दास्तान - वक्त के फ़ैसले Complete Story

RohitKapoor
Rookie
Posts: 99
Joined: 22 Oct 2014 22:33

दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-3

Post by RohitKapoor »

जूली राज के लंड को ज़ूबी की चूत पर ऊपर नीचे कर के घिस रही थी। राज ने थोड़ा सा दबाव लगाते हुए अपने लंड को ज़ूबी की चूत में घूसा दिया। जैसे ही उसका लंड ज़ूबी की चूत में घूसा, ज़ूबी को हल्का सा दर्द हुआ। ज़ूबी ने टेबल के किनारे को और कस के पकड़ लिया और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ठीक अपने निकाह में बैठने के पहले वो किसी और मर्द से चुदवा रही थी।

राज ने ज़ूबी के शरीर को काँपते हुए देखा। उसकी सूखी चूत शायद उसके मूसल लंड के लिये तैयार नहीं थी। राज ने भी कोई जोर नहीं लगाया, वो आराम और धीरे से अपने लंड को उसकी चूत में घुसाने लगा। वो तो ज़ूबी को सिर्फ़ ये बताना और ये एहसास दिलाना चाहता था कि वो जब और जहाँ चाहे ज़ूबी को चोद सकता है। वो ये बताना चाहता था कि ज़ूबी की शादी के बाद भी हालात यही रहने वाले हैं और बदलेंगे नहीं।

राज ने ज़ूबी के चूत्तड़ों को कस कर पकड़ा और अपने लंड को अंदर तक घुसा दिया। ज़ूबी की चूत गीली हो जाये इसलिये उसने अपने लंड को अंदर तक घुसा कर वहीं थोड़ी देर तक रहने दिया। फिर उसने थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर हल्के से अंदर पेल दिया। जब उसने देखा कि ज़ूबी का मुँह खुला है और वो गहरी साँसें ले रही है तो वो समझ गया कि लौंडिया को भी मज़ा आ रहा है।

थोड़ी ही देर में ज़ूबी की चूत गीली हो गयी और अब राज का लंड बड़ी आसानी से अंदर बाहर हो रहा था। राज ने देखा कि ज़ूबी ने अपने शरीर को पत्थर सा कर लिया जिससे वो ये अंदाज़ा ना लगा सके कि वो भी बड़े आनंद से चुदाई का मज़ ले रही है। राज इस बात की परवाह ना करते हुए उसकी चूत में जोरों से लंड को अंदर बाहर कर रहा था। राज ने जानबूझ कर कई दिनों से किसी को चोदा नहीं था, जिससे वो ज्यादा से ज्यादा पानी ज़ूबी की चूत में छोड़ सके।

किसी लड़की को उसकी शादी से चंद मिनट पहले वो चोद रहा है, इस ख्याल ने राज के शरीर में और उत्तेजना भर दी। ये लड़की अब उसकी गुलाम है, वो जब चाहे और जैसे चाहे उसे इस्तमाल कर सकता है, और थोड़ी देर में ही वो उसकी चूत को अपने पानी से भरने वाला है।

वहीं ज़ूबी शरम के मारे मरी जा रही थी पर चुदाई एक ऐसी चीज़ है कि इंसान चाह कर भी अपनी उत्तेजना को छुपा नहीं सकता है। जैसे ही ज़ूबी को ये एहसास हुआ कि उसकी चूत भी पानी छोड़ने वाली है, उसके कुल्हे अपने आप ही पीछे की ओर हुए और राज के लंड को अपनी चूत के अंदर तक ले लिया।

ज़ूबी के कुल्हों को अपने शरीर से सटते देख राज और जोरों से धक्के लगाने लगा। ज़ूबी अब उसके धक्कों का साथ दे रही थी। ज़ूबी को लगा कि अब उससे सहन नहीं होने वाला है तो उसने अपना हाथ अपनी टाँगों के बीच किया और राज के अंडकोशों को पकड़ कर मसलने लगी। थोड़ी ही देर में राज के लंड ने उसकी चूत में पानी छोड़ दिया।

ज़ूबी उसकी गोलियों को मसलते हुए उससे उसका पानी निचोड़ रही थी, कि अचानक उसका शरीर काँपा। उसने अपने होंठों को दाँतों से दबा लिया जिससे उसकी उत्तेजना की चींख बाहर ना सुनायी दे सके। उसकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया।

राज भी ज़ूबी के कुल्हों को पकड़ कर अपना पानी उसकी चूत में छोड़ने लगा। जब उसने देखा कि उसके अंडकोश खाली हो गये हैं और एक-एक बून्द ज़ूबी की चूत में गिर पड़ी है तो उसने अपने लंड को ज़ूबी की चूत से बाहर निकाल लिया।

ज़ूबी ने अपनी साँसों पर काबू पाया और देखा कि जूली राज के लंड को अपने मुँह में ले कर चूस रही है। थोड़ी देर बाद जूली ने उसके लंड को अपने मुँह से निकाला और उसे राज के अंडरवीयर में रख कर उसकी पैंट को ऊपर खींच दिया। फिर जूली उठी और ज़ूबी को कपड़े दुरुस्त करने में मदद करने लगी। फिर राज ने जाकर कमरे का दरवाजा खोल दिया। ये सब इतनी जल्दी से हुआ कि ज़ूबी को मौका ही नहीं मिला कि वो अपनी पैंटी राज से माँग सकती।

जैसे ही उसके परिवार वाले और उसके मेहमान कमरे में आये, राज ने बड़ी विनम्रता से उनसे बात की और जूली को अपने साथ ले कर वहाँ से चला गया। ज़ूबी बड़ी डरी और सहमी हुई सी कमरे के बीचों बीच खड़ी थी, उसे डर था कि कहीं किसी को उस पर कोई शक ना हो जाये। जब निकाह का वक्त हो गया तो उसकी सहेलियाँ उसे लेकर नीचे आ गयीं।

ज़ूबी अपनी सहेलियों का हाथ पकड़े निकाह वाले हॉल की ओर आ रही थी। कमरा मेहमानों से भरा पड़ा था और सभी ज़ूबी को देख मुस्कुरा रहे थे। मिस्टर राज और जूली पास ही खड़े थे। वो राज से नज़रें बचाते हुए दूसरे मेहमानों की ओर देख मुस्कुरा रही थी, कि तभी उसने महसूस किया कि राज का वीर्य उसकी चूत से बहकर उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से को और उसकी टाँगों को गीला कर रहा है।
RohitKapoor
Rookie
Posts: 99
Joined: 22 Oct 2014 22:33

दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-3

Post by RohitKapoor »

ज़ूबी कि शादी को कई हफ़्ते बीत चुके थे। आज भी उसे वो दिन याद था कि शादी के तुरंत बाद कैसे बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको साफ़ किया था जिससे उसके शौहर को उस पर शक ना हो पाये। जैसे-जैसे समय बीतता गया, वो अपने साथ हुए हादसों को भूलने लगी।

वो खुशकिस्मत थी कि उसी इज्जत के साथ उसे आज भी अपनी नौकरी हासिल थी। किन हादसों से गुज़र कर उसने अपनी नौकरी बचायी थी। गलती उसकी ही थी शायद, एक तो इतने बड़े ग्राहक का केस उसने गलत तरीके से संभाला था, दूसरा अगर उसकी गलती सामने आ जाती तो शायद उसे अपने वकील के लायसेंस से भी हाथ धाना पड़ सकता था। पर उसकी मेहनत और लगन ने उसे इन सबसे बचा लिया था।

एक अंजान सा डर अब भी ज़ूबी के जेहन में आता रहता था। उसे पता था कि एक ना एक दिन मिस्टर राज जरूर उसे याद करेगा और हो सकता है कि शर्मिन्दगी और जिल्लत का वही दौर फिर से शुरू हो जाये। उसने कई कोशिश कि वो राज के चुंगल के निकल जाये, पर जब तक राज के पास उसकी चुदाई का वीडियो कैसेट था वो कुछ नहीं कर सकती थी।

गुजरते वक्त के साथ उसे लगने लगा कि राज उसकी ज़िंदगी से निकल गया है, पर अल्लाह अभी कहाँ उसपर मेहरबान हुआ था।

एक दिन सुबह वो अपनी कंपनी के पार्टनर के साथ उसके केबिन में किसी केस पर बहस कर रही थी कि तभी इंटरकॉम पर रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ आयी।

“ज़ूबी, मिस्टर राज लाइन नंबर सात पर तुमसे बात करना चाहेंगे” रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनायी दी।

रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनकर उसके हाथ में पकड़ा कॉफी का मग हिलने लगा। उसका बदन फिर एक डर से काँप उठा। फाइल जो उसकी गोद में पड़ी थी फ़िसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।

“ज़ूबी तुम ठीक तो हो ना?” पार्टनर ने पूछा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!

