माँ का चैकअप

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rajsharma
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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

mini wrote:great great.what a idea sir g


dhnyawaad mini ji
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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Re: माँ का चैकअप

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माँ का चैकअप--14

"रेशू" ममता का चेहरा खिल उठता है जब वह अपने पुत्र की एक-तक निगाहों को अपने चूतड़ो की खुली हुवी दरार के भीतर झाँकता हुआ पाती है, उसने हौले-हौले काई बार ऋषभ का नाम पुकारा मगर उसे उसकी जड़वत अवस्था से बाहर निकालने में पूर्णरूप से नाकाम रहती है. सहसा उस नयी नवेली निर्लज्ज मा के मन में संदेह का अंकुर फूट पड़ा और वह जानने को उत्सुक हो उठती है कि उसके पुत्र की वासनामयी आँखों का ठहराव उसकी गान्ड के गहरे कथ्थयि रंगत के छेद पर है या उसकी कामरस उगलती अत्यंत सूजी चूत पर. अपने पापी संदेह का उत्तर पाने हेतु शीघ्र ही ममता ने अपने पहले से फैले हुवे घुटने और अधिक फैला लिए और अपने बाएँ हाथ को मेज़ से हटा कर फॉरन अपनी उंगलियों के नुकीले नाखुनो से अपनी चूत के चिपके चीरे को खुजाने लगती है. वह खुद अपनी इस अश्लील हरक़त से हैरान थी, यक़ीनन भूल चुकी थी कि उसके उजागर वर्जित अंगो को घूर्ने वाला युवक उसका अपना सगा जवान बेटा है.

"अहह मा! हाथ .. हाथ हटाओ अपना" अपनी मा की चूड़ियों की खनक से ऋषभ की तंद्रा टूट गयी और वह क्रोधित स्वर में चीख उठता है. आवेश की प्रचूरता से सराबोर उसके थरथराते स्वर उसकी प्रबल उद्विग्न्ता को प्रदर्शित करते हैं जिसके नतीजन घबराकर तत्काल ममता अपने हाथ को अपनी चूत से हटाते हुए पुनः उसे मेज़ पर स्थापित कर लेने पर विवश हो जाती है.

"माफ़ करना मा जो मैने तुम्हे डांटा मगर मैं मजबूर हूँ! तुम्हारे सुंदर चेहरे समान ही तुम्हारे गुप्ताँग इतने अधिक लुभावने हैं, जिन्हे देखने के उपरांत मैं कतयि नही चाहता कि कोई भी बाधा मेरी आँखों को मेरी मा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले वर्जित अंगो को देखने से रोकने का प्रयत्न करे. अब यदि मुझे मौत भी आ जाए तो भी मुझे कोई गम नही होगा" इस बार ऋषभ के स्वर में नर्मी थी, उसके अल्फ़ाज़ का उदगम भले ही उसके मूँह से हुआ था मगर बाहर निकलने से पूर्व उसका कतरा-कतरा उसके हृदय को छु कर गुज़रा था, जिसे सुनकर उसकी रमणीय नंगी मा अचानक से विह्वल हो उठती है और अमर्यादित प्रेम के बहाव में बहते हुवे अपने मांसल चूतड़ो को पहले से कहीं ज़्यादा हवा में तानने को प्रयासरत हो जाती है ताकि उसका पुत्र उसके गुप्तांगो को खुल कर निहार सके. स्वयं ममता की चढ़ि साँसों और उसके दिल की बेकाबू धड़कनो का कोई परवार नही था और निरंतर वह अपनी अशील हरक़तो के तेहेत बुरी तरह से काँपति जा रही थी. उसकी दयनीय स्थिति इस बात का सूचक थी कि उसके संस्कार! संकोची स्वाभाव! दान-धरम! नैतिक भावनाओं पर अब अनाचार के रोमांच का एक-छत्र साम्राज्य हो चुका था और जिसे सिवाय न्यायोचित ठहराने के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष ना था.

"अपनी मा के समक्ष ही अपने मरने की बात से तू क्या साबित करना चाहता है रेशू ? क्या दुनिया की कोई भी मा इस बात को से सकेगी ? नही कभी नही" जहाँ अपने पुत्र की क्रोधित वाणी में प्रेम-रूपी बदलाव आया महसूस कर ममता को बहुत सुकून प्राप्त हुआ था वहीं उसके कथन के अंतिम शब्द उसके दिल को बुरी तरह भेद गये थे, उसने पुनः अपना चेहरा पिछे मोड़ कर ऋषभ की आँखों में देखते हुवे पुछा और खुद ही अपने प्रश्न का जवाब भी देती है. उसके पुत्र की चेतना वापस लौट आई थी और ज्यों ही मतमा ने अपने कथन की समाप्ति की, तत्काल ऋषभ मुस्कुराने लगता है.

