जोरू का गुलाम या जे के जी

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जोरू का गुलाम भाग १२८

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जोरू का गुलाम भाग १२८


आज न उसे जल्दी थी न मुझे।
लेकिन छेड़ छाड़ मैंने ही शुरू की।

उसके होंठों को अपने होंठों पर खींच कर चूम कर।

अपनी कच्ची अमियों पर उसकी हथेलियों को ला के।

और वो मसलने रगड़ने लगा।

" हे बोल रानी ,मजा आया। " उसने पूछा।

पहले तो छेड़ते हुए मैंने ना ना में सर हिलाया ,फिर खिलखिला के हंस के बोली ,

" हाँ आया. "

" किस चीज में ,... " अब उसकी छेड़ने की बारी थी।

" वही जो तू कर रहा था ,मैं करवा रही थी। "


खिलखिलाते हुए मैं बोली।

" मैं क्या कर रहा था ,तू क्या करवा रही थी। "


और अबकी उसने हलके से मेरे चूचक काट लिए





" नहीं नहीं ,.... " मैंने जोर से बोला।

उसके दांतों का प्रेशर बढ़ा और मुझे गुलबिया की बात याद आयी , मरदों को लड़कियों का खुल के बोलना ही अच्छा लगता है।

" अच्छा पहले तू बोल "


मैंने हार मान ली और सामू ने मेरे कान में बोला ,हलके से

" तू चुदवा रही थी "

और फिर अपने नाख़ून से निप्स नोच लिया।

" उफ़ उफ़ , हाँ मैं चुदवा रही थी "


मैंने हलके से बोला , और सामू का एक हाथ मेरे चूतड़ पे लगा।

" इत्ती धीमे से नहीं ,जोर से बोल "

"मैं चुदवा रही थी ,"



मेरे मुंह से अबकी थोड़ी जोर से निकला , और सामू का हाथ दूनी ताकत से पड़ा।

" जितना जोर से बोल सकती है उत्ती जोर से ,... " उसने अपनी मर्जी सुनाई।

मुझे भो अब इस खेल में मजा आ रहा था , मैं जोर से बोली ,आलमोस्ट चिल्ला के

" मैं चुदवा रही थी ".


हूँ ऐसे ही ,सामू बोला और अपने मन की बात बतायी।





" कान खोल के सुन अब आगे से तुझे चुदवाने का मन करे न तो तुझे ही बोलना होगा और जोर से जैसे अभी बोली , आगे से बस बुर ,चूत लंड गांड चुदाई यही सब ,..... "

जितना खूंटे से उसके , उसकी उँगलियों से मैं गीली हुयी थी ,उससे ज्यादा उसकी बातों से , और उसकी जबरदस्ती से हो रही थी।

" बोल चोदेगा न मुझे , "



मेरे मुंह से निकल गया , और वो मुझे चूमते बोला ,

" रोज बिना नागा , लेकिन स्साली बोलना तुझे होगा रोज चुदवाने के लिए। "

और ये बोलते बोलते उसका लंड एकदम खम्भा हो गया था , मेरी गुलाबो भी गीली हो रही थी , और वो बोला ,

" सुन तूने कातिक में कुतिया को चोदवाते तो खूब देखा होगा। "


" हाँ देखा है ," हँसते मैं बोली।

तो चल निहुर जा अब कुतीया बन के सामू बोला
और मैं वहीँ पुवाल के पास निहुर गयी।

गुलबिया ने मुझे कित्ती बार बताया था की उसका मरद जब तक एक बार उसे निहुरा के कुतिया बना के नहीं चोद लेता उसका मन नहीं भरता।

पर सामू ने घचाक से अपनी दो मोटी मोटी ऊँगली मेरी चूत में पेल दी और सीधे जड़ तक।




रोकते रोकते भी मेरी चीख निकल गयी। दोनों ऊँगली चूत में गोल गोल घुमाते वो फिर बोलै ,

" बोल बनेगी न मेरी कुतिया तू , ... "

" हाँ हाँ बनूँगी , ... "

उसकी दो उँगलियाँ इतनी मस्त लग रही थीं मुझे ,

" जब कहूं जैसे कहूं जहाँ कहूं , समझ ले मेरी कुतीया बन के ऐसे ही ,... सोच ले "

सामू ने दोनों ऊँगली एक साथ निकालीं और फिर घचाक से अंदर तक पेल दीं।




" हूँ हाँ ,हाँ बनूँगी " मैं अपने आप बोल रही थी।

जोर से उसने मेरी कच्ची अमिया मसल दी ,और बोला ,

" मेरी रंडी ,मेरी रखैल बन के रहना होगा ,अगर मुझसे चुदवाने का मन है सोच ले , जब मेरा मन करेगा ,जैसा मेरे मन करेगा , वैसे चोद दूंगा तुझे ,कोई ना नुकुर नहीं। "

वो ऊँगली से मेरी चूत चोद रहा था और अपने मन की बात भी बोल रहा था और मैं हाँ हाँ कर रही थी।

" सिर्फ इशारा करूंगा मैं ,बल्कि मेरा इशारा तुझे समझना होगा , और अगर एक बार भूले से भी तूने मेरी बात नहीं मानी तो बस ,... "

मैं सोच भी नहीं सकती थी उसकी बात न मानने की , पर बिना मेरे कुछ बोले उसने बात जारी रखी ,

" बस एक बार , सोच ले सिर्फ एक बार ,... और कहीं गलती से भी तूने मेरा इशारा नहीं समझा ,मेरी बात नहीं मानी तो बस ,... चुदवाना तो भूल जा , तुझसे बात भी नहीं करूँगा। "

" मांनूंगी यार तेरी सब बात मानूंगी , प्लीज एकदम मानूंगी ,... "




मैं लगातार बोल रही थी जबतक उसने मेरी बुर से निकली मेरे रस और उसकी मलाई से मिली जुली ,सीधे मेरे मुंह में ठेल दी।

मैं समझ गयी उसे क्या पसंद है बस मैं चूसने लगी।

और बुर में ऊँगली जो निकली तो उसका खूंटा ,....


मैं कातिक की कुतीया की तरह निहुरी और वो पीछे से चढ़ा , साथ में गालियों की बौछार।





बाहर पानी बरसना शुरू हो गया। रोशन दान छींटे हमारे ऊपर भी पड़ रहे थे।

वो हचक हचक के चोद रहा था और मैं चीखती सिसकती चुद रही थी।




कुछ देर बाद वो मुझे पकड़ के करीब करीब घसीटता उस खिड़की के पास ले आया जिससे कूद के वो अंदर आया था , और वो खिड़की खोल दी।

अब बाहर की अमराई पूरी दिख रही थी।




हलकी हलकी सावन भादों की बारिस हो रही थी , और उसके बिना कहे मैं खिड़की पकड़ के निहुर गयी और वो पीछे से , दोनों हाथ मेरे कच्चे टिकोरों पे और पीछे से धक्के पे धक्का ,

फुहार सीधे मेरे मुंह पे पड़ रही थी ,मेरे टिकोरों पर भी।

गुलबिया ने मुझे समझाया था की मरद दूसरी बार बहुत टाइम लेता है और ये तो सामू था , पूरे गाँव का सांड।




पोज बदल बदल के , कुछ देर बाद उसने मुझे दीवाल के सहारे खड़ा कर दिया , मेरी एक टांग उठा के धक्के पर धक्का।

मैं कितनी बार झड़ी मुझे पता नहीं ,न उसने परवाह की पर जब वो झड़ा तो वो मेरे ऊपर चढ़ा था और सारी की सारी मलाई मेरे अंदर।




जेठानी जी अपनी नथ उतराई की बात पूरी कर के चुप हो गयीं , इतनी लम्बी बात के बाद कोई भी थक जाता।




लेकिन मुझे तो अभी और उन के यारों के बारे में रिकार्ड करना था सब के नाम पते पिनकोड , कहाँ कहाँ कब उन्होंने लहंगा पसारा अपना।

ये तो अपनी भौजाई को वाइन का एक पेग पिला के उनका गला तर करने में लग गए और मैंने अगले सवाल सोच लिए कैसे उन्हें उकसा उकसा कर उनकी सारी लाइफ हिस्ट्री रिकार्ड करनी है।

मैंने माइक आफ कर दिया और पूछ लिया।
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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………………
" अरे दीदी आपके तो मजे होगये , रोज बिना नागा "

" अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं ,... "

वो टिपिकल जेठानी मोड में आ गयी जिसे हर बात काटनी है और जो कभी खुश नहीं हो सकती।




" हफ्ते में पांच छह बार बस , सन्डे को तो स्कूल बंद ही रहता था फिर कभी ये छुट्टी वो छुट्टी और शाम को कभी मम्मी उसे किसी काम से कहीं भेजने वाली होतीं तो वो दिन भी ऐसे ही , ... "


बुरा सा मुंह बना के वो बोलीं ,लेकिन फिर यादों में खो गयीं और सोचते हुए बताना शुरू कर दिया उन्होंने ,

" लेकिन सामू भी न उसने रास्ता निकाल लिया,जिस दिन उसे जल्दी होती वो स्कूल से चलते समय मुझे इशारा करता और मैं स्कूल के टॉयलेट में जा के चड्ढी उतार के ,...




हाँ चड्ढी मुझे उसे देनी पड़ती और साइकिल पर भी वो मुझे ऐसे बिठाता स्कर्ट उठा के की साइकल का डंडा सीधे मेरे चूतड़ पे ,...




और फिर रस्ते में जहाँ कोई आड़ पड़ी ,गन्ने का खेत देखा ,आम के पेड़ ,अरहर या कोई ऊँची मेंड़ ही ,... बस वो साइकिल खड़ी करता ,मैं वहां जाके निहुर के और वो सीधे ,एकदम चुदाई चालू। “
रिकारडिंग ऑन थी।

मेरी जेठानी की एक एक बात , ...