ज़ूबी ने अपनी गर्दन धीरे से हिलायी और लगभग लड़खड़ाती आवाज़ में जवाब दिया, “मिस्टर प्रशाँत! एक जरूरी फोन है जिसे मुझे लेना पड़ेगा, मैं अभी आयी।”

बिना कुछ और कहे ज़ूबी कुर्सी से उठी और काँपते हाथों से कॉफी के मग को पार्टनर की टेबल पर रखा और लगभग दौड़ती हुई अपने केबिन में पहुँची।

मिस्टर प्रशाँत, एक चालीस साल का आदमी था। वो हैरानी से ज़ूबी को अपने केबिन से जाते हुए देखता रहा। जैसे ही वो केबिन के बाहर निकली, उसने उठकर अपने केबिन का दरवाजा बंद किया और अपनी अलमारी से एक छोटा सा टेप रिकॉर्डर निकाल कर फोन से अटैच कर दिया। फिर वो लाइन सात के कनेक्ट होने का इंतज़ार करने लगा। उसने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया और ज़ूबी और मिस्टर राज की बातें सुनने लगा।

वो सोच रहा था कि कंपनी के सबसे बड़े ग्राहक के साथ ज़ूबी अकेले में क्या बात करना चाहती है। कहीं दोनों के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही।

“हेलो! हाँ मैं ज़ूबी बोल रही हूँ।”

“हाय, ज़ूबी! राज बोल रहा हूँ। कैसी हो मेरी काबिल वकील?” राज ने पूछा।

“मैं ठीक हूँ,” ज़ूबी किसी भी निजी विषय पर उससे बात नहीं करना चाहती थी, “क्या आप अपनी फाइल के बारे में बात करना चाहते हैं?”

“वैसे तो मैं अपनी फाइल के बारे में भी जानना चाहता हूँ, पर मुझे ये कहते हुए अफ़सोस हो रहा है कि तुम भूल गयी हो कि मैं कौन हूँ।”

“ऐसे कैसे भूल सकती हूँ आपको,” ज़ूबी जबर्दस्ती हंसते हुए बोली, “मैं आपके नये केस के सिलसिले में आपसे बात करने ही वाली थी।”

“हाँ... हाँ... मेरी बात धयान से सुनो, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा” राज ने कहा।

राज की बात सुनकर ज़ूबी का दिल बैठ गया, “क्या चाहते हैं आप मुझसे?”

“दिल्ली में मेरी एक दोस्त है, जिसे उसके बिज़नेस में कुछ मदद चाहिये” राज ने जवाब दिया, “मैं चाहता हूँ कि गुरुवार को तुम दिल्ली जाकर उससे मेरे ऑफिस में मिलो। तुम रविवार की शाम तक रुकने के हिसाब से अपना प्रोग्राम बनाना।”

ज़ूबी की समझ में नहीं आया कि वो क्या जवाब दे, “क्या ऑफिस से और वकील भी मेरे साथ जायेंगे?” ज़ूबी ने पूछा।

“नहीं मैं चाहता हूँ कि तुम अकेली वहाँ जाओ” राज ने जवाब दिया।

“क्या मैं अपने शौहर को अपने साथ ला सकती हूँ?”

“हाँ जरूर ला सकती हो,” राज ने कहा और जोरों से हंसने लगा, “मुझे विश्वास है कि वहाँ पर तुम अपनी चुदाई अपने शौहर को दिखाना नहीं चाहोगी। मैं तो वो सीडी भी तुम्हारे शौहर को दिखा सकता हूँ जिसमें मैं तुम्हारी चुदाई कर रहा हूँ, और उसे वो भी बताना चाहुँगा कि किस तरह होटल के कमरे में तुमने कितने मर्दों के साथ एक साथ चुदवाया था।”

ज़ूबी खामोशी से सहमी हुई राज की बातें सुनती रही।

तभी राज ने आगे कहा, “क्या मैं तुम्हारे शौहर को उस होटल के रूम सर्विस वाले नौजवान के बारे में भी बताऊँ कि किस तरह उसने तुम्हारी चुदाई की थी।”

फोन पर थोड़ी देर खामोशी छायी रही। तभी ज़ूबी ने जल्दी से कहा, “नहीं... नहीं... मेरे शौहर को इस सब में मत घसीटो, ये तुम्हारे और मेरे बीच की बात है... इसे हम दोनों तक ही सिमित रहने दो।”

“ठीक है तो फिर अपने जाने की तैयारी करो और वहाँ पर रविवार की शाम तक का प्रोग्राम बना लो,” राज ने कहा। फिर राज ने उसे उस औरत का फोन नंबर दिया जिससे उसे दिल्ली में सम्पर्क करना था और कहना था, “मैं आपका वो इनाम हूँ जिसे मिस्टर राज ने आपको देने को कहा था।” राज फिर हंसा, “समझ गयी ना।”

“हाँ मैं समझ गयी, वैसे ही होगा जैसा आप चाहेंगे,” कहकर ज़ूबी ने फोन रख दिया।

उधर मिस्टर प्रशाँत ने भी फोन रख दिया और टेप रिकॉर्डर को ऑफ कर दिया। उसने वो फोन नंबर भी लिख लिया था जो राज ने ज़ूबी को दिया था। वो उठा और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी और वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

वो राज और ज़ूबी की बातें सुनकर हैरान था। उसे ये शक तो था कि ऑफिस में कहीं गड़बड़ जरूर है। उसे ये भी शक था ऑफिस में काम करने वाली लड़कियाँ क्लायंट्स का बिस्तर गरम करती हैं, पर ज़ूबी... उसके लिये तो वो ऐसा सोच भी नहीं सकता था। ज़ूबी इतनी मेहनती और अच्छे चाल चलन वाली लड़की थी।

प्रशाँत ने फोन उठाया और दिल्ली का वो नंबर मिलाया जो राज ने ज़ूबी को दिया था। दूसरी तरफ़ एक औरत ने फोन उठाया।

“मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ,” एक मादक और सैक्सी आवाज़ ने पूछा।

प्रशाँत ने नंबर तो मिला लिया था पर उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या कहे, उसने खंखारते हुए कहा, “मुझे ये नंबर किसी ने दिया था।”

“क्या आप दिल्ली में है जनाब।”

“नहीं फ़िलहाल तो नहीं! पर इस शनिवार को मैं दिल्ली पहुँच रहा हूँ,” प्रशाँत ने जवाब दिया।

“क्या आपको एक जवान लड़की की जरूरत है?” उस मादक आवाज़ ने पूछा।

अब उसकी समझ में आया कि ये नंबर किसी वेश्यालय का है या फिर ऐसी सर्विस सैंटर का है जो लड़कियाँ सपलायी करती है। “हाँ मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था” उसने जवाब दिया।

“हमारे यहाँ बहुत ही खूबसूरत और जवान लड़कियाँ उपलब्ध हैं। जब आप शहर में आ जायें तो इस नंबर पर सम्पर्क कर के अपनी जरूरत बता दें, ठीक है।”

“जरूर,” कहकर प्रशाँत ने फोन रख दिया।

तभी ज़ूबी ने केबिन के दरवाजे पर दस्तक दी, “क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?”

प्रशाँत ने उसे अंदर आने का इशारा किया और गौर से उसे देखने लगा। ज़ूबी ने एक सिल्क का ब्लाऊज़ पहना था जो गले के नीचे तक खुला हुआ था। प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी ने एक टाइट स्कर्ट पहन रखी थी जिससे उसके चूत्तड़ों की गोलाइयाँ साफ़ दिखायी दे रही थी और पैरों में काफी हाई हील के सैंडल पहने हुए थे जिनसे उसकी चाल और भी सैक्सी लग रही थी। ज़ूबी उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी जिससे उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से दिख रहे थे। ये सब देख कर प्रशाँत का लंड पैंट में खड़ा होने लगा।

प्रशाँत को मन ही मन गुस्सा आ रहा था। उसे आज से कई साल पहले का वो किस्सा याद आ गया जब वो ऑफिस में नये और काबिल वकीलों को भर्ती कर रहा था। इस काम में इंटरवियू, गैदरिंग और पिकनिक शामिल थी। उसे याद आ रहा था कि उस दिन ज़ूबी कितनी सुंदर दिख रही थी शॉर्ट स्कर्ट और टॉप में। उस दिन शाम को पार्टी में वो कुछ ज्यादा ही पी गया था और भूल से उसने ज़ूबी को बांहों में भर कर चूमना चाहा था, पर किस कदर ज़ूबी ने उसकी बेइज्जती की थी और ये बात उसके पार्टनरों और बीवी तक को बताने की धमकी दी थी। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!

