एक अनोखा बंधन compleet

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KurtWild

एक अनोखा बंधन compleet

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एक अनोखा बंधन

ये कहानी कहीं से भी चुराई नहीं गई है| ये मेरी स्वयं की रचना है!


नमस्ते मित्रों,

मैंने इस फोरम पर बहुत सी कहानिया पढ़ीं हैं, कुछ कहानियों को पढ़ के साफ़ लग रहा था की ये बनावटी हैं हालां की लेखक ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की, की यह कहानी पाठकों को सच्ची लगे पर एक असल इंसान जिसने ये सब भोगा हो वह जर्रूर बता सकता है की ये सब बनावटी है| मैं अपनी इस सच्ची गाथा के बारे में अपने मुख से खुद कुछ नहीं कहूँगा परन्तु ये आशा रखता हूँ की आप अपने व्यंग ओरों के समक्ष रखेंगे|

आज मैं अपने इस धागे की जरिये आपको अपने जीवन की एक सच्ची घटना से रूबरू कराने जा रहा हूँ| एक ऐसी घटना जिसने मेरे जीवन में एक तूफ़ान खड़ा कर दिया| मैं अभी तक इस घटना को भुला नहीं पाया हूँ और अब भी उस शख्स को एक और बार पाने की कामना करता रहता हूँ| मैं अभी तक नहीं समझ पाया की जो कुछ भी हुआ उसमें कसूर किसका था? शायद आप मेरी इस सच्ची गाथा को सुन बता सकें की असली दोषी कौन था|

मैं आपको यह बताना चाहूंगा की मुझे अपनी इस कहानी का शीर्षक चुनने में वाकई कई दिनों का समय लगा है|
KurtWild

Re: एक अनोखा बंधन

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इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ मैं पहले आपको इसके पत्रों से रूबरू करना चाहता हूँ| आपको बताने की जर्रूरत तो नहीं की मैंने इस कहानी के सभी पात्रों के नाम, जगह सब बदल दिए हैं| तो चलिए शुरू करते हैं, मेरे पिता के दो भाई हैं और एक बहन जिनके नाम इस प्रकार हैं :
१. बड़े भाई - राकेश
२. मझिल* - मुकेश (*बीच वाले भाई)
३. सुरेश (मेरे पिता)
४. बड़ी बहन - रेणुका
बड़े भाई जिन्हें मैं प्यार से बड़के दादा कहता हूँ उनके पाँच पुत्र हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

१. चन्दर
२. अशोक
३. अजय
४. अनिल
५. गटु

मझिल भाई जिन्हें मैं प्यार से मझिले दादा कहता हूँ उनके तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

१. रामु (बड़ा लड़का)
२. शिवु
३. पंकज
४. सोनिया (बड़ी बेटी)
५. सलोनी
६. सरोज

हमारा गावों उत्तर प्रदेश के एक छोटे से प्रांत में है| एक हरा भरा गावों जिसकी खासियत है उसके बाग़ बगीचे और हरी भरी फसलों से लैह-लहाते खेत परन्तु मौलिक सुविधाओं की यदि बात करें तो वह न के बराबर है| न सड़क, न बिजली और न ही सोचालय! सोचालय की बात आई है तो आप को सौच के स्थान के बारे में बता दूँ की हमारे गावों में मुंज नमक पोधे के बड़े-बड़े पोधे होते हैं जो झाड़ की तरह फैले होते हैं| सुबह-सुबह लोग अपने खेतों में इन्ही मुंज के पौधों की ओट में सौच के लिए जाते हैं|

अब मैं अपनी आप बीती शुरू करता हूँ| मेरे जीवन में आये बदलाव के बीज तो मेरे बचपन में ही बोये जा चुके थे| मेरे स्कूल की छुटियों में मेरे पिताजी मुझे गावों ले जाया करते थे और वहाँ एक छोटे बच्चे को जितना प्यार मिलना चाहिए मुझे उससे कुछ ज्यादा ही मिला था| इसका कारन था की मैं बचपन से ही अपने माँ-बाप से डरता था पर उन्हें प्यार भी बहुत करता था| मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे शिष्टाचार के गुण कूट-कूट के भरे थे| कुत०कुत के भरने से मेरा तात्पर्य ऐ की डरा-धमका के, इसी डर के कारन मेरा व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक बन गया था|गावों में बच्चों में शिष्टाचार का नामो निशान नहीं होता, और जब लोग मेरा उनके प्रति आदर भाव देखते थे तो मेरे पिताजी की प्रशंसा करते थकते नहीं थे|
यही कारण था की परिवार में मुझ सब प्यार करते थे| परन्तु मेरी बड़ी भाभी (चन्दर भैया की पत्नी) जिन्हें मैं प्यार से कभी-कभी "भौजी" भी कहता था वो मुझे कुछ ज्यादा ही प्यार और दुलार करती थी| मैं उसे बचपन से ही बहुत पसंद करता था परन्तु तब मैं नहीं जानता था की ये आकर्षण ही मेरे लिए दुःख का सबब बनेगे|

