माँ का चैकअप

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rajsharma
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माँ का चैकअप

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माँ का चैकअप

दोस्तो ये कहानी दीक्षा ने लिखी है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे कॅन्वेर्ट कर रहा हूँ और आशा करता हूँ की ये कहानी आपको बहुत पसंद आएगी . इस कहानी का श्रेय इसके लेखक को जाता है मैं तो सिर्फ़ माध्यम मात्र हूँ आपका दोस्त राज शर्मा

"सर !! आप की मदर आई हैं" रिसेप्षनिस्ट जूही ने अपने बॉस ड्र. ऋषभ मेहरा को इंटर कॉम के ज़रिए सूचना दी.
"ओक !! उन्हें विज़िटर'स रूम में रिलॅक्स करने को बोलो, मैं फ्री हो कर उनसे मिलता हूँ" ड्र. ऋषभ ने जवाब में कहा.
जूही: "मॅम !! सर ने आप को विज़िटर'स रूम के अंदर वेट करने को कहा है, वे अपने पेशेंट के साथ बिज़ी हैं"
"ठीक है" ड्र. ऋषभ की मा ममता मुस्कुराते हुवे बोली और विज़िटर'स रूम की तरफ मूड जाती है. क्लिनिक के उद्घाटन के 6 महीने बाद वह दूसरी बार यहाँ आई थी, बेटे की अखंड मेहनत का ही परिणाम था जो उसका क्लिनिक दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था.
जूही: "सर !! मैने आप को बताया था ना कि मुझे जल्दी घर जाना है .. तो क्या मैं ...."
"पहले यह बताओ !! मिस्टर. & मिसेज़. सिंग के बाद अभी और कितने अपायंट्मेंट्स बाकी हैं ?" ड्र. ऋषभ ने पुछा.
जूही: "सर !! 5 हैं"
ड्र. ऋषभ: "जूही !! वैसे भी आज सारा स्टाफ छुट्टी पर है, मैं अकेले सब कुच्छ कैसे मॅनेज कर सकूँगा ?"
"सर !! बहुत अर्जेंट है वरना मैं कभी नही जाती" वह विनती के स्वर में बोली.
"ह्म्‍म्म !! बाहर गार्ड को बोल कर चली जाओ बट कल से .. नो मोर एक्सक्यूसस" एक ज़िम्मेदार मालिक की भाँति ड्र. ऋषभ ने उसे अंतिम चेतावनी दी, जूही के रोज़ाना के नये-नये नाटको से वह तंग आ चुका था.
जूही: "थॅंक यू सर"
ड्र. ऋषभ: "रूको रूको !! गार्ड को बोलना कि अब किसी को भी क्लिनिक के अंदर ना आने दे. मैं अकेले वाकई हॅंडल नही कर पाउन्गा"
"शुवर सर !! बाइ टेक केअर" कॉल डिसकनेक्ट करने के उपरांत जूही ने ममता के लिए चाइ-पानी इत्यादि की व्यवस्था की, आख़िर उसके बॉस की मा जो ठहरी और कुच्छ देर के वार्तालाप के पश्चात क्लिनिक से बाहर निकल जाती है.
--------------
"तो बताइए मिस्टर. सिंग ..." ड्र. ऋषभ ने अपने ठीक सामने बैठे मिस्टर. सिंग से पुछा मगर मिसेज़. सिंग ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया.
"अरे यह क्या बताएँगे !! दो दो जवान बेटों के बाप हैं लेकिन लेकिन अक़ल दो कौड़ी की भी नही" वह अपने पति की ओर घूरते हुवे घुर्राई.
"ड्र. !! कल रात इन्होने ज़बरदस्ती मेरी गान्ड मारी .. मारी नही बल्कि फाड़ डाली. उफ़फ्फ़ !! मुझसे तो इस कुर्सी पर भी ठीक से बैठा नही जा रहा" उसने बेशर्मी से अपने पति की बीती करतूत का खुलासा किया.
"रीमा !! स .. सुनो तो" अपनी पत्नी की अश्लीलता से मिस्टर. सिंग हकला गये, ड्र. ऋषभ के कानो से भी धुंवा निकलने लगता है.
"क्या सुनू मैं !! हां हां बोलो ? तुम्हे कितना मना किया था लेकिन तुमने सूखा ही घुसेड दिया. शायद तुम्हे अपनी बीवी की तक़लीफ़ का अंदाज़ा नही विजय, मैं बता नही सकती कि मेरी गान्ड में इस वक़्त कितना दर्द हो रहा है" वह दोबारा तैश में चिल्लाई.
