जोरू का गुलाम या जे के जी

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kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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जिस ताकत से उसने पेला , ऑफ अभी भी सोच के झुरझुरी छूट जाती है।

मेरी चीख निकली लेकिन नहीं निकली।

वो इतना खेला खाया ,तभी तो उसे सब सांड कहते थे।

मेरी चीख निकलने के पहले ही उसके होंठ मेरे होंठों पर , और मेरे होंठ सील बल्कि अपनी जीभ भी उसने मेरे मुंह में डाल दी।



और पेलता रहा ठेलता रहा ,घुसेड़ता रहा।

दर्द से मैं बिसूरती रही , बिलखती रही अपने किशोर चूतड़ पटकती रही ,लेकिन अब कौन बचत थी।

मेरे हाथों ने खेत में उगी घास पकड़ ली थी ,पर जो उसने अगला धक्का मारा तो वो दर्द से मैं ऐसी ,...

घास मेरे हाथ में आ गयी।

जाँघे फटी पड़ रही थीं ,दर्द पेट में , पूरी देह में

चार पांच मिनट तक , लगातार वो ठेलता रहा।

और जब वो रुका , तो भी उसने मेरे मुंह से अपनी जीभ नहीं निकाली।




लेकिन दर्द कुछ कुछ कम होना शुरू हुआ , मेरे 'वहां ' तो अभी एकदम फटा पड़ रहा था, जाँघे भी दर्द से चूर थीं लेकिन बाकी देह में ,

और सामू ने अब हलके हलके मेरी कच्ची अमिया सहलानी शुरू की।

देह में एक बार से वही मस्ती ,मेरे मुंह से जीभ निकाल के उसने नए आये छोटे छोटे निप्स को सहलाना शुरू कर दिया। कच्चे टिकोरों पर हलके से दांत भी वो लगा देता।




एक बार फिर बस , ... मन कर रहा था ,...

लेकिन वो रुका हुआ था ,

उसका एक हाथ कच्ची अमिया पे तो दूसरा मेरी सहेली पे ,उसकी जादू के बटन पे ,

दर्द तो अभी भी बहुत हो रहा रहा था पर मन भी कर रहा था , वो करे ,और करे


लेकिन वो रुका हुआ था।

उसके होंठ एक बार मेरे होंठों के पास आये और मैंने खुद अपना चेहरा उठा के अपने रसीले होंठों से उसके होंठ चूम लिए। और

नीचे से हलके से अपने चूतड़ उचका के ,

बस ,

जैसे कोई धनुर्धर अपने कंधे पर लगा के प्रत्यंचा खींचे , बस एक बार फिर उसने मेरी टाँगे अपने कंधे पर सेट कीं ,तीर को थोड़ा बाहर निकाला और

बाण चला दिया।

बेध दिया बांकी हिरनी को।





जैसे कोई बांध टूट पड़ा हो , दर्द का।

उईईईईईई जोर से चीखी मैं ,

ये मुझे भी मालूम था और उसे भी की ये चीख सुनने वाला कोई नहीं है ,इस डेढ़ एकड़ के गन्ने के खेत के हम बीचों बीच थे।

ओह्ह्ह्हह , अह्हह्हह चीख तेज होती जा रही थी।

बादल एकदम काले हो गए थे।

नहीं उईईईईईई , चीख तेजी होती जा रही थी ,

पास की अमराई से ढेर सारी चिड़िया पेड़ों से उड़ गयीं ,

मैने दो हाथों में कस के मिटटी के बड़े बड़े ढेले पकड़ रखे थे वो मिटटी हो गए।

मैं बेहोश हो गयी ,या पता नहीं ,इस बात का भी तो होश नहीं था ,

सिर्फ दर्द ,एक बहुत तेज दर्द का अहसास हो रहा था जो मेरी जाँघों के बीच से निकल के पूरी देह में फ़ैल रहा था।

पर वो बेरहम ,हलके से निकाल के उसने एक बार पहले से भी तेज , और बार बार , बिना रुके।






मेरी देह पसीने में डूब गयी थी ,कुछ सोचा नहीं जा रहा था।

मैंने गाँव में कुछ साल पहले ही कान भी छिदाया था ,नाक भी खून भी निकला था ,दर्द भी हुआ था लेकिन ऐसा नहीं।

मैं लाख कोशिश कर रही थी लेकिन चीखे रुक नहीं रही थी।


पर थोड़ी देर में वो रुक गया ,कान के पास अपने होंठ सटा के फुसफुसाया , हो गया।

और उसकी बात का असर ,दर्द अपने आप उतरने लगा , सिवाय जाँघों के बीच।

उसके होंठ ,उसकी जीभ उसकी उँगलियाँ अब मरहम लगा रहे थे ,कभी होंठों को चूम के तो कभी कच्चे टिकोरों को।

कुछ देर में एक बार फिर मेरा मन करने लगा ,और अबकी वो खुद ,धक्के चालू हो गए ,लेकिन बहुत हलके ,

हर धक्के के साथ एक टीस सी उठती लेकिन एक मजे की लहर भी चालू हो जाती।

पर अब वो सिर्फ धक्के नहीं लगा रहा था ,मेरी पूरी देह उसकी देह से रगड़ी कुचली मसली जा रही थी।





अपनी चौड़ी छाती से मेरी छोटी छोटी चूँचियों को कुचल रहा था ,मसल रहा था। उसके हाथ कभी मेरी नितम्बों को सहलाते तो

कभी जाँघों के बीच घुस के सीधे क्लिट को मसल देते ,

धक्के हलके हलके थे बस लग रहा था जैसे गाँव की भौजाइयों के साथ मैं अमराई में झूला झूल रही हूँ और वो पेंग लगा रही हों, हौले हौले।

पेंग की रफ़्तार उसने बढ़ा दी और अब मेरी देह भी मेरे बस में नहीं थी ,मेरे चूतड़ भी उचक उचक के उसके पेंगों का जवाब देने की कोशिश कर रहे थे।

मैंने एक बार फिर उसे अपनी बाँहों में भींच लिया था और मेरे होंठ हर चुम्मे का जवाब चुम्मे से दे रहे थे।

देह मेरी कांपने लगी और उसने धक्को की रफ़्तार तेज कर दी।

हचक हचक ,सटाक सटाक ,

एक बार फिर मेरे हाथों ने मिटटी ,के ढेलों को पकड़ लिया था ,

मैं काँप रही थी ,चूतड़ उठा रही , सिसक रही ,

एक बार फिर वो ढेले चूर चूर हो के मिटटी हो गए लेकिन अबकी दर्द से नहीं , मजे से।

कुछ देर हम दोनों रुके रहे , पर सामू कहाँ रुकने वाला , अबकी स्पीड भी ताकत भी ज्यादा और सिर्फ चुदाई ,

मैं देख रही थी उसके मोटे हथियार को अपने अंदर घुसते ,बाहर निकलते ,

और थोड़ी देर में ,एक बार फिर से लेकिन अबकी और खुल के ,मैं उसका साथ दे रही थी

मजे ले रही थी।

दर्द अभी भी बहुत था ,खासतौर से जाँघों के बीच लेकिन मजा भी बहुत आ रहा था।

झूले की रफ़्तार तेज हो गयी , और सामू की शरारते भी जैसे भौजाइयां जैसे ही झूला तेज हो जाता है हम ननदे समझ जातीं है ,

और भाभियों के हाथ ब्लाउज के ,कुर्ते के अंदर ,जांघों के बीच घुसना शुरू कर देते हैं।




बस वैसे ही मेरी कच्ची अमियों का मजा अब वो जम के ले रहा था कभी होंठों से तो कभी हाथों से।

मेरी भी सिसकियाँ तेज हो गयी थीं और थोड़ी देर में मैं ,

दूसरी बार झड़ रही थी।

पर सामू का औजार उसी तरह तना , टनटनाया मेरे अंदर घुसा।

अबकी जो जंग शुरू हुयी तो एकदम जैसे आर पार की हो , सामू अब सब कुछ भूल के की ,

मैं हाईस्कूल की लड़की हूँ ,


आज पहली बार ,... अभी अभी मेरी ,...

