ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

kunal wrote: 25 Sep 2017 14:45nice update
xyz wrote: 25 Sep 2017 19:59 bahut achha update bhai ji
Thanks dosto
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई


हम दोनो रोड पर ही बैठ गये, उसने मेरे हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोली- मनीष एक बात बोलू


मैं- हूँ


वो- तुझसे ना प्यार हुआ पड़ा है आज से नही बहुत पहले से पर कभी मैं तुझे बोल नही पाई पर आज सोचा बोल ही दूं यार ऐसे मन में कब तक घुट घुट कर सहूंगी मुझे पता ही नही चला कि कब मैं तुझे इतना टूट के चाहने लगी , बस हो गया यार


मैं- मुझे पहले ही पता है निशा


वो- तो फिर तूने कहा क्यो नही


मैं- तुझे भी तो पता है ना


उसने मेरी बॉटल ली और दो चार घूंठ भरे फिर बोली- यार मैं जानती हूँ कि तेरी मिथ्लेश की जगह कोई नही भर पाएगा पर मैं बस तेरे साथ ही रहना चाहती हूँ तेरे सिवा मेरा है ही कौन


मैं- और तेरे सिवा मेरा भी कौन है


नशे से वो हल्के हल्के काँप रही थी


मैं- यार डर लगता है कहीं तू भी उसकी तरह मुझे छोड़ गयी तो


वो- मुझे कहाँ जाना है


मैं- साथ रहेगी ना


वो- मरते दम तक


वो मेरे सीने से लग गयी उसकी आँखो से दो आँसू निकल कर मेरे गालो को छू गये बड़बड़ाते हुए वो कब सो गयी कुछ होश नही मैने उसे बेड पर लिटाया और उसके पास ही सो गया दारू सच मे ही कुछ ज़्यादा हो गयी थी पर मैने आँखे मींच ली इस उम्मीद मे क्या पता आने वाला कल कुछ अच्छा हो सुबह जब मैने देखा तो मामा के लड़के की काफ़ी मिस कॉल आई हुई थी तो मैने सोचा बाद मे ही कॉल कर लूँगा


नहाने जा ही रहा था कि उसका फिर से फोन आ गया


मैं- हाँ भाई


वो- अरे यार कब से कॉल कर रहा हूँ तू फोन क्यो नही उठा रहा


मैं- सो रहा था


वो- सुन बे तू चाचा बन गया है बेटा हुआ है


मैं- ये तो बहुत ही अच्छी खबर आई भाई


वो- हाँ पर सुन तू अभी घर आजा कुँआ पूजन का प्रोग्राम जल्दी ही बन गया है तो तुझे आना ही होगा और कोई बहाना नही चलेगा


मैं- तुझे तो पता ही है यार मेरा दिल नही करता


वो- मेरे भाई , तू यार हम को अपना मानता ही नही है हमेशा ऐसी ही बात करता है अरे हमारे लिए नही तो बेटे के लिए आजा देख तू नही आएगा तो फिर मैं नाराज़ हो जाउन्गा बात नही करूँगा फिर कभी


मैं- तू समझता क्यो नही यार


वो- देख तू ही तो मेरा छोटा भाई है तेरे बिना मेरी क्या खुशी यार आजा ना


मैं- चल ठीक है यारा, कल शाम तक पहुचता हूँ

ज़िंदगी के कुछ दिन और गुजर गये थे वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी कि मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ जाए चाहे हल्की सी ही पर मुझे पता नही क्यो खुशी होती ही नही थी कहने को तो जी रहा था पर सांसो का कुछ अता-पता था नही ऐसा नही था कि मैं निशा के बारे मे सोचता नही था हर पल उसकी फिकर रहती थी, ले देके वोही तो थी मेरी जो मिथ्लेश के बाद समझती थी मुझे कभी सोचा नही था ज़िंदगी ऐसे मुकाम पे ले आएगी हमेशा से मेरी कोई बड़ी तम्मन्ना नही थी
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

बस एक छोटा सा सपना देखा था मैने कि मैं और मिथ्लेश जी सके एक साथ पर गाँव की जिन गलियों मे हम जवान हुए वहाँ पर इतनी घुटन थी कि सांस लेना भी मुश्किल था और हम तो महक उठे थे मोहब्बत की खुश्बू मे पता नही कैसा रंग था उस का वो जो मुझे रंगरेज की तरह रंग गया था उसके रंग मे प्रीत ने जो डोर लगाई थी वो उलझ ज़रूर गयी थी पर टूटी नही थी ये और बात थी कि वो मुझसे आज दूर थी पर दूर होकर भी पास थी मेरे ,

इस दिल पे बस एक ही नाम था मेरी हर सांस बस मिथ्लेश ही पुकारती थी ऐसा कोई दिन नही जब उसकी याद नही आई, वो बहुत कहती थी मुझसे कि फ़ौजी कभी तुझे मेरी याद भी आती है और मैं बस इतना ही कहता था कि यार, तू इस दिल से कभी जाए तो तेरी याद आए जितने भी पल हम ने साथ जिए बहुत कीमती थे मिथ्लेश की बात ही अलग थी और लड़कियो से बस एक गुरूर सा था उसमे उसकी वो बड़ी बड़ी सी आँखे जब वो उनको गोल गोल घुमाती थी तो कसम से दिल साला कुछ ज़ोर से धड़क ही जाता था