"ड्र. साहेब !! आप कुच्छ करो वरना...." अपनी सारी के पल्लू को अपने मूँह के भीतर ठूंसते हुवे वह रुन्वासि होने लगती है. उसके पति का तो मूँह ही लटक गया था मानो अपनी ग़लती स्वीकार कर शर्मिंदा हो रहा हो, ए/सी की ठंडी हवा के बावजूद विजय का पूरा चेहरा पसीने से लथ-पथ हो चुका था.
ड्र. ऋषभ ने एक नज़र दोनो मिया बीवी को देखा. मध्यम उमर, यही कोई 40-42 के आस-पास.
"मिसेज़. सिंग !! बिना इनस्पेक्ट किए मैं किसी भी नतीजे पर नही पहुँच सकता, बुरा ना मानें लेकिन यह ज़रूरी है" ड्र. ऋषभ ने मरीज़ के पर्चे पर उसकी डीटेल्स लिखते हुवे कहा, साथ ही डेस्क के कंप्यूटर पर नो ड्यूस सर्टिफिकेट को ब्राउज़ करने लगता है.
"क्या मतलब ड्र. !! मैं समझी नही" रीमा ने पुछा, अब तक का उसका लहज़ा एक-दम गवारों जैसा था जो उसकी मदमस्त अधेड़ जवानी के बिल्कुल विपरीत था.
ड्र. ऋषभ: "मेरा मतलब है !! मुझे आप के रोग से रिलेटेड कुच्छ जाँचें करनी होंगी"
"हां तो ठीक है ना डॉक्टर. !! मैं भी हर जाँच करवाने के लिए तैयार हूँ, कुच्छ भी करो मगर मेरा दर्द ठीक कर दो" किसी याचक की भाँति रीमा बोली, वाकयि वह दर्द से बिलबिला रही थी. उसकी गान्ड अब तक कुर्सी पर क्षण मात्र को भी स्थिर नही रह पाई थी, जिसे कभी यहाँ तो कभी वहाँ मटकाते हुवे वह ड्र. ऋषभ को अपनी गहेन पीड़ा से अवगत करवाने को प्रयास रत थी.
"रिलॅक्स मिसेज़. सिंग !! मैं खुद यही चाहता हूँ कि आप का दर्द जल्द से जल्द समाप्त जाए. विजय जी !! सॉफ लफ़ज़ो में कहना ज़्यादा उचित रहेगा कि मुझे आप की वाइफ के आस होल का इनस्पेक्षन करना होगा, अगर आप दोनो तैयार हों तो बताइए. चूँकि मैं एक मेल सेक्शोलॉजिस्ट हूँ तो आप दोनो की इजाज़त मिलना बेहद आवश्यक है" ड्र. ऋषभ ने नो ड्यूस सर्टिफिकेट को उनके मध्य रखते हुवे कहा.
"इसे ध्यान से पढ़ कर अपनी अनुमति प्रदान करें तभी मैं रीमा जी का हर संभव इलाज शुरू कर पाउन्गा और यदि आप किसी फीमेल सेक्शोलॉजिस्ट से परामर्श लेने के इक्शुक हों तो इसी रोड पर ठीक 300 मीटर. आगे ड्र. माया का क्लिनिक है. आप चाहें तो मैं अपने रेफ़्रेंसे से कॉल कर के उन्हें रीमा जी के केस से जुड़ी सारी डीटेल्स बता सकता हूँ" उसने बेहद नम्र स्वर में कहा ताकि अपना प्रभाव उन दोनो के ऊपर छोड़ सके, ख़ास कर रीमा रूपी कामुक माल पर जिसका पल्लू उसके अत्यंत कसे ब्लाउस के आगे से सरकने की वजह से उसके गोल मटोल मम्मो का पूरा भूगोल वह अपनी कमीनी आँखों से मान्पे जा रहा था. उसे खुद पर विश्वास था कि यदि उसने अपने बीते अनुभव का सटीक इस्तेमाल किया तो निश्चित ही उसकी सोची समझी मंशा अति-शीघ्र पूर्ण होने वाली थी.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

"Sir !! aap ki mother aayi hain" receptionist jhuhi ne apne boss dr. rishabh mehra ko inter com ke zariye soochna di.
"Ok !! unhein visitor's room mein relax karne ko bolo, main free ho kar unse milta hoon" dr. rishabh ne jawaab mein kaha.
Juhi: "Mam !! sir ne aap ko visitor's room ke andar wait karne ko kaha hai, wey apne patient ke sath busy hain"
"Theek hai" dr. rishabh ki maa mamta muskuraate huwe boli aur visitor's room ki taraf mud jaati hai. clinic ke udghaat ke 6 mahine baad wah doosri baar yahan aayi thi, bete ki akhand mehnat ka hi parinaam tha jo uska clinic din dooni raat chauguni tarakki kar raha tha.