"मेरा उद्देश्य तुम्हे ठेस पहुँचना नही था! क्या मुझे माफ़ नही करोगी ?" ऋषभ ने अपने कानो को पकड़ते हुवे कहा, कॅबिन में पसरे उस अनैतिक वातावरण को सहज बनाए हेतु यह उसकी नयी पहेल थी.

"अपना प्रेम हमेशा मुझ पर बरकरार रखना मा! पहले भी बता चुका हूँ, तुम्हारे प्रेम के लिए मैं बेहद तरसा हूँ" अपने मार्मिक संवाद के ज़रिए ऋषभ पुनः ममता पर एहसासो का दबाव बनाते हुवे बोला.

"कोशिश ज़रूर करूँगी रेशू! तू चाहता था ना कि तेरी मा बे-वजह शरमाना छोड़ दे, देख मैं घोड़ी बन गयी. बोल क्या मैं अब भी शर्मा रही हूँ ?" ममता ने हौले फुसफुसाते हुवे पुछा, अपने झुटे कथन से भले ही वह अपनी व्यथा को छुपाति है मगर कहाँ संभव था कि एक मा प्रथम बार अपने पुत्र के समक्ष नंगी विचरण कर रही हो और उसकी शर्माहट का अंत हो जाए. ऋषभ जवान था, अत्यधिक बलिष्ठ शरीर का स्वामी और उसके लंड की विशालता से भी वह पूरी तरह से परिचित हो चुकी थी, जो स्वयं उसकी ही नग्नता के कारण जाग्रत हुवा था.

"हां मा! तुम घोड़ी तो बन चुकी, अब तुम्हे अपने हाथो से अपने चूतड़ो की दरार को भी खोलना होगा और तभी मैं तुम्हारी गान्ड के छेद का बारीकी से निरीक्षण कर सकूँगा" कह कर ऋषभ ने सरसरी निगाहों से कामरस उगलती अपनी असल जन्मभूमि को देखा और मन ही मन उसे प्रणाम कर अपनी आँखों का जुड़ाव ममता के गुदा-द्वार से जोड़ देता है. वह अच्छे से जानता था कि उसकी मा की चूत उसके कठोर सैयम को फॉरन डगमगा देने में सक्षम है, चुस्त फ्रेंची के भीतर क़ैद उसके विशाल लंड की फड़फाहट इस बात की गवाह थी कि चन्द लम्हों के दीदार में ही उसकी मा की चूत ने उसकी वर्तमान उद्विग्न्ता को अखंड कामोत्तजना में परिवर्तित कर दिया था.

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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

"रेशू! किसी सभ्य स्त्री के लिए सबसे कठिन कार्य होता है, खुद के द्वारा अपने यौन अंगो को प्रदर्शित करना. मैं तेरी मा हूँ, इक अंतिम बार तुझसे माफी माँगना चाहूँगी! हो सके तो अपनी इस पापिन मा को माफ़ कर देना" इतना कहने के उपरांत ममता ने मेज़ पर अपना संतुलन बनाते हुए अपने दोनो हाथ परस्पर अपने चूतड़ो की ओर अग्रसित कर दिए. उसकी पलकें मूंद गयी थी! जबड़े भींचते जा रहे थे! हाथो का कंपन निरंतर अत्यधिक गति पकड़ रहा था! चूत की सकुचाहत अपने चरम को पाने हेतु कुलबुला उठी थी. जहाँ उसने अपने पुत्र से अपने शमनाक कार्य को पूरा करने से पूर्व माफी माँगी थी वहीं अपने पति पर उसे बेहद क्रोध आ रहा था, यदि राजेश ने उसकी जिस्मानी ज़रूरतों का ख़याल रखा होता तो कभी वह इतनी असहाय ना होती और ना ही निर्लज्जतापूर्ण ढंग से स्वयं अपनी मर्यादों को भंग करती. आती-शीघ्र उसके हाथो के खुले पंजे उसके चूतड़ो के पाटो पर कसने लगते हैं, गद्देदार माँस में उसकी उंगलियाँ धँस जाती हैं और अत्यंत बेबसी की घुटि चीख के पश्चात ही वह अपने चूतड़ो के पाटो को बलपूर्वक विपरीत दिशा में खींचते हुवे अपने वर्जित अंग पूरी तरह से अपने सगे जवान पुत्र की आँखों के समक्ष उजागर कर देती है.

"इतना! इतना काफ़ी है ना बेटे ?" उसके कपकापाते लफ्ज़ फूट पड़े, संपूर्णा बदन सिहरन और अधभूत रोमांच से गन्गना उठता है.

