कामुक कलियों की प्यास compleet

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jay
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कामुक कलियों की प्यास compleet

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कामुक कलियों की प्यास

ये कहानी पिंकी ने लिखी है मैं इसे आप के लिए पेश कर रहा हूँ
हैलो दोस्तो, आज आपकी दोस्त पिंकी आपके लिए एक कहानी लेकर आई है, इस कहानी में जरा भी मिलावट नहीं है, आपके सामने पेश कर रही हूँ, बस सेक्स के दौरान थोड़ा मसाला डाला है।
उम्मीद है आपको पसन्द आएगी, तो आइए कहानी के किरदारों से आपको मिलवा देती हूँ।
रचना गुप्ता… उम्र 20, फिगर 32-30-34 रंग दूध जैसा सफेद बदन, एकदम बेदाग। जब यह चलती है तो लड़कों की पैन्ट में तंबू और लबों पर ‘आह’ अपने आप आ जाती है।
इसकी छोटी बहन ललिता उम्र 18 फिगर 34-28-36..! यह भी अपनी बहन की तरह चाँद का टुकड़ा है। इसकी अदा पर भी सब फिदा हैं, यह जब चलती है तो इसकी पतली कमर बल खाती है और चूतड़ ऐसे मटकते हैं जैसे कोई स्प्रिंग लगी हुई हो।
लड़के तो क्या बुड्डों के लौड़े भी तनाव में आ जाते हैं।
इन दोनों का एक भाई है अमर उसकी उम्र 20 की है स्मार्ट.. हैण्डसम.. गुड लुकिंग.. बिल्कुल हीरो लगता है।
क्या बताऊँ, अमर की जितनी तारीफ करो, कम है, लड़कियाँ उसको देख कर उसकी हो जाने की कल्पना करती हैं।
दोस्तो, यह तो हो गया इनका परिचय। अब संक्षेप में आपको इनकी पिछली जिन्दगी भी बता देती हूँ।
इनके पापा जगन गुप्ता एक बहुत अमीर आदमी हैं, उनका कारोबार देश-विदेश में फैला हुआ है। वो अक्सर अपनी बीवी के साथ बाहर ही रहते हैं और ये सब एक आलीशान बंगले में रहते हैं।
दिन में घर के सारे काम नौकर करते हैं, एक औरत है जो खाना बनाती है पर घर में नहीं रहती है, रात का खाना बनाकर वो बाहर लॉन में एक कमरा है, वहाँ चली जाती है।
तो आप समझ ही गए होंगे कि ये तीनों एक घर में रहते हैं। अब एक साथ रहेंगे तो जवान जिस्म है कभी तो मन मचलेगा ही, तो आइए आपको बताती हूँ इनकी कहानी।
रचना- ललिता की बच्ची रुक.. मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी..!
ललिता भाग कर बेड पर चढ़ जाती है और रचना उसको वही। दबोच लेती है और उसके पेट पर बैठ जाती है।
रचना- अब बोल क्या बोल रही थी तू…!
ललिता- सॉरी दीदी.. अब नहीं बोलूँगी…!
अमर- यह क्या हो रहा है? तुम दोनों की मस्ती कभी ख़त्म नहीं होती क्या..! रचना हटो वहाँ से, स्कूल की छुट्टियाँ हैं, इसका मतलब यह नहीं कि तुम दोनों पूरा दिन मस्ती करो..!
रचना- बिग बी, आप भी तो हमारे साथ मस्ती करते हो ना…!
अमर- हाँ करता हूँ स्वीट सिस.. पर मजाक मस्ती का भी समय होता है और हर वक़्त लड़ना अच्छी बात नहीं है। अब मैं टीवी देख रहा हूँ कोई आवाज़ मत करना ओके..!
ललिता- ओके भाई.. आप जाओ हम चुपचाप रहेंगे।
अमर- आ जाओ साथ बैठ कर टीवी देखते हैं।
रचना- नहीं ब्रो, आप देखो हम यहीं हैं।
अमर वहाँ से चला जाता है और रचना लैपटॉप चालू करके नेट खोल लेती है।
ललिता- दीदी आज कुछ सेक्सी वीडियो देखें..! मज़ा आएगा…!
दोस्तों बीच में आने के लिए सॉरी.. मैं आपको बता दूँ ये दोनों बहनें तो हैं ही साथ में पक्की सहेलियाँ भी हैं और हर तरह की बातें एक-दूसरे से करती हैं, कभी-कभी नेट पे सेक्सी वीडियो भी देखती हैं।
आजकल 4 जी का जमाना है हर फ़ोन में नेट है। ये तो अमीर घर से हैं तो इनके लिए कंप्यूटर वगैरह तो आम बात है और ऊपर से इनके माता-पिता भी साथ में नहीं हैं, यानि कुल मिलाकर ये बिल्कुल खुले अंदाज की हैं।
रचना एक सेक्स साइट ओपन कर लेती है और दोनों सेक्सी वीडियो देखने लगती हैं, जिसमे एक काला आदमी एक लड़की की चूत में लौड़ा घुसा रहा था और झटके मार रहा था। वो लड़की ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी।
ललिता- दीदी कितना गंदा आदमी है दूसरा लगाओ…!
रचना दूसरा वीडियो लगा लेती है इसमें अमेरिकन लड़का-लड़की चुदाई कर रहे थे। दोनों आराम से उनको देख रही थीं। उनकी चूत पानी-पानी हो रही थी।
पंद्रह मिनट तक वे दोनों कई वीडियो देख चुकी थीं, पर अबकी बार जो वीडियो आया वो लैस्बो था।
रशियन स्कूल-गर्ल आपस में किस कर रही थीं और एक लड़की दूसरी के मम्मे दबा रही थी।
ललिता- ओ माय गॉड.. दीदी ये दोनों तो लड़की हैं..! क्या सच में दो लड़कियाँ आपस में ऐसा करती हैं?
रचना- करती हैं, तभी तो यह वीडियो बनाया गया है।
ललिता- ऐसा करने से मज़ा आता है क्या?
रचना- हम जब भी सेक्सी वीडियो देखते हैं हमें मज़ा आता है और हमारी पैन्टी गीली हो जाती हैं। आज हम आपस में करें? शायद ज़्यादा मज़ा आए…!
ललिता- हाँ दीदी मज़ा आएगा..! आप रूम लॉक कर आओ.. आज तो प्रेक्टिकल करेंगे ही …’वाउ’…!
