जोरू का गुलाम या जे के जी

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kunal
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जोरू का गुलाम भाग ४६

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जोरू का गुलाम भाग ४६



" अरे भाई बहन मिलकर अकेले अकेले खूब मस्ती कर रहे हो "

मंजू बाई थी ,पीछे का दरवाजा उसने न सिर्फ बंद कर दिया था ,बल्कि ताला भी लगा दिया था।

मैं और गीता दोनों उसे देख के खड़े हो गए ,लेकिन गीता के हाथ में अभी भी मेरा खूँटा था ,खड़ा ,एकदम खुला। और मंजू बाई की आँखे वहीँ अटकी पड़ी थीं।

" झंडा तो खूब मस्त खड़ा किया है " मंजू बाई बोली।

"आया न पसंद मेरे भैया का ,देख कितना लंबा है कितना मोटा और कड़ा भी कैसा ,एकदम लोहे का खम्बा है। " गीता खिलखिलाती ,मेरे लन्ड को मुठियाती ,मंजू बाई को ललचाती बोली।


" नम्बरी बहनचोद लगता है , अपनी बहन से लन्ड ,... " मंजू बाई ने बोलना शुरू किया था की गीता बीच में बोल पड़ी।





" लगता नहीं है , है नम्बरी बहनचोद।

लेकिन मेरा इत्ता प्यारा भैया है , मक्खन सा चिकना , फिर भाई बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा। लेकिन तेरी काहे को सुलग रही है माँ , मेरा भइया नम्बरी मादरचोद भी है।

अभी देखना तेरे भोंसडे को ऐसा कूटेगा न ,की बचपन की भी चुदाई तू भूल जायेगी , जो मेरे मामा के साथ ,... लेकिन ये बता तू इतनी देर गायब कहाँ थी। "


तबतक आसमान में बदलियों ने चाँद को आजाद कर दिया और चाँद आसमान से टुकुर टुकुर देख रहा था , एकदम मेरी तरह , जैसे मैं मंजू बाई को देख रहा था।



बल्कि उसके स्तन ,खूब बड़े बड़े कड़े , अभी आँचल में थोड़ा छिपे ढके थे ,लेकिन न उनकी ऊंचाई छिप पा रही थी , न उनका कड़ापन। शाम को इन्ही जोबनों ने कितना ललचाया तड़पाया था मुझे।



मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।

" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ



मंजू बाई जिस तरह से बोल रही थी ,लग रहा था कुछ है उसके मुंह में और उसके जवाब से उसकी बात साफ़ भी हो गयी।

" अरे अपने मुन्ने के लिए पलंग तोड़ पान लाने के लिए गयी थी। डबल जोड़ा ,दो घंटे से मुंह में रचा रही हूँ। "



डबल जोड़ा ,मतलब चार पान ,और पलँग तोड़ पान एक ही काफी होता है झुमा देने के लिए। सुना मैंने भी बहुत था इसके बारे में की ननदें सुहाग रात के दिन अपनी भाभी को ये पान खिला देती हैं और एक पान में ही इतनी मस्ती छाती है की वो खुद टाँगे फैला देती है। और मरद के ऊपर भी ऐसा असर होता है की , एक पान में ही रात भर सांड बन जाता है वो ,



लेकिन पान मैं खाता नहीं था , शादी में कोहबर में भी मैंने पान खाने से साफ़ मना कर दिया था। और अभी भी , आज तक कभी भी नहीं ...

लेकिन न मुझे ज्यादा बोलने का मौक़ा मिला न सोचने का , गीता ने मुझे छोड़ दिया और मंजू बाई ने दबोच लिया जैसे कोई अजगर ,खरगोश को दबोच ले , बिना किसी कोशिश के ,


और सीधे मंजू बाई के पान के रंग से रंगे ,रचे बसे होंठ सीधे मेरे होंठों पर।



बिना किसी संकोच के वो अपने होंठ मेरे होंठों पे रगड़ रही थी और साथ में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे खुले नंगे सीने पर।

इस रगड़ा रगड़ी में उसका आँचल खुल कर नीचे ढलक गया और वो वही ब्लाउज पहने थी जो शाम को , एकदम देह से चिपका , पारभासी ,खूब लो कट। गोलाइयाँ गहराइयाँ सब कुछ चटक चांदनी में साफ दिख रही थीं।


जानबूझ कर अब वो अपनी छाती मेरे खुले सीने से जोर जोर से रगड़ रही थी।

मंजू बाई को मालूम था उसके जोबन का जादू , और मेरे ऊपर उस जादू का असर।

लेकिन उस रगड़घिस में दो चुटपुटिया बटन चट चट कर खुल गयी और उसकी गोलाइयों का ऊपरी भाग पूरी तरह अनावृत्त हो गया।

मैं उस जादूगरनी की जादू भरी गोलाइयों में खो गया था और मौके का फायदा उठा के उसने मेरे होंठो को नहीं नहीं चूमा नहीं ,सीधे कचकचा के काट लिया।

मेरा होंठ अब मंजू बाई के दोनों होंठों के बीच कैद कभी वो चूसती चुभलाती तो कभी कस के अपने दांत गड़ा देती।

दर्द का भी अपना एक मजा होता है।





और एक ही एक बार जब उसने कस के कचकचा के काटा , तो मेरा मुंह दर्द से खुल गया, बस मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर , और साथ में पान के अधखाये ,कुचले ,चूसे थूक में लिपटे लिथड़े टुकड़े मेरे मुंह में।

मैं बिना कुछ सोचे समझे , मंजू बाई की रसीली जीभ को पागल की तरह चूस रहा था , और मंजू अब खुल के अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी।


उसका एक हाथ मेरे सर पे था ,कुछ देर बाद मंजू बाई ने मुझे थोड़ा पीछे की ओर झुका दिया , दूसरे हाथ से मेरे गाल दबा के मेरा मुंह पूरी तरह खोल दिया और


मेरे खुले मुंह के ठीक ऊपर , आधा इंच ऊपर उसके होंठ और उसने होंठ खोल दिए ,


मंजू बाई के मुंह में दो घंटे से रस रच रहे पान की ,


एक तार की तरह लाल ,धीरे धीरे उसके मुंह से मेरे खुले मुंह में।

मैं हिल डुल भी नहीं सकता था ,न हिलना डुलना चाहता था।

धीमे धीमे मंजू बाई के मुंह से पान का सारा रस , उसकेथूक में लिथड़ा ,लिपटा सीधे मेरे मुंह में

और अब मंजू बाई ने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका कर एकदम सील कर दिया।


मंजू बाई की जीभ मेरे मुंह के अंदर उन खाये हुए पान के टुकड़ों को ठेल रही थी ,धकेल रही थी अंदर। जब तक पलंग तोड़ पान का रस मेरे मुंह के अंदर , मेरे पेट के भीतर नहीं घुस गया , मंजू के होंठ मेरे होंठों को सील किये हुए थे।


वो तो गीता ने टोका ,

" अरी माँ सब रस क्या अपने बेटे को ही खिला दोगी ,बेटे के आगे बिटिया को भूल गयी क्या। "

मंजू बाई ने मुझे छोड़ दिया और गीता को उसी की तरह जवाब दिया।

" अरी छिनार, अभी तो भैया भैया कर रही थी ,ले लो न अपने भैया से। "

मंजू के छोड़ने के बाद मैं गीता के बगल में ही बैठ गया था।

गीता बड़े ठसके से मेरी गोद में आके बैठ गयी और अपने दोनों कोमल कोमल हाथों से मेरा सर पकड़ के अपने रसीले होंठों से मेरे होंठ दबोच लिए और अब मेरे होंठो से रिसता हुआ पान का रस गीता के मुंह में।

हम दोनों के कपडे देह से अलग हो चुके थे।

गीता अपने किशोर भारी भारी नितम्ब मेरे खड़े लन्ड पे रगड़ रही थी ,कान में बोली ,


" भैया हम दोनों के कपडे तो कब के , और माँ अभी भी वैसे ही ,चल हम दोनों मिल के उसे भी अपनी तरह से ,... "


मंजू बाई को कुछ कुछ हमारी शरारतों का अन्द्दाज लग गया था ,वो बोली ,

" भाई बहन मिल के क्या बातें कर रही हो। "

तब तक उठ के हम दोनों मंजू बाई के आगे पीछे खड़े हो गए थे।

गीता ने उसकी साडी पेटीकोट से अलग किया और लगी खीचने ,मैंने सीधे ब्लाउज की बची खुची बटनों पर घात लगायी।


वो दोनों पहाड़ जिनका मैं दीवाना था , पल भर में ब्लाउज से बाहर।



लेकिन गीता ने उनका मजा लेने का मौका ही नहीं दिया।

वो जवान छोकरी ,ताकत से भरपूर , उसने पीछे से मंजू बाई के दोनों हाथ दबोच लिए थे , मुझसे बोली ,

" भैय्या, माँ का नाड़ा , ... "

और मेरा हाथ पेटीकोट के नाड़े पर पहुंचता उसके पहले ही मंजू बाई बोल पड़ी ,मुझे चिढाते ,

" क्यों खोला है कभी माँ का नाड़ा ? "

और जवाब मेरी ओर से गीता ने दिया ,

" अरे बहुत बार , समझती क्या है मेरे भैया को। पक्का मादरचोद है ,माँ के भोसड़े का दीवाना। नाड़ा खोलने की प्रैक्टिस ही वहीँ की है। "

और मैंने नाडा खोल दिया , सरसराता हुआ मंजू बाई का पेटीकोट उसके टांगों के नीचे ,गीता ने झटके से उसे दूर फेंक दिया और अब मंजू बाई भी हम दोनों की तरह हो गयी।


अंदर और बाहर के दरवाजे में ताला बंद ,

आंगन में मैं ,मंजू बाई और गीता , रात अभी शुरू हुयी थी।


चांदी की हजार घंटिया फिर घनघनाई , गीता की हंसी।

" अब हुए न हम तीनो बराबर , माँ , मैं तुम और भैया। "

" एकदम " हंसी में शामिल होकर उन्होंने भी सहमति जताई।

" एकदम नहीं ," मंजू बाई को मंजूर नहीं था ,वो बोली , " अरे तुमने अकेले मेरे मुन्ने का मजा लिया ,उसे चुसाया ,उसका चूसा ,... "

लेकिन उनकी बात गीता ने बीच में काट दी ,

" अरी माँ तेरी क्यों झांटे सुलग रही हैं , तू भी अपना भोंसड़ा चुसवा ले न ,तब तक मैं भैया का मोटा रसीला गन्ना चूसती हूँ। "



" एकदम नहीं ," मंजू बाई को मंजूर नहीं था ,वो बोली , " अरे तुमने अकेले मेरे मुन्ने का मजा लिया ,उसे चुसाया ,उसका चूसा ,... "

लेकिन उनकी बात गीता ने बीच में काट दी ,

" अरी माँ तेरी क्यों झांटे सुलग रही हैं , तू भी अपना भोंसड़ा चुसवा ले न ,तब तक मैं भैया का मोटा रसीला गन्ना चूसती हूँ। "

और ये कह के उस शोख ने मुझे ऐसे धक्का दिया की , बस मैं चटाई के ऊपर। गीता मुझसे बोली ,

" भैया, माँ के भोंसडे में बहुत रस है , ज़रा जम के चूसना।“



और मंजू बाई की मोटी तगड़ी मांसल चिकनी जाँघे सँड़सी की तरह मेरे सर के दोनों ओर एकदम कस के दबोचे ,सूत बराबर भी नहीं हिल सकता था मैं।

और फिर अपने दोनों हाथों से भी मंजू बाई ने मेरा सर कस के पकड़ रखा था , मंजू बाई के दोनों घुटने मेरे दोनों हाथों पर ,

और अपना भोंसड़ा मेरे मुंह पे रगड़ती वो बोली ,

" ले चूस कस कस के अपनी बहन के यार , "



गीता एकदम मुझसे सटी ,चिपकी ,मेरे पैरों के बगल में मेरे 'मूसलराज ' को छेड़ रही थी ,



अपने लाल परांदे से कभी उनके खड़े तन्नाए मूसल को सहला देती तो कभी रगड़ देती , फिर उसने अपनी लंबी काली मोटी चोटी उनके मोटे खड़े लन्ड के चारो ओर ,नागपाश ऐसे बांध कर एकदम कस के ,झुक के खुले सुपाड़े को अपनी लंबी जीभ से लप्प से चाट लिया।

मंजू बाई की बात सुन के तपाक से वो बोली



" अरी माँ तुझे क्यों मिर्च लग रही है , अगर मेरा प्यारा प्यारा भैय्या अपनी बहन का यार है तो तू भी भी इसे बना ले न माँ का खसम , अरे ये पैदायशी मादरचोद है। अभी देखना कैसे माँ ,तेरा भोंसड़ा कूटेगा। "

और फिर गप्प से गीता ने सुपाड़ा अपने रसीले मुंह में लीची की तरह भर लिया और लगी चूसने ,कस कस के।



उन्हें गीता नहीं दिख रही थी ,सिर्फ मंजू बाई की कड़ी कड़ी बड़ी बड़ी चूंचियां नजर आ रही थीं।


मंजू बाई का चिकना पेट , गहरी नाभी और खूब घनी काल काली झांटे , ... और मंजू बाई अपना भोंसड़ा उसके मुंह पे ऐसे रगड़ रही थी ,जैसे उसका मुंह चोद रही हो।


लेकिन वो भी नम्बरी चूत चटोरे , उन्होंने अपने दोनों हाथो से उसकी बुर की बड़ी बड़ी फांकों को दबोच लिया और लगे पूरी ताकत से चूसने।