"माफी की आवश्यकता नही मा! यह तो तुम्हारी हिम्मत का प्रमाण है जिसकी प्रशन्षा शब्दो में बयान करना ना-मुमकिन है. तुम्हारा अपने पुत्र के प्रति विश्वास और स्नेह का प्रतीक और जिसके लिए मैं तुम्हे कोटिक नमन करता हूँ" अपनी मा को आंतरिक बल प्रदान करने पश्चात ऋषभ अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो जाता है और बिना किसी विलंब के उसके चूतड़ो की खुली हुवी दरार के भीतरी क्षेत्र का मुआयना करने लगा. लंबी घुँगराली झांतो पर पसीने की छोटी-छोटी बूँदें ऐसा सुंदर द्रश्य दर्शा रही थी मानो घास पर जमी ओस की बूँदें और दरार के बीचों-बीच अत्यधिक स्पंदन करता हुवा उसकी मा का गहेरे कथ्थयि रंगत का गोल गुदा-द्वार, जिसकी दानेदार सतह और सतह पर सलवटों की अधिकता स्पष्ट रूप से ज़ाहिर करती है कि ममता ने अपने मल-द्वार से अब तक सिवाय मल त्याग करने के कोई अन्य कार्य नही किया होगा.

"क्या तुम्हे पता है मा कि इंसानो की रीड की हड्डी का अंतिम बीड़ू कहाँ होता है ?" पुछ कर ऋषभ ने अपना दायां हाथ अपनी मा के चूतड़ो की दरार के उभरे शुरूवाती हिस्से पर रख दिया और अपने अंगूठे को उसकी रीड की हड्डी के अंतिम छोर पर दबाने लगता है.

"हां! हां रेशू .. यहाँ हड्डी है" ममता के स्वर में थरथराहट व्याप्त थी. तत-पश्चात ऋषभ अपने अंगूठे को रगड़ के साथ नीचे की ओर फिसलाने लगा, नतीजन झाटों पर जमी पसीने की बूँदें बिखर कर उसकी मा के तीव्रता से खुलते व बंद होते गुदा-द्वार के भीतर प्रवेश करना आरंभ कर देती हैं. शीघ्र ही उसका अंगूठा दानेदार मल-छिद्र के घेराव पर टिक जाता है, जिसके व्यास ने ममता के आती-संवेदनशील गान्ड के छेद को पूर्णरूप से ढक लिया था.

"उफफफफ्फ़" अपने पुत्र के अंगूठे का गुदगुदाता स्पर्श अपने नाज़ुक छिद्र पर महसूस कर ममता ना चाहते हुवे भी सिसक उठती है, जहाँ उसका शरीर उस मादक स्पर्श की तपिश मात्र से प्रज्वलित हो उठा था वहीं आगे क्या होगा, सोच-सोच कर उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी.

"मा! पापा को गुदा-मैथुन पसंद नही था ना ?" ऋषभ ने छिद्र के मुहाने पर अपने अंगूठे के नाख़ून को घिसते हुवे पुच्छा, ममता की पतिव्रता छवी के मद्देनज़र उसे यकीन था कि उसकी मा ने सदैव ही अपने पति की इच्छाओ का अनुकरण किया है और यदि उसके पिता को गुदा-मैथुन में रूचि होती तो उसकी मा की गान्ड का छिद्र इतना दानेदार व कसा हुवा नही होता.

"मैं! मैं नही बताती, तेरे इस उत्पाटांग सवाल का उत्तर देना मेरे बस में नही रेशू" एक बार पुनः पति-पत्नी की निजिता में दखलंदाज़ी करते अपने पुत्र के प्रश्न से ममता हड़बड़ा जाती है मगर सच तो यही था कि राजेश को गुदा-मैथुन से सख़्त नफ़रत थी और उसकी राह पर चलायमान उसकी पत्नी ने भी इस विषय पर कभी गौर नही किया था. अक्सर अपने पुत्र की उमर के लड़को की नज़रें वह अपने मांसल चूतड़ो पर जमी पाती थी और शरम्वश उससे विचारते भी नही बनता था कि ऐसा क्यों होता है. आज पहली बार ममता को एहसास हुआ कि वक़्त कितना बदल चुका है, समझ में आ गया था कि क्यों ऋषभ उसकी चूत से कहीं अधिक उसके चूतड़ो पर आकर्षित है. पाश्चात्य संस्कृति के बोलबाले ने गुदा-मैथुन को बहुत बढ़ावा ही नही दिया था बल्कि रोज़मर्रा की यौन क्रीड़ाओ में खुद को शामिल भी कर लिया था.

