जोरू का गुलाम भाग १२२
" हाँ भाभी , आप बताइये न मैं किसी को बताऊंगा थोड़े ही , प्लीज भाभी ,मेरी अच्छी भाभी। "
अब टालना उनके बस की बात नहीं थीं। वो हलके हलके चालू हो गयीं ,
चल यार तुम भी न बहुत जिद्दी हो , चलो
मैंने रिकार्डिंग डिवाइस ऑन कर दी , स्पीकर आलमोस्ट जेठानी के मुंह के पास।
"मैं हाईस्कूल में थी बल्कि हाईस्कूल में गयी , गाँव का हाईस्कूल थोड़ी दूर ,
बीती यादें ,गाँव की बातें
जेठानी जी एकदम फ्लैश बैक में चली गयी थीं , हम दोनों , उनके देवर देवरानी एक चुप ,लाख चुप. .
बस कभी कभार हाँ हूँ , और कभी बात आगे बढ़ाने के लिए उन्हें उकसाने के लिए बोलना पड़ता भी तो बस ,बहुत धीमे से जेठानी जी के कान में सीधे
और मैं माउथपीस बंद कर देती , आवाज सिर्फ जेठानी जी ही बचे जिससे।
कमरे की लाइट भी एकदम बंद नाइट लैम्प भी , बस मैंने पर्दा सरका दिया था तो बाहर की चांदनी कभी कभी थोड़ी सी छलक कर , लेकिन बादल भी थे।
चांदनी को छेड़ते और तेज बारिश के आसार भी थे।
"तुम तो जानती ही हो हमारे गाँव घर के बारे में , गाँव में दो चार घर ही पक्के हैं ,जिसमें हमारा भी घर है। और सिर्फ हमारा घर ही दो मंजिला है , ऊपर दो कमरे हैं एक मेरा ,एक में कभी कोई आया गया।
माँ नीचे रहती हैं।
जिस समय मैं हाईस्कूल में गयी तब तक घर में बैल गाय भैसं सब थे ,
और काम करने वाले भी ,एक दो हरवाह , एक दूध दुहने के लिए गाय भैंस की देख भाल के लिए ,
घर में भी कई औरतें लेकिन सबसे ज्यादा टाइम गुलबिया ही रहती थी ,
हमारे नाउन की बहु , गाँव के रिश्ते से हमारी भौजाई लगती थी ,एकदम पक्की सहेली की तरह बहुत छेड़ती थी मुझे , और कभी माँ से शिकायत करूँ तो वो और उसकी ओर से , तेरी भौजी है उसका हक़ है ननद को चिढ़ाने का।
लेकिन सिर्फ चिढ़ाती ही नहीं थी अपने सब किस्से भी , मेरे हाईस्कूल में जाने के छह सात महीने पहले उसके शादी हुयी थी , पर शादी के चार पांच महीने बाद ही उसका मरद पंजाब चला गया था कमाने फिर तो हमारे घर में उसका रहना और बढ़ गया और माँ ने घर की बहुत जिम्मेदारी भी उसके ऊपर सौंप दी।
जेठानी ने एक पॉज लिया ,पात्र परिचय कराते हुए।
और तब तक मैं कुछ और चीजें जोड़ दूँ , जेठानी घर की अकेली थीं दुलारी।
पिताजी थे उनके लेकिन वो भी दुबई में थे , और साल दो साल में ही आते थे ,सब जिम्मेदारी इनकी माँ के ऊपर ,खेत खलिहान का काम , थोड़ा बहुत गाँव की पॉलिटिक्स भी , .
जेठानी जी ने अपने गांव की कहानी आगे बढ़ाई।
" तुम तो जानती ही हो ,मेरे गाँव में स्कूल आठ तक ही था। एक स्कूल था पास के गाँव में ,लेकिन दूर और जो लड़के जाते थे साइकिल से। तो माँ ने तय किया मैं भी साइकिल से जाउंगी। "
" आप को साइकिल चलाना आता था ?"
उनके मुंह से निकल गया ,पर मैंने झट से रिकार्डिंग डिवाइस का माउथ पीस बंद कर दिया। और उन्हें चिकोटी काट के आगाह किया।
" नहीं ,यही तो।
तुम तो जानती ही हो मेरे घर में हरवाह थे , उसी में था सामू।
माँ ने खेत वेत देखने की बहुत जिम्मेदारी उसी के ऊपर छोड़ रखी थी , बाकी काम करने वालों को भी कंट्रोल करता था ,समझो सबका इंचार्ज। पहले तो उसने ना नुकुर किया , फिर जब माँ ने उसके सामने मुझे हड़काया की मैं उसे तंग नहीं करुँगी ,उससे कोई जिद नहीं करुँगी , उसकी सब बात मानूंगी तो वो माना।
तय ये हुआ की वो स्कूल मुझे साइकिल से छोड़ भी आएगा और ले भी आएगा। उसके आने के पहले मैं तैयार हो जाउंगी। "
अबकी गलती मुझसे हो गयी ,मेरे मुंह से निकल गया ,
" एज क्या रही होगी सामू की ".
लेकिन टाइम पर मैंने रिकार्डिंग बंद कर दी।
" ३५ से ऊपर ही , ३५-३६ , लेकिन किसी गबरू जवान को मात करता था , रोज सुबह जब मैं उठती थी न तो अपने कमरे से सुबह सुबह , सामने वाली आम की बगिया में , डंड पेलता दिख जाता , सिर्फ लंगोट पहने।
एक दो बार मुझे लगा की उसने भी मुझे देखा। जो आज कल जिम वाली बॉडी एकदम वैसे ही।
अरे अपने यहाँ नाग पंचमी में जो कुश्ती होती उसमें हर बार वही जीतता।
तो बस वो ले जाने लगा मुझे अपनी साइकिल पे बैठा के , कुछ दिन तो मैं लेकिन उस उमर में बिना चुहुल किये ,और वो भी दुष्ट सीधे कभी मेरा कान पकड़ लेता ,तो कभी हलकी सी चपत भी गाल पे। मम्मी से एकाध बार मैंने शिकायत की तो वो भी उसी की ओर से ,
" ठीक तो करता है " मुस्कराके बोलतीं और चिढ़ाते हुए कहती , मेरी लाली को ज्यादा जोर से मारा था क्या ,
मैं बोलती नहीं धीरे से और गाल छू के बताती यहां तो मम्मी वहां पुच्ची ले लेतीं ,और हंस के बोलतीं अब ठीक हो गया न।
" लेकिन मैं सीख गयी थी उससे बात मनवाना ,उसका कान पकड़ना गाल पे हलकी सी चपत लगाना तो नहीं बंद हुआ लेकिन कभी मैं स्कूल से लौटते हुए आम के ाबाग में से टिकोरे तोड़ने की जिद करती या गन्ने के खेत से गन्ने की खेत में रुक के , …
और मम्मी को भी इस बात से फरक नहीं पड़ता था की मैं स्कूल कब जाती हूँ ,कब आती हूँ। अक्सर तो मैं जब लौटी तो वो घर में होती ही नहीं थीं। "
जेठानी बोलीं।
धीरे धीरे मेरी मस्ती , घींगामुश्ती ,उससे छेड़खानी और उसकी भी बढ़ती गयीं। मम्मी ने तो वैसे ही सामू को खुली छूट दे रखी थी ,
फिर एक दिन ,... "
और अब जेठानी चुप।
हम दोनों समझ गए थे अब वो घडी आ गयी , अब पर्दा उठने वाला है ,
अब पता चलेगा की जेठानी जी की चुनमुनिया ने चिड़िया कब कैसे चुगी ,पहली बार।
लेकिन जेठानी चुप तो चुप
उन्होंने समझदारी दिखाई , वाइन का एक ग्लास जेठानी जी के हाथ में पकड़ा दिया।
जेठानी जी ने गला तर किया हिम्मत बटोरी और आगे बढ़ाई बात।
" उस दिन , हम दोनों थोड़ी जल्दी ही निकल गए थे। मुझ पर भी कुछ ज्यादा ही मस्ती चढ़ी हुयी थी। और रास्ते में हलकी बारिश , सावन भादों की आम बात , पर रास्ते में बारिश हलकी सी तेज होने लगी तो उसने साइकिल रोज के रास्ते से अलग मोड़ ली। पास ही में एक बिल्डिंग थीं , हम दोनों उसमें , वो बोला ,थोड़ी देर यहीं रुकते हैं ,थोड़ी बारिश कम हो जायेगी तो चलते हैं , मेरा कुछ काम भी है ,हो जायेगा। . "
तब
जेठानी जी फिर चुप , लेकिन वाइन की एक चुस्की ने उन्हें ताजा किया और दास्तान आगे बढ़ी।
अंदर कमरे से कुछ कुछ आवाजें आ रही थीं ,उसने मुझे सहन में रुकने का इशारा किया,पर मैं कहाँ मानने वाली , उसके पीछे पीछे चल दी।
और अंदर घुसते ही मेरी आवाज बंद ,गले का थूक गले में।
एक खूब तगड़ा मोटा सांड एक छोटी सी बछिया पे चढ़ने की कोशिश कर रहा था। बेचारी बछिया ,होकड़ रही थी ,बचने की कोशिश कर रही थी , खूंटे से बंधी , बचने की कोई ज्यादा जगह भी नहीं। ऊपर से दो आदमी भी उसे घेर के , एक बोला अरे अभी पहली बार है न इसलिए अगली बार तो खुदै , मेरी आंखे तो बस सांड़ के ,कितना मोटा लम्बा एकदम सांड की तरह ही ताकतवर , सांड उसे चाट चाट कर जैसे पटा रहा हो। और फिर अचानक , जिस तरह से उसने दोनों आगे के पैर बछिया पे किये ,मैं समझ गयी अब ये नहीं बच सकती। और यही हुआ ,अगले ही पल सांड ने अपना मोटा खूंटा उस बछिया की बिल में , मेरी सारी देह गिनगीना रही थी , पैर काँप रहे थे ,पर निगाह वहां से हिल नहीं रही थी।
तब तक वो दोनों खाली हो गए थे। एक बोला ,
चला अब पेल देहले हौ , आगे का काम ई सांड खुदे सम्हाल लेई।
दूसरा अभी भी सांड को पुचकार रहा था , बोला ,
नयी बछिया और नयी लौंडिया एकदम एक जैसे , ... मन तो खूब करि लेकिंन अइसन नखड़ा पेलहिएँ की , लेकिन एकदायं कउनो जबरदस्ती चढ़ जाए तो बस खुदै थोड़ी देर में चूतड़ उठाय उठाय गपागप गपागप ,
सच में बछिया ने अब उछल कूद बंद कर दी थी , सांड का पूरा एक हाथ का घोंट लिया था उसने।
और मेरा पूरा ध्यान उसी में लगा था ,कैसे मस्त सटासट सटासट , अभी इतना ंनखड़ा दिखा रही थी और अभी खुद मजे से ,
जोरू का गुलाम या जे के जी
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
तब तक एक ने सामू को देख लिया और अचरज से बोला ,
" अरे तू कहाँ ,... "
" अरे इधर से ही जात रहलीं , पानी तेज हो गया , और हमको आना भी था , हमरो एक बछिया गरमात बाय , उहू के एकदिन लियावे क हौ। "
सामू बोला।
आसपास के सभी गांवों में लोग उसे अच्छी तरह जानते थे
तबतक दूसरे आदमी की नजर मेरे ऊपर पड़ी , और जिस तरह से वो मुझे देख रहा था मैं समझ गयी।
भले ही घर वाले मुझे बच्ची समझते थे पर बाहर वाले मर्दों ,लौंडो की निगाहें , और आज तो भीग के मेरे स्कूल की यूनिफार्म एकदम देह से चिपकी , खासतौर से टॉप,और मेरे वैसे भी भी अपनी सहेलियों में सबसे बड़े ,
" इहौ बछिया तो खूब गरमात हौ "
उसकी निगाह खुल के मेरे कच्चे टिकोरों को घूर रही थी।
सामू समझ गया ,मैं भी समझ गयी वो क्या बोल रहा है पर सामू ने उसकी बात अनसुनी करते हुए सामू पहले वाले से बोला ,
" सांड तो जबरदस्त है ,इम्पोर्टेड है क्या? "
" हाँ , ब्राजील क है। "
पहले वाले ने जवाब दिया लेकिन अब उसकी निगाह भी मेरी टॉप में भीगी चिपकी कच्ची अमिया से चिपकी थी। और हंस के सामू से बोला ,
" लेकिन आपन देसी सांड भी कम नहीं होते , एक बार बछिया टांग खोल दे बस "
लेकिन दूसरा वाला तो एकदम खुल के सामू से ,
" अरे तूँहूँ कौन कम सांड हो ,कउनो बची है तोहसे का। ई बछियाव तो अभी कोर लागत्त बा। "
उसने अब साफ़ साफ़ मेरी तरफ इशारा करके पूछा।
सामू बजाय बुरा मानने के ,बस हंस दिया।
अब मुझसे नहीं रहा गया ,मैंने सामू से कहा " हे चलो चलते हैं न पानी कम हो गया है "
लेकिन वो दोनों एक साथ बोले ,
" अरे रुका थोड़ी देर , बंद हो जाय तो जाना। भीग जाओगी। "
और सामू भी उन्ही की बात में बात मिला के , " बस थोड़ी देर , पानी बंद होने ही वाला है। रुकते ही निकल चलेंगे ,वैसे ही इतनी गीली हो रही हो , "
दूसरे वाले ने फिर लेकिन सामू से अपना सवाल दोहराया , तू जवाब नहीं दिए , अबहीं कोर हौ ना। "
" तुम्हार अंदाज कभी गलत हो सकता है " सामू ने हँसते हुए बोला।
" अरे बछिया जैसे गरमाय न तैसे सांड को , ... वरना बेचारी छटपटाती रहती है , और तोहार अइसना सांड के रहते ,.. " वो एकदम ही ,...