कई बार माफी माँगने के बाद वो ज़ूबी को समझा पाया था। इस बात का ज़िक्र ज़ूबी ने फिर कभी किसी से नहीं किया था। पर प्रशाँत ने ज़ूबी को माफ़ नहीं किया था, कि किस कदर उसने उसे धमकाया था। शायद बदले का समय आ गया था।

प्रशाँत के ख्यालों से बेखबर ज़ूबी अपनी ही सोच में खोयी हुई थी। “कहो ज़ूबी क्या काम है?” प्रशाँत ने पूछा।

“ओह सर! मुझे गुरुवार को किसी काम से दिल्ली जाना है” ज़ूबी ने चौंकते हुए कहा।

“ठीक है तुम जा सकती हो” प्रशाँत ने उसे जाने की इजाज़त दे दी।

ज़ूबी बड़ी दुविधा में अपना सफ़र का बैग पैक कर रही थी। उसे अपने आप से घृणा हो रही थी। उसे अपनी शौहर से झूठ बोलना पड़ रहा था और साथ ही बेवफ़ायी भी करनी पड़ रही थी। पर शायद ये वक्त का फ़ैसला था जिसे वो मानने पर मजबूर थी। उसकी ज़िंदगी अब उसकी नहीं थी, उसके हाथों से फ़िसल कर किसी और की हो चुकी थी।
RohitKapoor
Rookie
Posts: 99
Joined: 22 Oct 2014 22:33

दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-3

Post by RohitKapoor »

शुक्रवार की सुबह ज़ूबी दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल के बिस्तर पर लेटी थी। बिस्तर की चादर और कंबल उसके नंगे बदन से फ़िसल कर उसके पैरों के पास पड़े थे। उसकी नंगी चूचियाँ तन कर खड़ी थी। वो बिस्तर पर लेटी हुई सामने राज को देख रही थी।

राज कमरे में लगे आइने में देख कर अपने कपड़े पहन रहा था। ज़ूबी अब भी अपनी चूत को राज के वीर्य से भरा हुआ महसूस कर रही थी। उसे लग रहा था कि पानी उसकी चूत से बह कर बिस्तर पर गिर पड़ेगा।

जैसी उम्मीद थी, कल शाम से आज सुबह तक राज ने कई बार उसके शरीर को रौंद कर अपनी वासना को शांत किया था। बावजूद इसके कि वो राज से नफ़रत करती थी और उसका इस तरह उसे चोदना अच्छा नहीं लगता था पर जब भी राज का मूसल लंड उसकी चूत में घूसता तो वो अपनी उत्तेजना को नहीं रोक पाती थी। ना चाहते हुए भी उसकी कमर अपने आप राज के धक्कों का साथ देने लगती और उसका मन करता कि राज इसी तरह उसकी चूत को चोदता रहे। ना चाहते हुए भी उसकी चूत ने कितनी बार पानी छोड़ा होगा उसे याद नहीं।

राज ज़ूबी के पास आया और उसका हाथ पकड़ लिया, “तुम थोड़ा आराम करो,” उसने कहा, “उसके बाद मैंने जैसे तुम्हें समझाया है, वैसा ही करना, समझ गयी ना।”

ज़ूबी ने खामोश रहते हुए अपनी गर्दन हिला दी। उसे पता था कि इन हालातों में प्रश्न करना या विरोध करना मुनासिब नहीं है।

राज के जाने के थोड़ी देर बद वो फोन पर उस नंबर को मिलाने लगी जो राज ने उसे दिया था। वो सोच रही थी कि पता नहीं तकदीर ने उसके लिए भविष्य में क्या-क्या बचा कर रखा है।

फोन मिलते ही एक औरत ने जवाब दिया और ज़ूबी ने उसे अपना परिचय दिया।

“ओहहह... हाँ उसने मुझसे कहा था कि तुम जरूर फोन करोगी, दिल्ली में तुम्हारा स्वागत है” उस औरत ने कहा।

उस औरत का दोस्ती और प्यार भरा अंदाज़ पाकर ज़ूबी को थोड़ी राहत सी हुई। ज़ूबी पहले तो हिचकिचायी और फिर धीरे से बोली, “मुझे नहीं पता कि मैं आपको क्यों फोन कर रही हूँ।”

“उसके लिये तुम्हें मेरे ऑफिस में आना पड़ेगा जहाँ हम बात कर सकेंगे,” उस औरत ने जवाब दिया। फिर उसने ज़ूबी को एक पता लिखाया और दो घंटे में वहाँ पहुँचने के लिए कहा, “याद रखना सुबह के साढ़े दस तक पहुँच जाना।”

“ठीक है मैं पहुँच जाऊँगी,” कहकर ज़ूबी ना फोन रख दिया।

ज़ूबी तुरंत बिस्तर से उठी और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गयी। शॉवर के नीचे खड़ी वो बाथरूम में लगे आइने में अपने बदन को देखने लगी। वो अपने कसे हुए बदन को देख रही थी और उसे पता था कि सारे मर्द उसके इस तराशे हुए बदन पर मरते हैं। उसने घंटों जिम में मेहनत कर के अपने बदन को कसा हुआ रखा था।

नहाते वक्त जब वो अपने निप्पल पर और चूत पर साबून लगाती तो एक अनजानी सी सनसनी शरीर में दौड़ जाती। वो जानती थी कि उसे फँसाया गया है और आने वाले कुछ दिनो में वसना के बहके मर्द उसके शरीर को इस्तमाल करने वाले है।

ज़ूबी ने उस बंगले के दरवाजे की घंटी बजायी। थोड़ी देर बाहर खड़े रहने के बाद दरवाजा खुला और उसने बंगले के अंदर कदम रखा। कमरे के अंदर कई सोफ़े पड़े थे और ढेर सारी कुर्सियाँ भी थी। एक कोने में टी.वी चल रहा था। कमरे में कोई नहीं था सिवाय उस औरत के जिसने दरवाजा खोला था। उसने ड्राइंग रूम के साथ बने ऑफिस में उसे पहुँचा दिया।

“हमारा काम आधे घंटे में शुरू होगा,” उस औरत ने कहा, “तुम अपने साथ कुछ कपड़े लायी हो बदलने के लिए।”

“नहीं,” ज़ूबी ने जवाब दिया, “मुझे पता नहीं था कि कपड़े भी साथ लाने हैं।”

“वैसे तो तुम्हें कपड़ों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी,” वो औरत हंसते हुए बोली, “तुम हो ही इतनी सुंदर कि तुमने क्या पहन रखा है इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता।”

“पर मुझे यहाँ करना क्या होगा?” ज़ूबी ने थोड़ा सहमते हुए पूछा।

“यहाँ पर मर्द लोग आते हैं, और मेरी लड़कियों में से किसी को चुनते हैं... वो लड़की फिर उसका दिल बहलाती है...” उस औरत ने जवाब दिया।

“दिल बहलाती है?” ज़ूबी ने चौंकते हुए कहा।

“मिस्टर राज ने झूठ नहीं कहा था कि तुम बेवकूफ़ हो... अरे यार वो लड़की उस मर्द को एक कमरे में ले जाती है और फिर उससे चुदाई करवा कर उसका दिल बहलाती है।”

उस औरत की ये बात सुन कर ज़ूबी का दिल बैठ गया। राज ने उसे पूरी तरह रंडी बनाने कि ठान ली थी। क्या वो ये सब कर पायेगी। क्या उसके पास इन सब से बचने के लिए कोई रास्ता है। “तुम ये कहना चाहती हो कि मैं यहाँ रंडी बन जाऊँ?” ज़ूबी ने उस औरत से पूछा।

“क्या तुमने इसके पहले ये सब नहीं किया है?”

ज़ूबी देर तक उसकी आँखों में झाँकती रही और फिर अपनी गर्दन ना में हिला दी।

“देखो,” उस औरत ने कहा, “तुम्हारा शरीर इतना सुंदर है कि कोई भी मर्द तुम्हें नापसंद नहीं कर सकता। तुम्हारे इस सुंदर चेहरे और कसावदार बदन को देख कर मुझे लगता है कि तुममें रंडी बनने के सब गुण हैं।”

“पर एक रंडी,” ज़ूबी ने कहा, “लोग क्या कहेंगे!”

“किसी को पता नहीं चलेगा, डरो मत।”

उस औरत का अनुभव इतना था कि उसे पता था कि उसे ये नहीं पूछना था कि ज़ूबी तुम ये करोगी कि नहीं, बल्कि उसने उससे ये कहा कि वो सब संभाल लेगी, पैसों की वो चिंता ना करे उसे बस आने वाले मर्दों को सिर्फ़ खुश करना है।

“अब जब तुम पहनने के लिये कुछ लायी नहीं हो, तो ऐसा करो उस कमरे में चली जाओ और अपने कपड़े उतार दो, सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहने रहना और हाँ अपनी ऊँची ऐड़ी की सैंडल भी मत उतारना” उस औरत ने एक कमरे की और इशारा करते हुए कहा।

ज़ूबी जैसे ही मरे हुए कदमों से उस कमरे की तरफ़ बढ़ी उसे फोन कि घंटी सुनायी दी और फिर उस औरत को बात करते सुना।

“हेलो,” उस औरत की खुशी से भरी आवाज़ सुनायी दी, “हाँ, राकेश तुम आ सकते हो। ओह... हाँ एक नयी चिड़िया आयी है... तुम्हें पसंद आयेगी। बहुत ही सुंदर, जवान और मस्त है। हाँ...! हाँ... मेरे राजा! जल्दी आओ... अरे किसी और को दिखाऊँगी भी नहीं... जल्दी आना। हाँ आज उसका पहला दिन है।”

ज़ूबी की साँसें तेज हो गयी थीं, उसका दिल घबरा रहा था और अंगुलियाँ ब्लाऊज़ के बटन खोलते हुए काँप रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने अपने कपड़े उतारे और फिर धीरे से दरवाजा खोल कर झाँकने लगी।

उस औरत ने उसे बाहर आने को कहा। ज़ूबी बहुत ही अपमानित और शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। तकदीर भी अजीब खेल खेल रही थी उसके साथ। कहाँ एक स्वाभिमानी वकील, अच्छे संसकारों में पली बड़ी वो आज अपने बदन का सौदा करने पर मजबूर थी।

क्रमशः
RohitKapoor
Rookie
Posts: 99
Joined: 22 Oct 2014 22:33

दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-4

Post by RohitKapoor »

दास्तान - वक्त के फ़ैसले (भाग-४)
लेखक: राज अग्रवाल
***********************************************

जूबी उस औरत के सामने सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने खड़ी थी। वो औरत ज़ूबी के तराशे हुए बदन को ध्यान सा देख रही थी। ज़ूबी का संगमरमर सा तराशा बदन और उस पर हल्के गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी - वो सही में बहुत सुंदर दिख रही थी।