"पापा इतने पुराने ख्यालातो से संबंध रखते होंगे, जान कर हैरानी हुई मा! वरना अब तक जितनी भी स्त्रियों की गान्ड के छेद मैने देखे, शत-प्रतिशत ढीले थे" ऋषभ ने अश्लीलतापूर्वक बताया. अपनी मा के कुंवारे गुदा-द्वार को अपने अंगूठे के नाख़ून से खुजाना उसे बेहद रास आ रहा था.

"ओह्ह्ह! ढीले .. ढीले से तेरा क्या मतलब है रेशू ?" ममता ने सिसकते हुवे पुछा. अधेड़ उमर के बावजूद रति-क्रियाओं में उसकी जानकारी काफ़ी कम थी, बस उतने में ही परिपक्व थी जितना अपने पति से सीख पाई थी.

"ढीले! मतलब कि वे सभी अपने पतियों से अपनी गान्ड भी चुदवाती होंगी और इसमें बुरा क्या है मा ? चुदाई की संतुष्टि के लिए मर्द हमेशा कसे हुवे छेद की आशा रखते हैं, जिसका आनंद उन्हें चूत से कहीं अधिक औरतो के गुदा-द्वार को चोदने से मिलता है और नयेपन की उनकी चाहत भी पूरी हो जाती है" ऋषभ ने बेहद सहजता से जवाब दिया मानो मेज़ पर घोड़ी बनी बैठी, उसके कथन को सुनती वो नंगी औरत उसकी सग़ी मा ना हो कर कोई आम औरत हो.

"हॅट! क्या अपनी मा से इतनी गंदी बातें करने में तुझे तनिक भी लज्जा नही आती रेशू ?" अपने पुत्र की अश्लील भाषा प्रयोग से ममता के होश उड़ गये थे, उसने उसे डाँटने के लहजे में पुछा.

"चिकित्सको की छवि कितनी सॉफ-सुथरी होती है, उनके बात करने का ढंग मन मोह लेता है और एक तुझे देखो. सच में तू बहुत बिगड़ गया है रेशू, मुझे लगता है तेरी भी रूचि .. छि! वो जगह कितनी गंदी होती है" उसने अपनी मुंदी हुवी पलकों को खोलते हुवे कहा मगर अपने पुत्र की ओर गर्दन घुमाने का साहस नही जुटा पाती, घुमाती भी कैसे ? ऋषभ स्वयं अविलंब अपने अंगूठे के नाख़ून से उस गंदी जगह, उसकी गान्ड के अति-संवेदनशील छेद को कुरेद रहा था जिसके रोमांचक एहसास से ममता का चेहरा सुर्ख लाल हो उठा था और यदि ऐसे में वह उससे अपनी नज़रें मिलाती तो निसचीत ही वह उसकी उत्तेजना को समझ जाता.
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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

"तुम हर बार भूल जाती हो कि मैं एक यौन चिकित्सक हूँ, मेरे सह-क्षेत्र में गंदा कुच्छ भी नही होता और रही बात मेरी रुचियों की तो हां मा! तुम्हारे बेटे को भी औरतों की गान्ड का छेद अत्यधिक रुचिकर लगता है और यह भी पूर्णतया सच है कि तुम्हारा बेटा अब तक इस सुख को पाने से वंचित रहा है. तुम्हे गुदा-मैथुन से परहेज है क्यों कि तुमने अपने गुदा-द्वार का इस्तेमाल मात्र मल-विसर्जन हेतु ही किया है और तभी तुम खुद मेरी तरह इस अधभूत सुख से वंचित रही हो" अपने सांकेतिक कथन के ज़रिए ऋषभ ने अपनी मा को प्रस्ताव देने का प्रयास किया था और ममता को भी समझते देर ना लगी कि उसके पुत्र के इशारे की असलियत क्या है. दोनो के हालात समतर थे, एक सुख पाने को तड़प रहा था तो दूजा उस सुख का कारण खोजने पर विवश हो चला था.

"मैं! मैं नही मानती रेशू, अप्राक्रातिक विषयो को नकार देना ही उचित रहता है" ममता ने कहने में ज़्यादा वक़्त नही लिया और अपने इनकार से अपने पुत्र के प्रस्ताव को फॉरन खारिज कर देती है परंतु उसके मन में जिग्यासा का अंकुर फूट चुका था. ऋषभ के दुस्स-साहस से वह आश्चर्या में पड़ गयी थी, जिसने जान-बूचकर अपनी सग़ी मा के साथ गुदा-मैथुन करने की अमर्यादित इक्षा जताई थी, जबकि इसके ठीक विपरीत ममता ने अब तक नही सोचा था कि उसके मेडिकल चेकप का अंत क्या होना था ?

"सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है मा! खेर छोड़ो, हम क्यों बे-वजह इस विषय पर वाद-विवाद करें" अपनी मा की मीठी वाणी में अचानक से आई कठोरता के बदलाव ने ऋषभ को आगाह कर दिया कि वह उसके सांकेतिक कथन से ख़ासी खुश नही हुवी थी और तभी ऋषभ प्रेमपूवक उस विवादित विषय को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो जाता है. अब सिर्फ़ एक अंतिम कार्य ही शेष था, जिसे करने की अनुमति भी उसे अपनी मा से काफ़ी वक़्त पिछे मिल चुकी थी और अपने उसी सोचे-विचारे हुवे कार्य के तेहेत वा यह साबित करने को उत्सुक हो गया की गुदा-मैथुन का प्रारंभिक एहसास ही इतना अधिक आनंदतीरेक होता है, जिसे पाने के उपरांत दुनिया की कोई भी स्त्री अपनी गान्ड के छेद को चुदवाने से खुद को नही रोक सकती.

"मा! थोड़ा दर्द होगा मगर मैं तुम्हारी हिम्मत से परिचित हूँ. आशा करूँगा, तुम सह सकोगी" कहने के पश्चात ही ऋषभ अपने अंगूठे को छिद्र के मुहाने से हटा कर उसके स्थान पर अपने उसी हाथ की सबसे लंबी उंगली को टीका देता है और बलपूर्वक अपनी उंगली अपनी मा के कसे हुवे गुदा-द्वार के भीतर ठेलने का दुर्दांत प्रयत्न करने लगा.

"आह्ह्ह्ह रेशू! क्या तेरा ऐसा करना ज़रूरी है ?" ममता ने व्यकुल्तापूर्वक पुछा. उसके पुत्र की उंगली का अंश मात्र हिस्सा भी उसकी गान्ड के कुंवारे छेद के भीतर नही पहुँच पाया था और अभी से उसकी अनिश्चित-कालीन पीड़ा की शुरूवात हो गयी थी, यक़ीनन अग्यात भय ने उसके मष्टिशक पर पूर्णरूप अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था, जो उसकी घबराहट को भी अकारण ही बढ़ाने लगा था.

"अगर उंगली नही डालूँगा तो छेद के अन्द्रूनि विकारो को कैसे जान पाउन्गा मा ?" अपने प्रश्न के साथ ही ऋषभ ने ज़ोर लगाया और तत्काल उसकी आधी उंगली छिद्र के कसावट से भरपूर छेद को अपने व्यास-अनुसार चौड़ाती हुवी उसके भीतर घुसने में सफल हो जाती है.

"सीईईई उफफफफ्फ़" ममता ने अति-शीघ्र अपनी गान्ड के छेद को सिकोडा परंतु पीड़ा की अधिकता से अपनी सीत्कार को नही रोक पाती.

"इसे मल-द्वार का आरंभिक छल्ला कहते हैं मा, तुम्हारी तरह ही कोई भी अन्भिग्य स्त्री जब अपनी गान्ड के छेद को सिकोड़ने की ग़लती करती है तब यह छल्ला छिद्र के भीतर पहुँचने वाली वास्तु, चाहे उंगली हो या लंड! अपने प्राक्रातिक आकार को त्याग कर उसे रोकने के लिए फॉरन अपने गहराव को कम कर लेता है" ऋषभ ने अपनी उंगली को छल्ले की गोलाई पर घुमाते हुवे कहा, ममता के अपनी गान्ड के छेद को अकसामात सिकोड लेने के उपरांत उसके पुत्र की उंगली उस छल्ले के भीतर बुरी तरह से फस गयी थी.

"तो .. तो अब मुझे क्या करना चाहिए रेशू ? अजीब सा महसूस हो रहा है, दर्द तो है ही मगर ......" ममता ने उस विषम परिस्थिति से बचने हेतु पुछा, उसका कथन अधूरा हो कर भी पूरा था.

"अपने छेद को ढीला छोड़ दो मा! बस यही एक मात्र विकल्प है वरना मेरी पिच्छली मरीज़ की तरह ही तुम्हारा गुदा-दार भी चोटिल हो सकता है" ऋषभ ने उसे समझाते हुवे कहा और साथ ही अपनी नीच मंशा की पूर्ति के लिए उसे डरा भी देता है.

"अब नही सिकोडूँगी रेशू! तू ख़याल रखेगा ना अपनी मा का ? बोल रखेगा ना ?" डर से बहाल ममता अधीरतापूर्वक बोली. कुच्छ वक़्त पूर्व कॅबिन में गूँजी उस चीख पर उसका ध्यान केंद्रित हो जाता है, जिसे सुनने के उपरांत वह विज़िटर'स रूम की खिड़की से कॅबिन के भीतर झाँकने को मजबूर हो गयी थी और जो विध्वंशक द्रश्य उसने देखा था, लम्हा-लम्हा याद कर उसका शरीर काँपने लगता है.