जेठानी फिर मुस्कराती बोलीं ,

" वो सामू भी न ,कुछ भी ,... एक दिन मैं स्कूल के टॉयलेट से अपनी चड्ढी ले के निकल रही थी तो एक चपरासीन थी , उसने देख लिया था मुझे चड्ढी ले के निकलते। सामू उससे हलके हलके बोल रहा था , अरे ये न अपनी चड्ढी गीली कर देती है। तो गीली चड्ढी मेरी साइकिल पे , इसलिए उतरवा देता हूँ मैं ,... "

फिर कुछ रुक के बोलीं " शुरू शुरू में मुझे भी ,...लेकिन कुछ दिन में आदत पड़ गयी ,




आदत क्या मजा आने लगा। खुद ही सामू से बोल के , खुले में भी ,... "
" दीदी सिर्फ सामू से ही या किसी और से भी ,... " मुझे तो पूरी हाल रिकार्ड करनी थी उनकी। मैंने फिर उकसाया

" अरे सामू तो खुद ही पीछे पड़ा रहता था मेरे की औरों से भी मैं , और एकदिन उसी सामू के चक्कर में , ...मेरी हालत वैसे भी बहुत खराब थी उस दिन। "

" क्यों क्या हो गया था भौजी। "


" तुम नहीं समझोगे ये सब औरतों लड़कियों वाली बातें है।




उस दिन मेरा पांच दिन का उपवास ख़तम हुआ था इसलिए बहुत जोर की खुजली मच रही थी और दिन शाम को स्कूल से लौटते हुए कहीं जुगाड़ भी नहीं हो रहा था क्योंकि कोई सामू से लस लिया था। पर , हो गया। "

" कैसे क्या " वो फिर बोले।

" अरे यार बहुत तेज बारिश हो गयी ,मैं और सामू एकदम भीग गए ,बारिश में रास्ता भी नहीं सूझ रहा था , तभी वो जगह दिखी ,जहां सांड़ को मैंने बछिया पर चढ़ते देखा था , गर्भाधान केंद्र। मैंने ही सामू को बोला ,और हम दोनों वहीँ अंदर। "




शाम हो रही थी केंद्र तो कब का बंद हो चुका था ,पर दरवाजा खुला था। सामू अंदर पीछे पीछे मैं।

और अंदर वही एक ,अरे सामू का दोस्त , उसी की उमर का जो ,जब मैं पहली बार आयी थी एक से एक भद्दे खुले मजाक मुझे देख के कर रहा था ,बेशर्मी से मेरे टिकोरे घूर रहा था ,बस वही था और कोई नहीं।

उसने सामू को देखा ,मुझे नहीं , मैं सामू के पीछे थी। बोला ,

" अरे सेंटरवा तो कब का बंद हो गया लेकिन बारिश के चक्कर में मैं निकल नहीं पाया ,अच्छा हुआ तुम आगये , चलो बारिश बंद होती है तो निकलेंगे। "

तब तक मैं पीछे से सामू के बगल में , मेरी हालत देख के उसकी हालत खराब। भीग कर के मेरा टॉप ,स्कर्ट सब देह से चिपके , ब्रा ,चड्ढी सब साफ़ दिख रही थी।

एक पल वो सकपकाया , फिर आदत से मजबूर ,सामू से पूछा ,

" हे बछिया पर अभी तक सांड़ चढ़ा की नहीं ?"

सामू का हाथ अब तक मेरे कंधे पर था और वो खुल के ऊपर ऊपर से मेरे टिकोरे टीपता ,मींजता , हंस के बोला ,

" बछिया से ही पूछ लो न तेरे सामने है "




और मेरे टॉप के ऊपर के दो बटन खोल दिए सामू ने।

" बोल ,साँड़ चढ़ा की नहीं अब तक "


अब वो सीधे मुझसे पूछ रहा था और सामू का एकहाथ अब मेरी स्कूल के टॉप के अंदर ,

" धत्त ,.. " मैं शर्मा के बोली।

अब तक पाजामे में उस का खूंटा भी खड़ा हो गया था , उसे मसलता बोला वो ,

" अच्छा चलो बोलो इस सांड का ट्राई कर लो , बोल करेगी। "

सामू के सामने इस तरह लेकिन सामू पता नहीं पर

सामू ने ही मुझे उकसाया ,उसके सामने मुझे कस के चूम के बोला ,

" अरे मेरा यार कुछ पूछ रहा है बोल न। "

" मुझे क्या पता "

मैंने टालने की कोशिश की पर मुझे हंसी आ गयी , उस का खूंटा देख के। जिस तरह से अब वो पाजामें में हाथ डाल के मुठिया रहा था।

" अरे यार हंसी तो फंसी ,अच्छा सुन मेरी चिरैया , जा ज़रा दरवाजा बंद कर दे अच्छी तरह से ,और वो जो बड़ा वाला ताला रखा है न मेज पे, वो भी अंदर से लगा दे। चाभी ऊपर ताखे पर रख देना " वो बोला।

और मैंने दरवाजा बंद भी कर दिया , ताला भी लगा दिया तब सामू की आवाज सुनाई दी ,


"अरे स्साली गीले कपडे में बीमार पड़ जायेगी ,कपडे उतार के दे दे यही फ़ैलाने को ,जब तक हम चलेंगे सूख जांयेंगे। "

सामू की बात टालने की मेरी हिम्मत नहीं थी। टॉप के बटन तो उसने पहले ही खोल दिए थे मैं मुड़ी ,सीधे उसके दोस्त के सामने , और अपनी टॉप उतार के उसके हाथ में , फिर स्कर्ट भी।

वो सामू भी अब तक जांघिये में आ चुके थे। सामू के दोस्त ने खींच के मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और अपने हाथ से मेरी ब्रा खोल के कच्ची अमिया के मजे लेने लगा। "

रिकार्डिंग चालू थी ,एक पल के लिए मैंने माइक पे हाथ रख कर स्टोरी को फास्ट फारवर्ड किया और उनसे काम वाली बात पूछी।

" दीदी नाम क्या था उसका और दोनों ने कितनी बार ,... "

" भगेलू ,... अभी भी वो वहीँ पोस्टेड है , अब तो सेण्टर का इंचार्ज बन गया ही।


और दोनों ने तीन बार , पहले उस भगेलू ने वहीँ निहुरा के , जैसे सांड़ बछिया पे चढ़ा था बस उसी तरह।



सामू से बीस तो नहीं था लेकिन अट्ठारह भी नहीं था ,आलमोस्ट टक्कर का। और ऐसे हचक हचक केधक्के मार रहा था की , सामू बस बैठे देख रहा था।





उसके बाद सामू का नंबर लगा ,बल्कि खुद में सामू की गोद में उसके खड़े खूंटे पर बैठ गयी। और खुद ऊपर नीचे कर के , हम दोनों की चुदाई देख के कुछ देर में ही सके दोस्त का खड़ा हो गया। सामू के झड़ने के बाद फिर मुझे निहुरा के , ... और मैंने थोड़ी देर में सामू का अपने मुंह में लेलिया।




सामू मेरे मुंह में झड़ा और भगेलू मेरी चूत में। "

वो अपनी जेठानी का मुंह देख रहे थे , एक साथ दो मर्दों के साथ खुल के ताबड़तोड़ ,...

पर जेठानी का ध्यान मेरी ओर था , बोलीं ,


" जानती हो वो भगेलू , अभी मैं कुछ दिन पहले मायके गयी तो मिला था। अब तो बड़ा आदमी हो गया है , उस दिन मैंने टॉप और स्कर्ट तो पहन लिए पर ब्रा और चड्ढी भगेलू ने रख ली थी। मुझसे बोला की कल सेंटर में आना तेरी एक चीज मेरे पास है। "

" आप गयी क्या " मुझसे रहा नहीं गया।

"कहाँ ,उसी दिन तेरे जेठ जी आ गए ,सासु माँ की तबियत कुछ ,... तो बस थोड़ी देर बाद मुझे चलना पड़ा। "

उन्होंने ठंडी सांस ले कर कहा।

यही तो मैं चाहती थी ,रिकार्डिंग में जेठानी की आवाज में सब डिटेल्स और नाम।

" लेकिन दीदी आपकी तो खूब गाड़ी चल निकली रोज उस सामू के साथ ,.. "

जेठानी की ठंडी साँसे जारी थी।

" नहीं यार "


तंज हो के बोलीं।
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जोरू का गुलाम भाग १२९

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जोरू का गुलाम भाग १२९


फिर बताया


" अरे स्कूल जाते हुए ही न , सावन में हम लोगों का चक्कर चालू हुआ था और ये समझो दो तीन महीने बाद सब गड़बड़।

कातिक में दिवाली की लम्बी छुट्टी।

स्कूल बंद तो सामू के साथ जाना बंद। फिर हम लोगों के घर ट्रैक्टर आ गया तो हरवाह की जरूरत ख़तम। और सामू भी ,उसका एक लड़का शहर में कुछ नौकरी करता था तो बस उसके यहां ,





एक बार आदत पड़ जाय न मजे की तो फिर उपवास बर्दास्त नहीं होता। "

अपनी परेशानी बतायी उन्होंने।

" बात तो आपकी सही है लेकिन फिर कुछ हुआ जुगाड़ "



मैं बातों को फास्ट फारवर्ड करना चाहती थी पर वो तो सारी दास्तान ,... चालू हो गयीं।




" गुलबिया थी न मेरी भौजी।


अब ननद की परेशानी का इलाज भौजी नहीं करेगी तो कौन करेगा।

मेरी हालत ख़राब पहले तो दस बारह दिन हो गए बिना उसके ,फिर वो पांच दिन की छुट्टी भी ख़तम , लेकिन मंम्मी को कही शादी वादी में जाना था ,सुबह जाके देर रात तक आना था , तो मैं सर दर्द का बहाना कर के नहीं गयी।

मूड वैसे भी उखडा था , जब मैं नीचे आयी तो मम्मी बस जा रही थीं , एक दर्जन इंस्ट्रक्शन उन्होंने मुझे दिए ,और दो दर्जन मेरे लिए गुलबिया को। मेरा ख्याल रखे ,मेरे खाने पीने का ध्यान ,मैं न मानू तो जबरदस्ती ,... आदि आदि।

