ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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007
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

निशा खाना लगाने लगी मैं उठ कर उस कमरे मे आ गया जहाँ पर मम्मी ने मेरा पुराना समान रखा हुआ था एक टेबल पर मेरे रंग रखे थे जो मैने बरसो से नही छुए थे, मैने उन्हे उठाया और दीवार पर ही बस ऐसे ही चलाने लगा, बस ऐसे ही एक बार मैने अपनी दीवार पर मिथ्लेश की तस्वीर बनाई थी.

मितलेश जैसी कोई कभी नही हो सकती अपने आप मे अनूठी थी वो , उसके जैसा कोई नही.

उसका बस अहसास ही मेरे रोम रोम मे रूमानियत जगा देता था . जब भी मैं आँखे बंद करता तो बस उसकी ही तस्वीर मेरी आँखो के सामने आ जाती थी. इश्क़ था इश्क़ है बेशक वो मेरे पास नही थी पर उसकी रूह आज भी मुझमे ज़िंदा थी

. वो दूर होकर भी मेरे पास थी . बस उसकी तमाम यादो को याद करते हुए मेरे हाथ दीवार पर चल रहे थे और जब मैं रुका तो मेरे सामने दीवार पर मिथ्लेश मुस्कुरा रही थी . मैने उसकी वो ही तस्वीर बनाई थी जो कभी मैने बनाई थी. मेरी आँखो से आँसू निकल कर ज़मीन पर गिरने लगे. पर मैं जानता था कि इन आँसुओ की कीमत क्या है.
मुझे बहुत याद आती थी उसकी , इतनी याद कि कभी कभी लगता था कि मैं कही पागल नही हो जाउ, इतना दर्द जो दे गयी थी वो मुझे, आख़िर कसूर क्या था मेरा बस इतना ही कि मोहब्बत कर बैठा. पर कुछ कमी मुझमे ही रह गयी होगी क्योंकि वो मेरा इंतज़ार नही कर पाई और मैं बदकिस्मत मुसाफिर उसके पास होकर भी आज उस से इतना दूर था . किसी लहर की तरह वो बस आकर मुझसे टकरा तो सकती थी पर मैं किसी किनारे की तरह उसे पा नही सकता था.

एक बार फिर मुझ पर मेरी नाकामी चढ़ने लगी मेरे सर मे भयंकर दर्द होने लगा सांस लेना मुश्किल हो गया . मेरा बस एक ही तो ख्वाब था मिथ्लेश जिसके साथ मैं जीना चाहता था और उस उपर वाले ने उसे ही मुझसे छीन लिया था . कहने को तो मैं दुनिया से टकराने का हौंसला रखता था पर सच्चाई मे एक मजबूर टूटे हुए इंसान के सिवा कोई हस्ती नही थी मेरी.

रत भर मैं अकेले बैठे उस चाँद को देखता रहा दिल मे बहुत कुछ था कहने को पर लब खामोश थे. सुबह निशा देल्ही के लिए चल दी और मैं अपने प्लाट मे आ गया . और नीम के नीचे चारपाई बिछा के लेट गया . कुछ देर लेटा था कि पायल कि खनक मेरे कानो मे आ पड़ी. मैने आँखे खोल कर देखा तो प्रीतम चली आ रही थी.

मैं- आज बहुत खनक रही है तेरी पायल.

प्रीतम- बस तेरा ही असर है, पता है कल रात नींद ही नही आई. बस मैं सोचती रही अपने बारे मे.

मैं- दरवाजा बंद कर आ.

वो- कर आई हूँ पहले ही.

मैं- तो क्या सोचती रही .

वो- बताती हूँ पहले ज़रा सरक तो सही , बरसो बीत गये तेरे आगोश मे लिपटे हुए.
मैं- आ जा.

प्रीतम- बस पुरानी मस्तियो के बारे मे ही तमाम वो जगह याद करती रही जहा हम ने कुछ पलो को साथ जिया था.

मैं- कुछ भी कह तेरे और मेरी मामी जैसी कोई दूसरी आई ही नही ज़िंदगी मे. तुम दोनो कमाल हो .

प्रीतम- मामी को भी नही बक्षा तूने.

मैं- अरे बस ऐसे ही.

