जिस्म की प्यास compleet

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rajsharma
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »


ललिता अपनी आँखों से अपनी चूत का पानी बहते हुए देखने लगी... फिर उसने अपने बदन को साबुन से धोया और अपने
बदन को पौछ्कर टाय्लेट के बाहर निकली..

उसने दो-तीन बारी ज़ोर से बोला "डॉली दीदी....... दीदी...... दीदी" मगर कोई जवाब नहीं आया....
अपने हल्के नम बदन पे लिपटा हुआ लाल तौलिया उसने दो उंगलिओ से खोल दिया और नंगी खड़ी हो गयी....
इस घर की सबसे अच्छी बात ये थी कि इसके आस पास कोई और घर नहीं था तो कोई भी घर के अंदर ताका झाकी नहीं
कर सकता था.. ललिता ने वो तौलिया अपने बालो पे बाँध दिया और चलकर अपने कमरे में जाने लगी....
जैसी ही वो डॉली के कमरे के बाहर निकली तभी घर का दरवाज़ा किसीने खोल दिया..... ललिता को नज़ाने क्यूँ लगा की वो
उसकी बहन नहीं कोई और है.... और अगले ही सेकेंड उसका ये वेहम हक़ीकत बन गया.... दरवाज़े के सामने खड़ा एक
सावला लंबा पतला आदमी सिर पर हल्के हल्के बाल और चेहरे पे हैरत लिए खड़ा था.... वो आदमी वही खड़ा
ललिता के नंगे बदन को देख कर जा रहा था.... ललिता ने जल्द से जल्द अपने सिर से तौलिया निकाला और अपने बदन
पे बाँध लिया.... इश्स दौरान ललिता के मम्मे ज़ोर से हिले जिनको देख कर उस आदमी का लंड हिल गया....
ललिता को घबराया देख उस आदमी ने भी अपनी आँख घुमा ली.....

ललिता उस आदमी की वजह से जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी और दरवाज़ा लॉक कर दिया.... अपने बिस्तर पे बैठके
वो सोचने लगी कि ये आदमी कौन था और ऐसी ही घर में कैसे घुस गया?? कहीं चोर तो नहीं था क्यूंकी उसके हाथ में
एर बॅग भी तो था... ललिता दबे पाओ से दरवाज़े की तरफ बढ़ी और तभी उसने अपने कमरे के बाहर से एक आवाज़ सुनी...

"देखो बेटा तुम शायद ललिता होगी मैं तुम्हारी मम्मी का भाई यानी तुम्हारा विजय मामा हूँ...."
ललिता वहीं खड़े खड़े उस आदमी की बात सुनती रही... उस आदमी ने फिर से कहा "वो हुआ ऐसा कि मैने घर की बेल
बजाई तो वो बजी नहीं.. और काफ़ी देर खटखटाया भी मगर किसीने नहीं खोला... मुझे डॉली ने बताया था कि तुम घर पर ही होगी तो मैने दरवाज़े की नॉब को घुमाया तो वो अपने आप खुल गया... सॉरी अगर तुमको मेरी वजह शर्मिंदगी हुई हो"

ये सुनते ही ललिता बोली 'नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... आप बैठिए मैं अभी बाहर आती हूँ"

ललिता ने जल्दी से एक हरी सफेद सलवार कुरती निकाली और सैफीड ब्रा पैंटी के साथ पहेन ली....
अपने बालो को कंघी करके अच्छे से बाँध कर एक लंबी साँस लेके उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला...
सोफे के पास बैठे उसने अपने मामा को कहा "नमस्ते मामा... आप पानी पीएँगे??" ये कहकर ललिता को बड़ी
झिझक हुई और विजय को ललिता को धकि हुई देखकर काफ़ी राहत मिली.... पानी देते वक़्त ललिता विजय के साथ वाले
सोफे पे बैठ गयी और जहा उसका मोबाइल पड़ा था... उसने मोबाइल पे देखा तो डॉली के मीसड कॉल आए हुए थे
और मैसेज पे भी लिखा था कि विजय मामा आएँगे घर तो पहले ही नहा लेना"....

ये पढ़कर ललिता बोली 'डॉली दीदी ने मैसेज भी करा था कि आप आने वाले है मगर मैने देखा ही नहीं था...'

विजय ने कहा "कोई बात नहीं बेटी... हो जाता है ऐसा कभी कभी"

विजय को शांत देख कर ललिता भी उस बात भूलने की कोशिश करती रही... विजय ने बताया कि वो सिर्फ़ आज रात के लिएइन्दोर से यहाँ आया कुच्छ बिज़्नेस के काम से और कल सुबह की ट्रेन से वापस रवाना हो जाएगा... उसने अपनी पत्नी और
अपने 2 बच्चो के बारे में भी बताया जिन्होने ललिता और उसकी बहन को बहुत प्यार भेजा है....
फिर कुच्छ देर के लिए ललिता विजय मामू के साथ बैठी रही और उसके बाद डॉली घर आ गयी...
डॉली विजय मामू को जानती थी क्यूंकी जब वो उनसे आखरी बारी मिली थी तो उसकी उम्र कुच्छ 14 साल थी...
विजय अपनी दोनो भाँजियो को देखकर काफ़ी खुश हुआ और दोनो को एक बड़ी डेरी मिल्क का डिब्बा भी दिया....