Juhi: "Sir !! maine aap ko bataya tha na ki mujhe jaldi ghar jaana hai .. to kya main ...."
"Pehle yeh bataao !! mr. & mrs. singh ke baad abhi aur kitne appointments baaki hain ?" dr. rishabh ne puchha.
Juhi: "Sir !! 5 hain"
Dr. rishabh: "Juhi !! waise bhi aaj saara staff chhutti par hai, main akele sab kuchh kaise manage kar sakunga ?"
"Sir !! bahut urgent hai warna main kabhi nahi jaati" wah vinti ke swar mein boli.
"Hmmm !! baahar guard ko bol kar chali jaao but kal se .. no more excuses" ek jimmedaar maalik ki bhaanti dr. rishabh ne use antim chetaavni di, juhi ke rozaana ke naye-naye naatako se wah tang aa chuka tha.
Juhi: "Thank you sir"
Dr. rishabh: "Ruko ruko !! guard ko bolna ki ab kisi ko bhi clinic ke andar na aane de. main akele waakyi handle nahi kar paaunga"
"Sure sir !! bye tc" call disconnect karne ke upraant juhi ne mamta ke liye chai-paani ityaadi ki vyavastha ki, aakhir uske boss ki maa jo tehri aur kuchh der ke vaartaalabh ke pashchayat clinic se baahar nikal jaati hai.
--------------
"To bataaiye mr. singh ..." dr. rishabh ne apne theek saamne baithe mr. singh se puchha magar mrs. singh ne uski baat ko beech mein hi kaat diya.
"Are yeh kya bataayenge !! do do jawaan beton ke baap hain lekin lekin aqal do kaudi ki bhi nahi" wah apne pati ki orr ghoorte huwe ghurrayi.
"Dr. !! kal raat inhone jabardasti meri gaand maari .. maari nahi balki faad daali. ufff !! mujhse to is kursi par bhi theek se baitha nahi ja raha" usne besharmi se apne pati ki beeti kartoot ka khulasa kiya.
"Reema !! s .. suno to" apni patni ki ashleelta se mr. singh hakla gaye, dr. rishab ke kaano se bhi dhunwa nikalne lagta hai.
"Kya sunu main !! haan haan bolo ? tumhe kitna mana kiya tha lekin tumne sookha hi ghused diya. shayad tumhe apni biwi ki taqleef ka andaaza nahi vijay, main bata nahi sakti ki meri gaand mein is waqt kitna dard ho raha hai" wah dobara taish mein chillayi.
"Dr. saheb !! aap kuchh karo warna...." apni saree ke pallu ko apne moonh ke bheetar thoonste huwe wah runaasi hone lagti hai. uske pati ka to moonh hi latak gaya tha maano apni galti sweekar kar sharminda ho raha ho, A/C ki tandi hawa ke bawjood vijay ka poora chehra paseene se lath-path ho chuka tha.
Dr. rishabh ne ek nazar dono miya biwi ko dekha. madhyam umar, yehi koi 40-42 ke aas-paas.
"Mrs. singh !! bina inspect kiye main kisi bhi nateeje par nahi pahunch sakta, bura na maanen lekin yeh zaroori hai" dr. rishabh ne mareez ke parche par uski details likhte huwe kaha, sath hi desk ke computer par no dues certificate ko browse karne lagta hai.
"Kya matlab dr. !! main samjhi nahi" reema ne puchha, ab tak ka uska lehja ek-dum gawaaron jaisa tha jo uski madmast adhed jawaani ke bilkul vipreet tha.
Dr. rishabh: "Mera matlab hai !! mujhe aap ke rog se related kuchh jaanchen karni hongi"
"Haan to theek hai na dr. !! main bhi har jhaanch karwaane ke liye taiyaar hoon, kuchh bhi karo magar mera dard theek kar do" kisi yaachak ki bhaanti reema boli, waakayi wah dard se bilbila rahi thi. uski gaand ab tak kursi par kshan maatra ko bhi sthir nahi reh paayi thi, jise kabhi yahan to kabhi wahan matkaate huwe wah dr. rishabh ko apni gehen peeda se awgat karwaane ko prayaas rat thi.
"Relax mrs. singh !! main khud yehi chaahta hoon ki aap ka dard jald se jald samaapt jaaye. vijay ji !! saaf lafzo mein kehna zyada uchit rahega ki mujhe aap ki wife ke ass hole ka inspection karna hoga, agar aap dono taiyaar hon to bataaiye. chunki main ek male sexologist hoon to aap dono ki ijaazat milna behad aawashyak hai" dr. rishabh ne no dues certificate ko unke madhya rakhte huwe kaha.
