सोलहवां सावन complete

Post Reply
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

komaalrani wrote:सोलहवां सावन, पहले एक चूड़ी वाली आयी और मैंने भी सबके साथ, कुहनी तक हरी-हरी चूड़ीयां पहनी। मैंने ज़रा सा नखड़ा किया की वो चुड़िहारिन ( आखिर भैया के ससुराल की थी ,तो भैया की सलहज लगी और फिर मुझसे अपने आप मजाक का रिश्ता बन गया ), और साथ में चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गयीं।

अच्छा ई बूझो , चुड़िहारिन ने मेरी कलाई को गोल गोल मोड़ते हुए पूछा,

" हमरि तुम्हरी कब , अरे हाथ पकड़ा जब।

चीख चिल्लाहट कब , अरे आधा जाये तब।

और मजा आये कब ,.... ?

बात उनकी पूरी की चम्पा भाभी ने ,

"अरे मजा आये कब , पूरा जाए तब और क्या , आधे तीहे में का मजा। "

मेरे गाल गुलाल हो गए , कल से तो भाभी ,भाभी की कुँवारी शादी शुदा बहने और भाभी की भाभियाँ सब एक ही तो बात कर रही थीं , मैं समझ गयी आधा तिहा और पूरा से का मतलब है।

फिर चंदा ने रात में अच्छी कोचिंग भी कर दी थी और भरतपुर के स्टेशन पे आग भी सुलगा दी थी।

"अरे वही लड़का लड़की , डालना और क्या , शरमाते शर्माते मैं बोली , फिर क्या था चूड़ी वाली चूड़ी पहनाते हुए मेरे पीछे पड़ गयी।

और मेरी भाभी से बोली ,

" अरी बिन्नो तोहरी ई ननदिया क बिल में बहुत चींटे काट रहे हैं मोटे मोटे , बहुत खुजली हो रही है , एके बात उसको सूझ रही है "

और मुझसे मुड़ के बोलीं ,

" अरे रानी एकर मतलब , चूड़ी पहिराना। पहले हाथ पकड़ना , फिर शुरू में जब घुसता है अंदर , चूड़ी जाती है रगड़ती कसी कसी तो कुछ दर्द तो होगा ही।

फिर जब भर हाथ चूडी हो जाती है तो कितना निक लगता है , मजा आता है , हैं की नहीं।

दो दर्जन से ऊपर एक एक हाथ में , एकदम कुहनी तक ,

और ऊपर से चम्पा भाभी बोलीं , चुड़िहारिन से ," दो दिन बाद फिर आ जाना ".
ये बात न मुझे समझ में आई न चुड़िहारिन को लेकिन जब चम्पा भाभी ने अर्थाया तो सब लोग हँसते हँसते , (सिवाय मेरे , मेरे पास शर्माने के अलावा कोई रास्ता था क्या )

वो बोलीं , अरे एक रात में तो दो दर्जन की एक दर्जन हो जायेगी , और कुछ खेत में टूटेगी कुछ पलंग पे ,कुछ हमरे देवर के साथ तो कुछ नंदोई के साथ। "

आज भाभी और चम्पा भाभी ने तय किया था कि वो मुझे शहर की गोरी से गांव की गोरी बनाकर रहेंगी। तब तक पूरबी भी आगयी , भाभी की रिश्ते में बहन लगती थी ,उम्र में उनसे छोटी , मुझसे दो तीन साल बड़ी होगी , इसी साल शादी हुयी थी और पहले सावन में मायके आई थी।

और मेरे श्रृंगार और छेड़ने दोनों में हिस्सा बटाने लगी।
पावों में महावर और हाथों में रच-रच कर मेंहदी तो लगायी ही, नाखून भी खूब गाढ़े लाल रंगे गये, पावों में घुंघरु वाली पाजेब, कमर में चांदी की कर्धनी पहनायी गयी। पूरबी ने चांदी की पाजेब बहुत प्यार से खुद मुझे पहनाई और मुझसे बोलने लगी ,

" ननद रानी ,तुम्हारे गहनों में सबसे जोरदार यही है। "

मेरे कुछ समझ में नहीं आया ,लेकिन पूरबी और चम्पा भाभी जोर जोर से मुस्करा रही थीं।

" अरे छैलों के कंधे पे चढ़ के बोलेगी ये , कभी गन्ने के खेत में तो कभी आम के बाग़ में, इसलिए सबसे पहले ये पाजेब ही पहना रही हूँ। "
कुछ देर में चंदा और रमा भी आ गयीं मेले के लिए तैयार हो के ,खूब सजधज के। साथ में कामिनी भाभी भी।

