** काली चिड़िया का रहस्य **

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Jemsbond
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** काली चिड़िया का रहस्य **

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** काली चिड़िया का रहस्य **

दोपहर के एक बजे का समय था । मैं मोतिया बगीची के सामने बने शिव मन्दिर की दीवाल से पीठ टिकाये सिगरेट के कश लगा रहा था ।
इस समय मेरे दिमाग में जेनी को लेकर भारी उठापटक चल रही थी । जेनी आस्ट्रेलिया की रहने वाली थी और एक कार दुर्घटना में मारी गयी थी । हम दोनों में तीन साल तक अच्छी मित्रता रही थी । आज सुबह ही जेनी की एक अन्य फ़्रेंड एकेट्रीना ने मुझे फ़ोन पर यह दुखद समाचार सुनाया था ।
मरना जीना जिंदगी का अभिन्न अंग है । इससे कोई बच नहीं सकता । जिसने जन्म लिया है । उसे मरना भी होगा । पर यहाँ बात कुछ अलग थी । जेनी स्वाभाविक मौत नहीं मरी थी । उसकी अकाल मृत्यु हुयी थी । परालौकिक विग्यान के मेरे शोध अनुभव के अनुसार ऐसी मृत जीवात्माओं के सूक्ष्म शरीर को यमदूत लेने नहीं आते । और न ही समय से पहले यम दरबार में उसकी पेशी होती है ।और इस तरह वो नरक या अन्य पशुवत योनियों में भी नहीं जा सकता । जब तक कि उसकी आयु का समय पूरा नहीं हो जाता ।

ऐसी हालत में दो ही रास्ते बचते हैं । या तो जेनी अपने सूक्ष्म शरीर के साथ भटकेगी । और अपने जुङे संस्कार के अनुसार किसी ऐसी गर्भवती महिला की तलाश में होगी । जिसे गर्भधारण किये पाँचवा महीना चल रहा हो । तो वो ईश्वरीय नियम के अनुसार उस गर्भ में प्रवेश कर जायेगी । लेकिन इसके लिये भी उसका मनोबल मजबूत होना चाहिये ।

दूसरे वो उन प्रेतों के चंगुल में भी फ़ँस सकती है । जो ऐसी ही मृतात्माओं की तलाश में रहते हैं । जिनकी अकाल मृत्यु हुयी हो तब वे उसे डरा धमकाकर लोभ लालच से उसमें प्रेत भाव प्रविष्ट कर देते हैं । और फ़िर वह जीवात्मा दस से लेकर बीस हजार सालों तक प्रेत जीवन जीने पर मजबूर हो सकती है ।

मेरे दिमाग में जो उठापटक चल रही थी । उसकी वजह ये थी कि जेनी की मृत्यु को बीस दिन हो चुके थे । और मैं लाख कोशिशों के बाद भी उससे कनेक्टिविटी नहीं जोङ पा रहा था ।बाबाजी इस समय अपने एक अनुष्ठान में लगे हुये थे । और वैसे भी उनका कहना था कि सच्चे साधक को कभी भी प्रकृति के कामों में दखल नहीं देना चाहिये । इससे ईश्वरीय नियम की अवहेलना होती है ।

लिहाजा मैं इस तरह की हरेक बात को लेकर बाबाजी के पास जाने लगा । तो वो रुष्ट भी हो सकते थे । लेकिन क्योंकि जेनी की बात अलग थी । वह मेरी मित्र थी । इसलिये मैं बार बार उससे कनेक्टिविटी जोङने की कोशिश कर रहा था । और इस कोशिश में नाकामयाव था । इसका सीधा सा मगर मेरे लिये हैरतअंगेज मतलब था कि जेनी प्रथ्वी के अलावा किसी दूसरे लोक में थी ।

और ये इस बात का संकेत भी था कि वो किन्ही मक्कार किस्म के प्रेतों के चंगुल में भी हो सकती है ।अपने इसी प्रकार के विचारों में मैं खोया हुआ था कि मेरे सेलफ़ोन की घन्टी बजी ।