दर्द एक बार फिर से ,जगह जगह टीस ,जहाँ उसका हाथ लगता जहां नाख़ून और दांत लगते ,दर्द के मारे

लेकिन अब उस दर्द में मजा भी मिल रहा था ,मैं भी अब ,...

अबकी बहुत देर बाद लेकिन ,

मैं फिर कांपने लगी

और सामू ने पेंग की रफ़्तार फुल स्पीड कर दी , सावन के असली झूले का मजा ,

और अबकी मैं जो झड़ी तो देर तक




और साथ में सामू भी , जैसे मलाई का बांध टूट गया हो।

देर तक हम लोग ऐसे ही गन्ने के खेत में लिपटे पड़े।

मेरा तो उठने का मन ही नहीं कर रहा था न जरा भी ताकत बची थी देह में।

लेकिन सामू ने मेरी चड्ढी अपनी धोती पर से उठा के , नीचे वहां पोंछना शुरू कर दिया ,

और तब मैंने देखा ,पहली बार

खून , .... गाढ़े सफ़ेद थक्को के बीच ,

और मेरी निगाह अपनी चुनमुनिया पे पड़ी ,

खून , और खून ,...

इत्ता तो मुझे मालूम था की पहली बार फटेगी तो खून निकलेगा लेकिन इतना ,

और अपना खून देख के किसे डर नहीं लगेगा।

सामू ने मुझे आँखे बंद करने का इशारा किया और फिर ऊँगली में मेरी चड्ढी फंसा के थोड़ा सा अंदर भी साफ़ सुथरा ,

और फिर मुझे सहारा देकर खड़ा किया।

मैं लड़खड़ा रही थी लेकिन मेरी निगाह अपनी सोनपरी पर ही पड़ी , थोड़े थोड़े मलाई के थक्के अभी ,पर अब खून नहीं था।

जोर से एक चिलख निकल गयी ,और मैं लड़खड़ा उठी।


पर सामू ने सम्हाल लिया। किसी तरह मैंने अपना टॉप स्कूल की यूनिफार्म का फिर से पहना ,स्कर्ट सीधी की , और सामू का हाथ पकड़ के धीमे धीमे ,गन्ने के खेत से बाहर निकली।

बादल खूब काले थे। और ऐसे मौसम में एकदम सन्नाटा होना ही था।

मुश्किल से मैं साइकल पर चढ़ी। पर दर्द के मारे कुछ देर में मैं उतर जाती ,

जब हमारा गाँव आ गया तो मैं गाँव में घुसते ही साइकिल से उतर गयी ,१०० -२०० कदम ही हमारा घर था ,और आस पास किसी और का घर भी नहीं था। बस हमारी बाग़ ,दो कुंए , गाय बैलों को बाँधने का , एक बड़ी सी चारा काटने की मशीन।

और अब मैं किसी तरह बिना सामू के सहारे के चल रही थी।

सामू आगे आगे साइकिल पकडे ,पीछे पीछे मैं।

अब उसे शायद मेरी हालत का ,मेरे दर्द का अहसास हो रहा था इसलिए रास्ते में एकदम चुप रहा वो।

जब घर सामने दिखने लगा तो वो मेरी ओर मुड़ के हलकी सी आवाज में बोला ,



" कल तो स्कूल बंद है ,कल ,... नोटिस ,... "

उसकी बात काटते हुए मैंने जोर से उसे घुड़क दिया।




" तुमसे किसने कहा ,तूने नोटिस देखी थी ? "

" नहीं ," उसने हलके से कबूला पर फिर बोलने की कोशिश की ,

" पर , ... लेकिन ,... "

" ये पर लेकिन क्या , तुमने नोटिस नहीं देखी न ,मैंने भी नहीं देखी। बस।

अरे किसी लड़की ने बोल दिया था रस्ते में की आज बंद है बस इसलिए मैं स्कूल पहुंची कहा ,पहले से ही लौट आयी ,तुम भी न "


मैंने अब उसकी आँखों में आँखे डाल के मुस्कराते हुए कहा।

और अब वो कुछ कुछ समझ गया था। बाकी मैंने साफ़ साफ़ बोल दिया ,

"कल स्कूल बाकायदा है ,बल्कि कल तो एक एक्स्ट्रा क्लास भी है न , तो रोज से आधे घंटे पहले ,समझ गए ,... और ज़रा भी लेट हुए तो समझ ले ,... कुट्टी। "

मैं अपने छोटे छोटे चूतड़ मटकाते उसे ललचाते अंदर घर की ओर बढ़ी , और घर में घुसने से पहले , मुड़ के उसे देख के मुंह से जीभ निकाल के चिढ़ा दिया, ।

और अंदर।




हाँ घर में घुसने के पहले उसे जबरदस्त आँख भी मारी , होंठों से एक मीठी सी चुम्मी भी दी , और फिर उसे ललचाते हुए अपने छोटे छोटे चूतड़ उसे दिखा के मटकाते , सीधे घर के अंदर
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जोरू का गुलाम भाग १२६

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जोरू का गुलाम भाग १२६

घुसते ही मैंने रोज की तरह जोर से आवाज लगाई ,

" मम्मी "

" नहीं है वो ,पड़ोस में गयी हैं , शाम तक आएँगी , तुम ऊपर अपने कमरे में चलो मैं आती हूँ। "



गुलबिया की आवाज थी।

सीढी पर चढ़ते एक एक बार फिर दर्द की चिलख ,एक एक सीढी पहाड़ हो रही थी। कमरे में घुसते ही मैंने अपना बैग एक ओर अपने बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पड़ी।उईईई जोर की चीख निकली।

एक बार फिर से जाँघों के बीच से दर्द की लहर दौड़ पड़ी थी। रुक रुक कर वहां टीस हो रही थी।

अच्छा भी लग रहा था ,जिस पल का मुझे इन्तजार था वो हो गया।

नहीं नहीं क्लास में मैं पहली लड़की नहीं थी ,जिसकी फटी थी। ४० लड़कियां थीं , कम से कम ८-१० की फट चुकी थी , और तीन चार के तो घोड़े रोज दौड़ते थे। सिर्फ लड़कियों का स्कूल था इसलिए खुल के हम लोग बातें करते थे।

पर दर्द भी हो रहा था और थकान भी लग रही थी।

मैं आँखे बंद कर के बस पड़ी थी की थोड़ी देर में दरवाजा खुला , और गुलबिया अंदर ,उसके हाथ में एक बड़ा सा कटोरा था , कुछ और ,.. मैंने कनखियों से देखा और आंखे बंद कर ली।





पहले अंदर से उसने दरवाजे की सिटकिनी बंद की फिर वो कटोरा उसने बगल के स्टूल पे रखा , और लगी मुझे गुदगुदाने , कब तक मैं आँख बंद रखती।

और मेरी आँख खुलते ही ,उसने मेरी स्कर्ट पलट दी।

" क्यों मेरी सोनचिरैया ने चारा खा लिया? "

मैं और गुलबिया से झूठ हो नहीं सकता था , बस खिस्स से मुस्करा दी।

और वैसे भी नीचे मेरी सोनचिरैया में फंसे , गाढ़े मलाई के थक्के अपनी कहानी कह रहे थे।




बहुत हलके से उसने अपनी ऊँगली से उसे फैलाया ,और दर्द की फिर एक चिलख उठी।

" मुस्कियाने से काम नहीं चलेगा , साफ़ साफ़ बोलो ,मेरी ननद रानी ,कहाँ बजी पायल। "




मैं सिर्फ मुस्कराती रही ,और मेरी गुलाबो को छेड़ते हुए फिर बोली ,

" गन्ने के खेत में ,

काले बादल आसमान में

तेज हवा और फट गयी , है न , बोलो मेरी ननद रानी "

" तुझे कैसे पता चला "


मुस्कारते हुए मैने भौजी से पूछा।

" मैं देख रही थी "


अब उसकी मुस्कराने की बारी थी , उसने कबूला।

" कहाँ से "


" जहाँ से तुम कल देख रही थी "


हंस के वो बोली।

अब मैं घबड़ा गयी। गुलबिया तक तो ठीक थी ,मेरी असली भौजी तो खै र कोई थी नहीं ,अगर होती भी तो ये उससे भी ज्यादा मेरी दोस्त थी , पर

अगर कही गुलबिया के यार ने भी देख लिया हो तो ,फिर तो ,

" उसने तो नहीं देखा " मैंने परेशान हो के पूछा।

" नहीं यार " मेरे गाल पे चिकोटी काटते बोली वो और छेड़ा ,


" तुम सच में बच्ची हो,भले जोबन लड़कियों से आ गए हैं ,अरे चोदते समय मरद सिर्फ चूत देखता है। और वैसे भी वो तो एक बार घुस जाय बस आँख बंद कर के हचाहच ,

अब उसने टॉप भी उठा दिया और गुलबिया ने मेरी कच्ची अमियों को सहलाते पूछा ,




" बोल मजा आया की नहीं ? "

गुलबिया से तो मैं झूठ बोल नहीं सकती थी , तो उसकी आँखों में आँखे डाल के मैंने कबूल कर लिया.

