ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है

Post by 007 »


मैने कहा , भाभी मैं क्या बात करूँगा उनसे, और वैसे भी उन्हे इस बात से ज़रा भी खुशी नही होगी, आप ही बता देना उनको मैं अब फोन रखता हूँ तो भाभी बोली –रूको तो सही, देखो हर माँ के कुछ अरमान होते है और पिछले कुछ दिनो मे जिस दर्द से तुम गुज़रे हो वो हम सब ने भी महसूष किया है मेरी बात सुनो और तुम ही उन्हे बता दो

माँ-बेटे को अच्छे से समझती है मुझे विश्वास है कि तुम्हारी खुशी मे ही हम सब की खुशी है लो मैं फोन उन्हे दे रही हूँ बात करो, और फिर कुछ सेकेंड्स बाद मम्मी की आवाज़ मेरे कानो से टकराई, मैने नमस्ते किया और कहा कि मम्मी कुछ बताना था आपको, तो उन्होने कहा- बोलो,सुन रही हूँ मैं

मैं जानता था कि उस टाइम उनका दिल भी कुछ ज़ोर से धड़क रहा होगा शायद वो सोच रही होंगी कि अब क्या नयी बात खड़ी हो गयी

मैने एक गहरी सांस ली और फिर बस इतना ही कहा मम्मी मैने शादी कर ली है कुछ देर तक दूसरी तरफ खामोशी छाई रही और फिर मम्मी ठंडी सी आवाज़ मे बोली अच्छा किया , करनी ही थी पर अचानक क्यो बताना चाहिए था ना मैं कुछ नही बोला मम्मी ने कहा औलाद ना जाने कब बड़ी हो जाती है सच मे पता ही नही चलता, पर ठीक है तो घर कब आओगे

मैने कहा कुछ दिनो बाद आउन्गा, किस से शादी की है ये नही पुछोगी क्या तो वो बोली क्या फरक पड़ता है तुम्हे पसंद है जिसका भी हाथ पकड़ा होगा सोच-समझ कर ही पकड़ा होगा तुम्हारी लाइफ है जैसे जियो बस मेरा बेटा खुश रहे और मुझे कुछ नही चाहिए, उनकी उस ठंडी आवाज़ मे छिपे एक माँ के दर्द को महसूस कर लिया था मैने वो अपनी फीलिंग्स को छुपाने की कोशिश कर रही थी पर ये जो माँ बेटे का रिश्ता होता है ना

ये बड़ा ही गहरा होता है , मम्मी के अनकहे दर्द को मैने सॉफ पकड़ लिया था उन्होने अपना गला खंखारा और पूछा क्या नाम है हमारी बहू का मैने कहा आप जानते है उसे, मैने निशा को अपना हमसफ़र चुना है मम्मी तो वो बस इतना ही बोली ये ठीक किया तुमने अच्छी लड़की है और तुम्हे समझती भी है फिर मम्मी बोली जल्दी घर आना और फिर कुछ और बातों के बाद फोन कट कर दिया

मैने अपना सर निशा की गोद मे रख दिया और लेट सा गया सिर थोडा भारी भारी सा हो रहा था , वो मेरे बालो मे उंगलियाँ फिराते हुए बोली क्या बात है कुछ परेशानी है क्या मैं मुस्कुराया और कहा नही कुछ नही रात धीरे-धीरे जवान होने लगी थी कहने को तो वो हमारी सुहागरात होनी थी पर क्या ये शादी असल मायने मे शादी थी या फिर ये एक उपाय था कि निशा हमेशा मेरे साथ ही रहे

मैने निशा से कहा कि मुझे बस थोड़ा सा टाइम देना मैं कोशिश करूँगा एक बेहतर पति बन ने की तो निशा हँसते हुए बोली क्या सोचने लग जाते हो तुम तुम साथ हो मेरे यही बहुत है लाइफ का जो ये दौर है मैं इस को समझती हूँ और तुम भी ऐसा ना सोचो टाइम के साथ सब ठीक हो जाएगा रिलॅक्स रहो और मुझे गले से लगा लिया वो बोली काफ़ी टाइम हो गया है चलो अब सो जाओ