रचना दरवाजा बन्द कर आती है, दोनों अपने पूरे कपड़े निकाल देती हैं। यह इनके लिए कोई नई बात नहीं थी। अक्सर एक दूसरे के सामने कपड़े बदलने के लिए ये नंगी हो चुकी थीं। नई बात तो आपके लिए है दोस्तो।
दोनों के नंगे जिस्म चमक रहे थे। रचना के गोरे बदन पर एकदम गोल आकार के 32″ के मम्मे और डार्क पिंक निप्पल, जो नुकीले तीर के जैसे खड़े थे, किसी को भी बस में करने को काफ़ी हैं।
ललिता का जिस्म भी एकदम गोरा है और उसके खड़े मम्मे जो 34″ के थे कयामत ढा रहे थे।
ललिता के भी निप्पल पिंक थे, पर लाइट पिंक। ललिता छोटी थी, पर उसके मम्मे रचना से बड़े थे, और रस से भरे हुए थे।
अब आपको रचना की चूत का नज़ारा दिखाती हूँ।
उसकी चूत पर हल्के रुई के जैसे मुलायम रोयें थे। एकदम क्लीन चूत नहीं थी, बस बहुत कम बाल थे, जिनके बीच में चूत के दरवाजे कस कर बंद थे, जैसे बरसों से किसी घर का गेट बन्द हों, उसे खोला ना गया हो।
एकदम टाइट चूत थी।
अब ललिता की चूत भी देख लो, यह एकदम क्लीन थी, जैसे आज ही शेव की हो। चूत की फाँक गुलाबी और चूत के एक फाँक पर एक तिल है।
सफ़ेद चमकती चूत पर ये काला तिल.. हय क्या गजब लग रहा था..! आप कल्पना करके देखो मन मचल ना जाए तो कहना…!
दोनों की कमर भी नागिन जैसी बल खाती हुई थी। उसके नीचे जो पिछाड़ी थी, उफ.. ! क्या कहने..! पाँच बार लंड का पानी निकल कर एकदम बेजान कर लो और फिर इस गाण्ड पर निगाह करो अगर लौड़ा झटके ना खाने लगे तो मेरा नाम बदल देना..!
हुस्न की अप्सराएं थीं दोनों बहनें।
दोनों बेड पे लेट गईं और एक-दूसरे को चूमने लगीं। रचना अपनी जीभ ललिता के मुँह में डाल देती है, ललिता उसको चूसने लगती है। एक हाथ से रचना उसके मम्मे दबाने लगती है, ललिता को मज़ा आने लगता है, वो भी अपने हाथ से रचना के चूतड़ों को दबा रही थी।
5 मिनट तक चूमाचाटी करने के बाद दोनों अलग होती हैं।
रचना को ललिता के मम्मे दबाने में बड़ा मज़ा आ रहा था, वो उसके चूचुक को मुँह में लेकर चूसने लगती है।
ललिता- सी..सी…उफ.. दीदी दर्द हो रहा है आप दाँत से काटो नहीं प्लीज़…!
रचना- आह.. ललिता मज़ा आ रहा है तेरे मम्मे कितने मस्त हैं… मैं इनको दबा-दबा कर फ़ुटबाल बना दूँगी..!
ललिता- आह.. दीदी दर्द होता है.. आराम से दबाओ ना.. और मुझे भी आपके मम्मे दबाने हैं।
रचना- नहीं तुम बस मेरे मम्मे चूसोगी.. वो भी आराम से.. मेरे मम्मे कड़क हैं तो दबाने से दुखते हैं..!
ललिता बड़े प्यार से रचना के मम्मे चूस रही थी और रचना उसकी गाण्ड को दबा रही थी।
रचना- तुम लेट जाओ, मैं तुम्हारी चूत में उंगली डालती हूँ, मज़ा आएगा।
ललिता- ओके दीदी, वैसे भी चूत में कुछ हो रहा है..!
रचना ललिता की चूत में अपनी ऊँगली घुसाने की कोशिश करती है पर ललिता को बहुत दर्द होता है।
ललिता- उऊ आ.. प्लीज़ नहीं, दीदी बहुत दर्द होता है..!
रचना- अरे क्या हुआ अभी तो अन्दर डाली भी नहीं और तुमको दर्द हो गया ..! उस क्लिप में तो वो आदमी कितना बड़ा लंड डाल रहा था…!
ललिता- मुझे नहीं पता.. मुझे दर्द हुआ..! बस आप ऊपर से ही इसको दबाओ..! उसी में मज़ा आ रहा है…!
रचना चूत को दबा दबा कर मज़ा ले रही थी। कभी रगड़ती तो कभी उसको दबाती..
दोनों एकदम गर्म हो गई थीं।
अब रचना ललिता के ऊपर आ गई और दोनों चूतों को आपस में मिला कर हिलने लगीं।
सेक्स की आग उनमें भड़क गई थी। वो एक-दूसरे को चूम रही थीं और चूत को रगड़ रही थीं।
रचना- आ.. आह.. ललिता मज़ा आ रहा है उफ़फ…!
ललिता- हाँ दीदी मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है उफ़.. मेरी ये निगोड़ी चूत में कुछ हो रहा है ..उ कककक…!
रचना- आह.. मुझे भी कुछ हो रहा है अये.. हय.. आह.. आई.. ईई…!
दोनों की चूत पानी छोड़ देती हैं। आज पहली बार दोनों बहनें झड़ी थीं। दोनों अलग हो जाती हैं।
ललिता- आह.. दीदी आज कितना मज़ा आया.. पता नहीं मेरी चूत से चिपचिपा सा क्या पानी जैसा निकला.. लेकिन जिन्दगी में ऐसा मज़ा कभी नहीं आया…!
रचना- मेरा भी पानी निकला है, यह शायद चूत का पानी है, हमने वीडियो में देखा था न.. वो आदमी उस लड़की के मुँह पर पानी गिरा रहा था.. यह वैसा ही पानी है..!
ललिता- दीदी हम रोज ऐसा करेंगे.. बहुत मज़ा आता है।
रचना- हाँ ललिता हम पहले वीडियो देखेंगे फिर वैसा ही करेंगे।
दोनों बहने नंगी ही बातें कर रही थीं। तभी बाहर से दरवाजे पर दस्तक हुई।
तो रचना ने कहा- दो मिनट रूको हम चेंज कर रहे हैं।
अमर- जल्दी करो.. मुझे तुमसे बात करनी है।
दोनों जल्दी-जल्दी कपड़े पहनती हैं। जल्दबाज़ी में ब्रा-पैन्टी नहीं पहनती, बस टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन कर दरवाजा खोल देती हैं।
अमर- क्या कर रही थीं दोनों.. कितनी देर लगा दी दरवाजा खोलने में..!

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Post by jay »


रचना- कुछ नहीं भाई.. आप कहो क्या बात करनी है..!
अमर- यार मैं बोर हो रहा हूँ चलो कोई गेम खेलते हैं..!
रचना- कौन सा गेम भाई…!
अमर- अब सारे सवाल यहीं पूछोगी क्या ? चलो मेरे रूम में ललिता आ जाओ…!
ललिता- आप जाओ मैं बाद में आती हूँ मुझे बाथरूम जाना है।
अमर के रूम में आकर रचना बेड पर बैठ जाती है। अमर उसके पास खड़ा हो जाता है। तब उसकी नज़र रचना के मम्मों पर जाती है। ब्रा ना होने की वजह से टी-शर्ट के गले से दूध जैसे सफ़ेद मम्मे साफ नज़र आ रहे थे।

ब्रा ना पहने हुए होने की वजह से टी-शर्ट के गले में से दूध जैसे सफेद मम्मे साफ नज़र आ रहे थे। अमर रचना के मस्त मम्मों को निहार रहा था, उसका लंड हरकत करने लगा था।
दोस्तों अमर जानता है कि रचना उसकी सग़ी बहन है, पर लौड़ा किसी रिश्ते को नहीं मानता है, उसे तो बस चूत से मतलब होता है। जब भी कोई मस्त माल दिखे, वो अपनी औकात में आ जाता है।
रचना को जब यह अहसास हुआ तो वो झट से खड़ी हो गई।
अमर- क्या हुआ? बैठो ना..!
