वो शाम कुछ अजीब थी complete

Post Reply
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: वो शाम कुछ अजीब थी

Post by rangila »



बोझिल कदमों से सवी नीचे उतरी और कार में बैठ एरपोर्ट की तरफ निकल पड़ी , मन में हज़ारो सवाल थे पर जवाब कोई नही था. सवी अपने इस इम्तिहान में कामयाब होगी? या सवी अपने जीने की रह बदल डालेगी? क्या करेगी सवी इसका जवाब मैं रीडर्स के उपर छोड़ता हूँ और अब चलते हैं वापस सुनील के पास जो दुखी दिल से पियर पहुँच गया था और स्टीमर ले कर वापस अपने होटेल जा रहा था अपनी सूमी,सोनल और रूबी के पास.

सुनील जब वापस होटेल पहुँचा तो रात का 1 बज चुका था उसने अपनी चाबी से सूट खोला और चुप चाप हॉल में बैठ गया फ्रिड्ज से व्हिस्की की बॉटल निकाल कर, अपने लिए पेग बनाया और जो कर के आया था उसके बारे में सोचने लगा - क्या उसने ठीक किया या ग़लत?

दिल और दिमाग़ दोनो परेशान थे उसके दिल बिल्कुल नही लग रहा था उठ के बाहर चला गया और दूर तक फैले समुद्र को देखने लगा जिसे किसी की परवाह ना थी वो खुद में मस्त था. बहुत सी ज़िंदगियाँ उसके साथ जुड़ी थी, पर वो खुद का मालिक था उसे परवाह ना थी उन ज़िंदगियों की, यही फरक होता है एक इंसान में और कुदरत के एक बसेरे में.

आज की बिछड़े ना जाने कल मिलेंगे या नही ? एक ठंडी साँस छोड़ उसने एक घूँट में ग्लास खाली किया और दूसरा पेग बनाने हॉल में चला गया.

हॉल में पहुँचा तो उसकी तीनो बीवियाँ वहीं माजूद थी और धड़कते दिल से हॉल के दरवाजे की तरफ देख रही थी, उन पर नज़र पड़ते ही सुनील ने चेहरे पे मुस्कान का लबादा ओढ़ लिया और उनके पास जा कर बैठ गया.

आज की रात शायद कोई नही सोनेवाला था. 4 लोग और जाग रहे थे विजय/आरती/राजेश और कविता. जिंदगी यूँ करवट बदलेगी किसी ने ना सोचा था. एक सवाल सबके जहन में था, लेकिन उस सवाल का जवाब किसी के पास नही था, वो जवाब तो होनी अपने अंदर समेट के बैठी थी.

अपने आप से लड़ती, खुद सवाल करती और खुद जवाब देती, कभी खुद को सही बोलती और कभी खुद को ग़लत, एक गुरूर सा था उसे खुद पे, वो गुरूर आज नैस्तोनाबूद हो गया था, आज सवी खुद को नितांत अकेला महसूस कर रही थी. उसने सब कुछ पा के सब कुछ खो दिया था. ये खोने का अहसास उसे पल पल जलता जा रहा था, जिंदगी आगे कॉन सी करवट लेनी वाली है ये वो खुद नही जानती थी.

उसका आतम विश्वास डगमगा चुका था, अंदर एक खोखलापन महसूस हो रहा था ना जाने क्या सोच उसने विजय को मेसेज कर डाला, अपनी फ्लाइट की डीटेल दी और एरपोर्ट पे मिलने को कहा.

यहाँ सबको मालूम था कि सवी ने सुनील से शादी कर ली है और यूँ अचानक उसका मेसेज जब आया तो विजय चोंक गया.उसने आरती को वो मेसेज दिखाया और आरती को कुछ अनहोनी हुई महसूस हुई, दोनो बेडरूम से हाल में आ गये. हाल की लाइट की रोशनी जब राजेश के कमरे में खिड़कियों से अंदर दाखिल हुई तो राजेश और कविता जो इस वक़्त सोने की तैयारी कर रहे थे चोंक गये और उठ के हाल में आ गये. विजय ने बात नही छुपाई और उनको बता दी. हर शक्स अपनी ही सोच में गुम हो गया.

तभी राजेश ने एक सवाल किया : पापा ये लोग मालदीव से कहाँ जाएँगे.

विजय खामोश रहा.

राजेश : पापा प्लीज़ बताओ ना मैं चाहता हूँ कविता सबके साथ कुछ वक़्त बिता ले, फिर पता नही कब मिलना नसीब होगा.

विजय : अगर ऐसी बात है तो तुम लोग भी मालदीव चले जाओ घूमने.

कविता : पापा हम लोग उन्हें नयी जगह पे सेट्ल होने में मदद करना चाहते हैं.