जितना भी लिखू मैं उसके बारे मे बस वो कम ही है , खैर, उस दिन मैं और निशा रीना के घर गये थे वो जयपुर थी उन दिनो अब बहन माना था उसको तो मना भी कैसे कर पता उसको रिश्ता ही कुछ था उस से , ये जयपुर शहर से भी अपना कुछ अजीब सा रिश्ता सा बन गया था आजकल तो मामा भी यही रहने लगे थे रीना से एक अरसे से मिला भी नही था पर सच बात तो ये थी कि उसको मना भी नही कर पाया था


निशा की इच्छा थी कि ट्रेन पकड़ ले पर मैने सोचा कि कार से ही चलते है तो हम चल पड़े जयपुर की तरफ रास्ते मे कुछ सोच कर कोटपुतली रुक गये रुक्मणी की याद जो आ गयी थी उसकी शादी पे तो जा नही पाया था तो सोचा कि मिल ही लेते है पता नही क्यो पुराने लोगो की एक कमी सी महसूस करने लगा था मैं अब मम्मी के मामा का घर था तो खूब बाते हुई रुक्मणी चाहती थी कि मैं रुकु कुछ दिन पर मैने उसको फिर मिलने का वादा दिया और रात के अंधेरे मे हम लोग जयपुर आ गये


रीना बहुत खुश थी मुझे देख कर और मैं भी उसे देख कर सबसे अच्छी बात तो ये थी कि इस रिश्ते मे कोई फ़ॉर्मलिटी नही थी बस एक भाई- बहन का प्यार और हो भी क्यो ना हमारा बचपन ही कुछ ऐसा था मैने निशा के बारे मे बताया उसको अब जिकर हुआ तो पुरानी बाते भी निकलनी थी और बातों के साथ मिथ्लेश का ज़िक्र तो होना ही था पर रीना भी समझती थी उसने बातों का रुख़ दूसरी तरफ मोड़ दिया पर वो भी जानती थी कि मिथ्लेश कभी जुदा नही होगी मुझसे


फॅमिली कहने को तो ये एक वर्ड है पर समझो तो बहुत कुछ है और अपनी तो बस यही कहानी थी अपनो ने कभी अपनाया नही कुछ लोगो ने कभी ठुकराया नही दिल से अच्छा लगा थोड़ा टाइम रीना के घर पे बिताके उसका पति भी मस्त इंसान था तगड़ी जमती थी उस से कोई तीन चार दिन वहाँ रहने के बाद हम ने विदा ली उनसे पर इस शहर से कुछ यादे जुड़ी थी जिनको ताज़ा करना था मुझे पर पहले निशा को कुछ शॉपिंग करवानी थी तो हम चांदपॉल चले गये , वैसे निशा एक सिंपल लड़की थी पर मैने फ़ॉेर्स किया तो उसने जम के खरीदारी की


इसी बहाने से उसके चेहरे पर खुशी देखी मैने , पर एक बात पे मैने गौर किया कि उस शोरुम मे निशा एक ड्रेस को बहुत गौर से देख रही थी पर उसने खरीदा नही , वो फिर आगे बढ़ गयी मैं रुक गया मैने सेल्समेन से वो ही ड्रेस देखी वो एक दुल्हन का जोड़ा था और मैं उसके मन की सारी बात समझ गया बिना उसको बताए मैने वो खरीद लिया और चुपचाप छिपा के गाड़ी मे रख दिया


मैं समझता था कि हर लल्डकी का अरमान होता है कि वो दुल्हन बने निशा की भी यही इच्छा थी मैने मन ही मन कुछ सोचा और वैसे भी क्या फरक पड़ता है अब अगर हमारी वजह से अगर एक भी इंसान को ख़ुसी मिले तो बहुत बड़ी बात है ,


मैं- निशा, बियर पिएगी


वो- ना, मुझसे कंट्रोल नही होता फिर खम्खा तमाशा हो जाना है


मैं- कैसा लगा जयपुर आके


वो- अच्छा, काफ़ी टाइम गुज़रा है यहाँ तो यादे है


मैं- हा, पर कुछ बदला बदला सा लग रहा है ना


वो- परिवर्तन तो संसार का नियम है श्रीमान मनीष कुमार जी


मैं- हां जी वो तो है


निशा- वैसे तुम्हे शायद नही अशोक भाई ने तुम्हे बुलाया था और तुम यहाँ पर घूम रहे हो वो नाराज़ हो जाएँगे


मैं- ओह तेरी यार! मैं तो भूल ही गया था


निशा- तुम भूले नही थे बल्कि तुम भाग रहे हो रिश्तो से पर कब तक भागोगे मनीष एक ना एक दिन रुकना पड़ेगा


मैं चुप रहा उसने बड़ी सफाई से मेरे मन की बात पकड़ ली


वो- देखो वो लोग तुम्हारे अपने है और खुशनसीब होते है वो लोग जिनके अपने होते है मेरी बात मानो तुम्हे जाना चाहिए लोगो की खुशियो मे शामिल होने की आदत डालो सबका अपना अपना नसीब होता है अपने मे ये है तो ये ही सही
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