कुच्छ देर बाद जब विजय आराम करने के लिए नारायण के कमरे में चले गया तब ललिता ने डॉली को बोला
"आप क्या डोर लॉक नहीं कर सकते थे"

डॉली ने कहा "अर्रे तेरेको जगाके बोला तो था कि दरवाज़ा बंद करले और तूने हां भी कहा था कि करलूंगी..
अब मुझे क्या पता तू नींद में ही हां कह रही थी..... और वैसे तंग ना कर मेरा मूड ऑफ है"

ललिता ने चिड़ाते हुए पूछा "क्यूँ क्या कर दिया आपके आशिक़ ने ऐसा जो आपका मूड ऑफ हो गया"

डॉली ललिता को हल्के से मारके बोली "चल हॅट... अपना काम कर"

क्रमशः…………………..
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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Re: जिस्म की प्यास

Post by mini »

bahut bahut masttttttttt
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rajsharma
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »

जिस्म की प्यास--28

गतान्क से आगे……………………………………

उधर दिल्ली में कुच्छ 12 बजे चेतन अभी भी शन्नो के साथ बिस्तर पर चिपक कर लेटे हुआ था.... शन्नो ने चेतन का हाथ अपने पेट से हटाना चाहा मगर चेतन नहीं माना और अपनी मा को जकड़े रखा..... फिर शन्नो ने कहा "हटो ना मुझे नहाने जाना है... फिर बुआ के घर भी जाना है आज"

चेतन अपनी नींद में बोलता"अब उनके घर क्यूँ जाना" शन्नो अपने आपको छुड़ा बिस्तर से उठ गयी...

उसने चेतन से पूछा "तुम चलोगे ना मेरे साथ?? मैं अकेले बोर हो जाती हूँ" चेतन ने जाने से इनकार कर दिया

और शन्नो मायूस होकर अपने कपड़े निकालने लगी.... अपना तौलिया लेकर जब वो टाय्लेट में गयी तभी चेतन भी

अपने बिस्तर से उठ कर शन्नो के साथ टाय्लेट में घुस गया.... टाय्लेट की ट्यूब लाइट ऑन करके चेतन को शन्नो अपनी

बाँहों में भरके उसको शवर के नीचे ले गया और पानी ऑन कर दिया... दोनो के बदन कपड़ो के समैत भीग रहे थे... चेतन शन्नो को चूमे जा रहा था और शन्नो को काफ़ी माज़ा आने लगा था.... चेतन ने शन्नो के होंठो को

चूम लिया और उसके दोनो हाथ शन्नो के नितंबो पर चाँते बरसाने लगे.... शन्नो को अपने बदन में मीठा दर्द

महसूस होने लगा.... शन्नो ने चेतन के निकर में हाथ डालकर उसके लंड को पकड़ लिया और चेतन को समझ

में आ गया कि उसकी मा क्या चाहती है... शन्नो के सिर पे हाथ रख के चेतन ने उसे फर्श पे बिठाया और अपनी

निकर को नीचे कर के उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया.... शन्नो की गरम पीठ पर ठंडा ठंडा

पानी बरस रहा था और उसके हाथ में गरम जागा हुआ लंड था..... अपने बेटे के लंड को उसने चूसना शुरू

करा और चेतन अपनी पैर की उंगलिओ से उसकी चूत को रगड़ने लगा.... शन्नो की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी और चेतन

उसे और तडपा रहा था..... शन्नो का दूसरा हाथ चेतन के आंडो से खेल रहा था और उसका मुँह

रॅंडियो की तरह चले जा रहा था..... शन्नो नहीं चाहती कि उसके बेटे का लंड ऐसे ही झाड़ जाए और उसने लंड को

छोड़ दिया और अपनी पैंटी उतारके वो चेतन के लंड की दुआ करने लगी.... चेतन ने उसकी चूत के अंदर झट से दो

उंगलिया डाल दी और शन्नो की चीख निकल गयी.... चेतन बोला "अब ये लंड सिर्फ़ इनाम में ही मिलेगा..."

ये कहकर चेतन ने शन्नो के नितंब पर एक और चाँटा लगाया और टाय्लेट से चला गया.....

पूरे समय नहाते हुए शन्नो अपनी गीली चूत को तसल्ली देती रही.... वो सोचने लगी कि कैसे चेतन के लंड को जीत सकु.... नाहकार जब वो तौलिया अपने मम्मो पर लपेट कर बाहर निकली तब चेतन बिस्तर पे तैयार बैठा था....

शन्नो उसको तैयार देख बहुत खुश हो गयी और अपने बदन को वहीं तौलिए से आज़ाद कर दिया....

उस तौलिए से वो अपने गीले बालो को सुखाने लगी... सफेद रंग की ब्रा और पैंटी को पहनने के बाद उसने अपनी टाँगो

को थोड़ा थोड़ा उठाकर उसने पेटिकोट पहना और नाडे को कस्के बाँध दिया.... उसके जोड़ी दार आधे बाजू वाला

सफेद ब्लाउस को भी पहेन लिया जिसके सामने की तरफ हुक्स थे....... फिर वो हरे रंग की सिल्क की सारी जिसपर

सफेद रंग के फूल पत्ते थे वो बाँधने लगी और बाँधने के बाद उसने पिन से पल्लू को ब्लाउस के साथ जोड़ दिया....

अपने बालो को कंघी करके और एक हरी रंग की गोल बिंदी को लगाके वो तैयार हो गयी....

चेतन की नज़रे पूरी वक़्त उसके मा पर जमी थी और जब वो पूरी तरह से तैयार हो गयी तब उसे देख कर चेतन

के पसीने छूट गये.... घर के कपड़ो में भले ही वो बात ना आती हो मगर सारी में उसकी मम्मी एक दम

बॉम्ब लग रही थी.... सॅंडल पहनते वक़्त चेतन उसकी मम्मी को बड़ी हील वाली सॅंडल पहनने को बोला तो शन्नो ने एक काली बड़ी हील वाली सॅंडल पहेन ली.... घर को ताला लगाकर दोनो मा बेटे बुआ के घर जाने के लिए रवाना हो गये...

शन्नो ने चेतन की वजह आज ऑटो में जाने का सोचा और तकरीबन 10 मिनट के इंतजार के बाद एक ऑटोवाला रुका....