ज़ूबी के बदन को निहारते हुए उस औरत के मुँह से हल्की सी सीटी बज गयी, “वाह, मज़ा आ गया तुम्हारे इस मखमली बदन को देख कर, लगता है कि यहाँ आने वालों पर तुम बिजली गिरा के रहोगी, थोड़ा सा घूम जाओ मेरे लिये।”

उस औरत से अपनी प्रशंसा सुनकर ज़ूबी का चेहरा सुर्ख हो गया। उस छोटी सी ब्रा से उसके भारी मम्मे तो साफ़ दिखायी दे रहे थे पर वो शरमा इसलिए गयी कि उसने बहुत ही छोटी पैंटी पहनी थी और घूमने से उसके चूतड़ साफ़ नंगे दिखायी देते।

उस औरत ने एक बर उसके बदन की तारीफ की और उसे दूसरे कमरे में जाने का इशारा किया।

ज़ूबी आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई बगल के कमरे में पहुँची। वहाँ और तीन जवान और सुंदर लड़कियाँ पहले से थी। ज़ूबी ने देखा कि वो तीनों भी काफी सुंदर और जवान थी और उन्होंने भी उसी की तरह सिर्फ़ ब्रा पैंटी और हाई हील के सैंडल पहन रखे थे।

उस औरत ने ज़ूबी का परिचय तीनों लड़कियों से कराया। ज़ूबी शरम के मारे अपनी आँखें ज़मीन पर गड़ाये हुए थी। उसे अपने इस नंगे बदन पर शरम सी आ रही थी और वो अपने आप को कोस रही थी कि आज सुबह उसने ये छोटी वाली ब्रा और पैंटी क्यों पहनी।

उन तीनों लड़कियों ने ज़ूबी का नयी जगह पर उसका स्वागत किया। तभी मेन दरवाजे की घंटी बज पड़ी। उस घंटी को सुन कर वो औरत दरवाज़ा खोलने के लिये दौड़ पड़ी। जब वो वापस आयी तो तीनों लड़कियाँ खड़ी हो गयी। ज़ूबी भी उनकी देखा देख खड़ी हो गयी पर अपनी नज़रें उस आने वाले मर्द से चुराती रही। ज़ूबी ने अपनी जाँघों को अपनी हथेलियों से ढक लिया।

“ओह राकेश लगता है तुमसे थोड़ा भी इंतज़ार नहीं किया गया, जो ऑफिस से दौड़ते चले आ रहे हो,” उस औरत ने आने वाले मर्द को चिढ़ाते हुए कहा। राकेश करीब ४५ साल का था और उसके सिर के बाल लगभग उड़ चुके थे। वो अपने माथे पे आये पसीने को अपने रुमाल से पौंछ रहा था और साथ ही चारों लड़कियों को ध्यान से देख रहा था।

एक लड़की ने अपना परिचय दिया, बाकी दो ने “हाय राकेश” कहकर उसका अभिवादन किया। जब ज़ूबी की बारी आयी तो वो थोड़ा हिचकिचा गयी, “मेरा नाम ज़ू।”

तभी एक लड़की जो शायद ज्यादा अनुभवी थी तुरंत बोल पड़ी, “ये सिमरन है।” ज़ूबी हैरानी से उस लड़की को देखने लगी तो देखा वो मुस्कुरा रही थी। उसने ज़ूबी को अपना असली नाम इस्तमाल करने से बचा लिया था। ज़ूबी बदले में उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी।

पर इसके बाद जो हुआ ज़ूबी उसके लिये तैयार नहीं थी।

उस आदमी ने अपनी जेब से अपना पर्स निकाला और उस औरत की और देखते हुए कहा, “मैं सिमरन से मिलना चाहुँगा, सिर्फ़ आधे घंटे के लिये।” ज़ूबी हैरानी से उस मर्द को देख रही थी जो अपने पर्स से नोट निकाल कर गिन रहा था। वो सोच रही थी एक लड़की को चोदने के लिये कितने पैसों की ज़रूरत हो सकती है।

वो औरत ज़ूबी और राकेश को लेकर हॉल के बगल के कमरे में लेकर आ गयी। फिर उस औरत ने बिस्तर के बगल में एक कॉंन्डम का पैकेट रख दिया।

“अब तुम दोनों मज़े करो,” ये कहकर उस औरत ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और बाहर चली गयी।

“तुम शायद यहाँ पर नयी आयी हो?” अपने जूते उतारते हुए राकेश ने कहा। फिर उसने अपनी पैंट उतारी और फिर शर्ट भी उतार दी। थोड़ी देर में वो अपनी अंडरवीयर उतार कर नंगा हो गया। राकेश की छाती, पीठ और कंधे बालों से भरे पड़े थे। उसका लंड अभी पूरी तरह खड़ा तो नहीं हुआ था पर मोटा काफी था। ज़ूबी ने देखा कि उसके अंडकोश भी काफी बड़े थे।

“सिमरन क्या मैं अकेला ही नंगा रहुँगा? तुम्हें भी अपनी ब्रा और पैंटी उतारनी होगी।” राकेश ने कहा।

ज़ूबी ने अपने कंधे उचकाये और अपनी ब्रा के हुक खोलने लगी। ब्रा उतरते ही उसके दोनों कबूतर पिंजरे से आज़ाद हो गये। शायद चुदाई के ख्याल से ही उसके निप्पल तन गये थे।

राकेश ज़ूबी की भारी और नुकिली चूचियों को देख रहा था और ज़ूबी ने अपनी पैंटी नीचे खिसकायी और अपने पैरों से उतार कर उसे दूर फेंक दिया। ज़ूबी ने देखा कि राकेश उसकी तराशी हुई चूत को देख रहा है।

राकेश ने अपनी बांहें फैलायी और ज़ूबी को पास आने का इशारा किया। ज़ूबी धीरे-धीरे चलते हुए उसकी बांहों में समा गयी। ज़ूबी की नुकिली चूचियाँ राकेश की बालों भारी छाती में धंस रही थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि उसका लंड उसकी नाभी को छू कर एक सनसनी सी उसके शरीर में पैदा कर रहा है।

राकेश उसे बांहों में भर कर उसके चूतड़ सहलाने लगा। ज़ूबी के शरीर मे भी उत्तेजना फैलने लगी। उसके भी हाथ खुद-ब-खुद उसकी पीठ पर कस गये। उत्तेजना मे ज़ूबी का शरीर काँप रहा था।

राकेश का एक हाथ अब ज़ूबी की जाँघों के अंदरूनी हिस्सों को सहला रहा था। ज़ूबी ने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दी जिससे राकेश के हाथ आसानी से उसकी चूत को सहला सकें। तभी राकेश ने उसकी चूत को सहलाते हुए अपनी दो अँगुलियाँ उसकी चूत में घुसा दीं।

ज़ूबी की चूत अभी गीली नहीं हुई थी, इसलिए राकेश की अँगुलियों से उसे दर्द हो रहा था। राकेश अब अपने दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को भींचने लगा। वो एक हाथ से उसकी चूत में अँगुली कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पल भींच रहा था। इस दोहरी हरकत ने तुरंत ही अपना असर दिखाया और ज़ूबी की चूत गीली हो गयी। अब राकेश की अँगुलियाँ आराम से उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही थी।

शरीर की उत्तेजना ने एक बर फिर ज़ूबी की अंतरात्मा को धोखा दे दिया। उसके कुल्हे उत्तेजना मे अब आगे पीछे हो रहे थे। ज़ूबी पूरी तरह से राकेश की अँगुलियों की ताल से ताल मिला रही थी। उसके मुँह से हल्की हल्की सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहह आआआआहहह।”

राकेश अब और तेजी से अपनी अँगुली ज़ूबी की चूत में अंदर बाहर कर रहा था, “ओहहहह हाँआँआँ ऐसे ही करो ओहहह आआआआआह” ज़ूबी सिसक रही थी।

राकेश ने ज़ूबी का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया। ज़ूबी उसके लंड को अपनी हथेली की गिरफ़्त मे लेकर मसलने लगी। राकेश का लंड अब तनने लगा था। ज़ूबी ने महसूस किया कि अब उसका लंड उसकी हथेली में नहीं समा रहा है तो उत्सुक्ता में वो अपनी नज़रें घुमा कर उस मोटे और विशाल लंड को देखने लगी। लंड के सुपाड़े को देखकर तो वो हैरान रह गयी। उसने इतना मोटा और मूसल लंड पहले कभी नहीं देखा था।

समय बीतता जा रहा था। राकेश ने बिस्तर के पास पड़े कॉंन्डम के पैकेट को उठाया और अपने दाँतों से फाड़ कर ज़ूबी को पकड़ा दिया।

ज़ूबी ने कॉंन्डम को पैकेट से निकाला और राकेश के लंड को पहनाने लगी।

राकेश ने ज़ूबी की चूत से अपनी अँगुली निकाली और उसे घूमा दिया। अब वो पीछे से उसकी चूत में अपना लंड घुसाने लगा। जैसे-जैसे वो अपने लंड का दबाव बढ़ाता, ज़ूबी बिस्तर को पकड़ कर और झुक जाती, साथ ही अपनी टाँगें भी और फैला देती जिससे उसका मूसल लंड आसानी से अंदर घुस सके।