भाभी ने अपनी खूब घेर वाली हरे रंग की चुनरी भी पहना दी, लेकिन उसे मेरी गहरी नाभी के खूब नीचे ही बांधा, जिससे मेरी पतली बलखाती कमर और गोरा पेट साफ दिख रहा था।
लेकीन परेशानी चोली की थी, चन्दा के उभार मुझसे बड़े थे इसलिये उसकी चोली तो मुझे आती नहीं पर रमा जो भाभी की कजिन थी और मुझसे एक साल से थोड़ी ज्यादा छोटी थी, की चोली मैंने ट्राई की। पर वह बहुत कसी थी।
चम्पा भाभी ने कहा-
“अरे यहां गांव में चड्ढी बनयान औरतें नहीं पहनती…”
और उन्होंने मुझे बिना ब्रा के चोली पहनने को मजबूर किया। भाभी ने तो ऊपर के दो हुक भी खोल दिये, जिससे अब ठीक तो लग रहा था पर मैं थोड़ा भी झुकती तो सामने वाले को मेरे चूचुक तक के दर्शन हो जाते और चोली अभी भी इत्ती टाइट थी कि मेरे जोबन के उभार साफ-साफ दिख रहे थे।

हाथ में तो मैंने चूड़ियां, कलाई भर-भरकर तो पहनी ही थीं, भाभी ने मुझे कंगन और बाजूबंद भी पहना दिये। चन्दा ने मेरी बड़ी-बड़ी आँखों में खूब गाढ़ा काजल लगाया, माथे को एक बड़ी सी लाल बिंदी और कानों में झुमके पहना दिये। चम्पा भाभी ने पूरा मुआयना किया और कुछ देर तक सोचती रहीं , फिर बोलीं ,अभी भी एक कसर है।





अंदर गयीं और एक नथ ले आयीं , बहुत ही खूबसूरत , बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं। मेरे होंठों से रगड़ खाती , और एक प्यारा सा बड़ा सा सफेद मोती।

और कामिनी भाभी ने अपने हाथ से पकड़ के पहना दिया।
मैंने जरा सा नखड़ा किया , ना नुकुर किया तो ,कामिनी भाभी चिढ़ाते हुए बोलीं ,

" अरी बिन्नो ,नथ पहनोगी नहीं तो उतरेगी कैसे "

फिर साथ साथ चंदा को हड़काया भी ,

" ये मस्त माल तेरे हवाले कर रही हूँ , तेरी जिम्मेदारी है। २४ घंटे के अंदर नथ उतर जानी चाहिए। "

चंदा भी कौन कम थी , बोली

" भाभी , अरे २४ घंटे। मेरी सहेली को समझती क्या हैं , १२ घंटे से कम में ये नथ न उतर गयी तो कहिये। अरे इसकी बुलबुल तो आई है है यहाँ चारा घोंटने। "

और हँसते हँसते सभी लोट पोट होगये।

चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये। काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत, हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।











हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो। और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।

कजरी ने तान छेड़ी- “अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…” और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।


तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी- “अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…” वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।


पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा- “अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”

मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।


“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…” सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।


“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…” चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।
“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…” उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।
माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,

कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू

जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू




चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।

खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.

मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं। और लड़कों को और उकसा रही थीं


तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,

" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा

"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "

गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,

" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "

और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी , रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।


मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।


जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,

सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।

तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

aap nayi kahani isi forum per shuru kerna pls
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

komaalrani wrote: कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।

और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ


अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये

रतिया के आया जा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,

यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।
और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ , फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....


लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,

पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया मां।

नागिन के जैसे लहरे कमरिया ,

छुरी जैसी है हमरी नजरिया ,

अरे , मार गवा बिच्छू बजरिया में।

अरे मच गवा सोर बजरिया मा

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया माँ।
अरे कइसन बचाय आपन इमनवा

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां
" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो " ये सुनील था।

और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,


अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,

तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।

जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।


आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार , रमा ने चिढ़ाया मुझे।

“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…” अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।

बबुरे का डंडा फटाफट होए ,

तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा

तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।

पांच के बादल पचास लग जाय ,

बिन रगड़े न छोड़ब चाहे पुलिस लग जाय ,

अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे


आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।
चन्दा ने फ़ुसफुसाया- “अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”