" हूँ , ... लेकिन दर्द भी बहुत हुआ , अभी तक टीस हो रही है "

" तो ई भौजी कौन मर्ज की दवा है ,टांग फैलाओ जैसे गन्ने के खेत में फैलाई थी वैसे ही ,हाँ थोड़ा और। "

वो बोली और कटोरे में से गीली रुई का एक पैड ऐसा , गुनगुने पानी में डूबा सीधे मेरी जाँघों के बीच रख दिया , और हलके हलके दबाने लगी।

फिर कुछ देर में उसे निकाल के कटोरे के गुनगुने पानी में , और कटोरे से एक दूसरा पैड मेरी बिल के ऊपर।

साथ ही साथ वो मेरी जाँघों को सहला भी रही थी ,दर्द धीरे धीरे उसे गुनगुने पानी में घुलने लगा। तकिये के सहारे गुलबिया ने मुझे बैठा दिया।

"बस थोड़ी देर सिकाई कर लो , आज आराम कर लो ,कल देखना फिर ये तेरी सहेली चारा घोंटने के लिए तैयार हो जाएगी। "

गुलबिया ने छेड़ा।

मुझे याद आया सामू कैसे घबड़ाया था पर मैंने खुद उसे चढ़ा के ,हड़का के ,छेड़ के कल के लिए ,... पर गुलबिया से मैं बोली ,

" ना ना ना ,एक बार में जान चली गयी ,दर्द के मारे जान निकली जा रही है , और तुम ,... "




" मेरी मुनिया को तू नहीं जानती ,ननद रानी ,.... " मेरी बिल में हलके से एक ऊँगली घुसाते वो बोली , और जोड़ा

" इस के दरद का इलाज इहै है , और दरद हो ,रोज रोज दरद हो , कई बार दरद हो , फिर तो दर्द और दर्द का डर दोनों निकल जाएगा , वरना एक बार हदस गयी न तो फिर मारे डर के , ...





देखना असली मजा तो इस गुलाबो को कल आएगा ,जब रगड़ते दरेरते जायगा अंदर तक। "


हलके हलके उंगलियाते गुलबिया ने समझाया और फिर एक गुनगुने पानी का पैड मेरी जाँघों के ऊपर , हलके से। "

गुलबिया का इलाज , छेड़छाड़ और बातों तीनो का असर हो रहा था ,दरद घुल रहा था।

टीस अभी भी हलकी हलकी थी पर मेरे मन में अभी से कल की प्लानिंग ,...

कल तो स्कूल बंद है ,मुझे भी मालुम है और सामू को भी ,फिर मैंने उसे एक्स्ट्रा क्लास के बहाने जल्दी भी बुलाया है , कल तो ,... टाइम ही टाइम। दर्द होगा तो होगा ,एकबार और ,... फिर देखूंगी। ...

गुलबिया मेरे बगल में बैठी थी , उसका चेहरा मेरे ऊपर झुका हुआ ,शायद मेरी किशोर आँखों के सपनों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी ,... और झुक के उसने मुझे चूम लिया। मैंने भी अपने होंठ उठा के ,चुम्मी का जवाब चुम्मी से ,

ये हम दोनों के बीच नयी बात नहीं थी ,गाँव में तो जवान होती लड़कियां ऐसे ही सब सीखती हैं।


रतजगा में तो भौजाइयां हरदम नयी नयी जवान होती ननदों को ही अपना निशाना बनाती हैं और गुलबिया तो खास तौर से मेरे साथ, और क्या नहीं होता रतजगे में ,.. और मेरी मम्मी तो और वो खुद उसे उकसा के मेरे पीछे

" एक बार सात आठ से ,... तब तुम एकदम हमार असल पक्की छिनार ननद होगी " दुबारा चूमते हुए वो बोलीं।

" धत भउजी ,एक बार में इहाँ जान निकल गयी ,और तू सात आठ बार कह रही हो ,... " मैंने बुरा सा मुंह बनाया।




मेरे कच्चे टिकोरों की आ रही घुंडी मरोड़ती वो बोली ,

" सात आठ बार नहीं सात आठ मरद ,अरे ई मस्त जवानी अइसन गोर चिक्क्न देह ,जबरदस्त जोबन ,... घबड़ा जिन , जब तक सात आठ लौंड़ा न घुसिए एक बुरिया में तब ले , अरे लेकिन, ,,, तू ओकर चिंता छोड़ा ,एकबार चिरैया उड़ने लगेगी न तो फिर तो अपने आप , ... और आज फाटक तो खुल ही गया। अरे गुलबिया काहें है ,एकदम उपवास नहीं करना होगा हमारी छिनार ननद को। "

स्कर्ट तो उसने पहले ही उतार दी थी मेरी टॉप भी खींच के उतार दी , कटोरे का पानी भी अब ठंडा हो गया था। बोली ,

बस एक चादर ओढ़ लो अभी आती हूँ ,ज़रा इसको धुलने के लिये डाल दूँ ,

बात उसकी सही थी दोनों में गन्ने के खेत की मट्टी लगी थी और कोई भी देखता तो समझ जाता ,की क्या ,कहाँ ,

लेकिन दरवाजे के पास वो रुक गयी ,मुस्कराते हुए जैसे कोई जादूगर मुट्ठी से कबूतर निकाले ,

उसने मेरी चड्ढी दिखायी , खून और वीर्य में लिथड़ी।

" वहीँ गन्ने के खेत में मिली थी , लेकिन ये नहीं धुलेगी और न तुझे मिलेगी। आज की यादगार ,मेरी ननद की आज नथ उतरी ,हाँ आठ जब घोंट लोगी तो मान जाउंगी अब हमारी ननद हमारी टक्कर की हो गयी और फिर तोहें वापस। "


मैं बिना कुछ भी पहने चद्दर में लिपटी गुलबिया की बातें सोच रही थी ,सिहर रही थी।

मैं बिना कुछ भी पहने चद्दर में लिपटी गुलबिया की बातें सोच रही थी ,सिहर रही थी।

बीस पच्चीस मिनट में गुलबिया फिर लौटी एक बड़ा सा ग्लास उस में औटाया हुआ दूध ,

" इस में कच्ची हल्दी ,शतावरी ,शहद पड़ा है , तुम्हारी सब थकावट दर्द दूर हो जाएगा ,हां ये बताओ , वो पांच दिन वाला कब ख़तम हुआ था , "

गुलबिया ने बताया भी पूछा भी।

" तीन चार दिन हुआ "

मैंने बता दिया।

उसने लम्बी सांस ली।

" चलो तब कउनो डरने की बात नहीं , पहला हफ्ता तो एकदमे सेफ रहता है ,लेकिन ई गोली ले लो, ई दूध के साथ। और शाम को हम पूरा पत्त्ता ले आके दे देंगे , रोज बिना नागा शाम को ,समझी। "


