छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
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शाम से बारिश हो रही थी…..और आसमान में अंधेरा छाता जा रहा था…..में अपनी दोनो बेटियों के साथ खाना बनाने के तैयारी कर रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. में किचन से निकल कर अपने रूम में गयी. और फोन उठाया. दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज़ आई. “हेलो रेखा कैसी हो ? में बोल रही हूँ नीता” ये मेरी एक पुरानी सहाली की आवाज़ थी. आज बरसो बाद उसकी आवाज़ सुनी, तो कुछ बीते हुए पलों की यादें दिमाग़ में घूम गयी.
नीता: हेलो रेखा तुम हो ना लाइन पर.
में: हां हां बोल नीता. में ठीक हूँ. तुम अपनी बताओ ?
नीता: में भी ठीक हूँ. और तुम्हारी बेटियाँ कैसी है ?
में: वो दोनो भी ठीक है. खाना खाना रही है.
नीता: अच्छा रेखा सुन मुझे तुझसे कुछ काम था.
में: हां बोल ना क्या काम था.
नीता: यार कैसे बोलूं समझ में नही आ रहा…..दरअसल बात ही कुछ ऐसी है.
में: तू ठीक है तो है. बोल ना क्या बात है.
नीता: वो वो मुझे क्या तुम मुझे एक रात के लिए अपने घर पर रुकने दे सकती हो ?
में: हां क्यों नही इसमे पूछने की क्या बात है. कब आ रही है तू.
नीता: यार आ नही रही. आ चुकी हूँ. पर पहले मेरी पूरी बात सुन ले. वो वो मेरे साथ कोई और भी है.
में: हां तो क्या हुआ आ जा.
नीता: यार तू मेरी बात को समझ नही रही. वो मेरे साथ एक लड़का है.
में: क्या लड़का तेरा बेटा है क्या ?
नीता: नही यार अब में तुम्हे कैसे बताऊ. वो वो समझ ना.
में: तू ये पहेलियाँ क्यों बुझा रही है. सॉफ सॉफ बता ना क्या बात है.
नीता: यार वो छोड़ तू ये बता कि तुम मुझे एक रात के लिए अपने घर पर एक रूम दे सकती हो या नही…..वो मेरे साथ मतलब समझ ना.
छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा complete
- Rohit Kapoor
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- Rohit Kapoor
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Re: छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
नीता की बात सुनते ही मेरे पैर काँपने लगे….मुझे समझ में नही आ रहा था कि, में उसे क्या जवाब दूं. घर पर जवानी की दहलीज पर खड़ी दो-2 बेटियाँ है. नही नही उन पर क्या असर पड़ेगा.
में: नीता तुम कहीं ये तो नही कहना चाहती की, कि उस लड़के और तुम्हारे बीच. कुछ है.
नीता: हां वही कह रही हूँ. बोल मेरी हेल्प करेगी.
में: नही नीता में ऐसा नही कर सकती. तू पागल हो गयी है क्या. घर पर दो दो लड़कियाँ है. उन पर क्या असर पड़ेगा. नही में तुम्हें अपने यहा नही ठहरा सकती.
नीता: देख रेखा प्लीज़ मेरी बात मान ले. एक रात की ही तो बात है.
में: नही नीता तू समझ क्यों नही रही. बोल अपनी बेटियों को क्या कहूँगी. नही ये सब ठीक नही है. वैसे भी मेने उनको इन सब चीज़ों से बहुत दूर रखा है. अच्छा मुझे खाना बनाना है. तुम किसी होटेल में क्यों नही रुक जाते.
ये कहते हुए मेने फोन रख दिया. और वही बेड पर बैठ गयी. क्या जमाना आ गया है. खुद की तो इज़्ज़त की परवाह है नही, और साथ में मुझे भी घसीट रही है. उसकी हिम्मत कैसे हुई, मेरे से ये सब पूछने की. एक बार भी शरम नही झलकी उसकी आवाज़ में. रंडी खाना समझा है क्या मेरे घर को. में यही सब बातें सोच रही थी कि, फिर से फोन की बेल बजी. में अपने ख़यालो से बाहर आई. और फोन की तरफ देखा. जो बजे जा रहा था. मेने फोन उठाया.
में: हेलो..
नीता: रेखा सुन तो,
में: क्या सुनू. तेरी ये बकवास मुझे नही सुननी.
नीता: अर्रे सुन तो बोल कितने पैसे चाहिए तुझे. बोल जितने कहेगी उतने पैसे दूँगी. बोल एक हज़ार दो हज़ार बोल ना. बस एक रात की बात है.
में: तू ये क्या बोले जेया रही है. मुझे समझ में नही आ रहा.
(जैसे ही उसने मेरे सामने इतने पैसों की पेशकस रखी में सोचने पर मजबूर हो गयी. आप भी सोच रहे होंगे. कैसी औरत है, पैसों का नाम सुनते ही, नीयत बदल गयी. पर अगर आप मेरी जगह होते तो उस वक़्त मेरी मजबूरी को समझ पाते. पति के देहांत को 5 साल हो चुके थे. मरने से पहले पति ने मेरे नाम एक घर बनवा दिया था. जिसमे नीचे 4 रूम थे, और ऊपेर एक रूम था. नीचे दो रूम हम माँ बेटियों के पास थे. और बाकी के दो रूम और ऊपेर वाला रूम हमने रेंट पर दे रखे थी.