"हां मा! तुम्हारा ख़याल तो मुझे रखना ही पड़ेगा" कह कर ऋषभ ने इंतज़ार नही किया और ममता के अपने गुदा-द्वार को ढीला छोड़ने से पहले ही वह अपनी संपूर्ण उंगली ज़बरदस्ती उस अवरुद्ध मार्ग के भीतर तक ठूंस देता है, हलाकी वह अपनी मा को दर्द नही देना चाहता था मगर आने वाली उसकी अगली क्रियाओं के मद्देनज़र जबरन उसे ऐसा करना पड़ा था.

"अहह रेशूउऊउउ! निकाल .. बाहर निकाल ले बेटे .. उफफफ्फ़" ममता की असहनीय चीख से कॅबिन गूँज उठता है. जिस परिस्थिति के विषय में सोच कर वा घबरा रही थी, उससे बचने का उपाय ढूँढ रही थी, कुच्छ भी सोचने से पूर्व ही उस परिस्थिति से उसका सामना हो गया था.

"लो मा निकाल ली" ऋषभ खुद अपनी मा की चीख से हड़बड़ा जाता है और तत्काल अपनी उंगली छेद से बाहर खींच लेता है.

"ओह्ह्ह! तू बहुत ज़ालिम है रेशू. मैं तेरी मा हूँ, इसके बावजूद भी तू मेरे साथ अन्य रोगियों की तरह ही बर्ताव कर रहा है" अपने पुत्र की उंगली अपनी गान्ड के छेद से बाहर निकालने के उपरांत ममता राहत की साँसे लेती हुवी बोली.

"माफ़ करना मा! मुझसे ग़लती हो गयी, मुझे सूखी उंगली का इस्तेमाल नही करना चाहिए था मगर मैं क्या करूँ, सारे स्टाफ के अचानक से छुट्टी पर चले जाने से मुझे जाँचो में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के बारे में कोई जानकारी नही की वे कहाँ रखी होंगी" ऋषभ ने माफी माँगते हुवे कहा. उसके कथन की सत्यता जानने हेतु इस बार ममता अपनी गर्दन घुमा कर उसके चेहरे को घूरती है, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसके पुत्र के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव थे. तत्काल ममता के हृदय में टीस उठी, इसलिए नही कि उसका पुत्र अपने किए पर शर्मिंदा था बल्कि इसलिए कि उसकी मा हो कर भी अब तक वह उसे ठीक से पहचान नही पाई थी, जाने क्यों आज उसके पुत्र का चेहरा पहली बार उसे किसी अजनबी समतुल्य नज़र आ रहा था.

"मुझे अपनी उंगली को चिकना करना होगा मा ताकि तुम्हे दोबारा कष्ट ना पहुँचे" कह कर ऋषभ अपने दाएँ हाथ को अपने चेहरे के नज़दीक लाने लगता है, उसकी आँखे उसकी मा की हैरत से फॅट पड़ी आखों में झाँक रही थी.

"नही रेशू ऐसा ग़ज़ब मत करना बेटे" ममता उसकी मंशा को ताड़ते हुवे चीखी.
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Post by rajsharma »

"पहले मेरी यह उंगली सूखी थी मा मगर इसके गीले हो जाने के बाद तुम्हे ज़्यादा दर्द नही झेलना पड़ेगा" ऋषभ ने अपनी उसी उंगली को अपनी मा के समक्ष प्रदर्शित करते हुवे कहा जिसे कुच्छ वक़्त पूर्वा उसने उसके कुंवारे गुदा-द्वार के भीतर घुसाया था.

"तेरी उंगली गंदी है बेटे! मत .. मत कर" ममता ने विनय के स्वर में हकलाते हुवे कहा.

"तुम मेरी मा हो! तुमसे ही मुझे यह जीवन मिला है, तुम्हारे शरीर का कोई भी अंग मेरे लिए कतयि गंदा नही हो सकता. मेरा विश्वास करो मा! मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा" अपनी मा के प्रति अपना प्रेम दर्शाने के पश्चात ही ऋषभ अपनी गंदी उंगली को अपने मूँह के भीतर क़ैद कर लेता है, जिसके नतीजन आकस्मात वे मा और पुत्र जड़वत अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं. जहाँ ममता अपने पुत्र द्वारा दर्शाए गये प्रेम के हाथो विह्वल हो उठी थी, उसके प्रेम का वास्तविक अर्थ खोजने का असफल प्रयत्न करने लगी थी वहीं ऋषभ के मूँह में तीव्रता से घुलती जा रही उसकी सग़ी मा के मल-द्वार की मादक सुगंध और मंत्रमुग्ध कर देने वाले कसैले से स्वाद ने उसके लंड की कठोरता को फॉरन अपने चरम पर पहुँचा दिया था. रोमांच के अतुलनीय आनंद की पराकाष्ठा से दोनो के गुप्तांगो ने त्राहि-त्राहि की पुकार मचानी शुरू कर दी थी.

