ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
भाग - पहला
मेरी उमर बीस साल की है. मैं अपने मां-पिताजी की अकेली बेटी हूँ. मुझे बचपन से ही लड़कों की तरह रहे की आदत है. लड़कों जैसे छोटे बाल , टी-शर्ट और जींस और अपनी सहेलियों के साथ भी लड़कों की तरह से बरताव करना. लेकिन करीब दो महीने पहले एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे बड़ी अजीब सी स्थिति में लाकर खडा कर दिया है. मुझे शुरू से लड़कों में कोई रूचि नहीं रही क्यूंकि मैं खुद उनके जैसी रहती आई थी. हम कोलेज की सभी सहेलीयां एक इंग्लिश फिल्म देखने एक साथ गई. फिल्म के एक सीन में हीरो हिरोइन को समुन्दर में किस करता है और फिर उसके सीने को मसलता है और उसके होंठ चूमता है. इस सीन से हम सभी पाँचों सहेलियाँ उत्तेजित हो गई . मेरे पास रश्मि बैठी हुई थी. मेरा हाथ अचानक रश्मि की तरफ बढ़ा और उसके टी-शर्ट पर उस जगह पर गया जहां उसका सीना उभरा हुआ था. मैंने उसके उभार को दबा दिया. बदले में रश्मि ने भी मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया.
उस दिन के बाद मैं जब भी रश्मि को देखती तो मेरी इच्छा होती कि मैं उसे बाहों में भर लूँ. उसे चुमुं. धीरे धेरे मुझे हर वक्त रश्मि ही दिखाई देने लगी.
दो दिन बाद मेरी एक सहेली का जन्मदिन था. हम सभी सहेलीयां वहाँ थी. रश्मि भी आई थी. मैंने रश्मि को देखा और शरारत से बोली " उस दिन फिल्म में मजा आया ना!" रश्मि ने आँख मारी और बोली " तुम ने बहुत शैतानी की थी उस दिन." मैंने कहा " आज फिर मेरी ईच्छा है कि मैं शैतानी करूँ." रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा " ये कौनसा तरिका है शैतानी का ?" मैंने जवाब दिया " शैतानी का नहीं ये मजे करने का तरिका है मेरी जान , मेरी चिकनी. चल आ किसी कोने में." मेरे इतना कहते ही रश्मि मेरे साथ मेरी सहेली के घर के एक कमरे में आ गई. हम लोग जैसे ही करीब आने को हुए मेरी सहेली की मां कमरे में कुछ सामान लेने आ गई. हम बाहर निकल गए, मुझे अचानक बाथरूम दिखाई दिया.
मैं रश्मि को लेकर चुपचाप सभी की नज़रें बचाकर बाथरूम में चली गई. मैंने रश्मि के कुर्ती का बटन खोला और अपने हाथों से उसके सीने को दबाना शुरू कर दिया. रश्मि को अच्छा लगने लगा. अब मैंने रश्मि को बाथरूम की दीवार की तरफ धकेला और उसे मेरे सीने के दबाव से उसके सीने को दबाना शुरू किया. रश्मि ने एक आह भरी और मुझे बाहों में जकड़ते हुए कहा " तुम पागल कर डौगी यार. पता नहीं अन्दर क्या क्या होने लगा है." मैंने धीरे से रश्मि के गालों को अपनी जीभ निकालकर चूमा और गीला कर दिया. रश्मि ने मुझे बहुत जोर से दबाते हुए पकड़ लिया और सिसकी भरने लगी. अब हम दोनों बेकाबू हो गई थी. बार बार एक दूजे को अपने अपने सीने से दबा रहे थे और मचल रहे थे. फिर अचानक बाहर केक काटने के शोर को सुनकर हम बड़ी मुश्किल से अलग हुए और पार्टी में ज्वाइन हो गए.
इसके बाद काफी दिनों तक मुझे और रश्मि को कोई एकांत नसीब नहीं हुआ. मैं सारी सारी रात तड़पती और तकिये को दबाकर खुद को शांत करती.
करीब एक महीने बाद एक बार फिर हम कुछ सहेलियां एक फिल्म देखने गए. मैं, रश्मि, सायरा और दो दूसरी लडकीयाँ. मैं और रश्मि पास पास बैठी. एक सीन में जैसे ही हीरो हिरोईन ने बाँहों में भरकर एक दूजे को चूमा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने रश्मि को उसके गालों को चूम लिया. बदले में रश्मि ने भी मेरे गालों को चूम लिया. अब तो लगभग हर ऐसे सीन पर हम दोनों आपस में एक दूजे के गालों को चूमने लगे. सायरा ने हमें ऐसा करते दो तीन बार देख लिया मगर हम दोनों बेखबर थे तो पता नहीं चल सका.
फिल्म के ख़तम होने के बाद मैं रश्मि और सायरा एक ऑटो में बैठकर घर चल पड़े. सायरा ने अचानक मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा " ये तुम दोनों फिल्म में एक दूजे के साथ क्या क्या हरकतें कर रही थी?" मैं बिलकुल नहीं घबराई और बोली " हम दोनों को इसमें बहुत मजा आता है तो हम करते हैं." उस दिन बात आई गई हो गई.
करीब एक हफ्ते बाद एक दिन दोपहर को मैं घर में अकेली थी कि सायरा का फोन आया , वो कोई किताब मुझसे लेना चाहती थी मैंने कहा आकर ले लो . सायरा घर आई और मुझे अकेला देख मेरे करीब सटकर बैठ गई और धीरे से बोली " सन्नी , मुझे भी तुम्हारे साथ रश्मि के जैसे कुछ करना है. करो ना ." मैं बहुत ही खुश हो गई. मैं और सायरा बेडरूम में आ गए. मैंने सायरा के कुर्ती के सभी बटन खोले और फिर मैंने अपना टी शर्ट उतर दिया . मैं अब सिर्फ ब्रा में थी. मैंने सायरा के कुर्ती को भी उतारना शुरू किया . सायरा ने कोई आपत्ति नहीं की. अब हम दोनों अपनी अपनी ब्रा में ही थी. मैंने सायरा को बाहों में भर लिया और उसे चूमना शुरू कर दिया अगालों पर, गरदन पर औए नंगे सीने पर. सायरा मदहोश सी होने लगी. मैंने अपने गालो सायरा के होठों के सामने कर दिए. सायरा के होंठ कांप रहे थे. उसने मुझे गालो पर चूमा. मैंने सायरा को लिया और पलंग पर आ गई. अब हम दोनों पलंग पर लेट गए थे और लिपटे हुए थे. मैंने सायरा को चूमने के साथ साथ उसे नीचे के तरफ से दबाना शुरू किया. सायरा नीचे थी और मैं ऊपर. सायरा को मेरा दबाव बहुत सुहाना लग रहा था. घडी देखते ही सायर आदर गई और मां के लौटने के डर से तुरंत मुझे अलग हुई और घर चली गई.
