तड़फती जवानी-6
हमने एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने दूध का गिलास लिया और मुझे दिया और बोले- पियो।
मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।
दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।
उन्होंने मेरी साड़ी निकाल दी थी और इधर-उधर की उठा-पटक की वजह से उनकी धोती भी खुल गई थी, वो सिर्फ अंडरवियर और कोट में रह गए थे।
कुछ देर के मस्ती के बाद उन्होंने चॉकलेट निकाली और अपने मुँह में भर कर मेरे मुँह के सामने रख मुझे खाने का इशारा किया।
मैंने भी चॉकलेट को मुँह से काटते हुए उनके होंठों को चूमा और चॉकलेट खा ली।
चॉकलेट खत्म होने के बाद उन्होंने मुझे सुपारी दी और कहा- मुँह में रख लो।
मैंने पूछा- क्यों?
तो वो बोले- सुपारी मुँह में रख लेने से ज्यादा देर सम्भोग किया जा सकता है और जब गीली हो जाएगी तो वो उसे अपने मुँह में भर लेंगे।
अमर बिस्तर पर लेट गए और मुझे अपने बगल में अपनी बांहों में समेट लिया और मेरे बदन को सहलाने और बातें करने लगे।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि सुपारी को मैं उनके मुँह में डाल दूँ।
मैंने उनसे इशारा किया कि मैं थूक कर आती हूँ क्योंकि मेरा मुँह सुपारी की वजह से लार से भर गया था।
उन्होंने कहा- सुपारी का रस थूकना नहीं चाहिए बल्कि निगल जाना चाहिए, तुम मेरे मुँह में रस के साथ सुपारी को डाल दो।
मुझे थोड़ा अजीब लगा, पर सोचा चलो जब सब किया तो यह भी कर लेती हूँ, मैंने उनके मुँह से मुँह लगाया और सारा रस सुपारी के साथ उनके मुँह में डाल दिया।
उन्होंने सारा रस पी लिया और कहा- इस तरह हम लोग काफी देर तक झड़ेंगे नहीं।
मैंने कहा- और कितनी देर तक नहीं झड़ना चाहते आप? एक बार मेरे ऊपर चढ़ते हो तो मेरी हालत जब तक खराब न हो जाए तब तक तो रुकते नहीं हो, आज क्या मुझे मार डालने का इरादा है?
उन्होंने हँसते हुए कहा- अरे मेरी जान आज सुहागरात है न, देर तक मजा लेना है।
उन्होंने मुँह से सुपारी निकाल दी और दूसरी भर ली और कुछ देर बाद मुझसे कहा कि अब मैं उनका रस पी जाऊँ।
मैंने मना किया पर उनके जोर डालने पे मैं भी पी गई।
अब मैंने सुपारी को मुँह से निकाल दी और फिर एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे। थोड़ी देर में हम एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे, फिर जीभ को बारी-बारी से चूसते चले गए।
इसी बीच हम चूमते हुए एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगे और कुछ ही पलों में अमर ने मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया मेरे बदन पर अब सिर्फ गहने थे।
मैं उन्हें उतारना चाहती थी, पर अमर ने कहा- गहनों को रहने दो ताकि और भी मजा आए।
मैं सर से पाँव तक गहनों में थी और शायद ये बात अमर को और भी अधिक उत्तेजित कर रही थी।
अमर भी पूरी तरह से नंगे हो चुके थे और उनका लिंग खड़ा हो कर सुहागरात मनाने को उतावला हो रहा था।
मैंने उनके उतावलेपन को समझा और अपने हाथ से लिंग को प्यार करने लगी।
और अमर ने भी मेरे स्तनों को दोनों हाथों में लेकर पहले तो खूब दबाया और फिर बारी-बारी से चूसने लगे और दूध पीने लगे।
मुझे नंगे बदन पर गहने चुभ रहे थे, पर अमर उन्हें निकालने नहीं दे रहे थे, उन्होंने मेरे बालों को खोल दिया था।
जी भर कर दूध पीने के बाद वो मेरे नाभि से खेलने लगे और फिर जीभ नाभि में घुसा कर उसे चूसने लगे।
धीरे-धीरे वो नीचे बढ़ने लगे, मैं बहुत उत्तेजित हो रही थी, अब तो मेरी ऐसी हालत हो गई थी और मेरी योनि गर्म और गीली हो चुकी थी कि अमर कुछ भी करें चाहे ऊँगली डालें या जुबान या लिंग डालें।
मैं मस्ती में अपने पूरे बदन को ऐंठने लगी और टाँगों को फैला दिया।
अमर को मेरा इशारा समझ आ गया था, उन्होंने पहले तो मेरी योनि के बालों को सहलाया फिर हाथ से योनि को छूकर कुछ देर तक सहलाया।
अब मुझे सीधा लिटा कर वे मेरी टाँगों की तरफ चले गए और मेरी जाँघों से लेकर पाँव तक चूमा और फिर जाँघों के बीच झुक कर मेरी योनि को करीब 15-20 बार चूमा और फिर चूसने लगे।
अमर ने बड़े प्यार से मेरी योनि को चूसा फिर दो ऊँगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी योनि को फैला दिया और दोनों तरफ की पंखुड़ियों को सहलाते हुए कहा- ये किसी फूल की पत्ती की तरह फ़ैल गई हैं, काश इसकी झिल्ली तोड़ने का सुख मुझे मिला होता।
मैंने उससे पूछा- क्या आप सब मर्द बस इसी के लिए मरते हो कि औरत की झिल्ली तोड़ो.. आपको पता है, इसमें एक औरत को कितनी तकलीफ होती है, पर आप लोग तो बस मजे लेना जानते हो।
उसने तब मुझसे कहा- अरे यार, एक औरत को पहला प्यार देना किसी भी मर्द के लिए स्वर्ग के सुख जैसा होता है और दर्द होता भी है तो क्या मजा नहीं आता और ये दर्द तो प्यार का पहला एहसास होता है।
मैंने भी सोचा कि अमर गलत तो नहीं कह रहा है क्योंकि यह एक मीठा दर्द ही तो है जो उसे एहसास दिलाता है कि कोई उसे कितना प्यार करता है और मैं उसके सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराने लगी।
उसने भी मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरी योनि को फिर से चूमा और मुझे उल्टा लिटा दिया, फिर मेरे कूल्हों को प्यार करने लगे।
उसने जी भर कर मेरे कूल्हों, कमर, पीठ और जाँघों को प्यार किया और फिर मुझे सीधा करके मेरे सामने अपना लिंग रख दिया।
मैं भी बड़े प्यार से उनके लिंग को चूमा, सुपाड़े को खोल कर बार-बार चूमा फिर जुबान फिरा कर उसे चाटा और अंत में मुँह में भर कर काफी देर चूसा।
मेरे चूसने से अमर अब बेकाबू से हो गए थे और मैं तो पहले से काफी गर्म थी, सो मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
मैंने भी अपनी टाँगें फैला कर उनको बीच में ले लिया और अपनी तरफ खींच कर उनको कसके पकड़ लिया।
अमर ने झुक कर फिर से मेरे चूचुकों को बारी-बारी से चूसा और मेरे होंठों को चूम कर मुस्कुराते हुए कहा- अब मैं तुम्हारी नथ उतारूँगा।
मैं समझ रही थी कि वो बस स्त्री और पुरुष के पहले सम्भोग की कल्पना कर रहे हैं और मुझे भी ये अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था।
सो मैं भी उनके साथ हो गई और कहा- दर्द होगा न, धीरे-धीरे करना वरना खून आ जाएगा और हँसने लगी।
अमर भी मुस्कुराते हुए बोले- डरो मत जान… आराम से करूँगा, तुम्हें जरा भी तकलीफ़ नहीं होगी, बस आवाज मत निकालना।
हम दोनों को इस तरह से खेलने में बहुत मजा आ रहा था। अमर ने अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लिंग मेरी योनि के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।
तब मैंने फिर कहा- कुछ चिकनाई के लिए लगा लीजिए.. दर्द कम होगा।
उन्होंने कहा- अरे रुको.. मैं कुछ और भी लाया हूँ और वो उठ कर अलमारी खोल कर एक चीज़ लेकर आए।
वो कोई जैली थी, अमर ने उसे मेरी योनि के अन्दर तक भर दिया और फिर से मेरे ऊपर चढ़ गए।
मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो रहा था, मैंने उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया, पर सिर्फ सुपाड़ा ही अभी अन्दर गया था सो मैंने टाँगों से उन्हें जकड़ लिया और अपनी ओर खींचा।
तभी अमर को और मस्ती सूझी और उसने कहा- इतनी भी जल्दी क्या है, आराम से लो.. वरना तुम्हारी बुर फट जाएगी।
मैंने उससे कहा- ये कैसी भाषा बोल रहे हो आप?
अमर ने कहा- हम पति-पत्नी हैं और शर्म कैसी?
अमर ने मुझे भी वैसे ही बात करने को कहा और मुझसे जबरदस्ती कहलवाया- अपने लण्ड से मेरी बुर चोदो।
अमर से ऐसा कहने के बाद तुरंत ही अपना लिंग एक धक्के में घुसा दिया, जो मेरे बच्चेदानी में लगा और मैं चिहुंक उठी।
मैं कराह उठी और मेरे मुँह से निकल गया- ओ माँ मर गई… आराम से… मार डालोगे क्या?
तब अमर ने कहा- सील टूट गई क्या?
