वक़्त के हाथों मजबूर compleet

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वक़्त के हाथों मजबूर compleet

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वक़्त के हाथों मजबूर

दोस्तो आपके लिए एक और कहानी लेकर आ रहा हूँ ये भी काफ़ी लंबी कहानी होगी कहानी का थोड़ा सा आगाज़ कर रहा हूँ
अगर आपको पसंद आए तो ज़रूर बताना



कहते हैं कि वक़्त से बड़ी ताक़त इस दुनिया में और कोई नही हैं. वक़्त के आगे बड़ी से बड़ी चट्टान भी झुक जाती है तो इंसान क्या चीज़ हैं.जो इंसान अगर वक़्त की कद्र करता हैं वो ही इंसान दुनिया में अपना वजूद कायम रख पाता हैं. एक बार जो वक़्त निकल गया वो कभी वापस नही आता मगर कुछ नसीब वाले इंसानो को ही वक़्त और किस्मत दोनो मिलती हैं. और वो ही इंसान सफलता के बुलांदियों को छूते हैं. मगर कुछ ऐसे भी इंसान है जो वक़्त के हाथों मजबूर और कठपुतलती मात्र बनकर रह जाते हैं.ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था. मैं भी वक़्त के हाथों एक खिलोना बनकर बस रह गया.
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Re: वक़्त के हाथों मजबूर

Post by rajaarkey »

मैं एसीपी राहुल मल्होत्रा आज वक़्त का सताया हुआ एक इंसान जो वक़्त के हाथों एक खिलोना के सिवा और कुछ भी नही है. कहने को तो मैं एसीपी हूँ मगर आज मेरे पास सब कुछ होकर भी कुछ नही हैं. आज मेरे पास बंगला, गाड़ी , नौकर चाकर सब कुछ है जो एक संपन्न परिवार में होना चाहिए या उससे भी ज़्यादा .मगर आज ना ही मेरे पास मा है और ना ही बाप.ना कोई भाई ना कोई बेहन. मैं आज तन्हा हूँ बिल्कुल अकेला.ना कोई आगे ना कोई पीछे.बचपन में मेरे मा बाप की रोड आक्सिडेंट में डेत हो गयी थी. जब मैं मात्र 10 साल का था. अभी मैने इस दुनिया के बारे में जाना ही कहाँ था कि मेरी दुनिया ही उजाड़ गयी.

बचपन से ही मेरी लाइफ स्ट्रगल रही हैं. मेरे पिताजी कहा करते थे कि कभी किसी पर डिपेंड मत रहो और टाइम ईज़ मनी. मैने उनके ही आदर्शों पर चलकर आज खुद अपनी कड़ी लगन और मेहनत के बल पर आज अपने आप को इस काबिल बनाया है कि आज मेरी खुद एक हस्ती और वजूद हैं. मैने अपनी पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद मुझे पोलीस की नौकरी मिली और मैने पोलीस की नौकरी जाय्न कर ली. मगर यहाँ भी मेरी बदक़िस्मती ने मेरा साथ नही छोड़ा मेरी ज़िंदगी में भी ख़ुसीयों के फूल खिले मगर वक़्त ने मुझसे वो खुशी भी छीन ली. जी हां मेरी खुशी, मेरा प्यार, मेरी तड़प, मेरी ज़िंदगी सब कुछ वो जिसने मुझे जीना सिखाया , प्यार क्या होता हैं बताया. मगर आज मेरे पास वो प्यार भी नही है. वक़्त ने मुझसे सब कुछ छीन लिया.आज मैं यही सोचता हूँ कि मैं ज़िंदा हूँ भी तो सिर्फ़ एक लाश बनकर रह गया हूँ. अब ना ही मेरे जीने की कोई वजह है ना ही कोई मंज़िल. एक मेरी मंज़िल थी आज वो भी नही है जी हां वो नाम जिसे मैं याद करके पल पल मरता हूँ, वो नाम जो मेरी रूह में मेरी हर साँस में आज भी ज़िंदा है वो नाम हैं राधिका शर्मा.

वो राधिका जिसे पाकर मुझे मंज़िल मिल गयी थी, मुझे जीने की वजह मिल गयी थी. मगर आज भी वो ज़िंदा हैं मेरी हर रोम रोम में, मेरे रागों में लहू बनकर . मेरी हर साँस में मेरी धड़कन में. मैं उसे कभी भुला नही सकता. खैर जो हुआ वो वक़्त तो वापस आ नही सकता .आज भी वो पल याद आते ही मेरी आँखो से आँसुओं का एक सैलाब उमड़ पड़ता है. बात तब की है .....................................................

