वो शाम कुछ अजीब थी complete

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Ravi
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Re: वो शाम कुछ अजीब थी

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kya dirty chat krna h mini ji
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rangila
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Re: वो शाम कुछ अजीब थी

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जैसे जैसे रूबी के जेवर उतर रहे थे वैसे वैसे उसके चेहरे पे लाज की लालिमा और भी गहरी होती जा रही थी, साँसों और दिल के धड़कने की ध्वनी कमरे में गूंजने लगी थी, जिसमे जुड़ती रूबी की सिसकियाँ कमरे के महॉल को और भी कामुक बना रही थी.

सुनील की प्रेम लीला चले और प्रकृति उसमें हिस्सा ना ले ये तो हो ही नही सकता, अमूमन ऐसा होता नही है, पर शायद सुनील के साथ कुदरत कुछ खांस ही मेहरबान थी, जो इस रात को और भी रंगीन बने पे तूल गयी थी.

समुद्र एक दम शांत हो गया, चाँद और सूरज जो कभी मिल नही सकते एक प्रयास सा करने लगे कि शायद इनकी तरहा हम भी मिल जाएँ.

वातावरण में कुछ गूंजने लगा तो बस रूबी के कंठ से निकली हुई सिसकियाँ जिसकी मधुरता में सामुद्री जीव तक अपनी क्रियाएँ भूल गये और एक दम शांत हो गये.


प्यार का ये असर शायद ही किसी ने देखा होगा, और ये दोनो भी कहाँ जानते थे कि बाहर क्या हो रहा है, ये तो बस एक दूसरे में सामने को व्याकुल होते जा रहे थे.

सुनील का जिस्म इतना तपने लगा , कि उसने फट से अपना कुर्ता और बनियान उतार फेंकी, रूबी का घूँघट धलक चुका था और चोली में कसे उसके उरोज़ मुक्त होने की राह देख रहे थे, दोनो एक दूसरे की आँखों में देखने लगे और सुनील के हाथ रूबी के कंधो को सहलाते हुए पीछे पीठ पे चले गये और चोली की डोरी खुल गयी, धीरे धीरे सुनील ने रूबी की चोली उतार दी, और रूबी ने शर्म के मारे अपने आँखें बंद कर अपने दोनो हाथ कैंची बना अपने उरोज़ ढकने की असफल कोशिश करी, पर सुनील ने उसके दोनो हाथ हटा दिए और रूबी के उन्नत उरोज़ हर सांस के साथ उपर नीचे होने लगे.

तभी आसमान में बिजली कडकी और दोनो एक दूसरे से लिपट गये और फिर शुरू हुआ होंठों से होंठों का मिलन, दोनो एक दूसरे के होंठों का रस चूसने में मगन हो गये.

सब कुछ भूल चुके थे दोनो, अगर कुछ अहसास बाकी था तो बस इतना के दोनो एक दूसरे में सामने को आतुर थे, रूबी के लिए ये मिलन उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी नैमत थी. इसके आगे उसे जिंदगी से कुछ नही चाहिए था, चुंबन गहरा होता चला गया, दोनो की ज़ुबान एक दूसरे को अपना अहसास दिलाने लगे और एक दूसरे से मिल अपने स्वाद को महसूस करने लगी, नोबत यहाँ तक आ गयी कि मुश्किल से हान्फते हुए अलग हुए और रूबी ने शरमा के अपने चेहरे को ढांप लिया और अपनी साँसे दुरुस्त करती हुई बिस्तर पे लेट गयी.

सुनील साँसों पे को काबू करता हुआ उस पर झुक गया और उरोजो की घाटी से एक दम नीचे से चाटता हुआ नाभि तक जाने लगा, मचल के रह गयी रूबी, चेहरे से हाथ कब हटे पता ना चला और अह्ह्ह्ह उम्म्म्म उसकी सिसकियों का ज़ोर बुलंद होने लगा

अह्ह्ह्ह सुनील...उम्म्म्मम क्या कर रहे हो....अह्ह्ह्ह गुदगुदी होती है ....उफफफफफफ्फ़ ऊऊऊऊ म्म्म्मीममममाआआआआआआ

सुनील उसकी नाभि में में अपनी ज़ुबान घुमाता रहा और रूबी इधर उधर मचल के उसे हटाने की कोशिश करती रही, जब सहना मुश्किल हो गया तो सुनील को बालों से पकड़ उपर खींच लिया.....'जान निकालोगे क्या'

'उम्म हूँ...सिर्फ़ प्यार...'


'तुम्हारा ये प्यार तो मेरी जान लेलेगा'

'प्यार से कभी जान जाती है क्या' और सुनील फिर उसके होंठों चूसने लग गया और दोनो हाथ पीछे ले जा कर उसकी ब्रा खोल दी......


अहह रूबी सिसक पड़ी और उसके उरोज़ क़ैद से आज़ाद होते ही और उपर उठ गये....सुनील ने ब्रा उपर सरका दी और मखमली उरोजो पे गुलाबी तने हुए छोटे निपल देख खुद को रोक ना सका और सीधा एक निपल को मुँह में भर लिया और चूसने लग गया.

अह्ह्ह्ह सीयी उफ़फ्फ़ उम्म्म्म अहह ओह माँ अहह श्श्श्श्श्शुउउउउउउन्न्न्निल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल उम्म्म्मममम

रूबी की सिसकियाँ और ज़ोर पकड़ने लगी, सुनील कभी एक निपल चूस्ता और कभी दूसरा, फिर सुनील ने दूसरे उरोज़ को भी थाम लिया और उसके निपल मसल्ने लगा. रूबी की तो जान पे बन गयी, वो अपनी टाँगें बिस्तर पे पटकने लगी, जिस्म कभी कमान की तरहा उपर उठता तो कभी बिस्तर पे गिरता.

चूत में कुलबुलाहट शुरू हो गयी और बाकी कपड़े उसे चुभने लगे.....