" कोई मिला " अब वो बोल उठे , गनीमत थी मैंने झट से माइक बंद कर दिया।

उनकी बात का ध्यान दिए बिना वो बोलीं , मम्मी के जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया था की खट खट ,भिनभिनाते हुए मैंने दरवाजा खोल दिया।

दूध था , जुगनू जो गाय भैंस दुहता था ,एक बाल्टी में गाय का दूध और दूसरी में भैंस का दूध।

तब तक गुलबिया आ गयी और उसने पहले तो दरवाजा अच्छी तरह बंद किया ,फिर जुगनू के हाथ से दूध की बाल्टी ले ली और मेरी ओर देख के जोर से मुस्करायी।

" जुगनू वही न जो गुलबिया का यार था ,.. " मैंने फिर फास्ट पेडल करने की कोशिश की।


" हाँ वही जिसे मैंने गुलबिया के ऊपर चढ़े गन्ने के खेत में देखा था। वही २१- २२ साल का जवान था एकदम। " वो बोली ,फिर बताया

" हे दूध पियेगा इसके , रोज तो तू इसे दूध पिलाता है आज तू पी ले। "




गुलबिया ने पीछे से मुझे दबोच लिया था गुलबिया की बायीं कलाई में मेरे दोनों हाथ फंसे बंधे। अपने दाएं हाथ से फ्राक के ऊपर से मेरे कबूतरों को सहलाती ,दबाती ,जुगनू को ललचाती वो बोली।




" बिचारा जुगनू शर्मा रहा था। लेकिन गुलबिया भी न उसे छेड़ते बोली ,

" झूठ मत बोल रोज चुपके चुपके इसकी कच्ची अमिया देखता है न ,चल आज घर में सिर्फ मैं हूँ शाम तक , इससे कोई शर्म नहीं है "


और गुलबिया ने मेरी फ्राक ऊपर कर के , ब्रा रात में तो मैं पहनती नहीं थी तो ,सीधे मेरे उभार , और गुलबिया क्या कोई मरद दबाएगा जिस तरह दबा मसल रही थी मेरे खुले चूजे।

जुगनू का खूंटा पाजामे में खड़ा हो गया था।




" अरे यार ये मुफ्त में नहीं पिलाएगी , दूध के बदले में तेरी मलाई घोंटेंगी। ले पकड़ " और जबरन जुगनू के हाथ में मेरा जुबना पकड़ा दिए।

और उसके पाजामे का नाडा ख़ोल दिया।

एक दम तना खूंटा। मेरा तो उसी समय मन करने लगा।

" तो दीदी क्या सुबह सुबह ,....उस क्या नाम बताया था आपने ,... "

" जुगनू , और क्या एकदम मस्त जवान पट्ठा ,... वहीँ बरामदे में एक पलंग पड़ी थी उसी पर। कुछ देर तक तो गुलबिया वही रही और दूध लेकर फिर किचेन चली गयी औटाने।

आधे घंटे बाद वो लौटी तो तब भी हम लोगों की कुश्ती चल रही थी।





जुगनू जम के धक्के लगा रहा था। उस के सामने ही वो झड़ा। लेकिन उसे अभी एक दो घर और भैस दुहने जाना था।

पर गुलबिया ने हुकुम सूना दिया ,

कल से बिना नागा ये गाय दुही जायेगी समझ ले और जब खाली हो जाना तो आना।


बारह बजे के करीब जुगनू फिर आया ,




और उस बार मेरे ऊपर वाले कमरे में।


अगले दिन से सुबह दूध रख के रोज बिना बिना नागा मेरा दूध ,... "





" भौजी हो तो ऐसी "मैंने भी गुलबिया की तारीफ़ की।

"एकदम और कुछ दिन बाद संदीप , मैं उनकी ममेरी बहन , ... "

"जैसे ये और गुड्डी , है न दीदी। "


मुझे मौक़ा मिल गया।

" एकदम वैसे ही ,मुझसे पांच छह साल बड़े १५ -२० दिन के लिए हमारे घर आये , मम्मी ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में ,मेरे कमरे के बगल में रहने की बात की तो पहले तो मैंने मना किया खूब लड़ी भी पर गुलबिया ने आँख से इशारा किया



तो मैं मान गयी।




गुलबिया ने मुझे समझाया ,और संदीप के आने के बाद मेरा नाम ले ले के रात के खाने में मम्मी के सामने एक से एक गारी संदीप को सुनाई ,खुल के मेरा नाम ले ले के मजाक किए।

और पहली रात से ही ,२० दिन में २० दिन वो मेरे बिस्तर पे सोये , बिना नागा।

रोज रात कबड्डी होती थी




और जानती हो संदीप को भी कुतिया बना के लेने में मजा आता था , दुनो जोबना पकड़ के ,हचक हचक के , ... एक बार में उसका मन भी नहीं भरता था।

और सब गुलबिया का किया धरा। "

मेरी जेठानी की गाथा जारी थी।

"संदीप कहाँ है आज कल " मैंने पूछा।

" अरे तुम जानती हो उसकी बीबी को मेरी भाभी , उस व्हाट्सएप ग्रुप में है तो ,नकचढ़ी। जयंती। "


वो बोलीं

" क्यों भाभी मजा आया था अपने भैय्या के साथ आपको ,"


मैंने कुछ चिढ़ाया कुछ पूछा।

" एकदम ,.. न कोई डर न जल्दी ,पहली बार रात भर बिस्तर में , इतने दिन ,...जैसे कोई अपने मरद के साथ ,




और किसी भी दिन दोबार से कम नहीं ,कई बार तो तीन बार भी।




संदीप के औजार पे एक तिल था , तो मैं उसको चिढ़ाती भी थी की तू नम्बरी चोदू होगा।



जाड़े का टाइम , भइया के संग रजइया में ,वैसे भी गाँव में तो बहुत जल्दी लोग सो जाते हैं। "

"संदीप के संग फिर कभी, ... " अब वो भी सही सवाल पूछना सीख गए थे।



"ज्यादा नहीं ,संदीप की शादी में मैं गयी थी मेरी शादी के दो महीने पहले ही तो थी ,तब। घर में तो नहीं मौक़ा मिलता था पर बाहर खेत में , अमराई में।




चार पांच बार और एक दिन जिस दिन रतजगा था ,उस दिन घर की छत पे भी। "

उन्होंने राज खोला।




" तो क्या दीदी दो मर्दों के साथ फिर कभी ,... "


मैं भी उन्हें छोड़ने वाली नहीं थी ,मैंने फिर जोड़ा मेरा मतलब इंटर में पहुँचने के पहले।

सिर्फ एक बार।

होली में मेरी भाभियों ने बहुत रगड़ाई की लेकिन उसके बाद मुझे होली में मेरी सहेली का साथ देने जाना था। ज्योति थी मेरी सहेली। मेरी पक्की बचपन की दोस्त ,शुरू से हम लोग साथ साथ , एकदम बगल के गाँव की सटा हुआ बस बीच में हमारी आम की बाग़ पड़ती थी।

कुछ रुक के जेठानी जी ने ज्योति के बारे में असली बात बताई ,




उसकी सील तो मुझसे भी पहले , उसके जीजा ने खोल दी थी ,उसकी एक ही बड़ी बहन थी , शादी में हम लोगों ने खूब गारी गायी ,कोहबर में जीजा को ज्योति के साथ मैंने भी खूब छेड़ा।

और उसके जीजा भी हम दोनों के कच्चे टिकोरों को देख के ललचा रहे थे और हम दोनों उन्हें ललचवा भी रहीं थी ,उन्होंने ज्योति से हलके से बोल भी दिया ,

अब साली तू बचेगी नहीं ,अगर पकड़ में आ गयी न तो बस , ... बोल वो ज्योति से रहे थे और निगाह उनकीमेरे कच्ची अमिया पे टिकी थी और जवाब मैंने ज्योति की ओर से दिया ,

" अरे जीजू ,बचना ही कौन चाहती है स्साली , लेकिन आज तो आप पकडे गए हैं न आपकी माँ बहन सब का हिसाब ले लेंगे हम ".

आँख नचा के छोटे छोटे जुबना उभार के मैं बोली।

ज्योति तो हफ्ते भर के अंदर ही , ...शादी के चार दिन बाद मायके वाले चौथी ले के जाते हैं न तो बस ज्योति भी गयी थी साथ में , बाकी लोग तो अगले दिन आ गए लेकिन उसकी दीदी ने और उससे बढ़ के उसके जीजू ने , बस वो हफ्ते भर के लिए रुक गयी।




और हफ्ते भर बाद अपनी दीदी के साथ वापस आयी , बस उस हफ्ते ही उसकी सोनचिरैया उड़ने लगी,




उसके जीजा ने दिन दहाड़े , ले ली उसकी।


उसकी दीदी को भी मालूम था बल्कि दोनों की मिलीभगत थी। और फिर तो हफ्ते भर रात में ज्योति की दीदी की ओखली में मूसल चलता और दिन में ज्योति की ,...