दूसरी तरफ़ से कोई रेनू नामक महिला बोल रही थी । जो अर्जेंट ही मुझसे मिलना चाहती थी । मेरे बारे
में उसे किसी उसके ही परिचित ने बताया था । मैं मन्दिर के सामने बनी संगमरमर की सोफ़ानुमा कुर्सियों पर पेङ की छाया में बैठ गया । और सिगरेट सुलगाकर हल्के हल्के कश लेने लगा ।
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कोई दस मिनट बाद ही मेरे सामने ई बाइक पर एक शानदार जानदार युवती आयी । उसने काले गोल शीशों का
खूबसूरत चश्मा पहन रखा था । और उसके गोद में बेल्ट के सहारे टिका हुआ लगभग तीन साल का बच्चा था । उसने एहतियात के तौर पर अपना सेलफ़ोन हाथ में लेकर एक नम्बर डायल किया । तुरन्त मेरे फ़ोन की घन्टी बज उठी । उसके चेहरे पर सुकून के भाव आये ।

वह मुझे देखकर औपचारिकता से मुस्करायी । और हाथ बङाती हुयी बोली - हेलो मि. प्रसून ! आय एम रेनू । क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ ?

- फ़रमाईये रेनू जी ! उसे बैठने का इशारा करते हुये मैंने कहा ।

रेनू की उस डौल सी बच्ची का नाम डौली था । रेनू उस बच्चे को लेकर ही परेशान थी । दरअसल पिछले छह महीने से डौली एक अजीव व्यवहार करती थी । वह आम बच्चों की तरह खेलने कूदने के बजाय यन्त्रवत उस काली चिङिया को देखती रहती थी । जो हर समय उसके इर्द गिर्द ही रहती थी ।

रेनू एक तरह से उस काली चिङिया से बेहद आतंकित थी । उसने कई बार उस चिङिया को भगाने और मारने की भी कोशिश की थी । पर सफ़ल नहीं हो पायी थी । फ़िर किसी के कहने पर उसने एक दो ओझा तान्त्रिक से भी सम्पर्क करके इस समस्या से निजात पाने की कोशिश की थी ।

लेकिन बाद में स्वयँ रेनू को लगा कि ओझाओं के पास जाने से उसकी समस्या और भी खराब हो गयी थी । बच्ची पहले की अपेक्षा अधिक कमजोर और सुस्त रहने लगी थी । रेनू ने आसपास देखते हुये इशारे से बताया कि यही वो दुष्ट चिङिया है । जिसने मेरा जीना हराम कर रखा है । मेरी बच्ची कहीं भी क्यों न जाय । ये साये की तरह साथ ही रहती है । उसकी बङी बङी काली आँखो से आँसू बह निकले ।

मैंने रेनू से ध्यान हटाकर चिङिया को देखा । चिङिया निकट के ही एक पेङ की डाल पर बैठी थी । और आमतौर पर जंगलों में पायी जाने वाली काली चिङिया की नस्ल की थी ।

डौली यन्त्रचालित सी चिङिया की तरफ़ घूम गयी थी और उसे ही देख रही थी ।

मैंने एक कंकङ उछालकर चिङिया की तरफ़ फ़ेंका । पर चिङिया अपने स्थान से हिली तक नहीं ।

निश्चय ही ये एक गम्भीर मामला था । और मेरे गणित के अनुसार तो एक बच्चे की जिंदगी ही दाव पर लगी थी । वो चिङिया दरअसल चिङिया थी ही नहीं । किसी चिङिया के मृत पिण्ड को उपयोग करने वाली कोई प्रेतात्मा थी । और जिसका किसी प्रकार से रेनू या डौली से कोई भावनात्मक या बदला लेने का उद्देश्य लगता था ।

अगर मैं उस पहले से ही मरी हुयी चिङिया को मार भी देता । तो क्या फ़र्क पङना था । प्रेतात्मा फ़िर किसी मृतक पिंड का इस्तेमाल कर लेती । और समस्या ज्यों की त्यों ही रहती ।

मैंने उस प्रेतात्मा से कनेक्टिविटी की कोशिश की । पर सफ़लता नहीं मिली । दुबारा अधिक प्रयास करने पर चिङिया थोङी सी विचलित लगी । फ़िर उसने आसमान की तरफ़ चोंच उठाकर इस तरह खोली । बन्द की । मानों पानी की बूँद पी रही हो । मेरा ये पहले से बङा प्रयास भी विफ़ल हो गया ।

