मैं और मेरी स्नेहल चाची compleet

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मैं और मेरी स्नेहल चाची


WRITTEN BY-kaluppenz

जब स्नेहल चाची काफ़ी सालों के बाद हमारे घर कुछ दिन रहने को आयीं तब मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था कि उनकी उस विज़िट में कुछ ऐसे मोड़ मेरी जिंदगी में आयेंगे जो मुझे कहां से कहां ले जायेंगे. बात यह नहीं है कि जो कुछ हुआ, वह एकदम असंभव था; कुछ परिस्थितियों में और कुछ खास व्यक्तियों के बीच ऐसा कुछ ऐसा जरूर हो सकता था पर ऐसा हमारे यहां, मेरे साथ और वो भी स्नेहल चाची के कारण होगा, ये मैं कभी सोच भी नहीं सकता था, मेरे लिये ये एकदम असंभव सी बात थी. याने स्नेहल चाची जैसी वयस्क, संभ्रांत, हमारे रिश्ते में की और मेरी मां से भी बड़ी महिला मेरे जीवन में ऐसी उथल पुथल पैदा कर देंगी, ये अगर उस समय कोई मुझे कहता तो मैं उसे पागल कहता. अब हमारे यहां आते वक्त स्नेहल चाची के मन में क्या था यह मुझे नहीं मालूम, शायद उनसे पूछें तो वे भी यही कहेंगी कि हमारे यहां आते यह सब होगा ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था.

मेरा नाम विनय है. जब यह सब शुरू हुआ उसी समय मैंने इंजीनीयरिंग पास की थी. हमारा घर पूना में है और मेरा सारा एजुकेशन वहीं हुआ है. घर में बस मां और पिताजी हैं. मैं इकलौता हूं इसलिये वैसे काफ़ी लाड़ प्यार में पला हूं. दिखने में साधारण एवरेज और बदन से जरा दुबला पतला सा हूं. याने वीक नहीं हूं, तबियत फ़र्स्ट क्लास है, बस दिखने में जरा नाजुक सा और छोटा लगता हूं. पढ़ाई लिखाई में मैं काफ़ी आगे रहा हूं पर मेरा स्वभाव पहले से शर्मीला सा रहा है. इसलिये लड़कियों से ज्यादा घुलमिल कर बात करने में हिचकिचाता हूं. गर्ल फ़्रेंड वगैरह भी कोई नहीं है.

स्नेहल चाची याने मेरे पिताजी के चचेरे भाई माधव चाचा की दूसरी पत्नी. उनका पूरा नाम स्नेहलता है पर सब स्नेहल ही कहते हैं. अभी उमर करीब पचास के आस पास होगी, शायद एकाध साल कम, मुझे ठीक पता नहीं है. उनका घर गोआ में है. माधव चाचा काफ़ी पहले जो ऑस्ट्रेलिया गये, वो वहीं रह गये. बाद में स्नेहल चाची भी गई थीं पर दो महने रह कर वापस आ गयीं. उन्हें वहां बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. उसके बाद वे एकाध दो बार और गयीं, वो भी बेमन से, उसके बाद वहां न जाने की जैसे उन्होंने कसम खा ली. माधव चाचा साल में एक बार दो हफ़्ते को छुट्टी लेकर आते थे. फ़िर वे दो साल में एक बार आने लगे और बाद में उन्होंने भी यहां आना करीब करीब बंद ही कर दिया.

लोग उनकी इस अजीब मैरिड लाइफ़ के बारे में पीठ पीछे बहुत कुछ कहते थे. कोई कहता कि उनमें बिलकुल नहीं बनती और उन्होंने एक दूसरे का मुंह न देखने की ठान ली है. कोई कहते कि उनका डाइवोर्स हो गया है पर किसी को बताया नहीं है. कोई कहता कि वहां ऑस्ट्रेलिया में माधव चाचा ने दूसरी शादी कर ली है, वगैरह वगैरह. धीरे धीरे लोगों ने इस बारे में बात करना छोड़ दिया, पर शायद इन सब बातों की वजह से स्नेहल चाची ने किसी के यहां आना जाना ही छोड़ दिया. लोग भी उनके बारे में दस तरह की बातें करते कि बड़े तेज स्वभाव की हैं, बहुत घमंड है वगैरह वगैरह. अब करीब छह सात साल बाद वे मां के आग्रह पर दस दिन के लिये हमारे यहां आयी थीं. इस बीच में दो तीन बार परिवार में शादी ब्याह के मौकों पर मिली थीं. मेरा और मां और पिताजी का तो यही अनुभव है कि वे जब भी मिलतीं तो बड़े प्रेम से बातें करती थीं. मुझे तो उनके स्वभाव में ऐसा कुछ दिखा नहीं कि जिससे लोग उनसे कतराते हों. पिछली बार जब मैं उनसे मिला था तब से चाची के बारे में मेरा दृष्टिकोण जरा सा बदल गया था. उसके बारे में आगे फिर बताऊंगा.