और उसी में ज्योति से उन्होंने कसम धरा ली थी की होली में वो तभी आएंगे जब मैं भी ज्योति के साथ होली खेलूंगी उनके साथ।

लेकिन मामला कुछ और बढ़ के था , और वो बात जेठानी ने इनके पूछने पर बतायी।

" असल में , ज्योती का भी तो उपवास ही चल रहा था , एक बार चिड़िया चारा खा ले तो फिर हरदम चींटी काटती है।


बस उसने मुझे संदीपवा के साथ देख लिया। जब वो पंद्रह बीस दिन जाड़े में हमारे साथ थे , तो उनके पास एक मोटरसाइकिल थी और मैं जिद करने लगी की मैं भी बैठूंगी मोटरसाइकिल पे।





तो एक दिन वो मुझे मोटरसाइकिल पे उनके पीछे बैठ के , और जब वो स्कूल के गेट पे मुझे छोड़ रहे थे तो ज्योति ने उन्हें देख लिया , और साथ साथ ज्योति को उन्होंने भी , और हो गया नैन मटक्का।


ज्योति मेरे पीछे पड़ गयी ,

कौन है ? कौन है ? बहुत हैंडसम है , और जब उसने ये बात कही की यार मैं दावं लगा सकती हूँ ये जबरदस्त चोदू होगा।


फिर मुझे बोलना पड़ा

" यार ऐसे मत बोल ,मेरे भैया हैं , "

" झूठी तेरे तो कोई भाई वाई तो था नहीं , ये कहाँ से सच सच बोल "

ज्योति ने मेरी चोटी जोर से खींची और मैंने बता दिया ,

" मेरे कजिन हैं ,पन्दरह बीस दिन के लिए हमारे यहां आये हैं ,पास में तहसील में उनकी नौकरी लगी है ,जबतक वहां रहने का नहीं होता तबतक हमारे यहां ,.. "

और मेरी बात ख़तम होने के पहले ज्योति चालू ,

" स्साली , ये नहीं कहती साफ़ साफ़ , दिन में भैय्या रात में सैंया वाले भइया हैं ये। बोल चुदवाया की नहीं तेरी जगह मैं होती न तो रोज बिना नगा चुदवाती "

कर तो मैं भी यही रही थी लेकिन मैंने बात टाल दी। पर ज्योति से बात छिपाना मुश्किल था और उधर संदीप भी रोज यार एक बार अपनी सहेली से मिलवा तो।


दे। रोज वो मुझे मोटरसाइकल पर छोड़ते और रोज ज्योति गेट पर खड़ी।

तीसरे दिन ज्योति ने मुझसे सच्चाई उगलवा ही ली की मैं संदीप के साथ ,..

अब दूसरा चक्कर चालू होगया अब रोज ज्योति मेरे पीछे , मैं संदीप से उसकी , ...

और संदीप भी साफ़ साफ़ तो नहीं लेकिन इशारे में ,... और उनके जाने में चार पांच ही दिन बचे थे तो ,


लेकिन मैं बिचारे संदीप को काहें को दोष दूँ , मेरा भैय्या ,सीधा साधा ,...


अरे वो ज्योति मेरी सहेली नम्बरी छिनार , लौंडे फ़साने में तो उसका जवाब नहीं था , ८-१० यार तो उसके हरदम ,



और जब से उसके जीजा ने उसकी गुलाबो का ताला खोल दिया था तबसे और , जिस तरह से वो संदीप को देखती थी ,भइया भइया कह के उनसे लसती थी ,कोई भी फिसल जाता।

फास्ट फारवर्ड कराने के लिए रिकारडिंग का मुंह दबा के मैंने जेठानी को उकसाया , तो क्या ज्योति और आप साथ साथ साथ अपने उस कजिन के साथ , कब कैसे बताइये न जल्दी।

और जेठानी मुद्दे पर आयीं।

' एक रात ज्योति मेरे घर आयी साथ साथ पढ़ने के नाम पे , और मेरे घर आने के नाम पे उसके घर वालों को कोई ऐतराज भी नहीं था। मैंने बताया था न ऊपर वाली मंजिल पे मैं रहती थी और वही बगल के कमरे में संदीप , मम्मी नीचे। मम्मी ने पहले खाना खा लिया था और खाते समय भी ज्योति एकदम चालु ,डबल माइनिंग डायलॉग की अति कर दी थी , झुक झुक के अपने क्लीवेज दिखा के परोस रही थी संदीप भैया को ,और साथ में बोल भी रही थी ,

" और लो न , तुम भी भईया मैं दे रही हूँ और आप लेते नहीं हो। "

" अरे मेरी हिम्मत ,तेरे ऐसी लड़की देगी तो कौन नहीं लेगा। " संदीप भी आज ,

" हिम्मत है ,... नहीं लोगे तो ये जबरदस्ती देगी " मैंने भी दोनों को चिढ़ाया।

लेकिन कमरे में घुसते ही ज्योति ने नखड़ा दिखाना शुरू कर दिया , भैया ने मुझे आँख मारी और मैंने ज्योति के हाथ दोनों पकड़ लिए ,

फिर आराम से उन्होंने एक एक कपडे ,जब तक वो ब्रा पैंटी में नहीं हो गयी




और उस के बाद मैं भी ,लेकिन फिर भी ज्योति पहले तुम पहले तुम करती रही।




लेकिन संदीप न जबरदस्त चटोरा ,एक बार जब उसने ज्योति के उभार चूसने शुरू किये तो उसने खुद ही अपनी चड्ढी उतार फेंकी।





लेकिन मैं और फास्ट फारवर्ड करना चाहती थी वरना सारी रात फ्लैश बैक में ही

और जेठानी ने सब बाते बताई पहले ज्योति की ली ,संदीप ने। कुतिया बना के ,





उसके बाद ज्योति और जेठानी ने थोड़ी देर में चूस चूस के





,संदीप का फिर खड़ा किया और अबकी जेठानी का नंबर था।

ज्योति कन्या रस वाली भी थी ,जब जेठानी अपने भैया का खूंटा चूस रही थीं ,ज्योति उन की चूत का रस पान कर रही थी इसलिए वो इतनी गरमा गयीं दूसरे राउंड में खुद ही संदीप के साथ ,





सुबह सबेरे ज्योति खुद संदीप के ऊपर चढ़ के ,





उस के बाद संदीप ने वहीँ निहुरा के , ...





नहाये भी तीनो साथ साथ।




जेठानी अब बात को एकदम आगे ले गयीं ,

"इसीलिए , ज्योति बार बार मुझसे कहती थी तूने मुझे अपने भैय्या से चुदवाया न आने दे मेरे जीजू को।


वैसे भी यार कोहबर से ही वो तेरी कच्ची अमिया के दीवाने हैं , होली में इसी शर्त पर आए रहे हैं की तू भी उनसे जम कर और खुल के होली खेलेगी। मैंने तेरी ओर से हाँ कर दी है।

मैं समझ रही थी इसके जीजू किस पिचकारी का कौन सा रंग डालना चाहते हैं पर मन तो मेरा भी कर रहा था। मैंने मुस्करा के हामी भर दी।


होली की पहली इनिंग तो घर पे हुयी भौजाइयों के साथ लेकिन खाने के बाद मैं ज्योति के घर गयी। सोचा तो ये था की हम दोनों मिल के उस के जीजा की ,…



लेकिन होली वाला पार्ट मैं नहीं चाहती थी इतनी जल्दी फास्ट फारवर्ड हो ,
dil1857
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

Post by dil1857 »

upadte palzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzz
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kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

Post by kunal »

जोरू का गुलाम भाग १२९


उनकी चिरैया उड़ने के बाद ये पहली होली थी और मुझे मालूम था की ,,.... इसलिए मैंने उन्हें टोक दिया।

और फिर मुझे रिकार्डिंग में जितने डिटेल्स मिल जाएँ ,जितने लोगों के नाम पते डाकखाने

" क्यों दीदी, अरे होली तो मस्ती का दिन होता है तो क्या ज्योति के यहाँ जाने तक बची रहीं आप। बड़े सीधे हैं गाँव वाले आपके।बहुत देर से शुरू हुयी गाँव में होली आपकी , "

वो बड़ी जोर से मुस्करायीं ,और कुछ रुक के बोलीं ,

" अभी तूने गाँव की होली देखी नहीं है , बिना चोली फाड़े होली शुरू नहीं होती हैं। एक से एक गारियाँ , और लौंडे तो .....कहीं पकड़ लिया तो फिर बचने की सोचना मुश्किल ,,... "

लेकिन अभी भी उनकी होली गाथा रुकी थी ,मैंने फिर उन्हें चढ़ाया ,

"बोलिये न होली की शुरुआत किसके साथ हुयी ,... "

और वो चालू हो गयीं ,

" और किसके साथ हमार भौजी ,गुलबिया।



रात में देर तक छनमनन होता रहा , कढ़ाही चढ़ी रही। मम्मी ने ढेर सारी भांग की गुझिया , भांग की ठंडाई ,.... बड़ा जमावड़ा था ,




मेरी बुआ जो मम्मी से छोटीथीं , अभी दो तीन साल पहले शादी हुयी थी , वो ,



मेरी एक छोटी चाची ,मौसी सब आने वाली थीं ,बल्कि मौसी तो आ भी गयीं ,





हाँ फूफा जी खाने के बाद आने वाले थे ,... तो इसलिए ढेर सारी तैयारी ,... देर हो गयी तो गुलबिया मेरे पास ही रुक गयी। गनीमत थी उसकी वो पांच दिन वाली छुट्टी चल रही थी , पर तब भी मेरी रगड़ाई मसलाई रात में ,... "

अब मेरे एक्सीलेटर दबाने का टाइम था ,

लेकिन सबेरे सबेरे किसने , किसकी पिचकारी ने , मैंने पूछा।

"और कौन वही गुलबिया का यार ,.... जुगनू "


उन्होंने राज खोला ,फिर बताया ,


वो सुबह ही आजाता था मुंह अँधेरे ४ -५ बजे , गाय भैंसो की देख भाल , फिर दूध दूध दुहने के बाद जाता था साढ़े छह सात बजे ,...