मेरी माँ बतायाकरती थी की मैंने 6 साल तक दूध पीना नहीं छोड़ा था, और यही कारन है की जब मैं छोटा था तो मैं भागता हुआ रसोई के अंदर घुस जाता था, जहाँ की चप्पल पहने जाना मना है और खाना बना रही भाभी की गोद में बैठ जाता और वो मुझे बड़े प्यार से दूध पिलाती| दूध पिलाते हुए अपनी गोद में मुझे सुला देती| मैं नहीं जानता की ये उसका प्यार था या उसके अंदर की वासना? क्योंकि उस समय भाभी की उम्र तकरीबन 18 या 20 की रही होगी| (हमारे गावों में शादी जल्दी कर देते हैं|) मैं यह नहीं जानता तब उन्हें दूध आता भी था या नहीं, हालाँकि मेरे मन में उनके प्रति कोई भी दुर्विचार नहीं थे पर एक अजीब से चुम्बकीये शक्ति थी जो मुझे उनके तरफ खींचती थी| जब वो अपने पति अर्थात मेरे बड़े भाई चन्दर के पास होती तो मेरे शरीर में जैसे आग लग जाती| मुझे ऐसा लगता था की मेरे उन पर एक जन्मों-जन्मान्तर का हक़ है| ऐसा हक़ जिसे कोई मुझसे नहीं छीन सकता| दोपहर को जब वो खाना बना लेती और सब को खिलने के बाद खाती तो मैं बस उसे चुप-चाप देखता रहता| खाना खाने के बाद मैं भाभी से कहता की "भाभी मुझे नींद आ रही है आप सुला दो|" तो भाभी मुझे गोद में मुझे उठा कर चारपाई पर लिटाती और मेरी और प्यार भरी नजरों से देखती| मेरे मुख पर एक प्यारी सी मुस्कान आती और वो नीचे झुक कर मेरे गाल पर प्यार से काट लेती| उनके प्यार भरे होंट जब मेरे गाल से मिलते और जैसे ही वो अपने फूलों से नाजुक होंटों से मेरे गाल को अपनी मुंह में भरती तो मेरे सारे शरीर में एक झुरझुरी सी छूट जाती और मैं हंस पड़ता| इनका ये प्यार करने का तरीका मेरे लिए बड़ा ही कातिलाना था!
KurtWild