"Ise dhayan se padh kar apni anumati pradaan karen tabhi main reema ji ka har sambhav ilaaj shuru kar paunga aur yadi aap kisi female sexologist se paramarsh lene ke ikshuk hon to isi road par theek 300 mtr. aage dr. maya ka clinic hai. aap chaahen to main apne refrence se call kar ke unhein reema ji ke case se judi saari details bata sakta hoon" usne behad namra swar mein kaha taaki apna prabhaav un dono ke oopar chhod sake, khaas kar reema roopi kaamuk maal par jiska pallu uske atyant kase blouse ke aage se sarakne ki wajah se uske gol matol mummo ka poora bhoogol wah apni kameeni ankhon se maanpe ja raha tha. use khud par vishvaas tha ki yadi usne apne beete anubhav ka sateek istemaal kiya to nishchit hi uski sochi samjhi mansha ati-sheeghra poorna hone waali thi.
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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

"अरे ड्र. साहेब !! गान्ड मेरी तो दर्द भी मेरा हुआ ना, रोगी मैं खुद हूँ और जब मुझे ही सब कुच्छ मंज़ूर है तो फिर यह इजाज़त क्यों देंगे भला ?" मासूमियत से ऐसा पुच्छ कर रीमा अपनी कुर्सी से उठी और वहीं अपनी सारी को अपने पेटिकोट से बाहर खिचने लगती है.
"नही नही रीमा जी !! अभी रुकिये, पहले इस नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट पर विजय जी के दस्तख़त हो जाने दीजिए" ड्र. ऋषभ रीमा के पति को घूरता है जो बेहद दुखी मुद्रा में उस नो ड्यूस सर्टिफिकेट को ऐसे पढ़ रहा था जैसे उसकी प्रॉपर्टी की वसीयत हो और जिसमें उसके बाप ने अपनी सारी दौलत पड़ोसी की औलाद के नाम कर दी हो.
"ईश्ह्ह !! आख़िर तुम चाहते क्या हो विजय ? क्या यही कि तुम्हारी बीवी तड़प्ते हुवे मर जाए ? हा !! शायद अब तुम्हें मेरी कोई फिकर नही रही" रीमा दोबारा क्रोध से तिलमिलाई.
"लाओ जी ड्र. साहेब !! वो ठप्पे वाली स्याही की डब्बी मुझे दो, मैं खुद अपना अंगूठा लगाती हूँ" उसने प्रत्यक्ष-रूप से अपने अनपढ़ होने का सबूत पेश किया. हलाकी वह पूर्व से ऐसी चरित्र-हीन औरत नही थी, पिच्छले महीने ही अपने गाओं से अपने पति के पास देल्ही आई थी. जीवन-पर्यंत अपनी बूढ़ी सास की देख-भाल के अलावा उसे किसी भी अन्य काम में कोई रूचि नही रही थी मगर आज अपने पति द्वारा सतायि वह अबला नारी किसी अनुभवी रंडी में परिवर्तित हो चली थी. इसकी एक मुख्य वजह ड्र. ऋषभ का आकर्षित व्यक्तित्व, सुंदर चेहरा, मांसल कलाई, बेहद गोरी रंगत, अत्यंत निर्मल स्वाभाव इत्यादि विशेताएँ या उसके वस्त्र-विहीन कठोर जिस्म का जितना हिस्सा वह अपनी खुली आँखों में क़ैद कर पाई थी, उसके कोमल हृदय को पिघलाने में सहायक उतना काफ़ी था.
"उम्म्म !! वो तो नही है रीमा जी मगर यह पेन ज़रूर है" ड्र. ऋषभ ने अपने हाथ में पकड़ा पेन विजय के चेहरे के सामने घुमाया, अपने समक्ष खड़ी अत्यधिक छर्हरे शरीर की स्वामिनी रीमा की अश्लील बातों व हरक़तो के प्रभाव मात्र से उसके पॅंट के भीतर छुपे उसके शुषुप्त लंड ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ कर दिया था.