गनीमत है पानी बंद हो गया और हम निकल दिए , लेकिन मैं अब सामू को एक अलग निगाह से देख रही थी।
'' फिर ,... " हलके से मेरे मुंह से निकल गया.
" अरे मेरी पूरी देह गिनगीना रही थी , कितना मोटा लम्बा सांड का, मेरी आँख के सामने बस वही बार बार , कितना छटपटा रही थी जब सांड ठेल रहा था ,अपना ,... "
वो हलके हलके बोल रही थीं जैसे वो दृश्य एक बार फिर से ,...
" दीदी ,आप हाईस्कूल में पहुँच गयी थीं तो इस सब चीजों के बारे में आप को ,....
"हलके से हिचकिचाते हुए मैंने पूछ ही लिया। "
और अब वो खिलखिला के हंसी ,
"अरे हम गाँव की लड़कियां ,तुम शहर की लड़कियों की तरह थोड़ी की बस किताब किताब किताब। गाँव में तो घर में काम करनेवालियाँ , भौजाइयां , चिढ़ा चिढ़ा के, फिर कोई शादी वादी हो ऐसे वैसे गाने , गारी और रतजगे में तो पूरा समझो प्रैक्टिकल , ...
फिर गुलबिया भौजी , हमारे नाउन की बहू , रोज राज भर अपने मरद के साथ चक्की चलवाती और दिन में जब हमारे घर आती तो एक एक बात अर्था अर्था के , मेरी दो चार सहेलियों की चिड़िया तो चारा खा भी ली थी। हाँ लेकिन पहली बार किसी सांड को अपने सामने बछिया पे ,.. और साथ में उस सब मरदवा जो बोली बोल रहे थे ,मैं समझ रही थी की किसको बछीया बोल रहे हैं और किसको सांड। इसीलिए तो और ,.. "
" फिर , ... आगे ,.. " अब उनके देवर से नहीं रहा जा रहा था।
: '
" मुझे भी शरारत सूझी , " खिखिलाते हुए जेठानी जी ने बात आगे बढ़ाई।
" रोज मैं पीछे बैठती थी ,आज मैं बोली , मैं आगे बैठूंगी ,साइकिल के डंडे पे। और आज सामू भी ,,,मस्ता रहा था। बोला ,
"नहीं एकदम नहीं ,डंडा बहुत कड़ा कडा है ,और तुम मुलायम मुलायम ,बहुत दर्द होगा। "
वो आदमी जो मुझे बार बार कह रहा थी ये बछिया भी गरमा गयी है , बाहर आ गया थी , हंस के सामू से बोला,
" अरे सही तो कह रही है , जब मुलायम मुलायम चीज में कड़ा कडा जाता है तभी तो असली मजा आता है ,दर्द भी होता है और मजा भी आता है। लौंडिया खुद बोल रही है डंडे पे चढ़ने को और तुम,... "
मेरी जिद के आगे सामू की कभी चलती थी जो आज चलती मैं आज आगे ही बैठी , और सामू का हाथ जब कभी छू जाता रगड़ जाता तो बस देह में आग लग जाती।
लेकिन स्कूल से लौटते हुए फिर मुझे मस्ती सूझी ,
रास्ते में करीब एक किलोमीटर का हिस्सा ऐसा पड़ता था जो एकदम सूनसान , बस एक बाग़ थी खूब घनी ,पगडण्डी के दोनों तरफ , बस वहीँ , मैंने जिद की ,कि मुझे साईकिल चलाना सीखना है।
खुद हैण्डल पकड़ ली , पीछे से सामू मुझे पकड़ के , ... लेकिन थोड़ी दूर पर ही धम ,साइकिल एक ओर ,मैं और सामू दूसरी ओर , लेकिन सामू ने मुझे बचा लिया।
खुद नीचे और मुझे उसने अपने ऊपर ले लिया। हाँ उसके हाथ सीधे मेरे बस वहीँ ,... उभारों पे।
मैं जान बूझ के देर तक उसकी गोद में बैठी रही जैसे बहुत चोट लगी हो ,और सामू भी सिर्फ पकड़े नहीं था बल्कि हलके हलके छू रहा था सहला रहा था ,मैं गरमा रही थी।
और उठते समय ,उसका सहारा लेते समय , जैसे अनजाने में मेरा हाथ उसकी धोती पे ,... मैं जोर से सिहर गयी और वो भी ,एकदम खड़ा था खूंटा।
सामू मुझे हड़काते बोला ,
चलो घर तेरी शिकायत मालकिन से करूंगा और कल से मैं नहीं लाऊंगा तुझे ,आना पैदल।
मैं एकदम हड़क गयी।
बोली नहीं नहीं ,घर पे कुछ मत बताना प्लीज। मानती तो हूँ तेरी बात , अच्छा अब साइकिल सिखाने को नहीं बोलूंगी बस।
लेकिन रस्ते भर मैं बैठी आगे ही और उसे चिढ़ाती भी रही।
अगले दिन मैंने एक और शरारत की , ब्रा मैंने पहनना शुरू कर दिया था लेकिन कभी पहनती थी कभी नहीं। गाँव में वैसे भी ज्यादातर औरतें ब्रा नहीं पहनती।
और आज मैंने ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं नीचे उतरी ही थी की मुझे मम्मी और सामू की आवाज सुनाई पड़ी लेकिन उन से जोर से बछिया की हुड़कने की।
" हे कुछ करो इसका " मम्मी बोल रही थीं सामू से।
" हाँ ,बहुत जोर से गरमा रही है , २४ घंटे के अंदर इसको सांड चाहिए। कल मैने देखा था था गर्भाधान केंद्र पे , एक जबरदस्त सांड आया है ,... "
गुलबिया भी मम्मी के साथ थी। हंसती हुयी उसने सामू को चिढ़ाया ,
" अरे एह इलाके में का तुमसे भी कोई जबरदस्त सांड है क्या , ... "
मम्मी भी खिलखिलाने लगीं। बोलीं ,
"तो ठीक है आज स्कूल जाओगे न बस रस्ते में रुक के बुकिंग करा लेना , कल छुट्टी है ले कर इसको सेंटर पे ,... "
और मम्मी अंदर चली गयीं पर गुलबिया सामू को चिढ़ाते बोली ,
"ई बछिया पे तो सांड कल चढ़ा दोगे ,लेकिन जो बछिया रोज जाती है तेरे साथ वो भी तो जोर जोर से हुड़क रही है ,उसकी गरमी कब ठंडी करोगे? "
तब तक मैं बाहर निकल आयी।
सामू ने गुलबिया को चिढ़ाया ," देख तेरी बछिया आ गयी। "
" लम्बी उमर है तेरी ,हम लोग तेरी ही बात कर रहे थे , "
गुलबिया मुस्कराते हुए बोली।
मैंने गुलबिया की ओर मुस्करा के देखा पर जिद भरी आवाज में बोली ,
" आज मैं आगे बैठूंगी ,अभी से बता रही हूँ ".
गुलबिया खिलखलाने लगी , बोली
देख ले मेरी बछिया को डंडे पर बैठने से डर नहीं लग रहा है , तू ही पीछे हट रहा है। " और अंदर चली गयी।
मैं आगे बैठ गयी थी और थोड़ी देर में सामू बोला , वहां चलोगी जहां कल गए थे , जहाँ कल सांड ,... " फिर कुछ रुक के बोला
" अरे तेरी बछीया गरमा रही है , देख सुबह से हुड़क रही है उसी के लिए "
" तो का इसी लिए चोकर रही थी सबेरे से " मैंने अचरज से पूछा।
" और क्या " जोर जोर से पैडल मारते बोला।
" लेकिन उस सांड का इतना बड़ा और सांड तगड़ा , .... झेल पाएगी ये , बहुत चिल्लायेगी। "
मैंने अपने मन का डर बछिया के बहाने से बताया और जवाब भी उसी तरह मिला।
" अरे जितना बड़ा होता है उतना ही मजा आता है बछिया को , फिर जब तक जोरदार सांड नहीं होगा ,... नयी बछिया के लिए तो और ताकत लगती है। "
और तब तक हम कल वाली जगह पहुँच गए थे।
सांड फिर एक बछिया पे चढ़ा हुआ था और कल वाले दोनों आदमी भी थे।
और आज तो दोनों एकदम खुल के , मेरे पीछे , सामू भी अंदर आफिस में बुकिंग कराने और ये दोनों कमेंट पे कमेंट ,
" ऐसी गरम बछिया मिल जाए न तो सांड की ताकत अपने आप दूनी हो जाए। " एक बोला।
" गरमा तो ऐसी रही है की खूंटा तोड़ा के खुदै सांड के पास ,... " दूसरे ने जोड़ा।
लेकिन मुझे आज मजा आ रहा था उनकी बातें सुनने में , और उनकी निगाहों को ताड़ने में दोनों मेरे छोटे छोटे आजाद कबूतरों को देख रहे थे ,ललचा रहे थे।
वहाँ से निकल के स्कूल जाते हुए फिर स्कूल से लौटते हुए , फिर वही डबल मीनिंग वाली बाते , और फिर उसी सन्नाटे वाली जगह में मैंने साइकिल चलाने की जिद की और गिरी , आज तो ब्रा का कवच भी नहीं था तो सामू ने खुल के ,
फिर मैंने ही बोला ,
" थोड़ी देर इस बाग़ में बैठते हैं न और सामू मुझे लेकर बाग़ में ,जहां हाथ को हाथ न सूझे ऐसा अँधेरा , खुद तो वो बैठ गया और मेरे लिए कुछ जगह साफ ढूढ़ने लगा लेकिन मैं धप्प से उसकी गोद में
" हे मेरी स्कर्ट गन्दी हो जायेगी ,मैं तो यहीं बैठूंगी "
और बैठते ही उसका खूंटा चुभने लगा , तभी सब उसे सांड कह के छेड़ते थे मैं अब समझी।
और उसने जैसे ही मुझे गिरने से बचाने के लिए पकड़ा पर सीधे उसके हाथ मेरे उभार पे ,पहले हलके हलके फिर खुल के दबाने लगा। और मेरा हाथ खींच के धोती के ऊपर से ही अपने खूंटे पर
एक दो पल मैंने रेजिस्ट किया फिर अपने हाथ को ढीला छोड़ दिया , लम्बाई मोटाई कड़ापन सब ऊपर से , ...कुछ देर में अपने आप मेरी उँगलियाँ उसे दबा रही थीं।
मेरी आँखे मुंद गयी थीं , देह ढीली हो गयी थी , बस मैं सामू का हाथ अपने छोटे छोटे कच्चे टिकोरों पर महसूस कर रही थी , सहलाते दबाते ,रगड़ते मसलते।
मेरे नए नए आये उरोज एकदम पथरा गए थे। और उसका एक हाथ मेरे स्कूल टॉप के अंदर ,आज तो मैं ब्रा भी नहीं पहन के आयी थी। जैसे उसने दबाया , मेरी हलकी सी सिसकी निकल आयी।
मेरी पकड़ उसके खूंटे पर अपने आप बढ़ गयी थी। मेरी उंगलिया जैसे सामू की उँगलियों से सीख रही थीं ,उन्हें चुनौती दे रही थीं , जो सामू मेरे जोबन के साथ कर रहा था वही मैं उसके खूंटे के साथ।
बस बड़ी देर तक ,ऐसे ही लेकिन जब उसने मुझे गाल पे चुम्मी ली , और धोती खोल के पकड़ाने की कोशिश की ,तो मैंने बहाना बना दिया ,हे देर हो रही है , घर पर लोग ,...