कल मुझे भी बॅंक जाना है और तुम्हे भी एजेन्सी जाना है, रात को अचानक ही मेरी आँख खुल गयी गला कुछ सूख सा रहा था मैं पानी पीने के लिए उठा पास ही मेरे निशा सोई पड़ी थी अपने सपनो की दुनिया मे मस्त, कितना सुकून था उसके चेहरे पर , सुख की नींद सोई पड़ी थी वो मैं सोचने लगा काश इसी बेफिक्री से मुझे भी नींद आती पर अब कहाँ मुमकिन था मैं रसोई मे गया

फ्रिड्ज से बॉटल निकाली और पानी पी ही रहा था कि एक हवा का झोंका जैसे मुझसे टकराया उस खुश्बू को मैं हज़ारो मे भी पहचान सकता था, ना जाने क्यो मैं मुस्कुरा पड़ा मेरी निगाह दरवाजे पर गयी तो देखा ….. कि मिता थी या कोई हवा का झोंका सा था क्या ये मेरा आभास था नही ये वो ही थी, वो मेरी ओर देख कर मुस्कुराइ


मैने कहा आ गयी तुम वो अपनी पॅल्को को घूमाते हुवे बोली मुझे तो आना ही था मैने कहा फिर गयी ही क्यो थी तुम तो वो बोली जाना पड़ा मेरी आँखे डब डबा आई वो मेरे पास आई और मेरी आँखो से आँसू पोछते हुवे बोली रोते हुए बिल्कुल अच्छे नही लगते हो तुम, मैने कहा जी नही पाउन्गा तुम्हारे बिना वो बोली मैं तो हर पल ही साथ हूँ तुम्हारे मैने कहा फिर ये दूरी क्यो, वो बोली-कहाँ है दूरी देखो कोई दूरी नही मैं बस एक फीकी मुस्कान बिखेर गया

वो बोली वैसे ये अच्छा किया तुमने जो शादी कर ली , मैने कहा जान कर जख़्मो को कुरेद रही हो मिता मेरे और पास सट गयी और बोली मनीष हमारा प्यार सदा बना रहेगा देखो अब तुम्हारे मेरे बीच कोई दीवार नही , कोई फासला नही मैं हर पल तुम्हारा ही तो साया हूँ जुड़ी हूँ मैं तुमसे मैने कहा हाँ मेरी रूह मे बस्ती हो तुम मैं कभी जुदा ना हो पाउन्गा तुमसे

मिता की साँसे मेरे चेहरे पर पड़ रही थी वो ही खुसबू मेरे अंतर मन को छू रही थी मेरी आँख से टपक कर आँसू बहने लगा मिता ने उसे अपनी जीभ से चाट लिया पूरा जिस्म जैसे अपने मुकाम को पा गया था मैं शांत सा हो गया था और फिर अगले ही पल कुछ नही था वहाँ पर फिर से चली गयी थी वो वहाँ से अब मुझे नींद कहाँ आनी थी कमरे मे आया एक नज़र निशा पर डाली और फिर मैं घर से बाहर आ गया
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है

Post by 007 »


देल्ही, भी बड़ा ही अलग सा सहर है अपने आप मे खुद को समेटे हुवे है हर पल जवां रहता है , घड़ी पर नज़र डाली तो चार से कुछ उपर का टाइम हो रहा था वातावरण मे कुछ ठंड सी थी मैन रोड से मैने टॅक्सी ली और एजेन्सी मे आ गया इतनी सुबह सुबह मुझे देख कर किसी को भी आश्चर्य नही हुआ क्योंकि अपना काम तो 24 घंटे ही चलता रहता था

कुछ फाइल्स थी वो ही देखने लगा करीब साढ़े 7 बजे निशा का फोन आया तो मैने बताया कि मैं ऑफीस मे हूँ तो उसे भी तस्सल्ली हुई करने को कुछ ख़ास नही था वैसे भी जिसे फील्ड की आदत हो उसका इन कॅबिन्स की दीवारो मे कहा दिल लगा करता है बॉस आज मीटिंग मे बाहर थे तो दोपहर को मैं वाहा से निकल लिया घर आ कर बैठा ही था कि पापा का फोन आ गया .