- नगर कालका । मेरे मुँह से स्वत ही निकल गया ।

- क्या ? रेनू अचकचा कर बोली ।

- कुछ नहीं । प्लीज कुछ अपने बारे में । कुछ अपने पति के बारे में बताईये । और साफ़ साफ़ बताईये । छुपाने की चेष्टा ना करें ।

- मेरे बारे में मैं क्या बताऊँ । मेरे पति सुरेश बंगलौर में एक साफ़्टवेयर कम्पनी में काम करते हैं । और मैं यहीं पास के शहर भीमनगर की रहने वाली हूँ । और यहाँ अपने पति के पुश्तैनी मकान में रहती हूँ । मैं और मेरी बच्ची के अलावा उस घर में कोई नहीं रहता..और हाँ..। वह कुछ सकुचाते हुये बोली - मेरी लव मैरिज हुयी है ।

- लव मैरिज को कितना समय हुआ है ?

- यही कोई आठ महीने । उसके मुँह से निकल गया । फ़िर उसे अपनी गलती का अहसास हुआ । और वो नजरें झुकाकर जमीन की तरफ़ देखने लगी ।

- मैंने आपसे पहले ही कहा था कि प्लीज साफ़ साफ़ बताना । यदि मेरे द्वारा सहायता प्राप्त करना चाहती हो ।

- वो दरअसल....। और फ़िर वह बिना रुके सब बताती चली गयी ।

अब आधा रहस्य मैं समझ चुका था । मेरी निगाह स्वत ही चिङिया की तरफ़ चली गयी । वह मिट्टी के खिलौने की भाँति पेङ पर स्थिर बैठी थी ।

रेनू एक तरह से सुरेश की दूसरी पत्नी थी । सुरेश की पहली पत्नी का नाम पूर्णिमा नैय्यर था ।
आज से कोई दस महीने पहले जब पूर्णिमा गर्भवती थी । और प्रसव का समय बेहद नजदीक था । सुरेश और पूर्णिमा में रेनू को लेकर झगङा हुआ था । सुरेश पिछले पाँच सालों से रेनू को बतौर प्रेमिका की हैसियत से रखता था । और उनके सवा दो साल की डौली नाम की एक बच्ची भी थी । इस झगङे में सुरेश ने पूर्णिमा को धक्का मार दिया । जिससे पूर्णिमा जमीन पर गिर पङी । और उसे अत्यधिक रक्तस्राव होने लगा । यह देखकर सुरेश घबरा गया । और आनन फ़ानन पूर्णिमा को अस्पताल में भर्ती कराया गया । जहाँ एक मृत पुत्र को जन्म देकर पूर्णिमा स्वयँ भी चल बसी । लेकिन मरने से पूर्व उसे यही बताया गया कि उसको एक बेटा हुआ है । और उसकी तसल्ली हेतु दूसरे शिशु को उसे दिखाया भी गया ।

- आप अभी । मैंने रेनू से कहा - सुरेश को फ़ोन करके पूछिये कि पूर्णिमा की शव यात्रा के समय उसकी अर्थी के पीछे पीछे सरसों के दाने शमशान तक फ़ैलाये गये थे । या नहीं । मेरा ख्याल है । ऐसा नहीं किया गया । और मि. सुरेश ने बेहद लापरवाही का परिचय देते हुये पूर्णिमा की आत्मिक शान्ति हेतु भी कोई प्रयास नहीं किया ।

रेनू फ़ोन डायल करने लगी । और दस मिनट बाद सिर उठाकर उसने मेरी तरफ़ देखा । उसके चेहरे पर निराशा के भाव थे । वह झुँझलाई हुयी सी और घबराई हुयी सी थी ।