"अब तुम्हे घबराने की ज़रूरत नही मा! तुम निश्चिंत रहो" अपनी उंगली में सिमटी अपनी मा के शरीर की गंध और स्वाद को अपने गले से नीचे उतारने के बाद ऋषभ उसे अपने मूँह से बाहर निकालते हुवे बोला. उसके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान फैल गयी थी, जिसे देख ममता भी खुद को मुस्कुराने से रोक नही पाती. यक़ीनन उस अत्यंत सुंदर मा की मुस्कान ने उसके अत्यधिक बलिष्ठ पुत्र को संकेत किया था कि उसकी बीती सभी नाराज़गी का अंत हो चुका है.

"अब नही घबराउन्गि रेशू और मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू अपनी मा के रोग का हर संभव इलाज करेगा, उसे पूरी तरह से रोग मुक्त कर देगा" ममता की मुस्कुराहट ज़ारी रही, उसने दोबारा अपने हाथो को अपने चूतड़ के पाटो पर कस लिया और उन्हे विपरीत दिशा की ओर खींचते हुवे बोली. अपने नीच कथन और निर्लज्ज कार्य के ज़रिए उसने ऋषभ को अपनी स्वीकरती प्रदान कर दी थी कि उसे अपने रोग के उपचार हेतु अपने पुत्र की बेहद आवाश्यकता है, उसकी एक मात्र आशा अब उसके पुत्र के साथ ही जुड़ी हुवी है.

"मैं भी यही चाहता हूँ मा! मैने पहले भी वादा किया था, फिर से करता हूँ कि कॅबिन छोड़ने से पूर्व तुम्हे पूरी तरह से रोग मुक्त कर दूँगा, तुम्हारी खोई हुवी मुकसान को वापस लौटना मेरे लिए सर्वोपरि होगा" इतना कह कर ऋषभ ने स्वयं की थूक से लथपथ अपनी वही उंगली पुनः अपनी मा के स्पंदन करते गुदा-द्वार के दानेदार मुहाने पर टिका दी, तत-पश्चात अपनी मा की आँखों में देखते हुवे ही अपनी उंगली को उसके मल-छिद्र के भीतर ठेलने लगता है. ममता के चेहरे की बदलती आकृति ने उसके कार्य को बाधित करने का प्रयास अवश्य किया मगर हौले-हौले वह अपनी उंगली को गुदा के छल्ले तक घुसा देने में सफल हो जाता है.

"छेद को सिकोडो मत मा" अपने पुत्र की अनैतिक आग्या के समर्थन में ममता ने अपने निचले धड़ को फॉरन ढीला छोड़ दिया. अत्यंत तुरंत ऋषभ ने एक लंबी खखार ली और अपना चेहरा अपनी मा के चूतड़ो के बीचों-बीच ला कर अपने मूँह के भीतर इकट्ठा किया गाढ़ा थूक सीधे गुदा-द्वार के ऊपर उगल देता है. ममता उसकी इस शरम्नाक कार्य-वाही से दंग रह गयी थी, क्या प्यार में घिंन! गंदगी! अप्राक्रतिक विचारधारा का मेल होना ज़रूरी है ? वह सोचने पर मजबूर थी.

अपना गाढ़ा थूक छिद्र के भीतर पहुँचाने हेतु ऋषभ अपनी उंगली को तीव्रता के साथ गोलाकार आक्रति में घुमाते हुवे उसे छल्ले की अवरुद्धि के पार निकालने के भरकस प्रयास में जुट जाता है, उसकी कोशिश इतनी अधिक प्रबल थी कि कुच्छ ही लम्हो बाद उसकी संपूर्ण उंगली उसकी मा की गान्ड के छेद के भीतर पहुँच चुकी थी. लग रहा था मानो छिद्र ने उसकी उंगली को चूसना आरंभ कर दिया हो और जिसमें ना चाहते हुवे भी ममता सहायक भूमिका निभा रही थी. शरीर के कुच्छ विशेष हिस्सो पर मनुष्यों का नियंत्रण होना मुश्किल होता है, आप कितना भी प्रयत्न करो मगर अपने गुदा-द्वार को तब सिकुड़ने से कभी नही रोक सकते जब उसके भीतर कोई वास्तु घुसी हुवी हो.