जिससे अब तक हमारा घर चलता आया था. पर पिछले कुछ महीनो से धीरे-2 हमारे सभी किरायेदार कमरे खाली कर चले गये थे. घर की आमदनी का एक लौता ज़रिया भी बंद हो चुका था. और उस महीने तो हमारी आर्थिक हालत और खराब हो चुकी थी. घर का राशन भी ख़तम हो चुका था. ऐसे में एका एक पैसे आ दिखे तो में सोच में पड़ गयी)
नीता: हेलो रेख क्या सोच रही है. हम यहाँ बस स्टॅंड पर है. बारिश में फँसे हुए है. बोल ना.
में: पर वो रामा और सोन्या उनको क्या.
नीता: अर्रे उनको बोल देना कि मेरी सहेली है, और जो लड़का है अमित उसको बोल देना मेरा बेटा है. उनको भी शक नही होगा.
मुझे नीता की बात सही लगी. मेने थोड़ी देर सोचने के बाद उससे कहा. ठीक है मुझे 5000 रुपये चाहिए. मेने मन ही मन सोचा कही मेने ज़्यादा पैसे तो नही माँग लिए. पर मुझे उस वक़्त बहुत हैरानी हुई, जब नीता ने मुझसे कहा कि ठीक है हम तुम्हारे घर आ रहे है.
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- Rohit Kapoor
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Re: छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
कहाँ हम जैसे ग़रीब और मजबूर लोग जो पैसे-2 के लिए तरसते है और कहाँ वो नीता जो अपने आशिक के साथ एक रात बिताने के लिए 5000 रुपये उड़ा रही है. पर फिर मुझे अहसास हुआ कि, ये मेने क्या कर दिया. मेरी दोनो बेटियाँ अब 10थ क्लास पास कर चुकी थी. और आगे पैसे ना होने के कारण में उन्हे आगे नही पढ़ा पा रही थी. नीता मुझसे उम्र में 4-5 साल कम थी. में कैसे इतने बड़े लड़के को उसका बेटा बता सकती हूँ. फिर सोचा चलो जो होगा देखा जाएगा.
में बाहर आई, और किचन में चली गयी. ऑक्टोबर का महीना था. और बारिश से हवा भी ठंडी हो गयी थी. मतलब सॉफ था अब सर्दियाँ आने को है. जब में किचन में पहुची, तो रामा मेरी बड़ी बेटी ने पूछा. “माँ किसका फोन था” मेने अपने आप को संभाले हुए कहा.”वो मेरी एक सहेली का फोन था. तुम नही जानती उनको. वो किसी काम से अपने बेटे के साथ यहाँ आई थी. और टाइम से वापिस नही जा पे तो, आज रात वो यहा हमारे घर पर रुकेगी. तुम थोड़ा सा खाना ज़्यादा बना लो.
सोन्या: माँ ठीक है. पर घर पर दूध नही है. उनको चाइ तो पिलानी है ना.
में: हां ठीक है में दुकान से दूध लेकर आती हूँ.
फिर में घर के बाहर आई, तो देखा बारिश अब धीमी पड़ चुकी है. तेज हवा के साथ बारिश की हल्की फुहार का भी अहसास हो रहा था. हमारा घर एक छोटे से कस्बे में था और एक घर दूसरे घर से काफ़ी दूरी पर थे. में रास्ते पर चलती हुई दुकान पर पहुचि, दूध का पॅकेट लिया, और फिर घर की तरफ चल पड़ी.
में जैसे ही घर के बाहर पहुचि तो पीछे से गाड़ी की आवाज़ आई. गाड़ी हमारे घर के बाहर आकर रुकी, मेने पलट कर देखा तो उसमे से नीता नीचे उतर रही थी. नीता ने मेरी तरफ मुस्कराते हुए देखा, और फिर मेरे पास आकर मुझे गले से मिली. “ओह्ह रेखा. कितने सालो बाद देख रही हूँ तुझे.” तभी मेरी नज़र पीछे खड़े लड़के पर पड़ी. जो टॅक्सी ड्राइवर को पैसे दे रहा था. जैसे मेने उसकी तरफ देखा. में एक दम से हैरान हो गयी.
मुझे अपनी आँखों पर यकीन नही हो रहा था. सामने जो लड़का खड़ा था. वो मुस्किल से मेरे बेटी से एक दो साल बड़ा होगा. मेरे बेटी **** साल की थी. और छोटी उससे एक साल छोटी थी. में आँखें फाडे उसे देख रही थी. कभी नीता को देखती. नीता मेरे मन में उठ रहे सवालो को समझ चुकी थी. उसने अपने होंटो पर मुस्कान लाते हुए कहा. “अंदर चल बताती हूँ, अमित ये बॅग उठा कर अंदर ले आओ’
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- rangila
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Re: छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
nayi kahani ke liye badhaai kubool karo Rohit bhai
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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- Rohit Kapoor
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Re: छोटी सी भूल की बड़ी सज़ा
rangila wrote:nayi kahani ke liye badhaai kubool karo Rohit bhai
thnx bro
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