पापा से बाते हुए वो चाहते थे कि मैं और निशा जल्दी ही घर आ जाए , काफ़ी दिनो से घर पर कुछ प्रोग्राम नही हुआ था तो वो चाहते थे कि कुछ किया जाए मैने कहा जी मैं जल्दी ही कोशिश करूँगा आने कि तो वो बोले आ ही जाना ज़िंदगी साली टुकड़ो मे बँट कर रह गयी थी आर्मी मे था तो सोचता था कि यार कहाँ गान्ड मरवाने को आ गये है पर इधर एक आज़ादी तो थी पर उस की कीमत भी बहुत ज़्यादा थी अब मैं सोचता था कि फौज ही बढ़िया थी


जितना मै उन दो-ढाई महीनो की छुट्टियो मे जी लेता था उतना अब कहा था मैने सोचा कि क्यो ना कुछ दिनो के लिए वापिस अपने कॅड्रर मे चला जाउ तो मैने अपने सीनियर से कहा कि सिर मुझे वापिस अपनी यूनिट मे भेज दीजिए और हमेशा की तरह ना मे ही जवाब मिला उस दिन करीब 26-27 घंटे से मैं हेडक्वॉर्टर मे ही पड़ा हुआ था शरीर थक रहा था पर काम बहुत ज़्यादा हो रहा था

भूख भी लग आई थी तो मैं पीएमओ की कॅंटीन चला गया वैसे तो उस टाइम वो बंद ही थी पर चूँकि हम लोग अक्सर उधर ही खाया करते थे तो कुछ ना कुछ मिल ही जाना था खाना खाकर वापिस अपनी डेस्क पर आया ही था की मैने देखा कि बॉस आ गये है, कपड़े भी घरवाले ही पहन रखे थे बाल बिखरे हुवे शायद नींद मे से जागते ही इधर आ पहुचे हो तुरंत ही एक मीटिंग बुलाई गयी

तो पता चला कि ड्र्डो का एक साइनटिस्ट लापता हो गया था एक टीम गयी थी उसको ढूँढने पर कामयाबी ना मिली थी इन्वेस्टिगेशन से बता चला था कि बुडापेस्ट गया था घूमने को और फिर उसकी कोई खबर नही थी बॉस ने बताया कि वो बंदा एक इंपॉर्टेंट प्रॉजेक्ट का हेड था तो उसका मिलना बहुत ज़रूरी है वरना मिनिस्ट्री को प्राब्लम फेस करना पड़ेगा

मैने कहा बस एक यही बाकी रह गया था , आब एजेन्सी का नाम बदल कर खोया-पाया विभाग कर दो बहन्चोद करे कोई भरे कोई तो बॉस बोले क्या करे यार डाइरेक्ट मिनिस्ट्री की अप्रोच है और मामला भी तो कॉन्फिडेन्षियल है तो देखना ही पड़ेगा मैने कहा सर सीबीआइ को ट्रान्स्फर करदो या आइबी को बोल दो वैसे ही बहुत काम है तो बॉस बोले सीबीआइ के बस की बात नही है आजतक उस से हुआ है कुछ

तुम एक टीम तैयार करो और चलो फिर बुडापेस्ट मैने कहा सर बात ये है कि मुझे तो वापिस ही करदो आप अपने बस की ना है ये फालतू के काम, लास्ट टाइम पाकिस्तान मे रेस्क़ुए किया था बहुति मुस्किल ही वापिस आया था गान्ड तक का ज़ोर लगा दिया था वो तो शूकर है कि काम बन गया था तो बॉस बोले, एजेंट , हमें सॅलरी इसी बात की मिलती है और याद रखो इस टाइम तुम देश की सबसे मस्त वाली जॉब कर रहे हो बीस मिनिट मे रिपोर्ट फाइल तुम्हे मिल जाएगी

टीम चूज करो और लग जाओ , अब कुछ कहने की गुंजाइश नही थी, रिपोर्ट देखने के बाद टीम बनानी थी हमारे कुछ एजेंट आक्टिव थे उधर पर मैने डिसाइड किया कि उनकी इनवोलव्मेंट ना करके कुछ नये बंदे लेते है , तो हम 6 लोगो ने एक छोटी सी टीम बनाई प्लान ये बनाया कि वो सब आज रात ही निकलेंगे और नेटवर्क सेटप करेंगे मैं दो दिन बाद उनसे जुड़ने वाला था पता नही क्यो जब भी मेरा कोई मिशन आक्टीवेट होता था मुझे निशा की चिंता सी होने लगती थी