जब शन्नो उसमें बैठने लगी तब चेतन ने उस ऑटो वाले की तरफ देखा जिसकी नज़रे शन्नो की बड़ी गान्ड को घूरे

जा रही रही थी.... पूरी दुनिया ही थर्कि है ये सोचके चेतन मुस्कुराता हुआ ऑटो में बैठा.....

सब कुच्छ साधारण तरीके से बीतता रहा और वो दोनो बुआ के घर पे उतर गये.... ऑटो वाले को पैसे देके

उन्होने कुच्छ घंटे बुआ के घर पे बिताए और चेतन अच्छे बच्चे की तरह अपनी मम्मी से शराफ़त से पेश आ रहा था....

जब बुआ उन दोनो के सामने भी नहीं होती तब भी चेतन के दिमाग़ में कोई गंदी बात नहीं आई...

ये देख कर शन्नो को खुशी हुई कि उसके बेटे को किस जगह कैसे बर्ताव करना चाहिए इसकी समझ है और फिर सुबह

के बारे में सोचने लगी जब उसने दूधवाले के साथ इतनी गंदी हरकत करी थी.... खैर कुच्छ शाम के 6:00 बजे तक

शन्नो और चेतन बुआ के घर से निकले और हल्का अंधेरा आसमान में छाने लगा था...

दोनो मा बेटा साथ में चलने लगे और मैं रोड पे खड़े होकर वो ऑटो का इंतजार करने लगे....

काफ़ी देर तक कोई ऑटो नहीं रुका और फिर चेतन ने कहा "ऐसा करते हैं बस में ही चल लेते है पैसे भी कम जाएँगे"

उसकी मा ये सुनके बहुत खुश हो गयी और दोनो अगली ही बस में धक्के खाते हुए घुसे....

ये बात बताने की नहीं है कि दिल्ली की बसो में कितनी भीड़ होती है तो बैठना तो दोनो के नसीब में नहीं था.....

बस में हल्की रोशनी थी क्यूंकी सिर्फ़ दो ही लाइट जल रही थी जोकि एक सबसे आगे की तरफ थी और एक सबसे पीछे की तरफ.....

चेतन जोकि शन्नो के ठीक पीछे ही खड़ा था अपना मुँह शन्नो के कान के पास लाते हुए बोला

"मैने कहा था ना मेरा लंड अब सिर्फ़ इनाम में ही मिलेगा... अब खेल शुरू होता है"

ये कहते ही चेतन ने अपनी मा की सारी के अंदर हाथ घुसाते हुए शन्नो के गरम पेट को महसूस करने लगा....

हाथ को फेरते हुए हुए फिर वो शन्नो के हल्के बाहर निकले हुए पेट को लगातार नौचने लगा और शन्नो चुप चाप वही

खड़ी रही.... जब भी बस हिलती तो चेतन शन्नो की कमर को कस के जाकड़ लेता और शन्नो शर्मिंदा होकर अपनी सीधी तरफ की सीट को कस्के पकड़ लेती... उसकी उंगलिओ के निशान भी शन्नो की कमर पे छप चुके थे....

चेतन की उंगलिओ की हर अदा पे शन्नो का जिस्म मचले जा रहा था... चेतन की गहरी गरम साँसें शन्नो अपनी गरदन

पे महसूस कर रही थी और उसका उगता हुआ लंड कयि बारी उसकी गान्ड को छुए जा रहा था....

शन्नो की सीधे कान की तरफ चेतन कयि बारी धीरे धीरे पुच्छे जा रहा "मज़ा आ रहा है... मज़ा आ रहा है.

." जिसका जवाब शन्नो अपने बदन के कप कपाहट से दे रही थी.... मगर फिर चेतन के हाथ चलने बंद हो गये और

शन्नो ने अपनी नज़रो को पीछे करते हुए उसकी तरफ लाचार होकर देखा.... उसकी आँखों से सॉफ झलक

रहा था कि वो अपने बेटे से भीग माँग रही थी कि वो उसके बदन को छुए उसकी जिस्म की प्यास को संतुष्ट करें....

फिर चेतन ने शन्नो के हाथ को प्यार से पकड़ा... अपनी उंगलिओ को उसकी उंगलिओ पर चलता हुआ वो शन्नो के हाथ को

अपनी तरफ ले गया और शन्नो समझ गयी कि वो क्या चाहता है... शन्नो अपने बेटे को खुश करने के लिए अपना सीधा

उसके लंड की तरफ ले गयी और हल्के से उसपे रख दिया... आहिस्ते आहिस्ते उसकी जीन्स पर हाथ उपर नीचे उपर नीचे करती रही....

अब शन्नो के नितंब चेतन के लंड को पूरी तरह महसूस कर रहे थे क्यूंकी दोनो के बदन में कोई अंतर नहीं रह गया था... शन्नो को अगले ही जीन्स की ज़िप खुली मिली और बिना झिझक के उसने अपना हाथ अपने बेटे की जीन्स के अंदर डाल दिया...

शन्नो के लंबे नाख़ून चेतन के लंड पे जब भी चुभते वो बुर्री तरह पागल हुए जा रहा....

अब शन्नो की कमर चेतन के हाथो का जादू फिर से महसूस करने लगी.... शन्नो की गोरी चमड़ी को वो बेदर्दी से

मसले जा रहा और शन्नो अपने मन में सिसकियाँ लिए जा रही थी..... चेतन अपने शन्नो के मोटे मम्मो की तरफ ले

गया और ब्लाउस के उपर से दबाने लगा....
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »

शन्नो ने किसी तरह चेतन के कच्छे के अंदर हाथ घुसा लिया और

अब मस्ती में चेतन के तन्नाए हुए लंड को दबाने लगी.... चेतन का जुनून अब बेकाबू होने लगा था वो शन्नो के

ब्लाउस को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा ताकि वो एक दो हुक खोल सके... शन्नो ने बड़ी आसानी से अपने उल्टा हाथ से

ब्लाउस के नीचे के दो हुक्स को खोल दिया...ब्लाउस के हुक्स खोलते ही चेतन के हाथ शन्नो की ब्रा के अंदर घुस

गये और उन तरबूज़ो पे चींटी मारने लगे... शन्नो दर्द और मस्ती के मारे पागल हुई जा रही थी...