राकेश ने ज़ूबी के भरे हुए चूतड़ पकड़े और उसकी चूत में लंड घुसाने लगा। थोड़ी ही देर में उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस चुका था। वो उसके कुल्हों को पकड़ कर धक्के मार रहा था।

“हाँ ले लो मरा लंड... ओओहहह हाँ... और थोड़ी टाँगें फैलाओ,” राकेश अब जोरों से धक्के लगा रहा था।

ज़ूबी की टाँगें और फ़ैल गयी। उसे लगा कि उसकी चूत फटी जा रही है। उसे राकेश के लंड की लंबाई से उतनी परेशानी नहीं हो रही थी जितनी उसके लंड की मोटाई से। उसकी चूत पूरी तरह गीली होने के बावजूद वो हर धक्के पर कराह रही थी।

“ओहहह थोड़ा धीरे करो ओहहह मर गयी आआआआआआहह,”

“मेरा लंड ले लो जान, ओहहहह हाँ ऐसे ही... पूरा ले लो,” बड़बड़ाते हुए राकेश धक्के पे धक्का लगा रहा था।

जितना ज़ूबी कराहती, उतनी ही तेजी से राकेश धक्का मारता। ज़ूबी के कराहने में उसे मज़ा आ रहा था और उसका वहशीपन बढ़ता जा रहा था। वो जानवर की तरह ज़ूबी की चूत को रौंद रहा था।

राकेश ने तभी अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाल लिया, और ज़ूबी को पलट कर बिस्तर पर चित्त लिटा दिया। ज़ूबी को थोड़ी देर के लिए राहत महसूस हुई। वो अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगी। राकेश अब उसकी जाँघों के बीच आ गया।

ज़ूबी ने अपनी टाँगें पूरी तरह से फैला दी। उसे ऐसा करते हुए शरम सी आ रही थी पर वो जानती थी कि ऐसा करने से राकेश का लंड आसानी सी उसकी चूत में चला जायेगा, और वो दर्द से बच जायेगी।

जैसे ही राकेश उसके ऊपर आया, ज़ूबी ने अपना हाथ नीचे कर के उसके तने हुए लंड को पकड़ लिया और अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया। एक बार जब राकेश का लंड उसकी चूत में पूरा घुस गया तो वो भी अपने कुल्हे उछाल कर उसका साथ देने लगी।

ज़ूबी को भी आनंद आ रहा था। उसने अपनी टाँगें उठा कर उसकी कमर में कस के लपेट लीं और अपने हाथ उसकी पीठ पर कस लिये। अब ज़ोरों से सिसकते हुए वो उसके धक्कों का साथ दे रही थी।

“हाय अल्लाह,” ज़ूबी ने सोचा, “बाहर सभी को मालूम है कि मैं इस मर्द से चुदवा रही हूँ।”

“ओहहहहह हाँआँआँ! चोदो मुझे... और जोर से... ओहहहहह हाँ... जोर से” ज़ूबी सिसक रही थी। उसकी चूत अब पानी छोड़ने ही वाली ही थी और वो चाहने लगी कि राकेश भी उसके साथ ही झड़े।

“क्या तुम मेरे साथ झड़ सकते हो? ओहहह हाँ... छोड़ दो अपना पानी मेरी चूत में प्लीज़...! हाँ चोदो... और जोर से,” उसे खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वो ये भी कह सकती है।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, “पाँच मिनट रह गये हैं, जल्दी करो!” एक लड़की की आवाज़ आयी।

राकेश ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। वो ज़ूबी की जाँघें इतनी कस के पकड़ कर धक्के मारने लगा कि ज़ूबी की आँखों में आँसू आ गये। पर चुदाई का आनंद ऐसा था कि उसके लंड की हर चोट उसकी चूत में और उत्तेजना बढ़ा रही थी। तभी उसने महसूस किया कि राकेश का छूटने वाला है।

“अभी नहीं प्लीज़ रुक जाओओह” ज़ूबी चिल्ला पड़ी।

तभी उसे गाढ़े और गरम वीर्य का एहसास अपनी चूत में हुआ। “हाय अल्लाह! इसका तो छूट रहा है और मेरा अभी बाकी है,” ज़ूबी सोचने लगी।

“नहीं... अभी नहीं” वो चिल्ला पड़ी।

पर उसकी चिल्लाहट का कोई असर राकेश पर नहीं हुआ। वो जोर के धक्के लगा कर अपना वीर्य उसकी चूत में छोड़ रहा था। ज़ूबी की उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर थी। अब ज़ूबी खुद नीचे से धक्के लगा कर अपनी उत्तेजना को शाँत करने की कोशिश करने लगी। वो बेशरम की तरह नीचे से धक्के लगा रही थी। आखिर उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया।

राकेश ने अपने लंड को ज़ूबी की चूत से बाहर निकाला और उसके बगल में लेट गया। राकेश उसकी जाँघों को सहला रहा था, “मज़ा आ गया सिमरन,” कहकर उसने अपने कपड़े पहने और कमरे से बाहर चला गया।

ज़ूबी बिस्तर पर अपनी आँखें फ़ैलाये लेटी हुई थी कि तभी किसी लड़की की आवाज़ उसे सुनायी दी, “सिमरन अब तुम उठ कर खड़ी हो जाओ?”

ज़ूबी उछल कर बिस्तर से खड़ी हुई और अपनी ब्रा और पैंटी ढूँढने लगी। उसने देखा कि वो इस्तमाल किया हुआ कॉंन्डम बिस्तर पर पड़ा था। वो लड़की जो कमरे में आयी थी, उसने एक साफ़ टॉवल ज़ूबी को पकड़ा दिया।

ज़ूबी उस टॉवल को अपनी चूती हुई चूत पर रख कर साफ़ करने लगी। फिर उसने वो कॉंन्डम उठाया और कमरे के बाहर बाथरूम की और दौड़ पड़ी।

जैसे ही वो हॉल में आयी कि अचानक एक सूट पहने मर्द से टकरा गयी। वो औरत उस मर्द को किसी दूसरे कमरे में ले जा रही थी।

“सॉरी माफ़ करना,” ज़ूबी ने कहा।

वो मर्द उसकी हालत देख कर हँस पड़ा, “सॉरी की कोई बात नहीं है, और ये तुम्हारे हाथ में क्या है?” ज़ूबी के हाथों मे इस्तमाल किया हुआ कॉंडम देख कर वो मर्द हँसते हुए बोला।

“ये एकदम नयी है यहाँ पर,” उस औरत ने कहा।

ज़ूबी शरमा कर नंगी ही वहाँ से अपनी सैंडल खटखटाती हुई दौड़ पड़ी। उन दोनों के हँसने की आवाज़ उसे सुनायी दे रही थी।

ज़ूबी बाथरूम मे घुसी और सैंडल उतार कर गरम पानी के शॉवर के नीचे खड़ी हो कर अपने शरीर को धोने लगी। फिर सुखे टॉवल से अपने बदन को पौंछ कर वो फिर सैंडल और ब्रा-पैंटी पहन कर हॉल में आकर बैठ गयी। एक और लड़की उसकी बगल में बैठी थी और उसे देख कर मुस्कुरा रही थी।

ज़ूबी अपनी टाँग पे टाँग रख कर बैठी थी कि उसे बगल के कमरे से सिसकने की और मदक आवाज़ें सुनायी दे रही थी। ये वही कमरा था जिसमें थोड़ी देर पहले वो राकेश के साथ थी।

ज़ूबी की आँखें खुली की खुली रह गयी। उसे चुदाई की आवाज़ साफ़ सुनायी दे रही थी। उसे लगा कि कमरे की दीवार जैसे कागज़ की बनी हुई है। वो आश्चर्य से हॉल में अपने साथ बैठी लड़की की और देखने लगी।

“हाय अल्लाह,” ज़ूबी ने कहा, “क्या तुम लोगों ने भी वो सब सुना जो मेरे और राकेश के बीच हुआ?”

वो लड़की मुस्कुराने लगी। “वैसे तो राकेश के साथ चुदाई करना हर किसी के बस की बात नहीं है,” उसने ज़ूबी से कहा, “तुम्हारी किस्मत अच्छी थी कि आज उसके पास सिर्फ़ आधा घंटा ही था।”

ज़ूबी उस लड़की की बातें सुनकर जोरों से हँसने लगी।

ज़ूबी ने कईं घंटे वहाँ गुज़ारे। हर घंटे बाद उसका बुलावा आ जाता और वो फिर किसी कमरे में मर्द के साथ चुदाई करती। मर्द अपना वीर्य उसकी चूत में डाल कर चले जाते। उसे अपने इस वेश्यापन पर हैरानी हो रही थी।

ज़ूबी अब समझ गयी थी कि उसका शरीर अब उसका नहीं रहा था, वो तो राज की मल्कियत बन चुका था, या फिर इस वेश्यालय की माल्किन उस औरत का या फिर उस मर्द का जिसकी जेब में चंद रुपये हैं उसका शरीर खरीदने के लिये। वक्त ने उसकी ज़िंदगी को एक नर्क बना के रख दिया था।

ज़ूबी एक ब्रा और पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने हॉल में बैठी थी। वो अपनी आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उसे चाहे जो करना पड़े वो अपनी ज़िंदगी को किसी के हाथों का खिलौना नहीं बनने देगी। वो अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जियेगी, किसी की कठपुतली बनकर नहीं। काफी मेहनत और लगन से आज वो अपने कैरियर के इस मुकाम तक पहुँची थी और फिर उसी मेहनत से वो अपनी ज़िंदगी को वापस सही राह पर लाकर रहेगी।