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समय का चक्का घुमा और मैं कुछ बड़ा होगया| मैं अपने बालपन को छोड़ किशोर अवस्था में पहुँच चूका था| मेरे कुछ ऐसा दोस्त बन चुके थे जिन्होंने मुझे वयस्क होने का ज्ञान दिया, परन्तु मैं स्त्री के यौन अंगों के बारे में कुछ नहीं जानता था और न ही वे जानते थे| तभी एक दिन मेरे पिताजी ने एक प्रोग्राम बनाया, उन्होंने मेरे बड़े भाई चन्दर को परिवार सहित हमारे घर शहर आने का निमंत्रण दिया| प्रोग्राम था की वे सब रात को हमारे घर पर ही रुकेंगे और चूँकि चन्दर के घर में टी.वी. नहीं था तो हमने घर पर ही पिक्चर देखने का प्लान बनाया| दिन में पिता जी और चन्दर दोनों बहार गए हुए थे, घर में केवल मैं, माँ, भाभी और उनकी बेटी” नेहा” ही थे| उस समय तक भाभी माँ बन चूँकि थी पर उनका प्यार मेरे लिए अब भी अटूट था| उनकी एक बेटी थी और वो तकरीबन 2 या 3 साल की रही होगी, वो मुझे चाचा-चाचा कह के मेरे साथ खेलती थी| परन्तु मेरा दिमाग तो बस भाभी के साथ अकेले में समय बिताने का था, पर मेरी भतीजी नेहा थी की मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी|
मैं आग बबूला होता जा रहा था, शायद भाभी ने मेरे दिमाग को पढ़ लिया और जब माँ रसोई में कुछ बना रही थी तो उन्होंने मुझे बड़े प्यार से पुकारा और मैं भी उड़ता हुआ उनके पास पहुँच| उन्होंने मुझे अपने पास बिठाया और आगे बढ़ कर मेरे गाल पर उसी प्यार भरे तरीके से काट लिया| मेरे दिमाग में मेरे बचपन की सभी यादें ताजा हो गई| मन तो किया की भाभी बस ऐसे ही मुझे प्यार करती रहे| पहली बार मैंने पाया की उनकी इस हरकत से मेरे शांत पड़े लंड में अकड़न आ गई| मुझे ये एहसास बहुत अच्छा लगता था, इससे पहले भी जब भी मैं सोते समय अपने बचपन की बातें याद करता तो मेरा लंड अकड़ जाता था| परन्तु तब मुझे ये नहीं पता था की इसको शांत कैसे करते हैं| इस बार भाभी के चुंबन का निशान मेरे गाल पर काफी गहरा था और ये देख वो भी थोड़ा घबरा गई| मुझे दर्द तो नहीं हो रहा था और न ही मैं जानता था की उनके काटने से मेरे गाल पर निशान पड़ गया है| पहली बार मेरे मन में आय की मैं भी उनके गाल का एक चुंबन लूँ| मैंने भाभी से कहा :
"भाभी मैं भी आपकी पप्पी लूँ?"
और उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने गाल को मेरी और घुमा दिया| मैंने भी धीरे-धीरे उनके गाल पर अपने होंट रख दिए| पहले मैंने उनके गाल को अपने मुंह में भरा और अपनी जीभ से उनके गाल को चाटा, जैसे मनो मैं कोई आइसक्रीम चाट रहा हूँ और फिर धीरे धीरे मैंने अपने दातों से उनके गाल को काट लिया| मुझे ये ध्यान था की कहीं मेरे काटने से उन गाल पर निशान न बन जाये| इस डर से की कहीं माँ न आ जाये मैं उनसे अलग हो गया| दिमाग में जितना भी गुस्सा था सब काफूर हो चूका था| तभी मेरे दोस्तों ने बहार से मुझ आवाज लगाई, मैं बहार भगा वो मुझे क्रिकेट खेलने के लिए बुला रहे थे परन्तु मैंने मना कर दिया| मेरे दोस्तों ने मुझसे पूछा की तेरा गाल लाल क्यों है, तब मुझे पता चला की भाभी की प्यार भरी पप्पी के निशान गाल पर छप गए हैं| मैंने बात घुमाते हुए कहा की मेरी भतीजी ने खेलते-खेलते काट लिया|
दोपहर हो चुकी थी पिताजी और चन्दर दोनों वापस आ चुके थे, हमने खाना खाया और पिताजी ने कहा की अगर रात में पिक्चर देखनी है तो अभी सो जाओ, नहीं तो आधी पिक्चर देख के ही सो जाओगे| अभी हम सोने के बारे में सोच ही रहे थे की बत्ती गुल हो गई| गर्मियों के दिन थे ऊपर से दोपहर! पिताजी, माँ और चन्दर तो बहार गली में सब के साथ अपनी-अपनी चारपाई डाल लेट गए और पड़ोसियों से बात करने लगे| बच गए मैं, भाभी और नेहा| नेहा का पेट भरा होने के कारन वो लेट गई और भाभी ने उसे पंखा हिलाते-हिलाते सुला दिया| मैंने भाभी से कहा की
"भाभी मुझे भी नींद आ रही है|"
भाभी मेरा इशारा समझ गई, वो चोकड़ी मारे बैठी थी तो मैं सीधा हो कर उनकी योनि के पास सर रखते हुए लेट गया| वो एक हाथ से पंखा कर रही थी और फिर धीरे-धीरे मेरे ऊपर झुकी और मेरे सीधे गाल पर एक प्यार भरा चुंबन किया और फिर धीरे से गाल काट लिया| मेरा लंड खड़ा हो चूका था परन्तु कमरे में अँधेरा होने के कारन वो उसे देख नहीं पाई| फिर उन्होंने अपने दूसरे हाथ से मेरे मुंह को दूसरी तरफ किया और मेरे बाएं गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन जड़ दिया और फिर उसे भी काट लिए| मेरी शरीर में उठ रही झुरझुरी से मेरा हाल बेहाल था| मेरे दोनों कान लाल थे और मैं गरम हो चूका था|
मैंने थोड़ा हिमायत करते हुए उनकी गर्दन पर हाथ रखते हुए अपने ऊपर झुका लिया और उनके गाल की पप्पियाँ लेने लगा| मैंने उन्हें भी गरम कर दिया था, और इससे पहले की हम अपनी मर्यादा को पार करते की तभी मेरा एक दोस्त भागता हुआ कमरे में आ गया| सच बताऊँ मित्रों मुझे इतना गुस्सा आया जितना कभी नहीं आया था| मैं बड़ी जोर से उस पर गरजा "क्या है???"
मेरी गर्जन उसने आज से पहले कभी नहीं सुनी थी और इससे पहले की वो कुछ कहता मैंने कहा, 'भाग यहाँ से!' मेरी बात सुनते ही वो बहार की तरफ भाग गया| भाभी का तो जैसे मुंह ही लटक गया| मैंने उनका मुंह अपने हाथों में थम और इससे पहले की मैं हम दोनों अपने जीवन का पहला चुमबन करते उन्होंने मुझे रोक दिया| उन्हें डर था की मेरी गर्जन सुन कहीं मेरी माँ अर्थात उनकी काकी अंदर न आ जाएं| उन्होंने कहा, "आज रात मैं नेहा को जल्दी सुला दूंगी तब करना|"
पर मैं कहाँ मानने वाला था मैंने उन्हें जबरदस्ती अपने ऊपर झुका लिया और उनके गुलाब के पंखुड़ियों जैसे होठों पर अपने दहकते हुए होंट रख दिए| मैं उनके कोमल होंटों का रस पीना चाहता था, और ये सब भूल चूका था की पास में ही उनकी बटी लेटी है| भाभी को भी जैसे एक अध्भुत सुख मिल रहा हो और वो बिना किसी बात की परवाह किये मेरे होंटों को बारी-बारी से अपने मुंह में लिए चूस रही थी| भाभी मेरे ऊपर झुकी हुई थी और मेरा सर ठीक उनके योनि की सिधाई पर था| ऐसा लग रहा था की मनो ये जहाँ जैसे थम सा गया हो और हम किसी जन्नत में हैं| मेरी बद किस्मती की मुझे यौन क्रिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था की चूत/ योनि किसे कहते है और उसे भोगते कैसे हैं| इसी कारन मैं उस दिन कुछ और नहीं कर पाया|
KurtWild

