सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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मैं इतनी जोश में आ गई कि मुझे लगा कि मैं अब तब छूट जाऊँगी, मेरा पानी निकलने लगा। वो कभी जीभ घुमाता तो कभी जीभ घुसाने की कोशिश करता।
उसने अब मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांतों में दबा कर काटने लगा मैं कसमसाने लगी और उसके सर के बालों को नोचने लगी, पर उसे तो किसी चीज़ की परवाह नहीं थी।
मैंने उसे धक्का दिया और वो पीठ के बल बिस्तर पर गिर गया मैंने अपनी ब्रा को निकाल दी और उसके ऊपर अपने दोनों पैर फैला कर चढ़ गई।
मैं उसके ऊपर लेट गई और उसके सर के बालों को जोरों से पकड़ कर उसके चेहरे को चूमने लगी, फिर उसके होंठों को होंठों से लगा कर चूसने लगी।
इसी बीच मैं अपनी योनि को उसके लिंग के ऊपर दबाती और अंडरवियर के ऊपर से ही अपनी कमर को घुमा-घुमा कर योनि को लिंग के ऊपर रगड़ती जा रही थी।
उसने मेरे मांसल चूतड़ों को अपनी हथेलियों से पकड़ कर दबाने के साथ मुझे अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया, मैं उसके पूरे चेहरे, गले और सीने को प्यासी गाय की तरह चूमने और चूसने लगी।
मैंने उसकी घुंडियों को बारी-बारी से चूसना शुरु कर दिया और वो उत्तेजना में मुझे अपनी बाँहों में पूरी ताकत से भींचने लगा, ऐसे मानो जैसे मुझे निचोड़ कर रख देगा आज।
मैं कभी उसके घुंडियों को और होंठों को अपनी दांतों से काट लेती तो वो सिसकी भरते हुये ‘आह-आह’ करने लगता और अपनी कमर को ऊपर उठाता, साथ ही मुझे अपनी ओर ऐसे खींचता, जैसे अंडरवियर के अन्दर से ही मेरी योनि में लिंग घुसा देना चाहता हो।
अब उसने मुझे करवट लेकर अपनी बगल में लिटाया और होंठों से होंठ लगा कर चूमने लगा और एक हाथ से मेरे स्तनों को दबाने लगा।
उसके हाथ स्तनों पर पड़ते ही मैं कराहने लगी, वो बेरहमी से उन्हें मसलने लगा।
मैं ‘उफ्फ्फ उफ्फ्फ हाय हाय..’ करती रही।
उसने मेरे चूचुक को चुटकी में भर कर मसल दिया तो दूध की एक तेज़ धार निकली जो उसके सीने पे लगी।
इसके बाद वो अपना मुँह मेरे स्तनों में लगा मेरे चूचक को मुँह में भर चूसने लगा ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दूध पी रहा हो।
मुझे ठण्ड लग रही थी सो मैंने एक हाथ से कम्बल को खींचा और दोनों को ढक लिया, पर अगले ही पल उसने उसे हटा मेरी कमर तक सरका दिया।
मैंने भी उसके सर को एक हाथ से सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके अंडरवियर में डाल उसके लिंग को हाथ से पकड़ लिया। वो मेरे स्तनों का दूध पीने में मग्न था और मैं उधर उसके लिंग से खेलने में।
उसका मोटे लिंग को पकड़ कर कभी मैं हिलाती, तो कभी सुपाड़े के ऊपर ऊँगलियां फिराती तो कभी उसके अंडकोष को दबाती। उसके अंडकोष को जब मैं दबाती तो वो दर्द से सहम सा जाता।
अब उसके लिंग के मूत्रद्वार से चिकना तथा लसलसा सा पानी भी बूंद-बूंद कर निकलने लगा था।
उसने अब आगे बढ़ने की सोची और मुझे चित लिटा दिया और पहले वाले स्तन को छोड़ दूसरे को पकड़ उसमें से दूध पीने लगा और पहले वाले को हाथ से मसलता जा रहा था।
उसने दोनों हाथों से मेरी दोनों स्तनों को पकड़ के स्तनपान करने लगा और और मैंने अपनी दोनों टांगों से उसके अंडरवियर को खोले की कोशिश शुरू कर दी उसके घुटनों तक सरका दिया।
वो पूरी मस्ती में मेरे स्तनों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा साथ ही उन्हें कभी-कभी काट लेता।
मुझे भी अब इतनी खुमारी चढ़ गई कि मैं बड़बड़ाने लगी- हाय क्या करते हो… आराम से चूसो जानू… तुम्हारे ही हैं… प्यार से प्लीज ह्ह्हम्म्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म…!
उसने जी भर कर चूसने के बाद मेरे पेट को हर जगह चूमा फिर मेरी नाभि में जीभ डाल कर प्यार किया मेरी हालत और भी बुरी होती जा रही। पर मैंने शायद ठान ली थी जैसे कि आज पूरा मजा लूँगी, सो उसे वो हर चीज़ करने दिया जो उसका मन कर रहा था।
थोड़ी देर नाभि से खेलने के बाद वो अपनी जीभ को रगड़ते हुए मेरी योनि के ऊपर ले आया और मेरी योनि के बालों वाले हिस्से को चूमने लगा।
फिर मेरी पैंटी जो अभी जाँघों तक थी, उसे पूरा निकाल दिया और मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरी टांगों को फैला कर चौड़ी कर दिया।
उसने मेरी योनि को बड़े प्यार से देखा और बालों को योनि के ऊपर से हटाते हुए कहा- कितनी प्यारी बेबी(योनि) है आपकी, किसी पावरोटी की तरह फूली और एक खिले हुए फूल की तरह सुंदर…!
फिर उसने उसे चूम लिया और फिर एक उंगली डाल उसे टटोलने लगा मैं बिल्कुल एक भूखी नागिन की तरह हो गई और सिसकारने और कराहने लगी।
और मैंने अपनी दोनों टाँगें उसके कंधों पर चढ़ा कर उसको गले से अपनी जाँघों में दबा दिया। उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और अपनी जीभ को मेरी योनि की दरार में ऊपर से नीचे फिराया और चाटने लगा।
वो मेरी योनि के छेद में जीभ को घुसाने की कोशिश करता और फिर दोनों पंखुड़ियों को दांतों से दबा कर खींचता और होंठों से चूसता जैसे कोई खाने को चूसता हो।
मैं तो इतनी गर्म हो चुकी थी इस ठण्ड में भी कि मेरा बदन बाहर से तो कांप रहा था, पर अन्दर आग ऐसी कि किसी को जला कर राख कर दे।