रचना- भाई आपने बताया नहीं कि कौन सा खेल खेलेंगे?
तभी ललिता भी कमरे में आ गई।
ललिता- हाँ भाई मैं भी आ गई हूँ, अब बताओ क्या खेलें?
अमर- हम कुश्ती करेंगे.. मज़ा आएगा..!
रचना- क्या यह भी भला कोई खेल हुआ?
अमर- अरे बहुत मज़ा आएगा.. तुम दोनों एक तरफ़ और मैं अकेला.. हम बड़ा वाला गद्दा ज़मीन पर डाल लेंगे.. अगर तुम दोनों ने मुझे पकड़ लिया और मेरी नाक ज़मीन पर लगा दी, तो तुम जीत जाओगी और अगर मैंने तुम्हारी लगा दी.. तो मैं जीत जाऊँगा.. ओके?
ललिता- ओके.. भाई.. लेकिन हम जीत गए, तो हमारा क्या फायदा.. पहले वो तो बताओ..!
अमर- हारने वाला.. जीतने वाले को, जो वो माँगे, देना पड़ेगा..!
रचना- वाउ..! तब तो हम ही जीतेंगे और आप हमें शॉपिंग करवाओगे.. ओके..!
अमर- ओके.. लेकिन मैं जीता तो?
ललिता- भाई आप हारने वाले हो, बस अगर ग़लती से जीत भी गए तो तब बता देना कि आपको क्या चाहिए.. ओके..!
अमर- ओके.. पर कोई चीटिंग नहीं करना. सिर्फ नाक ही टिकानी है बाकी बदन से कोई मतलब नहीं होगा..!
रचना- ओके भाई..!
जैसे ही अमर ने 1-2-3 बोल कर ‘स्टार्ट’ बोला, दोनों बहनें उसके पैरों को पकड़ कर खींचने लली, अमर गद्दे पर गिर गया।
तब रचना अमर को धक्का देकर पेट के बल करने की कोशिश करती है ताकि उसकी नाक ज़मीन पर लगा सके।
मगर अमर भी कहाँ कम था, उसने रचना को बांहों में भर लिया, उसके मम्मे अमर के सीने में धँस गए और अमर ने उसे कस कर दबोच लिया।
अमर का लौड़ा तन कर सीधा रचना की चूत पर सैट हो गया।
रचना ने पैन्टी नहीं पहनी थी और निक्कर भी पतली थी तो उसको लंड का अहसास सीधा अपनी चूत पर हो रहा था।
उधर ललिता रचना को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। रचना तो लंड के अहसास से गनगना गई थी, उसने अपने आपको ढीला छोड़ दिया था और अमर भी लंड को चूत पर रगड़ रहा था।
ललिता- दीदी आप कोशिश करो ना छूटने की.. नहीं तो भाई जीत जाएँगे..!
रचना ने अपनी ताक़त लगाई और ललिता ने अमर के हाथ खोल दिए, रचना आज़ाद हो गई और उसने जल्दी से उठ कर अमर के पैर पकड़ लिए।
तब उसकी नज़र अमर के लौड़े पर पड़ी जो एकदम अकड़ा हुआ था।
अमर ने सूती पायजामा पहना हुआ था और शायद अन्दर कुछ नहीं पहना था, क्योंकि पायजामे पर अमर के लंड से पानी की बूँद निकली थीं, जो बाहर साफ दिख रही थीं।
रचना ने पैर पकड़ने के बहाने से लंड को छू लिया, जिससे उसको बड़ा मज़ा आया।
इधर अमर भी मज़े ले रहा था।
करीब 15 मिनट तक इनका ये खेल चलता रहा, अमर कभी रचना के मम्मों को दबाता, कभी अपने होंठ मम्मों पे रख देता, तो कभी रचना की गाण्ड को हाथ से दबा देता, कभी-कभी ललिता के मम्मों को भी दबाता, कभी उसको नीचे पटक कर अपना लौड़ा उसकी चूत पर रगड़ता।
आख़िरकार अमर का लौड़ा बेहद गर्म हो गया, वो समझ गया कि अगर ये खेल यूं ही चलता रहा तो उसका पानी छूट जाएगा और उसने जानबूझ कर उनको मौका दिया और अपनी नाक जमीन पर टिका दी।
दोनों बहनें खड़ी होकर कूदने लगी- हम जीत गए…हम जीत गए…
अमर- अच्छा बाबा… मैं हारा.. पर रूको मैं दो मिनट में बाथरूम जाकर आया.. ज़ोर की ‘सूसू’ आई है..!
अमर भाग कर बाथरूम में चला गया और अपने लण्ड, जो उसकी सगी बहनों के बदन से रगड़ कर खड़ा हुआ था, को निकाल कर मुठ्ठ मारने लगा, एक मिनट में ही उसके लौड़े ने पानी छोड़ दिया।
इधर रचना और ललिता खुश थीं कि वो जीत गई हैं और शॉपिंग की बात कर रही थीं कि क्या-क्या लेना है।
अमर बाहर आया तो दोनों की बातें चालू थीं।
अमर- क्या बातें हो रही हैं दोनों में.. मैं ज़्यादा कुछ नहीं दिलाऊँगा.. बस एक-एक ड्रेस दोनों ले लेना.. ओके..!
ललिता- नहीं भाई आपने कहा था, जो हम चाहें आप दिलाओगे.. अब आप चीटिंग कर रहे हो..!
रचना- हाँ ब्रो.. यह गलत बात है.. हाँ.. जो हम चाहेंगे, आपको दिलवाना होगा..!
अमर- ओके.. मेरी बहनों अब तैयार हो जाओ, दोपहर का खाना भी हम बाहर ही खाएँगे और शॉपिंग भी हो जाएगी।
रचना- वाउ.. भाई यू आर बेस्ट ब्रो इन दि वर्ल्ड..!
ललिता- नो.. भाई.. शाम को जाएँगे ना.. प्लीज़ दोपहर को मुझे अपनी सहेली के यहाँ जाना है, आज वहाँ लंच के लिए मुझे बुलाया है, बाकी सब सहेलियाँ भी आ रही हैं।
अमर- नो.. अभी मतलब अभी.. तुमको नहीं जाना, तो रचना को बता दो तुम्हें क्या चाहिए हम ले आयेंगे.. ओके..!
ललिता- ओके.. आप जाओ और दीदी जो आपको अच्छा लगे आप ले आना।
रचना- हाँ ललिता, मैं ले आऊँगी।
ललिता- तो चलो.. हम तैयार हो जाते हैं। आप भाई के साथ चली जाना, मैं अपनी सहेली के यहाँ निकल जाऊँगी..!
रचना- मैं सुनीता को बता कर आती हूँ कि लंच ना बनाए हम बाहर जा रहे हैं..!
