ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

हम बात कर ही रहे थे कि रवि भाभी को ले आया .

मैं- भाभी ये क्या तरीका है इतनी रात को सबको परेशान करने का.

भाभी- तुम अपने काम से काम रखो तुम्हे मेरे मामले मे पड़ने की ज़रूरत नही है.

रवि- चुप कर जा वरना मेरा हाथ उठ जाएगा.

मैं- रवि, कोई बात नही गुस्से मे है . होता है.

भाभी-हां हूँ गुस्से मे तो किसी को क्या है जब इस घर मे मेरी कोई हसियत ही नही है तो क्यो रहूं मैं यहाँ पर. सारा दिन बस गुलामी करती रहूं कभी पशुओ का तो कभी खेतो का बस मेरी ज़िंदगी इसी मे जा रही है.

मैं- तो मत करो , काम की दिक्कत है तो मत करो. पर इस बात के लिए कलेश क्यो करना.

रवि- मनीष बात काम की नही है , इसको होड़ करनी है निशा से इसको लगता है कि निशा के आने से घर मे इसकी चोधराहत कम हो गयी है सब लोग निशा को ज़्यादा प्यार करते है और निशा के आगे ये फीकी पड़ जाती है .

रवि की बात सुनकर मैं और चाची हैरान रह गये.

चाची- पर ये तो ग़लत बात हैं ना बेटा, निशा इस घर की खास मेहमान है और मनीष की सबसे प्यारी दोस्त, अनिता ये बिल्कुल ग़लत तुम अच्छी तरह से जानती हो कि निशा और मनीष साथ रहते है और जल्दी ही शादी भी करेंगे , अपनी देवरानी से कैसी जलन

भाभी- मैं क्यो रीस करूँगी उस से, भला उसकी और मेरी क्या तुलना.

मैं- भाभी सही कहा आपने, आप अपनी जगह हो और वो अपनी , आप इस घर की बड़ी बहू हो पर आपका फ़र्ज़ बनता है कि घर को एक धागे मे बाँध के चले आपके मन मे ऐसी छोटी बात आई यकीन नही होता.

भाभी- कुछ बातों का यकीन मुझे भी नही होता देवेर जी.

भाभी की ये बात अंदर तक जाकर लगी.

मैं- भाभी, आप आप ही रहोगे, निशा क्या कोई भी आपकी जगह नही ले पाएगा पर निशा भी अब इस घर की सदस्या है जितना हक आपका है उतना ही उसका भी इस घर पर है.

ताई जी- बिल्कुल सही कहा तुमने, और अनिता तुझे इस घर मे रहना है जाना है वो तेरी मर्ज़ी है पर कालेश नही होना चाहिए, शूकर है निशा यहाँ नही है वरना वो क्या सोचती और क्या इज़्ज़त रह जाती हमारी. मैने कभी बेटी और बहू मे कोई भेद नही रखा पर पता नही आजकल इसके दिमाग़ मे कहाँ से ये बाते आ रही हैं .

चाची- सही कहा जीजी आपने , अनिता तुम अभी जाकर आराम करो और ठंडे दिमाग़ से सोचना कि इस घर के प्रति तुम्हारी क्या ज़िम्मेदारिया है और रवि तुम भी शांत हो जाओ बाकी बाते सुबह होंगी . इस घर की शक्ति इसके एक होने मे है और मैं कह रही हूँ कि जो भी मत-भेद हो इतने गहरे ना हो कि इस घर की नीव को हिला दे. सो जाओ सब लोग और किसी बुरे सपने की तरह इस झगड़े को भूलने की कॉसिश करना .


धीरे धीरे सब लोग चले गये पर मैं हॉल मे ही सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा कि आख़िर अनिता भाभी के दिमाग़ मे ये बात आई कहाँ से.

उस रात नींद नही आई बस दिल परेशान सा होता रहा अनिता भाभी ने जिस तरह से आज ये ओछी हरकत की थी मुझे बहुत ठेस लगी थी . मैने कभी ऐसी उम्मीद नही की थी कि भाभी अपने मन मे ऐसा कुछ पाले हुए है. दिल किया कि निशा को फोन कर लूँ पर समय देख कर किया नही वो रात भी कुछ बहुत ज़्यादा लंबी सी लगी मुझे.

अगले दिन मम्मी- पापा आने वाले थे उनको मालूम होता कि रात को क्या तमाशा हुआ तो उनको भी बुरा लगता ही पर मैने अनिता भाभी से खुल क बात करने का सोचा ,

मालूम हुआ कि वो तो सुबह सुबह ही खेतो पर चली गयी थी तो मैं भी उसी तरफ मूड गया.आज ठंड भी कुछ ज़्यादा थी और हवा भी तेज चल रही थी अपनी जॅकेट मे हाथो को घुसेडे मैं पैदल ही कच्चे रास्ते पर जा रहा था कि मुझे रास्ते मे प्रीतम मिल गयी.

प्रीतम- मनीष कहाँ जा रहा है,

मैं- कुवे पर

प्रीतम- कल कहाँ था मैं इंतज़ार करती रही.

मैं- एक पंगा हो गया था यार अभी थोडा जल्दी मे हूँ फिर बताउन्गा तुझे

प्रीतम- रुक तो सही मैं भी चलती हूँ तेरे साथ थोड़ा समय बिता लूँगी तेरे साथ.

अब मैं फस गया था प्रीतम को मना कर नही सकता और वहाँ पर अनिता भाभी इसको देखते ही फिर से शुरू हो जाएगी और मैं बीच मे लटक जाउन्गा.

मैं- यार , अनिता भाभी है कुवे पर तुझे देखते ही वो फिर से शुरू हो जाएगी.