पुराने चूत चटोरे , कुछ ही देर में जीभ कभी ऊपर से नीचे तक तो कभी आगे से पीछे ,



और गीता की आवाज सुनाई पड़ी ,

" क्यों मजा आ रहा है न माँ के भोसड़े में मुंह मारने में , माँ के खसम , मादरचोद। "

गीता दिख नहीं रही थी लेकिन उसकी हरकतें उन्हें पागल कर दे रही थीं।

गीता के किशोर रसीले होंठ पूरी ताकत से सुपाड़ा चूस रहे थे , साथ में गीता की मांसल जीभ नीचे से लपड़ लपड़ सुपाड़े को चाट रही थी।





और गीता के दोनों शोख शरारती हाथ ,एक तो उसके बॉल्स के पीछे ही पड़ गया था। कभी उसे सहलाता ,कभी हलके हलके दबाता तो कभी गीता की दुष्ट उंगलिया , बॉल्स और पिछवाड़े के छेद के बीच रगड़ घिस करता। दूसरे हाथ की उंगलियां कभी खूंटे के बेस पर दबाती तो कभी उसके लंबे नाख़ून कड़े खूंटे को रगड़ देतीं ,स्क्रैच कर लेतीं।

मस्ती के मारे वो बार बार चूतड़ उचका रहे थे।

और ऊपर से गीता के कमेंट ,

" बड़ा मजा आता होगा न माँ के भोंसडे को न जो इत्ता मोटा लन्ड जम के कूटता होगा उसे। "


और इधर मंजू बाई भी ,

उसकी बुर की फांके दसहरी आम की फांको से कम रसीले नहीं थे। वो खुद धक्के मार के उनके मुंह पे ,उन्हें चटवा रही थी।



क्या कोई मर्द धक्के मारेगा , उन्होंने एक कभी गे फिल्म देखी थी जिसमें एक लौंडा ,एक मर्द का मोटा लन्ड चूस रहा था ,और वो उसके मुंह में जोर जोर से धक्के मार मार के लन्ड पेल रहा था।


एकदम उसी तरह ,

मंजू बाई उस मर्द को भी मात कर रही थीं ,दोनों हाथ से उनके सर को पकड़ के जबरदस्त उनके होंठों पे अपना मखमली रसीला भोंसड़ा रगड़ ऐसे ही जबरदस्त रगड़ रही थीं ,उनके खुले मुंह के अंदर ठेल रही थीं। पूरी ताकत से ,पूरे जोश से,...

और उनको भी उस जोर जबरदस्ती में मजा आ रहा था, जिस ब्रूट तरीके से मंजू बाई उनके बाल पकड़ के खींच रही थी,अपने बड़े बड़े मोटे चूतड़ उठा उठा के धक्के मार रही थी, जिस जोर से मंजू बाई की तगड़ी मांसल जाँघों ने उन्हें दबोच रखा था ,और साथ में एक से एक गन्दी गालियां ,



" अपनी माँ के खसम ,माँ के यार ले चूस माँ का भोंसड़ा , चूस मादरचोद , अरे बचपन से तुझे भोंसड़ा का रस पिला के इत्ता बड़ा किया है , पेल दे जीभ अंदर मादरचोद , अरे देख अभी तुझसे क्या क्या चटवाती हूँ ,खिलाती हूँ , पहले भोंसड़ा का मजा ले ,फिर गांड का मजा दूंगी ,गांड के अंदर का भी चटवाउंगी ,चल चूस कस कस के , .... "



इधर मंजू बाई जितना जबरदस्ती हार्ड हाट थी उधर नीचे गीता उतनी ही साफ्ट और उतनी ही हाट ,


गीता के होंठ सुपाड़ा चूस चुभला रहे थे।

मन कर रहा था किसी तरह ,बस किसी तरह ,... उसके होंठ सरकते हुए पूरे लन्ड को गड़प कर लें और जोर जोर से वो चूसे ,झाड़ दे चूस चूस के।


लेकिन गीता ने अपने होंठ भी सुपाड़े पर से हटा लिया पर थूक की एक लड़ गीता के होंठों से निकल सरकती हुयी सीधे खूंटे पर ऊपर से नीचे तक , और उसी के पीछे गीता के रसीले किशोर होंठ , खूंटे पे रगड़ते , सीधे लन्ड के बेस तक बहुत धीमे धीमे और फिर जीभ की टिप गोल गोल चक्कर लन्ड के बेस पे चक्कर काटते,

वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे।

गीता ने अचानक अपने होंठों के बीच उनके पेल्हड़ की एक गोली ( बॉल्स ) दबा ली और लगी चुभलाने ,और उसके बाद दोनों बॉल्स ,





ये नहीं की उनका लन्ड आजाद हो गया था , गीता की शरारते कम नहीं थी , एक हाथ से कभी वो अपनी लम्बी चोटी उसपे रगड़ती ,सहलाती तो कभी कस के बाँध के रगड़ती , लन्ड की रगड़ाई और बॉल्स की चुसाई दोनों साथ साथ चल रहे थे।

साथ में बीच बीच में गीता के कमेंट्स कभी मंजू बाई से ,कभी उनसे

" क्यों माँ मजा आ रहा है न मेरे भैया से ,अपने खसम से भोंसड़ा चुसवा के, अरे माँ मैंने बोला था न ये तेरा यार बचपन का मादरचोद है ,माँ के भोसड़े का रसिया।

बोल न बहन का चूसने में ज्यादा मजा आ रहा था ,या माँ का चूसने में। "

लेकिन मंजू बाई भी चुप रहने वाली नहीं थी , मुंह तो उसका भी खुला था ,जवाब में बोली ,

" अरे भाई की रखैल तेरी क्यों सुलगती है , मेरी बेटी का भाई मेरा भी तो कुछ लगेगा , मेरा भी तो हक़ बनता है न उससे मजा लेने का। तू भी तो उसका लन्ड चाट रही है ,टट्टे चाट रही तो मेरी भी मर्जी मैं चाहे उससे बुर चटवाऊं ,चाहे गांड ,चाहे गांड के अंदर का , .. "


और उसी के साथ मंजू बाई के धक्के बढ़ गए , और वो भी,





एक नए तरह का नशा , भोंसड़ा उनके मुंह से एकदम चिपका रगड़ खाता,

एक अजब महक ,एक तेज भभका उनकी नाक में भर रहा था ,भोंसडे की महक ही उन्हें पागल कर रही थी।

उनके कान में उनके सास की बात गूँज रही थी ,

" बस एक बार चाट ले अपनी माँ का भोंसड़ा , मेरी गारंटी। वो मजा आएगा , वो स्वाद मिलेगा न तू खुद ही उसके पेटीकोट खोलने के लिए पीछे पीछे घूमेगा। "

एकदम सच थी उनकी बात ,


" बस एक बार जबरदस्ती चुसवाऊँगी , फिर तो तुम खुदे , .... तुझे जैसे अब आम का स्वाद लग गया है न बस एक बार जबरदस्ती करने से बस उसी तरह मां के भोंसडे का भी स्वाद लग गया न तो ,


सच में भोंसडे का स्वाद भी दसहरी आम की तरह खूब टैंगी टैंगी ,खट्टा मीठा ,एकदम पागल बना देने वाला स्वाद ,और ऊपर से मंजू बाई ने झुक के अपनी बुर की दोनों फांके फैला दी , बस इतना इशारा काफी था , उन्होंने पूरी जीभ अंदर ठेल दी।

उफ्फ्फ ओह्ह ,एकदम पागल बना देने वाला स्वाद , थोड़ा कसैला थोड़ा मीठा ,एक अलग ही मजा , और ऊपर से मंजू बाई ने कस के बूर भींच दी उसकी जीभ के उपर

भोंसडे की अंदरूनी दीवाल पर रगडती घिसती उनकी जीभ , वैसा मजा पहले कभी नहीं मिला

ऊपर से उकसाती हुयी गीता ,




" चूस ले भइय्या ,माँ का भोसड़ा ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा। " और उनके कान में गूंजती उनकी सास की बात ,




" अरे एक बार पटक के चोद दे न मेरी समधन को ,जिस भोंसडे से निकला है न चोद दे उसी भोंसडे को, देख खुद तेरे मोटे लन्ड का मजा लेने खुद वो ,... "

और सोच सोच के ,... जैसे कोई बौराया मर्द गौने की रात अपनी नयी नयी दुल्हन की कुँवारी चूत चोदे उसी तरह वो माँ के भोंसडे में अपनी जीभ हचक हचक के ,साथ में होंठ जोर जोर से भोंसडे का रस चूस रहे थे।



नीचे गीता के होंठ भी अब उनके गोलकुंडा के दरवाजे पे चक्कर काट रहे , कभी वो जीभ से गांड के किनारो को छेड़ देती , तो कभी हलके से सहला देती ,

और फिर अचानक जैसे कोई मस्त लौंडेबाज

किसी स्कूली लौंडे की नयी गांड को ,

निहुरा के जोर जोर से फैला के ,


बस उसी तरह से गीता ने अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से उनके गांड को चियार दिया , पूरा।

उसके पहले वो दो चार ढक्कन तेल गांड के अंदर पिला कर चिक्कन कर ही चुकी थी एक ऊँगली पूरी ताकत से पेल कर थोड़ा खोल भी चुकी थी ,





उस खुली गांड में गीता ने अपनी जीभ उतार दी। पहले तो ऊपर के किनारों पर चाटती रही ,फिर सीधे गांड के छल्ले के पार


क्या कोई मर्द गांड मारेगा ,जिस तरह गीता की जीभ ,

गोल गोल अंदर बाहर , ऊपर नीचे

वो चूतड़ पटक रहे थे , मचक रहे थे लेकिन गीता छोड़ने वाली नही थी और साथ में अब गीता के कोमल कोमल हाथों ने हलके हलके उनके बौराये लन्ड को मुठियाना भी शुरू कर दिया।






मंजू बाई के धक्के तेज हो गए थे ,और उसी के सुर ताल पर उनकी जीभ का चाटना , होंठों का चूसना।






एक बार फिर बादल घिर गए थे , आंगन में बस हलकी हलकी चांदनी छिटक रही थी ,हवा तेज हो गयी थी।

और मंजू बाई ने जोर से उनके बाल पकड़ के ,

" चोद साले चोद , चोद अपनी माँ का भोंसड़ा ,एक बार चाट के झाड़ दे तो देख तुझे माँ का भोसड़ा चुदवाऊँगी बहुत जल्द तुझे पक्का असली मादरचोद बना के रहूंगी ,, ओह्ह आह हाँ ऐसे ही चूस मुन्ना ,बेटा मेरा चूस कस के झाड़ दे झाड़ माँ का भोसड़ा , बहुत प्यासी है , ओह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह "

मंजू बाई तेजी से झड रही थी जैसे सावन भादो की बारिश , उसके रस से उनका मुंह चेहरा सब कुछ

और जब वो झड़ते झड़ते थेथर हो गयी तो उन्होंने मारे शरारत के अपने दांतो से हलके से मंजू का क्लीट


और वो एक बार फिर से दुबारा , बार बार मंजू बाई का भोसड़ा तेजी से पानी फेंक रहा था , उनका पूरा चेहरा भीगा हुआ था।

नीचे गीता ने भी उनकी गांड तेजी से अपनी जीभ से , सटासट सटासट ,




गीता की उँगलियाँ उनके सुपाड़े को रगड़ रही थी ,नाख़ून से उनके पी होल को छेड़ रही थी।


उन्हें लग रहा था अब गए तब गए ,

लेकिन तब तक झड़ कर थकी मंजू बाई उनकी देह से लुढ़क कर बगल में ढेर हो गयी।

वो झड़ने वाले थे ज्वालामुखी उफन रहा था ,

लेकिन गीता भी उन्हें छेड़ के अपनी माँ के बगल में लेट गयी।

कुछ देर तक वो तीनो चुपचाप लेटे रहे ,




लेकिन बात गीता ने ही शुरू की अपनी माँ को छेड़ते

" क्यों माँ बहुत मजा आया ,मेरे भैया से चुसवाने में न "




" अरे छिनाल तू भी तो मजे ले ले के मेरे मुन्ने का अगवाड़ा पिछवाड़ा चूस रही थी पूरी ताकत से. "मंजू बाई ने गीता को चिढाया।

गीता और मंजू खिलखिलाने लगे और गीता बोलीं ,

" माँ तेरा रस कितना ज्यादा भैया के मुंह पर लगा है , देख तो। ज़रा मुझे भी चटा दे न ,बहुत दिन से रस नहीं चखा तेरी चूत का। "


" अरे तो चाट काहे नहीं लेती अपने भैया के मुंह पर से , बड़ी भैया वाली बनी फिरती है " मंजू बाई ने गीता को चढाया , और गीता झट से मेरे पास सीधे मेरी गोद में।


गीता के होंठ मेरे होंठों पर और फिर सिर्फ होंठों पर से नही बल्कि पूरे चेहरे पर से उसकी लपलपाती जीभ ने जो रस चाटा और साथ में गीता के बोल भी ,

" भैया ,मैं कह रही थी न माँ के भोंसडे में बहुत रस है , खूब मीठा गाढ़ा। "

बात गीता की एकदम सही थी पर अब मेरे होंठ ,पूरा चेहरा सिर्फ मंजू बाई के रस से ही नहीं बल्कि गीता के मुंह का रस भी पूरा लिथड़ गया था।