"डॉक्टर. !! मेरी बीवी और बच्चो से बढ़ कर मेरे लिए कुच्छ भी नही, चलिए मैं साइन कर देता हूँ. अब आप भी जल्दी से इनका इलाज करना शुरू कर दीजिए" विजय के कथन और मुख पर छाई मायूसी का कहीं से कहीं तक कोई मेल नही बैठ पता, मजबूरी-वश उसे सर्टिफिकेट पर अपने दस्तख़त करने ही पड़ते हैं. यदि वह दो दिन पहले अपने ऑफीस के जवान चपरासी की बातों के फेर में नही आया होता तो यक़ीनन आज उसे यूँ शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता. हुआ कुच्छ ऐसा था कि उसके चपरासी ने उसके सामने अपनी नयी-नवेली दुल्हन के संग की जाने वाली संभोग क्रियाओं का अती-उत्तेजक विश्लेषण किया था, ख़ास कर अपनी जवान बीवी की गान्ड चोदने के मंत्रमुग्ध आनंद की बहुत ज़ोर-शोर से प्रशन्सा की थी और उनके दरमियाँ चले उस लंबे वार्तलाब के नतीजन विजय ने पिच्छली रात ज़बरदस्ती अपनी पत्नी की इक्षा के विरुद्ध उसकी गान्ड मारी, जिसे वह स्वयं पहले अप्राक्रातिक यौन संबंध समझता था.
जवान लौन्डे-लौंडिया तो वर्तमान में प्रचिलित चुदाई से संबंधित सभी आसनो का भरपूर लाभ उठाते हैं मगर अधेड़ो की दृष्टि-कॉन से आज भी एक निश्चित व सामान्य स्थिति में अपनी काम-पीपसा को शांत कर लेना उचित माना जाता है, मुख मैथुन या गुदा-मैथुन को वे सर्वदा ही पाश्चात्य सन्स्क्रति का हवाला दे कर अनुचित करार देते आए हैं.
"अब उतारू साड़ी ?" अपने पति को टोन्चति रीमा ने सवाल किया जैसे पराए मर्द के समक्ष नंगी हो कर उससे बदला लेना चाहती हो, हां काफ़ी हद्द तक उसके अविकसित मश्तिश्क के भीतर कुच्छ ऐसा ही द्वन्द्व चल रहा था.
"यहाँ नही रीमा जी !! वहाँ उस एग्ज़ॅमिन बेड पर" ड्र. ऋषभ अपनी चेर से उठ कर कॅबिन के दाईं तरफ स्थापित मरीज़ो वाले बिस्तर के नज़दीक जाते हुवे बोला. उसके पिछे-पिछे मिस्टर. & मिसेज़. सिंग भी उधर पहुँच गये.
"साड़ी उतारने की को ज़रूरत नही !! बस थोड़ी उँची ज़रूर कर लीजिए" उसके कहे अनुसार रीमा ने फॉरन अपनी स्राडी को पेटिकोट समेत अपनी पतली बलखाई कमर पर लपेट लिया और बिस्तर पर चढ़ने का भरकस प्रयत्न करने लगती है परंतु अपने गुदा-द्वार की असहनीय पीड़ा से विवश वह इसमें बिल्कुल सफल नही हो पाती.
ड्र. ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को भुनाना चाहा और बिना किसी झेप के तुरंत वह रीमा के मांसल नंगे चुतडो के दोनो दाग-विहीन पाटों को अपने हाथो के विशाल पंजो के दरमियाँ कसते हुए उसके भारी भरकम शरीर को किसी फूल की तरह हवा में काफ़ी उँचाई तक उठा लेता है, कुच्छ पल अपने अत्यधिक बल का उदाहरण पेश करने के उपरांत उसने उसे बिस्तर की गद्दे-दार सतह पर छोड़ दिया जैसे वह मामूली सी कोई वजन-हीन वस्तु हो.
"उफ़फ्फ़" अपने पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष के हाथो के कठोर स्पर्श को महसूस कर रीमा सिसक उठी.
"मैं तो चड्डी भी नही पहन पाई !! देखो ना ड्र. साहेब इन्होने अपनी वेह्शियत से किस कदर अपनी नादान पत्नी को अपनी वासना का शिकार बनाया है" बिस्तर पर घोड़ी बन जाने के पश्चात ही उसने अपने चुतडो को वायुमंडल में उभारते हुवे कहा, उसकी कामुक आँखें परस्पर कभी अपने पति के उदासीन चेहरे पर गौर फरमाने लगती तो कभी अपने उस जवान नये प्रेमी के मुख-मंडल पर छाइ खुशी को निहारने में खो सी जाती.
क्रमशः.................................................................
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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"Are dr. saheb !! gaand meri to dard bhi mera huwa na, rogi main khud hoon aur jab mujhe hi sab kuchh manzoor hai to fir yeh ijaazat kyon denge bhala ?" maasumiyat se aisa puchh kar reema apni kursi se uthi aur wahin apni saree ko apne petticoat se baahar khichne lagti hai.