कुछ ही देर में उसके दोनो उरोज़ लाल सुर्ख हो चुके थे और सुनील की उंगलियों की छाप लग चुकी थी.

रूबी अपना सर बिस्तर पे इधर से उधर पटक रही थी और जब अति हो गयी तो सुनील के सर को अपने उरोज़ पे दबा ज़ोर से उसका नाम चीखी और भरभराती हुई झड़ने लगी, उसकी पैंटी तो क्या लेनहगा भी अच्छी तरहा भीग गया.

आनंद की लहरों से जब बाहर निकली तो उसे बहुत शरम आई, ये क्या हुआ, क्या किया सुनील ने उसके साथ जो बिना चुदे ही अपने चर्म पे पहुँच गयी, चेहरे पे चमक तो आ ही गयी थी बेचारा लाल सुर्ख हो गया, सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत ना हुई रूबी में और उसे अपने उपर से हटा वो पलट गयी, गीली पैंटी और लहंगा उसे अब तकलीफ़ दे रहे थे वो जल्द अपने इन कपड़ों से छुटकारा पा कम से कम लाइनाये पहनना चाहती थी, पर मुँह से बोल ही ना निकल पाई.

सुनील उसकी मनो दशा समझ गया और उसकी पीठ को चूमते हुए उसके लहंगे के बँध खोलने लग गया, चन्द मिंटो में लहनगा उसके जिस्म से अलग था.

'ओह! माँ ये तो मुझे यहीं नंगी करने जा रहे हैं.' ये ख़याल दिमाग़ में आते ही रूबी बोल ही पड़ी, प्लीज़ मेरी नाइटी तो दे दो.

सुनील में बहुत संयम था, वो कोई जल्दबाज़ी नही करना चाहता था, चुप चाप उठा और अलमारी से एक नाइटी रूबी के पास रख वो कमरे से बाहर चला गया और हॉल में बैठ के स्कॉच पीने लगा.

सुनील के कमरे से बाहर निकलते ही रूबी को तेज झटका लगा, और खुद पे गुस्सा होने लगी ...ये मैने क्या कर दिया, वो तो नाराज़ हो गये. उठ के उसने पैंटी बदली और जो लाइनाये सुनील रख गया था वो पहन ली.

लाइनाये पहनने के बाद वो कुछ इस तरहा दिख रही थी, पैंटी के नाम पे एक पतला थॉंग और अंदर ब्रा नही पहनी थी. खुद को शीशे में देख इतना शरमाई के ज़मीन में धँस जाए.

हुस्न की तारीफ करने वाला तो कमरे से बाहर चला गया था. अब रूबी पशोपश में पड़ गयी, क्या करूँ, पता नही मुझे क्या हो गया था, जो नाइटी माँग बैठी.

खुद से लड़ती हुई, हिम्मत बाँध वो हॉल की तरफ बढ़ ही गयी, जहाँ सुनील स्कॉच पीता हुआ समुंद्र को निहार रहा था........आज जाने क्यूँ समुद्र में कोई हलचल नही थी, शायद रूबी की सिसकियों का असर अब भी बाकी था.

रूबी के कदम हॉल के दरवाजे पे ही रुक गये, सुनील ने बाहर का दरवाजा खोल रखा था जिससे ठंडी ठंडी हवा अंदर आ रही थी, स्कॉच की चुस्कियाँ लेता हुआ पता नही क्या सोच रहा था.

दरवाजे पे खड़ी रूबी, कार्पेट को पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी. अंदर जाने की आज उसमें हिम्मत ही नही हो रही थी. लेकिन अपने अहसास को सुनील तक पहुँचने में नही रोक पाई.

'यार दरवाजे पे क्यूँ खड़ी हो अंदर आ जाओ' सुनील ने बिना उसकी तरफ देखते हुए कहा.

रूबी हैरान सुनील को कैसे पता चला उसने तो कोई आवाज़ भी नही की थी.

धीरे धीरे चलती हुई सुनील के करीब पहुँची और सर झुका खड़ी हो गयी.

बैंगन की तरहा उसकी लटकी शकल देखा सुनील की हँसी छूट गयी ज़ोर से और में में पड़ी स्कॉच पिचकारी की तरहा सीधे रूबी के वक्षस्थल पे गिरने लगी.

कुछ पल तो रूबी को भी पता ना चला कि हुआ क्या, सुनील यूँ क्यूँ हंसा और मदिरा की पिचकारी उसे कैसे भिगो गयी, जिसकी वजह से उसके तने निपल सॉफ झलकने लगे, सफेद पारदर्शी लाइनाये में से.

'ऊऊऊऊुुुुुुुऊउक्कककककककककचह ये क्या!' वो एक दम बौखला गयी जब उसे अपनी हालत का अहसास हुआ और सुनील और भी ज़ोर से हँसने लगा.

सुनील को यूँ और भी ज़ोर से हंसता देख रूबी की शकल रोनी हो गयी 'गंदा कर दिया और हंस रहे हैं'

'गंदा ! कहाँ देखूं तो सही' सुनील की हँसी अब भी नही रुक रही थी.

'जाओ, नही बोलती' और रूबी वापस कमरे की तरफ जाने लगी.

'अरे कहाँ चली मेरी छम्मक छल्लो' सुनील ने लपक के उसे पकड़ लिया और गोद में उठा बाहर ले गया. रूबी चीखती रही 'छोड़ो मुझे, उतारो, गिर जाउन्गि'

सुनील ने एक ना सुनी और बाहर जो पूल था वो नीचे लगे बूल्स की वजह से जगमगा रहा था सुनील ने रूबी को पूल में पटक दिया.

छपक से पानी उछल के चारों तरफ गिरा और रूबी ज़ोर से चीखी .आाआईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
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rangila
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Re: वो शाम कुछ अजीब थी

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सुनील भी पीछे ना रहा और पूल में कूद रूबी को संभाल लिया.