उनका बेटा अरुण दो साल से नाइजीरिया में था. अरुण असल में उनका सौतेला बेटा था, माधव चाचा की पहली पत्नी का बेटा जो स्नेहल चाची की मौसेरी बहन थीं. उनके दिवंगत होने के बाद चाची की शादी माधव चाचा से हुई थी, तब अरुण चार साल का था. चाची ने उसे बड़े लाड़ प्यार से अपने सगे बेटे जैसा पाल पोसकर बड़ा किया था. जहां तक मुझे मालूम है, अरुण को भी उनसे बहुत लगाव था. बाकी लोग उनके बारे में कुछ भी कहें, इस पर सबका एकमत था कि अरुण को उन्होंने बड़े प्रेम से पाला पोसा था.

अरुण ने काफ़ी दिन शादी नहीं की. लोग पूछ पूछ कर थक गये. आखिर अभी अभी एक साल पहले ही उसकी शादी हुई. उसकी पत्नी नीलिमा करीब करीब अरुण की ही उमर की थी, याने तैंतीस चौंतीस के आस पास की होगी. वह चाची के पास याने अपनी सास के पास गोआ में रहती थी. शादी के बाद वह नाइजीरिया गयी थी पर दो माह में ही लौट आयी, उसे वहां बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वैसे अरुण की इच्छा थी कि नीलिमा और स्नेहल चाची, दोनों उसके साथ नाइजीरिया में रहें. अच्छी नौकरी थी, बड़ा बंगला था. पर उसने ज्यादा जोर नहीं दिया, वहां राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ लॉ एंड ऑर्डर का भी प्रॉब्लम था. स्नेहल चाची का भी यही विचार था कि फ़ैमिली का वहां रहना ठीक नहीं. इसलिये नीलिमा के वहां न जाने के निर्णय से वे सहमत थीं. अरुण का प्लान किसी तरह अमेरिका पहुंचने का था. पर वीसा वगैरह कारणों से वह प्लान बस आगे सरकता रहा. अब शायद एक साल और लगेगा ऐसा चाची कहती थीं.

मुझे ये सब डीटेल्स मालूम हैं इसका कारण यह नहीं है कि मैं चाची के सम्पर्क में रहा था. सब सुनी सुनाई बातें हैं. मैं तो अब तक उनके यहां गोआ वाले घर भी नहीं गया था. बाकी रिश्तेदार भले उनसे कतराते हों, मां से उनके बहुत अच्छे संबंध हैं इसलिये मां को सब जानकारी रहती है. नीलिमा भाभी से - अब चाची की बहू याने मुझे भाभी ही कहना होगा - मैं कभी मिला नहीं था, हां शादी के ग्रूप फोटॊ में देखा था.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: मैं और मेरी स्नेहल चाची

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जब वे आयीं तो स्नेहल चाची में मुझे कोई चेंज नहीं दिखा, तीन चार साल पहले देखा था वैसी ही थीं. वैसे मुझे जहां तक याद है, मैं बचपन से जब से उन्हें देख रहा हूं, वे वैसी ही दिखती हैं, थोड़ा स्थूल नाटा बदन, दिखने में वैसे ही जैसे सब उमर में बड़ी चाचियां मामियां बुआएं होती हैं. गोरा रंग, जूड़े में बंधे बाल, हमेशा साड़ी यह पहनावा, मंगलसूत्र, हाथ में कंगन या चूड़ियां वगैरह वगैरह. असल में उनमें बदलाव जरूर आया होगा, पंधरा साल में याने जब से मुझे उनके बारे में याद है, रूप रंग काफ़ी बदल जाता है. हां हमें यह बदलाव सिर्फ़ बच्चों और विनय युवक युवतियों में ही महसूस होता है, क्योंकि वे अचनाक बड़े हो जाते हैं, बाकी सब बड़े तो बड़े ही रहते हैं. एक बात यह भी है कि देखने का नजरिया कैसा है, किसी में बहुत इंटरेस्ट हो तो उसके रंग रूप की ओर बड़ा ध्यान जाता है, नहीं तो कोई फरक नहीं पड़ता. यह साइकलाजी अधिकतर टीन एजर्स की होती है.

इस बार जब स्नेहल चाची हमारे यहां आईं तब मैंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी. पिताजी की इच्छा थी कि आगे पढ़ूं पर मैं बोर हो गया था और एक दो जगह से अपॉइन्टमेन्ट लेटर आने की भी उम्मीद थी, क्योंकि इन्टरव्यू अच्छा हुआ था. संयोग की बात यह कि जब इस बार वे हमारे यहां आयीं, तब मेरा भी गोआ जाने का प्लान बन रहा था. उनके आने के दो दिन पहले ही मुझे एक ऑफ़र आया था. नौकरी अच्छी थी. पोस्टिंग नासिक में थी पर तीन महने की ट्रेनिंग थी गोआ में. वहां कंपनी का गेस्ट हाउस था और वहां मेरे रहने की व्यवस्था कंपनी ने कर दी थी.

