सोलहवां सावन complete

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mini

Re: सोलहवां सावन,

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sasural mai holi.fagun ke din chaar
mini

Re: सोलहवां सावन,

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komaalrani wrote:थोड़ी देर में हम लोग फिर मेले की गहमागहमी के बीच , वहीं मस्ती ,छेड़छाड़। और पूरा गुट ।

गीता ,पूरबी ,कजरी , चंदा , रवि ,दिनेश और सुनील।


एक बड़ी सी स्काई व्हील के पास।

" झूले पे चढ़ने के डर से भाग गयी थी क्या " पूरबी ने चिढ़ाया।

" अरे मेरी सहेली इत्ती डरने वाली नहीं है , झूला क्या हर चीज पे चढ़ेगी देखना ,क्यों हैं न " चंदा क्यों पीछे रहती द्विअर्थी डायलॉग बोलने में।

और अब झूले वाले ने बैठाना शुरू किया ,मुझे लगा मैं और चंपा एक साथ बैठ जायंगे , लेकिन जैसे ही चंदा बैठी , धप्प से उसके बगल में सुनील बैठ गया।

और अब मेरा नंबर था लेकिन जब मैं बैठी तो देखा , की सब लड़कियां किसी न किसी लड़के के साथ ,और कोई नहीं बची थी मेरे साथ बैठने के लिए।

बस अजय , और वो झिझक रहा था।

झूलेवाले ने झुंझला के उससे पूछा , तुम्हे चढ़ना है या किसी और को चढाउँ ,बहुत लोग खड़े हैं पीछे।

मैंने खुद हाथ बढ़ा के अजय को खीँच लिया पास में।

चंदा और सुनील अगली सीट पे साफ दिख रहे थे। चंदा एकदम उससे सटी चिपकी बैठीं थी और सुनील ने भी हाथ उसके उभारों पर , और सीधे चोली के अंदर
और झूला चलने के पहले ही दोनों चालू हो गए।

सुनील का एक हाथ सीधे चंदा की चोली अंदर , जोबन की रगड़ाई ,मसलाई चालू हो गयी और चंदा कौन कम थी , वो भी लिफाफे पे टिकट की तरह सुनील से चिपक गयी।

और झूला चलते हुए इधर उधर जो मैंने देखा तो सारी लड़कियों की यही हालत थी।

मैं पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही वो नीचे आया, जोर की आवाज उठी , होओओओओओओओओओओ हूऊऊओ

और इन आवाजों में डर से ज्यादा मस्ती और सेक्सी सिसकियाँ थीं।


डर तो मैं भी रही थी ,पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही झूला नीचे आया मेरी फट के , … मैं एकदम अजय से चिपक गयी।

लेकिन एक तो मैं कुछ शर्मा रही और अजय भी थोड़ा ज्यादा ही सीधा , झिझक रहा था की कहीं मैं बुरा न ,

लेकिन फिर भी जब अगली बार झूला नीचे आया , डर के मारे मैंने आँखें मिची , अजय ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।
अब मैं और उहापोह में उसके हाथ को हटाऊँ या नही। अगर न हटाऊं तो कहीं वो मुझे ,…

हाथ तो मैंने नहीं हटाया ,हाँ थोड़ा दूर जरूर खिसक गयी , बस अजय ने हाथ हटा लिया।

अब मुझे अहसास हुआ , कितनी बड़ी गलती कर दी मैंने। एक तो वो वैसे ही थोड़ा ,बुद्ध और सीधा ऊपर से मैं भी न ,

फिर बाकी लड़कियां कित्ता खुल के मजे ले रही थीं , चंदा के तो चोली के आधे बटन भी खुल गए थे और सुनील का हाथ सीधा अंदर , खुल के चूंची मिजवा रही थी। और मैं इतने नखड़े दिखा रही थी। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहां था ,खुद तो उससे खुल के बोल नहीं सकती थी।