'हो गयी ना अब सॉफ'

हाँफती हुई रूबी बोली ' ये क्या बेहुदगी है, मुझे कुछ हो जाता तो'

अब सुनील सीरीयस हो गया ' सॉरी यार थोड़ा खेल रहा था तुम्हारा मूड हल्का करने के लिए, डिड नोट वॉंट टू हर्ट यू' और सुनील ने रूबी को पूल के बाहर सतह पे लिटा दिया, ' जाओ चेंज कर लो और सो जाओ' और खुद पानी में लंबे स्ट्रोक्स लगा दूसरे किनारे पे पहुँच गया.

अब ये तो हद हो गयी थी रूबी के लिए, पहले छोड़ के आ गये, फॉर स्कॉच से नहला दिया, फिर पूल में पटक दिया अब कहते हैं जाओ सो जाओ. वो भूकी बिल्ली जो अब तक लाज के पर्दों में छुपी थी बाहर आ गयी और रूबी ने पानी में छलाँग मार दी, लेकिन बाहर ना निकली नीचे सतह पे ही रह गयी.

अब सुनील की बारी थी घबराने की कि कहीं रूबी को कुछ हो ना गया हो, वो पानी में डुबकी लगा गया, इधर उसने डुबकी लगाई, जब तक पानी में देखने के काबिल होता, रूबी अपनी जगह से पलट तैरती हुई सुनील के नीचे आ गयी और सफाई से उसके पाजामे का नाडा खोल डाला और फिर फुर्ती से पूल के एक कोने में जा खड़ी हुई, यहाँ पाजामे का नाडा ढीला हुआ तो थोड़ा नीचे लटक गया और सुनील को पानी में पैर चलाने में दिक्कत होने लगी.

सुनील रूबी का खेल समझ गया और फुर्ती से अपना पाजामा और अंडरवेर उतार पूरा नंगा हो गया, जब तक वो नंगा होता रूबी ने अपनी लिंगेरिर खुद उतार फेंकी, दोनो के कपड़े पूल में तैरने लगे. सुनील ने डुबकी लगाई और बिल्कुल वहाँ पहुँच गया रूबी के पीछे जिस कोने में वो खड़ी थी, वहाँ पूल में पानी सिर्फ़ पेट तक आ रहा था.

सुनील को मस्ती सूझी, बिना आवाज़ किए नीचे हुआ, और रूबी ने जो थॉंग पहनी हुई थी उसकी दूरी खीच सीधा अपना मुँह उसकी सफ़ा चट चूत से चिपका दिया.


आआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई रूबी बिलबिला उठी इस हमले से बहुत पैर पटके पर सुनील को हिला ना पाई और सुनी ने अपनी ज़ुबान रूबी की चूत में घुसा दी, बस इतना ही काफ़ी था और रूबी के सारे कस बल ढीले पड़ गये.

जिस्म में ज़ोर बाकी ना रहा और मुस्किल से पूल की दीवार से साथ पूल की रेलिंग को पकड़ खुद को गिरने से बचाया. पर ज़्यादा देर टिकी ना रह सकी और पानी में खिचती चली गयी

ना जाने क्या क्या हरकतें आज सुनील करेगा, सोच सोच के हैरान थी वो, क्या ये वही सुनील था सीधा सादा जिसे वो रोज देखा करती थी, उई माँ जाने क्या क्या करता होगा सूमी और सोनल के साथ, ये सोचते ही सारे शिकवे दूर, और वो मस्ताने लगी, उसके हाथ पैर पूल में चलने लगे ताकि सुनील पे ज़ोर ना पड़े और वो मस्ती से उसकी चूत को जीब से चोदे और चूस्ता रहे. पानी के अंदर होते हुए भी जिस्म में गरमा गरम चिंगारियाँ फैलती जा रही थी.

ज़्यादा देर नही लगी रूबी को झड़ने में और सुनील बाहर निकल हाँफने लगा क्यूंकी काफ़ी देर वो पानी के अंदर था.

रूबी भी पानी से निकल उसके साथ सट गयी और बड़े प्यार से बोली ' शैतान'

इस से आगे पूल में नही बढ़ा जा सकता था, दोनो इस बात से बेख़बर थे कि सवी जाग चुकी थी और दोनो को देख रही थी, लेकिन उसके चेहरे पे खुशी की जगह आज जलन थी.

सुनील की और रूबी की साँस जब संभली तो दोनो पूल से बाहर आ गये. रूबी ने वहीं पड़ा एक टवल उठा लिया और खुद को पोंछने लगी, पर सुनील वहीं पास शवर के नीचे खड़ा हो गया, उसकी देखा देखी रूबी भी उसके पास चली गयी और शवर के नीचे खड़ी हो गयी, दोनो के जिस्म सट गये, इस तरहा के सुनील का खड़ा लंड रूबी की जाँघो में घुस गया और उसकी चूत को रगड़ने लगा. रूबी कस के सुनील के साथ चिपक गयी, दोनो के हाथ एक दूसरे के जिस्म को सहलाने लगे.

जिस्म फिर गरम होने लगे, सुनील के होंठ रूबी के होंठों से चिपक गये और ऐसे ही वो उसे उठा अंदर कमरे में ले गया.

जलन की आग में झुलस्ती सवी बाहर शवर के नीचे खड़ी हो गयी.

सवी ने सोचा था, के सुनील उसके नखरे उठाएगा, उसे मनाएगा, पर जो हो रहा था वो उससे बर्दाश्त नही हो रहा था, वो ये भूल ही गयी थी, कि सुनील ने रूबी से भी शादी करी है और रूबी की भी कुछ तमन्नाएँ हैं, वो तो ये ले कर चल रही थी कि जिस तरहा सुनील और सूमी ने हनिमून पे वक़्त लगाया था, ( जो उसकी ही वजह से अधूरा रह गया था) वो उसे भी उतना समय देगा, पर ऐसा ना हुआ, क्यूंकी सुनील ने रूबी की तरफ मुँह मोड़ लिया जब कि खुद सवी ने कहा कि दो दिन दूर रहना, सवी इस बात से अंजान थी कि पीछे वहाँ हिन्दुस्तान में क्या हुआ है, इस वक़्त बस उसे अपनी ही सूझ रही थी. कितना फरक था सवी और सूमी के सोचने में. शवर के नीचे कुछ देर कुढती रही फिर झल्ला के अपने कमरे में चली गयी.