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जैसे ही भाभी को लगा की कहीं कुछ गलत है वो मुझसे अलग हो गईं, और उनके अलग होने के कुछ क्षण तक मैं बस उन्हें ही देखे जा रहा था की तभी माँ ने कमरे में प्रवेश किया| मैं घबरा गया और अपनी आँखें बंद कर लीन और ऐसे जताया जैसे मैं सो रहा हूँ| भाभी एक हाथ से पंखा कर रही थी, तभी माँ ने पूछा "बेटा यहाँ गर्मी है बहार चौतरे पर आ जाओ|भाभी ने कहा की,
"मानु सो रहा है अगर मैं उठूंगी तो ये जाग जायेगा|"
तभी बत्ती आ गई, और माँ ने कहा "शुक्र है बत्ती आ गई"| रात को खाना खाने से पहले मैंने भाभी से कहा, "आप नेहा को सुला देना फिर हम दुबारा पप्पी करेंगे"| मेरे उस भोलेपन पर भाभी को हंसी आ गई और उन्होंने हाँ में अपना सर हिल दिया| खाना खाने से पहले सभी आपस में बात कर रहे थे परन्तु मेरे मन में दोपहर में हुई घटना ने तूफ़ान मचा रखा था| मैं चाहता था की काश घर में सब बेसुध सो जाएं और मैं और भाभी बस एक दूसरी की बाँहों में चुंबन करते हुए लीन हो जाएं| रात्रि भोज के बाद पिताजी ने टी.वी पर पिक्चर लगा दी और हम सभी बिस्तर पर लेट गए और सभी टी.वी देखने लगे| सोने की व्यवस्था कुछ इस प्रकार थी :