"Nahi nahi Reema ji !! abhi rukiye, pehle is no objection certificate par vijay ji ke dastkhat ho jaane dijiye" dr. rishabh reema ke pati ko ghoorta hai jo behad dukhi mudra mein us no dues certificate ko aise padh raha tha jaise uski property ki vaseeyat ho aur jismein uske baap ne apni saari daulat padosi ki aulaad ke naam kar di ho.
"Ishhh !! akhir tum chaahte kya ho vijay ? kya yehi ki tumhaari biwi tadapte huwe mar jaaye ? Huh !! shayad ab tumhen meri koi fikar nahi rahi" reema dobaara krodh se tilmilaayi.
"Laao ji dr. saheb !! woh thappe wali syaahi ki dabbi mujhe do, main khud apna angootha lagaati hoon" usne pratyaksh-roop se apne anpad hone ka saboot pesh kiya. halaaki wah poorva se aisi charitra-heen aurat nahi thi, pichhle mahine hi apne gaon se apne pati ke paas delhi aayi thi. jeewan-paryant apni boodhi saas ki dekh-bhaal ke alaawa use kisi bhi anya kaam mein koi ruchi nahi rahi thi magar aaj apne pati dwara sataayi wah abla naari kisi anubhavi randi mein parivartit ho chali thi. iski ek mukhya wajah dr. rishabh ka akarshit vyaktitva, sundar chehra, maansal kalaayi, behad gori rangat, atyant nirmal swabhaav ityaadi vishetaayen ya uske vastra-viheen kathor jism ka jitna hissa wah apni khuli aankhon mein kaid kar paayi thi, uske komal hriday ko pighlaane mein sahaayak utna kaafi tha.
"Ummm !! woh to nahi hai reema ji magar yeh pen zaroor hai" dr. rishabh ne apne haath mein pakda pen vijay ke chehre ke saamne ghumaaya, apne samaksh khadi atyadhik chharhare shareer ki swamini reema ki ashleel baaton va harqato ke prabhaav maatra se uske pant ke bheetar chhupe uske shushupt lund ne angdaayi lena prarambh kar diya tha.
"Dr. !! meri biwi aur bachho se badh kar mere liye kuchh bhi nahi, chaliye main sign kar deta hoon. ab aap bhi jaldi se inka ilaaj karna shuru kar dijiye" vijay ke kathan aur mukh par chaayi maayusi ka kahin se kahin tak koi mel nahi baith pata, majboori-vash use certificate par apne dastkhat karne hi padte hain. yadi wah do din pehle apne office ke jawaan chapraasi ki baaton ke fer mein nahi aaya hota to yakeenan aaj use yun sharmindagi ka saamana nahi karna padta. huwa kuchh aisa tha ki uske chapraasi ne uske saamne apni nayi-naveli dulhan ke sang ki jaane wali sambhog kriyaaon ka ati-uttejak vishleshan kiya tha, khaas kar apni jawaan biwi ki gaand chodne ke mantramughd anand ki bahut zor-shor se prashansha ki thi aur unke darmiyaan chale us lambe vaartalaab ke nateejan vijay ne pichhli raat jabardasti apni patni ki iksha ke viruddh uski gaand maari, jise wah swayam pehle apraakratik yaun sambandh samajhta tha.
Jawaan launde-laundiyan to vartmaan mein prachilit chudayi se sambandhit sabhi aasno ka bharpoor laabh uthaate hain magar adhedo ke drashti-kon se aaj bhi ek nishchit va saamanya sthiti mein apni kaam-pipasa ko shant kar lena uchit maana jaata hai, mukh maithun ya guda-maithun ko wey sarwada hi paashchaatya sanskrati ka hawaala de kar anuchit karaar dete aaye hain.
"Ab utaaru saree ?" apne pati ko tochti reema ne sawaal kiya jaise paraaye mard ke samaksh nangi ho kar usse badla lena chaahti ho, haan kaafi hadd tak uske aviksit mashtishk ke bheetar kuchh aisa hi dwandwa chal raha tha.
"Yahan nahi reema ji !! wahan us examine bed par" dr. rishabh apni chair se uth kar cabin ke daayin taraf sthapit mareezo waale bistar ke nazdeek jaate huwe bola. uske pichhe-pichhe mr. & mrs. singh bhi udhar pahunch gaye.
"Saree utaarne ki ko zaroorat nahi !! bas thodi unchi zaroor kar lijiye" uske kahe anusaar reema ne foran apni saree ko petticoat samet apni patli balkhayi kamar par lapet liya aur bistar par chadhne ka bharkas prayatna karne lagti hai parantu apne guda-dwar ki asahneey peeda se visvash wah ismein bilkul safal nahi ho paati.
