मैं और मेरा परिवार

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xyz
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Re: मैं और मेरा परिवार

Post by xyz »

फ्लॅशबॅक 812सी

पिताजी ने नेहा और नीता को इजाज़त दे दी

पर नेहा को इजाज़त मिलने के बाद भी खुश नही थी

क्या चल रहा था नेहा के दिमाग़ मे

उसको तो इजाज़त मिल गयी पर उनके चेहरे पे ये फीकी स्माइल क्यू थी

दोनो अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो पिताजी ने इनको रोक लिया

पिताजी- तुम दोनो को नही सब को तय्यार होने को कहा है

नेहा- पिताजी हमे अकेले जाना है

पिताजी- तुम मंदिर नही जा रही हो

नेहा - पर आपने अभी तो पर्मिशन दी थी

पिताजी- तुम छोटी हो मंदिर मे जाने को

नीता - पिताजी

पिताजी- तुम्हे शहर ले जाता हूँ , तुम मंदिर जाने का भूल जाओ

नेहा - हमे मंदिर जाना है

पिताजी- तुम्हे शहर ले जा रहा हूँ मंदिर जाने से ज़्यादा मज़ा आएगा

नीता - हमे पंडितजी को डराना है

पिताजी-शहर मे ज़्यादा मज़ा आएगा

नीता - हमे मंदिर जाना है

नेहा - हम शहर चलेंगे पर मैं जो कहूँगी वो करना होगा

पिताजी- तुम जो कहूँगी वही करेंगे

नीता - नेहा तुमने तो कहा था

नेहा - प्रॉमिस कीजिए

पिताजी- प्रॉमिस

नीता- पर हमे तो मंदिर जाना था

नेहा को शहर जाने की पर्मिशन मिलते वो उछल पड़ी

नीता को समझ नही आ रहा था कि नेहा कर क्या रही थी

प्लान तो मंदिर जाने का था

फिर नेहा शहर जाने की बात से इतनी खुश क्यू है

नीता तो अपना सर खुजा रही थी

पिताजी भी समझ नही पा रहे थे कि नेहा इतनी खुश क्यूँ है

उन्हो ने तो शहर जाने की इजाज़त दी फिर नेहा इतनी खुश क्यू है और नीता ऐसा रिक्ट क्यू कर रही थी

नीता - नेहा तुझे क्या हो गया , हमे मंदिर जाना था ना

नेहा - नीता हम शहर जाएँगे , राजेश खन्ना की नयी मूवी देखेंगे

नीता - क्या ?

नेहा - तूने तो रात मे कहा था कि राजेश खन्ना की नयी मूवी देखनी है तुझे

नीता - पर मंदिर जाने की बात

नेहा - वो नाटक था पिताजी को शहर ले जाने के लिए

पिताजी- तो तुम.मंदिर जाने का नाटक कर रही थी

नेहा - हाँ , मुझे शहर जाना था

पिताजी- तू सीधे सीधे बता देती तो मैं मना नही करता

नेहा - पर माँ मना करती ,

पिताजी- तू भी ना नेहा , चलो सब तय्यारी करो शहर जाएँगे हम

नीता - मुझे नही जाना शहर

नेहा- तुझे क्या हुआ


नीता - तूने अपना प्लान मुझे पहले क्यू नही बताया

नेहा - राजेश खन्ना की मूवी है

नीता - मुझे तूने बताया क्यू नही

नेहा - सॉरी बाबा , मैं ने तेरे लिए ये सब किया

नीता - तुझे बताना चाहिए था ,राजेश खन्ना से मुझे तू प्यारी है

पूजा-नीता नही आ रही है तो उसके पॉपकॉर्न मैं खा लूँगी

जयसिंघ-मैं भी नीता की आइस क्रीम खा लूँगा

नेहा - नीता नही जाएगी तो मैं भी नही जवँगी , नीता मैं ने तेरे लिए किया

पिताजी- नीता राजेश खाना की मूवी है

नीता - तुम दुबारा ऐसा मत करना , तभी आउन्गि

नेहा - अब सब कुछ तुझे बताया करूँगी

माजी - आप बिगाड़ रहे है दोनो को ,

छोटू- मैं तय्यार हूँ

पूजा - छोटू तुझे नही ले जा रहे है

छोटू- माँ मैं पूजा का खून पी जाउन्गा

नेहा- छोटू डार्क्युला बन गया , भागो शहर भागो

पिताजी- तुम चिंता मत करो मेरी बेटी अपनी मर्यादा जानती है

माजी- जैसा आप ठीक समझे

छोटू- चलिए ना मैं तय्यार हू

पिताजी- तुम सब भी तय्यार हो जाओ ,

नेहा ने फिर से अपनी शैतानी दिमाग़ से एक बढ़िया प्लान तय्यार किया

मंदिर जाने नही देंगे ये बात नेहा को पता थी तभी उसने मंदिर जाने का बहाने करके शहर जाने का प्रॉमिस करवा लिया