मेरे पिताजी और चन्दर का बिस्तरा जमीन पर लगा था और पलंग पर माँ, मैं, भाभी और नेहा थे| हम सभी इसी कतार में लेते थे और सभी का ध्यान टी.वी की तरफ था| मैं टी.वी देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, मेरा ध्यान तो केवल भाभी पर था| परन्तु कमरे में जल रही तुबलाइट के कारन मैं कुछ नहीं कर सकता था| मैं बाथरूम जाने के बहाने से उठा और बहार चला गया| जब मैं वापस आया तो मैंने तुबलाइट बंद कर दी| पिताजी ने मुझे टोका, "लाइट क्यों बंद कर दी?"| मैं सकपका गया और लड़खड़ाते हुए जवाब दिए,"पिताजी …लाइट बंद करके थिएटर वाला मजा आएगा"| वे कुछ नहीं बोले और मैं वापस आकर पानी जगह लेट गया| कुछ क्षण तो मैं कुछ नहीं बोला जब मैंने देखा की सबका ध्यान टी.वी. पर है तो मैंने भाभी की तरफ मुंह किया और खुसफुसते हुए कहा:
"भाभी नेहा को सुला दो"|
भाभी :"नहीं मानु काकी देख लेंगी!!!"
मैं: "नहीं कोई नहीं देख पायेगा, लाइट बंद है|"
भाभी: "अगर काकी इधर घूम गईं तो बहुत बुरा होगा, तुम्हारी बहुत पिटाई होगी और मेरी बहुत बदनामी होगी| आज नहीं, फिर कभी कर लेना|"

मैं गुस्से में आग बबूला हुआ जा रहा था| मैंने फिर भी एक कोशिश की और कहा :

"अच्छा एक पप्पी तो दे दो?"
भाभी: "नहीं मानु बात को समझो, कोई देख लेगा|"

अब मेरे सब्र का बाँध टूट चूका था और गुस्से मेरे सर पर चढ़ चूका था| परन्तु मैं कर कुछ नहीं सकता था| मैंने गुस्से में मुंह घुमाया और दूसरी तरफ करवट ले कर सो गया| उन्होंने अपना हाथ मेरी कमर रख के मुझे मानाने की कोशिश की पर मैं कहाँ मानने वाला था| मैंने उनका हाथ झटक दिया और जोर से सब से बोला:
"शुभ रात्रि, मैं सो रहा हूँ|"
पिताजी ने डांटते हुए कहा: "क्यों क्या हुआ? इतने दिन से तूफ़ान मचाया हुआ था की पिक्चर देखनी है और अब जब पिक्चर आ गई तो सोना है?" मैंने कोई जवाब न देना सही समझा और ऐसा दिखाया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही हो| मन ही मन मैं भाभी को कोस रहा था की उन्होंने क्यों मुझे रोका, सारा मूड ख़राब कर दिया|

अगले दिन सुबह हुई, पर मैं अब भी भाभी से बात नहीं कर रहा था| उन्होंने एक-दो बार मुझे इशारे से बुलाया भी, पर मैंने गुस्से से उनके तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं| ये मेरा तरीका था उन्हें ये याद दिलाने का की कल रात को आपने मेरे साथ धोका किया! सुबह नाश्ता करने के पश्चात समय था भाभी और भैया को स्टेशन छोड़ने जाने का| जैसे ही पिताजी ने कहा की जल्दी तैयार हो जाओ, मेरा तो जैसे गाला ही सुख गया| मेरी शकल पे बारह बज गए और मैं अपने ही भावों को छुपा न पाया, पिताजी को मेरे भावों को पढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी पर उन्होंने मेरे इन भावों का अंदाजा ठीक वैसे ही लगाया जैसे की कोई आम इंसान किसी अपने के जाने पर लगाता है| उन्हें लगा की मुझे भाभी और भैया के जाने का बहुत दुःख हो रहा है, क्योंकि उनकी नजर में मैं दोनों को ही प्यार करता था| पर वे नहीं जानते थे की मेरा प्यार केवल भाभी के लिए था, भैया के साथ तो मैं केवल इसलिए खेलता था की कहीं उन्हें मेरी भाभी के प्रति भावनाओं पर शक न हो जाये| चन्दर भैया ने मुझे आगे बढ़ कर गले लगा लिया जैसे उन्हें भी यकीन था की पिताजी जो कह रहे हैं| भैया कहने लगे, " अरे मानु भैया दुखी न हो, हम फिर आएंगे| नहीं तो आप गावों आ जाना हमसे मिलने"| मेरी आँखों में आंसूं छलक आये थे और मेरी नजरें भाभी पर टिकी थीं| उनके चेहरे से साफ़ नजर आ रहा था की वे अंदर से कितनी उदास हैं| पर उन्हें अपने भावों को छुपाने की कला में महारत थी, इसलिए की इससे पहले की कोई उनके उदास चेहरे को देख पाता उन्होंने अपने आपको संभालते हुए एक झूठी मुस्कान दी| उनकी ट्रैन 2 बजे की थी और अब स्टेशन के लिए निकलने का समय था, मैंने जिद्द की, कि मैं भी जाऊँगा| पिताजी ने हार मानते हुए कहा ठीक है, हम पांचों घर से निकल चले| पिताजी और भैया आगे चल रहे थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, पीछे मैं, भाभी और उनकी गोद में नेहा थी| मैंने भाभी का हाथ पकड़ा हुआ था और जैसे-जैसे हम ऑटो रिक्शा स्टैंड तक पहुंचे मेरा दबाव उनके हाथ पर गहर्रा होता जा रहा था| ऐसा लगता था जैसे मैं उन्हें रोक लूँ और अपने साथ घर वापस ले जाऊँ| पिताजी ने रिक्शा किया और ऑटो रिक्क्षे में हम कुछ इस प्रकार बैठे:
सबसे पहले भाभी बैठीं फिर मैं अंदर घुसा फिर चन्दर भैया और मैं उनकी गोद में बैठ गया और अंत में पिता जी बैठ गए| मैंने फिर से भाभी का हाथ पकड़ लिया और आंसूं से भरी नजरों से उनकी और देखने लगा| अब उनसे भी बर्दाश्त करना मुश्किल था, उन्होंने अपने सीधे हाथ से मेरी आँख से आंसूं पोछे| अब उनकी आँखों में भी आंसूं छलक आये थे, अब मेरी बारी थी उन्हें पोछने की| मैंने उनके आंसूं पोछे और गर्दन न में हिलाते हुए नहीं रोने का संकेत दिया| पूरे रास्ते में उनका हाथ पोछते हुए भाई की गोद में बैठा था और अंदर ही अंदर अपने आप को कोस रहा था की क्यों मैंने रात में बेवकूफी की| पर अब पछताने से क्या होने वाला था, हम स्टेशन पर पहुंचे और उन्हें ट्रैन में बैठाया| कुछ ही क्षण में ट्रैन चल पड़ी और मैं स्टेशन पर खड़ा उन्हें अलविदा कहता रहा| यूँ तो बहुत से लोग स्टेशन आते हैं परन्तु मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी आत्मा का एक टुकड़ा मुझसे दूर जा रहे है और मैं उसे चाह के भी नहीं रोक सकता| मेरी बाद किस्मती की उस दिन के पश्चात न तो उनका दुबारा शहर आना हुआ और न ही हमारा गावों जाना हुआ|
KurtWild