इधर सुनील रूबी को गोद में उठा के कमरे में ले गया और उसे बिस्तर पे लिटा दिया, बिस्तर पे फैली गुलाब की पत्तियाँ रूबी से लिपट गयी, जैसे कह रही हों, हमने तुम्हें ढक लिया है अब शरमाओ नही.

और रूबी वो कैसे ना शरमाती, माना वो सुनील को जानती थी, उससे बहुत प्यार करती थी, पर दोनो ने कभी एक दूसरे को छुआ नही था, और आज सुहाग रात के दिन, उसके अंदर बसी नाज़ुक लड़की, अपनी शर्म के हाथों लाचार हो गयी थी, वो चाह कर भी नही खुल पा रही थी, शायद सोनल और सूमी के साथ रहने का बहुत असर पड़ गया था उस पर, लाज लड़की का सबसे बड़ा गहना होती है, उसे कभी नही त्यागना चाहिए.

आधी रात गुजर चुकी थी, और बिस्तर पे लेटी रूबी धड़कते दिल से अब आगे आनेवाले पलों का इंतजार कर रही थी, कब सुनील उसे अपने प्यार की बरसात से नहला देगा.

पूल में हुई हरकत को सोच वो गन्गना गयी और उसकी चूत फिर लपलपाने लगी, सुनील धीरे से उसके साथ लेट गया और उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमा उसकी आँखों में झाँकने लगा.

'नाइट गाउन दूं' सुनील ने शरारती मुस्कान से पूछा और बिदक गयी रूबी उसकी छाती पे मुक्के बरसाने लगी फिर लिपट गयी उससे और अपना मुस्कुराता हुआ चेहरा उसकी छाती में छुपा लिया.

सुनील के हाथ रूबी के जिस्म पे फिरने लगे और कसमसाती हुई हल्की हल्की सिसकियाँ लेती हुई रूबी और भी सुनील से सटने लगी.

सुनील ने धीरे से उसका हाथ अपने लंड पे रख दिया, कांप सी गयी रूबी और हाथ ऐसे हटाया जैसे करेंट लग गया हो, लोहे की तरहा सख़्त सुनील का लंड उस वक़्त दहक रहा था बिल्कुल तपती हुई रोड की तरहा.

सुनील ने फिर उसका हाथ अपने लंड पे रखा और उसकी हथेली को अपने लंड पे लपेट लिया. आह भर के रह गयी रूबी और उसकी उंगलियाँ अब लंड से ऐसे चिपकी जैसे उसका मनपसंद खिलोना हो.




रूबी की गर्दन को चूमते हुए सुनील उसके उरोज़ मसल्ने लगा और सिसकियाँ भरती हुई रूबी उसके लंड को सख्ती से जकड़ने लगी, सहलाने लगी, जिस्मो की आग धीरे धीरे बढ़ने लगी और और वो वक़्त भी जल्दी आ गया जब दोनो ही नही रुक सकते थे, सुनील को अपने आक़ड़े लंड पे दर्द महसूस होने लगी और रूबी की चूत में जैसे सेकड़ों चीटियाँ ने एक साथ हमला कर दिया, रूबी से रहा ना गया और सुनील को अपने उपर खींचने लगी.

सुनील उठ के उसकी जाँघो के बीच आ कर बैठ गया, रूबी ने अपनी जांघे और फैला दी, शरम के मारे उसकी आँखें अपने आप बंद हो गयी.

सुनील अपने लंड को उसकी चूत से रगड़ उसमें से बहते हुए रस से गीला करने लगा और रूबी की सिसकियाँ ज़ोर पकड़ गयी.

हाइमेनॉप्लॅस्टी के बाद रूबी की चूत बिल्कुल एक कुँवारी लड़की की तरहा हो गयी थी, सुनील इस बात को जानता था, इसलिए उसने जल्दी ना मचा उठ के ड्रेसिंग टेबल पे पड़ी माय्स्टाइसर ट्यूब से अपने लंड को अच्छी तरहा चिकना किया और फिर रूबी की जाँघो के बीच आ कर बैठ गया अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पे जमाया और उसकी कमर को पकड़ एक तेज झटका मार दिया.

आआआआआआआऐईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईइम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्माआआआआआआआआआआआ

रूबी दर्द के मारे ज़ोर से चीखी, और सुनील उसपे झुक उसकी आँखों से टपकते हुए आँसुओं को चाटते हुए बोला, बस मेरी जान, और दर्द नही होगा, ये तो बस एक बहाना था, जो दर्द से तड़पति रूबी भी जानती थी और सुनील भी, अभी तो दर्द की बहुत लहरें रूबी को झेलनी थी.

रूबी के आँसू चाटते हुए सुनील उसके निपल से खेलने लगा, धीरे धीरे रूबी का दर्द कम हुआ और सुनील फिर उसके होंठों पे होंठ रख उन्हें चूस्ते हुए फटाक से तीन चार धक्के मार बैठा और रूबी की सील टूट गयी पर अभी लंड मुश्किल से आधा ही अंदर गया था.

रूबी दर्द के मारे कसमसा उठी, ज़ोर से बिदकी कोई रास्ता ना मिला तो सुनील की पीठ ही खरोंच डाली.

आआहह सुनील की भी चीख निकल गयी.
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Re: वो शाम कुछ अजीब थी

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सुनील और रूबी ने एक दूसरे को बुरी तरहा जाकड़ लिया. सुनील ने इस लिए की रूबी ज़्यादा ना हीले डुले और रूबी ने इसलिए के उसे बहुत दर्द हो रहा था, सुनील कोई और हरकत ना करे.

सुनील की पीठ में भी हल्की हल्की टीस शुरू हो गयी थी, पर उसने परवाह ना करे और रूबी के होंठों का रस चूसने में लग गया.