और हँसने लगे।
मैं शांत होती, इससे पहले फिर से अमर ने जोर से एक धक्का दिया और मैं फिर से कराह उठी तो अमर ने कहा- अब बोलो.. कैसा लगा मुझे बूढ़ा कह रही थी।
मैंने उनसे फिर भी कहा- हाँ… बूढ़े तो हो ही आप।
मेरी बात सुनते ही वो जोर-जोर से धक्के देने लगे और मैं ‘नहीं-नहीं’ करने लगी, मुझसे जब बर्दास्त नहीं हुआ तो मैंने उसने माफ़ी माँगना शुरू कर दिया और वो धीरे-धीरे सम्भोग करने लगे। योनि में जो जैल डाला था, उसके वजह से बहुत आनन्द आ रहा था और लिंग बड़े प्यार से मेरी योनि को रगड़ दे रहा था।
अब हम दोनों अपने होंठों को आपस में चिपका कर चूमने और चूसने लगे और नीचे हमारी कमर हिल रही थीं। मैं अपनी योनि उनको दे रही थी और वो अपना लिंग मेरी योनि को दे रहे थे।
मेरा बदन अब तपने लगा था और पसीना निकलना शुरू हो गया था, उधर अमर भी हाँफने लगे थे और माथे से पसीना चूने लगा था।
करीब आधे घंटे तक अमर मेरे ऊपर थे और हम दोनों अभी भी सम्भोग में लीन थे, पर दोनों की हरकतों से साफ़ था कि हम दोनों अभी झड़ने वाले नहीं हैं।
अमर ने मुझे अपने ऊपर चढ़ा लिया क्योंकि वो थक चुके थे, मैंने अब धक्कों की जिम्मेदारी ले ली थी। अमर मेरे कूल्हों से खेलने में मग्न हो गए और मैं कभी उनके मुँह में अपने स्तनों को देती तो कभी चूमती हुई धक्के लगाने लगती।
करीब 5-7 मिनट के बाद मेरा बदन अकड़ने लगा और मैं अमर को कसके पकड़ कर जोरों से धक्के देने लगी। ऐसा जैसे मैं उनके लिंग को पूरा अपने अन्दर लेना चाहती होऊँ।
मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगीं और मैं जोर के झटकों के साथ झड़ गई, मैं धीरे-धीरे शांत हो गई और मेरा बदन भी ढीला हो गया।
अमर ने अब मुझे फिर से सीधा लिटा दिया और टाँगें खोल कर अपने लिंग को अन्दर घुसाने लगा।
मैंने उससे कहा- दो मिनट रुको।
पर वो कहाँ मानने वाला था।
उसने फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया और तब मैं फिर से गर्म हो गई। इस बार भी मैं तुरंत झड़ गई और मेरे कुछ देर बाद अमर भी झड़ गए।
एक बात तो इस रात से साफ हुई कि मर्द को जितना देर झड़ने में लगता है, वो झड़ने के समय उतनी ही ताकत लगा कर धक्के देता है।
अमर भी झड़ने के समय मुझे पूरी ताकत लगा कर पकड़ रखा थे और धक्के इतनी जोर देता कि मुझे लगता कि कहीं मेरी योनि सच में न फट जाए।
अमर जब थोड़े नरम हुए तो कहा- तो सुहागरात कैसी लगी?
मैंने उनसे कहा- बहुत अच्छा लगा, ये सुहागरात मैं कभी नहीं भूलूँगी, आपने मेरी सील दुबारा तोड़ दी।
यह कह कर मैं हँसने लगी।
अमर ने कहा- हाँ.. वो मेरा हक था, तोड़ना जरुरी था, क्योंकि अब तुम मेरे बच्चों को जन्म दोगी।
हम इसी तरह की बातें करते और हँसते हुए आराम करने लगे।
मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद उठ कर पेशाब करने चली गई, पर बाथरूम में मैंने आईने में खुद को देखा तो सोचने लगी कि यदि कोई मर्द मुझे इस तरह से देख ले तो वो पागल हो जाएगा।
मैं ऊपर से नीचे तक गहनों में थी एक भी कपड़ा नहीं था और ऐसी लग रही थी जैसे काम की देवी हूँ।
मैं अन्दर से बहुत खुश थी कि मुझे अमर जैसा साथी मिला जो मेरी सुन्दरता को और भी निखारने में मेरी मदद कर रहा था।
वापस आकर हमने फिर से खेलना शुरू कर दिया। उस रात तो सम्भोग कम और खेल ज्यादा ही लग रहा था, पूरी रात बस हम खेलते रहे पर सम्भोग ने भी हमें बहुत थका दिया था।
मैं बहुत खुश थी क्योंकि जो मेरी अधूरी सी इच्छा थी वो पूरी हो गई और रात भर हम सोये नहीं। मैंने बहुत दिनों के बाद लगातार 5 बार सम्भोग किया और सुबह पति के आने से पहले चली गई।
हालांकि पूरे दिन मेरे बदन में दर्द और थकान रही और न सोने की वजह से सर में भी दर्द था, पर मैं संतुष्ट थी और खुश भी थी।
अमर सही कहते थे कि मर्द औरतों को दर्द भले देते हैं पर ये दर्द एक मीठा दर्द होता है, चाहे झिल्ली फटने का हो या फिर माँ बनाने का दर्द हो।
तड़फती जवानी
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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तड़फती जवानी-7
मैं आज जो कहानी सुनाने जा रही हूँ वो मेरे जीवन की एक कड़वी दवाई की तरह सच है क्योंकि पता नहीं आप लोग इस कहानी को पढ़ कर मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
फिर भी बड़ी हिम्मत करके मैंने तय किया कि आप लोग मेरे बारे में जो भी सोचें, मैं आपके मनोरंजन के लिए इसे भी लिख देती हूँ।
दरअसल मुझे इसलिए कहानी लिखने में थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी क्योंकि मेरे जिनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बने वो मेरे रिश्तेदार ही लगते हैं।
मेरा उनसे क्या रिश्ता है मैं यह नहीं बताना चाहूँगी, पर जो कुछ भी और कैसे हुआ वो जरुर विस्तार से बताऊँगी।
बाद दो साल पहले की है वैसे भी मेरे पति और मेरे बीच के रिश्तों के बारे में आप सबको पहले से ही पता है।
मेरे पति के एक रिश्तेदार हैं जो पहले फ़ौज में थे और अब अपने गाँव में बस खेती-बाड़ी देखते हैं।
उनका एक ही बेटा है जो कि दुबई में काम करता है और दोनों पति-पत्नी घर पर अकेले ही रहते हैं।
गाँव में अच्छी खासी खेती-बाड़ी है और गाँव के लोग उनकी बहुत इज्ज़त करते हैं क्योंकि बहुत से लोगों को वो अपने यहाँ काम पर रखे हुए हैं।
वो बहुत ही साधारण किस्म के इंसान हैं, उनका रहन-सहन बिलकुल साधारण है। उनकी उम्र करीब 70 की होगी, पर दिखने में 50-55 के लगते हैं।
वो आज भी खेतों में खुद काम करते हैं। जब मैंने पहली बार उनको देखा था तब करीब 50 किलो वजन की बोरी उठा कर घर से गोदाम में रख रहे थे।
मैं उनको देख कर हैरान थी कि वे इस उम्र में भी इतना काम कर लेते हैं। उनका भोजन भी सादा ही होता था, सुबह उठ कर टहलने जाते थे और फिर आकर थोड़ा योग करते थे, काफी तंदुरुस्त, थोड़े से सांवले, कद करीब 6 फीट लम्बे, पेट थोड़ा निकल गया था, पर फिर भी दिखने में अच्छे लगते थे।
उनके कंधे चौड़े, मजबूत बाजू देख कर कोई भी पहचान लेता कि वे फौजी हैं।
बात यूँ हुई कि दो साल पहले उनकी बीवी की बच्चेदानी में घाव हो गया था और तबियत बहुत ख़राब थी।
उनका बेटा और बहू तो दुबई में थे, हालांकि देखभाल के लिए नौकर थे पर अपना कोई नहीं था इसलिए मेरे पति ने मुझे उनके पास छोड़ दिया, क्योंकि मेरे घर पर बच्चे अब इतने बड़े हो चुके थे कि उनका ध्यान मेरी देवरानी और जेठानी रख सकते थे।
मेरे पति मुझे वहाँ अकेले छोड़ कर वापस आ गए।
मैं करीब 15 दिन वहाँ रही थी और इसी बीच ये घटना हो गई।
मुझे करीब एक हफ्ता हो गया था इस बीच मैं खाना बनाने के अलावा सबको खाना देती और उनकी पत्नी को दवा देती, उनकी साफ़-सफाई में मदद करती थी।
एक शाम उनकी पत्नी की तबियत बहुत ख़राब हो गई, वो दर्द से तड़पने लगीं, पास के डॉक्टर को बुलाया गया तो उसने उन्हें बड़े अस्पताल ले जाने को कहा।
तुरंत गाड़ी मंगवाई गई और फ़ौरन उन्हें बड़े अस्पताल ले जाया गया। मैं भी उनके साथ थी।
अस्पताल पहुँचते ही उन्हें भरती कर लिया गया।
रात के करीब 10 बज चुके थे और वो अब सो चुकी थीं।
मुझे भी थकान हो रही थी, इसलिए मुझसे उन्होंने कहा- अस्पताल के लोगों के लिए पास में एक गेस्ट-हाउस है, वहाँ एक कमरा ले लेते हैं ताकि हम भी कुछ आराम कर लें।
मैंने तब उनसे कहा- आप चले जाइये, मैं यहीं रूकती हूँ।
वो जाते समय डॉक्टर से मिलने चले गए, फिर थोड़ी देर बाद वापस आए और कहा कि उनकी बीवी का ऑपरेशन करना होगा, सो अब एक कमरा लेना ही पड़ेगा, पर अभी उन्हें सोने की दवा दी गई है। सो सुबह तक मुझे रुकने की जरूरत नहीं है, मैं भी साथ में चलूँ और आराम कर लूँ क्योंकि सुबह फिर आना है।
मैंने भी सोचा कि ठीक ही कह रहे हैं और मैं साथ चल दी।
गेस्ट-हाउस पहुँचे तो हमने दो कमरे की बात कही, पर उनके पास बस एक ही कमरा था और वो भी एक बिस्तर वाला था।
उन्होंने मुझसे कहा- चलो आज रात किसी तरह काम चला लेते हैं, कल कोई खाली होगा तो दूसरा ले लेंगे।
मैंने भी सोचा कि ये तो मेरे पिता समान हैं कोई हर्ज़ नहीं है, सो मैंने ‘हाँ’ कर दी।
उस गेस्ट-हाउस की हालत देख कर लग रहा था कि इधर कितनी भीड़ रहती होगी, कुछ लोग काउंटर पर ही सो रहे थे।
क्योंकि शायद उनके पास पैसे कम होंगे और कुछ लोगों ने तो कमरे को जाने वाले रास्ते में ही फर्श पर ही अपना बिस्तर लगा रखा था।
ज्यादातर लोग अभी भी जगे हुए थे और कुछ लोग खाना खा रहे थे।
सभी आस-पास के गाँव से आए हुए लग रहे थे। हम दोनों अपने कमरे में आ गए, बत्ती जलाई तो देखा कि कमरा बहुत छोटा था।
बस सोने लायक ही था।
हमने बस यही सोच कर कमरा पहले नहीं देखा था, क्योंकि गेस्ट-हाउस के मैनेजर ने कहा था कि उनके पास बस एक ही कमरा खाली है।
मेरे साथ आए रिश्तेदार ने कहा- कुछ खाने को ले आता हूँ।
मैंने मना कर दिया क्योंकि इस भाग-दौड़ में मेरी भूख मर गई थी।
पर मैंने उनसे कहा- आप खाना खा लें।
पर वो तो बाहर का खाना नहीं खाते थे और इतनी रात को कोई फल की दुकान भी नहीं खुली थी, सो उन्होंने भी मना कर दिया।
बस वेटर को पानी लाने को कह दिया।
कमरे में बिस्तर बस एक इंसान के सोने भर का था, बगल में एक छोटी सी अलमारी थी और उसी में एक बड़ा सा आइना लगा था, बगल में एक कुर्सी थी।
हमने अपने साथ लाए हुए बैग में सोने के लिए सामान निकाला और फिर उसे अलमारी में रख दिया।
उन्होंने कहा- बिस्तर बहुत छोटा है, तुम बिस्तर पर सो जाओ, मैं कुर्सी पर सो जाऊँगा। एक रात किसी तरह तकलीफ झेल लेते हैं।
मैंने उनसे कहा- बाकी लोगों को फोन कर के बता दें कि यहाँ क्या हुआ है।
पर उन्होंने कहा- सुबह बता देंगे.. रात बहुत हो चुकी है, बेकार में सब परेशान होंगे।
मैं बिस्तर पर लेट गई और वो कुर्सी पर बैठ गए, काफी देर हो चुकी थी।
मैं देख रही थी कि वो ठीक से सो नहीं पा रहे थे सो मैंने कहा- आप बिस्तर पर सो जाएँ और मैं नीचे कुछ बिछा कर सो जाती हूँ।
तब उन्होंने कहा- नहीं, नीचे फर्श ठंडा होगा, तबियत ख़राब हो सकती है। मैं यहीं कुर्सी पर सोने की कोशिश करता हूँ।
बहुत देर उन्हें ऐसे ही उलट-पुलट होते देख कर मैंने कहा- आप भी बिस्तर पर आ जाएँ, किसी तरह रात काट लेते हैं।
कुछ देर सोचने के बाद वो भी मेरे बगल में आ गए।
मैं तो यही सोच रही थी कि बुजुर्ग इंसान हैं और मैं दीवार की तरफ सरक के सो गई और वो मेरे बगल में लेट गए।
मैं लगभग नींद में थी कि मुझे कुछ एहसास हुआ मेरी टांगों में और मेरी नींद खुल गई।
मैं कुछ देर यूँ ही पड़ी रही और सोचने लगी कि क्या है, तो मुझे एहसास हुआ कि वो अपना पैर मेरे जाँघों में रगड़ रहे हैं।
मैं एकदम से चौंक गई और उठ कर बैठ गई।
मैंने कहा- आप यह क्या कर रहे हैं?