अमर- ओके.. अब जाओ, मैं भी रेडी हो जाता हूँ।
दोनों वहाँ से निकल जाती हैं और अमर भी बाथरूम में फ्रेश होने चला जाता है।
सुबह 11 बजे ललिता अपनी सहेली के पास चली गई और अमर भी रचना को लेकर शॉपिंग के लिए बाइक से निकल गया।
अमर ने नीली जींस और सफ़ेद टी-शर्ट पहनी थी और रचना ने काली टी-शर्ट और नीली जैकेट और काली जींस पहनी थी।
बाइक पर वो अमर से चिपक कर बैठी हुई थी।
आज पहली बार उसको अमर भाई से ज़्यादा कुछ महसूस हो रहा था। एक तो उसने ललिता के साथ लैस्बो किया और फिर कुश्ती के दौरान जो हरकतें अमर ने की वो उसको बार बार बेचेन कर रही थीं। उसने भी तो अमर के लंड को कई बार छुआ था।
अमर- हाँ.. तो रचना बताओ..! कहाँ चलें.. शॉपिंग के लिए..!
रचना- भाई सिटी सेंटर से अच्छी जगह क्या होगी.. लंच भी वहीं कर लेंगे।
अमर- हाँ.. यही ठीक रहेगा।
रचना एकदम कस कर अमर को पकड़े हुई थी। उसके मम्मे अमर की पीठ में धंसे हुए थे और उसके दोनों हाथ अमर की नाभि पर थे। जैसे ही स्पीड ब्रेकर आते.. वो जानबूझ कर अपना हाथ लौड़े पर ले जाती।
उसकी इस हरकत से अमर के लौड़े में भी तनाव आ गया था, पर जींस के कारण इतना पता नहीं चल रहा था।
जैसे ही बाइक सिटी सेंटर के पास रुकी, एक कार भी ठीक उनके बराबर में आकर रुकी।
रचना भी नीचे उतर गई, अमर ने बाइक को साइड में लगाया, तभी कार से एक 22 साल का लड़का उतरा जो काफ़ी हैण्डसम था।
उसे देख कर अमर चौंक जाता है और जब उसकी नज़र अमर पर पड़ी, तो वो भी आँखें फाड़े अमर को देखने लगा।
अमर- हे.. आई डोंट विलीव शरद.. तू कब आया यार..!
शरद- अबे साले मैं तो कब से यहीं हूँ तेरा कोई अता-पता ही नहीं है। पूरे 5 साल बाद मिला है तू..!
अमर- रचना, यह मेरा बेस्ट-फ्रेंड है शरद.. और दोस्त, यह मेरी छोटी बहन रचना है..!
शरद- हाय रचना.. यू आर लुकिंग वेरी नाइस यार..!
रचना- थैंक्स ..!
शरद ऊपर से नीचे रचना को निहार रहा था और रचना भी उसकी नज़र को देख रही थी।
तभी अमर ने कहा- यार हम लोग शॉपिंग के लिए आए हैं। तुम इतने समय बाद मिले हो तो साथ में लंच करेंगे.. ओके .!
और वे एक-दूसरे को अपने फोन नम्बर दे देते हैं।
शरद- सॉरी यार.. अभी तो एक बहुत जरूरी काम के सिलसिले में आया हूँ। अब तो तेरे घर आकर ही कभी खाऊँगा..!
अमर- ओके दोस्त.. जरूर आना.. मैं तुम्हारा वेट करूँगा..!
शरद वहाँ से चला गया और वो दोनों भी अन्दर चले गए।
अमर- हाँ तो मेरी बहना क्या चाहिए.. बताओ?
रचना- अभी तो देख रही हूँ भाई।
अमर- ये देखो, यह ब्लू टी-शर्ट कितनी अच्छी है ना.. यह ले लो..!
रचना- नहीं भाई ये तो बकवास है.. मुझे नहीं लेनी..!
अमर- ओके तुम्हें जो अच्छी लगे, वो ले लो और ललिता के लिए भी ले लेना, मैं थोड़ा उस तरफ अपने लिए कुछ देखता हूँ। तुम्हें जो लेना है ले लो ओके..!
रचना अपने और ललिता के लिए दो ड्रेस ले लेती है और दूसरी साइड जाकर ब्रा और पैन्टी भी ले लेती है।
अमर भी कुछ शर्ट और जींस ले आता है।
अमर- क्यों रचना हो गया सब.. या कुछ बाकी है..!
रचना- हाँ हो गया भाई.. आप मुझे पैसे दे दो, मैं काउंटर पर बिल दे देती हूँ।
अमर- साथ चल रहे हैं ना.. मैंने भी तो कपड़े लिए ही लिए हैं.. सब कपड़े एक जगह कर दो, मैं बिल दे देता हूँ।
रचना ने ब्रा-पैन्टी ली थी, इसलिए वो नहीं चाहती थी कि अमर को पता चले, पर अमर के ज़िद करने पर उसने सारे कपड़े एक जगह कर दिए।
काउंटर पर जब एक-एक करके सारे कपड़ों के कोड मारे जा रहे थे, तब अमर की नज़र रेड ब्रा-पैन्टी के सेट्स पर गई।
उसके बाद और भी ब्रा-पैन्टी सामने आईं, पिंक और ब्लैक एक ब्राउन भी थी।
रचना अमर से अपनी नज़रें चुरा रही थी और अमर भी उसकी तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा था। वहाँ से निकलकर दोनों रेस्तरा में बैठ जाते हैं।
अमर- क्या खाओगी रचना..!
रचना- जो आपको अच्छा लगे..।
अमर- नहीं तुम बताओ, जब कपड़े अपनी पसन्द के लिए हैं, तो खाना भी तुम ही बताओ..!
रचना- इश्श.. भाई.. सॉरी.. प्लीज़ मत सताओ ना आप..!
अमर- ओके एक शर्त पर..! अगर तुम अपने सारे कपड़े जो लिए हैं, एक-एक करके मुझे पहन कर दिखाओगी तो..!
रचना- ओके.. भाई घर जाकर पक्का दिखाऊँगी..!
अमर- देखो बाद में नाटक मत करना.. वरना मैं तुमसे बात भी नहीं करूँगा।
रचना- हाँ भाई.. कहा ना, दिखा दूँगी..!
अमर- आज जो जो लिया है.. सब.. ओके..!
रचना को अमर की बात समझ नहीं आ रही थी कि आख़िर वो चाहता क्या है।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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रचना- हाँ भाई हाँ.. अब क्या लिख कर दूँ..!
अमर की आँखों में एक चमक सी आ गई और ना चाहते हुए भी उसका हाथ अपने आप लंड पर चला गया, लेकिन जल्दी ही वो संभल गया।
अमर ने खाने का ऑर्डर कर दिया, दोनों ने आराम से खाना खाया और कुछ इधर-उधर की बातें करने लगे।
लंच के बाद वो वहाँ से घर के लिए निकल पड़े।
घर पहुँच कर रचना ने एक मादक अंगड़ाई लेते हुए कहा- ओह भाई बहुत खाना खा लिया.. अब तो नींद आ रही ही.. आआ उउउ..!