मैने अपना बॅग लिया और घर की ओर चल दिया,रास्ते भर मैं मिशन की रूप-रेखा ही बनाता रहा दरवाजे पर निशा की मुस्कान ने मेरा स्वागत किया मेरा बॅग लेते हुए निशा बोली ज़्यादा काम था क्या मैने कहा हाँ यार, एक नया प्रॉजेक्ट मिला है तो कुछ दिनो के लिए बाहर जाना होगा वो मुझे पानी देते हुए बोली पर आज तो हम लोग गाँव जा रहे है, मैने कहा ऐसे कैसे जा रहे है, और फिर तुम्हे भी तो बॅंक जाना होता है

वो बोली, मैने 4-5 दिन की छुट्टी का जुगाड़ कर लिया है, तो मैं तुम्हारी वेट कर रही थी समान पॅक कर लिया है तुम्हारे कपड़े भीले लिए है तुम फटाफट से खाना खा लो फिर चलते है मैने कहा यार कम्से कम फोन करके बता तो देती , तो उसने कहा ज़रा अपना फोन चेक करो मैने देखा तो निशा के कयि नोटिफिकेशन थे मैने कहा यार तुम्हे तो पता ही है कि काम के टाइम पर फोन को पिक नही करता मैं वो बोली मैं समझ गयी थी

मैने सोचा दो दिन तो है ही ठीक है गाँव चलते है वैसे मैं चाहता था कि कम्से कम हफ्ते भर तो रुके ही पर अब निशा की इच्छा थी तो फिर सोचा चलते है तो उसी रात करीब 1 बजे के आस पास हम ने गाड़ी स्टार्ट की और निकल पड़े , मैं तो बुरी तरह से थका हुआ था पर फिर भी जागना मजबूरी था निशा ने कहा कि सो लो थोड़ी देर पर मैं भी कई दिनो बाद ही रात का सफ़र कर रहा था तो फिर जाने दिया घर का रास्ता थोड़ा लंबा सा था

मनेसर के पास हाइवे पर कुछ खाया पिया मैने दो चार बॉटल बियर ले ली कॅन निशा को देते हुवे बोला ले टिका ले दो चार घूँट तो वो बोली ना मैं ना लूँगी मुझे चढ़ गयी तो फिर कही घर पर हालत खराब ना हो जाए , मैने कहा अरे ले ना कुछ नही होगा तो फिर बियर की चुस्किया लेते हुवे हम सफ़र का आनंद लेते हुए घर पहुचने लगे , हल्की हल्की सुबह होने लगी थी पर लोग अभी जागे नही थे पूरी तरह से रोड सुना पड़ा था, गाड़ी मेरे सहर पहुच चुकी थी

निशा बोली,दिन मे आते तो मार्केट खुला होता तो कुछ ले ही लेते मैने कहा अब चल ना गाड़ी अब मेरे गाँव के रास्ते की ओर मूड गयी थी और मेरी आँखो के सामने मेरा बचपन फिर से आने लगा था इस रोड पर भी एक उमर गुजारी थी, कितनी बाते अक्सर यू ही याद आ जाया करती थी, निशा भी इन सब से अंजान नही थी, आइटीआइ के गेट के सामने एक शौचालय होता था जहाँ पर हर फिलम का पोस्टर लगा होता था मैं जानबूझपर उस पर ही सूसू कर दिया करता था

ना जाने क्यो निशा ने म्यूज़िक ऑफ कर दिया था जल्दी ही हम घर पहुचने वाले थे, वो बोली यार मैने जीन्स पहनी है गाड़ी रोक कर साड़ी डाल लूँ क्या मैने कहा साड़ी कैसे अड्जस्ट करोगी कोई सूट डाल लो वो बोली हाँ ठीक रहेगा , पर चेंज कैसे करूँ मैने कहा मुझ से कैसा शरमाना डार्लिंग, पिछली सीट पर जाके पहन ले मैं नही जाउन्गा बाहर और फिर मुझसे कैसा शरमाना तो वो बोली हाँ तुमसे कैसा शरमाना
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है