अब मैं और सायरा जब भी अकेले होते वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मेरी घर के बेडरूम में लिपट जाते. ये सब करेब एक महीने तक चलता रहा. रश्मि को ये मौका इस महीने में एक बार भी नहीं मिल सका. एक दिन कोलेज में रश्मि ने मुझसे शिकायत भी की मगर मैंने अनसुना कर दिया. पता नहीं क्यूँ सायरा का जिस्म मुझे ज्यादा अच्छा और मीठा लगने लगा था.
रश्मि ने कुछ खतरा भांप लिया और एक दिन दोपहर को ऐसा संयोग हुआ कि मैं और सायरा जब मेरे बेडरूम में बिस्तर में थी तब रश्मि मेरे घर पहुची. उसे मेरे घर का हर हिस्सा अच्छी तरह से पता था. वो ये जानकर कि मेरी मम्मी घर पर ही होगी, बाहर के रस्ते वो सीधे बालकनी में कूदकर मेरे बेडरूम की तरफ आ गौ. उसने बेडरूम के झरोखे से पर्दा हटाया और मुझे और सायरा को बिस्तर में एक दूसरे से लिपटे और चूमते पाया. आज भी हम दोनों ( मैं और सायरा ) सिर्फ ब्रा में थी और नीचे हम ने जींस पहन रखी थी. हम लगातार एक दूजे को चूम रही थी और मचल मचलकर अपने अपने सीनों को एक दूजे के सीने से दबा दबाकर मजे ले रही थी.
रश्मि सारा माजरा समझ गई. उसे जलन होने लगी. उस से रहा नहीं गया और उसने दरवाजा खटखटाया. मैंने चौंक कर देखा तो खिड़की में रश्मि को देखकर मैं और सायरा हैरान रह गई. मैंने सायरा को इशारे से समझाया कि कोई खतरा नहीं है. मैंने उठकर दरवाजा खोला आ और रश्मि को अन्दर खिंच लिया और फिर से दरवाजा बंद कर लिया. इस से पहले कि रश्मि कुछ बोलती मैंने रश्मि को बाँहों में भर लिया और अपने जीवन में पहली बार किसी के होंठो को अपने होंठो से चूम लिया. रश्मि और मैं ऐसे तडपी जैसे कोई बिजली का करंट लग गया हो.
रश्मि तो बेकाबू होकर पलंग पर बैठने लगी. मैंने रश्मि को सहारा दिया मगर पलंग पर बैठाने के बाद भी उसके होठो को नहीं छोड़ा.
अब मुझे और रश्मि को ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों बादलों में उड़ रही हों...दोनों को लगा जैसे ना जाने कितनी ही शकर हमारे मुंह में घुल गई हो. सायरा हम दोनों को इस तरह देखकर तड़प उठी. उससे रहा नहीं गया. उस ने आगे आकर हम दोनों को खुद से लिपटा लिया और हम दोनों के गाल चूमने लगी.
मैंने अब रश्मि और सायरा दोनों के बारी बारी से गालों पर चूमा. फिर रश्मि ने मुझे और सायरा को चूमा. फिर सायरा ने मुझे और रश्मि को चूमा. कुछ देर तीनों ने एक दूजे के गलों को चूम चूमकर गीला तर कर दिया. मैंने अचानक रश्मि और सायरा को अपनी तरफ खिंचा और दोनों के मुंह करीब ले आई और दोनों के होठों के साथ साथ अपने होंठ भी मिला दिए. हम तीनों के होंठ आपस में मिल गए और शक्कर घुलने लगी हम सभी के मुंह में. लगातार चूमने और चूसने से हम तीनों के ही मुंह में से लार निकलने लगी और सभी के होंठो के चारों तरफ और गालों तथा गर्दन पर बहुत ही गीलापन फ़ैल गया.
मैंने कभी रश्मि को तो कभी सायरा को अपने से चिपटाया और उन्हें जगह जगह दबाया और चूमा. हम तीनों ने ऐसा काफी देर तक किया. आखिर में हम सभी थक गई तो अपने कपडे पहने और अपने अपने घर चली गई.
इसके बाद भी मैं रश्मि और सायरा के साथ कभी अलग से तो कभी साथ साथ मिलती और इस तरह से अपनी अपनी भूख मिटाती.
मुझे धीरे धीरे लडकीयों में ही रूचि होने लगी. इसी तरह से करीब एक साल गुजर गया. अब मेरी इच्छाएं बढ़ने लगी. मैं कई बार ऐसा सोचती कि रश्मि और सायरा के अलावा भी कोई और मिले तो और भी मज़ा आयेगा.
ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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भाग - दूसरा
कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा.
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी.
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?"
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए."
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही.
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे.
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर. चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
आंटी बोली बिलकुल मेरी तरह शरारती बनकर " तुझे पकड़कर लेट जाती और चूम लेती तुझे चिकना समझकर. हा हा हा . बुरा ना माना मैंने मजाक किया था "
भाग - दूसरा
कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा.
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी.
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?"
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए."
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही.
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे.