और हम लोग वापस चल दिए।
घर पर कोई वेट -वेट नहीं कर रहा था।
मुझे लगा की कही सामू नाराज न हो गया हो ,मैंने साइकिल से उतरते हुए मुस्करा के उसे देखा , और प्यार से हड़काते हुए कहा ,
" लालची , मना तो नहीं किया न ,कल पक्का ,प्रॉमिस। "
और वो इत्ती जोर से खुश हो के मुस्कराया की बस मेरी तबियत भी एकदम मस्त।
अगले दिन तो नहीं लेकिन दो तीन दिन में , रोज लौटते हुए स्कूल से हम लोग उसी बाग़ ,बाग़ क्या ,घनघोर जंगल था , बस उसी में रुकते आधे पौन घंटे मस्ती , ज्यादा नहीं ,.... हाँ अब वो कभी कभी खोल के पकड़ा देता अपना , मुझसे मुट्ठ मरवाता , चुम्मा चाटी , मेरे टॉप के अंदर हाथ डाल के ,
एक दिन तो उसने बहुत जिद्द की तो मैंने उसे टॉप उठा के भी देख लेने दिया।
पर नीचे वाला खजाना नहीं ,हाँ ऊँगली कहाँ मानने वाली थी ,मेरी चढ्ढी के अंदर घुस के , .... झांटे आ गयी थी लेकिन बहुत छोटी छोटी।
और चुनमुनिया में उंगली करते ,एक दिन उसने लाइफ टाइम ऑफर दे डाला ,
" हे तुझे सांड और बछिया का खेल देखना है ?"
वो बोला।
" देखा तो था ,दो बार "
मुँह फुला के मैं बोली।
" अरे वो नहीं आदमी औरत वाला। "
"धत्त " शर्मा के मैं बोली ,फिर मैंने ही बात छेड़ी।
तबतक हम दोनों साइकिल पर आ गए थे ,मैं आगे डंडे पर बैठी।
" कब ,कहाँ , कौन है " मुझसे रहा नहीं गया।
" तू बोल पहले देखना है की नहीं , ... " उलटे उसने सवाल दाग दिया।
अब हाँ बोलने के अलावा चारा क्या था।
" तो कल घर से आधे घंटे जल्दी निकलना होगा। " वो बोला।
" नहीं ,नहीं मैं जल्दी वल्दी नहीं निकलूंगी ,मम्मी को क्या बोलूंगी , "आगे से मैं बोली।
और मम्मी दिख गयीं ,घर के आगे खड़ी ,किसी पड़ोसन से गपियाती।
साइकिल से कूद कर उतरती मम्मी से मैं बोली।
" माँ ये सामू न मेरी कोई बात नहीं मानता ,आप ही बोल दीजिये न उसे। "
" तुमने बात ही कुछ उलटी सीधी की होगी ,क्यों सामू। " मम्मी बोलीं।
सामू कन्फ्यूज , लेकिन मैंने ही बात आगे बढ़ाई,
" अरे मम्मी कुछ नहीं ,कल मेरा एक्स्ट्रा क्लास है , पौन घंटे पहले स्कूल जाना होगा। बस। वही मैंने इससे कहा तो इतना नखड़ा ,इतना नखड़ा ,टाइम नहीं है। अबआप ही इसे बोल दीजिये न प्लीज की कल पौन घंटे पहले आजाय ,वरना मेरी क्लास शर्तिया छूट जायेगी। "
" अरे सामू आ जाना पौन घण्टे पहले , ले जाना इसको , वरना यहां घर में बैठी चायं चायं करती रहेगी। मेरा ही सर दर्द करेगा। इस लड़की से बहस करना बेकार है। कुछ ख़ास काम तो नहीं है तुझे। "
मम्मी सामू से बोलीं।
" नहीं नहीं ,ऐसा कुछ तो नहीं है ,और आप ने कहा है तो ,आ जाऊंगा पौन घंटे पहले। काम तो है लेकिन इसके स्कूल की तरफ ही है ,पहुंचा के कर लूंगा। "
वो बोला।
" अरे तू कहाँ ,... "
" अरे इधर से ही जात रहलीं , पानी तेज हो गया , और हमको आना भी था , हमरो एक बछिया गरमात बाय , उहू के एकदिन लियावे क हौ। "
सामू बोला।
आसपास के सभी गांवों में लोग उसे अच्छी तरह जानते थे
तबतक दूसरे आदमी की नजर मेरे ऊपर पड़ी , और जिस तरह से वो मुझे देख रहा था मैं समझ गयी।
भले ही घर वाले मुझे बच्ची समझते थे पर बाहर वाले मर्दों ,लौंडो की निगाहें , और आज तो भीग के मेरे स्कूल की यूनिफार्म एकदम देह से चिपकी , खासतौर से टॉप,और मेरे वैसे भी भी अपनी सहेलियों में सबसे बड़े ,
" इहौ बछिया तो खूब गरमात हौ "
उसकी निगाह खुल के मेरे कच्चे टिकोरों को घूर रही थी।
सामू समझ गया ,मैं भी समझ गयी वो क्या बोल रहा है पर सामू ने उसकी बात अनसुनी करते हुए सामू पहले वाले से बोला ,
" सांड तो जबरदस्त है ,इम्पोर्टेड है क्या? "
" हाँ , ब्राजील क है। "
पहले वाले ने जवाब दिया लेकिन अब उसकी निगाह भी मेरी टॉप में भीगी चिपकी कच्ची अमिया से चिपकी थी। और हंस के सामू से बोला ,
" लेकिन आपन देसी सांड भी कम नहीं होते , एक बार बछिया टांग खोल दे बस "
लेकिन दूसरा वाला तो एकदम खुल के सामू से ,
" अरे तूँहूँ कौन कम सांड हो ,कउनो बची है तोहसे का। ई बछियाव तो अभी कोर लागत्त बा। "
उसने अब साफ़ साफ़ मेरी तरफ इशारा करके पूछा।
सामू बजाय बुरा मानने के ,बस हंस दिया।
अब मुझसे नहीं रहा गया ,मैंने सामू से कहा " हे चलो चलते हैं न पानी कम हो गया है "
लेकिन वो दोनों एक साथ बोले ,
" अरे रुका थोड़ी देर , बंद हो जाय तो जाना। भीग जाओगी। "
और सामू भी उन्ही की बात में बात मिला के , " बस थोड़ी देर , पानी बंद होने ही वाला है। रुकते ही निकल चलेंगे ,वैसे ही इतनी गीली हो रही हो , "
दूसरे वाले ने फिर लेकिन सामू से अपना सवाल दोहराया , तू जवाब नहीं दिए , अबहीं कोर हौ ना। "
" तुम्हार अंदाज कभी गलत हो सकता है " सामू ने हँसते हुए बोला।
" अरे बछिया जैसे गरमाय न तैसे सांड को , ... वरना बेचारी छटपटाती रहती है , और तोहार अइसना सांड के रहते ,.. " वो एकदम ही ,...
गनीमत है पानी बंद हो गया और हम निकल दिए , लेकिन मैं अब सामू को एक अलग निगाह से देख रही थी।
'' फिर ,... " हलके से मेरे मुंह से निकल गया.
" अरे मेरी पूरी देह गिनगीना रही थी , कितना मोटा लम्बा सांड का, मेरी आँख के सामने बस वही बार बार , कितना छटपटा रही थी जब सांड ठेल रहा था ,अपना ,... "
वो हलके हलके बोल रही थीं जैसे वो दृश्य एक बार फिर से ,...
" दीदी ,आप हाईस्कूल में पहुँच गयी थीं तो इस सब चीजों के बारे में आप को ,....
"हलके से हिचकिचाते हुए मैंने पूछ ही लिया। "
और अब वो खिलखिला के हंसी ,
"अरे हम गाँव की लड़कियां ,तुम शहर की लड़कियों की तरह थोड़ी की बस किताब किताब किताब। गाँव में तो घर में काम करनेवालियाँ , भौजाइयां , चिढ़ा चिढ़ा के, फिर कोई शादी वादी हो ऐसे वैसे गाने , गारी और रतजगे में तो पूरा समझो प्रैक्टिकल , ...
फिर गुलबिया भौजी , हमारे नाउन की बहू , रोज राज भर अपने मरद के साथ चक्की चलवाती और दिन में जब हमारे घर आती तो एक एक बात अर्था अर्था के , मेरी दो चार सहेलियों की चिड़िया तो चारा खा भी ली थी। हाँ लेकिन पहली बार किसी सांड को अपने सामने बछिया पे ,.. और साथ में उस सब मरदवा जो बोली बोल रहे थे ,मैं समझ रही थी की किसको बछीया बोल रहे हैं और किसको सांड। इसीलिए तो और ,.. "
" फिर , ... आगे ,.. " अब उनके देवर से नहीं रहा जा रहा था।
: '
" मुझे भी शरारत सूझी , " खिखिलाते हुए जेठानी जी ने बात आगे बढ़ाई।
" रोज मैं पीछे बैठती थी ,आज मैं बोली , मैं आगे बैठूंगी ,साइकिल के डंडे पे। और आज सामू भी ,,,मस्ता रहा था। बोला ,
"नहीं एकदम नहीं ,डंडा बहुत कड़ा कडा है ,और तुम मुलायम मुलायम ,बहुत दर्द होगा। "
वो आदमी जो मुझे बार बार कह रहा थी ये बछिया भी गरमा गयी है , बाहर आ गया थी , हंस के सामू से बोला,
" अरे सही तो कह रही है , जब मुलायम मुलायम चीज में कड़ा कडा जाता है तभी तो असली मजा आता है ,दर्द भी होता है और मजा भी आता है। लौंडिया खुद बोल रही है डंडे पे चढ़ने को और तुम,... "
मेरी जिद के आगे सामू की कभी चलती थी जो आज चलती मैं आज आगे ही बैठी , और सामू का हाथ जब कभी छू जाता रगड़ जाता तो बस देह में आग लग जाती।
लेकिन स्कूल से लौटते हुए फिर मुझे मस्ती सूझी ,
रास्ते में करीब एक किलोमीटर का हिस्सा ऐसा पड़ता था जो एकदम सूनसान , बस एक बाग़ थी खूब घनी ,पगडण्डी के दोनों तरफ , बस वहीँ , मैंने जिद की ,कि मुझे साईकिल चलाना सीखना है।
खुद हैण्डल पकड़ ली , पीछे से सामू मुझे पकड़ के , ... लेकिन थोड़ी दूर पर ही धम ,साइकिल एक ओर ,मैं और सामू दूसरी ओर , लेकिन सामू ने मुझे बचा लिया।
खुद नीचे और मुझे उसने अपने ऊपर ले लिया। हाँ उसके हाथ सीधे मेरे बस वहीँ ,... उभारों पे।
मैं जान बूझ के देर तक उसकी गोद में बैठी रही जैसे बहुत चोट लगी हो ,और सामू भी सिर्फ पकड़े नहीं था बल्कि हलके हलके छू रहा था सहला रहा था ,मैं गरमा रही थी।
और उठते समय ,उसका सहारा लेते समय , जैसे अनजाने में मेरा हाथ उसकी धोती पे ,... मैं जोर से सिहर गयी और वो भी ,एकदम खड़ा था खूंटा।
सामू मुझे हड़काते बोला ,
चलो घर तेरी शिकायत मालकिन से करूंगा और कल से मैं नहीं लाऊंगा तुझे ,आना पैदल।
मैं एकदम हड़क गयी।
बोली नहीं नहीं ,घर पे कुछ मत बताना प्लीज। मानती तो हूँ तेरी बात , अच्छा अब साइकिल सिखाने को नहीं बोलूंगी बस।
लेकिन रस्ते भर मैं बैठी आगे ही और उसे चिढ़ाती भी रही।
अगले दिन मैंने एक और शरारत की , ब्रा मैंने पहनना शुरू कर दिया था लेकिन कभी पहनती थी कभी नहीं। गाँव में वैसे भी ज्यादातर औरतें ब्रा नहीं पहनती।
और आज मैंने ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं नीचे उतरी ही थी की मुझे मम्मी और सामू की आवाज सुनाई पड़ी लेकिन उन से जोर से बछिया की हुड़कने की।
" हे कुछ करो इसका " मम्मी बोल रही थीं सामू से।
" हाँ ,बहुत जोर से गरमा रही है , २४ घंटे के अंदर इसको सांड चाहिए। कल मैने देखा था था गर्भाधान केंद्र पे , एक जबरदस्त सांड आया है ,... "
गुलबिया भी मम्मी के साथ थी। हंसती हुयी उसने सामू को चिढ़ाया ,
" अरे एह इलाके में का तुमसे भी कोई जबरदस्त सांड है क्या , ... "
मम्मी भी खिलखिलाने लगीं। बोलीं ,
"तो ठीक है आज स्कूल जाओगे न बस रस्ते में रुक के बुकिंग करा लेना , कल छुट्टी है ले कर इसको सेंटर पे ,... "
और मम्मी अंदर चली गयीं पर गुलबिया सामू को चिढ़ाते बोली ,
"ई बछिया पे तो सांड कल चढ़ा दोगे ,लेकिन जो बछिया रोज जाती है तेरे साथ वो भी तो जोर जोर से हुड़क रही है ,उसकी गरमी कब ठंडी करोगे? "
तब तक मैं बाहर निकल आयी।
सामू ने गुलबिया को चिढ़ाया ," देख तेरी बछिया आ गयी। "
" लम्बी उमर है तेरी ,हम लोग तेरी ही बात कर रहे थे , "
गुलबिया मुस्कराते हुए बोली।
मैंने गुलबिया की ओर मुस्करा के देखा पर जिद भरी आवाज में बोली ,
" आज मैं आगे बैठूंगी ,अभी से बता रही हूँ ".