लेकिन सब कुछ अपने आप हो गया ,एकदम नेचुरल।

झूले की रफ्तार एकदम से तेज होगयी और मैं डर के अजय के पास दुबक गयी ,मैंने अपना सर उसके सीने में छुपा लिया , और अब जब उसने अपना हाथ सपोर्ट देने के लिए जैसे , मेरे कंधे पे रखा।

ख़ुशी से मैंने उसे मुस्करा के देखा और अपनी उंगलिया उसके हाथ पे रख के दबा दी।

और जब झूला नीचे आया तो अबकी सबकी सिसकियों में मेरी भी शामिल थी।

मैं समझ गयी थी ,हर बार लड़का ही पहल नहीं करता ,लड़की को भी उसका जवाब देना पड़ता है।

और अगर अजय ऐसा लड़का हो तो फिर और ज्यादा , आखिर मजा तो दोनों को आता है। फिर कुछ दिन में मैं शहर वापस चली जाउंगी , फिर कहाँ , और आज यहाँ अभी जो मौक़ा मिला है वैसा कहाँ ,… फिर




उसका हाथ पकड़ के मैंने नीचे खींच लिया सीधे अपने उभार पे , और हलके से दबा भी दिया।

और जैसे अपनी गलती की भरपाई कर दी हो , अजय की ओर मुस्करा के देखा भी।

फिर तो बस , उसकी शैतान उंगलियां ,मेरे कड़े कड़े किशोर उभारों के बेस पे , थोड़ी देर तो उसने बस जैसे थामे रखा ,फिर अपनी हथेली से हलके दबाना शुरू किया। हाथ का बेस मेरे निपल से थोड़े ऊपर , मैं साँस रोक के इन्तजार कर रही थी अब क्या करेगा वो ,

कुछ देर उसने कुछ नहीं किया , बस अपनी हथेली से हलके हलके दबाता , मेरी गोलाइयों का रस लेता , वो अभी खिली कलियाँ जिसके कितने ही भौंरे दीवाने यहाँ इस मेले में टहल रहे थे। पतली सी टाइट चोली से उसके हाथ का स्पर्श अंदर तक मुझे गीला कर रहा था।

मन तो मेरा कर रहा था बोल दूँ उससे जोर से बोल दूँ ,यार रगड़ दो मसल मेरे जोबन ,जैसे खुल के बाकी लड़कियां मजे ले रही हैं ,

पर ये साल्ली शरम भी न ,

लेकिन अबकी जब झूला नीचे आया तो बस मैंने अपनी हथेली उसकी हथेली के ऊपर रख के खूब जोर से दबा दिया , और उस प्यासी निगाह से देखा , जैसे सावन में प्यासी धरती काले बादलों की ओर देखती है।

और धरती की तरह मेरी भी मुराद पूरी हुयी।

अजय ने खूब जोर से मेरे जोबन दबा दिए।

इत्ता भी सीधा नहीं था वो , अब हलके हलके रगड़ मसल रहा था , और थोड़ी ही देर में दूसरा उभार भी उसके हथेली की पकड़ में ,

मेरी सिसकियाँ और चीखें और लड़कियों से भी अब तेज निकल रही थीं।

पहली बार मुझे ये मजा जो मिल रहा था , प्यार से कोई मेरे उभारों को सहला दबा रहा था , मसल रहा था ,रगड़ रहां था ,मीज रहा था।

और मैं भी उतने ही प्यार से , दबवा रही थी , मसलवा रही थी , रगड़वा रही थी ,मिजवा रही थी।

मैं आलमोस्ट उसके गोद में बैठी हुयी थीं ,मेरा एक हाथ जोर से उसके कमर को पकडे हुआ था , जैसे अब वही मेरा सहारा हो , आलमोस्ट कम्प्लीट सरेंडर।
अब मेरी सारी सहेलियां जिस तरह से खुल के अपने यारों के साथ मजा ले रही थीं ,उसी तरह


लेकिन अजय तो अजय ,उसकी उँगलियाँ हथेलियाँ अभी भी चोली के ऊपर से ही चूंची का रस ले रही थीं।

दो बटन तो मेरे पहले ही खुले थे , मेरी गोलाइयाँ , गहराइयाँ सब कुछ उसे दावत दे रही थीं लेकिन ,....