प्रीतम- गान्ड मराने दे उसको, उसकी तो आदत है , उसका बस चले तो तुझे अपने पल्लू मे बाँध के रख ले, मैं बता रही हूँ तुझे उस से दूर रहा कर, .

मैं- यार वो समझने को तैयार नही है कि वक़्त बदल चुका है पहले जैसा कुछ भी रहा है क्या तू ही बता.

प्रीतम- छोड़ ना उसको , मेरा मूड खराब मत कर. मैं सिर्फ़ तेरे साथ रहना चाहती हूँ कल वैसे भी मेरा ससुर आ रहा है तो चली जाउन्गी.

मैं- तू बोल रही थी कि देल्ही मे जाएगी.

प्रीतम- पति ले जाएगा तो जाउन्गी वैसे कह तो रहा था कि होली के बाद उसको क्वॉर्टर मिलेगा.

मैं- मैं भी देल्ही मे ही हूँ, मिलती रहना.

प्रीतम- ये भी कहने की बात है क्या. वैसे ठंड बहुत करवा रखी है आज तूने.

मैं- तुझ जैसा बम साथ है तो मुझे सर्दी कैसे लग सकती है प्यारी.

प्रीतम- देख ले कही तेरी भाभी को मिर्च ना लग जाए.

मैं- चल एक काम करते है आज तुम दोनो की साथ ही ले लेता हूँ.

प्रीतम- चल पागल, मज़ा नही आएगा.

मैं- क्यो नही आएगा तुम दोनो आपस मे होड़ कर लेना कि कौन अच्छे से चुदता है.

प्रीतम- कहाँ से आते है ये ख्याल तेरे मन मे ,

मैं- मुझे भी नही पता .

बाते करते करते हम लोग कुवे पर पहुच गये चारो तरफ सरसो की फसल खड़ी थी और खेती की ज़मीन होने पर ठंड भी बहुत लग रही थी.

मैं- प्रीतम तूने खेत मे चूत मरवाई है

प्रीतम- कयि बार. तुझे याद है अपन लोग तो जंगल मे भी करते थे.

मैं- तेरी बात ही निराली है दिलदार है तू

प्रीतम- अब कुछ नही बचा यार, अब तो बस बालक पालने है और ऐसे ही जीना है.

मैं- बात तो सही है . चल कमरे मे चलते है ठंड बहुत है बाहर.

हम लोग अंदर गये पर भाभी नही थी वहाँ पर.

मैं- प्रीतम डोली मे दूध रखा हो तो दो कप चाय बना ले ना.

प्रीतम- हे, मैं तो अपना दूध पिलाने को मरी जा रही हूँ तुझे दूध की पड़ी है.

मैं- रानी, तेरी इसी अदा पे तो मैं फिदा हूँ. पर पहले चाय बना ले.
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Rohit Kapoor
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by Rohit Kapoor »

nice ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,next updates awaited dear ??
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Kamini
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by Kamini »

Mast update
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

Rohit Kapoor wrote: 27 Oct 2017 13:06 nice ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,next updates awaited dear ??
Kamini wrote: 28 Oct 2017 11:36Mast update
thanks dosto
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

प्रीतम ने चूल्हा जलाया और चाय बनाने बैठ गयी. और मैं भाभी को ढूँढने निकल गया पर वो मुझे मिली नही . फिर सोचा की गीता से पूछ लूँ पर उसके घर जाता तो देर बहुत लग जानी थी . और भाभी भी कहाँ जानी थी मैं चारपाई पर बैठ गया और रज़ाई ओढ़ ली प्रीतम चाय ले आई और मेरे पास ही बैठ गयी.

प्रीतम- देख पहले हम ऐसे साथ होते तो बवाल हो जाना था और अब देख.

मैं- बावली , मेरी माँ नही है यहाँ वरना अब भी बवाल हो जाए.

प्रीतम- सही कहा तेरी माँ को अभी भी लगता है कि बेटा तो बहुत शरीफ है .

मैं - ना री एक बार इसी कमरे मे मुझे पकड़ लिया था एक चोरी के साथ जबसे आजतक शक बहुत करती है.

प्रीतम- कसम से.

मैं - तेरी कसम वो बिम्ला है ना उसकी छोरी थी.

प्रीतम- कहाँ कहाँ झंडे गाढ रखे है तूने.

मैं- तेरा चेला हूँ .

प्रीतम- हट, बदमाश.

तभी फोन बजने लगा मेरा चाची का फोन था मैने उठाया .

चाची- कहाँ हो,

मैं- कुवे पर

चाची- बिना कुछ खाए पिए ही निकल गये.

मैं- एक काम करना आज मीट बना लो और कुवे पर भिजवा देना साथ मे एक बोतल भी आज थोड़ा मूड है .

चाची- किसके हाथ भिजवाउंगी, मैं ही आ जाउन्गी.

मैं- ना मेरे साथ कोई और है तो रहने देना मैं भेज दूँगा किसी को और मम्मी पापा आ जाए तो बताना मत कि मैं कुवे पर हूँ.

चाची- ठीक है , पर किसके साथ है तू.

मैं- है कोई आप बस फोन कर देना जब खाना बन जाए.

चाची- ठीक है और कुछ चाहिए तो बता देना.

मैं- और कुछ देती कहाँ हो आप.

चाची- शरारती बहुत है तू.

मैने फोन रखा और उठ कर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

प्रीतम - रहने देना खुला

मैं- भाभी आ गयी तो ठीक ना लगेगा.

मैने प्रीतम को थोड़ा सा सरकाया और रज़ाई हम दोनो के उपर डाल ली .
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