मैं आज जो कहानी सुनाने जा रही हूँ वो मेरे जीवन की एक कड़वी दवाई की तरह सच है क्योंकि पता नहीं आप लोग इस कहानी को पढ़ कर मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
फिर भी बड़ी हिम्मत करके मैंने तय किया कि आप लोग मेरे बारे में जो भी सोचें, मैं आपके मनोरंजन के लिए इसे भी लिख देती हूँ।
दरअसल मुझे इसलिए कहानी लिखने में थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी क्योंकि मेरे जिनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बने वो मेरे रिश्तेदार ही लगते हैं।
मेरा उनसे क्या रिश्ता है मैं यह नहीं बताना चाहूँगी, पर जो कुछ भी और कैसे हुआ वो जरुर विस्तार से बताऊँगी।
बाद दो साल पहले की है वैसे भी मेरे पति और मेरे बीच के रिश्तों के बारे में आप सबको पहले से ही पता है।
मेरे पति के एक रिश्तेदार हैं जो पहले फ़ौज में थे और अब अपने गाँव में बस खेती-बाड़ी देखते हैं।
उनका एक ही बेटा है जो कि दुबई में काम करता है और दोनों पति-पत्नी घर पर अकेले ही रहते हैं।
गाँव में अच्छी खासी खेती-बाड़ी है और गाँव के लोग उनकी बहुत इज्ज़त करते हैं क्योंकि बहुत से लोगों को वो अपने यहाँ काम पर रखे हुए हैं।
वो बहुत ही साधारण किस्म के इंसान हैं, उनका रहन-सहन बिलकुल साधारण है। उनकी उम्र करीब 70 की होगी, पर दिखने में 50-55 के लगते हैं।
वो आज भी खेतों में खुद काम करते हैं। जब मैंने पहली बार उनको देखा था तब करीब 50 किलो वजन की बोरी उठा कर घर से गोदाम में रख रहे थे।
मैं उनको देख कर हैरान थी कि वे इस उम्र में भी इतना काम कर लेते हैं। उनका भोजन भी सादा ही होता था, सुबह उठ कर टहलने जाते थे और फिर आकर थोड़ा योग करते थे, काफी तंदुरुस्त, थोड़े से सांवले, कद करीब 6 फीट लम्बे, पेट थोड़ा निकल गया था, पर फिर भी दिखने में अच्छे लगते थे।
उनके कंधे चौड़े, मजबूत बाजू देख कर कोई भी पहचान लेता कि वे फौजी हैं।
बात यूँ हुई कि दो साल पहले उनकी बीवी की बच्चेदानी में घाव हो गया था और तबियत बहुत ख़राब थी।
उनका बेटा और बहू तो दुबई में थे, हालांकि देखभाल के लिए नौकर थे पर अपना कोई नहीं था इसलिए मेरे पति ने मुझे उनके पास छोड़ दिया, क्योंकि मेरे घर पर बच्चे अब इतने बड़े हो चुके थे कि उनका ध्यान मेरी देवरानी और जेठानी रख सकते थे।
मेरे पति मुझे वहाँ अकेले छोड़ कर वापस आ गए।
मैं करीब 15 दिन वहाँ रही थी और इसी बीच ये घटना हो गई।
मुझे करीब एक हफ्ता हो गया था इस बीच मैं खाना बनाने के अलावा सबको खाना देती और उनकी पत्नी को दवा देती, उनकी साफ़-सफाई में मदद करती थी।
एक शाम उनकी पत्नी की तबियत बहुत ख़राब हो गई, वो दर्द से तड़पने लगीं, पास के डॉक्टर को बुलाया गया तो उसने उन्हें बड़े अस्पताल ले जाने को कहा।
तुरंत गाड़ी मंगवाई गई और फ़ौरन उन्हें बड़े अस्पताल ले जाया गया। मैं भी उनके साथ थी।
अस्पताल पहुँचते ही उन्हें भरती कर लिया गया।
रात के करीब 10 बज चुके थे और वो अब सो चुकी थीं।
मुझे भी थकान हो रही थी, इसलिए मुझसे उन्होंने कहा- अस्पताल के लोगों के लिए पास में एक गेस्ट-हाउस है, वहाँ एक कमरा ले लेते हैं ताकि हम भी कुछ आराम कर लें।
मैंने तब उनसे कहा- आप चले जाइये, मैं यहीं रूकती हूँ।
वो जाते समय डॉक्टर से मिलने चले गए, फिर थोड़ी देर बाद वापस आए और कहा कि उनकी बीवी का ऑपरेशन करना होगा, सो अब एक कमरा लेना ही पड़ेगा, पर अभी उन्हें सोने की दवा दी गई है। सो सुबह तक मुझे रुकने की जरूरत नहीं है, मैं भी साथ में चलूँ और आराम कर लूँ क्योंकि सुबह फिर आना है।
मैंने भी सोचा कि ठीक ही कह रहे हैं और मैं साथ चल दी।
गेस्ट-हाउस पहुँचे तो हमने दो कमरे की बात कही, पर उनके पास बस एक ही कमरा था और वो भी एक बिस्तर वाला था।
उन्होंने मुझसे कहा- चलो आज रात किसी तरह काम चला लेते हैं, कल कोई खाली होगा तो दूसरा ले लेंगे।
मैंने भी सोचा कि ये तो मेरे पिता समान हैं कोई हर्ज़ नहीं है, सो मैंने ‘हाँ’ कर दी।
उस गेस्ट-हाउस की हालत देख कर लग रहा था कि इधर कितनी भीड़ रहती होगी, कुछ लोग काउंटर पर ही सो रहे थे।
क्योंकि शायद उनके पास पैसे कम होंगे और कुछ लोगों ने तो कमरे को जाने वाले रास्ते में ही फर्श पर ही अपना बिस्तर लगा रखा था।
ज्यादातर लोग अभी भी जगे हुए थे और कुछ लोग खाना खा रहे थे।
सभी आस-पास के गाँव से आए हुए लग रहे थे। हम दोनों अपने कमरे में आ गए, बत्ती जलाई तो देखा कि कमरा बहुत छोटा था।
बस सोने लायक ही था।
हमने बस यही सोच कर कमरा पहले नहीं देखा था, क्योंकि गेस्ट-हाउस के मैनेजर ने कहा था कि उनके पास बस एक ही कमरा खाली है।
मेरे साथ आए रिश्तेदार ने कहा- कुछ खाने को ले आता हूँ।
मैंने मना कर दिया क्योंकि इस भाग-दौड़ में मेरी भूख मर गई थी।
पर मैंने उनसे कहा- आप खाना खा लें।
पर वो तो बाहर का खाना नहीं खाते थे और इतनी रात को कोई फल की दुकान भी नहीं खुली थी, सो उन्होंने भी मना कर दिया।
बस वेटर को पानी लाने को कह दिया।
कमरे में बिस्तर बस एक इंसान के सोने भर का था, बगल में एक छोटी सी अलमारी थी और उसी में एक बड़ा सा आइना लगा था, बगल में एक कुर्सी थी।
हमने अपने साथ लाए हुए बैग में सोने के लिए सामान निकाला और फिर उसे अलमारी में रख दिया।
उन्होंने कहा- बिस्तर बहुत छोटा है, तुम बिस्तर पर सो जाओ, मैं कुर्सी पर सो जाऊँगा। एक रात किसी तरह तकलीफ झेल लेते हैं।
मैंने उनसे कहा- बाकी लोगों को फोन कर के बता दें कि यहाँ क्या हुआ है।
पर उन्होंने कहा- सुबह बता देंगे.. रात बहुत हो चुकी है, बेकार में सब परेशान होंगे।
मैं बिस्तर पर लेट गई और वो कुर्सी पर बैठ गए, काफी देर हो चुकी थी।
मैं देख रही थी कि वो ठीक से सो नहीं पा रहे थे सो मैंने कहा- आप बिस्तर पर सो जाएँ और मैं नीचे कुछ बिछा कर सो जाती हूँ।
तब उन्होंने कहा- नहीं, नीचे फर्श ठंडा होगा, तबियत ख़राब हो सकती है। मैं यहीं कुर्सी पर सोने की कोशिश करता हूँ।
बहुत देर उन्हें ऐसे ही उलट-पुलट होते देख कर मैंने कहा- आप भी बिस्तर पर आ जाएँ, किसी तरह रात काट लेते हैं।
कुछ देर सोचने के बाद वो भी मेरे बगल में आ गए।
मैं तो यही सोच रही थी कि बुजुर्ग इंसान हैं और मैं दीवार की तरफ सरक के सो गई और वो मेरे बगल में लेट गए।
मैं लगभग नींद में थी कि मुझे कुछ एहसास हुआ मेरी टांगों में और मेरी नींद खुल गई।
मैं कुछ देर यूँ ही पड़ी रही और सोचने लगी कि क्या है, तो मुझे एहसास हुआ कि वो अपना पैर मेरे जाँघों में रगड़ रहे हैं।
मैं एकदम से चौंक गई और उठ कर बैठ गई।
मैंने कहा- आप यह क्या कर रहे हैं?