स्नेहल चाची के आने के दूसरे दिन जब हमारी गपशप चल रही थी तब इस बारे में बातें निकलीं. वैसे हर बार चाची मुझसे बड़े स्नेह से बोलतीं थीं. बाकी लोगों का उनके प्रति कुछ भी विचार हो, मुझे तो बचपन से बड़ी गंभीर रिस्पेक्टेबल महिला लगती थीं. बैठकर उनसे बातें करते वक्त मैंने उनकी ओर जरा और गौर से देखा. इस बार वे करीब चार साल बाद मिली थीं. जैसा मैंने पहले कहा, मुझे उनमें ज्यादा फरक नहीं लगा. हां बदन थोड़ा और भर गया था और बालों में एक दो सफ़ेद लटें दिखने लगी थीं. मुझसे इस बार उनकी काफ़ी जम गयी थी, कई बार गपशप होती थी.

उस दिन जब मेरी नौकरी के बाते में बातें निकलीं, तब हम सब बैठकर बातें कर रहे थे. मां और चाची गोआ में बसे कुछ दूर के रिश्तेदारों के बारे में बातें कर रही थीं. मैंने कुछ नाम भी सुने, लता - मां की कोई बहुत दूर की कज़न, गिरीश - मां की एक पुरानी फ़्रेंड का भाई जो शायद गोआ में बस गया था, सरस्वती बुआ - ऐसी ही कोई दूर की बुआजी आदि आदि. मैंने उसमें ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लिया. चाची ने भी सिर्फ़ लता के बारे में डीटेल में बताया कि वह अब गोआ में एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर है. बाकी लोगों से शायद वे ज्यादा संपर्क में नहीं थीं.

मेरे कॉलेज के बारे में चाची ने पूछा, आगे और पढ़ने का इरादा नहीं है क्या, कहां कहां घूम आये हो, गोआ अभी तक क्यों नहीं आये, वगैरह वगैरह. मैंने तब तक उनको इस नये ऑफ़र के बारे में नहीं बताया था. आखिर मां ने ही बात छेड़ी कि विनय को नासिक में नौकरी मिली है, गोआ में ट्रेनिंग है.

स्नेहल चाची मेरी ओर देखकर जरा शिकायत के स्वर में बोलीं. "विनय, तूने बताया नहीं अब तक, दो दिन हो गये, मैं पूछ भी रही थी कि आगे क्या प्लान है. और यहां तेरे को गोआ में, हमारी जगह में नौकरी मिल रही है और तू छुपा रहा है"

मैंने झेंप कर कहा "चाची ... सच में आप से नहीं छुपा रहा था ... वो पक्का नहीं है अब तक कि जॉइन करूंगा या नहीं ... कभी लगता है कि अच्छा ऑफ़र है और कभी ... वैसे पोस्टिंग गोआ में नहीं है, सिर्फ़ तीन महने की ट्रेनिंग वहां है"

"अरे ... गोआ जैसी जगह में ट्रेनिंग है और तू नखरे कर रहा है. चल, उनको चिठ्ठी भेज दे कल ही, वहां रहने की भी परेशानी नहीं है" चाची ने जोर देकर कहा.

मैंने सकुचाते हुए कहा "हां स्नेहल चाची ... उन्होंने अपने गेस्ट हाउस में इंतजाम किया है ..."

"गोआ आकर गेस्ट हाउस में रहने का क्या मतलब है? अपना घर है ना वहां?"

मैंने सफ़ाई दी "चाची, गेस्ट हाउस भी पणजी में है, और ट्रेनिंग भी वहीं बस स्टेशन के पास के ऑफ़िस में है, इसलिये ..."

"तो अपना घर कौन सा कोसों दूर है? पोरवोरिम में तो है, चार किलोमीटर आगे. और खूब बसें मिलती हैं" फ़िर मां की ओर मुड़कर बोलीं "वो कुछ नहीं आशा, ये हमारे यहां ही रहेगा. वहां हमारा घर होते हुए विनय और कहीं रहे ये शरम की बात है"

"पर चाची ... वो ..." मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनसे क्या कहूं. असल में उनके यहां रहने में संकोच हो रहा था. सगी मौसी या मामा के यहां, जिनसे घनिष्ट संबंध होते हैं, रहना बात अलग है और रिश्ते की जरा दूर की चाची के यहां की बात और ...... मन में ये भी इच्छा थी कि पहली बार अकेला रहने को मिल रहा है, तो गेस्ट हाउस में रहकर ज्यादा मजा आयेगा, गोआ में थोड़ी ऐश भी हो जायेगी, किसी का बंधन नहीं रहेगा. होस्टल में तो मैं रहा नहीं था, होस्टल में रहते दोस्तों से जलन होती थी, सोचा इसी बहाने होस्टल का भी एक्सपीरियेंस हो जायेगा.

"अरे इतना बड़ा बंगला है. बीस साल पहले लिया था सस्ते में, आस पास बगीचा है एक एकड़ का. और बस मैं और नीलिमा ही रहते हैं वहां. अरुण तो कई सालों से नहीं है. तू आयेगा तो हमें भी कंपनी मिलेगी, जरा अच्छा लगेगा." चाची ने फ़िर आग्रह किया.