मैं तो सो रही थी ,... गुलबिया ने नीचे जा के दरवाजा खोल दिया और वो पांच बजे के पहले ही ,... ऊपर मेरे कमरे में। और गुलबिया साथ में हो तो मेरी छोड़िये किसी ननद के कपडे नहीं बचते थे , बस जुगनू की चांदी हो गयी। गुलबिया की छुट्टी के चक्कर में पहले ही उपवास चल रहा था। "

" रंग वंग लाया था क्या ?" मैंने पूछा।

" हाँ यही मैंने भी पूछा ,लेकिन जवाब उसकी रखैल ,मेरी भौजी ने दिया अपने यार की ओर से। "

" अरे अभी गाल लाल करेगा , काट के चूँची रंगेगा मसल मीज के और ननद रानी तेरी चुनमुनिया में देखना अपनी पिचकारी का सब रंग ,... "


गुलबिया की संगत में मैं भी अब , फिर सामू ने भी उसी तरह से बोलने की आदत डलवा दी थी ,मैंने जुगनू को चिढ़ाया ,

"हे भौजी के यार। कुछ तोहरी पिचकारी में रंग बचल बा की रात में तोहार बहिन महतारी ,कुल ,... "

" फिर ,... " मैं सांस रोके सुन रही थी ,रिकार्डिंग चल रही थी /

"फिर तो उस स्साले को ऐसा जोश चढ़ा की बस , कचकचा के मेरे गाल काटने लगा , दोनों हाथों से ऐसी जोर जोर से चूँची मसल रहा था की मुझे सामू की याद आ गयी और मैं जो इस मिजवाने का असर होना था ,जोर से पनिया गयी।


बस एक धक्के में उसने अपना खूंटा मेरी बिल में ,... वो तो गुलबिया पास में थी और बहुत समझदार थी।




उसने झट से अपने मुंह से मेरा मुंह बंद कर दिया वरना मेरी चीख जरूर नीचे तक पहुँच जाती।


मम्मी तो खैर घोड़े बेच के सोती थीं और मैं उन्हें कुछ कहानी सुना भी देती पर मेरी बुआ , ... बुआ कम सहेली ज्यादा थीं ,वो जरूर।




वो जब से आयीं मेरे पीछे पड़ी थीं तेरा जोबन तो गदरा रहा है ,मिजवाना शुरू कर दिया क्या। इसलिए। "

' तो जुगुनू ने एकबार ,... "

मैं फिर बात उनके हाईस्कूल के यार पे ले आयी।

" एक बार ,... " वो खिलखिलायीं। "


"गाँव का लौंडा , होली का दिन , पहली बार तो मेरे ऊपर चढ़ के ,और दूसरी बार कुतिया बना के।

अरे गुलबिया ने मुझसे उसका चुसवाया तो पांच दस मिनट में दुबारा खड़ा ,... वो तो गुलबिया ने समझा के उसे भगाया की सुबह कोई देख लेगा उसे घर से निकलते। वरना वो तो थर्ड राउंड भी ,.... लेकिन दो में ही मेरी देह चूर चूर हो गयी थी। "








" और भौजाइयों के साथ ,.. " मुझे भी गाँव की होली के बारे में सुनने का मन कर रहा था।

" अरे भौजाइयों के साथ तो छोडो ,सबसे पहले तो मेरी बुआ ने ही धर दबोचा।




मैं एक पुरानी फ्राक में ब्रा और मोटी सी चड्ढी पहन के होली के लिए तैयार हुयी , कपडे फटने तो थी , लेकिन मैंने सोचा शायद मेरी सोनचिरैया की थोड़ी बहुत बचत , ...





लेकिन बुआ ने सबसे पहले मेरी फ्राक ही उठायी और जोर से हड़काया ,

" अरे होली के दिन भी एहके छुपाय बचाय के रखी हो ,कतौं होलिका माई गुस्साय गयीं , ... "

और जबतक मैं बचू ,कुछ करू , नाडा उन्होंने खोल दिया और पल भर में मेरी चढ्ढी फर्श पे और



बुआ की ऊँगली अंदर।




गोल गोल घुमा रही थीं , सिर्फ एक ऊँगली।

उनके चेहरे की मुस्कान से पता चल गया था की उन्हें कुछ पता चल गया है। और तब मुझे याद आया की जुगनू की दो बार की मलाई मेरी चूत में बजबजा रही है।

लेकिन अब क्या हो सकता था , बुआ का दूसरा हाथ मेरे कुंवारे उभार पर ,दबाती मीजती मुस्कराती बोलीं,

" लगता है चिड़िया ने चारा खा लिया है। बोलो सच की झूठ ,अरे बुआ से क्या छिपाना। "

मेरी शर्माती मुस्कान ने बहुत कुछ स्वीकार कर लिया।

पर जब बुआ ने दूसरी ऊँगली घुसाने की कोशिश की तो बड़ी मुश्किल और मेहनत से भी नहीं घुस पायी और बुआ ने फिर हड़काया मुझे

" अररर्रे , लगता है इस बेचारी को बहुत उपवास कराती हो , एक दो बार घोंटने से थोड़ी , ... "






लेकिन मुझे बचाया मेरी मौसी ने ,मेरी माँ की सबसे छोटी बहन , और इस लिए मेरी बुआ उनकी भी ननद हुईं।

आते ही उन्होंने पीछे से बुआ को धर दबोचा और सीधे ब्लाउज के ऊपर से बुआ के उभार, जोर जोर से मीजते मसलते बोलीं ,

" अरे इस बिचारी को काहें तंग कर रही हो अपना भूल गयी ,इससे भी साल भर छोटी थी , कोई गाँव क न गन्ने का खेत बचा था, न गाँव का लौंडा। बिना नागा गप्पांगप , ... "

शायद मेरी मौसी से बुआ निबट लेती पर साथ में चाची भी तबतक , और सामने से उन्होंने बुआ को धर दबोचा। मौसी की बात के जवाब में बोलीं

" सही तो है ,अरे हमारी ये बचपन की छिनार , ( मेरा नाम लेकर ) की बुआ ,..सोचती थी ससुराल में तो जा के सबको मजे दूंगी ही ,बिचारे मेरे मायके वालों ने क्या बुरा किया है , ज़रा उनको भी चखा दूँ कच्ची जवानी का रस। ससुराल में तो बहुत होली में देवर ननदोई का मजा लिया होगा , अच्छा नन्दोई आये हैं की नहीं। "

" दोपहर के बाद आयंगे , " बुआ ने फूफा जी के बारे में बताया।

चाची और मौसी के बीच में फंसी बुआ जी की फ़सान से बच के मैं निकल आयी ,लेकिन वहीँ खड़ी हो के उन लोगों की बात का मजा लेती रही।

" अरे इनके गाँव के इतने पुराने यार होंगे ,नए नए लौंडे जवान हुए होंगे , ... यहां इनको कौन लंड की कमी है "


मौसी एकदम अपनी स्टाइल में आ गयीं।

" और क्या , फिर हम लोग तो हैं ही न इनकी रगड़ाई करने वाले , आज देखंगे ससुराल के लौंड़े घोंट घोंट के इसकी बुर अभी भोंसड़ा हुयी है की नहीं। " चाची भी अब फुल फ़ार्म में आ गयी थीं। " और अब चाची का एक हाथ बुआ के पेटीकोट के अंदर घुस रहा था।




तबतक मम्मी भी आगयीं और उन्होंने चाची और मौसी दोनों को ललकारा ,

" अरे कइसन भौजाई हो ,दुई दुई भौजाई और अबहिन ननद क ब्लाउज पेटीकोट बचा हुआ है , भूल गयी पिछली होली ,.. "


मम्मी ने याद दिलाया।
पिछली होली का मतलब पिछले साल का नहीं था बल्कि जब बुआ शादी के दो साल बाद पहली बार होली में आयी थीं तब से था। और उस बार मम्मी चाची और मेरी दो मौसियां, ,...

इसी आँगन में होली के दिन बुआ के ऊपर मेरे डैडी और चाचा दोनों उनके सगे भाइयों को चढ़ा दिया था।

पहले तो सबको उन लोगों को भांग के नशे में टुन्न किया ,फिर ये लालच दिला के अगर मेरी छोटी मौसी की उन्हें चाहिए तो , आँख में पट्टी के बांध के ,...




उन लोगों की साली लगती थी और मेरी छोटी मौसी थी भी बहुत गरम ,... दोनों मान गए।


बस मम्मी और चाची उन लोगों के आँख में मोटी काली पट्टी बाँध के ,..

इधर मौसियों ने बुआ जी के कपडे तार तार और उनके मुंह पे पट्टी बाँध दी थी की वो लाख चीखें ,...






बुआ को पहले मेरी डैडी की मीठी शूली पे चढ़ाया गया और फिर पीछे से मेरे चाचा , बुआ की गांड में ,

आधे घंटे से ऊपर ,.. और जब वो दोनों झड़ रहे थे तब मौसियों ने अपने जीजा लोगों की पट्टी खोली और खूब चिढ़ाया ,




" अरे ससुराल में होली में न जाने केकर केकर लौंड़े क धक्का खाती होंगी और यहां बिचारे भाई कबसे ललचियात रहें। "

मैंने देखा तो था ,लेकिन मैं छोटी थी इसलिए पूरा याद नहीं पर मम्मी ,मौसी ,चाची इतनी बार उस होली की बात करतीं की मुझे एकदम याद हो गया था।

और उस तीन चार साल पहले की होली के बाद बुआ अबकी आयी थीं।

मौसी ने बुआ को चिढ़ाते हुए मम्मी से बोला ,

" अरे बिचारी तभी तो उदास हैं ,पिछली बार दो दो सगे भाइयों को एक साथ और अबकी बार ,... "

" भाई नहीं , भौजाई तो हैं , अगवाड़ा पिछवाड़ा अबकी भी , ... "


मम्मी ने हवा में अपनी मुट्ठी लहराते हुए कहा।

उन लोगन को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता था की मैं पास में ही खड़ी थी। ननद का नाम नहीं लेते ,चाहे कितनी छोटी हो ,इसलिए बुआ को सारी गन्दी से गन्दी गालियाँ मेरे ही नाम से ,.. की बुआ बुरचोदि ,गांड चट्टो।

होली अब शुरू हो गयी थी।

और मैंने सोचा मौके का फायदा उठा के जो मेरी चड्ढी फर्श पे बुआ ने निकाल के फेंक दी थी उसे उठा कर पहन लूँ पर उस के पहले
अभी चार पांच महीने पहले ही शादी हुयी थी ,इसी जाड़े में , गांव की सबसे नयकी भौजी , उनकी पहली होली शादी के बाद की।




नाम उनका कुछ अच्छा सा था लेकिन हम सब ननदें उन्हें चंदा भाभी ही कहते थे , एक तो चंदू भैय्या , पट्टी दार के रिश्ते से मेरे भैय्या लगते थे की मेहरारू , और फिर एक दम चंदा चकोरी की तरह रूप , खूब गोरी ,गोल गोल चंदा ऐसा चेहरा देह भी गदरायी और शादी के बाद और गदरा गयी थी।