अब हाल ऐसा आ गया था कि बस के रुकने के वक़्त भी दोनो के हाथ चले जा रहे थे....

फिर शन्नो के कानो में आवाज़ आई " कहीं बाहर उतरते है... कितना लेगी तू??"

शन्नो एक दम से ठंडी पड़ गयी.... मगर उस बंदे के हाथ नहीं रुके... शन्नो ने घबराकर अपनी गर्दन

घुमाई तो देखा उसके पीछे एक 45-50 साल का आदमी खड़ा था और चेतन का कुच्छ पता नहीं था....

शन्नो के चेहरे का रंग उतर गया और उसने झट से अपना हाथ उस आदमी के लंड से हटाया और उस आदमी के गंदे हाथो को अपने जिस्म से हटा दिया.... घबराती हुई शन्नो भीड़ को चीरती हुई आगे बढ़ती रही और सबसे आगे जाके खड़ी हो गई...... उसने पीछे मूड के देखा तो उस आदमी और चेतन का कोई पता नहीं था...

उसका जब स्टॉप आया तो वो झिझकते हुए उतर गयी और पीछे वाले दरवाज़े से चेतन को उतरते देख उसकी बेचैनि दूर हो गयी.... चेतन उसकी तरफ गया और उसके कंधे पे हाथ डालकर सड़क पर चलने लगा...

शन्नो के दिमाग़ में केयी सारे सवाल घूम रहे थे जिसको पुछ्ने में उसको काफ़ी झिझक हो रही थी....

उसी ओर चेतन बिल्कुल बिंदास होकर सड़क पर चल रहा था.... चेतन ने एक ऑटो को रोका घर जाने के लिए और इस बारी जब शन्नो ऑटो के अंदर बैठने लगी तो उसने उस ऑटो वाले के सामने ही शन्नो की गान्डपर हल्के चॅटा मारा जिसको

ऑटो वाले ने आँखें फाड़ कर देखा...



ऑटो में चेतन का हाथ अभी भी शन्नो के कंधे पे था जैसे कि वो ये जताना चाहता था कि वो उसकी मा नहीं बल्कि

उसकी कोई प्रॉपर्टी है..... चेतन ने बिना ऑटो वाले का ध्यान करें बोला " बस में क्या चल रहा था??"

शन्नो ने चेतन की आँखों में देखा और फिर अपनी नज़रे नीचे करदी... फिर वो आहिस्ते से बोली "मुझे लगा था कि तुम हो'

चेतन बोला " झूठ मत बोलो.. देख रहा था कितने मज़े से आगे पीछे हो रहे थे तुम्हारे हाथ"

ये सुनके शन्नो ने चेतन को इशारे में चुप होने के लिए कहा.... चेतन ने शन्नो का उल्टा हाथ अपनी जीन्स के उपर रख दिया और उसे उपर नीचे करने को कहा उसके साथ ही चेतन ने शन्नो के पल्लू पे लगी पिन को खोल दिया जिसका शन्नो को एहसास नहीं हुआ.... शन्नो अपनी नज़रे झुकाए चेतन की जीन्स के नीचे जागते हुए लंड को सहलाए जा रही और चेतन राजा की तरह ऑटो पे बैठा रहा...

ऑटो वाले ने ऑटो को चेतन शन्नो के घर की गली के बाहर रोक दिया क्यूंकी अंदर ले जाने में दिक्कत आती....

दोनो मा बेटे उसमें उतरे और चेतन ने पूछा "कितना हुआ"

ऑटो वाले ने चेतन को देख के कहा कि "30 रुपय हो गये है..." ये कहकर उसने नज़र शन्नो की तरफ घुमाई जोकि ज़मीन

की तरफ नज़रे झुकाए हुई थी...

चेतन के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान आई और वो बोला "हमारे पास पैसे तो नहीं है मगर किसी और तरीके से पैसे भर दे तो.."

ऑटो वाले ने चेतन को देख कर बोला "क्या मतलब??"

चेतन ने शन्नो की तरफ नज़र घुमाई और बड़ी चालाकी से उसकी सारी का पल्लू उसके कंधे से गिरा दिया....

शन्नो ने पल्लू संभालने की कोशिश करी चेतन ने उसका हाथ पकड़ लिया.... चेतन बोला "अगर चाहो तो पैसे के बदले तुम

इन बड़े मोटे मम्मो को अभी देख सकते हो "

जितनी हैरानी ये सुनके शन्नो को हुई उतनी हैरानी उस ऑटो वाले को भी हुई.... उसे समझ नहीं आया कि वो क्या बोले

बस उसने सिर हिलाते हुए हां कह दिया.... चेतन ने शन्नो के हाथ को आज़ाद किया मगर अपना हाथ उसके नितंब पे

ले गया और प्यार से सहलाने लग गया.... वो चाहता था कि शन्नो अपने आप ही अपनी नुमाइश करें और वैसे ही हुआ... शन्नो ने जल्दी से अपने ब्लाउस के नीचे के हुक्स को खोला और अपनी सफेद ब्रा को उपर करके खुल्ले में उस ऑटो वाले को अपने स्तनो को दिखा दिया.... उन तरबूज़ो को देख कर उस ऑटो वाले का गला सूख गया.... ऑटो वाले की ज़ुबान बड़ी मुश्क़िलो से चली और उसने कहा 'क्या मैं एक बारी इन्हे च्छू सकता हूँ"

चेतन ने शन्नो को वापस अपनी ब्रा उठाने को कहा और ऑटो वाले का काँपता हुआ हाथ शन्नो के सीधे स्तन को

दबाने लगा.... आख़िर में उसकी चुचि को छुता हुआ ऑटो वाले ने अपना हाथ शन्नो के मम्मे से हटा दिया और

शुक्रिया कहता हुआ वहाँ से चला गया.... शन्नो ने झट से अपने ब्लाउस के बटन लगाए और पल्लू ठीक करा.....

