ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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jay
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है complete

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

दोस्तो इस कहानी को वहाँ से शुरू करते है जब मैने मिथ्लेश को खो दिया था और मैं एकदम तन्हा इस दुनियाँ मे रह गया था मुझे दुखी देख अनिता भाभी मुझे दिलाषा दे रही थी


भाभी आपसे कुछ भी नही छुपा है पहले बहुत अच्छा लगता था ज़िंदगी मे कुछ भी कमी नही लगती थी आपके साथ बिताए हर लम्हे को जी भर कर जिया मैने ज़िंदगी मे कई लड़किया आई गयी मैं भागता ही रहा आप जानती हो कि मैं कभी भी फ़ौजी नही बन ना चाहता था नोकरि करनी थी बस इसलिए की मिथ्लेश के साथ घर बसा सकु क्योंकि वो कहती थी कि बिना नोकरी के क्या खिलाओगे मुझे कैसे पूरा करोगे मेरे ज़रूरतो को

आप जानती हो कि कैसे बस किस्मत से ही मेरा सेलेक्षन हुआ था टॉपर नही था मैं ना जाने कैसे नीचे वाली लाइन मे नाम आ गया था पर ठीक ही तो था ट्रैनिंग मे जब हाड़ तुड़ाई होती थी तो हर रोज मेरा दिल करता था कि ट्रैनिंग सेंटर से भाग जाउ पर बस दिल मे यही एक आस थी कि नोकरि होगी तो ही ब्याह होगा मिता से मुझे कितनी बार सज़ा मिली मस्ती भी की पर जैसे तैसे करके पास आउट कर ही गया तो हर ज़ख़्म को आँख मीच कर झेल लिया वो 5 साल मैं ही जानता हू कैसे जिए

“मैने कभी सोचा ही नही था कि ज़िंदगी ऐसी होगी और सच कहूँ तो अब फरक भी क्या पड़ता है हम सब बस कठपुतलिया ही तो है उस उपरवाले के मनोरंज की जब तक उसका दिल किया वो खेल लेता है और फिर बस रह जाती है तो कुछ यादे जो गाहे-बगाहे आकर हमे तडपा देती है मैं लाख कोशिस करता हूँ पर इन यादो से दूर भाग भी तो नही पाता हूँ “

“बभी, मैने क्या गुनाह किया बस इतना ही तो चाहता था कि मिथ्लेश के साथ अपनी छोटी सी ग्रहस्ती बसाऊ क्या गुनाह था मेरा इसके अलावा कि मैं मोहब्बत कर बैठा आख़िर क्या कसूर था मेरा जो इतनी बड़ी सज़ा मिली और वो तो दम भरती थी मेरी मोहब्बत का फिर क्यो वो भी मुझे छोड़ कर चली गयी क्या हमारे प्यार की डोर इतनी कच्ची थी तो फिर क्यो उसने वादा किया था जब वो निभा ही ना सकी ”

“मैं जानता हूँ कि आप सबलोगो को भी दुख है मेरी वजह से पर मैं करूँ भी तो क्या सला सबको अपनी अपनी पड़ी है मेरी कोई नही सुनता आख़िर मेरे सीने मे भी एक दिल है जो धड़कता है दर्द होता है

बहुत भाभी पर साला कोई नही समझता कितने दिन हुए मम्मी बात ही नही करती बस ज़िद पे अड़ी है आख़िर ऐसी भी क्या ज़िद घर छूट गया जब मम्मी पास से चली जाती है तो दिल रोता है आख़िर किस ज़िद के लिए मुझसे मूह मोड़ कर बैठी है , जिसके लिए ज़िद थी वो तो चली गयी ना ”

“वो कहती थी मनीष हमारा एक छोटा सा घर होगा छत की मुंडेर पर बैठ कर मैं तुम्हारी राह देखा करूँगी जब तुम्हे छुट्टी नही मिलेगी तो मैं रूठ जाया करूँगी जब तुम आओगे तो दूर से तुमहरे कदमो की आहट को पहचान लूँगी और भाग के सीधे तुम्हारे गले लग जाउन्गी देखो भाभी मैं आ गया क्यो नही लगती मेरे सीने से आके वो ”