रेनू ने जबाब मेरी अपेक्षा के अनुसार ही दिया था । सुरेश इस तरह की बातों को दकियानूसी और अंधविश्वासी मानता था । और दरअसल क्योंकि ज्यादातर वह बाहर ही रहता था । इसलिये उसके यहाँ ज्यादा परिचित भी नहीं थे । दूसरे किसी ने भी इस तरफ़ उसका ध्यान नहीं दिलाया था । साफ़ साफ़ बात थी कि शवयात्रा के समय इस तरह की जानकारी वाला कोई पुरुष या महिला वहाँ मौजूद नहीं थी ।
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और इस छोटी सी गलती ने पूर्णिमा नैय्यर को बहुत लम्बे समय तक " खतरनाक पिशाचनी " के समकक्ष " नगर कालका " प्रेतनी बना दिया था । अब मौका चूक जाने के बाद क्या हो सकता था ।

नगर कालका प्रेतनी दरअसल वह जीवात्मा होती है । जिसकी गर्भिणी अवस्था में मृत्यु हुयी हो । यह प्रेतात्मा क्योंकि शिशु के अत्यधिक मोह में प्राण त्यागती है । इसलिये यदि इसकी आत्मिक शान्ति हेतु समुचित प्रयास न किये जाँय । तो यह खतरनाक नगर कालका बन जाती है । और अपने घर के आसपास ही खन्डहर या पुराने वृक्षों पर निवास करती है ।
इसकी सबसे बङी पहचान ये होती है कि आसपास के वासी अनोखी घटनाओं का शिकार होने लगते है । जैसे किसी के द्वारा मामूली बात पर फ़ाँसी लगाकर । जहर खाकर या खुद को जलाकर सुसाइड कर लेना । अचानक अकारण लोगों में ऐसा झगङा होना कि गोली चलने की नौबत आ जाये । बच्चे अनोखी बीमारियों का शिकार होने लगते हैं । उनका व्यवहार भी अजीव हो जाता है । ये विवाहित या नव विवाहित युवतियों पर सबसे ज्यादा अटैक करती है । और उसकी वजह से वे युवतियाँ निर्लज्ज वैश्या के समान व्यवहार करने लगती हैं ।

वे अपने स्तनों या योनि का ( कभी कभी खुले आम भी देखने में आया है ) भोंङा प्रदर्शन करती है । और उनका पति या कोई अनजाना अग्यानवश आकर्षित होकर उनसे सम्भोग करे । तो वे उस वक्त एक बलात्कारी महिला का सा व्यवहार करती हैं । ऐसा अनुभव होता है । मानों कोई शक्तिशाली हस्तिनी औरत पुरुष से बलात्कार कर रही हो ।

अक्सर इसकी शिकार औरतें खुले आम अपना ब्लाउज आदि फ़ाङ देती हैं और अन्य अधोवस्त्रों के भी चिथङे चिथङे कर डालती है । अत्यधिक गम्भीर हालत होने पर उनको रस्सियों से बाँधकर रखना पङता है । और लोग इस समस्या की असली वजह नहीं जान पाते ।

इसकी वजह ये है कि इस तरह के पारलौकिक ग्यान के जानने वाले अक्सर निर्जन स्थानों पर रहना पसन्द करते हैं । और आम लोग उन्हें कम ही जानते हैं । तब ऐसी अवस्था में मरीज को अस्पताल लाया जाता है । जहाँ नींद के इंजेक्शनों और ग्लुकोज की वोतलों द्वारा समस्या को हल करने की कोशिश की जाती है । और वास्तव में अभी तक के चिकित्सा विग्यान के पास इससे ज्यादा हल है भी नहीं । और ये कामयाब भी हो जाता है । क्योंकि मरीज को चार छह महीने तक नशीली दवाओं से लगभग बेहोशी की हालत में निष्क्रिय रखा जाता है । और नगर कालका ऐसी हालत में उससे काम नहीं ले सकती । अतः वह उस शरीर को छोङकर अन्य को आवेशित करना शुरू कर देती है । और उसके छोङते ही प्रभावित युवती स्वस्थ होने लगती है । उसके परिवार के लोग समझते हैं कि ये डाक्टरी इलाज से ठीक हो गयी । डाक्टर इस तरह की परेशानियों को दमित यौन इच्छाओं से हुआ रोग हिस्टीरिया बताते हैं ।

इसके अतिरिक्त पक्षी भी बिना कारण मर जाते हैं । और नगर कालका के क्षेत्र में कुत्ते बेहद दुखित होकर रोते हैं । यानी मामला काफ़ी गम्भीर था ।

- मेरी फ़ीस । मैंने अपलक अपनी और देखती हुयी रेनू से कहा - एक लाख रुपये होगी । और किसी बच्चे की जिन्दगी के सामने एक लाख रुपये का कोई महत्व नहीं..यू नो..?

