लेडी डाक्टर (लेखक: गुलशन खत्री)

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RohitKapoor
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लेडी डाक्टर (लेखक: गुलशन खत्री)

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लेडी डाक्टर
लेखक: गुलशन खत्री ©

उस लेडी डाक्टर का नाम ज़ुबैदा कादरी था। कुछ ही दिनों पहले उसने मेरी दुकान के सामने अपनी नई क्लिनिक खोली थी। पहले ही दिन जब उसने अपनी क्लिनिक का उदघाटन किया था तो मैं उसे देखता ही रह गया था। यही हालत मुझ जैसे कुछ और हुस्न-परस्त लड़कों की थी। बड़ी गज़ब की थी वो। उम्र यही कोई सत्ताइस-अठाइस साल। उसने अपने आपको खूब संभाल कर रखा हुआ था। रंग ऐसा जैसे दूध में किसी ने केसर मिला दिया हो। त्वचा बेदाग और बहुत ही स्मूथ। आँखें झील की तरह गहरी और बड़ी-बड़ी। अक्सर स्लीवलेस कमीज़ के साथ चुड़ीदार सलवार और उँची ऐड़ी की सैंडल पहनती थी, मगर कभी-कभी जींस और शर्ट पहन कर भी आती थी। तब उसके हुस्न का जलवा कुछ और ही होता था। किसी माहिर संग-तराश का शाहकार लगती थी वो तब।

उसके जिस्म का एक-एक अंग सलीके से तराशा हुआ था। उसके सीने का उभरा हुआ भाग फ़ख्र से हमेशा तना हुआ रहता था। उसके चूतड़ इतने चुस्त और खूबसूरत आकार लिये हुए थे, मानो कुदरत ने उन्हें बनाने के बाद अपने औजार तोड़ दिये हों।

जब वो ऊँची ऐड़ी की सैंडल पहन कर चलती थी तो हवाओं की साँसें रुक जाती थीं। जब वो बोलती थी तो चिड़ियाँ चहचहाना भूल जाती थीं और जब वो नज़र भर कर किसी की तरफ देखती थी तो वक्त थम जाता था।

सुबह ग्यारह बजे वो अपना क्लिनिक खोलती थी और मैं अपनी दुकान सुबह दस बजे। एक घंटा मेरे लिये एक सदी के बराबर होता था। बस एक झलक पाने के लिये मैं एक सदी का इंतज़ार करता था। वो मेरे सामने से गुज़र कर क्लिनिक में चली जाती और फिर तीन घंटों के लिये ओझल हो जाती।

“आखिर ये कब तक चलेगा...” मैंने सोचा। और फिर एक दिन मैं उसके क्लिनिक में पहुँच गया। कुछ लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। मैं भी लाईन में बैठ गया। जब मेरा नंबर आया तो कंपाउंडर ने मुझे उसके केबिन में जाने का इशारा किया। मैं धड़कते दिल के साथ अंदर गया।

वो मुझे देखकर प्रोफेशनलों के अंदाज़ में मुस्कुराई और सामने कुर्सी पर बैठने के लिये कहा।

“हाँ, कहो... क्या हुआ है?” उसने मुझे गौर से देखते हुए कहा।

मैंने सिर झुका लिया और कुछ नहीं बोला।

वो आश्चर्य से मुझे देखने लगी और फिर बोली... “क्या बात है?”

मैंने सिर उठाया और कहा... “जी... कुछ नहीं!”

“कुछ नहीं...? तो...?”

“जी, असल में कुछ हो गया है मुझे...!”
RohitKapoor
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“हाँ तो बोलो न क्या हुआ है...?”

“जी, कहते हुए शर्म आती है...।”

वो मुस्कुराने लगी और बोली... “समझ गयी... देखो, मैं एक डॉक्टर हूँ... मुझसे बिना शर्माये कहो कि क्या हुआ है... बिल्कुल बे-झिझक हो कर बोलो...।“

मैं यहाँ-वहाँ देखने लगा तो वो फिर धीरे से मुस्कुराई और थोड़ा सा मेरे करीब आ गयी। “क्या बात है...? कोई गुप्त बिमारी तो नहीं...?”

“नहीं, नहीं...!” मैं जल्दी से बोला... “ऐसी बात नहीं है...!”

“तो फिर क्या बात है...?” वो बाहर की तरफ देखते हुए बोली, कि कहीं कोई पेशेंट तो नहीं है। खुश्किस्मती से बाहर कोई और पेशेंट नहीं था।

“दरअसल मैडम... अ... डॉक्टर... मुझे...” मैं फिर बोलते बोलते रुक गया।

“देखो, जो भी बात हो, जल्दी से बता दो... ऐसे ही घबराते रहोगे तो बात नहीं बनेगी...!”