हाँ ,मैंने बोला , और उसके हाथ से गोली ले के गटक लिया और दूध पीने लगी।

जो बात मैं पूछना चाहती थी वो उसने बिना पूछे बता दी।




" मम्मी तोहार , कउनो मीटिंग में गयी हैं शाम को आएँगी। लेकिन हम उनको बोल देंगे की तुमको बहुत स्कूल का काम है , रात में खाना हम यहीं लाके खिला देंगे अपनी ननद कोबस तू आराम करा। थोड़ी देर में नींद आ जायेगी। "

थोड़ी देर क्या पांच मिनट में ही मैं सो गयी , बिना अंदर से दरवाजा बंद किये।

और पांच बजे जब दरवाजा खुला , गुलबिया चाय ले के अंदर आयी ,मैं तब तक सो रही थी। गाढ़ी नींद में।

मम्मी तब तक नहीं आयी थीं।

गुलबिया भी न , एकदम ,... गुलबिया , मेरी अच्छी वाली मीठी मीठी ,प्यारी भौजी।




उसने झट से चददर उठा के फेंक दिया , उसे इस बात का कोई फरक नहीं था की मैं उघारे सो रही थी। उसके होंठ मेरे होंठों पर ,




खूब मीठी वाली मीठी मीठी चुम्मी , एक दो नहीं पूरी दस ,


और हाथ मेरी भौजी के कहाँ ,

मेरी कच्ची अमिया पे ,सहलाते ,दुलराते।




टुक्क से मैंने आँखे खोल दी। टुकुर टुकुर अपनी भौजी को देखती मुस्कराती ,

और चुम्मे के बदला चुम्मा ,

माना गुलबिया जिस स्कूल की मास्टराइन थी मैं ने उसमें अभी अभी दाखिला लिया था ,

लेकिन थी तो अपनी भौजी की असली छुटकी ननदिया ,

मेरी कच्ची अमिया खुली थी तो मैं अपनी भौजी के दूध के कटोरे क्यों बंद छोड़ देती और झट झट , चुटपुटिया बटन

चुट पुट चुट पुट , गुलबिया के उभार भी मेरे हाथ में ,और कोई पहली बार तो मैं उसकी चूँची नहीं दबा रही थी ,





कितनी बार रतजगे में मैं दुल्हन बनती थी और गुलबिया दूल्हा , ममी और गाँव की सब औरतो के सामने ,बल्कि वही सबसे ज्यादा ललकारतीं थी

" कइसन भौजी हो ऊपर झापर से मजा ले रही हो और खोल दो न ,एह गाँव की कुल ननदे सब पक्की ,... "

असल में निशाने पर बुआ होती थीं मेरी मम्मी की ननद ,और सिर्फ असली वाली नहीं ,गाँव के रिश्ते की कोई भी जो पकड़ में आ जायँ।

और आज तो मैं गन्ने के खेत में सच मच की कबड्डी खेल के आयी थी।

जितनी जोर से वो दबाती उतनी जोर से मैं भी , मैच बराबरी पर छूटा।

फिर मेरी भौजी नाश्ता कराने में जुट गयी , और गालियों को झड़ी साथ में।

" ननदिया हमार है पक्की छिनार ,

अरे उसको तो चाहिए दस दस भतार ,

एक जाय आगे दूसर पिछवाड़े ,

बचा नहीं कोई नउआ कहांर

मैं तुमसे पूछूं हे ननदी रानी तोहरी बुरिया में का का समाय ,

अरे भौजी तोहरे भइया समाय

अरे गुलबिया भौजी के भइया समाय ,अरे उनके तो सैयां समाय ,

गांव के सब उनके देवर समाय ,

अरे गदहा समाय और घोडा समाय ,

हलवा पूरे कटोरे भर था , घी ऊपर तक तैर रहा था , बादाम ,काजू ,किशमिश भरे ,...




" अरे हलवा नहीं खाओगी तो ई गाँव के लौंडे , मेरे देवर ,मेरी इस छिनार ननंद का हलवा कैसे बनाएंगे , और न खाना हो न खाओ मुंह से ,मैं इहि कलछुल से तोहरी गंडिया में डाल दूंगी , जाएगा तो तोहरे पेट्वे में , "
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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पूरा का पूरा खिला के दम लिया उसने। दूध भी दो इंच मलाई डाल के।

और उ भौजाई कौन जो ननद की बिल क हाल चाल न पूछे , बस गपाक से दो ऊँगली एक साथ , रोकते रोकते भी मेरी चीख निकल गयी।




" अबहियों बहुत कसी हो , रोज चोदवावा ,कम से कम ७-८ लौंड़न क धक्का ई खायी तब जाइ के ,.. "

और साथ में गुलबिया सीधे 'मेरी सहेली ' से बतियाने लगी ,

" अरे एकरे चक्कर में मत पड़ो , हमार बात मानो। अपने भौजी की बात मानोगी न तो रोज मोट मोट लंबा लम्बा , घोंटे क मिली। एकबार फट गयी तो अब तो खाली मजा है ,अरे सावन में फटी है तो बिना नागा सड़का बरसना चाहिए , रोज सफेद मलाई घोंट के आना और रोज हम अंगूरी डार के , ... और अगर कउनो दिन सूखी मिली तो समझ लो , .... अरे अब लौंडे पटाना सीखो , अगर मोटे तगड़े लंड चाहिए न , ... भरौटी ,चमरौटी , पठानटोला , केहू के मना मत करना , सात आठ कम से कम , दो चार तो एक साथ ,... "


और मैं खिलखिला रही थी ,

" भौजी एक में तो जान निकल गयी और तुंहु न "

" अरे यह दरद का इलाज मोट मोट लंड ही है समझी ननद रानी "

गोल गोल घुमाती बोली और उस की निगाह ताखे पे पड़ी और मुझ पे डांट पड़ गयी।

ताखे में वो एक बड़ी सी बोतल में कुछ दिन पहले गाय का कच्चा घी रख गयी थी , इस हुकुम के साथ की रोज सोने से पहले अपनी चुनमुनिया में अंदर बाहर दोनोंउसकी मालिश करूँ।


पर बोतल में घी उतने का उतना था।

" लगईलू की ना "

" एक दो दिन , ... "

अपनी गलती मानते हुए हलके से मैं बोली।

उसने घूर कर देखा , बोतल उतारी और एक कहीं से एक पुड़िया खोली , फिटकरी का चूरन था। बोतल से घी निकाल के उसने , फिटकरी उसमें मिलाई बहुत ज़रा सी और सीधे मेरी बिल में , और साथ में ज्ञान भी।

" सबसे बड़ा बिटामिन बुरिया के लिए मरद क मलाई है। एह लिए एकदम निचोड़ के एक एक बूँद ,




और ओकरे बाद ई गाय क सुद्ध कच्चा घी , आज से रोज बिना नागा सौवे क पहिले , एक चम्मच अंदर ,दोनों ऊँगली डार के ,... और ओकरे बाद एक चम्मच बाहर , फिर बुरिया कस के भींच के सोइ जा।

सबेरे नहाय के बाद स्कूल जाय से से पहिले ,कम से कम डेढ़ दो चम्मच घी ,लेकिन कुल अंदर और ओकरे बाद कम से कम दस मिनट तक ओके भींच के , हाँ और अबकी नागा हुआ न तो रोज रात में आइके हमखुदे लगाय के जॉब अपनी ननदिया के ,.. "

साथ में उसने वार्निंग भी दे दी।

घबड़ा के मैं तुरंत हामी भरी दी। नहीं भौजी एकदम रोज लगाउंगी बिना नागा पक्का।

तबतक नीचे से मम्मी के आने की आवाज आयी और सब बरतन समेट के बोतल ताखे पर रख के गुलबिया धड़धड़ सीढ़ी से नीचे।

और मैंने भी झट्ट से एक फ्राक पहन ली ,किताबें खोल के पढ़ने बैठ गयी ,क्या पता मम्मी कब ऊपर आ जाएँ।

खैर मम्मी तो नहीं आयीं ,गुलबिया उनकी भी चहेती थी। गुलबिया का बोलना काफी था मैं स्कूल के होमवर्क से जूझ रही हूँ ,खाना ऊपर ही खाउंगी।