रचना कुछ नहीं बोलती और बैग उठा कर अपने रूम में चली जाती है। अमर भी उसके पीछे-पीछे रूम में चला जाता है।
रचना बैग को साइड में रख कर बेड पर गिर जाती है।
अमर- यह क्या है? अब तुम दिखा रही हो या नहीं..!
रचना- दिखाऊँगी न..! भाई थोड़ा आराम तो करने दो..!
अमर- ठीक है, करो आराम, मैं जाता हूँ और अब मुझसे बात मत करना.. ओके..!
रचना- ओह भाई.. आप तो नाराज़ हो गए.. अच्छा बाबा.. यहाँ बैठो, मैं अभी दिखाती हूँ आपको !
रचना बैग से अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई और कपड़े पहन कर बाहर आई।
रचना- यह देखो, कैसी लग रही हूँ भाई, मैं?
अमर- अच्छी लग रही हो, अब दूसरा ड्रेस भी पहन कर दिखाओ।
रचना- भाई मैंने एक ही ड्रेस लिया है, दूसरा ललिता का है.. ओके..!
अमर- मैं जानता हूँ कि दूसरा ललिता का है, पर तूने अपने लिए और भी कुछ लिया है न..! वो पहन कर दिखाओ।
रचना- आर यू क्रेजी..! आप क्या बोल रहे हो..! मैंने और क्या लिया है?
अमर- अंडर-गारमेंट्स लिए हैं न..!
रचना- तो आप का मतलब मैं आपको वो पहन कर दिखाऊँ.. भाई आप ठीक तो हो न..!
अमर- इसमें ठीक होने की क्या बात है, तुमने वादा किया था ओके.. और उसमें क्या है?
रचना- भाई मुझे शर्म आ रही है, आप कैसी बात कर रहे हो?
अमर- क्यों.. स्वीमिंग के समय में भी तो सिर्फ़ अंडरवियर में तुम्हारे सामने होता हूँ और तुम भी तो स्विम सूट में मेरे सामने आती हो..!
रचना- वो दूसरी बात है भाई, ऐसे बिकनी में आना अच्छा नहीं लगता न…!
अमर- अरे पागल.. बड़ी-बड़ी फिल्म स्टार बिकनी में पोज़ देती हैं और 5 साल पहले याद है हम जंगल में घूमने गए थे, तब बारिश में भीग गए थे और सारे कपड़े गीले हो गए थे, तब मॉम ने हमें नंगा ही गाड़ी में बैठाया था। दूसरे कपड़े भी नहीं थे हमारे पास..!
रचना- भाई उस समय हम छोटे थे न.. तो चलता है..!
अमर- तो अब कौन से बड़े हो गए और क्या फ़र्क पड़ गया है, अब यार तुम तो कहती हो कि मुझे फिल्म में हीरोइन बनना है, ऐसे शरमाओगी तो तुम हीरोइन कैसे बन पाओगी?
रचना- हाँ भाई.. मेरा बहुत मन है कि मैं हीरोइन बनूँ..।
अमर- तेरा काम बन सकता है, आज जो मेरा दोस्त मिला था न.. शरद..! वो दुबई में ही बड़ी-बड़ी फिल्मों में पैसा लगाता है, उसकी बहुत पहचान है। अमिताभ से लेकर शाहिद कपूर तक और कटरीना से लेकर सोनाक्षी तक सब के साथ उसका उठना-बैठना है।
रचना- ओह.. रियली भाई..! आप उससे बात करो न.. प्लीज़ मुझे भी कोई रोल दिलवा दे..!
अमर- ओके मैं बात कर लूँगा, पर पापा को क्या कहोगी?
रचना- पापा की टेंशन मत लो, मैं उनको मना लूँगी, बस आप एक बार बात तो करो अपने दोस्त से..!
अमर- ओके कर लूँगा.. यार, अब तुम जल्दी से बिकनी पहन कर आओ, मैं भी तो देखूँ कि मेरी बहन कैसी दिखती है।
रचना शरमाति हुई बाथरूम में जाकर ब्लैक वाला सैट पहन कर बाहर आई।
अमर तो नजरें गड़ाए उसकी गदराई जवानी को देखने लगा- दूधिया बदन पर काली ब्रा में उस के मम्मे बाहर निकलने को बेताब थे और उसकी पैन्टी चूत को छुपाने में नाकाम हो रही थी।
अमर का लंड पैन्ट में तन गया था।
रचना- ऐसे क्या देख रहे हो भाई?
अमर- देख रहा हूँ कि मेरी बहन कितनी सुंदर है।
रचना- रियली भाई.. थैंक्स..!
अमर- ब्रा-पैन्टी में इतनी खूबसूरत लग रही हो, अगर ये भी ना हो तो क्या मस्त लगोगी..!
“धत्त भाई.. आप भी..!” बोल कर रचना भाग जाती है और बाथरूम बन्द कर लेती है।
अमर- रचना क्या हुआ यार.. प्लीज़ बाहर आओ न..!
रचना- बस भाई.. मैंने आपको दिखा दिया, अब मैं कपड़े पहन कर आ रही हूँ।
अमर- क्यों वो रेड, पिंक और ब्राउन भी तो हैं वो भी पहन कर दिखाओ न..!
रचना- दो ललिता के लिए हैं, मेरी नहीं हैं भाई..!
अमर- अच्छा रेड वाली तो दिखाओ न..!
रचना- नहीं भाई अब आप अपने दोस्त से बात करो पहले.. उसके बाद आप जो कहोगे मैं दिखा दूँगी।
अमर- सच्ची..! जो मैं कहूँ.. वो दिखाओगी तुम?
रचना- हाँ भाई पक्का वादा है, पर आप बस अपने दोस्त से बात करो।
अमर- ओके.. मैं अभी उसको फ़ोन करके कल मिलने को बोलता हूँ, अब तो आ जाओ बाहर..!
रचना- भाई आप जाओ मैं थक गई हूँ बाथ लेकर सोऊँगी अब..!
अमर- ओके मैं अभी जाता हूँ और शरद से बात करता हूँ।
अमर वहाँ से अपने रूम में आया और शरद को फ़ोन करके ‘बहुत जरूरी काम है’ कह कर शाम को मिलने को बुलाया।
शरद से बात करने के बाद अमर नंगा हो गया और अपने लंड को सहलाने लगा।
अमर- ओह माई स्वीट सिस्टर, तेरे मम्मे क्या कमाल के हैं, उफ.. तेरा गोरा बदन, तेरी चूत भी कितनी प्यारी होगी.. आह आ आ.. साली बहुत नखरे हैं तेरे.. अब देख कैसे तुझे मजबूर करता हूँ नंगी होने के लिए।
रचना के नाम की मुठ मार कर अमर शान्त हो गया और सो गया।
शाम को अमर तैयार होकर बाहर निकला और घर से थोड़ी दूर एक स्टोर के पास खड़ा हो गया। करीब 5 मिनट में शरद भी आ गया। अमर कार देखकर झट से अन्दर बैठ गया, शरद ने कार को आगे बढ़ा देता दिया।
शरद- हाँ भाई.. अब बोल ऐसा कौन सा जरूरी काम है जो तूने अर्जेंट बुलाया है?