ये सब करके शन्नो के अंदर एक आग जागने लगी थी... सुबह से जीतने भी लोगो ने उसकी खूबसूरती को देखा था या फिर उसके हसीन बदन को छुआ था उसका हर एक एहसास उसके बदन में ज्वाला बनके जाग रहा था जिस बात का एहसास चेतन को भी था...

घर पहुचने के बाद शन्नो ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और चेतन के सामने नंगी खड़ी होकर अपनी चूत

चुदवाने की इच्छा जताई मगर चेतन ने उसके मुँह पर उसको मना कर दिया और टीवी देखने लगा...

चेतन के मना करने पर शन्नो नहीं मानी और सोफे पे बैठके चेतन की गर्दन को चूमने लगी और अपना हाथ

चेतन की छाती पर चलाने लगी मगर चेतन ने उसे धक्का दे दिया और जाके अपने कमरे को लॉक करके बैठ गया....

भोपाल में शाम को डॉली के मोबाइल पर राज का कॉल आने लगा... डॉली अभी भी राज से गुस्सा होने

का नाटक कर रही थी और इसलिए हर बारी राज का फोन काटने लगी... मगर फिर राज ने मैसेज किया

"ठीक है बात नहीं करनी मुझे कोई और मिल गया ना... बाइ" ये पढ़के डॉली जल्दी से घर के बाहर गयी

और राज को फोन लगाया... राज ने काफ़ी रूठने का नाटक किया मगर फिर डॉली ने उसे मना ही लिया...

राज ने बोला "मैं कुच्छ नहीं जानता कल रात हम दोनो को एक पार्टी में जाना है"

डॉली ने पूछा "कौनसी पार्टी"

राज ने बोला "हैं एक हाउस पार्टी मेरे दोस्त के बर्तडे की तो हमे वहाँ जाना है.."

डॉली बोली "पागल हो गये हो पापा के रहते हुए मैं कैसे निकल सकती हूँ घर के बाहर??"

राज गुस्से में बोला "वो मैं नहीं जानता.. सब लड़के अपनी गर्ल फ्रेंड्स के साथ आ रहे है और मैं अकेला जाउन्गा

नहीं तो तुझे तो आना ही पड़ेगा"

इससे पहले डॉली राज को समझाती राज ने फोन काट दिया और फिर राज ने मैसेज करके उसको कहा

"मैं 9 बजे तक लेने आउन्गा तैयार रहना और नहीं आई तो मैं बात नहीं करूँगा

डॉली के सिर पे अब ये नयी परेशानी आ गयी थी... वो राज का दिल नहीं दुखानी चाहती और पापा से

क्या बहाना मारेगी ये उसको सूझ नहीं रहा था... रात को खाना खाने के बाद डॉली ने नारायण से

झिझकते हुए कहा "पापा मेरी एक सहेली है नाज़िया यही पे रहती है तो उसका निक़ाह होने जा रहा है कुच्छ

दिन में तो उसने अपनी सारी सहेलिओ को कल अपने घर पे बुलाया है एक पार्टी के लिए... और उसने मुझे

स्पेशली बोला है कि मैं आउ और सुबह ही घर वापस जाउ" नारायण ने बिना सोचे समझे झट से डॉली

को हां कह दिया.. शायद डॉली के उपर नारायण का भरोसा बोल रहा था और वो चाहता भी था कि उसके

बच्चे बाहर निकले और भोपाल में और अच्छे दोस्त बने... डॉली इतना खुश हो गयी और उसने

नारायण को गले लगा लिया मगर वो राज को और तरसना चाहती थी इसलिए उसे हां नहीं कहा...

क्रमशः…………………..

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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »

जिस्म की प्यास--29

गतान्क से आगे……………………………………

अगले दिन चेतन ने अपनी मम्मी को खुद कह दिया कि अब भोपाल का टिकेट कार्वालो जिससे सुनके शन्नो के दिल में बहुत दर्द हुआ... अब उसका उसकी परिवारिक ज़िंदगी में लौटना असंभव था और वो यहीं चेतन के साथ अपनी ज़िंदगी

गुज़ारना चाहती थी... इतने दिनो में नारायण ने शन्नो से बात तक भी नहीं करी थी जिससे शन्नो को सॉफ

एहसास होने लगा था कि नारायण को उसकी कोई ज़रूरत नहीं है और वो अपनी ज़िंदगी में बहुत ही ज़्यादा खुश है....

शन्नो अब उसके पास वापस नही जाना चाहती थी बल्कि अपने बेटे की बाँहों में रहना चाहती थी....

सुबह से दोपहर शन्नो इसी बात को लेकर चिंतित रही... उसे समझ नही आया था कि चेतन ने उसे ये क्यूँ कहा??

क्या वो मुझसे बोर हो चुका है

पूरी दोपहर शन्नो अपने ही ख़यालो में खो चुकी थी... वो अपने टाय्लेट में गयी और उसने

दरवाज़ा बंद कर दिया... अपनी नाइटी के अंदर हाथ घुसाकर उसने अपनी चूत में एक उंगली डाली और

वो पानी बिन मछली की तरह तड़प उठी.... आहिस्ते आहिस्ते अंदर बाहर अंदर बाहर शन्नो की उंगली उसकी

चूत में होती रही... उसकी नज़र वॉशिंग मशीन पे पड़ी तो उसने झट से उसे खोला और वहाँ पड़े चेतन के कच्छे को देख कर उसकी आँखें बड़ी हो गयी... उस अंडरवेर को उसने उठाके देखा तो उसपे अभी

उसके बेटे के वीर्य के धब्बे मौजूद थे..... शन्नो वॉशिंग मशीन से टिक के ज़मीन पे बैठ गयी...