Post by Ravi »

mst story dude
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है

Post by 007 »

Ravi wrote:mst story dude

thanks dost
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है

Post by 007 »

निशा ने फटा फट चेंज किया तो फिर मैने गाड़ी फिर से स्टार्ट कर दी पर हर कुछ मीटर्स बाद मेरी धड़कने बढ़ती ही जा रही थी और फिर एक जगह ऐसी आई जहाँ मैने गाड़ी को रोक दिया और बाहर उतर गया , ये मिता के गाँव का अड्डा था लगता था जैसे आज भी वो आएगी और ऑटो का इंतज़ार करेगी, वो सब कुछ , वो सुनहरे दिन मेरी आँखो के सामने आ गये मैं अपने आप को रोक ना सका मैं दौड़ कर उस जगह गया जहाँ पर वो खड़ी होती थी वो पेड़ आज भी खड़ा था हमारी प्रेम कहानी के साक्षी के रूप मे

हमारी मोहब्बत भी तो कुछ ऐसी ही थी पर अफ़सोस कि अमे मुकम्मल जहाँ नसीब ना हो पाया, आँखो के सामने वो यादे थी जब वो स्कूल ड्रेस पहने टेंपो का इंतज़ार किया करती थी पर दोस्तो तकदीर पर किसका ज़ोर चलता है मेरे जैसे आम इंसान का तो बिल्कुल नही काफ़ी देर हो गयी थी मुझे खड़े हुए वहाँ पर पर मैं कर भी तो कुछ नही सकता था दिल कह रहा था कि काश कही से वो दौड़ती हुई आए और मेरे गले लग जाए पर ऐसा कहाँ मुमकिन था

तो भारी मन से अपने कदमो को पीछे खीचा कार स्टार्ट की और बस अब सीधा घर ही जाकर रुकना था , गाँव जैसे ही करीब आया दिल मे एक हलचल सी मच गयी थी कुछ भी कहो आप लोग अपना घर तो अपना ही होता है मेरे जैसे ख़ानाबदोश लोग भटकते है इस गली से गली आज यहाँ कल कही ऑर पर जैसा भी था अपना भी एक घर था एक परिवार था निशा बोली घर फोन करदो मैने कहा अब पहुच ही तो गये है अब क्या फोन करना वैसे भी गाँव मे लोग जल्दी उठ ही जाते है

निशा ने प्यार से मेरे गाल को सहलाया और अब मैने गाड़ी अपने घर के रास्ते पर मोड़ दी बस कुछ मिनिट की दूरी थी और वो भी पार हो गयी, घर का दरवाजा बंद था मैने खड़काया कुछ देर बाद चाची ने खोला मुझे देखते ही उनके होटो पर एक गहरी मुस्कान आ गयी उन्होने मुझे गले से लगाया और बोली आ गये मैने कहाँ जी आ गया , तभी निशा भी आ गयी बॅग्स वग़ैरा लेकर चाची ने उसको भी गले से लगाया

हम अंदर जाने ही वाले थे कि चाची ने निशा को दरवाजे पर ही रोका और कहा कि दो मिनिट रूको हमारी बहू के रूप मे तुम पहली बार आ रही हो मैं अभी आती हूँ चाची दौड़ कर गयी और आरती की थाली ले आई उसके पीछे पीछे मम्मी भी आ गयी, उन्होने भी निशा को गले से लगाया कुछ फॉरमॅलिटीस पूरी हुई और फिर हम आए अंदर तो पता चला कि पापा बाहर घूमने गये थे चाची चाइ-नाश्ता बनाने लगी मैं हॉल मे चला गया

दीवार पर एक साइड मे मेरी दादी की तस्वीर रखी थी, मैने उसको प्रणाम किया और उसके पास मे ही थी एक बड़ी सी तस्वीर मिथ्लेश की उसका वो मुस्कुराता हुवा चेहरा अब बस तस्वीरो मे ही था, लगता था जैसे अभी के अभी बोल पड़ेगी ,क्यो चली गयी वो मुझे छोड़ कर क्यो थोड़ा सा इंतज़ार और ना हो सका था उस से,मैने जेब से रुमाल निकाला और उस तस्वीर को पोछने लगा हालाँकि वो ज़रा भी धूल भरी नही थी

तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, मैने देखा तो पापा थे मैने पैरो को हाथ लगाया और फिर उनके साथ आकर सोफे पर बैठ गया बाते होने लगी , चाइ भी आ गयी थी और प्यारी साक्षी भी आ गयी थी चाचू चाचू कहते हुए तभी मुझे याद आया कि उसके लिए तो कुछ लेकर आया ही नही तो बुरा सा लगा पूरा परिवार बाते कर रहा था कि तभी चाचा ने कुछ कहा

वो बोले, मनीष यार तूने अपने ही गाँव की लड़की से ब्याह कर लिया डर है कही गाँव का माहौल ना बिगड़ जाए भाई चारे वाले टाँग अड़ाएँगे मैने कहा चाचा आप टेन्षन ना लो मैं हॅंडल कर लूँगा और रही बात निशा के काका-ताऊ की तो उन सालो ने कभी संभाला ही नही इसे तो किस हक़ से वो टाँग अड़ाएँगे और वैसे भी किसी ऐरे गैरे की पत्नी ना है वो अब कोई बोल के तो देखे तो वो बोले हाँ वो तो है पर गाँव का मामला है मैने कहा आप चिंता ना करो

अब यार इस चक्कर मे ना जाने कितनी प्रेम कहानिया बस कहानिया बन कर ही रह गयी थी मैं तो खुद भुगत चुका था इस बात को पर अब निशा मेरी थी बातों बातों मे दोपहर हो गयी थी मम्मी बोली तुम लोग आराम करो शाम को मिलते है मैने कहा नही मैं और निशा मंदिर जा रहे है तो वो बोली ठीक है पर जल्दी ही आ जाना

मैने कहा जी जल्दी ही आ जाएँगे मैने निशा से कहा कि चलें तो वो बोली मैं बस दस मिनिट मे आती हूँ, मैने चाची को कहा कि अपनी फेव. मटर-पनीर की सब्ज़ी बना दो आते ही खाना खाएँगे घर के पिछली हिस्से मे बाइक खड़ी थी कपड़ा हटाया तो देखा कि बिल्कुल सॉफ सुथरी थी जबकि लगता था कि जैसे मुद्दते ही बीत गयी थी उसको चलाए हुवे पापा बोले तुम्हारी मम्मी डेली ही इसको सफाई करती है तो मैं मुस्कुरा गया

फिर मैं और निशा उड़ चले काफ़ी दिनो बाद बाइक चला रहा था इस गाड़ी से भी कुछ यादे तो जुड़ी ही थी मैं और मिथ्लेश बहुत घूमे थे इस पर, मंदिर पहुच कर सबसे पहले देवता के दर्शन किए, गाँव पहले से बहुत ज़्यादा बदल गया था लोग भी बदल गये थे जो खाली ज़मीन पड़ी थी उधर अब एक बड़ा सा पार्क बना दिया गया था जो बगीची हुवा करती थी उस के पास से एक रोड बना दिया गया था तो वो भी बस नाम की बची थी

निशा बोली सबकुछ बदल गया हैना मैने कहा हाँ यार चल तालाब पर चलते है तालाब का भी कुछ काम करवाया गया था सीढ़िया बना दी गयी थी, पर मैं और निशा कच्चे किनारे की तरफ बढ़ गये पानी मे कमल के फूल खिले थे एक साइड मे सच ही तो था वक़्त अपनी गति से भाग रहा था लोग आगे को बढ़ गये थे अपनी अपनी मंज़िलो की ओर पर इस मुसाफिर का सफ़र अभी भी जारी थी शायद इसलिए भी क्योंकि मैं खुद अपने आप को वक़्त के अनुसार ढाल नही पाया था