खाना लेकर गुलबिया न सिर्फ आयी ,बल्कि अपने हाथ से ही खिलाया भी और दूध भी और सुबह की तरह फिर उसमे कच्ची हल्दी ,शतावर ,शहद और न जाने क्या क्या पड़ा।

साथ में बताती भी रही , टाँगे फैलाने और उठाने के बारे में ,मरदों से कैसे ज्यादा से ज्यादा मजा लिया जाए ,उन्हें उकसा के और चुदाई में जितना मर्द का रोल है उससे भी ज्यादा औरत का।

थकान तो गायब ही हो गयी थी रात भर मैं एक नींद सोई ,हाँ सोने के पहले एक चमच घी अंदर और एक चम्मच बाहर लगाना नहीं भूली।

सुबह उठी तो एकदम फ्रेश।

गाँव की ताजा टटकी सुबह ,सूरज भी बस अभी झाँक रहा था।


बगल की अमराई से ठंडी ठंडी बयार आ रही थी , सुबह की सुनहली धूप ,हर चीज सुनहली।





और खिड़की खोल के जो मैंने अंगड़ाई ली , बस फ्राक में बंद कबूतर के बच्चे लगा की बस अब बाहर ही आ जाएंगे।

एक बटन खुल भी गयी।




और जानती हो सबसे पहले मैंने किसे देखा , ... अमराई में घने पेड़ों के बीच , ...

.
सामू को , और सामू के साथ साथ ,...





वो अपनी जांघिया उतार के लंगोट पहन रहा था।


चारो और सन्नाटा ,उधर कोई आता जाता भी नहीं था।

बस, सिर्फ एक पतला सा कपडा ,ज़रा सा वो हिला और मुझे 'उस दुष्ट ' के दर्शन हो गए, जिसने मुझे कल 'फाड़ ' के रख दिया था।




दुष्ट भी और प्यारा भी।


लेकिन अगले पल वो सामू की लंगोट में कैद।


सिर्फ एक छोटा सा लंगोट ,सूरज की सुनहली धूप ,सामू की एक एक मसल्स झलक रही थी।

उसने अभी भी मुझे नहीं देखा था , बस वो झुक के डंड पेलने लगा , जैसे कल वो मुझे धक्के पे धक्का ,धक्के पे धक्का , २०० के बाद उसने सांस ली और जब वो खड़ा हुआ तो उसकी निगाह मेरे ऊपर पड़ी।




वो मुस्कराया।

मैं मुस्करायी।

पर मैं जानती थी , वो इतना सीधा है , वो पहल नहीं करेगा।

कल गुलबिया आधे घंटे मुझे समझा के गयी थी।

उसकी निगाह मेरे कबूतर के बच्चों पर , ...


और मैंने एक बटन और उसे दिखाते हुए खोल दिया ,




और जोर की फ़्लाइंग किस।

बिचारे की हालत खराब ,जोर से बांधे लंगोट में भी तूफ़ान मच गया था।

मैंने उसे दिखाते हुए अपनी फ्राक के पिंजड़े में बंद कबूतर के बच्चों को अपने हाथ से सहलाना ,दुलराना ,पुचकारना शुरू कर दिया।




अब उससे रहा नहीं गया , लंगोट के ऊपर से ही वो अपने हथियार को जोर जोर से मसलने लगा।

यही तो मैं चाहती थी।

उसने मुझे दिखाते हुए लंगोट के ऊपर से उसे दबा के ,फिर जैसे धक्के मार रहा हो ,पुश किया ,...

मैं खिड़की से नहीं हटी ,बल्कि कल की तरह से जीभ निकाल के उसे चिढ़ाया और एक जोर की चुम्मी सीधे उसके लंगोट को टारगेट कर के।

वो बार बार मुझे फ्राक ऊपर करने का इशारा कर रहा था , मैं थोड़ा सा ऊपर कर के फिर ढँक देती और वो बिचारा फिर से ,...

कमर तक , उसने अब साफ़ साफ़ इशारा किया ,और मैं भी ,... बहुत देर से तड़पा रही थी उसे।

धीरे धीरे हौले हौले एक एक सूत मैं फ्राक सरका रही थी ,और जब मैंने एक झटके में उसे कमर तक उठा दिया ,




तो मुझे गलती का अहसास हुआ ,...




मैंने चड्ढी नहीं पहनी थी। रात में अपनी चुनमुनिया में गाय का घी चुपड़ने के बाद मैं ऐसे ही सो गयी थी और सुबह उठे के सीधे ,

सुबह सबेरे ,

उम्मीद उसे भी नहीं थी की उसे सुबह सुबह मेरी राजकुमारी के दर्शन हो जाएंगे।

मैंने झट से फ्राक नीचे गिरायी पर पर झलक तो उसे मिल ही गयी थी।

दस पन्दरह मिनट से हम दोनों का नैन मटक्का चल रहा था।

लेकिन जुगनू ,... वही गुलबिया का यार , ... तभी मुझे दिख गया , ठीक मेरे घर के पिछवाड़े , जहाँ गाय भैंस बंधी रहती थीं ,वहीँ दूध दूहने जा रहा था। गनीमत थी की वहां से न वो मुझे देख सकता था न सामू को , और मम्मी तो साथ आठ बजे से पहले उठती नहीं थी।

मैंने एक बार झुक के सामू को अपने कबूतरों की झलक दिखाई , फ़्लाइंग किस दी और बिना खिढकी बंद किये , वापस अपनी पलंग पे।




चड्ढी मेरी पलंग पर ही पड़ी थी ,झट्ट से मैंने पहन ली।

सुबह सुबह ,... न मैंने सिर्फ सामू को देखा बल्कि सामू का भी ,...

मुश्किल से मैंने उसकी शकल दिमाग से हटाई और तैयार होने लगी।

लेकिन इस उम्र में कुछ ध्यान से हटता है क्या।




मैं रगड़ रगड़ के नहा रही थी और आज अपनी गुलाबो पर कुछ ज्यादा ही ,...




जहाँ हलकी सी बस दरार दिखती थी , वहां बहुत छोटा सा ही एक छेद , मुश्किल से देखने पर नजर आने लगा था। दर्द तो गुलबिया के ट्रीटमेंट से ख़तम हो गया था।


और जैसे ही मैं अपनी सोनपरी पे हाथ लगाती मुझे लंगोट से झांकते उस दुष्ट की शक्ल नजर आती , सोते समय भी कितना ,... और एक बार जग गया तो ,.. और तो मैंने खुद उसे उकसाया है।




चुनमुनिया पे हाथ लगाते मैं उससे बोली, आज तेरी बुरी हालत होने वाली है बेबी।

तब तक नीचे से मम्मी की आवाज आयी ,आज स्कूल नहीं जाना है क्या। नाश्ता लग गया है।

आती हूँ बस एक मिनट , ...और मैंने झट से स्कूल यूनिफार्म पहनी ,आज सैटरडे था तो व्हाइट टॉप , नीली स्कर्ट और जूते मोज़े।

नाश्ता मंम्मी मेरे बिना नहीं करती थीं। आज वो तैयार थी जैसे कहीं बाहर जाना हो। वो मेरा इंतजार कर रही थीं और किसी को समझा रही थी ,

" अभी जीप पर ब्लाक प्रमुख जी आएंगे उनके साथ ब्लाक जाना है ,खाद की और बीज की मीटिंग है नए बी डी ओ के साथ। "

तबतक गुलबिया आ गयी दूध का भरा ग्लास और दो अंगुल मलाई , मैंने नखड़े बनाने शुरू कर दिए पर गुलबिया बिना इस बात का ख्याल किये की मम्मी बैठी हैं ,मुझे छेड़ते बोली

" अरी दूध नहीं पीयेगी तो दूध देने लायक कैसे बनेगी। "

" मम्मी ,... "


मैंने मम्मी की ओर दुबकते हुए गुलबिया के खिलाफ गुहार लगाई।

" ठीक तो कह रही है , अरे हमारी भौजाई तो जब मैं तुम्हारी उमर की थी , तो जुबान से नहीं हाथ से ,... और गुलबिया को और उकसाते बोलीं।