उसके चेहरे पर एक आह सी नजर आयी । उसने कसमसा कर पहलू बदला । और विचलित होकर बोली - लेकिन इस समय मेरे पास तीस हजार से अधिक नहीं हैं । सुरेश इस बात पर विश्वास नहीं करेगा । और मेरे पास पैसे प्राप्त करने का और कोई जरिया भी तो नहीं है ।

मैंने जानबूझकर उसके शर्ट से बाहर झाँकते अधखुले गोरे स्तनों को निहारा । और कहा - तुम दूसरे तरीके से भी पेमेंट कर सकती हो । यदि तुम चाहो तो ...?

मेरी बात समझकर वह पाँच मिनट के लिये विचलित हो गयी । उसने एक निगाह काली चिङिया को देखा । फ़िर अपनी फ़ूल सी प्यारी बच्ची डौली को देखा । और इसके बाद ऊपर से नीचे तक मुझे देखा । और फ़िर उसके चेहरे पर बेबसी के बाद कठोर निर्णय के भाव आये । और वह फ़ैसला करती हुयी बोली - ओ के मैं तैयार हूँ ।
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- नगर कालका । मेरे मुँह से स्वतः ही निकला । वह फ़िर असमंजस से मुझे देखने लगी ।
दरअसल उससे सम्भोग करने का मेरा कैसा भी और कोई भी इरादा नहीं था । लेकिन जबसे रेनू मेरे सामने आयी थी । मुझे एक ही बात की हैरत थी कि वह दिमागी स्तर पर एकदम सचेत रहती थी । इतने समय में तीन बार मैंने चुपचाप उसका दिमाग रीड करने की कोशिश की । लेकिन उसके सचेत रहने के स्वभाव के कारण नहीं कर पाया ।
किसी के दिमाग पर अधिकार जमाने के लिये या प्रविष्टि करने के लिये उसका विचलित या अस्थिर होना आवश्यक होता है ।
इस तरह जब मेरे तीन प्रयास विफ़ल हो गये । तो मैंने ये आलवेज सफ़ल फ़ार्मूला अपनाया । जो कामयाब रहा । मैं उसके दिमाग से पिछले दस बरसों का प्रिंट लेने में कामयाब हो गया ।
इस सम्बन्ध में एक पौराणिक बात याद आती है । श्रीराम जब रावण का बध कर रहे थे । तो सबको आश्चर्य था कि राम रावण के ह्रदय को लक्ष्य करके बाण क्यों नहीं मारते । तब राम ने इसका रहस्य बताया था कि रावण के दिल में सीता बसी हुयी है । और सीता के ह्रदय में स्वयँ मैं । इस तरह बाण मारने पर राबण के वध के साथ साथ पूरी सृष्टि का ही विनाश हो जाता । इसलिये राम बार बार उसके सिर काटकर उसे विचलित और अस्थिर करने की कोशिश कर रहे थे । ताकि सीता की तरफ़ से उसका ध्यान हट जाय । और राम की यही युक्ति काम आयी थी ।
इसी तरह बेहद सचेत रहने वाली रेनू भी मेरे द्वारा एकाएक सेक्स की बात पर विचलित हो ही गयी । अब मेरी समझ में यह बात भी आ रही थी कि नगर कालका ने अपनी असली दुश्मन रेनू के बजाय मासूम डौली को क्यों निशाना बनाया था । रेनू के हर समय सचेत रहने के स्वभाव के कारण ही वह उसे प्रेत भाव से प्रभावित नहीं कर सकी । अगर उसने ज्यादा कोशिश भी की होगी । तो रेनू को अधिक अधिक से अधिक अपना सिर भारी भारी लगा होगा । जिसे उसने चाय काफ़ी आदि गर्म पेय पीकर दुरुस्त कर लिया होगा । और बार बार के प्रयास से हारकर नगर कालका ने अपनी सौतन के बजाय डौली को अपने कहर का शिकार बना लिया ।
अब मुझे रेनू की सहायता करने में बेहद समस्या नजर आ रही थी । दरअसल इस किस्म के केसों में मैं बाबाजी की कोई मदद नहीं ले सकता था । बाबाजी इस तरह के साधारण भूत प्रेतों के मामले से बेहद चिङते थे । उन्हें केवल सूक्ष्म लोकों की यात्रा और आत्मग्यान के रहस्यों को खोजना पसन्द था ।
क्योंकि भूत प्रेतों के मामलों से संसार भरा पङा है । इसलिये ये साधारण ओझाओं तान्त्रिकों का काम था । मैं भी इस मामले से पल्ला झाङ लेना चाहता था कि तभी मेरा ध्यान मासूम डौली पर चला जाता था । जो पूरी तरह से आवेशित होकर नगर कालका के कब्जे में थी । और इस हालात में मेरे गणित के अनुसार दो महीने से लेकर अधिकतम दो साल तक ही और जी सकती थी ।
इस बात में एक और रहस्य था । जो इतने बीच में मुझे पता चल चुका था । जिस तान्त्रिक से रेनू ने डौली का इलाज कराया था । उसने रेनू के साथ धोखा करते हुये उल्टे बच्ची को एक धीमी और अनजानी मौत की और धकेल दिया था ।