“क्यो, तड़पाती है मुझे जब कहती थी कि इंतज़ार करूँगी तो क्यो नही किया आख़िर क्यो मुझे इस जमाने के आगे यू रुसवा कर गयी वो क्या इसी लिए उसने मेरा हाथ थामा था कि एक दिन यू हर बंधन तोड़ जाएगी उसने एक बार भी नही सोचा कि मनीष कैसे जिएगा उसके बिना वो कहती थी कि हर सुबह मेरे माथे पे चूम के मुझे जगाया करेगी अब क्यो नही आती वो ”

आँखो से आँसुओ का सैलाब बह चला था मेरा दर्द पानी का कतरा बन कर आँखो से बह रहा था साला मोहब्बत ही तो की थी दुनिया करती है हम ने कर ली तो कौन सा गुनाह कर दिया था दिल मे दर्द था गुस्सा था पर साला कोई पास बैठे तो सही दो पल हमारी भी सुने कि क्या कह रहा हूँ भाभी ने मेरे सर को अपनी गोद मे रख लिया और मेरी पीठ को सहलाने लगी मेरे आँसुओ को पोन्छा पर बोली कुछ नही


शायद वो भी जानती थी कि इस दर्द को बस मुझे ही झेलना है
भाभी मुझे सुलाने की कोशिश करने लगी सोच रही थी शायद इसी बहाने थोड़ा आराम मिल जाए मुझे पर जो दर्द मिथ्लेश दे गयी थी अब आराम कहाँ था हर पल बस घुट घुट के ही जीना था अपने चेहरे पर एक खुश हाली का नकाब ओढना था



भाभी- देवेर जी रोने से क्या होगा रोने से अगर जाने वाले वापिस आए तो मैं भी रोने लगूँ, देखो मुझसे तुम्हारा यू रोना बर्दाश्त नही होता है मैं तुम्हे यू टूटते हुए नही देख सकती थी जिस देवर को हमेशा हँसते मुस्कुराते देखा अब तुम यूँ मत करो मेरे कलेजे पे छुरिया चलती है देखो तुम चुप हो जाओ वरना मैं भी रो दूँगी कहते हुए भाभी की आँखो से आँसू निकल कर मेरे गालो पर टपक पड़े भाबी ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया और मेरे साथ ही सुबकने लगी


भाभी- देखो अब अगर तुम चुप नही हुए तो मैं मान लूँगी तुम मुझसे प्यार नही करते आज तक तुमने मेरा कहा हमेशा माना है देवेर जी ये भी मान लो मेरा मान रख लो आपकी आँखो मे आँसू अच्छे नही चलो सोने की कोशिश करो थोड़ा आराम मिलेगा


पर वो भी जानती थी कि बस ये कोरे दिलासे है मेरे अंदर एक आग जल रही थी जिसमे मैं खुद भी जल जाना चाहता था पर सोऊ भी तो कैसे आँख बंद करते ही आँखो के आगे उसका ही चेहरा वो सांवला चेहरा जिसकी नज़र भर ने ही मेरी ज़िंदगी बदल दी थी, इस से तो अच्छा था वो मेरे करीब कभी आती ही नही

अब सुबक्ते सुबक्ते ना जाने कब भाभी की गोद मे नींद ने मुझे अपनी बहो मे पनाह दे दी शायद उसको भी थोड़ा तरस आ गया होगा मुझ पर पता नही कितनी देर सोया था मैं जब आँख खुली तो भाभी वहाँ पर थी नही मेरे पूरे बदन मे दर्द हो रहा था मैं उठा और बाहर आया तो देखा कि नीचे आँगन मे निशा और चाची बैठी बाते कर रही थी मैं नीचे आया हाथ पाँव धोए तब तक निशा चाय ले आई


मैने मना किया


वो- मनीष कब तक , सुबह से तुमने कुछ नही खाया है कम से कम चाय तो पी लो माना कि सबसे नाराज़ हो पर इस चाय से कैसी नाराज़गी जानती हूँ वक़्त मुश्किल है पर हम सह लेंगे और फिर तुम ही तो कहते हो वक़्त अच्छा हो या बुरा बीत ही जाता है ना