मैंने बहुत देर तक उसे बर्दाश्त किया, फिर उसे अपनी टांगों से धक्का दिया तो वो अलग हो गया और मैं लपक के उठ कर उसके लिंग को दबोच लिया और चूसने लगी।
मैं पूरे जोश में उसके सुपाड़े को दांतों से काटने लगी तो मुझसे विनती करने लगा- आह नहीं.. आह नहीं.. बस करो…!
उसकी ऐसी हालत देख मैंने उसके अंडकोष को मुठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी, इससे तो और वो और भी तड़पने लगा और कहने लगा- आह नहीं… आह नहीं.. बस करो.. मर जाऊँगा.. जान..!
उसने जोर लगा कर मुझे हटाया और मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरे ऊपर आ गया।
उसने मेरी दोनों हाथों को पकड़ा और कहा- आज तुमने मुझे बहुत तड़पाया है अब बदला लूँगा…!
मैं भी तो जैसे यही चाह रही थी, सो मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके बीच उसे जकड़ लिया। वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे होंठों को होंठों से लगा जोरों से चूसने लगा।
मैंने कम्बल को खींच दोनों को ढक लिया। अब वो अपना पूरा वजन मेरे ऊपर लाद कर लेट गया, उसका मुँह मेरे मुँह से चूमने में लगा था, उसके हाथ मेरे बालों और कंधे को थामे थे, उसका सीना मेरे स्तनों के ऊपर था, पेट पर पेट नाभि पर नाभि और योनि पर लिंग था।
मैंने एक हाथ से उसके पीठ को जोर लगा कर पकड़ी थी, दूसरे हाथ से उसके कूल्हों को पकड़ कर खींच रही थी और टांगों को उसके जाँघों पर चढ़ा दी थी।
उसका रोम-रोम मुझे अन्तरंग सुख दे रहा था, उसके बाल मेरे बदन में गुदगुदी सी पैदा कर रहे थे, दोनों की कमर ऐसे नाच रही थी, जैसे योनि लिंग को खा जाना चाहती हो और लिंग योनि में कहीं छिप जाने को तड़प रहा हो।
हम दोनों ही एक-दूसरे से साँपों की तरह लिपटे एक-दूसरे को प्यार करने और अंगों को सहलाने लगे।
मुझे अब सहन नहीं हो रहा था और मैंने उससे कह दिया- अब देर किस बात की है, जल्दी से लंड मेरी बुर में घुसा दो..!
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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उसने मेरी बात सुनते ही कहा- अभी लो जान..!
उसने लिंग को एक हाथ से पकड़ कर मेरी योनि की छेद पर सुपारे को भिड़ा दिया और फिर मुझे कंधों से पकड़ कर कहा- तैयार हो जाओ मेरी जान!
मैंने भी उसके कमर को हाथों से पकड़ अपनी कमर उठा दी, उसका गर्म सुपाड़ा मेरी योनि के मुख में था, तभी उसने जोर से झटका दिया, मैं कराह उठी- उई माँ.. मर गईईईईइ… प्यार से…करो न!
उसका लिंग एक झटके में मेरी योनि की दीवारों को चीरता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया।
मुझे दर्द तो हुआ पर जो सुख मिला वो किसी स्वर्ग के सुख से कम नहीं था। उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और अपने लिंग को मेरी योनि में और दबाता गया। मैं भी उसे अपनी योनि के ऊपर उसे खींचने लगी, साथ ही कमर को उठाती जा रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मैं उठना चाह रही हूँ, पर वो मुझे उठने नहीं देना चाहता है और मुझे और जोरों से दबाता रहा।
हालांकि उसका लिंग पूरी तरह मेरी योनि में था, फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे अभी और अन्दर जाना चाहता हो। सो बार-बार जोर पर जोर लगा कर लिंग मेरी योनि में दबाता। मैं किसी हिरनी की तरह नीचे से अपने कूल्हों को नचाने लगी और जाँघों को खोलती, फिर उसमें उसके कमर को जकड़ उसे खींचती, हाथों और पैरों से फिर खोलती और फिर खींचती। मुझे ऐसे में बहुत मजा आ रहा था और उसे भी।
मेरी योनि बहुत गीली हो चुकी थी और मुझे उसका लिंग योनि के अन्दर फिसलता सा लगने लगा। इस बीच हम लगातार एक-दूसरे को चूमते और चूसते जा रहे थे।
उसने अब मुझसे कहा- कितना मजा आ रहा है, आपका जिस्म किसी गद्दे जैसा है जहाँ पकड़ता हूँ सिर्फ मांस ही मांस मिलता है और योनि कितनी गर्म और चिपचिपी है… मुझे बहुत मजा आ रहा है।
मैंने भी अपनी योनि को भींचते हुए उसके लिंग को दबाती हुई बोली- अब देर किस बात की है.. जोर लगाओ और चोदो मुझे…!
उसने मेरी बात सुनते ही एक हाथ मेरे चूतड़ के नीचे रख कर पकड़ा और अपना लिंग थोड़ा बाहर खींच कर फिर से धक्का दिया और फिर.. और फिर.. धक्कों पर धक्कों को लगाने लगा।
मैं 5-6 धक्कों में ही मदमस्त हथिनी सी हो गई और बड़बड़ाने लगी- ओह… ओह… म्मम्म… ह्म्म्म… हाय जानू कितना मजा आ रहा है… चोदते रहो..!”
वो भी धक्के लगाते हुए कहने लगा- ह्म्म्म हाँ.. लो मेरी जान और लो बुर को उछालो और.. मस्त बेबी है बड़ी प्यारी है…
हम दोनों वासना के सागर में गोते लगाने लगे, हमने पूरी ताकत झोंक दी थी। हम दोनों एक-दूसरे के जिस्मों को ऐसे मसल रहे थे, जैसे बरसों से प्यासे हों।
वो जोरों से धक्के लगाए जा रहा था और मैं भी अपनी कमर ऊपर कर उसके धक्कों का स्वागत किए जा रही थी। वो इतनी देर में हाँफने लगा था और मेरे मुँह से भी सिसकारियाँ बंद होने का नाम नहीं ले रही थीं।
बाहर ठण्ड थी, पर कम्बल के अन्दर हम दोनों पसीने में लथपथ हुए जा रहे थे।