ज़ूबी इस मकान की व्यस्तता देखकर हैरान थी। हर उम्र के मर्द अपने शरीर की भूख मिटाने यहाँ आते थे। पर उसे आश्चर्य इस बात का था कि जब भी वो लाइन में खड़ी होती थी हर बर वो ही ग्राहकों द्वारा चुनी जाती थी। दूसरी लड़कियों को मौका तभी लगता था जब वो किसी मर्द के साथ कमरे में होती थी।

एक बार तो वो हैरान रह गयी। हुआ ऐसा कि दो दोस्त उस वेश्यालय में आये। ज़ूबी समेत उस समय हॉल में चार लड़कियाँ थी। जब वो दोनों दोस्त पसंद करने के लिये लड़कियों को देख रहे थे तो एक मर्द ने उसे पसंद किया, “मैं इसके साथ जाना चाहता हूँ,” कहकर उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।

जब ज़ूबी उसका हाथ पकड़ कर कमरे में जा रही थी तो उसने दूसरे मर्द को कहते सुना, “मेरे दोस्त का होने के बाद मैं भी इसी लड़की के साथ जाना चाहुँगा, तब तक मैं इंतज़ार करता हूँ।”

ज़ूबी उसकी बात सुनकर हैरान रह गयी, उसने माल्किन से पूछा, “क्या ये ऐसा कर सकता है?”

उसके साथ वाला मर्द और वो औरत दोनों ज़ूबी की बात सुनकर हँसने लगे।

“सिमरन,” उस औरत ने जवाब दिया, “ग्राहक यहाँ पर भगवान की तरह है। वो जो चाहे कर सकता है” वो औरत फिर हँसने लगी।

ज़ूबी उस मर्द का हाथ पकड़ कर दूसरे छोटे से कमरे में चली गयी। उसे पता था कि एक और लंड बाहर उसका इंतज़ार कर रहा है।

* * * * * * *

प्रशाँत दिल्ली के फाइव स्टार होटल में बड़ी दुविधा में चहल कदमी कर रहा था। उसने बड़ा जोखिम भरा कदम उठाया था। अगर किसी को पता चल गया कि वो किसी वेश्या से मिलने यहाँ आया है तो उसका कैरियर बर्बाद हो सकता था।

वो अभी नहाकर बाथरूम से बाहर आया था। इतनी सर्दी में भी उसके माथे पर पसीना आ रहा था। उसे मालूम था कि वो जोखिम उठा रहा है पर वो भी अपने दिल के हाथों मजबूर था।

जबसे वो दिल्ली पहुँचा था उसका लंड घोड़े की तरह तन कर खड़ा था। उसने फोन पर उस मैडम को यकीन दिलाया था कि वो एक पैसे वाला इंसान है। उसने उस औरत को साफ़ बता दिया था कि उसके आने की खबर किसी को नहीं होनी चाहिये थी। उसने अपनी पसंद के बारे में भी बता दिया था। उस मैडम ने उसे भरोसा दिलाया था कि वो उसकी हर जरूरत को पूरा करेगी।

जैसे ही उसकी टैक्सी उस मैडम के बंगले की तरफ़ जा रही थी, प्रशाँत सोच रहा था कि उसे आगे क्या करना है। क्या ज़ूबी उसे यहाँ मिलेगी और वो अपना बदला ले पायेगा। उसने अपनी घड़ी की तरफ़ देखा। बीस मिनट में उसे पता चल जायेगा कि वो अपने मक्सद में कितना कामयब होगा।

* * * * * *

ज़ूबी बिस्तर का किनारा पकड़ कर घोड़ी बनी हुई थी। उसकी टाँगें पूरी तरह फ़ैली हुई थी और उसकी गाँड हवा में ऊपर को उठी हुई थी। एक तगड़ा सा पहाड़ी मर्द पीछे से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था।

ज़ूबी ने अपना चेहरा तकिये से टिकाया हुआ था और वो सामने लगे आइने में देख रही थी कि किस तरह वो मर्द उछल-उछल कर उसे चोद रहा था। ज़ूबी सोच रही थी कि कैसे कईं बार उसके शौहर ने उसे इस अवस्था में चोदा था, और हर बार उसे उतना ही मज़ा आता था जब वो अपना वीर्य उसकी चूत मे छोड़ कर उसकी पीठ पर लुढ़क जाता था। उसके शौहर का मोटा और लंबा लंड उसे कितना मज़ा देता था।

पर आज वो अपनी मर्ज़ी के खिलाफ़ हर उस लंड को अपनी चूत में लेने पर विवश थी, चाहे वो लंड उसे पसंद है या नहीं। पर लंड चाहे जैस भी हो, जब भी कोई उसे इस आसान में चोदता था तो उसके शरीर की उत्तेजना और बढ़ जाती थी। और आज भी वैसा ही हो रहा था -- फिर उसका शरीर उसे धोखा दे रहा था। ना चाहते हुए भी उसका शरीर उस मर्द की ताल से ताल मिला कर चुदाई का आनंद ले रहा था।

* * * * *

प्रशाँत ने आखिरी बार अपने सेल फोन से उस मैडम का नंबर मिलाया, “मैं बस पहुँचने ही वाला हूँ, सब तैयारी वैसे ही है ना जैसे मैंने कहा था।”

“हाँ आप आ जाइये, सब कुछ वैसे ही होगा जैसा आप चाहेंगे” उस औरत ने जवाब दिया।

* * * * *

उस पहाड़ी मर्द ने एक हुँकार मारते हुए अपना वीर्य ज़ूबी की चूत में छोड़ दिया। फिर उसने कपड़े पहने और कमरे से चला गया। ज़ूबी का पानी नहीं छूटा था और वो निराश होते हुए नहाने के लिये बाथरूम मे घुस गयी। नहाने के बाद उसने अपना मेक-अप ठीक किया और अपनी ब्रा और पैंटी पहन ली। वो अपनी हाई हील की सैंडल पहन ही रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई और उस औरत ने बाथरूम में कदम रखा।

“सब कुछ ठीक है ना?” ज़ूबी ने उस औरत से पूछा।

“हाँ रानी सब ठीक है,” उस औरत ने जवाब दिया, “तुम कितना अच्छा काम कर रही हो, मुझे नाज़ है तुम पर।”

ज़ूबी जानती थी कि इस औरत से ज्यादा बात करने में कोई फायदा नहीं है। उसने जबर्दस्ती उस औरत को देख कर मुस्कुरा दिया, “थैंक यू,” उसने जवाब दिया। ज़ूबी सोच रही थी कि आज उसके वेश्या होने की तारीफ हो रही थी, काश ये तारीफ उसके काम के लिये होती।

“मैं मिस्टर राज को बताऊँगी कि तुमने कितना अच्छा काम किया है,” उस औरत ने कहा।

“मुझे अच्छा लगेगा अगर आप मिस्टर राज से ये कहेंगी तो,” ज़ूबी ने जवाब दिया।

“तुम्हें पता है ना कि मिस्टर राज कितने ताकतवर और पहुँच वाले इंसान हैं, पता है ना तुम्हें?” उस औरत ने कहा।

ज़ूबी ने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी।

“और उसी तरह उनके दोस्त भी,” उस औरत ने आगे कहा, “उनका एक दोस्त यहाँ अभी आने वाला है, और उसके अपने कुछ नियम हैं। हमें उन नियमों का पालन करना है... खास तौर पर तुम्हें, और एक बात... तुम्हारा भविष्य भी इसी बात पर निर्भर करता है।”

* * * * * *

ज़ूबी एक खास कमरे में बिस्तर पर बैठी थी। उसे इस कमरे में चुपचाप इंतज़ार करने को कहा गया था। उसे कईं बार कमरे के बाहर से कदमों की आहट सुनायी देती जो दूसरे कमरे में जाकर बंद हो जाती। थोड़ी ही देर में उसे कुछ कदमों की आहट सुनायी दी जो शायद उसी के कमरे की तरफ आ रही थी।

तभी दरवाज़ा खुला और सबसे पहले उस मैडम ने कमरे में कदम रखा। उसके पीछे एक जवान लड़की ने ब्रा और पैंटी पहने कदम रखा। वो लड़की बड़ी सहानुभूती से ज़ूबी को देखने लगी। वो सोच रही थी कि पता नहीं इस लड़की पे क्या गुज़रेगी।

तभी प्रशाँत ने कमरे में कदम रखा।

प्रशाँत बड़ी कामुक नज़रों से उस जवान वकील को देख रहा था जो उसके ऑफिस में काम करती थी। जो लड़की हमेशा अपने यौवन को टाइट ब्लाऊज़ और स्कर्ट में छिपा कर रखती थी आज सिर्फ ब्रा पैंटी और सैंडल पहने करीब-करीब नंगी उसके सामने बिस्तर पर बैठी थी।

प्रशाँत एक चुंबकिय आकर्षण की तरह उसके तराशे हुए बदन को देख रहा था। वो चुप चाप बिस्तर पर बैठी थी। हालाँकि उसकी चूत और चूचियाँ छुपी हुई थी फिर भी उसकी मांसल और पतली टाँगें, और तराशा हुआ बदन ठीक वैसा ही दिख रहा था जैसे उसने हमेशा मुठ मारते हुए सपने में देखा था। उसके गुलाबी और पतले होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे उनमें शहद भरा हुआ हो। उसका सुंदर चेहरा काफी मादक लग रहा था और उसकी आँखों पर एक सिल्क की पट्टी बंधी थी, ठीक जैसे उसने चाहा था।