कुछ पल बाद रूबी की पकड़ खुद ढीली पड़ गयी और उसकी कमर ने हिचकोला खाया जैसे सुनील को आगे बढ़ने का इशारा कर रही हो.

सुनील ने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू कर दिए. रूबी की आह आहह उम्म्म्म उफफफफफ्फ़ दर्दीली सिसकियाँ फूटने लगी.

कुछ देर बाद रूबी को मज़ा आने लगा और सिसकियों में बदलाव आ गया साथ ही रूबी की कमर हिलने लगी, सुनील ने अपनी स्पीड बड़ाई और जब देखा रूबी भी उसकी की स्पीड की तरहा अपनी कमर उछाल रही है और फट से दो तेज धक्के मारे और अपना पूरा लंड अंदर घुसा दिया ...

म्म्म्मँममममममममममममममाआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ रूबी इतनी ज़ोर से चीखी कि दूसरे कमरे में बैठी सवी तक कांप गयी .

सुनील रुक गया और रूबी को संभालने लगा, इस बार रूबी को कुछ ज़्यादा दर्द हुआ था इस लिए उसे कुछ वक़्त लगा संभलने में.

फिर सुनील ने अपना वजन अपने हाथों में लिया और धीरे धीरे धक्के शुरू कर दिए, और रूबी भी उसका साथ देने लगी.

ओह सुनील, लव यू जान , लव मी आह उम्म्म्म, यस यस, फास्टर मोर फास्टर, रूबी धीरे धीरे बेकाबू होने लगी, जिस्म में तरंगों के जाल फैल चुके थे, चूत लगातार बेतहासा रस बहा रही थी और सुनील का पूरा लंड आसानी से अंदर बाहर हो रहा था.

फिर सुनील ने रूबी के होंठों को चूमते हुए अपनी स्पीड बढ़ा दी और रूबी भी उसका साथ देने लगी.

फिर धीरे धीरे दोनो ही स्पीड पकड़ते चले गये और कमरे में उनके जिस्मों के टकराने की थप थप और रूबी की चूत से निकलता संगीत फॅक फॅक फॅक फैलता चला गया.

कुछ समय बाद दोनो एक साथ झाडे और कस के एक दूसरे से चिपक गये. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. कमरे में दोनो के दिल की तेज धड़कन और साँसों की ध्वनि घुंज रही थी. जब सुनील की साँस थोड़ी संभली तो वो रूबी के उपर से हट उसकी बगल में लेट गया और प्यार से उसके गालों पे किस करने लगा. रूबी आनंद के महा सागर में इतना खो गयी, के कब उसकी आँख लगी पता ना चला.

सुनील उठ के बाथरूम गया और नहा के बाहर आया साथ ही वो एक गरम तोलिया ले आया जिससे उसने धीरे से रूबी की चूत को सॉफ किया, गर्माहट से रूबी को और सकुन मिला और उसकी नींद और गहरी होती चली गयी.

सुनील ने उसे चद्दर से ढका और लिविंग रूम में आ कर बैठ गया. अब उसका सारा ध्यान सूमी और सोनल पे था.

अचानक सुनील को ध्यान आता है कि नहाने के बाद वो नंगा ही चला आया लिविंग रूम में, उठ के वो बिना कोई आवाज़ किए कमरे में जाता है, रूबी बेसूध सोई पड़ी थी, उसे देख सुनील को उसपे बहुत प्यार आता है, पर दिल ने जैसे उस प्यार पे कुछ डोरियाँ बाँध दी थी, जिंदगी के इस सफ़र पे वो आगे तो बढ़ गया था, पर कहीं ना कहीं उसके दिल में एक दुख ज़रूर था, आज भी कभी कभी वो ये सोचने लगता था कि काश डॅड ने वो हुकुम ना दिया होता, तो आज जिंदगी किसी दूसरी राह पे होती, और जब भी वो कुछ ऐसा सोचता उसके सामने सागर का चेहरा आ जाता, जो उससे सवाल करने लगता - क्या मैने तुझ पे भरोसा कर के ग़लत किया? और यहीं सुनील फिर टूट जाता और सर झटक इस राह पे आगे बढ़ जाता.

चुप चाप उसने अपने लिए एक शॉर्ट निकाला अलमारी से और पहन के फिर लिविंग रूम में आ गया.

सुबह होने में अभी कुछ देर थी और ये वक़्त वो होता है जब संसारिक हलचल बहुत कम होती है. सुनील लिविंग रूम के बाहर आ पूल के किनारे पे बैठ सूरज जहाँ से निकलता है उस तरफ मुँह कर के ध्यान लगा के बैठ गया. शायद यही वक्त उसे अगी ने बताया था ध्यान लगाने के लिए अगर वो अगी से कुछ बात करना चाहता हो.

सुनील को ध्यान लगाए कुछ देर हुई थी कि अगी की आकृति उसकी आँखों के सामने लहराने लगी

अगी : तुम्हें मुझे बुलाने की अब कोई ज़रूरत नही पड़ेगी, तुम्हारे अंदर जो भी ताम्सिक भावनाएँ थी वो नष्ट हो चुकी हैं और जो शक्तियाँ तुम्हें दी हैं उन्हें पहचानो और उनका सही उपयोग करो.

इतना कह अगी लुप्त हो गया पर सुनील का ध्यान नही टूटा, वो इस समय सूमी के दिमाग़ में पहुँच चुका था और उसके पीछे मुंबई में क्या क्या हुआ सब एक चल्चित्र की तरहा उसकी आँखों के आगे घूमने लगा.

सुनेल के वो शब्द जब सुनील के कनों से गुज़रे तो सुनील को यकीन ना हुआ.

सुनील ने फिर सुनेल से तार बैठाने की कोशिश करी, पर उसमें सफल ना हुआ. शायद ये ग़लत वक़्त था सुनेल से रबता करने के लिए.

इसके बाद सुनील का ध्यान खुद टूट गया और उसके कानों में चिड़ियों के चहचाने का स्वर गूंजने लगा.