समय के साथ उसका जिस्म और भी गर्म होता जा रहा था और मुझे उसके गर्म बदन का स्पर्श बहुत सुखद लग रहा था। वो ज्यों-ज्यों धक्के लगाता, उसका बदन सख्त होता जाता। मुझे ऐसा लगने लगा जैसे कोई गठीला सांड मेरे ऊपर चढ़ा हो।
उसने मेरे गले पर जीभ फिराते हुए मुझे चाटना शुरू कर दिया और कहा- आपके जिस्म की खुशबू मुझे पागल कर रही है।
वैसे मुझे भी उसके जिस्म की खुशबू मदहोश सा किए जा रही थी।
उसने मेरे स्तनों को दबाया और कहा- मुझे चोदते हुए आपके दुद्धू चूसने हैं।
मैंने भी मस्ती में कह दिया- जो मर्ज़ी करना है.. करो.. मगर चोदते रहो..!
उसने कम्बल को हटा दिया और मेरे स्तनों के ऊपर टूट पड़ा। वो उन्हें बारी-बारी से दबाने और चूसने लगा और साथ ही धक्के भी लगाने लगा।
उसके धक्के अब धीमे पड़ने लगे। उसने मेरी योनि में रुक-रुक कर धक्के लगाने शुरू कर दिए, पर धक्के इतने जोरदार होते कि हर धक्के पर मैं कुहक जाती। मैं समझ गई कि वो थक गया है।
मैंने उससे पूछा- अब क्या हुआ.. ऐसे क्यों चोद रहे हो, तेज़ी से चोदो न!
उसने कहा- हाँ.. करता हूँ… थोड़ा रुको!
तब मैंने कहा- आप नीचे हो जाओ अब..!
उसने एक हाथ मेरे कूल्हों के नीचे रखा और दूसरा मेरे पीठ पर फिर करवट ले कर पलट गया। अब मैं उसके ऊपर थी, पर उसने लिंग को बाहर नहीं आने दिया शायद वो मेरी योनि से लिंग बाहर नहीं निकालना चाहता था।
मैंने उसके सीने पर हाथ रख कर सीधी होकर उसके लिंग पर बैठ गई और धक्के लगाने लगी। मेरी योनि से पानी रिस-रिस कर धीरे-धीरे बहने लगा था, जिसकी वजह से उसके अंडकोष भीग गए थे और जब मैं उछलती तो मेरे कूल्हों पर लगता जिससे मुझे चिपचिपाहट महसूस हो रही थी।
मैं पूरी मस्ती से भर गई थी। उसका लिंग मेरी योनि के अन्दर हलचल सा मचा रहा था और मैं पूरी ताकत से धक्के लगाने लगी। कुछ ही देर में मेरी जांघें भी जवाब देने लगीं और मेरी गति धीमी पड़ने लगी।
मैंने उसकी तरफ देखा और उसने मेरी तरफ और उसने मेरे स्तनों को मसलते हुए कहा- अपने दुद्धू मुझे पिलाओ..!
मैंने भी बड़े प्यार से अपने स्तन को हाथ में पकड़ा और झुक कर उसके मुँह में लगा दिया और दूसरे हाथ से उसके सर को सहारा देकर उसे स्तनपान कराने लगी।
उसने भी चूचुक को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया और दोनों हाथों से मेरे नितम्बों को पकड़ अपनी ओर खींचने लगा और नीचे से अपनी कमर उठा कर नाचने लगा।
उसके ऐसा करने से उसका लिंग भी मेरी योनि में घूमने लगा। मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैं भी अपनी योनि को उसके लिंग पर दबाते हुए कमर को उसी के साथ नचाने लगी।
कुछ देर के बाद वो मेरे स्तनों को चूसते हुए उठने लगा, उसका लिंग अभी भी मेरी योनि में था। उसके पैर अभी भी सीधे थे पर वो उठ कर बैठ गया था और अब मैं उसकी गोद में थी।
उसने मेरी टांगों को आगे की तरफ कर सीधा कर दिया और मुझे पीठ की तरफ झुका कर मेरे ऊपर चढ़ गया। मैंने अपनी टाँगें ऊपर उठा दीं और फैला दीं।
उसने मेरे कन्धों को पकड़ा और मेरे होंठों पर होंठ रख कर चूसने लगा। मैंने खुद को तैयार कर लिया कि अब वो क्या करने वाला है, उसने अपनी कमर पीछे की और फिर 2-4 बार जोर का धक्का दिया। मैं ‘उई माँ’ करते हुए कराहने लगी।
इसके बाद तो उसने लगातार धक्के देने शुरू कर दिए।
मैं भी अपनी पूरी रफ़्तार से अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर उसका साथ देने लगी। मुझे बहुत मजा आने लगा था और मैं बस चरमसुख से कुछ दूर ही थी।
मैंने उसे अपनी बाँहों में कस लिया और टांगों से उसे अपनी और खींचते हुए कराह कर बोली- और तेज़ और तेज़ आह्ह्ह आह्ह्ह चोदो मुझे, मेरी बेबी को चोदो, मेरा पानी निकाल दो.. अपने लंड से..आःह्ह्ह आह्ह्ह चोदो न…!
उसने भी पूरे जोश से धक्के देते हुए कहा- हाँ.. हाँ.. हाँ.. लो.. ये लो चुद लो , आज आपको मुता दूँगा चोद-चोद कर, सारा रस निचोड़ दूँगा बेबी की, ये लो ये लो..!
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मैं ‘ओह ओह ओह ओह’ करती अपने शरीर को ऐंठने लगी, मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने और ढीली होने लगीं और मैंने उसे अपनी पूरी ताकत से पकड़ कर अपनी योनि को ऊपर उठाती हुई झड़ गई।
मैं अभी शांत हुई भी नहीं थी कि उसने भी जोरों के धक्के लगाए और अपना रस मेरी योनि के भीतर छोड़ दिया और मेरे ऊपर निढाल हो कर लेट गया।
मैं भी अपनी आँखें बंद किए शांत लेट गई। मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया वो मेरे बगल में पीठ के बल लेट गया और सुस्ताने लगा। मैं भी अपने साँसों पर काबू पाने की कोशिश में थी।
मुझे अब ठण्ड लगने लगी थी, मेरी योनि भी ‘लसलस’ करने लगी थी, सो मैंने कम्बल ओढ़ने और योनि को साफ़ करने सोच उठ कर बैठ गई। तभी मेरी नज़र उसके लिंग पर पड़ी।
मैंने देखा कि उसका लिंग अभी भी तनतनाया हुए खड़ा था जबकि उसे झड़े कुछ ही मिनट हुए थे। मैं इससे पहले कि कुछ समझ पाती उसने झटके से पकड़ अपने ऊपर गिरा दिया और कहा- अभी कहाँ जा रही हो जान, अभी तो मजा बाकी है।
और उसने मेरी टांगों को अपनी कमर के दोनों तरफ फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर लिया और फिर अपना लिंग मेरी योनि में घुसा दिया और कहा- चलो अब चुदो।