निशा मेरे हाथ को सहलाते हुए बोली, क्या सोचने लगे मैने कहा यार अपना गाँव तो बिल्कुल ही सहर बन गया है अब वो बात कहाँ रही वो बोली हम भी तो कहाँ रहे पहले जैसे मैने कहा क्या तुम अपने घरवालो से मिलने जाओगी वो बोली उनसे मिलने का मूड तो नही है पर अपने घर मे ज़रूर थोड़ा टाइम गुज़ारुँगी मैने कहा चलो फिर वो बोली आज नही कल गाँव मे अपने बस दो तीन ही ठिकाने होते थे जहा बचपन मे उठ बैठ जाया करते थे

एक मंदिर, एक जंगल मे होता था नहर की पुलिया पर दोस्त तो कभी बने ही नही थे आवारापन मे ही कटी जिंदगी अपनी कुछ समझता उस से पहले आर्मी मे हो गये और फिर धक्के खाने शुरू हुवे ज़िंदगी के करीब घंटा भर उधर रहने के बाद हम घर आ गये खाना वाना खाया निशा थकि सी थी तो वो सोने चली गयी थी सब अपना अपना काम कर रहे थे मैं अनिता भाभी के पास चला गया वो घर के बाहर चबूतरे पर कपड़े धो रही थी

मैने कहा आओ भाभी कुछ बाते करते है, तो वो बोली हम बस कुछ कपड़े पड़े है ये धो लूँ फिर फ्री ही हूँ तो मैं वही पेड़ की नीचे बैठ गया भाभी से भी एक अजीब सा ही रिश्ता था जो सिर्फ़ वो या मैं ही समझते थे हालांकीी हमारे रिश्ते मे सेक्स भी था पर कोई लालच नही था, ये भी एक फीलिंग थी जो आसानी से नही समझ सकते एक ऐसा रिश्ता जो ग़लत होकर भी अपनी जगह सही था

फिर हम लोग उपर भाभी के कमरे मे आ गये, मैं भाभी के बेड पर लेट गया वो मेरे पास बैठ गयी बातों का सिलसिला शुरू हुआ वो बोली कमजोर हो गये हो काफ़ी मैने कहा भाभी बस जी रहा हूँ तो वो बोली कब तक ऐसा चलेगा अब निशा भी है तो तुम्हे आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा, जो लोग चले जाते है उनकी कमी तो कभी पूरी नही हो सकती है पर हमे भी तो कई चीज़ो को देखना पड़ता है आख़िर इस तरह दुखी होने से क्या मिता की आत्मा खुश होगी

भाभी ने किवाड़ को हल्का सा बंद किया और आकर मेरे पास लेट गयी उनके जिस्म से उठती हुवी मादक खुसबू मेरी साँसों मे जैसे समाती चली गयी भाभी थोड़ा सा और मुझसे सट गयी और बोली अब तुम निशा के साथ हँसी खुशी रहो उसको भी प्यार दो थोड़े दिन मे तुम्हारे बच्चे हो जाएँगे फिर तुम भी परिवार मे रम जाओगे धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा मैने कहा भाभी मैं कोशिश कर रहा हूँ मैने अपना हाथ भाभी के गोरे पेट पर रख दिया और उसको सहलाने लगा

तो भाभी बोली, अब तुम्हे मेरी ज़रूरत नही है नयी दुल्हन के पास जाओ मैने भाभी को अपने पास समेट लिया और कहा भाभी वो अपनी जगह आप अपनी जगह उसके आने से हमारी फीलिंग्स थोड़ी ना बदल जाएँगी, और मैने अपने होठ भाभी के होंठो पर रख दिए काफ़ी टाइम बाद मैने किसी औरत को इस तरह से छुआ था उनके नरम लबों का अहसास मेरी आत्मा मे घुलता सा चला गया

भाभी ने भी मना नही किया करीब 10 मिनिट तक हम लोग एक दूजे को चूमते ही रहे मैं अपना हाथ भाभी के घाघरे के अंदर ले गया और उनकी मखमली जाँघो को सहलाने लगा तो वो बोली अभी रूको दिन का टाइम है कोई आ निकलेगा अभी रहने देते है मैने कहा जी जैसा आप कहे फिर मैं कुछ देर के लिए वही पर ही सो गया करीब 5 बजे मुझे भाभी ने जगाया वो चाइ का प्याला लिए खड़ी थी चाइ पी कर मैं घर आया
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