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर. चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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Re: ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
मुझे लगा जैसे आंटी का साथ आज रात हो ही जाएगा. मैं बोली " मैं समझ गई आंटी जी आप का मजाक ...मगर आप मुझे चूम सकती हैं और लिपटा भी सकती है. आपकी मजबूत बाहों में आकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा." आंटीजी और भी शरारत होते बोली " अभी नहीं, कुछ देर बाद तुझे बतलाती हूँ मैं कितनी मजबूत हूँ. हा हा "
आज शादी थी इसलिए सभी जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हो रहे थे. मैं भी नहाने चली गई. मैं जैसे ही नहाकर निकली तो देखा की वो आंटी भी नहाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रही थी. मैंने एक तौलिया लपेट रखा था. मुझे देखते ही वो बोली " बिलकुल चिकने लड़के के जैसे लग रही है तू." मैं मुस्कुरा दी. आंटी नहाने चली गई. मैं कपडे देखने लगी कि क्या पहनना है . मैं उसी तौलिये में लिपटी कपडे निकाल रही थी कि इतने में आंटी नहाकर आ गई. वो भी तौलिया ही लपेटे थी. हम दोनों एक दूजे को देखकर मुस्कुरा दिए. आंटी मेरे बेहद करीब आकर खड़ी हो गई. हम दोनों के चेहरे बहुत करीब थे. नहाने के बाद की खुशबू साँसों में घुल रही थी. आंटी ने मुझे अपनी तरफ लिया और बाहों में भर लिया. कन्धों के थोडा नीचे तक हिस्सा नंगा था इसलिए वो हिस्से हम दोनों के आपस में चिपके तो बदन में सरसराहट होने लगी. मैंने बहुत ही शरारत से आंटी की तरफ देखा और बोली " क्या इरादा है इस चिकने को देखकर ?" आंटी ने उसी शरारत के साथ जवाब दिया " समय बहुत ही कम है मगर इरादा तो नेक बिलकुल नहीं है. चल आजा चिकने कुछ देर ही सही." आंटी ने मेरी गरदन के निचले हिस्से को ऐसा चूमा कि मेरा सर घूमने लगा. आंटी ने मुझे ऊपर उठा लिया और उठाये उठाये ही मेरे गालों और गरदन को चूमने लगी. मैंने भी जवाब में आंटी के गालों को चूमा. क्या भरवां गाल थे उनके किसी रसगुल्ले की तरह. आंटी के होंठ तो बिलकुल जलेबी की तरह रस से भरे हुए लगे. मैंने अपना मुंह खोला और उसे आंटी की तरफ बढ़ा दिया. आंटी ने मेरे होंठो को देखा और बोली " लगता है संतरे का जूस भरा है इनमे." मैंने कहा " मुझे तो आप के होंठ जलेबी जैसे भरे लग रहे हैं" आंटी ने जवाब दिया " तू जलेबी का रस पी और मैं संतरे का जूस पीती हूँ." आंटी ने अपने होंठ खोले और अब मेरे होंठों से इस तरह सिला दिए कि एक बंद गोला बन गया और हम दोनों अपने जीभ की मदद से एक दूजे के होंठों के रस को अपने मुंह में खींचने लगी. हम दोनों ने दो एक मिनट तक ही किया होगा कि किसी ने दरवाजा खटखटाया . आंटी बोली " ये कौन कबाब में हड्डी आ गया. अब तो अगले मौके में ही करना होगा सब कुछ." हम दोनों बहुत अनमने मन से अलग हुए और कपडे पहन ने लगे.
पूरी शादी में कभी सरोज तो कभी आंटी मुझ से नज़रें मिलाते ही सेक्सी मुस्कराहट दे देती. आंटी ने बहुत ही बढ़िया मेक अप किया था और गज़ब ढा रही थी. सरोज ने भी गुलाबी ड्रेस पहनी जिसमे वो बहुत सेक्सी लग रही थी. आंटी के लो कट ब्लाउज से उनकी दौलत जबरदस्त झाँक रही थी और मेरे मुंह में बार बार पानी आ रहा था. एक बार जब मैं आंटी के साथ ही चल रही थी तो आंटी ने अचानक अपने कंडों को इस तरह आगे कि तरफ आपस में करीब किया कि लो कट ब्लाउज में उनके दोनों उभार आपस में और सट गए और पहले से अधिक बड़े नज़र आने लगे. मैंने सबकी नजर बचाकर अपने हाथ से उन्हें दबा दिया. मैं और आंटी हंसने लगी.
देर रात को शादी निपट गई और हम सभी सोने के लिए घर लौट आये .
मैं कमरे में कपडे बदलने के लिए दाखिल ही हुई थी कि पीछे आंटी आ गई. आंटी ने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. मैं भागकर उनकी बाहों में चली गई. मैंने भी लिप्सटिक लगाईं हुई थी और आंटी ने तो गहरी गुलाबी रंग के लिपस्टिक लगाईं हुई थी. अब आंटी ने मेरे होंठों से खुद के होंठ सटा दिए. लिपस्टिक का रंग और उसकी मिठास और गीलापन मुंह में घुलने लगा. हमने शीशे में देखा तो दोनों के होंठो के आसपास गुलाबी लिपस्टिक का रंग फ़ैल गया था.
मैं, सरोज और आंटी एक ही कमरे में लेटे. तीनो के बिस्तर जमीन पर थे. मैं सरोज और आंटी के बीच में लेट गई. अब सभी के मन में अरमान मचल रहे थे. कल हम सभी जुदा होनेवाले थे. सरोज ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और अपने सीने की तरफ ले गई और खुद ही मुझे दबाव लाने के लिए जोर लगाने लगी. मैंने देखा कि आंटी को नींद आ गई थी. मैंने सरोज की तरफ मुंह घुमाया और हम दोनों शरू हो गए. हम दोनों ने जल्दी ही ब्रा-पेंटी को छोड़ सभी कपडे उतार दिए. काफी देर हम दोनों युहीं लिपटे रहे, चूमते रहे. सरोज थक गई जल्दी ही और सो गई., मैंने अब आंटी की तरफ खुद को घुमाया और उनके ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए. जब सबसे उपरवाला बटन मैंने खोल रही थी जो कि सबसे कसा हुआ था तो आंटी की आंख खुल गई. मुहे देखकर वो भी मेरी ओर मूड गई. आंटी ने मेरे भी कपडे खोल दिए. मैंने आंटी की साडी उतर दी. अब मैं और आंटी केवल ब्रा-पेंटी में ही रह गई. मुझे आंटी ने कसकर जकड लिया.
आंटी के गरम गरम बूब्स ( सीने ) मुझे दबा कर पागल किये जा रहे थे. कुछ देर कसमसाहट के दौर के बाद मैंने जब आंटी के होठों को चूमा तो आंटी ने मुझे अपने सीने को चूमने के लिए कहा. आंटी ने खुद ही अपनी ब्रा उतार दी. नाईट लेम्प की रौशनी में मैंने आंटी के सीने को देखा. एक एक बूब मुझे किसी रस से भरे गुब्बारे जैसा लगा. मैं आंटी के दोनों बूब्स ( स्तन या वक्ष ) को चूमने लगी. मैं कुछ ही देर में पागल हो गई. आंटी ने मेरे मुंह को अपनी सीने की गहराई में दबा दिया. इसके बाद आंटी ने मेरे सीने को चूम चूमकर गीला तो किया ही मैंने ध्यान से देखा वो गुलाबी लाल हो गए थे. आंटी ने मुझे अपने ऊपर लेटने को कहा. मैं आंटी के ऊपर लेट गई. उनके पहाड़ जैसे बूब या स्तन मुझे बार बार पागल कर रहे थे. आंटी ने अब धीरे से मेरी पेंटी उतार दी और खुद की पेंटी भी उतार दी. मैं पहली बार थोड़ा घबराई. अब मेरा निचला हिस्सा एंटी के निचले हिस्से से छू गया. मुझे हलकी मीठी चुभन महसूस हुई. मैंने अपना हाथ आंटी के निचले हिस्से से छुआ दिया. आंटी के उस हिस्से पर बाल थे जो मुझे बहद अच्छे लगे. आंटी ने मुझे निचले हिस्से पर मेरे निचले हिस्से से दबाने और रगड़ने को कहा. मैंने वैसा ही किया. मेरा निचला हिस्सा जहाँ एकदम चिकना था आंटी के बाल थे. मुझे बहुत मजा आने लगा.