अमर- अरे यार तू गाड़ी चला, बस मैं बताता हूँ सब..!
शरद- वैसे जाना कहाँ है, यह तो बता यार..!
अमर- जाना कहीं नहीं है, बस कार को हाइवे पर ले ले.. लॉन्ग-ड्राइव भी हो जाएगी और बात भी..!
शरद- अच्छा ठीक है, अब तू बात तो शुरू कर यार..!
अमर- यार तेरे तो फिल्म वालों से बहुत कनेक्शन हैं, मेरी बहन के लिए बात करनी है तुझसे..!
शरद- क्या..! फिल्म में तेरी बहन को रोल चाहिए..! कौन सी बहन को..!
अमर- यार सुबह तो देखा है रचना को..!
शरद- अच्छा.. अच्छा कैसा रोल चाहिए.. उसे..! वो तो यार अभी बच्ची है।
अमर- उसको हीरोइन का रोल करना है।
शरद- तेरा दिमाग़ खराब है क्या..! हीरोइन का रोल नहीं होता, वो फिल्म की मेन किरदार होती है, और दूसरी बात अभी यार वो बहुत छोटी है।
अमर- अरे यार तुम बात को समझ नहीं रहे हो.. रोल-वोल कुछ नहीं दिलवाना है, उसको बस ये तसल्ली देनी है कि तुम उसको हीरोइन बना दोगे।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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शरद- ऐसा क्यों.. यार अपनी ही बहन को धोखा दे रहे हो, पूछ सकता हूँ क्यों..?
अमर- अरे यार धोखा नहीं दे रहा.. बस उसको बकरा बना रहा हूँ।
शरद- अरे यार वो लड़की है, उसको बकरा नहीं बकरी बनाओ हा हा हा हा..!
अमर भी हँसने लगता है और अपने मन में कहता ही बकरी नहीं उसको तो मैं घोड़ी बनाऊँगा..!
शरद- क्या सोच रहा है..!
अमर- कुछ नहीं यार.. बस ऐसे ही..!
शरद- अच्छा यह बता कि मेरे बोलने से वो मान जाएगी क्या?
अमर- नहीं यार वो बहुत स्मार्ट है, ऐसे नहीं मानेगी.. तू थोड़ी एक्टिंग करना.. बस आज रात को तू मेरे घर आ जा, बाकी क्या करना है ये तू खुद सोच लेना..!
शरद- ओके, मैं 9 बजे आऊँगा लेकिन यार एक बात कहूँ मुझे उसकी कुछ पिक लेनी होगी, ताकि उसको लगे कि रियल में उसको फिल्म में रोल दिलवा रहा हूँ।
अमर- हाँ क्यों नहीं यार.. ले लेना..!
शरद- यार वो तेरी सग़ी बहन है.. डर रहा हूँ कुछ गलत ना हो जाए..और कहीं तुमको बुरा ना लग जाए।
अमर- क्यों मुझे को क्यों बुरा लगेगा यार..!
शरद- अब यार तू तो जानता ही है न.. कि आजकल की हीरोइन कैसी होती हैं.. उसी टाइप के पिक लेने होंगे..!
अमर- तो ले लेना न..! यार मुझे कुछ बुरा नहीं लगेगा, मैं तो खुद उसको बोल कर आया हूँ ये सब बातें कि फिल्म लाइन में शर्म नाम की कोई चीज नहीं होती है, वो रेडी है यार..!
शरद- यार एक बात समझ नहीं आ रही.. तू आख़िर चाहता क्या है.. साफ-साफ बता न..! अपनी सग़ी बहन को मेरे सामने अध-नंगा करने को भी तैयार है, यार मुझे ये सिर्फ़ बकरा बनाने की बात तो नहीं लगती.. बात कुछ और ही है..!
अमर- अरे यार अब तुझसे क्या छिपाऊँ, तू अध-नंगी की बात कर रहा है, मेरा बस चले तो उसको पूरी नंगी कर दूँ.. पागल हो गया हूँ मैं उसकी जवानी देख कर..!
शरद- क्या तू होश में तो है..! वो तेरी सग़ी बहन है यार..!
अमर- तो क्या हुआ दुनिया में बहुत से बहन-भाई चुदाई करते हैं.. मैं कर लूँगा, तो कौन सी आफ़त आ जाएगी..!
शरद- यार तेरे मन में यह ख्याल आया कैसे और इस गंदे काम में तेरी मदद करके मुझे क्या मिलेगा..!
!
अमर- मेरे मन में ये कैसे आया, इस बात को गोली मार और रही तेरे फायदे की बात..! तो यार तू भी चूत का स्वाद चख लेना..!
यह सुनकर शरद की आँखों में चमक आ गई क्योंकि वो तो सुबह ही रचना पर फिदा हो गया था और उसे इस बात का अफ़सोस भी था कि अमर कैसा भाई है, जो अपनी बहन को चोदना चाहता है, पर दिल में ख़ुशी भी थी कि उसको एक कच्ची कली बिना मेहनत के चोदने के लिए मिल रही है।

यह सुनकर शरद की आँखों में चमक आ गई क्योंकि वो तो सुबह ही रचना पर फिदा हो गया था और उसे इस बात का अफ़सोस भी था कि अमर कैसा भाई है जो अपनी बहन को चोदना चाहता है, पर दिल में ख़ुशी भी थी, कि उसको एक कच्ची कली बिना मेहनत के मिल रही है।
अमर- क्या सोचने लगा यार? अभी से मेरी बहन के ख्यालों में खो गया क्या?
शरद- नहीं यार… वो बात नहीं है, पहले में रचना से मिलूँगा, उसके बाद ही कुछ बता पाऊँगा कि तुम्हारा प्लान कितने दिन में पूरा होगा और हाँ, वहाँ उसके सामने मैं जैसा भी बर्ताव करूँ, तू ज़्यादा बीच में मत बोलना, ओके..!
अमर- ओके.. यार बस तू उसको पटा लेना, एक बार वो ‘हाँ’ कर दे, तो मज़ा आ जाएगा।
शरद- अब चलें, बात बहुत हो गई है..!
अमर- हाँ चलो.. अभी ललिता भी नहीं होगी.. तो आराम से उससे बात हो जाएगी।
शरद- यह ललिता कहाँ है?
अमर- मेरी छोटी बहन ललिता अपनी सहेली के यहाँ गई हुई है, रात तक ही आएगी, तब तक रचना को पटाते हैं।
शरद ने हाँ में सर हिलाया।
शाम के 6 बजे दोनों अमर के घर पहुँच गए। अमर अपने कमरे में शरद को बैठा कर खुद रचना के रूम में गया।
उस समय रचना तैयार हो रही थी, शायद सोकर उठी होगी और नहा कर तैयार हो रही थी, उसके लंबे बाल भीगे हुए थे, वो उनको सुखा रही थी।
रचना- अरे भाई आप.. आओ न..! कहाँ चले गए थे आप.. मैं आपके रूम में गई, तो आप नहीं थे..!