आरती : जाने दो ना इन्हें, जितना ये दोनो पूरे परिवार के हितेशी हैं और कोई नही, बात इनके सीने में ही दफ़न रहेगी.

विजय कुछ पल सोचता है : ठीक है सुनील और रूबी को हनिमून पे ज़्यादा परेशान नही करना चाहिए अब तो सुमन जी और सोनल भी वहाँ पहुँच चुके हैं. तुम लोग भी वहाँ जाते तो उन्दोनो को तो वक़्त भी ना मिलता कुछ पल अकेले रहने का. मैं तुम दोनो का इंतेज़ाम करवा दूँगा उन्हें रिसीव करने का. अब ज़रा इस मुसीबत को देख लें जो आ रही है, जाओ तुम दोनो और सो जाओ.

राजेश : पापा आप आराम करो मैं एरपोर्ट चला जाता हूँ.

विजय : ना बेटा, ये काम मुझे ही करना होगा, मैं और आरती चले जाएँगे तुम लोग जाओ सो जाओ फिर कल काफ़ी बिज़ी होगा तुम्हारा.

विजय ने जिस टोन में कहा था राजेश और कविता कुछ ना बोल पाए, दोनो चुप चाप सोने चले गये.

विजय और आरती आपस में बात कर वक़्त काटने लगे क्यूंकी सो तो सकते नही थे फ्लाइट का टाइम ही ऐसा था.

वक़्त होने पे दोनो एरपोर्ट के लिए निकल गये अपने चाबी अपने साथ ले गये और राजेश व कविता को तंग नही किया.

यहाँ जब सुनील अपनी बीवियों के पास जा कर बैठा तो सोनल बोली - चलिए आप दोनो अब जा कर सो जाइए, बहुत रात हो चुकी है, चलो दीदी हम भी सोते हैं सुबह बात करेंगे.

सोनल सूमी को लगभग खींचते हुए साथ ले गयी ताकि सुनील और रूबी अकेले रह सकें, इस वक़्त शायद रूबी को सुनील की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी.

सुनील ने अपनी बाँहें फैला दी और रूबी लपकती हुई उन बाँहों में समा गयी.

सुनील रूबी को उठा के बेडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पे लिटा दिया. मूड सुनील का बहुत ऑफ था और रूबी के अंदर एक डर समाया हुआ था, हालाँकि पीछे सोनल और सूमी ने उसे काफ़ी समझाया था, पर रूबी के दिल में ये बात बैठ गयी थी कि कहीं सुनील उसके बारे में कोई ग़लत धारणा ना बना ले आख़िर सवी का भी तो खून था उसमें.

अपने दिमाग़ को हल्का करने के लिए सुनील बाथरूम में घुस गया और बिना कपड़े उतारे शवर के नीचे खड़ा हो गया, उसने दरवाजा बंद नही किया था और रूबी को सब दिख रहा था, सुनील की ये दशा देख एक टीस उठी रूबी के दिल में, वो फट से बिस्तर से उठी और अलीमारी में से सुनील का नाइट सूट निकाल लाई, और बाथरूम के किनारे खड़ी हो गयी, सुनील के इंतजार में.

शवर के नीचे खड़े हुए सुनील की नज़र रूबी पे पड़ गयी थी जो सहमी सी फर्श के कालीन को अपने पैर के अंगूठे से खरोचती हुई हाथ में नाइट सूट पकड़े उसका इंतजार कर रही थी, रूबी के चेहरे की मासूमियत देख सुनील के दिल से सवी के लिए पनपी नफ़रत एक तरफ हो ली और रूबी के लिए उसके दिल में प्यार की कॉम्पलें और भी गहरी हो गयी , वो आगे बढ़ा, दरवाजे तक पहुँचा, रूबी के हाथ से नाइट सूट खींच बिस्तर पे फेंका और उसे बाथरूम में खींच लिया.

'आआआआययययययययीीईईईईईईईई म्म्म्मकमममाआआआआअ' घबरा के रूबी चीख पड़ी कुछ पल तो उसे कुछ समझ ही ना आया कि ये हुआ क्या, लेकिन जब शवर से निकलती ठंडी पानी की बूँदें जिस्म पे पड़ी तो और भी झटका लगा ' आआआवउुुऊउककचह'

वो बाहर निकालने को भागी पर सुनील ने उसे अपनी बाँहों में क़ैद कर लिया.


'अरे कहाँ चली मेरी बुलबुल'

'आह छोड़ो प्लीज़ रात बहुत हो गयी है आप थक गये होगे, चलो जल्दी बाहर निकलो, और सो जाओ'

'थकान ही तो दूर कर रहा हूँ'

इतना कह सुनील ने अपने होंठ रूबी के होंठों से चिपका दिया और धीरे धीरे उनकी मिठास चूसने लगा.