अपनी टाँगें चौड़ी करके उसने अपनी कच्छि को उतारा और अपनी चूत से खेलने लगी....

चेतन के हरे अंडरवेर को अपनी नाक से सूंघ सूंघ कर वो और भी ज़्यादा तड़प गयी थी....

उसकी चूत का पानी फर्श पे बहने लगा था मगर उसकी उंगली रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी...

जब चेतन के वीर्य की सुगंध उसकी नाक में भर गयी तो अपनी ज़बान से वो उन धब्बो को चाटने लगी...

उसका जिस्म पूरी तरह मचल उठा था... देखते देखते उसकी चूत ने वहीं पानी छोड़ दिया और उसकी

उंगली पे लगा पानी उसने अपने होंठो पे लगाके के चाट लिया.... अपने आपको खुश करने के बाद भी वो

अभी खुश नहीं थी... हार मानकर वो टाय्लेट से निकली और बिस्तर पे बैठके अपनी हालत पे आँसू टपकाने लगी...

कुच्छ देर तक सोने के बाद शन्नो जब अपने बिस्तर से उठी तो वो पूरे घर में चेतन को आवाज़

देकर ढूँढती रही मगर वहाँ कोई नहीं मिला.... शन्नो को लगा अगर वो थोड़ी देर घर के सन्नाटे से बाहर

रहेगी तो शायद उसका मन हल्का हो जाएगा.... वो सफेद सलवार कुर्ता पहेन के घर से निकल गयी और

चाबी फुट्मॅट के नीचे छुपाके रख दी जहाँ अकसर वो चाबी रखा करते थे... घर से थोड़ी ही दूर

एक पार्क था शन्नो उधर जाके बैठ गयी और जो भी ग़लत काम उसने करा है वो उसे याद करने लगी...

उस काले सच की शुरुआत होने पर ही अगर वो सम्भल जाती तो शायद ऐसा नहीं होता उसके साथ....

जब हल्का अंधेरा छाने लगा आसमान पे तब शन्नो वापस घर जाने लगी.....

जब वो घर पहुच गई तो फुट्मॅट के नीचे अभी भी चाबी थी और एक लंबी साँस लेकर उसने दरवाज़ा

खोला और उसे बंद करके अपने कमरे की तरफ बढ़ी.... कमरे के अंदर जाते हुए एक आवाज़ आने पर

उसके कदम रुक गये... वो दबे पाओ चेतन के कमरे की तरफ बढ़ी और दीवार से सतकर कर खड़ी हो गयी....

दरवाज़ा खुला हुआ था और चेतन के साथ उसे एक लड़की की आवाज़ आ रही थी और वो आवाज़ उसी की

बेहन आकांक्षा की थी.... शन्नो के आँखो में आँसू झलक उठे जब उसे एहसास हुआ कि उसने चेतन के लिए

इतना सब किया और उसे ऐसा सिला मिल रहा है....

शन्नो गुस्सी में कमरे में गयी जिसे देखकर आकांक्षा और चेतन एक दम से चौक गये...

शन्नो ने आकांक्षा के बाल पकड़े और उसके गाल पर चाँते बरसाने लगी... आकांक्षा भी पिछे नहीं हटी

और उसने अपनी बड़ी बेहन का कुर्ता फाड़ दिया और उसके बदन पे घूसे मारने लगी....

चेतन को समझ नहीं आया वो क्या करे मगर उसने दोनो को एक दूसरे से अलग करने की कोशिश करी....

आकांक्षा ने चेतन को धक्का दिया और उसका सिर दीवार पे जाके लगा और ज़मीन पे गिर गया....

चेतन को ज़मीन पे गिरा देख आकांक्षा ने शन्नो को धक्का दे के अपने आप से दूर करा और चेतन को

देखने लग गयी और तभी उसके सिर के पीछे एक भयंकर दर्द महसूस हुआ... उसने अपने हाथ से उसे

महसूस किया तो सिर से खून टपकने लगा था... आकांक्षा ने पीछे मूड कर देखा तो शन्नो के हाथ में

एक विकेट थी.... शन्नो के सामने उसके बेटे और उसकी बहन की मौत हो गयी थी... वो वही खड़ी रही चुप चाप..

कुच्छ समय के लिए समय रुक सा गया था... फिर धीरे धीरे चलती हुई शन्नो किचन की तरफ गयी..

. एक ड्रॉयर खोलके उसने एक छुरि निकाली और 7-8 बारी अपने जिस्म पे वार कर दिया.... उसके बदन में से खून ज़मीन पे बहने लगा और उसकी आँखें वही बंद हो गयी...

तीनो की लाश उसी कमरे में पड़ी रही और इस बात का पूरे मौहल्ले में किसी को भी अंदाज़ा नहीं था...

(आकांक्षा देहरादून नहीं गयी थी.. वो अभी भी दिल्ली में थी बस चेतन से दूर रहने के लिए उसने चेतन से मिलने से इनकार कर दिया था.... आज सुबह ही चेतन उसके दिल्ली वाले फ्लॅट में गया और उसको अपने से चुदवाने के लिए मजबूर कर दिया... तभी आकांक्षा चेतन के साथ उसके घर आई और ये अनहोनी घटी)

उधर भोपाल में डॉली का समय रात का इंतजार करने में ही निकल गया और जैसी ही शाम आई वो

नहा के तैयार हो गई उसने सलवार कुरती पहेन लिया और अपने बाल अच्छे से बना लिए...