बस उन्होंने मेरी फर्श पर पड़ी चड्ढी मुझसे पहले उठा ली और मुझे छेड़ते बोलीं,

" अरे ननद रानी काहें एकरा के तोपत छिपावत बाड़ू , आज तो तोहार भाभी लोग ,हमार देवर लोग ,... सब एकर दर्शन करेंगे। "

मुझे याद आ गया उनकी सुहाग रात के अगले दिन सबेरे ,मैं और बाकी ननदें एकदम पीछे पड़ गयीं थी उनको , 'उसे ' दिखाने के लिए , जब तक एक बात बात रात की उनके मुंह से उगलवा नहीं ली तब तक , और आज वही मेरी गुलाबो के पीछे पड़ी थीं ,

जब तक मैं कुछ बोलूं , मेरी चड्ढी उन्होंने पूरी ताकत से , .... सीधे छत पर।

लेकिन मुझे भी मिल गया , उनके ब्लाउज में सेंध लगाने का। पीछे से मैंने उन्हें अँकवार में दबोचा , रंग मेरी हथेली का अब सीधे उनके ब्लाउज के अंदर , पहले एक हाथ , फिर दूसरा।

खूब गदराये जोबन ,




" क्यों भैय्या ऐसे ही दबाते हैं का भौजी "


मसलते रगड़ते मैंने चिढ़ाया। पर भौजी तो भौजी , बोलीं ,

" अरे दबवा ले न ननद रानी , खुदे मालूम पड़ जाएगा। "


" आपके मायके में होता होगा , भइया के साथ , हमारे यहां नहीं होता , "




गाढ़ा लाल रंग उनके जोबन पे रगड़ते मैं बोली।

चट चटा के एक दो बटन भी उनके ब्लाउज की खुल गयीं।

" अरे अदला बदली कर लो हमारे सैंया से , मान लो अभी नहीं है तो यार तो होंगे , फिर जब ननदोई आएंगे तब ,... "

चंदा भाभी एकदम पीछे पड़ गयीं।

वैसे थे भी चंदू भैय्या एकदम गबरू जवान २२ -२३ के , और कई बार मैंने उन्हें अपनी कच्ची अमिया को देख के ललचाते देखा था।

लेकिन उनकी असली ट्रिक मुझे तब समझ में आयी जब मैं धर दबोची गयी। जान बूझ के चन्दा भाभी ने मुझे अपने ब्लाउज में हाथ डालने का मौका दिया था और अब उन्होंने बलाउज के ऊपर से मेरे अंदर घुसे हाथों को कस के के पकड़ लिया , अब मैं उन्हें छोड़ के हट नहीं सकती थी और पीछे से तीन तीन भाभियों ने मुझे दबोच लिया।

थोड़ी सी गुदगुदी और मेरे हाथ चन्दा भाभी के ब्लाउज से बाहर और सालू भौजी ने एकदम से पीछे से सँड़सी की तरह पकड़ के ,

और अब आराम से सबको दिखाते धीरे धीरे चंदा भाभी ने पहले तो मेरे फ्राक के बटन खोले और फिर एक झटके में फ्रंट ओपन ब्रा के हुक खोल के , वो भी वहीँ छत पर जहाँ कुछ देर पहले उन्होंने चड्ढी मेरी फेंकी थी।




अब दोनों कबूतर बाहर , मेरे लेकिन तब भी चंदा भाभी को कोई जल्दी नहीं थी , कोयंछे से उन्होंने कड़ाही की कालिख और लाल रंग निकाला अपने दोनों हाथों पर मला और सीधे मेरे खुले जोबन पर ,

हलके हलके मसलते बोलीं ,

" ननद रानी तुम पूछ रहीं थीं , बहुत मन कर रहा था न तुम्हारे जानने का , की तुम्हारे भय्या कैसे रगड़ते मसलते हैं , तो बस शुरू में ऐसे हलके हलके और ,और बाद में ,... "




क्या कोई मरद चूँची मीजेगा जिस तरह सबके सामने खुले आँगन में मेरी दोनी चूँची ,चंदा भाभी मीज रही थीं ,रंग तो बहाना था।

निपल की घुंडी रगड़ते चंदा भाभी ने फिर उकसाया ,

" जोबन तो खूब गदरा रहा है तुम्हारा , दबवा लो अपने भैय्या से , पहले दबवाओ फिर घुसवाओ। "

" एकदम , अरे एह कोठरिया में कउनो न कउनो तो घूसबे करी तो कौन नुकसान है अगर तोहार भैय्या ,... घरे क माल घरे में "


मेरी दो भाभियाँ जो नीचे का मजा ले रही थीं बोलीं।


और उनकी बात मेरी मम्मी ने पूरी की जिन्होंने बुआ का ब्लाउज फाड़ के फेंक दिया था , बोलीं

" अरे एह गाँव क चलन है ,कुल लड़कियां ,भाई चोद और मरद बहन चोद। "

बुआ ने मेरे मन की बात जैसे कहते हुए जवाब दिया ,

" अरे तोहे लोगन क तो भला मानें क चाही न। अगर ई ट्रेनिंग न किये होतें तो कहीं पहली रात बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े घुस्साय दिहे होतें तो पता चलता। "

लेकिन इधर बाजी मेरी ओर पलट गयी। मेरी तीन चार सहेलियां एक साथ आ गयी और अब चंदा भाभी धर दबोची गयीं।

पहले तो उनकी साडी उतरी और फिर ,...


होली जम कर शुरू हो गयी थी।

लेकिन सबसे ज्यादा दुर्गत हो रही थी मेरी बुआ की।

चाची ,मम्मी और मौसी तो थीं ही ,अब मिश्राइन चाची और दूबे चाची भी आ गयी थीं। बुआ की साडी तो मेरी मौसी और चाची ने ही मिल के उतार दी थी ,और वह छज्जे पर थी।

ब्लाउज मम्मी और मिश्राइन चाची ने मिल के चीर के तार तार कर दिया , अब सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में बुआ रह गयी थीं।

ब्रा के अंदर हाथ डाल के उनकी एक चूँची मम्मी और एक मौसी ने बाँट ली पर थोड़ी देर में दूबे चाची ने ब्रा खोली नहीं ,सीधे सीधे फाड़ दी। और धक्का दे के आंगन में लिटा दिया , बुआ का पेटीकोट भी कमर तक उठ गया , और एक बाल्टी रंग आराम से धीरे धीरे मम्मी ,बुआ की बुर पे डाल रही थीं।

और मेरी हाल भी , ....


नयकी भौजी के साथ मिश्राइन और दूबे चाची की बहुएं , कहारिन जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी गुलबिया से दो चार साल बड़ी और गाँव के रिश्ते से भौजी ही लगती थी ,

जो मेरी सहेलियां मुझे बचाने आयी थीं ,पहले तो वो पकड़ी गयीं ,उनके कपडे फाड़े गए , ऊपर नीचे का हाल चाल लिया गया और जब कुछ और भाभियों के कब्जे में वो चली गयी तो वो सब , नयकी भौजी ,चंदा भाभी के साथ मेरी दुरगत करने पर ,

मेरे दोनों कबूतर के बच्चे तो नयकी भौजी ने ही मेरी फ्राक से बाहर निकाल दिए थे

अब मेरी पड़ोसन भौजाइयों ने ,पहले तो फ्राक के अंदर हाथ डाल के आराम से उसे फाड़ा , और अब किसी तरह मेरी कच्ची अमिया छुप नहीं सकती थी ,फिर अपने हाथ में लगे रंग दोनों भौजाइयों ने ,


और जो कहारन थी , गुलबिया से भी ज्यादा मेरे साथ खुल के मजाक करती थी , उसने पिछवाड़े का मोरचा सम्हाला।

नयकी भौजी उर्फ़ चंदा भाभी की एक ऊँगली तो मेरी बुरिया में घुसी ही थी , पूरी ताकत लगा के वो दूसरी ऊँगली ठेलने की कोशिश कर रही थीं पर घुस नहीं पा रही थी।

" बड़ी कसी है तोर ,... " चंदा भाभी बोलीं।

पीछे से मेरे चूतड़ पर कालिख पोतती , भौजी ने उलटे उन्ही को चढ़ाया ,

" अरे त तू लोग ,... जवान ननद , अरे गाँव जवार में इतने तोहार देवर , चढ़वावा उन बहिनचोदन क एकरे ऊपर ,... "

और दूबे भाभी की बहू ,शीला भाभी चंदा भाभी के साथ आ गयी थीं। नीचे सेंध लगाने। चंदा भौजी ने अपनी ऊँगली निकाल ली और अब शीला भाभी ने ,

" सही कह रही हो , अब तो स्साले जेतने गाँव क लौंडे हैं हमार तोहार देवर ,सबको ललकार क एकरे ऊपर चढ़ाना पड़ेगा। ननद रानी हमार आशिरबाद सुन ला एहि आँगन में अगली होली में अगर एक झटके में ससुरी , तीन अंगूरी एक साथ घोंटे लायक न हुयी तो ,.... गांव में अइसन मस्त बुर और हमर देवर सब हाथे से आपन,... "

घचक कर शीला भाभी ने अपनी ऊँगली पेल दी और मुझे सामू की याद आ गयी।



जिस तरह से पूरी ताकत से वो हचक हचक कर गाली दे दे कर चोदता था ,मुझसे भी गन्दी गन्दी से गन्दी गाली दिलवाता था , शीला भाभी भी एकदम उसी तरह से ,

और जो पिछवाड़े चूतड़ के पीछे पड़ी थी उसने भी पूरी ताकत से गांड फैला के एक ऊँगली वहां भी ठेल दी।

लेकिन तब तक कुछ और गाँव की कच्चे टिकोरे वालियां आ गयीं ,ज्यादातर मेरी उमर वाली और एक दो तो मुझसे भी छोटी और अब भौजाइयां उनकी ओर मुड़ गयीं , और अब फिर चंदा भाभी और मेरे बीच वन टू वन ,

लेकिन हम लोगों ने इंटरवल कर लिया।

आँगन में ही मम्मी ने कल जो भांग वाली गुझिया ,दहीबड़े ,ठंडाई रखी थी हम लोग उधर ही मुड़ लिए , मैं और चंदा भाभी।

साथ में कुछ और भाभियाँ ,मेरी सहेलियां ,


मैंने चंदा भाभी को भांग वाली ठंडाई और गुझिया खिला के टुन्न कर दिया तो तब तक गुलबिया आ गयी और अब उस ने एक दो और घर में काम करने वालियों के साथ मिल के मुझे भी जबरदस्ती , दो गिलास ठंडाई ,...