नेहा ने नीता के लिए सब किया

नीता को राजेश खन्ना कितना पसंद है ये सबको पता है

राजेश खन्ना की नयी मूवी और नीता ना देखे ये नेहा कैसे होने देती

नीता के लिए तो नेहा कुछ भी कर सकती है

नेहा और नीता का प्यार देख कर पिताजी को अच्छा लगा

पूजा को भी शहर जाने को मिल रहा है

वो भी शहर से अपने काम की चीज़े खरीद लेंगी

पूजा अपने पैसे बचा कर रखती है ताकि जब भी वो शहर जाने तो चुपके से उसकी चीज़े वो ले सके

जयसिंघ को भी कुछ किताबें ख़रीदनी थी

जयसिंघ को मूवी देखने मे इंटेरेस्ट नही था

पर थियेटर के पास जो मॉडर्न स्कूल है उसमे जयसिंघ का इंटेरेस्ट था

जयसिंघ उस स्कूल को देखने जाता है , उसकी इच्छा है कि वो ऐसे स्कूल मे पढ़ कर इंजिनियर बन जाए

छोटू तो नेहा के इस चक्केर की वजह से खुश था

उसे मूवी देखने को मिल रही थी

कल स्कूल मे अपने दोस्तो को मूवी के किस्से बता कर अपनी बढ़ाई करेगा

सब तय्यार होते पिताजी सबको शहर ले जाने लगे

नीता तो नेहा का हाथ पकड़ कर चल रही थी

नेहा ने सही टाइम पर ड्रामा किया , उनके गाओं मे जो एक बस आती है उस मे बैठ कर शहर आ गये

शहर आते सब थियेटर की तरफ जाने लगे


पाँचो भाई बहन एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आगे आगे चल रहे थे ,

पिताजी और माजी उनके पीछे पीछे चल रहे थे

अपने बच्चो को इस तरह साथ साथ चलते हुए , उनका प्यार देख पिताजी और माजी खुश थे

माजी- सुनिए

पिताजी- हां ,

माजी- जय अपने भाई बहनों को कैसे साथ लेकर चल रहा है

पिताजी- हां, मैं चाहता हूँ कि वो सबको साथ लेकर चले

माजी- छोटू पे अगेर जय ने ध्यान दिया तो वो भी उसकी तरह पढ़ाई करेगा

पिताजी- छोटू को तुम्हारे लाड प्यार ने बिगाड़ दिया है

माजी- वो बचपन से ऐसा है तो उसमे उसकी क्या ग़लती , देखना मेरा छोटू इस घर को संभालेगा

पिताजी- तुम सही कह रही हो , जय के सपने बहुत बड़े है , मुझे डर लग रहा है उसके सपनो से

माजी- सपने देखना तो अच्छी बात होती है

पिताजी- पर जय कुछ ज़्यादा ही सीरीयस हो गया है , वो शहर3 जाकर पढ़ना चाहता है

माजी- जाने दीजिए ना , उसकी इतनी इच्छा है तो , उसको भी उसके मर्ज़ी से जीने दीजिए

पिताजी- अगेर वो शहर3 चला गया तो हमारे गाओं हमारी परंपरा का क्या होगा ,वो शहर की रोनक मे खो जाएगा

माजी- वो सिर्फ़ पढ़ने तो जाना चाहता है

पिताजी- तुम समझ नही रही हो ठाकुर ने मुझे बताया है कि एक बार अगर शहर चला गया तो गाओं वापस आना मुश्किल हो जाता है

माजी- ठाकुर भी तो विलायत से आए थे

पिताजी- उनको उनकी हवेली की वजह से आना पड़ा

माजी- जय भी आ जाएगा

पिताजी- उसके सपने बढ़ते जाएँगे शहर जाकर

माजी- सोचिए ना अगर जयसिंघ अच्छा ऑफीसर बन गया तो उसके पीछे पीछे पूजा नेहा नीता और छोटू भी कुछ बनेगे

पिताजी- लेकिन हमारी परंपरा

माजी- उसके लिए हम हैना

पिताजी- क्या मतलब

माजी- हमारा पोता होगा उसे हम अपनी परंपरा का इस घर का वारिश बनाएँगे

पिताजी- जयसिंघ के बेटे को

माजी- जयसिंघ या फिर छोटू के बेटे को

पिताजी- एक बार ठीक से सोचो

माजी- जयसिंघ या छोटू के बेटे को वारिश बना लेंगे

पिताजी- तो जयसिंघ को शहर 3 भेज दूं पढ़ाई करने को

माजी- इनको जीने दीजिए उनकी मर्ज़ी से ,

पिताजी- अगर हमारे पोते ने भी यही कहा तो

माजी- हम उसे अपने पास रखेंगे , जयसिंघ को समझाना मुश्किल होगा , वो अपने सपने को जीना चाहता है

पिताजी- तुम कह तो सही रही हो , जयसिंघ किसी भी पूजा मे भाग नही ले रहा है

माजी- उसका मन ही नही है इसमे तो वो हमारी परंपरा आगे लेकर गया तो भी उसका फ़ायदा नही होगा , मंदिर मे मेले के समय दिल से पूजा करनी पड़ती है , जय का दिल कही और होगा