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-8
फिर उन्होंने जैसे ही कहा- कुछ नहीं।
मैंने बत्ती जला दी।
मेरे बत्ती जलाते ही उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अपनी और खींचते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गए।
मैं बस चीखने वाली थी कि उन्होंने मेरा मुँह दबा दिया और कहा- क्या कर रही हो… बाहर लोग हैं सुन लेंगे, क्या सोचेंगे।
मेरे दिमाग में घंटी सी बजी और एक झटके में ख्याल आया कि बाहर सबने मुझे इनके साथ अन्दर आते देखा है और अगर मैं चीखी तो पहले लोग मुझ पर ही शक करेंगे।
सो मैंने अपनी आवाज दबा दी, तब उन्होंने अपना हाथ हटाया और कहा- बस एक बार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, मैं बहुत भूखा हूँ।
मैं अपनी पूरी ताकत से उनको अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी, पर उनके सामने मेरी एक नहीं चली।
मैं उनसे अब हाथ जोड़ कर विनती करने लगी- मुझे छोड़ दें.. हमारे बीच बाप-बेटी जैसा रिश्ता है।
मैं उन्हें अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। पर वो मेरे ऊपर से हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मेरी दोनों टाँगें आपस में चिपक सी गई थीं और वे अपने एक पैर से मेरे पैरों के बीच में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे।
उन्होंने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और उन्हें मेरे सर के ऊपर दोनों हाथों से दबा दिया, मैं किसी मछली की तरह छटपटा रही थी और वो अपने टांगों से मेरी टांगों को अलग करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
मुझे उनका लिंग अपनी जाँघों पर महसूस होने लगा था कि वो कितना सख्त हो चुका है।
हालांकि मुझे चुदवाए हुए काफ़ी दिन हो चले थे, मेरे अन्दर भी चुदने की इच्छा थी पर मैं तब भी अपनी पूरी ताकत से उनका विरोध कर रही थी, ऐसे कैसे किसी गैर मर्द से एकदम बिना किसी विरोध के चुदवा लेती?
तब उन्होंने मेरे दोनों हाथों को साथ में रखा और एक हाथ से दोनों कलाइयों को पकड़ लिया।
उनमें पता नहीं कहाँ से इतनी ताकत आ गई थी कि मैं अपने दोनों हाथों से उनके एक हाथ को भी नहीं छुड़ा पा रही थी।
तभी उन्होंने अपने कमर का हिस्सा मुझसे थोड़ा अलग किया और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को पेट तक ऊपर उठा दिया।
मेरी पैंटी अब साफ़ दिख रही थी, मैं अब पतली डोरी वाली पैंटी पहनती थी जिसमें सिर्फ योनि ही ढक पाती थी।
अब उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी पकड़ ली। उनका हाथ पड़ते ही मैं और जोर से छटपटाई, पर उनके भारी-भरकम शरीर के आगे मेरी एक न चली।
मैं अब रोने लगी थी और रोते हुए विनती कर रही थी, पर मुँह से विनती तो वो भी कर रहे थे और शरीर से जबरदस्ती में लगे थे।
उन्होंने मेरी पैंटी उतारने की कोशिश की, पर मैंने अपनी टाँगें आपस में चिपका ली थीं सो केवल जाँघों तक ही उतरी, पर वो हार मानने को तैयार नहीं थे।
मेरे मन में तो अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे थे कि आज ये मेरे साथ क्या हो रहा है। मैं सोच भी रही थी कि चिल्ला कर सबको बुला लूँ पर डर भी था कि लोग पहले एक औरत को ही कसूरवार समझेंगे, सो मैं चिल्ला भी नहीं पा रही थी।
तभी उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी जोर से खींची और डोरी एक तरफ से टूट गई। अब उन्होंने मेरी टांगों को हाथ से फैलाने की कोशिश करनी शुरू कर दी, पर मैं भी हार नहीं मान रही थी। तब उन्होंने अपने कमीज को ऊपर किया और पजामे का नाड़ा ढीला कर अपने पजामे और कच्छे को एक साथ सरका कर अपनी जाँघों तक कर दिया।
उनका कच्छा हटते ही उनका लिंग ऐसे बाहर आया जैसे कोई काला नाग पिटारे के ढक्कन खुलते ही बाहर आता है। मैंने एक झलक नीचे उनके लिंग की तरफ देखा तो मेरी आँखें देखते ही बंद हो गई, पर मेरे दिमाग में उसकी तस्वीर छप सी गई। काला लम्बा लगभग 7 इंच, मोटा करीब 3 इंच, सुपाड़ा आधा ढका हुआ, जिसमें से एक बूंद पानी जैसा द्रव्य रोशनी में चमक रहा था।
वो अब पूरी तरह से मेरे ऊपर आ गए और एक हाथ से मेरी जांघ को पकड़ कर उन्हें अलग करने की कोशिश करने लगे, पर मैं अब भी अपनी पूरी ताकत से उन्हें आपस में चिपकाए हुए थी।
हम दोनों एक-दूसरे से विनती कर रहे थे कि वो मुझे छोड़ दे और मैं उन्हें उनके मन की करने दूँ। हमारे जिस्म भी पूरी ताकत से लड़ रहे थे, मेरा जिस्म उनसे अलग होने के लिए लड़ रहा था और उनका जिस्म मेरे जिस्म से मिलने को जिद पर अड़ा था।
तभी उन्होंने अपना मुँह मेरे एक स्तन पर रखा और ब्लाउज के ऊपर से ही काट लिया। मुझे ऐसा लगा जैसे करेंट लगा और मेरी टांगों की ताकत खत्म हो गई हो। मेरी टांगों की ढील पाते ही वो मेरे दोनों टांगों के बीच में आ गए। मैंने अपनी योनि के ऊपर उनके गर्म लिंग को महसूस किया उनके नीचे के बालों को मेरे बालों से रगड़ते हुए महसूस किया। अब मेरी हिम्मत टूटने लगी थी, पर मैं फिर भी लड़ रही थी।
तभी उन्होंने मेरे दोनों हाथों को एक-एक हाथ से पकड़ लिया, फिर अपनी कमर को मेरे ऊपर दबाते हुए लिंग से मेरी योनि को टटोलने लगे। मेरी आँखों में आँसू थे और मैं सिसक-सिसक कर रोने लगी थी, पर उन पर कोई असर नहीं हो रहा था।
मैं अब पूरी तरह से उनके वश में थी मैं बस अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, तभी उन्होंने एक हाथ छोड़ दिया और अपने लिंग को पकड़ मेरी योनि में घुसाने की कोशिश करने लगे। मैंने भी अपने एक हाथ को आजाद पाते ही उससे उन्हें रोकने की कोशिश करने लगी।
मैंने उनका हाथ पकड़ लिया था, पर तब तक उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि की छेद से भिड़ा दिया था। तब तक उन्होंने अपने कमर को मेरे ऊपर दबाया, मैंने महसूस किया कि उनका लिंग मेरी योनि में बस इतना ही अन्दर गया है कि उनके सुपारे का चमड़ा पीछे की तरफ खिसक गया।
अब उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और मेरे हाथ को पकड़ने की कोशिश की, पर मैंने झटका देते हुए अपना हाथ नीचे ले गई और उनके लिंग को पकड़ कर घुसने से रोक लिया। मैंने उनके लिंग को पूरी ताकत से अपनी मुठ्ठी में दबा लिया और वो मेरे हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगे।
हम दोनों की हालत रोने जैसी थी हालांकि मैं तो रो ही रही थी, पर उनके मुँह से ऐसी आवाज निकल रही थी कि जैसे अगर नहीं मिला तो वो मर ही जायेंगे।
किसी तरह उन्होंने मेरा हाथ अपने लिंग से हटा लिया और फिर मेरे दोनों हाथों को एक हाथ से पकड़ लिया। अब तो मैं और भी टूट चुकी थी क्योंकि अब मैं हार चुकी थी, पर मेरा विरोध अभी भी जारी था।
तभी उन्होंने अपने लिंग को पकड़ कर फिर से मेरी योनि टटोलने लगे, पर शायद मेरी आधी फटी पैंटी बीच में आ रही थी। सो उन्होंने उसे भी खींच कर पूरा फाड़ दिया और नीचे फेंक दिया।
उन्होंने फिर से अपने लिंग को पकड़ा और फिर मेरी योनि की दरार में ऊपर-नीचे रगड़ा और फिर छेद पर टिका कर हल्के से धकेला तो उनका मोटा सुपाड़ा अन्दर घुस गया।
मैंने और तड़प कर छटपटाने की कोशिश की, पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हिलना भी न के बराबर था।
इसके बाद उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और फिर एक-एक हाथ से मेरे हाथ पकड़ लिए और अपने लिंग को धीरे-धीरे अन्दर धकेलने लगे। करीब पूरा सुपाड़ा घुस चुका था और मुझे हल्का दर्द भी हो रहा था, शायद उनका मोटा था इसलिए या फिर मेरी योनि गीली नहीं थी।
कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उन्होंने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय राम मर गईई…ईई… नहीं.. नहीं.. छोड़ दीजिए.. मैं मर जाऊँगी.. ओह्ह माँ..।
मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी।
फिर उन्होंने जैसे ही कहा- कुछ नहीं।
मैंने बत्ती जला दी।
मेरे बत्ती जलाते ही उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अपनी और खींचते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गए।
मैं बस चीखने वाली थी कि उन्होंने मेरा मुँह दबा दिया और कहा- क्या कर रही हो… बाहर लोग हैं सुन लेंगे, क्या सोचेंगे।
मेरे दिमाग में घंटी सी बजी और एक झटके में ख्याल आया कि बाहर सबने मुझे इनके साथ अन्दर आते देखा है और अगर मैं चीखी तो पहले लोग मुझ पर ही शक करेंगे।
सो मैंने अपनी आवाज दबा दी, तब उन्होंने अपना हाथ हटाया और कहा- बस एक बार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, मैं बहुत भूखा हूँ।
मैं अपनी पूरी ताकत से उनको अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी, पर उनके सामने मेरी एक नहीं चली।
मैं उनसे अब हाथ जोड़ कर विनती करने लगी- मुझे छोड़ दें.. हमारे बीच बाप-बेटी जैसा रिश्ता है।
मैं उन्हें अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। पर वो मेरे ऊपर से हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मेरी दोनों टाँगें आपस में चिपक सी गई थीं और वे अपने एक पैर से मेरे पैरों के बीच में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे।
उन्होंने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और उन्हें मेरे सर के ऊपर दोनों हाथों से दबा दिया, मैं किसी मछली की तरह छटपटा रही थी और वो अपने टांगों से मेरी टांगों को अलग करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
मुझे उनका लिंग अपनी जाँघों पर महसूस होने लगा था कि वो कितना सख्त हो चुका है।
हालांकि मुझे चुदवाए हुए काफ़ी दिन हो चले थे, मेरे अन्दर भी चुदने की इच्छा थी पर मैं तब भी अपनी पूरी ताकत से उनका विरोध कर रही थी, ऐसे कैसे किसी गैर मर्द से एकदम बिना किसी विरोध के चुदवा लेती?