और इसकी वजह ये थी कि वो वेचारा नहीं जानता था कि जिसे साधारण भूतनी समझकर वो डौली का इलाज कर रहा था । वो वास्तव में नगर कालका थी । और नगर कालका को डील करना उस साधारण से तान्त्रिक के बस की बात नहीं थी ।
उस पर नगर कालका स्वयँ तान्त्रिक की पत्नी पर आवेशित हो गयी । और तान्त्रिक से अमानवीय सहवास करते हुये उसने तान्त्रिक को वेताल सिद्धि में सहायता करने का आश्वाशन दिया । और इस तरह रक्षक ही भक्षक बन गया । और वह डौली को कोई लाभ पहुँचाने के स्थान पर उल्टे नगर कालका की सहायता करने लगा ।
यकायक मैंने डौली को बचाने का निर्णय ले लिया । मैंने रेनू की तरफ़ देखा । वह इस ऊहापोह से गुजर रही थी कि मेरा अगला कदम क्या होगा । और वह भारी असमंजस में थी । वास्तव में मेरा अगला कदम और पहला कदम नगर कालका से तान्त्रिक का सम्बन्ध तोङना था । जो उसे बाहरी तौर पर सहायता दे रहा था । फ़िर उस बच्ची के ऊपर से वह तन्त्र हटाना था । जो उसे निरन्तर मौत के मुँह में ढकेल रहा था । फ़िर आखिरी काम उस नगर कालका से इस परिवार का पीछा छुङाना था । जिनमें पहले दो काम में यहीं कर देना चाहता था । मैंने देखा कि मन्दिर के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था ।
डौली यन्त्रवत सी चिङिया को देख रही थी । रेनू बेहद परेशानी से मेरी तरफ़ देख रही थी ।
मैंने एक नयी सिगरेट सुलगायी । और रेनू को अपने पास आने का इशारा करते हुये कहा - प्लीज कम
हियर ..।
वह अचकचाती सी मेरे पास आकर बैठ गयी । मैंने उसे एक इशारा किया । और बोला - प्लीज ..।
- लेकिन यहाँ ..? फ़िर उसके चेहरे के भाव कठोर हो गये । और उसने अपनी शर्ट के तीन बटन खोल दिये । ऊपर के दो पहले से ही खुले हुये थे । हाथ पीठ पर ले जाकर उसने ब्रा निकाली । और जींस की जेव में डाल ली । उसके आगे बङने से पहले ही मैंने उसे रोक दिया । और सिगरेट का धुँआ उसके मुँह और स्तनों पर फ़ेंकने लगा । उसकी गर्दन सख्त होकर अकङने लगी ।
वह बार बार अपने ही हाथों से अपने गालों को मसलने लगी । और बीच बीच मैं अपने सीने पर स्वयँ घूँसा भी मारती । उसका चेहरा एकदम वीभत्स हो उठा । करीब तीन मिनट बाद वह निढाल होकर गिर पङी ।
मैंने उसके स्तनों को छुये बिना उसकी शर्ट के बटन लगाने की कोशिश की । जिसे मैं बङी मुश्किल से अंजाम दे सका । क्योंकि वो बहुत टाइट शर्ट पहने थी । मैं मन्दिर के नल के पास पहुँचा । और एक बाल्टी ठंडा पानी लाया । फ़िर बिना किसी बात की परवाह किये मैंने वो वाल्टी रेनू के ऊपर उङेल दी । और एक सिगरेट सुलगाकर पेङ पर बैठी काली चिङिया को देखने लगा ।
फ़िर मैंने एक निगाह डौली को देखा । और मुस्कराया । मेरे दो काम बिना किसी खास अङचन के समाप्त हो गये थे ।
लगभग छह मिनट बाद रेनू हङबङाकर उठी । उसने तेजी से डौली की तरफ़ देखा । फ़िर अपने भीगे बदन को देखा । और फ़िर मुझे देखा । लेकिन बोली कुछ नहीं । वह अजीब सा महसूस कर रही थी । मैं ज्यादा देर उसे अभी अभी प्राप्त हुयी खुशी से दूर नहीं रखना चाहता था । सो मैंने उसे मन्दिर में लगे ढेरों गेंदा के फ़ूलों में से कुछ फ़ूल तोङकर लाने को कहा । वह यन्त्रचालित सी फ़ूल तोङ लायी और मुझे दे दिये ।
मैंने एक फ़ूल डौली की तरफ़ फ़ेंका । वह तुरन्त आकर्षित होकर फ़ूल की तरफ़ मुङी । मैंने एक और फ़ूल फ़ेंका । डौली उस तरफ़ भी देखने लगी । मैंने उसका नाम लेकर पुकारा ।
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Re: ** काली चिड़िया का रहस्य **