पिताजी- मुझे इतना बताओ तुम क्या चाहती हो

माजी- जयसिंघ को शहर3 जाने दीजिए , उसे उसके मर्ज़ी से जीने दीजिए , आप देखना , हमने अगर सच्चे दिल से पूजा की है तो जयसिंघ खुद हमारे पास आएगा और कहेगा कि वो परंपरा आगे चलाना चाहता है

पिताजी- काश ऐसा हो

माजी- कल वो आगन मे अकेला बैठ कर आसमान की तरफ देख कर सोच रहा था




पिताजी- क्या कहा जय ने

माजी- वो कह रहा था कि आप सिर्फ़ अपनी बेटियो को प्यार करते है , आपको उसकी कोई परवाह नही है ,

पिताजी- उसने ऐसा कहा

माजी- मुझे ये सुनकर रोना आ गया था

पिताजी- तुम्हे तो पता है मैं सबको एक जैसा प्यार करता हूँ

माजी- पर जय नही समझ रहा ना , उसको तो शहर जाके पड़ना है बड़ा आदमी बनना है

पिताजी- वो अब यहाँ रहा तो , हमारे लिए अच्छा नही होगा और ना उसके लिए

माजी- मैं भी यही कह रही हूँ , पता नही किस मनहूस ने मेरे बेटे के दिमाग़ मे शहर जाने का भूत घुसा दिया है , उसे कीड़े पड़े

पिताजी- मैं कुछ करता हूँ

माजी- आप क्या करेंगे

पिताजी- मैं चाहता हूँ कि ये पाँचो भाई बहन ऐसे साथ साथ ज़िंदगी भर चले ,पर जयसिंघ के रास्ते अलग दिख रहे है

माजी- वो बड़ा होकेर ऐसा बोल रहा है जिस से मुझे डर है कि छोटू भी ऐसा ना सोच ले कि आप उसे प्यार नही करते

पिताजी- मैं बात करता हूँ जयसिंघ से

माजी- किस बारे मे

पिताजी- हम अपना वारिश अपने पोते को बनाएँगे

माजी- जी ,

पिताजी- तब जयसिंघ भी बीच मे आया तो मैं सुनूँगा नही , मेरा पोता ही मेरा वारिश बनेगा

माजी- अपने पोते को हम आपके जैसा बनाएँगे

पिताजी- हमे जयसिंघ से बहुत उम्मीद थी , जाने दो जीने दो उसे उसके मर्ज़ी से , उड़ने दो उसे ,

माजी- यही ठीक होगा

पिताजी- पर ऐसे नही उसे कुछ करना होगा

माजी- क्या ?

पिताजी- उसके अच्छे मार्क्स लाने होंगे तभी उसे शहर3 भेजेंगे

माजी- मैं दुआ करूँगी की उसे कम मार्क मिले ताकि वो गाओं मे ही रहे

पिताजी- और क्या कहा था जयसिंघ ने

माजी- उसने कहा कि दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी है और हम यही गाओं मे उसी पुरानी परंपरा मे फसे हुए है , उसे ये सब नही करना , उसे दुनिया के साथ चलना है , उसे बड़ा आदमी बनना है

पिताजी- वो अब हमारे काम नही आएगा

माजी- वही मैं कह रही थी

पिताजी- उसे शहर3 ही भेज देने मे उसकी और हमारी भलाई है , उसे शहर3 के कीड़े ने काट लिया है

माजी- आप बस सोच समझ कर फ़ैसला करना

पिताजी- हम मिलकर फ़ैसला करते है , और जयसिंघ को उसके मर्ज़ी से जीने देते है

माजी- जी , देखिए , जयसिंघ की नज़रें कहाँ है

जयसिंघ को जाना है थियेटर की तरफ पर वो स्कूल की तरफ देख रहा था

शहर के मॉडर्न स्कूल के बच्चों को देख कर जयसिंघ ने पूजा और छोटू का हाथ छोड़ दिया

बाकी चारो आगे जाने लगे

पर जयसिंघ वही रुक कर स्कूल की तरफ देखने लगा

माजी- देखा आपने

पिताजी- तुम सही कह रही हो ,जयसिंघ ने अपने भाई बहनों का साथ छोड़ दिया है , अभी से वो चारों जयसिंघ के बिना रहेंगे तो उनको आगे जाकर जयसिंघ की कमी महसूस नही होगी ,

माजी- जयसिंघ

पिताजी- रहने दो उसे यहाँ

माजी- पर

पिताजी- उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो हम थियेटर मे चलते है

जयसिंघ स्कूल के पास चला गया

और बाकी सब थियेटर के अंदर आ गये

जयसिंघ तो दिन मे सपने देख ने लगा

उसे लग रहा था कि वो भी इस स्कूल मे पढ़ रहा है

वो तो सबको भूल ही गया और अपने सपनो मे खो गया
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shubhs
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Re: मैं और मेरा परिवार

Post by shubhs »

ये तो सभी का सपना है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
mini

Re: मैं और मेरा परिवार

Post by mini »

mza nahi aa rha,,,,change something
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shubhs
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Re: मैं और मेरा परिवार

Post by shubhs »

अपडेट
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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