“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।

“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।


वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े। मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज… भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।


कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”

“और क्या… चलो ना…” गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।


“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…” खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।

मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये। मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।


जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया। मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था, और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।


कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।
भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।

अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।


पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।


तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था। चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।


चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।


बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…”


,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: सोलहवां सावन,

Post by rajsharma »

komaalrani wrote:
चौथी फुहार











भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी। अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी। पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था। तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था।

चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।
चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।


बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…”









गन्ने के खेत में








पर तब तक मैंने देखा की गीता, पास के गन्ने के खेत में जा रही है। मैंने पूछा- “अरे… ये गीता कहां जा रही है…”


चन्दा ने आँख मारकर, अंगूठे और उंगली के बीच छेद बनाकर एक उंगली को अंदर-बाहर करते हुए इशारे से बताया चुदाई करवाने। और मुझे दिखाया की उसके पीछे रवी भी जा रहा है।

“पर तुम कहां रुकी हो, तुम्हारा कोई यार तुम्हारा इंतेजार नहीं कर रहा क्या…” चन्दा को मैंने छेड़ा।

“अरे लेकिन तुम्हें कोई उठा ले जायेगा तो मैं ही बदनाम होऊँगी…” चन्दा ने हँसते हुए मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटी।

“अरे नहीं… फिर तुम्हें खुश रखूंगी तो मेरा भी तो नंबर लगा जायेगा। जाओ, मैं यही रहूंगी…” मैं बोली।

“अरे तुम्हारा नंबर तो तुम जब चाहो तब लग जाये, और तुम न भी चाहो तो भी बिना तुम्हारा नंबर लगवाये बिना मैं रहने वाली नहीं, वरना तुम कहोगी कि कैसी सहेली है अकेले-अकेले मजा लेती है…” और यह कह के वह भी गन्ने के खेत में धंस गयी।





मैंने देखा की सुनील भी एक पगडंडी से उसके पीछे-पीछे चला गया।

गन्ने के खेत में सरसराहट सी हो रही थी।


मैं अपने को रोक नहीं पायी और जिस रास्ते से सुनिल गया था, पीछे-पीछे, मैं भी चल दी।

एक जगह थोड़ी सी जगह थी और वहां से बैठकर साफ़-साफ़ दिख रहा था।

चन्दा को सुनील ने अपनी गोद में बैठा रखा था और चोली के ऊपर से ही उसके जोबन दबा रहा था। चन्दा खुद ही जमीन पर लेट गयी और अपनी साड़ी और पेटीपेट को उठाकर कमर तक कर लिया। मुझे पहली बार लगा की साडी पहनना कित्ता फायदेमंद है।


उसने अपनी दोनों टांगें फैला लीं और कहने लगी- “हे जल्दी करो, वो बाहर खड़ी होगी…”


सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये। उफ… कित्ता गठा मस्कुलर बदन था, और जब उसने अपना… वाउ… खूब लंबा मोटा और एकदम कड़ा लण्ड… मेरा तो मन कर रहा था कि बस एक बार हाथ में ले लूं।

सुनील ने उसकी चोली खोल दी और सीधे, फैली हुई टांगों के बीच आ गया।


उसके लण्ड का चूत पर स्पर्श होते ही चन्दा सिहर गयी और बोली- “आज कुछ ज्यादा ही जोश में दिख रहे हो क्या मेरी सहेली की याद आ रही है…”


“और क्या… जब से उसे देखा है मेरी यही हालत है, एक बार दिलवा दो ना प्लीज…” सुनील अपने दोनों हाथों से चन्दा के मम्मे जमकर मसल रहा था।


चन्दा जिस तरह सिसकारी भर रही थी, उसके चेहरे पे खुशी झलक रही थी, उससे साफ लग रहा था की उसे कितना मजा आ रहा था। मेरा भी मन करने लगा कि अगर चन्दा की जगह मैं होती तो…


सुनील अपना मोटा लण्ड चन्दा की बुर पर ऊपर से ही रगड़ रहा था और चन्दा मस्ती से पागल हो रही थी- “हे डालो ना… आग लगी है क्यों तड़पा रहे हो…”

सुनील ने उसके एक निपल को हाथों से खींचते हुए कहा-

“पहले वादा करो… अपनी सहेली की दिलवाओगी…”