" अच्छा चल बहूत चूम चाट लिया मेरे मुन्ने को , अब अपने होंठ इधर कर देखूं मेरे बेटे के खजाने से क्या रस निकाला है , " मंजू बाई भी अब उन दोनों से सट के बैठ गयी थीं।

गीता ने अपने होंठ अपनी माँ की ओर बढ़ाते बोला ,




" सच में माँ बहुत मजा छिपा है तेरे बेटे के पिछवाड़े मस्त रस भरा है , " लेकिन फिर मुंह बना के बोली " लेकिन तेरे बेटे का पिछवाड़ा अभी तक कोरा है ,कच्ची कली है बिचारी। "

मंजू बाई के होंठों ने गीता के होंठों को गड़प कर ,गीता का मुंह बंद कर दिया। लेकिन मंजू बाई की ऊँगली पहले तो जैसे खड़े झंडे पे ,जैसे गलती से लग गयी ही ,टकरा गयी , और मंजू बाई का मुंह उसके कड़ेपन का अहसास कर चमक गया। फिर वो खोज बिन करती उंगलिया सीधे पिछवाड़े , गोलकुंडा के दरवाजे पे।

थोड़ी देर छेद की जांच पड़ताल करने के बाद चूतड़ थपथपाते मंजू बाई ने अपना फैसला सुना दिया ,

" बात तो तेरी एकदम सही है , ये अभी एकदम कोरी है ,लेकिन माँ का आशीर्वाद है , बहुत जल्द एक से एक मोटे लन्ड ,... अरे जिस लन्ड को घोंटने में चार बच्चे जनने वाली जनाना को , भोंसड़ी वाली को पसीना छूट जाये , वैसे गदहा छाप लन्ड ये हँसते मुस्कराते घोंट जाएगा। नम्बरी गांडू बनेगा ,मरवाने में अपनी माँ बहन का भी नंबर डकायेगा ये। "

गीता क्यों छोड़ती टुकड़ा लगाने से , बोली ,

" भैया ,इत्ते चिकने हो आप ,बच कैसे गए। एक बात बोल देती हूँ मैं ,जब घुसेगा न लन्ड पहली बार बहुत दर्द होगा , खूब गांड पटकोगे , लेकिन गांड का मरवैया भी न , फिर जब गांड का छल्ला पार होगा न इत्ता परपरायेगा , की .... लेकिन जब दो चार लन्ड घोंट लोगे तो खुद ही गांड में कीड़े काटेंगे ,गांड मरवाने के लिए अरे माँ का आशीर्वाद है गलत थोड़े ही होगा। "


मंजू बाई ने तोप का रुख अपनी बेटी की ओर मोड़ दिया ,

" अरे तू काहे नहीं मरवा लेती गांड मेरे बेटे से ,तेरी कौन सी कोरी है। "

" एकदंम मरवाउंगी माँ ,मेरा प्यारा भैया है ,लेकिन बस एक छोटी सी शर्त है मेरी जब मेरा भइया मरवा लेगा न उसके बाद " मेरे गाल सहलाते गीता ने अपना इरादा जाहिर कर दिया।

गनीमत था अब गीता और मंजू बाई एकदूसरे से संवाद में मगन हो गयीं थीं।
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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जोरू का गुलाम भाग ४७





" बुरचोदी , तेरे इन थनो से बहुत दूध छलकता रहता है न ,बहुत जुबना उठा उठा के चलती है न छिनार , देख आज अपने बेटे से कैसे इन्हें रगड़वाती मसलवाती हूँ .... दबा दबा के चूस चूस के ये सारा रस निकाल देगा तेरा। "





मंजू बाई ने गीता की कड़ी कड़ी किशोर चूँचियों को दबाते मसलते छेड़ा , फिर गीता क्यों छोड़ती उसने भी अपनी माँ की बड़ी बड़ी मस्त चूँचियों को पकड़ के रगड़ना शुरू कर दिया और चिढाया

" अरी माँ सच में ज़माना हो गया किसी मर्द का हाथ पड़े इन छातियों पे ,तरस गयी थी मैं ,

लेकिन अब देख आज तेरे बेटे से क्या क्या करवाती हूँ , क्या क्या कहाँ कहाँ का रस उसे पिलाती हूँ ,सीधे से नहीं पियेगा तो हाथ पैर बाँध कर ,

छोटी बहन हूँ थोड़ा जबरदस्ती का हक़ तो बनता है , लेकिन माँ मेरा भाई तेरी इन बड़ी बड़ी चूचियों का दीवाना है आज देख कैसे रगड़ रगड़ के इसका रस निकालता है वो , और वो तो बाद में रगड़ेगा पहले उसकी छोटी बहन से तो रगड़वा ले ,बचपन की सब चूची मसलाई भूल जायेगी। "

और गीता ने सचमुच इत्ती जोर जोर से ,

और जवाब में मंजू ने भी


क्या मस्त कन्या काम क्रीड़ा शुरू हो गयी थी।


किसी भी नीली पीली फिल्म से हॉट ,मस्त

फिल्मो में तो बहुत कुछ मशीनी ,व्यवसायिक ढंग से , ये फिर ,ये फिर ये ,...

लेकिन जो पैशन , जो जोश ,जो राग ,जो अनुराग ,जो आग यहाँ दिख रही थी ,न कहीं देखा न सूना।




गीता -नए नए आये जोबन से मदमाती , छरहरी ,किशोर,जोश में डूबी ,तगड़ी ,रस की पुतली।



मंजू बाई - बचपन की खेली खायी ,प्रौढा, भरी भरी देह ,गदराये ३८ डी डी वाले जोबन वाली , हर दांव पेंच में माहिर।








दोनों ने एक दूसरे को पकड़ रखा था ,दबोच रखा था इस ताकत से की लग रहा था की बस सारी हड्डी पसली टूट जायेगी।


देह से देह रगड़ती ,होंठ से होंठ रगड़ते ,

पहल गीता ने की , उसके नाजुक किशोर गुलाबी रस से छलकते होंठ , मंजू बाई के होंठों से सरकते फिसलते , सीधे बड़े बड़े कड़े कड़े जोबन पर

जोबन के उभारो के नीचे ,

होंठों ने पहले उन मांसल रस कलशों की परिक्रमा की ,चुम्बन अर्चन किया और फिर धीमे धीमे ऊपर की ओर ,

मंजू बाई के कंचे ऐसे निपल एकदम कड़े खड़े मस्ताए ,

कुछ देर तक गीता की जीभ मंजू बाई के निपल्स फ्लिक करती रही ,उसके चारों ओर घूमती तड़पाती रही फिर एक झटके में ,

गीता के बाज ऐसे होंठों ने निपल झट से और पूरा निपल गीता के मखमली शोले ऐसे मुंह में ,


गीता जोर जोर से चूस रही थी ,चुभला रही थी।


गीता की देह भले जवान हो गयी हो ,उसके उभारो का कटाव ,कड़ापन आग लगाता हो पर उसके चेहरे पे अभी भी ,वही भोलापन वही इनोसेंस ,

उरोजों की रगड़ा रगड़ी से कम मस्त नहीं था ,गीता -मंजू बाई के बीच चार आँखों का खेल ,

गीता की बड़ी बड़ी भोली भोली आँखे मंजू बाई को ललचा रही थीं ,उकसा रही थी।

और अपने छोटे कड़े जुबना वो मंजू बाई के होंठों के पास उचका रही थी ,ललचा रही थी , मंजू पास आती तो वो सरक जाती , कन्नी काट लेती चपल हिरनी की तरह ,

लेकिन मंजू बाई को इस लुका छिपी की आदत नहीं थी ,बचपन से वो खुला खेल फर्रुखाबादी खेलती थी ,

लेकिन मंजू बाई को इस लुका छिपी की आदत नहीं थी ,बचपन से वो खुला खेल फर्रुखाबादी खेलती थी ,

एक झटके में उसने गीता को पकड़ के निहुरा दिया जैसे कोई लौंडेबाज किसी लौंडे को जबरन निहुरा रहा हो गांड मारने को

या फिर डॉगी पोज में , कोई लड़की झुकी इन्तजार कर रही हो लन्ड खाने को


मंजू बाई के बड़े बड़े गदराये जोबन अब गीता की चिकनी पीठ पर फिसल रहे थे , शोल्डर ब्लेड्स से गीता के भारी भारी नितम्बो तक ,

और एक झटके से मंजू बाई ने निहुरी झुकी , गीता के उभार पकड़ लिए ,


क्या कोई मरद मसलेगा , जिस तरह मंजू बाई गीता की किशोर छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूंचियां मसल रही थीं।


और ये कन्या क्रीड़ा देख कर उनका औजार कब से एक दम पत्थर का हुआ तना खड़ा था।


मंजू बाई ने अपना दूसरा हाथ गीता की फैली मखमली खुली जाँघों के बीच घुसेड़ा और सीधे गीता की चूत भींच ली।

मंजू बाई की हथेली उसे मसल रही थी ,रगड़ रही थी , गीता की कच्ची किशोर चूत पिघल रही थी

और एक झटके में मंजू बाई बाई ने पेल दी ,एक नहीं दो उँगलियाँ एक साथ





गीता चीख उठी ,फिर सिसकने लगी ,

मंजू बाई की उँगलियाँ जड़ तक धंसी ,कभी अंदर बाहर तो कभी गोल


उनकी निगाहैं बस गीता की चूत और मंजू बाई की उँगलियों से चिपकी।

सटासट गपागप ,सटासट गपागप

और अचानक मंजू बाई ने मीठे शीरे से डूबी ऊँगली निकाल कर उनके भूखे होंठों पर रगड़ दी ,

"ले साल्ले गांडू ,चाट अपनी बहन की चूत का रस , पक्का बहनचोद बनाउंगी तुझे मैं। बहन के रस से मीठा कुछ भी नहीं ,... "

और कुछ ही देर में वो रस से भीगी ऊँगली उनके मुंह में थी ,वो सपड़ सपड़


लेकिन मौके का फायदा उठाने में गीता का सानी नहीं था ,मछली की तरह वो फिसल निकली ,

अब मंजू बाई नीचे

गीता ऊपर

क्लासिक 69 .





मंजू बाई की बुर में मुंह मारते , गीता बोली

" और माँ के भोंसडे का रस , ... "

" अरे पूछ ले न अपने यार से ,अपने भइय्या से अभी तो चूस चाट रहा था। " मंजू बाई कौन मौका छोड़ने वाली थी ,नीचे से गीता की चूत चाटती वो बोली।


और साथ ही मौक़ा पा के मंजू बाई ने बाजी पलट दी थी ,अब वो ऊपर और गीता नीचे , लेकिन 69 के पोज में चूत चुसाई चल रही थी।

वो गीता के मुंह की ओर बैठे , अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास
और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।


" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया " वो बोली।


और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,

अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी। डबल अटैक।

उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,

लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।





एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +

खूब बड़े बड़े , भरे हुए लेकिन एक इंच भी एक्स्ट्रा फ्लेश नहीं , सब मसल्स , टाट और फर्म , कड़े शेपली

मंजू बाई की खूब रसीली चिकनी मांसल जाँघे जहां नितम्बो के रूप में उभरती थी , बस लगता था किसी मैदान के ठीक बाद दो पहाड़ियां,

मंजू बाई के पिछवाड़े की फोटो किसी भी एक्सट्रीम बूटी या ४० + बूटी वाले साइट में जगह पा सकती थी। मैक्सिमम हिट भी मिलते ,


और उन दोनों मांसल पहाड़ियों के बीच वो पतली सी दरार एक दर्रे ऐसी ,जिसकी तलाश में लोग भटकते हों ,
एक बहुत छोटा सा भूरा छेद ,कसा कसा , जिसके चारो ओर हलकी हल्की बहुत छोटी छोटी कुछ सिलवटें सी पड़ीं,... उनकी निगाहें वहीँ अटकी।

उनका एक हाथ बहुत प्यार से उन मस्त नितंबों को सहला रहा था ,दूसरे हाथ की दो उंगलिया ,जड़ तक मंजू बाई की बुर में धंसी घसर घसर


गीता की शरारतें कम होने को नहीं आ रही थीं। मंजू बाई की बुर चूसना रोक कर ,गीता ने अपने दोनों हाथों से मंजू बाई की बुर के बड़े बड़े भगोष्ठों को पूरी ताकत से चियार दिया, जैसे किसी बुलबुल ने अपनी चोंच चियार दी हो।

" देखो न भैया ,माँ के भोसड़े का अंदर का नजारा,,"





अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी


" हैं न मस्त " गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।

" हाँ एकदम " मस्ती में चूर वो बोले।

" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली " और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।


अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी


" हैं न मस्त " गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।

" हाँ एकदम " मस्ती में चूर वो बोले।

" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली " और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।
…………………………………..