अमर- मेरी स्वीट सिस्टर, तेरे लिए ही बाहर गया था। कोई अच्छा सा ड्रेस पहन कर मेरे रूम में जल्दी से आ जा। शरद आया है तुमसे मिलने ! मैंने उससे तेरे लिए बात कर ली है।
रचना- ओह.. वाउ.. भाई आप कितने अच्छे हो.. मैं बस अभी आई..!
अमर- कोई अच्छी सी ड्रेस पहनना.. वो तेरा इंटरव्यू लेंगा। पहले तो उसने मना कर दिया था, पर मैंने दोस्ती का वास्ता दिया, तब यहाँ आया है। अब बाकी तुम संभाल लेना..!
रचना- ओके भाई, अब आप जाओ वो अकेले बैठे होंगे। मैं बस 5 मिनट में तैयार होकर आई.. !
अमर वापस शरद के पास गया और उसे समझा दिया कि अब संभाल लेना.. वो आती होगी।
तकरीबन दस मिनट बाद रचना कमरे में दाखिल हुई तो दोनों उसको देख कर बस देखते ही रह गये..
रचना ने गुलाबी जालीदार टॉप पहना हुआ था, जिसमें से उसकी काली ब्रा भी साफ दिखाई दे रही थी और उसका गोरा बदन भी दिख रहा था।
नीचे एक काले रंग की शॉर्ट-स्कर्ट जो जरूरत से कुछ ज़्यादा ही छोटी थी। यूँ समझो कि बस चूत से कोई 2-3 इंच नीचे तक..
अगर कोई थोड़ा सा झुक कर देखे तो उसकी पैन्टी भी दिखाई दे जाए।
उसकी गोरी-गोरी जांघें क़यामत ढहाने को काफ़ी थीं।
शरद- ओह वाउ… यू लुकिंग गॉर्जियस..!
रचना- थैंक्स शरद जी..!
अमर भी बस उसकी खूबसूरती को देखता ही रह गया। दोनों के लौड़े पैन्ट में तन गए थे।
शरद- आओ रचना.. यहाँ बैठो..!
रचना उन दोनों के सामने कुर्सी पर बैठ जाती है, जैसे उसका इंटरव्यू होने वाला हो।
अमर- रचना मैंने बड़ी मुश्किल से शरद को यहाँ बुलाया है, ये कुछ पूछना चाहते हैं..!
शरद- अब बस भी करो, तुम ही बोलते रहोगे या मुझे भी बोलने दोगे?
अमर- सॉरी यार..!
शरद- देख यार बुरा मत मानना, वैसे तो हम दोस्त हैं, पर काम के मामले में किसी तरह का दखल पसंद नहीं करता हूँ। अब चुप रहो, मुझे रचना से बात करनी है।
रचना- आप क्या पूछना चाहते हो?
शरद- सबसे पहली बात तो यह कि इतनी कम उम्र में तुमको हीरोइन बनने का ख्याल कैसे आया?
रचना- मेरी उम्र कम कहाँ है, पूरी 18 की हो गई हूँ, आलिया भट्ट भी तो इसी ऐज की होगी..! वो कैसे बन गई?
शरद- ओहो आलिया की बराबरी कर रही हो जान.. उसका बाप डायरेक्टर है, समझी तुम..!
रचना चुपचाप उसकी तरफ देखने लगी।
“ओहो.. सॉरी मैंने ‘जान’ बोल दिया.. दरअसल यह मेरी आदत है कि काम के समय बात करते समय सामने वाले को ‘जान’ बोलता हूँ।”
रचना- कोई बात नहीं आपने जान ही तो बोला है न…! और रही बात मेरे हीरोइन बनने की, तो आपकी इतनी पहचान कब काम आएगी..! प्लीज़ शरद जी प्लीज़..!
अमर- हाँ यार, मेरी बहन के लिए तुमको इतना तो करना ही होगा..!
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शरद- यार अमर, प्लीज़ चुप रहो, हीरोइन बनना इतना आसान नहीं है एक्टिंग, डांस सब आना चाहिए और सबसे जरूरी बात फिल्म लाइन में बहुत कुछ करना होता है.. तुम मेरा मतलब समझ रहे हो न?
अमर कुछ बोलता, इससे पहले रचना बोल पड़ी- शरद जी डांस मुझे बहुत अच्छा आता है, रही बात एक्टिंग की, आप अभी आजमा लो और जो आप कह रहे हो न.. मैं सब समझ रही हूँ, आप एक मौका तो दो..! प्लीज़ प्लीज़..!
शरद- ओके कल मेरे साथ स्टूडियो चलो, वहाँ कुछ पिक लेंगे.. मैं किसी अच्छे डायरेक्टर से बात करूँगा। रही बात फाइनेंस की, वो मैं कर दूँगा, पर स्क्रीन टेस्ट के बाद ही मैं कुछ बता पाऊँगा..!
रचना- ओहो थैंक्स.. थैंक्स.. शरद जी, आप बहुत अच्छे हो, थैंक्स..!
इतना बोलकर रचना उठ कर शरद से चिपक जाती है, शरद अपने हाथ उसकी कमर पर रखना चाहता था, पर उसने ऐसा किया नहीं, बस उसके नरम मम्मे और गर्म जिस्म का अहसास लेता रहा। अमर पीछे से अंगूठा दिखा कर शरद को विश कर रहा था कि प्लान काम कर रहा है।
शरद- अरे अरे, यह क्या कर रही हो, ओके.. अब मैं जाता हूँ, लेट हो रहा हूँ।
अमर- ओके.. मैं तुमको बाहर तक छोड़ आता हूँ..!
रचना- आप खाना हमारे साथ खाइए न.. प्लीज़..!
शरद- अभी बिज़ी हूँ.. फिर कभी जरूर आऊँगा पक्का..!
शरद बाहर की तरफ़ चल देता है, अमर भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ता है।
दो कदम चलकर वो वापस मुड़ता है और रचना के पास आकर अमर को कहता है, “तुम दो मिनट बाहर जाओ, मुझे रचना से कुछ जरूरी बात करनी है।
अमर बिना कुछ बोले बाहर चला जाता है।
शरद- रचना तुम बहुत सुन्दर हो, एक हीरोइन का सुन्दर होना बहुत जरूरी है पर एक बात ध्यान से सुनो, आजकल की फिल्मों में बोल्ड सीन होते हैं, मुझे गलत मत समझना पर आज रात अच्छे से सोच लो फिर कल जवाब देना और अमर को इस बारे में मत बताना..!
रचना- शरद जी मैं जानती हूँ आप बेफ़िक्र रहो, मैं कैसा भी सीन कर सकती हूँ..!
शरद- अभी तुम जोश में बोल रही हो, कल तक सोच लो.. ओके..!
रचना- इसमें सोचना क्या..! मेरी आज भी ‘हाँ’ है और कल भी ‘हाँ’ ही रहेगी..!
शरद- ओके.. अब एक काम बताता हूँ कोई अच्छी फिल्म देखो और उसके कुछ डायलोग याद करो, कल टेस्ट देना है न.. कोई दमदार गुस्से वाले सीन याद करना, मैं देखना चाहता हूँ तुम गुस्से में कैसी दिखती हो। कल सुबह दस बजे तैयार रहना ओके.. बाय..!