गुलबिया खिलखलाने लगी , बोली
देख ले मेरी बछिया को डंडे पर बैठने से डर नहीं लग रहा है , तू ही पीछे हट रहा है। " और अंदर चली गयी।
मैं आगे बैठ गयी थी और थोड़ी देर में सामू बोला , वहां चलोगी जहां कल गए थे , जहाँ कल सांड ,... " फिर कुछ रुक के बोला
" अरे तेरी बछीया गरमा रही है , देख सुबह से हुड़क रही है उसी के लिए "
" तो का इसी लिए चोकर रही थी सबेरे से " मैंने अचरज से पूछा।
" और क्या " जोर जोर से पैडल मारते बोला।
" लेकिन उस सांड का इतना बड़ा और सांड तगड़ा , .... झेल पाएगी ये , बहुत चिल्लायेगी। "
मैंने अपने मन का डर बछिया के बहाने से बताया और जवाब भी उसी तरह मिला।
" अरे जितना बड़ा होता है उतना ही मजा आता है बछिया को , फिर जब तक जोरदार सांड नहीं होगा ,... नयी बछिया के लिए तो और ताकत लगती है। "
और तब तक हम कल वाली जगह पहुँच गए थे।
सांड फिर एक बछिया पे चढ़ा हुआ था और कल वाले दोनों आदमी भी थे।
और आज तो दोनों एकदम खुल के , मेरे पीछे , सामू भी अंदर आफिस में बुकिंग कराने और ये दोनों कमेंट पे कमेंट ,
" ऐसी गरम बछिया मिल जाए न तो सांड की ताकत अपने आप दूनी हो जाए। " एक बोला।
" गरमा तो ऐसी रही है की खूंटा तोड़ा के खुदै सांड के पास ,... " दूसरे ने जोड़ा।
लेकिन मुझे आज मजा आ रहा था उनकी बातें सुनने में , और उनकी निगाहों को ताड़ने में दोनों मेरे छोटे छोटे आजाद कबूतरों को देख रहे थे ,ललचा रहे थे।
वहाँ से निकल के स्कूल जाते हुए फिर स्कूल से लौटते हुए , फिर वही डबल मीनिंग वाली बाते , और फिर उसी सन्नाटे वाली जगह में मैंने साइकिल चलाने की जिद की और गिरी , आज तो ब्रा का कवच भी नहीं था तो सामू ने खुल के ,
फिर मैंने ही बोला ,
" थोड़ी देर इस बाग़ में बैठते हैं न और सामू मुझे लेकर बाग़ में ,जहां हाथ को हाथ न सूझे ऐसा अँधेरा , खुद तो वो बैठ गया और मेरे लिए कुछ जगह साफ ढूढ़ने लगा लेकिन मैं धप्प से उसकी गोद में
" हे मेरी स्कर्ट गन्दी हो जायेगी ,मैं तो यहीं बैठूंगी "
और बैठते ही उसका खूंटा चुभने लगा , तभी सब उसे सांड कह के छेड़ते थे मैं अब समझी।
और उसने जैसे ही मुझे गिरने से बचाने के लिए पकड़ा पर सीधे उसके हाथ मेरे उभार पे ,पहले हलके हलके फिर खुल के दबाने लगा। और मेरा हाथ खींच के धोती के ऊपर से ही अपने खूंटे पर
एक दो पल मैंने रेजिस्ट किया फिर अपने हाथ को ढीला छोड़ दिया , लम्बाई मोटाई कड़ापन सब ऊपर से , ...कुछ देर में अपने आप मेरी उँगलियाँ उसे दबा रही थीं।
मेरी आँखे मुंद गयी थीं , देह ढीली हो गयी थी , बस मैं सामू का हाथ अपने छोटे छोटे कच्चे टिकोरों पर महसूस कर रही थी , सहलाते दबाते ,रगड़ते मसलते।
मेरे नए नए आये उरोज एकदम पथरा गए थे। और उसका एक हाथ मेरे स्कूल टॉप के अंदर ,आज तो मैं ब्रा भी नहीं पहन के आयी थी। जैसे उसने दबाया , मेरी हलकी सी सिसकी निकल आयी।
मेरी पकड़ उसके खूंटे पर अपने आप बढ़ गयी थी। मेरी उंगलिया जैसे सामू की उँगलियों से सीख रही थीं ,उन्हें चुनौती दे रही थीं , जो सामू मेरे जोबन के साथ कर रहा था वही मैं उसके खूंटे के साथ।
बस बड़ी देर तक ,ऐसे ही लेकिन जब उसने मुझे गाल पे चुम्मी ली , और धोती खोल के पकड़ाने की कोशिश की ,तो मैंने बहाना बना दिया ,हे देर हो रही है , घर पर लोग ,...
और हम लोग वापस चल दिए।
घर पर कोई वेट -वेट नहीं कर रहा था।
मुझे लगा की कही सामू नाराज न हो गया हो ,मैंने साइकिल से उतरते हुए मुस्करा के उसे देखा , और प्यार से हड़काते हुए कहा ,
" लालची , मना तो नहीं किया न ,कल पक्का ,प्रॉमिस। "
और वो इत्ती जोर से खुश हो के मुस्कराया की बस मेरी तबियत भी एकदम मस्त।
अगले दिन तो नहीं लेकिन दो तीन दिन में , रोज लौटते हुए स्कूल से हम लोग उसी बाग़ ,बाग़ क्या ,घनघोर जंगल था , बस उसी में रुकते आधे पौन घंटे मस्ती , ज्यादा नहीं ,.... हाँ अब वो कभी कभी खोल के पकड़ा देता अपना , मुझसे मुट्ठ मरवाता , चुम्मा चाटी , मेरे टॉप के अंदर हाथ डाल के ,
एक दिन तो उसने बहुत जिद्द की तो मैंने उसे टॉप उठा के भी देख लेने दिया।
पर नीचे वाला खजाना नहीं ,हाँ ऊँगली कहाँ मानने वाली थी ,मेरी चढ्ढी के अंदर घुस के , .... झांटे आ गयी थी लेकिन बहुत छोटी छोटी।
और चुनमुनिया में उंगली करते ,एक दिन उसने लाइफ टाइम ऑफर दे डाला ,
" हे तुझे सांड और बछिया का खेल देखना है ?"
वो बोला।
" देखा तो था ,दो बार "
मुँह फुला के मैं बोली।
" अरे वो नहीं आदमी औरत वाला। "
"धत्त " शर्मा के मैं बोली ,फिर मैंने ही बात छेड़ी।
तबतक हम दोनों साइकिल पर आ गए थे ,मैं आगे डंडे पर बैठी।
" कब ,कहाँ , कौन है " मुझसे रहा नहीं गया।
" तू बोल पहले देखना है की नहीं , ... " उलटे उसने सवाल दाग दिया।
अब हाँ बोलने के अलावा चारा क्या था।
" तो कल घर से आधे घंटे जल्दी निकलना होगा। " वो बोला।
" नहीं ,नहीं मैं जल्दी वल्दी नहीं निकलूंगी ,मम्मी को क्या बोलूंगी , "आगे से मैं बोली।
और मम्मी दिख गयीं ,घर के आगे खड़ी ,किसी पड़ोसन से गपियाती।
साइकिल से कूद कर उतरती मम्मी से मैं बोली।
" माँ ये सामू न मेरी कोई बात नहीं मानता ,आप ही बोल दीजिये न उसे। "
" तुमने बात ही कुछ उलटी सीधी की होगी ,क्यों सामू। " मम्मी बोलीं।
सामू कन्फ्यूज , लेकिन मैंने ही बात आगे बढ़ाई,
" अरे मम्मी कुछ नहीं ,कल मेरा एक्स्ट्रा क्लास है , पौन घंटे पहले स्कूल जाना होगा। बस। वही मैंने इससे कहा तो इतना नखड़ा ,इतना नखड़ा ,टाइम नहीं है। अबआप ही इसे बोल दीजिये न प्लीज की कल पौन घंटे पहले आजाय ,वरना मेरी क्लास शर्तिया छूट जायेगी। "
" अरे सामू आ जाना पौन घण्टे पहले , ले जाना इसको , वरना यहां घर में बैठी चायं चायं करती रहेगी। मेरा ही सर दर्द करेगा। इस लड़की से बहस करना बेकार है। कुछ ख़ास काम तो नहीं है तुझे। "
मम्मी सामू से बोलीं।
" नहीं नहीं ,ऐसा कुछ तो नहीं है ,और आप ने कहा है तो ,आ जाऊंगा पौन घंटे पहले। काम तो है लेकिन इसके स्कूल की तरफ ही है ,पहुंचा के कर लूंगा। "
वो बोला।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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जोरू का गुलाम भाग १२४
जोरू का गुलाम भाग १२४
अगले दिन बजाय पौन घंटे के मैं एक घंटे पहले ही तैयार ,नहा धो के एकदम रेडी। नीचे स्कूल यूनिफार्म में बैग ले के खड़ी।
साइकल पे बैठते ही फिर मैंने पूछा ,
कहाँ बताओ न।
" अरे ले चल रहा हूँ लेकिन मान गया तुझे। तू भी न। .. हंस के वो बोला।
मेरे स्कूल के रास्ते से हट के एक और पतली सी पगडण्डी पर उतर गया ,साईकिल का बैलेंस सम्हालना उसी के बस की बात थी ,पतली सी पगडण्डी ,
दोनों ओर गन्ने के बड़े खेत , खूब ऊँचे गन्ने , हम दोनों साइकिल पे थे पर गन्ने के खेत इतने ऊँचे की चार हाथ दूर से भी कोई हम दोनों को देख नहीं सकता था।
एक किनारे उसने साइकिल लगाई और मुझे ले के गन्ने के खेत में ,मेरा हाथ पकड़ के धीमे दबे पाँव।
तभी कुछ सरसराहट सुनाई पड़ी ,और मुझे चुप रहने का इशारा किया और हाथ पकड़ के बैठा दिया।
एक औरत और एक आदमी।
औरत चोली और घाघरे में ,
आदमी बनियाइन पाजामे में।
पीछे से उसकी चोली के अंदर हाथ डाल के मसल रहा था , फिर चोली उतार के बगल में फेंक दी। अब उस औरत के खुले बड़े बड़े गदराये जोबन साफ़ दिख रहे थे , लेकिन चेहरा दोनों का नहीं दिख रहा था।
फिर उसने उस औरत को पीठ के बल लिटा के उसका घाघरा मोड़ के कमर तक और अपना पाजामा भी उतार दिया और सीधे उसकी टांगों के बीच।
मेरे मुंह से चीख निकल ही जाती अगर सामू मेरा मुंह न भींचते।
और आदमी था , मेरे घर गाय भैंस दुहने वाला ,जुगनू।जुगनू ,२१-२२ साल का रहा होगा , गुलबिया से तीन चार साल बड़ा , तगड़ा, जबरदंग।
और जैसे उस दिन सांड बछिया पे चढ़ा था एकदम उसी तरह , गुलबिया छटपटाती रही ,चूतड़ पटकती रही उसको गरियाती रही ,
पर जुगनू ने गुलबिया की टाँगे ,फैलायीं खींच के अपने कंधे पर चढ़ायीं जैसे कोई धनुष चलाने वाले उसकी प्रत्यंचा खींचे ,
और तीर चला दिया।
जैसे तीर लगने पर कोई बांकी हिरनिया चीखे ,बस उसी तरह गुलबिया जोर से चीखी ,
घायल हिरणी की तरह छपटपटाती रही ,तड़पती रही।
और उस दिन मैंने पहली बार सीख लिया एक बार अगर मरद घुसेड़ देता है तो फिर लाख गांड पटको ,चीखो चिल्लाओ ,अगर सच्चा मरद है तो बिना चूत की धज्जी उड़ाए छोड़ेगा नहीं।
जुगनू ने उस की चोली खोल दी और बस सीधे उसके मस्त जोबन कस कस के मसलने लगा ,
कभी रगड़ता तो कभी कचकचा के काटता और हाँ उसके धक्के भी कम नहीं हो रहे थे।
मैं और सामू गन्ने के खेत में छिपे मुश्किल से ५-६ हाथ दूर रहे होंगे लेकिन खेत इतना घना था की वो दोनों हम लोगों को नहीं देख सकते थे।
कुछ देर में गुलबिया का चीखना तड़पना कम होगया ,अब वो सिसकी ले रही थी अपने नंगे चूतड़ गन्ने के खेत में मिटटी के ढेलों पर रगड़ रही थी।
जुगनू ने उसे दुहरा कर दिया और अब मैं उसका मोटा औजार अच्छी तरह देख सकती थी , खूब मोटा था और अच्छा खासा लंबा भी।
रगड़ते दरेरते सटासट अंदर घुस रहा था , करीब पूरा बाहर निकल के फिर वो पूरी ताकत से अंदर धकेल देता।
" काहें इतना चीख रही थी जैसे पहली बार चोदवा रही हो ,.. "
उसे चिढ़ाता उसकी चूँची काट के जुगनू बोला।
" अरे एक बार में पूरा ठेलना जरुरी था क्या ,... फाड़ के रख दिया "
गुलबिया मुस्कराते बोली।
" पूरा तो अभी भी नहीं ठेला है ,दो चार इंच बाकी है। "
गुलबिया के गाल चूम के उसने फिर छेड़ा।
" अरे हरामी क नाती , भोंसड़ी के , ... ऊ का अपनी छिनार महतारी क लिए बचाय क रखे हो की आपन रंडी बहिनों के लिए , "
और अबकी उस ने हँसते हुए पूरा ठेल दिया ,लंड का बेस गुलबिया की बुर से रगड़ते बोला ,
" नाहीं तोहार महतारी ,आपने सास के बदे। "
और हचक हचक कर हचक हचक कर इस तरह चोदना शुरू कर दिया की ,