मैं- पर वो तो वापिस नही आनी ना


निशा ने पल भर के लिए मेरी आँखो मे देखा और फिर मुझे अपनी बाहो मे भर लिया वो भी जानती थी मेरे दर्द को कुछ देर बाद वो अलग हुई और मुझे चाय पकड़ाई मैं पीने लगा वो मेरे पास ही बैठी रही चुप चाप चाची बस हम दोनो को देख रही थी धीरे धीरे मैने चाय ख़तम की
नीनु- आओ थोड़ा बाहर की तरफ चलते है ………………………………..

“तो कब तक यू खुद को कोसते रहोगे, देखो हम सब भी दुखी है पर तुमहरे ऐसा करने से वो वापिस तो नही आ जाएगी ना , और फिर तुम तो सोल्जर हो कितनी परेशानियाँ देखी है तुमने देखो तुम ऐसा करोगे तो फिर फॅमिली का क्या होगा ”

“निशा, मैं इस बारे मे बात नही करना चाहता ”

“क्यो नही करना चाहते तुम बात अगर चुप रहने से कोई सल्यूशन निकलता है तो मैं मौन व्रत ले लेती हूँ मैं जानती हूँ ये मुश्किल है पर हमे इस सब से बाहर आना होगा ”

“किन सब से निशा, कैसे भूल जाउ मैं उसे जिसकी हर साँस बस मेरे लिए थी जानती हो मेरी आँखो ने हर रात बस उसका ही सपना देखा था बस उसका ही एक एक छोटा सा घर बनाएँगे पर देखो झूठी शान की खातिर सब ख़तम हो गया ”

मैने कहा था मेरा इंतज़ार करना मैं हर हाल मे आउन्गा और मैने देर भी नही की पर फिर क्यो इंतज़ार नही किया उसने क्या हमारा प्यार बस इतना ही मजबूत था जो ऐसे टूट गया


निशा- मनीष, जो बात है वो तुम भी जानते हो और मैं भी , मैं बस इतना जानती हूँ कि प्लीज़ तुम मुस्कुराओ वो भी तो यही चाहती थी ना कि तुम हमेशा खुश रहो देखो तुम्हे ऐसे देख कर उसको कितना दुख होता होगा और फिर तुम्हारा प्यार कहा कमजोर है कमजोर होता तो वो ऐसा कदम क्यो उठाती


सोचो ऐसा करने से पहले उस पर क्या बीती होगी क्या उसके लिए ये सब आसान था एक तरफ़ उसके पिता थे दूसरी तरफ तुम ज़रा सोचो तो सही पल पल उसके उपर क्या गुज़री होगी आँखो मे बाप के सम्मान की शरम और दिल मे तुम्हारी चाहत का वचन मैं जानती हूँ इन की मजबूरिया क्या होती पर ऐसे खुद को कोसके तुम बस उसकी मोहब्बत को शर्मिंदा कर रहे हो


वो जो थी वो हमेशा तुम्हारे दिल मे रहेगी उसकी जगह कोई नही भर सकता पर मनीष क्या उसका प्यार यूँ ही रुसवा होगा वो क्या चाहती थी मुझसे ज़्यादा तुम जानते हो तो फिर कैसी ये ज़िद देखो तो सही क्या हाल बना रखा है तुमने वो जब उपर से तुम्हे ऐसे देखेगी तो उसको कितना दुख होगा


“तो मैं क्या करूँ निशा , तुम ही बताओ ”

“कुछ करने की ज़रूरत नही बस तुम्हे जीना होगा उसके लिए क्योंकि वो आज भी ज़िंदा है तुम्हारे अंदर तो सम्भालो खुद को और हमे भी ’

निशा ने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया मेरी आँखो से कुछ आँसू निकल कर उसके कंधो पर गिर गये बड़ा सुकून सा मिला था उसकी बाहों मे मिथ्लेश के बाद अगर मेरा कोई अपना था तो वो ही तो थी बाकी तो सब बदल गया था बहुत देर तक हम दोनो मंदिर के तालाब की सीढ़ियो पर बैठे रहे