मैंने मां की ओर देखा, उसकी तो पहले ही स्नेहल चाची से अच्छी पटती थी. उसने मेरे मन की जान ली, बोली कि हां चाची, आप ठीक कह रही हैं. मैं अड़ने वाला था कि गेस्ट हाउस में ही रहूंगा पर मां के तेवर देखकर चुप रहा. उसने मुझे इशारा किया कि फालतू तू तू मैं मैं मत कर, बाद में देखेंगे.
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उस समय मैं बात टाल गया. सौभाग्य से दूसरे दिन एक नजदीकी शादी का फ़ंक्शन था तो सब उसमें बिज़ी थे. इसलिये बात फ़िर से नहीं निकली. मैं मना रहा था कि चाची भूल ही जायें कहकर तो अच्छा है. सोचा कि हो सकता है उन्होंने सिर्फ़ फ़ॉर्मलिटी में कह दिया हो. वैसे उनके चेहरे पर से लगता नहीं था कि उन्होंने बस शिष्टाचार के लिये कहा होगा, उनके चेहरे के भाव में सच में आत्मीयता थी जब उन्होंने मुझसे साथ रहने का आग्रह किया था. मां ने दूसरे दिन एक बार मुझे कहा कि अरे चाची ठीक कह रही हैं. वहां रह लेना, तेरा खूब खयाल रखेंगीं वे, तीन महने की तो बात है. उनको अच्छा लगेगा, हम भी आश्वस्त रहेंगे कि तेरे को खाने पीने की कोई परेशानी नहीं है. मैंने कहा कि मां सोच के बताता हूं एक दो दिन में, चाची तो अभी हैं ना कुछ दिन.

दो तीन दिन ऐसे ही निकल गये. उन दिनों में स्नेहल चाची से मेरी जान पहचान थोड़ी और गहरी हो गयी. अब तक जब भी वे मिली थीं, मेरा बचपन ही चल रहा था. ऐसे उनके साथ रहना भी नहीं हुआ था. अब बड़ा होने के बाद पहली बार उनके साथ रह रहा था, उनके स्वभाव, उनके रहन सहन, उनके बोलने हंसने की ओर ध्यान जाने लगा. उनके प्रति मेरे मन में सम्मान की भावना थोड़ी बढ़ गयी. बड़ा शांत सादा स्वभाव था. साथ ही उनसे थोड़ा डर भी लगता था, याने जैसा बच्चों को किसी स्ट्रिक्ट लेडी प्रिन्सिपल के प्रति लगेगा वैसा डर, सम्मान युक्त डर. इनके साथ ज्यादा पंगा नहीं लिय जा सकता, यह भावना. और बाद में मां ने एक बार बताया भी कि वे कुछ साल पहले एक स्कूल में प्रधान अध्यापिका थीं. फ़िर नौकरी छोड़ दी. याने मुझे वे जो किसी स्ट्रिक्ट डिसिप्लिनेरियन जैसी लगती थीं, वो मेरा वहम नहीं था. मां भी उनको बड़ा रिस्पेक्ट देती थीं. उनका रहन सहन सादा ही था, याने घर में भी साड़ी पहनती थीं, गाउन नहीं. पर साड़ी हमेशा एकदम सलीके से पहनी हुई होती थी, प्रेस की, प्रेस का ब्लाउज़, फ़िटिंग भी एकदम ठीक, कोई ढीला ढाला पन नहीं.

अब असली मुद्दे पर आता हूं. मेरी नयी नयी जवानी थी, खूबसूरत लड़कियों और आंटियों की तरफ़ ध्यान जाने लगा था. इस उमर के लड़कों की तरह अब राह चलती खूबसूरत सूरतों को तकने का मन होता था. फ़िर इन्टरनेट का चस्का लगना शुरू हुआ. घर में पी सी था, वह पिताजी भी यूज़ करते थे. इसलिये उसपर कोई ऐसी वैसी साइट्स देखने का सवाल ही नहीं था. जब मन होता, तो उस वक्त तक इन्तजार करना पड़ता था जब तक किसी दोस्त का, खास कर होस्टल में रहने वाले दोस्त का लैपटॉप ना उपलब्ध हो.

स्नेहल चाची के आने के तीन चार दिन बाद एक दिन मैं अपने दोस्त से मिलने होस्टल गया. वह अब भी होस्टल में था, एक दो सब्जेक्ट क्लीयर करने थे. गप्पें मारते मारते जब काफ़ी वक्त हो गया, वो बोला "यार बैठ, मैं नहा कर आता हूं. आज देर से उठा, दिन भर ऐसा ही गया. तब तक ये एक साइट खुली है, जरा देख." और मुझे आंख मार दी. रंगीन मिजाज का बंदा था, अकेला भी रहता था. मेरा भी कभी मन होता था खूबसूरत जवान रंगीन तस्वीरें देखने का तो उसीका लैपटॉप काम आता था. और उसे मालूम था कि मेरा दिल आज कल आंटियों पर ज्यादा आता है.