सुबह हो चुकी थी.

तभी सवी दो कप कॉफी के ला कर उसके पास आ कर बैठ गयी, उसकी लाल आँखें बता रही थी कि वो पूरी रात सोई नही.

सुनील ने उसके हाथ से कॉफी ले ली उसे थॅंक्स बोला और उठ के रेलिंग के पास खड़ा हो गया और धीरे धीरे कॉफी की चुस्कियाँ लेने लगा.

सवी भी उठ के उस के पास जा कर खड़ी हो गयी.

एक क्षण के सोवे हिस्से से भी शायद कम, सवी के चेहरे पे मुस्कान का पुट आया था, जो सुनील से छुप ना सका और सुनील के कान खड़े हो गये. उसे कुछ ग़लत महसूस हुआ और वो सवी के दिमाग़ में घुस गया. सुनील ने भरसक कोशिश करी कि अपनी मुस्कान को ना डूबने दे, पर जैसे जैसे वो सवी के दिमाग़ में छुपी उसकी ख्वाहिश को समझता गया, वैसे वैसे उसके भाव कठोर होते गये.

सवी उस वक़्त सामने समुद्र पे अठखेलियाँ करती हुई डॉल्फ्फिन्स को देखने में मग्न थी.

इंसान हर गुनाह माफ़ कर देता है, पर जब भावनाओं से खेला जाता है तब वो माफ़ नही कर पाता.

सवी के दिमाग़ की परतों में छुपे रहस्यों को जान कर सुनील जहाँ कठोर होता जा रहा था वहीं उसका दिल रो रहा था. अगर अगी ने उसे ये शक्ति ना दी होती तो वो हमेशा अंजान रहता और एक दिन वो सूमी और सोनल को पूरे परिवार समेत खो बैठता.

अब उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था सवी से छुटकारा पाना. चाहता तो उसके दिमाग़ की परतों को तहंस नहस कर देता और उसे एक खाली स्लेट बना देता, पर ये कुदरत के नियम के खिलाफ था और अगी ने उसे सख़्त हिदायत दी थी, कि वो इस शक्ति का इस्तेमाल सिर्फ़ और सिर्फ़ बचाव के लिए करेगा, उसका कोई ग़लत इस्तेमाल नही करेगा. जिस दिन उसने कुदरत के नियमो के खिलाफ इस शक्ति का इस्तेमाल किया, ये शक्ति उससे छिन जाएगी और फिर अगी भी कभी उसकी कोई सहायता नही करेगा.

यही कारण था कि उसने सुनेल के दिमाग़ में भी कोई खलल नही डाला था.

होनी को वो बदल नही सकता था, पर मानवी षडयंत्रों को जान कर उन्हे रोक सकता था.

उसका एक़मात्र लक्ष्य अब सिर्फ़ सूमी/सोनल और रूबी की सुरक्षा थी अपने बच्चो समेत.

सवी ने जो जलन के भाव दिखाए थे रूबी के खिलाफ वो भी सवी का एक नाटक था सुनील के दिल में उतरने के लिए.

सुनील इस वक़्त बेसब्री से इंतजार कर रहा था सूमी और सोनल के आने का, सवी के अंदर की परतें जानने के बाद उसे मिनी पे भी शक़ होने लगा था, ये सुनेल को छोड़ना उसे एक मात्र ड्रामा लग रहा था ताकि ये लोग कहाँ जाते हैं उसकी खबर मिनी सुनेल को दे सके.

सुनील इन ख़यालों में था के रूबी तयार हो कर बाहर आ गयी, उसकी चाल में कुछ लड़खड़ाहट थी, पर चेहरे पे सकुन था, एक खुशी थी, वो पूरी तरहा तयार नही हुई थी, बस नहा कर एक गाउन पहन लिया था और तीनो के लिए कॉफी बना लाई थी.

दोनो को गुड मॉर्निंग विश कर उसने कॉफी वहीं बाल्कनी में पड़ी टेबल पे रखी और सुनील से सट के उसके गालों को चूम लिया, रूबी के जिस्म से निकलती भीनी मनमोहक सुगंध सुनील को यथार्थ में वापस ले आई, उसने रूबी के गाल को चूम लिया और उसे अपने से चिपका लिया.

ये देख सवी और भी भूनबुना गयी, क्यूँ कि सुनील ने उसके साथ ऐसा बर्ताव नही किया था.

सवी के चेहरे पे बदलते रंगों को रूबी भी कनखियों से देख रही थी, सवी के बर्ताव से वो बहुत दुखी थी, पर चेहरे पे कोई भाव नही ला रही थी, नही चाहती थी के सुनील इस बात से दुखी हो, कि शादी होते ही रंग बदलने लग गये, उसने सुनील से जो वादा किया था, वो अपने वादे पे खरा उतरना चाहती थी, चाहे कितने भी कड़वे घूँट क्यूँ ना पीने पड़े.

अंदर ही अंदर उसे इस बात का बहुत ताज्जुब था कि यकायक सवी को क्या हो गया. वो कल की सवी कहाँ गयी, ये सवी तो उसे कोई और ही लग रही थी.

आज पहली बार उसके माँ में ये ख़याल आ गया, काश सूमी उसकी असली माँ होती, काश वो भी सागर और सूमी की बेटी होती. ना चाहते हुए भी आँखों के कोर में दो आँसू की बूँदें जमा हो गयी, जिनको छलकने से रोकने के लिए उसने सुनील की छाती पे अपना मुँह रगड़ डाला. पर सुनील से उसका दर्द छुपा नही था.

सुनील ने हाथ में पकड़ा कॉफी का आधा ख़तम किया कप रख दिया और रूबी का लाया हुआ कप उठा लिया.

एक दो घूँट भरने के बाद सुनील बोला.

'तुम दोनो पॅकिंग कर लो, हम आज बंग्लॉ चेंज कर रहे हैं'

सवी तो सवालिया नज़रों से सुनील को देखने लगी, और रूबी 'जी' कह के जाने लगी तो सुनील ने उसे रोक लिया.