उसने मेरा हाथ थाम रखा था हौले हौले सहला रही थी वो अंधेरा सा होने लगा था आसमान मे तारे निकल आए थे पानी मे हलचल करती जल्मुर्गियो को देख रहा था मैं दिल जैसे खामोश था धड़कने थम सी गयी थी हम बस उधर ही बैठे रहे पर कब तक घर तो आना ही था


घर आए मम्मी घर के बाहर ही बैठी थी बस एक नज़र मेरी तरफ़ डाली मैने सोचा बात करेंगी पर वो तो अपनी ज़िद पर थी वैसे भी ये घर तो कब का पराया हो गया था मेरे लिए मैं अंदर गया बैठक मे मिता की एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी बस उसके पास ही जाके रुक गया मैं

कहंता तो बहुत था उस से पर होंठो से बात निकली ही नही कही दिल मे ही रह गयी अनकही सी , तभी भाभी ने आवाज़ दी कि फादर साहब ने बुलाया है तो मैं छत पर चला गया वो बैठे थे हाथो मे एक पेग लिए पास ही बॉटल रखी थी उन्होने मुझे देखा और बोले- आ बैठ मेरे पास कितने दिन हुए बात नही हुई
मैं कुर्सी पे बैठ गया


पापा ने एक पेग बनाया और मुझे दिया अब मैं कैसे लेता वो समझे फिर बोले- अब तू मेरा बेटा कहाँ रहा वैसे भी जब बेटा बाप के कंधे से उपर निकल जाए तो दोस्त बन जाता है और फिर कैसा फ़ौजी तू जो बाप के संग पेग ना लगाया तो ले पकड़


मैने गिलास ले लिया कुछ देर वो चुप रहे फिर बोले- देख बेटा मैं जानता हूँ वो तुमहरे लिए कितनी अहमियत रखती थी अगर तुम हमे कुछ बताते तो हो सकता था कि कोई रास्ता निकालता मैं ये भी समझता हूँ कि प्यार करना कोई गुनाह नही प्यार अपनी मंज़िल खुद चुनता है , हमें लगता है कि हम ने उसे चुना है जबकि ये सब तो पहले ही तय हो चुका होता है


मैने कल तुम्हारी मम्मी से भी बात की थी माना कि थोड़ी जिद्दी है पर अगर मैं कहूँगा तो वो बात समझेगी पर मेरे दवाब से मैं चाहता हूँ कि तुम उस से बात करो माँ बेटे के बीच जो दूरिया है दोनो सुलझालो तुम दोनो के बीच मैं पिस रहा हूँ बाप हूँ तो कह नही सकता पर दिल तो मेरा भी है ना


और फिर जब तुम जब ऐसे सॅड सॅड रहोगे तो तुम्हारी मिथ्लेश कहाँ ख़ुह रह पाएगी देखो बेटे तुम फील करते हो तुम्हारी मम्मी फील करती है वैसे ही मैं भी तो इंसान हूँ मैं भी फील करता हूँ वो अलग बात है कि कभी कहता नही और फिर ये निशा इसके बारे मे सोचो ज़रा , सबकुछ छोड़ के तुम्हारे साथ है बाकी तुम समझदार हो


मैं जानता हू मेरी बात समझने मे थोड़ा टाइम लगेगा तुम्हे पर कभी जब खुद बाप बनोगे तो तुम्हे मेरी तमाम बाते याद आएँगी पर उस से पहले तुम अपना पेग ख़तम करो
बड़ी मुश्किल से मैने वो पेग अपने गले से नीचे उतारा


पापा- बाते तो मुझे बहुत सी करनी है पर शायद अभी सही समय नही


मैं उठ कर नीचे आ गया तो भाभी मिल गयी

भाभी- खाना तैयार है ले अओ


मैं- भूख नही है


वो- तुम्हारी पसंद के आलू के परान्ठे बनाए है


मैं- कहा ना भूख नही है


वो- कब तक


मैं- पता नही
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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भाभी- देखो मैने भी सुबह से कुछ नही खाया है अगर तुम नही खाओगे तो मैं भी नही खाउन्गी ऐसे ही भूखी ही सो जाउन्गी अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो मेरी भी यही ज़िद है