नीचे से गुलबिया चूतड़ उचका उचका के चुदाई का मजा ले रही थी ,जोर से उसे अपनी बांह में बाँध कर ,नीचे से खुद हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी ,
इतना अच्छा लग रहा था ,
मन कर रहा था मैं खुद गुलबिया की जगहइसी गन्ने के खेत में , मेरे किशोर चूतड़ भी इसी तरह गन्ने के खेत में ढेले पर रगड़े जायँ ,और सामू पटक पटक कर , रगड़ रगड़ कर ,
मैं सामू की गोद में बैठी थी और आज उसे कुछ करने कहने की जरूरत नहीं पड़ी।
बस उसने धोती का फेंटा थोड़ा ढीला किया और मेरे कोमल किशोर हाथ उसके लम्बे मोटे औजार पर ,
जैसे मैं गरमा रही थी वही हालत उसकी भी थी ,खड़ा फनफनाया , तना खूब मोटा।
और मैंने जैसे कोई बाज गौरैया को दबोचे , मैंने दबोच लिया।
और उसकी उँगलियाँ भी मेरी चड्ढी को ढीली कर के सीधे मेरी चुनमुनिया पर ,
आज मैंने रोकने की कोशिश भी नहीं की।
आँखे मेरी गुलबिया की उठी हुयी टांगों से चिपकी थीं , खचाखच खचाखच लंड घोंट रही थी , उसके चेहरे की ख़ुशी देख कर मैं भी ललचा रही थी ,
गुलबिया हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।
और मरद भी वो तगड़ा थाजिस गजब तेजी से ताकत से वो गुलबिया की खुली बड़ी बड़ी चूँचियाँ मसल रहा था ,रगड़ रहा था।
कभी उसकी चूँची की घुंडी पकड़ के मरोड़ देता और गुलबिया रिरियाने लगती ,और जोर जोर से अपने चूतड़ पटकने लगती,
ये देख देख के मेरे नए नए आये जुबना भी पथरा रहे था।
वो कभी गुलबिया की बुर में एक के बाद एक धक्के मारता तो कभी जब उसका पूरा खूंटा अंदर घुस जाता तो बस उसके बेस से ,
दे घिस्से पे घिस्सा ,दे घिस्से पे घिस्सा ,
गुलबिया का चेहरा एकदम मस्ती से डूबा ,
मैंने इसके बारे में सुना भी था , कामवालियां और भउजाईयां चिढ़ाती भी थीं ,छेड़ती भी थी लेकिन
इसमें इतना मजा आता होगा सोच भी नहीं सकती थी।
मैं गुलबिया का मजा देख देख के मजा ले रही थी और इधर मेरी चड्ढी सरक के घुटनों तक , और अब सामू का खूंटा सीधे मेरे नंगे पिछवाड़े पे ,एकदम अलफ़ ,ठोकर मारता
टॉप भी ऊपर सरक चुका था ,ब्रा मैंने पहनी नहीं थी और ,जैसे वहां गुलबिया के ,... वैसे ही यहाँ सामू मेरी कच्ची अमिया भी रगड़ रहा था मसल रहा ,वैसे ही ताकत से।
और मैं खुद अब सरम लिहाज छोड़ के ,अपने चूतड़ सामू के मोटे लंड पे रगड़ रही थी।इतना मजा आ रहा था ,इतनी मस्ती छा रही थी ,बता नहीं सकती।
बस यही मन कर रहा था ,
बस यहीं इसी गन्ने के खेत में ,यहीं ढेलों पर ,गुलबिया की तरह मुझे भी लिटा कर बस सामू एक बार में ठूंस दे पूरा।
अगले दिन बजाय पौन घंटे के मैं एक घंटे पहले ही तैयार ,नहा धो के एकदम रेडी। नीचे स्कूल यूनिफार्म में बैग ले के खड़ी।
साइकल पे बैठते ही फिर मैंने पूछा ,
कहाँ बताओ न।
" अरे ले चल रहा हूँ लेकिन मान गया तुझे। तू भी न। .. हंस के वो बोला।
मेरे स्कूल के रास्ते से हट के एक और पतली सी पगडण्डी पर उतर गया ,साईकिल का बैलेंस सम्हालना उसी के बस की बात थी ,पतली सी पगडण्डी ,
दोनों ओर गन्ने के बड़े खेत , खूब ऊँचे गन्ने , हम दोनों साइकिल पे थे पर गन्ने के खेत इतने ऊँचे की चार हाथ दूर से भी कोई हम दोनों को देख नहीं सकता था।
एक किनारे उसने साइकिल लगाई और मुझे ले के गन्ने के खेत में ,मेरा हाथ पकड़ के धीमे दबे पाँव।
तभी कुछ सरसराहट सुनाई पड़ी ,और मुझे चुप रहने का इशारा किया और हाथ पकड़ के बैठा दिया।
एक औरत और एक आदमी।
औरत चोली और घाघरे में ,
आदमी बनियाइन पाजामे में।
पीछे से उसकी चोली के अंदर हाथ डाल के मसल रहा था , फिर चोली उतार के बगल में फेंक दी। अब उस औरत के खुले बड़े बड़े गदराये जोबन साफ़ दिख रहे थे , लेकिन चेहरा दोनों का नहीं दिख रहा था।
फिर उसने उस औरत को पीठ के बल लिटा के उसका घाघरा मोड़ के कमर तक और अपना पाजामा भी उतार दिया और सीधे उसकी टांगों के बीच।
मेरे मुंह से चीख निकल ही जाती अगर सामू मेरा मुंह न भींचते।
और आदमी था , मेरे घर गाय भैंस दुहने वाला ,जुगनू।जुगनू ,२१-२२ साल का रहा होगा , गुलबिया से तीन चार साल बड़ा , तगड़ा, जबरदंग।
और जैसे उस दिन सांड बछिया पे चढ़ा था एकदम उसी तरह , गुलबिया छटपटाती रही ,चूतड़ पटकती रही उसको गरियाती रही ,
पर जुगनू ने गुलबिया की टाँगे ,फैलायीं खींच के अपने कंधे पर चढ़ायीं जैसे कोई धनुष चलाने वाले उसकी प्रत्यंचा खींचे ,
और तीर चला दिया।
जैसे तीर लगने पर कोई बांकी हिरनिया चीखे ,बस उसी तरह गुलबिया जोर से चीखी ,
घायल हिरणी की तरह छपटपटाती रही ,तड़पती रही।
और उस दिन मैंने पहली बार सीख लिया एक बार अगर मरद घुसेड़ देता है तो फिर लाख गांड पटको ,चीखो चिल्लाओ ,अगर सच्चा मरद है तो बिना चूत की धज्जी उड़ाए छोड़ेगा नहीं।
जुगनू ने उस की चोली खोल दी और बस सीधे उसके मस्त जोबन कस कस के मसलने लगा ,
कभी रगड़ता तो कभी कचकचा के काटता और हाँ उसके धक्के भी कम नहीं हो रहे थे।
मैं और सामू गन्ने के खेत में छिपे मुश्किल से ५-६ हाथ दूर रहे होंगे लेकिन खेत इतना घना था की वो दोनों हम लोगों को नहीं देख सकते थे।
कुछ देर में गुलबिया का चीखना तड़पना कम होगया ,अब वो सिसकी ले रही थी अपने नंगे चूतड़ गन्ने के खेत में मिटटी के ढेलों पर रगड़ रही थी।
जुगनू ने उसे दुहरा कर दिया और अब मैं उसका मोटा औजार अच्छी तरह देख सकती थी , खूब मोटा था और अच्छा खासा लंबा भी।
रगड़ते दरेरते सटासट अंदर घुस रहा था , करीब पूरा बाहर निकल के फिर वो पूरी ताकत से अंदर धकेल देता।
" काहें इतना चीख रही थी जैसे पहली बार चोदवा रही हो ,.. "
उसे चिढ़ाता उसकी चूँची काट के जुगनू बोला।
" अरे एक बार में पूरा ठेलना जरुरी था क्या ,... फाड़ के रख दिया "
गुलबिया मुस्कराते बोली।
" पूरा तो अभी भी नहीं ठेला है ,दो चार इंच बाकी है। "
गुलबिया के गाल चूम के उसने फिर छेड़ा।
" अरे हरामी क नाती , भोंसड़ी के , ... ऊ का अपनी छिनार महतारी क लिए बचाय क रखे हो की आपन रंडी बहिनों के लिए , "
और अबकी उस ने हँसते हुए पूरा ठेल दिया ,लंड का बेस गुलबिया की बुर से रगड़ते बोला ,
" नाहीं तोहार महतारी ,आपने सास के बदे। "
और हचक हचक कर हचक हचक कर इस तरह चोदना शुरू कर दिया की ,
नीचे से गुलबिया चूतड़ उचका उचका के चुदाई का मजा ले रही थी ,जोर से उसे अपनी बांह में बाँध कर ,नीचे से खुद हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी ,
इतना अच्छा लग रहा था ,
मन कर रहा था मैं खुद गुलबिया की जगहइसी गन्ने के खेत में , मेरे किशोर चूतड़ भी इसी तरह गन्ने के खेत में ढेले पर रगड़े जायँ ,और सामू पटक पटक कर , रगड़ रगड़ कर ,
मैं सामू की गोद में बैठी थी और आज उसे कुछ करने कहने की जरूरत नहीं पड़ी।
बस उसने धोती का फेंटा थोड़ा ढीला किया और मेरे कोमल किशोर हाथ उसके लम्बे मोटे औजार पर ,
जैसे मैं गरमा रही थी वही हालत उसकी भी थी ,खड़ा फनफनाया , तना खूब मोटा।
और मैंने जैसे कोई बाज गौरैया को दबोचे , मैंने दबोच लिया।
और उसकी उँगलियाँ भी मेरी चड्ढी को ढीली कर के सीधे मेरी चुनमुनिया पर ,
आज मैंने रोकने की कोशिश भी नहीं की।
आँखे मेरी गुलबिया की उठी हुयी टांगों से चिपकी थीं , खचाखच खचाखच लंड घोंट रही थी , उसके चेहरे की ख़ुशी देख कर मैं भी ललचा रही थी ,
गुलबिया हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।
और मरद भी वो तगड़ा थाजिस गजब तेजी से ताकत से वो गुलबिया की खुली बड़ी बड़ी चूँचियाँ मसल रहा था ,रगड़ रहा था।
कभी उसकी चूँची की घुंडी पकड़ के मरोड़ देता और गुलबिया रिरियाने लगती ,और जोर जोर से अपने चूतड़ पटकने लगती,
ये देख देख के मेरे नए नए आये जुबना भी पथरा रहे था।
वो कभी गुलबिया की बुर में एक के बाद एक धक्के मारता तो कभी जब उसका पूरा खूंटा अंदर घुस जाता तो बस उसके बेस से ,
दे घिस्से पे घिस्सा ,दे घिस्से पे घिस्सा ,
गुलबिया का चेहरा एकदम मस्ती से डूबा ,
मैंने इसके बारे में सुना भी था , कामवालियां और भउजाईयां चिढ़ाती भी थीं ,छेड़ती भी थी लेकिन
इसमें इतना मजा आता होगा सोच भी नहीं सकती थी।
मैं गुलबिया का मजा देख देख के मजा ले रही थी और इधर मेरी चड्ढी सरक के घुटनों तक , और अब सामू का खूंटा सीधे मेरे नंगे पिछवाड़े पे ,एकदम अलफ़ ,ठोकर मारता
टॉप भी ऊपर सरक चुका था ,ब्रा मैंने पहनी नहीं थी और ,जैसे वहां गुलबिया के ,... वैसे ही यहाँ सामू मेरी कच्ची अमिया भी रगड़ रहा था मसल रहा ,वैसे ही ताकत से।
और मैं खुद अब सरम लिहाज छोड़ के ,अपने चूतड़ सामू के मोटे लंड पे रगड़ रही थी।इतना मजा आ रहा था ,इतनी मस्ती छा रही थी ,बता नहीं सकती।
बस यही मन कर रहा था ,
बस यहीं इसी गन्ने के खेत में ,यहीं ढेलों पर ,गुलबिया की तरह मुझे भी लिटा कर बस सामू एक बार में ठूंस दे पूरा।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
जोर जोर से मैं मुठिया रही थी उसका लंड और वो भी एक ऊँगली मेरी चुनमुनिया में एक पोर तक डाल कर , गोल गोल
मैं भी हलके हलके सिसक रही थी , अपनी कच्ची चूत में उसकी ऊँगली भींच रही थी , जवाब में अपने चूतड़ उसके लंड पर रगड़ रही थी।
उधर जैसे कोई धुनिया रुई धुने उस तरह गुलबिया की बुर धुनी जा रही थी।
वो पूरा बाहर निकालता और फिर पूरी ताकत से पूरा अंदर ,गुलबिया सिसक पड़ती ,मिटटी पर अपने चूतड़ जोर जोर से रगड़ने लगती।
और अचानक गुलबिया को छेड़ते चिढ़ाते ,उसने पूरा लंड घुसेड़ के धक्के लगाने बंद कर दिए।
" छिनार के पूत , रंडी क नाती , भंडुए तेरे सारे खानदान क गांड मारुं ,काहे रुक गए ,चोद न अपनी माँ के यार ,मादरचोद। "
" इहै सुनने के लिए ,"वो खिलखिला के बोला।
और फिर गुलबिया के दोनों जोबन पकड़ के वो हचक के की , ... जैसे धरती काँप उठी।
और कुछ देर में गुलबिया की देह भी ,तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी।
सामू ने तुरंत मेरी जाँघों के बीच से अपना हाथ निकाल के मेरी चड्ढी मेरी कमर तक , जब तक मैं कुछ समझूं ,अपनी धोती भी उसने ठीक से ,...