आंटी मुझे बार्बर दबाव बढ़ाने के लिए कहती और मैं दुगुने जोश से दबाव बढ़ा देती. कुछ देर बाद अचानक मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरे भीतर एक गीलापन हो रहा है और कुछ कुछ बाहर आने को है. मैंने अपनी टांगों को आपस में मिलाकर दबाया. आंटी ने मुझे अपने सीने पर जोर से दबाकर पकड़ लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया. मुझे आज पहली बार इतना अनुभव हुआ था जिसमे सारा जिस्म रस में जैसे नहा लिया हो.
सुबह होते ही सबसे पहले आंटी रवाना हो गई. आंटी ने ईशारा किया और मुझे एक कमरे में बुलाकर मेरे होंठों पर एक बहुत ही मीठा चुम्बन जड़ दिया और अपनी निशानी दे दी.
दोपहर को हम लोग रवाना होने वाले थे. मैंने सरोज को भी निशानी के लिए उसके होंठों को जोर से चूमा ही नहीं बल्कि चूस ही लिया.
वापस घर लौटने के बाद कई दिन मुझे आंटी और सरोज याद आती रही.
यहाँ आने के बाद फिर से रश्मि और सायरा की कंपनी मुझे मिल गई थी मगर सरोज और आंटी के साथ लेटने और मजा करने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि हर बार कोई नया हो तो कितना अच्छा लगेगा.
बस इसी बीमारी ने अब मुझे एक बहुत अलग और गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया था.
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Re: ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
भाग तीसरा.
सब कुछ इसी तरह चलता रहा मगर एक दिन सब कुछ पता चल गया घर में मेरे . हुआ ये के सभी घरवाले सुबह किसी शादी में गए हुए थे. मैं बहाना कर नहीं गई. मैंने सायरा को बुला लिया . मैं और सायरा बिना किसी कपड़ों के बेखौफ्फ़ बिस्तर में लिपटी हुई थी. मैं सायरा के उपर थी और अपने गुप्तांग को उसके गुप्तांग से टच करा कराकर मसाज कर रही थी. हम दोनों ने ढेर सारा क्रीम लगा रखा था अपने अपने गुप्तांगों के आसपास जिस से चिकनाई और भी बढ़ गई थी. मेरे पापा शादी में देनेवाली गिफ्ट घर पर ही भूल गए थे. वे उसी को लेने आये. वे गिफ्ट लेकर वापस बाहर निकलते वक्त मेरे कमरे की तरफ आकर मुझसे यह कहने वाले ही थे कि तुम खाना खा लेना , कि उन्होंने मेरे कमरे की खिड़की से मुझे और सायरा को इस स्थिति में देख लिया. पापा ने मम्मी को सब बतला दिया. मुझे खूब डांटा गया. मगर मैं इतनी लेस्बियन सेक्स की आदी हो चुकी थी कि उनसे वादा करने के बाद भी दो बार और पकड़ी गई लेस्बियन सेक्स करते हुए. खूब झगडा हुआ . मुझे घर छोड़ने को कह दिया गया.
मैं कुछ दिन सायरा के यहाँ रही. इस बीच मैंने एक दिन उसी मौसी के यहाँ जाकर यह पता लगाया कि वो आंटी जिनके साथ मैंने शादी के दौरान खूब मजा किया था वो कहाँ रहती है. मुझे आंटी का पता मिल गया. मैं एक दिन अपना बेग गले में डाले आंटी के सामने खड़ी थी. आंटी ने मुझे देखा और बोली " अरे चिकने तू यहाँ कैसे आ गया आ गई! " मैंने आंटी को सब कुछ बता दिया. आंटी का दिल पसीज गया. उन्होंने अपने पति से झूठ बोलकर कि मैं उनकी दूर के रिश्ते में भतीजी लगती हूँ, और बिना माँ-बाप की हूँ, अपने घर रख लिया. पहली ही रात आंटी मेरे पास आ गई. मैं आंटी की बाहों में थी. आंटी ने मेरी प्यास बुझा दी.
अब लगभग हर रोज़ दिन में कम से कम दो बार तो मैं और आंटी नंगे बदन लिपटी रहती कुछ देर तक. मेरा आंटी के साथ रिश्ता दिन बा दिन गहरा होता जा रहा था.
आंटी के यहाँ काम करनेवाली बाई काम छोड़कर चली गई तो आंटी ने दूसरी बाई रखी. मैंने जब इस बाई को देखा तो उसकी गरीबी पर दया आ गई. सांवला रंग , जबरदस्त कसा हुआ जिस्म और उभरा हुआ सीना और सेक्सी मुस्कान . मैंने दो तीन दिन में एक बार हिम्मत कर उस बाई जिसका कि नाम सुन्दरा था , गालों को चूम लिया. पता चला कि सुंदरा अकेली है, उसका पति शराबी है इसलिए सुंदरा उसे छोड़ चुकी है. एक दिन मैंने सुंदरा से अपने बदन की मालिश करने को कहा. मैं पलंग में सिर्फ ब्रा और पेंटी में लेट गई. सुंदरा ने मसाज शुरू किया. मुझे नशा चढ़ने लगा. मैंने अचनक सुन्दरा को अपनी तरफ खिंचा और उसके होंठों को अपने होंठों से चूम लिया. सुंदर हैरान रह गई. मैंने फिर एक बार अचानक से उसके होंठों को चूमा. सुंदर को शायद यह अच्छा लगा. मैंने सुंदरा को अपने बारे में सब कुछ बतला दिया. सुंदर ने मेरा साथ देने की बात कही और बोली " मैं भी अकेली हूँ. हर रात तड़पती हूँ. तुम मेरा साथ देना."
एक दिन दोपहर को आंटी सो रही थी तब मैं सुंदरा के साथ मेरे कमरे में आ गई. हम दोन एक दुसरे की बाहों में थी. सुंदर मुझे चूमती और मैं सुंदरा को. फिर हम दोनों ने अपने सारे कपडे उतार दिए. सुंदरा मेरे हाथ को अपने जननांग के पास ले गई और मेरी ऊँगली को अपने अन्दर डाला. मुझे इशारे से सुन्दरा ने कहा कि मैं अपनी ऊँगली को अन्दर बाहर करूँ. मैं समझ गई कि ये एक औरत की प्यास है. मैंने ऐसा ही किया. कुछ देर ऐसा करने के बाद सुन्दरा के जननांग के अन्दर से मलाई बाहर आकर बहने लगी. सुन्दरा के चेहरे पर एक प्यास मिटने की मुस्कान आ गई. मैंने सुंदरा के होंठो को जोर से चूसा और मेरी प्यास बुझा ली.