अब पहले मैंने आप को बताया था कि मेरा स्वभाव जरा शर्मीला है, गर्ल फ़्रेंड वगैरह भी नहीं है अब तक. अब शर्मीला स्वभाव होने का मतलब यह नहीं है कि लड़कियों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. उलटे बहुत ज्यादा है, और जवान लड़कियों से ज्यादा अब धीरे धीरे मेरी दिलचस्पी आंटियों में ज्यादा होने लगी है. बड़ी तकलीफ़ होती है, अब जवानी भी जोरों पर है और ये मेरा बदमाश लंड बहुत तंग करने लगा है, कई बार हस्तमैथुन करके भी इसकी शांति नहीं होती.

वो साइट खोली तो जरा अजीब सा लगा. मुझे लगा कि आंटी वांटी के फोटो होंगे. पर उन महाशय ने मेच्योर याने उमर में काफ़ी बड़ी औरतों की एक साइट खोल रखी थी. वैसे मुझे उनमें कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, मैं तो जवान मॉडल टाइप या फ़िर तीस पैंतीस साल की आंटियों की तस्वीरें देखने में ज्यादा दिलचस्पी दिखता था. पर यहां अधिकतर पैंतालीस, पचास की उमर की औरतें थीं. वैसे उनमें से कुछ अच्छी सेक्सी थीं. मैं इन्टरेस्ट से देखने लगा. स्क्रॉल करते करते एक तस्वीर पर मैं ठिठक गया. एक गोरी चिट्टी औरत चश्मा लगाकर पढ़ रही थी पर थी बिलकुल नंगी. पचास के ऊपर की थी, ऊंची पूरी, मांसल सेक्सी बदन की, हाइ हील पहने हुए, लटके हुए पर मस्त मम्मे, मोटी चिकनी गोरी गोरी जांघें. याने उसके सेट की सब तस्वीरें देखने लायक थीं. पर मैं इसलिये चौंका कि उसे देखते ही मुझे न जाने क्यों चाची की याद आ गयी. उसका चेहरा या बदन चाची से जरा नहीं मिलता था, चाची नाटी सी हैं, यह औरत ऊंची पूरी थी, चाची जूड़े में बाल बांधती हैं, इस औरत के बॉब कट बाल थे, चाची पूरी देसी हैं, यह औरत पूरी फिरंगी थी. पर सब मिलाकर जिस अंदाज में वह सोफ़े पर पैर ऊपर करके बैठी थी, चाची को भी मैंने कई बार वैसे ही पैर ऊपर करके पढ़ते देखा था. और उसने चाची जैसा ही सादे काले फ़्रेम का चश्मा लगाया हुआ था. और सब से संयोग की बात यह कि मुस्कराते हुए उसके दो जरा टेढ़े दांत दिख रहे थे, चाची के दो दांत भी आगे बिलकुल वैसे ही जरा से टेढ़े हैं.

देखकर अजीब लगा, थोड़ी गिल्ट भी लगी कि चाची को मैंने उस नंगी मतवाली औरत से कम्पेयर कर लिया. मैं आगे बढ़ गया. पर पांच मिनिट बाद फ़िर उसी पेज पर वापस आकर उस महिला के सब फोटो देखने लगा. और न जाने क्यों लंड एकदम खड़ा हो गया. अब वो उस नग्न परिपक्व महिला का खाया पिया नंगा बदन देखकर हुआ था या उस तस्वीर को देखकर चाची याद आ गयी थीं इसलिये हुआ था, मुझे भी नहीं पता. वैसे एक छोड़कर बाकी किसी तस्वीर में उस औरत और चाची के बाच कोई समानता नहीं दिखी मुझे. उस दूसरी तस्वीर में भी वह औरत मुस्करा रही थी और उसके दांत साफ़ दिख रहे थे.

मेरा दोस्त वापस आया तब तक मैंने लैपटॉप बंद कर दिया था. उसने पूछा "यार देखा नहीं?"

"देखा यार पर ये तेरे को क्या सूझी कि आंटियों से भी बड़ी बड़ी औरतों को - नानियों को - देखने लगे?" मैंने मजाक में कहा.

"अरे यार, हर तरह की साइट देखता हूं मैं, जब मूड होता है, वही सुंदर जवान लड़कियां आखिर कितनी देखी जा सकती हैं. और तेरे को भी तो अच्छी लगती हैं साले, बन मत मेरे सामने. और नानी तो नानी सही, ऐसी नानियां दादियां हों तो मुझे चलेंगी"
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Re: मैं और मेरी स्नेहल चाची

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घर वापस आते वक्त बार बार मन में चाची ही आ रही थीं. याने ऐसा नहीं था कि अब मैं उनको बुरी नजर से देखने लगा था, बल्कि इसलिये कि आज जो कुछ देखा था, और उसका मेरे मन पर जो प्रभाव पड़ा था, उसे मैं समझने की कोशिश कर रहा था. तभी मुझे चार साल पहले की वह घटना याद आ गयी जिसका जिक्र मैंने पहले किया था. उस समय हम सब एक शादी के सिलसिले में नासिक गये थे. मेरे मामा के मकान में रुके थे. चाची भी आयी थी. वहां से शादी का हॉल दूर था. सुबह सब जल्दी चले गये, चाची रात देर से आयी थीं इसलिये थकी हुई थीं. वे सब से बाद नहाने गयीं. मां ने मुझे कहा कि तू रुक और फ़िर चाची को साथ लेकर आ. आधे घंटे बाद जब मैं चाची के कमरे में गया कि वे तैयार हुईं कि नहीं, तब वे साड़ी ही लपेट रही थीं. मुझे देखकर बोलीं "विनय, अब जरा जल्दी मेरे सूटकेस से वो गिफ़्ट एन्वेलप निकाल कर उसमें ये ५०० रु रख दे, मैं बस पांच मिनिट में तैयार होती ही हूं.