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तो वह मेरी तरफ़ देखने लगी । रेनू अपने आप को रोक न सकी । और फ़ूट फ़ूटकर रोते हुये उसने डौली को उठाकर अपने सीने से भींच लिया । अब डौली साधारण बच्चों की तरह व्यवहार कर रही थी । और काली चिङिया की तरफ़ उसका कोई ध्यान न था ।
रेनू का चेहरा खुशी से दमक रहा था । उसकी आँखों में मेरे लिये गहन कृत्यग्यता के भाव थे । दरअसल वह सोच रही थी कि इस अनजानी आफ़त से उसका छुटकारा हो चुका है ।
- नगर कालका । मेरे मुह से स्वतः ही निकला ।
रेनू ने फ़िर से भयभीत होकर मेरी तरफ़ देखा ।
- जब तक ये पहले से मरी हुयी काली चिङिया दुबारा से नहीं मर जाती । तुम वहीं की वहीं रहोगी बेबे । इस मुसीबत से तुम्हें अभी अस्थायी रूप से छुटकारा मिला है । नगर कालका इतनी आसानी से पिंड नहीं छोङती ।
- अब । वह व्यग्रता से बोली - क्या करना होगा ?
अब तो खुद मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या होगा और कैसे होगा । दरअसल अब जो काम मुझे करना था । उसके लिये रेनू के किसी परिबार वाले का होना आवश्यक था । जो कि था ही नहीं । बात ये थी कि बच्ची पर तो नगर कालका को आवेशित करने का प्रश्न ही नहीं था । उसकी संतुष्टि के लिये बालिग और सम्भोग की अभ्यस्त जवान औरत की आवश्यकता थी । अब या तो ये काम स्वयँ रेनू करती । या फ़िर उसकी तरफ़ से कोई और बलि की बकरी पेश की जाती । दूसरे ये काम दिन में नही हो सकता था । एक तो दिन का माहौल प्रेतों को पहले ही रास नहीं आता ।
दूसरे क्योंकि नगर कालका एक चिङिया के शरीर का सहारा ले रही थी । इस हेतु ये काम ऐसे खुले स्थान पर होना था । जहाँ नगर कालका चिङिया के शरीर से निकलकर आवेशित महिला के शरीर में प्रवेश कर जाय । और चिङिया को स्वयँ अपने हाथों से मार डाले । चिङिया तो नगर कालका के निकलते ही मरी समझो । पर जरूरी ये था कि नगर कालका स्वयँ अपने हाथों से उसके टुकङे टुकङे कर दे । अब चिङिया बन्द स्थान में कैसे खिंचकर आ पायेगी । ये दिक्कत थी ।
चिङिया के मरते ही पचहत्तर प्रतिशत काम हो जाना था । फ़िर आवेशित महिला के माध्यम से नगर कालका को धमकाना , पटाना या जो भी वो माँग करे । जो भी स्थिति बने उससे निपटना था ।
अब जब रेनू स्वयँ आवेशित होने वाली थी । तो फ़िर मेरी सहायता कौन करता । दूसरे मैं रेनू को आगे क्या होने वाला है । इस बारे में कुछ नहीं समझा सकता था । क्योंकि इससे वो चिंतित हो जाती । और किसी प्रेत के आवाहन के लिये ये कतई उचित नहीं था । और क्योंकि ये नगर कालका का मामला था । इसलिये इसका " माध्यम " औरत ऐसी होनी चाहिये थी । जो बरसो से काम की आग में जल रही हो । तो ये आवेशित क्रिया एकदम गुड रिजल्ट देने वाली होती ।
इसकी वजह ये थी कि जब किसी औरत प्रेतात्मा को इस तरह के माध्यम पर आवेशित किया जाता । तो उस औरत के भाव और प्रेतात्मा के भाव आपस में संयुक्त हो जाते । और प्रेतात्मा बहुत सी बातों को भूलकर कामातुर नारी के समान व्यवहार करती