मैं हैरान थी कि यह कैसे हो रहा है क्योंकि अक्सर मर्द झड़ने के बाद इतनी जल्दी दुबारा तैयार नहीं होते, उन्हें दुबारा तैयार होने में काफी समय लगता है।
मैंने उससे पूछा- क्या आपने कोई दवा खाई है?
उसने कहा- हाँ.. आपको चोदने के ख्याल से मैं पागल हुआ जा रहा था, तो मैंने एक कैप्सूल मैनफोर्स का खा लिया है। क्योंकि मैं रात भर आपको चोदना चाहता था।
मैंने उससे कहा- अपनी मर्दानगी पर शक था क्या आपको?
उसे शायद मेरी यह बात बुरी लग गई और वो आक्रामक रूप लेने लगा। उसने मुझे मेरे बालों से पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मेरे एक स्तन को बेरहमी से मसलते हुए कहा- अब नाटक बंद भी करो और चुदो।
मैं सोचने लगी कि यह क्या हो गया, अभी तक तो अच्छा खासा माहौल था।
फिर मेरे मन में ख्याल आया कि औरत के लिए भला यही होता है कि मर्द का साथ दे, क्योंकि मर्द औरतों से शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर होते हैं तो मैंने भी अपनी भलाई के लिए उसी की भाषा अपना ली।
मैंने कहा- अच्छा यह बात है… तो लो।
मैंने भी जोर का एक धक्का दिया।
फिर क्या था उसने भी जवाब में नीचे से धक्का दिया और हम दोनों धक्के पे धक्के देने लगे। वो मुझे नीचे से धक्के दे रहा था और मैं ऊपर से, साथ ही वो मेरी जीभ को चूसने लगा।
वो इतनी जोश में था जैसे उसके रगों का खून दुगनी रफ़्तार से दौड़ रहा हो, पागलों की तरह से मुझे नोचने-खसोटने लगा। वो मेरे मुँह से निकलती लार को पी जाता।
उसके ऐसे जोश ने मुझे भी जोश में ला दिया और मैं भी उसके लिंग को पूरी तेज़ी के साथ अपनी योनि में अन्दर-बाहर करने लगी और अपने नाख़ून उसके पूरे जिस्म में चुभाने लगी।
उसने मुझे धक्का दे कर नीचे गिरा दिया और मेरी टांगों को पकड़ कर मुझे पेट के बल उल्टा कर दिया। उसने मेरे हाथों और पैरों को बिस्तर पर फैला दिया, ऐसे जैसे कोई मेंढक मरने के बाद हो जाता है।
उसने मेरे पीछे झुक कर मेरी पीठ को चूमना शुरू कर दिया और फिर जहाँ-तहाँ दांतों से काटने लगा। मैं तड़प उठी और कराहने लगी, वैसे तो मैं चीखना चाहती थी पर बच्चों की वजह से अपनी आवाज दबा दे रही थी, पर अपनी कराह नहीं रोक पा रही थी।
वो ऐसी हरकतें कर रहा था, जैसे आज मुझे मार डालेगा, तो मैंने अपनी समझ लगाई और उससे कहा- जानू.. क्या करते हो.. प्यार से करो न.. मैं कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ, तुम्हारे लिए ही तो हूँ।
मेरी बातों का उस पर कुछ असर सा दिखने लगा और उसने मेरे कूल्हों को दबाते हुआ पूछा- ये बड़े और मोटे चूतड़ किसके लिए हैं?
मैं समझ गई कि ये दवा का असर है, सो मौके को समझते हुए कहा- आपके लिए जानू।
उसने कहा- अगर मेरे लिए हैं, तो मैं इन्हें खा जाना चाहता हूँ।
मैंने कहा- ठीक है.. तुम्हारी मर्ज़ी, पर प्यार से।
उसने कहा- हाँ.. जान प्यार से ही खाऊँगा.. इतनी प्यारे जो हैं।
फिर उसने मेरे कूल्हों को चाटना शुरू कर दिया, उसकी जीभ ने मेरे कूल्हों को गीला कर दिया और दांतों से काटने की वजह से कूल्हों पर निशान बनने लगे थे।
उसने मेरी योनि में दो ऊँगलियां घुसा दीं और फिर पूछा- यह पावरोटी सी बुर किसके लिए है जान?
मैंने कहा- आप ही तो चोद रहे हो तो और किसके लिए होगी, आपके लिए ही है।
उसने कहा- इसमें क्या जाएगा?
मैंने कहा- आपका लंड…
इसके बाद उसने मुझे कूल्हों को ऊपर उठाने को कहा, फिर मेरी योनि में लिंग घुसेड़ दिया और जोर-जोर से धक्के देने लगा। वो मुझे बड़ी बेरहमी से धक्के देता रहा, मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं मर ही जाऊँगी। पर कुछ ही देर में मैं फिर से गर्म हो गई।
उसने कहा- मैं आज तुम्हारी बेबी को चोद कर सारा रस निकाल दूँगा।
मैंने भी जोश में आकर कह दिया, “हाँ.. निकाल दो.. मेरी बुर से पसीना.. चोद-चोद कर, मेरी बेबी को चोदो।
उसके धक्के इतने तेज़ होते कि मैं सरक के आगे चली जाती। तब उसने मेरे बालों को एक हाथ से पकड़ा और दूसरे से मेरे कंधे को जोर से थामा, फिर तेज़ी से धक्के देने लगा। उसके तेज़ धक्कों से मैं दस मिनट के भीतर दो बार झड़ गई और कुछ देर बाद वो भी।
मैं हाँफते-हाँफते गिर गई और कुछ देर यूँ ही पड़े रहने की सोची, पर उसने मुझे पल भर का आराम नहीं करने दिया। सुबह चार बजे तक मुझे जैसे-तैसे उठा-पटक करके मेरे साथ सम्भोग करता रहा।
अंत में वो थक कर इतना चूर हो गया कि उससे हिला नहीं जा रहा था और सो गया। मैंने भी चैन की साँस ली और सो गई।
मैं सुबह उठ कर संतुष्ट लग रही थी पर मुझे इस बात का बुरा लगा कि उसने दवा खाई, सो मैंने उससे कह दिया था कि हम दुबारा कभी नहीं मिलेंगे, जिसकी वजह से उसे भी बुरा लगा। करीब एक हफ़्ते तक उसने मुझसे बात नहीं की, लेकिन हम लाख किसी से दूर जाना चाहें मुमकिन तभी होता है जब किस्मत चाहे और हुआ भी वही, दो हफ्ते बाद हमारी बात-चीत फिर शुरू हो गई और इस बीच सम्भोग भी हुआ। कुछ दिनों ये चलता रहा, जब तक कि अमर वापस नहीं आए।
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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हम तीन सहेलियाँ आज भी एक-दूसरे के संपर्क में हैं पर समय के साथ पारिवारिक काम-काज में व्यस्त रहने की वजह से मिलना-जुलना कम हो गया है।