अब तो लगभग हर रोज मैंने और सुंदरा ऐसा ही करते. धीरे धीरे मैंने सुंदरा के साथ जननांगों को आपस में मिलाकर सेक्स करना भी शुरू कर दिया. सुंदरा को भी यह सब अच्छा लगने लगा था. कई बार तो सुन्दरा मुझे पकड़ पकड़कर ऐसा नशा ला देती कि मैं सुंदरा की बाँहों में
कई देर तक मदहोश लिपटी रहती.
मैं आंटी और सुंदरा के साथ खूब मजे में थी. मेरी भूख जितनी बढती दोनों मेरी भूख को उतना ही मिटा देती थी. आंटी तो अब शाम को मुझे लेकर बाथरूम में घुस जाती और हम दोनों नंगे बदन फवारे में लिपट जाते और काफी देर तक नशे में रहती. आंटी अक्सर अंकल के जाने के बाद मेरे साथ ही नाश्ता करती थी. मैं नाश्ता करते वक्त सिर्फ ब्रा और पेंटी में हो जाती और आंटी की गोद में बात जाती. आंटी मुझे और मैं आंटी को चूमती और नाश्ता करती रहती. मैंने कई बार फ्रूट्स के टुकड़े अपने मुंह में लेकर आंटी के मुंह में डाल देती और आंटी भी बदले में ऐसा ही करती. एक बार हम दोनों ने केले इसी तरह से खाए और एक दूजे के मुंह में डालकर निकालते और फिर वापस ले लेते. . ऐसा नशा हो गया कि हम दोनों पागल हो गई थी.
अगले और चौथे भाग में मैं आपको मेरी जिंदगी की रंगीनियों के बारे में बताऊंगी कि किस तरह से हम तीनों ( आंटी, मैं और सुंदरा )
अब एक नयी सेक्स की दुनिया में आ चुकी हैं.
भाग तीसरा.
सब कुछ इसी तरह चलता रहा मगर एक दिन सब कुछ पता चल गया घर में मेरे . हुआ ये के सभी घरवाले सुबह किसी शादी में गए हुए थे. मैं बहाना कर नहीं गई. मैंने सायरा को बुला लिया . मैं और सायरा बिना किसी कपड़ों के बेखौफ्फ़ बिस्तर में लिपटी हुई थी. मैं सायरा के उपर थी और अपने गुप्तांग को उसके गुप्तांग से टच करा कराकर मसाज कर रही थी. हम दोनों ने ढेर सारा क्रीम लगा रखा था अपने अपने गुप्तांगों के आसपास जिस से चिकनाई और भी बढ़ गई थी. मेरे पापा शादी में देनेवाली गिफ्ट घर पर ही भूल गए थे. वे उसी को लेने आये. वे गिफ्ट लेकर वापस बाहर निकलते वक्त मेरे कमरे की तरफ आकर मुझसे यह कहने वाले ही थे कि तुम खाना खा लेना , कि उन्होंने मेरे कमरे की खिड़की से मुझे और सायरा को इस स्थिति में देख लिया. पापा ने मम्मी को सब बतला दिया. मुझे खूब डांटा गया. मगर मैं इतनी लेस्बियन सेक्स की आदी हो चुकी थी कि उनसे वादा करने के बाद भी दो बार और पकड़ी गई लेस्बियन सेक्स करते हुए. खूब झगडा हुआ . मुझे घर छोड़ने को कह दिया गया.
मैं कुछ दिन सायरा के यहाँ रही. इस बीच मैंने एक दिन उसी मौसी के यहाँ जाकर यह पता लगाया कि वो आंटी जिनके साथ मैंने शादी के दौरान खूब मजा किया था वो कहाँ रहती है. मुझे आंटी का पता मिल गया. मैं एक दिन अपना बेग गले में डाले आंटी के सामने खड़ी थी. आंटी ने मुझे देखा और बोली " अरे चिकने तू यहाँ कैसे आ गया आ गई! " मैंने आंटी को सब कुछ बता दिया. आंटी का दिल पसीज गया. उन्होंने अपने पति से झूठ बोलकर कि मैं उनकी दूर के रिश्ते में भतीजी लगती हूँ, और बिना माँ-बाप की हूँ, अपने घर रख लिया. पहली ही रात आंटी मेरे पास आ गई. मैं आंटी की बाहों में थी. आंटी ने मेरी प्यास बुझा दी.
अब लगभग हर रोज़ दिन में कम से कम दो बार तो मैं और आंटी नंगे बदन लिपटी रहती कुछ देर तक. मेरा आंटी के साथ रिश्ता दिन बा दिन गहरा होता जा रहा था.
आंटी के यहाँ काम करनेवाली बाई काम छोड़कर चली गई तो आंटी ने दूसरी बाई रखी. मैंने जब इस बाई को देखा तो उसकी गरीबी पर दया आ गई. सांवला रंग , जबरदस्त कसा हुआ जिस्म और उभरा हुआ सीना और सेक्सी मुस्कान . मैंने दो तीन दिन में एक बार हिम्मत कर उस बाई जिसका कि नाम सुन्दरा था , गालों को चूम लिया. पता चला कि सुंदरा अकेली है, उसका पति शराबी है इसलिए सुंदरा उसे छोड़ चुकी है. एक दिन मैंने सुंदरा से अपने बदन की मालिश करने को कहा. मैं पलंग में सिर्फ ब्रा और पेंटी में लेट गई. सुंदरा ने मसाज शुरू किया. मुझे नशा चढ़ने लगा. मैंने अचनक सुन्दरा को अपनी तरफ खिंचा और उसके होंठों को अपने होंठों से चूम लिया. सुंदर हैरान रह गई. मैंने फिर एक बार अचानक से उसके होंठों को चूमा. सुंदर को शायद यह अच्छा लगा. मैंने सुंदरा को अपने बारे में सब कुछ बतला दिया. सुंदर ने मेरा साथ देने की बात कही और बोली " मैं भी अकेली हूँ. हर रात तड़पती हूँ. तुम मेरा साथ देना."