19-सेप्ट-2008

आज के ही दिन मेरा अपायंटमेंट हुआ था. आज मैं बहुत खुस हूँ. मुझे मेरी कड़ी मेहनत और लगन की बदोलत आज अपने आप को इस काबिल बनाया कि आज अगर मेरे पिताजी ज़िंदा होते तो आज वो अपना सीना तान कर खड़े होते. मैने शपथ ली कि ना ही मैं अत्याचार सहूँगा और ना ही अत्याचार होने दूँगा. मैं अपनी नौकरी पूरी ईमानदारी और कर्तव्य से पूरा करूँगा. आज मुझे नौकरी करते लगभग एक साल हो चुका है. इतने दिनो में मैने कई टिपिकल केसस भी हॅंडल किए हैं. और बहुत से मुजरिमो को जैल की सलाखों के पीछे भी धकेला हैं. आज बड़े बड़े मुजरिम मेरे नाम से काँपते हैं. ऐसे ही मेरे दिन आराम से कट रहे थे कि एक दिन मैं ड्यूटी पर था और किसी काम से ऑफीस जा रहा था. रास्ते में मैने अपनी पोलीस जीप एक कॉलेज कॅंटीन के सामने खड़ी कर दी. और मेरा कॉन्स्टेबल वीर सिंग भी मेरे साथ था.हम दोनो उन ही हँसी मज़ाक कर रहे थे कि सामने से दो लड़की आती हुई दिखाई दी. कसम से कहता हूँ मैने आज तक ऐसी सुन्दर लड़की कभी नही देखी थी. गोरा रंग 5.4 इंच हाइट, बहुत सुंदर नयन, गुलाबी लिप्स, और फिगर तो फिल्म आक्ट्रेस भी उसके सामने फीकी पड़ जाए. और उसकी सहेली भी बिल्कुल वैसी ही थी. गोरा रंग लगभग सेम हाइट. ऑलमोस्ट सब सेम. पर चेहरा दोनो का बहुत मासूम था.

हम दोनो भी कॉलेज कॅंटीन के पास बैठे थे इतने में तीन बदमाश कॉलेज के मेन गेट से आते हुए दीखाई दिए. उनकी नज़र जब उन दोनो लड़की पर पड़ी तो उन तीनो के भी होश उड़ गये. एक गुंडा उनका लीडर था जग्गा. उसका काम ही था रोज रोज लड़ाई , मारा पीटी, छेड़ छाड़ कोई उससे पंगा भी नही लेता था. गंदी सूरत, काला जिस्म और मूह में पान चबाते हुए वो सामने के मैन गेट पर खड़ा हो गया और उन दोनो लड़कियों का इंतेज़ार करने लगा.

जग्गा- यार देख तो कसम से क्या चिड़िया है. साली पहले तो नही देखा इसको. लगता हैं नयी आई हैं. जो भी हैं कसम से पटका है.

इतना सुनते ही जाग्गा का दोस्त रामू बोल पड़ता हैं

रामू- अरे जग्गा भाई इस लड़की से पंगा मत लो यार.

जग्गा- क्यों बे कहीं की महारानी है क्या.

रामू- अरे महारानी से भी बढ़कर है यार .ये साली आटम बॉम्ब है. जब ये फटेगी तो तेरा भी पता नही चलेगा. याद हैं ना मनीष नाम का लड़का. अरे उसने इसे छेड़ने की ग़लती कर दी थी बस फिर क्या था साली ने उसका ऐसा बॅंड बजाया कि बेचारा इसको आँख उठा कर भी देखना तो दूर इसको दूर से देखते ही वो अपना रास्ता बदल देता हैं. और कभी संजोग से वो सामने आ जाए तो पूछ मत यार लगता है साला पॅंट में सू-सू कर देगा.

जग्गा- ऐसा क्या,! लगता है ये तो तीखी मिर्च हैं. और तू तो जानता है कि मुझे तीखी चीज़ कितनी पसंद हैं.

जग्गा का दूसरा दोस्त श्याम- हाँ यार रामू ठीक ही तो कह रहा है क्यों इस लड़की से बेवजह पंगा ले रहा हैं. तुझे छेड़ना ही है ना तू चल ना कोई और लड़की को छेड़ते हैं.
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Re: वक़्त के हाथों मजबूर

Post by rajaarkey »

जग्गा- इतना सुनते ही जग्गा का परा गरम हो जाता हैं. और कहता है साले तुम दोनो इस लड़की से डर गये साले ना-मर्दो कहीं के. देख अब मैं कैसे अकेले ही इन दोनो को सबक सिखाता हूँ. तुम लोग बस तमाशा देखते जाओ. देखना आज जग्गा कैसे इन दो टके की लौंडिया को अपने नीचे लाता है.... इतना कहकर जग्गा उनकी तरफ चल पड़ता है. जग्गा को सामने से आता देखकर निशा घबरा जाती है और अपनी सहेली से कहती है.....

निशा- राधिका यार प्लीज़ चल ना कहीं और चलते हैं मेरा मन नही कर रहा है इस कॅंटीन में जा ने का.

राधिका- यार तू भी अजीब है इतने देर से कह रही है मुझे भूक लग रही है और अब कॅंटीन आ गया तो कह रही है कहीं और चलते हैं.