मैं धन्यवाद करना चाहूँगी उन लोगों का जिन्होंने फोन और इन्टरनेट जैसे साधन बनाए जो हमें आज भी जोड़े हुए हैं।

हेमलता भी मेरी तरह एक मध्य वर्ग की एक पारिवारिक महिला है, उम्र 46, कद काफी अच्छा-खासा है, लगभग 5’8″ होगा, उम्र के हिसाब से भारी-भरकम शरीर और 2 बच्चों की माँ है। उसके दोनों बच्चों की उम्र 24 और 21 है और अभी पढ़ाई ही कर रहे हैं।

हेमलता हम तीन सहेलियों में से एक थी, जिसकी शादी सबसे पहले 21 वर्ष की आयु में हुई और बच्चे भी जल्दी हुए। उसके पति एक सरकारी स्कूल में क्लर्क थे और जब उसका दूसरा बच्चा सिर्फ 2 साल का था तब स्कूल की छत बरसात में गिर गई, जिसमें उसके पति के सर पर गहरी चोट आई।

शहर के सरकारी सदर अस्पताल ने उन्हें अपोलो रांची भेज दिया, पर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। यह समाचार मेरे लिए काफी दु:खद था मैंने उसके बारे में पता किया तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया हो।

वो केवल 28 साल की एक जवान महिला थी जो अब दो बच्चों की विधवा माँ थी।

खैर… उसे इन सबसे उबरने में काफी समय लग गया और एक अच्छी बात यह हुई कि उसे अपने पति की जगह नौकरी मिल गई। उसने अपनी पढ़ाई शादी के बाद भी जारी रखी थी और स्नातक पूरा कर लिया था। जिसके वजह से आज वो अपने पति की कुर्सी पर है और बच्चों का भविष्य अच्छा है।

मैंने और तारा ने अपनी तरफ से उसे इस भारी सदमे से उबरने में हर संभव प्रयास किया जहाँ तक हमारी सीमाएँ थीं।

हेमा की नौकरी लग जाने से परिणाम भी सही निकला, दफ्तर जाने और काम में व्यस्त होने के बाद वो पूरी तरह से इस हादसे से उबर चुकी थी।

चार साल बीत गए थे। इस बीच तारा तो नहीं पर मैं हफ्ते में एक बार उससे बात कर लिया करती थी और कभी उड़ीसा से घर जाती तो मिल भी लेती थी।

एक अकेली जवान औरत किसी शिकार की तरह होती है, जिसके दो शिकारी होते हैं। एक तो मनचले मर्द जो किसी अकेली औरत को भूखे भेड़िये की तरह देखते हैं और दूसरा उसका स्वयं मन भी उसे गलत रास्ते पर ले जाता है।

मनचले मर्दों को तो औरत दरकिनार भी कर दे पर अपने मन से कैसे बचे कोई..!

यही शायद हेमा के साथ भी अब होने लगा था, वो दूसरे मर्दों से तो खुद को बचाती फिर रही थी, पर अपने मन से बचना मुश्किल होता जा रहा था।

हेमा अब 33 साल की एक अकेली जवान विधवा थी और दो बच्चों की माँ भी, इसलिए कोई मर्द उसे पत्नी स्वीकार ले असंभव सा था। ऊपर से आज भी छोटे शहरों में समाज, जो औरतों की दूसरी शादी पसंद नहीं करता।

इसी सिलसिले में मैंने एक बार हेमा के घरवालों से बात की पर वो तैयार नहीं हुए ये कह कर कि हेमा अब किसी और घर की बहू है।

पर मेरे बार-बार विनती करने पर उन्होंने हेमा के ससुराल वालों से बात की, पर जवाब न सिर्फ नकारात्मक निकला बल्कि नौकरी छोड़ने की नौबत आ गई।

उसके ससुराल वालों ने यह शक जताया कि शायद हेमा का किसी मर्द के साथ चक्कर है सो उसे जोर देने लगे कि नौकरी छोड़ दे।

पर हेमा जानती थी कि उसके बच्चों का भविष्य उसके अलावा कोई और अच्छे से नहीं संवार सकता इसलिए उसने सभी से शादी की बात करने को मना कर दिया और दुबारा बात नहीं करने को कहा।

हालांकि उसने हमसे कभी शादी की बात नहीं की थी, बस हम ही खुद भलाई करने चले गए जिसकी वजह से हेमलता से मेरी दूरी बढ़ने लगी।

मैंने सोच लिया था कि अब उससे कभी बात नहीं करुँगी, पर बचपन की दोस्ती कब तक दुश्मनी में रह सकती है।

कुछ महीनों के बाद हमारी बातचीत फिर से शुरू हो गई।

वो शाम को जब फुर्सत में होती तो हम घन्टों बातें करते और मैं हमेशा यही प्रयास करती कि वो अपने दु:खों को भूल जाए। इसलिए वो जो भी मजाक करती, मैं उसका जरा भी बुरा नहीं मानती। वो कोई भी ऐसा दिन नहीं होता कि मेरे पति के बारे में न पूछे और मुझे छेड़े ना।

धीरे-धीरे मैंने गौर किया कि वो कुछ ज्यादा ही मेरे और मेरे पति के बीच जो कुछ रात में होता है उसे जानने की कोशिश करने लगी।

एक बार की बात है मैं बच्चे को स्कूल पहुँचा कर दुबारा सो गई क्योंकि मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी। तभी हेमा ने मुझे फोन किया मेरी आवाज सुन कर वो समझ गई कि मैं सोई हुई थी।

उसने तुरंत मजाक में कहा- क्या बात है.. इतनी देर तक सोई हो… जीजाजी ने रात भर जगाए रखा क्या?