अब मैं क्या कहूँ उनसे मैं जानता था वो जो कर रही थी मेरे लिए ही कर रही थी पर मुझे समझे ना कोई तोड़ लिए दो चार टुकड़े उनके साथ आलू के परान्ठे मुझे हमेशा से ही बहुत पसंद थे पर सिर्फ़ मेरी मम्मी के हाथ के ही पर अब वो होना नही था और इधर मेरा जी भी नही लगता था तो मैने वापिस देल्ही जाने का सोचा


मैं सीधा अपने कमरे मे आया और अपना समान डालने लगा


“मुझे बता तो देते तो मैं भी अपनी पॅकिंग कर लेती ”

“मैने सोचा तुम कुछ दिन और रुकोगी


“हाँ, रुकती तो सही पर अगर तुम ने वापिस चलने का सोचा है तो फिर चलते है मैं भी पॅकिंग कर लेती हूँ


रात के करीब 1 बजे थे , मैं और निशा घर से निकले सब लोग सो रहे थे मैने जगाना ठीक नही समझा चुपचाप गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए रास्ते मे वो मोड़ आया जो सीधा मिता के घर तक जाता था मैने कुछ देर के लिए गाड़ी रोक दी पर कितना रुकता मैं आँखो मे एक झलक भरी और फिर चल दिए देल्ही के लिए सब पीछे रह गया था सफ़र तो चल रहा था पर मैं उसी मोड़ पर रह गया था


मेरा गाँव मेरा परिवार मेरे अपने लोग मेरी आँखो मे कुछ आँसू थे जो अब सुख चुके थे ज़िंदगी कहती है कि खुल के जियो पर जिए तो कैसे जिए इन हालातों मे मैने निशा की तरफ़ देखा खिड़की खोल रखी थी उसने ठंडी हवा उसके गालो को चूम चूम के जा रही थी अपने सर को टिकाए सीट पर वो कुछ सोच रही थी


मैं- क्या सोच रही हो


वो- हमें ऐसे बिना बताए नही आना चाहिए था


मैं- बताने से भी क्या हो जाता


वो- अपने परिवार से दूर मत भागो तुम


मैं- वहाँ कौन है जो मुझे समझता है


वो- हम सब को फिकर है तुम्हारी


बाते करते करते देल्ही आ गये हम थोड़ा सा थक सा गया था तो सो गया आँख खुली तो देखा कि वो मेरे पास ही सो रही थी मुझसे चिपक के मेरा हाथ उसके सर के नीचे था मैने निकाला नही कही उसकी नींद ना टूट जाए एक बालो की लट जो उसके चेहरे पर आ गयी थी हौले से हटाया मैने,निशा ये कौन लगती थी मेरी सच कहूँ तो सब कुछ थी मेरी बस ऐसे ही दोस्ती की थी इस से कभी पर अब देखो वो क्या थी मेरे लिए


कुछ देर बाद वो उठी , मैने लेटे रहने को कहा उसके पास होने से अच्छा लग रहा था मुझे वो मुझसे और चिपक गयी


वो- कॉफी पियोगे


मैं- चाय


वो- बनाती हूँ


वो उठी तो मैं भी उठ गया वैसे तो दोपहर का टाइम हो रहा था पर अभी उठे थे तो चाय बनती थी निशा चाय बना रही थी तो मुझे उसकी कलाई दिखी एक दम कोरी खाली तो मुझे फिर कुछ याद आया मैं कमरे मे कुछ खोजने लगा और फिर मुझे वो चीज़ मिल ही गयी ये कंगन थे जो पद्मियनी भाभी ने मुझे दिए थे मिथ्लेश के लिए पर ऐसी मेरी किस्मत थी कहाँ


मैं वापिस गया रसोई मे- निशा ज़रा अपने हाथ आगे करो


वो- किसलिए


मैं- करो तो सही यार


जैसे ही उसने अपने हाथ आगे किए मैने वो कंगन उसे पहनाने लगा


वो- क्या कर रहे हो


मैं- एक तोहफा है तुम्हारे लिए


वो- जानते हो क्या कर रहे हो


मैं- जानता हूँ


वो- मनीष,………….