एक दिन दोपहर को आंटी सो रही थी तब मैं सुंदरा के साथ मेरे कमरे में आ गई. हम दोन एक दुसरे की बाहों में थी. सुंदर मुझे चूमती और मैं सुंदरा को. फिर हम दोनों ने अपने सारे कपडे उतार दिए. सुंदरा मेरे हाथ को अपने जननांग के पास ले गई और मेरी ऊँगली को अपने अन्दर डाला. मुझे इशारे से सुन्दरा ने कहा कि मैं अपनी ऊँगली को अन्दर बाहर करूँ. मैं समझ गई कि ये एक औरत की प्यास है. मैंने ऐसा ही किया. कुछ देर ऐसा करने के बाद सुन्दरा के जननांग के अन्दर से मलाई बाहर आकर बहने लगी. सुन्दरा के चेहरे पर एक प्यास मिटने की मुस्कान आ गई. मैंने सुंदरा के होंठो को जोर से चूसा और मेरी प्यास बुझा ली.
अब तो लगभग हर रोज मैंने और सुंदरा ऐसा ही करते. धीरे धीरे मैंने सुंदरा के साथ जननांगों को आपस में मिलाकर सेक्स करना भी शुरू कर दिया. सुंदरा को भी यह सब अच्छा लगने लगा था. कई बार तो सुन्दरा मुझे पकड़ पकड़कर ऐसा नशा ला देती कि मैं सुंदरा की बाँहों में
कई देर तक मदहोश लिपटी रहती.
मैं आंटी और सुंदरा के साथ खूब मजे में थी. मेरी भूख जितनी बढती दोनों मेरी भूख को उतना ही मिटा देती थी. आंटी तो अब शाम को मुझे लेकर बाथरूम में घुस जाती और हम दोनों नंगे बदन फवारे में लिपट जाते और काफी देर तक नशे में रहती. आंटी अक्सर अंकल के जाने के बाद मेरे साथ ही नाश्ता करती थी. मैं नाश्ता करते वक्त सिर्फ ब्रा और पेंटी में हो जाती और आंटी की गोद में बात जाती. आंटी मुझे और मैं आंटी को चूमती और नाश्ता करती रहती. मैंने कई बार फ्रूट्स के टुकड़े अपने मुंह में लेकर आंटी के मुंह में डाल देती और आंटी भी बदले में ऐसा ही करती. एक बार हम दोनों ने केले इसी तरह से खाए और एक दूजे के मुंह में डालकर निकालते और फिर वापस ले लेते. . ऐसा नशा हो गया कि हम दोनों पागल हो गई थी.
अगले और चौथे भाग में मैं आपको मेरी जिंदगी की रंगीनियों के बारे में बताऊंगी कि किस तरह से हम तीनों ( आंटी, मैं और सुंदरा )
अब एक नयी सेक्स की दुनिया में आ चुकी हैं.
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भाग चौथा
मैं आंटी और सुंदरा के साथ अपनी जिंदगी को मजे से जीने लगी. सारे दिन एक ही काम, मौका मिलते ही लेस्बियन सेक्स. मेरी जवानी निखरने लगी थी. आस पड़ोस के लड़के मेरे को देखते ही आहें भरते मगर मेरे दिल में कभी लडको को लेकर कोई उत्तेजना नही पैदा होती.
सुंदरा बहुत खुश रहने लगी थी. उसकी सेक्स की भूख रोज मिट जाती थी.
एक दिन आंटी बाहर गई हुई थी. मैं सुंदरा के आते ही उसके साथ सेक्स करने के लिए तैयार हो गई कि अचानक अंकल घर में आ गए. सुंदर और मैं बाल बाल बच गयी. मगर हम दोनों बहुत उतावले हो गयी थी. इसलिए हम दोनों बाथरूम में चली गई. अंकल अपने कमरे में थे. बाथरूम में धोने के बहुत सारे कपडे रखे हुए थे. हम दोनों ने अपने अपने कपडे उतर दिए और उन धोने के लिए रखे कपड़ों को बिस्तर बनाया और लिपट गयी आपस में. आज सुंदरा बहुत उत्तेजित हो चली थी. वो बार बार मेरी ऊँगली पकडती और पाने जनांग में घुसा देती . जबकि मैं पहले दोनों के जननांगो को आपस में टच कराकर सेक्स पूरा करना चाह रही थी.मगर आखिर में जीत सुंदर के हुई. मैंने अपनी ऊँगली उसके भीतर घुसाई और लगातार अन्दर बाहर करने लगी. इस दौरान मैंने सुंदरा के होंठों को अपने होंठों से पूरी तरह सील दिया और अपनी जीभ से उसके मुंह की सारी मिठास अपने मुंह में खींचने लगी. इस तरह मैं भी अपनी भूख मिटाने लगी. कुछ ही देर बाद हम दोनों तड़पने लगी. मैंने अपनी दोनों जाँघों को आपस में मिलाकर खुद को कंट्रोल करने की कोशिश की. उधर सुंदरा भी अब बेकाबू होने लगी. फिर अचानक मुझे अपने भीतर एक गीलेपन का अहसास हुआ और मैं सुंदर के मुंह में अपनी जीभ से सारी लार उसके मुंह में डालकर उसके साथ जोर से लिपट गई. इतने में ही सुंदरा भी मलाई बहाने लगी और हम दोनों सेक्स के अंतिम सुख में पहुँच चुकी थी. इस बीच अंकल उठ गए मगर बाथरूम तक आकर ये समझे कि मैं अकेली हूँ उसमे उन्हें कोई शक नही हुआ.
सुंदर अब पूरी तरह से मेरे साथ प्रेम करने लगी थी. जबकि आंटी मेरे और अंकल दोनों के साथ डबल मज़ा लेती थी. कई बार तो ऐसा होता कि आंटी अंकल के साथ सेक्स करने के बाद मेरे कमरे में ऐसे ही बिना कपड़ों के आ जाती मुझे नंगा कर मुझे अपने साथ लिपटा लेती. मुझे इस वक्त बहुत अच्छा लगता था क्यूंकि आंटी थकी हुई होती थी और उनका जिस्म एकदम ठंडा होता. ऐसे में मैं उनके होंठों को लगातार चुस्ती रहती जो मेरा सबसे पसंदीदा था. आंटी थकी होने के कारण कोई विरोध नहीं करती और अपने होंठ फैलाकर मेरे होंठों के हवाले कर देती और मैं उनके होंठों पर अंकल द्वारा ना चूसा हुआ सारा रस चूस लेती. बाद में मैं आंटी के उभरे सीने को खूब सहलाती और अपने दोनों बूब्स को उनके साथ टच कराकर फिर से उनके होंठों को अपने होंठों से मिलाकर सो जाती.