" कैसी भौजाई हो बहुतै सोझ हो , अरे इस उमर में ननदें बिना जबरदस्ती के नहीं मानती। "

मैंने गुलबिया से ही कहा ,

" अरे भौजी ,अच्छा मलाई तो कम कर दो। "




" अरे असली मजा तो मलाई में ही है , ... तुम भी न अच्छा लो थोड़ा सा ,... "

और दो ऊँगली से थोड़ी सी मलाई निकाल के मेरे दोनों गालों पे अच्छी तरह लपेट दी।

जब तक मैं दूध गटक रही थी , तब तक बाहर से जीप आने की आवाज आयी।

" मुझको आने में हो सकता है शाम को थोड़ा देर हो जाए ,आज तो तेरा हाफ डे ही होगा न , तीन बजे तक आ जाएगी ,गुलबिया को मैंने बोल दिया है वो घर में ही रहेगी। " मुझे समझाते हुए वो बाहर निकलने लगीं।

गुलबिया को देख के मुझे याद आया ,एक काम असली काम तो रही गया था और दूध ख़तम एक झटके में ख़तम करके ,मैं दौड़ते हुए ऊपर ,

मम्मी ने निकलते निकलते टोका ,

" अब क्या हो गया? "

" अरे पेन भूल गयी थी "

" ये लड़की भी न ,कब बड़ी होगी। " वो बोलीं और बाहर निकल गयीं।

सोनचिरैया को तो नाश्ता कराना रह ही गया था।


जाने के पहले ,गुलबिया ने कितनी बार समझाया था , दो चम्मच गाय का घी अंदर ऊँगली डाल के ,

बिना दरवाजा बंद किये झट से मैंने चड्ढी उतारी और बोतल से गाय का देसी घी अपनी ऊँगली में ले कर ,




दो ऊँगली की मेरी हिम्मत तो नहीं पड़ी लेकिन एक ऊँगली से , अंदर की दीवालों पर अच्छी तरह से चुपड़ लिया। दो चम्मच से भी ज्यादा ,

नीचे से फिर कोई आवाज दे रहा था ,अरे सामू खड़ा है , स्कूल की देर हो जायेगी।

मैं दुगुनी तेजी से नीचे उतरी नाश्ते की मेज से स्कूल बैग उठाया और बाहर ,

मम्मी जीप से जा रही थीं ,दूर से उन्होंने हाथ हिलाया ,मैंने भी।

और सामू की साइकिल के डंडे पे बैठ गयी।

तब मुझे याद आया चड्ढी तो मैंने पहनी नहीं ,घी लगाने के बाद ,

लेकिन सामू की साइकिल चल पड़ी थी।

.....




...................




और अब मैं दूसरी सोच में पड़ गयी थी , आज कहाँ ले जाएगा वो।
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जोरू का गुलाम भाग १२७

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जोरू का गुलाम भाग १२७

गन्ने के खेत शुरू हो गए , ऊँचे ऊँचे , .... पतली सी पगडंडी ,

वो जगह भी आ गयी जहां कल उसने साइकिल खड़ी की थी और पतले से कच्चे रास्ते से मुझे गन्ने के खेत के बीच खींच कर ले गया था जहाँ कल मेरी नथ उतरी थी।

मुझे लगने लगा , अब रोके , अब रोके , पर वो ,...

कहीं वो भूल तो नहीं गया की असल में आज स्कूल बंद है , और एक्स्ट्रा क्लास भी बस ,...

और अब वो बीच वाली सूनसान जगह भी आगयी जहाँ बाग़ थी ,बाग़ क्या एकदम जंगल सा , और मुझे लगा मुझे ही उसे याद कराना पडेगा।


बस एक जगह मैंने जिद कर के साइकिल रुकवा दी की मुझे लगता है चींटी काट रही है।

" तेरे डंडे में आज कुछ मीठा मीठा लगा था क्या , लगता है मुझे चींटी , .. ज़रा देखो न ,झुक के : और मैंने थोड़ी सी स्कर्ट ऊपर कर के उसका हाथ खींच लिया ,

बस मेरी मखमली जाँघों को सहलाते हुए , उसका हाथ ऊपर बढ़ने लगा।

" हाँ हाँ बस ज़रा सा और ऊपर , बस इसी जगह ,थोड़ा सा और ऊपर ,... हाँ एक अंगुल और ,..

जैसे ही उसको इस बात का अहसास हुआ की मैंने चड्ढी नहीं पहन रखी है बस ,गचाक से उसने चुनमुनिया दबोच ली। और लगा रगड़ने मसलने ,




" हाँ हाँ ,नहीं नहीं " मैं मुस्करा रही थी छेड़ रही थी ," छोडो न , चींटी भाग गयी है अब "

और अचानक जैसे उसे कुछ याद आया बस जैसे कोई खिलौने की गुड़िया के उठा दे ,उसने,...

बस मुझे उठा के साइकल के डंडे पे बिठाया और डबल स्पीड पे , कुछ मिनट में ही हम उस बाग़ या जंगल के सबसे घने हिस्से के बगल वाली सड़क पे ,

वो दोनों ओर देख रहा था ,एक बहुत पतली सी पगडंडी , बरगद ,बबूल ,पाकड़ के बहुत ही घने पुराने पेड़ ,दोनों ओर से पेड़ देह छील रहे थे ,पर कुछ देर ही हम चले होंगे की आम की एक बाग़ , असल में वो बाग़ ही थी बस चार ओर दस बीस कतार जंगली पेड़ों के , लेकिन आम की बाग़ भी बहुत गझिन।




और उस में भी कहीं कहीं पुराने बरगद और पाकुड़ के पेड़ , ... एक पुराने पेड़ के बगल में उसने साइकल रोक दी और मुझे खिंच के पेड़ के पीछे ,

मुझे लगा कल गन्ने के खेत में तो आज अमराई में मेरी मरवाई होगी पर , एक छोटी सी कोठरी मुश्किल से नजर आयी।


दरवाजा लकड़ी का पुराना ताला।

सामू ने फेंटे से चाभी निकाल के ताला खोला और मुझे कमरे में धकेल के ताला फिर से बाहर से बंद कर दिया।

एकदम अँधेरा ,लेकिन थोड़ी देर में आँखे आदी हो गयीं। कमरा इतना छोटा भी नहीं था , एक दो रोशनदान थे जिनसे थोड़ी थोड़ी धूप आ रही थी।

चरचर चरचर की आवाज आयी और एक छोटी सी खिड़की खुली , और कूद के सामू उसी खिड़की से अंदर और फिर खिड़की भी उसने कस के अंदर से बंद कर दी।

दरवाजे में बाहर से ताला बंद ,जिस खिड़की से कूद के सामू आया था उस तक पहुंचना भी मेरे बस में नहीं।

और बाहर से एक तो कोई कमरे तक पहुंचता भी नहीं और पहुंचता भी तो ताला बंद दिखता।

यानि आज मैं पूरी तरह सामू के हवाले , स्कूल बंद ,मम्मी ने उसके सामने ही बोला था की उन्हें आते आते रात हो जायेगी ,यानी आज तो मेरी वो ,....