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,मेरी आँखे तो बस गुलबिया पर ,... लेकिन सामू ने हाथ खींच के उठने का इशारा किया ,
मैं हटना तो नहीं चाहती थी पर ,सामू ,
फुसफसाते हुए बोला , बस अब खेल ख़तम , ई देख लेंगे हम दोनों को।
और मैं सामू के पीछे पीछे।
लेकिन गन्ने के खेत से बाहर निकलने के पहले एक बार मैं झुक के देखा ,
गुलबिया की बिल से जसी दूध मलाई बह रही थी और अब वो भी अपना औजार बाहर निकाल लिया था।
स्कूल पहुँचने तक मैं कुछ नहीं बोली , बस देह मेरी गिनगीना रही थी ,आँख के सामने वही गुलबिया।
लौटते हुए भी कुछ ख़ास नही हुआ , मम्मी ने सामू को बोला था की मुझे जल्दी आज घर पहुंचना है ,कहीं जाना था।
लेकिन अगले दिन वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था ,या शायद होना ही था।
रात भर सपने में गुलबिया ने सोने नहीं दिया।
खूब छेड़ती ,उकसाती , कभी सपने में गुलबिया को चुदवाती देखती तो कभी खुद ,
नींद भी देर से खुली , जब मम्मी ने आवाज दी नीचे से ,आज स्कूल नहीं जाना है क्या।
उठने का बिलकुल मन नहीं कर रहा था ,
सपने में अब गुलबिया की जगह मैं थी ,एकदम उसी जगह उसी गन्ने के खेत में
और सामू ,
दूसरी बार मेरे ऊपर चढ़ा , जबरन
और मैं एकदम गुलबिया जैसे गाली दे रही थी उसी तरह सामू को ,
" फाड् दिया न मेरी , तेरी बहन की फड़वाउंगी मैं , रहम तो कर बेरहमी , और वो मुस्कराते हुए कर तेजी से धक्के पर धक्का ,
एकदम उठने को मन नहीं कर रहा था।
लेकिन तब तक मम्मी ने दुबारा आवाज लगायी और मैंने आँखे खोली तो ,सच में देर हो गयी थी।
बाथरूम गयी तो ,मेरी जांघों के बीच लिस लिस ,
जल्दी जल्दी , जब बाहर निकली तैयार हो के तो सामू बाहर साइकिल ले के तैयार खड़ा , मुझे देख के उसके मुंह से निकल गया ,
" मालूम है कब से खड़ा हूँ तुम्हारे लिए "
जवाब मेरी ओर से कुंए में पानी भरती एक कहांरिन ने दिया , लगती वो भी मेरी भौजी थी तो कैसे छोड़ती।
" अरे तो कौन बड़ा ,... अरे हमरी ननदी के लिए तो केतना लोग , कबसे खड़ा कइके , ई तो खुदे आइके तोहरे डंडा पे बैठ जाती है। "
मैंने मुस्करा के अपनी भौजी की ओर देखा और झट से डंडे पर बैठ गयी और सामू की ओर देख के मीठी मीठी मुस्कराते देखा और बोली ,
" आ तो गयी अब चलाओ न। "
" सपना देख रही थी। " गाँव से बाहर निकलते ही ,मैंने सामू केसवाल का जवाब दे दिया।
" अरे सबेरे का सपना तो ,.. जरूर सच होगा। " उस के मुंह से निकल गया।
रोज यही था ,गाँव के अंदर हमलोग एक दम चुपचाप और गाँव से बाहर निकलते ही छेड़छाड़ ,चिढ़ाना सब चालू।
" अरे तेरे मुंह में घी गुड़ ,.. " मैंने चट जवाब दे दिया।
" अभी तो ज़रा ये वाली जलेबी तनी चिखाय दो। "
सामू ने अपनी एक ऊँगली मेरी हलकी लिपस्टिक लगे होंठों पर फिराते बोला।
" लालची ,"
मैंने हड़काया लेकिन अपना चेहरा मोड़ के उसकी ओर पीछे ,और साइकल चलाते झुक के उसने मेरा होंठ चूम लिया।
मेरे मन में आया एडवांस में गुड़ चखा दिया है अब तो जरूर सपना सच होगा। लेकिन आज एक चीज मैंने समझ ली थी और तय भी कर लिया था ,
मुझे ही पहल करना होगा । अगर मैंने नहीं कुछ किया तो हाईस्कूल ,इंटर बीए सब हो जायगा और मैं कन्या कुंवारी ही बनी रहूंगी। सामू की हिम्मत नहीं पड़ेगी लाइन पार करने की।
" का था सपने में ," उस से नहीं रहा गया।
" एक तो सबेरे सबेरे हमका जूठी कर दिए ऊपर से , ... अरे ई नहीं मालूम का की सपना बताने से सपने का असर कम हो जाता है , और हम तो तुमको एडवांस में गुड़ चखा दिए हैं , सपना जब पूरा हो जाएगा तो तुमको बता देंगे।
मैंने खिलखिलाते हुए कहा।तब सायकिल गन्ने के खेत के बीच में पतली पगडंडी से गुजर रही थी , दोनों ओर इतने ऊँचे गन्ने के खेत ,कोई दस हाथ दूर हो तो भी हम लोगों की साइकिल नहीं देख सकता था।
और वो जगह देख के हिम्मत कर के ऊँगली से उसने मेरे कसे कसे टॉप फाड़ते उभारों को छु के कहा ,\\
" मुझे तो ये वाली गुड़ की डली चाहिए। "
" लालची ,कल मन नहीं भरा क्या , " अपने उभारों को और उभार के में बोली।
"ना "वो बोला और मेरी कच्ची अमिया उसकी मुट्ठीमें।
हम लोग उसी जगह से गुजर रहे थे जहां कल उसने साइकल खड़ी की थी और अंदर जाकर खेत में हमने गुलबिया की ,...
मेरे मन में आया पूछ लूँ ,सिर्फ यही चाहिए की नीचे वाला शहद का छत्ता भी। लेकिन मैं चुप रही।
जिस तरह से वो मेरे उभारों को रगड़ मसल रहा था ,मेरी पूरी देह गिनगीना रही थी।
लेकिन कुछ देर में खुला रास्ता आ गया , और उसने हाथ हटा लिया।
लेकिन हम लोगों की बात ,छेड़छाड़ चलती रही ,मैंने ये भी ध्यान नहीं दिया की
मेरे क्लास की लड़कियां कुछ वापस आ रही थीं ,उन्होंने कुछ इशारा भी किया , कहा भी लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया।
एक बड़ी सी बाग़ पड़ती थी ,उसके बाद वो कन्या हाईस्कूल।
मैंने घड़ी पर निगाह डाली मैं दस मिनट आलरेडी लेट हो चुकी थी।
इसका मतलब अभी प्रेयर चल रही होगी ,मैं चुपके से जाके अपने क्लास में बैठ सकती थी।
जबतक हम लोग स्कूल पहुंचे ,स्कूल में सन्नाटा पसरा था।
बस एक दो लड़कियां पैदल वापस हो रही थीं, आपस में मगन। न उन्होंने हमेदेखा न हमने ध्यान दिया।
मैं भी हलके हलके सिसक रही थी , अपनी कच्ची चूत में उसकी ऊँगली भींच रही थी , जवाब में अपने चूतड़ उसके लंड पर रगड़ रही थी।
उधर जैसे कोई धुनिया रुई धुने उस तरह गुलबिया की बुर धुनी जा रही थी।
वो पूरा बाहर निकालता और फिर पूरी ताकत से पूरा अंदर ,गुलबिया सिसक पड़ती ,मिटटी पर अपने चूतड़ जोर जोर से रगड़ने लगती।
और अचानक गुलबिया को छेड़ते चिढ़ाते ,उसने पूरा लंड घुसेड़ के धक्के लगाने बंद कर दिए।
" छिनार के पूत , रंडी क नाती , भंडुए तेरे सारे खानदान क गांड मारुं ,काहे रुक गए ,चोद न अपनी माँ के यार ,मादरचोद। "
" इहै सुनने के लिए ,"वो खिलखिला के बोला।
और फिर गुलबिया के दोनों जोबन पकड़ के वो हचक के की , ... जैसे धरती काँप उठी।
और कुछ देर में गुलबिया की देह भी ,तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी।
सामू ने तुरंत मेरी जाँघों के बीच से अपना हाथ निकाल के मेरी चड्ढी मेरी कमर तक , जब तक मैं कुछ समझूं ,अपनी धोती भी उसने ठीक से ,...
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,मेरी आँखे तो बस गुलबिया पर ,... लेकिन सामू ने हाथ खींच के उठने का इशारा किया ,
मैं हटना तो नहीं चाहती थी पर ,सामू ,
फुसफसाते हुए बोला , बस अब खेल ख़तम , ई देख लेंगे हम दोनों को।
और मैं सामू के पीछे पीछे।
लेकिन गन्ने के खेत से बाहर निकलने के पहले एक बार मैं झुक के देखा ,
गुलबिया की बिल से जसी दूध मलाई बह रही थी और अब वो भी अपना औजार बाहर निकाल लिया था।
स्कूल पहुँचने तक मैं कुछ नहीं बोली , बस देह मेरी गिनगीना रही थी ,आँख के सामने वही गुलबिया।
लौटते हुए भी कुछ ख़ास नही हुआ , मम्मी ने सामू को बोला था की मुझे जल्दी आज घर पहुंचना है ,कहीं जाना था।
लेकिन अगले दिन वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था ,या शायद होना ही था।
रात भर सपने में गुलबिया ने सोने नहीं दिया।
खूब छेड़ती ,उकसाती , कभी सपने में गुलबिया को चुदवाती देखती तो कभी खुद ,
नींद भी देर से खुली , जब मम्मी ने आवाज दी नीचे से ,आज स्कूल नहीं जाना है क्या।
उठने का बिलकुल मन नहीं कर रहा था ,
सपने में अब गुलबिया की जगह मैं थी ,एकदम उसी जगह उसी गन्ने के खेत में
और सामू ,
दूसरी बार मेरे ऊपर चढ़ा , जबरन
और मैं एकदम गुलबिया जैसे गाली दे रही थी उसी तरह सामू को ,
" फाड् दिया न मेरी , तेरी बहन की फड़वाउंगी मैं , रहम तो कर बेरहमी , और वो मुस्कराते हुए कर तेजी से धक्के पर धक्का ,
एकदम उठने को मन नहीं कर रहा था।
लेकिन तब तक मम्मी ने दुबारा आवाज लगायी और मैंने आँखे खोली तो ,सच में देर हो गयी थी।
बाथरूम गयी तो ,मेरी जांघों के बीच लिस लिस ,
जल्दी जल्दी , जब बाहर निकली तैयार हो के तो सामू बाहर साइकिल ले के तैयार खड़ा , मुझे देख के उसके मुंह से निकल गया ,
" मालूम है कब से खड़ा हूँ तुम्हारे लिए "
जवाब मेरी ओर से कुंए में पानी भरती एक कहांरिन ने दिया , लगती वो भी मेरी भौजी थी तो कैसे छोड़ती।
" अरे तो कौन बड़ा ,... अरे हमरी ननदी के लिए तो केतना लोग , कबसे खड़ा कइके , ई तो खुदे आइके तोहरे डंडा पे बैठ जाती है। "
मैंने मुस्करा के अपनी भौजी की ओर देखा और झट से डंडे पर बैठ गयी और सामू की ओर देख के मीठी मीठी मुस्कराते देखा और बोली ,
" आ तो गयी अब चलाओ न। "
" सपना देख रही थी। " गाँव से बाहर निकलते ही ,मैंने सामू केसवाल का जवाब दे दिया।
" अरे सबेरे का सपना तो ,.. जरूर सच होगा। " उस के मुंह से निकल गया।
रोज यही था ,गाँव के अंदर हमलोग एक दम चुपचाप और गाँव से बाहर निकलते ही छेड़छाड़ ,चिढ़ाना सब चालू।
" अरे तेरे मुंह में घी गुड़ ,.. " मैंने चट जवाब दे दिया।
" अभी तो ज़रा ये वाली जलेबी तनी चिखाय दो। "
सामू ने अपनी एक ऊँगली मेरी हलकी लिपस्टिक लगे होंठों पर फिराते बोला।
" लालची ,"
मैंने हड़काया लेकिन अपना चेहरा मोड़ के उसकी ओर पीछे ,और साइकल चलाते झुक के उसने मेरा होंठ चूम लिया।
मेरे मन में आया एडवांस में गुड़ चखा दिया है अब तो जरूर सपना सच होगा। लेकिन आज एक चीज मैंने समझ ली थी और तय भी कर लिया था ,
मुझे ही पहल करना होगा । अगर मैंने नहीं कुछ किया तो हाईस्कूल ,इंटर बीए सब हो जायगा और मैं कन्या कुंवारी ही बनी रहूंगी। सामू की हिम्मत नहीं पड़ेगी लाइन पार करने की।
" का था सपने में ," उस से नहीं रहा गया।
" एक तो सबेरे सबेरे हमका जूठी कर दिए ऊपर से , ... अरे ई नहीं मालूम का की सपना बताने से सपने का असर कम हो जाता है , और हम तो तुमको एडवांस में गुड़ चखा दिए हैं , सपना जब पूरा हो जाएगा तो तुमको बता देंगे।
मैंने खिलखिलाते हुए कहा।तब सायकिल गन्ने के खेत के बीच में पतली पगडंडी से गुजर रही थी , दोनों ओर इतने ऊँचे गन्ने के खेत ,कोई दस हाथ दूर हो तो भी हम लोगों की साइकिल नहीं देख सकता था।
और वो जगह देख के हिम्मत कर के ऊँगली से उसने मेरे कसे कसे टॉप फाड़ते उभारों को छु के कहा ,\\
" मुझे तो ये वाली गुड़ की डली चाहिए। "
" लालची ,कल मन नहीं भरा क्या , " अपने उभारों को और उभार के में बोली।
"ना "वो बोला और मेरी कच्ची अमिया उसकी मुट्ठीमें।
हम लोग उसी जगह से गुजर रहे थे जहां कल उसने साइकल खड़ी की थी और अंदर जाकर खेत में हमने गुलबिया की ,...