एक दिन रात को मैंने सुन्दरा को घर पर आंटी से बचाकर रोक लिया. रात को मैं और सुंदरा दोनों मेरे कमरे में भरपूर सेक्स का मज़ा ले रही थी. आंटी अंकल से फ्री होकर मेरे कमरे में आ गई. हम दोनों को पता नहीं चल सका इस बात का. आंटी ने हम दोनों को देखा तो गुस्से में आ गई. हम दोनों को खूब डांटा , अगले ही दिन आंटी ने सुन्दरा की छुट्टी कर दी. मेरा दिल टूट गया. मैंने आंटी को बहुत समझाया ,मगर आंटी ने मेरी एक नहीं सुनी. अगले चार पांच दिन हम दोनों में बिलकुल बोलचाल नहीं हुई और ना ही सेक्स.
आखिर में आंटी से नहीं रहा गया और उसने सुंदरा को फिर से बुला लिया.
सुंदरा के लौट आने के बाद सब कुछ फिर से नोर्मल हो गया. अब आंटी को मेरे सुंदरा के साथ शारीरिक सम्बन्ध को लेकर कोई आपत्ति नहीं रही. कई बार जब आंटी को सेक्स की इच्छा नहीं होती तो मैं अपने कमरे में सुंदरा के साथ लेस्बियन सेक्स का मज ले लेती.
पहले कुछ दिन तो सब शांत थे. अगले दिन अंकल कहीं बाहर गए दूसरे शहर में दो दिन के लिए. आंटी ने सुंदरा को रात को रोक लिया क्यूंकि बरसात का मौसम था और रात को अक्सर लाइट्स चली जाती. इसी डर से हम तीन होंगे तो डर नहीं लगेगा इसलिए सुन्दरा रो रोक लिया.
मैं और आंटी एक पलंग में सो रहे थे. सुन्दरा पास के सोफे में सो गई. आंटी ने कुछ देर बाद हम दोनों के कपडे उतराकर मेरे साथ सेक्स में लग गई. सुन्दरा अँधेरे में जो कुछ भी दिख रहा था देख रही थी. तभी अचानक बहुत ही तेज बारिश शुरू हो गई. बादल गरजने लगे और बिजलियाँ चमकने लगी. हम सभी घबरा उठे. मैं आंटी से जोर से कसकर लिपट गई. तभी अचानक लाइट्स चली गई. हवा भी तेज हो चलने लगी. सुन्दरा भी अब बहुत घबरा उठी. आंटी समझ गई उसकी घबराहट को और उन्होंने सुंदरा को हमारे पलंग पर बुला लिया. मैं और आंटी अब भी आपस में बिलकुल नंगे आपस में लिपटी हुई थी. सुंदरा और आंटी के एक तरह से मैं बीच में थी. मैंने अपना एक हाथ पीछे किया और सुन्दरा के सीने को खोजने लगी. जैसे ही मेरा हाथ सुन्दरा के जिस्म से टच हुआ सुन्दरा ने मेरे हाथ को जोर से दबाया और अपने उभारो के बीच में दबा दिया.
आंटी को कुछ देर बाद मेरी और सुंदरा के बीच हो रही हलचलों का पता चल गया. आंटी ने मुझे अपने से अलग किया और उठ गई और सुन्दरा के करीब जाकर धीरे से उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगी. मैं हैरानी से आंटी को देखने लगी. सुंदरा ने अपना सीना ढीला कर आंटी को सहयोग किया. ब्लाउज के बाद आंटी ने सुन्दरा की चोली भी उतार कर दूर रख दी. इसके बाद आंटी ने सुंदरा के पेटीकोट का नाडा खोला और साडी के साथ दूर फेंक दिया. अब हम दोनों के साथ सुंदरा भी बिना कपड़ो के हो गई. आंटी वापस मेरे पास आकर लेट गई. मैंने सुन्दरा को अपनी तरफ आने का इशारा किया. अब मैं आंटी और सुन्दरा के बीच में थी किसी सेंडविच की तरह. आंटी ने मुझे अब सीधा लेटने को कहा और अपनी एक टांग मेरी टांग पर रखकर मेरे गालो को चूमने लगी. सुंदरा को भी मैंने इसी तरह करने को कहा. सुन्दरा और आंटी की मजबूत मांसल टाँगे मेरे जिस्म में लहरें उठा रही थी. अब दोनों और पास आ गई इससे मेरा जिस्म उन दोनों के जिस्मो से पूरी तरह से जैसे कवर हो गया. हम सभी की सांसें आपस में टकराने लगी. मैं कभी आंटी तो कभी सुन्दरा के गालों को और होठों को चूमती. तीनों को मजा आने लगा. आंटी मेरे होंठों को चूम रही थी. जैसे ही आंटी ने चूमना बंद किया सुंदरा ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. आंटी अपनी बारी का इंतजार करने लगी. इस तरह दोनों बारी बारी से एक के बाद एक मेरे होंठों को चूमने लगी. एक बार आंटी के चूमते ही सुंदरा थोड़ा सा पहले अपने होंठ मेरे तरफ ले आई. इस से उसके होंठ आंटी के गालों से टकरा गए. मेरे दिमाग में कुछ आया और मैंने तुरंत अपने होंठ इस तरह से आगे किये कि आंटी के गाल और सुंदरा के होंठ मेरे होंठों से छूने लगे. आंटी ने अपने गाल को पीछे किया और अपने होंठ मेरे और सुंदरा के होंठो के पास ले आई. सुन्दरा ने अपने होंठ थोड़े आगे बढाए. मैंने भी भी ऐसा ही किया. अब हम तीनों के होंठ एक दूजे के एकदम करीब आ गए. मैंने अपना मुंह पूरा खोल दिया. मेरी देखाया देखी आंटी और सुंदरा ने भी अपने अपने मुंह पूरी तरह से खोल दिए. फिर हमने अपने अपने होंठ एक दूजे से टच करवा दिए और हमारे तीनों के होंठ अब आपस में मिल गए.