उसने एक बॅग लिया और उसमें एक ड्रेस रख लिया ताकि वो पार्टी में जाने के लिए वो पहेनले और घरवालो

को पता ना चले.. जब डॉली बाहर जाने लगी तो नारायण ने उसे बॅग के बारे में पूछा तो डॉली ने कह दिया

"ये रात को सोने के लिए कपड़े है"

जब डॉली बाहर निकली तो राज गाड़ी लेके आया हुआ था... डॉली जाके उसके साथ बैठ गयी..

राज ने देख कर ही उसको कहा "क्या यह पहनके पार्टी में आओगी?? डॉली बोली "अर्रे नहीं नहीं बॅग

में लाई हूँ ना कपड़े.. ये तो घरवालो के सामने दिखावा करने के लिए" फिर राज ने पूछा

"अच्छा तो फिर क्या पहनोगी..??" डॉली ने बोला "जीन्स और टॉप लाई हूँ" राज ने वही गाड़ी रोकी और बोला

"यार कोई ड्रेस ले आती ज़्यादा तर ड्रेस में ही होते है यार.." आज नज़ाने राज इतने नखरे क्यूँ कर रहा था..

शायद पहली बारी उसके दोस्त उसकी गर्ल फ्रेंड को देखेंगे तो उनको ये ना लगे कि बहनजी है डॉली के दिमाग़ में

ये चल रहा था.... फिर राज बोला चलो मैं तुम्हे अपनी दोस्त के घर ले जा रहा हूँ तो वहीं चेंज कर लेना...

कुच्छ दूर जाके राज ने गाड़ी रोकी और वो अपनी दोस्त कश्मीरा के घर लेके गया डॉली को...

हाई हेलो करने के बाद जब डॉली कश्मीरा के टाय्लेट में कपड़े बदलने जा ही रही थी तभी राज ने कश्मीरा

से कहा "यार ऐसा हो सकता कि तू अपना कोई ड्रेस देदे डॉली को पहनने के लिए... मैं तुझे कल वापस कर्दुन्गा" कश्मीरा ने तुरंत हां कह दिया और डॉली को एक ड्रेस दिया जोकि उपर सफेद था नीचे से काला...

राज का दिल रखने के लिए डॉली उस ड्रेस को पहेन ने के लिए राज़ी हो गई.. कश्मीरा कुच्छ ज़्यादा पतली सी

थी तो जब डॉली ने वो ड्रेस पहना तो उसको वो काफ़ी टाइट आ रहा था... पीछे हाथ बढ़ा कर वो अपने

ड्रेस की चैन भी बंद नहीं कर पा रही थी... वो ड्रेस उसकी जाँघो को आधा ही धक पा रही थी...

काफ़ी देर चैन बंद करने की कोशिश करने के बाद उसने राज को अंदर बुलाया चैन चढ़ाने के लिए तो

राज को डॉली की ब्लॅक ब्रा के हुक दिखे... मज़ाक मज़ाक में उसने उन्हे खोल दिया...

डॉली को जैसे ही इस बात का एहसास हुआ तो वो गुस्सा करने लगी.... डॉली का मूड ना खराब हो इसलिए राज

ने वापस हुक लगा दिए और ड्रेस की चैन भी खीच दी.. डॉली अपने कपड़े बॅग में रखके वापस गाड़ी में ले गयी और फिर दोनो फार्म हाउस जाने लगे जोकि भोपाल के किनारो में था...

घर में ललिता अकेले बिस्तर पे बैठी बहुत ज़्यादा बोर हो रही थी... उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे...

उसे एक बात से चिढ़ मच रही थी कि उसकी बहन डॉली को इतनी आसानी से रात में बाहर जाने के लिए हां

कह दी गयी जबकि वो झूठ बोलके अपने बॉय फ्रेंड के साथ गयी है.... ललिता को पूरा यकीन था कि आज उसकी बेहन

चुदाई का मज़ा लेगी वो अभी अपने बॉय फ्रेंड के साथ.... उसके दिमाग़ में डॉली एक दम नंगी हुई बिस्तर पे राज के

लंड से खेलती हुई दिख रही थी.... उसे अपनी बहन से जलन मचने लगी थी.... ललिता इन सब बातोको अपने दिमाग़ से

निकालने के लिए सोने लग गयी तो उसे लगा कि एक आखरी बारी टाय्लेट हो आती हूँ कि कहीं रात में ना उठना पड़े....

ललिता बिना कुच्छ आवाज़ करें डॉली के कमरे की ओर बढ़ी क्यूंकी उसके विजय मामा वहाँ सो रहे थे और

वो उन्हे जगाना नहीं चाहती थी... जब उसने कमरे का दरवाज़ा खोला तो एक कम रोशनी वाला बल्ब जला हुआ था और

उसके मामा कमरे में नहीं थे.... ललिता को लगा कि वो टाय्लेट में होंगे तो वो वही खड़ी इंतजार करने लगी...

फिर उसने वहाँ लॅपटॉप पड़ा हुआ देखा जिसका मुँह दीवार की तरफ था... उसके दिल में देखने की चाह जागी कि

विजय मामा इतनी देर रात लॅपटॉप पे कर क्या रहे होंगे तो वो तुर्रत भागती हुई बिस्तर पे लॅपटॉप की तरफ गयी और

उसने वहाँ देखा की उधर एक फोल्डर खुला हुआ है जिसमे ढेर सारी पॉर्न डाली हुई है....

उनमें से एक पॉज़ हुई भी रखी थी... ललिता जल्दी से कमरे में से निकली ताकि उसके मामा को उसपे शक़ ना हो...

अपने कमरे में पहूचकर उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गयी और उसके दिमाग़ में गंदा ख़याल

आया विजय मामा के अंदर जिस्म की प्यास पैदा करने का..