निशा- बात ये है ना कि वो गुंडा जग्गा देख हमारी ही तरफ आ रहा है. तू उसको नहीं जानती एक नंबर का लफंगा और बदमाश है. आए दिन हर लड़की को छेड़ता रहता हैं.

राधिका- बस इतनी सी बात है. तू भी इस दो टके के गुंडे से घबरा गयी. तू चिंता मत कर अगर वो हम से पंगा लेगा तो साला बहुत पिटेगा.

निशा- अरे तू नहीं जानती इस से कोई पंगा नही लेता. बहुत ख़तरनाक है ये. मैं तो कहती हूँ अगर ये कुछ बोले तो बस तू चुप चाप निकल जाना. बस कुछ बोलना नही .

तभी जग्गा उनके करीब आ जाता है................

जग्गा- क्यों री चिड़िया तेरा नाम क्या है.

राधिका- आपसे मतलब. आप कौन होते हैं पूछने वाले.

जग्गा- अरे ए साली ,ए तो हम से ही सवाल कर रही हैं. तू जानती नही हैं लड़की हम कौन हैं. नाम है जग्गा. नाम तो तुमने सुना ही होगा.

राधिका- क्यों कोई फिल्म आक्टर हो क्या जो तुम्हारा नाम सुना है. तुम जैसे दो टके के आदमी से हमे कोई बात नही करनी. जाओ अपना रास्ता नापो. इतना सुनते ही जग्गा का पारा गरम हो जाता है.

जग्गा- तू जानती नही हम को मैं इस एरिया दादा हू दुनिया सलाम करती है जो पूछ रहा हूँ चुपचाप बता दे नही तो.........और इतना बोलते ही जग्गा चुप हो जाता है,

राधिका- नही तो क्या............... क्या कर लोगे. राधिका गुस्से से उसको देखकर बोलती हैं.

जग्गा- तुझे यहीं बीच सड़क पर नंगा करके घुमाउन्गा. इतना सुनते ही निशा डर से सहम जाती हैं और राधिका को धीरे से बोलती हैं.

निशा- अरे राधिका क्यों बात को बढ़ा रही हैं. जाने दे ना ऐसे लोगों से हमे पंगा नही लेना चाहिए.

राधिका- ठीक है निशा इसको बोल दे कि ये मुझसे माफी माँग ले. मैं यही पर बात ख़तम कर देती हूँ. इतना सुनते ही जग्गा ज़ोर ज़ोर से हँसने लगता हैं.

जग्गा- माफी और वो भी इस छोरी से. अरे मेरी चिड़िया अगर तू मेरी बात मान ले तो मैं तुझे रानी बनाकर रखुगा. फिर तुझे कोई भी आँख उठा कर नही देखेगा.

निशा- देखिए प्लीज़ हमे जाने दीजिए. राधिका की तरफ से मैं आपसे माफी मांगती हूँ.

जग्गा- अरे मेरी चिड़िया तू क्या समझती है कि तेरे माफी माँगे से मैं तुम दोनो को जाने दे दूँगा क्या. अगर इसे मैं अपनी रानी बनाउन्गा तो तुझे अपनी रखैल........

राधिका- देखिया मिस्टर. जग्गा जी आप अपनी हद्द से आगे बढ़ रहे है. आप अपनी औकात में रहकर बात कीजिए. वरना अंजाम बुरा होगा.

जग्गा- अच्छा तो तू बताएगी मुझे मेरी औकात. देखता हूँ मैं भी तो कि तू मेरा क्या बिगाड़ लेगी.

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Re: वक़्त के हाथों मजबूर

Post by rajaarkey »

इतना सुनते ही राधिका का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है और वो एक कॉल करती हैं. राधिका को कॉल करते देख कर जग्गा ज़ोर ज़ोर से हँसने लगता है और बोलता है.

जग्गा- लगता है अपने बाय्फ्रेंड को बुला रही है मुझको पिटवाने के लिए. ज़रा मैं भी तो देखूं कौन साला मर्द पैदा हो गया जो जागा को छू भी सके.

राधिका- फोन पर बात करते हुए - हेलो सर मुझे एक जग्गा नाम का आदमी परेशान कर रहा है और बहुत बतदमीज़ी से पेश आ रहा है. राधिका अब तक जो बातें होती है वो पूरी बात बता देती है और कुछ अपनी तरफ से भी नमक मिर्ची लगा कर जोड़ देती है.

उधेर से आवाज़ आती है क्या वो आदमी अभी भी आपके पास खड़ा है. राधिका हाँ में जवाब देती हैं. उधर से आवाज़ आती हैं ज़रा मेडम प्लीज़ फोन उसे दीजिएगा. मैं उससे ज़रा बात करता हूँ .

इतना सुनते ही राधिका उसको फोन थमा देती है......................................................

टू बी कंटिन्यूड.................................................................
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amitraj39621

Re: वक़्त के हाथों मजबूर

Post by amitraj39621 »

Wah
Awesome start..
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