हमने अपने अपने होंठ खोले और एक दूसरे के होंठों को को चूमना शुरू कर दिया. हम तीनों पर ऐसा नशा छाया कि सभी एक दूसरे को कसकर पकड़कर तड़पने लगी. काफी देर तक ऐसा किया तो हम तीनों के अन्दर जोर से हलचलें शुरू हो गई. आंटी और सुंदरा ने अपनी अपनी जाँघों से मेरी जांघों पर दबाव बढ़ाना शुरू किया जिस से उनके भीतर के हलचलें काबू में आये. इस दबाव से मेरी हलचलें भी काबू में आने में मदद मिली. मगर कुछ ही देर के बाद ऐसा लगा हम तीनों को कि अब अन्दर से तीनों का ही बहाव बाहर आ जाएगा. सुंदरा ने मुझे अपने भीतर ऊँगली घुसाने को कहा. मुझे ऐसा करते देख आंटी ने भी मुझसे मदद मांगी. मैंने अब अपनी एक ऊँगली सुन्दरा के और दूजी आंटी के भीतर घुसा दी. मैं बैठ कर ऐसा कर रही थी. मेरी हालत ख़राब हो रही थी कि मैं अपना बहाव किस तरह महसूस करूँ जो भीतर से आ रहा है. सुंदरा और आंटी ने एक साथ अपने हाथ मेरे जननांग के पास ले आई और मेरे अपनी हथेलियाँ मेरे जननांग पर रखकर दबाने लगी. मुझे यह बहुत अच्छा लगा. अगले ही पल सुंदरा ने एक आह भरी. उसकी जननांग में से गाढ़ी मलाई बाहर की तरफ आने लगी और मेरी ऊँगली से टकराकर हम दोनों को लहरों में डूबने लगी. तभी आंटी ने भी के मीठी आवाज से मुझे लहर में बाँध दिया. मेरी दोनों उंगलियाँ गीलापन और जबरदस्त मीठापन महसूस करने लगी. आंटी और सुंदरा की हथेलियों के दबाव ने अब मेरी अन्दर की मलाई को बाहर ला दिया. हम तीनों अब एक बार जोर से तडपी और फिर शांत हो गई.
बाद में फिर से आंटी और सुंदरा मेरे ऊपर टंगे रखकर सो गई और मैंने उन दोनों के साथ होंठों और गालों के साथ किस का दौर जारी कर दिया. बाद में हम इसी मुद्रा में एक दूजे से लिपटी हुई सो गई.
सुबह जब हम उठी तो हम तीनों ही बहुत खुश थी. आंटी ने मुझे कहा " चिकने तू हम को पाता नहीं किस दुनिया में ले जाकर छोड़ेगी. अब तो ऐसा लग रहा है कि हम तीनों रोजाना ऐसा ही करें." मैं बहुत खुश हुई. सुंदरा भी खुश हो गई.
इसके बाद करीब दस बारह दिन में एक बार ऐसा मौका मिल ही जाता जब हम तीनों आपस में एक साथ लेस्बियन सेक्स करते.
हम तीनों अभी भी इसी तरह से एक साथ हैं.
आखिर में आपको एक रात के फुल टॉप सेक्स की बात बता रही हूँ. उस रात मैंने अंकल से बचाकर छुपाकर सुंदरा को मेरे कमरे में रोक लिया. आंटी को पता था. मैं और सुन्दरा बिस्तर में थी. सुन्दरा ने खूब सारा मसाज आयल लगाकर मेरे सारे जिस्म केस खूब मालिश की और मेरे सारे बदन को तेल की चिकनाई से फिसलन भरा और चमकीला कर दिया. मैंने भी बदले में सुन्दरा के साथ यही किया. फिर बाद में हम दोनों अपने अपने फिसलन वाले नंगे जिस्मो को एक दूजे के साथ अलग अलग जगह टच करा कराकर जबरदस्त मजे करने लगी. उधर आंटी अंकल के साथ थोड़ी देर मजे लेने के बाद जब अंकल सो गए तो हमारे साथ आ गई. हम दोनों को ऐसी हालत में देख आंटी के मुंह में पानी आ गया. मगर वो थोडा थकी हुई थी. हम दोनों ने मिलकर आंटी के बदन की उसी तेल से जबरदस्त मालिश कर आंटी को ताज़ा कर दिया और नशे में ला दिया. फिर हम तीनों बारी बारी से शुरू हो गई. मुझे ऐसा लगा जैसे ये मेरी अब तक की सबसे मीठी रात है.
मसाज के तेल की फिसलन हम तीनों को पागल किये जा रही थी. उत्तेजना बढती जा रही थी. मेरे अन्दर तूफ़ान उठने लगा था. कुछ देर बाद मैं पूरी तरह से बेकाबू हो गई और पलंग पर तड़पने लगी. सुन्दरा ने मुझे अपने से लिपटकर मुझे जगह जगह चूमना शुरू किया. आंटी भी हमारे पास आ गई और वो भी मुझे सुन्दरा के साथ जगह जगह चूमने लगी. मेरी भूख मिटने लगी मगर उत्तेजना एकदम टॉप में पहुँचने लगी. आंटी ने कुछ सोचा और फिर सुन्दरा के जननांग को मेरे जननांग से टच कर दिया , मैं सुंदरा के ऊपर लेटी थी. अब आंटी ने अपनी ऊँगली सुन्दरा के जननांग में इस तरढ़ से डाली कि मुझे मेरे जननांग के आसपास गुदगुदी महसूस हुई.
मेरी तड़प फिर भी कम नहीं हो रही थी. मुझे यह लग रहा था कि दोनों ही मुझे इतना चूमे, इतना दबाये कि मैं किसी झरने की तरह बहने लगूँ. आंटी और सुंदरा दोनों ही मेरी तड़प को समझ गई. आंटी ने सुन्दरा को सोफे की कुर्सी पर बैठने को कहा. फिर आंटी ने मुझे सुंदरा की गोद में इस तरह बिठाया कि मेरी पीठ सुंदर के उभरी हुई छातीयों से सट गई और मेरा और सुंदरा का मुंह आंटी के सामने था. अब आंटी धीरे से आगे आई और सुन्दरा और मेरी टांगों को फैला दिया और अब हम दोनों के जननांग आंटी के सामने थे एक के ऊपर एक. अब आंटी ने धीरे से अपने निचले हिस्से हम दोनों के जननांगों से टच कर दिया और धीरे धीरे सहलाने लगी. तेल की फिसलन से हम तीनों को जबरदस्त मज़ा आने लगा और मेरी हलचलें तेज होती चली गई. आंटी कभी मेरे तो कभी सुंदरा के होंठों को चूमती. मैं एक सेंडविच की तरह दो बड़ी बड़ी छातीयों के बीच गुदगुदपन महसूस करने लगी. आंटी के निचले हिस्से की जगह ने ऐसा नशा चढ़ाया के करीब दस मिनट की इस रगदन ने एक के बाद हम तीनों के अन्दर की मलाई क्रीम को बाहर बहा दिया. चूँकि हम तीनों के निचले हिस्से एक दूजे से बिलकुल सटे हुए थे तो उस गीलेपन का मजा हम तीनों को खूब आया और काफी देर तक इस मलाई क्रीम के साथ हम मालिश करती रही. बाद में आंटी और सुन्दरा ने अपनी अपनी जगहें बदली और यही शुरू रखा. आखिर में हम तीनों ने खड़े होकर एक साथ एक लम्बा फ्रेंच किस अपनी अपनी जीभ से किया और बाद में पलंग में एक दूजे के सह लिपटकर सो गई.
मैंने कहा था ना कि आप भी इस को पढ़कर अपने बहाव को रोक नहीं सकोगे.
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