उस काम को करते करते सहज ही मेरी नजर चाची पर जा रही थी. उन्होंने आंचल ठीक किया, फ़िर थोड़ा स्नो और पाउडर लगाया और फ़िर बिंदी लगाई. उन्होंने एकदम मस्त गहरे ब्राउन रंग की साड़ी और ब्लाउज़ पहना हुआ था. उनके गोरे रंग पर वह अच्छी निखर आयी थी. तब तक मैंने चाची के बारे में बस अपने रिश्ते की एक बड़ी उमर की महिला इसी तरह सोचा था. अब हम सब की पहचान वाली और रिश्ते में उस उमर की बहुत महिलायें होती हैं और उनसे बात करते वक्त ऐसा वैसा कुछ कभी दिमाग में भी नहीं आता. पर तब चाची को उस अच्छी साड़ी और ब्लाउज़ में देखकर और खास कर उस महीन कपड़े से सिले ब्लाउज़ की पीठ में से दिखती काली ब्रा की स्ट्रैप देखकर एकदम से जैसे इस बात का एहसास हुआ कि शायद वे भी एक ऐसी स्त्री हैं जिसे सुंदर स्मार्ट दिखने की और उसके लिये अच्छे सटीक कपड़े पहनने की इच्छा है. याने बस एक उमर में बड़ी रिश्तेदार महिला, इसके आगे भी उनका एक स्त्री की हैसियत से कोई अस्तित्व है. उसके बाद एक बार मामी के यहां के पुराने एलबम में चाची के बहुत पुराने फोटो देखे. तब वे जवान थीं. सुन्दर न हों फ़िर भी अच्छी खासी ठीक ठाक दिखती थीं.

बस ऐसे ही स्नेहल चाची के बारे में सोचते हुए मैं घर आया. घर वापस आया तो बस पांच मिनिट के अंदर एक और झटका लगा. और यह झटका जोर का था, उससे मेरे मन की उथल पुथल शांत होने के बजाय और बढ़ गयी. हुआ यूं कि दोपहर का खाना खाकर मां और चाची बाहर ड्रॉइंग रूम में बैठे थे. मां टी वी देख रही थी और चाची पढ़ रही थीं. और संयोग से बिलकुल वही हमेशा का पोज़ था, याने सोफ़े पर पैर ऊपर करके एक तरफ़ टिक कर चश्मा लगाकर चाची पढ़ रही थीं. न चाहते हुए भी मुझे उस साइट की वह औरत याद आ गयी. मैं बैठ कर जूते उतारने लगा. मां नौकरानी को कुछ कहने को अंदर चली गयी, शायद मेरे लिये खाना भी लगाना था. चाची ने किताब बाजू में की और चश्मा नीचे करके मेरी ओर देखकर स्नेह से मुस्करायीं "आ गये विनय! आज दिखे नहीं सुबह से"

"हां चाची, वो दोस्त से मिलने गया था, देर हो गयी" मैंने धड़कते दिल से कहा.

वे मुस्करायीं और चश्मा ठीक करके फ़िर से पढ़ने लगीं. मैं अंदर जाकर कपड़े बदलकर हाथ मुंह धो कर वापस आया और पेपर पढ़ने लगा. पेपर पढ़ते पढ़ते बार बार चोरी छिपे नजर चाची की ओर जा रही थी. अब वे साड़ी पहनी थीं इसलिये बदन ढका ही था पर कोहनी के नीचे उनकी बाहें और पांव दिख रहे थे. पहली बार मैंने गौर किया कि थोड़ी मोटी और भरी भरी होने के बावजूद उनकी बाहें कितनी सुडौल और गोरी चिकनी थीं. पांव भी एकदम साफ़ सुथरे और गोरे थे, नाखून ठीक से कटे हुए और उनपर पर्ल कलर का पॉलिश. हो सकता है कि अगर अब इस वक्त कुछ नहीं होता तो शायद मैं फ़िर से संभल जाता, चाची के बारे में सोचना बंद कर देता और फ़िर से उनकी ओर सिर्फ़ उमर में मां से भी बड़ी एक स्त्री जो रिश्ते में मेरी दूर की चाची थीं, देखने लगता. पर जो आगे हुआ उसकी वजह से मेरे मन की चुभन और तीव्र हो गयी.