हर बीत ते पल के साथ रूबी की साँसे तेज होती चली गयी, जिस्म में प्यार का नशा घुलने लगा, टाँगों ने तो जैसे जिस्म के भार को उठाने से मना कर दिया, आँखों में गुलाबी डोरे सर उठाने लगे, और खुद को गिरने से बचाने के लिए रूबी की पकड़ सुनील की बाँहों पे सख़्त होती सरक्ति हुई उसकी पीठ तक पहुँच गयी और रूबी ने खुद को सुनील के साथ चिपका लिया.

ये समा वो समा था, जो दीन दुनिया को भुला देता है, इस वक़्त बस दो बदन और दो रूहें एक दूसरे को महसूस कर रहे थे, साँसे आपस में घुलती हुई वातावरण को और महका रही थी, पानी की गिरती बूँदें जैसे कह रही थी, हमे भी होंठों के दरमियाँ आने दो, लज़्ज़त में इज़ाफ़ा हो जाएगा.

रूबी की अंतरात्मा तक खिल उठी, एक बोझ था उसके जेहन में कि पता नही सवी की पोल खुलने के बाद उसका क्या हश्र होगा, पर अब सब कुछ ख़तम था, वो डर चूर चूर हो गया था और बचा था तो सिर्फ़ प्यार जो वो दिलोजान से सुनील से करती थी.

सुनील के हाथ रूबी के वस्त्रों से उलझ गये और एक एक वस्त्र वहीं बाथरूम के फर्श पे गिरने लगा. लज़ाई सकूचाई रूबी धीमी धीमी आँहें छोड़ती मस्ती के उस आलम में पहुँच गयी जहाँ दुनिया के सारे एहसास ख़तम हो जाते हैं, जहाँ दिमाग़ और दिल का कोई वजूद नही रहता, जहाँ सिर्फ़ एक आत्मीय सुख की अनुभूति का एहसास रह जाता है.

सुनील रूबी को उठा बिस्तर पे ले गया और दोनो एक दूसरे में खो गये.

अगले दिन, सबने मिलके नाश्ता किया आपस में हँसी मज़ाक चलता रहा. तभी सुनील को एक मेसेज आया विजय का, इनका सारा इंतेज़ाम आगे जिंदगी काटने का बोरा बोरा में हो गया था, दुनिया का एक ऐसा आइलॅंड जो हनिमूनर्स के लिए नायाब स्वर्ग जैसा था.

सुनील ने वो मेसेज सूमी को दिखाया और दो दिन बाद उड़ने का प्लान पक्का हो गया.

जब ये लोग वहाँ पहुँचे तो राजेश और कविता वहाँ मौजूद थे, दोनो ने इनके नये घर को बाखूबी सजाया हुआ था और हर सहूलियत का ध्यान रखा था.

राजेश और कविता इनके साथ एक हफ़्ता रहे, सबने मिलके खूब मस्ती बाजी करी, फिर राजेश और कविता वापस चले गये और सुनील अपने परिवार के साथ के नये स्थान पे नयी जिंदगी को संभालने में जुट गया.

वक़्त गुजरा तीन महीने पूरे हो गये और सवी सुनेल को वही पुराना सुनेल बनाने में नाकामयाब रही, इस बात का उसपे इतना असर पड़ा कि वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठी.

उसके लिए ये जिंदगी की सबसे बड़ी हार थी जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाई, सूमी से वो सुनील को ना छीन पाई, उसपे अपना हक़ ना बना पाई, ये उसकी बर्दाश्त के बाहर था.

विजय ने सवी को वहीं हॉस्पिटल में अड्मिट करा दिया और सुनेल अपनी जिद्द में सुनील और बाकी की खोज में निकल पड़ा, उसने काफ़ी कोशिश करी कि विजय से कुछ पता चल जाए पर विजय और उसका परिवार कुछ ना बोला.

बोरा बोरा में एक शाम सोनल बीच पे बैठी दूर तक उछलती कूदती लहरों को देख रही थी, और अपने ख़यालों में गुम थी कि रूबी उसके पास आई और वहीं बैठ गयी,'क्या देख रही हो दीदी'

सोनल चोन्कती है और उसके मुँह से बस यही निकलता है 'वो शाम भी अजीब थी, ये शाम भी अजीब है.'


दा एंड.
Ravi
Rookie
Posts: 70
Joined: 15 May 2016 13:22

Re: वो शाम कुछ अजीब थी complete

Post by Ravi »

mst yaar story thanx
vkp1252

Re: वो शाम कुछ अजीब थी complete

Post by vkp1252 »

nice end
vkp1252

Re: वो शाम कुछ अजीब थी complete

Post by vkp1252 »

nice end
Post Reply