तब उन्होंने मेरे दोनों हाथों को साथ में रखा और एक हाथ से दोनों कलाइयों को पकड़ लिया।
उनमें पता नहीं कहाँ से इतनी ताकत आ गई थी कि मैं अपने दोनों हाथों से उनके एक हाथ को भी नहीं छुड़ा पा रही थी।
तभी उन्होंने अपने कमर का हिस्सा मुझसे थोड़ा अलग किया और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को पेट तक ऊपर उठा दिया।
मेरी पैंटी अब साफ़ दिख रही थी, मैं अब पतली डोरी वाली पैंटी पहनती थी जिसमें सिर्फ योनि ही ढक पाती थी।
अब उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी पकड़ ली। उनका हाथ पड़ते ही मैं और जोर से छटपटाई, पर उनके भारी-भरकम शरीर के आगे मेरी एक न चली।
मैं अब रोने लगी थी और रोते हुए विनती कर रही थी, पर मुँह से विनती तो वो भी कर रहे थे और शरीर से जबरदस्ती में लगे थे।
उन्होंने मेरी पैंटी उतारने की कोशिश की, पर मैंने अपनी टाँगें आपस में चिपका ली थीं सो केवल जाँघों तक ही उतरी, पर वो हार मानने को तैयार नहीं थे।
मेरे मन में तो अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे थे कि आज ये मेरे साथ क्या हो रहा है। मैं सोच भी रही थी कि चिल्ला कर सबको बुला लूँ पर डर भी था कि लोग पहले एक औरत को ही कसूरवार समझेंगे, सो मैं चिल्ला भी नहीं पा रही थी।
तभी उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी जोर से खींची और डोरी एक तरफ से टूट गई। अब उन्होंने मेरी टांगों को हाथ से फैलाने की कोशिश करनी शुरू कर दी, पर मैं भी हार नहीं मान रही थी। तब उन्होंने अपने कमीज को ऊपर किया और पजामे का नाड़ा ढीला कर अपने पजामे और कच्छे को एक साथ सरका कर अपनी जाँघों तक कर दिया।
उनका कच्छा हटते ही उनका लिंग ऐसे बाहर आया जैसे कोई काला नाग पिटारे के ढक्कन खुलते ही बाहर आता है। मैंने एक झलक नीचे उनके लिंग की तरफ देखा तो मेरी आँखें देखते ही बंद हो गई, पर मेरे दिमाग में उसकी तस्वीर छप सी गई। काला लम्बा लगभग 7 इंच, मोटा करीब 3 इंच, सुपाड़ा आधा ढका हुआ, जिसमें से एक बूंद पानी जैसा द्रव्य रोशनी में चमक रहा था।
वो अब पूरी तरह से मेरे ऊपर आ गए और एक हाथ से मेरी जांघ को पकड़ कर उन्हें अलग करने की कोशिश करने लगे, पर मैं अब भी अपनी पूरी ताकत से उन्हें आपस में चिपकाए हुए थी।
हम दोनों एक-दूसरे से विनती कर रहे थे कि वो मुझे छोड़ दे और मैं उन्हें उनके मन की करने दूँ। हमारे जिस्म भी पूरी ताकत से लड़ रहे थे, मेरा जिस्म उनसे अलग होने के लिए लड़ रहा था और उनका जिस्म मेरे जिस्म से मिलने को जिद पर अड़ा था।
तभी उन्होंने अपना मुँह मेरे एक स्तन पर रखा और ब्लाउज के ऊपर से ही काट लिया। मुझे ऐसा लगा जैसे करेंट लगा और मेरी टांगों की ताकत खत्म हो गई हो। मेरी टांगों की ढील पाते ही वो मेरे दोनों टांगों के बीच में आ गए। मैंने अपनी योनि के ऊपर उनके गर्म लिंग को महसूस किया उनके नीचे के बालों को मेरे बालों से रगड़ते हुए महसूस किया। अब मेरी हिम्मत टूटने लगी थी, पर मैं फिर भी लड़ रही थी।
तभी उन्होंने मेरे दोनों हाथों को एक-एक हाथ से पकड़ लिया, फिर अपनी कमर को मेरे ऊपर दबाते हुए लिंग से मेरी योनि को टटोलने लगे। मेरी आँखों में आँसू थे और मैं सिसक-सिसक कर रोने लगी थी, पर उन पर कोई असर नहीं हो रहा था।
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उन्होंने फिर से अपने लिंग को पकड़ा और फिर मेरी योनि की दरार में ऊपर-नीचे रगड़ा और फिर छेद पर टिका कर हल्के से धकेला तो उनका मोटा सुपाड़ा अन्दर घुस गया।
मैंने और तड़प कर छटपटाने की कोशिश की, पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हिलना भी न के बराबर था।
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Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-9
मैंने और तड़प कर छटपटाने की कोशिश की, पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हिलना भी न के बराबर था।
इसके बाद उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और फिर एक-एक हाथ से मेरे हाथ पकड़ लिए और अपने लिंग को धीरे-धीरे अन्दर धकेलने लगे। करीब पूरा सुपाड़ा घुस चुका था और मुझे हल्का दर्द भी हो रहा था, शायद उनका मोटा था इसलिए या फिर मेरी योनि गीली नहीं थी।
कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उन्होंने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय राम मर गईई…ईई… नहीं.. नहीं.. छोड़ दीजिए.. मैं मर जाऊँगी.. ओह्ह माँ..।
मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी।
अब तब उन्होंने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और और धीरे-धीरे धक्के देने लगे।
शायद उन्हें भी थोड़ी तकलीफ हो रही थी क्योंकि मेरी योनि गीली नहीं थी।
मैंने अपनी आँखें खोलीं और एक बार उनकी तरफ रोते हुए देखा, उन्होंने अपने नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से दबा रखा था, जैसे कोई बहुत ताकत लगाने के समय कर लेता है और मुझे धक्के दे रहे थे।
मैं अब भी रो रही थी और उनके धक्कों पर ‘आह-आह’ करके रोती रही।
करीब 5 मिनट तक हम ऐसे ही ताकत लगाते रहे, वो मुझसे सम्भोग करने के लिए और मैं उनसे अलग होने के लिए। मेरी योनि अब हल्की गीली हो चली थी और पहले जैसा कुछ भी दर्द नहीं हो रहा था, पता नहीं मुझे अब क्या होने लगा था।
शायद मैं हार गई थी इसलिए या अब मेरे पास कोई चारा नहीं था इसलिए मैंने धीरे-धीरे जोर लगाना बंद कर दिया था।
मेरी योनि अब इतनी गीली हो चुकी थी जितने में मैं सम्भोग के लिए तैयार हो जाती थी, मुझे अब उनका लिंग मेरी योनि में अच्छा लगने लगा था।
मैं उनके धक्कों पर अब भी सिसक रही थी, पर यह अब मजे की सिसकारी हो चुकी थी।
मैं अब मस्ती में आ चुकी थी और अचानक मेरे पैर उठ गए और मैं एक-एक पैर को उनकी जाँघों के ऊपर रख पैरों से ही उनकी जाँघों को सहलाने लगी।
उन्होंने अभी भी मेरे हाथों को पकड़ रखा था, तभी मेरी कमर में हरकत हुई जैसे कि मैं खुद को सहज करने के लिए हिला रही हूँ और मैंने अपनी टांगों को उनके कूल्हों पर रख उनको अपनी तरफ खींचा।
मेरी इस हरकत से उन्होंने मेरे हाथ छोड़ दिए और मेरे चूतड़ के नीचे रख मेरे चूतड़ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और अपने लिंग को मेरी योनि में और जोर से घुसेड़ा।
अपने हाथ को आजाद होते ही मैंने उनके गले में हाथ डाल उनको पकड़ लिया और अपने हाथों और पैरों से उन्हें अपनी ओर खींचने लगी।
मेरे दिमाग में अब कुछ भी नहीं था, मैं सब कुछ भूल चुकी थी। अब मुझे कुछ हो रहा था तो बस ये कि मेरी टांगों के बीच कोई मखमली चीज रगड़ रही है। मेरी योनि के अन्दर कोई सख्त और चिकनी चीज़ जो मुझे अजीब सा सुख दे रहा है।
पता नहीं मुझे क्या होने लगा था, मैंने उन्हें अपनी टाँगें खोल बुरी तरह से जकड़ती जा रही थी। उनके सर के बालों को दबोच रखा था, मैं अब मुँह से सांस लेने लगी थी।
मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई चीज मेरी योनि से होता हुआ मेरी नाभि में फ़ैलता जा रहा है… कोई तेज़ ध्वनि की तरंग सा।
अब वो मुझे जोरों से धक्के देने लगे थे और मेरे चेहरे के तरफ गौर से देखे जा रहे थे। उनके मुँह से भी तेज़ सांस लेने की आवाजें आ रही थीं।
करीब 20 मिनट हो चुके थे और मैं अपनी चरम सीमा पर थी, मैं इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि अचानक मेरे बदन में एक करेंट सा दौड़ा और मैंने उनको अपनी ओर खींच कर अपने होंठों को उनके होंठों से लगा दिया।
मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी और मैंने उनके होंठों और जुबान को चूसना शुरू कर दिया और उन्होंने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया।
करीब एक मिनट मैंने इसी तरह से उनको चूसती हुई झड़ गई, मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था।
वो मुझे अब भी धक्के देकर सम्भोग कर रहे थे मैंने अपनी पकड़ कुछ ढीली की तो वो रुक गए।
मैं समझ गई थी कि वो थक चुके हैं, पर मैं ये नहीं समझी कि उन्होंने मुझसे स्थान बदलने को क्यों नहीं कहा।
शायद उन्हें डर था कि कही मैं फिर से विरोध शुरू न कर दूँ क्योंकि वो भी समझ चुके थे कि मैंने पानी छोड़ दिया है।
वो मेरी तरफ देख रहे थे, पर मुझसे उनसे नजरें नहीं मिलाई जा रही थीं।
वो सिर्फ अपनी कमर को हौले-हौले हिला कर अपने लिंग को मेरी योनि की दीवारों से रगड़ रहे थे।
थोड़ी देर बाद जब उनकी थकान कुछ कम हुई तो उन्होंने अपने हाथों से मेरे कंधों को पकड़ लिया और फिर से धक्के देने लगे।
मुझे महसूस होने लगा था कि मेरी योनि के चारों तरफ झाग सा होने लगा है और लिंग बड़े प्यार से अन्दर-बाहर हो रहा था।
कुछ धक्कों के बाद मेरा जिस्म फिर से गर्म होने लगा और मेरे हाथों ने उनको फिर से पकड़ लिया, मेरी टाँगें खुद उठ गईं और फ़ैल गईं ताकि उनको और आसानी हो।
मेरे साथ यह क्या हो रहा था, खुद मेरी समझ से बाहर था। मैं भूल चुकी थी कि वो मेरे नजदीकी रिश्तेदार हैं।
मैं कुछ सोच पाती कि मैं फिर से झड़ गई और वो भी बस 5 से 7 मिनट के सम्भोग में..