मैंने भी उसको खुश देख मजाक में कहा- क्या करूँ… पति परमेश्वर होता है, जब तक परमेश्वर की इच्छा होती है.. सेवा करती हूँ!

उसने कहा- लगता है.. कल रात कुछ ज्यादा ही सेवा की है?

मैंने कहा- हाँ.. करना तो पड़ता ही है, तूने नहीं की क्या?

मेरी यह बात सुन कर वो बिल्कुल खामोश हो गई। मैंने भी अब सोचा कि हे भगवान्… मैंने यह क्या कह दिया!

वो मेरे सामने नहीं थी, पर मैं उसकी ख़ामोशी से उसकी भावनाओं को समझ सकती थी। पर उसने भी खुद को संभालते हुए हिम्मत बाँधी और फिर से मुझसे बातें करने लगी।

दरअसल बात थी कि मैं अपने एक चचेरे भाई की शादी में घर जाने वाली थी और उसने यही पूछने के लिए फोन किया था कि मैं कब आऊँगी, क्योंकि गर्मी की छुट्टी होने को थी तो वो भी मायके आने वाली थी।

शाम को मैंने उसका दिल बहलाने के लिए फिर से उसे फोन किया। कुछ देर बात करने पर वो भावुक हो गई।

एक मर्द की कमी उसकी बातों से साफ़ झलकने लगी। मैं भी समझ सकती थी कि अकेली औरत और उसकी जवानी कैसी होती है। सो मैंने उससे उसके दिल की बात साफ़-साफ़ जानने के लिए पूछा- क्या कोई है.. जिसे वो पसंद करती है?

उसने उत्तर दिया- नहीं.. कोई नहीं है और मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती.. मैं एक विधवा हूँ..!

तो मैं हैरान हो गई कि अभी कुछ देर पहले इसी तरह की बात कर रही थी, अब अचानक क्या हो गया। मैंने भी उसे भांपने के लिए कह दिया- अगर ऐसा सोच नहीं सकती तो फिर हर वक़्त क्यों किसी के होने न होने की बात करती हो..!

उसने भी मेरी बात को समझा और सामान्य हो गई।

तब मैंने सोचा कि चलो इसके दिल की बात इसके मुँह से आज निकलवा ही लेती हूँ और फिर मैंने अपनी बातों में उसे उलझाने की कोशिश शुरू कर दी।

कुछ देर तो वो मासूम बनने का ढोंग करती रही पर मैं उसकी बचपन की सहेली हूँ इसलिए उसका नाटक ज्यादा देर नहीं चला और उसने साफ़ कबूल कर लिया कि उसे भी किसी मर्द की जरुरत है जो उसके साथ समय बिताए… उसे प्यार करे..! तब मैंने उससे पूछा- क्या कोई है.. जो उसे पसंद है?

तब उसने बताया- हाँ.. एक मर्द कृपा है जो मेरे स्कूल में पढ़ाता है और हर समय मुझसे बात करने का बहाना ढूंढता रहता है.. वो अभी भी कुँवारा है, पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि वो मुझे पसंद करता है या सिर्फ मेरी आँखों का धोखा है!

तब मैंने उसे समझाया कि वो उसे थोड़ा नजदीक आने दे ताकि पता चल सके आखिर बात क्या है।

उसने वैसा ही किया और एक दिन हेमा ने मुझे फोन करके बताया कि उस आदमी ने उससे कहा कि वो उससे प्यार करता है और शादी करना चाहता है।

पर हेमा ने उससे कह दिया- शादी के लिए कोई भी तैयार नहीं होगा और सबसे बड़ी मुसीबत तो जाति की हो जाती क्योंकि वो दूसरी जाति का है।

तब मैंने हेमा से पूछा- आखिर तू क्या चाहती है?

उसने खुल कर तो नहीं कहा, पर उसकी बातों में न तो ‘हाँ’ था न ही ‘ना’ था। मैं समझ गई कि हेमा चाहती तो थी कि कोई मर्द उसका हाथ दुबारा थामे, पर उसकी मज़बूरी भी थी जिसकी वजह से वो ‘ना’ कह रही थी।

खैर… इसी तरह वो उस आदमी से बातें तो करती पर थोड़ा दूर रहती, क्योंकि उसे डर था कहीं कोई गड़बड़ी न हो जाए।

पर वो आदमी उसे बार बार उकसाने की कोशिश करता।

एक दिन मैंने हेमा से कहा- मेरी उससे बात करवाओ।

तो हेमा ने उसकी मुझसे बात करवाई फिर मैंने भी उसे समझाया।

वो लड़का समझदार था सो वो समझ गया पर उसने कहा- मेरे लिए हेमा को भूलना मुश्किल है।

शादी का दिन नजदीक आ गया और मैं घर चली आई और हेमा से मिली।

मैंने उसके दिल की बात उसके सामने पूछी- क्या तुम उस लड़के को चाहती हो?

उसने कहा- चाहने न चाहने से क्या फर्क पड़ता है जो हो नहीं सकता, उसके बारे में सोच कर क्या फ़ायदा!

मैंने उससे कहा- देखो अगर तुम उसे पसंद करती हो तो ठीक है, जरुरी नहीं कि शादी करो समय बिताना काफी है, तुम लोग रोज मिलते हो अपना दुःख-सुख उसी कुछ पलों में बाँट लिया करो।

तब उसने कहा- मैं उसके सामने कमजोर सी पड़ने लगती हूँ.. जब वो कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है।

मैंने उससे पूछा- क्या लगता है तुम्हें..!

मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता!

मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..!

और मैं हँसने लगी।

मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी।

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Post by jay »

मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता!

मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..!

और मैं हँसने लगी।

मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी।

मैंने उसका दिल बहलाने के लिए कहा- एक काम कर.. शादी-वादी भूल जा सुहागरात मना ले..!

वो मुझे मजाक में डांटते हुए बोली- क्या पागलों जैसी बातें करती है।

मैंने कहा- चल मैं भी समझती हूँ तेरे दिल में क्या है, अच्छा बता वो दिखने में कैसा है?

उसने तब मुझे बताया- वो दिखने में काफी आकर्षक है।

मैंने उससे कहा- मैं अपने भाई को बोल कर शादी में उसे भी बुला लेती हूँ, ताकि तुम दोनों मिल भी सको और घर का कुछ काम भी हो जाए।

वो बहुत खुश हुई, पर नखरे करती रही कि किसी को पता चल जाएगा तो मुसीबत होगी।

मैंने उसे समझाया- डरो मत, मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी..!