आँगन हमारे घर में कच्चा था , और होली के रंग से कीचड़ हो जाता था।

बस चंदा भाभी ने वहीँ मुझे धक्का दे कर गिरा दिया, और मेरे ऊपर सवार हो के




क्या कोई मर्द ,जैसे उनकी गुलाबो मेरी चुनमुनिया पे धक्के पे धक्के मार रही थी , अपनी बुररानी से मेरी चूत कुमारी पे वो जिस तरह घिस्से लगा रही थीं ,

और जब मैं झड़ने के कगार पे होती तो वो रोक देतीं और चिढ़ाते हुए कहतीं ,

"अरे छिनार इसी लिए कहती हूँ ,ज़रा मेरे सैयां का धक्का खा ले , पहले दिन से ही पूछ रही हैं मुझसे , भैय्या ने कैसे चढ़ाई की। पता चल जाएगा। अरे उनका लम्बा भी ,मोटा भी है ,कड़क भी , आज होली का दिन है आज तो सब चलता है। "

और फिर मेरी कच्ची अमिया पकड़ के , और



साथ में गुलबिया भी बगल से कीचड़ उठा के मेरी चूँची पे रगड़ रही थी और मेरी रगड़ाई में भी चंदा भाभी का साथ दे रही और उन की बात में भी ,

" सही तो कह रही हैं , अरे तोहरे भैय्या का भी स्वाद बदल जाएगा न और होली में तोहरे बुरियो क भूख मिट जायेगी। "




लेकिन कुछ देर में जिधर ,मम्मी चाची और मौसी बुआ की रगड़ाई कर रही थीं ,सारी लड़कियां औरतें उधरी ,गुलबिया भी हम दोनों को छोड़ के ,...

खूब जोर से हो हो हो, हो रहा था।

फिर चन्दा भाभी ने हाथ पकड़ के मुझे उठाया और मैं भी उधर उनके साथ साथ।


बूआ आँगन के कीचड़ में लथपथ लेटी ,मिश्राइन चाची , मेरी मौसी उन्हें कस के पकड़े ,दबोचे , और मम्मी बुआ की खुली फैली जाँघों के बीच। उनकी दो उंगलिया बूआ की बुर में ,और फिर उन्होंने जब वो ऊँगलीया निकाल के अपनी कलाई से अपनी चूड़ियां निकालनी शुरू को तो हो हो का जोर बहुत तेज हो गया।

लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया।

अब मेरी छोटी चाची भी मैदान में आगयी थीं , बुआ की दोनों जाँघे कस के उन्होंने फैला रखी थी ,और आखिर बूआ उनकी भी तो ननद थीं।




अपने साथ वो कड़ुआ तेल ( सरसों का तेल ) की एक बोतल भी ले आयी थी और बुआ की बुर फैला के धीमे धीमे उसमे चुआ रही थीं।

मिश्राइन चाची और मौसी ने मिल के बूआ के दोनों हाथ , बुआ के ही फटे ब्लाउज से बांध दिए और अब मौसी मेरी जम कर बुआ के जोबन रगड़ मसल रही थीं ,कभी उनके खड़े निपल झुक के काट लेतीं।

मम्मी ने चूड़ी सब उतार दी थी अपने दाएं हाथ की , और अब वही सरसों की तेल की बोतल चाची के हाथ से लेकर अपने हथेली में खूब , फिर अपना हाथ ऊपर कर के धीरे धीरे तेल टपकाया और अब न सिर्फ उनकी हथेली , बल्कि कलाई से लेकर कोहनी तक तेल में सराबोर।

हल्ला खूब जोर से हो रहा था , खास तौर से भाभियाँ , हर उम्र की जोर जोर से शोर कर रही थीं।

मम्मी ने चूड़ी सब उतार दी थी अपने दाएं हाथ की , और अब वही सरसों की तेल की बोतल चाची के हाथ से लेकर अपने हथेली में खूब , फिर अपना हाथ ऊपर कर के धीरे धीरे तेल टपकाया और अब न सिर्फ उनकी हथेली , बल्कि कलाई से लेकर कोहनी तक तेल में सराबोर।

हल्ला खूब जोर से हो रहा था , खास तौर से भाभियाँ , हर उम्र की जोर जोर से शोर कर रही थीं।

मम्मी ने पहले तो सबकी ओर मुस्करा के देखा फिर तेल लगे हाथ की चार उँगलियाँ सबको दिखायीं ,

लेकिन भौजाइयां जोर से चिल्लाई ,नहीं नहीं ,और और।

मम्मी ने पांचो उँगलियाँ दिखाई लेकिन फिर शोर हुआ ,और और।

अबकी मम्मी ने मुट्ठी बाँध के दिखायीं और भाभियों ने सर आसमान पे उठा लिया।

इस हल्ले गुल्ले का फायदा उठा के धकियाते , चन्दा भाभी मुझे ले के सबसे आगे एकदम रिंग साइड में पहुँच गयी थीं।मम्मी ने मुड़ के मुझे और चंदा भाभी को देखा और जोर से मुस्करायीं।

मम्मी ने अपनी बंद मुट्ठी वाले दाएं हाथ को हवा में लहराते हुए ,दूसरे हाथ से अपनी कलाई को पकड़ के इशारा किया ,

जैसे पूछ रही हो क्या यहाँ तक ,

और सारी भाभियों ,चाचियों ,गाँव की औरतों ने जोर से हो हो किया , हाँ हाँ के साथ ,

लेकिन चंदा भाभी ने बोला नहीं

और मम्मी की निगाह नयकी भौजी पर ,

नयकी भौजी की बायां हाथ हवा में था ,बंद मुट्ठी के साथ और जैसे ही मम्मी ने उनकी ओर देखा ,

कुहनी की ओर इशारा कर के वो बोलीं ,यहां तक।

और फिर एक बार जोर से हो हो ,

( मेरी भौजी का दायां हाथ तो मेरी फ्राक के अंदर था ,मेरी चुनमुनिया को मसलते रगड़ते। )

मम्मी जोर से मुस्करायीं और एक बार फिर बुआ की खुली जाँघों की ओर मुड़ के जोर से बोलीं ,

" आज कोई स्साली छिनार नंनद बचनी नहीं चाहिए , कच्ची जवानी से अपने भइया से ,हमारे सैयां से चुदवाती हैं आज ज़रा भौजी से भी चुदवाने का मजा ले लें ,"

और जोर से हो हो हुआ ,

और मुझे लगा की मम्मी ने शायद मुझे और चन्दा भाभी को कनखियों से देखा , और चंदा भाभी ने गच्चाक से अपना अंगूठा मेरी चुनमुनिया में पेल दिया।

जोर से मेरी चीख और सिसकी दोनों निकल गयी।

चन्दा भाभी का एक हाथ अब मेरे खुले बूब्स पर और दूसरा नीचे , हम लोग एक मम्मी के पीछे

और बाकी ननदों की हालत मुझसे अच्छी नहीं थी , कई कच्ची टिकोरों वाली पर तो एक साथ दो दो भाभियाँ ,एक से एक गन्दी गालियां ,




पर हाथ जो चाहे कर रहे हों ,निगाहें सबकी बूआ की खुली जाँघों और मम्मी के दाएं हाथ पर टिकी थीं।

अबकी सीधे तीन ऊँगली हचक के मम्मी ने बुआ की बुर में पेल दीं।



और बूआ की बुर से भी तेल एकदम टपक रहा था ,सटाक से उनकी बुर से तीन उँगलियाँ घोंट ली।

कुछ देर तक मम्मी वो तीन उंगलिया ,बुर के अंदर गोल गोल , फिर उन्होंने जब आलमोस्ट पूरा बाहर निकाला तो चौथी ऊँगली भी थोड़ी से मोड़ के पहली, पहली तीन उँगलियों पर और अबकी धीरे धीरे ठेलते हुए ,

बिचारी बुआ कसमसा रही थी ,चूतड़ पटक रही थीं पर

हाथ उनके बंधे

दोनों जुबना उनकी भौजाइयों ,मेरी मौसी और मिश्राइन चाची के कब्जे में

और मेरी चाची उनकी छोटी भाभी ने कमर नीचे कस के पकड़ रखा था।

और देखते देखते वो चारो उंगलिया अंदर और एक बार फिर मम्मी गोल गोल घुमाती रहीं और अब जब निकला हाथ उनका तो चारों उँगलियाँ फैली ,

फिर उन्होंने पूरी ताकत से वो चारों एक साथ पेली और बुआ चीख पड़ी।

और फिर जोर से हो हो ,

" अरे चीखने दे स्साली ननदों को , जब हम सबकी फटी तो इन्होने खूब मजे लिए थे , "

दूबे चाची की आवाज गूँज गयी।


चार पांच मिनट तक बुआ चार ऊँगली से चुदती रहीं , और जब उनकी बुर को चार ऊँगली की आदत पड़ गयी तो उसे आलमोस्ट बाहर निकाल के मम्मी ने अपना अंगूठा ,

जैसे चूड़ी पहनाने वाली कुँवारियों की कलाई में ,सब उँगलियों को मोड़ के ,बातों में उन्हें भुला के ,

बस उसी तरह मम्मी ने अपने सारी उँगलियाँ सिकोड़ ली ,एक के ऊपर एक और फिर अंगूठा भी और