मैं- चुप रहो अब इतना तो हक है ना तुमपे कि तुमहरे लिए कुछ कर सकूँ


वो- हक … मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है मनीष


उसकी कलाईयों मे वो कंगन देख कर दिल को सुकून सा लगा अच्छा लगा निशा ने मुझे गले से लगा लिया फिर हम ने चाय पी कुछ छोटे मोटे काम किए कल से ज़िंदगी को वापिस पटरी पे लाने की कोशिस करनी थी मुझे एजेंसी जाना था और उसे बॅंक , ज़िंदगी का एक दिन और बीत गया था ऐसे ही


अगले दिन



मैं- तुम्हे ड्रॉप कर दूं बॅंक

वो- नही मैं मेट्रो से जाती हूँ तुम कार ले जाओ


मैं- नही , तुम गाड़ी ले जाओ


रोड पे आके मैने ऑटो लिया और बताई उसको अपनी मंज़िल बॉस मुझे देख के खुश था उसने कुछ दिन डेस्कजॉब करने को ही कहा वो भी जानते थे कि अभी मैं फील्ड मे जाने लायक नही काम मे पता ही नही चला कि कब रात हो गयी तो अब चलना ही था मैं वहाँ से चला पर घर जाने का मूड नही था तो एक बॉटल ले ली और बैठ गया ऐसे ही पता ही नही चला कि कब बॉटल आधी से ज़्यादा हो गयी


“कितना पियोगे मेरे फ़ौजी मेंटल घर नही जाना क्या ”

मैने देखा वो खड़ी थी थोड़ी दूर फिर आई और मेरे पास बैठ गयी


मैं-घर है ही कहाँ मेरा


वो- कब तक नाराज़ रहोगे


मैं- अब नाराज़ भी ना रहूं , तुमने अच्छा नही किया मेरे साथ


वो- मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे, देखो पास ही तो हूँ तुम्हारे


मैं- तो फिर क्यो चली गयी तुम दूर


वो- ताकि फिर से तुम्हारे पास आ सकूँ


मैं- मुझे दुखी देख खुशी हुई तुम्हे


वो- मैं भी कहा सुखी हूँ देखो , जब तक तुम खुश नही तो भला मैं कैसे खुश रहूंगी
मैं- तो फिर क्यो नही आ जाती वापिस


वो- आ तो गयी हूँ क्या मैं तुमहरे साथ नही हूँ


मैं- बाते ना बनाओ


वो- तुमसे ही सीखा है , मैं कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे


मैं- कहो


वो- देखो, निशा अच्छी लड़की है बहुत प्रेम करती है तुमसे और फिर उसका कौन है तुम्हारे सिवा उसका हाथ थाम लो


मैं- पर तुम जानती हो मेरी हर सांस तुम्हारी ही है


वो- वो भी तुम्हारी ही है ज़रा एक बार देखो तो सही वो क्यो ही तुम्हारे लिए क्योंकि वो प्यार करती है तुमसे


मैं- और मैं तुमसे जो हक तुम्हारा है वो मैं कैसे उस से …..


वो- मेरी खातिर


वो मुस्कुरई अब उस क्या जवाब देता मैं क्या कहता मैं


वो- सोचो ज़रा मेरी यही इच्छा है कि तुम निशा से शादी कर लो और मुझे पूरा विशवास है तुम मेरी ये इच्छा भी पूरी करोगे



अब मैं क्या कहता उसको उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था अब मैं कहूँ भी तो क्या उसको पर इतना ज़रूर था कि वो दूर होकर भी मेरे पास ही थी बहुत पास शायद मेरे दिल मे मेरी धड़कनो मे
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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thanks bhai is kahani ko age badhane ke liye
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