एकबार फिर कचकचा के मंजू बाई की बुर ने उनकी उँगलियों को दबोच लिया जैसे कोई मखमली पकड़ हो जबरदस्त , जो उँगलियों को बाहर निकलने से रोक रही हो।





जोर जोर से पूरी ताकत से वो गपागप ,कलाई के पूरे जोर से

और ऊपर से मंजू बाई भी लपलप लपलप गीता की चूत चाटते ,चूसते रुक रुक के बोलती ,

" पेल साले देखतीं हूँ तेरी ताकत लगता है बचपन में खूब अपनी माँ के भोसड़े में ऊँगली की थी ,मादरचोद। बचपन से ही ऊँगली करने में एक्सपर्ट थे ,मादरचोद। गीता चूस कस के ,देखती हूँ कितनी ताकत है ,भाई बहन में "

और साथ में मंजू बाई की बुर कस के उनकी उँगलियों को सिकोड़ कर निचोड़ भी रही थीं।


"भैया, दिखा दो माँ को अपनी ताकत , चल हम दोनों मिल के,..."गीता ने जोश दिलाया।

फिर क्या था , उनकी दोनों उँगलियाँ , नक़ल से मोड़ कर उन्होंने चम्मच की तरह बना लिया और वो नकल मंजू बाई के भोंसडे की अंदरूनी मखमली दीवाल पर रगड़घिस्स साथ में गीता भी अब कस के कभी मंजू बाई के दोनों रसीले मोटे मोटे लेबिया चूसती तो कभी जीभ से क्लीट को छेड़ती।

मंजू बाई की बुर रस की फुहार बरसा रही थी ,इनकी उँगलियों को भिगो रही थी। एकदम कीचड़ हो रही थी उसकी बुर और उसी में इनकी उँगलियाँ सटासट सटासट ,


पर निगाहें उनकी अभी भी मंजू बाई के गोल गोल चूतड़ों पर अटकी हुयी थी ,खूब कड़े भरे भरे , और बीच में एक छोटा सा कसा भूरा छेद ,उन्हें ललचाता ,उकसाता , उनका मन तो कर रहा था की,...






और उनके मन की बात गीता ने ताड़ ली , एक पल के लिए भोंसडे की चुसाई रोक के वो बोली ,

" भैया ,माँ पक्की छिनार है ,इत्ती आसानी से नहीं झड़ेगी। मैं अगवाड़े और तू पिछवाड़े , माँ का असली रस तो उस की ,... "

और जब तो वो कुछ सोचते समझते ,गीता की मजबूत कलाई ने उनके हाथ को पकड़ कर , उनकी बुर में रगड़घिस कर रही उँगलियों को निकाल के सीधे पिछवाड़े के छेद पर सटा दिया।


बहुत ताकत थी गीता की कलाई में , उनकी कलायी पकड़ के जो गीता ने पुश किया था एक ऊँगली के दो नक्कल सीधे मंजू बाई की गांड के अंदर।

और फिर जैसे कोई बोतल का ढक्कन घुमाये , बस उसी तरह घुमाते थोड़ी देर में आधी से ज्यादा ऊँगली गांड ने खा ली।


मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।


एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए


पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी





एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के



एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए


पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी


एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के

गांड के अंदरूनी दीवारों को रगड़ते , पुश करते , गांड का छल्ला तो गीता के जोर ने ही पार करा दिया था अब तो वो एकदम गांड के अंदरूनी हिस्से का मजा ले रहे थे।

हलके हलके मंजू बाई भी अपनी गांड को पुश कर के जता रही थी की उसे कितना मजा आ रहा है।

लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनकी ऊँगली जड़ तक नहीं घुस पा रही थी ,मंजू बाई की गांड इतनी कसी थी।

गीता नीचे से चूसने में लगी थी लेकिन उसे उनकी हालत का अहसास था ,

" ऐसे नहीं जायेगी ऊँगली पूरी भैया , ... " वो बोली और जब तक वो कुछ समझपाते गीता की चिट्ठी कलाई ने उनका हाथ पकड़ा और ऊँगली गांड से बाहर निकाल दी।

और उसी ताकत से वो ऊँगली ने गीता ने उनके मुंह में घुसेड़ दी।

एक पल के लिए तो वो हिचकिचाए , वो ऊँगली तो अभी तक मंजू बाई की गांड में , कितना लिसलिसा गूई सा ,... लेकिन गीता के जोर के आगे कुछ चलता है क्या।





"अरे भैया , माँ की गांड का मक्खन है माँ का प्रसाद , अच्छी तरह से थूक लगा लो ,हाँ और अबकी दोनों ऊँगली। दोनों में थूक खूब लगा लेना। "




दोनों ऊँगली जो कुछ देर पहले मंजू बाई का बुर मंथन कर रही थी ,अब उनके थूक से लिसड़ी ,अबकी सीधे मंजू बाई की गांड में।

इस बार दोनों उंगलियां जड़ तक जा के ही रुकी और वो तूफानी चुदाई उन्होंने ऊँगली से की , उन्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की ऊँगली में क्या लिपट रहा है ,

और साथ में जिस तरह से मंजू बाई गांड सिकोड़ रही थी ,उनकी ऊँगली निचोड़ रही थी ,जवाब में धक्के लगा रही थी और सबसे बढ़ के ,एक गालिया दे रही थी


" अरे मादरचोद , तूझसे अपने सामने तेरी माँ का भोसड़ा मरवाउंगी , बचपन के गांडू ,अभी तेरी गांड में कोहनी तक हाथ पेलुंगी बहनचोद। जो कसी कसी गांड लिए फिरता है न देखना , दस दिन के अंदर तुझे पक्का गांडू बना दूंगी। '

लेकिन बीच बीच में गीता पक्का बहन का रोल अदा कर रही थी उसका साथ दे के , बोली


" अरी माँ ,भैया को गांडू बनाएगी तो भइय्या को तो मजा ही आ जायेगा। वो तो खुद गांडू बनना चाहते है ,लेकिन ये बता तूझे मेरे भैया से गांड में ऊँगली करवाने में मजा आ रहा है न खूब ,बात क्यों बदलती है। "


" छिनार ,तेरा भाई है तो मेरा भी तो कुछ लगता है। मैं अपने बेटे से अपना भोसड़ा मरवाउं ,गांड मरवाऊं तुझे क्या। और बेटा गांड नहीं मारेगा तो क्या तेरी तरह अपने भाई से मरवाउंगी ,भाई चोद। "




मंजू बाई भी जवाब देने का मौका क्यों छोड़ती।

लेकिन गांड और बुर दोनों पर हमले का असर ये हुआ की अब मंजू बाई झड़ने के कगार पर बार बार पहुँच जाती ,

लेकिन झड़ नहीं रही थी।


उन्होंने अब एक बार अब अपनी दोनों उँगलियाँ मंजू बाई की गांड से बाहर निकाल के ,दोनों हाथ से पूरी ताकत से मंजू बाई की गांड का छेद चियार दिया ,

" देख भैय्या , माँ की गांड में कितना माल है ," और जिस तरह गीता ने आँख मारी वो इशारा समझ गए।

नीचे गीता ने अपने दोनों होंठों के बीच मंजू बाई के बुर के दोनों होंठों को दबोचा और कस के चूसना शुरू किया ,

और उधर उनके होंठों ने पिछवाड़े के छेद को ,


ऐसा नहीं है पिछवाड़े के छेद को चाटने चूसने का ये उनका पहला मौका था , मैंने तो बर्थडे के ही दिन , और जबरदस्त अंदर जीभ डाल के उन्होंने चाटा चूसा भी था , फिर उनकी सास ने तो सारी हदें उस रात पर करवा दी थी ,जिस दिन उनकी नथ उतारी , लेकिन घर के बाहर ये पहली बार






और गीता और मंजू बाई मिल के जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया था ,उससे भी ज्यादा उनसे


जीभ उनकी अंदर उतर चुकी थी , पिछवाड़े की सुरंग में ,अँधेरी गीली गीली गली में , पूरे अंदर तक


सपड़ सपड़.

उसका असर जबरदस्त हुआ , और मंजू बाई ने गीता की कसी चूत चूसने के साथ उनकी गांड पर भी हमला बोल दिया।

मंजू बाई की जीभ गीता की रसीली चूत में धंसी हुयी थी , होंठ चूत के गुलाबी किशोर होंठ चूस रहे थे और अब मंजू बाई का मोटा अंगूठा , गीता की गांड की दरार पर।


थोड़ी देर तक मंजू बाई अपना अंगूठा गीता की गांड पर रगड़ती रही और फिर अचानक पूरी ताकत से गीता की कसी गांड में उसने अंगूठा पेल दिया।

गीता झड़ने लगी ,फिर तो जैसे तूफ़ान आ गया।

गीता का बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था फिर भी उसने मंजू बाई की चुसाई नहीं छोड़ी और कचकचा के गीता ने मंजू बाई की क्लीट काट ली /

और अब मंजू बाई भी ,

एक बार

बार बार

लगातार , दोनो झड़ रही थीं , और उनकी जीभ भी साथ साथ मंजू बाई की गांड में पूरी तेजी के साथ



कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।
न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की

चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।

चांदनी को छेड़ने वाले आवारा बादल भी इधर उधर बिखर गए थे।


किसी में उठने की ताकत नहीं बची थी।

वो दोनों तो झड़ के लथर पथर थी और ये बिचारे अभी भी बिना झड़े , बम्बू उसी तरह तना , लेकिन थक तो वो भी गए थे।

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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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जोरू का गुलाम भाग ४८






कुछ देर बात गीता अंगड़ाई लेती हुयी उठी ,प्यार से उनको देखा और ठसके से मुस्कराते हुए अपने भैया की गोद में जा के बैठ गयी , प्यार से दुलराते सहलाते 'उसे ' पकड़ लिया और बोली ,

लेकिन वो बात उनसे नहीं बल्कि उनके 'उससे ' कर रही थी ,

" बहुत गुस्सा हो न। मालुम है मुझे , गुस्सा होने वाली बात है है। मैं झड़ गयी ,माँ झड़ गयी लेकिन तू वैसा ही भूखा प्यासा , गुस्से की बात है ही। "

और ये कहते गीता ने एक झटके से जो चमड़ा खींचा तो सुपाड़ा खुल गया ,



खूब मोटा , लाल गुस्साया , मांसल सुपाड़ा

प्यार से एक दो तमाचे हलके से गीता ने तन्नाए लन्ड को मारा और अंगूठा सुपाड़े पे रगड़ते ,मुस्करा के बोली।

" पगले दिलवाऊंगी न ,पक्का , अरे अभी रात बाकी है पूरी। सबसे पहले माँ के भोंसड़ा , बहुत पियासी ,चुदवासी है वो छिनार , खूब हचक के चोदना उसको। "

तब तक मंजू बाई भी उन दोनों के पास आके बैठ गयीं थी और उन्होंने भी गीता की बात में टुकड़ा लगाया ,

" लेकिन तू कौन कम , .. "

और अब उनकी ओर प्यासी आँखों से देखती गीता भी बोली ,

" सच्ची भैय्या , कित्ते महीने होगये जब से वो ,मेरा मरद कमाने गया , फिर मैं पेट से थी इधर उधर भी कुछ नहीं , और मेरे मरद का था भी तो एकदम केंचुए जैसा। "

फिर उनके होंठों को चूम के कस कस मुठियाते बोली ,



" और मेरे भैया का तो एकदम कड़ियल नाग है कितना मोटा ,कित्ता कड़क। देख भैया तुझसे कितनी मस्ती से चुदवाती हूँ , एकदम निचोड़ लुंगी , और उसके बाद बिना नागा बहन के साथ मजे लेना। "


मंजू बाई की निगाह उनके चेहरे पर थी ,एकदम चमक रहा था।

गीता समझ गयी और हंसते हुए बोली ,

" अरी माँ क्या देख रही है तेरा ही तो रस है , भोंसडे का ,गांड का , देख तेरे बेटे ने कित्ते कस कस के चाटा है। ज़रा तू भी चख ले न "

मंजू बाई से दुबारा कहना नहीं पड़ा और तेजी से मंजू बाई के होंठ उनके चेहरे से रस चाटने चूसने लगे।

गीता उनके गोद में बैठी थी और उन्होंने पकड़ रखा था , कस के सीधे गीता के किशोर उभारो के नीचे।

गीता ने उनका हाथ पकड़ के सीधे अपने छोटे छोटे उभार पे रख दिया ,थोड़ा मुह बनाते , मानो कह रही हो ,

" क्या भैया तुम्हे ये भी नहीं मालुम , जवान होती बहन कोगोद में बैठाने पर उसे कैसे पकड़ते हैं। "



और वो सीधे भले हो लेकिन इतने अनाड़ी भी नहीं थे ,एक हाथ की उंगलियां गीता के खड़े मटर के दाने की साइज के निपल को पकड़ के पुल करने लगे और दूसरा हाथ गीता की टेनिस बाल साइज चूँचियों को हलके हलके दबाना लगा।



जवाब में गीता ने भी लन्ड को अब पूरी तेजी रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

मंजू अभी भी उनके मुंह को चूस चाट के साफ़ कर रही थी।

अचानक गीता को कुछ याद आया , वो बोली ,

" माँ तुम सिर्फ पान लायी थी या पाउच भी ? "



अचानक गीता को कुछ याद आया , वो बोली ,

" माँ तुम सिर्फ पान लायी थी या पाउच भी ? "

"पाउच भी लायी थी लाती हूँ " मंजू बोली

और कुछ ही देर में मंजू बाई ६-७ पाउच के पैकेट ले आयी.