“सीमा यहीं रुकेगी, अगर आपको किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो ये आपकी सहायता करेगी,” मैडम ने प्रशाँत से कहा और ज़ूबी की और इशारा करते हुए कहा, “ये सुंदर कन्या आप जैसे चाहेंगे आपकी सेवा करेगी, आपको किसी तरह की शिकायत नहीं होगी... ये मेरा वादा है।”

मैडम की बात सुनकर उसका लंड पैंट के अंदर हुँकार मारने लगा, “जैसे मैं चाहुँगा वैसे सेवा करेगी,” ये सोच कर वो मुस्कुराने लगा।

ज़ूबी ने तभी दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी। कमरे में गूँजती कपड़ों की सर्सराहट से उसे लगा कि अब वो अपने कपड़े उतार रहा है।

ज़ूबी ने तभी उस मर्द के हाथों को अपने कंधों पर महसूस किया। फिर वो हाथ कंधों से नीचे उसकी कमर पर आये और फिर उसके हाथ को पकड़ लिया। प्रशाँत ने उसके हाथ को पकड़ कर उसे बिस्तर से नीचे उतारा और खड़ा कर दिया। वो अपने सैंडल पहने हुए पैरों से चलती हुई दो तीन कदम आगे बढ़ कर कमरे के बीच में खड़ी हो गयी। उसे उस मर्द का एहसास तो हो रहा था पर वो कह नहीं सकती थी कि वो कमरे में कहाँ खड़ा था।

प्रशाँत असल में ज़ूबी से दूर हट गया था। वो बिस्तर के सामने पड़ी चमड़े की कुर्सी पर नंगा बैठा अपनी उस नौजवान सहयोगी को देख रहा था। उसका लंड अभी पूरी तरह तना नहीं था, फिर भी उत्तेजना में हुँकार रहा था। उसने सीमा को ज़ूबी की ब्रा उतारने का इशारा किया।

सीमा ने उसकी ब्रा के हुक खोले और फिर ब्रा के स्ट्रैप को उसके कंधों से निकाल कर ब्रा को ज़मीन पर गिर जाने दिया। ज़ूबी ने अपनी ब्रा को अपने पैरों पर गिरते हुए महसूस किया।

प्रशाँत ने अब सीमा को ज़ूबी के निप्पलों से खेलने का इशारा किया। सीमा ने आगे बढ़ कर ज़ूबी की चूचियों को अपने हाथों में ले लिया। वो उसकी चूचियों को अपने हाथों मे तौलने लगी और फिर अपनी अँगुली और अंगूठे से उसके निप्पल को भींचने लगी। तुरंत ही उसके निप्पल तन कर खड़े हो गये।

सीमा जानती थी कि प्रशाँत उसे रुकने को कहने वाला नहीं था, इसलिए अब वो उसकी चूचियों को मसल रही थी और निप्पल को भींच रही थी। ज़ूबी ने अपने हाथ सीमा के कंधों पर रख दिये जिससे उसे खड़े होने मे आसानी हो। सीमा की हर्कतों ने उसकी चूत में खुजली मचा दी थी और उसकी चूत पूरी तरह से गीली हो गयी थी।

सीमा ने पलट कर प्रशाँत की ओर देखा और ज़ूबी की पैंटी की ओर इशारा किया। प्रशाँत ने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी।

सीमा ने अपने घुटने थोड़े से मोड़े और अपनी अँगुलियाँ ज़ूबी की पैंटी की इलास्टिक में फँसा दी। प्रशाँत हैरानी भारी नज़रों से सीमा को ज़ूबी की पैंटी उतारते हुए देख रहा था। उसका लंड अब पूरी तरह से तन गया, और लंड की नसें इतनी फूल गयी थी कि उससे सहन नहीं हो रहा था। उसने अपने लंड को अपनी हथेली में लिया और हिलाने लगा। उसे डर था कि कहीं ज़ूबी को छूने से पहले ही कहीं उसका लंड पानी न छोड़ दे।

ज़ूबी आँखों पर पट्टी बाँधे हुए, नंगी उस ठंडे कमरे में सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने खड़ी थी, उसके निप्पल उत्तेजना में तने हुए थे और उसकी छोटी और गुलाबी चूत उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ उत्तेजना में छू रही थी।
RohitKapoor
Rookie
Posts: 99
Joined: 22 Oct 2014 22:33

दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-4

Post by RohitKapoor »

प्रशाँत ध्यान से उसकी चूत देख रहा था। उसे लगा कि ज़ूबी ने हाल ही में अपनी चूत की बड़े सलीके से वैक्सिंग की थी। उसने देखा कि उसकी चूत अब चुदने के लिये एकदम तैयार थी।

सीमा अब अपनी अँगुलियाँ उसकी चूत पर फ़िराने लगी। जैसे ही सीमा की अँगुलियों ने ज़ूबी की चूत के दाने को छुआ, उसके शरीर में उत्तेजना की एक नयी लहर सी दौड़ गयी। सीमा ने उस दाने को अपनी अँगुलियों में लिया और मसलने लगी। ना चाहते हुए भी ज़ूबी के मुँह से हल्की सी सिस्करी निकल पड़ी, “ओहहहहह आआआआहहहहह,” और उसके कुल्हे अपने आप ही आगे को हो गये।

सीमा ने अपनी एक अँगुली उसकी चूत के मुहाने पर रखी तो उसने महसूस किया कि ज़ूबी की चूत किस हद तक गीली हो चुकी थी। सीमा ने अपनी अँगुली उसकी चूत के अंदर घुसा दी और अंदर बाहर करने लगी। उसकी इस हर्कत से उसकी चूत से जो आवाज़ निकल रही थी वो कमरे में सभी को उत्तेजित करने के लिये काफी थी।

ज़ूबी उत्तेजना और मस्ती में इस कदर खो गयी थी कि जब सीमा ने उसकी चूत से अँगुली निकाली तो पागल सी हो गयी। उसका मुँह खुला का खुला रह गया था और वो गहरी साँसें ले रही थी।

सीमा ने अपनी अँगुली बाहर निकाली और उसका हाथ पकड़ कर उसे वहाँ ले गयी जहाँ प्रशाँत कुर्सी पर बैठा था। जब ज़ूबी के घुटनों ने प्रशाँत की टाँगों को छुआ तो उसने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके सामने था।

ज़ूबी शांति से प्रशाँत के सामने खड़ी थी, उसकी साँसें थमी तो नहीं थी फिर भी उसने अपने मुँह को कस कर बंद कर लिया था। तभी उसने एक मोटी अँगुली को अपनी चूत में घुसते हुए महसूस किया। वो अँगुली आराम से उसकी चूत में घुस गयी और उसके बहते रस से भीग गयी।

ज़ूबी को हैरानी हुई कि वो अँगुली जिस तेजी से उसकी चूत के अंदर घुसी थी उतनी ही तेजी से बाहर आ गयी। उसे और हैरानी हुई जब वो अँगुली जबर्दस्ती उसके अध-खुले होठों से उसके मुँह मे घुस गयी। उसका दिमाग हैरान था कि वो उस मर्द की अँगुली पर लगे अपने ही रस का स्वाद ले रही थी।

“इसे चूस कर साफ़ करो?” सीमा ने उसके कान मे धीरे से कहा।

ज़ूबी ने अपने मुँह में उस अँगुली को कसा और जीभ में फँसा कर चूसने लगी। प्रशाँत ने अपनी अँगुली उसके मुँह से बाहर निकाली और उसे खिंच कर अपनी और झुका लिया। ज़ूबी की चूचियाँ अब उसकी छाती को छू रही थी।

प्रशाँत ने खींच कर उसे अपने सामने इस तरह खड़ा कर लिया कि उसका लंड ज़ूबी के पीठ को छू रहा था। प्रशाँत अब अपना हाथ उसके चूतड़ों पर फिराने लगा। ज़ूबी नहीं जानती थी कि ये मर्द उससे क्या चाहता है, फिर भी उसने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दी जिससे उसे आसानी हो।

प्रशाँत ने उसके चूतड़ों को सहलाते हुए अचानक अपनी अँगुली उसकी चूत में घुसा दी। थोड़ी देर अँगुली को अंदर बाहर करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाली और उसकी गाँड के छेद पर फिराने लगा। ज़ूबी ने महसूस किया कि उसकी चूत से पानी बह कर उसकी चूत के बाहरी हिस्सों के साथ उसकी जाँघों और टाँगों तक बह रहा है।

प्रशाँत अब अपनी गीली अँगुलियों से उसकी गाँड के छेद मे अपनी अँगुली घुसाने की कोशिश करने लगा।

“नहीं वहाँआँआँ नहीं,” ज़ूबी जोर से चिल्लायी।

ज़ूबी ने हाथ पैर पटक कर बहुत कोशिश की कि वो उस मर्द को उसकी गाँड में अँगुली डालने से रोक सके, पर वो सफ़ल ना हो सकी। उस मर्द के मजबूत हाथ और साथ में सीमा कि पकड़ ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। अचानक उसे अपनी गाँड मे जोरों का दर्द महसूस हुआ। उस मर्द की अँगुली उसकी गाँड में घुस चुकी थी।