Dr. rishab ne us swarnim mauke ki nazakat ko bhunaana chaaha aur bina kisi jhep ke atyant turant wah reema ke maansal nange chutado ke dono daag-viheen paton ko apne haatho ke vishal panjo ke darmiyan kaste huwe uske bhaari bharkam shareer ko kisi phool ki tarah hawa mein kaafi unchaayi tak utha leta hai, kuchh pal apne atyadhik bal ka udaaharan pesh karne ke upraant usne use bistar ki gadde-daar satah par chhod diya jaise wah mamooli si koi vajan-heen vastu ho.
"Ufff" apne putra samtulya par-purush ke haatho ke kathor spasrh ko mehsoos kar reema sisak uthi.
"Main to chaddi bhi nahi pehan paayi !! dekho na dr. saheb inhone apni vehshiyat se kis kadar apni nadaan patni ko apni vaasna ka shikaar banaya hai" bistar par godi bann jaane ke pashchayat hi usne apne chutado ko vayumandal mein ubhaarte huwe kaha, uski kaamuk aankhen paraspar kabhi apne pati ke udaaseen chehre par gaur farmaane lagti to kabhi apne us jawaan naye premi ke mukh-mandal par chhaayi khushi ko nihaarne mein kho si jaati.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: माँ का चैकअप

Post by rajsharma »

चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अमूमन सभी चिकित्सको ने कभी आकस्मात तो कभी किसी विशेष परिस्थिति के तेहेत सरलतापूर्वक अपने मरीज़ को वस्त्र-विहीन देखा होगा मगर ड्र. ऋषभ का सेवा-क्षेत्र "यौन विज्ञान" होने के कारण अक्सर उसके क्लिनिक में औरतों की फुल वेराइटी मौजूद रहती थी या यूँ कहना ज़्यादा उचित होगा कि यदि औरतों को क्लासीफ़ाई किया जाता तो शुरू करने के लिए उसका क्लिनिक एक अच्छी जगह माना जा सकता था क्यूँ कि यहाँ हर उमर की, हर साइज़ की, हर धरम की औरत आसानी से देखने मिल जाया करती थी. अपने से-क्षेत्र में महारत हासिल करने के उद्देश्य से उसने जवान, अधेड़, बूढ़ी लगभग सभी क़िस्मो की चूतो का बारीकी से अध्ययन किया था. उनका मान्प, व्यास, कोण, लंबाई, चौड़ाई इत्यादि हर तबके की चूत का मानो अब वह प्रकांड विद्वान बन चुका था.
यह तथ्य कतयि झूठा नही की वर्तमान में जितनी भीड़ नॉर्मल एमबीबीएस डॉक्टर'स के क्लिनिक पर जमा होती है उससे कहीं ज़्यादा बड़े हुज़ूम को हम एक सेक्शोलजीस्ट के क्लिनिक के बाहर पंक्तिबद्ध तरीके से अपनी बारी का इंतज़ार करते हुवे देख सकते हैं. आज के वक़्त का शायद हर इंसान (नर हो या मादा) यौं रोग की गिरफ़्त में क़ैद है, वजह भ्रामक विग्यापन हों या झोला छाप चिकित्सकों की अनुभव-हीन चिकित्सा जिनके बल-बूते पर निरंतर लोग गुमराह होते रहते हैं और अंत-तह सारी शरम, संकोच भुला कर उन्हें किसी प्रोफेशनल सेक्शोलॉजिस्ट के पास जाना ही पड़ता है.
"अति शर्वत्र वर्जयेत " घनघोर अश्लीलता के इस युग में कोई हस्त्मैतुन की लत से परेशान है तो किसी के वीर्य में प्रजनन शुक्रानुओ का अभाव है, कोई औरत मा नही बंन सकती तो किसी की चूत 24 घंटे सिर्फ़ रिस्ति ही रहती है. सीधे व सरल लॅफ्ज़ो में कहा जाए तो काम-उत्तेजना के शिकार से ना तो भूतकाल में कोई बच सका था, ना वर्तमान में बच सका है और ना ही भविश्य में बच सकेगा. आगे आने वाली पीढ़ियों में यौन रोग से संबंधित कयि लाइलाज बीमारियाँ जन्म से ही मनुश्य के साथ जुड़ी पाई जाएँगी और जिससे जीवन-पर्यंत तक शायद म्रत्यु नामक अटल सत्य के उपरांत ही वह मुक्त हो सकेगा.