'अरे आराम से कॉफी पियो पहले कोई ट्रेन नही छूटने वाली'

रूबी ने भी अपना कप कॉफी का उठा लिया.

सवी सुनील को देख रही थी. ' जैसे पूछ रही हो- ऐसे क्या ज़रूरत पड़ गयी जो बंग्लॉ चेंज किया जा रहा है.

सुनील ने उसकी नज़रों मे बसे सवाल को पहचान के भी अनदेखा कर दिया.

तभी सुनील के मोबाइल पे दो एसएमएस आते हैं, उन्हें देख सुनील खिल उठता है.

वो उसी वक़्त रिसेप्षन पे फोन कर एक 5 रूम के वॉटर बंग्लॉ में शिफ्ट होने को बोलता है.

फिर रूबी और सवी को पॅकिंग करने का बोल शिफ्ट होने को कहता है, पोटेर्स आ कर समान ले जाएँगे. और खुद किसी ज़रूरी काम का बोल एरपोर्ट के लिए निकल पड़ता है.
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rangila
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Re: वो शाम कुछ अजीब थी

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मिनी ने मना कर दिया था, पर सूमी नही मानी और उसे साथ ला रही थी, इसीलिए सुनील को 5 कमरों की ज़रूरत पड़ गयी.

सवी और रूबी दोनो हैरान थे 5 कमरों के बंग्लॉ में शिफ्ट होने का सुन कर.

तभी रूबी खिलखिला पड़ी ....'ओह हो सूमी और सोनल दी आ रही हैं'

सवी : ये क्या बात हुई, हनिमून हमारा और वो बीच में कूद पड़ी.

रूबी ने कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी पॅकिंग करने.

सवी आग बाबूला हो गयी क्यूंकी रूबी उसका साथ नही दे रही थी. पर खुद पे काबू रख भूंभूनाते हुए अपनी पॅकिंग करने लगी.

सुनील ने दोनो को अलग से फोन किया रास्ते से और नाश्ता करने का बोल दिया क्यूंकी उसे आते आते दोपहर हो जाएगी.

रूबी ने अपना नाश्ता अपने कमरे में मँगवाया और सवी ने अपने कमरे में.

एक अनदेखी दीवार खिच गयी थी दोनो के बीच.

अपने कमरे में पॅकिंग करते करते रूबी की आँखों से आँसू टपक रहे थे.

बार बार एक ही ख़याल दिमाग़ में आता ' क्या रिश्ते बदलने से प्यार ख़तम हो जाता है?'

फिर दिमाग़ में सूमी की छवि घूमती और ये सवाल नकारा हो जाता.

अगर ऐसा होता तो सूमी क्यूँ मेरे लिए और सवी के लिए सुनील को मनाती.

ज़रूर कुछ और बात है. क्या सौतेन बनने के बाद बरसों से चलता आया वो माँ बेटी का रिश्ता ख़तम हो गया. लेकिन सूमी और सोनल तो और भी करीब आ गयी, फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ. क्यूँ ऐसा होता है एक ख़ुसी मिलती है तो दूसरी छिन जाती है.

क्यूँ मैं जिंदगी के उस दोराहे पे आ कर खड़ी हो गयी जहाँ मुझे अब माँ और सौतेन में से एक को चुनना है, सौतेन भी ऐसी जिसकी शकल देखने को जी ना चाहे.

वो प्यार वो ममता जो सूमी के दामन से छलकती रहती है, उसका अभाव सवी में क्यूँ है.

क्यूँ कर रही है वो ऐसा ? आख़िर क्यूँ ? इसका जवाब रूबी को नही मिल रहा था.

फिर उसने अपना सर झटक दिया, दिमाग़ में सागर का चेहरा घूम गया. जो उसका असली पिता था. हां पिता की बीवी ही तो माँ होती है. तो मेरी माँ तो मेरे साथ है, सूमी ही तो मेरी माँ है.

जब रिश्ते बदलते हैं तो बहुत कुछ बदल जाता है, इस बात की पहचान रूबी को हो गयी थी. अपनी परवरिश से ले कर आज तक की सभी घटनाएँ उसके दिमाग़ में दौड़ गयी और वो अपनी आगे आनेवाली जिंदगी कैसे ज़ीनी है उसका फ़ैसला कर चुकी थी.

अगर सुनील अपने ग़लत असली पिता के खिलाफ जंग लड़ सकता है तो वो क्यूँ नही लड़ सकती अपनी उस माँ के खिलाफ जो 24 घंटों में इतना बदल गयी, जैसे कोई बेगाना होता है.

रूबी के लिए अब सिर्फ़ सुनील मैने रखता था, जिसकी इज़्ज़त वो करेगा उसी की इज़्ज़त वो भी करेगी, जिसपे वो अपना प्यार लुटाएगा, उसके लिए वो अपनी जान तक दाँव पे लगा देगी.

रूबी सही मैने में सोनल का दूसरा रूप बनती जा रही थी, और शायद वक़्त का यही तक़ाज़ा था और जिंदगी को आगे सही ढंग से जीने का यही एक रास्ता था.

अपने वजूद को ख़तम कर डालना, और दूसरे में खो जाना.

एरपोर्ट पे जब सुनील ने सबको रिसीव किया तो सूमी और सोनल उससे लिपट गयी. मिनी ने एक बच्चे को संभाला हुआ था पर उसके चेहरे को देख ही पता चल रहा था कि खून के आँसू रोई थी वो और सूमी का चेहरा तो ऐसे उतरा हुआ था जैसे सारा खून ही निचोड़ लिया गया हो.

सुनील : काश मैं तुम सबको छोड़ के नही आता !

सूमी : तुम क्यूँ परेशान होते हो, होनी को कॉन टाल सकता है.

सुनील : चलो बातें बाद में करेंगे, पहले होटेल चल के आराम करो, थक गये होगे सब.

मिनी की नज़रें झुकी हुई थी, जैसे सुनेल के किए की खुद को ज़िम्मेदार समझ रही हो.