मेरे मन में आया पूछ लूँ ,सिर्फ यही चाहिए की नीचे वाला शहद का छत्ता भी। लेकिन मैं चुप रही।
जिस तरह से वो मेरे उभारों को रगड़ मसल रहा था ,मेरी पूरी देह गिनगीना रही थी।
लेकिन कुछ देर में खुला रास्ता आ गया , और उसने हाथ हटा लिया।
लेकिन हम लोगों की बात ,छेड़छाड़ चलती रही ,मैंने ये भी ध्यान नहीं दिया की
मेरे क्लास की लड़कियां कुछ वापस आ रही थीं ,उन्होंने कुछ इशारा भी किया , कहा भी लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया।
एक बड़ी सी बाग़ पड़ती थी ,उसके बाद वो कन्या हाईस्कूल।
मैंने घड़ी पर निगाह डाली मैं दस मिनट आलरेडी लेट हो चुकी थी।
इसका मतलब अभी प्रेयर चल रही होगी ,मैं चुपके से जाके अपने क्लास में बैठ सकती थी।
जबतक हम लोग स्कूल पहुंचे ,स्कूल में सन्नाटा पसरा था।
बस एक दो लड़कियां पैदल वापस हो रही थीं, आपस में मगन। न उन्होंने हमेदेखा न हमने ध्यान दिया।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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जोरू का गुलाम भाग १२५
जोरू का गुलाम भाग १२५
गेट पर ताला लटका हुआ था और एक कागज चिपका था।
बस मैंने एक बात पढ़ी ,
स्कूल दो दिन के लिए बंद ,
और मेरा शैतानी दिमाग ओवरटाइम करने लगा।
मैंने ये भी ध्यान नहीं दिया की क्यों ,शायद प्रिंसिपल की भैंस भाग गयी थी ,या किसी मास्टरनी के देवरानी की जेठानी बियाई थीं पर असली चीज ये दो दिन स्कूल बंद।
अब मुझे समझ में आया रास्ते में वो लड़कियां मुझसे वही बोल रही थीं ,स्कूल बंद है और मैं वापस घर चली जाऊं।
मैं फिर सामू के साइकल पे और मैंने उससे वापस घर चलने को कहा , ये भी बताया स्कूल दो दिन के लिए बंद है।
रास्ते में धान के खेत ,वो सुनी बाग़ ,जंगल की तरह जहाँ से एक डेढ़ किलोमीटर हम लोग चलते थे और फिर गन्ने के खेत ,वो जगह आने ही वाली थी जहां कल मैंने गुलबिया को , और तबसे मेरे मन में बस यही बात ,...
मेरा नंबर कब आएगा।
मौसम भी एकदम बदल गया था।
भादो लग गया था , बादल खूब गहरे छा गए थे ,आलमोस्ट अँधेरा और ऐसे मौसम में गाँव के सब लोग घर में घुस जाते हैं।
" हे वहां चलो न जहां कल गुलबिया ,... " मैंने सामू को चढ़ाया।
" अरे आज वो थोड़ी होगी वहां , इतनी देर हो गयी है। … बादल देख रही हो। "
वो बोला , लेकिन साइकल खड़ी कर के गन्ने के खेत में ,और उसके पीछे पीछे मैं ,
" यार घर में किसको मालूम है आज स्कूल बंद हो गया ,मेरे स्कूल की कोई लड़की मेरे गाँव की तो है नहीं। "
मैंने अपने आप बोला,
लेकिन सामू को सुनाते उकसाते हुए ।
और हम लोग वहीँ थे जहाँ कल गुलबिया और जुगनू ,...
और एक बार फिर से मेरी आँखों के सामने कल का सीन घूम गया। क्या मस्त लग रही थी , गुलबिया ,कित्ता मजा आ रहा था उसे ,...
और एक बार फिर मेरी जांघो के बीच लसलसी सी,
मेरी निगाहें नीचे की ओर झुकी तो सामू का खूंटा एकदम टनटनाया , पूरे ९० डिग्री पे , उसकी धोती में तम्बू बना के ,
और सामू की आंखे मेरी कच्ची अमिया पे ,
खूंटा उसका गुलबिया वाले से २० नहीं २२ लग रहा था , और ये मुझे गुलबिया ने ही बताया था , जित्ता बड़ा उत्त्ता ज्यादा मजा।
लेकिन ये भी लग रहा था की कहीं सामू हिचक जाए और चलने को न कह दे।
मैंने खुद सामू का हाथ पकड़ के खींच के गन्ने के खेत में बैठाते हुए कहा ,
' अरे बैठ न थोड़ी देर ,आज कौन सी जल्दी है। घर पे किसको पता होगा आज स्कूल में छुट्टी हो गयी , फिर तुम्ही तो कह रहे थे की इस गन्ने के खेत में चार हाथ से भी कोई , नहीं देख सकता "
मैं धम्म से उन्ही मिटटी के ढेलों पे बैठ गयी थी जहाँ कल गुलबिया अपने चूतड़ पटक पटक के ,
बादल और काले हो गए थे। हवा भी थोड़ी तेज हो गयी थी।
सामू ने मुझे बैठे बैठे अपनी बाँहों में भींच लिया , वो जिस गुड़ की डली का दीवाना था ,वो मीठे होंठ खुद मैंने उसके होंठों पर चिपका दिए ,और अपने किशोर हाथ उसकी पीठ पर कस के बाँध लिए।
आज न उसे कोई जल्दी थी न मुझे ,
पर मैंने तय कर लिया था , आज कुछ भी हो जाए मैं भी गुलबिया की तरह इसी जगह ,...
सामू ने मुझे बैठे बैठे अपनी बाँहों में भींच लिया , वो जिस गुड़ की डली का दीवाना था ,वो मीठे होंठ खुद मैंने उसके होंठों पर चिपका दिए ,
और अपने किशोर हाथ उसकी पीठ पर कस के बाँध लिए।
आज न उसे कोई जल्दी थी न मुझे ,
पर मैंने तय कर लिया था , आज कुछ भी हो जाए मैं भी गुलबिया की तरह इसी जगह ,...
सामू ने धीरे धीरे मेरी स्कूल की यूनिफॉर्म के टॉप के सारे बटन खोल दिए , उसे मेरीस्कर्ट से खींच के बाहर कर दिया और फिर सीधे मेरे टॉप के अंदर उसका एक हाथ घुस के , मेरे छोटे छोटे गोल गोल ,
मैं और गिनगीना गई और आज बिना सामू के कहे ,हाथ पकड़ाए ,धोती के ऊपर से मैंने उसका खूंटा पकड़ लिया।क्या मस्त मोटा कड़ा कड़ा था। बिना उसके कहे मैं हलके हलके मुठियाने लगी।
पर थोड़ी देर में सामू की धोती , गन्ने के खेत में और मेरा हाथ उसकी जांघिया के अंदर , आज पहली बार बिना सामू के पकड़ाए मैं खुद पकड़ के उसे रगड़ मसल रही थी , वो भी कपडे के ऊपर से नहीं सीधे ,डायरेक्ट।
और वैसे भी सामू के दोनों हाथ मेरी किशोर नयी नयी जवानी के मजे लेने में मस्त थे, एक हाथ टॉप के अंदर घुस के कच्ची अमियों को सहला रहा था मसल रहा था और दूसरा मेरी स्कर्ट के अंदर ,
कुछ देर तक तो मेरी टीनेज गोरी चिकनी जाँघों को सहलाता रहा ,फिर थोड़ा प्यार से ,थोड़ा जबरदस्ती उसने मेरी जाँघों को फैला दिया और अब उसकी हथेली सीधे मेरी चढ्ढी के ऊपर से मेरी चुनमुनिया सहला रही थी ,मसल रही थी।
और मैं गीली हो रही थी।
मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयी और अब मैंने अपने आपको पूरी तरह सामू के हवाले कर दिया था।
सरसराहट के साथ जब मेरी आवाज खुली तो मेरा टॉप भी सामू की धोती के ऊपर।
ब्रा तो मैंने पहना नहीं था , और मेरे दोनों छोटे छोटे कबूतर पहली बार इस तरह खुली हवा में ,गन्ने के खेत में आजाद ,
और मैं , पता नहीं मैं खुद या उसने खींच कर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया था ,स्कर्ट भी मूड तुड़ के बस एक छल्ले की तरह मेरी कमर से चिपकी ,मेरी जाँघे फैली , पर
पर
पहली बार मेरी कच्ची अमिया पर किसी मरद के होंठ लगे थे।
सामू एकदम जैसे पागल ,कभी होंठों से छूता तो कभी रगड़ देता तो कभी बस जस्ट आ रहे निपल को होंठों के बीच ले के,
एक हाईस्कूल की लड़की के निप्स ,बस आरहे ,लेकिन मेरी देह खूब भरी भरी थी ,अपने क्लास की लडकिंयों से २० नहीं २२। उभार भी ,
निप्स एकदम बस ललछौंहे जैसे , सुबह की आभा की तरह लेकिन साफ़ साफ़ ,
और होंठों के बीच में लेकर चुहुक चुहुक ,.... दसरी कच्ची अमिया ,
सामू के हाथों के बीच दबायी मसली जा रही थी ,
और नीचे अब उसका जांघिया भी सरक के नीचे
और मेरे हाथ में उसका मोटा फनफनाता लंड ,
मेरी हिचक शरम सब गायब हो गयी थी।
और सामू की उंगलिया तो एकदम डाकू ,सीधे चड्ढी के अंदर सेंध लगा दी और अपनी गदोरी से मेरी सोनचिरैया की मालिश शुरू ,
सोचो मेरी क्या हालत हो रही होगी , .... एक लड़की की एक कच्ची अमिया पे दांत गड़ा रहा हो , दूसरे को रगड़ा मसला जा रहा और गुलाबो पे हथेली की घसर मसर , और ये सब करने वाला ,खूब खेला खाया , एक्सपीरियंस्ड मरद।
मैं सब कुछ भूल चुकी थी , मेरी सांसे लम्बी लम्बी चल रही थी ,
बस मुझे अपनी मुठ्ठी में सामू के खूब मोटे मस्त औजार ,
अपने नए नए जोबन और सोनपरी पे सामू की उँगलियों का जादू महसूस हो रहा था।
कुछ होना है तो हो जाय।
चड्डी नीचे सरकी , लेकिन कल की तरह नीचे सरक के घुटनों में फंस के नहीं रह गयी ,बल्कि सामू की गन्ने के खेत में पड़ी धोती के ऊपर मेरे टॉप के साथ और वहीँ पे साथ सामू ने अपना जांघिया भी ,
इतनी नजदीक से आज मैं पहली बार खुल के उसका हथियार देख रही थी ,क्या जबरदंग , मोटा मूसल ,
और उसने मुझे अपनी गोद से उतारकर सीधे गन्ने के खेत में ढेलों पर ,
( पहले तो उसने अपनी धोती जमींन पर बिछा के मुझे उस पे लिटाने की कोशिश की पर मैंने इशारे से मना कर दिया ,
एक तो मुझे अपने कपड़ों की ज्यादा चिंता था ,.... और कल गुलबिया भी तो मिटटी में लेट के ,... )
मेरी दोनों लम्बी लम्बी टाँगे अब सामू के कंधे पर ,
और वो मेरी चुनमुनिया पे सटा ,
कुछ मारे मजे के और कुछ मारे डर के मैंने आँखे बंद कर ली ,पर सामू उसे मेरी हर कमजोरी मालूम थी।
गुदगुदी लगा के उसने मेरी आँखे खुलवा दी और अपना सर जोर जोर से हिला के अपना हुकुम सुना दिया , बिन बोले।
आँखे खुली।
ढेर सारा थूक लेके उसने पहले अपने सुपाडे को खोल के उसपे लगाया और फिर मेरी चुनमुनिया चियार के , दो उँगलियों में थूक लगा के ,थोड़ा अंदर तक।
इत्ती देर से वो ऊँगली कर रहा था तो एक पोर तो ऊँगली का घुस ही गया।
अब सब कुछ भूल के वो सिर्फ मेरी गोरी चिकनी जाँघों के बीच, कुछ देर तक वो सुपाड़ा मुहाने पे ही रगड़ता रहा ,
मैं सोचती रही ,अब ठेलेगा ,अब ढकेलेगा , अब ,अब लेकिन ,... नहीं बस मेरी दोनों पत्तियों को फैला के ,
मैं गिनगीना रही थी ,मचल रही और मुझसे नहीं रहा गया ,मुंह से तो नहीं बोल सकती थी अपने दोनों हाथों से कस के उसे अपनी ओर खींचा।
बस इतना आमंत्रण बहुत था ,
गेट पर ताला लटका हुआ था और एक कागज चिपका था।
बस मैंने एक बात पढ़ी ,
स्कूल दो दिन के लिए बंद ,
और मेरा शैतानी दिमाग ओवरटाइम करने लगा।
मैंने ये भी ध्यान नहीं दिया की क्यों ,शायद प्रिंसिपल की भैंस भाग गयी थी ,या किसी मास्टरनी के देवरानी की जेठानी बियाई थीं पर असली चीज ये दो दिन स्कूल बंद।
अब मुझे समझ में आया रास्ते में वो लड़कियां मुझसे वही बोल रही थीं ,स्कूल बंद है और मैं वापस घर चली जाऊं।
मैं फिर सामू के साइकल पे और मैंने उससे वापस घर चलने को कहा , ये भी बताया स्कूल दो दिन के लिए बंद है।
रास्ते में धान के खेत ,वो सुनी बाग़ ,जंगल की तरह जहाँ से एक डेढ़ किलोमीटर हम लोग चलते थे और फिर गन्ने के खेत ,वो जगह आने ही वाली थी जहां कल मैंने गुलबिया को , और तबसे मेरे मन में बस यही बात ,...
मेरा नंबर कब आएगा।
मौसम भी एकदम बदल गया था।
भादो लग गया था , बादल खूब गहरे छा गए थे ,आलमोस्ट अँधेरा और ऐसे मौसम में गाँव के सब लोग घर में घुस जाते हैं।
" हे वहां चलो न जहां कल गुलबिया ,... " मैंने सामू को चढ़ाया।
" अरे आज वो थोड़ी होगी वहां , इतनी देर हो गयी है। … बादल देख रही हो। "
वो बोला , लेकिन साइकल खड़ी कर के गन्ने के खेत में ,और उसके पीछे पीछे मैं ,
" यार घर में किसको मालूम है आज स्कूल बंद हो गया ,मेरे स्कूल की कोई लड़की मेरे गाँव की तो है नहीं। "
मैंने अपने आप बोला,
लेकिन सामू को सुनाते उकसाते हुए ।
और हम लोग वहीँ थे जहाँ कल गुलबिया और जुगनू ,...
और एक बार फिर से मेरी आँखों के सामने कल का सीन घूम गया। क्या मस्त लग रही थी , गुलबिया ,कित्ता मजा आ रहा था उसे ,...
और एक बार फिर मेरी जांघो के बीच लसलसी सी,
मेरी निगाहें नीचे की ओर झुकी तो सामू का खूंटा एकदम टनटनाया , पूरे ९० डिग्री पे , उसकी धोती में तम्बू बना के ,
और सामू की आंखे मेरी कच्ची अमिया पे ,
खूंटा उसका गुलबिया वाले से २० नहीं २२ लग रहा था , और ये मुझे गुलबिया ने ही बताया था , जित्ता बड़ा उत्त्ता ज्यादा मजा।
लेकिन ये भी लग रहा था की कहीं सामू हिचक जाए और चलने को न कह दे।
मैंने खुद सामू का हाथ पकड़ के खींच के गन्ने के खेत में बैठाते हुए कहा ,
' अरे बैठ न थोड़ी देर ,आज कौन सी जल्दी है। घर पे किसको पता होगा आज स्कूल में छुट्टी हो गयी , फिर तुम्ही तो कह रहे थे की इस गन्ने के खेत में चार हाथ से भी कोई , नहीं देख सकता "
मैं धम्म से उन्ही मिटटी के ढेलों पे बैठ गयी थी जहाँ कल गुलबिया अपने चूतड़ पटक पटक के ,
बादल और काले हो गए थे। हवा भी थोड़ी तेज हो गयी थी।
सामू ने मुझे बैठे बैठे अपनी बाँहों में भींच लिया , वो जिस गुड़ की डली का दीवाना था ,वो मीठे होंठ खुद मैंने उसके होंठों पर चिपका दिए ,और अपने किशोर हाथ उसकी पीठ पर कस के बाँध लिए।
आज न उसे कोई जल्दी थी न मुझे ,
पर मैंने तय कर लिया था , आज कुछ भी हो जाए मैं भी गुलबिया की तरह इसी जगह ,...
सामू ने मुझे बैठे बैठे अपनी बाँहों में भींच लिया , वो जिस गुड़ की डली का दीवाना था ,वो मीठे होंठ खुद मैंने उसके होंठों पर चिपका दिए ,
और अपने किशोर हाथ उसकी पीठ पर कस के बाँध लिए।
आज न उसे कोई जल्दी थी न मुझे ,
पर मैंने तय कर लिया था , आज कुछ भी हो जाए मैं भी गुलबिया की तरह इसी जगह ,...
सामू ने धीरे धीरे मेरी स्कूल की यूनिफॉर्म के टॉप के सारे बटन खोल दिए , उसे मेरीस्कर्ट से खींच के बाहर कर दिया और फिर सीधे मेरे टॉप के अंदर उसका एक हाथ घुस के , मेरे छोटे छोटे गोल गोल ,
मैं और गिनगीना गई और आज बिना सामू के कहे ,हाथ पकड़ाए ,धोती के ऊपर से मैंने उसका खूंटा पकड़ लिया।क्या मस्त मोटा कड़ा कड़ा था। बिना उसके कहे मैं हलके हलके मुठियाने लगी।
पर थोड़ी देर में सामू की धोती , गन्ने के खेत में और मेरा हाथ उसकी जांघिया के अंदर , आज पहली बार बिना सामू के पकड़ाए मैं खुद पकड़ के उसे रगड़ मसल रही थी , वो भी कपडे के ऊपर से नहीं सीधे ,डायरेक्ट।
और वैसे भी सामू के दोनों हाथ मेरी किशोर नयी नयी जवानी के मजे लेने में मस्त थे, एक हाथ टॉप के अंदर घुस के कच्ची अमियों को सहला रहा था मसल रहा था और दूसरा मेरी स्कर्ट के अंदर ,
कुछ देर तक तो मेरी टीनेज गोरी चिकनी जाँघों को सहलाता रहा ,फिर थोड़ा प्यार से ,थोड़ा जबरदस्ती उसने मेरी जाँघों को फैला दिया और अब उसकी हथेली सीधे मेरी चढ्ढी के ऊपर से मेरी चुनमुनिया सहला रही थी ,मसल रही थी।
और मैं गीली हो रही थी।
मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयी और अब मैंने अपने आपको पूरी तरह सामू के हवाले कर दिया था।
सरसराहट के साथ जब मेरी आवाज खुली तो मेरा टॉप भी सामू की धोती के ऊपर।
ब्रा तो मैंने पहना नहीं था , और मेरे दोनों छोटे छोटे कबूतर पहली बार इस तरह खुली हवा में ,गन्ने के खेत में आजाद ,
और मैं , पता नहीं मैं खुद या उसने खींच कर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया था ,स्कर्ट भी मूड तुड़ के बस एक छल्ले की तरह मेरी कमर से चिपकी ,मेरी जाँघे फैली , पर
पर
पहली बार मेरी कच्ची अमिया पर किसी मरद के होंठ लगे थे।
सामू एकदम जैसे पागल ,कभी होंठों से छूता तो कभी रगड़ देता तो कभी बस जस्ट आ रहे निपल को होंठों के बीच ले के,
एक हाईस्कूल की लड़की के निप्स ,बस आरहे ,लेकिन मेरी देह खूब भरी भरी थी ,अपने क्लास की लडकिंयों से २० नहीं २२। उभार भी ,
निप्स एकदम बस ललछौंहे जैसे , सुबह की आभा की तरह लेकिन साफ़ साफ़ ,
और होंठों के बीच में लेकर चुहुक चुहुक ,.... दसरी कच्ची अमिया ,
सामू के हाथों के बीच दबायी मसली जा रही थी ,
और नीचे अब उसका जांघिया भी सरक के नीचे
और मेरे हाथ में उसका मोटा फनफनाता लंड ,
मेरी हिचक शरम सब गायब हो गयी थी।
और सामू की उंगलिया तो एकदम डाकू ,सीधे चड्ढी के अंदर सेंध लगा दी और अपनी गदोरी से मेरी सोनचिरैया की मालिश शुरू ,
सोचो मेरी क्या हालत हो रही होगी , .... एक लड़की की एक कच्ची अमिया पे दांत गड़ा रहा हो , दूसरे को रगड़ा मसला जा रहा और गुलाबो पे हथेली की घसर मसर , और ये सब करने वाला ,खूब खेला खाया , एक्सपीरियंस्ड मरद।
मैं सब कुछ भूल चुकी थी , मेरी सांसे लम्बी लम्बी चल रही थी ,
बस मुझे अपनी मुठ्ठी में सामू के खूब मोटे मस्त औजार ,
अपने नए नए जोबन और सोनपरी पे सामू की उँगलियों का जादू महसूस हो रहा था।
कुछ होना है तो हो जाय।
चड्डी नीचे सरकी , लेकिन कल की तरह नीचे सरक के घुटनों में फंस के नहीं रह गयी ,बल्कि सामू की गन्ने के खेत में पड़ी धोती के ऊपर मेरे टॉप के साथ और वहीँ पे साथ सामू ने अपना जांघिया भी ,
इतनी नजदीक से आज मैं पहली बार खुल के उसका हथियार देख रही थी ,क्या जबरदंग , मोटा मूसल ,
और उसने मुझे अपनी गोद से उतारकर सीधे गन्ने के खेत में ढेलों पर ,
( पहले तो उसने अपनी धोती जमींन पर बिछा के मुझे उस पे लिटाने की कोशिश की पर मैंने इशारे से मना कर दिया ,
एक तो मुझे अपने कपड़ों की ज्यादा चिंता था ,.... और कल गुलबिया भी तो मिटटी में लेट के ,... )
मेरी दोनों लम्बी लम्बी टाँगे अब सामू के कंधे पर ,
और वो मेरी चुनमुनिया पे सटा ,
कुछ मारे मजे के और कुछ मारे डर के मैंने आँखे बंद कर ली ,पर सामू उसे मेरी हर कमजोरी मालूम थी।
गुदगुदी लगा के उसने मेरी आँखे खुलवा दी और अपना सर जोर जोर से हिला के अपना हुकुम सुना दिया , बिन बोले।
आँखे खुली।
ढेर सारा थूक लेके उसने पहले अपने सुपाडे को खोल के उसपे लगाया और फिर मेरी चुनमुनिया चियार के , दो उँगलियों में थूक लगा के ,थोड़ा अंदर तक।
इत्ती देर से वो ऊँगली कर रहा था तो एक पोर तो ऊँगली का घुस ही गया।
अब सब कुछ भूल के वो सिर्फ मेरी गोरी चिकनी जाँघों के बीच, कुछ देर तक वो सुपाड़ा मुहाने पे ही रगड़ता रहा ,
मैं सोचती रही ,अब ठेलेगा ,अब ढकेलेगा , अब ,अब लेकिन ,... नहीं बस मेरी दोनों पत्तियों को फैला के ,
मैं गिनगीना रही थी ,मचल रही और मुझसे नहीं रहा गया ,मुंह से तो नहीं बोल सकती थी अपने दोनों हाथों से कस के उसे अपनी ओर खींचा।
बस इतना आमंत्रण बहुत था ,
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