यह निशानी थी कि मैं कितनी गर्म थी और वासना की कैसी आग मेरे अन्दर थी।
करीब 45 मिनट हो चुके थे और मैं 4 बार झड़ चुकी थी मैं अपने कूल्हों के नीचे बिस्तर का गीलापन महसूस कर रही थी।
अब वो धक्के लगाते और रुकते फिर लगाते और रुकते… मैं समझ रही थी कि उनमें और धक्के लगाने की ताकत नहीं बची, पर मैं बस अपनी मस्ती में उनके धक्कों का मजा लेती रही।
फिर अचानक से उनके धक्के तेज़ हो गए उन्होंने एक हाथ मेरे चूतड़ों के नीचे रखा और दबोचते हुए खींचा, दूसरे हाथ से मेरे एक स्तन को पूरी ताकत से पकड़ लिया।
मुझे दर्द तो हुआ पर मैं उस मस्ती में दर्द सब भूल गई और उनके बालों को पकड़ अपनी और खींच होंठों से होंठ लगा चूमने लगी।
उनका हर धक्का मेरी योनि के अंतिम छोर तक जा रहा था, मुझे अपनी नाभि में महसूस होने लगा था। उन्होंने इसी बीच अपनी जुबान बाहर निकाल दी और मैं उसे चूसते हुए अपने चूतड़ों को उठाने लगी।
वो मुझे धक्के लगाते रहे मैं अपने चूतड़ उठाए रही और एक पल ऐसा आया कि दोनों ने मिल कर जोर लगाया और ऐसा मानो जैसे उनका लिंग मेरी योनि में फंस गया हो।
फिर दोनों के मुँह से मादक सिसकारी निकली- ह्म्मम्म्म..!!
मैंने पानी छोड़ दिया और उन्होंने भी अपना गर्म गाढ़ा वीर्य मेरी योनि की गहराई में उड़ेल दिया।
हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में एक-दूसरे को पकड़े हुए पड़े रहे, फिर धीरे-धीरे हम दोनों की पकड़ ढीली होने लगी।
जब पूरी तरह से सामान्य हुए तो उन्होंने मेरे ऊपर से अपना चेहरा ऊपर किया और मुझे गौर से देखने लगे, मेरे माथे से पसीना गले से होकर बहने लगा था।
मैंने उनको भी देखा उनके माथे पर भी पसीना था। तब उन्होंने मुस्कुरा दिया मैंने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं।
वो मेरे ऊपर से हट गए और बगल में लेट गए।
मैंने भी दूसरी और मुँह घुमा कर अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैंने न तो कपड़े ठीक करने की सोची और न अपनी योनि साफ़ करने की, बस पता नहीं किस ख्याल में डूब गई।
मैंने और तड़प कर छटपटाने की कोशिश की, पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हिलना भी न के बराबर था।
इसके बाद उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और फिर एक-एक हाथ से मेरे हाथ पकड़ लिए और अपने लिंग को धीरे-धीरे अन्दर धकेलने लगे। करीब पूरा सुपाड़ा घुस चुका था और मुझे हल्का दर्द भी हो रहा था, शायद उनका मोटा था इसलिए या फिर मेरी योनि गीली नहीं थी।
कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उन्होंने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय राम मर गईई…ईई… नहीं.. नहीं.. छोड़ दीजिए.. मैं मर जाऊँगी.. ओह्ह माँ..।
मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी।
अब तब उन्होंने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और और धीरे-धीरे धक्के देने लगे।
शायद उन्हें भी थोड़ी तकलीफ हो रही थी क्योंकि मेरी योनि गीली नहीं थी।
मैंने अपनी आँखें खोलीं और एक बार उनकी तरफ रोते हुए देखा, उन्होंने अपने नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से दबा रखा था, जैसे कोई बहुत ताकत लगाने के समय कर लेता है और मुझे धक्के दे रहे थे।
मैं अब भी रो रही थी और उनके धक्कों पर ‘आह-आह’ करके रोती रही।
करीब 5 मिनट तक हम ऐसे ही ताकत लगाते रहे, वो मुझसे सम्भोग करने के लिए और मैं उनसे अलग होने के लिए। मेरी योनि अब हल्की गीली हो चली थी और पहले जैसा कुछ भी दर्द नहीं हो रहा था, पता नहीं मुझे अब क्या होने लगा था।
शायद मैं हार गई थी इसलिए या अब मेरे पास कोई चारा नहीं था इसलिए मैंने धीरे-धीरे जोर लगाना बंद कर दिया था।
मेरी योनि अब इतनी गीली हो चुकी थी जितने में मैं सम्भोग के लिए तैयार हो जाती थी, मुझे अब उनका लिंग मेरी योनि में अच्छा लगने लगा था।
मैं उनके धक्कों पर अब भी सिसक रही थी, पर यह अब मजे की सिसकारी हो चुकी थी।
मैं अब मस्ती में आ चुकी थी और अचानक मेरे पैर उठ गए और मैं एक-एक पैर को उनकी जाँघों के ऊपर रख पैरों से ही उनकी जाँघों को सहलाने लगी।
उन्होंने अभी भी मेरे हाथों को पकड़ रखा था, तभी मेरी कमर में हरकत हुई जैसे कि मैं खुद को सहज करने के लिए हिला रही हूँ और मैंने अपनी टांगों को उनके कूल्हों पर रख उनको अपनी तरफ खींचा।
मेरी इस हरकत से उन्होंने मेरे हाथ छोड़ दिए और मेरे चूतड़ के नीचे रख मेरे चूतड़ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और अपने लिंग को मेरी योनि में और जोर से घुसेड़ा।
अपने हाथ को आजाद होते ही मैंने उनके गले में हाथ डाल उनको पकड़ लिया और अपने हाथों और पैरों से उन्हें अपनी ओर खींचने लगी।
मेरे दिमाग में अब कुछ भी नहीं था, मैं सब कुछ भूल चुकी थी। अब मुझे कुछ हो रहा था तो बस ये कि मेरी टांगों के बीच कोई मखमली चीज रगड़ रही है। मेरी योनि के अन्दर कोई सख्त और चिकनी चीज़ जो मुझे अजीब सा सुख दे रहा है।
पता नहीं मुझे क्या होने लगा था, मैंने उन्हें अपनी टाँगें खोल बुरी तरह से जकड़ती जा रही थी। उनके सर के बालों को दबोच रखा था, मैं अब मुँह से सांस लेने लगी थी।
मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई चीज मेरी योनि से होता हुआ मेरी नाभि में फ़ैलता जा रहा है… कोई तेज़ ध्वनि की तरंग सा।
अब वो मुझे जोरों से धक्के देने लगे थे और मेरे चेहरे के तरफ गौर से देखे जा रहे थे। उनके मुँह से भी तेज़ सांस लेने की आवाजें आ रही थीं।
करीब 20 मिनट हो चुके थे और मैं अपनी चरम सीमा पर थी, मैं इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि अचानक मेरे बदन में एक करेंट सा दौड़ा और मैंने उनको अपनी ओर खींच कर अपने होंठों को उनके होंठों से लगा दिया।
मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी और मैंने उनके होंठों और जुबान को चूसना शुरू कर दिया और उन्होंने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया।
करीब एक मिनट मैंने इसी तरह से उनको चूसती हुई झड़ गई, मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था।
वो मुझे अब भी धक्के देकर सम्भोग कर रहे थे मैंने अपनी पकड़ कुछ ढीली की तो वो रुक गए।
मैं समझ गई थी कि वो थक चुके हैं, पर मैं ये नहीं समझी कि उन्होंने मुझसे स्थान बदलने को क्यों नहीं कहा।
शायद उन्हें डर था कि कही मैं फिर से विरोध शुरू न कर दूँ क्योंकि वो भी समझ चुके थे कि मैंने पानी छोड़ दिया है।
वो मेरी तरफ देख रहे थे, पर मुझसे उनसे नजरें नहीं मिलाई जा रही थीं।
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थोड़ी देर बाद जब उनकी थकान कुछ कम हुई तो उन्होंने अपने हाथों से मेरे कंधों को पकड़ लिया और फिर से धक्के देने लगे।
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करीब 45 मिनट हो चुके थे और मैं 4 बार झड़ चुकी थी मैं अपने कूल्हों के नीचे बिस्तर का गीलापन महसूस कर रही थी।
अब वो धक्के लगाते और रुकते फिर लगाते और रुकते… मैं समझ रही थी कि उनमें और धक्के लगाने की ताकत नहीं बची, पर मैं बस अपनी मस्ती में उनके धक्कों का मजा लेती रही।
फिर अचानक से उनके धक्के तेज़ हो गए उन्होंने एक हाथ मेरे चूतड़ों के नीचे रखा और दबोचते हुए खींचा, दूसरे हाथ से मेरे एक स्तन को पूरी ताकत से पकड़ लिया।
मुझे दर्द तो हुआ पर मैं उस मस्ती में दर्द सब भूल गई और उनके बालों को पकड़ अपनी और खींच होंठों से होंठ लगा चूमने लगी।
उनका हर धक्का मेरी योनि के अंतिम छोर तक जा रहा था, मुझे अपनी नाभि में महसूस होने लगा था। उन्होंने इसी बीच अपनी जुबान बाहर निकाल दी और मैं उसे चूसते हुए अपने चूतड़ों को उठाने लगी।
वो मुझे धक्के लगाते रहे मैं अपने चूतड़ उठाए रही और एक पल ऐसा आया कि दोनों ने मिल कर जोर लगाया और ऐसा मानो जैसे उनका लिंग मेरी योनि में फंस गया हो।
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जब पूरी तरह से सामान्य हुए तो उन्होंने मेरे ऊपर से अपना चेहरा ऊपर किया और मुझे गौर से देखने लगे, मेरे माथे से पसीना गले से होकर बहने लगा था।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-10
मैं बस यह सोच रही थी कि क्या इतने बुजुर्ग मर्द में भी इतनी ताकत होती है?