सुनील : मिनी , वक़्त सब सही कर देगा, यूँ उदास मत हो.

मिनी कोई जवाब नही देती.

सुनील सब को प्राइवेट स्टीमर के पास ले जाता है जिसमें दो बर्त भी थी लेटने के लिए.

दोपहर करीब 3 बजे सब होटेल पहुँच जाते हैं.

जहाँ रूबी सब को देख खुश हुई वहीं सवी पे तो जैसे आसमान टूट पड़ा.

सवी की बनावटी हँसी किसी से छुपी नही.

इस दौरान सूमी और सुनील की आँखों आँखों में ही बात हो गयी.

सुनील ने सबको आराम करने कमरे में भेज दिया और खुद रूबी को ले कर बाहर निकल गया.

सवी पूछ ही बैठी, मैं भी चलूं.

सुनील : नही मुझे रूबी से कुछ काम है.

सवी ने फिर एक बनावटी मुस्कान चेहरे पे डाली और अपने कमरे में चली गयी.

रूबी : माँ बहुत थक गयी होगी, सफ़र से, मैं ज़रा उनके पास हो कर आती हूँ.

सुनील : नही सोने दो उन्हें और चलो मेरे साथ.

सुनील रूबी को एक बहुत ही बढ़िया रेस्टोरेंट में ले गया जो बिल्कुल बीच पे बना हुआ था.

चारों तरफ समुद्र से गिरा एक छोटे आइलॅंड पे बना ये होटेल हनिमूनर्स के लिए काफ़ी विख्यात था, और देखा जाए तो हर जगह कोई ना कोई जोड़ा दिख जाता था. बस एक ही सूट था इस होटेल में जिसमें 4 बेड रूम थे और किस्मत अच्छी थी तो सुनील को मिल गया था.

सुनील रूबी के साथ रेस्टोरेंट में पहुँच गया था और दोनो बीच के पास की टेबल पे जा कर बैठ गये थे.

सुनील सोच ही रहा था कि बात कैसे और क्या शुरू करे कि रूबी ही बोल बैठी. बोलने से पहले रूबी ने सुनील के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. हाथों पे लगी मेंहदी और सुहाग चूड़ियाँ सॉफ बता रही थी, कि दोनो हनिमून पे आए हैं और काफ़ी जोड़े दोनो के देख रक्श खा रहे थे.

'सविता के बारे में ज़्यादा मत सोचो, ठीक हो जाएगी, पता नही क्यूँ ऐसा बिहेव कर रही है'

सुनील ध्यान से उसे देखने लगा आज काफ़ी समय के बाद सवी का पूरा नाम उभर के आया था और रूबी ने सीधा नाम का इस्तेमाल किया था, ना कि माँ या फिर दीदी जैसे उसने बुलाना शुरू कर दिया था.

'कितना समझती हो तुम सवी को, कितना जानती हो उसे' सुनील ने सवाल दाग दिया.

'औरत को कभी कोई समझ सका है क्या ?' रूबी ने उल्टा सवाल कर दिया.

'हां, सब के लिए तो नही कह सकता पर कुछ को बखूबी जानता हूँ और समझता भी हूँ, जैसे वो मुझे समझ लेती हैं मैं उन्हें समझ लेता हूँ'

'समझ तो आप वैसे सविता को भी गये होंगे, खैर ये बताइए मुझे क्या करना है, मुझे कितना समझे आप'

'तुम वो मोती हो, जो सीप से बाहर निकल सागर की थपेड़ों में इधर से उधर लुढ़कती फिर रही थी, फिर एक दिन तुम मेरी झोली में आ गिरी और मेरे गले के हार में बस गयी'

इन चन्द अल्फाज़ों में रूबी की पूरी दास्तान बसी हुई थी, जिसे बिना कुरेदे सुनील ने सब कह डाला था और अब उसका क्या स्थान है वो भी बता दिया था.

इस से पहले के रूबी की आँखें छलकती, सुनील बोल पड़ा.

'अब सेंटी हो कर मूड ना खराब करना- ये बताओ क्या पियोगी, खओगि'

'जो आपका दिल करे'

'एक बात याद रखना, शादी का मतलब गुलामी नही होता, पहनो जग भाता यानी वो कपड़े पहनो जो दुनिया को अच्छे लगते हैं जिनमें तुम सुंदर दिखती हो, जिनमें तुम्हारा एक अस्तित्व झलकता है, पर खाओ वही जो मन भाता यानी जो तुम्हारा दिल करे वो खाओ, ना कि दुनिया को देख के वो खाओ जो दुनिया खाती है'

' ये बात उसपे लागू होती है जिसका अपना कोई वजूद हो, रूबी तो सुनील में बस गयी, वो अब बस सुनील की परछाई है, जो सुनील को पसंद, वही रूबी को पसंद'

सुनील सीधा मुद्दे पे आ गया ' क्या सवी से दूर रह पाओगी'

'शादी के बाद क्या माँ दहेज में साथ आती है क्या, आप जानो और सविता जाने, मैं बस आप को जानती हूँ और आपके परिवार को, जो भी उसमें होगा, वो मेरे सर आँखों पे'

रूबी ने सॉफ लफ़्ज़ों में कह दिया वो बस सुनील को जानती है, जो उसके साथ है वो उसकी इज़्ज़त करेगी, जो नही, उससे रूबी का कोई लेना देना नही.

'ह्म्म'

सुनील सर हिला के रह गया फिर उसने खाने का ऑर्डर कर दिया और साथ में वोड्का मंगवाली खाने से पहले ही. वोड्का के दो जाम दोनो ने पिए फिर खाना खाया और बीच पे टहलने लगे, टहलते टहलते दोनो काफ़ी दूर एकांत में पहुँच गये. रूबी इतना चल कुछ थक भी गयी थी, यूँ लग रहा था जैसे वो आइलॅंड के दूसरे छोर पे पहुँच गये हों, जहाँ एक छोटा सा जंगल भी था.


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