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धीरे-धीरे मैं उन मीठी-मीठी सभी यादों को भूलता गया और अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गया| कई साल बीत गए और अब मैं नौंवी कक्षा में आ चूका था| मेरे स्कूल के दोस्तों से मुझे सेक्स का ज्ञान प्राप्त हुआ| मेरी कक्षा में मेरे दोस्त इतने हरामी थे की कक्षा में शिक्षिका के होते हुए भी अपना लंड पेंट से निकाल के एक दूसरे को दिखाया करते थे| परन्तु मुझे ये सब बड़ा ही अभद्र व्यवहार लगता था इसलिए मैंने इस अश्लील काम को कभी भी कक्षा में नहीं किया और यही कारन था की मैं कक्षा का सबसे भोला- भाला विद्यार्थी था| इस साल गर्मियों की छुटियों में पिताजी ने गावों जाने का प्रोग्राम बनाया था, पिताजी की बात सुनके मेरे मन में वही भूली बिसरी यादें वापस आ गईं और में सोचने लगा की क्या भाभी को वो सब याद होगा? मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न था, इतना सालों बाद वो हसीन पल आने वाला था| गावों जाने की बात से तो मैं फूला नहीं समां रहा था| अभी तक मैं अपनी इन भावनाओं को समझ नहीं सका था और न ही भाभी और मेरे इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पाया था| मेरे लिए तो जैसे एक सुन्हेरा सपना था, जो मेरे अनुसार कभी खत्म नहीं होना चाहिए|

खेर पिताजी ने गावों जाने की टिकट निकलवाई| मैं सारी रात नहीं सो पाया, दिमाग में बस भाभी का ख़याल ही आ रहा था| उनकी वो कातिलाना मुस्कान जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था| इस बार मैंने मन बना लिया था की इस बार मैं कोई मूर्खता नहीं दिखाऊंगा, उनसे नाराज हो के इस स्वर्णिम मौके को बेकार नहीं करूँगा| सारी रात दिमाग में रणनीतियां बनाता रहा और 4 बजे करीब मेरी आँख लगी|
गावों जाने में केवल एक दिन रह गया था और अब बारी थी पैकिंग करने की| मैंने ख़ुशी-ख़ुशी सारा सामान पैक किया और मेरा इतना उत्साह देख कर तो पिताजी भी चकित थे| उन्होंने माँ से मेरी तारीफ करते हुए कहा भी,

"क्या बात है लाड़ साहब, आज तो पैकिंग करने में बहुत उत्सुकता दिखा रहे हो? आज से पहले तो कभी इतनी उत्सुकता नहीं दिखाई, हमेशा माँ कहते-कहते थक जाती थी की अपने कपडे निकाल दे मैं पैक कर दूँ पर आपके कान पे जूं तक नहीं रेंगती थी|"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस हल्का सा मुस्कुरा दिया, अब उन्हें की पता की मेरे मन में क्या चल रहा है| माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा :

"अरे अब बड़ा हो गया है, जिम्मेदार हो गया है| अब से हमेशा ही ये हम सबका समान पैक करेगा| क्यों करेगा ना?"