वो बुलाने पर आ गया, पर हैरानी की बात ये थी के वो मेरे पड़ोस के एक लड़के सुरेश का दोस्त था जो हमारे साथ ही स्कूल में पढ़ा था।

यह सुरेश वही था जो मुझे पसंद करता था, पर मैं अपने घर वालों के डर से कभी उसके सवाल का उत्तर न दे सकी थी। आज भी मैं जब सुरेश से मिलती हूँ तो मुझे वैसे ही देखता है, जैसे पहले देखा करता था। वो मुझसे ज्यादा नहीं पर स्कूल के समय हेमा से ज्यादा बातें करता था।

सुरेश ने हेमा के जरिये ही मुझसे अपने दिल की बात कही थी।

मैंने सोचा चलो अच्छा है सुरेश के बहाने अगर हो सके तो हेमा को उसके प्यार से मिलवा दिया जाएगा।

मैंने सुरेश से बातें करनी शुरू कर दीं, फिर एक दिन मैंने बता दिया कि हेमा उसके दोस्त को पसंद करती है इसलिए उसे यहाँ बहाने से बुलाया था, पर अगर वो साथ दे तो हेमा को उससे मिलवाने में परेशानी नहीं होगी और सुरेश भी मान गया।

अब रात को हम रोज सारा काम खत्म करने के बाद छत पर चले आते और घन्टों बातें करते। हेमा को हम अकेला छोड़ देते ताकि वो लोग आपस में बात कर सकें।

कुछ दिनों में घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया और घर में सोने की जगह कम पड़ने लगी तो मैं बाकी लोगों के साथ छत पर सोने चली जाती थी।

गर्मी का मौसम था तो छत पर आराम महसूस होता था। बगल वाले छत पर सुरेश और कृपा भी सोया करते थे।

एक दिन कृपा ने मुझसे पूछा कि क्या कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वो हेमा से अकेले में मिल सके।

मैं समझ गई कि आखिर क्या बात है, पर मेहमानों से भरे घर में मुश्किल था और हेमा सुरेश के घर नहीं जा सकती थी क्योंकि कोई बहाना नहीं था।

तो उसने मुझसे कहा- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हेमा रात को छत पर ही सोये?

मैंने उससे कहा- ठीक है.. घर में काम का बहाना बना कर मैं उसके घर पर बोल दूँगी कि मेरे साथ सोये।

मैंने उसके घर पर बोल दिया कि शादी तक हेमा मेरे घर पर रहेगी, काम बहुत है उसके घर वाले मान गए। रात को हम छत पर सोने गए।

कुछ देर हम यूँ ही बातें करते रहे क्योंकि सबको पता था कि हम साथ पढ़े हैं किसी को कोई शक नहीं होता था कि हम लोग क्या कर रहे हैं।

जब बाकी लोग सो चुके थे, तब मैंने भी सोचा कि अब सोया जाए। मैंने सुरेश की छत पर ही मेरा और हेमा का बिस्तर लगा दिया और सुरेश और कृपा का बिस्तर भी बगल में था।

कृपा और हेमा आपस में बातें कर रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और बगल में सुरेश अपने बिस्तर पर लेटा था।

तभी सुरेश ने मुझसे पूछा- तुम्हारे पति कैसे हैं?

मैंने कहा- ठीक हैं!

कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा- उसने जो मुझसे कॉलेज के समय कहा था, उसका जवाब क्यों नहीं दिया?

मैंने तब उससे कहा- पुरानी बातों को भूल जाओ मैं अब शादीशुदा हूँ।

फिर उसने दुबारा पूछा- अगर जवाब देना होता तो मैं क्या जवाब देती?

मैंने कुछ नहीं कहा, बस चुप लेटी रही, उसे लगा कि मैं सो गई हूँ.. सो वो भी अब खामोश हो गया।

रात काफी हो चुकी थी, अँधेरा पूरी तरह था हर चीज़ काली परछाई की तरह दिख रही थी।

कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि हेमा मेरे बगल में आकर लेट गई है। गौर किया तो कृपा भी उसके बगल में लेटा हुआ था।

मुझे लगा अब सब सोने जा रहे हैं सो मैं भी सोने का प्रयास करने लगी। तभी मुझे कुछ फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। उस फुसफुसाहट से सुरेश भी करवट लेने लगा तो फुसफुसाहट बंद हो गई।

कुछ देर के बाद मुझे फिर से फुसफुसाने की आवाज आई।

यह आवाज हेमा की थी, वो कह रही थी- नहीं.. कोई देख लेगा.. मत करो।

फिर एक और आवाज आई- सभी सो गए हैं किसी को कुछ पता नहीं चलेगा!

मैं मौन होकर सब देखने की कोशिश करने लगी पर कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था बस हल्की फुसफुसाहट थी।

थोड़ी देर में मैंने देखा तो एक परछाई जो मेरे बगल में थी वो कुछ हरकत कर रही थी, यह हेमा ही थी, मैंने गौर किया तो उसके हाथ खुद के सीने पर गए और वो अपने ब्लाउज के हुक खोल रही थी, फिर उसके हाथ नीचे आए और साड़ी को ऊपर उठाने लगे और कमर तक उठा कर उसने अपनी पैंटी निकाल कर तकिये के नीचे रख दी।

मैं समझ गई कि आज दोनों सुहागरात मनाने वाले हैं और मेरी उत्सुकता बढ़ गई।

मैंने अब सोचा कि देखा जाए कि कृपा आखिर क्या कर रहा है।

मैंने धीरे से सर उठाया तो देखा उसका हाथ हिल रहा है, मैं समझ गई कि वो अपने लिंग को हाथ से हिला कर तैयार कर रहा है।

तभी फिर से फुसफुसाने की आवाज आई हेमा ने कहा- आ जाओ।

और कुछ ही पलों में मुझे ऐसा लगा कि जैसे एक परछाई के ऊपर दूसरी परछाई चढ़ी हुई है।

कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा हुआ था, हेमा ने पैर फैला दिए थे जिसकी वजह से उसका पैर मेरे पैर से सट रहा था। उनकी ऐसी हरकतें देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। मैं सोच में पड़ गई कि आखिर इन दोनों को क्या हुआ जो बिना किसी के डर के मेरे बगल में ही ये सब कर रहे हैं।

उनकी हरकतों से मेरी अन्तर्वासना भी भड़कने लगी थी, पर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी। मैं ऐसी स्थिति में फंस गई थी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि मेरी कोई भी हरकत उन्हें परेशानी में डाल सकता था और मैं हेमा को इस मौके का मजा लेने देना चाहती थी इसलिए चुपचाप सोने का नाटक करती रही।

अब एक फुसफुसाते हुई आवाज आई- घुसाओ..!