जैसे कोई चूड़ी वाला ढक्कन घुमाये ,

गोल गोल घुमाते हुए , बिना जल्दी किये

और उँगलियों के एक पोर , फिर कुछ देर में दूसरे पोर तक

लेकिन मामला अटक गया ,नकल्स

दो तिहाई उँगलियाँ अंदर थीं।

शोर खूब हो रहा था ,

फाड् दो ननद स्साली की।

मम्मी प्रेस कर रही थीं ,पुश कर रही थीं लेकिन वही नक्लस जा के अटक रहे थे।

" फाड़ दो ,पेल दो ,ठेल दो ,.. "

खूब जोर जोर से शोर हो रहा था।

मम्मी ने अपनी छोटी बहन की ओर ,मेरी मौसी की ओर देखा ,फिर अपनी देवरानी ,मेरी चाची की ओर ,

एक साथ दोनों ने निपल्स और क्लिट पिंच किये ,बल्कि नोंच लिए ,बुआ दर्द से चीख पड़ीं ,

और मम्मी ने मौके का फायदा उठा कलाई की पूरी ताकत का जोर लगाया

और नक्लस अंदर ,

बुआ अबकी और जोर से चीख पड़ीं ,पर मम्मी मुस्कराते बिना रुके पेलती रहीं ठेलती रहीं।

और थोड़ी देर में पूरी मुट्ठी अंदर

गाँव की भाभियों का शोर आसमान छू रहा था।





बूआ जोर से चीख रही थीं लेकिन उस शोर के आगे ,

मौसी ने कचकचा के बूआ के गाल झुक के काट के कहा ,

" अरे भूल गयी ,एही आंगन में पिछली बार जब तुम होली में आयी थी , दोनों तेरे सगे भाइयों ने हचक ह्च्चक के तोहार बुरियो चोदी थी और गंडियों मारी थी , भउजइयन के सामने "

मम्मी ने आधे एक ज्यादा मुट्ठी बाहर निकाल के , एक झटके में कलाई तक पेल दी और बोलीं





" अरे उ भउजाई कौन जो होली में ,ननद को ओकरे भैय्या से न चोदवावे। जबतक हचक हचक के एह गाँव क लौंडियन अपने भैय्या का लंड न घोंट लेती उनको चैन नहीं मिलता। "




मम्मी की आँखे अबकी सीधे मुझको दबोचे चंदा भाभी पे टिकी थीं ,

मुस्कराती ,चिढ़ाती उकसाती


और चंदा भाभी ,हमार नयकी भौजी ने जैसे जवाब में अबकी दो ऊँगली एक साथ मेरी चूत में , ...

कोई ननद नहीं होगी जिसकी बुर में भौजाइयों की उँगलियाँ न घुसी हों ,ज्यादातर के तो आगे पीछे दोनों ओर।




" अरे शाम को आओगी न ननद रानी हमारे घर या डराय गयी ,.. " चंदा भाभी ने उस शोर में धीरे से मेरे कान में पूछा।




" अरे भाभी डरूंगी किससे ,.. " हँसते हुए मैं बोली।

दिन में औरतों की होली हमारे घर में होती थी ,औरतें लड़कियां सब ,बारह एक तक और शाम को ननदे अपनी भाभियों के यहां सूखी होली खेलने ,अबीर गुलाल ,होली मिलने ,

" यही तो वो बोल रहा था की बोल देना हिम्मत है तो आ जाए , ... " फिर कुछ रुक कर बोलीं ,

" आएगा शाम को वो ,.. "

पहले तो मेरे कुछ समझ में नहीं आया , कौन ,... वो कौन ,.. जो मुझे मेरे ही गाँव में चैलेन्ज कर रहा था।

फिर मैं समझ गयी , हँसते खिलखिलाते बोली ,




" वो , वो स्साला , ... स्साला चुन्नू ,... अरे भाभी उससे डरूंगी ,.... तब तो जरूर आउंगी ,और उसकी लूंगी भी , ,... "

चुन्नू ,भाभी का भाई थोड़ा शरमीला , मुझसे बस दो तीन साल बड़ा ,पिछले साल बी एस सी में गया था। मेरे भाई का साला तो बस मैं तो उसे स्साला कह के ही बुलाती थी। उसके शर्मीलेपन से मैं भाभी को भी चिढ़ाती थी ,

" भाभी ये चुन्नू है की चुन्नी , मुझे तो पूरा शक है ,... "

" खोल के देख ले न ,... "


चंदा भाभी कौन चुप रहने वाली थीं।

" अरे भाभी पास जाने से तो छुई मुई की तरह दुबक जाता है अगर खोलने की कोशिश भी करुँगी न , तो इस गाँव के आसपास भी बेचारा नहीं फटकेगा। "

खूब गोरा चिकना ,

उसके सामने मैं ,भाभी से उसके गाल पे हाथ फ़िराक़े कहती

" भाभी इसके लिए भी लड़का ढूंढना शुरू करिये न ,अरे लड़के का नाम रखने से ही कोई लड़का थोड़े ही , ... बल्कि इस गाँव में ही ,इतने लड़के हैं जइसे पंसद आ जाय।

और चुन्नू शरम से बीर बहुटी।



बीस पच्चीस मिनटों तक मम्मी ,


फिर उन्हें निहुरा के मौसी ने अपनी मुट्ठी,....





बुआ को कुतिया बना के ,..




सब भाभियाँ ननदों को बदल बदल के




लेकिन मैं तो अपनी नयकी भाभी के साथ।

कपडे तो कब के फट गए थे , ननदों के भी भाभियों के भी , और रंग सीधे नए आये कच्चे टिकोरों पर ,

भाभियों के गदराये जुबना पर




तीन चार घंटे खूब मस्ती ,और उसके बाद वहीँ आंगन में रंग धुले गए , फिर सब लोग अपने घर।


थोड़ी देर बाद मैं भी तैयार हो रही थी ज्योती के घर जाने के लिए ,

परमिशन आसानी से मिल गयी ,गाँव में इतनी पाबंदी भी नहीं होती , फिर ज्योति में बचपन की सहेली और गाँव भी उसका बगल में ,एक किलोमीटर भी नहीं होगा , और पगडंडी , अमराई के रास्ते तो और नजदीक

और आज की होली के बाद तो ,...मैं सब समझ रही थी की मेरे कहने के पहले ही मम्मी ,मौसी बुआ सबने एक साथ हाँ क्यों बोल दीं बल्कि बुआ तो पीछे ही पड़ी थी मैं जल्दी जाऊं ,

पहले तो सिर्फ फूफा जी आने वाले थे ,मम्मी ,चाची के और मौसी के भी मम्मी के रिश्ते से ननदोई।

लेकिन अब पता चला की मौसा जी भी आयंगे अपने एक एक दोस्त के साथ , तो बस मामला तय होगया। मम्मी मौसी की सीक्रेट प्लानिंग ,एक बारफिर बुआ की सैंडविच बनवाएंगी , मौसा जी और उनके दोस्त से. और वैसे भी मौसा जी मम्मी के जीजा थे तो उस रिश्ते से बुआ के भाई ही तो लगते थे।

इसलिए मौसी जी ने ये भी बोल दिया की तुझे शाम को होली वोली मिलने जाने हो तो उधर से ही हो लेना ,अगर एक बार घर आगयी और अपने भौजाइयों के चक्कर में फंस गयी तो नहीं निकल पाएगी।

चंदा भाभी के यहाँ तो जाना ही था , वो स्साला ,साला आ रहा था और उसकी तो मुझे कस के लेनी थी।

हाँ कपडे पर जरूर ,बुआ जी तो ,... इसलिए मैं शलवार सूट पहन के ,... होली के लिए ही सिलवाई थी ,





कुर्ती छोटी सी ऊपर से खूब टाइट , एकदम छलकते रहते मेरे छोटे छोटे उभार , हाँ दुपट्टा जरूर मैंने ओढ़ लिया थी की घर में कोई टोके और उस से भी बढ़ के उस कुर्ती के टाइट होने पर ,...

पर घर के बाहर जो हम लोगों का कुंआ था वो भी मैंने नहीं पार किया और चुन्नी एकदम गले से चिपक गयी।

मेरी आँखों के सामने अभी भी सुबह की होली मेरे आंगन की ,

बुआ की बुर में मुट्ठी तो बस शुरुआत ,जो मैं सोच सकती थी वो भी और जो सोच नहीं सकती थी

बुआ की दुर्गत सबसे ज्यादा ,लेकिन मैं ही कौन बची। सारी भौजाइयों ने मेरी चाटा भी और चटवाया भी। गुलबिया 'आउट आफ आर्डर ' थी लेकिन उस ने अपनी सहेली उस पानी भरने वाली कंहारन को चढ़ा दिया मेरे ऊपर , " तानी आज एकरे कुंआ क पानी पी क देखो। "

जबतक मैंने झाड़ के उसकी बुर लथपथ नहीं की तब तक वो चढ़ी रही और दो भौजाइयां एक साथ मेरी गुलाबो के पीछे ,

और चंदा भाभी तो बस अपने मर्द को मेरे ऊपर चढ़ाने के लिए बेताब पर एक भौजी जो उम्र में मुझसे १० साल बड़ी रही होउंगी ,उन्होंने ललकार लिया

" समझत का हो , हमार ननदी के , काहें खाली तोहार मरद , अरे हमार गाँव के जेतना हमार देवर हैं , खाली तोहार पुरवा न ,चमरौटी ,भरौटी ,ग्वाल टोला सब , एको लौंडा बचा न अगली होली तक तो सोच ला , .. जउन तोहार बुआ क हालत भय बा ओहु से , उनकर तो खाली मुट्ठी ,.... तोहरा तो हम कोहनी तक पेलब। "

" सोच लो अपने भाइयों का लौंड़ा घोंटना है की ,भौजाइयों की कोहनी तक ,... "


हँसते हुए चंदा भाभी बोलीं ,और जवाब मेरी मौसी ने दिया।

" अरे यह गाँव क तो कुल ननद छिनार कुंवारे क भाइचोद हैं। "


मौसी के हाथ बुआ के जोबन रगड़ मसल रहे थे।

अभी तक मैं सामू ,जुगनू ,संदीप के साथ लेकिन ,गाँव के किसी लौंडे के साथ ,... हालाँकि लाइन मारने वालों की कमी नहीं थी।
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