मां ने अंदर से उन्हें किसी काम से आवाज लगायी. वे जरा जल्दी में उठीं और स्लीपर पहनने लगीं. जल्दबाजी में उनके हाथ की किताब नीचे गिर पड़ी. उन्होंने नीचे देखा तो चश्मा भी नीचे गिर पड़ा. वे पुटपुटाईं "ये मेरा चश्मा ... हमेशा गिरता है आजकल ..." और किताब और चश्मा उठाने को नीचे झुकीं. उनका आंचल कंधे से खिसक कर नीचे हो गया. किताब और चश्मा उठाने में उन्हें जरा वक्त लगा और तब तक बिलकुल पास से और सामने से उनके ढले आंचल के नीचे के वक्षस्थल के उभार के दर्शन मुझे हुए. उनके ब्लाउज़ के नेक कट में से मुझे उनके गोरे गुदाज स्तनों का ऊपरी भाग साफ़ दिखा. उनके स्तनों के बीच की गहरी खाई में उनका मंगलसूत्र अटका हुआ था. ब्लाउज़ के सामने वाले भाग में से उनकी सफ़ेद ब्रा के कपों का ऊपरी भाग भी जरा सा दिख रहा था. सीधे होकर उन्होंने आंचल ठीक किया और अंदर चली गयीं. मैं आंखें फाड़ फाड़ कर उनके उस शरीर के लावण्य को देख रहा था, इस बात की ओर उनका ध्यान गया या नहीं, मुझे नहीं पता. अंदर जाते वक्त भी मेरी निगाहें उनकी पीठ पर टिकी हुई थीं. वैसे उनकी पीठ रोज भी कई बार मुझे दिखती थी पर आज मेरी नजर उनके ब्लाउज़ के कपड़े में से हल्की सी दिखती ब्रा की पट्टी पर जमी थी.
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: मैं और मेरी स्नेहल चाची

Post by jay »

मैं बैठा बैठा उन कुछ सेकंडों में दिखे दृश्य को याद करता रहा. मन में एक मीठी सिहरन होने लगी, मन ही मन खुद से बोला कि बेटे विनय, तूने कभी सपने में भी सोचा था कि उमर में तेरी मां से भी बड़ी स्नेहल चाची के स्तन इतने तड़पा देने वाले होंगे.

वह एक बहुत निर्णायक क्षण था. उस क्षण के बाद चाची की ओर देखने का मेरा नजरिया ही बदल गया, सिर्फ़ चाची ही नहीं, बड़ी उमर की हर नारी की ओर देखने का दृष्टिकोण बदल गया. उमर में बड़ी नारियां भी कितनी सेक्सी हो सकती हैं, यह बात दिमाग में घर कर गयी. उस दिन बचे हुए समय में मैंने कोई गुस्ताखी नहीं की, उलटे बड़ी सावधानी से चाची से दूर रहा, वे एक कमरे में तो मैं दूसरे कमरे में, बल्कि शाम को मैं जो बाहर गया वह देर रात ही वापस आया. अब उनको देखते ही दिल में कैसा तो भी होता था. उनसे अब ठीक से पहले जैसी बातें भी मैं कर सकूंगा कि नहीं, यह भी मुझे विश्वास नहीं था, क्योंकि अब दिल साफ़ नहीं था, दिल में चाची के प्रति बहुत तेज यौन आकर्षण बैठ गया था.

उस रात मुझे हस्तमैथुन करना पड़ा, नींद ही नहीं आ रही थी, लंड साला सोने नहीं दे रहा था. और झड़ते वक्त चाची के मुलायम वक्षस्थल का वह दृश्य मेरी आंखों के सामने तैर रहा था.

दूसरे दिन से यह सब सावधानी जैसे गायब हो गयी, उसका मेरे लिये कोई मायना नहीं रहा, मैं जैसे चाची के पीछे बौरा गया. याने कोई गुस्ताखी कर बैठने का मन था यह बात नहीं थी, उतना साहस अब भी मुझमें नहीं था और न कभी पैदा होगा यह भी मैं जानता था. हां उनको देखने की धुन में अब मुझे और कुछ नहीं सूझता था. जैसा जमे, जितना जमे, उनकी और घर वालों की नजर बचाकर चाची को देखने की धुन मुझे सवार हो गयी. अब हर किसी मर्द को मालूम है कि घर आयी औरतों को देखने का भी एक तरीका होता है, और वह तरीका ज्यादातर जवान औरतों और लड़कियों के बारे में अपनाना पड़ता है, क्योंकि उमर में बड़ी औरतों की ओर सहसा ऐसी नजर नहीं जाती, उनके प्रति ज्यादा आकर्षण भी नहीं होता. हम रिश्ते की इतनी सारी प्रौढ़ स्त्रियों के संपर्क में होते हैं, कोई बारीक होती हैं, कोई मोटी सिठानी, कई फूले फूले बदन की होती हैं, अब चेहरा अगर बहुत सुन्दर ना हो तो हम उस बारे में सोचते भी नहीं, उनको आकर्षक स्त्री रूप में नहीं देखते, उनको हमेशा बुआ, मौसी, नानी, दादी इसी रूप में देखते हैं. बस इसलिये मेरा भी इतने दिन ध्यान चाची पर नहीं गया था.