कुच्छ देर बाद वो एक दम अंजान बनकर फिर से कमरे में गयी और विजय अभी लॅपटॉप ऑन किए हुए बिस्तर पे बैठा था... दरवाज़ा खुलने पर वो ज़रा सा भी घबराया नहीं और ललिता को देख कर हल्का सा मुस्कुराया....

ललिता चुप चाप टाय्लेट के अंदर गयी और कुच्छ देर वक़्त गुज़ारने के बाद उसने अपनी पैंटी को उतारकर हॅंडल

पे टाँग दिया ताकि जब विजय मामा टाय्लेट जाएँगे तो उसे देख कर मचल उठेंगे...

अपना काम करकर ललिता अंजान बनकर वहाँ से चली गयी और अपने दिमाग़ में गंदे गंदे ख़याल सोच कर

अपने आपको संतुष्ट करने लगी मगर ऐसा कुच्छ भी नहीं हुआ और कुच्छ देर के बाद वो सो भी गयी...

उधर गाड़ी में डॉली अपने ड्रेस को बारे में सोच रही थी जोकि उसने पहेन रखा था...

उस ड्रेस की अच्छी बात ये थी कि उसके स्ट्रॅप्स थोड़े बड़े थे जिनमे ब्रा का स्ट्रॅप आराम से छुप रहा था और

ड्रेस भारी भी तो ब्रा और पैंटी की लाइन्स नहीं बन रही थी...घर के बाहर काफ़ी लाइट्स लगी हुई थी और जैसी ही घर

के पास पहुच रहे थे तो गानो की भी आवाज़ आ राई थी.. राज ने डॉली को बाल खोलने को कहा और डॉली

ने उसकी बात मान ली... जब दोनो अंदर घुसे तो म्यूज़िक और तेज़ हो गया और राज डॉली को लेके अपने दोस्तो के पास लेगया... राज ने डॉली को सबसे मिलवाया...

एक लड़के का नाम निकेश था, दूसरे का रवि और जिसका बर्थ'डे था वो सरदार था उसका नाम सुखजिंदर था सब

उसे सुखी बुलाते थे... फिर बारी बारी डॉली बाकी लोगो से भी मिली और फिर राज और डॉली डॅन्स करने लगे...

कयि लड़किया बीच बीच में राज के पास आई मगर डॉली ने उन सबको भगा दिया और राज के बिल्कुल पास

खड़ी होकर नाचने लगी.... कुच्छ घंटे बाद डॉली और राज दोनो थक कर बैठ गये...

दोनो को बैठा देख सुखी उनके पास गया राज को उसने बियर पकड़ाई और डॉली को कोक देदि...

डॉली को देख कर सुखी ने बोला "मैं कोक लाया हूँ मेरे ख़याल मे आप ड्रिंक नहीं करती होंगी"

डॉली को ये जानके खुशी हुई और उसने कोक पीनी शुरू की... जब डॉली का ग्लास ख़तम हो गया तो सुखी ने डॉली

को उसके साथ नाचने के लिए कहा उसका बर्थ'डे था तो डॉली ने भी इनकार नही किया और दोनो नाचने लग गये...

राज अकेला बैठा हुआ था और डॉली को अपने दोस्त के साथ नाचता हुए देख रहा था... डॉली को पता था कि

उसके बॉय फ्रेंड की नज़रे उसपर ही थी और उसे थोड़ा जलाने के लिए डॉली ने सुखी के कंधो पे हाथ रख दिए और सुखी ने भी डॉली की कमर पे हाथ रख दिया... दोनो बड़ा झूम के नाचने लग गये...

राज के पास रवि और निकेश आए और डॉली की तारीफ करने लगे... राज चुपचाप बियर पीते हुए दोनो की

बात सुनता रहा... फिर निकेश बोला "मुझे इसको चोद्ने का मन" राज निकेश को देखने लग गया...

रवि भी बोला " वैसे मन तो मेरा भी कर रहा है... ये हमारे प्रिन्सिपल की बेटी है ना...

क्या माल लग रही है इस ड्रेस में कसम से लोग हज़ारो रुपय दे देंगे इसके साथ एक रात गुज़ारने के लिए...

तूने तो काई बारी काम कर दिया होगा ज़रा हमे भी तो दर्शन करा दे??" राज ने कुच्छ नही बोला और अपनी बियर

पीने में लग गया... निकेश बोला "साले बता ना बहुत गंदा मन कर रहा है.. देख कैसे सुखी के साथ नाच

रही है और सुखी भी उसकी कमर पे अपना हाथ चला रहा है.." राज दोनो ने को मना कर दिया...

और वहाँ से चला गया... काफ़ी देर नाचने के बाद डॉली डॅन्स फ्लोर से दूर जाके बैठ गयी और निकेश और

रवि उसके पास जाके बैठ गये.. राज जब वॉशरूम गया तो सुखी ने उसको बोला

"साले तूने निकेश और रवि की बात सुनी?? नाटक क्यूँ कर रहा है.. मेरा बर्तडे है यार...

तेरेको भी तो मैने कितनी लड़कियों को चोद्ने का मौका दिया है और उनमें से एक तो मेरी कज़िन थी"

राज रुक के बोला "अबे बॉय फ्रेंड हूँ उसका नाटक तो करूँगा ही दिखावा करने के लिए." ये बोलके दोनो हँसने लग गये..

फिर राज बोला "इंतज़ाम है भी कुच्छ या बलात्कार करने वाले हो मेरी गर्ल फ्रेंड का??"

सुखी बोला "अर्रे टेन्षन ना ले.. अभी उसकी कोक में तो टॅब्लेट्स डालके पिलाई थी ताकि उसको कुच्छ याद ना रहे और अब

बस तू उसको वोड्का पिला ताकि हमारी भाभी झूम पड़े"

क्रमशः…………………..

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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