पर मेरे लिए चोली के ऊपर से भी जिस तरह से वो जोर जोर से दबा रहा था वही पागल करने के लिए बहुत था। अब मुझे अंदाज हो रहा था जवानी के उस लज्जत का जिसे लूटने के लिए सब लड़कियां कुछ भी , कभी गन्ने के खेत में तो कभी अपने घर में ही ,


उसकी डाकू उँगलियों ने हिम्मत की अंदर घुसने की , मैंने बहुत जोर से सिसकी भरी , जब उसके ऊँगली के पोर मेरे निपल से छू गए।

जैसे खूब गरम तवे पे किसी ने पानी के छींटे दे दिए हों


अंगूठा और तर्जनी के बीच वो मटर के दाने ,

लेकिन तबतक झूला धीमा होना शुरू हो गया था और उसने हाथ हटा लिया।


झूले के रूकने पे अजय ने मेरा हाथ पकड़ के उतारा और एक बार फिर उसकी हथेली मेरे उभारों पे रगड़ गयी।

वो बेशर्मों की तरह मुझे देख के मुस्करा रहा था , लेकिन मैं ऐसी शरमाई की , हिरनी की तरह अपने सहेलियों के झुण्ड से दूर।
mini

Re: सोलहवां सावन,

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अरे अरे अरे ना ना ना...
आज रपट जाएँ तो हमें ना उठैइओ
आज फिसल जाएँ तो हमें ना उठैइओ
हमें जो उठैइओ तो - 2, खुद भी रपट जैययो

हा खुद भी फिसल जैययो
आज रपट हा हा आज रपट जैययो तो हमें ना उठैइओ




बरसात में थी कहा बात ऐसी पहली बार बरसी बरसात ऐसी - 2
कैसी यह हवा चली, पानी में आग लगी, जाने क्या प्यास जगी रे
भीगा यह तेरा बदन, जगाए मीठी चुभन
नशे में ज़ूमे ये मन रे, कहा हू मैं मुझे भी यह होश नही
हा हा हो हो - 2, (आज बहक जाए तो होश ना दिलाईयो - 2)
होश जो दिलाईयो तो - 2, खुद भी बहक जैययो
आज रपट हा हा आज रपट जैययो तो हमें ना उठैइओ

(बादल में बिजली बार बार चमके
दिल में मेरे आज पहली बार चमके) - 2
हसीना डरी डरी, बाहों में सिमट गयी, सीने से लिपट गयी रे
तुझे तो आया मज़ा, तुझे तो आई हसीन, मेरी तो जान फसी रे
जानेजिगर किधर चली नज़र चुराके
हा हा हो हो - 2, (बात उलझ जैययो तो आज ना सुल्झैयो - 2)
बात जो सुल्झैयो तो - 2, खुद भी उलझ जैययो
आज रपट हा हा आज रपट जैययो तो हमें ना उठैइओ...



बदल से छम छम शराब बरसे सावरी घटा से शबाब बरसे-2
बूँदों की बजी पायल, घटा ने छेडी ग़ज़ल, ये रात गयी मचल रे
दिलों के राज़ खुले, फ़िज़ा में रंग घुले, जवां दिल खुलके मिले रे
होना था जो हुआ वही अब डरना क्या
हा हा हो हो - 2, (आज डूब जाए तो हमे ना बचाईयो - 2)
(हमे जो बचाईयो तो - 2), खुद भी डूब जैययो
आज रपट हा हा आज रपट जैययो तो हमें ना उठैइओ
आज फिसल जाएँ तो हमें ना उठैइओ, (हा हा हो हो - 2)


purane samay mai mastram ka naam chalta tha.ab aap ka
mini

Re: सोलहवां सावन,

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aap ne mere post ka reply kiya ,is baat per bahut khush hu
mini

Re: सोलहवां सावन,

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