अब मैं क्या कहता, बस इतना ही बोला :

"जी"!!!
खेर वो दिन आ गए जब हम गावों पहुंचे, हमारी बड़ी आओ-भगत हुई| गावों में जिन-जिन को पता चला की शहर से सुरेश और उनका परिवार आया है, वे सब हमसे मिलने आये सब लोग हमें घेर के बैठे थे जैसे कोई फ़िल्मी हस्ती आई हो| सभी का ध्यान पिता जी की बातों पर था और मैं तो बस भाभी की एक झलक देखने को तड़प रहा था| मेरी बड़की अम्मा (बड़ी चाची) गुड और पानी लाईं, पर मेरी नजर तो भाभी को ढूंढ रही थी| मैंने गुड उठाया और मुंह में डाला, और जैसे ही पानी का गिलास उठा के पानी का पहला घूट पिया मुझे भाभी की साडी दिखाई दी| मेरे दिल में जैसे गिटार बजने लगा, जैसे-जैसे वो नजदीक आने लॉगिन मेरे चेहरे पर मुस्कान बढ़ने लगी| उन्होंने सबसे पहले मेरी तररफ देखा और एक प्यार भरी मुस्कराहट दी| हाय!!!.. इसी मुस्कराहट के लिए तो मैं कितने दिनों से तड़प रहा था| उनके हाथ में एक बड़ी सी परत थी और उसमें पानी था, मैं सवालों भरी नज़रों से उन्हें देख रहा था क्योंकि मैं नहीं जानता था की इसका क्या करना है?
भाभी मई पास आई और नीचे झुक कर उन्होंने वो बर्तन ज़मीन पर रखा और और मेरे जुटे उतरने लगीं| मैंने उनसे खुद ही सवाल पूछा:

"भाभी इस बर्तन में पानी है, क्या मुझे नहलाने का इरादा है" ये कहते हुए मैंने हलकी से मुस्कान दी!

पिताजी ठीक मेरे पीछे ही बैठे थे, उन्होंने मेरी बात सुन ली और पीछे घूम के देखा और बोले :
"अरे नहलाने नहीं इसमें तेरे पैर धोएंगे, जिससे तेरी सारी थकान उतर जाएगी|"

मैं बड़ी हैरत वाली नज़रों से भाभी की और देखने लगा और अपने पैर भाभी के हाथ से ऐसे छुड़ाय जैसे वो मेरे पैर काटने वालीं हों| भाभी हैरान मेरी और देख रही थी, इससे पहले की वो कुछ कहती मैं स्वयं बोल पड़ा :
"नहीं भाभी मैं आपसे पैर नहीं धुल्वायंगे| आप मुझसे बड़े हो मैं आपको अपने पैर हाथ नहीं लगाने दूंगा|"

मेरी बात सुन भाभी और सब के सब सुन रह गए| दरअसल हमारे गावों में औरत को बहुत निचला दर्जा दिया जाता है, सामान्य भाषा में कहूँ तो उसे पैर की जूती समझा जाता है| परन्तु मेरा व्यवहार ऐसा नहीं है, शायद मेरे पिताजी के शिष्टाचार ने मेरी सोच इस प्रकार बदल दी| हालाँकि मेरे पिताजी की सोच मेरे विचारों के एक दम विपरीत है, उन्होंने मेरी माँ को शुरू से ही दबा के रखा है| मेरी इस सोच का श्रेय में अपनी माँ को देना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे सब के प्रति आदर भाव की शिक्षा दी|

खेर वहां सभी मर्द मेरे पिताजी की तारीफ करने लगे की उन्होंने क्या शिक्षा दी है| उनके शब्द और चहरे के भाव एक साथ मेल नहीं खा रहे थे और ये पिताजी भी समझ चुके थे| वहां जितनी औरतें थीं वे सब मेरी माँ के पास बैठीं थी और मेरी तारीफ कर रहीं थी| ये बात मुझे माँ ने रात्रि भोज के समय बताईं| भाभी मेरे इस बर्ताव से बहुत प्रभावित लग रहीं थी और उन्हें मुझ पे गर्व होने लगा था|