ज़ूबी की छटपटाहट और दर्द देख कर प्रशाँत को मज़ा आने लगा था। उसने उसे और परेशान करने के लिये जोर से उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मार दिया।

ज़ूबी के चूतड़ों पर पड़ते थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठी। दर्द के मारे ज़ूबी की आँखों में आँसू आ गये। एक तो गाँड में अँगुली का अंदर बाहर होना और साथ में इतनी जोर के थप्पड़ - उसे बेहताशा दर्द हो रहा था।

ज़ूबी प्रशाँत के थप्पड़ों से बचने के लिये विरोध करती रही और प्रशाँत था कि अब जोरों से उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मार रहा था।

“आआआआआवववव ओंओंओंओंओं,” ज़ूबी सुबक रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। आज से पहले कभी किसी ने उसे मारना तो दूर की बात है, कभी छुआ तक नहीं था।

सीमा से भी ये देखा नहीं गया और वो बोल पड़ी, “रुक जाओ मत करो ऐसा।”

पर जैसे प्रशाँत के कानों पे उसकी आवाज़ का कोई असर नहीं हुआ।

“अपनी टाँगें थोड़ी फ़ैलाओ?” प्रशाँत ने ज़ूबी से कहा।

ज़ूबी की समझ में आ गया कि विरोध करना बेकार था, ये मर्द कुछ सुनने या मानने वाला नहीं था। उसने अपनी टाँगें थोड़ी सी फैला दी।

ज़ूबी का सिर शरम से झुक गया था कि सीमा के सामने वो मर्द उसे नंगा निहार रहा रहा है। अचानक प्रशाँत की अंगुलियाँ उसकी चूत के मुहाने पर चलने लगी तो ज़ूबी सिसक पड़ी। उसकी मोटी अँगुली उसकी चूत में घुस रही थी, और उसके शरीर में कामुक्ता की एक लहर सी दौड़ रही थी। ज़ूबी ने बहुत कोशिश की कि वो स्थिर खड़ी रहे पर उसने उत्तेजना में खुद-ब-खुद टाँगें इस कदर फैला दी कि उस मर्द की अँगुली आसानी से उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगी।

तभी ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब दो अँगुलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल कर चोद रहा है। प्रशाँत ने अपनी अँगुलियाँ अच्छी तरह से उसकी चूत के पानी से गीली कर ली और अब उसकी गाँड के छेद पे फ़िराने लगा।

ज़ूबी ने इस बर कोई विरोध नहीं किया और उसकी अँगुली उसकी कसी हुई गाँड मे घुस गयी।

“ओहहहहह आआआहहहह” ज़ूबी सिसक पड़ी।

थोड़ी देर उसकी गाँड मे अँगुली करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाल ली। उसने सीमा को ज़ूबी की दोनों बांहें कस के पकड़ने का इशारा किया और खुद ज़ूबी के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसका लंड मूसल खूँटे कि तरह तन कर खड़ा था।

ज़ूबी कुर्सी पर इस तरह थी कि उसके घुटने तो कुर्सी पर थे और दोनों बांहें हथे पर। सीमा ने उसकी दोनों बांहें कस कर पकड़ रखी थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके पीछे खड़ा होकर अपना खूँटे जैसा लंड उसकी गाँड के छेद पर घिस रहा है।

प्रशाँत ज़ूबी को कुर्सी पर झुका हुआ देख रहा था। उसकी गुलाबी चूत पीछे से उभर कर बाहर को निकल आयी थी। उसने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और अंदर घुसाने लगा। उसे कोई जल्दी नहीं थी, वो आराम से अपने लंड को थोड़ा-थोड़ा अंदर पेल रहा था। जब उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस गया तो वो बड़े आराम से अपनी सहकर्मी को चोदने लगा।

थोड़ी देर उसकी चूत चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत के ऊपर गाँड के छोटे छेद पर घिसने लगा। उसने ज़ूबी के चूतड़ पकड़ कर थोड़ा फ़ैलाये और अपना लंड अंदर घुसाने लगा।

“नहीं वहाँआँआँ नहींईंईंईं,” ज़ूबी चींख पड़ी, “प्लीज़ वहाँ नहींईंईं।”

पर जैसे ज़ूबी की चींख का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। सीमा ने ज़ूबी की बांहें कस कर पकड़ रखी थी जिससे वो कोई विरोध ना करे। वैसे तो सीमा मन से इस क्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी पर उसने देखा कि ज़ूबी सिर्फ़ मुँह से ही विरोध कर रही थी शरीर से नहीं।

जैसे ही प्रशाँत ने अपना लंड उसकी गाँड में घुसाया, ज़ूबी ने महसूस किया कि उसके शरीर की गर्मी और बढ़ गयी। उसे लगा कि जैसे कोई गरम लोहा उसकी गाँड मे घुसा दिया हो।

“नहीं प्लीज़ नहीं,” ज़ूबी ने एक बार फिर विरोध करने की कोशिश की।

पर प्रशाँत उसकी बात को अनासुना कर अपना लंड उसकी गाँड में घुसाता गया।

“प्लीज़,” ज़ूबी फिर बोल पड़ी, “मेरी चूत में डालो, मुझे अपनी चूत में लंड अच्छा लग रहा था।”

ज़ूबी ने जब देखा कि उसकी इल्तज़ा का उस मर्द पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और अपनी टाँगें और फैला दी। उसने महसूस किया कि अब उस मर्द का लंड आसानी से उसकी गाँड के अंदर बाहर हो रहा है।

प्रशाँत अब उसकी गाँड में धक्के लगा रहा था। ज़ूबी ने सीमा के हाथों को कस कर पकड़ रखा था जिससे वो उसके धक्कों की ताकत से गिर ना जये। जब प्रशाँत के अंडकोश ज़ूबी की चूत से टकराते तो ज़ूबी का शरीर उत्तेजना में और बिदक जाता और खुद-ब-खुद पीछे हो कर उसके लंड को अपनी गाँड में और ले लेती। ज़ूबी के शरीर और मादकता ने फिर एक बार उसे धोखा दे दिया।

प्रशाँत अब कस कर धक्के मार रहा था और ज़ूबी भी आगे पीछे हो कर उसके धक्कों का साथ दे रही थी। ज़ूबी अब अपनी खुद की दुनिया में खो गयी थी और अपने बदन में उठती गर्मी को शाँत करने में लग गयी।

प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी ने अपना एक हाथ नीचे को कर रखा था और उसके धक्कों के साथ-साथ अपनी चूत में अँगुली अंदर बाहर कर रही थी। प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी हर धक्के पर उसका साथ दे रही थी और थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।

जैसे ही ज़ूबी की चूत ने पानी छोड़ा, प्रशाँत ने अपना लंड उसकी गाँड से बाहर निकाल लिया। उसने ज़ूबी को घुमा कर अपने सामने घुटनों के बल कर दिया। ज़ूबी समझ गयी कि अब वो क्या चाहता है।

आँखों पर पट्टी बंधे होने की वजह से ज़ूबी उसके लंड को देख तो नहीं सकती थी। उसने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और उसके लंड पर फिराने लगी जो थोड़ी देर पहले उसकी गाँड के अंदर घुसा हुआ था। फिर अपना पूरा मुँह खोल कर उसने लंड को अंदर लिया और चूसने लगी। अब वो जोरों से अपने मुँह को ऊपर नीचे कर के उसके लंड को चूस रही थी।

सीमा ने पीछे से ज़ूबी की दोनों चूचियों को पकड़ा और मसलने लगी और वो एक हाथ से उसकी चूत को सहला रही थी।

ज़ूबी जोरों से लंड को चूस रही थी। उसने महसूस किया कि उस मर्द का लंड अकड़ने लगा है, वो समझ गयी कि वो अब झड़ने वाला है। ज़ूबी अब और जोरों से लंड को चूस रही थी। प्रशाँत की हुँकार कमरे में गूँजने लगी और उसने अपना गाढ़ा वीर्य ज़ूबी के मुँह मे छोड़ दिया।

ज़ूबी उस वीर्य को निगलने की कोशिश कर रही थी और प्रशाँत ने उसकी आँखों पर बंधी पट्टी को खोल दिया। पट्टी खुलते ही ज़ूबी ने अपने बॉस प्रशाँत की शक्ल देखी। वो हैरत भारी नज़रों से प्रशाँत को घूर रही थी जिसका लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था।

दिल्ली से घर लौटते वक्त प्लेन में ज़ूबी बड़ी मुश्किल से अपनी आँख में आते आँसूओं को रोक पा रही थी। वो अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रही थी जिसने उसे एक वकील से रंडी बना कर रख दिया था। उसने लाख सोने की कोशिश की पर बीते हुए कुछ दिनों की यादें उसे सोने नहीं दे रही थी।

एक बात अब भी उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि प्रशाँत वहाँ कैसे पहुँच गया। एक बार तो उसे लगा कि मिस्टर राज ने जान-बूझ कर उसे फँसाया है। पर दिल कहता कि राज ऐसा क्यों करेगा? उसे प्रशाँत से क्या फायदा हो सकता है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अगर ऑफिस में उसके साथियों को अगर पता चला तो वो क्या सफ़ाई देगी। और उसका शौहर तो तुरंत उसे तलाक दे देगा। इन ही सब ख्यालों में डूबी ज़ूबी ने अपने आप को नसीब के सहारे छोड़ दिया, और आने वाली ज़िंदगी का इंतज़ार करने लगी।

समाप्त
Post Reply