उनके मायके में तो सवाल ही नहीं था ,लेकिन पिछले कुछ दिनों में मैंने और फिर उससे भी बढ़कर उन्हें 'विदेशी ' का स्वाद तो चखा दिया था , देसी तो लेकिन उससे सौ गुना ज्यादा

" चल उठ जा के ग्लास ले आज , बड़ी देर से सिंहासन पे बैठी है। "





मंजू बाई ने गीता को बोला पर उसने साफ़ मान कर दिया ,

" नहीं नहीं माँ , बड़ा मस्त सिंहासन है भैया का ,ला मुझे दे न ग्लास की कोई जरूरत नहीं , दे मुझे एक पाउच न। अरे हमारी देह में तो ग्लास ही ग्लास है। "

पाउच फाड़ के पहले तो गीता ने सीधे आधा अपने मुंह में गटक लिया , लेकिन गले के अंदर एक बूँद नहीं गयी। गीता का मुलायम गाल एकदम फूला फूला

और उनके गोद में बैठी कस के उन्हें अपनी ओर खींचा ,

फिर गीता के मुंह की देसी दारु आधे से ज्यादा सीधे उनके मुंह में और फिर पेट में ,

अगला पाउच मंजू बाई के मुंह से होते हुए उनके पेट में ,

एक पाउच तो गीता ने उन्हें प्यार से छोटे बच्चे की तरह अपनी गोद में लिटाया और फिर गीता की नशीली चूँचियों से टपकती हुयी बूंदे सीधे उनके मुंह में




" एक भी बूँद इधर उधर हुयी न भैया तो बहुत मारूँगी। " गीता ने धमकाया।

जो थोड़ी बहुत बची तो उसे हाथ में ले के गीता ने सीधे उनके लन्ड पे मालिश की ,

" अरे असली नशा तो इसे होना चहिये न "




और मंजू बाई ने तो सीधे अपनी नीचे वाली कुप्पी में भर कर पिलाया।

डेढ़ पौने दो बोतल के बराबर तो उन लोगों के अंदर गया ही होगा ,और उसमें से कम से कम एक बोतल सिर्फ उनके अंदर ,मंजू और गीता की देह से हो के।


और फिर मंजू बाई ने गुड्डी की बात छेड़ दी।


" तू जानती है ,इसकी एक छोटी बहन भी है,एकदम मस्त पटाखा माल। मैंने फोटो देखी है। साली क्या चूंचियां है मस्त ,शक्ल से चुदवासी लगती है। तुझसे थोड़ी ही छोटी होगी , पक्की छिनार , नाम क्या है उसका , ?" मंजू बाई बोलीं।


और फिर मंजू बाई ने गुड्डी की बात छेड़ दी।


" तू जानती है ,इसकी एक छोटी बहन भी है,एकदम मस्त पटाखा माल। मैंने फोटो देखी है। साली क्या चूंचियां है मस्त ,शक्ल से चुदवासी लगती है। तुझसे थोड़ी ही छोटी होगी , पक्की छिनार , नाम क्या है उसका , ?"


मंजू बाई बोलीं।

" गुड्डी " उन्होंने बोल दिया।

गीता उनकी जाँघों पे सर रख के लेटी थी , अपने होंठों से खड़े मस्ताए लन्ड को कभी चूम लेती थी तो कभी हाथ से पकड़ के मुठियाती थी।

एक बार फिर जैसे उनके हथियार से बात कर रही हो ,गीता ने उसे हलके हलके सहलाते बोली ,





" ये मैं न पूछुंगी की साल्ले तूने उसे चोदा की नहीं , ये बोल की उसकी चूत , झांटे आने के पहले फाड़ी या बाद में। चुदती तो होगी ही ,इत्ता मस्त लन्ड जिसके भाई का हो वो तो खुद पकड़ के गप्प कर लेगी। "

और जब उन्होंने कबूल किया की गुड्डी अभी तक अनचुदी है , तो फिर तो गीता गुस्से से अलफ।

" उससे तो मैं बाद में निपटूंगी बोल इस बिचारे को क्यों भूखा रखा , ऐसा मस्त माल घर में और मेरा यार भूखा रहे , अगर कभी मुझसे मिलेगी न वो तेरी,… “


और उनके मुंह से निकल गया की वो दस पंद्रह दिन में आने वाली है तो फिर तो गीता और मंजू बाई दोनों चालू ,

" भैया , अगर अपने सामने उसे न चुदवाया इस लन्ड से तो कहना , बुर ,गांड मुंह सब में घोंटेगी छिनार और खुद पकड़ के सबके सामने घोंटेगी। बिचारे मेरे प्यारे सीधे भैया को इतना तड़पाया। " गीता बोली।




" साली को एकदम रन्डी बना दूंगी बस हम दोनों माँ बेटी के हवाले कर देना ,बस एक दिन के लिए। कोठे की रंडी मात सारे ट्रिक चुदाई के सीख जायेगी। " मंजू बाई ने जोड़ा।


" अरे माँ ये सब बातें भैया से बोलने की हैं क्या , बस भैया तू उसे ले आ ,आगे की जिम्मेदारी हम दोनों की। ये बोल उस की चूंचियां कितनी बड़ी है। "

गीता अब फिर एक बार उनकी गोद में बैठ गयी थी।




" बस तुझसे थोड़ी ही छोटी हैं " उन्होंने गीता की चूंची रगड़ते मसलते बोला।



" वाह भैया निगाह रखते हो उसकी चूंची पे। " हंस के गीता बोली , चल आने दो मेरे बराबर तो मैं ही रगड़ मसल के कर दूंगी उसकी। फिर मेरी छिनार माँ भी है , हम तीनो ,भैया मैं और माँ मिल के उसका हलवा बनाएंगे। "


और मंजू को याद आ गया।
……………….

" हे तूने बोला था न भैया आएंगे तो अपना स्पेशल हलवा खिलाएगी तो जा ले आ न " मंजू बाई ने गीता को हड़काया।

और गीता उठ के अपने चूतड़ मटकाती रसोई की ओर चल दी।

मंजू बाई भी उनका हाथ पकड़ के आंगन में ले आयी और चटाई वहीँ बिछा दी।

मस्त हवा आ रही है यहाँ ,वो बोली और उनका हाथ पकड़ के बैठा दिया।


" असली नशा तो तुझे गीता के हलवे को खा के होगा , देखना क्या मजा आता है और गीता न बिना खिलाये छोड़ेगी नहीं। " मंजू बाई उनके बगल में बैठी ,मुस्कराके उनके गालों को सहलाती बोल रही थीं।



" असली नशा तो तुझे गीता के हलवे को खा के होगा , देखना क्या मजा आता है और गीता न बिना खिलाये छोड़ेगी नहीं। "


मंजू बाई उनके बगल में बैठी ,मुस्कराके उनके गालों को सहलाती बोल रही थीं।


एक बार फिर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी ,आसमान में वो आवारा बादल फिर इक्कट्ठे हो रहे थे।



हवा में मिटटी की सोंधी सोंधी महक से लग रहा था की आसपास कही पानी बरस रहा है।

मंजू बाई के घर के बाहर के बड़े से नीम के पेड़ की परछाईं आंगन में आ रही थी।

और अचानक उनके मन में मंजू बाई की शाम की बात , जब उसने बोला था की रात में दस बजे आना तो ये भी कहा था की तुझे सब कुछ खाना पीना पडेगा जो गीता खिलाएगी ,गीता की देह ,...

और मंजू बाई की बातों ने फिर उसके सोचने में ब्रेक लगा दिया।



" हे ये मत कहना की तुमने अपनी बहन को नहीं चोदा तो भोंसडे का भी मजा नहीं लिया , अरे तेरे घर में साले दो दो मस्त माल और तू ऐसे ही , चल अब हम लोगों के कब्जे में आ गया है न तो तुझे ऐसा हरामी बना देंगे की तू किसी को न छोड़ेगा ,न माँ न बहन। अरे इता मस्त मोटा लन्ड ले के , "




कान उनके मंजू बाई की बातें सुन रहे थे लेकिन मन में कही शाम की उसकी बात गूँज रही थी , गीता की देह से , और गीता हलवा

क्या खिलाएगी वो

तबतक फिर सुना उन्होंने मंजू की आवाज गीता आ न तेरा भाई भूखा बैठा है।

आती हूँ माँ और भैया को तो आज सीधे अपनी कड़ाही से खिलाऊंगी।

फिर उनके मन में कुछ कुछ ,

लेकिन गीता किचेन से कढाही लेकर निकली ,

ताजे गरम गरम बेसन के हलवे की खुशबू।

न कोई प्लेट न कटोरी न चम्मच

लेकिन अब तक वो समझ गए थे गीता का इश्टाइल

उसने अपने हाथ से लेकर पहले तो उन्हें ललचाते हुए सीधे अपने मुंह में डाल दिया

और जो ऊँगली में लगा था उनके गालों में पोंछ दिया।

फिर गीता के होंठ सीधे उनके होंठों पे




गीता के मुंह से , गीता के थूक से मिला , लिथड़ा सीधे उनके मुंह में , गीता ने अपनी जीभ ठेल दी ,साथ में बेसन का हलवा


" ऐसे ही खिलाऊंगी ,घोटाउंगी तुझे जबरन , सटासट घोंटेगा तू , गपागप लीलेगा। समझे मुन्ना "


मंजू बाई बोली और उनके गाल पर लगा हुआ हलवा चाट लिया , फिर बोली

" अरे वाह मीठे हलवे का नमकीन गाल के साथ मिल के क्या मस्त स्वाद आता है। "

और अगली बार चाटते हुए कचकचा के काट भी लिया पूरी ताकत से मंजू बाई ने


वो बिचारे चीख भी नहीं पाए , उनका मुंह तो गीता ने सील कर रखा था अपने मुंह से और गीता की जीभ उनके मुंह में घुसी

" तेरे भइय्या के गाल किसी मस्त नमकीन लौंडिया से कम मजेदार नहीं है , देख गांडू कितने मजे से कटवा रहा है। "

और मंजू बाई ने दुबारा उनके चिकने गाल काट लिए।

मुंह का हलवा ख़तम हो जाने के बाद गीता ने अपनी हलवे में लिपटी ऊँगली उनके मुंह में घुसेड़ दी और वो लगे चाटने चूसने। "

" माँ , ये तेरा बेटा सिर्फ गांडू ही नही है देख लन्ड चूसने में भी पक्का है देख कैसे ऊँगली चूस रहा है जैसे मोटा लन्ड हो उसके मुंह में। "


गीता ने एक ऊँगली और मुंह में ठूंसते हुए चिढाया।

" अरे और क्या , और जो कुछ कमी होगी तो मैं सीखा दूँगीं न। एकदम पक्का उस्ताद,लन्ड चूसने में अपनी माँ बहन को भी मात कर देगा। अरे हम दोनों मिल के एक साथ चूसेंगे न मोटा मोटा लन्ड। "

मंजू बाई उनके गाल को एक बार फिर कचकच काटते बोलीं।



और अब मंजू बाई की बारी थी अपने मुंह से उन्हें हलवा खिलाने की और साथ में वो बोली ,

" अभी तो कुचा कुचाया खिला रहीं हूँ और बस अभी थोड़ी देर में पचा पचाया भी खिलाऊंगी , और जरा भी ना नुकुर किया न तो बहुत पिटोगे। "


मंजू बाई कुछ प्यार से ,कुछ धमकाते बोलीं और फिर उनके मुंह से थोड़ा खाया ,थोड़ा अधखाया हलवा सीधे उनके मुंह में।

" अरे माँ , भैया कुछ भी मना नहीं करेंगे देख लेना ,अरे उनकी माँ बहने किसी को भी नहीं मना करतीं न , जो कहता है उसके आगे अपनी टाँगे उठा देती हैं पीछे चिकनाई लगा के टहलती हैं की क्या पता कब मोटा लन्ड मिल जाए , तो ये काहें मना करेंगे ,

हम लोग जो भी खिलाएंगे पिलायेंगे ,सब कुछ प्यार से खाएंगे ,पियेंगे , क्यों है न भैया।

और फिर माँ जो हलवा हम तुम खा रहे हैं वो सब भी तो सुबह होते होते इनके पेट में जाएगा , हमारे पेट और इनके मुंह के रास्ते। "

और उनके कान को काटते हलके से हस्की आवाज में वो छिनार लौंडिया बोली ,

" क्यों भईया खाओगे न "

" अब तो तुम्हारे हवाले हूँ जो करवाओ करूँगा। " मुस्कराते हुए वो बोले।



" अब तो तुम्हारे हवाले हूँ जो करवाओ करूँगा। " मुस्कराते हुए वो बोले।
……………..

उन दोनों ने उन्हें अपना हाथ इस्तेमाल करने की जहमत नहीं दी।

गीता मंजूबाई ने अपने मुंह से ही उन्हें सारा हलवा खिलाया और वैसे भी उनके दोनों हाथ मस्त मगन थे ,


एक हाथ में किशोर चूचियां जिसे दबाते मसलते उन्हें बार बार गुड्डी की याद आ रही थी , और




दूसरा तो खूब बड़ा मस्त कड़ा ,

आलमोस्ट उनकी सास की समधन







कुछ ही देर में हलवा ख़तम हो गया आलमोस्ट।

और एक झटके में गीता ने कड़ाही से सारा बचा हुआ हलवा निकाल कर सीधे उसके मुंह में , गरमागरम।

मुंह एकदम जल गया।

ओह्ह उह्ह्ह ,पूरा मुंह गरम गरम हलवे से भर गया था , आँखों में पानी आ गया।

पानी पानी , मुश्किल से वो बोले।

खिलंदड़ी गीता ने हलके से धक्के से उन्हें चटाई पर पीठ के बल गिरा दिया , और मुस्करा के बोली,

" छोटा बच्चा पानी पियेगा , मुंह जल गया क्या ?"

