँह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ’ की आवाज कराह के साथ निकल पड़ी।
उनका लंड बहुत ही ज्यादा सख्त था और गरम महसूस हो रहा था। मुझे लगा कि वो जल्दी ही झड़ जाएंगे.. पर मैं उनके साथ पहली बार सम्भोग कर रही थी.. सो कुछ भी अंदाजा लगाना मुश्किल था।
मैं अब सब कुछ भूल कर उनके ऊपर अपनी कमर उचकाने लगी और उनका लंड मेरी चूत में अन्दर-बाहर होता हुआ मेरी चूत की दीवारों से रगड़ खाने लगा। मैं तो वैसे ही बहुत उत्तेजित थी और उनका भी जोश देख बहुत सुखद आनन्द महसूस कर रही थी। कुछ पलों के धक्कों के बाद कांतिलाल जी ने भी नीचे से पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया। हम दोनों की कमर इस प्रकार हिल रही थीं.. जैसे एक-दूसरे से ताल मिला रही हों। इस ताल-मेल में मुझे सच में बहुत मजा आने लगा था।
हम दोनों का हर पल जोश बढ़ता ही जा रहा था और धक्कों की गति तेजी से बढ़ती ही जा रही थी। हमें धक्के लगाते हुए करीब 10 मिनट होने चले थे और हम एक-दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते, चूतड़ों को दबाते मसलते, मजा ले रहे थे। वो मेरा एक दूध चूसते और काटते हुए धक्के लगाए जा रहे थे।
मुझे उनका लंड और उनका जोश वाकयी बहुत मजा दे रहा था। उनके धक्के कभी-कभी मेरी बच्चेदानी में जोर का चोट देते.. जिससे मैं एक मीठे दर्द के साथ कराह लेती और रुक जाती और फिर धक्के लगाने लगती।
मैं इधर मजे में सिसकते हुए कराह रही थी और वो उधर लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए मेरे जिस्म का मजा ले रहे थे। कुछ मिनट के बाद मेरा पूरा बदन गरम हो कर पसीना छोड़ने लगा और मेरे सर, सीने, जांघों के किनारों से पसीना बहने लगा। मेरी चूत पानी-पानी हो चली थी और पानी रिसने सा लगा था.. जो पसीने से मिलकर उनके लंड को तर कर रहा था। फिर धक्कों के साथ ‘फच.. फच..’ की आवाजें आने लगीं।
मैं अब थकान महसूस करने लगी थी, उनके धक्कों के सामने मेरे धक्के ढीले पड़ने लगे। वो भी काफी अनुभवी थे और जब इस तरह का जोश हो.. तो कोई मौका नहीं छोड़ना नहीं चाहता.. सो उन्होंने सटाक से मुझे बिस्तर पर पलट दिया और मेरे ऊपर से उठ गए।
मुझे तो पूर्ण संतुष्टि चाहिए थी तो मैं उनके यूं उठ जाने से एक पल के लिए बहुत ही झुंझका सी गई.. पर उन्होंने तुरंत तकिया लिया और मुझे कुतिया बन जाने का इशारा किया। मैं भी बिना समय गंवाए पलट कर घुटनों के बल झुक गई और अपने चूतड़ों को उठा दिया।
उन्होंने तकिया मेरे पेट के नीचे लगा दिया और मैं तकिए के सहारे झुक कर कुतिया बन गई।
वो मेरे पीछे घुटनों के बल खड़े हो गए और उन्होंने अपने लंड को बिना किसी देरी के मेरी चूत में घुसा दिया। अब वो मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से धक्के लगाने लगे। इस स्थिति में उनके धक्के काफी तेज़ और जोरदार लग रहे थे क्योंकि उनके पास अपनी कमर घुमाने की पूरी आजादी थी।
मैं तो इतनी जोश में थी कि उनका हर धक्का मुझे और भी ज्यादा मजा दे रहा था।
करीब दस मिनट ऐसे ही धक्के लगाने के बाद तो मुझे अँधेरा सा दिखने लगा.. मेरी साँसें तेज़ होने लगीं.. मैं हाँफने और सिसकारने लगी।
अब मैं झड़ने वाली थी.. तभी कांतिलाल जी मेरे ऊपर झुक गए और चूतड़ों को छोड़ मेरे स्तनों को दबोचते हुए धक्के मारने लगे।
दो मिनट के धक्कों के बाद उन्होंने मेरा एक स्तन छोड़ मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींची, मैं उनका इशारा समझ गई कि वे मुझे अपनी कूल्हे उठाने को कह रहे हैं.. ताकि मेरी चूत की और गहराई में उनका लंड जा सके।
मैंने थोड़ा और उठा दिया और वो धक्के लगाने लगे। मेरी तो जैसे जान निकलने जैसी हो रही थी क्योंकि अब मैं झड़ने वाली थी। बस 2-3 मिनट के धक्कों में ही मैंने कराहते हुए.. लम्बी-लम्बी साँसें छोड़ते हुए अपने बदन को ऐंठते हुए पानी छोड़ना शुरू कर दिया।
मैं झड़ते हुए अपने चूतड़ उनके लंड की तरफ तब तक उठाती रही.. जब तक कि मैं पूरी तरह झड़ न गई।
जब तक मैं सामान्य स्थिति में आती.. कांतिलाल जी धक्के भी लगाते ही रहे। मैं उसी अवस्था में उनके झड़ने का इंतज़ार करती रही। मेरा पूरा बदन ढीला सा पड़ने लगा था.. पर उनके धक्कों की रफ़्तार और ताकत में कोई कमी नहीं थी।
करीब 5 मिनट के धक्कों के बाद उनका लंड मेरी चूत के भीतर और भी गरम लगने लगा। मैं समझ गई कि अब इनका वक्त आ गया। फिर क्या था.. ‘उम्म्म उम्म्म्म ओह्ह्ह्ह..’ की आवाज करते हुए 8-10 जोरदार धक्कों के साथ उन्होंने मेरी चूत को अपने रस से भर दिया और 1-2 धीमे धक्कों के साथ मेरे ऊपर निढाल होकर हांफने लगे।
कुछ पलों के बाद जब थोड़े शांत हुए तो हम अलग-अलग होकर वहीं बिस्तर पर गिर गए।


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