रचना- ओके शरद जी, थैंक्स अगेन..!
शरद बाहर चला जाता है। घर के बाहर जाकर अमर खुश होकर शरद को बोलता है, “यार तुम कमाल हो.. इतनी आसानी से उसको मना लिया..!”
शरद- इतना खुश मत हो यार, अभी तो शुरूआत है इतनी जल्दी वो मानने वाली नहीं, तभी तो उसको फोटो शूट का कहा है। अब तुम सुबह तक ऐसी कोई हरकत मत करना जिससे बनता काम बिगड़ जाए। मैं कल सुबह दस बजे आ रहा हूँ.. ओके…! बाकी बातें कल बताऊँगा।
शरद के जाने के बाद अमर अन्दर आया, रचना ने उसको भी ‘थैंक्स’ बोला और आगे की तैयारी के लिए अपने कमरे में चली गई। अमर ने भी उससे ज़्यादा बात नहीं की।
रात को ललिता भी आई।
अमर ने रचना को मना कर दिया था कि ललिता को अभी कुछ मत बताना, तो उसने ललिता को कुछ नहीं बताया, बस सुबह की शॉपिंग के बारे में बात की।
सब रात का खाना खाकर सो गए, पर रचना को तो डायलोग्स याद करने थे, तो वो मूवी देख रही थी।
रात को करीब एक बजे वो भी सो गई।
सुबह के 8 बजे रचना की आँख खुली, वो बाथरूम में चली गई, एक घंटा बाद वो एकदम तैयार होकर बाहर आई।
तब तक ललिता और अमर भी उठ गए थे। रचना ने सिंपल सा ड्रेस पहना था ब्लू-जींस और क्रीम टी-शर्ट।
वो नहीं चाहती थी कि ललिता को शक हो।
अमर अपने कमरे से बाहर आया तो रचना हॉल में सोफे पर बैठी थी।
अमर- गुड-मॉर्निंग बहना.. जल्दी उठ गईं और यह क्या पहना है, कल जो पहना था, वैसा ही कुछ पहनती तो ज़्यादा खूबसूरत लगती, शरद आता ही होगा..!
रचना- सस्स चुप रहो.. ललिता सुन लेगी..! मैंने बैग में अच्छे कपड़े डाल लिए हैं, फोटो शूट के दौरान वही पहन लूँगी !
वो दोनों बात कर रहे थे, तभी ललिता आ गई। वो दोनों चुप होकर नाश्ता करने लगे।
उस दौरान रचना ने अमर से कहा- मेरी सहेली का फ़ोन आया था, मैं वहाँ जा रही हूँ।
ललिता इस बात पर ज़्यादा गौर नहीं किया और बस नाश्ता करती रही।
करीब 9.45 को शरद का फ़ोन आया कि वो बस 5 मिनट में आ रहा है।
अमर ने उसे ‘ओके’ बोला और अमर और रचना घर के बाहर आ गए।
इतने में शरद की कार भी आ गई, शरद नीचे उतरा तो अमर उसे एक तरफ़ ले गया।
अमर- कहाँ जाना है हमें?
शरद- हमें नहीं, बस रचना मेरे साथ जाएगी स्टूडियो में, वहाँ उसके थोड़े फोटो निकाल कर वापस ले आऊँगा, बाद में तुमको फ़ोन करूँगा कि कुछ सेक्सी पिक चाहिए, तुम उसको बोलना और घर में ही उसके पिक लेने के बहाने जो चाहो करना, पर मुझे भूलना नहीं यार..!


शरद की बात सुनकर अमर के चेहरे पर ख़ुशी आ जाती है, अमर- अरे यार, कैसी बात कर रहा है मैं तुमको कैसे भूल जाऊँगा और
वाह यार मान गया तेरे दिमाग़ को, मज़ा आ गया, अब तुम लोग जाओ मुझे भी एक काम से जाना है, बाद में बात करते हैं।
शरद रचना को लेकर वहाँ से चला जाता है।
शरद- इस बैग में क्या है रचना?
रचना- फोटो निकालने के लिए अलग-अलग ड्रेस चाहिए न..! इसलिए मैंने अपने अच्छे-अच्छे ड्रेस ले लिए हैं..!
शरद- गुड, वेरी स्मार्ट-गर्ल, पर जान.. कपड़ों का बंदोबस्त मैंने कर लिया है, चलो देखते हैं तुम क्या लाई हो..! अगर कुछ अच्छे ड्रेस हुए तो वो भी पहन लेना..!
कार सड़क पर दौड़ती रही, दोनों के बीच ज़्यादा बात नहीं हुई, बस सामान्य बातें ही होती रही।
लगभग 15 मिनट बाद कार एक बड़े से विला के सामने रुकी।
रचना- यह कहाँ आ गए हम, आप तो स्टूडियो लेकर जा रहे थे न?
शरद- अरे यार, मैं कोई छोटा-मोटा आदमी तो हूँ नहीं, जो किसी भी स्टूडियो में तुमको ले जाऊँ, यह मेरा विला है और इसमें स्टूडियो है। हम यहीं फोटो निकालेंगे।
रचना- ओके शरद जी.. जैसी आपकी मर्ज़ी..!
अन्दर जाकर शरद ने रचना को एक बड़े से कमरे में बैठाया। रचना को अजीब सा लगा कि इतने बड़े घर में कोई नहीं दिखाई दे रहा है।
शरद- क्या सोच रही हो रचना?
रचना- कुछ नहीं.. आपका घर इतना बड़ा है और यहाँ कोई नहीं है.. क्या आप अकेले रहते हो?
शरद- अरे यार, पूरी फैमिली दुबई में है और यहाँ सब नौकर संभालते हैं। आज मैंने सब को छुट्टी दे दी है ताकि आराम से तुम्हारा टेस्ट ले सकूँ। यह लो पेप्सी पियो, चिल मारो यार..!
रचना- ओके, जैसा आप ठीक समझो।
शरद- रचना आओ, अब काम शुरू करते हैं। बाद में डायरेक्टर साब भी आते होंगे तुम्हारा स्क्रीन टेस्ट वो ही लेंगे। मैं बस तुम्हारी अच्छी सी पिक निकाल कर उनको दे दूँगा।
रचना यह बात सुनकर खुश हो जाती है।
शरद- अपनी ड्रेस दिखाओ, कौन-कौन सी है, मैं बताता हूँ वो पहनो..!
रचना बैग से कपड़े निकाल कर शरद के सामने रख देती है। उन सब को शरद गौर से देखता है, उनमें कुछ जींस टी-शर्ट और स्कर्ट थे।
शरद- नहीं यार इनमें तो वो बात नहीं कि कोई हीरोइन पहने !
रचना- सॉरी शरद जी, मुझे यही अच्छे लगे तो मैं ले आई। अब आप बताओ मैं क्या पहनूँ?
शरद ने उसे एक लिबास देकर कहा- वो सामने बाथरूम है, पहन कर आओ, मैं कैमरा सैट करता हूँ।
रचना ने उस ड्रेस को पहन लिया।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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