और आसानी से काबू में आ जाती । और तान्त्रिक यदि उसके मनोनुकूल बात करे । तो वह समर्पण की मुद्रा में हो जाती थी।
अब मान लो । मैं ये सब बात पहले ही रेनू को बता देता । तो उसका जो व्यवहार होता । वो बनाबटी हो जाता । और हो सकता है कि बना बनाया खेल ही बिगङ जाता । या वही काम दुबारा से करना पङता । इसलिये मुझे रेनू में पूरी कामवासना जगाते हुये सारे कार्यक्रम को साबधानी से करना था । और अकेले ही करना था । और उसे बिना बताये करना था
मैंने रेनू से बात की । तो स्थान की समस्या तो हल हो गयी । उसके घर में ऊपर छत पर एक सेपरेट पोर्शन था । उसी के पार गली में पीपल का वह बूङा वृक्ष था । जिस पर वह काली चिङिया रहती थी । उस वृक्ष की डाली रेनू की छत पर आती थी ।
शाम के पाँच बज चुके थे । जब हम मन्दिर से रवाना हुये । रेनू बाइक चला रही । डौली को उसने बेल्ट के साथ आगे कर लिया था । मैं उसके पीछे जानबूझ कर सटकर बैठ गया और बेझिझक हाथ उसकी कमर में डाल दिये । जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया ।
दरअसल मुझे रात नौ बजे से कार्यक्रम आरम्भ कर देना था । और चार घन्टे के इस समय में मुझे रेनू को बेहद उत्तेजित अवस्था में पहुँचाना भी था । और प्रेत आवाहन के अन्य कार्यक्रम भी निर्विघ्न सम्पन्न करने थे । मैने मन ही मन तय कर लिया था कि आज नगर कालका का चक्कर ही खत्म कर दूँगा । चाहे इसके लिये नगर कालका की माँग पर मुझे आवेशित माध्यम रेनू से सम्भोग ही क्यों न करना पङे । रेनू से सम्भोग का तो कोई प्रश्न ही न था ।
ठीक छह बजे मैं रेनू और डौली छत पर थे । डौली का अब कोई काम न था । सो मेरे कहे अनुसार रेनू ने उसे दूध पिलाकर सुला दिया था । बीच में किसी कारण से डौली जागकर डिस्टर्ब न करे । इस हेतु मैं पहले ही हल्के असर बाली नींद की गोली ले आया था । जो उसके दूध में डाल दी थी । मैनें एक सिगरेट सुलगायी । और काली चिङिया की तरफ़ देखा । वह पीपल की डाली पर मिट्टी की निर्जीव चिङिया की भांति बैठी थी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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