वो एकदम उसके मुंह के पास ,दोनों पैर गीता के उनके हाथों पर मजबूती से , वो उनकी छाती के ऊपर ,गीता की कमर एकदम उनके मुंह के पास।

गीता ने अपने हाथों से सँड़सी की तरह उनके सर को दबोच रखा था।

आसमान बादलों से भर गया था , काला अँधेरा , हवा तेज हो गयी थी ,


लग रहा था पानी अब बरसा तब बरसा।

गीता और झुकी ,उसकी किशोर कच्ची संतरे की फांको ऐसी रसीली चूत बस उनके होंठों से इंच भर दूर ,




उनका मुंह जल रहा था , और उस शोख ने उनकी आँख में झाँक के पूछा ,

" बोल , बहुत प्यास लगी है ,भैया , पिला दूँ पानी। "


किसी तरह उनके मुंह से निकल हां हां।

और उधर मंजू बाई भी ,

" अरे पिला दो न बिचारे पियासे को पानी , तड़प रहा है दो बूँद को , काहें तड़पा रही हो। प्यासे की प्यास बुझाने से बड़ा पुण्य मिलता है। "

आसमान में काली स्याही पुत गयी थी , घुप अँधेरा ,

अचानक बिजली चमकी बहुत तेज

और उसकी रौशनी में उन्होंने देखा ,

किशोर चम्पई देह यष्टि ,छरहरी , उसकी काले बाल नागिन की तरह लहरा रहे थे ,उसकी गुलाबी चूत इंच भर भी नहीं दूर थी उनके प्यासे खुले होंठों से , वो उसकी तेज मस्की महक महसूस कर रहे थे।



उफ्फ्फ

" पियेगा पानी , एक बूँद भी बाहर छलकी न तो बहुत पीटूंगी। "






दिख कुछ नहीं रहा था ,सिर्फ आवाज सुनाई पड़ रही थी।

समझ वो भी रहे थे ,गीता भी और मंजू बाई भी।




बारिश की पहली बूँद उनकी देह पर गिरी।

और गीता के निचले होंठों से सुनहरी बूँद ,पहले होंठो पर फिर सरक कर सीधे उनके खुले मुंह में।

लालटेन की पीली रौशनी में पीली सुनहरी बूंदे ,

रिमझिम हलकी हलकी बूंदो की आवाज आंगन ,छत से आ रही थी।

अब सुनहली बूंदे धीरे धीरे धार बन कर उन के मुंह में

धीरे धीरे ,छलछल छलछल

और गीता ने तेजी से अपनी नशीली चूत से उनके खुले प्यासे होंठ बंद कर दिए , और अब तो


घल घल घल घल

जैसे कोई चोद रहा हो ,उसी तरह गीता ने उनके मुंह से अपनी चूत रगड़ रही थी ,जोर जोर से धक्के मारते

एक एक बूँद

देर तक , और जब उठी तो हटने के साथ गीता ने एक गहरी चुम्मी उनके होंठों पे और जीभ उनके मुंह के अंदर।




उनके मुंह में अभी भी , पर गीता को परवाह नहीं थी।




और गीता के बाद फिर मंजू बाई।





बारिश बहुत तेज हो गयी थी।

मंजू बाई की मांसल जाँघों के बीच उनका सर जकड़ा हुआ था , गीता ने लालटेन पास में ही रख दी थी इसलिए अब बहुत कुछ दिख रहा था।

काली काली झांटे , खूब मोटे मोटे मंजू बाई की बुर के मांसल होंठ ,

और खूब देर तक।

गीता बगल में बैठी देखती रही ,उनका सर सहलाती रही।

तीनो आंगन में बारिश से भीग रहे थे।


और जब मंजू बाई उठीं


काली काली घनी झांटो के बीच चार पांच बड़ी बड़ी पीली सुनहली बूंदे ,

सर उठाके , जीभ निकाल के उन्होंने चाट लिया।


बारिश की तेज धार अब एक बार हलकी हलकी रिमझिम बूंदो में बदल गयी।

लेकिन इच्छाओ की आंधी और वासना की बारिश की तेजी में कोई कमी नही आयी थी।


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जोरू का गुलाम ४९

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जोरू का गुलाम ४९



टिप टिप टिप

पानी छत की ओरी से , नीम के पेड़ की शाखों से गिर रहा था।

रह रह कर मोटी मोटी बूंदे आंगन को गीला कर रही थीं , और

उन तीनो की वासना में तपती देह को भी भीगा रही थीं।

पर काम की अगन ,कम होने को नहीं आ रही थी।





वो सैंडविच बने थे ,

एक खेली खायी प्रौढा और नयी नवेली बछेड़ी के बीच
गदराये पथराये ३८ डी डी और नए नए उभरते ३२ सी के बीच

भोंसडे और कसी चूत के बीच।


आगे से मंजू बाई और पीछे से गीता ,दोनों ने कस के दबोच रखा था उन्हें।

अद्भुत , वो सोच भी नहीं सकते थे ऐसा अनुभव मजा सिर्फ मजा


" मादरचोद , क्या दो मरद ही एक साथ ,किसी लौंडिया का मजा ले सकते हैं। "

गीता की कोयल सी आवाज उनके कान में गुंजी ,गीता ने हलके से उनके ईयरलोब को चुभलाते हुए काट लिया ,और फिर

गीता की कमल की डंडी सी कोमल बांह,उनकी कांख के अंदर से घुस कर उनकी छाती को अँकवार में बाँध दिया , गीता की उँगलियाँ,नाख़ून सहला रही थीं ,उनका चौड़ा सीना ,तन्नाए निप्स ,

गीता का दूसरा हाथ ,उनके कोमल नितम्बो को प्यार से सहला रहा था और हलके हलके नितंबों की दरार के बीच गीता की शरारती उँगलियाँ





गीता के नए नए आये कोमल रुई के फाहे से मस्त उभार , खूब गदराये ,दूध से भरे छलकते , पीछे से उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे।

"मार ले साल्ले बहनचोद की गांड ,अब तक किस के लिए बचा के रखा है ,बहन के भंडुए "

आगे से मंजू गरजी।



मंजू बाई की बड़ी बड़ी चूंचियां , खूब भारी लेकिन एकदम कड़ी आगे से उनके सीने को जोर जोर से दबा रहा था ,रगड़ रहा था ,पूरी ताकत से पीस रही थी अपने पथरीले जोबन की चक्की से उनके सीने को पीस रही थीं।




मंजू बाई का बायां हाथ अपनी बेटी गीता की रेशमी चिकनी पीठ पर , हलके हलके टहल रहा था और फिर उसे पकड़ कर कस के वो उनकी ओर खींच रही थी ,प्रेस कर रही थी.

मंजू बाई का दायां हाथ उनके कड़े खड़े चर्मदण्ड को हलके हलके सहलाता हुआ , और उसकी भारी चिकनी खुली जाँघे ,उनकी जाँघों पर रगड़ती। चर्मदण्ड का खुला मुंह ,मंजू बाई की गुलाबी सहेली के मुँह को बस सहलाता हलके से रगड़ता ,



और मंजू बाई ने उन्हें चूम लिया।

हलके से नहीं ,अपने दोनों पान के रंग से रँगे ,रसीले होंठों के बीच कस के उनके होंठों को पकड़ के वो चुभलाने चूसने लगी और कचकचा के काट लिया ,साथ में मंजू बाई की मोटी जीभ उनके मुंह के अंदर घुस गयी ,...


गीता के उनके सीने पर टहलते कोमल हाथ ने कचकचा के उनके निप्स को नोच लिया पूरी ताकत से और गीता का दूसरा हाथ जो उनके नितम्ब की दरार के बीच में था ,पूरी ताकत के साथ उसने पेल दिया उनकी कसी गांड में जबरदस्ती , बेरहमी से। गांड के छल्ले को दरेरता ,रगड़ता ,घिसता अंदर तक।





मंजू बाई की उँगलियाँ अब मुट्ठी बन के उनके चर्मदण्ड को हलके हलके मुठिया रही थीं। अपने अंगूठे से वो कभी लन्ड के बेस को दबा देती तो कभी जोर से खुले सुपाड़े को रगड़ देती।

गीता की उंगलिया धीरे धीरे हौले हौले उनकी गांड में गोल गोल घूम रही थीं। और साथ में वो शोख किशोरी अपने कड़े अकड़े जोबन की बरछी की नोक उनकी पीठ में चुभा रही थी।

आगे से मंजू बाई के ३८ डी डी साइज के जोबन उनके सीने पे रगड़ रहे थे। पीछे से किशोरी के उभार और आगे से एक प्रौढा के उरोज

टिप टिप टिप बड़ी बड़ी बूंदिया उन तीनो के ऊपर पड़ रही थी।


काले काले बादल ,एकदम घुप्प अँधेरा ,हाथ को हाथ न सूझे ऐसा

सिर्फ देह से देह के रगडने का अहसास हो रहा था।
….
दोनों ओर से उनपर प्रेशर बढ़ रहा था ,आगे से एक खेली खायी गदरायी प्रौढा का और पीछे से जोबन के जोश में डूबी नयी बछेड़ी का।

उनका बौराया ,भूखा डंडा बस तड़प रहा था ,मन कर रहा था , कुछ न हो तो मंजू बाई ही मुठिया के एक बार झाड़ दे।

कब से तड़प रहे थे बिचारे वो , पर किस्मत ,...

मंजू बाई के मुठियाते हाथ ने उनके प्यासे चर्मदण्ड को छोड़के सीधे अपनी मुट्ठी में कस के उनके पेल्हड़ को ,बॉल्स को जकड़ लिया और लगी दबाने।

पिछवाड़े गीता की दो उंगलिया पूरी ताकत से उनके गांड के अंदर बाहर , कभी गोल गोल


और आगे से मंजू बाई की मखमली मांसल मोटी मोटी जाँघों ने उनकी टांगो को इस तरह दबोच रखा था की वो हिल भी नहीं सकते थे ,

उनका खड़ा तन्नाया लन्ड सीधे मंजू बाई की बुर से रगड़ खा रहा था।


गीता का जो हाथ उनके सीने पे उनके निप्स को नोच खसोट रहा था ,रगड़ रहा था सरक के अब नीचे ,गच्च से गीता ने उनके मोटे कड़े लन्ड को पकड़ लिया और जोर जोर से मंजू बाई के भोसड़े पर रगड़ाती , उन्हें चिढाया ,

" क्यों मादरचोद ,मजा आ रहा है न माँ के भोंसडे पर लन्ड रगडने में। "

और उसी के साथ गीता ने अपनी तीसरी ऊँगली भी गचाक से उनकी गांड में पेल दी।

उनकी चीख घुट के रह गयी ,मंजू बाई की जीभ अभी भी उनके मुंह में थी ,उनके होंठ मंजू बाई के होंठों ने दबोच रखे थे।


लेकिन उनके होंठों को आजाद करते मंजू बाई ने छेड़ा ,गीता से पूछा ,

" क्या हाल है इस गांडू बहनचोद की गांड का,... "


मंजू बाई की तीन उंगलियां उनके बॉल्स को हथेली के साथ दबा रही थीं ,प्रेस कर रही थीं लेकिन तर्जनी और मंझली , पिछवाड़े के गोल दरवाजे का चक्कर काट रही थी।


" अरी माँ ,इस मादरचोद की गांड नहीं है रसीली चूत है हमारी तरह। बस आगे की जगह पीछे है ,चल मिल के हम दोनों इसको तेरे भोंसडे से भी चौड़ा कर देंगे ,बहुत बचा के रखा था गुड्डी के भंडुए ने , डाल के देख ले न ,चिल्लाने दे माँ के खसम को।

और मंजू बाई ने गांड के पास चक्कर काटती दोनों उँगलियाँ एक झटके में उनके गांड में उतार दी।

एक साथ पांच उंगलिया

जोर से चीखे वो , पर बारिश की आवाज में कौन सुनने वाला था।


मंजू बाई को मालुम था उन्हें चुप कराने का तरीका , एक बार फिर से उनके होंठ मंजू बाई के होंठों के बीच और तेजी से काट लिया उनके होंठों को मंजू बाई ने।


गांड बहुत तेज दुःख रही थी ,दोनों की पांच उँगलियाँ अंदर , लेकिन एक अलग मजा भी आ रहा था जैसे मंजू बाई की बुर पे रगड़ते सुपाड़े पे आ रहा था।


गीता ने जैसे उनकी मन की बात भांपते , मंजू बाई की बुर के दोनों होंठों को खूब जोर से फैला के उनका मोटा सुपाड़ा उसमें फंसा दिया ,

फिर जैसे एक साथ , पूरी ताकत से धक्का , आगे से भी पीछे से भी

और आधा लन्ड मंजू बाई की रसीली बुर ने घोंट लिया।

और उसी के साथ मंजू गीता की पांच उंगलिया घचाक घचाक उनकी गांड मारने लगी , पूरी ताकत से।

गीता ने अपनी उँगलियाँ मोड़ ली और उस के नकल गांड की दीवालों पर करोच रहीं थीं ,रगड़ रही थी पूरी ताकत से ,


तड़प रहे थे वो दर्द से मजे से

खबरदार जो झड़े तो , पीछे से गीता ने वार्न किया।
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जोरू का गुलाम भाग ५०

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जोरू का गुलाम भाग ५०





मंजू बाई के होंठों ने अब उनके होंठों को आजाद कर दिया और मंजू के होठ उन गालो को चूम रहे थे चाट रहे थे ,बीच बीच में कचकचा के काट लेते ,मंजू बाई की लार उनके गालो को गीला कर रही थी , भिगो रही थी।

मंजू बाई की बुर ,नीचे जोर जोर से आधे से ज्यादा घुसे उनके लन्ड को सिकोड़ रही थी ,पूरी ताकत से निचोड़ रही थी।