और सच में तो आज , न उसे जल्दी थी न मुझे।
कल उसने सिर्फ मेरी स्कर्ट और चड्ढी उतार के , लेकिन आज पहले मेरा टॉप खुला , और सामू ने धीमे धीमे अपने कपडे उतारे सिर्फ कच्छे में वो और सिर्फ स्कर्ट में मैं।




उसे मालूम था की मैंने न तो ब्रा पहनी थी न चड्ढी।


उसकी गोद में बैठ के देर तक वो मुझे चूमता रहा ,




आँखों को , गालों को ,होंठो को ,मेरे छोटे छोटे चूजों को ,

और कुछ देर में मेरे होंठ भी चुम्मी का जवाब चुम्मी से देना सीख गए।


जब उसने मेरा होंठ खुलवा के अपनी जीभ घुसेड़ी तो कुछ देर में मेरी जीभ भी उसकी जीभ से छुअम छुअल्ल खेल रहे थे।

हाथ न उसके खाली बैठे थे न मेरे ,. उसका एक हाथ कभी मेरे सर को पकड़ लेता जब वो जोर जोर से मेरे होंठों को चूसता तो कभी स्कर्ट के अंदर घुस के मेरी चिकनी किशोर जाँघों को सहलाता। उसकी उंगलिया भी न ,बस मेरे खजाने के पास जा के रुक जातीं और मैं गिनगीना उठती। आज वो तड़पाने में लगा था ,

लेकिन उसका दूसरा हाथ लगातार मेरे छोटे छोटे कबूतरों को सहलाने में प्यार करने में लगा था , और बीच बीच में कस कस के रगड़ मसल भी देता।



मेरेछोटे छोटे कबूतर थे भी बहुत मस्त ,




किसी भी हाईस्कूल वाली की कच्ची अमिया से ज्यादा खटमिट्ठे।

और मेरे हाथ तो बस , न आज उसने पकड़ाया ,न कहा।




वो खुद मचल के उसके जांघिये के ऊपर से ,थोड़ी देर तक तो मैं सहम सहम कर ,हलके हलके , ऊपर से पर उसका कड़ापन ,मस्ती ,आज बिना सामू के कुछ भी कहे सुने ,मैंने अपने आप उसके जांघिये में हाथ डाल दिया।

सुबह सुबह , आज तो मेरी सुबह इसी को देख के हुयी थी।




बस पकड़ के कुछ देर तो बस छूने का मजा लेती रही ,फिर हलके हलके मुठियाना शुरू कर दिया।

उसकी जांघिया का नाडा भी मैंने आज खुद अपने कोमल हाथों से बिना उसके कहे खोला और सरका के ,...

उफ़ ,... कैसे झट से खड़ा हो गया। एकदम तना। स्कर्ट तो मेरी छल्ले की तरह कमर से बस लिपटी थी

,सामू ने फिर मुझे उठा के अपने खूंटे पे बैठा लिया। मेरे गोल गोल नितम्बों ,गीली चुनमुनिया को रगड़ते ,दरेरते ,मेरी मुट्ठी में ,

और अब ,कुछ देर तक तो सामू मेरे दोनों छोट छोट जुबना का रस लेता रहा अपने दोनों हाथों से ,फिर एक हाथ का काम सामू के होंठों ने सम्हाला और उसका हाथ मेरी चुनमुनिया पर ,




पर बजाय ऊँगली करने के वो अपनी गदोरी से मेरी कच्ची चूत हलके हलके मसल रहा था। मैं गीली हो रही थी ,पनिया रही थी पर आज सामू भी ,..

अपनी झुंझलाहट मैंने सामू के हथियार पे उतारी ,जैसे उससे ही बात करती बोली ,




" अभी इतना प्यारा लग रहा है लेकिन जब घुसेगा तो ,... कल फाड़ के रख दी न मेरी चुनमुनिया की। मैं भाग थोड़े ही रही थी , पहले दिन पूरा मूसल ठेलना जरूरी था क्या ,सारी रात दर्द के मारे मेरी जान निकल गयी। "

मेरी छोटी छोटी चूँची को हलके से काटते सामू प्यार से बोला ,

" अरे मेरी मुनिया ,तेरा बड़ा ख्याल है मुझे ,सिर्फ आधा डाला था बल्कि उससे भी कम। मेरा पूरा खूंटा तो जो चार बच्चों की माँ होती हैं वो भी नहीं घोंट पाती , तू तो अभी कच्ची कली है मेरी जान। "

उसकी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की मैं गुस्से से अलफ , उसके सीने पे अपने दोनों हाथों से जोर जोर से मुक्के मारने लगी ,

यही तो ख़ास बात होती है ,हाईस्कूल इंटरवालियों में ,पल में रत्ती पल में माशा। गुस्से से मैं बोली ,

" तुम कौन होते हो तय करने वाले की कितना जाएगा , ये मेरा है बोल मेरा है की नहीं ?"

उसका खूंटा अब एक बार फिर मेरी किशोर मुट्ठी में था।

" हाँ है ,रानी ,तेरा ही है , "
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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प्यार से चूमते मनाते वो बोला।

"तो सुन ले कान खोल के ,मेरी कसम तुझे ,... ये चार बच्चों की माँ वां नहीं जानती मैं ,मुझे पूरा चाहिए ,... यहाँ तक। पूरा। "

और मैंने अपने अंगूठे से उसके लंड के बेस को दबा के अपना इरादा साफ़ कर दिया। और जब तक वो कुछ और बोलता मैं फिर चालू ,

" चाहे मेरी फटे ,चाहे खून खच्चर हो जाये ,चाहे मैं दर्द से चीखूँ चिल्लाऊं, बेहोश हो जाऊं ,पर , पूरा मतलब पूरा ,... और नहीं तो मेरी तेरी कुट्टी असली वाली। "

"समझ ले तू ,दो दिन नहीं चल पायेगी। " हंस के बोला।

" तुझसे क्या , वैसे भी कल सन्डे की छुट्टी है ,और परसों देखना तेरे ही साथ तेरे ही साइकल के डंडे पे बैठ के आउंगी। लेकिन चाहिए मुझे यहाँ तक बस, चाहिए तो बस चाहिए। "

मेरा अंगूठा कस के उसके खूंटे के बेस को दबाये हुए था।

मैं जानती थी सामू को, कर तो वो रहा था मेरे साथ लेकिन उसको मेरे दर्द की भी चिंता थी , और अगर आज मैंने इस मौके का फायदा नहीं उठाया , उसको उकसाया नहीं तो हमेशा मुझे वो,..

" और मेरी चीख की भी परवाह ,... " लेकिन इस बार उसने मेरी बात काट दी।

" जानू मेरी आज चीखना तू मन भर के। चारों और इतने पेड़ हैं न की ज़रा भी आवाज ,... वैसे भी यहाँ कोई आता नहीं है चिल्लाना मन भर के आज मैं न रोकूंगा न टोकूंगा। "

और हलके से मुझे धकेल दिया पुआल के ढेर पे ,और मेरी स्कर्ट पकड़ के जहाँ उसकी जांघिया मैंने उतार के फेंकी थी ठीक उसके ऊपर।
हम दोनों बस ,....और आज मैं पहली बार उसे इतनी नजदीक से बिना कपड़ों के देख रही थी ,( सुबह थोड़ा तो लंगोट से ढका छिपा था )
और वो भी

मेरी जाँघों के बीच बैठा ,

खुद मैंने अपनी दोनों लम्बी छरहरी टांगे उठा के उसके कंधे पर रख दी ,और उसने मेरा हाथ पकड़ के

मुझे लगा अपना टनटनाया खूंटा पकडायेगा , लेकिन उसने मेरी ही बिल पर और मेरी ऊँगली मेरे छेद के अंदर ,

मैं पनिया गयी थी ,गीली हो रही थी ,कुछ देर उसने मेरी कलाई पकड़ के पुश किया ,फिर उसका इशारा समझ के मैं खुद अपनी बिल में

हलके हलके ऊँगली करने लगी।

उसके दोनों हाथों ने पूरी ताकत से मेरी बिल के पपोटों को फैलाया और मेरी दूसरी ऊँगली भी बड़ी मुश्किल से लेकिन अंदर



और मैं पूरी ताकत से ,जोर से अपनी कसी कसी किशोर बिल में ऊँगली ,

सट सट ,हच हच ,

फिर मेरी दो उँगलियों के साथ उसकी भी एक ऊँगली ,



कसर मसर कसर मसर ,

थोड़ी देर में ही में बिल पानी फेंक रही थी ,मैं चूतड़ पटक रही थी ,बस सोच रही थी ,ये सामू भी न करता क्यों नहीं कुछ

पर एक बार उसने मेरे कच्चे टिकोरों को मुंह में ले के चुभलाना शुरू कर दिया और मेरी जाँघों के बीच की आग और तेज बढ़ गयी।