"अब कैसा लग रहा है मा ?" ऋषभ ने अपनी उंगली को बलपूर्वक छेद के अंदर-बाहर करते हुवे पुछा.

"बड़ा .. बड़ा अजीब सा लग रहा है रेशू" ममता कपकापाते स्वर में बोली.

"इसे महसूस करो मा! यह वो सुखद एहसास है जिससे आज तक पापा ने तुम्हे वंचित रखा था" ऋषभ ने कहने के पश्चात ही दोबारा छिद्र पर अपना गाढ़ा थूक उगल दिया. वह अपना बायां हाथ भी दरार के भीतर पहुँचा चुका था जिसकी प्रथम उंगली के नाख़ून से अब वह अपनी मा की चूत और उसकी गान्ड के छेद के भीच की झांतों से भरी सतह को कुरेदने लगा था.

"ओह्ह्ह रेशू! यह .. यह मुझे क्या होता जा रहा है" ममता सिहरते हुवे बोली. उसके निच्छले धड़ में अपने आप कंपन होना शुरू हो गया था, चूत अचानक से उबाल पड़ी थी और निप्पलो में अत्यधिक तनाव आने लगा था.

"तुम्हारी ग़लती नही मा! तुम गुदा संबंधी रति-क्रियाओं से अन्भिग्य थी और अभी जिस अकल्पनीय आनंद की प्राप्ति तुम्हे हो रही है, सोच कर देखो मा! यह तो मात्र इसकी शुरूवात है, अंत कितना सुखद होता होगा, मैं शब्दो में कतयि बयान नही कर सकता" ऋषभ अपनी उंगली को बाहर खींच कर बोला और तत-पश्चात अपनी दूसरी उंगली को उससे जोड़ते हुवे, दोनो को एक-साथ छिद्र के भीतर ठेलने लगता है.

"उफफफ्फ़ रेशू! अब .. अब थोड़ा सा दर्द हो रहा है" अपनी गान्ड के छेद की मास-पेशियों में आकस्मात खिंचाव आता महसूस कर ममता सिसकते हुए बोली.

"मा! गुदा-मैथुन का शुरूवाती मज़ा सिर्फ़ मर्द को ही आता है, औरत तो बस अपनी जान छुडवाने के लिए अंत तक उसके साथ बनी रहती है मगर इसके उपरांत चलते-फिरते, उठते-बैठते जो मीठा-मीठा दर्द औरत को लुभाता है, खुद ब खुद पुनः वो अपनी गांद मरवाने के उपाय खोजना आरंभ कर देती है" अपने कथन का लाभ लेते हुवे ऋषभ अपनी दोनो उंगिलयों को अपनी मा के तंग मल-द्वार के भीतर पेल चुका था, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसकी मा की चूत से निरंतर टपकता हुवा उसका गाढ़ा कामरस मेज़ पर इकट्ठा होता जा रहा था.

"तेरी जानकारी से तेरी मा विचलित होने लगी है रेशू! जैसे तूने मुझ पर कोई जादू सा कर दिया हो" कह कर ममता ने समय नही लिया और अपने चूतड़ो को पिछे की ओर धकेलने लगी. गुदा के भराव को भर पाना नामुमकिन होता है, लंड छोटा हो या बड़ा, सबकी हार सुनिश्चित रहती है.

"हे हे हे हे! जादू तुमने मुझ पर किया या मैने तुम पर, कहना ज़रा मुश्किल है मा" ऋषभ ने ठहाका लगाते हुवे कहा. उसे तो अब बस अपने स्थान पर खड़े ही रहना था, जो कुच्छ करना था उसकी मा स्वयं करती और यक़ीनन करने भी लगी थी. अविलंब अपने चूतड़ो को हिला रही थी, अपने पुत्र की उंगलियों को चोद रही थी.

"उम्म्म्म" अचानक से ममता ने हुंकार भरी और बलपूर्वक अपने चूतड़ो को पिछे की दिशा में धकेला, जिसके नतीजन वह मेज़ पर बनाया हुवा अपना संतुलन खो बैठती है.

"अपने हाथो से मेज़ को पकड़ लो मा वरना गिर जाओगी" ऋषभ ने फॉरन अपनी उंगलियाँ उसके गुदा-द्वार से बाहर खींच ली और अपने दोनो हाथो से उसके चूतड़ को साधते हुवे बोला. ममता पर तो जैसे कहेर सा ढह गया था. अपनी गान्ड के छेद में आए खालीपन्न से वह खिसिया जाती है, जिसका सॉफ प्रमाण ऋषभ के हाथो में क़ैद उसके चूतड़ थे जो अब भी तीव्रता के साथ आगे-पिछे होते जा रहे थे.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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