मेरे दिल में अब यह ख्याल नहीं आ रहा था कि वो मेरे रिश्तेदार हैं, बस एक संतुष्टि सी थी।
लगभग 15-20 मिनट बाद मुझे पता नहीं क्या हुआ मैं उनकी तरफ पलटी और उनको उठाया, वो भी नहीं सोये थे।
उन्होंने मुझसे पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- और करना है क्या?
उन्होंने तुरंत कहा- हाँ..
फिर मैंने अपने कपड़े खुद ही उतार दिए सारे और नंगी हो गई।
मुझे ऐसा देख उन्होंने भी कपड़े उतार दिए और नंगे हो गए, वो मेरे सामने पूरे नंगे थे, मैंने गौर से देखा उनके शरीर पर झुर्रियाँ तो थीं पर लगता नहीं था कि वो बूढ़े हैं, सीना ऐसे मानो कोई पहलवान हो।
सीने पर काफी बाल थे और कुछ सफ़ेद बाल भी थे। उनका लिंग तो पूरा बालों से घिरा था, पर वहाँ के बाल अभी भी काले थे, उनके अंडकोष काफी बड़े थे।
मुझे पता नहीं क्या हुआ शायद एक बार में ही उनका चस्का सा लग गया। वो इससे पहले कि कुछ करते, मैंने खुद ही उनका लिंग पकड़ लिया और हिलाने लगी।
उनका लिंग ढीला था और मेरे हाथ लगाने और हिलाने से कोई असर नहीं पड़ रहा था, वो अब भी झूल रहा था।
उनके लिंग को अपने हाथ में पकड़ते ही मुझे फिर से कुछ होने लगा, मेरी योनि में गुदगुदी सी होने लगी।
वो अपने दोनों हाथ पीछे करके पैर सीधे किये बैठे थे और मैं उनके लिंग को हिला रही थी, पर करीब 5 मिनट हिलाने के बाद भी कोई असर नहीं हो रहा था।
मैंने एक हाथ से उनके सर को पकड़ा और अपने स्तनों पर झुका दिया, फिर दूसरे हाथ से अपने एक स्तन को उनके मुँह में लगा दिया और वो चूसने लगे।
मैंने फिर से उनके लिंग को पकड़ कर खड़ा करने के लिए हिलाने लगी।
तभी उन्होंने एक हाथ से मेरी टांग को फैला दिया और मेरी योनि को छूने लगे।
कुछ देर सहलाने के बाद उन्होंने मुझे रुकने को कहा और बिस्तर से उतर कर मेरी फटी हुई पैंटी उठा ली और मेरी योनि में लगा हुआ वीर्य पोंछ दिया और फिर उसे सहलाने लगे।
मैंने फिर से उनके लिंग को पकड़ सहलाना शुरू कर दिया और वो मेरी योनि को सहलाते हुए स्तनों को चूसने लगे।
उनका लिंग कुछ सख्त हो चुका था, पर इतना भी नहीं कि मेरी योनि को भेद सके।
तब मैंने उनके चेहरे को अपने स्तनों से अलग किया और उनके लिंग को मुँह में भर कर चूसने लगी।
मेरे कुछ देर चूसने के तुरंत बाद उनका लिंग खड़ा हो गया, पर मैं उसे अभी भी चूस रही थी, साथ ही उनके अन्डकोषों को सहला रही थी।
तभी उन्होंने कहा- ठीक है अब छोड़ो, चलो चुदाई करते हैं।
तब मैंने छोड़ दिया और बगल में लेट गई और अपनी कमर के नीचे तकिया लगा कर अपनी टाँगें फैला दीं।
वो मेरे ऊपर आ गए मेरी टांगों के बीच, वो मेरे ऊपर झुके तो मैंने उनके लिंग को पकड़ लिया और योनि की दरार में 4-5 बार रगड़ा और छेद में सुपारे तक घुसा दिया और कहा- चोदिये।
उन्होंने मेरी बात सुनते ही अपने कमर को मेरे ऊपर दबाया और लिंग को धकेल मेरी योनि में घुसा दिया।
मैं थोड़ा सा कसमसाई तो उन्होंने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं।
तो उन्होंने कहा- दर्द हो रहा है क्या?
मैंने कहा- हाँ.. हल्का सा आपका लंड बहुत मोटा है।
इस पर वो मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगे और धीरे-धीरे लिंग को अन्दर-बाहर कर सम्भोग करने लगे। मेरी योनि उनके धक्कों से पानी छोड़ने लगी और ‘चप-चप’ की आवाज निकलने लगी।
मैंने एक हाथ गले में डाला, दूसरा पीठ में डाल कर पकड़े हुई थी। वो मुझे मेरे कंधों को पकड़ कर धक्के मार रहे थे।
तभी उन्होंने एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे चूतड़ों को पकड़ कर खींचा तो मैंने भी अपनी दोनों टाँगें उठा कर उनके चूतड़ों पर रख अपनी ओर खींचा।
वो मुझे ऐसे ही चोदे जा रहे थे और मैं कुहक रही थी, हम दोनों एक-दूसरे के चेहरे को देख रहे थे।
तभी उन्होंने मुझसे कहा- पहले तो मना कर रही थीं… रो रही थीं और अब मर्ज़ी से चुदवा रही हो, इतना नाटक क्यों किया?
मैंने सुनते ही नजरें दूसरी तरफ कर लीं और खामोश रही, पर उन्होंने बार-बार पूछना शुरू कर दिया।
तब मैंने कहा- हम दोनों का रिश्ता बाप-बेटी जैसा है और पहले ये मुझे ठीक नहीं लग रहा था।
मेरी बात सुनकर उन्होंने धक्के लगाना बंद कर दिया और कहा- ठीक है.. पर अब दुबारा करने के लिए खुद ही क्यों पूछा?
मैंने कहा- अब तो सब हो ही चुका था मेरे मना करने के बाद भी आप नहीं माने, मेरा मन कर रहा था और करने को सो कह दिया।
मेरी बात सुन कर वो मेरी तरफ गौर से देखने लगे, वो धक्के नहीं लगा रहे थे और मेरी अन्दर की वासना इतनी भड़क चुकी थी कि मुझे बैचैनी सी होने लगी थी।
तब मैंने 3-4 बार अपनी कमर उचका दी और अपनी टांगों से उन्हें अपनी ओर खींचा, फिर उनके होंठों से होंठ लगा कर उन्हें चूमने लगी।
उन्होंने अपना मुँह खोल जुबान बाहर कर दी और मैं उसे चूसने लगी।
वो अब पूरे जोश में आ गए थे। उन्होंने 2-3 जोर के धक्के लगाए जिससे मेरी ‘आह्ह्ह’ निकल गई और वे जोर-जोर के तेज़ धक्के मारते हुए मुझे चोदने लगे।
वो धक्के लगा रहे थे और मेरे मुँह से सिसकारियाँ और ‘आहें’ निकल रही थीं।
अभी सम्भोग करते हुए कुछ ही देर हुए ही थे कि मैंने फिर से अपने जिस्म को अकड़ते हुए महसूस करने लगी, मेरी साँसें दो पल के लिए रुक सी गईं।
मेरी योनि सिकुड़ गई और मैंने पानी छोड़ दिया।
मैंने उनको पूरी ताकत से पकड़ रखा था, मेरा पूरा बदन और योनि पत्थर के समान हो गई थी, पर वो मुझे लगातार चोद ही रहे थे।
उन्होंने कहा- बुर को ढीला करो..
