ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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007
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

गीता- सही तो कह रही थी अनिता , अब तुम पहले वाले नही रहे कब आते हो कब जाते हो हमे तो मालूम ही नही पड़ता है. और ज़िंदगी मे आगे बढ़ना ज़रूरी होता है पर पुराने बन्धनो को भी थाम कर चलना ज़्यादा ज़रूरी होता है.

मैं- तुम भी भाभी की तरह बात करने लगी मेरा भी मन करता है पर मेरी मजबूरी है जो मैं उसके पास नही जा सकता मेरी ताई को पहले से ही हमारी सेट्टिंग के बारे मे मालूम है , बीच मे भी वो मुझे टोका करती थी और अब तो उन्होने खुल्ला कह दिया है कि अगर मेरी बहू के साथ कुछ भी किया या उसके करीब आने की कॉसिश भी कि तो पूरे कुनबे के सामने वो बता देंगी . जानती हो फिर इस से क्या होगा.

सबसे पहले तो मेरे और रवि का रिश्ता खराब होगा और फिर बाकी बाते भी खुल जाएँगी.मैं अपने मज़े के लिए परिवार तो बर्बाद नही कर सकता ना.

गीता- तो अनिता को सॉफ बोल क्यो नही देते कि ये बात है.

मैं- वो नही समझेगी, फिर वो ताई के साथ पंगा करेगी और फिर भी सब बर्बाद हो जाएगा तो अच्छा है ना कि मैं ही बुरा बन लू.

गीता- खैर जाने दो. मुझे तो लगा था कि अब तुम भूल गये मुझे.

मैं- तुम्हे भूल कर कहाँ जाना है वो तो निशा साथ आई हुई थी तो थोड़ी फ़ुर्सत सी नही हो रही थी फिर प्रीतम से मुलाकात हो गयी. मैं सोच रहा था कि जाने से पहले तुमसे मिल कर जाउन्गा.

गीता- चलो किसी ने तो सोचा मेरे बारे मे.

बाते करते हुए हम दोनो उसके घर आ गये. मैने देखा आस पास और भी घर बन गये थे.

मैं- बस्ती सी बन गयी है इस तरफ तो.

गीता- हाँ, आजकल लोग खेतो मे ही मकान बनाने लगे हैं तो इस तरफ भी बसावट हो गयी है.

मैं- अच्छा ही हैं .

गीता- सो तो है.

मैं- काम ठीक चल रहा है तुम्हारा.

गीता- मौज है, अब खेती कम करती हूँ डेरी खोल ली है तो दूध--दही मे ही खूब कमाई हो जाती है कुछ मजदूर भी रख लिए है.

मैं- बढ़िया है .

गीता ने घर का ताला खोला और हम अंदर आए.

गीता- क्या पियोगे दूध या चाय.

मैं- तुम्हारे होंठो का रस.

गीता- अब कहाँ रस बचा हैं , अब तो बूढ़ी हो गयी हूँ बाल देखो आधे से ज़्यादा सफेद हो चुके है.

मैं गीता के पास गया और उसकी चुचियो को मसल्ते हुए बोला- पर देह तो पहले से ज़्यादा गदरा गयी है गीता रानी . आज भी बोबो मे वैसी ही कठोरता है.

गीता- झूठी बाते ना बनाया करो.

मैं-झूठ कहाँ है रानी , झूठ तो तब हो जब तेरी तारीफ ना करू.

मैने गीता के ब्लाउज को खोल दिया ब्रा उसने डाली हुई नही थी. उसकी चुचिया पहले से काफ़ी बड़ी हो चुकी थी .

मैं- देख कितना फूल गयी है और तू कहती है कि.

गीता- उमर बढ़ने के साथ परिबर्तन तो होता ही हैं ना

मैने गीता की छातियो को दबाना शुरू किया तो वो अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी.

गीता- आज रात मेरे पास ही रुकोगे ना.

मैं- हाँ, आज तेरी चूत के रस को जो चखना है.

गीता- चख लो . तुम्हारे लिए ही तो है ये तन-बदन आज मुझको भी थोड़ा सुकून आ जाएगा.

गीता ने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया और बस एक पैंटी मे मेरी बाहों मे झूलने लगी. मैं उसकी चुचियो से खेलता रहा.
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Kamini
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by Kamini »

mast update
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Rohit Kapoor
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by Rohit Kapoor »

Superb bhai ..........waiting for next updates ?
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