दोपहर को सब खाना खाने बैठे, आज मैं पहली बार भाभी के हाथ का खाना खाने जा रहा था| जब सब खाना खा चुके थे तब घर की औरतों के खाना खाने की बारी थी| भाभी ने सबसे पहले मेरी बड़की अम्मा और सबसे आखिर में अपने लिए खाना परोस कर बैठ गईं| मैं वहीँ पड़ी चारपाई पर चुप-चाप बैठा था और उन्हें प्यार भरी नज़रों से देखते हुए उनके ख्यालों में गुम था| भाभी ने आँख बचा के मुझे अपनी और तकते हुए पकड़ लिया था और एक हलकी सी मुस्कान उनके चेहरे पर छलक आई थी| जब उनका खाना खत्म हुआ तब वो बर्तन उठा कर बहार गईं, और हाथ मुंह धो कर मेरे पास चारपाई पर बैठ गईं| उन्होंने बड़े प्यार से मेरे गाल पर हाथ फेरा और आगे बड़के मेरे गाल को चूमा| फिर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा:
"खाना कैसा बना था?"
मैंने सबसे पहले उनके हाथों को पकड़ा और उन्हें चूमते हुए कहा:
"भौजी आज खाने में मज़ा आ गया|"
वो शर्मा गईं और बोली :
"और सुनाओ, क्या हाल है मेरे सबसे छोटे देवर का? पढ़ाई कैसी चल रही है? मुझे भूल तो नहीं गए?"
उन इस अंतिम प्रश्न से मेरे कान लाल होगये और मैंने केवल उनके अंतिम प्रश्न का ही उत्तर दिया:
"भौजी आपको कैसे भूल सकता हूँ! आप तो मेरी सबसे प्यारी भौजी हो!"
ये सुन के वो थोड़ा मुस्कुरा दीं| इससे पहले की मैं और कुछ कहता उनकी बेटी अर्थात मेरी भतीजी नेहा दौड़ती हुई अंदर आई| वो अभी-अभी स्कूल से लौटी थी, अब काफी बड़ी हो चुकी थी| भाभी ने मेरा उससे एक बार और परिचय कराया:
"मुन्नी ये तुम्हारे दिल्ली वाले चाचा हैं, पाओं छुओ|"
नेहा के चेहरे पर किसी भोले बच्चे जैसी मुस्कराहट थी और जैसे ही वो मेरे पाओं छूने के लिए झुकी मैं उसे रोक लिया| (मुझे किसी भी व्यक्ति से अपने पाओं छुआने का कोई शोक नहीं है|) खेर अब वो आके भाभी की गोद में बैठ गई इसलिए मैं अब न तो कुछ कह सकता था और न ही कुछ कर सकता था| फिर भी मैंने एक आखरी बार कोशिश करने की सोची और अपना वाही पुराना डायलाग मारा:
"भौजी मुझे नींद आ रही है|"
पर हाय रे मेरी किस्मत भाभी ने मेरे उस संकेत को जैसे नज़र अंदाज़ करते हुए, चारपाई से उठीं और दूसरी चारपाई पर मेरे बिस्तर लगा दिया| मैं मन मसोस के दूसरी चारपाई आर लेट गया, तब भाभी ने नेहा से कहा की चल तुझे खाना खिला दूँ और उसके बाद स्कूल की पढ़ाई भी तो करनी है|मेरे मन में उथल-पुथल मचने लगी|भाभी मुझसे भूलने की बात कर रहीं थी पर लग रहा थी की जैसे वो मुझे भूल गईं हो! क्या उन्हें कुछ भी याद नहीं? अपनी इसी उधेड़ बन में मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के करीब पांच बजे होंगे, पर मेरे मन में अभी भी उन सवालों का बवंडर उठा हुआ था| मैंने अपनी शंका दूर करने के लिए उनसे बात करना ठीक समझा और उन्हें इशारे से अपनी चारपाई पर बुलाया| उन्होंने हाथ के इशारे से कहा की अभी आती हूँ| तभी मैं उठ के अंदर गैलरी वाले कमरे में चला गया, दस मिनट बाद भाभी आईं और मेरे पास चारपाई पर बैठ गईं| मेरे अंदर इतना सहस नहीं हुआ की मैं उनसे ये पूछ सकूँ की उनके दोपहर वाले व्यवहार की वजह क्या थी?
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