पर अब मेरी नजरें बस चाची को ही ढूंढती थीं. और जितना देखूं, वो कम था. जल्द ही बात मुझे समझ में आ गयी कि ... याने ठेठ भाषा में कहा जाय तो ... चाची ’माल’ थीं. अब उनके उन मांसल गोरे गुदाज उरोजों की एक झलक देखने के बाद उनके रूप का हर छोटा से छोटा कतरा भी मेरी नजर में भर जाता था. पहली बार मैं उनकी हर चीज को बड़े गौर से देखने लगा था. स्नेहल चाची का कद एवरेज ही था, पांच फुट एक या दो इंच के आस पास होगा. याने नाटी नहीं थीं पर खाया पिया बदन होने की वजह से जरा नाटी लगती थीं. वजन पैंसठ और सत्तर किलो के बीच होगा, याने अच्छी खासी मांसल और भरे पूरे बदन की थीं. पर वैसे शरीर बेडौल नहीं था, कमर के मुकाबले छाती और कूल्हे ज्यादा चौड़े थे याने फ़िगर अब भी प्रमाणबद्ध था. रंग गेहुआं कह सकते हैं, वैसे उससे ज्यादा गोरा ही था. पर स्किन की क्वालिटी ... एकदम मस्त, चिकनी, इतना अच्छा काम्प्लेक्शन, वो भी इस उमर में बहुत कम स्त्रियों का होता है.

दिखने में चेहरे मोहरे से चाची एकदम सादी थीं. किसी भी तरह से उन्हें कोई सुंदर नहीं कह सकता था. हां ठीक ठाक रूप था. कुछ बाल सफ़ेद हो गये थे, पर अधिकतर काले थे. पर जैसे भी थे, उनके बाल बड़े सिल्की और मुलायम थे. वे हमेशा उन्हें जूड़े में बांधे रहतीं. होंठ गुलाब की कली वली की उपमा देने लायक भले ना हों पर मुझे अच्छे लगे, याने थोड़े मोटे और मांसल थे पर एकदम चुम्मा लेने लायक. और दांत ... उन दो टेढ़े दांतों की वजह से ही मेरे मन में ये सब तूफान उठना शुरू हुआ था और अब वे टेढ़े दांत ही मुझे एकदम सेक्सी लगने लगे थे. एकदम सफ़ेद अच्छे स्वस्थ दांत थे चाची के, और वे हंसतीं तो ऊपर का होंठ थोड़ा ऊपर सिकुड़ जाता और उनका ऊपर का गुलाबी मसूड़ा दिखने लगता. किस करते वक्त कैसा लगेगा, यही मेरे मन में बार बार आता.

चाची के चेहरे से ज्यादा उनके शरीर को देखने में मेरा सबसे ज्यादा इन्टरेस्ट था. अब शरीर ज्यादा दिखता नहीं था, आखिर चाची एक संभ्रांत महिला थीं, कोई शरीर प्रदर्शन करती नहीं घूमती थीं, घर में साड़ी पहनती थीं, साड़ी ब्लाउज़ पहनकर जितना शरीर दिख सकता है, उतना ही दिखता था. वे अधिकतर कॉटन की साड़ी ब्लाउज़ ही पहनती थीं, याने ब्लाउज़ वैसा नहीं होता था जैसा मैंने पहले लिखा है और जिसमें से मुझे कुछ साल पहले उनकी काली ब्रा की पट्टी दिख गयी थी. हां उनके एक दो ब्लाउज़ टाइट थे, उन कॉटन के ब्लाउज़ में से भी नीचे की ब्रा की पट्टी का उभार सा दिखता था, बस, पर मुझे इतना ही काफ़ी था, बस रंगीन कल्पना में डूब जाता कि चाची ब्रा कैसी पहनती होंगी. एक दिन पहने हुए एक सफ़ेद जरा झीने ब्लाउज़ में से यह भी दिखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टी का आकार यू शेप का था, याने अच्छी खासी मॉडर्न ब्रा पहनती होंगी चाची, पुराने ढंग की महिलाओं जैसी बॉडी या शेपलेस चोली नहीं. ब्रा का स्ट्रैप जिस तरह से उनकी पीठ के मांसल भाग में गड़ा हुआ रहता था, वह भी मेरी नजर से नहीं छुप पाया.

वैसे घर के पीछे आंगन में सूखने डाले कपड़ों में मुझे मां के कपड़ों के साथ चाची के भी अंगवस्त्र दिखते थे पर मैं बस दूर से देखता था. पास जाकर देखने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि मां हमेशा ही घर में रहती थी और पकड़े जाने का डर था. फ़िर भी एक बार एकादशी के दिन जब मां और चाची दोपहर को दस मिनिट के लिये बाहर पास के मंदिर में गये थे, मैंने झट से आंगन में जाकर चाची की गीली ब्रा को हाथ लगाकर देख भी लिया था. अब गीला भीगी ब्रा में देखने जैसा कुछ होता नहीं, पर फ़िर भी उस सफ़ेद अच्छी क्वालिटी के कपड़े की ब्रा के कप और सफ़ेद इलास्टिक की स्ट्रैप देखकर मन में एक अनोखा उद्वेग सा हो आया था.
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