मैंने भी सोचा कि वाकय बात नहीं बनेगी। मैंने पहले तो उसकी तरफ देखा, फिर दूसरी तरफ देखता हुआ बोला... “डॉक्टर मैं बहुत परेशान हूँ।”

“हूँ...हूँ...” वो मुझे तसल्ली देने के अंदाज़ में बोली।

“और परेशानी की वजह... आप हैं...!”

“व्हॉट ???”

“जी हाँ...!”

“मैं??? मतलब???”

मैं फिर यहाँ-वहाँ देखने लगा।

“खुल कर कहो... क्या कहना चाहते हो..?”

मैंने फिर हिम्मत बाँधी और बोला... “जी देखिये... वो सामने जो जनरल स्टोर है... मैं उसका मालिक हूँ... आपने देखा होगा मुझे वहाँ...!”

“हाँ तो?”
RohitKapoor
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“मैं हर रोज़ आपको ग्यारह बजे क्लिनिक आते देखता हूँ... और जैसे ही आप नज़र आती हैं...”

“हाँ बोलो...!”

“जैसे ही आप नज़र आती हैं... और मैं आपको देखता हूँ...”

“तो क्या होता है...?” वो मुझे ध्यान से देखते हुए बोली।

“तो जी, वो मेरे शरीर का ये भाग... यानी ये अंग...” मैंने अपनी पैंट की ज़िप की तरफ इशारा करते हुए कहा... “तन जाता है!”

वो झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगी और फिर लड़खड़ाती हुई आवाज़ में बोली... “कक्क... क्या मतलब??”

“जी हाँ”, मैं बोला, “ये जो... क्या कहते हैं इसे... पेनिस... ये इतना तन जाता है कि मुझे तकलीफ होने लगती है और फिर जब तक आप यहाँ रहती हैं... यानी तीन-चार घंटों तक... ये यूँ ही तना रहता है।”

“क्या बकवास है...?” वो फिर झेंप गयी।

“मैं क्या करूँ डॉक्टर... ये तो अपने आप ही हो जाता है... और अब आप ही बताइये... इसमें मेरा क्या कसूर है?”

उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या बोले... फिर मैं ही बोला, “अगर ये हालत... पाँच-दस मिनट तक ही रहती तो कोई बात नहीं थी... पर तीन-चार घंटे... आप ही बताइये डॉक्टर... इट इज टू मच।”

“तुम कहीं मुझे... मेरा मतलब है... तुम झूठ तो नहीं बोल रहे?” वो शक भरी नज़रों से मुझे देखती हुई बोली।

“अब मैं क्या बोलूँ डॉक्टर... इतने सारे ग्राहक आते हैं दुकान में... अब मैं उनके सामने इस हालत में कैसे डील कर सकता हूँ... देखिये न... मेरा साइज़ भी काफी बड़ा है... नज़र वहाँ पहुँच ही जाती है।”

“तो तुम... इन-शर्ट मत किया करो...” वो अपने स्टेथिस्कोप को यूँ ही उठा कर दूसरी तरफ रखती हुई बोली।

“क्या बात करती हैं डॉक्टर... ये तो कोई इलाज नहीं हुआ... मैं तो आपके पास इसलिये आया हूँ कि आप मुझे कोई इलाज बतायें इसका।”

“ये कोई बीमारी थोड़े ही है... जो मैं इसका इलाज बताऊँ...।”

“लेकिन मुझे इससे तकलीफ है डॉक्टर...।”

“क्या तकलीफ है... तीन-चार घंटे बाद...” कहते-कहते वो फिर झेंप गयी।
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“ठीक है डॉक्टर, तीन चार घंटे बाद ये शांत हो जाता है... लेकिन तीन चार घंटों तक ये तनी हुई चीज़ मुझे परेशान जो करती है... उसका क्या?”

“क्या परेशानी है... ये तो... इसमें मेरे ख्याल से तो कोई परेशानी नहीं...!”

“अरे डॉक्टर ये इतना तन जाता है कि मुझे हल्का-हल्का दर्द होने लगता है और अंडरवियर की वजह से ऐसा लगता है जैसे कोई बुलबुल पिंजरे में तड़प रहा हो... छटपटा रहा हो...” मैं दुख भरे लहजे में बोला।

वो मुस्कुराने लगी और बोली... “तुम्हारा केस तो बड़ा अजीब है... ऐसा होना तो नहीं चाहिये..!”

“अब आप ही बताइये, मैं क्या करूँ?”

“मैं तुम्हें एक डॉक्टर के पास रेफ़र करती हूँ... वो सेक्सोलॉजिस्ट हैं...!”

“वो क्या करेंगे डॉक्टर...? मुझे कोई बीमारी थोड़े ही है... जो वो...”

“तो अब तुम ही बताओ इसमें मैं क्या कर सकती हूँ...?”

“आप डॉक्टर है... आप ही बताइये... देखिये... अभी भी तना हुआ है और अब तो कुछ ज़्यादा ही तन गया है... आप सामने जो हैं न...!”

“ऐसा होना तो नहीं चाहिये... ऐसा कभी सुना नहीं मैंने...” वो सोचते हुए बोली और फिर सहसा उसकी नज़र मेरी पैंट के निचले भाग पर चली गई और फिर जल्दी से वो दूसरी तरफ देखने लगी। कुछ देर खामोशी रही और फिर मैं धीरे-धीरे कराहने लगा। वो अजीब सी नज़रों से मुझे देखने लगी।

फिर मैंने कहा, “डॉक्टर... क्या करूँ?”

वो बेबसी से बोली... “क्या बताऊँ?”

मैने फिर दुख भरा लहजा अपनाया और बोला... “कोई ऐसी दवा दीजिये न... जिससे मेरे लिंग... यानी मेरे पेनिस का साइज़ कम हो जाये...।”

उसके चेहरे पर फिर अजीब से भाव दिखायी दिये। वो बोली, “ये तुम क्या कह रहे हो... लोग तो...”

“हाँ डॉक्टर... लोग तो साइज़ बड़ा करना चाहते हैं... लेकिन मैं साइज़ छोटा करना चाहता हूँ... शायद इससे मेरी उलझन कम हो जाये... मतलब ये कि अगर साइज़ छोटा हो जायेगा तो ये पैंट के अंदर आराम से रहेगा और लोगों की नज़रें भी नहीं पड़ेंगी...।”

वो धीरे से सर झुका कर बोली... “क्या... क्या साइज़ है... इसका?”
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“ग्यारह इंच डॉक्टर...” मैंने कुछ यूँ सरलता से कहा, जैसे ये कोई बड़ी बात न हो।

उसकी आँखें फट गयीं और हैरत से मुँह खुल गया। “क्या?... ग्यारह इंच???”

“हाँ डॉक्टर... क्यों आपको इतनी हैरत क्यों हो रही है...?”

“ऑय काँट बिलीव इट!!!”

मैंने आश्चर्य से कहा... “ग्यारह इंच ज्यादा होता है क्या डॉक्टर...? आमतौर पर क्या साइज़ होता है...?”

“हाँ?... आमतौर पर ...???” वो बगलें झांकने लगी और फिर बोली... “आमतौर पर छः-सात-आठ इंच।”

“ओह गॉड!” मैं नकली हैरत से बोला... “तो इसका मयलब है मेरा साइज़ एबनॉर्मल है! मैं सर पकड़ कर बैठ गया।“

उसकी समझ में भी नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले।

फिर मैंने अपना सर उठाया और भर्रायी आवाज़ में बोला... “डॉक्टर... अब मैं क्या करूँ...?”

“ऑय काँट बिलीव इट...” वो धीरे से बड़बड़ाते हुए बोली।

“क्यों डॉक्टर... आखिर क्यों आपको यकीन नहीं आ रहा है... आप चाहें तो खुद देख सकती हैं...दिखाऊँ???”

वो जल्दी से खड़ी हो गयी और घबड़ा कर बोली... “अरे नहीं नहीं... यहाँ नहीं...” फिर जल्दी से संभल कर बोली... “मेरा मतलब है... ठीक है... मैं तुम्हारे लिये कुछ सोचती हूँ... अब तुम जाओ...”

मैंने अपने चेहरे पर दुनिया जहान के गम उभार लिये और निराश हो कर बोला... “अगर आप कुछ नहीं करेंगी... तो फिर मुझे ही कुछ करना पड़ेगा...” मैं उठ गया और जाने के लिये दरवाजे की तरफ बढ़ा तो वो रुक-रुक कर बोली... “सुनो... तुम... तुम क्या करोगे?”

मैं बोला... “किसी सर्जन के पा जा कर कटवा लूँगा...”

“व्हॉट??? आर यू क्रेज़ी? पागल हो गये हो क्या?”

मैं फिर कुर्सी पर बैठ गया और सर पकड़ कर मायूसी से बोला... “तो बोलो ना डॉक्टर... क्या करूँ?”

वो फिर बाहर झांक कर देखने लगी कि कहीं कोई पेशेंट तो नहीं आ गया। कोई नहीं था... फिर वो बोली, “सुनो... जब ऐसा हो... तो...”

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