जो कि फ़िलहाल मेरे बस में नहीं था।
कुछ पलों के बाद मेरा बदन ढीला पड़ने लगा और वो धक्के रुक-रुक कर लगाने लगे। मैं समझ गई कि वो थक चुके हैं।
मैंने उनको कुछ देर ऐसे ही धक्के लगाने दिया और फिर उनको कहा- आप नीचे आ जाइए।
मेरी बात सुनकर वो मेरे ऊपर से उठे और अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाल लिया और पीठ के बल लेट गए।
मैंने देखा तो मेरी योनि के चारों तरफ सफ़ेद झाग सा लग गया था, उधर वो भी अपने लिंग को हाथ से सहला रहे थे।
मैं दोनों टाँगें फैला कर उनके ऊपर चढ़ गई और उनके लिंग को पकड़ कर योनि को उसे ऊपर लगाया, तभी उन्होंने मेरी वही फटी पैंटी ली और मेरी योनि को पोंछ दिया।
मैंने लिंग को योनि के छेद पर सीधा रख दिया और बैठ गई, लिंग फिसलता हुआ मेरी योनि की गहराई में धंस गया।
लिंग अन्दर घुसते ही मुझे बड़ा आनन्द महसूस हुआ, उनके लिंग का चमड़ा पीछे की ओर खिसकता चला गया।
मुझे बड़ी ही गुदगुदी सी महसूस होने लगी। मैंने अपने घुटनों को मोड़ा, उनके सीने पर हाथ रख दिया, उन्होंने भी मेरी कमर को पकड़ लिया और तैयार हो गए।
मैंने पहले धीरे-धीरे शुरू किया फिर जब मुझे उनके ऊपर थोड़ा आराम मिलने लगा तो मैंने अपनी गति तेज़ कर दी।
मैं पूरे मस्ती में थी तभी मैं एक तरफ सर घुमाया तो मुझे सामने आइना दिखा।
मैं बस यह सोच रही थी कि क्या इतने बुजुर्ग मर्द में भी इतनी ताकत होती है?
मेरे दिल में अब यह ख्याल नहीं आ रहा था कि वो मेरे रिश्तेदार हैं, बस एक संतुष्टि सी थी।
लगभग 15-20 मिनट बाद मुझे पता नहीं क्या हुआ मैं उनकी तरफ पलटी और उनको उठाया, वो भी नहीं सोये थे।
उन्होंने मुझसे पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- और करना है क्या?
उन्होंने तुरंत कहा- हाँ..
फिर मैंने अपने कपड़े खुद ही उतार दिए सारे और नंगी हो गई।
मुझे ऐसा देख उन्होंने भी कपड़े उतार दिए और नंगे हो गए, वो मेरे सामने पूरे नंगे थे, मैंने गौर से देखा उनके शरीर पर झुर्रियाँ तो थीं पर लगता नहीं था कि वो बूढ़े हैं, सीना ऐसे मानो कोई पहलवान हो।
सीने पर काफी बाल थे और कुछ सफ़ेद बाल भी थे। उनका लिंग तो पूरा बालों से घिरा था, पर वहाँ के बाल अभी भी काले थे, उनके अंडकोष काफी बड़े थे।
मुझे पता नहीं क्या हुआ शायद एक बार में ही उनका चस्का सा लग गया। वो इससे पहले कि कुछ करते, मैंने खुद ही उनका लिंग पकड़ लिया और हिलाने लगी।
उनका लिंग ढीला था और मेरे हाथ लगाने और हिलाने से कोई असर नहीं पड़ रहा था, वो अब भी झूल रहा था।
उनके लिंग को अपने हाथ में पकड़ते ही मुझे फिर से कुछ होने लगा, मेरी योनि में गुदगुदी सी होने लगी।
वो अपने दोनों हाथ पीछे करके पैर सीधे किये बैठे थे और मैं उनके लिंग को हिला रही थी, पर करीब 5 मिनट हिलाने के बाद भी कोई असर नहीं हो रहा था।
मैंने एक हाथ से उनके सर को पकड़ा और अपने स्तनों पर झुका दिया, फिर दूसरे हाथ से अपने एक स्तन को उनके मुँह में लगा दिया और वो चूसने लगे।
मैंने फिर से उनके लिंग को पकड़ कर खड़ा करने के लिए हिलाने लगी।
तभी उन्होंने एक हाथ से मेरी टांग को फैला दिया और मेरी योनि को छूने लगे।
कुछ देर सहलाने के बाद उन्होंने मुझे रुकने को कहा और बिस्तर से उतर कर मेरी फटी हुई पैंटी उठा ली और मेरी योनि में लगा हुआ वीर्य पोंछ दिया और फिर उसे सहलाने लगे।
मैंने फिर से उनके लिंग को पकड़ सहलाना शुरू कर दिया और वो मेरी योनि को सहलाते हुए स्तनों को चूसने लगे।
उनका लिंग कुछ सख्त हो चुका था, पर इतना भी नहीं कि मेरी योनि को भेद सके।
तब मैंने उनके चेहरे को अपने स्तनों से अलग किया और उनके लिंग को मुँह में भर कर चूसने लगी।
मेरे कुछ देर चूसने के तुरंत बाद उनका लिंग खड़ा हो गया, पर मैं उसे अभी भी चूस रही थी, साथ ही उनके अन्डकोषों को सहला रही थी।
तभी उन्होंने कहा- ठीक है अब छोड़ो, चलो चुदाई करते हैं।
तब मैंने छोड़ दिया और बगल में लेट गई और अपनी कमर के नीचे तकिया लगा कर अपनी टाँगें फैला दीं।
वो मेरे ऊपर आ गए मेरी टांगों के बीच, वो मेरे ऊपर झुके तो मैंने उनके लिंग को पकड़ लिया और योनि की दरार में 4-5 बार रगड़ा और छेद में सुपारे तक घुसा दिया और कहा- चोदिये।
उन्होंने मेरी बात सुनते ही अपने कमर को मेरे ऊपर दबाया और लिंग को धकेल मेरी योनि में घुसा दिया।
मैं थोड़ा सा कसमसाई तो उन्होंने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं।
तो उन्होंने कहा- दर्द हो रहा है क्या?
मैंने कहा- हाँ.. हल्का सा आपका लंड बहुत मोटा है।
इस पर वो मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगे और धीरे-धीरे लिंग को अन्दर-बाहर कर सम्भोग करने लगे। मेरी योनि उनके धक्कों से पानी छोड़ने लगी और ‘चप-चप’ की आवाज निकलने लगी।
मैंने एक हाथ गले में डाला, दूसरा पीठ में डाल कर पकड़े हुई थी। वो मुझे मेरे कंधों को पकड़ कर धक्के मार रहे थे।
तभी उन्होंने एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे चूतड़ों को पकड़ कर खींचा तो मैंने भी अपनी दोनों टाँगें उठा कर उनके चूतड़ों पर रख अपनी ओर खींचा।
वो मुझे ऐसे ही चोदे जा रहे थे और मैं कुहक रही थी, हम दोनों एक-दूसरे के चेहरे को देख रहे थे।
तभी उन्होंने मुझसे कहा- पहले तो मना कर रही थीं… रो रही थीं और अब मर्ज़ी से चुदवा रही हो, इतना नाटक क्यों किया?
मैंने सुनते ही नजरें दूसरी तरफ कर लीं और खामोश रही, पर उन्होंने बार-बार पूछना शुरू कर दिया।
तब मैंने कहा- हम दोनों का रिश्ता बाप-बेटी जैसा है और पहले ये मुझे ठीक नहीं लग रहा था।
मेरी बात सुनकर उन्होंने धक्के लगाना बंद कर दिया और कहा- ठीक है.. पर अब दुबारा करने के लिए खुद ही क्यों पूछा?
मैंने कहा- अब तो सब हो ही चुका था मेरे मना करने के बाद भी आप नहीं माने, मेरा मन कर रहा था और करने को सो कह दिया।
मेरी बात सुन कर वो मेरी तरफ गौर से देखने लगे, वो धक्के नहीं लगा रहे थे और मेरी अन्दर की वासना इतनी भड़क चुकी थी कि मुझे बैचैनी सी होने लगी थी।
तब मैंने 3-4 बार अपनी कमर उचका दी और अपनी टांगों से उन्हें अपनी ओर खींचा, फिर उनके होंठों से होंठ लगा कर उन्हें चूमने लगी।
उन्होंने अपना मुँह खोल जुबान बाहर कर दी और मैं उसे चूसने लगी।
वो अब पूरे जोश में आ गए थे। उन्होंने 2-3 जोर के धक्के लगाए जिससे मेरी ‘आह्ह्ह’ निकल गई और वे जोर-जोर के तेज़ धक्के मारते हुए मुझे चोदने लगे।
वो धक्के लगा रहे थे और मेरे मुँह से सिसकारियाँ और ‘आहें’ निकल रही थीं।
अभी सम्भोग करते हुए कुछ ही देर हुए ही थे कि मैंने फिर से अपने जिस्म को अकड़ते हुए महसूस करने लगी, मेरी साँसें दो पल के लिए रुक सी गईं।
मेरी योनि सिकुड़ गई और मैंने पानी छोड़ दिया।
मैंने उनको पूरी ताकत से पकड़ रखा था, मेरा पूरा बदन और योनि पत्थर के समान हो गई थी, पर वो मुझे लगातार चोद ही रहे थे।
उन्होंने कहा- बुर को ढीला करो..
जो कि फ़िलहाल मेरे बस में नहीं था।
कुछ पलों के बाद मेरा बदन ढीला पड़ने लगा और वो धक्के रुक-रुक कर लगाने लगे। मैं समझ गई कि वो थक चुके हैं।
मैंने उनको कुछ देर ऐसे ही धक्के लगाने दिया और फिर उनको कहा- आप नीचे आ जाइए।
मेरी बात सुनकर वो मेरे ऊपर से उठे और अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाल लिया और पीठ के बल लेट गए।
मैंने देखा तो मेरी योनि के चारों तरफ सफ़ेद झाग सा लग गया था, उधर वो भी अपने लिंग को हाथ से सहला रहे थे।
मैं दोनों टाँगें फैला कर उनके ऊपर चढ़ गई और उनके लिंग को पकड़ कर योनि को उसे ऊपर लगाया, तभी उन्होंने मेरी वही फटी पैंटी ली और मेरी योनि को पोंछ दिया।
मैंने लिंग को योनि के छेद पर सीधा रख दिया और बैठ गई, लिंग फिसलता हुआ मेरी योनि की गहराई में धंस गया।
लिंग अन्दर घुसते ही मुझे बड़ा आनन्द महसूस हुआ, उनके लिंग का चमड़ा पीछे की ओर खिसकता चला गया।
मुझे बड़ी ही गुदगुदी सी महसूस होने लगी। मैंने अपने घुटनों को मोड़ा, उनके सीने पर हाथ रख दिया, उन्होंने भी मेरी कमर को पकड़ लिया और तैयार हो गए।
मैंने पहले धीरे-धीरे शुरू किया फिर जब मुझे उनके ऊपर थोड़ा आराम मिलने लगा तो मैंने अपनी गति तेज़ कर दी।
मैं पूरे मस्ती में थी तभी मैं एक तरफ सर घुमाया तो मुझे सामने आइना दिखा।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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