यह हेमा की आवाज थी जो कृपा को लिंग योनि में घुसाने को कह रही थी।

कुछ देर की हरकतों के बाद फिर से आवाज आई- नहीं घुस रहा है, कहाँ घुसाना है.. समझ नहीं आ रहा!

यह कृपा था।

तब हेमा ने कहा- कभी इससे पहले चुदाई नहीं की है क्या.. तुम्हें पता नहीं कि लण्ड को बुर में घुसाना होता है?

कृपा ने कहा- मुझे मालूम है, पर बुर का छेद नहीं मिल रहा है।

तभी हेमा बोली- हाँ.. बस यहीं लण्ड को टिका कर धकेलो..!

मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, पर उनकी बातों से सब समझ आ रहा था कि कृपा ने पहले कभी सम्भोग नहीं किया था। इसलिए उसे अँधेरे में परेशानी हो रही थी और वो अपने लिंग से योनि के छेद को टटोल रहा था। जब योनि की छेद पर लिंग लग गया, तो हेमा ने उससे कहा- धकेलो!

तभी हेमा की फिर से आवाज आई- क्या कर रहे हो.. जल्दी करो.. बगल में दोनों (मैं और सुरेश) हैं.. जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी!

कृपा ने कहा- घुस ही नहीं रहा है, जब धकेलने की कोशिश करता हूँ तो फिसल जाता है।

तब हेमा ने कहा- रुको एक मिनट!

और उसने तकिये के नीचे हाथ डाला और पैंटी निकाल कर अपनी योनि की चिकनाई को पौंछ लिया और बोली- अब घुसाओ..!

मैंने गौर किया तो मुझे हल्का सा दिखा कि हेमा का हाथ उसके टांगों के बीच में है, तो मुझे समझ में आया कि वो कृपा का लिंग पकड़ कर उसे अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही है।

फिर हेमा की आवाज आई- तुम बस सीधे रहो.. मैं लण्ड को पकड़े हुए हूँ, तुम बस जोर लगाओ, पर थोड़ा आराम से.. तुम्हारा बहुत बड़ा और मोटा है।

तभी हेमा कसमसाते हुए कराह उठी, ऐसे जैसे वो चिल्लाना चाहती हो, पर मुँह से आवाज नहीं निकलने देना चाहती हो और बोली- ऊऊईईइ माँ…आराम से…डाल..!

तब कृपा रुक गया और हेमा को चूमने लगा। हेमा की कसमसाने और कराहने की आवाज से मुझे अंदाजा हो रहा था कि उसे दर्द हो रहा है, क्योंकि काफी समय के बाद वो सम्भोग कर रही थी।

हेमा ने कहा- इतना ही घुसा कर करो.. दर्द हो रहा है..!

पर कृपा का यह पहला सम्भोग था इसलिए उसके बस का काम नहीं था कि खुद पर काबू कर सके, वो तो बस जोर लगाए जा रहा था।

हेमा कराह-कराह कर ‘बस.. बस’ कहती रही।

हेमा ने फिर कहा- अब ऐसे ही धकेलते रहोगे या चोदोगे भी?

कृपा ने उसके स्तनों को दबाते हुआ कहा- हाँ.. चोद तो रहा हूँ..!

उसने जैसे ही 10-12 धक्के दिए कि कृपा हाँफने लगा और हेमा से चिपक गया।

हेमा ने उससे पूछा- हो गया?

कृपा ने कहा- हाँ, तुम्हारा हुआ या नहीं?

हेमा सब जानती थी कि क्या हुआ, किसका हुआ सो उसने कह दिया- हाँ.. अब सो जाओ!

मैं जानती थी कि कृपा अपनी भूख को शांत कर चुका था, पर हेमा की प्यास बुझी नहीं थी, पर वो भी क्या करती कृपा सम्भोग के मामले में अभी नया था।

तभी कृपा की आवाज आई- हेमा, एक बार और चोदना चाहता हूँ!

हेमा ने कहा- नहीं.. सो जाओ..!

मुझे समझ नहीं आया आखिर हेमा ऐसा क्यों बोली।

तभी फिर से आवाज आई- प्लीज बस एक बार और!

हेमा ने कहा- इतनी जल्दी नहीं होगा तुमसे… काफी रात हो गई है.. सो जाओ फिर कभी करना..!

पर कृपा जिद करता रहा, तो हेमा मान गई और करवट लेकर कृपा की तरफ हो कर लेट गई।

मैंने अपना सर उठा कर देखा तो कृपा हेमा के स्तनों को चूस रहा था, साथ ही उन्हें दबा भी रहा था और हेमा उसे लिंग को हाथ से पकड़ कर हिला रही थी।

कुछ देर बाद हेमा ने उससे कहा- अपने हाथ से मेरी बुर को सहलाओ…!

कृपा वही करने लगा।

कुछ देर के बाद वो दोनों आपस में चूमने लगे फिर हेमा ने कहा- तुम्हारा लण्ड कड़ा हो गया है जल्दी से चोदो, अब कहीं सारिका या सुरेश जग ना जाएँ!

उसे क्या मालूम था कि मैं उनका यह खेल शुरू से ही देख रही थी।

हेमा फिर से सीधी होकर लेट गई और टाँगें फैला दीं। तब कृपा उसके ऊपर चढ़ गया और उसने लिंग योनि में भिड़ा कर झटके से धकेल दिया।

हेमा फिर से बोली- आराम से घुसाओ न..!

कृपा ने कहा- ठीक है.. तुम गुस्सा मत हो!

कृपा अब उसे धक्के देने लगा। कुछ देर बाद मैंने गौर किया कि हेमा भी हिल रही है। उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।

दोनों की साँसें तेज़ होने लगी थीं और फिर कुछ देर बाद कृपा फिर से हाँफते हुए गिर गया, तो हेमा ने फिर पूछा- हो गया?

कृपा ने कहा- हाँ.. हो गया..!

तब हेमा ने उसे तुरंत ऊपर से हटाते हुए अपने कपड़े ठीक करने लगी और बोली- सो जाओ अब..!

हेमा की बातों में थोड़ा चिढ़चिढ़ापन था जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वो चरम सुख से अभी भी वंचित थी।

कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई।

मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई।

मैं यूँ ही खामोशी से उसे दखती रही पर काफी देर उनकी ये कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।

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