उसकी एक ऊँगली मेरी उंगलियो के साथ मेरी बिल में घुसी उसके होंठ मेरे कच्चे टिकोरों को चूसते हलके हलके काटते , और

अब उसने अपना अंगूठा भी मेरी क्लिट के उपर हलके हलके दबाना प्रेस करना ,

मैं उसे अपनी और खींच रही थी ,चूतड़ उठा रही थी सिसक रही थी ,

जब मुझसे नहीं रहा गया तो अपनी उंगलिया अपनी बिल से निकाल के अपने ही हाथ से उसका तन्नाया खूंटा पकड़ के,


अपनी बिल के छेद पर खुद सेट करने लगी।

सामू ने भी अब एक बार फिर से मेरी दोनों उठी टांगों को अपने कंधे पर फिर सेट किया , दोनों हाथों से मेरी बिल को पूरी ताकत से फैलाया ,


जैसे धोनी छक्के मारने के पहले अपने दस्तानों को सेट करते हैं बिलकुल ऐसे ही।




पहले शॉट में बॉल स्टेडियम से बाहर , और जैसे स्टेडियम तालियों से गूँज उठता है ,

मेरी चीखों से वो कमरा , अमराई गूँज उठी।

थोड़ी देर पहले तक मैं सोच रही थी ये मारता क्यों नहीं ,

अब सोच रही थी बस कर , बस कर , प्लीज

लेकिन धोनी एक बार ,मारना शुरू करने पर रुकता है क्या ,

और सामू की भी वही हालात थी ,

तीर धंस चुका था , और बस अब वो मेरी कमर को पकड़ ,

हर शॉट पहले से भी तेज , पावर सिर्फ पावर

मैंने दर्द से आँखे बंद कर ली पर सामू भी न ,कचकचा के मेरे टिकोरों पे काट के उसने मुझे आँखे खोलने पर मजबूर कर दिया।

मेरी जाँघे फटी जा रही थीं , ' वहां ' बहुत तेज तीखा सा दर्द हो रहा था।

पर आठ दस पूरी ताकत से धक्के मारने के बाद अब वो सिर्फ , पुश कर रहा था ,ढकेल रहा था ,ठेल रहा था।




ये नयी नयी किशोरी का दर्द न , जब होता है न तो बस मन करता है की नहीं अब और नहीं ,अगली बार सोचूंगी भी नहीं

और बस जब कम होने लगता है तो मन करता है ,... और दर्द क्यों नहीं हुआ।

दर्द अब कम हो रहा था ,लेकिन टीस अभी भी थी पर , जो दर्द देता है वही दवा देता है।

और सामू अब मलहम लगा रहा था , अपने होंठों से कभी मेरे गालों होंठों को चूम के

तो कभी उन्ही होंठों से कच्ची अमिया को छू के सहला के।


मुझे लग रहा था की आधा तो घुस ही गया होगा।

पर जब वो एक पल के लिए सीधे बैठा ,तो मैंने देखा ,सिर्फ सुपाड़ा ही अंदर धंसा था बाकी खूंटा तो बाहर ही निकला था।

उसका तना मोटा खूंटा देख के भी बस मैंने ,नीचे से चूतड़ उचका दिए , ज़रा सा मुस्करा दिया ,

और इतना इशारा काफी था।




अबकी उसने मेरी दोनों नरम कलाइयां अपने हाथ से पकड़ीं ,थोड़ा सा 'उसे बाहर' किया ,

और , .... और ,.... और

मेरी आँखों के आगे तारे नाच रहे थे ,मैं चीख रही थी ,चिल्ला रही थी , मारे दर्द के बिलबिला रही थी

लेकिन अब जैसे वो वन डे से टी ट्वेंटी पर आ गया जब हर बाल पर छक्के लगाने की जरुरत हो ,




दस मिनट तक ,या पता नहीं कब तक ,.... लगातार

और अब जब उसने मेरी एक कलाई छोड़ी तो सीधे नए नए जुबना पे ,

और अब वह हलके से छु नहीं रहा था ,सहला भी नहीं रहा था बल्कि कस कस के ,

रगड़ मसल रहा था ,मीज रहा था ,




और खूंटा भी उसका अब आलमोस्ट बाहर निकल के ,फिर पूरी ताकत से ,

एक से एक लम्बे शॉट

कोई डॉट बाल नहीं।

थोड़ी देर में पता नहीं दर्द कम हुआ या मुझे उस दर्द की आदत पड़ गयी , मेरी चीखे हलकी पड़ गयीं ,

चीखे धीरे धीरे सिसकियों में बदल गयीं।

और उसने भी जैसे रिकयार्ड रन रेट बहुत कम रह गया हो ,आराम आराम से ,सिंगल लेने शुरू किये और मैं भी अब उसका साथ दे रही थी

कभी कमर हिला के तो कभी चूतड़ उचका के।

काफी देर तक हम दोनों साथ साथ ,फिर बिन बोले मेरी आँखों ने सवाल पूछ लिया ,उसकी आँखों से ,

" देख पूरा घोंट लिया न मैंने ?"

और उसने मेरा हाथ अपने खूंटे के बेस पर पकड़ा दिया ,

थोड़ा ,... थोड़ा क्या करीब एक तिहाई अभी भी बाहर था।

और मैंने गलती कर दी।

जोर से मैंने उसे अपनी बाहों में भींचा , सर उठा के अपना कस के उसे चूमा ,मेरे नाख़ून उसके कंधे में धंस गए और दर्द से भरे तड़पते कूल्हों को

पूरी ताकत से उठा के चैलेन्ज कर दिया।

बस।
उसने धीमे धीमे पूरा लंड आलमोस्ट बाहर निकाला ,अपने दोनों हाथ मेरी कच्ची अमिया पे टिकाये और ,...

बस जान नहीं गयी।




लेकिन अब वो रुकने वाला नहीं था ,मेरी चुम्मी ने उसे मेरी कसम की याद दिला दी थी।

चाहे जो कुछ हो जाय , रुकना मत , मैं बेहोश भी हो जाऊं लेकिन पूरा ,...

बेहोश तो नहीं हुयी मैं हां लेकिन होश भी नहीं था दर्द के मारे ,

खून तो एक दिन पहले निकल चुका था लेकिन आज उससे भी ज्यादा दर्द हुआ ,


पर जब वो रुका तो खूंटे का बेस मेरे क्लीट को छू रहा था।

बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही , वो चूमता रहा ,कभी मेरे पलकों को कभी बालों को


जैसे किसी बच्चे से कोई बहुत महँगी चीज टूट गयी हो और वो बस बहलाने की कोशिश करे उसी तरह

और मैं बहल गयी। कुछ देर में चूमने मे मैं भी उसका साथ दे रही थी , अपने उभार खुद उसकी छाती से रगड़ रही थी ,

अपने हाथ लता की तरह मैंने उसकी चौड़ी पीठ पे बाँध लिए थे।

और एक बार फिर धक्के शुरू हुए ,हलके हलके , और अब दर्द के साथ मजे की लहर भी ,

थोड़ी देर में मैं कगार पर पहुँच गयी , पर वो रुक गया।

और थोड़ी देर में झूले की पेंग फिर , ... तीन बार मैं आलमोस्ट वहां तक और तीन बार वो रुका ,




पता नहीं मुझे क्या खराब लग रहा रहा जब वो मुझे दर्द दे रहा था ,या अब झड़ना रोक के तंग कर रहा था।

पर चौथी बार उसने मुझे झड़ जाने दिया।

आग लगाने में भी वो उस्ताद था। मुझे लगा की मेरी देह एकदम शिथिल हो गयी है पर ,

कुछ देर में ही मेरी कच्ची अमियों को चूस चूस के ऐसी अगन जगाई की मैं खुद नीचे से ,... और कुछ देर में




फिर से मैं तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी।



जब तीसरी बार मैं झड़ी तो वो मेरे साथ ,देर तक , उसकी रबड़ी मलाई सब मेरे अंदर और




हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बहुत देर तक एक दूसरे को भींचे यूँ ही।

कितना समय निकला पता नहीं।

....

आज न उसे जल्दी थी न मुझे।
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