वो- कोई ना, ज़िंदगी मे जितना मज़ा लिया जाए ले लेना चाहिए .

मैने अपना हाथ प्रीतम के सूट के अंदर डाल दिया और ब्रा के उपर से उसकी मोटी मोटी चुचियो को दबाने लगा.

मैं- आज भी तू पहले जैसी ही है.

वो- क्या करूँ, वजन कम होता ही नही

मैं- ऐसे ही गंदास लगती है तू पहले भी इसी लिए मैं मर मिटा था तुझ पर

वो- मेरे वाले को मोटी औरते पसंद नही.

मैं- उसको क्या पता कि तू क्या चीज़ है पर उसका भी क्या दोष तुझ जैसे पीस दुनिया मे बनते ही कम है .

प्रीतम- इतनी तारीफ भी ना कर दो बच्चे पैदा करने के बाद बेडौल हो गयी हूँ मैं.

मैं- अब क्या फरक पड़ता है प्रीतम. उमर के साथ ये सब होता ही है एक दिन जवानी तो ढलेगी ही.

प्रीतम- सो तो है पर एक बार पहले किस करने दे मुझसे कंट्रोल ही नही हो रहा है क्या करूँ.

प्रीतम ने अपने लाल लिपीसटिक मे रंगे होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया और पागलो की तरह हम किस करने लगे, एक बात अभी भी उसमे बाकी थी उसके होंठो का स्वाद आज भी वैसा ही था एक दम मीठा जैसे पहले था .

मैं- आज भी तेरे होंठ मीठे है .

प्रीतम- मीठा जो ज़्यादा खाती हूँ.

मैने उसके सूट को उतारना शुरू किया.

वो- यही पे.

मैं- कौन आएगा यहाँ हम दोनो ही तो है.

धीरे धीरे हम दोनो ने अपने कपड़े उतारने शुरू किया और अब बस वो गुलाबी कच्छी मे मेरे सामने थी हमेशा की तरह उसने साइज़ से छोटी कच्छी पहनी हुई थी जो उसकी भारी जाँघो पर बेहद टाइट थी.

प्रीतम- एक मिनिट रुक सूसू कर के आती हूँ.

वो अपनी गान्ड मटकाते हुए पानी के हौद के पास गयी और इठलाते हुए अपनी कच्छी उतार के मूतने बैठ गयी. सुर्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्र्र्र्ररर करते हुए उसकी लाल चूत से गरम पानी की धारा धरती पर गिरने लगी इतना मदहोश कर देने वाला नज़ारा देख कर कोई भी अपने होश खो बैठता . उसकी नज़रे मुझसे मिली और मैं उसकी तरफ चल पड़ा . जैसे ही वो खड़ी हुई मैने उसे अपनी बाहों मे लिया और खींच ते हुए बाथरूम मे ले आया और फव्वारा चला दिया.

प्रीतम- ठंडा पानी है मनीष, बरफ जम जानी है.

मैं- तेरे बदन की गर्मी से भाप बन जाना है सब कुछ.

उसको अपनी बाहों मे लिए लिए ही हम फव्वारे के ठंडे पानी मे भीगते रहे.मेरा लंड प्रीतम के गोल मटोल चुतड़ों की दरार मे अपने आप सेट हो चुका था और मैं उसकी चुचियो से खेलने लगा था. हाथो मे कोहनियो तक पहनी उसकी चूड़िया गले मे मंगलसूत्र और कमर पर चाँदी की तागड़ी . हुस्न और गहनो का ऐसा संगम बहुत खूब सूरत लग रहा था .

प्रीतम- मनीष सर्दी लग रही है . कमरे मे चलते है

मैं- जैसी तेरी मर्ज़ी .

मैने उस हुस्न के प्याले को अपनी गोद मे उठाया और अंदर कमरे की तरफ बढ़ गया.
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by Kamini »

mast update
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jay
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by jay »

next updates eagerly awaited raj bhai ?
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

xyz wrote: 16 Oct 2017 13:28nice update bhai
Kamini wrote: 16 Oct 2017 21:05mast update
jay wrote: 17 Oct 2017 08:40 next updates eagerly awaited raj bhai ?
thanks dosto
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