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ड्र. ऋषभ ने अपने समक्ष बिस्तर पर पसरी रीमा के नंगे चूतड़ का भरपूर चक्षु चोदन करना आरंभ कर दिया. हलाकी चुतडो के पाट आपस में चिपके होने की वजह से वह रोग से संबंधित उसके गुदा-द्वार को तो नही देख पाता परंतु जिस कामुक अंदाज़ में रीमा ने अपने चूतड़ हवा में ऊपर की ओर तान रखे थे, ड्र. ऋषभ को उसकी कामरस उगलती चूत की सूजी फांकों का सम्पूर्न उभरा चीरा स्पस्ट रूप से नज़र आ रहा था.
"माफी चाहूँगी ड्र. साहेब !! मुझ मोटी औरत को बिस्तर पर चढ़ाने के लिए आप को बेवजह तकलीफ़ उठानी पड़ी" रीमा ने मुस्कुराते हुवे कहा, इस पूरे घटना-क्रम के दौरान प्रथम बार उसका पीड़ासन्न् चेहरा वास्तव में खिल पाया था और उसके कथन को सुन कर प्रत्युत्तर में ड्र. ऋषभ के होंठ भी फैल जाते हैं, यक़ीनन यह कामुक मुस्कान उसके अविश्वसनीय बल प्रयोग की तुच्छ भेंट स्वरूप ही रीमा ने उसे प्रदान की थी.
"कैसी तकलीफ़ रीमा जी !! मैने तो बस अपना फ़र्ज़ निभाने का प्रयास किया है" ड्र. ऋषभ ने सामान्य स्वर में कहा.
"मिस्टर. सिंग !! आप इनके नितंब की दरार को खोलें ताकि मैं इनके गुदा-द्वार की माली हालत का बारीकी से निरीक्षण कर सकूँ" अनचाहे इन्फेक्षन से बचने हेतु उसने अपने दोनो हाथो में मेडिकल ग्लव्स पेहेन्ते हुवे कहा.
विजय की पलकें मूंद गयी, उसकी छोटी सी ग़लती का इतना भीषण परिणाम उसे झेलना होगा उसने ख्वाब में भी कभी नही सोचा था. किसी संस्कारी पति के नज़रिए से यह कितनी शर्मसार स्थिति बन चुकी थी जो उसे स्वयं ही अपनी पत्नी की शरमगाह को किसी तीसरे मर्द के समक्ष उजागर करना पड़ रहा था, हलाकी मेडिकल पॉइंट ऑफ व्यू से उसका ऐसा करना उचित था परंतु अत्यधिक लाज से उसके हाथ काँप रहे थे. धीरे-धीरे उसके उन्ही हाथो में कठोरता आती गयी और क्षणिक अंतराल के पश्चात ही उसकी पत्नी की गान्ड का अति-संवेदनशील भूरा छेद ड्र. ऋषभ की उत्तेजना में तीव्रता से वृद्धि करने लगता है.
"अहह सीईईई ड्र. साहेब" रीमा सिसकारी, उसके पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष ने उसकी सम्पूर्न चूत को अपनी दाईं मुट्ठी के भीतर भींच लिया था, दोनो की कामुक निगाँहें आपस में जुड़ कर उनके तंन की आग को पहले से कहीं ज़्यादा भड़का देने में सहायक थी. फिलहाल तो विजय की आँखें बंद थी परंतु कामुत्तेजित उस द्रश्य को देख सिर्फ़ यही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसकी खुली आँखों का भी अब नाम मात्र का भय उन दोनो प्रेमियों पर कोई विशेष अंतर नही ला पाता.
"उम्म्म्म" अचानक से रीमा ने अपने खुश्क होंठो पर अपनी जीभ घुमाई, उसका इशारा सॉफ था कि अब वह ड्र. ऋषभ को अपनी चूत के गाढ़े कामरस का स्वाद चखाने को आतुर थी, मौका तो अवश्य था मगर उसके जवान प्रेमी की हिम्मत जवाब दे जाती है.
"विजय जी !! थोडा ज़ोर लगाइए वरना तो मुझे आप की मदद का कोई लाभ नही मिल पा रहा. वैसे आप की बीवी की गान्ड का छेद फटा ज़रूर है मगर फिर भी आप इनके चुतडो को ताक़त से चौड़ाइए ताकि मैं जान सकूँ कि छेद महज लोशन लगाने भर से ठीक हो जाएगा या मुझे उसके इर्द-गिर्द टाँके कसने पड़ेंगे" अपनी असल औक़ात पर आते हुवे ड्र. ऋषभ ने कहा.

क्रमशः................................................


तो दोस्तो अब आप बताइए ये कहानी कैसी रहेगी
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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