उन्होंने एक दो बार कोशिश की पर मंजू ने जोर से बरज दिया।

वो जान चुके थे जब तक इन दोनों की मर्जी नहीं होगी ,कुछ भी नहीं हो सकता ,


मंजू बाई की बुर जिस तरह से उनके सुपाड़े को ,उसकी बुर में आधे घुसे लन्ड को , रुक रुक के भींच रही थी एक जबरदस्त थ्रोबिंग फीलिंग हो रही थी , मस्ती के मारे उनकी आँखे बंद हो रही थी।


अचानक मंजू बाई के होंठ उनके गालों से सरक के सीधे उनके सीने पे ,पूरी ताकत से मंजू बाई ने उनके निप्स को कचकचा के काट लिया ,


वो जोर से चीखे , उईई आहहह ओहह उईईईईई ,

और उनकी गांड मथती गीता की तीन उँगलियाँ जो जम के करोच रही थीं ,रगड़ रही थी ,

मौके का फायदा उठा के सीधे उनके खुले मुंह में।

लिसड़ी लिपटी गीली ,उनके गांड के रस से


एकदम गले तक गीता ने उँगलियाँ ठेल दी थीं और जोर से बोली ,

" चाट साले मादरचोद , बचपन के माँ के यार पैदायशी मादरचोद ,तेरे सारे खानदान की बुर मारूँ , गांडू चाट ,चाट जोर जोर से। "





और उस के साथ मंजू बाई की तगड़ी जाँघों ने एक धक्का और मारा , आलमोस्ट पूरा , ६ इंच से ज्यादा लन्ड अब मंजू बाई की बुर में था। उसी के साथ मंजू बाई ने दो और उंगलिया उनकी गांड में पेल दी ,



मंजू बाई की चार मोटी मोटी उँगलियाँ उनकी गांड में ,हचक हचक कर ,

और उसी सुर ताल में मंजू बाई की बुर ,जाँघे धक्का मारती ,उनके लन्ड पे आगे पीछे होती

हचक हचक कर चोद्ती

पानी तेज हो गया था। हवा झंझावात में बदल रही थी।

देर तक मंजू बाई के धक्के , गीता की शरारते , उसके जोबन का रस , आगे पीछे दोनों और से


लेकिन उस समय उन दोनों ने उन्हें झड़ने नहीं दिया।
……………………………………………………………..

झड़े वो ,लेकिन थोड़ी देर बाद मंजू बाई के भोंसडे में।


और वो भी शायद मुश्किल था ,बिना गीता की मदद के।

तरसाने तड़पाने में दोनों एक दूसरे से बढ़कर थीं , लेकिन मंजू बाई की बात ही अलग थी ,उसके तरकश में इतने तीर थे ,इत्ते ट्रिक मालुम थे मजे देने के ,मजे लेने के।





और एक बार फिर मंजू बाई उसके ऊपर चढ़कर हचक हचक कर चोद रही थी ,

परफेक्ट वोमेन आन टॉप ,

उन्हें कुछ.भी करने की इजाजत नहीं थी. सब कुछ मंजू बाई ही , उनके ऊपर चढ़ी मंजू बाई ने अपनी मजबूत तगड़ी सँडसी ऐसी कलाईयों से उनके हाथों को कस के दबोच रखा था। वो हिल भी नहीं सकते थे।

जिस गदराये जोबन के वो दीवाने थे कभी झुक के उनके सीने पे रगड़ देती तो कभी उनके ललचाये होंठों पे , पर जब वो मुंह खोलके चूसना चाहते तो अपने बड़े बड़े निपल हटा लेती।




मंजू बाई की भरी भरी जाँघों में कसी पिंडलियों में बहुत ताकत थी , जिस ताकत से वो धक्के मारती थी क्या कोई मरद गौने की रात अपनी दुल्हन की कसी चूत फाड़ेगा।

लेकिन वो पूरा लन्ड नहीं घोंटती थी ,सुपाड़ा अंदर लेकर अपनी भोंसडे के अंदर उसकी मसल्स को इस तरह दबाती ,निचोड़ती की कोई नया लौंडा हो या कच्चा कमजोर मर्द तो मिनट भर में पानी छोड़ देता।

और फिर सरकते हुए जोर जोर से धक्के मारते , उनकी छाती पे अपनी बड़ी बड़ी चूंचियां रगड़ते दो तिहाई लन्ड घोट लेती।


साथ में गालियां ,उनकी माँ बहन को ,एक से एक गन्दी ,

और सब से बढ़कर उनसे दिलवाती , उनका अपना नाम लगवाकर , और ऊपर से धमकी अगर गालियां रुकी तो बिना उन्हें झाड़े हट जायेगी उनके ऊपर से।

कभी उनका मुंह खुलवाकर ,मंजू बाई अपने मुंह से लार की एक बूँद , एक तार की तरह सीधे उनके मुंह में ,...

एक से एक किंकी ऐक्शन , गर्हित आज रात से पहले जो वो सोच भी नहीं सकते थे , सब उनसे करवा रही थी।


और बस एक बार झड़ने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार थे। मंजू बाई तो तीन बार झड़ चुकी थी ,एक बार उन्होंने चूस के ,एक बार गीता ने चूस के और एक बार उन के लन्ड के धक्को ने उसे झाड़ दिया था ,लेकिन जब उनके झड़ने का नंबर आता तो वो छिनार,...



और बस एक बार झड़ने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार थे। मंजू बाई तो तीन बार झड़ चुकी थी ,एक बार उन्होंने चूस के ,एक बार गीता ने चूस के और एक बार उन के लन्ड के धक्को ने उसे झाड़ दिया था ,लेकिन जब उनके झड़ने का नंबर आता तो वो छिनार,...


और एक बार फिर उन्हें लग रहा था , जब वो बस एकदम कगार पे थे , खुद नीचे से धक्का मार मार के उस विपरीत रति में साथ देना चाहते थे , पर मंजू बाई उठने लगी , उन्हें कुछ समझ में नहीं आया ,

गीता बगल में खड़ी थी , उन्होंने उसकी ओर बड़ी बेकसी से देखा ,बेचारगी से।





वो मुस्करायी ,होंठों से आँखों से , पलकें उसकी जरा सा झुकी और अगले ही पल

मंजू बाई के हाथ गीता के कब्जे में थे , साथ साथ मंजू बाई के कंधे गीता जोर जोर से दबा रही थी ,

लन्ड एक बार फिर सरकता हुया ,मंजू बाई की झांटो से ढंकी मांसल भोंसडे में

" भैया " गीता बोली और बस वो इशारा समझ गए।

उनके खुले हाथ अब मंजू बाई की कमर पे थे , ऊपर से गीता मंजू बाई को पुश कर रही थी ,नीचे से उनके दोनों हाथ मंजू बाई की कमर को पकड़ के अपनी ओर खींच रहे थे ,बस कुछ देर में पहली बार उनका मोटा लन्ड मंजू बाई की बुर में जड़ तक घुसा था ,लन्ड का बेस मंजू बाई की क्लीट पर रगड़ खा रहा था।





और अब वो पागल हो गए , इतनी जोर जोर से उन्होंने नीचे से उछल उछल कर धक्के मारना शुरू किया ,लन्ड उसकी बुर में मथानी की तरह गोल गोल घूम रहा था।

और अब मंजू बाई की हालत खराब होने का टाइम आ रहा था।

गीता ने उसे बार बार गुदगुदी लगा के काबू में कर लिया और मंजू बाई के दोनों हाथ उसकी कमर के पीछे ,मंजू बाई के ही आंगन में पड़े ब्लाउज से बाँध दिए।


" अब चोदो भइय्या कस कस के इसको ,साली बचपन में झांटे भी नहीं आयी थी तो मेरे मामा से अपने भैया से चुदवाने लगी और आज मेरे भैया से चुदवाने का मौका आया है तो गांड पटक रही है ,छिनारपना कर रही है , तूने मेरे भैया की ताकत नहीं देखी माँ ,पक्का मादरचोद है ,पैदायशी। आज तेरे भोंसडे का कचूमर बनाएगा माँ ,मेरा भैय्या। "

गीता हँसते हुए उनसे ,मंजू बाई से बोली।


और जब उनके दोनों हाथ फ्री हो गए थे तो उन्हें भी हाथों का इस्तेमाल आता था ,कुछ आता था कुछ मैंने सीखा दिया था।

कभी जोर जोर से वो मंजू बाई की चूंचियां मसलते रगड़ते ,उसके निपल पल करते , तो कभी एक हाथ मंजू बाई के क्लीट को रगडने लगता , तो कभी दोनों हाथों से मंजू बाई को अपनी और खींच कर कचकचा कर उसकी चूंचियां काट लेते ,

वो बिलबिला रही थी ,चिल्ला रही थी एक से एक गालियां दे रही थी ,पर,...


" भइया कुतिया बना के चोद इस कुतिया को डाल दो सारा पानी इसकी बच्चेदानी के अंदर। " गीता ने चढ़ाया उन्हें।

जिस बहन ने ये मौका दिलवाया था , उसकी बात भला वो क्यों न मानते , और फिर

डॉगी पोज उनकी भी तो फेवरिट थी।





अगले पल ही उस कच्चे आंगन में मंजू बाई झुकी ,निहुरी ,कुतिया बनी

और वो पीछे से हचक हचक कर

साथ में दोनों हाथों से चूंची की रगड़ाई , वो समझ गए थे की मंजू बाई के जादू के बटन उसके निपल हैं ,

हर औरत के जादू के बटन अलग होते हैं ,जिन पे हाथ लगते ही वो पागल हो जाती है ,थोड़ी देर में ही झड़ने के कगार पर पहुँच जाती है।


बस क्या था चुदाई रोक के ,कुछ देर वो सिर्फ उसके निपल जोर जोर से खींचते ,मसलते ,नाखूनों से जोर जोर से स्क्रैच करते ,और फिर





आलमोस्ट सुपाड़े तक लन्ड निकाल कर एक झटके में पूरी ताकत से धक्का सीधे बच्चेदानी पर ,

दो चार धक्के में ही वो झड़ने के कगार पर पहुँच गयी लेकिन गीता ने आँख से रुकने का इशारा किया ,बस ये तड़पाया उन्होंने

और जब मंजू बाई झड़ी तो भी वो नहीं रुके पूरी तेजी से चोदते रहे ,

और जैसे ही मंजू बाई का झड़ना रुका उन्होंने एक हाथ से तेजी से उसके क्लीट को नोच लिया और दूसरा हाथ मंजू बाई के निपल पर

वो फिर झड़ने लगी ,तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी ,सिसक रही थी।

मंजू बाई की चीखें ,सिसकियाँ पूरे घर में गूँज रही थी।

गीता मुस्करा रही थी ,और अब उन्होंने धकापेल चुदाई शुरू कर दी ,हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे ,





बीस पच्चीस मिनट तक बिना रुके , मंजू बाई की चूल चूल ढीली हो गयी।

और अब जब मंजू बाई ने झड़ना शुरू किया उसकी बुर ने इनके लन्ड को भींचना निचोड़ना शुरू किया तो साथ ही वो भी





इतने दिन तड़पने के बाद

ज्वालामुखी फुट पड़ा था , लावा निकल रहा था।
देर तक

कटोरी भर रबड़ी मलाई सीधे मंजू बाई की बच्चेदानी में।



और जब वो हटे तो बस वो थेथर होकर उसी आंगन में गिर पड़ी ,कटे पेड़ की तरह।


वो भी बगल में लेट गए।







और जो कटोरी भर रबड़ी मलाई मैंने मंजू बाई के भोसड़े में उड़ेली थी ,सीधे बच्चेदानी में वो कुछ कुछ छलक कर मंजू बाई की काली काली झांटो के झुरमुट पर भी थक्के थक्के,

कुछ देर में मंजू बाई अंगड़ाई लेते उठीं और गीता को अपने पास बुलाया।





और मंजू बाई ने अपनी दो ऊँगली एक झटके में अपनी बुर में पेल कर ,गोल गोल घुमा कर , ढेर सारी मलाई निकाली और गीता की ओर बढ़ाती बोली ,

" अपने भैया की रखैल , बहुत भैय्या ,भैया कर रही थी न ले गटक भैय्या का माल। "

और बिना हिचक गीता ने मुंह खोल ,जीभ निकाल सारी मलाई चाट ली और बचा खुचा चूस चूस के , एक थक्का गीता के गुलाबी किशोर होंठो,पर था ,


जीभ निकाल के गीता ने उसे भी चाट लिया और बोली ,




' वाह , माँ बहुत स्वादिष्ट है ,ऐसा स्वाद मैंने आज तक नहीं चखा। "

लेकिन मंजू बाई के पास गीता की बात सुनने का समय नहीं था , वो सीधे उनके मुंह पे ,अपना भोंसड़ा उनके मुंह पे रगडती बोली ,






"ले मुन्ना खा ले , माँ के भोसड़े से निकली मलाई का स्वाद और होता है ,जीभ अंदर डाल के चाट , एक भी क़तरा बचा न तो माँ बहुत पीटेगी। "

और वो सपड़ सपड़ एकदम पक्के कम स्लट की तरह




और उधर गीता उनका गन्ना चूसने लगी ,

" अरे भैया तेरे गन्ने में जो लगा बचा है वो मैं चूस के साफ़ कर देती हूँ। "

गीता केहोंठ पल भर में गन्ने पर और मलाई चाटते चाटते उसने ,जोर जोर से चूसना भी शुरू कर दिया।





इनके होंठों से मंजू बाई की रसीली बुर चिपकी थी और रसीले गन्ने से ,गीता के होंठ

पांच सात मिनट ही गीता ने चूसा होगा पर जंगबहादुर को खड़ा करने के लिए काफी था।


पर तबतक मंजू बाई ने गीता को बुला लिया ,


' हे अपने भैया की दुलारी ,चल आज तुझे तेरे भैया की मलाई खिलाती हूँ।

अब वो खेल से बाहर थे और गीता ,मंजू बाई की 69 वाली कुश्ती चालू।

मंजू बाई ऊपर


गीता नीचे

और एक बार फिर गीता के चेहरे की तरफ बैठे , उसे मंजू बाई की चाटते चूसते ये देख रहे थे।





लन्ड उनका गीता ने चूस के ही खड़ा कर दिया था और ये लेसबीयन रेसलिंग देख के और ,... ८-१० मिनट वो देखते रहे ,ललचाते रहे ,

मंजू बाई का रसीला भोंसड़ा , गीता के उसे चूसते चाटते होंठ


और उनका लन्ड और बौराया , भूखा , पगलाया ,खड़ा

एक बार फिर गीता ने इशारा किया , और गीता ने सही समझा की पता नहीं ये इशारा समझे न समझ तो सीधे


उनका लन्ड पकड़ कर के मंजू बाई के भोसड़े से नहीं सिर्फ सटा दिया बल्कि पुश करके उनका तड़पता सुपाड़ा घुसा दिया ,



फिर क्या था उन्होंने जो मंजू बाई के मोटे मोटे चूतड़ पकड़ के जबरदस्त धक्के मारे बस दो चार धक्के में उनका पूरा लम्बा मोटा खूँटा ,मंजू बाई के भोंसडे ने घोंट लिया।






एक बार वो अभी कुछ देर पहले ही झड़े थे इसलिए इस बार तो ,...