चन्दा तो जोश से पागल हो रही थी और मुझे भी लगा रहा था कि कितना अच्छा लगता होगा। वह चूतड़ उठाती हुई बोली-


“हां, हां… दिलवा दूंगी, चुदवा दूंगी उसको भी, पर मेरी चूत तो चोदो, नशे में पागल हुई जा रही हूं…”


सुनील ने उसकी दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रखा और उसकी कमर पकड़कर एक धक्के में अपना आधा लण्ड उसकी चूत में ठेल दिया। मैं अपनी आँख पर यकीन नहीं कर पा रही थी, इतनी कसी चूत और एक झटके में सिसकी लिये बिना, लण्ड घोंट गयी।


अब एक हाथ से सुनील उसकी चूची मसल रहा था, और दूसरे से उसकी कमर कसकर पकड़े था।
थोड़ी देर में ही, चन्दा फिर सिसकियां लेने लगी-


“रुक क्यों गये… डालो ना प्लीज… चोदो ना… उहुह… उह्ह्ह…”



सुनील ने एक बार फिर दोनों हाथ से कमर पकड़कर अपना लण्ड, सुपाड़े तक निकाल लिया और फिर एक धक्के में ही लगभग जड़ तक घुसेड़ दिया। अब लगा रहा था कि चन्दा को कुछ लग रहा था।


चन्दा- “उफ… उह फट गयी… लग रहा है, प्लीज, थोड़ा धीरे से एक मिनट रुक… हां हां ऐसे ही बस पेलते रहो हां, हां डालो, चोद दो मेरी चूत… चोद दो…”


चन्दा और सुनील दोनों ही पूरे जोश में थे। सुनील का मोटा लण्ड किसी पिस्टन की तरह तेजी से चन्दा की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था।

चन्दा की मस्ती देखकर तो मेरा मन यही कह रहा था कि काश… उसकी जगह मैं होती और मेरी चूत में सुनील का ये मूसल जैसा लण्ड घुस रहा होता… थोड़ी देर में सुनील ने चन्दा की टांगें फिर से जमीन पर कर दीं और वह उसके ऊपर लेट गया, उसका एक हाथ, चन्दा के चूचुक मसल रहा था और दूसरा उसकी जांघों के बीच, शायद उसकी क्लिट मसल रहा था।

चन्दा का एक चूचुक भी सुनील के मुँह में था।


अब तो चन्दा नशे में पागल होकर अपने चूतड़ पटक रही थी। उसने फिर दोनों टांगों को उसके पीठ पर फंसा लिया। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि चुदाई में इत्ता मजा आता होगा, अब मैं महसूस कर रही थी कि मैं क्या मिस कर रही थी।


सटासट, सटासट… सुनील का मोटा लण्ड… उसकी चूत में अंदर-बाहर… चन्दा का शरीर जिस तरह से कांप रहा था उससे साफ था कि वो झड़ रही है।


पर सुनील रुका नहीं, जब वह झड़ गई तब सुनील ने थोड़ी देर तक रुक-रुक कर फिर से उसके चूचुक चूसने, गाल पर चुम्मी लेना, कसकर मम्मों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया और चन्दा ने फिर सिसकियां भरना शुरू कर दिया।


एक बार फिर सुनील ने उसकी टांगों को मोड़कर उसके चूतड़ों को पकड़ के जमके खूब कस के धक्के लगाने शुरू कर दिये। क्या मर्द था… क्या ताकत… चन्दा एक बार और झड़ गयी।


तब कहीं 20-25 मिनट के बाद वह झड़ा और देर तक झड़ता रहा। वीर्य निकलकर बहुत देर तक चन्दा के चूतड़ों पर बहता रहा। अब उसने अपना लण्ड बाहर निकाला तब भी वह आधा खड़ा था।


मैं मंत्रमुग्ध सी देख रही थी, तभी मुझे लगा कि अब चन्दा थोड़ी देर में बाहर आ जायेगी, इसलिये, दबे पांव मैं गन्ने के खेत से बाहर आकर इस तरह खड़ी हो गई जैसे उसके इंतेजार में बोर हो रही हूं।


चन्दा को देखकर उसके नितंबों पर लगी मिट्टी झाड़ती मैं बोली- “क्यों ले आयी मजा…”

“हां, तू चाहे तो तू भी ले ले, तेरा तो नाम सुनकर उसका खड़ा हो जाता है…” चन्दा हँसकर बोली।

“ना, बाबा ना, अभी नहीं…”

“ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…” साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी।
मेले में गीता के साथ पूरबी, कजरी और बाकी लड़कीयां फिर मिल गयीं।



चन्दा ने आँखों के इशारे से पूछा तो गीता ने उंगली से दो का इशारा किया। मैं समझ गयी कि रवी से ये दो बार चुदा के आ रही है।


पूरे मेले में खिलखिलाती तितलियों की तरह हम लोग उड़ते फिर रहे थे।

हम लोगों ने गोलगप्पे खाये, झूले पर झूले, हम लोगों का झुंड जिधर जाता, पूरे मेले का ध्यान उधर मुड़ जाता और फिर जैसे मिठाई के साथ-साथ मक्खियां आ जाती हैं, हमारे पीछे-पीछे, लड़कों की टोली भी पहुँच जाती।


और दुकानदार भी कम शरारती नहीं थे, कोई चूड़ी पहनाने के बहाने जोबन छू लेता तो कोई कलाई पकड़ लेता। और लड़कीयों को भी इसमें मजा मिल रहा था, क्योंकी इसी बहाने उन्हें खूब छूट जो मिल रही थी।

थोड़ी देर में मैं भी एक्सपर्ट हो गई। दुकानदार के सामने मैं ऐसे झुक जाती कि उसे न सिर्फ चोली के अंदर मेरे जोबन का नजारा मिल जाता बल्की वह मेरे चूचुक तक साफ-साफ देख लेता।
उसका ध्यान जब उधर होता तो मेरी सहेलियां उसका कुछ सामान तो पार ही कर लेतीं, और मुझे जो वो छूट देता वो अलग।

हम ऐसे ही मस्ती में घूम रहे थे।
पूरबी ने गाया-






अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, मैं तो जोबना खोल दिखा दूंगी।
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, दूध जलेबी खा लूंगी
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे,
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, मैं तो लहंगा खोल दिखा दूंगी।


गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया।

तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया।

“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा।

“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला।


“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला।
दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…”


शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी।

पूरे मेले में हम लोगों की टोली ने धमाल मचा रखा था।

जो जो चीजे मैंने कभी देखी भी नहीं थी , सिर्फ पढ़ी थीं ,सुनी थीं वो सब , और सब से बढ़ के फुल टाइम मस्ती ,

जितना मैं चंदा से खुली थी , अब उतना ही गीता , पूरबी ,कजरी और गाँव की बाकी लड़कियों से भी ,

गीता ने पूरा किस्सा सुनाया मुझे चटखारे लेकर कैसे रवी ने उसके साथ , एक नहीं दो बार ,

पूरबी ने भी पूरे डिटेल में गन्ने के खेत के मजे के बारे में बताया।

और भीड़ भी इतनी की कहाँ कौन क्या कर रहा है , कोई देख नहीं सकता था ,सब अपने अपने में मगन थे।

टोलियां बन बिगड़ रही थीं , कभी किसी के साथ कोई किसी दूकान पे तो कोई किसी के साथ , और थोड़ी देर में फिर हम मिल जाते , आसमान में बनते बिगड़ते रंगीले बादलों के साथ।

हाँ ,जिधर हम जाते , लड़कों की टोली भी पीछे पीछे , और एक से एक कमेंट ,और उस से भी ज्यादा तीखे शोख जवाब भी मिलते , गीता और कजरी की ओर से और अब , मेरी भी जुबान खुल गयी थी , गाने से लेकर खुल के मजाक करने में।

मैं और चंदा मेले में घूम रहे थे की पीछे से सुनील कुछ इशारा कर के ,चंदा को बुलाया।

" बस पांच मिनट में आ रही हूँ , कुछ जरूरी काम है " वो मुझसे बोली , लेकिन मैं तो सुनील के इशारे को देख ही चुकी थी। हँसते हुए मैंने छेड़ा ,

" अरे जाओ न , और वैसे भी यहाँ आस पास कोई गन्ने का खेत तो है नहीं जो तुझे ज्यादा टाइम लगे। "

जोर से एक हाथ मेरी पीठ पे पड़ा और खिलखिलाती चंदा ने बोला , " बहुत देर नहीं है , जल्द ही तुझे भी गन्ने के खेत में लिटाउंगी , सटासट सटासट लेगी न अंदर तो, और वैसे भी गन्ने के खेत के अलावा भी यहाँ आस पास बहुत जगहे हैं मजा लेंने की , कित्ता भी चीखो,बोलो कुछ पता नहीं चलने वाला। "

Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply