मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन complete
- rajaarkey
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
मैने नजीबा का हाथ छोड़ दिया…और अपनी टीशर्ट और हाफ पेंट उठा कर पहने लगा… नजीबा बाहर जा चुकी थी…मैने कपड़े पहने और चाइ पीने लगा….नवंबर का महीना शुरू हुआ था….हमारे गाओं के आसपास के इलाक़े मे बहुत सारी नहरे बहती थी…इसलिए सर्दी अभी से बढ़ चुकी थी…चाइ पीने के बाद मैने खाली कप उठाया और किचन मे चला गया…वहाँ खाली कप रख कर ऊपेर छत पर चला गया…और छत पर जहाँ से सहन नज़र आता है….वहाँ दीवार के पास खड़ा हो गया…थोड़ी देर बाद मुझे नजीबा अपने रूम से बाहर निकलती हुई दिखाई दी…जैसे ही वो बाहर आई तो, उसकी नज़र फॉरी तोर पर ऊपर पड़ी….और जब हमारी नज़रें मिली तो, मुझे याद आया कि, मैने नजीबा को बात करने के लिए कमरे मे बुलाया था…
मैं सोच रहा था कि, मैने नजीबा को बुला तो लिया था….लेकिन अब उससे बात किया करूँ…कैसे बात शुरू करूँ…क्या कहूँ….कैसे वर्ड्स यूज़ करूँ….कि उसे बुरा भी ना लगे…हो सकता है जो मे सोच रहा हूँ….ऐसा कुछ भी उसके जेहन मे हो ही ना…और वो सब मेरा वेहम हो…कही नजीबा मुझसे नाराज़ ना हो जाए…अब्बू तो इस मामले मे शुरू से बहुत जालिम रहे है…..वो तो मुझे कभी नही बख्शेन्गे. अगर नजीबा ने कुछ अब्बू या अपनी अम्मी को बोल दिया….मे मन ही मन सोच रहा था कि, देखता हूँ कि नजीबा मुझसे बात करने के लिए ऊपेर छत पर आती है… या नही…अगर वो छत पर खुद आ जाए तो, कम से कम 10 % चान्स तो बनते है कि, मे जो सोच रहा हूँ…वो ठीक है….लेकिन उससे बात क्या करूँगा….बहुत सोचने समझने के बाद मुझे आख़िर एक रास्ता मिल ही गया….
वो रास्ता भले ही लंबा था….लेकिन उस रास्ते पर सफ़र करके मुझे अपनी मंज़िल तक पहुचने मे मदद ज़रूर मिल सकती थी…अभी मे यही सब सोच रहा था कि, मुझे नजीबा नज़र आई….इससे पहले कि वो ऊपेर देखती….मैं पीछे हट गया… और चारपाई पर बैठ गया…हमारे घर की छत पड़ोस के घरो से कोई 3-4 फुट उँची थी…और चारो तरफ अब्बू ने 5-5 फुट उँची बौंड्री बनाई हुई थी…सिर्फ़ सहन की तरफ वाली बौंड्री 4 फुट की थी…क्यों कि हमारे घर के सामने खेत थे…इसलिए खेतों से किसी को भी हमारी छत नज़र नही आती थी…मे चारपाई पर बैठा हुआ नजीबा का धड़कते हुए दिल के साथ इंतजार कर रहा था….
उसके ऊपेर की तरफ आते हुए कदमो की आहट भी मे सॉफ सुन पा रहा था….और फिर जैसे ही वो ऊपेर आई तो, मे उसका हुश्न देख कर एक दम दंग रह गया.. नजीबा ने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था…हालाँकि ऊपेर अब अंधेरा छाने लगा था….लेकिन फिर भी मे उसे सॉफ देख पा रहा था…वो अभी भी ऑरेंज कलर की कमीज़ और वाइट कलर की सलवार पहने हुए थी..वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी
…”आप को मुझसे कोई बात करनी थी…” उसने नज़रें झुकाते हुए कहा…
.” हां बैठो….” मैने चारपाई की तरफ इशारा करते हुए कहा….तो वो मेरे बिल्कुल पास मे बैठ गयी…वो भी मेरी तरह थोड़ा नर्वस फील कर रही थी…उसने अपने हाथो को अपनी थाइस (रानो ) के ऊपेर घुटनो के पास रखा हुआ था…और अपने हाथो की उंगलियों को आपस मे मसल रही थी….
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- rajaarkey
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
मैने हिम्मत करके जैसे ही उसके हाथ के ऊपेर अपना हाथ रखा तो, उसने चोन्कते हुए एक बार मेरी तरफ देखा और फिर से नज़रें झुका ली…उसने अपने हाथों की उंगलियों को अलग किया…जो थोड़ी देर पहले उलझी हुई थी…मुझे ऐसा लग रहा था कि, नजीबा ने इसीलिए अपनी हाथो को अलग किया था…ताकि मे उसके हाथ को अपने हाथ मे ले सकूँ….मैने उसके नरम हाथ को अपने हाथ मे लिया और उसकी तरफ देखते हुए बोला….” आइ आम रियली सॉरी नजीबा…मैं बहुत बुरा इंसान हूँ…” मैं अब नजीबा का रियेक्शन जानना चाहता था..इसलिए चुप हो गया…”
किस लिए…और आपको किसने कहा कि आप बुरे इंसान है….”
मैं: तुमने….
नजीबा: क्या मैने…?
मैं: हां तुमने कहा….
नजीबा: खुदा के लिए मुझ पर इतना बड़े गुनाह का इल्ज़ाम तो ना लगाएँ…मैने कब कहा… (नजीबा का चेहरा उतर चुका था…वो अब भी नज़रें झुकाए हुए बैठी थी… अगर मैं उसे कुछ और कह देता….तो शायद वो रोना शुरू कर देती….)
मैं: मेरा मतलब है कि तुमने भले ही ना कहा हो….लेकिन तुम्हारी अच्छाई ने मुझे इस बात का यकीन दिला दिया है कि, मैं कितना बुरा इंसान हूँ…और तुम कितनी नेक दिल हो…जो मेरी हर कड़वी बातों को भुला कर हमेशा मेरा ध्यान रखती आई हो… मैने तुम्हे और तुम्हारी अम्मी को क्या क्या कुछ नही कहा…और तुम ने हर उस वक़्त मेरा साथ दिया…जब मुझे किसी अपने के सहारे की ज़रूरत होती थी…मुझे याद है.. जब मैं तुम पर गुस्सा करता था…तब भी तुमने मुझसे नाराज़गी नही दिखाई…तुम सच मे बहुत अच्छी हो…
मैने देखा कि नजीबा बड़े गोरे से मेरी तरफ देख रही थी….ऐसे जैसे उसे यकीन ना हो रहा कि, जो वो सुन रही है..वो सारे अल्फ़ाज़ मैं खुद बोल रहा हूँ..या कोई और.
“आप को क्या हो गया….आज आप ऐसी बात क्यों कर रहे है…?” नज़ीबा के चेहरे की रंगत अभी भी उड़ी हुई थी…
.”कुछ नही….आज जब मैं तुम्हारे सामने अंडरवेर मे खड़ा था…तो मुझे लगा कि, तुम मुझसे सख्ती से नाराज़ हो जाओगी. लेकिन जैसे तुमने रिएक्ट किया और मामले को संभाला….मुझे यकीन हो गया कि, मैं आज तक तुम्हारे साथ ज़्यादती करता आ रहा हूँ….”
नजीबा: अब बस करे….मैं ना कभी आपसे पहले नाराज़ हुई थी….और ना आगे कभी होना है….अब ऐसे सॅड मूड मे ना रहो….मूड ठीक कर लीजिए…
मैं: ओके मिस नजीबा….(मैने नजीबा का हाथ छोड़ते हुए कहा…) लेकिन मेरी बात एक दम सच है…तुम सच मे बहुत अच्छी हो….और…..
मुझे अहसास हुआ कि, मैं कुछ ज़्यादा ही बोलने वाला था…लेकिन अब नजीबा को भी इस बात का अंदाज़ा हो गया था…”और क्या मिस्टर. समीर….” नजीबा ने चारपाई से खड़े होते हुए कहा…और मेरे सामने आकर खड़ी हो गये…मैं भी चारपाई से खड़ा हो गया…”और खूबसूरत भी….” मेरे बात सुनते ही नजीबा ने शर्मा कर नज़रें झुका ली….वो बोली तो कुछ ना…लेकिन उसके होंटो पर आई हुई मुस्कान बहुत कुछ बयान कर रही थी…
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
बहूत ही मस्त कहानी है राज भाई जी
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
thanks for new stori.............................bro
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
xyz wrote:बहूत ही मस्त कहानी है राज भाई जी
Shukriya dostoJemsbond wrote:thanks for new stori.............................bro
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