और अबकी गीता भी तो थी खेल तमाशे में हिस्सा लेने को मौजूद थी।

कुछ देर जब वो मंजू बाई के भोंसडे परखच्चे उड़ा चुके होते तो , गीता अपने कोमल कोमल हाथों से उनके मोटे खूंटे को निकाल के गप्प से अपने मुंह में , और मंजू बाई की ओर इशारे से कहती ,





" तड़पने दो छिनार को "

कुछ देर चुम्मा चाटी ,चूसा चासी के बाद ,फिर वो हचक हचक के मंजू बाई की भोंसडे की चुदाई में और गीता भी कभी मंजू बाई के मोटे मोटे लेबिया को चूसती तो कभी हलके से उसकी तड़पती क्लीट को काट लेती।

इस दुहरे हमले का असर हुआ जल्द ही ,मंजू बाई झड़ने के कगार पर पहुँच गयी तो गीता ने न उसे धीमा होना दिया और खुद बल्कि कचकचा के मंजू बाई के क्लीट पर अपने दांत गड़ा दिए ,



बस थोड़े ही देर में मंजू बाई ,


ओह्ह उह्ह्ह आह आह ,... जोर जोर से झड़ना शुरू कर देती।





और उनके धक्को की रफ़्तार और तेज हो जाती।

दो तीन बार झड़ने के बाद जब मंजू बाई एकदम थेथर हो गयी तब भी उन दोनों ने नहीं छोड़ा ,

बार बार वो कहती एक मिनट बस एक मिनट और जवाब में वो

सुपाड़ा आलमोस्ट बाहर तक निकाल के उसकी दोनों बड़ी बड़ी चूंचियां पकड़ के एक तूफानी धक्का सीधे उसके बच्चेदानी पे ,

साथ ही बहुत बेरहमी से उसके निपल नोच भी लेते।
,
मंजू बाई की चीखे पूरे आँगन में गूँज रही थीं।





३०-४० मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई और उस को तीन बार झाड़ने के बाद ही वो उसके खेले खाये भोंसडे में झड़े,झड़ते रहे।

मंजू बाई के भोंसडे में मलाई भर गयी और बाहर बहने लगी ,





नीचे गीता थी ही उसने सब चाट चुट के ,



भोर की लाली पूरब से दिखने लगी बादलों का घूंघट उठा के ,


रात की काली मिटने लगी ,पूरब में किसी ने आसमान के साँवले सलोने मुंह पे सिन्दूर मल दिया।


बारिश कब की बंद हो चुकी थी , छत और पेड़ से चूने वाली टप टप बूंदे ,अब एकदम धीमी हो गयी थीं।

लेकिन उन की काम क्रीड़ा पर कोई असर नहीं पड़ा ,



चार बार , दो बार मंजू बाई के साथ और दो बार गीता के साथ सिगनल डाउन हुआ। .




एक से एक किंक , एक से एक गर्हित हरकतें , न कहने लायक ,न सुनने लायक ,न लिखने लायक ,न पढने लायक।


उन दोनों छिनारों ने क्या क्या किया , क्या क्या उनसे करवाया , सोच के भी बाहर



और बहुत चीजें उन्होंने सीखीं भी ,मंजू बाई ने उन्हें किसी लड़की के थन से दूध दूहना सिखाया ,

पहिलौटी बियाई के दूध का क्या जादुई असर होता है ये भी समझाया।





गीता तो जैसे गुड्डी के पीछे हाथ धो कर पड़ गयी थी।


उनके कुछ सोये ,कुछ थके कुछ मुरझाये हथियार पे , सीधे अपने थन से दूध की धार डालते हुए , उस ढूध को लन्ड पे मसलते रगड़ते बोली ,




" आएगी न वो छिनार , तेरी बहना ,जिस ने मेरे सीधे साधे भैय्या को इतना तड़पाया , पहली चुदाई में ही भैया से गाभिन करना , सारी मलाई सीधे उसकी बच्चेदानी में ,

बस नौ महीने में जब बियाएगी न तो बस , फिर तो दूध की कोई कमी नहीं ,और जब तक वो नहीं बियाएगी न मैं हूँ न भैया , अब मैं अपनी ससुराल नहीं जाने वाली , तेरा ख्याल रखूंगी। "

" और एक बात बताऊँ , पहलौठी का दूध और कुँवारी अनचुदी बुर के फटने का ,... एकदम जादू होता है "


मंजू बाई अपने जादू के पिटारे का ज्ञान बांटती बोली।

" अरे ये तो बहुत बढ़िया है माँ , पंद्रह बीस दिन की तो बात है , "





गीता अपनी मुट्ठी में दूध ले के उनके अब जागे फुंफकारते लन्ड पे रगड़ते बोली ,

" जब तू जाओगे न उस के साथ सुहागरात मनाने , बस अपने हाथ से तैयार करुँगी मैं तुझे और जाने के पहले बजाय तेल के यही लगा के भेजूंगी ,पेल देना एक बार में। जब झिल्ली फटेगी तो सारे मुहल्ले में चीख सुनाई पड़नी चाहिए उसकी। बस ,हो जायेगा न पहलौठी का दूध और कुँवारी की झिल्ली फटने का ,.. क्यों माँ। "

मंजू बाई की ओर देख कर वो बोली।

" एकदम तेरी पिलानिंग एकदम सही है , " मंजू बाई ने मुस्करा के कहा और उसका असर भी समझाया ,

" उसके बाद तो मुन्ना तेरा एकदम लोहे का खम्भा हो जाएगा। और लोहे का तो खैर अभी गीता जो कर रही है उसी से , सांडे के तेल से १२ गुना ज्यादा असर होता है पहलौठी के दूध का।

लेकिन उस के बाद न सिर्फ खूब कड़ा रहेगा ,लेकिन झड़ेगा भी तभी जब तुम चाहोगे। हाँ उसका असर उस छिनार गुड्डी पर भी होगा , रोज भिनसारे से उसकी चूत कुलबुलाने लगेगी। बिना लन्ड घोंटे नींद नहीं आयगी छिनार को। "

" अरे माँ ,उस की चिंता काहें करती हो ,मैं हूँ न साली को पूरा रंडी बना दूंगी। जो अबतक नहीं सीखी ,वो सब सीखा दूंगी ,खुद ही लौंडे फांसने लगेगी ,लेकिन उसके पहले मेरे भैय्या से गाभिन होना पडेगा। "


गीता हँसते हुए बोली।

इन सब का असर ये हुआ की उनका लन्ड एक बार फिर से जंगबहादुर हो गया चूत के लिए बेताब ,




क्या क्या नहीं हुआ उस रात , बल्कि सुबह होने वाली थी


गीता को हचक के चोदने के बाद


आंगन में मस्त पुरवाई चल रही थी ,भोर की लालिमा में सब कुछ दिख रहा था।

तेज हवा दरवाजे पर बार बार ,

लग रहा था की कोई दरवाजा खटका रहा है ,

गीता का चम्पई रंग , गले में मंगलसूत्र , आँखों में भरा भरा काजर ,और मांग में दमकता सिन्दूर ,





गीता चुदाई में पूरा साथ दे रही थी ,चूतड़ उचका उचका के , उनके सीने पे पाने रसीले जोबन रगड़ कर ,रसीली गालियां उनके मायकेवालों को दे कर ,


ब्याहता औरतों को चोदने का यही मजा है , उनकी झिझक ,संकोच कब की खत्म हो चुकी होती है ,

और लन्ड के लिए ललक भी तगड़ी होती है।

जितना मजा उन्हें गीता को चोदने में आ रहा था उससे ज्यादा उसके दूध से छलकते थनों को दबाने ,रगडने मलसने में,





गीता की दूध से भरी छातियों को खींच खींच के दूध छलकाने का मजा ही और था।


ऊपर से मंजू बाई उन्हें और उकसा रही थी।



" अरे जरा अपनी बहन का दूध दुह के दिखाओ न , बहनचोद। अरे अभी तो साल भर ये दूध देगी ही और जब बिसुक गयी न , तो तुझी से गाभिन कराउंगी इसे ,और नौ महीने बाद फिर से दूध। "






मंजू बाई ने समझाया।

वो गीता की चूँचियों से निकला दूध गीता की ही चूंचियों में पोत रहे थे ,लपेट रहे थे। थोड़ी देर में ही गीता की गोरी गुलाबी चूंचियां ,एकदम दूधिया।

गीता नीचे से चूतड़ उछाल के जबरदस्त धक्के लगाते उन्हें आँख मार के मंजू बाई से बोली ,

"सही है माँ ,और उस बीच इन की वो बहिनिया , वो दूध देने लगेगी न ,बस आते ही देखना महीने भर के अंदर उसे गाभिन करा दूँगीं, उसे तो तब पता चलेगा जब उस का पेट फूल जाएगा। बस भैया मेरा वायदा दस महीने के अंदर सोहर होगा। "



लेकिन मंजू बाई किचेन में चली गयी थी ,जब लौटी तो उसके हाथ में एक बड़ी सी पुरानी सी शीशी , शहद से भरी।

मंजू बाई ने उसमें से शहद निकाल के अपनी उँगलियों से खुद गीता की दूध से डूबी चूँचियों पर पोतना शुरू कर दिया और साथ में उन्हें समझा भी रही थीं ,

" ये कोई ऐसा वैसा शहद नहीं है , ख़ास आम के बौर का, पुराना ,जबरदस्त असर होता है इसका। "

कुछ देर में ही आधी बोतल खाली हो गयी थी ,सारी की सारी गीता के जुबना पे ,




चुदाई अपने चरम वेग पर पहुँच गयी थी।

सुबह हुआ चाहती थी ,

गीता जोर जोर से झड़ रही थी , सावन भादो में कांपते पत्तो की तरह उसकी देह काँप रही थी ,

और वो बस ,




लेकिन मंजू बाई ने अपने हाथ से पकड़ के उनके शिष्न को बाहर कर दिया और सीधे गीता की दोनों चूँचियों पर ,





ढेर सारी थक्केदार मलाई सीधे गीता की चूँचियों पे , और अब गीता ने लन्ड पकड़ कर दबाना भींचना शुरू कर दिया ,एक बार फिर से मलाई की पिचकारी दोनों जोबन पर ,गाढ़े सफ़ेद थक्कों से उसकी छातियाँ भर गयी , बस कहीं कहीं शहद





और बचा खुचा गीता के चेहरे पर ,अच्छा खासा फेसियल हो गया।

कुछ वो समझ रहे थे बाकी गीता के हाथों ने उन्हें समझा दिया ,

उनका मुंह सीधे गीता के उभारों पे ,






गीता का दूध ,आम केबौर का शहद और उनकी मलाई





और साथ गीता की पहले दो ,फिर तीन उँगलियाँ उनकी गांड के अंदर जोर जोर से उनकी गांड मारती , जोश दिलाती ,

"चाट साले ,चाट मादरचोद ,अरे अपने सामने तुझे उस भोंसडे में घुसाउंगी जिससे तू निकला है ,माँ का यार चाट अपनी बहन की चूंची। "





जब तक चाट चाट के उन्होंने पूरे जोबन को साफ़ नहीं किया ,गीता ने नहीं छोड़ा।



"जबरदस्त असर होगा इसका देखना तुम क्या मस्त ताकत मिलेगी , तेरा झंडा हरदम खड़ा रहेगा ,कभी थकान नहीं लगेगी , और दो चार औरतो को तू बिना सांस लिए निपटा देगा। "
……………………


जब वो वापस निकले , तो छह बज गए थे।

एकदम थके,पस्त।

रात में चार बार ,दो बार मंजू बाई के साथ और दो बार गीता के साथ ,निचोड़ के रख दिया था दोनों ने। लेकिन मजा भी बहुत आया।

मंजू बाई तो कहीं काम पे चली गयी थी ,जब वो निकले उस के पहले।

गीता ने चाय पिला दी थी चलने के पहले इसलिए थोड़ी थकन कम हो गयी ,ताकत वापस आ गयी।
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